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बिहार में बहुमत मामला: क्यों खास होता है विधानसभा अध्यक्ष ?

Nand Kishore Yadav : गठबंधन सरकारों को चलाने की बात हो या दलबदल की या फिर कमजोर बहुमत की, इन हालात में विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका ख़ास हो जाती है. बिहार में जब जदयू नेता नीतीश कुमार को 9वीं बार बहुमत साबित करने का समय आया तो सब से पहले विधानसभा के पहले वाले अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी को हटाने का प्रस्ताव पेश हुआ. पुराने विधानसभा अध्यक्ष राजद के समर्थक माने जाते थे. उन की जगह पर नए विधानसभा अध्यक्ष के रूप मे नंद किशोर यादव को चुना गया. इस के बाद नीतीश कुमार का बहुमत साबित होना पक्का हो गया था. नंद किशोर यादव 7 बार के विधायक है. मंत्री रहे हैं. वे आरएसएस के करीबी भी हैं.

अगर राजद के 3 विधायक विधानसभा अध्यक्ष को हटाने के प्रस्ताव के विरुद्ध मतदान करते तो विशवास मत में पड़े वोटों की संख्या 122 हो जाती. वैसी स्थिति में राजग के 5 विधायकों के अलावा राजद पक्ष के 2-3 विधायक पाला बदल लेते तो सरकार बहुमत हासिल नहीं कर सकती थी. राजद के 3 विधायकों- चेतन आनंद, नीलम देवी और प्रहलाद यादव के पाला बदलते ही राजग के आधा दर्जन नाराज चल रहे विधायक नरम पड़ गए. उन को लगा कि अब उन के बिना भी सरकार बन जाएगी इन विधायकों ने सदन का रुख कर लिया. जदयू के एक विधायक दिलीप राय इस के बाद भी मतदान में शमिल नहीं हुए.

राजग यानी एनडीए का विधानसभा अध्यक्ष बनते ही जदयू के नाराज विधायकों को यह पता चल गया कि अब वे जदयू को तोड़ नहीं पाएंगे. ऐसे में पार्टी के साथ रहने में ही भलाई है. जब इस तरह का बहुमत साबित करना होता है तब विधानसभा अध्यक्ष की अहमियत बढ़ जाती है. इसीलिए बहुमत साबित करने वाला दल अपनी पसंद का विधानसभा अध्यक्ष चाहता है. उत्तर प्रदेश में जब मायावती यानी बसपा-भाजपा की गठबंधन वाली सरकार बनती थी तब भाजपा केशरी नाथ त्रिपाठी को ही विधानसभा अध्यक्ष बनाती थी. वे दलबदल कानून के सब से बड़े जानकार और वकील थे. वे पार्टी को संकट से निकालने का काम करते थे. ऐसे उदाहरण देशभर में भरे पड़े हैं.

महाराष्ट्र में शिवसेना के 16 विधायकों की अयोग्यता मामले में फैसला सुनाते हुए विधानसभा स्पीकर राहुल नार्वेकर ने शिंदे गुट को सही ठहराया. उस के बाद उद्धव ठाकरे ने स्पीकर पर तंज कसा और कहा कि आज लोकतंत्र की हत्या हुई है. महाराष्ट्र में असली शिवसेना कौन है, इसे ले कर पिछले डेढ़ साल से चल रही दावेदारी की लड़ाई में एक बड़ा मोड़ तब सामने आया जब महाराष्ट्र के विधानसभा स्पीकर राहुल नार्वेकर ने सुप्रीम कोर्ट की बारबार की फटकार के बाद दी गई मोहलत के आखिरी दिन यानी 10 जनवरी को अपना फैसला सुनाया.

स्पीकर राहुल नार्वेकर ने चुनाव आयोग का हवाला देते हुए एकनाथ शिंदे गुट को राहत दी है. नार्वेकर ने अपने फैसले में कहा कि असली शिवसेना शिंदे गुट ही है और उद्धव ठाकरे गुट ने नियमों को ताक पर रख कर विधायकों को सस्पैंड किया था.

स्पीकर के फैसले पर पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे ने कहा कि हम जनता को साथ ले कर लड़ेंगे और जनता के बीच जाएंगे. स्पीकर का आज जो आदेश आया है, वह लोकतंत्र की हत्या है और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी अपमान है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि राज्यपाल ने अपने पद का दुरुपयोग किया है और गलत किया है. अब हम इस लड़ाई को आगे भी लड़ेंगे और हमें सुप्रीम कोर्ट पर पूरा भरोसा है. सुप्रीम कोर्ट जनता और शिवसेना को पूरा न्याय दिए बिना नहीं रुकेगा.

शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने स्पीकर के फैसले पर सवाल उठाते हुए बीजेपी पर षडयंत्र करने का आरोप लगाया. शिवसेना के पास यही विकल्प भी बचा क्योंकि इस से पहले चुनाव आयोग भी शिंदे गुट के पक्ष में ही फैसला सुना चुका था.

न्याय मिलना सरल नहीं :

महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर के फैसले से शिवसेना संतुष्ट नहीं है. इस के खिलाफ वह सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में है. संवैधानिक संस्थाओं को इसलिए बनाया गया था कि वे ज्यादा प्रभावी फैसला कर सकती हैं. हाल के कुछ सालों में संवैधानिक संस्थाओं ने ऐसे फैसले दिए जो विवादित रहे हैं. महाराष्ट्र के इस मसले में चुनाव आयोग और विधानसभा स्पीकर दोनों के फैसलों से शिवसेना उद्धव गुट संतुष्ट नहीं रहा. यह पहली बार नहीं है कि विधानसभा स्पीकर के फैसले पर सवाल उठे हों. जब भी राजनीतिक दलों में दलबदल या तोड़फोड़ होती है, विधानसभा स्पीकर का फैसला मान्य होता है.

लोकसभा और राज्यसभा से लेकर विधानसभाओं तक एकजैसा ही दस्तूर चल निकला है. लोकसभा में अभी 142 सांसदों को निलंबित किया गया. वहां भी सवाल खड़े हो रहे हैं. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ काफी चर्चा में रहे हैं. अब सदन में सत्ता और विपक्ष के बीच संतुलन रखना सरल नहीं रह गया है. फैसले के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना सरल हो गया है. संवैधानिक संस्थाओं के फैसले जिस तरह से विवादों में आ रहे हैं उस से न्याय में देरी होगी और अब यह फैसले सरल नहीं होंगे.

क्यों खास है विधानसभा स्पीकर :

विधानसभा के अध्यक्ष किसी भी राज्य में राजनीतिक उठापटक को देखते हुए साल 1985 में पास किए गए दलबदल कानून का सहारा ले सकते हैं. इस कानून के तहत सदन के अध्यक्ष कई हालात में फैसला ले सकता है, जैसे अगर कोई विधायक खुद ही अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़ देता है, कोई निर्वाचित विधायक पार्टी लाइन के खिलाफ जाता है, कोई विधायक पार्टी व्हिप के बावजूद मतदान नहीं करता है, कोई विधायक विधानसभा में अपनी पार्टी के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करता है आदि. संविधान की 10वीं अनुसूची में निहित शक्तियों के तहत विधानसभा अध्यक्ष फैसला ले सकता है.

बदलबदल कानून के तहत विधायकों की सदस्यता रद्द करने पर विधानसभा अध्यक्ष का फैसला आखिरी हुआ करता था. 1991 में सुप्रीम कोर्ट ने 10वीं सूची के 7वें पैराग्राफ को अवैध करार दिया. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि स्पीकर के फैसले की कानूनी समीक्षा हो सकती है.

विधानसभा स्पीकर को ले कर होते थे समझौते :

सरकार चलाने में विधानसभा स्पीकर की भूमिका बहुत प्रभावी होती है. ऐसे में गठबंधन की सरकार चलाने में दल यह चाहते थे कि स्पीकर उन का हो. उत्तर प्रदेश में 1995 से 2004 तक गठबंधन की सरकारों का दौर चल रहा था. बसपा और भाजपा का गठबंधन होता था. जिस में यह तय होता था कि पहले 6 माह बसपा नेता मायावती मुख्यमंत्री रहेंगी, उस के बाद भाजपा नेता कल्याण सिंह मुख्यमंत्री होंगे. मायावती पहले मुख्यमंत्री बनीं. जब कल्याण सिंह का नंबर आया तो उन्होंने विधानसभा भंग करने का फैसला किया. उधर, भाजपा ने मायावती के पैतरे का जवाब देने के लिए बहुजन समाज पार्टी में दलबदल करा दिया. यहां पर विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका खास हो जाती थी.

भाजपा ने उस दौर में केशरीनाथ त्रिपाठी को अपना विधानसभा स्पीकर बनवाया था. केशरीनाथ त्रिपाठी अच्छे वकील थे. उन के फैसले ऐेसे होने लगे जिन का लाभ भाजपा को मिलता था. वे जो फैसला देते थे उस की काट कोर्ट में भी नहीं हो पाती थी. इस के बाद यह परिपाटी शुरू हो गई कि गठबंधन सरकार में मुख्यमंत्री एक गुट का होता था तो विधानसभा स्पीकर दूसरे गुट का. इस से यह पता चलता है कि गठबंधन सरकारों में विधानसभा स्पीकर का महत्त्व कितना और क्यों होता है.

साल 2011 में कर्नाटक में भी इसी तरह का मामला सामने आया था. तब कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष ने बीजेपी के 11 विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी थी. जब यह मामला हाई कोर्ट पहुंचा, तो विधायकों की सदस्यता रद्द किए जाने के पक्ष में फैसला आया. लेकिन जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, तो तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने विधायकों की सदस्यता रद्द नहीं करने का फैसला सुनाया.

साल 1992 में एक विधायक की सदस्यता रद्द किए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट और मणिपुर के विधानसभा अध्यक्ष एच बोडोबाबू के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गई थी. कई बार ऐसे मौके आए जब विधानसभा अध्यक्षों की भूमिका और उन के अधिकारों को ले कर अदालतों में बहसें हुई हैं. संविधान ने जिस तरह से विधानसभा अध्यक्ष और चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं को अधिकार दिए थे, अब ये उस तरह से फैसले नहीं कर रहे.

इस वजह से इन संस्थाओं के भरोसे पर सवाल उठने लगे हैं. न्याय कठिन हो गया है. हर व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट से ही राहत की उम्मीद करने लगा है. वहां तक पहंचना सरल नहीं रह गया है. खर्च वाला काम है. संवैधानिक संस्थाओं के फैसले लोगों को संतुष्ट नहीं कर पा रहे हैं.

Valentine’s Day 2024 : वैलेंटाइन डे पर पढ़ें Top 10 Love Stories, जो आपको प्यार करने पर कर देंगी मजबूर

Top 10 Love Stories in Hindi : ‘प्रेम’ ये एक सुखद एहसास है, जिसे हर एक व्यक्ति जीना चाहता हैं. प्यार में हर चीज अच्छी लगती है. साथ ही दिल और दिमाग खुश रहता है. इसके अलावा जब कोई व्यक्ति प्यार में होता है, तो उसे अपने पार्टनर की हर एक खूबी व बुराई अच्छी लगती है.

कई लोगों को तो प्यार का इतना जुनून चढ़ जाता है कि वो अपने पार्टनर के प्रेम के खातिर कुछ भी कर गुजर जाने को तैयार हो जाते हैं. ऐसी ही प्यार और रिश्ते से जुड़ी कुछ दिलचस्प कहानियां हम आपके लिए लेकर आए हैं. अगर आपको भी कहानिया पढ़ने का शौक, तो पढ़ें सरिता की Top 10 Romantic Story in Hindi.

Top 10 Love Stories in Hindi : टॉप 10 प्रेम कहानियां हिंदी में

1. Valentine’s Day 2024 : कांटे गुलाब के – अमरेश और मिताली की अनोखी प्रेम कहानी

Valentines Day

सुबह के 8 बज रहे थे. किचन में व्यस्त थी. तभी मोबाइल की घंटी बज उठी. मन में यह सोच कर खुशी की लहर दौड़ गई कि अमरेश का फोन होगा. फिर अचानक मन ने प्रतिवाद किया. वह अभी फोन क्यों करेगा? वह तो प्रतिदिन रात के 8 बजे के बाद फोन करता है. अमरेश मेरा पति था. दुबई में नौकरी करता था. मोबाइल पर नंबर देखा, तो झट से उठा लिया. फोन मेरी प्रिय सहेली स्वाति ने किया था. बात करने पर पता चला कि कल उस की शादी होने वाली है. शादी में उस ने हर हाल में आने के लिए कहा. शादी अचानक क्यों हो रही है, यह बात उस ने नहीं बताई. दरअसल, उस की शादी 2 महीने बाद होने वाली थी. जिस लड़के से शादी होने वाली थी, उस की दादी की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गईर् थी. डाक्टर ने उसे 2-3 दिनों की मेहमान बताया था. इसीलिए घर वाले दादी की मौजूदगी में ही उस की शादी कर देना चाहते थे.

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2. Valentine’s Day 2024 : इजहार- सीमा के लिए किसने भेजा था गुलदस्ता ?

Valentines Day 2024

मनीषा ने सुबह उठते ही जोशीले अंदाज में पूछा, ‘‘पापा, आज आप मम्मी को क्या गिफ्ट दे रहे हो?’’ ‘‘आज क्या खास दिन है, बेटी?’’ कपिल ने माथे में बल डाल कर बेटी की तरफ देखा. ‘‘आप भी हद करते हो, पापा. पिछले कई सालों की तरह आप इस बार भी भूल गए कि आज वैलेंटाइनडे है. आप जिसे भी प्यार करते हो, उसे आज के दिन कोई न कोई उपहार देने का रिवाज है.’’ ‘‘ये सब बातें मुझे मालूम हैं, पर मैं पूछता हूं कि विदेशियों के ढकोसले हमें क्यों अपनाते हैं?’’ ‘‘पापा, बात देशीविदेशी की नहीं, बल्कि अपने प्यार का इजहार करने की है.’’ ‘‘मुझे नहीं लगता कि सच्चा प्यार किसी तरह के इजहार का मुहताज होता है. तेरी मां और मेरे बीच तो प्यार का मजबूत बंधन जन्मोंजन्मों पुराना है.’’ ‘‘तू भी किन को समझाने की कोशिश कर रही है, मनीषा?’’ मेरी जीवनसंगिनी ने उखड़े मूड के साथ हम बापबेटी के वार्तालाप में हस्तक्षेप किया, ‘‘इन से वह बातें करना बिलकुल बेकार है जिन में खर्चा होने वाला हो, ये न ला कर दें मुझे 5-10 रुपए का गिफ्ट भी.’’

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3. Valentine’s Day 2024 : कुछ कहना था तुम से – 10 साल बाद सौरव को क्यों आई वैदेही की याद ?

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वैदेही का मन बहुत अशांत हो उठा था. अचानक 10 साल बाद सौरव का ईमेल पढ़ बहुत बेचैनी महसूस कर रही थी. वह न चाहते हुए भी सौरव के बारे में सोचने को मजबूर हो गई कि क्यों मुझे बिना कुछ कहे छोड़ गया था? कहता था कि तुम्हारे लिए चांदतारे तो नहीं ला सकता पर अपनी जान दे सकता है पर वह भी नहीं कर सकता, क्योंकि मेरी जान तुम में बसी है. वैदेही हंस कर कहती थी कि कितने झूठे हो तुम… डरपोक कहीं के. आज भी इस बात को सोच कर वैदेही के चेहरे पर हलकी सी मुसकान आ गई थी पर दूसरे ही क्षण गुस्से के भाव से पूरा चेहरा लाल हो गया था. फिर वही सवाल कि क्यों वह मुझे छोड़ गया था? आज क्यों याद कर मुझे ईमेल किया है?

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4. Valentine’s Day 2024 : तीन शब्द – राखी से वो तीन शब्द कहने की हिम्मत क्या जुटा पाया परम ?

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परम आज फिर से कैंटीन की खिड़की के पास बैठा यूनिवर्सिटी कैंपस को निहार रहा था. कैंटीन की गहमागहमी के बीच वह बिलकुल अकेला था. यों तो वह निर्विकार नजर आ रहा था पर उस के मस्तिष्क में विगत घटनाक्रम चलचित्र की तरह आजा रहे थे.

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5. Valentine’s Day 2024 : रूह का स्पंदन – दीक्षा के जीवन की क्या थी हकीकत ?

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शादी के लिए सुदेश और दीक्षा एक रेस्टोरेंट में मिले. दोनों को ही उम्मीद नहीं थी कि वे एकदूसरे की कसौटी पर खरे उतरेंगे. तब तो बिलकुल भी नहीं, जब दीक्षा ने अपने जीवन की हकीकत बताई. लेकिन सुदेश ने जब 5 मिनट दीक्षा का हाथ अपने हाथों में थामा तो नतीजा पल भर में सामने आ गया. आखिर ऐसा…

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6. Valentine’s Day 2024 : साथ साथ – उस दिन कौन सी अनहोनी हुई थी रुखसाना और रज्जाक के साथ ?

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आपरेशन थियेटर के दरवाजे पर लालबत्ती अब भी जल रही थी और रुखसाना बेगम की नजर लगातार उस पर टिकी थी. पलकें मानो झपकना ही भूल गई थीं, लग रहा था जैसे उसी लालबत्ती की चमक पर उस की जिंदगी रुकी है.

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7. Valentine’s Day 2024 : ऐ दिल संभल जा : रीमा को किस बात की चिंता हो रही थी ?

love story

रीमा की आंखों के सामने बारबार डाक्टर गोविंद का चेहरा घूम रहा था. हंसमुख लेकिन सौम्य मुखमंडल, 6 फुट लंबा इकहरा बदन और इन सब से बढ़ कर उन का बात करने का अंदाज. उन की गंभीर मगर चुटीली बातों में बहुत वजन होता था, गहरी दृष्टि और गजब की याददाश्त. एक बार किसी को देख लें तो फिर उसे भूलते नहीं. उन  की ईमानदारी व कर्तव्यनिष्ठा के गुण सभी गाते थे. उम्र 50 वर्ष के करीब तो होगी ही लेकिन मुश्किल से 35-36 के दिखते थे. रीमा बारबार अपना ध्यान मैगजीन पढ़ने में लगा रही थी लेकिन उस के खयालों में डाक्टर गोविंद आजा रहे थे.

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8. Valentine’s Day 2024 : सायोनारा – उस दिन क्या हुआ था अंजू और देव के बीच ?

रोमांटिक स्टोरी

उन दिनों देव झारखंड के जमशेदपुर स्थित टाटा स्टील में इंजीनियर था. वह पंजाब के मोगा जिले का रहने वाला था. परंतु उस के पिता का जमशेदपुर में बिजनैस था. यहां जमशेदपुर को टाटा भी कहते हैं. स्टेशन का नाम टाटानगर है. शायद संक्षेप में इसीलिए इस शहर को टाटा कहते हैं. टाटा के बिष्टुपुर स्थित शौपिंग कौंप्लैक्स कमानी सैंटर में कपड़ों का शोरूम था.

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9. Valentine’s Day 2024 : सच्चा प्यार – क्या शेखर की कोई गलत मंशा थी ?

वैलेंटाइन डे स्पेशल स्टोरी

‘‘उर्मी,अब बताओ मैं लड़के वालों को क्या जवाब दूं? लड़के के पिताजी 3 बार फोन कर चुके हैं. उन्हें तुम पसंद आ गई हो… लड़का मनोहर भी तुम से शादी करने के लिए तैयार है… वे हमारे लायक हैं. दहेज में भी कुछ नहीं मांग रहे हैं. अब हम सब तुम्हारी हां सुनने के लिए बेचैनी से इंतजार कर रहे हैं. तुम्हारी क्या राय है?’’ मां ने चाय का प्याला मेरे पास रखते हुए पूछा.

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10. Valentine’s Day 2024 : तुम्हारा जवाब नहीं – क्या मानसी का आत्मविश्वास उसे नीरज के करीब ला पाया ?

वैलेंटाइन डे स्पेशल स्टोरी हिंदी में

अपनी शादी का वीडियो देखते हुए मैं ने पड़ोस में रहने वाली वंदना भाभी से पूछा, ‘‘क्या आप इस नीली साड़ी वाली सुंदर औरत को जानती हैं?’’ ‘‘इस रूपसी का नाम कविता है. यह नीरज की भाभी भी है और पक्की सहेली भी. ये दोनों कालेज में साथ पढ़े हैं और इस का पति कपिल नीरज के साथ काम करता है. तुम यह समझ लो कि तुम्हारे पति के ऊपर कविता के आकर्षक व्यक्तित्व का जादू सिर चढ़ कर बोलता है,’’ मेरे सवाल का जवाब देते हुए वे कुछ संजीदा हो उठी थीं.

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सहने से नहीं जवाब देने से बनेगी बात

7 फरवरी को पटना के एक एसएचओ सुदामा सिंह पर रेप करने और अश्लील वीडियो बना कर ब्लैकमेल करने का आरोप लगा है. पीड़ित महिला दारोगा ने थाने में केस दर्ज करा कर बताया कि उस की न्यूड वीडियो बना कर थानेदार उसे ब्लैकमेल करता था.

पीड़ित महिला दरोगा ने आरोप लगाया कि थानेदार सुदामा सिंह उसे प्रताड़ित करता रहता था. अपने आवास पर आने के लिए दबाव बनाता था और धमकी देता था कि उस के कहने के अनुसार काम करो वरना काम में लापरवाही के आरोप में सस्पैंड करवा दूंगा. पीड़ित महिला दरोगा नौकरी बचाने के डर से एक दिन उस के आवास पर चली गई. वहां पर थानेदार ने उस को कौफी पीने को दिया जिस में बेहोशी की दवा मिला दी. जब महिला दरोगा को होश आया तो वह थानेदार के घर पर न्यूड हालत में थी. थानेदार ने अश्लील वीडियो बना लिया और ब्लैकमेल कर शारीरिक संबंध बनाता रहा. इस दौरान वह प्रैग्नैंट हुई तो उस का गर्भपात भी करवा दिया.

5 फरवरी को शाहजहांपुर में एक युवक ने दहेज के लिए हद पार कर दी. उस ने अपनी पत्नी के अश्लील फोटो और वीडियो वायरल कर दिए. विवाहिता को जब इस का पता चला तो उसे गहरा सदमा लगा. उस की शिकायत पर थाना पुलिस ने सुनवाई नहीं की. बाद में सीओ के आदेश पर 5 आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली गई है.

3 जून, 2023 को लुधियाना में रहने वाली मीनाक्षी (37) ने अपने ससुराल वालों से तंग आ कर जहरीला पदार्थ निगल लिया. इलाज के दौरान उस की मौत हो गई. मीनाक्षी की शादी करीब 5 साल पहले आरोपी बिट्टू वर्मा के साथ हुई थी. आरोपी नशा करने का आदी था और नशे की हालत में मीनाक्षी के साथ मारपीट करता था. इसी से तंग आ कर उस ने खुद को ही खत्म कर लिया.

कुछ महीने पहले पहले देशभर के मीडिया में एक खबर छपी कि यूपी के आगरा में रहने वाली एक 19 साल की लड़की ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. उस के चचेरे भाई ने घर में ही बाथरूम में नहाते हुए उस का न्यूड वीडियो बना लिया. फिर वीडियो दिखा कर उसे ब्लैकमेल करने लगा. गैरवाजिब डिमांड की और न मानने पर उस वीडियो को इंटरनैट पर डाल देने व वायरल कर देने की धमकी दी.

जाहिर है, छिप कर न्यूड वीडियो लड़के ने बनाया था. ब्लैकमेल लड़का कर रहा था. वीडियो वायरल करने की धमकी लड़का दे रहा था. और इन सब के जवाब में अपनी जिंदगी खत्म कर ली लड़की ने. उस ने अपने घरवालों को सच नहीं बताया. वह पुलिस के पास भी नहीं गई. खुद बचने या लड़के को दंडित करने का प्रयास भी नहीं किया और किसी से मदद भी नहीं मांगी. वह सिर्फ शर्मिंदा हुई और डरी. वह शर्मिंदा हुई वीडियो में दिख रहे अपने नग्न शरीर पर, अपने बदनाम हो जाने के खयाल पर और इन सारी शर्मिंदगियों से मुक्ति पाने का एक ही रास्ता उसे समझ में आया कि अपनी जिंदगी खत्म कर लो. उस ने यह नहीं सोचा कि अपराधी यानी दोषी लड़के को ही खत्म कर दो या ऐसी कोई सजा दो कि वह किसी और के साथ ऐसा करने के लायक न रहे.

ऐसा ही कुछ अमेरिका के फ्लोरिडा में हुआ. एक स्टौकर ने एक लड़की के न्यूड फोटो इंटरनैट पर वायरल कर दिए. सुबह जब वह सो कर उठी तो देखा कि पूरा सोशल मीडिया उस की नग्न तसवीरों से भरा पड़ा है. उस दिन नई कंपनी में उस की जौइनिंग थी. लड़की पुलिस के पास गई. मगर काफी सारा समय गुजर गया. पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही. स्टौकर मजे से घूमता रहा. फिर टैक्नोलौजी की मदद से उस लड़की और उस की जुड़वां बहन ने मिल कर उस स्टौकर को खोज निकाला.

इंटरनैट पर अपनी न्यूड फोटोज देख कर सदमा तो इस लड़की को भी लगा था, दुख भी हुआ था और थोड़ा डर, थोड़ी शर्मिंदगी भी, लेकिन उस ने मरने का रास्ता नहीं चुना. उस ने लड़ने और स्टौकर को सबक सिखाने का रास्ता चुना.

दरअसल नंगा है यह पूरा का पूरा समाज जो लड़कों को ऐसा करने को प्रोत्साहित करता है और लड़कियां फांसी लगा कर या जहर खा कर अपनी जान देती हैं. अश्लील वीडियो बनाने और उसे इंटरनैट पर डालने वाले लड़के सीना चौड़ा कर के घूमते रहते हैं जबकि लड़कियां शर्म से जान दे देती हैं. समाज लड़कियों को सिखाता है कि इज्जत बचा कर रखो लेकिन लड़कों को कोई नहीं सिखाता कि लड़की की इज्जत वे कैसे करें.

राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के हालिया आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल 22,372 गृहिणियों ने आत्महत्या की थी. इस के अनुसार हर दिन 61 और हर 25 मिनट में एक आत्महत्या हुई है. देश में 2020 में हुईं कुल 153,052 आत्महत्याओं में से गृहिणियों की संख्या 14.6 प्रतिशत है और आत्महत्या करने वाली महिलाओं की संख्या 50 प्रतिशत से ज्यादा है.

यह स्थिति केवल पिछले साल की नहीं है. हर साल कमोबेश यही हालत रही है. रिपोर्ट में इन आत्महत्याओं के लिए ‘पारिवारिक समस्याओं’ या ‘शादी से जुड़े मसलों’ को जिम्मेदार बताया गया है. मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इस का एक प्रमुख कारण बड़े पैमाने पर घरेलू हिंसा है.

हाल ही में हुए एक सरकारी सर्वे में 30 प्रतिशत महिलाओं ने बताया था कि उन के साथ पतियों ने घरेलू हिंसा की है. ऐसे घरों में महिलाओं का दम घुटता है. महिलाएं बहुत सहनशील होती हैं लेकिन सहने की भी एक सीमा होती है.

दुनिया की कुछ महिलाएं हैं जिन्होंने अपने पति को रूह कंपा देने वाली मौत दी है. जितना उन्हें पति ने सताया उतना ही पति को टौर्चर कर उन्होंने हिसाब बराबर किया.

वर्ष 2000 में कैथरीन ने अपने एक्स हसबैंड जौन चार्ल्स थौमस प्राइस पर कसाई वाले चाकू से 37 बार हमला किया. इस के बाद उस की बौडी से स्किन खरोंच कर अपने लाउंज रूम में लगे मीट हुक में टांग दिया. उस ने मरे हुए हसबैंड के सिर को कुकर में पकाया और सब्जी के साथ बच्चों को परोस दिया. जब वह ऐसा कर रही थी तभी पुलिस ने उसे अरेस्ट कर लिया था.

इसी तरह दिसंबर 2008 में आस्ट्रेलिया में रहने वाली रजनी नारायण ने अपने सोते हुए हसबैंड के प्राइवेट पार्ट में पैट्रोल छिड़क कर आग लगा दी. अचानक हुए इस अटैक से उस का पति सतीश नारायण घबरा गया और पास रखी स्पिरिट की बोतल अपने ऊपर उड़ेल ली. इस से आग भड़क गई और वह बुरी तरह झुलस गया. हादसे के 20 दिनों के बाद उस की मौत हो गई.

ऐसा ही कुछ लंदन में रहने वाली भारतीय मूल की किरण अहलूवालिया ने किया. 1989 में किरणजीत अहलूवालिया ने अपने पति दीपक के ऊपर कास्टिक सोडा और पैट्रोल का मिक्सचर डाल कर आग लगा दी. किरण का आरोप था कि दीपक उस को काफी टौर्चर करता था. उस के साथ मारपीट करना और हर दिन रेप करना दीपक के लिए आम बात थी. 10 साल तक किरण ने सब बरदाश्त किया. लेकिन फिर सोते हुए दीपक को जिंदा जला दिया. इस हमले के बाद दीपक की मौत हो गई.

दरअसल किरण अहलूवालिया की 1979 में 24 साल की उम्र में अरेंज मैरिज हुई. वह अपने पति दीपक के परिवार के साथ ब्रिटेन में रहने आई तो वह बहुत कम इंग्लिश बोलती थी. दीपक ने उस के साथ दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया. वह किरण को धक्का देता, बालों को खींचता, मारता और उस के पैरों पर भारी तवे गिरा देता. उस के साथ गुलामों जैसा व्यवहार करता. पसंद की चीजें न खाने देता. वह उस से इतना डरती थी कि कुछ न कहती. वह रात में सोने से भी बहुत डरती थी क्योंकि दीपक उस से यह कह कर अकसर दुष्कर्म करता रहता कि यह उस का अधिकार है. उसे अपने परिवार से कोई मदद नहीं मिली.

इसी दौरान किरण अहलूवालिया के 2 बेटे हुए जो अकसर हिंसा के गवाह बने. एक रात जब वह दीपक के लिए खाना बनाने के बाद सोने चली गई तो उस ने उसे जगाया और पैसे की मांग की. जब किरण ने इनकार कर दिया तो उस ने किरण की एड़ियां मरोड़ कर तोड़ने की कोशिश की. फिर एक गरम लोहा उठाया और बालों को पकड़ते हुए गरम लोहे को उस के चेहरे पर रख दिया. किरण दर्द से चीख उठी. थोड़ी देर बाद दीपक चैन से सोने चला गया और किरण के मन में दर्द व गुस्से का लावा फूट पड़ा जो उस ने 10 साल से अपने अंदर दबा रखा था.

वह पैट्रोल की एक कैन ले कर उस के पास आई और पति के पैरों पर छिड़क कर आग लगा दी. वह पति को दिखाना चाहती थी कि कितना दर्द होता है. कई बार उस ने भागने की कोशिश भी की थी लेकिन वह उसे पकड़ लेता था और जोर से पीटता भी था. इसलिए किरण ने उस के पैर जलाने का फैसला किया ताकि वह पीछे न भाग सके.

घटना के 5 दिनों बाद दीपक की मृत्यु हो गई और अहलूवालिया पर हत्या का आरोप लगाया गया. उस ने खुद को बेकुसूर बताया लेकिन उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. जेल में उस की मुलाकात एक अंगरेज दोस्त से होती है जो उस के साथ सहानुभूति दिखाता है. धीरेधीरे यह मामला एक एनजीओ के सामने आता है जो उस की रिहाई की मांग करता है. यह बात साबित की गई कि जब उस ने अपने पति की हत्या की तो वह गंभीर अवसाद में थी. बाद में हालात पर विचार करते हुए उसे रिहा कर दिया गया.

सच तो यह है कि अत्याचार करने वाले से ज्यादा दोषी अत्याचार सहने वाला होता है. महिलाओं के साथ भी ऐसी ही स्थिति है. इसे बदलना किसी और के नहीं, बल्कि खुद महिलाओं के हाथ में है. हमारी फिल्मों में भी कभीकभी इस विषय को उठाया गया है. ऐसी कुछ फिल्में हैं जिन में महिलाओं ने अपने साथ हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई और लड़ाई लड़ी.

किरण के जीवन पर आधारित एक फिल्म ‘प्रोवोक्ड’ बनाई गई थी. एक एब्यूसिव रिलेशनशिप का अंजाम क्या हो सकता है और चुप्पी रखने का नतीजा क्या होता है, यह सब फिल्म ‘प्रोवोक्ड’ में बखूबी दिखाया गया था. 2006 में रिलीज हुई यह फिल्म सच्ची घटना पर आधारित थी. इस फिल्म में ऐश्वर्या राय बच्चन लीड रोल में थीं. ऐश्वर्या ने ऐसी महिला का किरदार निभाया जिस का पति उसे क्रूरता के साथ टौर्चर करता है और आखिर में वह उस की जान ले लेती है.

तापसी पन्नू स्टारर फिल्म ‘थप्पड़’ में भी दिखाया गया कि घरेलू हिंसा और मारपीट के खिलाफ आवाज उठाना कितना जरूरी है. 2020 में रिलीज हुई इस फिल्म में एक ऐसी महिला की कहानी दिखाई गई जो पति द्वारा हाथ उठाए जाने पर उस के खिलाफ ऐक्शन लेती है और रिश्ता तोड़ लेती है. फिल्म में तापसी पन्नू ने अमृता नाम की एक ऐसी महिला का किरदार निभाया जो एक परफैक्ट पत्नी, बहू और बेटी है. वह कमाल की डांसर भी है और चाहती तो उस में कैरियर भी बना सकती थी. लेकिन घरपरिवार के आगे अमृता खुद को कुरबान कर देती है. वह पति की खुशी में ही खुश होना सीख लेती है. लेकिन जब उस का पति सरेआम उसे जोर का थप्पड़ मारता है तो अमृता की आंखें खुल जाती हैं. जहां उस के परिवार वाले और रिश्तेदार थप्पड़ को भूल कर आगे बढ़ने की सलाह देते हैं वहीं अमृता पति के खिलाफ जाने का फैसला करती है. अमृता किसी भी तरह की घरेलू हिंसा और एब्यूसिव रिलेशनशिप के खिलाफ है और इसलिए उसे एक थप्पड़ से भी आपत्ति होती है.

इसी अवधारणा पर कुछ समय पहले एक वैब सीरीज बनाई गई थी- ‘क्रिमिनल जस्टिस: बिहाइंड क्लोज्ड डोर्स’. यह वैब सीरीज घरेलू हिंसा का वह भयावह पक्ष दिखाता है कि घरेलू हिंसा क्या हो सकती है और अगर महिला की परिस्थितियों और मानसिक स्थिति पर विचार नहीं किया गया तो उस के साथ कितना घोर अन्याय हो सकता है.

इस वैब सीरीज की कहानी एक ऐसी महिला के इर्दगिर्द घूमती है जो एक रात अपने ‘परफैक्ट’ पति का मर्डर कर देती है और अपना अपराध भी कुबूल कर लेती है. पहली नजर में यह एक सीधासाधा मामला प्रतीत होता है लेकिन जब बचाव पक्ष के वकील केस की तह तक जाते हैं तो असली कहानी सामने आती है. आरोपी महिला के साथ निरंतर यौन और मानसिक शोषण का मामला सामने आता है. इस में महिला की दुविधा, घुटन और दर्द को महसूस किया जा सकता है जो स्थिति की शिकार होने के बावजूद लगातार आंतरिक अपराधबोध से लड़ रही है.

अत्याचार सहना है गलत

चाहे पतिपत्नी हो या फिर गर्लफ्रैंडबौयफ्रैंड, हर रिश्ता आपसी प्यार, विश्वास और इज्जत पर टिका होता है. जब किसी रिश्ते में ये तीनों ही चीजें खत्म हो जाएं तो उसे खत्म कर देना ही बेहतर है क्योंकि ये तीनों चीजें खत्म होते ही रिश्ते में तकरार के साथसाथ मारपीट व गालीगलौज शुरू हो जाती है और रिश्ता जहरीला हो जाता है. बहुत सी महिलाएं घरेलू हिंसा, एब्यूसिव रिलेशनशिप और मारपीट की शिकार होती हैं. जहां कुछ महिलाएं इस के खिलाफ आवाज उठा लेती हैं तो वहीं बहुत सी महिलाएं समाज व परिवार के डर से चुप रह कर जुल्म सहती रहती हैं. अंत में नतीजा भयावह आता है.

औरतें कमजोर नहीं

औरतें कमजोर कैसे हैं? अगर ताकत की बात की जाए तो शारीरिक रूप से औरतें कहीं ज्यादा ताकतवर और मजबूत होती हैं. वे एक बच्चे को अपने पेट में बड़ा करती हैं, 9 महीने तक उसे ले कर हर जगह घूमती हैं और फिर उसे जन्म देती हैं. पुरुष क्या करते हैं? स्त्री तो मन से भी बहुत मजबूत होती है. अगर वह चाहे तो दोचार लड़कों को यों ही पटक दे. मगर वह ऐसा करती नहीं क्योंकि समाज में उसे यह सिखाया जाता है कि वह कमजोर है. उसे पुरुषों, खासकर अपने पति, की पूजा करनी चाहिए. पति परमेश्वर है. उसे अपशब्द नहीं बोलना है. उस का विरोध नहीं करना है. वह जो कहे वैसा करना है.

इसी वजह से वह पति के आगे कुछ बोलती नहीं. पति मारपीट सकता है. हिंसा कर सकता है. मगर सोचने वाली बात है कि अगर कोई स्त्री किसी पुरुष की पत्नी है और साथ रहती है तो क्या उस के पास ऐसे मौकों की कमी है जब वह पुरुष को उस के किए की सजा दे सके या उसे मजा चखा सके. अगर किसी पुरुष या पति ने सालों से परेशान कर रखा है तो ऐसे में क्या पत्नी के पास इतना मौका नहीं कि वह सोए हुए पति का सिर फोड़ दे या उस के खाने में कुछ डाल दे.

जो स्त्री जिंदगीभर प्रताड़ना सहती है उसे पता होना चाहिए कि एक वक्त ऐसा भी आएगा जब वह पति द्वारा खत्म कर दी जाएगी. पति उसे जान से मार सकता है तो क्या स्त्री के पास यह हक नहीं कि वह ऐसे पति की जान ले कर अपना पीछा छुड़ाए और अपनी जान बचाए. यह एक तरह से सैल्फ डिफैंस ही है क्योंकि अगर वह पति की जान नहीं लेगी तो उस की खुद की जान जाएगी.

स्त्रियां खुद ही स्त्रियों की दुश्मन भी होती हैं. एक सास अपने बेटे को पत्नी के खिलाफ भड़काती है. खुद भी उस के साथ नाइंसाफी ही करती है. गालीगलौज करती है और उसे प्रताड़ित करती है. सास को समझना चाहिए कि कल को जब वह बूढ़ी और कमजोर होगी तब उसे बहू के आसरे ही रहना है. अगर वह बहू के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करेगी तो कल को उस के साथ भी बुरा ही होगा.

इसी तरह पुरुष सोचते हैं कि स्त्री को दबा कर रखो, मारपीट करो. लेकिन पुरुष को यह समझना होगा कि अगर कोई उस की देखभाल और उस का खयाल रख सकता है तो वह उस की पत्नी ही है. कभी वह बीमार पड़ा या उस के साथ कुछ गलत हुआ, वह अपंग हो गया तो हर स्थिति में स्त्री ही उस का साथ देगी. अगर वह स्त्री के साथ खराब व्यवहार कर रहा है तो इस का नतीजा भी उसे खुद ही भोगना होगा. स्त्री समाज का गठन करती है. परिवार को बनाती है. स्त्री को नीचा या कमजोर समझना समाज की सब से बड़ी भूल है.

Valentine’s Day 2024 : अगर आपको भी लेना है अपने पार्टनर का ‘लव टेस्ट’, तो अपनाएं ये 7 प्वाइंट्स

अनूप को अक्सर घर काटने को दौड़ता..पत्नी  पराई पराई सी लगती.मन करता,घर से कहीं बाहर निकल जाए और सड़कों पर तब तक घूमता रहे,जब तक थक कर टूट न जाए.  फिर घर लौटकर गहरी नींद सो जाए,ताकि उसकी पत्नी की ऊँचा बोलने की आवाज़  उसे सुनाई ही   न दे. उसे लगता उसकी अपनी पत्नी  ही उसकी सबसे बड़ी दुश्मन है,जिसने सुख शांति छीन ली है.

असल में रिश्तों की मजबूती की नींव प्यार, विश्वास, सम्मान और आत्मसमर्पण से मजबूत होती है. इनमें से किसी भी एक भावना की कमी आपके रिश्ते की इमारत को कमजोर और जर्जर बना सकती है. कई बार रिश्तों में आई परेशानियों को हम अनदेखा या नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन ऐसा करना आपकी सबसे बड़ी गलती हो सकती है. क्योंकि रिश्ता दो लोगों के साथ चलने से ही खूबसूरत बनता है. अगर आपको भी अपने रिश्ते में ये 7 बातें नजर आ रही हैं तो मान लीजिए कि आपके रिश्ते में कुछ गड़बड़ है.

अपनी पसंद थोपने की कोशिश

रिश्ते में एक दूसरे के फैसलों का सम्मान करना जरूरी होता है. अगर आपका साथी अक्सर अपनी पसंद आप पर थोपने की कोशिश करता है या फिर आपके निर्णयों को प्रभावित करने का प्रयास करता है तो यह खतरे की घंटी जैसा है.

इमोशनल सपोर्ट का अभाव

दो लोगों के रिश्ते में सबसे जरूरी है इमोशन यानी भावनाएं. अगर आपका साथी आपकी भावनाओं को न ही समझता है और न ही उनका सम्मान करता है तो आपको अपने रिश्ते पर फिर से गौर करने की जरूरत है. क्योंकि जब बार-बार ऐसा व्यवहार होता है तो रिश्ते में भावनाएं खत्म हो जाती हैं और दूरियां खुद-ब-खुद आने लगती हैं.

एक दूसरे पर विश्वास जरूरी

विश्वास आपके रिश्ते की नींव है. जिस रिश्ते में साथी एक दूसरे पर विश्वास नहीं करते, उसमें असुरक्षा की भावना पैदा होने लगती है. एक दूसरे पर शक करना आपके रिश्ते को कमजोर बना देता है. ऐसा रिश्ता समझौते के जैसा हो जाता है. इसलिए एक दूसरे पर विश्वास करना जरूरी है.

बातचीत से निकलेगा हल

पार्टनर्स के बीच की बातचीत रिश्ते को मजबूत और पारदर्शी बनाती है. दो लोगों के बीच संवाद किसी पुल का काम करता है. यह आपको आपस में जोड़ता है. जब यह पुल टूटता है या कमजोर होता है तो रिश्तों में दूरी आने लगती है. एक दूसरे की भावनाएं साझा नहीं हो पातीं और रिश्तों में कड़वाहट आने लगती है. इसलिए अपनी मन की बातें एक दूसरे से जरूर करें.

सम्मान के बिना, सब बेईमानी

सम्मान आपके रिश्ते को न सिर्फ मजबूती देता है, बल्कि यह पार्टनर की नजरों में आपका महत्व भी बढ़ा देता है. सम्मान के बिना प्यार की बातें  बेईमानी हैं. जब आप अपने साथी का सम्मान करते हैं तो एक तरह से उसे यह भी बताते हैं कि आप उन्हें कितना प्यार करते हैं. इसकी कमी रिश्ते के खोखलेपन दिखाता है.

अतीत में उलझे रहना 

‘मैं तुम्हारे अतीत को जानता हूं, इसलिए बोल रहा हूं’,‘आपने पहले भी ऐसा किया था’, ‘कहीं आप पहले की तरह तो नहीं कर रहे’, अक्सर पार्टनर्स रिश्तों में ऐसी बातें करते हैं. लेकिन अतीत में उलझे रहने से आपका आज का रिश्ता कमजोर हो सकता है. अगर आपका पार्टनर अक्सर आपको आपके अतीत को लेकर टोकता है या आपके अतीत के अनुसार आपको जज करता है तो रिश्ते में जुड़ाव की कमी हो सकती है.

आलोचना है असहनीय

अपने पार्टनर की बात-बात पर आलोचना करना, दूसरों को उसकी कमी बताना, आपको भले ही मजाक लगे, लेकिन यह आपके साथी को अंदर से तोड़ देता है. यह न सिर्फ उन्हें मानसिक रूप से परेशान करता है, बल्कि उनके काॅन्फिडेंस को भी तार-तार कर देता है. ऐसी आलोचनाएं आपके रिश्ते के लिए आत्मघाती साबित हो सकती हैं.

परीक्षा से पहले सोना क्यों है जरूरी, जानें एक्सपर्ट से

Sleeping Before Exam Benefits : बोर्ड के एग्जाम नजदीक है ऐसे में “बच्चों को एग्जाम की चिंता और नींद का गहरा संबंध होता है क्योंकि एग्जाम में अच्छे नंबर के दबाव में सोने के पैटर्न पर बड़ा असर हो सकता है.

डॉ. श्रद्धा मलिक – मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और एथेना बिहेवियरल हेल्थ की सीईओ का कहना है कि एग्जाम से जुड़ी गहरी चिंता और मानसिक दबाव के कारण टेंशन हॉर्मोन्स जैसे कॉर्टिसोल के स्तर में बढ़ोतरी हो सकती है, जिससे सामान्य सोने-जागने की चक्र को बिगाड़ा जा सकता है. सोने की गुणवत्ता रेसिंग थॉट्स, बेचैनी, और प्रत्याशीता चिंता के कारण प्रभावित हो सकती है? बहुत अधिक एग्जाम की चिंता से कम और लंबे समय तक सोने में डिस्टर्बेंस हो सकता है.

केस स्टडीज ने दिखाया है कि हाई लेबल (उच्च स्तर) के एग्जाम से जुड़े तनाव में होने वाले छात्रों को अक्सर सोने में कठिनाई, बार-बार जागना से सोने की समस्या हो सकती है. यह न केवल उनके तत्कालीन प्रदर्शन को प्रभावित करता है बल्कि बढ़ते हुए तनाव और कमजोर एकेडेमिक रिजल्ट (अकादमिक परिणामों) के चक्र में योगदान कर सकता है.

स्ट्रेस मैनेजमेंट टेक्निक (तनाव प्रबंधन तकनीकों) को लागू करना, एक सुहावने सोने का माहौल बनाना, और संतुलित जीवनशैली को बनाए रखना, परीक्षा की चिंता के सोने पर प्रभाव को कम करने में मदद कर सकता है, जिससे चुनौतीपूर्ण अकादमिक दौरों में समग्र कल्याण को बढ़ावा मिल सकता है.

जबकि अधिकांश छात्रों की सोने की कमी से शिकायत है, विद्यार्थियों में हाई स्कूल के छात्रों को अधिक असुविधा महसूस होती है. इसके पीछे के संभावित कारण क्या हो सकते हैं? जानते है.

उच्च स्कूल के छात्र सोने की कमी के कई कारणों से बढ़ी हुई असुविधा महसूस कर सकते हैं. पहली बात तो, उच्च स्कूल में शैक्षणिक दबाव बढ़ता है, जिसमें कठिन पाठ्यक्रम, परीक्षाएँ, और कॉलेज की तैयारी उनके तनाव को और बढ़ा सकते हैं. इसके अलावा, अतिरिक्त गतिविधियों, पार्ट-टाइम नौकरियों, और सामाजिक वचनों के कारण उनका समय पर्याप्त आराम के लिए सीमित हो जाता है. इसके अलावा, किशोरावस्था के दौरान हार्मोनल परिवर्तन सोने के पैटर्न को विघटित कर सकते हैं.

इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज का उपयोग – 

उच्च स्कूल के छात्रों के बीच इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज का उपयोग बढ़ता जा रहा है, खासकर सोने से पहले, जो उनके सोने की गुणवत्ता को नकारात्मक प्रभावित कर सकता है. अनियमित सोने की अनुसूचित गतिविधियाँ, स्कूल की शुरुआत के समय, और सामान्यत: व्यस्त जीवनशैली इस समस्या को बढ़ा सकती हैं. इस समस्या को कम करने के लिए स्वस्थ नींद की आदतें प्रोत्साहित करके, स्कूल की अनुसूचितियों को समायोजित करके, और एक समर्थनसूचक वातावरण को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है.

परीक्षा के दौरान नींद की कमी का बच्चों पर असर –

परीक्षा के दौरान नींद की कमी बच्चों के मानसिक क्षमताओं पर काफी बड़ा प्रभाव डाल सकती है. शारीरिक रूप से, नींद की कमी थकान, कमजोर इम्यून सिस्टम, और बढ़ी हुई रोग प्रतिरोधशक्ति की ओर बढ़ सकती है. मानसिक रूप से, यह ध्यान, स्मृति, और निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है. परीक्षा की अवधि में नींद की चरम कमी अधिकतम तनाव और चिंता के स्तरों में वृद्धि कर सकती है, जिससे दबावों का समृद्धि के दिशा में बढ़ सकता है, जो स्थायी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं जैसे अवसाद की ओर जाने की संभावना है.
शारीरिक रूप से, अधूरी नींद से सिरदर्द, चक्कर, और संक्रमणों से लड़ने की क्षमता में कमी हो सकती है. मानसिक रूप से बच्चे जानकारी रखने में कठिनाई, समस्याएँ हल करने की क्षमता में कमी, और बढ़ा हुआ चिढ़चिढ़ापन महसूस कर सकते हैं. दीर्घकालिक नींद की कमी एक बच्चे की भावनात्मक सहनशीलता को प्रभावित कर सकती है.

उदाहरण के लिए, परीक्षा के लिए रात भर जागकर पढ़ाई करने वाला छात्र मानसिक थकान और उच्च तनाव के कारण परीक्षा के दौरान ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई महसूस कर सकता है, जिससे उसके अकादमिक प्रदर्शन में कमी हो सकती है.

बच्चों के लिए डोज़ :

1. एक स्टडी शेड्यूल बनाएं: सभी विषयों को धीरे-धीरे कवर करने के लिए एक वास्तविक और व्यवस्थित स्टडी रूटीन बनाएं.
2. स्वस्थ आहार और पर्याप्त नींद: ध्यान और समग्र कल्याण को बढ़ावा देने के लिए संतुलित आहार और पर्याप्त नींद सुनिश्चित करें.
3. नियमित ब्रेक्स: पढ़ाई के सत्रों के दौरान बर्नआउट से बचने और ध्यान बनाए रखने के लिए छोटे-छोटे रेस्ट लेछोटी छुटियाँ शामिल करें.
4. हाइड्रेटेड रहें: जागरूकता को समर्थन करने और चेतावनी बनाए रखने के लिए हाइड्रेटेड रहें.
5. विषयों को प्राथमिकता दें: कमजोर विषयों पर ध्यान केंद्रित करें, लेकिन स्ट्रांग विषयों को भी दोहराएं.
6. पिछले पेपर्स के साथ अभ्यास करें: बेहतर तैयारी के लिए पिछले पेपर्स को हल करके परीक्षा के स्वरूप से परिचित हो जाएं.
7. सकारात्मक रहें: सकारात्मक मानसिकता बनाए रखें, अपनी क्षमताओं में विश्वास करें, और आत्मसंदेह से बचें.

बच्चों के लिए डोन्ट्स :

1. क्रैमिंग से बचें: अंतिम क्षण की क्रैमिंग से दूर रहें; यह अप्रभावी और तनावपूर्ण होता है.
2. ध्यान को सीमित करें: पढ़ाई के समय इलेक्ट्रॉनिक विघटन, जैसे कि सोशल मीडिया या अत्यधिक टीवी, को कम से कम रखें.
3. टालमटोल से बचें: तनाव से बचने के लिए पहले से ही में ही तैयारी शुरू करें.

मेरे पति रात को मेरे साथ बुरा बुर्ताव करते हैं, मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं 38 साल की एक शादीशुदा औरत हूं. मेरे पति रात को बिस्तर पर बहुत ज्यादा जंगली हो जाते हैं. वे मुझे सैक्स खिलौना समझ कर खेलते हैं और सैक्स को मजा नहीं, बल्कि सजा बना देते हैं. इस बात से मैं बहुत ज्यादा तनाव में रहती हूं. मैं क्या करूं ?

जवाब

इस में कोई शक नहीं कि इस तरह का सैक्स, जैसा कि आप के पति करते हैं, बेहद तकलीफदेह और दहशतजदा हो जाता है. उस में मजा ढूंढ़ना सोने के हिरन को ढूंढ़ने जैसी बात होती है.

आप अपने पति को प्यार से समझाएं कि वह बिस्तर में जानवरों की तरह नहीं, बल्कि आदमियों की तरह पेश आए. उसे अपनी परेशानी बताएं कि इस तरह का सैक्स कोई मजा नहीं देता. इस पर भी वह बाज न आए, तो किसी माहिर डाक्टर से मशवरा लें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

अगर आप भी कर रहे हैं सेरोगेसी का प्लान, तो पहले जानें ये नियम

आज विज्ञान लगातार नएनए आविष्कार कर रहा है. कुछ सालों पहले जो हमारी कल्पना से परे था आज के इस दौर में वो सब विज्ञान की बदौलत मुमकिन हो रहा है. यह कुछ लोगों के लिए वरदान सिद्ध हुआ है तो कुछ इस का नाजायज फायदा उठा रहे हैं.

सेरोगेसी भी एक ऐसी ही खोज है जिस के जरिए आज बांझ महिला भी मां बनने का सुख प्राप्त कर सकती है. आजकल कम उम्र में ही महिलाओं को गंभीर बीमारियां- ब्रेस्ट कैंसर, सर्विक्स कैंसर या बच्चेदानी में खराबी जैसी कई परेशानियां हो जाती है. कई बार वे ऐसी बीमारियों से तो उभर जाती हैं लेकिन उन की मां बनने की ख्वाहिश अधूरी रह जाती है.

आमतौर पर सेरोगेसी को किराए की कोख के नाम से भी जाना जाता है. जो लोग  मातापिता बनने के सुख से वंचित रह जाते हैं वे इस के जरिए संतानप्राप्ति का सुख पा सकते हैं. इस प्रक्रिया में महिला किसी अन्य कपल के बच्चे को अपने कोख में पालती है और उसे जन्म देती है. इसी प्रक्रिया से पैदा हुए बच्चे को सेरोगेट बेबी कहते हैं और जन्म देने वाली महिला को सरोगेट मां कहा जाता है.

ट्रेडिशनल सेरोगेसी में सेरोगेट मदर ही बायोलौजिकल मदर होती है. इस में पिता का स्पर्म और सेरोगेट मदर के एग को मिलाया जाता है. फिर, डाक्टर कृत्रिम तरीके से इसे सेरोगेट महिला के गर्भाशय में डाल देते हैं. इस से जन्मे बच्चे का बायोलौजिकल रिश्ता पिता से होता है लेकिन यदि स्पर्म डोनर का प्रयोग किया जाता है तो पिता का भी बच्चे से बायोलौजिकल रिश्ता नहीं होता.

जेस्टेशनल सेरोगेसी में सेरोगेट मदर का एग इस्तेमाल नहीं होता, इसलिए बच्चे से उस का बायोलौजिकल रिश्ता नहीं होता. इस में संतान चाहने वाले पुरुष और महिला के स्पर्म व एग को टैस्ट-ट्यूब तरीके से मिला कर भ्रूण तैयार किया जाता है और उसे कृत्रिम तरीके से सेरोगेट मदर के गर्भाशय में डाला जाता है. इस प्रक्रिया से जन्मे बच्चे का संबंध कपल से होता है. अब आते हैं इस की नियमावली पर.

सेरोगेसी मातृत्व सुख पाने के लिए वरदान है लेकिन समाज के कुछ वर्गों को यह रास नहीं आया तो कुछ लोगों ने इस का गलत फायदा भी उठाया. कुछ ऐसे मामले भी सामने आए कि दंपती ने बच्चे को अपनाया नहीं या सेरोगेट मां ने ही बच्चे को देने से इनकार कर दिया. वहीं, कुछ कपल्स बौडी खराब होने से बचने के लिए सेरोगेसी का सहारा लेने लगे. पहले से बच्चे होने के बाद भी सेरोगेसी से बच्चे किए.

इन वजहों से सख्ती करने का फैसला हुआ और कैबिनेट ने सेरोगेसी पर 2022  में कानून बना दिया जिस के चलते दिल्ली में सेरोगेसी के लिए उपराज्यपाल औफिस ने सभी 11 जिलों में मैडिकल बोर्ड बनाने की मंजूरी दे दी है. कानून के बनने से जरूरतमंद कपल्स को अब काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. इस के लिए 5 तरह के प्रमाण की जरूरत है. सेरोगेसी का सहारा लेने वाले कपल के पास प्रमाण होना चाहिए कि वे मातापिता नहीं बन सकते.

मातापिता बनने कि चाह रखने वाली महिला की उम्र 50 से कम और पुरुष की उम्र 55 से कम होनी चाहिए. पहले से जीवित बच्चा नहीं हो या जीवित बच्चा किसी गंभीर जानलेवा बीमारी से पीड़ित हो तभी यह सर्टिफिकेट मिलेगा. यदि पहले से कोई बच्चा अडौप्ट किया हुआ है तो वह कपल सेरोगेसी का सहारा नहीं ले सकता.

वहीं, सरोगेट बनने वाली महिला फिजिकली फिट हो, उम्र 25 से 35 के बीच हो, पति भी इस के लिए तैयार हो और पहले नौर्मल डिलीवरी हुई हो और 3 बार से ज्यादा मां न बनी हो. सेरोगेट बनने वाली महिला का हौस्पिटल का खर्च, मैडिसिन, फूड, ट्रैवल आदि का खर्च कपल्स को ही उठाना पड़ेगा और किसी प्रकार का लेनदेन अमान्य है.

Valentine’s Day 2024 : कांटे गुलाब के – अमरेश और मिताली की अनोखी प्रेम कहानी

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Valentine’s Day 2024 : इजहार- सीमा के लिए किसने भेजा था गुलदस्ता ?

मनीषा ने सुबह उठते ही जोशीले अंदाज में पूछा, ‘‘पापा, आज आप मम्मी को क्या गिफ्ट दे रहे हो?’’

‘‘आज क्या खास दिन है, बेटी?’’ कपिल ने माथे में बल डाल कर बेटी की तरफ देखा.

‘‘आप भी हद करते हो, पापा. पिछले कई सालों की तरह आप इस बार भी भूल गए कि आज वैलेंटाइनडे है. आप जिसे भी प्यार करते हो, उसे आज के दिन कोई न कोई उपहार देने का रिवाज है.’’

‘‘ये सब बातें मुझे मालूम हैं, पर मैं पूछता हूं कि विदेशियों के ढकोसले हमें क्यों अपनाते हैं?’’

‘‘पापा, बात देशीविदेशी की नहीं, बल्कि अपने प्यार का इजहार करने की है.’’

‘‘मुझे नहीं लगता कि सच्चा प्यार किसी तरह के इजहार का मुहताज होता है. तेरी मां और मेरे बीच तो प्यार का मजबूत बंधन जन्मोंजन्मों पुराना है.’’

‘‘तू भी किन को समझाने की कोशिश कर रही है, मनीषा?’’ मेरी जीवनसंगिनी ने उखड़े मूड के साथ हम बापबेटी के वार्तालाप में हस्तक्षेप किया, ‘‘इन से वह बातें करना बिलकुल बेकार है जिन में खर्चा होने वाला हो, ये न ला कर दें मुझे 5-10 रुपए का गिफ्ट भी.’’

‘‘यह कैसी दिल तोड़ने वाली बात कर दी तुम ने, सीमा? मैं तो अपनी पूरी पगार हर महीने तुम्हारे चरणों में रख देता हूं,’’ मैं ने अपनी आवाज में दर्द पैदा करते हुए शिकायत करी.

‘‘और पाईपाई का हिसाब न दूं तो झगड़ते हो. मेरी पगार चली जाती है फ्लैट और कार की किस्तें देने में. मुझे अपनी मरजी से खर्च करने को सौ रुपए भी कभी नहीं मिलते.’’

‘‘यह आरोप तुम लगा रही हो जिस की अलमारी में साडि़यां ठसाठस भरी पड़ी हैं. क्या जमाना आ गया है. पति को बेटी की नजरों में गिराने के लिए पत्नी झूठ बोल रही है.’’

‘‘नाटक करने से पहले यह तो बताओ कि उन में से तुम ने कितनी साडि़यां आज तक खरीदवाई हैं? अगर तीजत्योहारों पर साडि़यां मुझे मेरे मायके से न मिलती रहतीं तो मेरी नाक ही कट जाती सहेलियों के बीच.’’

‘‘पापा, मम्मी को खुश करने के लिए 2-4 दिन कहीं घुमा लाओ न,’’ मनीषा ने हमारी बहस रोकने के इरादे से विषय बदल दिया.

‘‘तू चुप कर, मनीषा. मैं इस घर के चक्करों से छूट कर कहीं बाहर घूमने जाऊं, ऐसा मेरे हिस्से में नहीं है,’’ सीमा ने बड़े नाटकीय अंदाज में अपना माथा ठोंका.

‘‘क्यों इतना बड़ा झूठ बोल रही हो? हर साल तो तुम अपने भाइयों के पास 2-4 हफ्ते रहने जाती हो,’’ मैं ने उसे फौरन याद दिलाया.

‘‘मैं शिमला या मसूरी घुमा लाने की बात कह रही थी, पापा,’’ मनीषा ने अपने सुझाव का और खुलासा किया.

‘‘तू क्यों लगातार मेरा खून जलाने वाली बातें मुंह से निकाले जा रही है? मैं ने जब भी किसी ठंडी पहाड़ी जगह घूम आने की इच्छा जताई, तो मालूम है इन का क्या जवाब होता था? जनाब कहते थे कि अगर नहाने के बाद छत पर गीले कपड़ों में टहलोगी तो इतनी ठंड लगेगी कि हिल स्टेशन पर घूमने का मजा आ जाएगा.’’

‘‘अरे, मजाक में कही गई बात बच्ची को सुना कर उसे मेरे खिलाफ क्यों भड़का रही हो?’’ मैं नाराज हो उठा.

मेरी नाराजगी को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए सीमा ने अपनी शिकायतें मनीषा को सुनानी जारी रखीं, ‘‘इन की कंजूसी के कारण मेरा बहुत खून फुंका है. मेरा कभी भी बाहर खाने का दिल हुआ तो साहब मेरे हाथ के बनाए खाने की ऐसी बड़ाई करने लगे जैसे कि मुझ से अच्छा खाना कोई बना ही नहीं सकता.’’

‘‘पर मौम, यह तो अच्छा गुण हुआ पापा का,’’ मनीषा ने मेरा पक्ष लिया. बात सिर्फ बाहर खाने में होने वाले खर्च से बचने के लिए होती है.

‘‘उफ,’’ मेरी बेटी ने मेरी तरफ ऐसे अंदाज में देखा मानो उसे आज समझ में आया हो कि मैं बहुत बड़ा खलनायक हूं.

‘‘जन्मदिन हो या मैरिज डे, अथवा कोई और त्योहार, इन्हें मिठाई खिलाने के अलावा कोई अन्य उपहार मुझे देने की सूझती ही नहीं. हर खास मौके पर बस रसमलाई खाओ या गुलाबजामुन. कोई फूल, सैंट या ज्वैलरी देने का ध्यान इन्हें कभी नहीं आया.’’

‘‘तू अपनी मां की बकबक पर ध्यान न दे, मनीषा. इस वैलेंटाइनडे ने इस का दिमाग खराब कर दिया है, जो इस जैसी सीधीसादी औरत का दिमाग खराब कर सकता हो, उस दिन को मनाने की मूर्खता मैं तो कभी नहीं करूंगा,’’ मैं ने अपना फैसला सुनाया तो मांबेटी दोनों ही मुझ से नाराज नजर आने लगीं.

दोनों में से कोई मेरे इस फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त कर पाती, उस से पहले ही किसी ने बाहर से घंटी बजाई.

मैं ने दरवाजा खोला और हैरानी भरी आवाज में चिल्ला पड़ा, ‘‘देखो, कितना सुंदर गुलदस्ता आया है.’’

‘‘किस ने भेजा है?’’ मेरी बगल में आ खड़ी हुई सीमा ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘और किस को भेजा है?’’ मनीषा उस पर लगा कार्ड पढ़ने की कोशिश करने लगी.

‘‘इस कार्ड पर लिखा है ‘हैपी वेलैंटाइनडे, माई स्वीटहार्ट,’ कौन किसे स्वीटहार्ट बता रहा है, यह कुछ साफ नहीं हुआ?’’ मेरी आवाज में उलझन के भाव उभरे.

‘‘मनीषा, किस ने भेजा है तुम्हें इतना प्यारा गुलदस्ता?’’ सीमा ने तुरंत मीठी आवाज में अपनी बेटी से सवाल किया.

मेरे हाथ से गुलदस्ता ले कर मनीषा ने उसे चारों तरफ से देखा और अंत में हैरानपरेशान नजर आते हुए जवाब दिया, ‘‘मौम, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है.’’

‘‘क्या इसे राजीव ने भेजा?’’

‘‘न…न… इतना महंगा गुलदस्ता उस के बजट से बाहर है.’’

‘‘मोहित ने?’’

‘‘वह तो आजकल रितु के आगेपीछे दुम हिलाता घूमता है.’’

‘‘मोहित ने?’’

‘‘नो मम्मी. वी डौंट लाइक इच अदर वैरी मच.’’

‘‘फिर किस ने भेजे हैं इतने सुंदर फूल?’’

‘‘जरा 1 मिनट रुकोगी तुम मांबेटी… यह अभी तुम किन लड़कों के नाम गिना रही थी, सीमा?’’ मैं ने अचंभित नजर आते हुए उन के वार्त्तालाप में दखल दिया.

‘‘वे सब मनीषा के कालेज के फ्रैंड हैं,’’ सीमा ने लापरवाही से जवाब दिया.

‘‘तुम्हें इन सब के नाम कैसे मालूम हैं?’’

‘‘अरे, मनीषा और मैं रोज कालेज की घटनाओं के बारे में चर्चा करती रहती हैं. आप की तरह मैं हमेशा रुपयों के हिसाबकिताब में नहीं खोई रहती हूं.’’

‘‘मैं हिसाबकिताब न रखूं तो हर महीने किसी के सामने हाथ फैलाने की नौबत आ जाए, पर इस वक्त बात कुछ और चल रही है… जिन लड़कों के तुम ने नाम लिए…’’

‘‘वे सब मनीषा के साथ पढ़ते हैं और इस के अच्छे दोस्त हैं.’’

‘‘मनीषा, तुम कालेज में कुछ पढ़ाई वगैरह भी कर रही हो या सिर्फ अपने सोशल सर्कल को बड़ा करने में ही तुम्हारा सारा वक्त निकल जाता है?’’ मैं ने नकली मुसकान के साथ कटाक्ष किया.

‘‘पापा, इनसान को अपने व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास करना चाहिए या नहीं?’’ मनीषा ने तुनक कर पूछा.

‘‘वह बात तो सही है पर यह गुलदस्ता भेजने वाले संभावित युवकों की लिस्ट इतनी लंबी होगी, यह बात मुझे थोड़ा परेशान कर रही है.’’

‘‘पापा, जस्ट रिलैक्स. आजकल फूलों का लेनादेना बस आपसी पसंद को दिखाता है. फूल देतेलेते हुए ‘मुझे तुम से प्यार हो गया है और अब सारी जिंदगी साथ गुजारने की तमन्ना है,’ ऐसे घिसेपिटे डायलौग आजकल नहीं बोले जाते हैं.’’

‘‘आजकल तलाक के मामले क्यों इतने ज्यादा बढ़ते जा रहे हैं, इस विषय पर हम फिर कभी चर्चा करेंगे, पर फिलहाल यह बताओ कि क्या तुम ने यह गुलदस्ता भेजने वाले की सही पहचान कर ली है?’’

‘‘सौरी, पापा. मुझे नहीं लगता कि यह गुलदस्ता मेरे लिए है.’’

उस का जवाब सुन कर मैं सीमा की तरफ घूमा और व्यंग्य भरे लहजे में बोला, ‘‘जो तुम्हें पसंद करते हों, उन चाहने वालों के 10-20 नाम तुम भी गिना दो, रानी पद्मावती. ’’

‘‘यह रानी पद्मावती बीच में कहां से आ गई?’’

‘‘अब कुछ देरे तुम चुप रहोगी, मिस इंडिया,’’ मैं ने मनीषा को नाराजगी से घूरा तो उस ने फौरन अपने होंठों पर उंगली रख ली.

‘‘मुझे फालतू के आशिक पालने का शौक नहीं है,’’ सीमा ने नाकभौं चढ़ा कर जवाब दिया.

‘‘पापा, मैं कुछ कहना चाहती हूं,’’ मनीषा की आंखों में शरारत के भाव मुझे साफ नजर आ रहे थे.

‘‘तुम औरतों को ज्यादा देर खामोश रख पाना हम मर्दों के बूते से बाहर की बात है. कहो, क्या कहना चाहती हो?’’

‘‘पापा, हो सकता है मीना मौसी की बेटी की शादी में मिले आप के कजिन रवि चाचा के दोस्त नीरज ने मौम के लिए यह गुलदस्ता भेजा हो.’’

‘‘तेरे खयाल से उस मुच्छड़ ने तेरी मम्मी पर लाइन मारने की कोशिश की है?’’

‘‘मूंछों को छोड़ दो तो बंदा स्मार्ट है, पापा.’’

‘‘क्या कहना है तुम्हें इस बारे में?’’ मैं ने सीमा को नकली गुस्से के साथ घूरना शुरू कर दिया.

‘‘मैं क्यों कुछ कहूं? आप को जो पूछताछ करनी है, वह उस मुच्छड़ से जा कर करो,’’ सीमा ने बुरा सा मुंह बनाया.

‘‘अरे, इतना तो बता दो कि क्या तुम ने अपनी तरफ से उसे कुछ बढ़ावा दिया था?’’

‘‘जिन्हें पराई औरतों पर लार टपकाने की आदत होती है, उन्हें किसी स्त्री का साधारण हंसनाबोलना भी बढ़ावा देने जैसा लगता है.’’

‘‘मुझे नहीं लगता कि उस मुच्छड़ ने तेरी मां को ज्यादा प्रभावित किया होगा. किसी और कैंडिडेट के बारे में सोच, मनीषा.’’

‘‘मम्मी के सहयोगी आदित्य साहब इन के औफिस की हर पार्टी में मौम के चारों तरफ मंडराते रहते हैं,’’ कुछ पलों की सोच के बाद मेरी बेटी ने अपनी मम्मी में दिलचस्पी रखने वाले एक नए प्रत्याशी का नाम सुझाया.

‘‘वह इस गुलदस्ते को भेजने वाला आशिक नहीं हो सकता,’’ मैं ने अपनी गरदन दाएंबाएं हिलाई, ‘‘उस की पर्सनैलिटी में ज्यादा जान नहीं है. बोलते हुए वह सामने वाले पर थूक भी फेंकता है.’’

‘‘गली के कोने वाले घर में जो महेशजी रहते हैं, उन के बारे में क्या खयाल है.’’

‘‘उन का नाम लिस्ट में क्यों ला रही है?’’

‘‘पापा, उन का तलाक हो चुका है और मम्मी से सुबह घूमने के समय रोज पार्क में मिलते हैं. क्या पता पार्क में साथसाथ घूमते हुए वे गलतफहमी का शिकार भी हो गए हों?’’

‘‘तेरी इस बात में दम हो सकता है.’’

‘‘खाक दम हो सकता है,’’ सीमा एकदम भड़क उठी, ‘‘पार्क में सारे समय तो वे बलगम थूकते चलते हैं. प्लीज, मेरे साथ किसी ऐरेगैरे का नाम जोड़ने की कोई जरूरत नहीं है. अगर यह गुलदस्ता मेरे लिए है, तो मुझे पता है भेजने वाले का नाम.’’

‘‘क…क… कौन है वह?’’ उसे खुश हो कर मुसकराता देख मैं ऐसा परेशान हुआ कि सवाल पूछते हुए हकला गया.

‘‘नहीं बताऊंगी,’’ सीमा की मुसकराहट रहस्यमयी हो उठी तो मेरा दिल डूबने को हो गया.

‘‘मौम, क्या यह गुलदस्ता पापा के लिए नहीं हो सकता है?’’ मेरी परेशानी से अनजान मनीषा ने मेरी खिंचाई के लिए रास्ता खोलने की कोशिश करी.

‘‘नहीं,’’ सीमा ने टका सा जवाब दे कर मेरी तरफ मेरी खिल्ली उड़ाने वाले भाव में देखा.

‘‘मेरे लिए क्यों नहीं हो सकता?’’ मैं फौरन चिढ़ उठा, ‘‘अभी भी मुझ पर औरतें लाइन मारती हैं.. मैं ने कई बार उन की आंखों में अपने लिए चाहत के भाव पढ़े हैं.’’

‘‘पापा की पर्सनैलिटी इतनी बुरी भी नहीं है…’’

‘‘ऐक्सक्यूज मी… पर्सनैलिटी बुरी नहीं है से तुम्हारा मतलब क्या है?’’ मैं ने अपनी बेटी को गुस्से से घूरा तो उस ने हंस कर जले पर नमक बुरकने जैसा काम किया.

‘‘बात पर्सनैलिटी की नहीं, बल्कि इन के कंजूस स्वभाव की है, गुडिया. जब ये किसी औरत पर पैसा खर्च करेंगे नहीं तो फिर वह औरत इन के साथ इश्क करेगी ही क्यों?’’

‘‘आप को किसी लेडी का भी नाम ध्यान नहीं आ रहा है, जिस ने पापा को यह गुलदस्ता भेजा हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘पापा, आप की मार्केट वैल्यू तो बहुत खराब है,’’ मेरी बेटी ने फौरन मुझ से सहानुभूति दर्शाई.

‘‘बिटिया, यह घर की मुरगी दाल बराबर समझने की भूल कर रही है,’’ मैं ने शान से कौलर ऊपर कर के छाती फुला ली तो सीमा अपनी हंसी नहीं रोक पाई थी.

‘‘अब तो बिलकुल समझ नहीं आ रहा कि इस गुलदस्ते को भेजा किस ने है और यह है किस के लिए?’’ मनीषा के इन सवालों को सुन कर उस की मां भी जबरदस्त उलझन का शिकार हो गई थी.

उन की खामोशी जब ज्यादा लंबी खिंच कर असहनीय हो गई तो मैं ने शाही मुसकान होंठों पर सजा कर पूछा, ‘‘सीमा, क्या यह प्रेम का इजहार करने वाला उपहार मैं ने तुम्हारे लिए नहीं खरीदा हो सकता है?’’

‘‘इंपौसिबल… आप की इन मामलों में कंजूसी तो विश्वविख्यात है,’’ सीमा ने मेरी भावनाओं को चोट पहुंचाने में 1 पल भी नहीं लगाया.

मेरे चेहरे पर उभरे पीड़ा के भावों को उन दोनों ने अभिनय समझ और अचानक ही दोनों खिलखिला कर हंसने लगीं.

‘‘मेरे हिस्से में ऐसा कहां कि ऐसा खूबसूरत तोहफा मुझे कभी आप से मिले,’’ हंसी का दौरा थम जाने के बाद सीमा ने बड़े नाटकीय अंदाज में उदास गहरी सांस छोड़ी.

‘‘मेरे खयाल से फूल वाला लड़का गलती से यह गुलदस्ता हमारे घर दे गया है और जल्द ही इसे वापस लेने आता होगा,’’ मनीषा ने एक नया तुर्रा छोड़ा.

‘‘इस कागज को देखो. इस पर हमारे घर का पता लिखा है और इस लिखावट को तुम दोनों पहचान सकतीं,’’ मैं ने एक परची जेब से निकाल कर मनीषा को पकड़ा दी.

‘‘यह तो आप ही की लिखावट है,’’ मनीषा हैरान हो उठी.

‘‘आप इस कागज को हमें क्यों दिखा रहे हो?’’ सीमा ने माथे में बल डाल कर पूछा.

‘‘इसी परची को ले कर गुलदस्ता देने वाला लड़का हमारे घर तक पहुंचा था. लगता है कि तुम दोनों इस बात को भूल चुके हो कि मेरे अंदर भी प्यार करने वाला दिल धड़कता है… मैं जो हमेशा रुपएपैसों का हिसाबकिताब रखने में व्यस्त रहता हूं, मुझे पैसा कम कमाई और ज्यादा खर्च की मजबूरी ने बना दिया है,’’ अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के बाद मैं थकाहारा सा उठ कर शयनकक्ष की तरफ चलने लगा तो वे दोनों फौरन उठ कर मुझ से लिपट गईं.

‘‘आई एम सौरी, पापा. आप तो दुनिया के सब से अच्छे पापा हो,’’ कहते हुए मनीषा की आंखें भर आईं.

‘‘मुझे भी माफ कर दो, स्वीटहार्ट,’’ सीमा की आंखों में भी आंसू छलक आए.

मैं ने उन के सिरों पर प्यार से हाथ रख और भावुक हो कर बोला, ‘‘तुम दोनों के लिए माफी मांगना बिलकुल जरूरी नहीं है. आज वैलेंटाइनडे के दिन की यह घटना हम सब के लिए महत्त्वपूर्ण सबक बननी चाहिए. भविष्य में मैं प्यार का इजहार ज्यादा और जल्दीजल्दी किया करूंगा. मैं नहीं बदला तो मुझे डर है कि किसी वैलेंटाइनडे पर किसी और का भेजा गुलदस्ता मेरी रानी के लिए न आ जाए.’’

‘‘धत्, इस दिल में आप के अलावा किसी और की मूर्ति कभी नहीं सज सकती है, सीमा ने मेरी आंखों में प्यार से झांका और फिर शरमा कर मेरे सीने से लग गई.’’

‘‘मुझे भी दिल में 1 ही मूर्ति से संतोष करने की कला सिखाना, मौम,’’ शरारती मनीषा की इस इच्छा पर हम एकदूसरे के बहुत करीब महसूस करते हुए ठहाका मार कर हंस पडे़.

Valentine’s Day 2024 : कुछ कहना था तुम से – 10 साल बाद सौरव को क्यों आई वैदेही की याद ?

वैदेही का मन बहुत अशांत हो उठा था. अचानक 10 साल बाद सौरव का ईमेल पढ़ बहुत बेचैनी महसूस कर रही थी. वह न चाहते हुए भी सौरव के बारे में सोचने को मजबूर हो गई कि क्यों मुझे बिना कुछ कहे छोड़ गया था? कहता था कि तुम्हारे लिए चांदतारे तो नहीं ला सकता पर अपनी जान दे सकता है पर वह भी नहीं कर सकता, क्योंकि मेरी जान तुम में बसी है. वैदेही हंस कर कहती थी कि कितने झूठे हो तुम… डरपोक कहीं के. आज भी इस बात को सोच कर वैदेही के चेहरे पर हलकी सी मुसकान आ गई थी पर दूसरे ही क्षण गुस्से के भाव से पूरा चेहरा लाल हो गया था. फिर वही सवाल कि क्यों वह मुझे छोड़ गया था? आज क्यों याद कर मुझे ईमेल किया है?

वैदेही ने मेल खोल पढ़ा. सौरव ने केवल 2 लाइनें लिखी थीं, ‘‘आई एम कमिंग टू सिंगापुर टुमारो, प्लीज कम ऐंड सी मी… विल अपडेट यू द टाइम. गिव मी योर नंबर विल कौल यू.’’

यह पढ़ बेचैन थी. सोच रही थी कि नंबर दे या नहीं. क्या इतने सालों बाद मिलना ठीक रहेगा? इन 10 सालों में क्यों कभी उस ने मुझ से मिलने या बात करने की कोशिश नहीं की? कभी मेरा हालचाल भी नहीं पूछा. मैं मर गई हूं या जिंदा हूं… कुछ भी तो जानने की कोशिश नहीं की. फिर क्यों वापस आया है? सवाल तो कई थे पर जवाब एक भी नहीं था.

जाने क्या सोच कर अपना नंबर लिख भेजा. फिर आराम से कुरसी पर बैठ कर सौरव से हुई पहली मुलाकात के बारे में सोचने लगी…

10 साल पहले ‘फोरम द शौपिंग मौल’ के सामने और्चर्ड रोड पर एक ऐक्सीडैंट में वैदेही सड़क पर पड़ी थी. कोई कार से टक्कर मार गया था. ट्रैफिक जाम हो गया था. कोई मदद के लिए सामने नहीं आ रहा था. किसी सिंगापोरियन ने हैल्पलाइन में फोन कर सूचना दे दी थी कि फलां रोड पर ऐक्सीडैंट हो गया है, ऐंबुलैंस नीडेड.

वैदेही के पैरों से खून तेजी से बह रहा था. वह रोड पर हैल्प… हैल्प चिल्ला रही थी, पर कोई मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था. उसी ट्रैफिक जाम में सौरव भी फंसा था. न जाने क्या सोच वह मदद के लिए आगे आया और फिर वैदेही को अपनी ब्रैंड न्यू स्पोर्ट्स कार में हौस्पिटल ले गया.

वैदेही हलकी बेहोशी में थी. सौरव का उसे अपनी गोद में उठा कर कार तक ले जाना ही याद था. उस के बाद तो वह पूरी बेहोश हो गई थी. पर आज भी उस की वह लैमन यलो टीशर्ट उसे अच्छी तरह याद थी. वैदेही की मदद करने के ऐवज में उसे कितने ही चक्कर पुलिस के काटने पड़े थे. विदेश के अपने पचड़े हैं. कोई किसी

की मदद नहीं करता खासकर प्रवासियों की. फिर भी एक भारतीय होने का फर्ज निभाया था. यही बात तो दिल को छू गई थी उस की. कुछ अजीब और पागल सा था. जब जो उस के मन में आता था कर लिया करता था. 4 घंटे बाद जब वैदेही होश में आई थी तब भी वह उस के सिरहाने ही बैठा था. ऐक्सीडैंट में वैदेही की एक टांग में फ्रैक्चर हो गया था, मोबाइल भी टूट गया था. सौरव उस के होश में आने का इंतजार कर रहा था ताकि उस से किसी अपने का नंबर ले इन्फौर्म कर सके.

होश में आने पर वैदेही ने ही उसे अच्छी तरह पहली बार देखा था. देखने में कुछ खास तो नहीं था पर फिर भी कुछ तो अलग बात थी.

कुछ सवाल करती उस से पहले ही उस ने कहा, ‘‘अच्छा हुआ आप होश में आ गईं वरना तो आप के साथ मुझे भी हौस्पिटल में रात काटनी पड़ती. खैर, आई एम सौरव.’’

सौरव के तेवर देख वैदेही ने उसे थैंक्यू नहीं कहा.

वैदेही से उस ने परिवार के किसी मैंबर का नंबर मांगा. मां का फोन नंबर देने पर सौरव ने अपने फोन से उन का नंबर मिला कर उन्हें वैदेही के विषय में सारी जानकारी दे दी. फिर हौस्पिटल से चला गया. न बाय बोला न कुछ. अत: वैदेही ने मन ही मन उस का नाम खड़ूस रख दिया.

उस मुलाकात के बाद तो मिलने की उम्मीद भी नहीं थी. न उस ने वैदेही का नंबर लिया था न ही वैदेही ने उस का. उस के जाते ही वैदेही की मां और बाबा हौस्पिटल आ पहुंचे थे. वैदेही ने मां और बाबा को ऐक्सीडैंट का सारा ब्योरा दिया और बताया कैसे सौरव ने उस की मदद की.

2 दिन हौस्पिटल में ही बीते थे.

ऐसी तो पहली मुलाकात थी वैदेही और सौरव की. कितनी अजीब सी… वैदेही सोचसोच मुसकरा रही थी. सोच तो रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. सौरव के ईमेल ने वैदेही के पुराने सारे मीठे और दर्द भरे पलों को हरा कर दिया था.

ऐक्सीडैंट के बाद पंद्रह दिन का बैडरेस्ट लेने को कहा गया

था. नईनई नौकरी भी जौइन की थी तब वैदेही ने. घर पहुंच वैदेही ने सोचा औफिस में इन्फौर्म कर दे. मोबाइल खोज रही थी तभी याद आया मोबाइल तो हौस्पिटल में सौरव के हाथ में था और शायद अफरातफरी में उस ने उसे लौटाया नहीं था. पर इन्फौर्म तो कर ही सकता था. उफ, सारे कौंटैक्ट नंबर्स भी गए. वैदेही चिल्ला उठी थी. तब अचानक याद आया कि उस ने अपने फोन से मां को फोन किया था. मां के मोबाइल में कौल्स चैक की तो नंबर मिल गया.

तुरंत नंबर मिला अपना इंट्रोडक्शन देते हुए उस ने सौरव से मोबाइल लौटाने का आग्रह किया. तब सौरव ने तपाक से कहा, ‘‘फ्री में नहीं लौटाऊंगा. खाना खिलाना होगा… कल शाम तुम्हारे घर आऊंगा… एड्रैस बताओ.’’

वैदेही के तो होश ही उड़ गए. मन में सोचने लगी कैसा अजीब प्राणी है यह. पर मोबाइल तो चाहिए ही था. अत: एड्रैस दे दिया.

अगले दिन शाम को महाराज हाजिर भी हो गए थे. सारे घर वालों को सैल्फ इंट्रोडक्शन भी दे दिया और ऐसे घुलमिल गया जैसे सालों से हम सब से जानपहचान हो. वैदेही ये सब देख हैरान भी थी और कहीं न कहीं एक अजीब सी फीलिंग भी हो रही थी. बहुत मिलनसार स्वभाव था. मां, बाबा और वैदेही की छोटी बहन तो उस की तारीफ करते नहीं थक रहे थे. थकते भी क्यों उस का स्वभाव, हावभाव सब कितना अलग और प्रभावपूर्ण था. वैदेही उस के साथ बहती चली जा रही थी.

वह सिंगापुर में अकेला रहता था. एक कार डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी में मैनेजर था. तभी आए दिन उसे नई कार का टैस्ट ड्राइव करने का मौका मिलता रहता था. जिस दिन उस ने वैदेही की मदद की थी उस दिन भी न्यू स्पोर्ट्स कार की टैस्ट ड्राइव पर था. उस के मातापिता इंडिया में रहते थे.

इस दौरान अच्छी दोस्ती हो गई थी. रोज आनाजाना होने लगा था. वैदेही के परिवार के सभी लोग उसे पसंद करते थे. धीरेधीरे उस ने वैदेही के दिल में खास जगह बना ली. उस के साथ जब होती थी तो लगता था ये पल यहीं थम जाएं. वैदेही को भी यह एहसास हो चला था कि सौरव के दिल में भी उस के लिए खास फीलिंग्स हैं. मगर अभी तक उस ने वैदेही से अपनी फीलिंग्स कही नहीं थीं.

15 दिन बाद वैदेही ने औफिस जौइन कर लिया. सौरव और वैदेही का औफिस और्चर्ड रोड पर ही था. सौरव अकसर वैदेही को औफिस से घर छोड़ने आता था. फ्रैक्चर होने की वजह से

6 महीने केयर करनी ही थी. वैदेही को उस का लिफ्ट देना अच्छा लगता था.

आज भी वैदेही को याद है सौरव ने उसे

2 महीने के बाद उस के 22वें बर्थडे पर प्रपोज किया था. औसतन लोग अपनी प्रेमिका को गुलदस्ता या चौकलेट अथवा रिंग के साथ प्रपोज करते हैं, पर उस ने वैदेही के हाथों में एक कार का छोटा सा मौडल रखते हुए कहा कि क्या तुम अपनी पूरी जिंदगी का सफर मेरे साथ तय करना चाहोगी? कितना पागलपन और दीवानगी थी उस की बातों में. वैदेही उसे समझने में असमर्थ थी. यह कहतेकहते सौरव उस के बिलकुल नजदीक आ गया और वैदेही का चेहरा अपने हाथों में थामते हुए उस के होंठों को अपने होंठों से छूते हुए दोनों की सांसें एक हो चली थीं. वैदेही का दिल जोर से धड़क रहा था. खुद को संभालते हुए वह सौरव से अलग हुई. दोनों के बीच एक अजीब मीठी सी मुसकराहट ने अपनी जगह बना ली थी.

कुछ देर तो वैदेही वहीं बुत की तरह खड़ी रही थी. जब उस ने वैदेही का उत्तर जानने की उत्सुकता जताई तो वैदेही ने कहा था कि अगले दिन ‘गार्डन बाय द वे’ में मिलेंगे. वहीं वह अपना जवाब उसे देगी.

उस रात वैदेही एक पल भी नहीं सोई थी. कई विषयों पर सोच रही थी जैसे कैरियर, आगे की पढ़ाई और न जाने कितने खयाल. नींद आती भी कैसे, मन में बवंडर जो उठा था. तब वैदेही मात्र 22 साल की ही तो थी और इतनी जल्दी शादी भी नहीं करना चाहती थी. सौरव भी केवल 25 वर्ष का था. पर वैदेही उसे यह बताना भी चाहती थी कि उस से बेइंतहा मुहब्बत हो गई है और जिंदगी का पूरा सफर उस के साथ ही बिताना चाहती है. बस कुछ समय चाहिए था उसे. पर यह बात वैदेही के मन में ही रह गई थी. कभी इसे बोल नहीं पाई.

अगले दिन वैदेही ठीक शाम 5 बजे ‘गार्डन बाय द वे’ में पहुंच गई. वहां पहुंच कर उस ने सौरव को फोन मिलाया तो फोन औफ आ रहा था. उस का इंतजार करने वह वहीं बैठ गई. आधे घंटे बाद फिर फोन मिलाया तब भी फोन औफ ही आ रहा था. वैदेही परेशान हो उठी. पर फिर सोचा कहीं औफिस में कोई जरूरी मीटिंग में न फंस गया हो. वहीं उस का इंतजार करती रही. इंतजार करतेकरते रात के 8 बजे गए, पर वह नहीं आया और उस के बाद उस का फोन भी कभी औन नहीं मिला.

2 साल तक वैदेही उस का इंतजार करती रही पर कभी उस ने उसे एक बार भी फोन नहीं किया. 2 साल बाद मांबाबा की मरजी से आदित्य से वैदेही की शादी हो गई. आदित्य औडिटिंग कंपनी चलाता था. उस के मातापिता सिंगापुर में उस के साथ ही रहते थे.

शादी के बाद कितने साल लगे थे वैदेही को सौरव को भूलने में पर पूरी तरह भूल नहीं पाई थी. कहीं न कहीं किसी मोड़ पर उसे सौरव की याद आ ही जाती थी. आज अचानक क्यों आया है और क्या चाहता है?

वैदेही की सोच की कड़ी को अचानक फोन की घंटी ने तोड़ा. एक अनजान नंबर था. दिल की धड़कनें तेज हो चली थीं. वैदेही को लग रहा था हो न हो सौरव का ही होगा. एक आवेग सा महसूस कर रही थी. कौल रिसीव करते हुए हैलो कहा तो दूसरी ओर सौरव ही था. उस ने अपनी भारी आवाज में ‘हैलो इज दैट वैदेही?’ इतने सालों के बाद भी सौरव की आवाज वैदेही के कानों से होते हुए पूरे शरीर को झंकृत कर रही थी.

स्वयं को संभालते हुए वैदेही ने कहा, ‘‘यस दिस इज वैदेही,’’ न पहचानने का नाटक करते हुए कहा, ‘‘मे आई नो हू इज टौकिंग?’’

सौरव ने अपने अंदाज में कहा, ‘‘यार, तुम मुझे कैसे भूल सकती हो? मैं सौरव…’’

‘‘ओह,’’ वैदेही ने कहा.

‘‘क्या कल तुम मुझ से मरीना वे सैंड्स होटल के रूफ टौप रैस्टोरैंट पर मिलने आ सकती  हो? शाम 5 बजे.’’

कुछ सोचते हुए वैदेही ने कहा, ‘‘हां, तुम से मिलना तो है ही. कल शाम को आ जाऊंगी,’’ कह फोन काट दिया.

अगर ज्यादा बात करती तो उस का रोष सौरव को फोन पर ही सहना पड़ता. वैदेही के दिमाग में कितनी हलचल थी, इस का अंदाजा लगाना मुश्किल था. यह सौरव के लिए उस का प्यार था या नफरत? मिलने का उत्साह था या असमंजसता? एक मिलाजुला भावों का मिश्रण जिस की तीव्रता सिर्फ वैदेही ही महसूस कर सकती थी.

अगले दिन सौरव से मिलने जाने के लिए जब वैदेही तैयार हो रही थी, तभी आदित्य कमरे में आया. वैदेही से पूछा, ‘‘कहां जा रही हो?’’

वैदेही ने कहा, ‘‘सौरव सिंगापुर आया है. वह मुझ से मिलना चाहता है,’’ कह वैदेही चुप हो गई. फिर कुछ सोच आदित्य से पूछा, ‘‘जाऊं या नहीं?’’

आदित्य ने जवाब में कहा, ‘‘हां, जाओ. मिल आओ. डिनर पर मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा,’’ कह वह कमरे से चला गया.

आदित्य ने सौरव के विषय में काफी कुछ सुन रखा था. वह यह जानता था कि सौरव को वैदेही के परिवार वाले बहुत पसंद करते थे… कैसे उस ने वैदेही की मदद की थी. आदित्य खुले विचारों वाला इनसान था.

हलके जामुनी रंग की ड्रैस में वैदेही बहुत खूबसूरत लग रही थी. बालों को

ब्लो ड्राई कर बिलकुल सीधा किया था. सौरव को वैदेही के सीधे बाल बहुत पसंद थे. वैदेही हूबहू वैसे ही तैयार हुई जैसे सौरव को पसंद थी. वैदेही यह समझने में असमर्थ थी कि आखिर वह सौरव की पसंद से क्यों तैयार हुई थी? कभीकभी यह समझना मुश्किल हो जाता है कि आखिर किसी के होने का हमारे जीवन में इतना असर क्यों आ जाता है. वैदेही भी एक असमंजसता से गुजर रही थी. स्वयं को रोकना चाहती थी पर कदम थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

वैदेही ठीक 5 बजे मरीना बाय सैंड्स के रूफ टौप रैस्टोरैंट में पहुंची. सौरव वहां पहले से इंतजार कर रहा था. वैदेही को देखते ही वह चेयर से खड़ा हो वैदेही की तरफ बढ़ा और उसे गले लगते हुए बोला, ‘‘सो नाइस टू सी यू आफ्टर ए डिकेड. यू आर लुकिंग गौर्जियस.’’

वैदेही अब भी गहरी सोच में डूबी थी. फिर एक हलकी मुसकान के साथ उस ने कहा, ‘‘थैंक्स फार द कौंप्लीमैंट. आई एम सरप्राइज टु सी यू ऐक्चुअली.’’

सौरव भांप गया था वैदेही के कहने का तात्पर्य. उस ने कहा, ‘‘क्या तुम ने अब तक मुझे माफ नहीं किया? मैं जानता हूं तुम से वादा कर के मैं आ न सका. तुम नहीं जानतीं मेरे साथ क्या हुआ था?’’

वैदेही ने कहा, ‘‘10 साल कोई कम तो नहीं होते… माफ कैसे करूं तुम्हें? आज मैं जानना चाहती हूं क्या हुआ था तुम्हारे साथ?’’

सौरव ने कहा, ‘‘तुम्हें याद ही होगा, तुम ने मुझे पार्क में मिलने के लिए बुलाया था. उसी दिन हमारी कंपनी के बौस को पुलिस पकड़ ले गई थी, स्मगलिंग के सिलसिले में. टौप लैवल मैनेजर को भी रिमांड में रखा गया था. हमारे फोन, अकाउंट सब सीज कर दिए गए थे. हालांकि 3 दिन लगातार पूछताछ के बाद, महीनों तक हमें जेल में बंद कर दिया था. 2 साल तक केस चलता रहा. जब तक केस चला बेगुनाहों को भी जेल की रोटियां तोड़नी पड़ीं. आखिर जो लोग बेगुनाह थे उन्हें तुरंत डिपोर्ट कर दिया गया और जिन्हें डिपोर्ट किया गया था उन में मैं भी था. पुलिस की रिमांड में वे दिन कैसे बीते क्या बताऊं तुम्हें…

‘‘आज भी सोचता हूं तो रूह कांप जाती है. किस मुंह से तुम्हारे सामने आता? इसलिए जब मैं इंडिया (मुंबई) पहुंचा तो न मेरे पास कोई मोबाइल था और न ही कौंटैक्ट नंबर्स. मुंबई पहुंचने पर पता चला मां बहुत सीरियस हैं और हौस्पिटलाइज हैं. मेरा मोबाइल औफ होने की वजह से मुझ तक खबर पहुंचाना मुश्किल था. ये सारी चीजें आपस में इतनी उलझी हुई थीं कि उन्हें सुलझाने का वक्त ही नहीं मिला और तो और मां ने मेरी शादी भी तय कर रखी थी. उन्हें उस वक्त कैसे बताता कि मैं अपनी जिंदगी सिंगापुर ही छोड़ आया हूं. उस वक्त मैं ने चुप रहना ही ठीक समझा था.

‘‘और फिर जिंदगी की आपाधापी में उलझता ही चला गया. पर तुम हमेशा याद आती रहीं. हमेशा सोचता था कि तुम क्या सोचती होगी मेरे बारे में, इसलिए तुम से मिल कर तुम्हें सब बताना चाहता था. काश, मैं इतनी हिम्मत पहले दिखा पाता. उस दिन जब हम मिलने वाले थे तब तुम मुझ से कुछ कहना चाहती थीं न… आज बता दो क्या कहना चाहती थीं.’’

वैदेही को यह जान कर इस बात की तसल्ली हुई कि सौरव ने उसे धोखा नहीं दिया. कुदरत ने हमारे रास्ते तय करने थे. फिर बोली, ‘‘वह जो मैं तुम से कहना चाहती उन बातों का अब कोई औचित्य नहीं,’’ वैदेही ने अपने जज्बातों को अपने अंदर ही दफनाने का फैसला कर लिया था.

थोड़ी चुप्पी के बाद एक मुसकराहट के साथ वैदेही ने कहा, ‘‘लैट्स और्डर सम कौफी.’’

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