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अंपायरों के हेडफोन यूज करने पर धोनी ने जताई नाराजगी

भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी हेडफोन सहित कुछ अंपायरिंग उपकरणों के इस्तेमाल को लेकर बिल्कुल भी खुश नहीं है. उनका मानना है कि ये अंपायरों को खचाखच भरे स्टेडियम में बल्ले को छूकर निकलने की आवाज सुनने से रोकते हैं. बांग्लादेशी अंपायर एसआईएस सैकत को आशीष नेहरा की गेंद पर बल्लेबाज खुर्रम मंजूर के बल्ले से गेंद छूकर निकलने का पता नहीं चल पाया तथा भारतीय कप्तान इसको लेकर खुश नहीं थे.

अंपायरिंग के बारे में पूछे जाने पर व्यंग्यात्मक लहजे में धोनी ने कहा कि आप विश्व कप टी20 से पहले मुझ पर प्रतिबंध तो नहीं लगवाना चाहते. आप सभी ने अंपायरिंग देखी है. यह आपका निर्णय है. उन्होंने कहा कि एक चीज निश्चित तौर पर होनी चाहिए. अंपायर अब वॉकी टॉकी इस्तेमाल करने के साथ ही एक कान में हेडफोन लगाते हैं जिसका साफ मतलब है कि अंपायर एक ही कान का इस्तेमाल करते हैं.

यह एक मुश्किल काम है. किसी को भी इस पर सोचना चाहिए. वे एक कान से सुन रहे हैं. मुझे नहीं लगता कि जब कोई गेंदबाज गेंदबाजी कर रहा है एक हेडफोन लगाने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि आपको उस समय उनका इस्तेमाल नहीं करना है. दोनों कानों का इस्तेमाल करना बेहतर होगा क्योंकि मैदान पर काफी चीजें होती हैं.

स्मार्टफोन को वायरस से बचाएं, ये टिप्स आजमाएं

आधुनिक समय मे स्मार्टफोन सभी के लिए एक बड़ी जरूरत बन चुका है. हाउसवाइफ से लेकर बड़े बड़े बिजनेसमैन तक बिना स्मार्टफोन के कई कार्यों को करने मे असक्षम हैं. लेकिन स्मार्टफोन रखने वाले ज़्यादातर लोगों को उसके बेसिक फीचरों के अलावा ज्यादा कुछ नहीं पता होता या यूं कह लीजिये की वो जानना ही नहीं चाहते, क्योंकि उनकी जरूरत बेसिक फीचेर्स की जानकारी से ही पूरी हो जाती है. लेकिन लोगों को नहीं पता कि स्मार्टफोन के कुछ फीचर्स ऐसे होते हैं जिनकी जानकारी होने से फोन को ‘हैंग’ होने और ‘वायरस अटैक’ जैसी बड़ी परेशानियों से बचाया जा सकता है.

जरा सोचिए आप अपने क्लाइंट को एक जरूरी मेल भेज रहें हों और फोन हैंग हो जाए या फिर किसी जरूरी मैसेज को पढ़ने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन मैसेंजर बॉक्स खुले ही नहीं. ऐसे में काम का जो नुकसान होता है वो तो होता ही है, लेकिन साथ ही होने वाली इरिटेशन ब्लड प्रेशर बढ़ा देती है. लेकिन इस समस्या के पीछे मोबाइल मे घुसे बिन बुलाए मेहमान यानि ‘वायरस’ ही होते हैं.

आपको जान कर हैरानी होगी की इंटरनेट पर हर सेकेंड ढेरों नए वायरस का जन्म होता है और यह वायरस ही आपके मोबाइल मे घुसपैठ कर फोन की स्पीड को कम कर देते हैं, जिससे फोन हैंग होना शुरू हो जाता है. यदि कुछ बातों को ध्यान में रखा जाए तो वायरस से आप अपने फोन को बचा सकते हैं.

सिस्टम अपडेट
आपके फोन मे कभी ओपेरेटिंग सिस्टम अपडेट का डायलॉग बॉक्स बन कर आए, तो उसे नज़रअंदाज़ न करें बल्कि सेटिंग्स मे सिस्टम अपडेट्स पर जाकर देखें कि क्या आपके स्मार्टफोन के लिए कोई नया सिस्टम सॉफ्टवेयर उपलब्ध है. यदि है तो उसमे लेटर (later) या नाओ (now) का बटन दिया गया होता है, आपको नाओ बटन दबाना होगा. आप चाहें तो अपडेट हाइलाइट्स भी पढ़ सकते हैं. इससे आप जान सकेंगे की इस नए सॉफ्टवेयर से आपके फोन को क्या फायदे होंगे. दरअसल पुराने ओएस में पैच ना होने की वजह से वायरस ज्यादा अटैक करते हैं.

अननोन सोर्स एप को करें ऑफ
अपने स्मार्टफोन के सेटिंग्स मे जाकर सिक्योरिटी सेटिंग्स को क्लिक करें. इसमे डिवाइस एडमिनिस्ट्रेशन नाम का विकल्प होगा, जिसमे अननोन सोर्स ‘Unknown Sources’ का ऑप्शन मिलेगा. यदि आपके फोन मे अननोन सोर्स बटन ऑन होगा, तो आपके फोन मे बिना किसी जानकारी के अपने आप कई ऐप डाउनलोड हो जाएंगे. इसलिए इस बटन को ऑफ कर दें. इसको हटाने से आपके फोन में वो एप इंस्टॉल नहीं होंगे जो वेरिफाइड नहीं हैं. 

स्क्रीन लॉक का करें इस्तेमाल
साधारण मोबाइल फोन की तरह ही स्मार्टफोन मे भी स्क्रीन लॉक सिस्टम होता है. बल्कि स्मार्टफोन मे कई तरह के लॉक सिस्टम होते हैं. मसलन पैटर्न लॉक, पिन लॉक, ड्रैग स्क्रीन लॉक आदि किसी भी विकल्प के इस्तेमाल से मोबाइल स्क्रीन को लॉक किया जा सकता है. इसके लिए सेटिंग्स में जा कर स्मार्टफोन में दिए गए स्क्रीन लॉक को इनेबल कर लें.

एंटी वारस करें इंस्टॉल
कम्प्यूटर और लैपटॉप की ही तरह स्मार्टफोन के लिए भी एंटी वायरस आते हैं. आपके स्मार्टफोन के गूगल स्टोर में आपको फ्री एंटी वायरस मिल जाएंगे. आप उनमें से वो एंटी वायरस डाउनलोड करें जो वेरिफाइड हों और जिनके रिव्यू अच्छे हों. रिव्यू देखने के लिए ऐप को दिये गए स्टार्स को देखें. जिसे ज्यादा स्टार्स मिले हों उसी एंटी वायरस को चुनें. एंटी वायरस से समय-समय पर अपने फोन को स्कैन करते रहें. इससे यदि वायरस होंगे भी तो डिलीट हो जाएंगे.

ब्लूटूथ ऑफ रखें
ब्लूटूथ एक बहुत अच्छी सुविधा है यदि इसका सही तरह से इस्तेमाल किया जाए, नहीं तो यह एक बहुत ही खतरनाक चीज भी साबित हो सकती है. अक्सर लोग दूसरों के फोन से सामाग्री लेने के लिए इसे ऑन तो करते हैं मगर ऑफ करना भूल जाते हैं. यह भूल आपके लिए बहुत घातक साबित हो सकती है . क्योंकि ब्लूटूथ के जरिये कोई भी अपने मोबाइल से आपके मोबाइल मे घुस कर कोई भी जानकारी हासिल कर सकता है. इतना ही नहीं आपकी पर्सनल तस्वीरें, बैंक अकाउंट्स की डीटेल, यहां तक की आपकी सोशल नेटवर्क अकाउंट को हैक कर सकता है. ब्लूटूथ के जरिए आपके फोन में मैलवेयर भेज सकता है.

ओपन वाईफाई हॉटस्पॉट यूज न करें
आजकल जगहजगह वाईफ़ाई मिल जाते हैं जो बिना पासवर्ड मांगे ही कनेक्ट भी हो जाते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कभी फ्री इंटरनेट के लालच मे नहीं आना चाहिए और कभी भी खुले हुए वाईफाई हॉटस्पॉट से अपना फोन कनेक्ट नहीं करना चाहिएं, क्योंकि ऐसा करने पर आपके फोन में वायरस तो आएगा ही, आपका फोन हैक भी हो सकता है. 

पॉप अप ऑप्शन को ब्लॉक करें
अक्सर इंटरनेट इस्तेमाल करते वक्त क्लिक करने पर पॉप अप खुल जाता है और गलती से उसपर क्लिक भी हो जाता है. जिससे वायरस आसानी से फोन मे घुस जाते हैं. इसलिए अपने स्मार्टफोन के ब्राउजर की सेटिंग्स में जाएं. यहां आपको साइट सेटिंग का ऑप्शन मिलेगा. वहां से पॉप अप को ब्लॉक कर दें. साथ ही कैमरा और माइक्रोफोन ऑप्शन को डिसेबल या आस्क फर्स्ट कर दें, ताकि वेबसाइट्स आपके कैमरे और माइक्रोफोन का यूज ना कर सकें. 

ईमेल अटैचमेंट खोलने से बचें
हम सभी को मेल बॉक्स मे कई स्पैम मेल्स आते हैं. कई बार हम समझ नहीं पाते और उन्हें ओपन कर देते हैं. इन मेल्स मे कई बार अटैचमेंट फाइल्स भी दी गई होती हैं. इनमे कई लुभावने ऑफर होते हैं लेकिन वास्तव मे ये सब झूठे होते हैं. इन्हें खोलने पर वायरस अटैक भी हो सकता है, इसलिए कोई भी अनजान ईमेल का अटैचमेंट खोलने से बचें, क्योंकि ज्यादातर वायरस ईमेल अटैचमेंट के जरिए ही आते हैं. खासतौर पर मोबाइल में कभी भी कोई अटैचमेंट तब तक न खोलें, जब तक आपको विश्वास न हो की यह किसी जानकार ने ही आपको भेजी हैं.

संदीपा धरः अंतरराष्ट्रीय म्यूजिकल शो ने बदल दी जिंदगी

बौलीवुड में हर इंसान को सफलता पाने के लिए लंबा व कठिन संघर्ष करना पड़ता है. इससे मूलतः कश्मीर पंडित संदीपा धर भी अछूती नहीं है. नृत्य में महारत रखने वाली संदीपा धर ने 2010 में ‘राजश्री प्रोडक्शन’ की फिल्म ‘‘इसी लाइफ में’’ से अपने अभिनय करियर की शुरूआत की थी. पर उन्हे सफलता नहीं मिली. 2012 में उन्हे सलमान खान के साथ फिल्म ‘‘दबंग 2’’ में छोटे से किरदार से संतोष करना पड़ा. इसके बाद संदीपा धर ने अपने दोस्त व फिल्म निर्माता साजिद नाडि़यादवाला की फिल्म ‘‘हीरोपंती’’ में भी छोटा सा किरदार निभाया. मगर इस फिल्म की शूटिंग शुरू होने से पहले ही संदीपा धर को ‘‘आस्ट्रेलिया डांस थिएटर’’ द्वारा निर्मित म्यूजिकल शो ‘‘वेस्ट साइड स्टोरी’’ से जुड़ने का आफर मिला. नृत्य में पारंगत होने की वजह से उन्होने तुरंत इस आफर को स्वीकार कर लिया. इतना ही नहीं संदीपा धर ने इस इंटरनेषनल शो को करते हुए बीच बीच में छुट्टी लेकर ‘‘हीरोपंती’’की शूटिंग पूरी की थी.

पूरे दो साल तक ‘‘वेस्ट साइड स्टोरी’’ म्यूजिकल शो करते रहने के बाद वह पुनः बौलीवुड में सक्रिय हुई हैं. अब वह निर्माता विजय बंसल और निर्देशक मनोज सिद्धेष्वर तिवारी की ग्यारह मार्च को रिलीज होने वाली नई फिल्म ‘‘ग्लोबल बाबा’’ को लेकर उत्साहित हैं. वैसे संदीपा धर ‘‘ग्लोबल बाबा’’ के अलावा 22 अप्रैल को रिलीज होने वाली सौरभ वर्मा निर्देशित फिल्म ‘‘सेवन आवर्स टू गोवा’’, अरबाज खान निर्मित फिल्म ‘‘पहचान’’ तथा ‘‘वायकाम 18’’ की फिल्म ‘‘गोलू गप्पू’’ में भी लीड किरदार निभा रही हैं.

संदीपा धर का मानना है कि म्यूजिकल शो ‘‘वेस्ट साइड स्टोरी’’ को लगातार दो साल करके उन्होने एक नए इतिहास का सूत्रपात किया है. इस इंटरनेशनल शो से जुड़ने वाली वह एकमात्र भारतीय अदाकारा हैं. ‘‘म्यूजिकल शो ‘‘वेस्ट साइड स्टोरी’’ की चर्चा चलने पर संदीपा धर कहती हैं-‘‘मैं मूलतः डांसर हूं. इसी वजह से मैंने अंतरराष्ट्रीय म्यूजिकल शो ‘वेस्ट साइड स्टोरी’ करने के आफर को स्वीकार किया. मैं पिछले दो वर्षों से इसे कर रही हूं. इस शो में मैं मारिया का किरदार निभाती हूं, जो कि शो की मुख्य किरदार है. मारिया एक भोली भाली, निराशावादी रोमांटिक लड़की है, जिसे टोनी से प्यार हो जाता है. तब उसे पता चलता है कि वह तो दो ग्रुपों की हिंसात्मक झड़प के बीच फंस चुकी है. यह शो विलियम शेक्सपियर के नाटक ‘‘रोमियो और ज्यूलिएट’’ से प्रेरित है.

संदीपा धर आगे बताती हैं-‘‘इस शो में एकमात्र मैं ही भारतीय कलाकार हूं. अन्यथा बाकी के सभी कलाकार आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, इंडोनेशिया या दूसरे देशों के हैं. इस शो के लिए मुझे ज्यादातर समय विदेश में ही रहना पड़ता है. यह अंग्रेजी भाषा का शो है. गाने भी अंग्रेजी में हैं. इस शो में भारतीयता नहीं है. यह एक ब्राडवे संगीत प्रधान शो है, इसे हम अलग अलग देशों में जाकर परफार्म करते हैं. अब तक हम जापान, फिलीपीन, इंडोनेशिया, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड सहित 13 देशों में सौ शो कर लिए हैं. पर जब बीच बीच में छुट्टियों में भारत आती थी, तब ‘दबंग 2’ या ‘हीरोपंती’ की. अब मैं वापस आयी हूं तो ‘ग्लोबल बाबा’ के अलावा तीन अन्य हिंदी फिल्में की हैं.’

तो क्या यह माना जाए कि आपकी प्राथमिकता फिल्म की बजाय थिएटर और यह अंतरराष्ट्रीय शो ही रहा है? इस सवाल पर संदीपा धर ने कहा-‘‘जी हां! दो साल के लिए अंतरराष्ट्रीय शो ही मेरी प्राथमिकता थी. इसकी मूल वजह यह थी कि मैंने इस शो के लिए दो साल का बांड साइन किया था. इस शो को करने के अलावा मैं नृत्य की पढ़ाई भी कर रही थी. इसलिए दो साल तक फिल्म मेरे लिए दूसरी प्राथमिकता थी. मगर अब फिल्म पहली प्राथमिकता हो गयी है. अब म्यूजिकल शो दूसरी प्राथमिकता बन गया है. अभी तीन सप्ताह तक स्पेन में इस शो को परफार्म करने के बाद वापस लौटी हूं.’’

‘‘वेस्ट साइड स्टोरी’’ को मिले रिस्पांस के सवाल पर संदीपा धर ने  कहा-‘‘कमाल का रिस्पांस मिलता है. खासकर यूरोप में कला, संगीत आदि को बहुत ज्यादा इज्जत दी जाती है. वहां के लोग कलाकारों की पूजा करते हैं. इसलिए हमें बहुत अच्छा रिस्पांस मिला. वह लोग इस तरह के शो काफी पसंद करते हैं. यह काफी मनोरंजक शो है. इसलिए भी लोग पसंद करते हैं. विदेशों में ब्राडवे काफी लोकप्रिय रहा है. यह कई वर्षों से चल रहा है. यह शेक्सपियर का नाटक है. विदेशियों को ब्राडवे, संगीत, थिएटर में ज्यादा रूचि है.’’

जब संदीपा धर से पूछा गया कि क्या यह माना जाए कि इस शो की वजह से फिल्मों के आफर आसानी से मिल रहे हैं? तो संदीपा ने कहा-‘‘इस शो को करने से एक कलाकार के तौर पर मैं ग्रो कर रही हूं, जिसका फायदा फिल्मों में अभिनय करते समय मुझे मिलता है. मेरे फिल्मों में अभिनय करने से शो को भी फायदा मिलता है. इसके अलावा हमें इतना एक्सपोजर मिलता है कि चीजों को देखने का नजरिया बदल जाता है. तो यह दोनो चीजें एक दूसरे की मदद करते है. मैं एक हिंदी फिल्म कलाकार हूं, तो यह बात अंतरराष्ट्रीय शो को फायदा पहुंचाता है. क्योंकि उनके बीच बौलीवुड का क्रेज बहुत है. अब तो पूरे विश्व में बालीवुड की धूम है.’’

फिल्म ‘‘ग्लोबल बाबा’’ में संदीपा धर खोजी टीवी पत्रकार की भूमिका में नजर आएंगी, जो कि ढोंगी बाबा का पर्दाफाश करती हैं. जबकि फिल्म ‘‘सेवन आवर्स टू गो’’ में वह पुलिस अफसर के किरदार में है.

हमारे देश में धारा 377 का कोई हक नहीं: हंसल मेहता

समाज को उसका आइना दिखाने के हथियार के रूप में सिनेमा का उपयोग करने वाले फिल्मकार हंसल मेहता का मानना है कि सिनेमा समाज को नहीं बदलता. सिनेमा तो लोगों को सोचने पर विवश करता है. हंसल मेहता की राय में किसी भी बदलाव की पहली सीढ़ी तो सोच ही होती है. अपने इसी यकीन के साथ हंसल मेहता ने लगभग सोलह साल पहले ‘माईग्रेशन’ की समस्या पर मनोज बाजपेयी को लेकर एक कमर्शियल फिल्म ‘दिल पे मत ले यार’ बनायी थी. जिसे बाक्स आफिस पर अपेक्षित सफलता नहीं मिल पायी थी. उसके बाद भी वह कई फिल्में निर्देशि करते रहे.

फिर 2013 में मानवाधिकारों की लड़ाई में शहीद हुए वकील शाहिद आजमी की जिंदगी पर यथार्थपरक फिल्म ‘‘शाहिद’’ लेकर आए, जिसने उन्हे राष्ट्रीय पुरस्कार दिला दिया. फिर 2014 में हंसल मेहता ने पत्रलेखा और राजकुमार राव को लेकर एक बार फिर ‘माईग्रेशन’ की समस्या पर रियालिस्टिक फिल्म ‘‘सिटी लाइट्स’’ का निर्देशन किया. फिल्म ‘‘सिटी लाइट्स’’ में दुःख दर्द और बोझिलपना इतना ज्यादा था कि सिनेमा को महज मनोरंजन का साधन मानने वाला दर्शक ‘सिटी लाइट्स’ से दूर ही रहा. पर हंसल मेहता आज भी लोगों को सोचने पर मजबूर करने वाला सिनेमा बना रहे हैं. हाल ही में  उनकी फिल्म ‘‘अलीगढ़’’ रिलीज हुई है. जिसमें उन्होने अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे स्व. प्रोफेसर सिरास की कहानी की सत्यकथा को पेश किया है. जिन्हे ‘समलैंगिकता’के अपराध में 64 साल की उम्र में नौकरी से निकाल दिया गया था.

फिल्म ‘‘अलीगढ़’’ में इस बात का रेखांकन है कि प्रोफेसर सिरास के साथ नाइंसाफी हुई. दूसरा सवाल उठाया गया है कि किसी इंसान के बेडरूम में झांकने की इजाजत किसी को नहीं होनी चाहिए. इन्ही मुद्दों के साथ केंद्र में ‘समलैगिकता’ का मुद्दा भी है. इस फिल्म में भी दुःख दर्द और बोझिलपना है. पर यह फिल्म कुछ ज्यादा ही समसामायिक हो गयी है. क्योंकि इन दिनों सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच संविधान की धारा ‘‘377’’ को लेकर सुनवायी कर रही है. 377 के अनुसार समलैंगिकता अपराध है.

बहरहाल, समलैंगिकता के पक्ष में खड़े नजर आते हंसल मेहता से लंबी बातचीत के दौरान जब हमने पूछा कि इन दिनों सुप्रीम कोर्ट में 377 यानी कि समलैंगिकता का मुद्दा विचाराधीन है. ऐसे में हंसल मेहता की फिल्म ‘‘अलीगढ़’’ के प्रदर्शन का असर पड़ेगा या नहीं? इस सवाल पर हंसल मेहता ने कहा-‘‘सभी जानते हैं कि 377 पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच सुनवायी कर रही है. मेरी राय में जो लोग भी 377 के खिलाफ हैं, उन सभी का असर इस सुनवाई पर पड़ेगा. मेरी राय में हमारे इस देश में 377 को रहने का कोई हक नहीं है. यह कानून ब्रिटिश सरकार ने भारत पर शासन करने के दौरान 1860 में लागू किया था. हमारे संविधान का यह हिस्सा कब और कैसे बना, ईश्वर जाने. 1860 से पहले हमारे देष में समलैंगिकता को कभी भी गलत या अपराध नहीं माना गया. मैथोलाजी में इसके तमाम उदारहण मिल जाएंगें. खजुराहो की मूर्तियों व कामसूत्र में आपको होमोसेक्सुआलिटी मिल जाएगी. ब्रिटिश सरकार ने हमारे देश के लोगों को विभाजित करने और विक्टोरियन शासन लागू करने के लिए यह कानून बनाया था. शासक कुछ नियम कानून ऐसे लागू करता हैं, जिससे लोग उनके गुलाम हो जाएं. यह नियम हमें झुकाने के लिए बनाया गया था. इसलिए मैं सरकार से सवाल पूछ रहा हूं कि उन्हें इतना बुरा क्यों लग रहा है? यह नियम भारत सरकार नहीं, बल्कि ब्रिटिश सरकार का लागू किया हुआ है, तो उसे खत्म करने में उसे खुशी होनी चाहिए.’’

आजादी के बाद से अब 67 साल हो गए. इस बीच किसी भी सरकार ने 377 को बदलने की बात क्यों नहीं सोची? इस सवाल पर हंसल मेहता ने कहा-‘‘हर व्यवस्था में कुछ दकियानूसी और कुछ स्वतंत्रता विचारों के लोग होते हैं. कुछ दकियानूसी लोग मानते हैं कि समलैगिकता गलत है. पर अब मैं महसूस कर रहा हूं कि दकियानूसी लोग भी चाहते हैं कि यह कानून खत्म हो जाए. अब सभी यह मान रहे हैं कि किसी की निजी जिंदगी में ताकझांक करने का हमें कोई हक नहीं है.’’

तमाम फिल्मकार दावा करते रहते हैं कि भारत में अच्छी कहानियों व अच्छे लेखकों का अभाव है. तो फिर हंसल मेहता को अच्छी कहानियां कैसे मिल जाती हैं? इस सवाल पर हंसल मेहता ने बौलीवुड के निर्माताओं व निर्देशकों को आड़े हाथों लेते रहुए कहा-‘‘सभी झूठ बोलते हैं. हमारे देश में असली जिंदगी से जुड़ी हुई कहानियों की बहुतायत है. पर मैं कहानियां ढूढ़ने के लिए नहीं निकलता हूं. बल्कि कहानियां खुद ब खुद मुझे ढूंढ़ लेती हैं. हमारे देश में अच्छे लेखक भी हैं. पर कहानियों में फिल्मकारों के खुद के डूबने की जरुरत है. उस कहानी में अपने आपको ढालना पड़ेगा. इसके लिए मेहनत करनी पड़ेगी, जो कि कोई भी फिल्मकार करना नहीं चाहता. हमारे देश के फिल्मकारों को रेडीमेड की आदत पड़ गई है. सभी मैकडानल संस्कृति में जी रहे हैं. इस संस्कृति ने ही हमारे यहां कम्यूनीकेशन का कबाड़ा किया हुआ है. लोग आलस्यवश फार्मूला फिल्म बनाना चाहते हैं.’’

मुरली शर्माः दिग्गज फिल्म निर्देशकों के ‘लक्की मैस्कट’

कॉमेडी और मेन विलेन के  किरदार निभाते हुए जबरदस्त सफलता बटोरने के बाद मुरली शर्मा अब चरित्रों को प्रधानता देने लगे हैं. वह अब तक हिंदी की पचास के अलावा मराठी भाषा की सात, तमिल भाषा की पांच और तेलगू भाषा की बारह तथा एक मलयालम भाषा की फिल्म में अभिनय कर चुके हैं. मुरली शर्मा उन कलाकारों में से हैं, जिनका हिंदी, मराठी व तेलगू भाषा की बड़े बजट की फिल्मों का हिस्सा होना अनिवार्य शर्त हो गयी है. वह एकमात्र ऐसे कलाकार हैं, जिनकी हर माह कोई न कोई फिल्म रिलीज होती ही है.

ऐसा 2015 में भी हुआ था और अभी 2016 में भी हो रहा है. जी हां! इस बात को कबूल करते हुए मुरली शर्मा कहते हैं-‘‘मैं इस ढंग से फिल्में कर रहा हूं कि हर माह मेरी एक फिल्म रिलीज हो ही जाती है. 2015 के जनवरी माह में ‘बेबी’, फरवरी में ‘बदलापुर’, मार्च में ‘धर्मं संकट में’, जून में ‘एबीसीडी 2’ रिलीज हुई थी. इसी तरह इस साल यानी कि 2016 में जनवरी में प्रदर्शित फिल्म ‘वजीर’ और मराठी फिल्म ‘गुरू’ में था. अब फरवरी में ‘सनम तेरी कसम’ और तेलगू फिल्म ‘सावित्री’ में नजर आया. यानी कि दो माह में चार फिल्में रिलीज हुई. 4 मार्च को ‘जय गंगाजल’ रिलीज होगी. उसके बाद हर माह मेरी एक न एक फिल्म रिलीज होने वाली है.’’

प्रकाश झा निर्देशित फिल्म ‘‘जय गंगाजल’’ में मुरली षर्मा ने मुन्न मर्दानी का ‘गे’ किस्म का निगेटिव किरदार निभाया है. इस किरदार की चर्चा करते हुए मुरली शर्मा ने कहा-‘‘प्रकाश झा निर्देषित फिल्म ‘जय गंगाजल’ में मैंने मुन्ना मदार्नी का निगेटिव किरदार निभाया है. मेरा किरदार पूरी फिल्म में है. मुन्ना मर्दानी थोड़ा सा ‘औरतपना’ जैसा किरदार है. इसे देखकर लोगों को ‘महाभारत’के पात्र शिखंडी की याद आ सकती है. पर मेरी कोशिश रही है कि यह किरदार इस तरह से निभाउं कि कहीं से भी यह कैरीकेचर न लगे.

मुन्ना मर्दानी थोड़ा सा टेढ़ा है. स्थानीय गैंगस्टर या यूं कहें कि गुंडा है. स्थानीय विधायक बबलू पांडे (मानव कौल) का मुन्ना मर्दानी एकदम खास आदमी है. बबलू पांडे का छोटा भाई (निनाद कामत) है. मगर बबलू पांडे, मुन्ना मर्दानी को भी अपना भाई ही मानते हैं. बबलू पांडे की जान मुन्ना मर्दानी में ही अटकी रहती है. मुन्ना हमेशा बबलू पांडे के लिए जान देने को तैयार रहता है. जबकि उसके अंदर औरतपना का अंश है. उसकी चाल भी थोड़ी सी टेढ़ी है. इस किरदार को निभाना मेरे लिए बहुत बड़ी चुनौती रही. क्योंकि यदि इसका एक सुर भी बढ़ जाता, तो किरदार बहुत गंदा व भद्दा लगता. तो मुझे सुर में ही रहना था.इस तरह का किरदार मैंने पहली बार निभाया है.’’

मुरली शर्मा की सबसे बड़ी खूबी यह है कि एक तरफ हर फिल्म में दर्शक उनके अभिनय को सराहते हैं, तो दूसरी तरफ हर फिल्मकार उनकी अभिनय क्षमता का इस कदर कायल है कि वह उन्हे बार बार अपनी फिल्मों का हिस्सा बनाता रहता है. मुरली शर्मा अब तक फिल्मकार रोहित शेट्टी के निर्देशन में छह फिल्में कर चुके हैं. जबकि प्रकाश झा के साथ भी उन्होने हैट्रिक लगा ली है. इस पर मुरली शर्मा कहते हैं-‘‘मैं सिर्फ अपने काम को ईमानदारी से करने में यकीन रखता हूं. रोहित शेट्टी के साथ सबसे अधिक फिल्में की हैं. ‘संडे’, ‘गोलमाल’, ‘गोलमाल थ्री’, ‘सिंघम’ की है. प्रभु देवा के साथ मेरी अच्छी बांडिंग हो गयी है. वह बहुत ही ज्यादा टैलेंटेड इंसान है. उनके साथ ‘सिंह इज ब्लिंग’ करते हुए काफी मजा आया. मैं प्रकाश झा का शुक्रगुजार हूं कि वह अपनी लगभग हर फिल्म में मुझे अहम किरदार निभाने का अवसर देते हैं. मैं खुद को लक्की मानता हूं कि मुझे प्रकाश झा के साथ यह तीसरी फिल्म करने का मौका मिला. ग्यारह साल पहले मैने प्रकाश झा के निर्देशन में फिल्म ‘अपहरण’ की थी. उसके बाद ‘चक्रव्यूह’ की थी. अब ‘जय गंगाजल’ की है.’’

बालीवुड में चर्चाएं गर्म है कि मुरली शर्मा कई फिल्म निर्देशकों के लिए ‘‘लक्की मैस्कट’’ बने हुए हैं. जिसके चलते हर निर्देशक उन्हें अपनी फिल्म में रिपीट करता रहता है. पर मुरली शर्मा इसे निर्देशकों का अपने प्रति प्यार मानते है. वह कहते हैं-‘‘मुझे खुद नहीं पता कि ‘लक्की मैस्कट’ क्या होता है. मुझे तो लगता है कि यह फिल्मकारों का मुझ पर प्यार है. उन्हे लगता है कि उनकी फिल्म में मुरली शर्मा होगा, तो अच्छा लगेगा. यह उनका प्यार है. उन्हे लगता है कि मुरली अपना काम बेहतर तरीके से जानता है. अन्यथा बालीवुड में कलाकारों की कमी नही है.’’

फिल्म ‘‘जय गंगाजल’’ में प्रियंका चोपड़ा सहित हर कलाकार के साथ अभिनय  कर मुरली शर्मा उत्साहित हैं. वह कहते हैं- ‘‘लगभग सभी कलाकारों के साथ मेरे सीन हैं. पूरी फिल्म में हूं. इसलिए प्रियंका चोपड़ा, प्रकाश झा, मानव कौल व निनाद कामत के साथ मेरे काफी सीन है. इन सभी कलाकारों के साथ काम करते हुए मैने काफी इंज्वाय किया. सभी को पता है कि प्रकाश झा ने इस फिल्म को निर्देशित करने के साथ साथ एक भ्रष्ट पुलिस अफसर का किरदार भी निभाया है.’’

2016 में हर माह मुरली शर्मा की फिल्म रिलीज होने वाली है.इ सकी चर्चा करते हुए मुरली शर्मा कहते हैं-‘‘इसके बाद मेरी एक मराठी फिल्म के अलावा तीन तेलगू फिल्में मई माह में रिलीज होने वाली हैं. 4 मार्च से बहुत बड़े बैनर की हिंदी फिल्म की शूटिंग शुरू करने वाला हूं, जिसका जिक्र अभी नहीं कर सकता. जनवरी 2016 में प्रदर्शित मेरी तेलगू फिल्म सुपर डुपर हिट रही. अब मार्च, अप्रैल व मई इन तीनों माह में मेरी एक एक तेलगू फिल्म रिलीज होने वाली है.’’

कर्तव्य निर्वाह (अंतिम किस्त)

पिछले अंक में आप ने पढ़ा

कि चुनावों के चलते सरकारी कर्मचारियों के लिए ड्यूटी पर तैनात होने के सरकारी फरमान से मानो कार्यालय में खलबली मच जाती है. सख्त आदेश के आगे ड्यूटी से बचने के सभी उपाय बेकार साबित हुए. भगतजी जैसे आरामपरस्त व्यक्ति के लिए ड्यूटी निभाना पहाड़ पर चढ़ने जैसा था. खैर, कर्तव्य निर्वाह हेतु जरूरत के साजोसामान सहित मतदान केंद्र जाने की तैयारी कर ली.

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शौचालय तो स्कूल में था लेकिन उस में सुविधा के स्थान पर टूटा फर्नीचर व अन्य कबाड़ भरा था. शौच क्रिया निबटाने के लिए खेत को ही शौच का कर्मक्षेत्र बनाना था. चुनाव अधिकारी की सख्ती का ही कमाल था कि अधिकतर लोगों ने पुलिसलाइन के बड़े मैदान में अपनी उपस्थिति दर्ज करा कर नए परिचयपत्र प्राप्त कर लिए थे. अब वे नाम से नहीं पोलिंग पार्टी संख्या के नाम से जाने जा रहे थे. सभी को चुनावकर्मी कह कर संबोधित किया जा रहा था. वे भूलते जा रहे थे कि वे बैंककर्मी हैं. सभी को पता चल गया था कि किस की ड्यूटी किस चुनाव क्षेत्र में किस पोलिंग बूथ पर लगी है. ज्यादातर बैंककर्मियों को पीठासीन अधिकारी बनाया गया था और अन्य सहायकों के रूप में स्कूल अध्यापक और विभिन्न विभागों के चपरासी भी थे.

पंडालों की संख्या पर्याप्त न होने के कारण वे मैदान के किनारे खडे़े पेड़ों की छाया पर अपनाअपना कब्जा कर के चुनाव सामग्री का मिलान, छपी हुई सूची से कर रहे थे. जो लोग नहीं पहुंच पाए थे उन को नाम और विभाग के साथ लाउडस्पीकर से पुकारा जा रहा था. यह आदेश प्रसारित किया जा रहा था कि वे अपनीअपनी चुनाव सामग्री प्राप्त कर लें अन्यथा उन के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी जाएगी, जिस के गंभीर परिणाम उन लोगों को भुगतने पड़ सकते हैं. जिन्होंने चुनाव सामग्री प्राप्त कर के मिलान कर लिया हो, प्रस्थान करें. पोलिंग बूथ तक पहुंचाने और मतदान समाप्त होने पर वापसी का उचित और पर्याप्त प्रबंध किया गया है.

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उचित और पर्याप्त परिवहन व्यवस्था के नाम पर कुछ खटारा बसें और मालवाहक ट्रक पंक्तियों में खड़े थे, जिन्हें सड़कों से प्रशासन ने जबरदस्ती रुकवा कर पुलिसलाइन में इकट्ठा किया था. चुनाव- कर्मियों ने अपनीअपनी पोलिंग पार्टी की संख्या के अनुसार अपना वाहन ढूंढ़ लिया जो एक ट्रक था, जिस पर अन्य 4 पोलिंग पार्टियों को भी सवार हो कर जाना था.

ट्रक में ड्राइवर की सीट के बगल की जगह पर सुरक्षाकर्मियों ने पूरी तरह कब्जा कर लिया था यानी यह बात अच्छी तरह समझ में आ गई कि ट्रक के पीछे ही सभी पोलिंग पार्टियों को अपनाअपना स्थान ग्रहण करना है.

ट्रक ड्राइवर और उस का हैल्पर ट्रक के पास ही कोयले से काले हुए कपड़े पहने थे. ड्राइवर अपना दुखड़ा रो रहा था कि 2 दिन बाद उस की लड़की की शादी है. इन लोगों ने उस का ट्रक पकड़ लिया. बहुत गिड़गिड़ाया मगर पुलिस वालों ने एक नहीं सुनी. ऊपर से कह रहे थे, अबे, तेरी लड़की की शादी टल सकती है, चुनाव नहीं. 2 दिन से ट्रक पकड़े हुए हैं. ऐसा मालूम होता तो कोयला पहुंचा कर ट्रक वहीं छोड़ आता और बस से घर चला जाता.

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‘‘तो क्या इस में कोयला लदा था?’’ एक चुनावकर्मी ने सवाल किया.

‘‘हां बाबू, कह तो रहा हूं कि कोयला लाद कर गया था, वापसी में खाली ट्रक देख कर पुलिस वालों ने चुनाव के लिए पकड़ लिया.’’

‘‘ट्रक की सफाई हो गई?’’

‘‘हां, बाबूजी,’’ हैल्पर ने जवाब दिया, ‘‘खूब अच्छी तरह झाड़ू लगा दी है. चलिए, देख लीजिए,’’ उस ने पीछे चलने का इशारा किया.

‘‘यह तो पूरा काला है.’’

‘‘बाबू, खूब साफ किया, कोयला है अपना रंग छोड़ता ही है. काजल की कोठरी में बिना काले हुए कैसे रहा जा सकता है,’’ वह मुहावरा जड़ कर हंस पड़ा और पानमसाले से रंगे दांत दिखा दिए.

‘‘तो क्या इसी कोयले की गंदगी में हम लोगों को जाना पड़ेगा?’’

‘‘हां, बाबूजी, कोयला जल्दी साफ नहीं होता,’’ हैल्पर ने स्पष्ट किया.

‘‘हां, दूसरा माल लदतेलदते साफ हो जाता है. आप लोग बैठेंगे तो यह थोड़ा साफ हो जाएगा,’’ ड्राइवर ने अपनी बात बड़ी सहजता से कह दी.

‘‘इस के ऊपर छाया के लिए तिरपाल नहीं है?’’

उस ने सिर हिला कर साफ इनकार कर दिया.

‘‘कोयले को तिरपाल की जरूरत नहीं होती, धूप और पानी से इस का कुछ बिगड़ता नहीं. इसलिए हम लोग तिरपाल ले कर नहीं चलते,’’ वह प्रसन्न हो कर बड़ी सहजता से कहता जा रहा था.

‘‘बिना तिरपाल लगाए हम लोग नहीं जाएंगे,’’ सब की तरफ से एक चुनावकर्मी ने निर्णय सुना दिया.

‘‘तो मत जाओ. जब हमारे पास तिरपाल नहीं है तो कहां से लगा दें.’’

कुछ लोग बोले कि इस से बहस करने से कोई फायदा नहीं, चलिए अपने सैक्टर मजिस्ट्रेट से बात करते हैं.

आयुर्वेद अस्पताल के एक डाक्टर को सैक्टर मजिस्ट्रेट का पद दे दिया गया था. वे इसी ट्रक की तरह पकड़ी गई डग्गामार जीप पर अपने गंजेपन को छिपाए कैप लगाए बैठे थे. उन के चेहरे पर मजिस्ट्रेटी रौब था क्योंकि उन की जीप के कांच पर ‘सैक्टर मजिस्ट्रेट’ लिखा कागज चिपका था. उन्होंने तिरपाल न होने की समस्या को गंभीरतापूर्वक सुना. अपनी जीप बढ़वा कर ट्रक के पास रुकवाई. ड्राइवर को बुलवाया. ड्राइवर अपनी बेटी की शादी में समय से न पहुंच पाने के कारण खिन्न तो था ही, उस ने दोटूक जवाब दिया, ‘‘कह दिया, जब तिरपाल है ही नहीं तो कहां से तान दूं. जब ट्रक पकड़ा था तब पूछ लेते तिरपाल है कि नहीं. अब आप तिरपाल का इंतजाम करवा दीजिए, तनवा दूंगा ट्रक पर बिना बंबू के. मुझे तो अपनी बेटी की शादी की चिंता खाए जा रही है.’’

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सैक्टर मजिस्ट्रेट ने अपनी असमर्थता बताई तो कुछ लोगों ने सलाह दी कि कुछ ट्रक तो रिजर्व होंगे. ट्रक ही बदलवा दीजिए. यह ट्रक तो वैसे भी कोयले से काला हो रहा है.

‘‘रिजर्व में हैं तो जरूर पर उन का प्रयोग हमारे स्तर पर नहीं किया जा सकता. हां, जब ट्रक चलने लायक न हो तो डी.एम. के आदेश पर उन का प्रयोग किया जा सकता है,’’ उन्होंने यह कहते हुए जीप आगे बढ़वा दी. चलतेचलते कहते गए, ‘‘आप लोगों की समस्या कोई विशेष नहीं है. आप लोगों को ऐसी ही परिस्थिति में जाना पड़ेगा. देखिए, एनाउंसमैंट हो रहा है, आप रवानगी करिए.’’

सभी एकदूसरे का मुंह देखते रह गए. नियति से मुकाबला करना पड़ेगा. सभी चुनावकर्मियों के चेहरे पर विवशता के अतिरिक्त कुछ नहीं था.

शहर पार करने के बाद ट्रक राष्ट्रीय राजमार्ग पर चल पड़ा. सड़क किनारे लगे ऊंचे शीशम के पेड़ और उन की घनी छाया सभी को अच्छी लग रही थी. यह अस्थायी सुख ज्यादा देर नहीं टिक पाया. एक तिराहे से बायीं ओर संकरी सड़क पर ट्रक ने मोड़ ले लिया. मुश्किल से 2 किलोमीटर जाने के बाद सड़क, सड़क ही नहीं रही. बस, सड़क का नाम रह गया.

सड़क टूटीफूटी थी. किनारे पर  पेड़ भी नहीं थे. ट्रक धचके खाता हुआ धीमी गति से आगे बढ़ रहा था. लोग ट्रक की बौडी को पकड़े हिचकोले खाते हुए संभलसंभल कर यात्राकष्ट भोग रहे थे. सूरज भी सिर के ऊपर आ टिका था. सूरज ने सब को इतना तपा दिया था कि सभी इस यात्रा को तपस्या समझ कर सहन कर रहे थे.

2 घंटे की इस अनवरत, ऊबड़खाबड़ सड़कयात्रा ने सभी को बुरी तरह तोड़ दिया. ड्राइवर ने कुछ आराम की नीयत से एक घने पेड़ की छाया में ट्रक रोका. धूप और गरमी से परेशान लोगों ने राहत की सांस ली. सभी नीचे उतर पड़े.

यह संकरी सड़क को खड़ंजे से काटता हुआ चौराहा था. इस छोटे से चौराहे पर कुछ छायादार पेड़ थे जिन के नीचे जलपान की दुकानें थीं, जिन्हें होटल तो नहीं कहा जा सकता, हां, कुछ बैंच बैठने के लिए पड़ी थीं और सरकारी हैंडपंप चालू हालत में था. जो ताजा और ठंडा पानी उगल रहा था यानी  पीने और हाथमुंह धोने का चौकस साधन था.

होटलनुमा दुकानों में चाय, समोसे, मिठाई की उपलब्धता थी जिन में निश्चित ही वातावरण की प्राकृतिक ऊष्मा का संचार था. आधे घंटे के विराम ने सभी को हाथपांव व शरीर को सीधा करने का अवसर दे दिया था. नष्ट हुई ऊर्जा की थोड़ी पूर्ति हुई.

ट्रक के हौर्न ने सभी को सचेत कर दिया कि अब फिर चलना है. सभी फिर वैसे ही सवार हो गए. अब दिन का उत्तरार्ध आरंभ हो चुका था.

आधे घंटे बाद पहली पोलिंग पार्टी का गंतव्य आया. वह उतरी तो ट्रक में कुछ जगह खाली हुई. इस तरह धीरेधीरे 3 पोलिंग पार्टी उतरती गईं. अब आखिरी पोलिंग पार्टी को उतरना बाकी था.

शाम 4 बजे उतरती धूप में ट्रक भरभरा कर इंजन सहित रुक गया. आगे रास्ता ही नहीं था. ड्राइवर और उस का हैल्पर ट्रक से नीचे उतर आए और अपना पसीना पोंछने लगे. यही उन की आखिरी मंजिल थी. बचे हुए सवार भी अपने सामान सहित ट्रक के नीचे उतर आए. इस में भरत भी थे. सामने सूखी नदी थी. नदी पार इस पोलिंग पार्टी का मतदान केंद्र था. एक जानकार ने बताया कि नदी को पैदल ही पार किया जा सकता है. यही सब से निकटतम रास्ता है. नदी के उस पार जो पीले रंग का स्कूल दिखाई दे रहा है वही मतदान केंद्र है.

इतना कष्ट सह लेने के बाद यह कोई खास बाधा नहीं जान पड़ी. सभी अपनेअपने सामान के साथ नदी पार करने को बढ़ने लगे. सब के कपड़े व हाथपैरों में कोयले का रंग चढ़ चुका था. पूरी पार्टी नदी के गोलगोल पत्थरों पर पैर संभालते हुए नदी पार जल्दी पहुंचना चाहती थी. बीच में एक पतली सी जलधारा को सभी ने घुटनेघुटने पानी में चलते हुए पार किया.

आखिर वे अपने गंतव्य तक पहुंच ही गए. 4 कमरों का भवन एक प्राइमरी पाठशाला थी, जिस की दीवारों पर सर्व शिक्षा अभियान के बारे में लिखा था. वहां काली यूनिफार्म में तैनात सुरक्षाकर्मियों ने मुसकरा कर सभी का स्वागत किया. सुरक्षाकर्मियों के चेहरे आम भारतीयों से अलग थे. उन के हाथों में अलग ढंग के आग्नेयास्त्र थे. अंदर जा कर पोलिंग पार्टी के लोगों को लगा कि वे किसी छावनी में आ गए हैं.

पसीने से तर कपड़े शरीर को ठंडक पहुंचा रहे थे. मंजिल पर पहुंच कर पोलिंग पार्टी ने राहत की सांस ली थी. डूबते सूरज की मलिन पड़ी अंतिम धूप थक कर लगभग खो जाना चाहती थी. स्कूल के घने पेड़ों में शाम जल्दी ही उतर आना चाहती थी. मंदमंद शीतल हवा एक सुखद एहसास दे रही थी.

स्कूल के 4 कमरों में से 1 में ताला जड़ा था. 1 सुरक्षाकर्मियों ने हथिया रखा था. 1 कमरे को मतदान कक्ष बनाया गया था और 1 कमरा सभी मतदानकर्मियों के ठहरने के लिए उपलब्ध था. हां, चारों कमरों को जोड़ते हुए एक बड़ा सा संयुक्त बरामदा जरूर था जो स्थान के अभाव को दूर कर रहा था.

स्कूल के अहाते में लगे हैंडपंप के शीतल जल से स्नान कर के सभी मतदानकर्मियों ने अपनी कालिख छुड़ाई और तनमन को तरोताजा किया. रात होने लगी थी. गैसबत्ती की रोशनी में बरामदे में बैठ कर घर से लाए भोजन को डिनर मान कर पेट भरा.

बिजली न होने के कारण यह तय किया गया कि स्कूल की छत पर सोया जाए. वहां गरमी भी नहीं लगेगी और मच्छरों से भी बचाव रहेगा. छत पर जाने के लिए सीढि़यां तो थीं नहीं, अहाते में रखी बांस की सीढ़ी के सहारे छत के ऊपर चढ़ गए. अपनीअपनी चादर बिछाई गई. मच्छरों से बचाव के लिए क्वाइल जलाए गई. कुछ लोगों ने अपने शरीर पर ऐसी क्रीम मली जिस से मच्छर नफरत करते थे.

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थके होने के कारण नींद अपने आगोश में लेने लगी. नींद ठीक से आ भी नहीं पाई कि सियारों की हुआंहुआं ने सब को चौंका दिया. सियारों का एक झुंड स्कूल के आसपास चहलकदमी कर रहा था. आधी रात बीतने के बाद सुबह की चिंता सताने लगी. सुबह 7 बजे के पहले पोलिंग बूथ की सारी व्यवस्था कर लेनी थी. कई आवश्यक प्रक्रियाएं थीं, जिन में चूक होने पर कानूनी जुर्म का भागीदार होना पड़ सकता था. इसलिए सुबह जल्दी उठ कर आवश्यक शारीरिक कर्म भी पूरे कर लेने थे. शौचालय तो स्कूल में था जरूर लेकिन उस में सुविधा के स्थान पर टूटा फर्नीचर व अन्य कबाड़ भरा था. शौच क्रिया निबटाने के लिए किसी खेत को ही शौच का कर्मक्षेत्र बनाना था. फसल कट चुकने के बाद खेत खाली थे, ओट के लिए कुछ नहीं था. किसी भी शर्मदार के लिए प्राकृतिक अंधेरा ही सहारा था.

अंधेरा भी इन दिनों जल्दी भाग जाता है. साथ में पानी ले जाने के लिए मिट्टी सने खाली प्लास्टिक के डब्बे जरूर उपलब्ध थे, जिन का प्रयोग पहले भी इस काम के लिए होता रहा होगा. आज धड़ल्ले से उपयोग में लाए जा रहे थे.

आखिर वह समय आ गया जिस के लिए सभी ने इतने कष्ट सहे थे. सुबह 7 बजे मतदान आरंभ हो गया था. तेज गरमी के मौसम के कारण सुबह 10 बजे मतदाताओं की लंबी कतार लग गई थी. तेजी से मतदान जारी था. दोपहर 12 बजे तक मतदाताओं का आना बहुत कम हो गया था. बाहर तेज लू चलने लगी थी. मतदान केंद्र यानी गांव के स्कूल के अहाते में घने पेड़ थे इसलिए वहां राहत थी. पेड़ों के मोटे तने को घेर कर गोल चबूतरे बनाए गए थे, जिन पर लोग कुछ देर बैठते, सुस्ताते और चले जाते. अब मतदान की गति कुछ धीमी हो गई थी. मतदानकर्मी भी राहत की सांस ले रहे थे. बाहर बरामदे में पानी का घड़ा रखा था. पानी या पेशाब के बहाने बाहर टहल आते और बाहर का दृश्य भी देख आते. सभी के संज्ञान में आया कि किनारे के एक पेड़ के नीचे एक गोरेचिट्टे, हट्टेकट्टे नागालैंड के युवा सुरक्षाकर्मी से एक महिला कुछ अधिक निकटता बनाए बैठी बातें कर रही है. यह महिला सुबह से ही मतदान केंद्र से बाहर सक्रिय थी. शायद किसी राजनीतिक पार्टी की कार्यकर्ता रही होगी.

गहरा श्यामवर्ण लिए, क्षीण काया पर चमकीले रंगों वाली साड़ी लपेटे काफी चपलता दिखा रही थी. अपनी ओर से यह जताने की सफल कोशिश कर रही थी कि वह भी इस ‘क्षेत्र’ की ‘कुछ’ है. अनाकर्षक होते हुए भी लोगों की नजरों में चढ़ चुकी थी. एक मतदानकर्मी, जो किसी स्कूल का चपरासी था, भरत के कान में फुसफुसाया कि कैसी खराब तो लगती है लेकिन सुरक्षाकर्मी इस में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहा है?

भरत ने उस की जिज्ञासा एक ही संवाद में शांत कर दी, ‘‘बुरे काम के लिए कोई चीज बुरी नहीं होती.’’

हंसी का एक फौआरा उस के मुंह से बाहर निकल पड़ा.

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‘‘कई दिनों से चुनाव चल रहे हैं. सुरक्षाकर्मी कई दिनों से घर से बाहर होगा. अपनी बीवी से मिले बहुत दिन हो गए होंगे,’’ एक अनुमान लगाया गया.

मतदान समाप्ति के समय से पहले ही मतदाताओं का आना लगभग बंद हो गया था. इस चुनाव ड्यूटी में 2 अध्यापक भी थे. उन्हें प्रधानी से ले कर विधायक और सांसद के कई चुनाव कराने का पर्याप्त अनुभव था. वोटिंगमशीन के साथ जमा किए जाने वाले अनेक प्रपत्रों को पूरा करने में लग गए थे, जोकि एक बहुत समय लेने वाला काम होता है, जितना काम यहीं निबट जाए उतना अच्छा. चूंकि यह आखिरी पोलिंग पार्टी थी, इस को ले कर ट्रक को वापसी की शुरुआत करनी थी. शेष प्रपत्र जमाकेंद्र पर ही भर लिए जाने की बात मान कर सभी अपनाअपना सामान ले कर वापसी के लिए खड़े हो गए. उन्हें पहले की तरह पैदल नदी पार कर के इंतजार कर रहे ट्रक में सवार होना था.

वापसी में पोलिंग पार्टी के साथ आधुनिक आग्नेय अस्त्र थामे 2 चुस्त- दुरुस्त सुरक्षाकर्मी थे. वे वोटिंगमशीन लिए जा रहे मतदानकर्मी के इर्दगिर्द ही चल रहे थे. अब वोटिंगमशीन बहुमूल्य थी. उस में कई प्रत्याशियों के भविष्य का फैसला था. वोटिंगमशीन थामने वाला मतदानकर्मी वीआईपी लग रहा था, जैसे उस की सुरक्षा के लिए काली यूनिफौर्म वाले सुरक्षाकर्मी मुस्तैदी से तैनात किए गए हों.

ट्रक में सभी सवार हो गए. शाम अभी घिरी नहीं थी. ट्रक की कालिख बहुतकुछ साफ हो चुकी थी, यह नहीं लगता था कि ट्रक में हाल ही में कोयला लादा गया है. वापसी में अन्य तीनों पोलिंग पार्टी भी ट्रक में सवार होती गईं. हर पार्टी के साथ 2-2 सुरक्षाकर्मी भी बढ़ते रहने के कारण ट्रक ठसाठस भर गया. असुविधा तो बढ़ी परंतु मौसम के ढलते तेवर और कार्य समाप्त कर घर लौटने के उत्साह से सभी आश्वस्त थे.

ठंडी हवाओं में कुछ लोग समूह गीत गाना चाहते थे. कुछ लोग बातें ही खत्म नहीं कर पाए कि ट्रक शहर के करीब पहुंच कर धीमेधीमे चलतेचलते एकाएक रुक गया. ट्रक के सामने रुके हुए वाहनों की लंबी पंक्ति थी. शहर का मुख्य चौराहा 1 किलोमीटर दूर था. बाजार शुरू हो गया था. आधा घंटा इंतजार करने के बाद लगा कि जाम खुल नहीं पाएगा. चारों दिशाओं से आने वाले वाहनों का गंतव्य एक था. किसी वाहन ने सभी के रास्ते रोक दिए थे. जल्दी जाम न खुल पाने की संभावना को देखते हुए एक ही विकल्प था कि ट्रक छोड़ कर पैदल ही आगे बढ़ा जाए. किसी तरह गंतव्य पर पहुंचना भी कर्तव्य निर्वाह का एक हिस्सा था.

शहर के पार कृषि उत्पादन मंडी समिति के विशाल परिसर में सील की हुई वोटिंग मशीन व अन्य निर्धारित प्रपत्र जमा कर के प्राप्त रसीद को ही पूर्ण कर्तव्य निर्वाह का प्रमाण समझा जाता था.

रात के 9 बज चुके थे. शहर से हो कर मंडी समिति की ओर जाने वाली सड़क पर लंबी पंक्ति में वाहन ठहरे थे. उन के अगलबगल पैदल जाने वालों का हुजूम था.

मंडी समिति परिसर में सचमुच मेले जैसी भीड़ थी. जमीन पर यहांवहां झुंड बनाए हर पोलिंग पार्टी अपनेअपने प्रपत्र पूर्ण कर लिफाफे तैयार करने में जुटी थी. सभी को इस बात की जल्दी थी कि अपनी सील्ड वोटिंग मशीन और लिफाफे निर्धारित काउंटर पर जमा कर के इतिश्री कर लें.

रात के 11 बज चुके थे. पीठासीन अधिकारी का पद ओढ़े लोगों के चेहरे पर थकान और आंखों में नींद की आहट थी. लंबी पंक्ति बनाए हुए वे खड़े थे. अपनी बारी की प्रतीक्षा में खड़ेखड़े शरीर का भार कभी बाएं पैर पर डालते तो कभी दाएं पैर पर. मन में प्रशासन और चुनाव के लिए गालियों का गुबार लिए थे.

धैर्य की परीक्षा देतेदेते रात के डेढ़ बजे भरत को भी मुक्ति मिल गई. शरीर का मारे थकान से बुरा हाल था और अगले दिन सुबह चेहरे पर दिखने वाले दाढ़ी के सफेद बाल उग आए थे. किसी तरह लड़खड़ाते हुए अपना ब्रीफकेस थामे मंडी समिति परिसर से बाहर आए कि किसी साधन से घर पहुंच जाएं. बाहर रात का सन्नाटा पसरा था. लोग पैदल ही घर लौट रहे थे. उन के लिए दो कदम चलना भी बहुत मुश्किल था. सड़क किनारे कहीं बैठने की जगह भी नहीं थी. उन के पास एक ही उपाय था कि पत्नी को फोन कर के जगाया जाए और कहा जाए कि गाड़ी ले कर जल्दी आओ और मुझे ले जाओ. मोबाइल जेब से निकाला और औन किया. बैटरी चार्ज न होने के कारण खत्म होने लगी थी तो उन्होंने मोबाइल दिन में ही औफ कर दिया था. ‘लो’ बैटरी का संदेश उन्होंने पढ़ा और शीघ्रता से पत्नी का मोबाइल मिलाया.

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काफी देर बाद पत्नी की धीमी ‘हैलो’ सुनाई दी. शायद वे गहरी नींद में थीं. वे जल्दी में इतना ही कह पाए, ‘कोई साधन नहीं है. फौरन गाड़ी ले कर आओ और मुझे ले जाओ, मैं मंडी के गेट के बाहर खड़ा हूं.’ और उन का मोबाइल बैटरी समाप्त होने के कारण बंद हो गया.

उन्हें पूरा विश्वास था कि पत्नी ने उन की पूरी बात सुन ली है. वे जरूर आएंगी. हां, थोड़ी देर लग सकती है. गाड़ी गैरेज से निकालेंगी. गेट का ताला खोलेंगी. गेट पर ताला लगाएंगी. घर यहां से 5 किलोमीटर दूर है. बहुत जल्दी करेंगी तो 15 मिनट तो लग ही जाएंगे. समय काटने के लिए वे चिंतन करने लगे कि चुनावकाल में प्रशासन के हाथ में ऐसा कौन सा हथियार आ जाता है जिस की धार के डर से सभी विभाग के कर्मचारी पूरे आज्ञाकारी हो जाते हैं, पूरी जिम्मेदारी से कर्तव्य निर्वाह करते हैं. चुनाव के बाद पूरे 5 वर्ष हथियार धार क्यों खो देता है. सब अपने पुराने ढर्रे पर आ जाते हैं.

छत्तीसगढ़: धान घोटालेबाजों के हौसले बुलंद

32 करोड़ रुपए का एक और धान घोटाला सामने आया है. कांग्रेस नेता मोहम्मद अकबर का मानना है कि रायगढ़ जिले के धान खरीदी केंद्रों में साल 2012-13, 2013-14 व 2014-15 के दौरान यह घोटाला हुआ. घोटाले में बडे़ लेवल के लोग शामिल हैं, लेकिन छोटे मुलाजिमों व अफसरों को ही जिम्मेदार ठहरा कर जांच की खानापूरी की जा रही है. उन्होंने पूरे मामले की जांच सीबीआई को सौंपने की मांग की है. उल्लेखनीय है कि तकरीबन 2-3 महीने पहले उन्होंने बलौदा बाजार व भाटापारा जिले में तकरीबन 30 करोड़ रुपए का धान घोटाला उजागर किया था. पंजीयक सहकारी संस्थाओं ने इस मामले में फंसे संबंधित अधिकारियों से वसूली के निर्देश जारी कर दिए हैं.

कांग्रेस नेता मोहम्मद अकबर ने उपपंजीयक सहकारी संस्थाएं, रायगढ़ द्वारा पंजीयक सहकारी संस्थाएं, रायपुर को सौंपी गई रिपोर्ट के दस्तावेज जारी किए. रिपोर्ट के मुताबिक, रायगढ़ जिले में 32 करोड़, 17 लाख रुपए का धान घोटाला हो चुका है. इस में यह भी बताया गया है कि धान संग्रहण केंद्र, लोहर सिंह में साल 2012-13, 2013-14 व 2014-15 में धान व बारदाना में 11 करोड़, 61 लाख रुपए तक का नुकसान हुआ.

रिपोर्ट में धान संग्रहण केंद्र, लोहर सिंह के संग्रहण केंद्र प्रभारी व जिला विपणन अधिकारी को जिम्मेदार ठहराया गया. रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि धान संग्रहण हरदी यानी हवाई पट्टी, सारंगढ़ में साल 2013-14 में कुल 20 करोड़, 56 लाख रुपए के धान की कमी कर नुकसान पहुंचाया गया है. इधर कांग्रेस नेता मोहम्मद अकबर ने सत्ता पक्ष पर आरोप लगाते हुए कहा कि करोड़ों रुपए का धान घोटाला करने वाले सत्ता पक्ष के लोगों को रमन सरकार बचाने में लगी है, जिस के चलते सैकड़ों करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है. उन्होंने कबूला कि ऐसे घोटाले करने से घोटालेबाजों के हौसले बुलंद हैं, क्योंकि किसी भी जिले में घोटाले की वसूली के लिए सरकार ने जानबूझ कर ध्यान नहीं दिया.

कच्चे तेल में गिरावट से खत्म हो जाएंगी कई कंपनियां

दुनिया की सब से बड़ी मनी मैनेजर कंपनी ब्लैकराक इंक के सीईओ ने आशंका जताई है कि कच्चे तेल में भारी गिरावट आ जाने की वजह से 400 कंपनियों का वजूद ही मिट सकता है. सीईओ ने आशंका को जाहिर करते हुए आगे कहा कि कच्चे तेल में लगातार गिरावट का माहौल बने रहने की वजह से कंपनियों को कर्ज से उबरने में मुश्किल आ रही है. यही वजह है कि पेट्रो उत्पादों में आने वाले लंबे समय तक गिरावट का दौर बना रह सकता है. साथ ही, कर्ज में डूबी कंपनियों को सिर्फ  कीमतों में इजाफे से ही राहत मिल सकती है, जो आने वाले दिनों में मुमकिन नहीं दिखता. एक रिपोर्ट के मुताबिक, तेल की कीमतों को ले कर कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती और न ही यह दावा किया जा सकता है कि किन कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ेगा. हालांकि उन्होंने कहा कि कच्चे तेल के बाजार में मंदी का नहीं, बल्कि आत्मसमर्पण का दौर है, जो बहुत ही खतरनाक है.

अमेरिकी बाजार में तुलनात्मक सुस्ती और ईरान की ओर से ज्यादा तेल उत्पादन के चलते इस साल कच्चे तेल की कीमतों में 15 फीसदी तक की कमी हुई है. स्वतंत्र अमेरिकी तेल अन्वेषकों का भी यही अनुमान है कि साल 2015 में तेल कीमतों में गिरावट के चलते अमेरिकी कंपनियों को तकरीबन 14 अरब डालर यानी तकरीबन 95,402 करोड़ रुपए का भारी नुकसान होगा. क्रूड तेल की कीमतों में भारी गिरावट आ जाने से कंपनियों में भले ही हाहाकार मचेगा, लेकिन उपभोक्ताओं को फायदा होने वाला है. बता दें कि क्रूड तेल के दाम में भारी गिरावट आ जाने की वजह से तकरीबन 4 अरब लोगों को फायदा होगा. वैसे तो यह मसला यूरोपियन यूनियन के भविष्य के लिए चिंता की बात है. हालांकि निवेशक भी क्रूड आयल मामले में चीन के बाजार से अपने पैर खींच रहे हैं. अनुमान है कि इस साल जापान की इकोनोमी भी 1 से 1.5 फीसदी तक बढ़ने की उम्मीद है, पर यह तो आने वाला समय ही बताएगा.

अब देश में राशन दुकानें होंगी औनलाइन

आगामी 14-15 महीनों में देश भर की तमाम राशन की दुकानें औनलाइन यानी डिजिटल हो जाएंगी. सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) की तमाम दुकानों पर ‘प्वाइंट आफ सेल’ (पीओएस) डिवाइस लगाए जाएंगे. सरकार ने मार्च 2017 तक सभी दुकानों पर पीओएस लगाने का फरमान जारी किया है. केंद्रीय खाद्य मंत्रालय के मुताबिक, पीडीएस की तमाम दुकानों पर पीओएस लगने के बाद फर्जी राशनकार्ड पूरी तरह यानी जड़ से खत्म हो जाएंगे.

इस मसले को ले कर केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने सभी सूबों को खत भी लिखे हैं. सूत्रों के मुताबिक, बीते पिछले 1 साल के दौरान करीब 60 हजार पीडीएस दुकानों पर पीओएस लगाए गए हैं. केंद्रीय खाद्य मंत्रालय की कोशिश है कि मार्च तक यह आंकड़ा डेढ़ लाख की तादाद तक पहुंच जाए. इस आंकड़े को छूने के बाद अगले 1 साल में पीडीएस की तमाम यानी करीब साढ़े 5 लाख दुकानों पर भी पीओएस लगा दिया जाएगा. इसे लगाने का खास मकसद खाद्यान्न के लीकेज पर लगाम लगाना है.

केंद्रीय खाद्य मंत्रालय का कहना है कि खाद्य सुरक्षा कानून के तहत अब तक जारी किए जा चुके सभी राशन कार्डों को औनलाइन करना बेहद जरूरी है और इस के बाद तो यही सिलसिला लोगों की जिंदगी में शामिल हो जाएगा यानी नए लोग तो सीधे औनलाइन ही राशन की दुकानों से जुड़ेंगे. विभाग के एक सीनियर अधिकारी के मुताबिक, जैसे ही तमाम सूबे खाद्य सुरक्षा कानून लागू कर देंगे, वैसे ही सार्वजनिक राशन वितरण प्रणाली के तहत होने वाली खाद्यान्न की लीकेज काफी हद तक कम हो जाएगी यानी करीबकरीब बंद हो जाएगी.

ऐसा इसलिए होगा, क्योंकि पीओएस के जरीए हर राशनकार्ड पर जारी होने वाले खाद्यान्न का विवरण वेबसाइट पर सार्वजनिक हो जाएगा. केंद्रीय खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक सभी राशन कार्डों पर एक इलैक्ट्रोनिक कोड होगा. इस के जरीए पीओएस में राशन कार्ड पर जारी खाद्यान्न का ब्योरा कंप्यूटर के स्क्रीन पर आ जाएगा. साथ ही, अगर उस आधारकार्ड पर कोई और राशनकार्ड भी जारी हुआ है, तो इस का खुलासा भी हो जाएगा. पिछले 2 सालों में सरकार ने 61.43 लाख फर्जी राशनकार्ड रद्द किए हैं. इन से करीब 4200 करोड़ रुपए की सब्सिडी बची है. पिछले साल दिसंबर तक करीब 40 फीसदी राशनकार्ड आधारकार्ड से जोड़े जा चुके हैं.

कालेज फैस्टिवल्स: लर्न और फन साथ-साथ

स्टडैंट्स के लिए कालेज फैस्टिवल्स बड़ा महत्त्व रखते हैं, क्योंकि इन में खूब धमाल और मौजमस्ती होती है. इन फैस्टिवल्स में, कंपीटिशन, दोस्तों के साथ मस्ती तो होती ही है साथ ही ये खुद को स्मार्ट और आत्म्विश्वासी बनाने का अवसर भी प्रदान करते हैं. स्टूडैंट्स फैस्टिवल्स के बहाने नईनई स्किल्स सीखते हैं, ड्रैसिंग सैंस डैवलप करते हैं, संवाद की कला सीखते हैं और नएनए लोगों से अपनी पहचान भी बढ़ाते हैं. इस से उन का सोशल नैटवर्क तो बढ़ता ही है, आत्मविश्वास और पर्सनैलिटी में भी निखार आता है.

खुद से व शिक्षकों से नई पहचान

अंतरा करवड़े, जो रेडियो लेखन के साथसाथ इंदौर में ‘अनुध्वनि’ नामक अनुवाद वाणी सेवा संस्थान का संचालन भी करती हैं, का मानना है कि कालेज में होने वाले समारोह हमें अपने उन गुणों से परिचित करवाते हैं, जिन के बारे में हमें ही जानकारी नहीं होती. किसी में नेतृत्वक्षमता अच्छी होती है तो किसी में तुरंत समाधान खोजने की, कोई बड़े समूह का बड़ी आसानी से प्रबंधन कर सकता है तो किसी के संपर्क इतने अच्छे होते हैं कि उस का हर काम आसानी से हो जाता है. साथ ही वे प्राध्यापक जो अब तक केवल पढ़ाई, परीक्षा, अंक और अनुभव की बातें करते दिखाई देते थे, उन का एक मित्र के रूप में परिचय होता है.

इस प्रकार बने कुछ अनौपचारिक रिश्ते आगे चल कर बड़े महत्त्वपूर्ण बन जाते हैं. ऐसे में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने के लिए मंच तो मिलता ही है साथ ही मंचीय शिष्टाचार, भाषा, हावभाव और स्थिति के मुताबिक चीजों को तुरंत मैनेज करने जैसी बातें भी सीखने को मिलती हैं, इन कालेज के मंचों पर.

अपने अनुभव के आधार पर अंतरा बताती हैं, ‘‘एक बार मैं सहेली के नृत्यप्रदर्शन देखने के लिए गई तो अचानक एंकर के न आने पर संचालन का भार मुझे दे दिया गया. बाद में यह पूछने पर कि मुझे ही क्यों चुना गया, प्रधानाचार्य ने बताया कि उन्होंने एक बार मुझे कक्षा में एक क्विज संचालित करते देखा था. इस प्रकार आगे चल कर मुझे इस क्षेत्र का अच्छा अनुभव मिल गया.’’

भावी जीवन के लिए नई राह

कविता विकास, जो सीनियर टीचर एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम समन्वयक, डीएवी इंस्टिट्यूट, धनबाद में पिछले 8 साल से बतौर सांस्कृतिक संयोजक कार्यरत हैं, बताती हैं, ‘‘सत्र के बीच होने वाले ये इवैंट्स पढ़ाई की एकरसता से बाहर निकलने में मदद करते हैं. बच्चों में छिपी प्रतिभा बाहर आती है तथा उचित प्लेटफौर्म मिलने पर निखर जाती है. कई बार तो बच्चे अपने हुनर को ही अपना कैरियर बना लेते हैं भले ही उन्होंने पढ़ाई कुछ और की हो.

‘‘लगातार इन कार्यक्रमों में हिस्सा लेने से मन की झिझक भी दूर हो जाती है. सब से बड़ा फायदा यह है कि विद्यार्थियों में मिलजुल कर काम करने की भावना विकसित होती है. उन अनुभवों को महसूस करने की क्षमता पनपती है, जो सफलता या असफलता से जुड़े होते हैं. परोक्ष रूप से कालेज फैस्टिवल्स विद्यार्थियों को भावी जीवन की चुनौतियों को स्वीकार करने में मदद करते हैं.’’

जौब के लिए करते हैं तैयार

कैरियर काउंसलर जतिन मित्तल कहते हैं, ‘‘कालेज की पढ़ाई पूरी तरह एकेडमिक होती है, इस में संवाद क्षमता, टीम के नेतृत्व या मल्टीटास्किंग जैसे स्किल्स सिखाने के अवसर बहुत कम होते हैं. लेकिन कालेज फैस्टिवल्स व्यक्तित्व का बहुआयामी विकास कर के उन्हें वर्तमान में जौब के लायक बनाते हैं. अगर आप का कालेज फैस्टिवल्स और्गेनाइज करता है, तो इस में हिस्सा लेने के साथसाथ तरहतरह के काम हाथ में ले कर उन्हें अंजाम देने की जिम्मेदारी निभाएं. आप अपनी रुचि के मुताबिक रजिस्ट्रेशन, इवैंट हैंडलिंग और होस्टिंग सहित कार्यक्रम की अन्य छोटीबड़ी जिम्मेदारियां ले सकते हैं. कालेज में होने वाले किसी भी इवैंट में आयोजक की भूमिका निभाना आप की डायनैमिक पर्सनैलिटी का परिचायक है. इस से आप की इमेज एक अच्छे प्रबंधक की बनती है और भावी नियोक्ता पर अच्छा इंप्रैशन भी पड़ता है.’’

सिखाते हैं प्लानिंग, लीडरशिप, मल्टीटास्किंग

एक रिकू्रटिंग फर्म के कार्यकारी वरिष्ठ अधिकारी कुणाल सेन का कहना है, ‘‘कालेज में फैस्टिवल यानी इवैंट और्गेनाइज करने वाले स्टूडैंट्स 3 महत्त्वपूर्ण बातें बहुत अच्छी तरह सीख जाते हैं. पहली, प्लानिंग स्किल. किसी भी इवैंट के लिए आप को योजना बनानी पड़ती है कि आप को किन लोगों से संपर्क करना है, सामान की आपूर्ति किन वैंडरों से करनी है आदि. दूसरा, लीडरशिप स्किल यानी टीम वर्क. जब आप कई लोगों के साथ मिल कर काम करते हैं, तो आप को नेतृत्व करना, लोगों के साथ मिल कर काम करना और लोगों से उन की योग्यता व शारीरिक, बौद्धिक क्षमता के मुताबिक काम लेना अच्छी तरह आ जाता है. तीसरा, मल्टीटास्किंग. भले ही आप कालेज फैस्टिवल्स में बेहद व्यस्त रहते हैं लेकिन फिर भी आप को अपनी पढ़ाईलिखाई और घरेलू कामों का ध्यान रखना पड़ता है यानी आप पर्सनल लाइफ और बिजनैस लाइफ के बीच संतुलन बनाना बखूबी सीख जाते हैं. आगे चल कर ये तीनों स्किल्स आप की प्रोफैशनल जिंदगी में भी बहुत काम की साबित होती हैं.’’

टीमवर्क और प्रबंधन के गुण

कालेज फैस्टिवल्स विद्यार्थियों को व्यक्तिगत खींचातानी से दूर रह कर समूह के साथ मिल कर काम करना सिखाते हैं. इन में सक्रिय हिस्सेदारी निभाने के लिए विद्यार्थियों को खूब दौड़धूप करनी पड़ती है. जैसे स्पौंसर ढूंढ़ना पड़ता है, कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करनी पड़ती है, ऐक्सपर्ट्स से मिलना पड़ता है आदि. इस से उन्हें अपने व्यक्तित्व विकास में काफी मदद मिलती है. उन के ऐटिट्यूड में भी बदलाव आता है और व्यावहारिक जीवन की बहुत सी बातें सीखने को मिलती हैं. कालेज फैस्टिवल्स में सक्रिय रहने वाले स्टूडैंट्स को जानेअनजाने नए लोगों से मिलनाजुलना पड़ता है और उन से बातें करनी पड़ती हैं. वैंडरों से मोलभाव करना सीखते हैं तो उन में प्रबंधन के गुणों का अनजाने में ही विकास हो जाता है.

भवानीपुर ऐजुकेशन सोसाइटी का पूर्व विद्यार्थी सौफ्टवेयर इंजीनियर यश गांधी कहता है, ‘‘अगर आप कालेज फैस्टिवल्स में और्गेनाइजर की भूमिका नहीं निभाते हैं तो भी आप को इस में भागीदारी तो करनी ही चाहिए. चाहे यह डांस हो, क्रिएटिव राइटिंग हो, डिबेट हो या ऐड स्पूफ. यहां हर किसी की रुचि का कुछ न कुछ तो जरूर होता ही है. आप चाहें तो और्गेनाइजर से बात कर के कविता पाठ, व्यंग्य पाठ या कहानी पाठ भी कर सकते हैं. लोगों से मिली सराहना और प्रोत्साहन आप को आगे बढ़ने की ऊर्जा देंगे और आप खुद को एक बेहतर कलाकार के रूप में निखार सकेंगे. जौब के लिए इंटरव्यू लेने वाली कंपनियां भी ऐसे उम्मीदवारों को अधिक गंभीरता से लेती हैं, जो कालेज फैस्टिवल्स और कंपीटिशंस में हिस्सा ले चुके होते

हैं. इस से पता चलता है कि ऐसे उम्मीदवार महत्त्वाकांक्षी होने के साथसाथ आत्मविश्वासी भी होते हैं और उन्हें प्रतिद्वंद्विता से डर नहीं लगता.’’

नैटवर्क बढ़ाने का मिलता है मौका

कालेज फैस्टिवल्स को सोशल नैटवर्क बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करें. किसी भी सीनियर या स्मार्ट स्टूडैंट से अपना परिचय देनेलेने में न हिचकें. खुल कर बातें

करें. अपने पूरे सहयोग का आश्वासन दें और पूछें कि आप उन की क्या मदद कर सकते हैं.

इसी प्रकार कोई बड़े इंस्टिट्यूट का अधिकारी, कोच, ट्रेनर आदि नजर आए तो बेहिचक उस से विजिटिंग कार्ड मांग लें और अपना परिचय भी दें. ऐसे लोगों से फेसबुक पर भी जुड़ें. हां, इन से मिलते ही सब से पहले बताएं कि आप इन्हें नाम से बहुत अच्छी तरह जानते हैं और काफी समय से इन से मिलने के इच्छुक थे. आज मिलने का अवसर मिला तो आप को बड़ी खुशी हुई. इन से हुआ परिचय आगे चल कर बहुत काम आ सकता है.

सीखें इवैंट मैनेजमैंट की कला

कालेज फैस्टिवल्स का उपयोग आप इवैंट मैनेजमैंट सीखने में भी कर सकते हैं. इवैंट मैनेजमैंट एक आकर्षक तथा शानदार माध्यम है जो किसी की भी रचनात्मक संभावनाओं को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के अवसर प्रदान करता है.

इस में संगीत समारोह, फैशन प्रदर्शनी, विवाह समारोह, थीम पार्टी आदि इवैंट्स के कौन्सैप्ट, बजट, संयोजन तथा इवैंट को पूरा करना शामिल है. यह एक अच्छा कैरियर विकल्प है. यदि आप में इवैंट संचालन की इच्छा, अच्छी संयोजनशीलता और लंबे समय तक कार्य करने की क्षमता है तो आप इस क्षेत्र में एक सफल कैरियर बना सकते हैं.

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