1990 के खाड़ी युद्ध पर आधारित रोमांचक फिल्म ‘‘एअरलिफ्ट’’ खत्म होने के बाद यही पता नही चलता कि फिल्म का नाम एअरलिफ्ट क्यों है? फिल्म मे रोमांच का अता पता नही है. फिल्म की गति धीमी है. इसे कम से कम 15 मिनट कम किया जा सकता था.

फिल्म ‘‘एअरलिफ्ट’’ की कहानी 1990 के खाड़ी युद्ध की सत्यकथा पर आधारित है. यह कहानी 1990 में घटे इराक व कुवैत के बीच के युद्ध के समय भारतीय सेना के जांबाज जवानों द्वारा कुवैत में फंसे एक लाख सत्तर हजार भारतीयों की सकुशल वापसी पर आधारित है. यह घटना‘‘गिनीज बुक्स आफ वल्र्ड रिकार्ड’’ में भी दर्ज है.

मूलतः भारतीय रंजीत कत्याल (अक्षय कुमार) कुवैत में बसे बहुत बड़े उद्योगपति है. वह खुद को भारतीय की बजाय कुवैती ही मानते हैं. ईराक से युद्ध छिड़ने के कुछ समय बाद एक दिन रंजीत को अहसास होता है कि वह और उनकी पत्नी अमृता कत्याल (निम्रत कौर) तथा बच्चे अब कुवैत में सुरक्षित नही है. और वह अनजाने ही कुवैत से 1,70,000 भारतीयों को वापस भारत भेजने का मसीहा बन जाते हैं. इस बीच रंजीत का मुकाबला मेजर खलफ बिन जैद (इनामुल हक) से होता है, जो पग पग पर उनके लिए मुसीबते खड़ी करता रहता है.

रंजीत इराकी विदेश मंत्री तारिज एजराज से मदद मांगते है, पर यह योजना विफल हो जाती है. अंततः रंजीत दिल्ली मे विदेश मंत्रालय मे कार्यरत  अफसर संजीव कोहली से बात करके रास्ता निालने में सफल होते हैं. इराकी इतिहास में ऐसा पहला बार होता है, जब भारत सरकार के प्रयासों के तहत 59 दिनों के अंदर 488 भारतीय व्यावसायिक हवाई जहाज उड़ान भरकर 170000 भारतीयों को सकुशल अपने देश ले आते हैं.

फिल्म में इनामुल हक का इराकी मेजर का किरदार बेमतलब का नजर आता है. फिल्म में इस बात का चित्रण है कि यदि देश की आईएएस लाबी चाहे तो हर काम संभव है. देश का विदेश मंत्री खुद सजीव कोहली से कहता है कि वह तो आते जाते है, पर अफसर रिटायरमेंट तक रहेंगे.

फिल्म मे देशभक्ति की बात की गयी है तो वहीं उन्हे आयना दिखया गया है जो कहते है कि देश ने उनके लिए क्या किया? फिल्म में इराकी सैनिकों के अत्याचार को दिखाकर सद्दाम हुसैन का अपनी सेना पर किस तरह का असर था, इसका चित्रण था, यह नजर आता है. फिल्म में मनोरंजन का अभाव है. फिल्म के कुछ सीन बीच बीच मे डाक्यूमेंट्री का अहसास करा देते हैं. सरकार व दूतावास की कार्यशैली पर भी कटाक्ष है. मगर 35 साल में क्या बदलाव आए हैं, उसका जिक्र नही है.

बतौर निर्देशक राजा कृष्णा मेनन से जो उम्मीद थी, उस पर वह खरे नहीं उतरे हैं. फिल्म के कुछ संवाद अच्छे हैं. फिल्म के निर्देशक राजा कृष्णा मेनन, लेखक रितेश शाह, सुरेश नायर, संगीतकार अमाल मलिक और अंकित तिवारी, गीतकार कुमार तथा कलाकाकर हैं – अक्षय कुमार, निम्रत कौर, फरयाना वजहेर, इनामुल हक, लीना, पूरब कोहली, कुमुद मिश्रा, प्रकाश बेलावडी.

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