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मुझे कुछ अनोखा करना पसंद है: अनिल कपूर

बौलीवुड के सदाबहार हीरो अनिल कपूर आजकल धारावाहिक ‘24’ सीजन 2 की शूटिंग में व्यस्त हैं. फिल्मों की ही तरह बने इस शो के बारे में जब उन से पूछा गया कि क्या वे छोटे परदे को बदलने की कोशिश कर रहे हैं? तो उन का जवाब था कि उन्हें कुछ अनोखा करना पसंद है. वे इस इंडस्ट्री को बदल तो नहीं सकते हैं पर शुरुआत जरूर कर सकते हैं. ‘24’ के नए सीजन में अनिल के साथ आशीष विद्यार्थी, सिकंदर खेर जैसे सितारे भी होंगे

वेटलौस के लिए क्या चिंता करनी: सोनम कपूर

अपनी फिल्म ‘नीरजा’ से वाहवाही पा चुकीं सोनम कपूर जितनी अपनी ऐक्टिंग को ले कर संजीदा रहती हैं उतनी ही अपनी हैल्थ को ले कर भी. तभी तो अपना वजन कम कर के आत्मविश्वास बढ़ा चुकी सोनम कहती हैं कि वजन कम करना बहुत ही आसान काम है. केवल मौर्निंगवाक से आप स्वस्थ शरीर पा सकते हैं. फिल्म ‘सांवरिया’ के समय मेरा वजन बहुत ज्यादा था पर अब मैं ने बढ़ते वजन पर काबू पा लिया है.

अब किताबों से निकल स्क्रीन पर दिखेंगे मंटो

सआदत हसन मंटो को आज भी उन की यथार्थवादी लेखनशैली की वजह से भारत और पाकिस्तान दोनों जगह याद किया जाता है. मंटो ने विभाजन की पीड़ा को अपने में समेटे हुए कई कहानियां लिखीं. अब मंटो की जीवनी को सब के सामने लाने का जिम्मा नंदिता ने उठाया है. वे मंटो की जीवनी पर फिल्म बनाने की तैयारी में हैं. मंटो की जिंदगी के 10 वर्षों को बड़ी ही खूबसूरती से एक बेहतरीन स्क्रिप्ट के जरीए नंदिता परदे पर उतारने की तैयारी में हैं. 46 वर्षीय नंदिता हमेशा ही कुछ अलग करने को ले कर चर्चा में रहती हैं. चाहे वह उन की निजी जिंदगी हो या फिल्म लाइन. अब देखना यह है कि मंटो के साथ नंदिता कितना न्याय कर पाती हैं.

‘जब तुम कहो’ है आज के युवाओं की कहानी

 

 

 

बौलीवुड से दिल्ली आ कर फिल्म की शूटिंग करना मुंबई के निर्माता, निर्देशकों को बहुत रास आ रहा है. पिछले दिनों ब्लैक पर्ल मूवीज ऐंटरटेनमैंट और कल्पतरू फिल्म प्राइवेट लिमिटेड के तहत बनने वाली फिल्म ‘जब तुम कहो’ की शूटिंग दिल्ली के आलीशान लोकेशन पर हुई. पेश हैं, इस फिल्म के प्रमोशन पर आए प्रोड्यूसर व डायरैक्टर राजीव कुमार और विक्रम शंकर से हुई बातचीत के कुछ खास अंश:

आप की फिल्म की कहानी में डिफरैंट क्या है?

‘जब तुम कहो’ एक रोमांटिक, कौमेडी मूवी है, जिस में इमोशन भी है. यह फिल्म ब्लाइंड डेटिंग और डेटिंग पर आधारित है. ब्लाइंड डेटिंग का कौंसैप्ट आज के युवाओं में बेहद लोकप्रिय हो रहा है. 1 दशक में मैट्रो सिटीज में काफी बदलाव आए हैं. मैट्रो सिटीज में बाहर से आए लड़केलड़कियां अकेले रहते हैं. वे साथ घूमते हैं. खातेपीते हैं. मगर हम इस से एक कदम आगे जा रहे हैं. वे सोशल मीडिया और इंटरनैट के जरीए मिलते हैं, फोन पर बात करते हैं और बात करतेकरते एकदूसरे पर विश्वास बना लेते हैं. उस अटैचमैंट का क्या रूप निकलता है, उसे दर्शक हमारी फिल्म में देखेंगे.

बतौर निर्देशक फिल्म की कहानी या स्क्रिप्ट का चयन कैसे करते हैं और ऐसी स्टोरी का आइडिया कहां से आया?

मैं अपनी फिल्म की कहानी अभी भी खुद लिखता हूं और भविष्य में भी यही कोशिश रहेगी किखुद लिखूं. मैं अपनी फिल्म की कहानी अपने आसपास के लोगों की रियल लाइफ के आधार पर बनाता हूं. मेरी फिल्म की कहानी का जो पात्र कुमार है, उस का किरदार मेरे करीबी फ्रैंड की कहानी थी, जिसे कालेज लाइफ में एक लड़की से प्यार हो जाता है. पर उस समय टाइम मैनेजमैंट नहीं था. वह जौब के लिए स्ट्रगल करे या गर्लफ्रैंड को टाइम दे. ऐसे में उस की गर्लफ्रैंड की शादी किसी और से हो गई. मेरा दोस्त उस से बहुत प्यार करता था. वह उसे भूल नहीं पा रहा था तो मैं ने उस से कहा कि दूसरी देखो. उस के पीछे भागने से कोई फायदा नहीं  कुछ दिनों बाद वह मुझे मिला तो उस ने बताया कि उसे एक और अच्छी लड़की मिल गई. अब वह बहुत खुश है. यहीं से मैं ने सोचा कि इतना हैपी ऐंडिंग तो हो ही नहीं सकता. मैं ने भी इसी कहानी को आधार बना कर अपनी फिल्म में लिया है.

इस फिल्म से जुड़े कलाकार नए हैं. बड़े कलाकारों का चयन न करने की क्या वजह है?

एक बार फिर कम बजट की फिल्में बन रही हैं. अगर आप का कंटैंट अच्छा है, म्यूजिक अच्छा है तो फिल्म जरूर सफल होगी. हमारे पास उस समय जो बजट था, उस में हमें एक ऐसा जानापहचाना चेहरा चाहिए था, जो अच्छा भी हो और मेरी फिल्म में फिट भी बैठे. ऐसे में प्रवीन डबास फिट बैठ रहे थे. हमारे पास जो धन की व्यवस्था थी उस में अगर हम कोई दूसरा नया चेहरा लेते तो दिक्कत होती.

आजकल प्रमोशन फिल्म के कंटैंट पर हावी हो चुका है. आप इस से कितना सहमत हैं?

आप चाहे 100 करोड़ की फिल्म बनाएं या 1 करोड़ की अथवा 15 लाख की, आप को कंटैंट स्ट्रौंग रखना ही पड़ेगा. तभी आप की फिल्म चलेगी और तभी दर्शक आप की फिल्म देखने आएंगे. आप चाहे कितने भी बड़े सुपरस्टार को ले लें, अगर आप की फिल्म में दम नहीं है तो आप चीट कर के लोगों को प्रमोशन के तहत ले तो आएंगे पर 2 दिन में उस का रिजल्ट मिलना ही मिलना है. मेरे जितने भी कुलीग हैं, मैं उन से बस इतना कहना चाहूंगा कि मनीपार्ट के अलावा स्टोरी पर जरूर फोकस करना चाहिए. इस की कमी खलेगी तो हिंदी सिनेमा की हिस्ट्री आगे जा कर खराब हो जाएगी. हम आने वाली पीढ़ी को कुछ अच्छा नहीं दे सकेंगे. इसलिए सब कुछ ध्यान में रख कर फिल्म बनाएं.

फिल्म के म्यूजिक में क्या खास है?

मेरी फिल्म का म्यूजिक फिल्म का यूएसपी है. अपनी फिल्म में मैं ने मोहित और शंकर महादेवन जैसे बड़े गायकों को बहुत अप्रोच कर के इंप्रैस किया. शंकरजी ने कहा था कि तुम्हारी पहली फिल्म है, अगर तुम्हें लगता है कि कुछ दोबारा करना है, तो मैं कर लूंगा.

आजकल वूमन ओरिऐंटेड विषय चल रहे हैं. आप की फिल्म में महिला किरदार कितने सशक्त हैं?

अगर आप फिल्म देखेंगी तो आप को लगेगा कि हर महिला का किरदार कितना सही है. मेरी फिल्म में 3 महिला किरदार हैं. एक लड़की वह है जिस का कहना है कि उसे प्यार, पैसा दोनों चाहिए तो दूसरी कहती है कि प्यार की ऐसी तैसी, सब से पहले उसे नेम, फेम और पैसा चाहिए. वहीं तीसरी लीड हीरोइन कहती है कि प्यार, नाम और पैसा तीनों अपनी जगह सही हैं. इन तीनों के साथसाथ टाइम मैनेजमेंट आना चाहिए.

इस फिल्म को देखने दर्शक क्यों जाएं, कोई खास वजह बताएं?

हमारी फिल्म न्यूकमर होने के बावजूद कुछ डिफरैंट है. इस में क्यूरीज हैं, क्योंकि हमारी फिल्म का पोस्टर अट्रैक्टिव और डिफरैंट है. हम ने इस तरह की डिजाइन व प्रमोशन किया है कि यूथ कनैक्ट हो सकें. हमारी फिल्म कमर्शियल होते हुए भी उस की खासीयत यह है कि वह क्रिएटिव है. आप जैसा देख रही हैं. हमारे पोस्टर में लड़का लड़की से मिलने जाता है. उस के बाएं हाथ में कंडोम है, क्योंकि उस के दिमाग में सैक्स प्ले हो रहा होता है और लड़की के दिमाग में इमोशन. एक फिजिकल होना चाहता है तो एक इमोशनल. मेरी फिल्म में कौमेडी पंचेस भी हैं.

किसी भी फिल्म के प्रमोशन में सोशल मीडिया क्या रोल निभाता है?

आज के समय में सोशल मीडिया स्मौल बजट फिल्म वालों के लिए बहुत बड़ा रोल निभा रहा है. यह अपनी फिल्म को यूथ तक पहुंचाने का बहुत बड़ा प्लेटफौर्म है. आज हरेक के हाथ में मोबाइल है. उस में नैट भी है, जिस से आप आसानी से कनैक्ट हो रहे हैं.

सैंसर बोर्ड फिल्मों में किस तरह राजनीति कर रहा है?

सैंसर बोर्ड गवर्नमैंट बौडी है, लेकिन गवर्नमैंट की बौडी होते हुए भी आप मीडिया, राइटर जितने भी फोर्थ पिलर्स हैं उन पर दबाव देंगे तो काम ठीक से नहीं हो पाएगा. हमारी, आप की अपनीअपनी भूमिका है, क्योंकि दबाव में फ्रीमाइंड हो कर काम नहीं हो पाएगा और रिजल्ट भी सही नहीं होगा. एक ही चीज रोज करने से नई चीजें नहीं आ पाएंगी. सैंसर बोर्ड को सपोर्टिव होना चाहिए.

अधिकतर फिल्मों में एक आइटम सौंग जरूर होता है. क्या आप की मूवी में भी कोई ऐसा सौंग है?

मेरी फिल्म में एक क्लब सौंग है. क्लब सौंग और आइटम सौंग में डिफरैंस यह है कि आइटम सौंग प्रमोशन को बढ़ावा देने के लिए अलग से डाला जाता है. उस का फिल्म से कोई लेनादेना नहीं होता है, जबकि क्लब सौंग स्टोरी की डिमांड पर डाला गया है.

चल गया उर्वशी का जादू

मिस यूनिवर्स 2015 प्रतियोगिता में उर्वशी का जादू नहीं चल पाया था तो क्या हुआ, क्योंकि उन के कैरियर की हांफती गाड़ी में ‘सनम रे’ जैसी फिल्म का ईंधन भरा जा चुका है. 2013 में ‘सिंह साहब द ग्रेट’ जैसी ऐवरेज फिल्म से अपना कैरियर शुरू करने वाली उर्वशी रौतेला के पास ‘सनम रे’ फिल्म के बाद इंद्र कुमार की मल्टीस्टारर सैक्सोमेडी फिल्म ‘ग्रेट ग्रैंड मस्ती’ भी कतार में है.

भविष्य सुरक्षित करने के नाम पर बिगाड़ा वर्तमान

लोग इंश्योरैंस इसलिए कराते हैं, ताकि उन का और उन के परिवार का भविष्य सुरक्षित हो सके, लेकिन अब तो इस ‘सुरक्षित भविष्य‘ के नाम पर भी ठगी होने लगी है. हाल ही में हरियाणा की भविष्य की ‘स्मार्ट सिटी‘ फरीदाबाद में ऐसा ही मामला सामने आया है, जिस में कुछ लोगों ने इंश्योरैंस कराने के नाम लोगों को चपत लगा दी.

इस कारगुजारी को एक गैंग अंजाम दे रहा था, जिस ने पिछले 5 महीने में 60-70 लोगों को ठग लिया. इतना ही नहीं, इसी गैंग ने सिंचाई विभाग से रिटायर हो चुके एक इंजीनियर समेत 2 लोगों को अपने झांसे में ले कर 50 लाख 72 हजार रुपए की रकम का चूना लगा दिया.

यह गिरोह दिल्ली एनसीआर से चलाया जा रहा था, जो नई इंश्योरैंस पौलिसी कराने और पुरानी पौलिसी पर ज्यादा लाभ देने के नाम पर लोगों से पैसे ऐंठ रहा था. इस सिलसिले में फरीदाबाद की साइबर सैल ने दिल्ली के प्रेम नगर किराड़ी में बने एक शौपिंग मौल में खोले गए दफ्तर पर छापा मारा और 5 लोगों को अपनी गिरफ्त में ले लिया, पकड़े गए आरोपियों में एक युवती भी शामिल थी.

फरीदाबाद के सैक्टर 10 में रहने वाले सिंचाई विभाग से रिटायर हो चुके एक इंजीनियर बद्रीनाथ ने बताया कि कुछ समय पहले उन के पास फोन आया था. फोन करने वाले ने उन को पौलिसी पर ज्यादा फायदा देने का दावा किया और एक नामी बीमा कंपनी का हवाला दे कर उन्हें फंसा लिया. इस के बाद उन से तक़रीबन 50 लाख रुपए हड़प लिए.

यह गैंग बेहद हाईप्रोफाइल है और इंश्योरैंस कंपनियों के ब्रोकरों को रुपए दे कर ग्राहकों का डाटा जुटा लेता है. इस के बाद अपने काल सैंटर से इन्हें काल करवाता है और इंश्योरैंस के नाम पर मिलने वाली बोनस की रकम को जल्द से जल्द रिलीज कराने का लालच देता है. इस गैंग ने रकम हड़पने के लिए फर्जी बैंक अकाउंट खुलवाए हुए थे और अपनी कंपनी रजिस्टर करा रखी थी. इस में काम करने वाले लड़के लड़कियां बुजुर्गों, रिटायर अफसरों, कारोबारियों वगैरह को अपनी बातों के जाल में फंसा कर उन से मोटी रकम वसूलते थे.

पुलिस ने इस गैंग के दफ्तर से 21 लैंडलाइन फोन और 6 मोबाइल फोन, एक स्मार्टफोन, आधा दर्जन से ज्यादा सिम, मुहर और बैंक खातों से तकरीबन 8 लाख रुपए बरामद किए.

यह ठगी की कोई नई वारदात नहीं है. देश के अलग अलग हिस्सों से ऐसी खबरें आती रहती हैं, फिर भी लोग फंस ही जाते हैं. इस के लिए तो उन्हें खुद ही जागरूक होना होगा. अगर कोई फोन पर आप के बैंक खाते, एटीएम नंबर व क्रेडिट कार्ड की जानकारी लेने की कोशिश करे आप चौकन्ने हो जाएं. इन लोगों की बातें बड़ी लच्छेदार होती हैं और अपने ग्राहकों से बात करने के लिए इन्हें ट्रेनिंग दी जाती है, ताकि ग्राहक को कोई शक न हो.

लिहाजा, अपनी बैंक संबंधी कोई भी जानकारी किसी को न दें. फोन पर तो बिलकुल नहीं. याद रखिए, सफर चाहे जिंदगी का हो या सड़क का, सावधानी ही बचाव है.

5 महिलाएं, जिन्होंने बदल दी तकनीक की दुनिया

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आज हम आपको बता रहे हैं दुनिया की सबसे पॉवरफुल महिलाओं के बारे में, जिन्होंने टेक्नोलॉजी की दुनिया को बहुत गहराई से प्रभावित किया है. एक ज़माना था जब टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में केवल पुरुषों का ही दबदबा था. मगर पिछले कुछ दशकों, खासतौर से पिछले 8-9 सालों के दौरान हालात में कुछ बदलाव आया है और महिलाएं भी दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनियों में बड़े पदों पर नियुक्त हुई हैं.

हमारी इस लिस्ट में शामिल महिलाओं ने सालों तक टेक सेक्टर का चेहरा बदलने की जो मेहनत की है, उसी की वजह से उन्हें दुनिया की सबसे शक्तिशाली महिलाओं का दर्जा मिला हुआ है औऱ वे दुनिया में महिलाओं के बढ़ते रुतबे का सबूत भी बनी हुई हैं. टेकनोलॉजी की दुनिया ने तो खासतौर से महिलाओं को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका दिया है. सिलिकोन वैली की टेक कंपनियों में अनेक महिलाएं शीर्ष पदों पर काम कर रही हैं.

फेसबुक की चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर शेरिल सैन्डबर्ग

पिछले कुछ सालों के दौरान टेक्नोलॉजी की दुनिया में फेसबुक की चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर शेरिल सैन्डबर्ग को सबसे प्रभावशाली महिला का माना जाता रहा है. वह इतनी प्रभावशाली है कि Forbes ने लगातार चार साल तक उन्हें टेक दुनिया की सबसे प्रभावशाली महिला का दर्जा दिया हुआ है. सैन्डबर्ग ने वूमन एंपॉवरमेंट पर एक किताब भी लिखी थी, जिसे 2013 में बेस्ट सेलिंग किताब होने का गौरव मिला था.

आईबीएम की प्रेज़ीडेंट वर्जिनिया मैरी गिनी रोमेट्टी

वर्जिनिया मैरी गिनी रोमेट्टी का जन्म 29 जुलाई 1957 में हुआ था और वह दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनियों में से एक आईबीएम की चेयरवूमन औऱ प्रेज़ीडेंट हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि वह पहली महिला भी हैं, जो आईबीम जैसी कंपनी के सबसे बड़े पद पर पहुंची हैं. Forbes मैगज़ीन ने 2014 में उन्हें दुनिया की 100 सबसे शक्तिशाली महिलाओं की सूची में जगह दी थी. इसी तरह 2012 में उन्होंने टाइम मैगज़ीन की 100 प्रभावशाली लोगों की लिस्ट में स्थान बनाया था. सितंबर 2012 में ब्लूमबर्ग मार्केट्स ने उन्हें 50 सबसे ज़्यादा प्रभावशाली लोगों में शामिल किया था.

सुसान वोजसिस्की

सुसान वोजसिस्की अकसर फैमिली लाइफ और करियर के बीच बैलेंस बनाने की बातें करती रहती हैं. सितंबर 1998 में जब गूगल की स्थापना की गई थी, तो गूगल के फाउंडर्स लैरी पेज औऱ सर्गेई ब्रिन ने सुसान के गैराज को ही किराए पर लिया था. गूगल के पहली मार्केटिंग मैनेजर बनने से पहले 1999 में सुसान इन्टेल के मार्केटिंग विभाग में काम करती थी.

याहू की सीईओ मेरिसा मेयर

याहू की मुख्य कार्यकारी अधिकारी मेरिसा मेयर का जन्म 30 मई, 1975 को हुआ था. याहू से पहले वह लंबे समय तक गूगल में काम करती थीं और उसकी स्पोक्सपर्सन थीं.

एचपी आईएनसी की चेयरवूमन मेग व्हाइटमैन

मेग व्हाइटमैन का जन्म 4 अगस्त, 1956 को हुआ था, वह हेवलेट्ट पैकार्ड एंटरप्राइजेज़ की प्रेज़ीडेंट और चीफ एक्ज़ेक्यूटिव ऑफिसर और एचपी आईएनसी की चेयरवूमन हैं. लॉंग आईलैंड, न्यूयार्क की रहने वाली मेग प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी और हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल की ग्रेजुएट हैं.

30 फीसदी तक महंगा हो सकता है मोटर इंश्योरेंस

पुरानी कार का इंश्‍योरेंस करवाना जल्‍द ही महंगा हो सकता है. इंश्‍योरेंस रेग्‍युलेटरी एवं डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया(Irdai) ने मोटर थर्ड पार्टी प्रीमियम की राशि में बदलाव प्रस्‍तावित किया है. यदि ये बदलाव लागू होते हैं तो प्राइवेट कारों, दोपहिया वाहन और कॉमर्शियल वाहन सहित सभी वाहनों के प्रीमियम में 9 से 30 फीसदी की बढ़ोत्‍तरी हो सकती है. नई प्रीमियम दर की घोषणा 1 अप्रैल से लागू होगी.

छोटी कारों का बढ़ेगा सबसे ज्‍यादा प्रीमियम

आईआरडीएआई की सिफारिशें यदि लागू हो जाती हैं तो सबसे ज्‍यादा मार छोटी कारों पर पड़ेगी. प्रस्‍ताव के मुताबिक 1000 सीसी से कम क्षमता वाले इंजन की कारों के प्रीमियम में सबसे ज्‍यादा 30 फीसदी की वृद्धि हो सकती है. वहीं 1000 सीसी से अधिक क्षमता के इंजन वाली कारों के प्रीमियम में 25 फीसदी की वृद्धि प्रस्‍तावित की गर्इ है.

दोपहिया वाहनों का प्रीमियम 15% तक महंगा

प्रस्‍ताव के मुताबिक 350 सीसी तक के दोपहिया वाहनों के प्रीमियम में 10 से 15 फीसदी का इजाफा जा सकता है. वहीं 350 सीसी से अधिक के वाहनों पर 10 फीसदी की वृद्धि प्रस्‍तावित है. इसके अलावा कॉमर्शियल व्‍हीकल का प्रीमियम 25 से 30 फीसदी तक महंगा हो सकता है. आईआरडीएआई हर साल थर्ड पार्टी इंश्‍योरेंस के प्रीमियम का विनियमन करती है. हर साल 1 अप्रैल को आईआरडीएआई महंगाई और क्‍लेम्‍स की स्थिति को देखते हुए प्रीमियम का निर्धारण करता है. मोटर व्‍हीकल एक्‍ट के तहत सभी प्रकार की कारों में थर्ड पार्टी इंश्‍योरेंस होना आवश्‍यक है.

अदालतों का वक्त बरबाद करते बेवजह के मुकदमे

भोपाल की जिला अदालत में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने 18 साल पहले मानहानि का एक मुकदमा दायर किया था. हुआ इतना भर था कि 1998 के विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान राज्य के ही एक और पूर्व मुख्यमंत्री व दिग्गज भाजपाई नेता सुंदरलाल पटवा और विधानसभा में तत्कालीन प्रतिपक्ष नेता विक्रम वर्मा ने यह वक्तव्य दे डाला था कि दिग्विजय सिंह चर्चित हवाला कांड के आरोपी बी आर जैन से मिले हुए हैं. कुछ ऐसे ही और भी आरोप सुंदरलाल पटवा ने लगाए थे. इन आरोपों के खास माने नहीं थे. राजनीति में इस तरह के आरोपप्रत्यारोप इतने आम और रोजमर्राई हैं कि हफ्तेदस दिन तक मानहानि का कोई मुकदमा एक नेता दूसरे के खिलाफ दायर न करे तो ऐसा लगता है कि देश के नेता निष्क्रिय और सुस्त हो गए हैं.

दिग्विजय-सुंदरलाल मामले में एक और दिलचस्प बात बीते दिनों उजागर हुई जब दिग्विजय सिंह ने भोपाल में ही यह कहा कि उन्होंने पटवा और वर्मा के खिलाफ दायर किए मुकदमे वापस लेने का मन बना लिया है. इस बाबत दिग्विजय सिंह ने वजह यह बताई कि खुद सुंदरलाल पटवा ने उन से फोन पर गुजारिश की है कि चूंकि वे 92 साल के हो रहे हैं, इसलिए आप यह मुदकमा वापस ले लें.

दरियादिली दिखाते दिग्विजय सिंह ने हां कर दी है और यह भी कहा कि अगर पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती भी ऐसा ही अनुरोध करेंगी तो वे उन के खिलाफ भी 12 साल पहले दायर किया गया मानहानि का मुकदमा वापस ले लेंगे. गौरतलब है कि उमा भारती ने दिग्विजय पर घोटालेबाज होने का आरोप लगाया था पर 12 साल गुजर जाने के बाद भी वे इसे सिद्ध नहीं कर पाई हैं. अब दिग्विजय सिंह चाहते हैं कि उमा भारती सार्वजनिक रूप से अपने उस आरोप के बाबत स्पष्टीकरण दें तो मुकदमा वापसी पर वे विचार कर सकते हैं. यह और बात है कि उमा इस पेशकश पर खामोश हैं. यानी मुकदमा चलता रहे, उन की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला, केंद्र की सरकार में जो हैं.

और भी हैं मामले

मानहानि के मुकदमों की यह बानगी भर है वरना देशभर की अदालतों में लाखों ऐसे मुकदमे चल रहे हैं. ताजा दिलचस्प मुकदमा वित्त मंत्री अरुण जेटली ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सहित 4 और आम आदमी पार्टी के नेताओं पर दायर कर रखा है. दिल्ली जिला क्रिकेट संघ यानी डीडीसीए में अरुण जेटली द्वारा किए गए घपले को जैसे ही अरविंद केजरीवाल ने यह आरोप लगाते उजागर किया कि डीडीसीए के 13 साल अध्यक्ष रहते जेटली ने घपला किया था तो इस पर जेटली तिलमिला उठे और आप नेताओं पर मानहानि का मुकदमा दायर करते 10 करोड़ रुपए का मुआवजा भी मांग डाला.

अरुण जेटली खुद भी नामी वकील हैं, इसलिए अपने मान की कीमत उन्होंने आंक ली. दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में चल रहे इस मुकदमे में जब अरविंद केजरीवाल को सुबूत पेश करने का मौका दिया गया तो उन्होंने 2 हजार पेज और कुछ सीडियां बतौर सुबूत पेश कर दीं. पर दिलचस्प बात केजरीवाल का यह कहना रहा कि अरुण जेटली का मान है क्या, वे पिछला लोकसभा चुनाव भाजपा लहर होने के बाद भी 1 लाख वोटों से हारे हैं, उन का कोई और सार्वजनिक मान नहीं है. यह मुकदमा चलता रहेगा, दोनों पक्ष तारीख दर तारीख अपनी बात कहते रहेंगे और आखिर में नतीजा वही निकलेगा जो ऐसे मामलों में निकलता है. एक और चर्चित मामला नामी उद्योगपति अनिल अंबानी की मानहानि का है जिन्होंने एक मीडिया हाउस (टाइम्स औफ इंडिया) पर अपनी हैसियत के मुताबिक 5 हजार करोड़ रुपए का दायर कर रखा है. इस अखबार ने पिछले साल 18 अगस्त के अंक में कैग की ड्राफ्ट रिपोर्ट की

बिना पर कई लेख प्रकाशित किए थे जिन में लिखा गया था कि कैसेकैसे अनिल अंबानी की बिजली कंपनी बीएसईएस के खातों में तरहतरह के गड़बड़झाले हुए. इसी कड़ी में भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी के खिलाफ तमिलनाडु सरकार ने मानहानि के 1-2 नहीं, बल्कि 5 मुकदमे दायर किए थे. स्वामी पर आरोप यह था कि उन्होंने मुख्यमंत्री के खिलाफ सोशल साइट्स पर अपमानजनक टिप्पणियां कीं, हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इन मुकदमों पर रोक लगा दी थी.

बात अकेले राजनेताओं की नहीं है, बल्कि सैलिब्रिटीज भी मानहानि के कानून का सहारा लेते हैं और कभीकभी आम लोग भी. लेकिन ऐसे मुकदमे किसी मुकाम पर नहीं पहुंच पाते, बीच में ही दम तोड़ देते हैं या फिर समझौते में तबदील हो जाते हैं.

क्या है कानून

भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के मुताबिक, किसी के बारे में बुरी बातें बोलना, किसी की प्रतिष्ठा गिराने वाली अफवाहें फैलाना, किसी को बेइज्जत करते पत्र भेजना, अपमानजनक टिप्पणी प्रकाशित या प्रसारित करना, किसी के बारे में अपमानजनक बातें कहना (पति या पत्नी इस में शामिल नहीं हैं) मानहानि कहलाती है. पटवा, वर्मा, उमा ने दिग्विजय पर आरोप लगाए, केजरीवाल ने जेटली पर आरोप लगाए और एक अखबार ने अनिल अंबानी की कंपनी द्वारा गोलमाल किए जाने के बारे में लिखा जैसी कई बातें मानहानि के दायरे में आती हैं. मानहानि लिखित और मौखिक दोनों तरह से पारिभाषित की गई है. अगर किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा किसी व्यक्ति विशेष को निशाना बनाते निराधार आलोचना की जाती है तो वह मौखिक मानहानि है और अगर किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ उस की इमेज खराब करने के मकसद से कुछ छापा जाता है तो वह लिखित मानहानि या आलोचना है.

उक्त आधार पर सुनी या पढ़ी बातों से किसी व्यक्ति विशेष के लिए अगर मन में नफरत का भाव पैदा होता है तो वह मानहानि होती है. यह बात किसी संगठन कंपनी या व्यक्तियों के समूह पर भी लागू होती है. जाहिर है मानहानि का क्षेत्र व्यापक है, इसलिए हर कोई हर किसी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर कर देता है जिस में कभीकभी तो लगता है कि बोलना या लिखना गुनाह है. वजह, कोई कानूनी खामी नहीं, बल्कि कथित पीडि़त द्वारा इस कानूनी सहूलियत का बेजा इस्तेमाल करना है. राजनीति, राजनेताओं, सैलिब्रिटीज और उद्योगपतियों से संबंध रखते मामले ज्यादा सुर्खियों में रहते हैं क्योंकि ये लोग सहूलियत से अदालत जा सकते हैं. इन का मकसद कथित मान या उस की हानि नहीं, बल्कि दूसरे को नीचा दिखाना या परेशान करना होता है. मुकदमा दायर कर वे यह भी जताने की कोशिश करते हैं कि हम अपनी जगह ठीक हैं, इसलिए अदालत जा रहे हैं.

मिसाल केजरीवाल-जेटली विवाद की लें तो केजरीवाल ने जेटली को मान और प्रतिष्ठा के बारे में उन्हें उन की हैसियत का एहसास करा दिया है. अब यह अदालत तय करेगी कि क्या 1 लाख वोटों से हारे किसी नेता का मान दूसरे जीते नेताओं से कम होता है.

साइबर जगत भी दायरे में

साल 2000 तक मानहानि के मामले कम दर्ज होते थे और जो होते थे वे मौखिक या लिखित आलोचना के होते थे लेकिन जैसे ही कंप्यूटर का चलन बढ़ा तो उस से भी मानहानि होने लगी. संचार के इस तेज और सहज माध्यम से लोग एकदूसरे पर छींटाकशी कर मानहानि करने लगे. सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 66-ए के अंतर्गत इलैक्ट्रौनिक्स मानहानि का मामला दर्ज होता है. इस के मुताबिक कोई भी व्यक्ति कंप्यूटर या दूसरे किसी संचार उपकरण के जरिए ऐसी जानकारी भेजता है जिस से पीडि़त का अपमान हो या किसी तरह का दूसरा नुकसान हो तो यह भी मानहानि के दायरे में आता है.

सोशल मीडिया का चलन चरम पर है और इस पर रोज किसी न किसी का अपमान होता है लेकिन मामले कम इसलिए दर्ज होते हैं कि अपमान की शुरुआत किस ने की, यह आसानी से पता नहीं चल पाता. इसलिए यह धारा यह भी कहती है कि मेल की उत्पत्ति के बारे में जानकारी न देना भी इस के तहत अपराध की श्रेणी में आता है. इस तरह मानहानि के इस तीसरे प्रकार यानी सायबर मानहानि में दोनों व्यक्ति जिम्मेदार यानी अपराधी होते हैं. पहला वह जिस ने मानहानि करने वाली सामग्री प्रकाशित की और दूसरा इंटरनैट सेवाएं देने वाला जिस से मानहानि करने वाली सामग्री या जानकारी का प्रकाशन हुआ. दोषी पाए जाने पर इस कानून में 3 साल की सजा और जुर्माना दोनों का प्रावधान है.

मौखिक, लिखित और सायबर मानहानि से संबंध रखती एक दिलचस्प बात यह है कि इस के सब से ज्यादा लगभग 80 फीसदी मुकदमे प्रकाशन समूहों और राजनीतिक हस्तियों के खिलाफ ही दायर होते हैं.

पर सजा नहीं होती

इस कानून की परिभाषा और व्याख्याएं देख लगता है कि यह बेहद गंभीर बात होगी लेकिन हकीकत में ऐसा है नहीं, इसलिए नहीं कि 2-4 दिन सुर्खियां बटोरने के बाद ये मामले गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो जाते हैं, बल्कि इसलिए कि इन में होता कुछ नहीं है. बात दिलचस्पी के साथ हैरत की है कि आज तक मानहानि के मामले में किसी को सजा नहीं हुई है क्योंकि 99 फीसदी मामलों में समझौता हो जाता है. समझौता किन्हीं भी शर्तों पर हो, एक तरह से कानूनी सहूलियत का मजाक उड़ाता हुआ होता है, जिस से सब से बड़ा नुकसान अदालती वक्त का होता है.

देशभर की अदालतों में जजों की कमी का रोना हर कोई रो देता है और अदालतों पर मुकदमों के बढ़ते भार का हवाला भी दे देता है लेकिन इस के जिम्मेदार मानहानि के मुकदमेबाज भी कम नहीं जिन के लिए मानहानि का मुकदमा दायर करना शौक या सुर्खियां बटोरने का जरिया है. देश की अदालतों में मानहानि के कितने मुकदमे चल रहे हैं, इस का ठीकठाक आंकड़ा तो किसी के पास नहीं लेकिन अंदाजा है कि मानहानि के 3 से 5 लाख मुकदमे चल रहे हैं.

दिक्कत यह भी है कि ऐसे मुकदमों को दायर करने पर कोई रोक नहीं है, न ही इन में ज्यादा खर्च होता क्योंकि 80 फीसदी मुकदमे राजनेता और रसूखदार लोग दर्ज कराते हैं. उन के पास पैसों की कमी नहीं होती यानी पैसे और मान में फर्क करना एक मुश्किल काम है. मानहानि का आपराधिक मामला दर्ज कराने में नाममात्र की फीस लगती है, जबकि दावा हर्जाने का भी किया जाए तो 4 फीसदी कोर्ट फीस अदा करनी पड़ती है. यानी 10 करोड़ रुपयों का हर्जाना मांगने पर पीडि़त को 40 लाख रुपए फीस देनी पड़ती है, जाहिर है जो इतनी तगड़ी फीस अदा करेगा, उस की मानहानि और रईसी का अंदाजा लगाने की जरूरत नहीं.

दहेज कानून में समझौते या उस के बेजा इस्तेमाल पर आएदिन हल्ला मचता रहता है. हरिजन ऐक्ट पर भी बवाल मचता है लेकिन मानहानि के मामलों, जिन में अदालतों का बेशकीमती वक्त जाया होता है, पर सभी खामोश रहते हैं. तय है, इसलिए कि यह माननीयों के मान और वैभव का हिस्सा बनता जा रहा है. उदाहरण पटवा व दिग्विजय के प्रस्तावित समझौते का लें तो उन से यह पूछने वाला कोई नहीं कि जब यही करना था तो 18 साल अदालत का वक्त क्यों बरबाद किया और किया तो क्यों न दोनों पक्ष अदालत को समय की मात्रा के हिसाब से जुर्माना दें. इस में भी बेहतर होता कि यह राशि वादी अदा करे जो इस का बड़ा जिम्मेदार है.

अदालतें इंसाफ के लिए बनी हैं, हंसीठिठौली और इल्जाम लगाने के बाद समझौता करने के लिए नहीं. तो शायद इन मुकदमेबाजों को मुकदमा दायर करने के पहले हजार दफा सोचना पड़ेगा. मा का कोई पैमाना नहीं होता, इसलिए भी मानहानि का कानून बेकार है. ‘बी’ भी नहीं, बल्कि ‘सी’ श्रेणी की अभिनेत्री पूनम पांडे एक मीडिया हाउस पर सौ करोड़ रुपए के हर्जाने का दावा करने का हक रखती हैं तो उन का मान इतनी राशि का है यानहीं, यह कैसे तय होगा. इसलिए जरूरी है कि न्यायिक प्रक्रिया में तेजी लाने, अनावश्यक मुकदमे कम करने और मुकदमा लड़ने का शौक कम करने के लिए इस कानून को खत्म ही कर दिया जाए.

अपराध क्यों

मानहानि कानून और मुकदमे दूसरी तरह से भी नुकसान पहुंचा सकते हैं. इस पर विश्वास करना एक तरह से हैरत जताने वाली बात ही होगी. पासपोर्ट बनवाने से ले कर किसी नौकरी के लिए भी आवेदन करने के लिए आवेदक को यह बताना होता है कि उस के खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं है.  अगर है तो पासपोर्ट तो बनने से रहा. नौकरी मिलने में भी दिक्कत होती है. कोई भी नियोक्ता चाहे वह सरकारी हो या गैरसरकारी हो, उम्मीदवार की इमेज जरूर देखतापरखता है.

तमिलनाडु का एक पत्रकार उस वक्त हैरान रह गया जब उस का वकील बनने के लिए दिया आवेदन तमिलनाडु और पुदुचेरी बार काउंसिल ने इसलिए रद्द कर दिया कि उस के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मामला चल रहा था. इस पत्रकार ने देखा जाए तो कोई हिंसा नहीं की थी, न ही कोई कानून तोड़ा था. अपना पत्रकारिता धर्म भर निभाया था जिस के एवज में उस का वकील बनने का सपना पूरा नहीं हो पाया.

समस्या अकेले अपने देश की नहीं है, बल्कि दुनियाभर की है. अब तो मानहानि को कानूनन जुर्म के दायरे से बाहर रखने की आवाजें उठने लगी हैं. 2012 में ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की थी कि इस कानून में बड़े पैमाने पर फेरबदल किया जाएगा. इस से साफ जाहिर होता है कि विदेशों में भी लोग और अदालतें इस कानून से त्रस्त हैं. ब्रिटिश सरकार अब मानहानि को बजाय अपराध मानने के, इसे महज एक भूल करार देने के विकल्प पर सोचाविचारी कर रही है.

मद्रास हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति बी रामसुब्रमण्यम और के रविचंदबाबू की बैंच तो एक मामले में अपना फैसला सुनाते हुए कह भी चुकी है कि दुनियाभर में मानहानि को आपराधिक मामला नहीं मानने का चलन है, सुप्रीम कोर्ट भी इस मुद्दे पर सुनवाई कर रहा है. अदालतें मानने लगी हैं कि मानहानि कानून, वह भी आपराधिक, बेवजह है तो दूसरी तरफ नेता इस मुद्दे को ले कर 2 फाड़ हैं. सुब्रमण्यम स्वामी जैसे नेता इस को बनाए रखने के हक में हैं तो कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और दिल्ली के सीएम अरविंद कजरीवाल जैसे दर्जनों नेता और  बुद्धिजीवी इसे आईपीसी से बाहर करने की मांग सुप्रीम कोर्ट से कर चुके हैं.

नेता करें या आम लोग, यह मांग वाजिब इस लिहाज से है कि मानहानि के मुकदमों से अदालतों का वक्त बेवजह बरबाद होता है. इस के लड़ने वाले इस कानूनी सहूलियत का दुरुपयोग करते गलत फायदा उठाते हैं अगर उन की मंशा पाकसाफ होती तो 99 फीसदी मामलों में समझौते नहीं होते.

ये भी पीछे नहीं

मानहानि ही नहीं, बल्कि कई दूसरे बेतुके मुकदमों की भी अदालतों में भरमार है. ऐसा लगता है कि आम लोगों को इंसाफ में देरी पर हायहाय करना तो खूब आता है पर इस बात पर लोग गौर नहीं करते कि वे खुद कैसे इस देरी की वजह बनते हैं. गुवाहाटी निवासी चंद्रलता शर्मा को कुछ नहीं सूझा तो वे सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचीं. वाद यह था कि गोरेपन की एक क्रीम के इस्तेमाल करने के बाद भी उन्हें फायदा नहीं हुआ था. उपभोक्ता फोरम में तो वे गईं ही, सुप्रीम कोर्ट से यह चाहती थीं कि वह ऐसे भ्रामक विज्ञापनों के बाबत दिशानिर्देश जारी करे. क्या यह बात इतनी गंभीर और महत्त्वपूर्ण थी कि सुप्रीम कोर्ट तक जाया जाए.

यह बात गंभीर कतई नहीं थी. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एच एल दत्तू ने वादी को कैसी फटकार लगाई, ‘‘कोर्ट ऐसे मामलों में गाइडलाइन जारी करने के लिए नहीं बैठी है. सुप्रीम कोर्ट के पास इस से भी कई अच्छे काम करने के लिए हैं. कई सालों से एक क्रीम आती है, जिस का दावा है कि उसे लगा कर आप गोरे हो जाओगे. अब आप गोरे नहीं हुए तो कोई क्या करे. अगर ऐसी याचिका को अदालत सुनने लगी तो कल लोग ये कहते हुए आ जाएंगे कि बाल उगाने वाले तेल से उन के बाल नहीं आए. यह संभव ही नहीं है कि ऐसे मामलों पर कोर्ट कोई आदेश जारी करे.’’

चंद्रलता शर्मा जैसे लोगों को दरअसल बड़े पैमाने और हर स्तर पर प्रोत्साहन मीडिया, वकीलों, पुलिस वालों और प्रशासन का मिलता है. हालिया मैगी विवाद इस की मिसाल है जिस की जांच के बाद दूध का दूध और पानी का पानी हो गया है. लेकिन चंद सिरफिरों ने ऐसा बवंडर मचा डाला, मानो मैगी जहर हो. किसी और का तो कुछ नहीं बिगड़ा लेकिन मैगी बनाने वाली कंपनी नेस्ले का करोड़ों रुपयों का नुकसान हो गया और करोड़ों लोग बेवजह एक भ्रम का शिकार रहे.

दिल्ली प्रैस समूह की पत्रिकाओं पर कई आधारहीन मुकदमे चल रहे हैं. ज्यादातर ये संपादकीय टिप्पणियों या लेखों से असहमत होने पर मुकदमे दायर किए गए हैं. एक बार मुकदमा हो जाने के बाद मुकदमे करने वाले उत्साह खो बैठते हैं और यदि अदालत में तार्किक बहस की गुंजाइश हो तो वह भी नहीं हो पाती.

प्रोफैशन को न बनने दें परिवार का दुश्मन

मिताली और गौरव का आज फिर झगड़ा हो गया. वजह, वही गौरव की व्यस्तता. किसी परिचित, रिश्तेदार या मित्र की गैटटुगैदर पार्टी हो या शोकसभा, शादीब्याह हो या गृहप्रवेश, ससुराल से निमंत्रण हो या खुद के घर में मेहमान आए हुए हों, गौरव को अपने काम से फुरसत ही नहीं मिलती. या तो वह इतनी देर से पहुंचता है कि कार्यक्रम समाप्त हो चुका होता है या फिर हमेशा की तरह फोन कर के अपनी मजबूरी जता देता है कि वह किसी काम में फंस गया है, नहीं पहुंच पाएगा. आज तो गौरव ने हद ही कर दी. खुद के साले की शादी थी और वह पहुंचा रात को 11 बजे. झगड़ा तो होना ही था. मिताली के साथसाथ उस के मायके वालों का भी मूड औफ हो चुका था.

9 वर्षीय अक्षांश फूटफूट कर रो रहा था, मम्मी से कह रहा था कि अब वह पापा से जिंदगीभर बात नहीं करेगा. मम्मी तो खुद दुखी थीं. हुआ यह कि पेरैंटटीचर मीटिंग में भरी क्लास में क्लासटीचर ने अक्षांश और मम्मी को सुनाते हुए करारा तंज कस दिया. क्लासटीचर ने कहा कि अगर इस के पापा के पास अपने बेटे के लिए इतना भी समय नहीं, तो मतलब साफ है कि उन्हें अपने परिवार से नहीं, व्यापार से ज्यादा प्यार है. स्थिति ऐसी थी कि कई बार तो अक्षांश 4-5 दिनों तक अपने पापा से बात नहीं कर पाता था. उस के  पापा रात को 11 बजे तक आते थे. तब तक वह सो जाता था और सुबह उसे जल्दी स्कूल जाना पड़ता था, तब तक पापा सोते रहते थे.

ऐसे मामले बहुत सारे घरों में देखने को मिल जाएंगे जहां व्यस्तता सिर चढ़ कर बोलने लगती है. ऐसे लोगों के पास न तो परिवार के लिए समय होता है और न ही अपनी सफलताओं का जश्न मनाने के लिए. ऐग्जिक्यूटिव पोस्ट पर बैठे नौकरीपेशा हों या निजी व्यवसाय करने वाले, ये खुद पर काम का इतना दबाव बना लेते हैं कि अपने शौक, परिवार और दोस्तों के लिए इन के पास वक्त ही नहीं बचता.

संतुलन बना कर चलें

आप कितने भी प्रोफैशनल क्यों न हों, कितना भी अच्छा परफौर्म करते हों, लेकिन आप के पास अगर खुशियों को मनाने, अपनों का हालचाल पूछने, उन के सुखदुख में शरीक होने का टाइम नहीं तो यह सब बेकार है. बेशक, कारोबार की जिम्मेदारी पूरी तरह आप पर है, लेकिन यदि काम और निजी जिंदगी के बीच सही संतुलन न बैठा पाएं तो निजी जिंदगी पर इस का बुरा असर पड़ना तय है. निजी जिंदगी की परेशानियां आप के कामकाज पर भी निश्चित तौर पर प्रभाव डालेंगी. इसलिए बेहतर है कि आप औफिस व घर दोनों में संतुलन बना कर चलें.

परिवार ही देता है प्रोत्साहन

प्रोफैशनल ऊंचाइयों पर पहुंचने पर हम अकसर उन्हीं घर वालों को भूल बैठते हैं जिन्होंने खराब दौर में हमारा मनोबल बढ़ाया होता है. जब आप ने कारोबार शुरू किया होगा तब संभव है कि परिवार की स्थिति को बेहतर करने के उद्देश्य को अपने दिमाग में रखा हो. पहले आप परिवार के नाम पर भागते रहे और अब आप कारोबार में कुछ इस कदर उलझ गए कि अपने परिवार से ही भाग रहे हैं. अगर आप कारोबार में बहुत ज्यादा सफलताएं पा भी लेते हैं तो भी अपने पीछे ऐसा पारिवारिक माहौल जरूर रखें जहां आप अपनी सफलताओं का जश्न मना सकें.

हो सकता है कि औफिस में आप के प्रोफैशनल रवैए की सब तारीफ करते हों लेकिन घर में उस बरताव की जरूरत नहीं है. आप के घर वाले आप को भावनात्मक रूप में पहचानते हैं, इसलिए उन के आगे प्रोफैशनलिज्म वाली चादर ओढ़ कर न चलें. अपने स्वाभाविक रवैए के साथ ही घर के लोगों से मिलजुल कर रहेंगे तो उन्हें भी असहजता महसूस नहीं होगी. औफिस का रोब और हर चीज में अनुशासन जैसा औपचारिक बरताव घर में करने के बजाय वैसे ही रहें जैसे आप वास्तव में हैं. लोगों से अब भी उतनी ही आत्मीयता से मिलें जितनी आत्मीयता

से पहले मिलते थे. इस में औपचारिकता न झलके.

वक्त निकालना सीखें

औफिस की भागदौड़ करने वाले अकसर घर वालों से कहते हैं कि यह सब वे उन के लिए ही तो कर रहे हैं. यह ठीक है कि आप उन्हें आर्थिक संबल देने के लिए काम कर रहे हैं लेकिन अगर भावनात्मक रूप से आप उन के साथ नहीं हैं तो कोई फायदा नहीं. अपने परिवार के करीब रहने के लिए अपने व्यस्त समय में से कुछ पल चुराना सीखें. बीवीबच्चों और अन्य परिवारजनों के साथ बिताए कुछ क्षण उन्हें तो खुशियां देंगे ही, साथ ही आप को भी भावनात्मक ऊर्जा से भर देंगे. तब आप अपनी कार्यक्षमता में भी काफी इजाफा महसूस करेंगे. बहुत से लोग औफिस में सबकुछ सामान्य चलने के बावजूद मानते हैं कि उन के बिना तो कोई काम हो ही नहीं सकता. इस सोच के चलते वे परिवार के कई अहम अवसरों में शामिल ही नहीं होते. पारिवारिक मेलजोल आप के मानसिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा है, इसलिए इस से कन्नी न काटें.

मूलमंत्र है परिवार से प्यार

आज के कैरियर ओरिऐंटेड दौर में आप से अपेक्षा नहीं की जा सकती है कि आप अपना सारा वक्त सिर्फ परिवार के साथ ही बिताएं. लेकिन यह भी याद रखें कि आज भी परिवार नामक संस्था इतनी फालतू नहीं हुई है कि आप उसे सिरे से ही नकार दें. अगर आप की प्रबंधन क्षमता वाकई बेहतर है तो आप को परिवार और औफिस के बीच तालमेल बैठाना सीखना होगा ताकि किसी एक की वजह से दूसरा प्रभावित न हो. काम और घर के बीच तालमेल बैठाने का मूलमंत्र है समर्पण. जब आप इन में से किसी एक को भी कम कर के आंकने लगते हैं तो उस के समय में कटौती कर के दूसरे को देने लगते हैं. आप का समर्पण अपने काम और घर दोनों के प्रति होना चाहिए. जब काम पर हों तो पूरा ध्यान काम में हो ओर जब घर पर हों तो ध्यान काम में न लगा हो.

छुट्टी से मिलेगी संतुष्टि

बेशक एक ऐंटरप्रेन्योर होने के नाते आप का वक्त कीमती है. ऐसा भी संभव है कि लोग आप से 2 मिनट बात करने के लिए कई बार 2-2 घंटे इंतजार करते हों लेकिन आप के इस कीमती वक्त पर आप के परिवारजनों का भी हक है और वह भी बिना किसी अपौइंटमैंट के. इसलिए अपने कीमती वक्त का सही मैनेजमैंट करें ताकि अपने लोगों के लिए भी आप समय निकाल सकें. अपने परिवार के साथ सही समय बिताने से आप मानसिक और दिली तौर से संतुष्ट और प्रसन्न रहेंगे. इसे फायदे का निवेश मान कर आप अच्छा परिणाम सुनिश्चित कर सकते हैं. आप कितने भी व्यस्त क्यों न रहते हों, अपने दोस्तों और परिवार के साथ छुट्टी पर जाने का प्रोग्राम जरूर बनाएं. इस से आप को दिमागी तौर पर तो ताजगी मिलेगी ही, साथ ही नई जगहों और नए लोगों से मिलने पर आप की रचनात्मकता में भी निखार आ सकता है. भूल जाएं कि छुट्टी से आप के पैसे कटेंगे, क्योंकि असल में यह छुट्टी आप के लिए बोनस का काम करेगी जहां परिवार, दोस्तों और काम सभी के लिए आप फ्रैशनैस कैश कराएंगे.

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