20 नवंबर, 2015 को 5वीं बार बिहार का मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार ने सब से बड़ा ऐलान कर डाला कि 1 अप्रैल, 2016 से बिहार में शराब पर पूरी तरह से रोक लगा दी जाएगी. बिहार में औरतें काफी दिनों से शराब पर रोक लगाने की मांग करती रही हैं. उन के मर्द शराब पीते हैं और इस का खमियाजा औरतों और बच्चों समेत समूचे परिवार को उठाना पड़ता है. शराबबंदी का ऐतिहासिक ऐलान कर के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने इरादे तो जता दिए हैं, लेकिन इस फैसले से सरकार के सामने कई चुनौतियां और मुश्किलें खड़ी होने वाली हैं, जिन से निबटना आसान नहीं होगा. दरअसल, जहां भी शराब पर रोक लगती है, वहां शराब माफिया और तस्करों का बड़ा नैटवर्क खड़ा हो जाता है और सरकार के मनसूबे फेल हो जाते हैं. शराब पर रोक भी नहीं लग पाती है और सरकार को इस से मिलने वाले हजारों करोड़ रुपए से हाथ भी धोना पड़ता है.

बिहार में लाइसैंसी दुकानों के अलावा गलियों, ठेलों, सब्जी की दुकानों, छोटेमोटे ढाबों में बड़े पैमाने पर शराब का धंधा धड़ल्ले से चलता है. पाउच में बिकने वाली शराब के कारोबार का कोई हिसाबकिताब ही नहीं है. सुबह उठते ही शराब से कुल्ला करने वालों और रात को सोते समय भी शराब गटकने वालों की काफी बड़ी तादाद है. ऐसे लोगों के मुंह से शराब को छुड़ाना सरकार के लिए काफी बड़ी मुसीबत बनेगी.

राज्य सरकारों के मिलने वाले राजस्व का एक बड़ा हिस्सा शराब से ही आता है. राज्य सरकारें इसे बढ़ावा देने में ही लगी रही हैं. इस के साथ ही शराबबंदी का दूसरा पहलू यह भी है कि शराब पर रोक लगाने की नीति खास कामयाब नहीं हो सकी है.

वैसे, हरियाणा में बंसीलाल सरकार ने शराब पर रोक लगाई थी, पर उन्हें कामयाबी नहीं मिल सकी. एनटी रामाराव ने आंध्र प्रदेश में शराबबंदी लागू की थी, पर कुछ समय बाद ही उन्हें यह फैसला वापस लेना पड़ा था.

शराबबंदी लागू होने से गैरकानूनी नैटवर्क पैदा हो जाता है और इस से संगठित अपराधी और दबंग समूह काफी ताकतवर हो जाते हैं.

गुजरात में साल 1960 से ही शराब पर रोक लगी हुई है, इस के बाद भी अपराधी समूह सरकार और कानून को ठेंगा दिखाते हुए शराब का धंधा चला रहे हैं. मुंबई में अपराधियों और माफिया का बड़ा नैटवर्क बनने के पीछे वहां लंबे समय तक लागू शराबबंदी को ही जाता है.

शराबबंदी के पीछे की सचाई यही है कि उस से सरकार को तो राजस्व का बड़ा नुकसान होता है, पर चोरीछिपे और तस्करी के जरीए शराब का धंधा चला कर अपराधियों की जमात ताकतवर बन कर सरकार के लिए सिरदर्द बन जाती है.

इस से पहले बिहार में साल 1977 में जब कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री बने थे, तब उन्होंने शराब पर पाबंदी लगा दी थी. उस के बाद शराब की तस्करी बढ़ने और गैरकानूनी शराब का कारोबार करने वाले अपराधियों के पनपने के बाद शराबबंदी को वापस ले लिया गया था.

उस समय शराबबंदी डेढ़ साल से ज्यादा समय तक नहीं चल सकी थी. सरकार के खिलाफ कई विधायकों ने ही मोरचा खोल डाला था. शराब की तस्करी नए कारोबार के रूप में पैदा हो गई थी.

हरियाणा, आंध्र प्रदेश, मिजोरम में भी शराबबंदी कामयाब नहीं हो सकी और वहां शराब की बिक्री जारी है. वैसे, केरल में 30 मई, 2014 से शराब की दुकानों को लाइसैंस देने का काम सरकार ने बंद कर दिया है और सरकार को यकीन है कि अगले कुछ सालों में राज्य में शराब पर पूरी तरह से पाबंदी लग जाएगी.

गुजरात में शराब नहीं बिकने देने के एवज में केंद्र सरकार हर साल राज्य सरकार को सौ करोड़ रुपए देती है. सरकारी फाइलों में समूचे गुजरात में 61 हजार, 535 लोगों के पास शराब पीने का परमिट है. इन में से 12 हजार, 803 केवल अहमदाबाद में हैं.

उत्पाद महकमे से परमिट यह कह कर हासिल किया जाता है कि शराब उन के लिए दवा है. इस के लिए डाक्टर से सर्टिफिकेट लेने की जरूरत होती है.

डाक्टर जब सर्टिफिकेट देता है कि परमिट मांगने वाले की दिमागी और जिस्मानी हालत को ठीक रखने के लिए शराब जरूरी है.

डाक्टर ही शराब पीने की लिमिट तय करता है और उसी हिसाब से उसे शराब मिल सकती है. अगर परमिट मांगने वाला सरकारी मुलाजिम है, तो उसे अपने सीनियर से एनओसी लेना होता है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की शराबबंदी के फैसले को कई लोग गलत ठहराने की कवायद में लग गए हैं और इसे नीतीश कुमार की बड़ी गलती करार देने लगे हैं.

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि देशभर में शराब की लौबी काफी मजबूत है. शराबबंदी के बाद सरकार के लिए सब से बड़ी चुनौती इस की कालाबाजारी और तस्करी से निबटना है.

गैरकानूनी रूप से देशी शराब के बनने और बिकने में तेजी आने का खतरा भी है. इस के अलावा सैरसपाटे के लिए बिहार आने वाले देशीविदेशी सैलानियों की तादाद में भी कमी आएगी.

रिटायर आईएएस अफसर बीएन सिंह बताते हैं कि गैरकानूनी शराब की तस्करी को रोकने के लिए पड़ोसी राज्यों के बौर्डर पर ठोस निगरानी तंत्र बनाने होंगे. कई गैरजरूरी मदों में खर्च को कम कर के आमदनी की कमी को दूर किया जा सकता है.

इस के अलावा सैलानियों को कुछ शर्तों के साथ शराब के इस्तेमाल पर छूट देने की जरूरत भी पड़ेगी.

9 जुलाई 2015 को ‘मद्य निषेध दिवस’ के मौके पर हुए एक समारोह में स्वयं सहायता समूह की कुछ औरतों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने कड़वे अनुभव सुनाए थे.

खगडि़या के चौथम गांव की आशा देवी, गया के खिजसराय गांव की रेखा देवी और मुजफ्फरपुर की गीता ने मुख्यमंत्री को बताया था कि किस तरह से उन्होंने गांव की औरतों के साथ मिल कर अपने इलाके में शराब पर रोक लगा दी है.

इस समारोह में पहुंची हजारों औरतों ने एकसाथ आवाज लगाई थी कि मुख्यमंत्रीजी शराब को बंद कराइए. इस से हजारों घरपरिवार बरबाद हो रहे हैं.

उन्हीं औरतों के किस्सों को सुन कर नीतीश कुमार ने उसी समय ऐलान कर दिया था कि अगर वे दोबारा सत्ता में आएंगे, तो शराब पर पूरी तरह से पाबंदी लगा देंगे.

विधानसभा चुनाव में औरतों ने बढ़चढ़ कर वोट डाले. औरतों के वोट फीसदी 54.85 के मुकाबले मर्दों का वोट फीसदी 50.70 रहा था. साल 2000 के चुनाव में मर्दों के मुकाबले 20 फीसदी औरतों ने वोट की ताकत का इस्तेमाल किया था.

शराबबंदी का ऐलान करने के साथ पंचायत चुनाव में औरतों को 50 फीसदी रिजर्वेशन दे कर नीतीश कुमार ने औरतों को गोलबंद कर लिया था. इस के साथ ही बिहार सरकार की नौकरियों में औरतों को 35 फीसदी रिजर्वेशन देने का भी दावा नीतीश कुमार ने चुनाव प्रचार के दौरान किया था.

बिहार में शराब पर पूरी तरह से रोक लगने से सरकार को तकरीबन 4 हजार करोड़ रुपए का सालाना नुकसान होगा. साल 2015-16 में राज्य के उत्पाद महकमे ने देशी, विदेशी और मसालेदार शराब की बिक्री से 3645.77 करोड़ रुपए के राजस्व का लक्ष्य रखा है.

देशी और मसालेदार देशी शराब से 1762.93 करोड़ और विदेशी शराब से 1882.84 करोड़ रुपए की आमदनी का लक्ष्य तय है. इस के अलावा वैट के तहत शराब से टैक्स के रूप में 1130.20 करोड़ रुपए की आमदनी होने का भी अंदाजा है.

फिलहाल तो बिहार में शराब की कुल 5,967 लाइसैंसी दुकानें हैं. इस में 2,471 देशी शराब की और 1,434 विदेशी शराब की दुकानें हैं.

गौरतलब है कि साल 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार ने साल 2006 में नई शराब नीति बनाई थी, जिस के बाद राज्य में शराब के कारोबार में जबरदस्त उछाल आया था.

साल 2005-06 में सरकार को शराब से 319 करोड़ रुपए की आमदनी होती थी, जो 2008-09 में बढ़ कर 749 करोड़ रुपए तक पहुंच गई थी.

उस के बाद तो शराब ने सरकार को मुनाफे के नशे में ही डुबो दिया. साल 2011-12 में शराब ने सरकार को 2,045 करोड़ रुपए का मुनाफा दिया, जो 2014-15 में बढ़ कर 3,665 करोड़ रुपए तक पहुंच गया.

आज की तारीख में बिहार में 1,410 लाख लिटर शराब की खपत होती है. इस में 990.36 लाख लिटर देशी शराब, 420 लाख लिटर विदेशी शराब और 512.37 लाख लिटर बीयर की खपत होती है.

बिहार में प्रति व्यक्ति प्रति सप्ताह देशी शराब और ताड़ी की खपत तकरीबन 266 मिलीलिटर और विदेशी शराब और बीयर की खपत 17 मिलीलिटर है. पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा 34 मिलीलिटर और 5 मिलीलिटर का और दिल्ली में 56 मिलीलिटर और 86 मिलीलिटर का है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते हैं कि देश की कुल आबादी के 30 फीसदी लोग शराब पीते हैं, जिन में से 13 फीसदी लोग रोजाना शराब पीने के आदी हैं.

हर साल ही शराब पीने वालों का आंकड़ा 8 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रहा है. इस के अलावा गांवों के रहने वाले 45 फीसदी लोग शराब के आदी हैं और सड़क हादसों में होने वाली कुल मौतों में 20 फीसदी मौतें जरूरत से ज्यादा शराब पीने की वजह से होती हैं.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराबबंदी पर रोक लगा कर मजबूत इरादे जता दिए हैं और सियासी हालात भी उन के पाले में हैं, इसलिए वे शराबबंदी के अपने वादे को सच में बदलने के लिए कमर कस चुके हैं.

गौरतलब है कि बिहार में गुटका और काली पौलीथिन पर भी पाबंदी लगी हुई है. इस के बाद भी गुटका खुलेआम बिकता रहा है और काली पौलीथिन का भी धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है. कहीं शराबबंदी के फैसले का भी यही हाल न हो. अगर ऐसा हुआ, तो बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इमेज पर बुरा असर पड़ सकता है.

हर तरह की शराब पर पाबंदी

– अब्दुल जलील मस्तान उत्पाद मंत्री, बिहार

बिहार के उत्पाद और मद्य निषेध मंत्री अब्दुल जलील मस्तान बताते हैं कि शराबबंदी का मतलब राज्य में हर तरह की शराब पर पूरी तरह से पाबंदी लगाने का है. देशी, विदेशी, मसालेदार, हंडि़या समेत सभी तरह की शराब पर 1 अप्रैल, 2016 से पाबंदी लग जाएगी.

इस से सरकार को होने वाले हजारों करोड़ रुपए के नुकसान के सवाल पर मंत्री अब्दुल जलील पस्तान कहते हैं कि यह सरकार का कल्याणकारी कदम है, इसलिए नुकसान की अनदेखी की जाएगी और दूसरे मदों से राजस्व की उगाही को बढ़ाया जाएगा.

दूसरे राज्यों से नाजायज तरीके से शराब के लाए जाने के डर को खारिज करते हुए वे दावा करते हैं कि पाबंदी लगने के बाद जब शराब की खरीदबिक्री दोनों बंद हो जाएगी, तो दोनों तरह के काम को अपराध माना जाएगा. बेचने के साथ खरीदने वालों को भी कानूनी कार्यवाही का सामना करना पड़ेगा.

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