कम्बख्त कार के कारनामे भी अजीबोगरीब हैं. कभी किसी बेकार के साथ चमत्कार करती है तो कभी मक्कार को दुत्कार देती है. दरअसल ‘कार’ से जुड़े इस नए शब्दकोष ने लोगों की जिंदगी में कैसे हाहाकार मचा रखा है, आप भी बूझिए.
अब से 2 दशक पहले तक कार शानोशौकत, दिखावे और विलास की वस्तु समझी जाती थी. पैसे वाले ही इसे खरीद पाते थे. आम जन इसे अपनी पहुंच से दूर समझते थे और अनावश्यक भी. लोग दालरोटी के जुगाड़ को ही अपना लक्ष्य समझते थे. संजय गांधी ने पहली बार देश के लोगों को छोटी कार का सपना दिखाया और मारुति कार जब देश में बनने लगी तो इस ने स्कूटर वालों के कार के सपनों को हकीकत में बदल दिया और बदल दीं इस के साथ कई परिभाषाएं और अर्थ. अब तो कहावत बन गई है कि ‘पति चाहे अनाड़ी हो पर पास में एक गाड़ी हो तो जिंदगी सब से अगाड़ी रहती है.’
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तो भाइयो, गाड़ी आजकल लगभग सब के पास है और जिन के पास नहीं है वे भी अपना शौक टैक्सी से पूरा कर लेते हैं. हां, गाड़ी यानी कार के इस्तेमाल के आधार पर समाज 3 वर्गों में बंट गया है. पहला वर्ग तो वह है जो रोजरोज के आनेजाने में अपनी कार का ही इस्तेमाल करता है, दूसरा कोई साधन इस्तेमाल नहीं करता. दूसरा वर्ग वह है जो अपनी कार में सप्ताह में एक दिन, अकसर रविवार को अपने परिवार सहित सैर को निकलता है और शाम की चायनाश्ता किसी रेस्तरां, रिश्तेदार या मित्र के पास करता है. तीसरे वर्ग में वे लोग आते हैं जो अपनी कार की सफाई तो पूजा की तरह रोज करते हैं, पर उस का इस्तेमाल कभीकभार ही करते हैं, जैसे किसी शादीब्याह में या परिवार के किसी गंभीर बीमार को अस्पताल में ले जाने में.
खैर, कहने का तात्पर्य यह कि कार अब के जमाने में परिवार का अंग बन चुकी है. इस के सर्वव्यापक अस्तित्व के कारण कई शब्दों के अर्थ और परिभाषाएं बदल चुकी हैं. यहां छोटी कार के आगमन से जो ‘कार वाले’ बन गए हैं उन की ओर से कुछ शब्दों की नई परिभाषाएं व अर्थ प्रस्तुत किए जा रहे हैं. भाषाशास्त्रियों से विनम्र निवेदन है कि निम्नलिखित परिभाषाओं को शब्दकोष में विधिवत सम्मिलित करें :
बेकार : जिस व्यक्ति के पास आज के समय में कार नहीं है, उसे लोग (खासकर महिलाएं) ‘बेकार’ कहते हैं, चाहे वह कोई भी चंगी नौकरी या व्यवसाय क्यों न करता हो. यानी कार नहीं है तो अच्छाखासा बंदा बेकार है.
साकार : जिस व्यक्ति के पास ‘कार’ हो उसे ‘साकार’ कहते हैं यानी दुनिया को वही नजर आता है जिस के पास कार होती है. पैदल, यहां तक कि दुपहिया वाहन वालों का भी अस्तित्व खतरे में है.
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निराकार : साधन संपन्न होते हुए भी जो व्यक्ति जानबूझ कर कार नहीं खरीदता उसे ‘निराकार’ कहा जाता है. कार कंपनियां ऐसे ही ‘निराकार’ सज्जनों को साकार बनाने का भरसक प्रयत्न करती रहती हैं.
चमत्कार : जिस व्यक्ति की आय का साधन भले ही लोगों को नजर न आए, फिर भी उस ने कार रखी है, तो उसे लोग ‘चमत्कार’ कहते हैं. हमारे महल्ले के मंदिर के पुजारी ने कार रखी है. उसे भी लोग ‘चमत्कार’ कहते हैं. यह दीगर है कि ऐसे चमत्कारों पर आयकर विभाग की नजर भी रहती है.
बदकार : कई कार मालिक बड़े रसिक होते हैं. अपने दोस्तों को अपनी कार में बिठा कर वे किसी एकांत स्थान पर रुक कर कार में शराब पीने का आनंद लेते हैं और कई तो अवैध कर्म भी करते हैं. ऐसे कार मालिकों को ‘बदकार’ कहा जाए तो क्या नुकसान है?
स्वीकार : जिस व्यक्ति ने अपने ससुर से दहेज में कार स्वीकार की हो उसे ‘स्वीकार’ की संज्ञा देना उचित होगा.
मक्कार : बैंक से ऋण ले कर कार तो खरीद ली पर ऋण की किस्त चुकाने में जो आनाकानी करता है, ऐसे कार मालिक को ‘मक्कार’ कहना बिलकुल सही होगा. बैंकों से अनुरोध है कि वे इस शब्द को अपनी शब्दावली में शामिल कर लें.
स्वर्णकार : जिस व्यक्ति ने अपनी पत्नी के सोने के गहने बेच कर कार खरीदने का दुस्साहस किया हो उसे ‘स्वर्णकार’ कहलाने का हकदार होना चाहिए.
पैरोकार : कार का ऐसा मालिक जो पैदल चलने में अपना अपमान समझता हो यानी कार के बाहर अपने पैर भी न रखता हो, उसे ‘पैरोकार’ कहना उचित होगा.
सरोकार : जो कार मालिक सिर्फ कार वालों से ही मिलनाजुलना पसंद करते हैं, उन्हीं में ब्याहशादी का संबंध स्थापित करने में विश्वास रखते हैं और बाकी दुनिया से कोई सरोकार रखना नहीं चाहते उन्हें ‘सरोकार’ कह कर बुलाया जाए.
चीत्कार : कारें भी कई तरह की होती हैं और चलाने वाले भी. जो व्यक्ति अपनी कार को भीड़भाड़ वाले इलाके में भी चीते की गति से चलाता हुआ ले जाता है उसे ‘चीत्कार’ कहना उपयुक्त होगा. पर अगर उस से किसी को टक्कर लग जाए तो लोग अपनेआप ही उसे ‘फटकार’ कहने लगेंगे.
ललकार : जो व्यक्ति अपने पड़ोसी से ज्यादा महंगी कार खरीद कर ले आए और रोज अपने घर से निकलते वक्त उक्त पड़ोसी के घर के सामने अपनी महंगी कार का हौर्न बारबार बजाए, ऐसे को हम ‘ललकार’ कहना पसंद करेंगे.
हाहाकार : जिस व्यक्ति की आर्थिक स्थिति को देखते हुए पड़ोसियों को कोई उम्मीद न हो कि वह भी कभी कार खरीद सकता है और वह अचानक नई कार खरीद कर अपने दरवाजे के सामने खड़ी कर दे तो पड़ोसियों के घरों में तो हाहाकार मचना स्वाभाविक है. ऐसा कारनामा करने वाले को ‘हाहाकार’ कहना कोई अतिशयोक्ति न होगी.
फनकार : कई ऐसे धुरंधर हैं जो महीनों तक बिना ड्राइविंग लाइसैंस और गाड़ी के रजिस्टे्रशन के अपनी कार चलाते रहते हैं. पर क्या मजाल कि कोई पुलिस वाला उन का चालान कर दे. जिस महानुभाव को ऐसा फन हासिल हो, उसे ‘फनकार’ कहा जाए तो क्या हर्ज है?
चित्रकार : इस परिभाषा को लिखने से पहले मैं दुनिया छोड़ चुके महान आर्टिस्ट एम एफ हुसैन और उन की जमात के लोगों से क्षमा मांगता हूं. कई व्यक्तियों को अपनी कार के शीशों और बौडी पर अजीबोगरीब स्टिकर सजाने का जनून होता है. इसी प्रकार के व्यक्ति को, जिस ने अपनी कार को कैनवास की तरह इस्तेमाल किया हो, उसे ‘चित्रकार’ के नाम से सम्मानित किया जाए.
कलाकार : वैसे तो किसी कवि या लेखक के लिए कार खरीदना असंभव जैसा है फिर भी कई हिम्मत वाले लेखक घर के खर्चों में कटौती कर के कार खरीदने का सपना पूरा कर लेते हैं. ऐसे ही किसी कवि या लेखक को जिस ने कार रखी हो, ‘कलाकार’ कहना उचित होगा.
फुफकार : कई कार चालक बड़े गुस्सैल होते हैं. पैट्रोल की महंगाई ने ज्यादातर को ऐसा बना दिया है. वे अपना गुस्सा अपने विरोधी पर अपनी कार के साइलैंसर से धुआं फेंक कर निकालते हैं. ऐक्सिलरेटर को बारबार दबा कर ऐसा धुआं फेंकेंगे मानो कोई सांप फुफकार रहा हो. ऐसे गुस्सैल कारचालक को ‘फुफकार’ ही कहना चाहिए.
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दुत्कार : अमीर लोगों को अब इस बात की ईर्ष्या होती है कि ऐरेगैरे आदमियों ने भी कार रख ली है, चाहे छोटी कार ही क्यों न हो. तो अब कई अमीर लोगों ने अपनी बड़ी कारों में प्रैशर हौर्न फिट करवा लिए हैं. जब वे कोई छोटी कार देखते हैं तो उस से आगे निकलते हुए बारबार अपने प्रैशर हौर्न से बड़ी भयावह आवाज पैदा करते हैं, मानो छोटी कार वालों को दुत्कार रहे हों. ऐसे ईर्ष्यालु, अमीर कार मालिक को ‘दुत्कार’ के नाम से नवाजा जाए.
नकारा : जिस व्यक्ति ने बहुत ही पुराने मौडल की कार खरीदी हो और जैसेतैसे हांक कर कार वालों की श्रेणी में रहने का प्रयास करता हो, उसे ‘नकारा’ कहना बिलकुल सही होगा.
कार सेवा : अपनी कार की हर रोज, साप्ताहिक या मासिक धुलाई और साफसफाई को आजकल ‘कार सेवा’ कहते हैं.
नाटककार : कार के ऐक्सिडैंटल डैमेज के झूठे बिल बना कर जो कार मालिक बीमा कंपनियों से पैसा ऐंठता है, उन जैसा नाटककार और कहां मिलेगा, इसलिए उसे ‘नाटककार’ कहा जाए.
हमारे पास अभी शब्द तो और भी बहुत हैं जिन की परिभाषाएं और अर्थ बदल चुके हैं पर स्थानाभाव से अभी इतना ही लिख कर समाप्त करता हूं. ऐसा न हो कि ‘सरकार’ ही मुझ से नाराज हो जाए. जब ये परिभाषाएं शब्दकोश में शामिल हो जाएंगी तो यह ‘कथाकार’ और बहुत से अर्थ व परिभाषाएं ले कर आप के सामने उपस्थित हो जाएगा. आप स्वयं भी जानकार हैं इसलिए अपनी प्रतिक्रिया अवश्य बताइए, धन्यवाद.