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राजन ने बिल्डरों से कहा ‘कम करो कीमतें’

नीतिगत दरों में कटौती के बाद रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने जमीन जायदाद के विकास से जुड़ी कंपनियों के पाले में गेंद डालते हुए उनसे मकानों के दाम कम करने को कहा ताकि ज्यादा लोग संपत्ति खरीदने के लिये प्रोत्साहित हों. आवासीय परियोजनाओं की कम मांग के साथ डेवलपरों के पास बिना बिके मकानों की बढ़ती संख्या के बीच राजन ने यह बात कही है.

वाई बी चव्हाण स्मृति व्याख्यानमाला में राजन ने कहा, 'मुझे उम्मीद है कि अब जब ब्याज दरें नीचे आ रही है, लोग कर्ज के लिये आगे आएंगे और खरीदारी बढ़ेगी और मुझे यह भी उम्मीद है कि कीमतों में इस रूप से समायोजन होगी जिससे लोग मकान खरीदने के लिये प्रोत्साहित होंगे.' रिजर्व बैंक पिछले वर्ष जनवरी से ब्याज दरों में 1.5 प्रतिशत की कटौती कर चुका है और इस महीने की शुरुआत में रेपो दर 0.25 प्रतिशत घटाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया जो पांच साल का न्यूनतम स्तर है.

वहीं दूसरी तरफ बैंकों ने ग्राहकों को उतना लाभ नहीं दिया जितना कि रिजर्व बैंक ने नीतिगत दर में कटौती की. राजन के अनुसार ब्याज दरों के अलावा प्राथमिक क्षेत्र के अंतर्गत सस्ते मकान के लिये कर्ज जैसे उपायों से उन्हें विश्वास है कि कर्ज के मोर्चे पर चिंताओं का समाधान किया गया है. उन्होंने डेवलपरों के कर्ज के मामले में उन्होंने ऋण लेने वालों की तरफ से पारदर्शिता की वकालत की.

सनट्रैकर : सौर ऊर्जा से दिन भर सिंचाई

सुबह शाम

इन दिनों खेती में लगने वाली लागत लगातार बढ़ती चली जा रही है. खेती में सिंचाई पर होने वाला खर्च भी कोई कम नहीं होता?है. नहरों व दूसरे कई साधनों से सिंचाई करने के अलावा लोग निजी नलकूपों से?भी सिंचाई करते?हैं. नलकूपों से सिंचाई करने पर डीजल बहुत खर्च होता?है और प्रदूषण भी फैलता?है.

इसी समस्या का हल है सौरचालित वाटर पंपिंग सेट, जो कि सिर्फ धूप की रोशनी से चलता?है. इस समय बाजार में आ रहे ज्यादातर पंपिंग सेट सीधे सौरपैनल से जुड़े होते?हैं और डीसी मोटर चालित पंप होते?हैं. इन पंपों में यह खराबी होती है कि जब सूर्य की दिशा बदलने लगती है तो रोशनी कम होने पर ये सेट कम पानी देने लगते हैं. यानी दिन भर समान रूप से पानी नहीं निकल पाता?है और सिंचाई करने में दिक्कत हो जाती है.इस समस्या के समाधान के लिए भोपाल (मध्य प्रदेश) स्थिति केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान के वैज्ञानिकों ने सनट्रैक्टर के नाम से एक यंत्र ईजाद किया है. यह यंत्र इस समस्या के हल के लिए पूरी तरह से कारगर सिद्ध हो रहा?है. बस जरूरत है इसे  अपनाने की.

क्या है सनट्रैकर : सौरऊर्जा संयत्र की कूवत बढ़ाने के लिए एक सूक्ष्म नियंत्रक आधारित सनट्रैकर विकसित किया गया है, जो 2.4 किलोवाट के सौरपैनल को सूर्य की दिशा में घुमाने क कूवत रखता है. इस से सूर्य की रोशनी दिन भर सामान रूप से सौरऊर्जा संयंत्र को मिलती रहती है, नतीजतन पूरे दिन किसी भी समय सिंचाई का काम तेज गति से किया जा सकता है.

सनट्रैक के अंदर की तकनीक : इस ट्रैकिंग सिस्टम के खास भाग हैं वर्म गियर स्टेपर, मोटर स्टेपर, मोटर ड्राइव व सूक्ष्म नियंत्रक. स्टेपर मोटर और उस के संचालक का संचालन एक प्रोग्राम सूक्ष्म नियंत्रक के साथ नियंत्रित किया जाता है. सौरपैनल को सूर्य की दिशा में घुमाने के लिए इस में खास बंदोबस्त किया गया?है.

खास फायदे

* इस पैनल से बिना ट्रैकर वाले पैनल के मुकाबले 21 फीसदी ज्यादा बिजली पैदा होती है. इस के द्वारा वाटर पंप लगातार भरपूर पानी देता है.

* इस समय 2 हार्स पावर से ले कर 5 हार्स पावर तक के सोलर वाटर पंप मौजूद हैं, जिन की कीमत सवा 2 लाख रुपए से सवा 5 लाख रुपए तक?है. अलगअलग प्रदेशों में इस के लिए अलगअलग अनुदान दिए जाते हैं. उत्तर प्रदेश में ‘उत्तर प्रदेश नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा विकास अभिकरण’ और ‘कृषि विभाग’ द्वारा मिल कर 5 हार्स पावर के पंप के लिए 50 फीसदी और 2 और 3 हार्स पावर के पंपों के लिए 75 फीसदी तक अनुदान दिया जाता है. इतने अनुदान के बाद भी सोलर वाटर पंप पर काफी खर्च आता?है. इतना खर्च करने के बावजूद इस का सही लाभ नहीं मिल पाता है. ऐसे में सनट्रैकर सिंचाई के लिहाज से बेहद कारगर साबित हो सकता?है.

* सिंचाई की लागत में कमी आती?है.

* दिन भर सिंचाई वाले पानी की आपूर्ति होने से दूसरों को भाड़े पर पानी दे कर कमाई की जा सकती है.

* इस से प्रदूषण पर लगाम लगेगी.

कहां से मिलेगा : सनट्रैकर यंत्र को केंद्रीय कृषि आभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल (मध्य प्रदेश) के वैज्ञानिकों ने तैयार किया है. इस के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए इसे ईजाद करने वाली टीम के डा. आरसी सिंह से उन के कार्यालय के फोन नंबरों

0755-2521117,2521118 पर संपर्क किया जा सकता?है. वैसे डा. सिंह का कहना?है कि इस यंत्र के लिए दिल्ली व गाजियाबाद की एक फर्म को तय कर दिया गया है, जिस के जरीए देश के किसी भी हिस्से से इसे हासिल किया जा सकता?है.

पत्र या ई मेल के जरीए संस्थान के निदेशक से?भी संपर्क किया जा सकता है.

पता : निदेशक, केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, नवी बाग, बैरसिया रोड, भोपाल (मध्य प्रदेश), 462038.           

सौर ऊर्जा से लहलहा रही फसलें

सौर ऊर्जा की अहमियत को अब पढ़ेलिखे लोगों के साथसाथ छोटे किसान व तमाम आम लोग भी समझने लगे हैं. राजस्थान में हजारों किसान सौर ऊर्जा का भरपूर फायदा ले रहे हैं. ऐसे किसानों का मानना?है कि वाकई यह पैट्रोलडीजल वगैरह का बेहतर उपाय?है. सरकार द्वारा सब्सिडी दिए जाने से किसानों के लिए सोलर ऊर्जा पैनल व पंपसेट लगाना और भी आसान हो गया है.

सौर ऊर्जा प्लांट लगाने के इस काम में सैकड़ों कंपनियां व एजेंसियां लगी हुई हैं. जो किसान सब्सिडी पाना चाहते?हैं, वे अपने प्रदेश व जिले के कृषि व उद्यानिकी विभाग में आवेदन कर के सब्सिडी के साथ सौर ऊर्जा प्लांट लगवा सकते हैं. इस के अलावा घरों की छतों पर भी सौर ऊर्जा प्लांट लगवा कर पूरे घर को रोशन किया जा सकता है.

सोलर प्लांट से मिली कामयाबी

जयपुर जिले की चाकसू तहसील के रहने वाले किसान रामकेश को जब कृषि सुपरवाइजर कैलाश जाट ने सौर ऊर्जा प्लांट के बारे में जानकारी दी, तो वह खुश हो गया.

रामकेश ने अपने खेत पर खेततलाई तो बनवा रखी थी, लेकिन बिजली विभाग में 3 साल पहले आवेदन लगाने के बावजूद बिजली कनेक्शन नहीं मिल रहा था. ऐसे में कृषि सुपरवाइजर के बताए अनुसार उसे सौर ऊर्जा प्लांट लगवाने में फायदा नजर आया, तो उस ने सौर ऊर्जा प्लांट लगवाने की ठानी.

कृषि सुपरवाइजर ने उसे सोलर प्लांट पर मिलने वाली तमाम जानकारी मुहैया कराई, तो रामकेश ने सोलर प्लांट के लिए कृषि व उद्यानिकी विभाग में औनलाइन फार्म जमा करा दिया. कुछ ही समय बाद रामकेश का चयन सोलर प्लांट लगाने के लिए हो गया. उस ने 3 हजार वाट व 3 हार्सपावर के सोलर पंपसेट के लिए सोलर कंपनी के नाम 85 हजार रुपए का बैंक ड्राफ्ट जमा करा दिया.

3 साल पहले लगाए गए सोलर पंपसेट से आज रामकेश की इलाके में जागरूक व कामयाब किसान के तौर पर पहचान है. रामकेश के हरेभरे खेतों में लहलहाती फसल को देख कर आज हर कोई सोलर पंपसेट लगाने की तमन्ना रखता है. रामकेश ऐसे लोगों को?भरपूर मदद भी करता?है. अब तो रामकेश ने अपने खेत में बोरिंग भी करवा ली है, जिस से सोलर पंपसेट का वह भरपूर फायदा ले रहा?है.

मौजूद सोलर प्लांट

सरकार किसानों के खेतों में सौर ऊर्जा प्लांट लगाने के लिए हर साल अपना टारगेट तय करती?है. वह इस के लिए कंपनियों का चुनाव करती है. ये कंपनियां अनुदान के आधार पर सोलर प्लांट लगाती हैं. वहीं सैकड़ों कंपनियां खुले में भी इस काम में लगी हुई हैं. कंपनियां व उन के प्रतिनिधियों से कोई भी व्यक्ति सोलर प्लांट लगवा सकता है. ये कंपनियां भी सरकार से अनुदानित कंपनियों के बराबर ही सोलर प्लांट लगाने की कीमत वसूल करती हैं.

यहां सोलर प्लांट लगाने के काम में लगी कंपनियों की जानकारी दी जा रही है. कोई भी किसान सीधे कंपनियों से संपर्क कर के घर या खेतों पर सोलर प्लांट लगवा सकता हैं.

राजस्थान में सौर ऊर्जा पंप सेट के लिए टारगेट तय

सौर ऊर्जा पर आधारित पंप परियोजना में साल 2015-16 के जिलेवार टारगेट भी तय किए जा चुके?हैं. सरकार ने पात्रता रखने वाले किसानों को तुरंत इस योजना का फायदा दिलाने के लिए कहा?है.

उद्यानिकी विभाग?द्वारा जारी गाइडलाइन में साल 2014-15 में लाटरी से चुने गए किसानों को प्राथमिकता के आधार पर फायदा पहुंचाने की बात कही गई है. समूचे प्रदेश में 4,702 पंपसेट लगाने का?टारगेट तय किया गया?है.

ऐसे मिलेगा अनुदान का फायदा

नए निर्देश के अनुसार, विद्युत कनेक्शन लौटाने वाले किसानों को पूरा अनुदान देय होगा. साथ ही जिन किसानों के विद्युत कनेक्शन नहीं हैं और डिस्कौम की वरीयता सूची में भी नहीं हैं, इस के लिए उन को 60 फीसदी अनुदान मिलेगा.

गौरतलब है कि पूर्व में इस तरह का नियम नहीं था. हकदार किसानों को 75 फीसदी अनुदान दिया जाता था. लेकिन अब सरकार ने सभी किसानों को सोलर पंप योजना के लाभ से जोड़ने के लिए यह फैसला लिया है.

उद्यानिकी विभाग द्वारा जारी सोलर पंप के टारगेट में इस साल नहरी किसानों का भी खास खयाल रखा गया?है. इंदिरा गांधी नहर परियोजना लाभान्वित बीकानेर जिले के लिए 600, जैसलमेर के लिए 205, श्रीगंगानगर के लिए 538 और हनुमानगढ़ के लिए 173 सौर ऊर्जा पंपसेटों का टारगेट रखा गया है. इस के अलावा जयपुर, भीलवाड़ा और चित्तौड़गढ़ जिलों में बागबानी फसल के बढ़ते दायरे को देखते हुए सोलर पंप के टारगेट पहले से बढ़ा कर रखे गए हैं.

सेटेलाइट से भी जुड़ेंगे सौर ऊर्जा प्लांट

सोलर ऊर्जा का डाटा संग्रहित करने व संयंत्र की मौनिटरिंग के लिए उद्यानिकी विभाग अब प्रदेश में नई व्यवस्था लागू करने जा रहा?है. इस के तहत किसान के खेत में लगे संयंत्र को अब सेटेलाइट से जोड़ा जाएगा. इस से सौर ऊर्जा संयंत्र पंप की निगरानी भी हो सकेगी, साथ ही संयंत्र से जुड़ी किसान की समस्या का शिकायत से पहले ही समाधान संभव हो सकेगा.

गौरतलब है कि प्रदेश में सोलर सिंचाई पंप योजना को ले कर किसानों का रुझान साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है. सोलर पंप को सेटेलाइन से जोड़ने के लिए रिमोट सेंसिंग तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा. इस से संयंत्र से जुड़ी हर पल की जानकारी विभाग और संयंत्र लगाने वाली कंपनी के पास मुहैया हो सकेगी. गौरतलब है कि सौर ऊर्जा के मेगा प्रोजेक्ट में रिमोट सेंसिंग तकनीक का उपयोग किया जा रहा?है. किसान के खेत में लगने वाले सोलर पंपसेट में इस तकनीक का प्रयोग प्रदेश में पहली बार होगा.

ऐसे होगी सिस्टम की मौनिटरिंग

सोलर ऊर्जा संयंत्र के माहिरों के अनुसार संयंत्र के मौड्यूल व कंट्रोलर में एक चिप लगाई जाएगी. इस से सेटेलाइट हर पंप से जुड़ सकेगा. यह चिप आरएफआईडी यानी रेडियो फ्रीक्वेंसी आईडेंटीफिकेशन तकनीक से लैस होगी. इस से संयंत्र से जुड़ी तमाम जानकारी कंपनी को उपलब्ध होती रहेगी. इस से संयंत्र की ट्रेकिंग भी संभव है.

सेटेलाइट से सेंसर संयंत्र की निगरानी कंपनी और विभागीय स्तर पर होगी. इस के लिए जिला स्तर पर डाटा सेंटर बनाए जाएंगे. डाटा संग्रहण के लिए मोबाइल नेटवर्क होना बेहद जरूरी होगा. डाटा एक्सिस करने के लिए पासवर्ड का इस्तेमाल किया जाएगा और संग्रहित डाटा के आधार पर ही भविष्य की योजना बनाई जाएगी.  

रिमोट सेंसिंग तकनीक पर आधारित होंगे सोलर प्लांट

नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय से रिमोट सेंसिंग तकनीक आधारित सोलर सिंचाई पंप लगाने के निर्देश मिले हैं. साल 2015-16 में स्थापित होने वाले तमाम संयंत्र इस तकनीक से लैस होंगे. प्रधानमंत्री के डिजिटल इंडिया अभियान के तहत यह कवायद शुरू की गई है. इस के तहत जवाहरलाल नेहरू सोलर मिशन के तहत वित्तीय वर्ष 2015-16 के लिए जारी गाइडलाइन में सोलर पंप संयंत्र को रिमोट सेंसिंग तकनीक से जोड़ने का प्रावधान किया गया?है. इस के तहत उद्यान विभाग इस वित्तीय वर्ष में उन्हीं कंपनियों को अहमियत देगा, जो रिमोट सेंसिंग तकनीक आधारित संयंत्र की आपूर्ति किसान को कर सकें.

-एसपी सिंह, उद्यानिकी आयुक्त, जयपुर

सोलर प्लांट लगाने वाली जयपुर में स्थित कंपनियां व संपर्क नंबर :

श्री राधेश्याम सौर सेवा :08048016637.

न्यू जर्सी निगम :07053137627.

जैनटेक प्राइवेट लिमिटेड :09643206106.

न्यू लाइट आफ इंजीनियर्स : 08046050766.

नीधीशवार्म पावर कारपोरेशन : 9873148460.

गीता इलेक्ट्रोनिक्स : 09643007989.

चरम सीमा संचार : 08048105644.

एम पावर ग्रीन प्रा. लिमिटेड : 08045317354.

ग्रीन मोर ऊर्जा उत्पाद प्रा. लिमिटेड : 09643338086.

राजस्थान इलेक्ट्रोनिक्स उपकरण प्रा. लिमिटेड : 08043051759.

कांपैक्ट व्यापार सेवाएं :08042984205.

सोनीपत में किसान मेला

हरियाणा के सोनीपत शहर की अनाज मंडी में ‘कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन अभिकरण’ (आत्मा) द्वारा कराए गए किसान मेले में लगभग 500 किसानों ने भाग लिया. किसानों के मनोरंजन के लिए हरियाणवी कलाकारों द्वारा रागिनी भी सुनाई गई. मेले की योजना डा. वीडी आर्य, डिप्टी डायरेक्टर एग्रीकल्चर की देखरेख में डा. देवेंद्र सिंह, डिविजन आफिसर एग्रीकल्चर ने तैयार की. मंच संचालन कृषि विकास अधिकारी जय भगवान गहलावत ने किया.

मेले में अपनेअपने क्षेत्र के माहिर कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को उन के हित की अनेक जानकारियां दीं. साथ ही, उन्होंने किसानों की समस्याओं को भी सुलझाया. डा. जेके नंदन ने बताया कि किसानों को धानगेहूं की खेती की ओर रुख न कर के सब्जी की खेती की तरफ बढ़ना चाहिए. इस से उन्हें ज्यादा मुनाफा मिलेगा. जहां पारंपरिक खेती करने से साल में किसान 2 फसलें ले पाता है, वहीं किसान सब्जी की खेती करे, तो पूरे साल सब्जियों की फसल से अच्छी आमदनी ले सकता है.

उन्होंने आगे बताया कि किसान विदेशी सब्जियां जैसे ब्रोकली वगैरह की खेती करें तो उस से और भी ज्यादा मुनाफा मिलेगा. वे फूलों की खेती करें, प्याज की खेती करें, खासकर बिना मौसम वाली सब्जी पैदा करें, साथ ही वे बेबीकार्न की खेती भी करें. बेबीकार्न की खेती के 2 फायदे हैं. पहले बेबीकार्न बेचें फिर खड़ी फसल से हरा चारा लें. पशु विशेषज्ञ डा. बीएस रांगी ने भी किसानों, पशुपालकों को कई सुझाव दिए. उन्होंने बताया कि पशुपालकों को अपने पशुओं का दूध कैसे बढ़ाना चाहिए. इस पर उन का विभाग मदद करता है. आज के समय में सब से ज्यादा दूध देने वाली भैंस की नस्ल मुर्रा है. मुर्रा नस्ल का बीज हर पशु संस्थान में मिलता है. मात्र 100 रुपए में मुर्रा नस्ल का बीज घर जा कर भी दिया जाता है. पशुपालन विभाग पशुओं का साल में 4 बार टीकाकरण करता है. कई किसान सोचते हैं कि इस से पशु का दूध कम हो जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है.

सामान्य किसान अगर डेरी लगाना चाहता है और वह कम से कम 5 देशी गायों से डेरी शुरू करता है, तो 50 फीसदी की सब्सिडी सरकार देती है. इस सिलसिले में अपने क्षेत्र के पशुपालन विभाग से मिलें. समयसमय पर पशु विभाग किसानों के लिए कैंप का आयोजन भी करते हैं. इस का लाभ भी किसानों को उठाना चाहिए. पशुपालन विभाग द्वारा मात्र 100 रुपए में पशु बीमा होता है, जिस की बीमित राशि 50 हजार है. यह बीमा 3 साल के लिए होता है.

डा. राजेंद्र काजल जैसे वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने किसानों को अनेक जानकारियां दी. कृषि वैज्ञानिकों ने यह भी बताया कि बीज बोने से पहले बीजोपचार जरूर करें. जिस तरीके से हम अपने बच्चों का टीकाकरण करवाते हैं, उसी तरह से फसल का टीकाकरण होता है. बीजोपचार करने से फसल में 60 फीसदी बीमारी तो वैसे ही नहीं लगती है, इस से खर्चा भी घटेगा और फायदा ज्यादा मिलेगा . साथ ही फसल में खाद व पानी संतुलित मात्रा में दें.

बैंक अधिकारियों ने भी किसानों के लिए चलाई जा रहीं कई स्कीमों के बारे में बताया. उन्होंने खासतौर पर किसान क्रेडिट कार्ड बनवाने पर जोर दिया. उन्होंने बताया कि जमीन के क्षेत्रफल के अनुसार के्रडिट कार्ड की लिमिट तय की जाती है.

के्रडिट कार्ड बनवाने के साथ ही किसानों का बैंक में खाता खोला जाता है, जिस के तहत बैंक पासबुक व चैकबुक भी किसानों को दी जाती है. किसान बैंक से अपनी जमीन के अनुसार 50 हजार से ले कर 50 लाख रुपए तक लोन ले सकते हैं और खेती की मशीनें खरीद सकते हैं, कोल्ड स्टोर लगा सकते हैं या पशुशाला खोल सकते हैं. मधुमक्खीपालन, मुरगीपालन या मछलीपालन जैसे कामों के लिए भी किसानों को लोन दिया जाता है. उन्हें बच्चों की पढ़ाई के लिए भी लोन दिया जाता है. किसान इन सब का फायदा उठा सकते हैं. लेकिन ध्यान रखने वाली बात यह है कि बैंक से किसान ने जिस काम के लिए कर्ज लिया है, उसे उसी काम में लगाए और समय से बैंक के लोन की किस्त चुकता करता रहे. ऐसा न करने पर बैंक किसान को डिफाल्टर घोषित कर सकता है.

एडीसी शिव प्रसाद शर्मा ने किसानों को शुभकामनाएं दी.

अंत में कृषि वैज्ञानिकों ने महिला किसानों व पुरुष किसानों की 2 टीमें बनाईं और उन से अलगअलग कृषि से संबंधित सवालजवाब किए. महिलाओं की बातें सुन कर ऐसा लग रहा था कि हरियाणा की महिला किसान पुरुषों से पीछे नहीं हैं. उन्हें खेतीकिसानी की हर तरह की जानकारी थी. विजेताओं को पुरस्कार भी दिए गए.

खास स्टाल

मेले में लगे स्टालों में बीज उत्पादक व कीटनाशक कंपनियों में नुजिवीडू सीड्स, श्रीराम फर्टिलाइजर्स एंड कैमिकल, महिंद्रा एंड महिंद्रा लि., एग्री बिजनेस, एग्रो सीड्स, संपूर्ण एग्री वेंचर्स प्रा. लि., भारत इंसेक्टिसाइड्स लि., सल्फर मिल्स लि., क्राप कैमिकल्स इंडिया लि., रैलीज इंडिया लि., पीएल इंडस्ट्रीज लि., एरीज एग्रो लि., बायर क्राप सांइस लि., एसपी इंडिया जैसी अनेक छोटीबड़ी कंपनियां शामिल थीं. दिल्ली प्रेस से प्रकाशित कृषि पत्रिका ‘फार्म एन फूड’ के स्टाल पर भी किसानों की भीड़ देखने को मिली.

नए बजट से किसानों को राहत या उन्हें लुभाने का नया अंदाज

साल 2015-16 का बजट गांव, गरीब व किसानों के लिए है, ऐसा कहा जा रहा है. वित्तमंत्री अरुण जेटली के बजट भाषण व की गई घोषणाओं से हट कर कुछ नया करने की झलक मिलती है. उदाहरण के तौर पर पिछले साल खेती के लिए कुल तय रकम 25 हजार करोड़ रुपए को इस बार बढ़ा कर 44 हजार करोड़ रुपए कर दिया गया है.

अपना इंतजाम पक्का

बजट के अनुसार इस साल सरकारी खर्च में होने वाली बढ़ोतरी के मद्देनजर सेवा कर में कृषि सेस का उपकर लगा कर सरकार ने अपनी आमदनी बढ़ाने का तो पक्का इंतजाम कर लिया है, लेकिन किसानों की आमदनी अगले 5 सालों में बढ़ कर दोगुनी होने की बात की गई है. ऐसी बातें तो पहले भी कही जा चुकी हैं. गौरतलब है कि सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह हर साल महंगाई भत्ते व सालाना बढ़ोतरी के जरीए करीब 15 से 20 फीसदी तक बढ़ जाती है. बेशक गांव व गरीबों के नाम पर चली बहुत सी स्कीमों में पानी की तरह पैसा बहाया जाता रहा है, लेकिन किसानों की आमदनी बढ़ाने का ऐसा कोई तरीका अभी तक नहीं निकाला गया है.

यह बात आज किसी से छिपी नहीं है कि ऊपर से चला पैसा, घपले, घोटालों  गड़बड़ी के कारण नीचे गांवगरीब तक पूरा नहीं पहुंचता. ज्यादातर सरकारी कर्मचारी निकम्मे हैं व भ्रष्ट हैं. वे गांव, गरीब व किसानों के फायदे की ज्यादातर बातों की जानकारी छिपा कर रखते हैं. लिहाजा ज्यादातर विकास योजनाओं की किसानों को खबर तक नहीं दी जाती. अकसर मक्कार, असरदार, दबंग नेता आपस में बंदरबांट कर लेते हैं और गरीब किसानों को मिलने वाली छूट, कर्ज व दूसरी सुविधाएं हड़प जाते हैं. यही वजह है कि सरकार की तरफ से चल रही कोशिशों के बावजूद छोटे किसान परेशान हैं.

हाल में की गई आर्थिक समीक्षा के मुताबिक राशन, रसोई गैस, रेल व बिजली आदि में गरीबों को सालाना 1 लाख करोड़ रुपए की भारी छूट दी जा रही है, लेकिन इस का बड़ा हिस्सा आज भी अमीरों के खाते में जा रहा है. काफी हद तक गरीबों के हक छीने जा रहे हैं. लिहाजा इस पर सख्ती से नकेल कसना बेहद जरूरी है.

बदलाव जरूरी

गांवों में खुशहाली लाने के लिए सिर्फ बजट में अरबोंखरबों की रकम खर्च के लिए रख देना ही काफी नहीं है. खेती, बागबानी व उस से जुड़े दूसरे विभागों के बुनियादी ढांचे और काम करने के तरीकों में सुधार करना भी जरूरी है. इस के लिए कड़े व सही कदम उठाना भी लाजिम है, वरना कोई नतीजा नहीं निकलेगा. बजट से पहले की आर्थिक समीक्षा में साफ कहा गया है कि पिछले साल यूरिया पर दी गई कुल छूट 50,300 करोड़ रुपए थी, लेकिन इस में से सिर्फ 35 फीसदी 17,500 करोड़ रुपए की छूट ही छोटे किसानों के हिस्से में आई, जबकि कुल छूट का करीब 2 तिहाई हिस्सा दूसरे ले गए. छोटे किसानों की लूट का यह सिलसिला बंद होना बेहद जरूरी है.

कड़े कदम

यूरिया पर दी जा रही सारी छूट सीधे किसानों को उन के बैंक खातों में दी जानी चाहिए. साथ ही साथ यूरिया की बिक्री को खुला कर दिया जाए तो खास बोआई के वक्त होने वाली यूरिया की कमी व कालाबाजारी खत्म हो सकती है और किसानों को बेवजह होने वाली परेशानी से राहत मिल सकती है. अब यह भी तय किया जाना चाहिए कि अपनी जोत के मुताबिक एक किसान कितनी बोरी छूट वाली यूरिया खरीद सकता है. साथ ही खरीदार की पहचान के लिए बायोमैट्रिक पहचान प्रणाली लागू होनी चाहिए. इस के अलावा मसला सिर्फ यूरिया में छूट की लूट का ही नहीं, न्यूनतम समर्थन मूल्य नीति में झोल का भी है.

कई खास फसलों की सरकारी खरीद नीति पर भी नए सिरे से गौर किया जाना चाहिए, क्योंकि कम से कम दाम तय करने का फायदा भी छोटे किसानों को पूरा नहीं मिल रहा है. यदि किसी उपज का बाजार भाव नीचे गिर कर उस के न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम रहे तो सरकार को उस की कम से कम 50 फीसदी भरपाई करनी चाहिए.

नई तकनीक

आजकल स्मार्ट फोन का जमाना है. अमीर देशों में किसान मोबाइल फोन से ट्यूबवैल चलाने व बंद करने और कीड़ेमार दवा के छिड़काव व दूसरे कामों में औटोमैटिक उड़ने वाले ड्रोन का इस्तेमाल बखूबी कर रहे हैं, लेकिन हमारे देश में अभी ये सारी तकनीकें व मशीनें महंगी होने से हर किसान के बस की नहीं हैं. इन पर कोई छूट नहीं दी गई है. दूसरी सब से बड़ी व जरूरी बात यह है कि तेल, गैस, सोने व विमानईंधन आदि पर अमीरों को बंट रही गैर जरूरी सब्सिडी का बोझ घटा कर किसानों को सस्ते ब्याज पर कर्ज मुहैया कराया जाए, ताकि वे खुदकुशी करने पर मजबूर न हों. यदि गुरबत की वजह से किसानों की जमीनें बिकने की नौबत आती रही तो वे खेती कैसे करेंगे? सरकार की नीयत वाकई किसानों को राहत पहुंचाने व उन की आमदनी बढ़ाने की है तो कम से म  इतना जरूर किया जाना चाहिए कि गांव और खेती के नाम पर बंट रही सरकारी सब्सिडी का फायदा गरीब व जरूरतमंद किसानों को ही मिले, अमीरों को नहीं. मंडी में लगने वाले टैक्स कम व बिचौलिए कम से कम हों ताकि किसानों की उपज सीधे उपभोक्ताओं को मिले. तभी किसानों की आमदनी बढ़ेगी.

खेती को बढ़ावा देने और किसानों के भले की बहुत सी बातें इस से पहले भी बजट के दौरान बढ़ाचढ़ा कर की जाती रही हैं. बात तो तब है जबकि किसानों को माली हिफाजत मिले. खेती में उन का जोखिम घटे और उन की जानकारी व आमदनी बढ़े. इस के लिए रिसर्च स्टेशनों में हो रही खोजबीन व तकनीकी जानकारी का कारगर प्रचारप्रसार मुफ्त व्हाटसऐप वगैरह के जरीए चालू करना होगा. खेतीकिसानी से जुड़ी सारी सहूलियतें किसानों को एक ही छत के नीचे मुहैया कराई जानी चाहिए, ताकि उन्हें बेवजह इधरउधर धक्के न खाने पड़ें. छोटी व किफायती मशीनों के इस्तेमाल पर खास जोर दिया जाना चाहिए, ताकि कम जोत वाले किसानों का समय, धन व मेहनत बचे और वे भी ज्यादा पैदावार ले कर अपनी माली हालत सुधार सकें.

फूड प्रोसेसिंग

खेती से ज्यादा कमाई करना आज भी ज्यादातर किसानों के लिए एक चुनौती है. इस के लिए खास मुहिम चला कर गांवों में ही मौके बढ़ाए जाने चाहिए, ताकि किसान खुद तकनीक सीख कर फूड प्रोसेसिंग की अपनी इकाई लगा सकें और अपनी उपज से तैयार माल बना कर उस की कीमत बढ़ा सकें. ऐसा करना मुश्किल नहीं है.

मसले सुलझें

हर साल चीनीमिलों पर गन्ने की कीमतों का अरबोंखरबों रुपए का बकाया, दलहन व तिलहन की पैदावार में पिछड़ापन, पूरा प्रसंस्करण न होने से करीब 40 फीसदी अनाजों, फलों व सब्जियों की बरबादी और अधिक पैदावार होने पर किसानों को उन की उपज की वाजिब कीमत न मिलने जैसे मसले हल होने जरूरी हैं. तभी किसान कर्ज के जाल व सूद की मार से उबर कर चैन की सांस ले सकते हैं और उन के सपने सच हो सकते हैं. जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए खासतौर पर तकनीकी जानकारी, सस्ती मशीनें, औजार, बेहतर बीज व आर्थिक मदद दी जाए, ताकि किसानों को उन की उपज की कीमत ज्यादा मिले. इस के लिए सभी राज्य सरकारों को भी अब बिना देर किए आगे आना चाहिए, वरना केंद्र सरकार का बजट किसानों का हो कर भी कारगर सुधार नहीं कर पाएगा.      

असर दिखना जरूरी है

गांवों व खेती की दशा सुधारने के लिए केंद्र व राज्यों की सरकारों द्वारा चलाई जा रही योजनाओं व धन की कमी नहीं है. आजकल देश में प्रधानमंत्री सिंचाई योजना, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, मनरेगा, डिजिटल साक्षरता, डेरी योजना, मिट्टी की जांच व बीजों की परख, फसल बीमा योजना व कृषि उन्नति योजना आदि चल रही हैं, लेकिन इन के फायदों के साथसाथ तमाम अनसुलझे सवाल भी मौजूद हैं. भोलेभाले किसान भारीभरकम बजट का हिसाब भले ही न जानते हों, लेकिन सरकारी दावों की जमीनी हकीकत बहुत अच्छी तरह से समझते हैं. लिहाजा उन के मसलों पर ध्यान देना जरूरी है. खेती में बढ़ती लागत पर काबू पाना जरूरी है. किसानों के कर्ज पर गौर करना भी जरूरी है. साथ ही सरकारी योजनाओं का असर दिखना भी बेहद जरूरी है, ताकि गांवों, गरीबों व किसानों के हालात सुधर सकें और उन की तसवीर बदल कर बेहतर हो सके.

किसानों की पहुंच में हमारे कृषि यंत्र

भारत में आज भी लाखों किसान ऐसे हैं जिन की पहुंच कृषि यंत्रों तक नहीं है. बड़े किसान तो इन मशीनों का फायदा उठा रहे हैं, लेकिन छोटी जोत वाले किसान पुराने तरीके अपनाते हैं या किराए पर मशीनों से अपनी खेती का काम कराते हैं.

ऐसी स्थिति में खेती की मशीनों को छोटे किसानों तक पहुंचाना एक मुश्किल भरा काम है.

आज हरित क्रांति का दौर है. ऐसे समय में किसानों की पहुंच कृषि यंत्रों तक होनी चाहिए, जिस से वे कम समय और कम लागत में अपनी फसल से अच्छा मुनाफा ले सकें.

सरकार भी किसानों के लिए कृषि यंत्रों पर सब्सिडी देती है, जिस का फायदा किसान उठा रहे हैं और अनेक छोटेबड़े मशीन निर्माता किसानों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए खेती से जुड़ी मशीनें बना रहे हैं.

इसी बाबत हमारी बात बलविंदर सिंह से हुई, जो किसानों की जरूरत को ध्यान में रख कर कई तरह के कृषि यंत्रों को बना रहे हैं, जिन्हें आम किसान भी आसानी से खरीद कर अपनी खेती की पैदावार बढ़ा सकते हैं. इस के साथ ही दूसरे किसानों का खेती का काम कर के भी अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं.

‘मघर सिंह भजन सिंह एंड संस’ के मालिक बलविंदर सिंह ने बताया कि हम 1952 से कृषि की मशीनें बना रहे हैं और हमारे नाम से ही मशीनें बिक जाती हैं. मशीनों की कीमत ऐसी कि किसान आसानी से खरीद सकें, हमारी बनाई मशीनों की कीमत 10 हजार रुपए से शुरू होती है.

उन्होंने आगे बताया कि वे लगभग 10-12 तरह की मशीनें बना रहे हैं, जिन में कल्टीवेटर, सीडड्रिल, ट्रौली, ग्रास कटर, डिस्क प्लग, डिस्क हैरो व टैंकर आदि हैं.

कल्टीवेटर है खास : बलविंदर सिंह का कहना है कि हमारे बनाए कल्टीवेटर की खासी मांग है. हम 2 तरह के कल्टीवेटर बनाते हैं. पहला कल्टीवेटर सिंगल स्प्रिंग वाला है, जिस का वजन 9 से 13 टन तक होता?है, जिस में हैवी ड्यूटी पाइपों का इस्तेमाल किया गया है. दूसरा कल्टीवेटर पडलर है. इस के द्वारा खेत तैयार करने पर समय और पानी की बचत होती है.

ट्रैक्टर ट्रौली : हमारी कंपनी सिंगल जैक व डबल जैक वाली ट्रौली बनाती है. ट्रौली को जैक की मदद से अपनी जरूरत के अनुसार उठाया या झुकाया जा सकता?है. सिंगल जैक वाली ट्रौली का साइज 10×13 फुट व डबल जैक वाली ट्रौली का साइज 13×18 फुट है.

ग्रास कटर : स्टब मास्टर के नाम से मशहूर ग्रास कटर का वजन लगभग 315 किलोग्राम है, जिस की कार्य क्षमता 5 फुट एरिया तक है.

डिस्क हैरो : इस हैरो का साइज 7×7 से ले कर 11×11 फुट तक है. यह मजबूत एंगलों से बना है और डिस्क का साइज 24 इंच है.

टैंकर : 1500 लीटर से ले कर 4 हजार लीटर तक टैंक भी हमारी कंपनी द्वारा बनाए जाते हैं, जिन्हें पानी के टैंकर या तेल के टैंकर वगैरह के रूप में इस्तेमाल करते हैं.

बलबिंदर सिंह ने बताया कि हमारी मशीन की पहुंच पंजाब के अलावा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल, बिहार व राजस्थान जैसे अनेक राज्यों में है. हम मशीनें उच्च क्वालिटी के मैटीरियल से बनाते हैं. खुद अपनी निगरानी में मशीनों का निर्माण कराते हैं. किसान हमारी मशीनों का इस्तेमाल कर के मुनाफे में ही रहेंगे.

अगर आप भी इन की मशीनों से जुड़ी ज्यादा जानकारी चाहते हैं, तो बलबिंदर सिंह के फोन नंबर 09815099844 और गुरपाल सिंह के नंबर 08146806669 पर बात कर सकते हैं. इस के अलावा इन की फैक्टरी ‘मघर सिंह भजन सिंह एंड संस’ के नंबर 0161-5057844 पर भी जानकारी ले सकते हैं.

 

PF के ब्याज पर वित्त-श्रम मंत्रालय आमने-सामने

कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) जमाओं के ब्याज दर को लेकर वित्त और श्रम मंत्रालयों के बीच लड़ाई छिड़ती नजर आ रही है. वित्त मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2015-16 के लिए इन जमाओं पर 8.7 प्रतिशत ब्याज देने का फैसला किया है जबकि ईपीएफओ ने 8.8 प्रतिशत की सिफारिश की थी. 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समर्थित भारतीय मजदूर संघ सहित अन्य श्रमिक संगठनों ने ब्याज दर में इस कटौती की आलोचना की है. वहीं श्रम मंत्रालय इस बारे में वित्त मंत्रालय के फैसले की समीक्षा करवाने की योजना बना रहा है.

सीबीटी का प्रस्ताव था अलग

श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने लोकसभा में एक लिखित जवाब में कहा,‘ईपीएफओ के निर्णय लेने वाले शीर्ष निकाय सीबीटी की फरवरी, 2016 में हुई बैठक में 2015-16 के लिए केंद्रीय भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के 5 करोड़ से अधिक अंशधारकों के लिए 8.8 प्रतिशत की अंतरिम दर से ब्याज दिए जाने का प्रस्ताव रखा था. हालांकि, वित्त मंत्रालय ने 8.7 प्रतिशत की ब्याज दर मंजूर की है.’ दत्तात्रेय सहित श्रम मंत्रालय के आला अफसरों ने इस मुद्दे पर दो घंटे से भी अधिक समय तक विचार विमर्श किया.

श्रम मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि मंत्रालय, वित्त मंत्रालय के फैसले की समीक्षा चाहेगा क्योंकि ईपीएफओ के पास 2015-16 के लिए ऊंचा रिटर्न देने के लिए पर्याप्त आय है. संभवत: यह पहला अवसर है जब वित्त मंत्रालय ने ईपीएफओ के केंद्रीय न्यासी बोर्ड (सीबीटी) के फैसले को दरकिनार करते हुए अंशधारकों को देय ब्याज में कमी की है. यानी उसने श्रम मंत्री की अध्यक्षता वाले सीबीटी की सिफारिश को नहीं माना है.

यह ईपीएफओ की स्वायत्ता में हस्तक्षेप

वहीं श्रमिक संगठनों की लगभग एक राय है कि वित्त मंत्रालय का उक्त फैसला कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईएफओ) की स्वायत्ता में हस्तक्षेप है. भारतीय मजदूर संघ के महासचिव वृजेश उपाध्याय ने कहा, बीएमएस कर्मचारी भविष्य निधि ब्याज दरों में कटौती की पुरजोर आलोचना करता है और 27 अप्रैल को ईपीएफओ कार्यालयों पर प्रदर्शन करेगा.

उन्होंने यह भी कहा कि कोष का प्रबंधन केंद्रीय न्यासी बोर्ड(सीबीटी)करता है, जो एक स्वतंत्र तथा स्वायत्त निकाय है. उन्होंने कहा कि वित्त मंत्रालय का कोष के कामकाज से कुछ भी लेना-देना नहीं है, क्योंकि न तो उसका वित्त पोषण करता है और न ही उसका प्रबंधन.

 

खूबियों से भरपूर सोलर सिस्टम स्प्रे मशीन

सरकार व वैज्ञानिक किसानों की खुशहाली के लिए मशीनों से खेती करने की बात करते हैं. मगर छोटी या मध्यम जोत के किसान यदि मशीनी खेती करना भी चाहें, तो ज्यादातर मशीनों के बिजली या ईंधन चालित होने की वजह से लागत बढ़ जाती है. इतना सब होने के बावजूद अगर मशीन बिजली चालित है, तो ग्रामीण इलाकों में बिजली की कटौती एक बड़ी समस्या बन कर उभरती है. ऐसे में किसानों द्वारा सूर्य की रोशनी से चलने वाले कृषि यंत्रों को अपनाना बेहतर साबित होगा. इस से न सिर्फ बिजली या ईंधन पर आने वाली लागत शून्य होगी, बल्कि पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा. हाल ही में मध्य प्रदेश के इंदौर स्थित एक फर्म ने सूरज की रोशनी से चलने वाली एक स्प्रे पंप मशीन ईजाद की है, जो बिक्री के लिए बाजार में आ चुकी है. फर्म ने इसे ‘धूप सोलर स्प्रे पंप 999’ के नाम से बाजार में उतारा है. यह मशीन इनबिल्ट बैटरी से लैस होने के कारण डीसी पावर से चलती है और जरूरत पड़ने पर छोटे इन्वर्टर के रूप में भी इस्तेमाल की जा सकती है.

खूबियां : फर्म के दावों के मुताबिक इस सोलर सिस्टम स्प्रे मशीन की निम्न खूबियां हैं:

* खेतों व बागों में पोशक तत्त्वों व दवाओं के छिड़काव के लिए ज्यादातर किराए पर मशीन ली जाती है या बिजली और ईंधन द्वारा चालित मशीनें इस्तेमाल होती हैं, जिन पर काफी लागत आती है. यह सोलर सिस्टम स्प्रे पंप मशीन पूरी तरह से सूरज की रोशनी से चलती है. लिहाजा शुरुआती लागत के बाद कोई खर्च नहीं होता है.

* इसे किसान पीठ पर लाद कर या किसी जगह रख कर इस्तेमाल कर सकते हैं.

* एकसाथ 2 फव्वारा प्रेशर की कूवत.

* 100 पीएसआई की प्रेशर मोटर.

* 16 लीटर स्प्रेयर पंप का टैंक.

* उच्च गुणवत्ता वाला स्प्रे पाइप.

* उच्च गुणवत्ता का बैटरी बैकअप सिस्टम.

* पंप सेट का कुल वजन 7 किलोग्राम से कम.

* अच्छी गुणवत्ता वाली सिलिकान सोलर प्लेट.

* रात में छिड़काव के लिए लेड लाइट का इंतजाम.

* मशीन में मोबाइल चार्जिंग की भी सुविधा.

* बैटरी चार्जिंग सुविधा होने के कारण छिड़काव के साथसाथ चार्जिंग होने और 1 बार चार्ज कर लेने पर दिन भर छिड़काव करने की सुविधा.

* सौ फीसदी ईंधन या बिजली की बचत.

कीमत : बाजार में इस की कीमत 6 हजार रुपए है. सोलर प्लेट और पंप की कुछ सालों की गारंटी भी है.

मौजूदगी : कंपनी के लखन पाटीहार का दावा है कि यह मशीन मध्य प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र, गुजरात व राजस्थान सूबों के खास शहरों में भी मिलती है.

ज्यादा जानकारी के लिए कंपनी के मोबाइल नंबरों 07316999950, 09165416309 व 09009354050 पर संपर्क किया जा सकता है.

कंपनी के दफ्तर का पता है : 7, पटेल विहार कालोनी, कनाडिया रोड, बंगाली चौराहा, इंदौर, मध्य प्रदेश.

खेती जगत से जुड़े अप्रैल के जरूरी काम

गरमी से भरपूर अप्रैल का महीना भी खेतीकिसानी के लिहाज से अन्य महीनों की तरह ही खास होता है. अप्रैलफूल से शुरू होने वाले इस महीने के मूर्ख बनाने वाले मकसद में ज्यादा किसानों की दिलचस्पी नहीं होती, मगर इस महीने का बैसाखी का त्योहार उन के लिए खास होता है. वैसे भी कुछ ही अरसा पहले आई होली को भी वे इतनी जल्दी नहीं भूलते और उसी नशे में अपने कामों में जुटे रहते हैं. जश्न और मौजमजे से हट कर अप्रैल में रबी की तमाम फसलों की कटाई चालू हो जाती है और जायद की फसलें खेतों में शबाब पर पहुंच रही होती हैं. पेश है एक ब्योरा अप्रैल के दौरान होने वाले खेती से जुड़े खासखास कामों का :

* शुरुआत रोटी की फसल यानी गेहूं से करें तो अप्रैल तक गेहूं की फसल पक कर तैयार हो चुकी होती है. ऐसे में अप्रैल में गेहूं की कटाई का काम ही सब से ज्यादा जरूरी माना जा सकता है. गेहूं की कटाई खत्म करने के बाद जो सुकून किसानों को मिलता है, वह अनोखा होता है.

* बात गेहूं की कटाई पर ही नहीं थम जाती. गेहूं की फसल को बाकायदा सुखा कर उस की गहाई करना भी बेहद अहम होता है.

* आमतौर पर अपने गेहूं को किसान जल्दी से जल्दी बेच कर पैसे खड़े करने में यकीन करते हैं. सरकार भी बड़े पैमाने पर गेहूं की खरीद करती है. मगर दाम कम होने या किसी दूसरी वजह से गेहूं को फौरन न बेच कर उस का भंडारण करना पड़े तो उस के लिए नवीनतम तकनीक को अपनाना चाहिए.

* एक जमाने में भले ही चने की इज्जत नहीं थी और उसे नौकरचाकरों व गरीबों का अन्न माना जाता था, मगर अब चने के दिन फिर चुके हैं और उस की हैसियत किसी सुपर स्टार अनाज जैसी है. यह स्टार अनाज भी अप्रैल तक पक कर कटाई के लिए तैयार हो जाता है, लिहाजा इस की कटाई भी फटाफट निबटा लेनी चाहिए. आजकल कमाई के लिहाज से चने की फसल का गेहूं से कहीं ज्यादा रुतबा है.

*  चने की समय से बोई गई फसल तो अप्रैल में कटाई लायक हो जाती है, पर देरी से बोई गई फसल काटने लायक होने में कुछ और वक्त लगता है. अप्रैल के आसपास इस में दाने तो पड़ने लगते हैं, मगर कटाई की नौबत अगले महीने तक आती है.

* चने की देरी से बोई जाने वाली फसल की कटाई तो देरी से ही होगी, लेकिन इस की देखभाल में कोताही न बरतें. इस दौरान इस में फलीछेदक कीट के हमले का डर रहता है. अगर ऐसा अंदेशा लगे तो कृषि वैज्ञानिकों से राय ले कर मुनासिब दवा का इस्तेमाल करें.

* वैसे तो आजकल मौसम का कोई दीनईमान नहीं रह गया है यानी कभी भी जाड़ा, गरमी या बरसात का नजारा देखने को मिल सकता है, लेकिन मोटे तौर पर अप्रैल में बारिश नहीं होती है. अकसर अप्रैल के दौरान खेत सूखने लगते हैं, ऐसी हालत में गन्ने के खेतों में सिंचाई करते रहना चाहिए.

* सिंचाई के अलावा अपने गन्ने के खेत में सही तरीके से निराईगुड़ाई करें और खरपतवारों के प्रति सजग रहें, क्योंकि खरपतवार गन्ने की खुराक में हिस्सा बंटा लेते हैं.

* गन्ने के खेत की निराईगुड़ाई से पहले खेत में अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद व कंपोस्ट खाद डालें. केंचुआ खाद का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. खाद डालने के बाद कायदे से निराईगुड़ाई करने से तमाम किस्म की खादें खेत की मिट्टी में अच्छी तरह मिल जाती हैं. इस से मिट्टी की पानी सोखने की कूवत में खासा इजाफा होता है. नतीजतन गन्ने ज्यादा बेहतर और रसीले होते हैं और उपज में भी इजाफा होता है.

* अप्रैल के दौरान ही बैसाखी की मूंग बोने का भी माकूल समय होता है. बोआई का यह काम मध्य अप्रैल तक निबटा लेना मुनासिब होता है.

* पिछले महीने बोई गई मूंग की भी खोजखबर लेते रहना चाहिए. आमतौर पर इस दौरान इसे सिंचाई की जरूरत पड़ सकती है. अगर मूंग के खेत सूखे होते नजर आएं तो बगैर वक्त बरबाद किए सिंचाई करें.

* गेहूंचना, दालचावल वगैरह इनसानों के लिए जरूरी होते हैं, तो जानवरों यानी मवेशियों को भी हमेशा चारे की दरकार रहती है. मवेशियों के चारे के लिए अप्रैल में बाजरा, मक्का व लोबिया वगैरह की बोआई की जा सकती है.

* 2 महीने पहले बोई गई चारे की फसलों को नाइट्रोजन की खुराक मुहैया कराएं. इस के लिए खेत में यूरिया खाद का इस्तेमाल करें और खेत में नमी बराबर बरकरार रखें.

* सूरजमुखी की फसल में अप्रैल तक फूल आने लगते हैं. इस दौरान खेत की निराईगुड़ाई करना बेहद जरूरी होता है. निराईगुड़ाई करने से फूलों की तादाद व क्वालिटी पर काफी असर पड़ता है.

* सूरजमुखी के खेत अगर सूख रहे हों, तो फौरन सिंचाई करें. पौधों की बढ़वार में कोई कसर नजर आए, तो यूरिया खाद का छिड़काव करें.

* अप्रैल के पहले हफ्ते के दौरान तुरई की नर्सरी डालें, ताकि सही वक्त पर पौध तैयार हो सकें. पिछले महीनों के दौरान डाली गई नर्सरी की पौध तैयार हो चुकी होगी, लिहाजा रोपाई का काम निबटाएं. रोपाई 50×100 सेंटीमीटर के फासले पर करें. रोपाई के बाद हलकी सिंचाई जरूर करें.

* अप्रैल में अरवी की अगेती किस्मों की बोआई का काम निबटा दें, ताकि समय पर फसल हाथ आ सके.

* अप्रैल में फूलगोभी की बीज वाली फसल कटाई लायक हो जाती है, लिहाजा इस की कटाई का काम खत्म करें. काटने के बाद फसल को सुखा कर बीज निकालें. बीजों को बाकायदा पैक कर के उन का भंडारण करें.

* साल की शुरुआत में नर्सरी में तैयार किए गए लौकी व करेले के पौधों की रोपाई करें. लौकी के पौधों की रोपाई 2×1 मीटर दूरी पर और करेले के पौधों की रोपाई 150×60 सेंटीमीटर के फासले पर करें.

* पिछले महीने रोपी गई बैगन की क्यारियों में निराईगुड़ाई करें. नमी कम लगे तो सिंचाई भी जरूर करें. बेहतर फसल के लिए यूरिया खाद का इस्तेमाल करें.

* अप्रैल तक गाजर व मूली की बीज वाली फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है, लिहाजा उस की कटाई करें. फिर फसल को सुखा कर बीज निकालें. बीजों को सही तरीके से सुखा कर पैक करें और फिर भंडारण करें.

* शिमला मिर्च के खेतों में निराईगुड़ाई कर के जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें. नाइट्रोजन की कमी दूर करने के लिए यूरिया खाद का इस्तेमाल करें. इस से फसल उम्दा होगी.

* इसी महीने अदरक की बोआई का काम भी निबटाएं. बोआई के लिए करीब 20 ग्राम वजन के कंदों का इस्तेमाल करें. अदरक की बोआई 30-40 सेंटीमीटर की दूरी पर मेड़ें बना कर करें. 2 कंदों के बीच करीब 20 सेंटीमीटर का फासला रखें.

* अप्रैल के दौरान ही लहसुन की फसल की खुदाई का काम भी निबटाएं. खोदने के बाद फसल को 3 दिनों के लिए खेत में ही छोड़ दें. चौथे दिन फसल को छायादार जगह पर रखें और ठीक से सुखाएं. पूरी तरह सूखने के बाद ही लहसुन का भंडारण करें.

* आमखोर लोग अप्रैल से ही आमों की बाट जोहने लगते हैं. अपने आम के बागों की सिंचाई करें, ताकि नमी कायम रहे. पेड़ों पर बीमारियों या कीड़ों के लक्षण दिखाई दें तो फौरन कृषि वैज्ञानिक की राय से बचाव का इंतजाम करें.

* अपने अमरूद के बागों  की भी सफाई करें और जरूरत के हिसाब  से निराईगुड़ाई व सिंचाई करें. कीटबीमारियों के हमले नजर आएं तो उन का भी इलाज करें.

* ठंड का दौर थमने से मवेशियों को बेहद राहत मिलती है, मगर उन के प्रति लापरवाही न बरतें. कोई भी मौसम पशुओं को अपनी चपेट में ले सकता है, लिहाजा मौका निकाल कर माहिर डाक्टर से अपने मवेशियों की जांच कराएं.

* पशुओं का डाक्टर कोई दवा वगैरह बताए, तो उस के इस्तेमाल में लापरवाही न बरतें. पशुओं को जरूरी टीके वगैरह लगवाने में कोताही नहीं बरतनी चाहिए.

* भारीभरकम मवेशियों के साथसाथ छोटेमोटे मुरगामुरगी व चूजों का भी पूरा खयाल रखना लाजिम है, लिहाजा पशुओं के डाक्टर से उन की भी जांच कराएं.

कम लागत में फलों व सब्जियों का रखरखाव

खाने में शमिल पोषक कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन और खनिज इनसानों के विकास के लिए बहुत जरूरी?हैं.

ये शरीर के ऊतकों की देखभाल व मरम्मत, जीवन प्रक्रिया को बनाए रखने और शरीर को ताकत देने के लिए जरूरी हैं. लिहाजा अच्छी सेहत के लिए हमारे खाने में इन का होना बहुत जरूरी है. ताजे फलों व सब्जियों को रक्षा करने वाला खाना माना गया है. सब्जियां और फल हमारे शरीर में विटामिनों व खनिज तत्त्वों की कमी पूरी करते?हैं. तोड़ने के बाद भी फल व सब्जियां जीवित रहते हैं और उन में सांस लेने की क्रिया होती रहती है. रासायनिक कारणों से फल व सब्जियों में सड़नगलन हो सकती?है. इसलिए इन्हें खराब होने से बचाने के लिए सावधानी से तोड़ना व संभाल कर रखना जरूरी?है. तोड़ाई के समय ध्यान रखना चाहिए कि फल और सब्जी को किसी प्रकार का नुकसान न होने पाए.

तोड़ाई व कटाई के बाद से इस्तेमाल में लाने तक हर साल तकरीबन 25-40 फीसदी तक फलों व सब्जियों का नुकसान हो जाता है. लिहाजा सब्जियों और फलों की कीमत बढ़ जाती?है, जिस का असर खरीदार पर पड़ता है. मौसम में कई सब्जियां और फल काफी मात्रा में पैदा होते?हैं, जिस से किसानों को मजबूरन उन्हें सस्ता बेचना पड़ता है, क्योंकि उन के पास उन्हें रखने के सही साधन नहीं होते.

मौसम की सस्ती सब्जियों व फलों और घर के बगीचे के ताजे फलों व सब्जियों को तमाम उपायों द्वारा सुरक्षित रखा जा सकता है. ये उपाय हैं डब्बाबंदी, बर्फ में जमा कर रखना, पानी निकालना, मशीनों द्वारा सुखाना, ठंडे गोदामों में रखना वगैरह. लेकिन ये सब उपाय महंगे पड़ते हैं. लिहाजा जरूरत इस बात की है कि फलों व सब्जियों का रखरखाव करने के लिए आसान व सस्ते तरीके अपनाए जाएं. फलों व सब्जियों को रासायनिक घोल में रखना, रसायनों द्वारा देखभाल, धूप में सुखाना, अचार, चटनी, जैम, रस व शर्बत बनाना, फर्मेंटेशन आदि रखरखाव के सब से सरल और सस्ते तरीके हैं, जिन से फलों और सब्जियों को कुछ समय तक टिकाऊ बनाया जा सकता है. इन उपायों द्वारा रखरखाव के फायदे निम्नलिखित हैं:

* इस से सब्जियों व फलों के पौष्टिक तत्त्वों को नुकसान से बचाया जा सकता?है.

* सरल व सस्ते तरीकों से रखरखाव करने से किसानों को मौसम के दौरान अपने उत्पादों को सस्ता नहीं बेचना पड़ेगा.

* रखरखाव लागत कम आने से ग्राहक को भी सस्ते दामों पर सब्जी व फल मुहैया होंगे.

* मौसम की सब्जियों व फलों को साधारण रखरखाव द्वारा स्टोर कर के मौसम न होने पर भी इस्तेमाल किया जा सकता?है.

सब्जियों और फलों का रासायनिक रखरखाव

सब्जियों और फलों की देखभाल करने के लिए तमाम खाद्य रसायनों और रासायनिक घोलों का इस्तेमाल किया जाता?है. साधारण रसायन जैसे नमक, ग्लेशियल ऐसेटिक एसिड, पोटेशियम मेटाबाइसल्फाइट और सोडियम बेंजोएट आसानी से बाजार में मिल जाते?हैं और महंगे भी नहीं होते हैं. इन का प्रयोग फलों और सब्जियों की देखभाल करने के लिए किया जाता है. सब्जियों और फलों को कांच या चीनीमिट्टी के जार में सुरक्षित रखा जा सकता?है.

रासायनिक घोल द्वारा रखरखाव के लाभ

* यह विधि बहुत सरल व सस्ती है.

* इस तरीके से डब्बाबंदी या बोतलबंदी करने से सब्जियां व फल गलते व सड़ते नहीं हैं,?क्योंकि डब्बाबंदी व बोतलबंदी में ज्यादा तापमान दे कर रखे गए पदार्थों को जीवाणुरहित किया जाता है. इस से कभीकभी उन के रंगरूप में थोड़ा बदलाव हो जाता?है.

* इस विधि में मटर वगैरह को सुरक्षित रखने के लिए बनावटी रंग डालने की जरूरत नहीं पड़ती, जबकि डब्बाबंदी के लिए मटर में हरा रंग डाला जाता?है.

* सल्फर डाईआक्साइड (जो पोटेशियम मेटाइबाइसल्फाइट से मिलती है) सब्जियों के विटामिनों और अन्य पौष्टिक तत्त्वों को सुरक्षित रखने में सहायता करती है.

* रासायनिक घोल द्वारा सब्जियों को तकरीबन 6 महीने तक सुरक्षित रख सकते?हैं. कम तापमान (1.3 डिगरी सेंटीग्रेड) पर फलसब्जियां 1 साल से भी ज्यादा समय तक सुरक्षित रह सकती?हैं.

इस प्रकार इस विधि द्वारा मौसम न होने पर भी जब भी चाहें फल या सब्जी का स्वाद ले सकते?हैं.

सब्जियों और फलों का किण्वन द्वारा रखरखाव

किण्वन विधि से भी सब्जियों को काफी समय तक सुरक्षित रख सकते?हैं. इस विधि से न केवल सब्जियों को नष्ट होने से बचा सकते?हैं, बल्कि इस से उन के पौष्टिक और खनिज तत्त्व भी नष्ट नहीं होते हैं.

किण्वन के दौरान सब्जियों में लैक्टिक अम्ल बनाने वाले जीवाणुओं द्वारा सब्जियों की प्राकृतिक शक्कर लैक्टिक अम्ल में बदल जाती?है. यह लैक्टिक अम्ल सब्जियों की सुरक्षा करने में सहायक होता है.

किण्वन के लिए सब्जियों का चुनाव करते समय यह ध्यान रखें कि सब्जियां ताजी हों और सड़ीगली व ज्यादा पकी हुई न हों. सब से पहले सब्जियों को साफ पानी से धो लें. काटने के लिए केवल स्टील के चाकू का ही इस्तेमाल करें.

पत्तागोभी के बाहर के पत्ते व अंदर का डंठल हटा कर बारीक काट लें. मटर को छील कर दाने निकाल लें. मूली, गाजर, शलजम को छील कर छोटेछोटे टुकड़ों में काट लें. फूलगोभी, अधपके टमाटर और सेम को भी छोटेछोटे टुकड़ों में काट लें. फलों में अधपके पपीते का किण्वन किया जा सकता?है. किण्वन के लिए 2-3 फीसदी नमक और 1.0 से 1.5 फीसदी राई का प्रयोग किया जाता है.

चूंकि पत्तागोभी, मूली व गाजर में किण्वन करने वाले जीवाणु अधिक संख्या में पाए जाते?हैं, इसलिए ये सब किण्वीकरण के लिए ज्यादा उपयोगी?हैं. इन में से पत्तागोभी सब से बढि़या है. लिहाजा अन्य सब्जियों, अधपके पपीतों व टमाटरों को पत्तागोभी के साथ किण्वित किया जा सकता है. अन्य सब्जियों को पत्तागोभी के साथ किण्वित करने के लिए इन की मात्रा पत्तागोभी के बराबर या कम होनी चाहिए. उपरोक्त सामग्री को अच्छी प्रकार मिला कर कांच के जार में गरदन तक भर दें. जार में सब्जियां भरने से पहले जार को अच्छी तरह धो कर सुखा लें व पोंछ लें. रोज एक बार जार को अच्छी तरह हिलाते रहना चाहिए ताकि सब्जियों का किण्वन ठीक प्रकार से हो सके और वे खराब न हों. किण्वित पदार्थों को?छायादार स्थान पर रखें. जहां तक हो सके इन्हें कम तापमान वाले?ठंडे स्थान पर रखें. किण्वित पदार्थ डेढ़ से 2 महीने तक सामान्य तापमान पर बिना किसी रसायन के रखे जा सकते?हैं. कम तापमान पर (4 से 5 डिगरी सेंटीगे्रड) इन को 4-5 महीनों तक रख सकते?हैं.

फलों के गूदे व रस का रखरखाव

सब्जियों की तरह फल भी हमारे दैनिक संतुलित आहार का आवश्यक अंग हैं. ये हमारे खाने में विटामिनों व खनिज लवणों की कमी पूरी करते?हैं. फल हमारी पाचनशक्ति ठीक रखते हैं और भूख बढ़ाते हैं. मौसमी फलों का रखरखाव कई प्रकार से किया जा सकता है. सब से सरल व सस्ता तरीका है, उन के गूदे व रस को रसायनों के इस्तेमाल द्वारा सुरक्षित रखना ताकि जब भी चाहें इन का इस्तेमाल तरहतरह के ठंडे पेय जैसे जूस, स्क्वैश, शर्बत आदि बनाने में किया जा सके. इस से जैम और चटनी भी तैयार की जा सकती?है.       

रखरखाव (परिरक्षण) के निम्नलिखित लाभ हैं

* मौसमी फलों के गूदे व रस को स्टोर करना ज्यादा उपयोगी है,?क्योंकि 1 बोतल गूदे या रस से 3 बोतल स्क्वैश बनाया जा सकता?है. इस तरह से बोतलें भी कम खर्च होंगी और स्टोर करने के लिए जगह भी कम लगेगी.

* रासायनिक विधि द्वारा परिरक्षित करने से लागत भी कम आती?है (25-30 पैसे प्रति किलोग्राम) और फलों के गूदे व रस का रंग, स्वाद व पौष्टिकता भी बनी रहती?है.

* ताजे फल तोड़ने के बाद जल्दी ही खराब हो जाते?हैं. इसलिए इस विधि से इन्हें गूदे व रस के रूप में टिकाऊ बना कर नष्ट होने से बचा सकते?हैं. इच्छानुसार या आवश्यकता पड़ने पर इन का इस्तेमाल स्क्वैश, शर्बत, जैम, चटनी आदि बनाने में कर सकते हैं. इस प्रकार हम पूरे साल विभिन्न फलों के स्वाद का आनंद उठा सकते हैं.

अचार व चटनी को टिकाऊ बनाने के तरीके

भारतीय भोजन में अचार व चटनी का विशेष स्थान है. देश के अलगअलग भागों में अचार व चटनी बनाने के अलगअलग तरीके हैं. फलों जैसे आम, नीबू, कटहल व करौंदा और सब्जियों जैसे गाजर,  फूलगोभी, शलजम, टमाटर व मिर्च आदि में नमक, मिर्च, चीनी, मसाले व तेल आदि डाल कर अचार व चटनी बनाई जा सकती?है. अमूमन सभी घरों में अचार व चटनी बनाए जाते हैं, लेकिन कई बार बहुत सावधानी बरतने के बाद भी ये पदार्थ खराब हो जाते?हैं. इन का रंग बदल जाता है या फफूंदी आदि लग जाती है. इन को खराब होने से बचाने और अधिक समय तक सुरक्षित रखने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते?हैं:

* अचार या चटनी बनाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि फल या सब्जी का चुनाव ठीक से किया जाए. कोई भी खराब फल या सब्जी नहीं लेनी चाहिए और काटने से पहले उन्हें साफ पानी से अच्छी तरह धो लेना चाहिए.

* अमूमन नमक कम मात्रा में डालने से अचार खराब हो जाता?है, लिहाजा अचार में नमक की मात्रा ठीक होनी चाहिए. खट्टे फलों के लिए 15-20 फीसदी और सब्जियों के लिए 8-10 फीसदी नमक डालना चाहिए.

* कुछ रसायनों का प्रयोग कर के अचार व चटनी को टिकाऊ बनाया जा सकता?है. ऐसा ही एक रसायन ग्लेशियल ऐसेटिक एसिड है, जो फफूंदी व कीटाणुनाशक है. अचार तैयार हो जाने पर इसे तेल डालने से पहले अचार में 0.5 फीसदी तक मिलादें. नीबू के अचार में इस की जरूरत नहीं?है, क्योंकि नीबू में कुदरती रूप से ही अम्ल की मात्रा ज्यादा होती है. सौस या चटनी में?ग्लेशियल ऐसेटिक एसिड (0.5 फीसदी) डाल कर 5 मिनट तक उबालना चाहिए.

* अचार व चटनी वगैरह में 200 मिलीलीटर पोटेशियम मेटाबाइसल्फाइट या 300 मिलीलीटर सोडियम बेंजोएट प्रति किलोग्राम के हिसाब से थोड़े से पानी में घोल कर मिलाने से भी इन्हें खराब होने से बचाया जा सकता?है.

* अचार में तेल को गरम कर के?ठंडा करने के बाद ही मिलाएं.

* अचार व चटनी में पिसे हुए मसालों को हलका सूखा भून कर डालें. इस से?भी अचार व चटनी जल्दी खराब नहीं होते. अचार में मसालों को गरम तेल में?भून कर भी डाल सकते हैं. इस से इन पदार्थों का रंग व स्वाद ठीक रहेगा और ये जल्दी खराब भी नहीं होंगे

– अनिता यादव, डा. अनंत कुमार, डा. बीना यादव

(कृषि विज्ञान केंद्र, मुरादनगर, गाजियाबाद)

 

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