खूबसूरती का खजाना : ये मोहक और हसीन नजारे हैं नए साल की शुरुआत में सिलीगुड़ी में हुए सालाना हस्तशिल्प मेले के. असली से भी ज्यादा जानदार नजर आने वाले फूलों व रंगबिरंगे फूलदानों का यह संगम कला का कमाल कहा जा सकता है.
खूबसूरती का खजाना : ये मोहक और हसीन नजारे हैं नए साल की शुरुआत में सिलीगुड़ी में हुए सालाना हस्तशिल्प मेले के. असली से भी ज्यादा जानदार नजर आने वाले फूलों व रंगबिरंगे फूलदानों का यह संगम कला का कमाल कहा जा सकता है.
मध्य प्रेदेश ही वह राज्य है जहां से दलित उत्थान के नए नए लेकिन खुराफाती फार्मूले निकल रहे हैं इनमे से एक ताजातरीन है कि सरकार अब दलित युवतियों को पंडित पुरोहित बनाएगी इस बाबत राज्य के अनुसूचित कल्याण विभाग ने नक्शा बनाकर उसे पास भी कर दिया है । इस हैरतअंगेज योजना के तहत दलित युवतियों को चयनित कर उन्हे बाकायदा कर्मकांडो का प्रशिक्षण दिया जाएगा उम्मेदवार को बस दो मामूली शर्तों पर खरा उतरना है पहली यह कि वह दसवी पास हो और दूसरी उसका मध्य प्रदेश का मूल निवासी जरूरी होना है ।
विभाग द्वारा इस की वजहें भी बड़ी दिलचस्प बताईं जा रही हैं कि सूबे मे पंडित कम हो चले हैं और जो हैं वो जातिगत भेदभाव के चलते छोटी जाति बालों के यहाँ शादी विवाह मुंडन सहित दूसरे कर्म कांड कराने नहीं जाते शूद्र ब्राह्मणो के मोहताज ना रहें इसलिए उनकी ही जातियों की लड़कियों को पंडिताई सिखाई जाएगी और प्रशिक्षण के दौरान उन्हे एक हजार रु महीना प्रोत्साहन राशि दी जाएगी । इन दिनो राज्य में सामाजिक समरसता का बड़ा हल्ला है जिसके तहत दलितों को सवर्णों जैसी फीलिंग कराने तमाम टोटके अपनाए जा रहे हैं ।
हकीकत कितनी साजिश भरी है इस पर विचार करें तो सरकार और उसे हांक रहे संघ और संघों पर तरस ही आता है । पंडितों की कमी का कोई आंकड़ा सामाजिक कल्याण विभाग या सरकार ने पेश नहीं किया है क्योंकि यह सरकारी पद नहीं है ना ही यह कोई बता रहा न ही बता पाएगा कि क्या अब तक ब्राह्मण पंडित कर्मकांडो के लिए दलितों के यहाँ जाते ही थे और जैसा कि यह विभाग खुलेआम मान रहा है कि कई जगह पंडित जातिगत भेदभाव के कारण दलितों के यहाँ नहीं जाते तो उनके खिलाफ क्यों काररवाई नहीं की गई , इस सवाल का जबाब बेहद साफ है कि कर्मकांड कोई संवैधानिक या कानूनी बाध्यता नहीं है ।
अब इसे बतौर बाध्यता लादने दलित लड़कियों को पंडित सरकारी तौर पर बनाया जा रहा है जिससे एक बात और स्पष्ट हो जाए कि बड़ी और छोटी जाति बालों के पंडे भी उनकी जाति के हिसाब से होंगे यानि शूद्र को शूद्र ही दिखाने यह षड्यंत्र रचा जा रहा है ,क्या प्रशिक्षित दलित जाति की पंडताइन को बड़ी जाति बाले अपने घर बुलाकर उसके पैर छुएंगे आदर सत्कार करेंगे जाहिर है नहीं तो ये स्वांग क्यों ? यह है असल वजहें – दरअसल मे भगवा खेमा एक तीर से 2 शिकार कर रहा है जिनमे तात्कालिक यह है कि दलित तबका कर्मकांडों मे उलझा रहे जब ओरिजनल पंडित नहीं जाते तो उसकी ही जाति मे पंडित पैदा कर दिये जाएँ हालांकि हर एक जाति का अपना अलग पंडा है यह बात सामाजिक कल्याण , अनुसूचित जाति कल्याण या दूसरे तमाम कल्याण विभाग जानते हैं पर मंशा चूंकि दलितों को हिन्दू कर्मकांडों मे फसाये रखने की है इसलिए उन्हे तिलक धारी पंडितों के जरिये ट्रेनिंग दिलबाने सरकारी तौर पर इंतजाम किए जा रहे हैं जिसमे कल के ( और आज के भी ) इन अछूतो मे उनकी छोटी जाति के होने का एहसास धार्मिक रूप से और बढ़े ।
दीर्घकालिक वजह जो ज्यादा अहम है वह यह है कि कैसे दलितों को खुद अपनी मर्जी से आरक्षण छोडने राजी या मजबूर किया जाए । साजिश पहले धीरे धीरे यह बताने जताने की है कि देखो तुम्हारे खपरैलों छपरेलों से भी यज्ञ हवन का धुआँ निकलने लगा है तुम्हारे यहाँ गौरी शंकर विराज गए हैं और मंत्रोच्चार होने लगा है तो फिर क्यों आरक्षण की आंबेडकर की पहनाई माला गले में लटकाए घूम रहे हो इसी के चलते तुम्हारे बड़े भाई यानि अनारक्षित जाति बाले तुम्हें लतियाते रहते हैं इसलिए बराबरी पर आने आरक्षण त्याग दो । पंडावाद सालों पहले दलितों को दबा कुचला रखने उन्हे जानवर समझता था अब मानव मात्र मानने तैयार हो रहा है क्योंकि इस समुदाय के पास भी पैसा दिखने लगा है और इस समुदाय के लोग भी जब तक ब्राह्मण पंडित के पैर नहीं छु लेते ,उसे दक्षिणा नहीं चढ़ा देते उन्हे भी चैन नहीं पड़ता वजह हिन्दू धर्म ग्रन्थों मे निर्देश बहुत स्पष्ट हैं कि ब्राह्मण ही तुम्हें तार सकता है ।
इस गुलाम मानसिकता को भुनाने मध्य प्रदेश की यह अनूठी पहल जल्द ही सरकारी उपलब्धियों में भी शुमार होगी कि देखो देश का पहला राज्य जिसमे सामाजिक समरसता के तहत इतनी दलित पंडिताइन दीं ।मुख्य धारा में शामिल होते दलितों को दूर रखने के इस नायाब तरीके से पिछड़े भी खुश होंगे कि वे अब घोषित तौर पर दलित नहीं रहे क्योंकि उनके यहाँ पुजा पाठ और कर्म कांड ब्राह्मण पंडित ही कराएगा यह वह दबंग वर्ग है जो तबीयत से दान दक्षिणा देता नहीं बल्कि लुटाता है ।
आजकल बौलीवुड में एक नई तरह की फिल्मों का टै्रंड बढ़ रहा है, जिन में 2-3 घंटे की फिल्म में प्यार, रोमांस, क्शन, थ्रिलर दिखाने के बजाय किसी सामाजिक मुद्दे को उठा कर 10-30 मिनट की शौर्ट फिल्में बनाई जा रही हैं और सोशल मीडिया के माध्यम से दर्शकों तक पहुंचाई जा रही हैं. जी हां आज सोशल मीडिया एक ऐसा मंच बन गया है जहां हर कोई निःसंकोच अपनी बात रख सकता है और यही वजह है कि बौलीवुड इंडस्ट्री के लोग भी इस की तरफ बढ़ रहे हैं. कुछ समय पहले ही डायरेक्टर इम्तियाज अली ने फेसबुक पर ‘इंडिया टुमौरो’ नाम से एक शौर्ट फिल्म अपलोड की थी. इस फिल्म में सैक्स वर्कर और स्टौक ब्रोकर की कहानी को दिखाया गया था.
इन शौर्ट फिल्मों को मनोरंजन के बजाय एक मैसेज देने के लिए बनाया जा रहा है पिछले साल आई ‘माई लाइफ माइ चौइस’ वीडियो इसी का एक उदाहरण है जिस में दीपिका पादुकोण महिलाओं को अपनी जिंदगी अपनी शर्त पर जीने की आजादी का संदेश देती नजर आई थी. इन दिनों इंटरनैट पर राधिका आप्टे अपने एक वीडियो के लिए छाई हुई हैं जिस में वे लड़कियों को खुद पर विश्वास रखने की सलाह देती नजर आ रही हैं. यह वीडियो यूट्यूब चैन ब्लश द्वारा शुरू की गई है.
राधिका आप्टे की यह पहली शौर्ट फिल्म नहीं है, इस से पहले भी ‘आहिल्या द स्टोन’ और ‘द कौलिंग’ में अपनी अदाकारी का कमाल दिखा चुकी हैं. इस वीडियो में राधिका जिस तरह लड़कियों से बात कर रही हैं, उन्हें प्रोत्साहित कर रही हैं, उसे देख कर और सुन कर आप सचमुच में खुद से प्यार करने लगेंगी, खुद को खास समझने लगेंगी. इस वीडियो में राधिका उन सभी नियमों को खारिज करने की बात कर रही हैं जिसे सोसाइटी ने बना रखा है. यह वीडियो लड़कियों को प्रोत्साहित करता है कि आप अपने नियम खुद बनाओ, आप दिखने में कैसी भी हों, मोटीपतली, लंबीछोटी, कालीगोरी, एक बात याद रखिए ‘आप खूबसूरत हैं.’
फिल्में छोटी लेकिन इम्पैक्ट बड़ा
फरीदा जलाल से ले कर दीपिका पादुकोण तक इन शौर्ट फिल्मों में काम कर के लोकप्रियता बटोरने के साथसाथ एक मैसेज दे रही हैं. इन फिल्मों का उद्देश्य बौक्स औफिस पर 100 करोड़ कमाना नहीं है बल्कि सामाजिक मुद्दे को बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत कर के समाज को एक मैसेज देना है कि खुद को पहचानो और खुद के लिए जीना शुरू करो. समाज की बनाई उन बंदिशों को तोड़ना है जो महिलाओं को आगे बढ़ने से रोकता है.
क्यों बढ़ रही है मांग
शौर्ट फिल्मों की मांग बढ़ने का मुख्य कारण है इंटरनैट का विस्तार, लोग इंटरनैट पर ज्यादा समय बिताने लगे हैं, उन्हें यूट्यूब पर वीडियो देखना अच्छा लगने लगा है, जिस की वजह से वे इन शौर्ट फिल्मों को खास पसंद कर रहे हैं. इस की वजह से उन्हें सिनेमाघर जाने और टिकट खरीदने के झंझट से छुटकारा मिल गया है. शौर्ट फिल्मों ने अलग तरह के सिनेमा से जुड़ने की इच्छा रखने वाले निर्देशकों, कलाकारों और निर्माताओं के लिए कई रास्तो खोल दिए हैं, इन्हें कम बजट में बना कर आसानी से अपलोड किया जा सकता है, इसम ें ना तो बहुत ज्यादा पैसे की जरूरत पड़ती है और ना ही प्रमोशन के लिए खर्च करना पड़ता है.
ये शौर्ट फिल्में देखना ना भूलें
देशभक्ति पर बहस ने कई रूप ले लिए हैं. जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में भारत के टुकड़े करने के नारों का नाम ले कर जो गुब्बारा फुलाया गया वह एक वर्ग में काफी कामयाब हुआ और देश का अंधभक्त वर्ग जो अंधविश्वासों को आस्था मानता है, तर्क को विश्वासघातक मानता है, दान को मुक्ति का रास्ता मानता है, पूजापाठ, व्रत को समृद्धि का अकेला मार्ग मानता है, अब देशभक्ति की आड़ में अपने कट्टरपन को दूसरों पर थोपने का मार्ग ढूंढ़ रहा है. देशभक्ति होती है देश के लिए काम करना और उस के लिए न तो झंडा लहराना जरूरी है और न ही 26 जनवरी को इंडिया गेट व 15 अगस्त को लालकिले में वंदना करना. देशभक्ति होती है देश के संविधान की भावना का आदर करना, बराबरी के सिद्धांत को मानना, परिश्रम कर देश व खुद को उन्नत करना. देशभक्ति में स्वयं का उद्धार व स्वयं की सफलता छिपी है पर दूसरों की कीमत पर नहीं, खुद की मेहनत पर.
देशभक्ति का अर्थ है हर नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना, सामाजिक नियमों का पालन करना, कानूनों का अनुसरण करना और सही तरह से लोकतंत्र की प्रक्रिया को अपनाना. देशभक्ति का अर्थ है कि हर व्यक्ति को, जो भारतीय है या नहीं पर भारत में है, को कानूनों की सुरक्षा देना और हरेक को गौरव दिलवाना. नई देशभक्ति का मतलब हो रहा है कि तिरंगा लहराओ और देशभक्त हैं के नारे लगाओ और बाकी सभी कर्तव्यों को भूल जाओ. नई देशभक्ति है कि जो हम कह रहे हैं वह देशभक्ति है, जो हम से सहमत नहीं वह देशद्रोही है. देशभक्त वह है जो भारत माता की पूजा संतोषी माता की तरह करे वरना देशद्रोही. देशभक्त वह है जो प्रधानमंत्री के पांव पूजे और उन सब के पांव पूजे जिन के पांव प्रधानमंत्री पूजते हैं वरना देशद्रोही. देशभक्ति धर्मभक्ति है और उस धर्म की भक्ति जो सत्तारूढ़ धनपतियों का है.
देश के गरीबों, दलितों, पिछड़ों, मुसलिमों, आदिवासियों, बेकारों, अनपढ़ों, भूखों, बीमारों की तो छोडि़ए, देश के उच्च वर्णों और वर्गों की औरतों का हाल तो देखिए जो धर्मभक्ति यानी देशभक्ति के बोझ से दबीकुचली हैं. कितनी विधवाओं को देश का समाज बराबरी का हक देता है? कितनी कुंआरियों को सम्मान मिलता है? कितनी बांझों को समाज में बराबरी की जगह मिलती है? पुनर्विवाह में कितनी विधवाओं और तलाकशुदाओं को बराबरी का पति मिल पाता है, अगर मिल भी जाए? सिर्फ औरतों को ही क्यों व्रतों, उपवासों, पूजा, साधू सेवा में ठूंस दिया जाता है? रिवाजों के नाम पर कितनी औरतों को मीलों नंगे पैर चलवा कर मंदिरों में जाने को मजबूर करा जाता है? स्वतंत्र देश में कितनी औरतें अपनी इच्छा के अनुसार वोट दे पाती हैं? कितनी औरतें परिवार यानी पति की इच्छा के खिलाफ चुनावों में भाग ले पाती हैं?
बराबरी का हक देशभक्ति की निशानी है पर दफ्तरों, दुकानों, कारखानों में कितनी औरतें नजर आती हैं? देशभक्ति तब आड़े नहीं आती जब औरतों को धार्मिक कामों में पुरुषों से अलग कर दिया जाता है. देशभक्ति का सवाल तब नहीं उठता जब विरासत का हिस्सा पुरुषों के हाथों में चला जाता है. जो पुत्रवती भव: कह कर कन्या भू्रण हत्या करते हैं, करवाते हैं या होने देते हैं उन्हें देशद्रोही नहीं कहा जाता. देशभक्ति को पूजापाठ के बराबर न बनाएं. देश के सही कानूनों व नियमों का उल्लंघन तो ठीक है पर नारा लगाना उसी तरह खराब है जैसे काले धब्बे वाले देवीदेवताओं की पूजा तो ठीक है पर उन के साथ जुड़ी विवादास्पद बातों की चर्चा करना ईश निंदा करना है.
देशभक्ति धर्मभक्ति और अंधभक्ति से कहीं अलग और कहीं ऊपर है. देशभक्ति में देश व सरकार की आलोचना शामिल है. देशभक्ति में असहमति शामिल है. देशभक्ति में देश में रह कर देश के फैसलों का विरोध करना शामिल है. देशभक्ति में तो देश से अलग हो जाने का हक भी शामिल है. क्या उन लाखों नागरिकों को देशद्रोही कहेंगे, जिन्होंने भारत छोड़ कर दूसरे देशों में पहले नौकरियां कीं, फिर नागरिकता ली और भारत की नागरिकता छोड़ी? वे भी देशद्रोही नहीं हैं, क्योंकि देशभक्ति में व्यक्तिगत विचार, मरजी से काम करने का हक, अलग रहने का हक शामिल है. जब तक देश में रह कर खूनखराबा न किया जाए. मारपीट करना, जेल में बंद करना, भाषणों की तेजाबी वर्षा करना देशभक्ति नहीं है. देशभक्त बनना है तो कम से कम पहले आधी दुनिया यानी औरतों को तो देशभक्ति का सुख देना सीखो.
एक साल पहले उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसलें में कहा कि जन प्रतिनिध्यिों और सरकारी वेतन और मानदेय पाने वालों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढना चाहिये. कोर्ट ने सरकार से यह भी कहा कि अगले शिक्षा सत्रा से यह लागू किया जाये. कोर्ट ने बहुत सख्त लहजे में कहा था जो सरकारी नौकर ऐसा न करे उसके खिलाफ दंडात्मक कदम उठाये जाये. कोर्ट ने कहा जिनके बच्चें कान्वेंट स्कूल में पढे वहां की फीस के बराबर रकम उनके वेतन से काट ली जाये. ऐसे लोगों का इंक्रीमेंट और प्रमोशन कुछ समय के लिये रोक लिया जाये. कोर्ट ने सरकार को 6 माह का वक्त देते कारवाही रिपोर्ट पेश करने को कहा था. कोर्ट ने कहा था कि जब तक सरकारी नौकरों और जन प्रतिनिध्यिो के बच्चें सरकारी स्कूलों में नहीं पढेगे वहां के हालात नहीं सुधरेगे. उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ने इस मामलें में हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट लेकर गई. दूसरा शिक्षा सत्रा शुरू होने वाला है इस मामलें में सरकार ने कुछ भी नहीं किया है.
उत्तर प्रदेश में सभी विरोधी दल भी इस मसले पर मौन है. क्योकि यह आदेश उन पर भी लागू हो सकता है. सोशलिस्ट पार्टी इंडिया के नेता और मैगसैसे पुरस्कार विजेता समाजसेवी डाक्टर संदीप पांडेय ने इस मुददे को 2017 के विधनसभा चुनावों में उठाने का संकल्प लिया है. वह कहते है ‘चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार के लिये यह जरूरी हो कि वह खुद सरकारी स्कूल में पढा हो और उसके बच्चे भी वहां पढते हो. इस तरह के बदलाव से ही चेतना जगेगी. दूसरी बात केवल सरकारी स्कूल ही नहीं जनप्रतिनिध्यिों और सरकारी वेतन पाने वाले के लिये यह भी जरूरी हो कि वह अपना इलाज भी सरकारी अस्पताल में कराये. लखनउ में गांधी प्रतिमा पर फ्यूचर औफ इंडिया मंच के मजहर आजाद ने 6 दिन का धरना दिया. इसके बाद भी सरकार ने मामले का किसी तरह से कोई संज्ञान नहीं लिया तब औल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के एसआर दारापुरी ने उनका अनशन तुडवा दिया.
सोशलिस्ट पार्टी इंडिया विधनसभा चुनावों में इस मुददे तो चुनावी मुददा बनाने की तैयारी में लगी है. दरअसल इंटर यानि 12 वीं कक्षा तक की सरकारी शिक्षा व्यवस्था बहुत खराब हो गई है. सरकार ने बहुत सारे काम इसको सुधरने के लिये किये उसके बाद भी कोई प्रभाव नहीं पड रहा है. आज प्राइमरी स्कूलों में बच्चों और टीचरों को हर तरह की सुविध हासिल है. उनको सम्मानजनक वेतन और दुसरी सुविधयें मिल रही है. हालात यह है कि सरकारी स्कूलों में पढाने वाले टीचर तक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढाना नहीं चाहते. सरकार और सरकारी नौकर कोई भी दावा करे पर उनको इन स्कूलों की योग्यता पर भरोसा नहीं है इस वजह से वह अपने बच्चों को यहां पढाना नहीं चाहते. केवल एक पार्टी की बात नहीं है सभी पार्टियों को इस मुददे का खतरा पता है. जिस वजह से ही सत्ता पक्ष के साथ ही साथ विपक्ष भी चुप है.
रांची के मांडर थाना क्षेत्र में गत 22 अप्रैल को यौनशोषण का एक सनसनीखेज मामला सामने आया. यौनशोषण किया गया एक 14 साल की नाबालिग लड़की के साथ और यह कुकृत्य करने वाला था उस का सगा पिता. हैवानियत का आलम यह कि पिछले 7 माह से यह राक्षस पिता अपनी बेटी के साथ जबरदस्ती कर रहा था और जब वह गर्भवती हो गई और उस के पैरों में सूजन आई तो वह उसे झाड़फूंक करने वाले बाबा के पास ले गया. ठीक न होने पर वह उसे बगल के गांव स्थित उस की नानी के घर पहुंचा आया. लड़की की मां की 3 साल पूर्व मौत हो चुकी थी . लड़की के मामा उसे ले कर डाक्टर के पास पहुंचे तो पता चला कि वह गर्भवती है. मामा बच्ची को फिर पिता के पास छोड़ आए. पड़ोसियों को शक हुआ और बच्ची से पूछताछ की तो सारा सच सामने आ गया. इस के बाद गांव वालों की बैठक हुई और उन्होंने आरोपी पिता को पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया.
विकृत मानसिकता के ऐसे नजारे अक्सर नजर आते रहते हैं. राजधानी दिल्ली की बात की जाए तो हाल ही में जैतपुर इलाके में ऐसी ही दिल दहलाने वाली घटना सामने आई.
आरोप है कि 40 साल के एक शख्स ने अपनी 15 साल की बेटी के साथ गलत काम करने का प्रयास किया. यही नहीं, उस ने अपनी बेटी के कई अश्लील वीडियोज भी बनाए. इस दरिंदे पिता की छेड़छाड़ से तंग आ कर बेटी ने मां से शिकायत कर दी. बच्ची की मां और पिता में जम कर झगड़ा हुआ. मगर वह शख्स अपनी आदत से बाज नहीं आया और अंततः लड़की को अपने प्राण गंवाने पड़े. पिता ने उसका गला दबा दिया।
ऐसी घटनाएं आए दिन सुर्खियों में नजर आती हैं. जाहिर है कि मासूम लड़कियों की सुरक्षा का प्रश्न किसी के भी दिलोदिमाग को उद्वेलित कर जाएगा. कभी कन्या भ्रूण हत्याएं, कभी दहेज हत्याएं तो कभी ऐसी घिनौनी वारदातें.
दुश्मनों और गैरों की क्या जरूरत जब मासूम लड़कियों की जिंदगी अपनों के हाथों ही रौंदी जाती हो.
सोचने वाली बात है कि हम अपनी बच्चियों को बाहर वालों से सावधान रहने की सलाह तो दे सकते हैं, पड़ोसियों व रिश्तेदारों से भी बच कर रहने या अकेले कहीं न जाने का फरमान दे सकते हैं. मगर जब रिश्तों का खून अपनों के हाथों हुआ हो तब क्या किया जाए? किस के पास जा कर वह मासूम अपना दर्द बयां करे जब उस का विश्वास लहुलुहान किया हो उस के अपने जन्मदाता ने.
इस संदर्भ में क्राइम साइकोलौजिस्ट, अनुजा कपूर कहती हैं, ‘दरअसल इस तरह के इनसेस्ट रिलेशनशिप की मुख्य वजह डोमिनेशन, ट्रस्ट और फाइनेंशियल डिपेडेंसी होती है.’
उदाहरण के लिए बापबेटी के रिश्ते में जहां पिता का बेटी पर हक होता है, बेटी भी सब से ज्यादा विश्वास अपने मां-बाप पर ही करती है. वह आर्थिक रूप से भी अपने पिता पर पूरी तरह निर्भर होती है. ऐसे में वासना के भूखे व्यक्ति को अपना शिकार घर में ही बहुत आसानी से मिल जाता है. वह जानता है कि लड़की उस के खिलाफ मुंह नहीं खोलेगी.
अनुजा कपूर का ये भी कहना है कि ‘किसी को यदि कभी जिंदगी में इस तरह की स्थिति का सामना करना पड़े तो मैं यही सलाह दूंगी कि ऐसी ज्यादती कभी बरदाश्त न करें. आप छोटी हों या बड़ी, कुछ गलत महसूस हो या ऐसा लगे कि पिता या किसी बेहद करीबी ने गलत हरकत की है तो पहली दफा ही इस का विरोध करें. और तुरंत वहां से हट जाएं. फिर अपनी मां, बूआ, चाची या जो भी महिला करीब मौजूद हो, उस से सारी बातें कहें. बच्ची की मां या घर की दूसरी बुजुर्ग महिलाओं का दायित्व है कि वे ऐसी स्थिति में बच्ची को पूरी सुरक्षा मुहैया कराए. इस के लिए वह वूमन सेल या किसी एनजीओ वगैरह से सहायता मांग सकती है. लड़की स्वयं भी 100 नंबर डायल कर सकती है. कम उम्र की लड़कियां चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (हेल्पलाइन नं. 1098) और महिलाएं दिल्ली वूमेन कमेटी (हेल्पलाइन नं. 1091) से सहायता मांग सकती हैं. इस के अलावा महिला आयोग व दूसरी सरकारी, गैर सरकारी संस्थाएं भी इन मामलों में लड़कियों के लिए आवाज उठाती हैं और उन्हें सुरक्षा देती हैं.'
आप अपनी मेकअप किट में उपलब्ध प्रोडक्ट्स से भी डिफरैंट मेकअप कर सकती हैं. आइए जानें, ला लियोना की मेकअप ऐक्सपर्ट अरुणा ढाका से मेकअप के कुछ नए ट्रिक्स:
ग्लौसी मेकअप
फेस: मेकअप करने से पहले स्क्रबिंग और क्लींजिंग जरूर करें. अगर आप ने पहले से फेशियल करा रखा है, तो सिर्फ क्लीनिंग करें. आप का फेस ड्राई न लगे और मेकअप ज्यादा देर तक टिका रहे, इस के लिए किसी अच्छी कंपनी का मौइश्चराइजर लगाएं. महिलाएं मौइश्चराइजर या कोई भी ब्यूटी प्रोडक्ट हाथों में रब कर लगाती हैं, जबकि इसे लगाने का भी एक तरीका होता है. हाथों में रब करने के बजाय उसे फेस पर लगा कर मिक्स करें. इस से फेस पर वह सही तरह से अप्लाई भी होगा और लगेगा भी कम.
अब फेस पर ग्लौसी फिनिशिंग के लिए स्ट्रोक क्रीम लगाएं. स्ट्रोक क्रीम लगाने के बाद ब्रश से फाउंडेशन लगा कर मिक्स करें. कभी उंगलियों से फाउंडेशन सैट न करें. इस के लिए हमेशा ब्रश या गीले स्पौंज का प्रयोग करें. इस के बाद ट्रांसपैरेंट पाउडर लगाएं. इसे लगाने का सही तरीका है पफ से प्रोडक्ट ले कर हाथ पर थपथपाएं और फिर चेहरे पर लगाएं. अंत में चेहरे को स्मूद लुक देने के लिए प्रैसिंग पाउडर लगाएं और ब्रश से अच्छी तरह मिक्स करें.
आई मेकअप: नौर्मल आई मेकअप तो सभी करती हैं, पर पार्टी में थोड़ा डिफरैंट व स्टाइलिश दिखना है, तो स्मोकी आई मेकअप करें. स्मोकी आई मेकअप करने से पहले आंखों पर आईप्राइमर अप्लाई करें. यह आईशैडो को ब्लौक करता है. इसे लगाने के 1-2 मिनट बाद आईब्रोज की शेपिंग करें. आजकल मोटी आईब्रोज का फैशन इन है. वैसे भी जब तक आईब्रोज को उभारा नहीं जाता तब तक आई मेकअप अट्रैक्टिव नहीं लगता. आईब्रो पैंसिल से आईब्रोज को डार्क करते हुए एक शेप दें. ध्यान रहे एक ही जगह पर ज्यादा न घिसें. कुछ महिलाएं ऐसा भी करती हैं कि जिस स्थान पर उन की आईब्रो कम होती है वहां ज्यादा घिसती हैं. यह गलत है. एक ही जगह घिसने के बजाय पूरी आईब्रो पर एक समान लगाएं.
आईब्रोज की शेपिंग के बाद आंखों को हाईलाइट करने के लिए आईब्रोज के नीचे फाउंडेशन की एक पतली लाइन लगाएं. अब आंखों पर लाइनर लगाएं. लाइनर पतला नहीं, बल्कि मोटा होना चाहिए ताकि आंखों पर स्मोकी इफैक्ट आ सके. लाइनर लगाते समय इस बात का ध्यान रखें कि आगे के पौइंट को छोड़ दें. इस के बाद ब्रश से एजेज को स्मज करें यानी लाइनर को जल्दीजल्दी स्मज करें, क्योंकि जैल लाइनर जल्दी सूख जाता है. इस के बाद चौकलेटी शेड का आईशैडो लगा कर ब्रश से ब्लैंडिंग करें. अब आईशैडो पाउडर लगाएं. यह बेस को लौक करता है. अगर कहीं पर एजेज आ जाएं तो गोल्डन शैडो से स्मज करें. इस के बाद आंखों में काजल लगाएं. काजल अंदर की तरफ न लगाएं, बल्कि बाहर की तरफ फ्रंट ऐंड बैक स्टाइल में लगाएं. इस से आंखों में पानी नहीं आता. अगर आंखों में पानी आ जाए तो आंखों के किनारों पर इयरबड लगाएं. यह पानी सोख लेता है. आई मेकअप में काजल और लाइनर जितना ज्यादा ब्लैक होगा मेकअप उतना ही अट्रैक्टिव लगेगा. इसीलिए काजल के ऊपर जैल लाइनर लगाएं.
लिप: आंखों पर आप स्मोकी मेकअप कर रही हैं, तो लिप्स पर हलकी ग्लौसी लिपस्टिक लगाएं. यह आप को सैक्सी लुक देगी. इस के लिए लिपलाइनर से लिप की आउटलाइनिंग करें. इस के बाद आप चाहें तो लिपलाइनर से ही पूरे लिप पर लिपस्टिक लगा सकती हैं या फिर ड्रैस से मैचिंग लिपस्टिक का चुनाव कर सकती हैं.
पार्टी मेकअप
फेस: फेसवाश करने के बाद उस पर अच्छी क्वालिटी का मौइश्चराइजर लगाएं. मौइश्चराइजर के बाद प्राइमर लगाएं. आंखों के नीचे के डार्कसर्कल्स को मेकअप से आसानी से छिपाया जा सकता है. अगर आप की आंखों के नीचे डार्कसर्कल्स हैं, तो उन्हें कंसीलर से कंसील करें. कभी फाउंडेशन को अंडरआई न लगाएं. प्रोडक्ट लगाने के बाद स्पौंज से मिक्स करें. इस के बाद यलो और कैसिनो टोन क्रीम मिक्स कर के फेस पर लगाएं और ब्रश से ही डैब करें. अब ट्रांसपैरेंट पाउडर लगाएं. फिर चेहरे को स्मूद लुक देने के लिए प्रैसिंग पाउडर लगाएं.
आई मेकअप: आई मेकअप शुरू करने के लिए आंखों पर आई बेस लगाएं. इस के बाद जैल लाइनर से बेस बनाएं. अब शौकेट एरिया पर शैडो से ‘वी’ शेप बनाएं और मर्ज करें. फिर ब्लैक लाइनर के ऊपर पिगमैंट लगाएं.
जैल लाइनर से आई शेपिंग करें. एजेज को हमेशा शार्प रखें. अगर आईब्रोज पतली हैं तो हाईलाइटर से हाईलाइट करें. अब आईलैशेज को लैश कर्लर से कर्ल करें. फिर जिगजैग स्टाइल में मसकारा लगाएं. अगर आप की आईलैशेज छोटी हैं तो आर्टिफिशियल आईलैशेज लगाएं. फिर से मर्ज करने के लिए शैडो लगाएं. अंत में गोल्डन ग्लिटर आंखों पर लगाएं.
लिप: लिपस्टिक लगाने से पहले लिप्स पर मौइश्चराइजर लगाएं. आप चाहें तो वैसलीन भी लगा सकती हैं. लेकिन वैसलीन के ऊपर ही लिपस्टिक न लगाएं. कौटन से वैसलीन साफ करने के बाद ही लिपस्टिक लगाएं.
टिप्स
हमारे देश में सड़क हो या सिनेमाघर, बाजार हो या दफ्तर कुछ नजरें हर वक्त महिलाओं और लड़कियों का पीछा करती हैं. चौकचौराहे पर बैठे लड़के आतीजाती महिलाओं को तब तक घूरते रहते हैं जब तक वे उन की नजरों से ओझल नहीं हो जातीं. सरेराह महिलाओं को एक वस्तु समझ कर जब पुरुष घूरते हैं, फबतियां कसते हैं तो वे इस बात का अंदाजा नहीं लगा पाते कि उन की गंदी नजरों का सामना करने वाली लड़की के दिलोदिमाग पर क्या गुजर रही होगी. दरअसल, महिलाएं जिसे घूरना कहती हैं पुरुष उसे निहारना कहते हैं. लेकिन पुरुषों का वह निहारना महिलाओं को लगता है जैसे वे बदन पर गड़ी आंखों से बलात्कार कर रहे हों.
हाल ही में प्रदर्शित फिल्म ‘फितूर’ में भी जब आदित्य राय कपूर कैटरीना को देखता है तो वह कहती है, ‘‘घूरना बंद करो.’’ पिछले दिनों अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर ‘वूमन औफ वर्थ कौन्क्लेव’ में पत्रकार रवीश कुमार के साथ ‘हम जिस तरह से देखने के आदी हैं’ विषय पर चर्चा हुई. इस चर्चा में रवीश कुमार ने कहा, ‘‘लड़की देखी जाती है, लड़की देखना सिखाया जाता है. राह चलती लड़की को हजार तरह की निगाहों से गुजरना पड़ता है. किस ने लड़कों को इस तरह देखना सिखाया? कोई घर में बड़े हो रहे लड़कों को क्यों नहीं सिखाता कि लड़कियों को किस तरह देखना है? क्या इस में कहीं पारिवारिक परिवेश जिम्मेदार होता है? क्या परिवारों में लड़कों को लड़कियों के मुकाबले अतिरिक्त छूट मिलती है?’’
इस ताड़ने, देखने, घूरने, ताकने को कैसे रोका जा सकता है आदि सवालों के जवाब इस कौन्क्लेव तलाशे गए. ‘हम जिस तरह से देखने आदी हैं’ विषय पर अभिनेत्री शबाना आजमी का कहना था कि इस समस्या की जड़ में पितृसत्तात्मक मानसिकता है, जहां पुरुषों को महिलाओं से बेहतर दिखाया जाता है. एक पुरुष सिर्फ अपनी मां को अच्छी निगाह से यानी सम्मान की नजर से देखता है. लेकिन वह घर से बाहर की महिलाओं को मां, बहन, बेटी की नजर से नहीं देखता.
दरअसल, निर्भया कांड के बाद महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे सुर्खियों में जरूर आए, लेकिन आखिरकार जो मुद्दा उभर कर सामने आया, वह यही है कि महिलाओं को आज भी सुरक्षा की जरूरत है. आज की युवती, आज की महिला पहननेओढ़ने, घूमनेफिरने की आजादी चाहती है. आज भी अगर वह मर्द के द्वारा तय किए गए दायरे में है तो सुरक्षित है और अगर वह शराब, सिगरेट पीए, मिनी स्कर्ट पहन कर सड़क पर निकले तो फौरन उसे लूज कैरेक्टर का दर्जा दे दिया जाता है. कहा जाता है कि वह खुद को औब्जैक्टिफाई कर रही है. उस के लिए कहा जाता है कि वह ऐसा कर के पुरुषों को आकर्षित कर रही है. निर्भया कांड के बाद जो स्लोगन सामने आया वह है ‘शिफ्ट द ब्लेम शिफ्ट द गेन’. शबाना आजमी ने आगे कहा कि जहां तक फिल्मों में महिलाओं की कामुकता को दिखाने की बात है तो उस के लिए फिल्मों में महिलाओं की कामुकता को दिखाने का तरीका बदलना चाहिए, क्योंकि कामुकता और अश्लीलता के बीच एक महीन रेखा है. कामुकता को जिस तरह दिखाया जाता है, वह कैमरे के घूमने पर निर्भर करता है न कि इस बात पर कि आप किस तरह के कपड़े पहनते हैं या कैसे नृत्य करते हैं.
इसी विषय पर सेफ्टीपिन की सहसंस्थापक कल्पना विश्वनाथ का कहना है, ‘‘हम लोगों ने एक अभियान चलाया था, ‘घूरना तकलीफ देता है’ घूरने और देखने में फर्क होता है. पुरुष घूरने के लिए महिलाओं की पोशाक को दोष देते हैं. हमारे समाज में सारे नियंत्रण महिलाओं पर ही लगाए जाते हैं कि ऐसे कपड़े पहनें, शाम के बाद घर से बाहर न निकलें वगैरह. समाज महिलाओं की आजादी पर पहरा लगा रहा है. हम औरतों की सुरक्षा की बात करते हैं उन के अधिकारों की नहीं. जरूरत है कि समाज में सैक्सुअलिटी पर खुल कर बात की जाए, घर में लड़कों के साथ हर विषय पर खुल कर बात की जाए ताकि वे समझ सकें कि महिलाओं के साथ कैसे पेश आना चाहिए. टकटकी लगाए देखने में सीधा संबंध सैक्सुअल आजादी से है.’’ ‘‘जहां तक घूरने की और थाने में रिपोर्ट करने का सवाल है तो इस की रिपोर्ट शायद ही कभी होती है, क्योंकि कोई भी महिला पुलिस के पास जा कर रिपोर्ट करने और फिर अपराध को साबित करने के झंझट में नहीं पड़ना चाहती. जबकि घूरना, टकटकी लगाए देखना कानूनन गलत है. कानून पुरुष व महिला को बराबर अधिकार देता है, लेकिन भारतीय समाज की संस्कृति में असमानता है. आज की महिला एक आजाद इनसान की तरह जीना चाहती है,’’ यह कहना है वकील, शोधकर्ता तथा मानवाधिकार एवं महिला अधिकार कार्यकर्ता वृंदा ग्रोवर का.
इस अवसर पर राजनेता बलिकेश नारायण सिंह देव ने कहा कि समाज को महिलाओं के प्रति अपनी सोच बदलने की जरूरत है. लड़कों को घर से बाहर महिलाओं के साथ कैसे पेश आना चाहिए, यह वे अपने घर के पुरुषों से ही सीखते हैं कि वे कैसे उन की मां, भाभी, बहन के साथ व्यवहार करते हैं. आज जरूरत लड़कों को लड़कियों की तरह पालने की है ताकि वे महिलाओं का सम्मान करना सीख सकें.
घूरना अपमान निहारना सम्मान
‘‘घूरना अपराध है लेकिन देखना सौंदर्य का सम्मान,’’ पिछले दिनों जनता दल के राज्यसभा के सांसद केसी त्यागी ने महिलाओं को ले कर यह विवादित बयान दिया. उन के अनुसार, देश के प्राचीन कवियों ने भी महिलाओं के सौंदर्य का वर्णन किया है और वे संसद भवन में बैठने वाली फिल्म अदाकारा सांसदों को अकसर देखते रहते हैं. इस के जवाब में बीजेपी महिला मोरचा की पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और प्रदेश कार्यकारिणी की सदस्या लज्जारानी गर्ग ने कहा, ‘‘यह बयान त्यागी और उन के दल की मानसिकता को दर्शाता है. देश में प्राचीनकाल से ही महिलाओं को मां के रूप में देखा गया है और मां के शरीर की सुंदरता नहीं बल्कि उस का स्नेह देखा जाता है.’’
जब जनप्रतिनिधि ही इस तरह की टिप्पणी करते हैं तो महिलाओं का सम्मान करने की इन की दावेदारी पर सवालिया निशान लग जाता है.
क्यों घूरते हैं पुरुष महिलाओं को
एक ब्रिटिश रिसर्च के अनुसार, हर इनसान में विपरीत सैक्स को घूरने की फितरत होती है. इनसान चाह कर भी यह आदत छोड़ नहीं पाता, क्योंकि विपरीत सैक्स को निहारने या घूरने में जो आनंद या सुख मिलता है वह वैसा ही होता है जैसा किसी भूखे को भोजन और प्यासे को पानी मिलने के बाद होता है. विपरीत सैक्स पर नजर पड़ते ही शरीर में हारमोनल प्रतिक्रिया होती है और आनंदित होने का एहसास होता है. पुरुषों के अंदर मौजूद टैस्टोस्टेरौन नामक हारमोन उन में महिलाओं के प्रति अट्रैक्शन उत्पन्न करता है, जिस के चलते वे कई बार विपरीत सैक्स की तरफ ज्यादा देखते हैं या कहें घूरते हैं. लेकिन जब पुरुषों की घूरती नजरें जिस्म को भेदने वाली होती हैं तो लड़कियां घबरा जाती हैं. इस से उन के आत्मविश्वास में गिरावट आ सकती हैं, दिमागी सक्रियता में भी कमी हो सकती है. सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च के अनुसार, महिलाओं को जब लंबे समय तक पुरुषों द्वारा घूरा जाता है तो वे खुद को फिगर के आधार पर मूल्यांकन करना शुरू कर देती हैं. और वे शर्मिंदगी महसूस करने लगती हैं
हस्तियां भी नहीं छोड़तीं मौका
ऐसा नहीं है कि सिर्फ आम पुरुष ही महिलाओं को घूरते हैं. ऐसा बड़ी हस्तियां भी करती हैं, जिन में किसी देश के राष्ट्रपति, खिलाड़ी भी शामिल होते हैं. हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भी इटली में हुए जी-8 के सम्मेलन में लड़कियों को घूरते पाए गए. ऐसी ही कुछ हरकत फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलेस सरकोजी ने भी की. वे जी-8 सम्मेलन में हिस्सा लेने आई ब्राजील की महिला डैलिगेट को घूरते नजर आए. इसी तरह तिरछी नजर से अमेरिकी चीयर गर्ल पर नजरें गड़ाने वालों में जानेमाने फुटबौलर डैविड बेकहम भी हैं
जिंदगी का कितना वक्त घूरने में बरबाद
ब्रिटिश संस्था कोडक लैंस विजल द्वारा 18 से 50 की उम्र के 3 हजार लोगों की राय को आधार बना कर किए गए एक शोध के अनुसार, पुरुष अपनी जिंदगी का पूरा 1 साल लड़कियों को घूरने में बरबाद कर देते हैं. शोध के अनुसार, एक पुरुष प्रतिदिन औसतन 1-2 नहीं बल्कि अलगअलग 10 लड़कियों को घूरता है. प्रतिदिन पुरुष 2-4 मिनट नहीं बल्कि औसतन पूरे 43 मिनट लड़कियों या महिलाओं को मुड़मुड़ कर घूरने या आंखें फाड़ कर ताड़ने में खर्च करता है. ब्रिटिश रिसर्च के अनुसार, इस आदत को पुरुष चाह कर भी छोड़ नहीं पाते. जहां तक लड़कियों की बात है तो उन में घूरने की आदत लड़कों के मुकाबले कम होती है. रिसर्च के मुताबिक, लड़कियां या महिलाएं औसतन जिंदगी के पूरे 6 महीने और रोजाना औसतन करीब 20 मिनट घूरने में खर्च करती हैं.
घूरते समय क्या देखते हैं लड़के
अमेरिका की यूनिवर्सिटी औफ नेब्रास्का लिनकोलन के अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, आई ट्रैकिंग तकनीक के जरीए जाना गया है कि लड़के लड़कियों को घूरते समय उन के चेहरे के बजाय उन की बौडी और उन की फिगर को ज्यादा देर तक देखते हैं. इस स्टडी के मुताबिक मर्द ज्यादातर उन महिलाओं को घूरने में अपना अधिकांश वक्त बिताते हैं जिन की कमर औसतन पतली हो या उन की ब्रैस्ट का साइज बड़ा हो. आप को जान कर हैरानी होगी कि महिलाएं भी दूसरी महिलाओं को पुरुषों वाली नजर से घूरती हैं यानी वे भी चेहरे के बजाय ब्रैस्ट व कमर के आसपास के हिस्से को घूरने में ज्यादा समय देती हैं.
प्रतिदिन 10 मिनट महिलाओं को देखना स्वास्थ्यवर्धक
एक ओर जहां भारत में महिलाओं को घूरने को अपराध की श्रेणी में रखा जाता है, वहीं न्यू इंगलैंड जर्नल औफ मैडिसिन के एक सर्वे के अनुसार प्रतिदिन महिलाओं को 10 मिनट तक देखना पुरुषों के लिए स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा है. सुगठित महिला को मात्र 10 मिनट तक देखने से एक पुरुष उतनी उर्जा खर्च कर देता है जितनी 30 मिनट के ऐरोबिक्स व्यायाम में खर्च होती है. शोध में जिन लोगों ने प्रतिदिन 10 मिनट महिलाओं को देखा उन की टैस्टिंग पल्स रेट कम धीमी पाई गई. उन का रक्तचाप भी अन्य लोगों की तुलना में कम था. डाक्टरों के अनुसार, यौन उत्साह से हृदय के पंपिंग की गति तेज हो जाती है और ब्लड सर्कुलेशन में भी सुधार होता है. है न कमाल की बात. लेकिन भारत में सुंदर कन्या को घूरने का साहस न करें, क्योंकि यहां घूरना अपराध है.
अक्षय कुमार ने अपनी फ़िल्म 'हाउसफुल 3' का प्रचार करते हुए कहा कि इस फ़िल्म के साथ अपना नाम गंवा दिया है. मगर अक्षय ने यह बात गभीरता से नहीं, बल्कि हंसी मज़ाक़ में कही क्योंकि फ़िल्म भी कॉमिडी है.
गंभीर फिल्मों के बाद कर रहे कॉमिडी
अक्षय कुमार बेबी, गब्बर इज़ बैक, एयरलिफ्ट जैसी गंभीर फिल्में करने के बाद कॉमिडी में वापसी कर रहे हैं. ऐसा लगता है कि अक्षय पर इस कॉमिडी का बुखार जमकर चढ़ा हुआ है जो फ़िल्म के प्रचार के दौरान भी नज़र आ रहा है और वह न सिर्फ फ़िल्म के दूसरे सदस्यों से मज़ाक़ और छेड़खानी कर रहे हैं बल्कि खुद का भी मज़ाक उड़ा रहे हैं.
लेकिन उन्होंने गंभीरता से भी एक बात कही…
यही वजह है कि हाउसफुल 3 के प्रचार के दौरान अक्षय ने कहा कि 'डेढ़ महीने पहले एयरलिफ्ट के प्रचार के दौरान सीरियस होकर खड़ा था और फ़िल्म प्रमोट कर रहा था और आज हंसी मज़ाक कर रहा हूं. जो भी नाम कमाया था, सब गंवा रहा हूं.' मगर अक्षय ने एक बात गंभीरता से कही कि पिछले दिनों बेबी या एयरलिफ्ट जैसी फिल्में करने के दौरान मैं बहुत सीरियस हो गया था.
अब हाउसफुल 3 करने के बाद हल्का महसूस कर रहा हूं और काफ़ी अच्छा लग रहा है. इस फ़िल्म के दौरान उन गंभीर किरदारों से बाहर निकला. दिल खोलकर मज़े किये और इतनी बदमाशी की कि हर सीन के दो दो टेक दिए. पहले टेक में जो दिल में आया, वह किया और दूसरे टेक में वैसा अभिनय किया जैसा निर्देशक चाहते थे.
तजरबेकार माहिरों ने साबित कर दिया?है कि सोलर पंप से सिंचाई कर के खेती की लागत में कमी की जा सकती है. इस के अलावा सोलर पंप का इस्तेमाल बिजली व डीजल आदि की किल्लत से निबटने व खराब हो रहे पर्यावरण को बचाने का आसान तरीका है. इसलिए उत्तर प्रदेश की सरकार सोलर पंप से सिंचाई करने को बढ़ावा दे रही?है.खेतों में सिंचाई करने वाले आम सोलर पंप हलके व भारी 2 तरह के होते हैं. ये सरफेस यानी सतही सोलर पंप और दूसरे जमीन के भीतर से पानी निकालने वाले समरसेबल सोलर पंप होते हैं.
किसानों की सहूलियत के लिए उत्तर प्रदेश का खेती महकमा साढ़े 7 हार्सपावर के आम सिंचाई पंप पर 50 फीसदी या 10 हजार रुपए, जो कम हो छूट देता?है, लेकिन सोलर पंप की खरीद पर उस से भी ज्यादा 75 फीसदी तक की?छूट दी जा रही?है. इस में 30 फीसदी केंद्र व 45 फीसदी हिस्सा राज्य सरकार का रहता है, ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान सोलर पंप खरीद कर लगा सकें और बिजली व डीजल का खर्च बचा सकें. उत्तर प्रदेश नवीन व नवीकरणीय ऊर्जा विकास अभिकरण यानी नेडा इस काम में कृषि विभाग की मदद कर रहा?है. पिछले साल गंवई इलाकों में पीने के पानी के 200 व खेतों में सिंचाई के लिए 900 सोलर पंप लगाए गए थे. इस साल 5 हजार नए सोलर पंप लगाने का मकसद तय किया गया है.
मेरठ मंडल में तैनात कृषि अधिकारी ने बताया कि 1800 वाट के 2 हार्सपावर के सरफेस सोलर पंप की कीमत तकरीबन 2 लाख, 41 हजार रुपए है. छूट के बाद घटा कर इस में से किसान को सिर्फ एकचौथाई यानी 60,245 रुपए देने पड़ते हैं. इसी तरह 3000 वाट के 3 हार्सपावर के समरसेबल सोलर पंप की कीमत 6 लाख, 89 हजार रुपए है. इस में किसान को महज 1,17,200 रुपए देने पड़ते हैं. 4800 वाट के 5 हार्सपावर के समरसेबल सोलर पंप की कीमत 5 लाख, 31 हजार रुपए है. इस में छूट की दर 50 फीसदी है. इसलिए किसान को 2,65,600 रुपए देने पड़ते हैं.
इस स्कीम में भ्रष्टाचार को दूर रखने की गरज से इंतजाम को साफसुथरा बनाया गया?है. इस योजना में औनलाइन पंजीकरण कराया जाता?है. ज्यादा जानकारी के लिए किसान अपने इलाके के उप कृषि निदेशक से इस बारे में संपर्क कर सकते?हैं. छोटीबड़ी बहुत सी कंपनियां सोलर पंप बनाती?हैं. नाबार्ड ने 19 कंपनियों को चुना है, जो सोलर पंपों की मरम्मत व रखरखाव वगैरह के लिए सर्विस सेंटर चला रही हैं. सोलर पंप के बारे में जानकारी के लिए इच्छुक किसान इस पते पर भी संपर्क कर सकते?हैं:
तकनीकी निदेशक, कविता सोलर एनर्जी प्रा. लि., 231 न्यू डिफेंस कालोनी, निकट रेलवे स्टेशन, मुरादनगर, गाजियाबाद : 201206 उत्तर प्रदेश.