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सच का सामना करें बोल्ड होकर

ग्रैजुएशन के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटे हरेंद्र का अधिकांश समय पढ़ाई और घर के कामकाज में गुजरता था. बचे समय में मूड फ्रैश करने के लिए वह दोस्तों के साथ थोड़ी मौजमस्ती कर लेता था. सभी उस की तारीफ करते थे खासतौर से उस के पापा तो उस पर गर्व करते थे. अपनी तारीफ सुन हरेंद्र फूला न समाता और वह और अधिक जिम्मेदारी से काम करता. कुछ दिन पहले उस के पापा दफ्तर के काम से 8 दिन के लिए बाहर गए तो जातेजाते उसे बिजली का बिल और 800 रुपए यह कह कर थमा गए कि कल बिल भरने की आखिरी तारीख है, याद से बिल जमा कर देना नहीं तो कनैक्शन कट जाएगा और पैनल्टी भी लग जाएगी.

दूसरे दिन जैसे ही हरेंद्र बिजली का बिल जमा करने के लिए रवाना हुआ तो रास्ते में ही मोबाइल की घंटी बज उठी. उस की फ्रैंड शिवानी का फोन था. शिवानी ने उसे तुरंत इंडियन कौफी हाउस में बुलाया था. वह वहां उस का इंतजार कर रही थी. हरेंद्र बिल अदा करना भूल तुरंत कौफी हाउस की तरफ मुड़ गया. रास्ते भर वह शिवानी से मिल कर प्यार भरी बातों के सपने बुनता रहा, हालांकि उसे हैरानी थी कि आखिर आज तक घास न डालने वाली शिवानी उस पर अचानक मेहरबान क्यों हो रही है.

कौफी हाउस पहुंचा तो शिवानी कोने की मेज पर बैठी उस का इंतजार करती मिली. बातचीत, पढ़ाई, कालेज और कोचिंग से शुरू हुई और वहीं खत्म हो गई. लेकिन इस दौरान शिवानी ने नूडल्स और छोलेपूरी खाए और आखिर में आइसक्रीम भी मंगा डाली. 400 रुपए का बिल आया. जेबखर्च अभी न मिल पाने के कारण बिजली बिल के रुपयों में से ही हरेंद्र ने बिल अदा किया और दोनों अपनेअपने रास्ते चल दिए. हरेंद्र यह तय नहीं कर पाया कि आखिर शिवानी चाहती क्या थी, लेकिन यह जरूर उसे समझ आ गया कि अब बिजली के बिल की खिड़की बंद हो चुकी होगी और पैनल्टी लगना तय है. अब अहम बात यह थी कि अगर कल भी बिल भरे तो पैसे कहां से आएंगे?

2 दिन बाद ही हरेंद्र परेशान हो उठा. जेब में कुल साढ़े 3 सौ रुपए थे. बिजली वाले कभी भी आ कर कनैक्शन काट सकते थे, यह सोच कर ही वह कांप उठा. इधर पापा ने दूसरे दिन ही मोबाइल पर हरेंद्र से बिजली के बिल के बाबत पूछा था तो उस ने हड़बड़ाहट में कह दिया था कि जमा कर दिया है. हरेंद्र का सोचना यह था कि अभी कहीं से उधार ले कर बिल भर देगा. बाद में पौकेट मनी मिलेगी तो पैसे वापस लौटा देगा. उठतेबैठते सोतेजागते उसे लगता कि बिजली विभाग के कर्मचारी बिल न भरने के कारण उन का कनैक्शन काटने आए हैं. उस ने कभी इतना तनाव नहीं झेला था न ही कभी मम्मीपापा से झूठ बोला था. लिहाजा, डर के साथसाथ वह ग्लानि से भी भरा हुआ था.

आखिरकार उस ने काफी सोचा और तय किया कि वह पापा के आते ही उन्हें सबकुछ सचसच बता देगा. पापा के घर आते ही उस ने उन्हें सही बात बता दी. उम्मीद थी कि वे डांटेंगे, लेकिन यह देख उसे हैरत हुई कि पापा ने न उसे डांटा न मारा, उलटे उस के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले, ‘‘कोई बात नहीं इस में परेशान होने की क्या बात है, ये लो बाकी पैसे और बिल भर कर आओ. हम ने भी कालेज में खूब मौजमस्ती की है. खुशी इस बात की है कि तुम में सच स्वीकारने की हिम्मत है.’’ पापा की बात सुन कर हरेंद्र की आंखें भर आईं और तनाव, डर व ग्लानि तो दूर हुई ही साथ ही सच बोलने के लिए मन में हौसला भी जागा. वह पापा से लिपट गया.

सच की ताकत

हरेंद्र अगर झूठ का सहारा लेता तो जिंदगीभर अपराधबोध से ग्रस्त रहता और अगर झूठ पकड़ा जाता, जिस की आशंका ज्यादा थी तो जिंदगीभर पिता से नजरें भी नहीं मिला पाता, लेकिन उस ने हिम्मत से सच का सामना किया और जिंदगी का एक नया सबक सीखा कि सच बहुत ताकतवर होता है. क्या सभी लोग ऐसा कर पाते हैं, इस सवाल का जवाब साफ है कि नहीं और वह भी इसलिए कि झूठ तात्कालिक तौर पर उन्हें बचा लेता है और झूठ बोलना आसान भी है, पर इस के नुकसान कैसे और क्या होते हैं ये वे नहीं समझ पाते.

18 वर्षीय श्वेता को एक सहपाठी से प्यार हो गया और वह अकसर घर में झूठ बोल कर उस के साथ घूमनेफिरने लगी. एक दिन बड़े भाई ने उसे देख लिया और घर आने पर पूछा तो सकपकाई श्वेता ने कई झूठ बोले कि नहीं मैं तो कालेज में थी, कोई और युवती होगी वगैरावगैरा, लेकिन बड़ा भाई सारी जानकारी निकाल लाया तो श्वेता शर्म के मारे सिर नहीं उठा पाई. काफी डांटने के बाद भाई ने उसे समझाया भी कि तुम्हारी उम्र इन चक्करों में पड़ने की नहीं है, दुनिया की ऊंचनीच तुम ने देखी नहीं है. पहले पढ़लिख लो, अपने पैरों पर खड़ी हो जाओ, फिर जिस से कहोगी उस से शादी करवा देंगे लेकिन जिंदगी में संभल कर नहीं चलीं तो कभी ऐसी गिरोगी कि कोई कुछ नहीं कर पाएगा. बात श्वेता को समझ आ गई और उस ने उस युवक से दूरी बना कर पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित कर लिया.

ऐसे करें सच का सामना

इन दोनों मामलों में एक महीन फर्क यह है कि हरेंद्र ने समझदारी से काम लेते हुए सच को स्वीकारा तो श्वेता ने झूठ का सहारा लेने की असफल कोशिश की. लेकिन सच के माने बहुत व्यापक होते हैं. जिंदगी में कई मौके ऐसे भी आते हैं जब सच भयावह रूप ले कर ऐसे सामने आ खड़ा होता है कि उस से बच पाना दुष्कर हो जाता है. ऐसे में उस का सामना करने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं रह जाता और सामना करने का सीधा या समझदारी भरा मतलब होता है उसे स्वीकार लेना. भोपाल के एक कालेज की प्रोफैसर की शादी कोई 25 साल पहले हुई थी तब वह पीएससी से चयनित हुई थी. नौकरी लगते ही शादी की बात चली तो कालेज के एक प्रोफैसर से मांबाप ने शादी तय कर दी. वह समान वेतन, पद और बराबरी का पढ़ालिखा जीवनसाथी पा कर खुश थी. लेकिन यह खुशी उस वक्त काफूर हो गई जब ससुराल जा कर उसे यह पता चला कि पति प्रोफैसर नहीं बल्कि क्लर्क है. उस पर क्या गुजरी होगी इस का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. अब उस के पास 2 ही रास्ते थे. पहला, स्थिति से समझौता कर ले या पति को छोड़ दे. दूसरा रास्ता कठिन था और मांबाप के लिए भी यह तकलीफदेह होता जिन्होंने शादी से पहले जांचपड़ताल नहीं की थी.

इस प्रोफैसर ने समझदारी से काम लिया और सबकुछ भूल कर पति को आगे पढ़ने और बढ़ने को प्रोत्साहित करने लगी. मेहनत और कोशिश रंग लाई और पति का चयन लाइब्रेरियन पद के लिए हो गया. ऐसे मौके हर किसी की जिंदगी में आते रहते हैं जब कड़वा सच मुंहबाए किसी न किसी रूप में सामने आ खड़ा होता है, तब सब्र और समझदारी से काम लेने से ही बात बनती है, बजाय घबराने या उलटासीधा कुछ करने का फैसला ले लेने के. इसलिए हमेशा सच का सामना बोल्ड हो कर करें. जमाने या समाज की परवा कर झूठ का दामन थामे रहने से कोई फायदा नहीं होता. झूठ के पांव नहीं होते और सच वाकई बहुत कड़वा होता है. इन में से कड़वे सच को चुन उस का सामना करने से कोई नुकसान नहीं होता, लेकिन झूठ का सहारा जो लोग लेते हैं उन के हाथ सिवा पछताने के कुछ नहीं आता.                        

कुछ टिप्स

– दफ्तर, रिश्तेदारी या दोस्ती में झूठ बोलने से बचें. मसलन, आप कार्यालय में व्यस्त हैं और किसी अजीज दोस्त के बारबार बुलावे पर हां उस वक्त तक न करें जब तक वाकई आप जाने की स्थिति में न हों.

– कोई पैसा या मदद मांगे तो अपनी हैसियत से बढ़ कर या भावुक हो कर आश्वासन न दें, जिसे आप पूरा न कर सकते हों.

– यह न सोचें कि सच बोलने से सामने वाले को बुरा लगेगा इसलिए झूठ बोल दें बल्कि यह समझ लें कि सच कभी तकलीफदेह नहीं होता उलटे आप इस से खुद को और सामने वाले को परेशानी और तनाव में पड़ने से बचा लेते हैं.

– कोई आप को झूठ बोल कर धोखा दे जाए तो तिलमिलाएं नहीं बल्कि यह मान लें कि उस में सच बोलने का नैतिक साहस नहीं है.

– ना कहना भी सीखें. ‘हां ऐसा कर दूंगा’ कहने की आदत है तो उसे छोड़ें और सच की अहमियत को समझें. झूठ बोल कर आप भी खुशी और चैन से नहीं रह पाते

ख़राब टमाटर से बनेगी बिजली

आप सभी घर पर  टमाटर की चटनी और केचप तो  बनाते होंगे, लेकिन कई बार जब टमाटर अधिक आ जाते हैं और ख़राब होने लगते हैं, तो आप उन्हें फ़ेंक देते होंगे. लेकिन इस बार ऐसा करने से पहले रुक जाइए, क्योंकि  आपके खराब टमाटर अब बिजली पैदा करने के लिए प्रयोग में लाये जा रहे हैं. एक हालिया शोध के अनुसार, बेकार हो चुके टमाटरों से बिजली पैदा करने का तरीका खोज निकाला जा चुका है.

आपको जानकर हैरानी होगी की इस शोध में शामिल वैज्ञानिकों में भारतीय मूल  की एक वैज्ञानिक भी हैं. साउथ डेकोटा स्कूल ऑफ माइन्स एंड टेक्नॉलजी की नमिता श्रेष्ठ यह शोध साउथ डेकोटा के अस्टिटेंट प्रोफेसर वेंकटरामन्ना गधामशेट्टी और प्रिंसटन विश्वविद्यालय के रसायन शास्त्र के अंडरगेजुएट छात्र एलेक्स फोग के साथ मिलकर किया है.

गधामशेट्टी का कहना है कि इस परियोजना पर हमने दो साल पहले काम शुरू किया था जब एलेक्स ने मेरे प्रयोगशाला का दौरा किया था. हमारे राज्य में काफी टमाटर उगाया जाता है जिसका एक बड़ा हिस्सा बेकार हो जाता है और ठिकाने लगाना एक बड़ी समस्या बन जाता है.

यह शोध 251वें नेशनल मीटिंग एंड एक्सपोसिसन ऑफ से अमेरिकन केमिकल सोसायटी में प्रस्तुत किया गया जिसका आयोजन केलिफोर्निया के सैन डियागो शहर में किया गया.

भाजपा के ‘शत्रु’ हुए लालू-नीतीश के दोस्त

भाजपा के ‘शत्रु’ आखिरकार लालू-नीतीश के ‘दोस्त’ हो गए. भाजपा सांसद शत्रुध्न सिन्हा की बायोग्राफी ‘एनीथिंग बट खामोश’ का लोकार्पण लालू-नीतीश की जोड़ी द्वारा किए जाने के बाद राज्य की सियासत में कई लोगों की खामोशी टूटने के आसार हैं. भाजपा नेता के जलसे में भाजपा का एक भी नेता मौजूद नहीं था, जो राजनीति में नया गुल खिलाने का संकेत दे गया. ‘कमल वालों’ की बेरूखी से जख्मी शत्रु के जख्मों पर ‘तीर’ और ‘लालटेन’ वालों ने मरहम लगाने और अपनी राजनीति साधने की पुरजोर कोशिश की.

शत्रुघ्न सिन्हा ने जलसा शुरू होने के पहले ही कह दिया था कि यह राजनीतिक मंच नहीं है, पर धाकड़ सियासतबाजों की मौजूदगी में भला राजनीति कैसे नहीं होती? उनकी किताब के विमोचन के मौके पर जम कर राजनीति हुई. राजनीति के तीर और गोले चले. राजनीति के पटाखे और फुलझडि़यां छूटी. सबसे पहले लालू ने उन्हें उकसाते हुए कहा कि वह अब तो अपनी खामोशी तोड़ दें. नीतीश और लालू को बैठे-बिठाए भाजपा पर तीर चलाने का मौका हाथ गया था और वह इस मौके को अपने हाथों से कैसे जाने दे देते?

लालू ने शत्रु को भाजपा छोड़ने की सलाह देते हुए कहा कि अपनी खामोशी तोडि़ए. नो रिस्क नो गेम. लालू यहीं नहीं रूके और बिहारी बाबू को जोश दिलाते हुए कहा कि बैठे रहिएगा तो बैठे ही रह जाइएगा. चुप्पी तोडि़ए और आगे बढि़ए. लालू की बातों के जबाब में नीतीश ने मजाक किया कि लालूजी चाहे जो चाह लें पर बिहारी बाबू अपने हिसाब से ही कोई फैसला लेंगे. नीतीश ने खुला निमंत्रण देते हुए कहा कि अगर शत्रुध्न चाहें, तो वह बिहार के विकास की मुहिम में उनका साथ दे सकते हैं.

नीतीश ने शुत्रुघ्न सिन्हा और शेखर सुमन से बिहार में फिल्मसिटी बनाने की गुजारिश कर राज्य के सियासी शतरंज पर नया दांव चल दिया. शघुघ्न सिन्हा पिछले कई सालों से बिहार में फिल्मसिटी बनाने की मांग राज्य सरकार से करते रहें हैं और यह उनका ड्रीम प्रोजेक्ट रहा है. नीतीश ने शत्रु की अगुवाई में पुल्मसिटी बनाने की बात कही और हर तरह की मदद देने का वादा भी कर डाला. नीतीश ने शत्रु के बहाने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा कि आपकी पार्टी में सच बोलने वालों की कद्र नहीं की जाती है. हो सकता है कि आपके दो टूक बोलने के स्वाभाव की वजह से आपकी पार्टी के लोग आपको बाहर निकाल दें या अपनों की बेरूखी से आजीज आकर आप ही पार्टी छोड़ दें. उसके बाद नीतीश ने इशारों इशारों में शत्रु को जता दिया कि अगर ऐसी नौबत आती है तो उनका दर खुला है और खुला ही रहेगा.

लालू और नीतीश ने शत्रुघ्न सिन्हा पर डोरे डालने की भरपूर कोशिश की. सियासत के दोनों धुरंधरों को  पता है कि शत्रु को अपने पाले में करके वह भाजपा को एक बार फिर धूल चटा सकते हैं. पिछले कई सालों से अपनी पार्टी भाजपा से नाराज पटना सहिब के सांसद शत्रुघ्न सिन्हा लालू और नीतीश के न्यौते पर फिलहाल ‘खामोश’ ही रहे. वह भाजपा से नाता तोड़ने और किसी दूसरे दल में शामिल होने के लिए किसी गोल्डन मौके के इंतजार में हैं. अब देखना है कि शत्रु के साथ-साथ लालू और नीतीश का इंतजार कब खत्म होता है?

अगर आडवाणी जी जीवनी लिखते…

पटना से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके अभिनेता शेखर सुमन ने भी लालू, नीतीश और शत्रुघ्न के साथ खूब जम कर मस्ती की. उन्होंने बिहारी बाबू की जीवनी ‘एनीथिंग बट खामोश’ के बारे में कहा कि अगर यह किताब भोजपुरी में लिखी जाती तो उसका नाम होता-‘कुछ हो जाई, हम खामोश नईखें रहब’. उसके बाद उन्होंने कहा कि अगर लालूजी बायोग्राफी लिखते तो उसका नाम होता-‘हमरे बहुत सारे बुतरू बच्चा’. लालकृष्ण आडवाणी की जीवनी का नाम होता-‘ जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी’. अन्ना हजारे की किताब का नाम होता-‘भरोसा सिर्फ रिवाइटल’. स्मृति ईरानी की बायोग्राफी का नाम रखा जाता-‘इसको लगा डाला तो लाइफ झींगालाला’. विजय माल्या अगर जीवनी लिखें तो उसका नाम होगा-‘पहले विश्वास करो फिर इस्तेमाल करो’. उन्होंने अरविंद केजरीवाल की बायोग्राफी का नाम दिया-‘दो हफ्ते की खांसी हो सकती है टीबी’.

मैच से पहले पाकिस्तान ने विराट कोहली का उड़ाया मजाक

पाकिस्तान के एक्सप्रेस टीवी ने भारतीय टीम का मजाक उड़ाया है. चैनल ने पाकिस्तान के तेज गेंदबाज मोहम्मद इरफान के साथ विराट कोहली की तस्वीर दिखाकर भारत का मजाक बनाया है. चैनल ने एक पोस्टर बनाया है जिसमें इरफान की लंबाई 7 फीट दिखाई गई है और विराट कोहली की 1 इंच.

पोस्टर में इरफान के हाथों में कोहली झूलते नजर आ रहे हैं. पोस्टर के उपर लिखा गया है 'हमको मिटा सके ये तुम में दम नहीं'. वहीं विराट कोहली के पास लिखा गया है ''अम्मी अम्मी पाकिस्तानी टीम बड़े बड़े लड़के लेकर आती है''.

खैर टीम इंडिया इस तरह के मजाक का खेल से मुंहतोड़ जवाब देना जानती है. गौरतलब है कि एशिया कप फाइनल मुकाबले से पहले बांग्लादेश के भी एक प्रशंसक ने तस्वीर के जरिए भारतीय टीम और कप्तान धोनी का बेहद भद्दे तरीके से मजाक उड़ाया था. एक‍ पोस्टर में बांग्लादेश के तेज गेंदबाज तस्कीन अहमद भारत के कप्तान धोनी का कटा सिर हाथ में लेकर हुंकार लगा रहे थे और उसका परिणाम सारे विश्व ने देखा था. इस बार भी टीम इंडिया  से वैसी ही उम्मीद है.

पड़ोसियों से प्यार

हमारे देश में पड़ोसियों के साथ हमेशा अच्छे रिश्ते बनाने की कोशिश की जाती है. तभी तो हर साल पाकिस्तानी बालाएं बौलीवुड आती हैं तो यहीं की हो कर रह जाती हैं. इस साल भी मावरा होकाने, माहिरा खान के साथसाथ दर्शकों को ईरानी बाला गुलशिफ्ता खान के भी बौलीवुड फिल्मों में दीदार होंगे. वे इरफान के साथ अनूप सिंग की फिल्म ‘द सौंग औफ स्कौर्पियंस’ में नजर आएंगी. उन के साथ ही कनाडा में रहने वाले पाकिस्तानी कलाकार अदील चौधरी विवेक कुमार की फिल्म ‘रिदम’ से बौलीवुड ऐंट्री कर रहे हैं.

आखिर महिलाएं क्यों नहीं घटा पाती वजन

हर महिला चाहती है कि उसका फिगर करीना या कटरीना की तरह हो और इसके लिए वे हर संभव प्रयास भी करती है लेकिन फिर भी वे अपना वजन कम नहीं कर पातीं, लेकिन इसके पीछे छिपा कारण क्या होता है इस गुत्थी को वैज्ञानिकों ने सुलझाने की कोशिश की है.

यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज और यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के शोधार्थियों के साथ मिल कर किये गए शोध के अनुसार दरअसल होता यह  है कि भोजन की कैलोरी के इस्तेमाल का निर्धारण मस्तिष्क का एक खास हिस्सा करता है. इस हिस्से की संरचना महिलाओं और पुरुषों में अलगअलग होती है.

शोधकर्ताओं ने कहा कि दिमाग में बनने वाले प्रोऑपियोमेलानोकोर्टिन (पीओएमसी) पेप्टाइड हार्मोन हमारी भूख, शारीरिक गतिविधि, ऊर्जा की खपत और वजन को नियमित करते हैं. दिमाग की कोशिकाएं इस हार्मोन का स्राव करती हैं. शोधकर्ताओं ने चूहों पर प्रयोग और अध्ययन करने के बाद पाया कि मादा चूहे में पीओएमसी पेप्टाइड का यह स्रोत शारीरिक गतिविधि या ऊर्जा की खपत को बेहतर तरीके से नियंत्रित नहीं करता. शोध में पाया गया है कि मस्तिष्क के पीओएमसी पेप्टाइड्स के स्रोत पर महिला या पुरुष होने से स्पष्ट प्रभाव पड़ता है." शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि पीओएमसी पेप्टाइड के स्रोत को लक्ष्य कर किए गए इलाज से महिलाओं में भूख घट सकती है .

दो युवतियां

(भाग-1)

वर्षों पहले एक बड़े शहर में 2 युवतियों की मुलाकात एक कालेज में हुई. एक उसी शहर की थी जबकि दूसरी किसी छोटे कसबे से शहर में पढ़ने आई थी. दोनों युवतियां अलगअलग परिवेश की थीं. दोनों का आर्थिक स्तर और विचारधारा भी अलग थी. दोनों के विचार आपस में बिलकुल नहीं मिलते थे, लेकिन दोनों में एक समानता थी और वह यह कि दोनों ही युवतियां थीं और एक ही कक्षा की छात्राएं थीं.

कक्षा में दोनों साथसाथ ही बैठती थीं, इसलिए विपरीत सोच और स्तर के बावजूद दोनों में दोस्ती हो गई थी. धीरेधीरे उन की यह दोस्ती इतनी प्रगाढ़ हो गई कि वे दो जिस्म एक जान हो गई थीं.

शहरी युवती अत्याधुनिक और खूबसूरत थी. उस का पिता एक बड़ा अफसर था इसलिए वह बड़े बंगले में रहती थी. उस के पास सारी सुखसुविधाएं मौजूद थीं. वह कार से कालेज आतीजाती और महंगा मोबाइल इस्तेमाल करती थी. वह काफी खुले विचारों की थी इसलिए उस की दोस्ती भी कालेज के कई युवकों से थी. ऐसा लगता था, जैसे वह कालेज के हर युवक से प्रेम करती थी. कालेज का हर छात्र उस का दीवाना था. उस का खुलापन और युवकों के साथ उस की मित्रता देख कर कोई भी यह सहज अनुमान लगा सकता था कि वह उन युवकों में से ही किसी एक के साथ शादी करेगी.

दूसरी तरफ कसबाई युवती इतनी सीधीसादी थी कि वह युवकों से बात करते हुए भी घबराती थी. वह होस्टल में रहती थी लेकिन अपनी कसबाई संस्कृति और संस्कारों से बाहर नहीं निकल पाई थी. उस के पास एक सस्ता सा मोबाइल था, जिस में उस के किसी बौयफ्रैंड का नंबर नहीं था. उस में केवल उस के मांबाप और कुछ रिश्तेदारों के नंबर थे. सुबहशाम वह केवल अपने मांबाप से ही बात करती थी.

शहरी युवती जब भी कालेज कैंपस में होती, उसे देख कर लगता जैसे चांद दिन में निकल कर अपनी शीतल चमक से सब को जगमग कर रहा है. युवक तारों की तरह उस के इर्दगिर्द लटक जाते और टिमटिमाने का प्रयास करते. कसबाई युवती उस के साथ बिलकुल वैसे ही लगती, जैसे एलईडी बल्ब के सामने जीरोवाट का बल्ब जल रहा हो. वह यदि अकेला जलता तो शायद थोड़ीबहुत रोशनी भी देता, लेकिन उस शहरी युवती के सौंदर्य के सामने उस की रोशनी बिलकुल फीकी लगती और ऐसा लगता जैसे दिन की रोशनी में शमा की रोशनी घुलमिल गई हो.

दोनों युवतियों की अपनीअपनी जिंदगी थी, उन की अपनीअपनी सोच थी और वे एकदूसरे के बारे में क्या सोचती थीं, यह अब उन्हीं की जबानी…

शहरी युवती…

जब से कालेज आई हूं, जीवन में एक अद्भुत परिवर्तन आया है. स्वच्छंदता है, उच्छृंखलता है, मस्ती और जोश है. इतनी सारी खुशियां पहली बार जीवन में आई हैं. समझ नहीं आता, उन्हें किस प्रकार समेट कर अपने दामन में भरूं. अगर समेट लूं, तो उन्हें सहेज कर कहां रखूंगी. डर भी लगता है कि कहीं एक दिन यह खुशियों का संसार टूट कर बिखर न जाए. कहते हैं, ‘खुशियों के दिन कम होते हैं.’ जीवन में जब ज्यादा खुशियां आती हैं, तो दुखों का अंधेरा उन से ज्यादा लंबा और घना होता है, लेकिन आगे आने वाले दुखों के बारे में सोच कर क्यों परेशान हुआ जाए. जब चारों तरफ फूल खिले हों, तो पतझड़ की कल्पना बेमानी लगती है. खुशियों का इंद्रधनुष जब आसमान में खिला हो तो काली घटाओं का आना बुरा लगता है.

ऐसी आजादी कहां मिलेगी? इतने सारे दोस्त और खुला वातावरण… युवकों के साथ दोस्ती करना कितना अच्छा लगता है. पहले कितने प्रतिबंध थे, अब तो कोई रोकनेटोकने वाला नहीं है. चाहे जिस से दोस्ती कर लो. युवक भी पतंगे की तरह युवतियों की तरफ खिंचे चले आते हैं. कितना शौक होता है युवकों को भी जल कर मर जाने का. समझ में नहीं आता, युवक इतने उतावले क्यों होते हैं युवतियों का प्यार हासिल करने के लिए. युवती को देखते ही उन का दिल बागबाग होने लगता है. वे लपक कर पास आ जाते हैं, जैसे युवती किसी विश्वसुंदरी से कमतर नहीं है और युवती के सामने उन की वाणी में कालिदास का मेघदूत आ विराजता है.

मेरी दोस्ती कई युवकों से है. सभी हैंडसम, स्मार्ट और अमीर घरों के हैं. वे मुझ पर मरते हैं. सभी ने मुझ से प्रेम निवेदन किया है, लेकिन मैं जानती हूं, ये सभी झूठे हैं. वे मेरे सौंदर्य पर मोहित हैं और येनकेन प्रकारेण मेरे शरीर को भोगने के लिए मेरे आगेपीछे भंवरे की तरह मंडराते रहते हैं, यह सोच कर कि कभी न कभी तो फूल का रस चूसने को मिलेगा.

लेकिन मैं भी इतनी बेवकूफ नहीं हूं और न ही इतनी नादान कि एकसाथ कई युवकों से प्यार करूं. दोस्ती तक तो ठीक है, लेकिन इतने युवकों का प्यार ले कर मैं कहां रखूंगी? किसी एक से प्यार करना तो संभव हो सकता है, पर इन में से कोई भी युवक मुझे सच्चा प्यार नहीं करता. सब की बातें झूठी हैं, वादे खोखले हैं, बस मुझे लुभा कर वे मेरे सौंदर्य को पाना चाहते हैं. यदि मैं ने हंसीमजाक में किसी से शादी की बात कर ली, तो वह दूसरे दिन ही कालेज छोड़ कर भाग जाएगा, लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगी. भुलावे में रख कर उन को बेवकूफ बनाया जा सकता है. कम से कम कैंटीन में ले जा कर भरपेट खिलातेपिलाते तो हैं.

युवकों को विश्वास है कि मैं उन्हें दिल से प्यार करती हूं, लेकिन वे भुलावे में जी रहे हैं. मेरा झुकाव किसी की तरफ नहीं है, मैं उन में से किसी के साथ प्यार करने का जोखिम नहीं उठा सकती हूं. प्यार में खुशी के दिन कम और दुख के ज्यादा होते हैं. मिलन के बाद विरह बहुत दुखदायी होता है. मिलन तो क्षणिक होता है, लेकिन विरह की घडि़यां इतनी लंबी होती हैं कि काटे नहीं कटतीं. बिलकुल जाड़े की तरह काली अंधेरी, सिहरती रातों की तरह.

मेरी कोशिश है कि मैं किसी युवक के प्यार में न पड़ूं, इसलिए मैं उन से अकेले में मिलने से बचती हूं. एकांत दो दिलों को ज्यादा करीब ला देता है. एकदूसरे को अपनी भावनाएं व्यक्त करने का मौका मिलता है. भावुकता भरी बातें होती हैं. ऐसी बातें सुन कर दिल पिघलने लगता है और जब दो दिल साथसाथ पिघलते हैं, तो घुलमिल कर चाशनी की तरह एक हो जाते हैं. मैं ऐसा बिलकुल नहीं चाहती.

मगर युवकों का चरित्र भी बड़ा विरोधाभासी होता है. एक तरफ तो वे युवती को प्यार करने का दम भरते हैं और दूसरी तरफ उस पर शंका भी करते हैं, उस के ऊपर एकाधिकार चाहते हैं. जब मैं एक युवक से बात करती हूं, तो दूसरा क्रोध से लालपीला हो जाता है. मेरे ऊपर नाराजगी प्रकट करता है. मुझे दूसरे युवकों से बात करने, उन से मिलनेजुलने और उन के साथ घूमनेफिरने पर मना करता है. तब मैं उस से साफसाफ शब्दों में कह देती हूं, ‘‘मेरे ऊपर हुक्म चलाने की जरूरत नहीं है. मैं तुम्हारी दोस्त हूं, कोई खरीदी हुई वस्तु नहीं, समझे.’’

एक ही डांट में युवक को अपनी औकात समझ आ जाती है. वह सहम कर कहता है, ‘‘ऐसी बात नहीं है. मैं तो बस तुम्हें सचेत कर रहा था. वह युवक अच्छा नहीं है. वह तुम्हें बरगला कर तुम्हारी इज्जत के साथ खिलवाड़ कर सकता है.’’

‘‘अच्छा,’’ मैं मुसकरा कर कहती हूं, ‘‘लेकिन यही बात वह युवक भी तुम्हारे बारे में कहता है.’’

इस के आगे युवक की जबान बंद हो जाती है.

कालेज में युवकों से दोस्ती के दौरान मैं ने एक बात अनुभव की कि युवक हर युवती से अपनी दोस्ती को प्यार समझते हैं और इसी प्यार का वास्ता दे कर वे उस के शरीर को भोगना चाहते हैं. जब तक वे उस के शरीर को भोग नहीं लेते, तब तक उस के आगेपीछे मंडराते रहते हैं. जब उसे भोग लेते हैं तो उस के प्रति उन का प्यार कम होने लगता है और फिर किसी दूसरी युवती की तरफ देखना शुरू कर देते हैं.

यह मेरा ही नहीं बल्कि मेरी अन्य सहेलियों का भी व्यक्तिगत अनुभव है. मैं ने देखा है कि ऐसी युवतियां अकसर दुखी रहती हैं, क्योंकि एक बार अपना सबकुछ लुटा देने के बाद उन के पास कुछ नहीं बचता. फिर भी वे युवकों के प्रति पूरी तरह समर्पित रहती हैं, जबकि युवक भंवरे की तरह दूसरी युवती रूपी तितली के ऊपर मंडराने लगता है. मैं ने इन अनुभवों से यही सीख ली है कि कालेज में युवकों के प्यार में कोई स्थायित्व नहीं होता. यह केवल मौजमस्ती के लिए होता है. असली प्यार वही होता है, जिस में बंधन होता है, दायित्व होता है.

सहेलियों की बात चली तो मैं बता दूं, मेरी एक सहेली है, जो मेरी अन्य सहेलियों से कुछ अलग है, लेकिन मेरी अभिन्न मित्र है. वह मेरी ही कक्षा में है और हम दोनों साथसाथ बैठती हैं, इसलिए दोनों में काफी लगाव है. वह किसी कसबेनुमा गांव की है

और यहां होस्टल में रहती है. बहुत आधुनिक नहीं है, लेकिन बुद्धिमान है. थोड़ी संकोची स्वभाव की है, ज्यादा बोलती नहीं है और युवकों के सामने तो वह शर्म के मारे निगाहें फेर लेती है. मेरे साथ रहती है, लेकिन मेरे किसी दोस्त से बात तक नहीं करती.

प्रतिमा नाम है उस का. वह बहुत खूबसूरत तो नहीं है. पहली नजर में कोई युवक उसे पसंद नहीं करेगा, लेकिन बारबार देखने और मिलने से कोई न कोई उस की तरफ आकर्षित हो सकता है. मैं ने उसे आधुनिक ढंग से सजनेसंवरने और कपड़े पहनने के कुछ टिप्स दिए, जिस से अब वह कुछ सुंदर दिखने लगी है. किसी न किसी दिन कोई युवक उस की तरफ अवश्य आकर्षित होगा. प्रतिमा भोली है. मुझे बस एक ही डर लगता है कि यदि वह किसी युवक के प्यार में गिरफ्तार हो गई तो कहीं वासना के दलदल में न फंस जाए.

आजकल के युवक प्यार के बदले सीधे शरीर मांगते हैं. अब पुराने जमाने की तरह महीनों चोरीचोरी देखना, फिर पत्र लिख कर अपनी भावनाओं को एकदूसरे तक पहुंचाना, उस के बाद मिलने के लिए तड़पना… और सालों बाद जब मुलाकात होती थी, तो पकड़े जाने के डर से कुछ कर भी नहीं पाते थे और आज तो प्यार हो चाहे न हो, शरीर का मिलन तुरंत हो जाता है. फिर कुछ दिन बाद एकदूसरे से अलग भी हो जाते हैं, जैसे यात्रा में 2 व्यक्ति अचानक मिले हों और कुछ पल साथ बिता कर अपने गंतव्य पर जुदा हो कर चल दिए हों. आजकल प्यार नहीं होता, लेनदेन होता है… शरीर और महंगे उपहारों का आदानप्रदान होता है.

मैं यह नहीं कहती कि प्रतिमा दोस्ती और प्यार में फर्क करना नहीं जानती. वह युवा है. कसबे से शहर आई है. ग्रैजुएशन कर रही है. प्यार से तो अनभिज्ञ नहीं होगी, क्योंकि प्यार के खेल तो हर जगह होते हैं. गांव, गली और शहर… सब जगह. कौन इस से अछूता है. क्या पता प्रतिमा भी किसी न किसी को प्यार करती हो. हालांकि उस के हावभाव से लगता नहीं है.

कसबाई युवती…

मेरे हावभाव से किसी को मेरे स्वभाव का जल्दी पता नहीं चलता. मैं बहुत संकोची और शर्मीली हूं. संभवत: कसबाई संस्कृति और संस्कारों ने मेरे अंदर एक स्वाभाविक संकोच भर दिया है. अब मैं 18 वर्ष की आयु में शहर पढ़ने के लिए आई हूं, तो स्वाभाविक तौर पर मुझे अपने स्वभाव में परिवर्तन लाना होगा.

मैं होस्टल में रहती हूं, जहां एक से एक बदमाश, शैतान और चालू युवतियां रहती हैं. उन सब ने मुझे कितना परेशान किया, कमरे में बंद कर के नंगा नाच करवाया, गाना गवाया और बहुत से ऐसे कृत्य करवाए, जिन का मैं यहां वर्णन नहीं कर सकती. ये सब करवाने के पीछे उन युवतियों का क्या मकसद था, यह आज तक मेरी समझ में नहीं आया. यदाकदा अब भी सीनियर युवतियां मुझ से वैसा ही दुर्व्यवहार करती रहती हैं, लेकिन मैं न तो उन के जैसी बदमाश और चालू बन सकी, न उन में से किसी के साथ मेरी दोस्ती हो सकी.

मेरी दोस्ती है तो प्रियांशी से, जो मेरी होस्टलमेट नहीं, क्लासमेट है. हम दोनों कक्षा में साथसाथ बैठती हैं और कक्षा के बाहर लाइब्रेरी से ले कर कैंटीन तक साथ रहती हैं. हम दोनों में बहुत सी बातें होती हैं, लेकिन हम दोनों का स्वभाव बिलकुल अलग है. वह खुले विचारों की आधुनिका है, तो मैं संकोची और संस्कारवान रूढि़वादी युवती, लेकिन मैं रूढि़वादी संस्कारों के बंधन में घुटन महसूस कर रही हूं. मैं शहर में आ कर अपने बंधन तोड़ देना चाहती हूं, पंख फैला कर खुले आसमान में उड़ना चाहती हूं.

मैं खुल कर किसी से बातें नहीं कर पाती. युवकों के सामने पड़ते ही मेरे संस्कार मेरे पैरों को जकड़ लेते हैं, हाथों को बांध देते हैं और जबान पर ताला लगा देते हैं. मैं किसी युवक से अपने मन की बात कह नहीं पाती. लेकिन अगर मैं किसी तरह साहस कर के कुछ कहना चाहूं तो कहूं किस से? कोई युवक मेरी तरफ निगाह उठा कर भी नहीं देखता.

सचाई तो यह है कि हर युवक आवारा भंवरे की तरह सुगंधित और सुंदर फूल का रस चूसने के लिए लालायित ही नहीं बेचैन भी रहता है. वह एक सौंदर्यहीन, असुगंधित जंगली फूल की तरफ कभी आकर्षित नहीं होता. मैं अकसर हीनभावना से ग्रस्त हो जाती हूं. प्रियांशी मेरी घनिष्ठ सहेली है, लेकिन उस के साथ रहते हुए मुझे हीनभावना का एहसास होता है और मैं उस के सौंदर्य से ईर्ष्या करने लगती हूं. वह असीम सौंदर्य की धनी है, शायद मेरे हिस्से का सौंदर्य भी उस के ही खाते में चला गया.

वह इतनी सुंदर और मैं सौंदर्यहीन, दबे हुए रंग की युवती. हालांकि शारीरिक सौष्ठव और अंगों की पुष्टता के मामले में मैं उस से किसी तरह कमतर नहीं हूं, लेकिन युवती की सुंदरता का मापदंड उस का चेहरा होता है, उस का दमकता हुआ माथा, बड़ीबड़ी काली आंखें, सुंदर लंबी नाक, कश्मीरी सेब की तरह गाल, भरे हुए संतरे की फांक जैसे गुलाबी होंठ और लंबी गरदन, यह एक युवती की सुंदरता के मापदंड होते हैं. इन में मैं प्रियांशी के सामने कहीं नहीं ठहरती.

कालेज का हर युवक प्रियांशी की तरफ आकर्षित है, उस के साथ दोस्ती करना चाहता है. दोस्ती क्या, दोस्ती की आड़ में प्यार का नाटक कर के उस को हासिल करने का प्रयास करता है, लेकिन प्रियांशी उन के साथ केवल दोस्ती करती है. मेरे सामने तो वैसे ही दिखाती है, अकेले में मिल कर कैसी बातें करती है, मुझे नहीं पता.

प्रियांशी की दोस्ती कालेज के कई युवकों से है. मैं भी चाहती हूं कि मेरा कोई दोस्त बने. प्रियांशी के कहने पर मैं ने अपने गैटअप में कई परिवर्तन किए और अब मैं पहले से ज्यादा खूबसूरत लगने लगी हूं. फिर भी कोई युवक मेरी तरफ मुंह उठा कर नहीं देखता. इस का प्रमुख कारण है, प्रियांशी. मैं हर वक्त उस के साथ रहती हूं. उस के सामने मुझे कौन देखेगा, कौन चाहेगा. उस के सुंदर व्यक्तित्व के सामने मेरा थोड़ा सा सौंदर्य बुझे हुए चिराग जैसा हो जाता है.

मुझे अपनी अलग पहचान बनानी होगी. यदि मुझे नए जमाने के साथ चलना है, तो मुझे खुद ही कुछ करना होगा. प्रियांशी के साथ रहते हुए कोई युवक मेरा दोस्त नहीं बनने वाला. मुझे उस से कट कर अकेले रहना होगा. जब मैं अकेली रहूंगी तभी कोई युवक मुझ से बात करने का प्रयास करेगा, तभी मैं उसे अपनी बातों और नयनों के तीर से घायल कर पाऊंगी. फिर मैं उस के घायल दिल पर अपने प्यार का मरहम लगा कर उसे वश में कर लूंगी.

लेकिन मैं किस युवक को अपने वश में करूं, क्योंकि कक्षा के अधिकांश युवक तो प्रियांशी को ही चाहते हैं. मेरी तरफ कोई भूल कर भी नहीं देखता. कैंपस के दूसरे युवक भी किसी न किसी युवती के साथ अटैच्ड हैं. मैं किस को अपनी तरफ आकर्षित करूं?

मैं यह सोच कर परेशान हो जाती हूं, एक अजीब बेचैनी मेरे अंदर घर करती जा रही है. मैं जवान हूं, लेकिन कोई भी युवक मेरा दोस्त नहीं है. सभी युवतियों के दोस्त हैं, बौयफ्रैंड हैं, प्रेमी हैं और एक मैं हूं, जिस की कोई जानपहचान तक किसी युवक से नहीं है. मेरी जैसी युवतियां आज बैकवर्ड मानी जाती हैं.

एक प्रियांशी ही मुझ से दोस्ती का रिश्ता कायम किए हुए है, लेकिन कब तक? जब उस का मन किसी युवक से अकेले में बात करने का होगा, तो वह भी मुझ से किनारा कर लेगी? तब क्या मैं हताश और निराश नहीं हो जाऊंगी. कहते हैं न किसी जवान युवती को अगर सही समय पर प्यार नहीं मिलता और उस की इच्छाएं, कामनाएं और भावनाएं दबी रह जाती हैं, तो वह हताशा की शिकार हो जाती है. उसे दौरे पड़ने लगते हैं और वह हताशा के अतिरेक में आत्महत्या तक कर लेती है.

लेकिन मैं आत्महत्या नहीं करूंगी. मैं इतनी सुंदर नहीं हूं, पर इतनी बुरी भी नहीं कि कोई युवक मुझे प्यार ही न करे. प्रयास करने से क्या नहीं होता? आज अगर कोई युवक मेरी तरफ प्यार भरी नजर से नहीं देखता, तो यह केवल प्रियांशी के कारण. अब मैं उस के घर में सेंध लगाऊंगी. हां, आप नहीं समझे?

मैं उसी के दोस्तों में से किसी एक को पटाऊंगी और वे सब प्राप्त कर के दिखाऊंगी, जो एक पुरुष से स्त्री को प्राप्त होता है. मैं अधूरी नहीं रहना चाहती. मैं जवान हूं, मेरी कामनाएं हैं और मेरी भी भावनाएं मचलती हैं, मुझे प्यार चाहिए, भरपूर प्यार… एक पुरुष का प्यार… हर तरफ वसंत के फूल खिले हैं. प्यार का रस टपक रहा है. मैं किसी को अकेला नहीं देखती. कैंपस का हर युवक किसी न किसी के प्यार में गिरफ्तार है, तो मैं अकेली पतझड़ की गरम हवा क्यों बरदाश्त करूं? इसी वसंत में कोई मेरे लिए भी प्यार के गीत गाएगा, हवा मेरे लिए भी खुशबू ले कर आएगी. पतझड़ के गीत गाने का मौसम अभी मेरे जीवन में नहीं आया है.

शहरी युवती…

वसंत का आगमन हो चुका है. फूलों ने पेड़ों पर एक अनोखी छटा बिखेरी हुई है. हवा में अनोखी सुगंध है, जो मन को मुग्ध कर देती है. तन और मन दोनों ही मचलते हैं. कुछ करने का मन करता है, लेकिन मैं अपने मन को रोक लेती हूं. तन को बहकने नहीं देती.

मेरे सभी दोस्तों ने वैलेंटाइन डे पर मुझे गुलाब के साथ महंगे गिफ्ट भेंट किए हैं. साथ ही उन्होंने प्रेम निवेदन भी किया है, लेकिन मैं ने बहुत विनम्रता से उन के प्रेम को ठुकरा दिया है. उन सब के चेहरों पर खिले हुए वसंत के फूल मुरझा गए हैं. उन की आंखों के सामने पतझड़ के सुर्ख पत्ते उड़ने लगे. ऐसा लगा, जैसे उन के चेहरे का सारा खून सूख कर पानी बन गया हो. उन के चेहरे एकदम सफेद पड़ गए, लेकिन इस से मुझे क्या? यह उन की समस्या थी. जो प्यार करता है, वह विरह का दुख भी सहता है. मैं ने तो उन्हें प्रेम के लिए उत्प्रेरित नहीं किया था. मैं अगर उन से प्यार नहीं करती तो इस में मेरा क्या दोष? प्यार उन्होंने किया, तो उस का परिणाम भी वही भुगतेंगे.

इस के बाद मैं ने महसूस किया कि सारे युवक मुझ से दूरदूर रहने की कोशिश करने लगे हैं, तो मैं ने भी उन से दोटूक बात कर के उन के मन की बात जाननी चाही और उन से बातें करने के बाद जो सचाई उभर कर सामने आई उस में एक बात पूरी तरह सत्य साबित हो गई कि युवकयुवतियों के बीच की सीमा शारीरिक मिलन पर जा कर समाप्त होती है. यही उस की पूर्णता है. यही शाश्वत सत्य है.

‘‘क्या बात है, आजकल तुम मुझ से दूरदूर रहते हो.’’

‘‘क्या करूं ? पत्थर से सिर टकराने से क्या फायदा? उस में फूल कभी नहीं खिलते,’’ युवक ने मायूसी से कहा.

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘तुम्हारे पास एक युवती का दिल नहीं है. तुम किसी युवक को प्यार नहीं कर सकती.’’

‘‘कल तक तो मेरे पास सबकुछ था आज मैं ने तुम्हारा प्रेम निवेदन ठुकरा क्या दिया कि मैं युवती ही नहीं रही. वाह, क्या दोस्ती में प्यार नहीं होता.’’

‘‘नहीं, वैसा प्यार नहीं होता, जैसा एक युवकयुवती के बीच होना चाहिए.’’

‘‘यह कैसा प्यार होता है? क्या मुझे समझाने का प्रयत्न करोगे?’’ प्रियांशी ने थोड़ा तल्खी से पूछा.

‘‘तुम सब समझती हो, तभी तो हमारे प्यार को ठुकरा दिया है.’’

‘‘फिर भी बताओ न, तुम्हारे मुख से भी तो सुनूं.’’

‘‘यही न जैसे कि कहीं एकांत में बैठना, प्यार भरी बातें करना, एकदूसरे को स्पर्श करना, चुंबन करना और… और…’’

‘‘और फिर तनबदन में आग लगे, तो वासना के दरिया में डूब कर अपनी प्यास बुझाना, क्यों यही चाहते हो न तुम एक युवती से?’’

‘‘हां, और क्या? सभी ऐसा करते हैं, हम दोनों करेंगे तो कौन सा धरतीआसमान फट जाएंगे.’’

‘‘लेकिन ये सब करने की हमारे संस्कार अनुमति कहां देते हैं. इस के लिए तो शादी जैसा पवित्र रिश्ता बना है. ये सब यदि हम तभी करें तो क्या ज्यादा उचित नहीं होगा. अभी तो हमारी पढ़ाई की उम्र है.’’

‘‘हुंह, पढ़ाई की उम्र… और जो एकदूसरे के प्रति आकर्षण होता है, स्वाभाविक खिंचाव होता है, भावनाएं मचलती हैं, उन का क्या किया जाए. शारीरिक क्रियाएं अपना काम करना बंद नहीं करतीं, समझी, प्रियांशीजी,’’ लड़के के स्वर में तल्खी थी, ‘‘तुम हठी और जिद्दी हो. जानबूझ कर अपनी भावनाओं को कुचल कर दबाने का प्रयास करती हो. देख लेना, अगर यही स्थिति रही तो एक दिन हिस्टीरिया की शिकार हो जाओगी.’’

‘‘उस की फिक्र तुम मत करो दोस्त, ऐसी स्थिति आने से पहले ही मैं शादी कर लूंगी. लेकिन तुम्हारे जैसे किसी लंपट से तो शादी बिलकुल नहीं करूंगी.’’

इस के बाद मेरी दोस्ती उन युवकों से खत्म हो गई. उन के प्यार का रंग बदरंग हो गया. इस से एक बात प्रमाणित हो गई कि युवकयुवती आपस में कभी दोस्त बन कर नहीं रह सकते. उन के बीच जो कुछ होता है, वह मात्र शारीरिक आकर्षण होता है, जो आखिर में शारीरिक मिलन पर जा कर समाप्त होता है.

कहते हैं, दुनिया में कुछ भी टिकाऊ नहीं है… रिश्ते और नाते भी नहीं, स्वार्थ पर आधारित कोई भी चीज टिकाऊ नहीं हो सकती. लेकिन मुझे हैरानी होती है, प्रतिमा और मेरे बीच स्वार्थ का कोई आधार नहीं था, फिर भी आजकल वह मुझ से खिंचीखिंची रहती है. पता नहीं उस के मन में क्या है? वह आजकल मुझ से कम बात करती है. कक्षा में साथ बैठती है, पर ऐसे जैसे दो दुश्मन गलती से अगलबगल बैठ गए हों. मैं उस से कुछ पूछती हूं, तो वह कुछ बताती नहीं है. कक्षा के बाहर भी मेरे साथ नहीं रहती. न साथ लाइब्रेरी जाती है, न कैंटीन. मैं ने अपनी तरफ से प्रयास किया कि उस के साथ मेरे रिश्ते सामान्य बने रहें, लेकिन वह अडिग चट्टान की तरह अपने मन को कठोर बनाए हुए है, तो मैं क्या कर सकती हूं. ऐसी स्थिति में दोस्ती के तार कांच की तरह झनझना कर टूट जाते हैं. मेरा भी मन उस से खट्टा होने लगा है.

– क्रमश:             

जाति का सर्टिफिकेट

इस देश में जहां 8-10 लोग एकसाथ बैठते हैं, अगर एकदूसरे का नाम, पता, काम न जानते हों, 10-20 मिनट में जाति का पता जरूर कर लेते हैं. वैसे तो ऊंची और अछूत जाति के लोग साथ बैठते ही नहीं हैं, पर अगर बैठ भी गए, तो 2016 में भी ऊंची जाति वाले मुंह फेर लेंगे या उठ कर चल देंगे. इन्हीं ऊंची जातियों वालों में से कुछ ने अछूत दलितों को राहत देने के नाम पर पेशकश की थी कि जन्म सर्टिफिकेट पर ही जाति लिखा दी जाए, ताकि जाति प्रमाणपत्र बनवाने के लिए सरपंचों, तहसीलदारों, जिलाधीशों के यहां चक्कर न लगाने पड़ें. इस गंदे सुझाव ने इतना जोर पकड़ लिया कि 15 दिसंबर, 2015 को लोकसभा में राज्य गृह मंत्री हरीभाई प्रतिभाभाई चौधरी को सफाई देनी पड़ी कि ऐसा कोई सुझाव सरकार के पास नहीं है.

जाति का सर्टिफिकेट तो केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय और बनियों को लेना चाहिए, जो ऊंची जातियों के हैं और आबादी के बस 10 प्रतिशत होते हुए भी 90 प्रतिशत नौकरियों और 95 प्रतिशत संपत्ति पर असल कब्जा जमाए बैठे हैं. इन के पास यह ताकत अपनी पढ़ाई और हुनर से नहीं जन्म से है, इस पर चाहे जितना झगड़ा कर लो, सच यही है. जब बहुजन समाज पार्टी को उत्तर प्रदेश में राज मिला था, तब भी असल डोर मायावती के हाथ में नहीं थी, बल्कि उन के ऊंची जातियों के सलाहकारों के हाथ में थी, क्योंकि मायावती को तो राज कैसे चलाना है, सीखने में 8-10 साल लगने थे और राज पहले ही दिन फैसले मांगता है. इस के गुर तो ऊंची जातियों के पास ही हैं, क्योंकि नौकरशाही ने जो स्टील फ्रेम आईएएस अफसरों का बना रखा है, उस में इतनी भूलभुलैया बनाई?हैं कि आम नया आदमी चकरा ही जाए.

यह कह कर कि जाति का सर्टिफिकेट बनवाने में समय लगता है, ऊंची जातियां अपनी पोल खोल रही हैं. हर जना पैर रगड़वाता है, मां का नाम पूछता है, बाप का नाम पूछता है. उन का बस चले तो वे रात को बिस्तरी से ले कर पैदा होने तक की वीडियो रिकौर्डिंग सुबूत की तरह मांगने लगें. अपनी गलती के लिए वे नीची जातियों पर ठप्पा लगवाने के लिए जाति सर्टिफिकेट पर जाति का नाम लिखवाना चाहते थे. चाहते तो वे यह हैं कि हिटलर ने जिस तरह यहूदियों के साथ किया कि वे हर समय स्टार पहनें, माथे पर जाति का नाम गुदवाएं.

यह न भूलें कि देश के विकास की कुंजी असल में 90-92 प्रतिशत पिछड़ों और दलितों के हाथों में है, जो खेतों, सड़कों, कारखानों में काम कर के सामान पैदा करते हैं. चीन की चमक इन 90-92 प्रतिशत की मेहनत पर टिकी है. भारत आज भी इन्हें बोझ मान रहा है, जबकि हर जना वह छिपा खजाना है, जिसे मौका मिले तो देश सोने का सा हो जाए. जितने मेहनतकश लोग इस भारतभूमि (पाकिस्तानबंगलादेश समेत) में हैं, उतने दुनिया के किसी और हिस्से में एक सी बोली, एक से रहनसहन और साझे इतिहास वाले नहीं हैं. जरूरत तो यह है कि जाति ही नहीं धर्म के भी ऊपर उठ कर काम करें, पर पाकिस्तान और बंगलादेश की मुल्लाई सोच की तरह भारत में पंडाई सोच का दबदबा कम नहीं हो रहा और नतीजा है बेहद गुरबत, भूख और बीमारी. 

ईशा निभाएंगी नैगेटिव रोल

ईशा गुप्ता जल्द ही अक्षय कुमार के साथ फिल्म ‘रुस्तम’ में नजर आएंगी. हमेशा रोमांटिक भूमिकाएं करने वाली ईशा पहली बार इस फिल्म में नैगेटिव किरदार निभा रही हैं. फिल्म ‘जन्नत 2’ से बौलीवुड में ऐंट्री करने वाली ईशा को अभी तक ऐसा रोल नहीं मिला है जिस से उन की प्रतिभा दर्शकों के सामने आ पाती. फिल्म ‘रंगून’ में आइटम नंबर और फिल्म ‘हेराफेरी 3’ में बतौर अभिनेत्री काम कर रही ईशा को जबरदस्त रोल की तलाश है.

सिनेमा में यह बदलाव कितना सही

फिल्म ‘मस्तीजादे’ और ‘क्या कूल हैं हम’ को दर्शक बुरी तरह नकार चुके हैं. द्विअर्थी संवाद और ऐडल्ट दृश्यों से भरी इन फिल्मों को थिएटरों में ज्यादातर खाली कुरसियां ही मिलीं. शायद इस की वजह यह हो सकती है कि दर्शक ऐसे दृश्य देखना पसंद नहीं करते. ये वही दर्शक हैं जिन्होंने फिल्म ‘ग्रैंड मस्ती’ को 100 करोड़ क्लब में शामिल कराया था. अब एक और ऐडल्ट फिल्म ‘इश्क जूनून’ रिलीज के लिए तैयार है. यह अब तक की सब से बोल्ड और एरोटिक फिल्म है. इस का मोशन पोस्टर जारी हो गया है, जो काफी हौट है.

भारत में ऐसा पहली बार होने जा रहा है जब कोई थ्रीसम फिल्म आने वाली है जिस की टैग लाइन भी काफी बोल्ड है ‘द हीट इज औन’. फिल्म का पोस्टर भी बेहद बोल्ड है. पोस्टर में 2 लड़कों के हाथों में हथकडि़यां हैं जो पिंक बिकनी में खड़ी एक लड़की को बांहों में जकड़े हुए हैं. इस फिल्म में 3 नए चेहरे- राजवीर सिंह, दिव्या सिंह और अक्षय रंगशाही डैब्यू कर रहे हैं. अनुज शर्मा और विनय गुप्ता द्वारा प्रोड्यूस की गई इस फिल्म को डायरैक्ट किया है संजय शरणा ने. अब देखना यह है कि इस तरह की फिल्मों का बौलीवुड में भविष्य कितना उज्ज्वल रहता है.

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