कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) जमाओं के ब्याज दर को लेकर वित्त और श्रम मंत्रालयों के बीच लड़ाई छिड़ती नजर आ रही है. वित्त मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2015-16 के लिए इन जमाओं पर 8.7 प्रतिशत ब्याज देने का फैसला किया है जबकि ईपीएफओ ने 8.8 प्रतिशत की सिफारिश की थी. 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ समर्थित भारतीय मजदूर संघ सहित अन्य श्रमिक संगठनों ने ब्याज दर में इस कटौती की आलोचना की है. वहीं श्रम मंत्रालय इस बारे में वित्त मंत्रालय के फैसले की समीक्षा करवाने की योजना बना रहा है.

सीबीटी का प्रस्ताव था अलग

श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने लोकसभा में एक लिखित जवाब में कहा,‘ईपीएफओ के निर्णय लेने वाले शीर्ष निकाय सीबीटी की फरवरी, 2016 में हुई बैठक में 2015-16 के लिए केंद्रीय भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के 5 करोड़ से अधिक अंशधारकों के लिए 8.8 प्रतिशत की अंतरिम दर से ब्याज दिए जाने का प्रस्ताव रखा था. हालांकि, वित्त मंत्रालय ने 8.7 प्रतिशत की ब्याज दर मंजूर की है.’ दत्तात्रेय सहित श्रम मंत्रालय के आला अफसरों ने इस मुद्दे पर दो घंटे से भी अधिक समय तक विचार विमर्श किया.

श्रम मंत्रालय के सूत्रों ने कहा कि मंत्रालय, वित्त मंत्रालय के फैसले की समीक्षा चाहेगा क्योंकि ईपीएफओ के पास 2015-16 के लिए ऊंचा रिटर्न देने के लिए पर्याप्त आय है. संभवत: यह पहला अवसर है जब वित्त मंत्रालय ने ईपीएफओ के केंद्रीय न्यासी बोर्ड (सीबीटी) के फैसले को दरकिनार करते हुए अंशधारकों को देय ब्याज में कमी की है. यानी उसने श्रम मंत्री की अध्यक्षता वाले सीबीटी की सिफारिश को नहीं माना है.

यह ईपीएफओ की स्वायत्ता में हस्तक्षेप

वहीं श्रमिक संगठनों की लगभग एक राय है कि वित्त मंत्रालय का उक्त फैसला कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईएफओ) की स्वायत्ता में हस्तक्षेप है. भारतीय मजदूर संघ के महासचिव वृजेश उपाध्याय ने कहा, बीएमएस कर्मचारी भविष्य निधि ब्याज दरों में कटौती की पुरजोर आलोचना करता है और 27 अप्रैल को ईपीएफओ कार्यालयों पर प्रदर्शन करेगा.

उन्होंने यह भी कहा कि कोष का प्रबंधन केंद्रीय न्यासी बोर्ड(सीबीटी)करता है, जो एक स्वतंत्र तथा स्वायत्त निकाय है. उन्होंने कहा कि वित्त मंत्रालय का कोष के कामकाज से कुछ भी लेना-देना नहीं है, क्योंकि न तो उसका वित्त पोषण करता है और न ही उसका प्रबंधन.

 

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