सवाल
मैं 28 साल की युवती हूं. देखने में खूबसूरत हूं लेकिन मेरे दांतों का पीलापन मेरी खूबसूरती को फीका कर देता है, जबकि मैं रैग्युलर दोनों वक्त सुबह व रात को सोने से पहले ब्रश कर के सोती हूं. मैं दांतों के डाक्टर के पास नहीं जाना चाहती. कुछ आसान से घरेलू उपाय बताएं जिन्हें अपना सकूं.
जवाब
कुछ आहार ऐसे होते हैं जिन में टैनिक एसिड उच्च मात्रा में होता है जिस से दांतों में पीलापन आ जाता है. इस के अलावा कौफी और सोडा से भी दांत पीले हो सकते हैं. धूम्रपान, कुछ मैडिकल ट्रीटमैंट चल रहा हो या सही तरीके से ब्रश न करना या फिर अत्यधिक फ्लोराइड के कारण भी दांतों का पीलापन बढ़ने लगता है.
खैर इन में कोई वजह आप को नहीं दिख रही है तो अपने खानपान पर ध्यान दें. शरीर में पोषण या कैल्शियम की कमी होगी तो कितने ही नुस्खे अपना लें, दांत सफेद नहीं होंगे. इसलिए आहार विटामिन डी और कैल्शियम से भरपूर लें. चिपचिप कैंडी, स्टार्चयुक्त खाद्य पदार्थ, कार्बोनेटेड पेय पदार्थ का सेवन न करें.
रही बात घरेलू उपाय अपनाने की तो बेकिंग सोडा दांतों पर रगड़ें या टूथपेस्ट में मिला कर ब्रश कर सकती हैं. आप चाहें तो इस में नमक भी मिला सकती हैं. नारियल का तेल 15-20 मिनट दांतों पर लगा रहने दें फिर ब्रश कर लें. पीलापन कम होगा. हींग पाउडर को पानी में उबाल कर ठंडा कर लें. दिन में 2 बार इस से कुल्ला करें. ये कुछ घरेलू उपाय हैं जो आप अपना सकती हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनता को संबोधित करने के लिए मंच पर जब आते हैं तो जनता के रोजमर्रा के हित से जुड़ी कोई बात उन के भाषण में नहीं होती है. न वे गरीबों के बच्चों की शिक्षा की बात करते हैं, न युवाओं को रोजगार देने की बात करते हैं, न बढ़ती महंगाई को कम करने की बात करते हैं, न बिजली-पानी-रसोई गैस की दरों में कमी लाने की बात करते हैं, न पुरानी पैंशन पर कोई आश्वासन और न किसानों को कोई राहत. वे मंच पर चढ़ कर पहली बात यह बताते हैं कि आज उन को कितने नंबर की गाली पड़ी. आज उन को विपक्ष के किस नेता ने क्या कहा.
प्रधानमंत्री मोदी मंच से लोगों को बताते हैं कि हम विश्व की सब से बड़ी इकोनौमी बनने वाले हैं, हम विश्वगुरु बनने वाले हैं, भव्य राम मंदिर बनने से विश्व में भारत का गौरव बढ़ रहा है. सेनाओं का शौर्य बढ़ रहा है. लेकिन इन बातों से आम आदमी को क्या लेनादेना? देश का गरीब आदमी जिस को दोपहर की दो रोटी मिलने के बाद इस बात की चिंता होने लगती है कि पता नहीं रात की रोटी उस को और उस के बच्चों को मिलेगी या नहीं, उस को आप के विश्वगुरु हो जाने से क्या फायदा? आप विश्वगुरु हो जाएं या अंतरिक्ष गुरु, अगर गरीब के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम नहीं कर सकते, उस के बच्चों को शिक्षा नहीं दे सकते, उस के जवान लड़के के हाथों को रोजगार नहीं दे सकते, तो उस की नजर में आप जीरो हैं.
भाजपा जहांजहां भी सत्ता में आई वह रोटी-रोजगार के मुद्दे पर नहीं, बल्कि धर्म के नाम पर देश की जनता के बीच घृणा, वैमनस्य और ध्रुवीकरण पैदा कर के आई है. उस ने जनता को डराया कि हिंदू खतरे में है. उस ने विश्वास दिलाना चाहा कि राम मंदिर निर्माण से ही धर्म की रक्षा होगी. नोटबंदी कर कालाधन निकालने और गरीब के खाते में 15-15 लाख रुपए डालने की झूठी बातें फैला कर उसे झांसे में लिया, मगर सत्ता पाने के बाद वह न गरीब की हुई, न किसान और जवान की. वह तो उद्योपतियों, पूंजीपतियों की कठपुतली बन कर रह गई.
आज भाजपा की बड़ीबड़ी बातों में आम आदमी – किसान, मजदूर, जवान कहीं नहीं है. जबकि विपक्ष के नेता सड़क से संसद तक सीधे जनता से जुड़े मसलों पर बात करते हैं. खासतौर पर आम आदमी पार्टी के नेता और नेतृत्व न सिर्फ जनता के हित की बातें करते आए हैं, बल्कि उन्होंने किया भी है.
आज दिल्ली की अधिकांश जनता को प्रतिमाह आने वाले बिजली-पानी के हजारों रुपए के बिल से राहत मिल चुकी है. गरीबों के बच्चे जिन सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे हैं उन की व्यवस्था किसी प्राइवेट स्कूल की व्यवस्था से कम नहीं है. यही वजह थी कि अरविंद केजरीवाल के पहले मुख्यमंत्रित्व काल का सुशासन देख दूसरी बार भी दिल्ली की जनता ने उन्हें सिरआंखों पर बिठाया. पंजाब में कांग्रेस की जड़जमाई सत्ता को उखाड़ फेंका और आम आदमी पार्टी की सरकार बनवा दी. आजादी के बाद के सात दशकों में आम आदमी पार्टी पहली राजनीतिक पार्टी है जिस ने इतनी तेजी से अपनी जगह जनता के दिल में बनाई.
मगर आम आदमी पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता भाजपा को खटक गई. भाजपा जो आने वाले चंद सालों में ही तानाशाह होने का सपना देखने लगी थी, को आम आदमी पार्टी के कार्यों और उस की लोकप्रियता से खौफ पैदा हो गया. तानाशाही को जनता के सवाल, जनता के मुद्दे पसंद नहीं हैं. लिहाजा, जनता के लिए काम करने वाली पार्टी को खत्म करना जरूरी हो गया. इस के लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों के जरिए पूरी रणनीति तैयार की गई.
पीएमएलए कानून में बदलाव किया गया. कानून को ऐसा बना दिया कि सिर्फ आरोप लगाने भर से ही किसी को जेल भेजा जा सकता है. फिर केजरीवाल पर सीधे हाथ न डाल कर ईडी के जरिए पहले आम आदमी पार्टी के सैकंड लाइन के नेताओं सत्येंद्र जैन, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह को शराब घोटाले में जेल में डाला गया. जबकि आज तक ईडी इस मनीलौन्ड्रिंग केस में फूटी कौड़ी बरामद नहीं कर पाई है. अब आम चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी जेल भेज दिया गया है ताकि चुनाव में खुल कर खेलने के लिए मैदान खाली हो जाए.
लंबे समय से भाजपा की कोशिश थी कि किसी तरह दिल्ली की सरकार गिरा दी जाए और आम आदमी पार्टी के नेताओं को बिखरा दिया जाए. साथ ही साथ वे केंद्रीय जांच एजेंसियों के माध्यम से कांग्रेस को भी धमकाते रहे, तृणमूल के लिए भी मुसीबतें पैदा करते रहे तो बहुजन समाज पार्टी की मायावती को भी धौंस में लिए रहे. कुल जमा यह कि लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकारों को गिराने और उन के गठबंधनों को तोड़ने की रणनीति में भाजपा ने अमानवीयता की सारी हदें पार कर दीं.
विपक्षी नेताओं को डराने के लिए सीबीआई (केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो), आईटी (आयकर विभाग) और ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) जैसी जांच एजेंसियों को उन के पीछे लगा दिया गया. जो विपक्षी हाथपैर जोड़ कर भाजपा में आ गया उस के ऊपर से सारे मुकदमे हटा लिए गए; जो नहीं आए उन को ईडी के जरिए जेल में ठूंसने लगे.
भाजपा की केंद्र सरकार में अगर किसी जांच एजेंसी पर सब से ज्यादा दाग लगे हैं तो वह है ईडी. जो आरोपियों को जेल में ठूंसने के बाद आका के इशारे पर उन्हें ज्यादा से ज्यादा समय तक जेल में रखने के लिए कोर्ट में तारीख पर तारीख लेती रहती है और आरोपपत्र दाखिल नहीं करती कि केस ट्रायल की स्टेज पर पहुंचे.
यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा कि, केंद्रीय एजेंसियों को राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों की जांच पर ही फोकस करना चाहिए. ईडी का खेल देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2 अप्रैल, 2024 को यह कहते हुए आप नेता संजय सिंह को जमानत दे दी कि जब पैसे की कोई रिकवरी अब तक नहीं हुई तो संजय सिंह को और अधिक समय तक हिरासत में रखने की आवश्यकता क्यों है? आखिर संजय सिंह 6 महीने बाद जेल से बाहर आ गए. जल्दी ही मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन भी रिहा होंगे. मगर भाजपा को फिर भी शर्म नहीं आएगी.
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी भारतीय जनता पार्टी की आसन्न हार के मद्देनजर बढ़ती हताशा को दर्शाती है. विपक्षी एकता से डरी भाजपा विपक्षी इंडिया गठबंधन को कमजोर करने के लिए हर दांव आजमा रही है. भाजपा आलाकमान विपक्षी गठबंधन के नेताओं को हर मंच से देश के ‘दुश्मन’ और ‘भ्रष्टाचारी’ करार देने में जुटे हैं. हालांकि सुप्रीम कोर्ट का डंडा पड़ने पर जब इलैक्टोरल बौंड की हकीकत खुली तो जनता ने देखा कि सब से बड़े भ्रष्टाचारी और घोटालेबाज कौन है? बावजूद इस के, भाजपा को शर्म नहीं आई और उस के तमाम प्रवक्ता गोदी मीडिया के मंच पर दूसरी पार्टियों के नेताओं से बहस के नाम पर बदतमीजियां करते ही दिखाई दिए, खासतौर पर आप नेताओं के साथ.
सत्ता के तलुवे चाटने वाला गोदी मीडिया भले दिनभर भाजपा की आरती उतारता रहे मगर दिनभर इन चैनलों को देखने वाले लोग हैं कितने? जो लोग टीवी देखते भी हैं उन को अब समाचार चैनलों के चीखतेचिल्लाते एंकरों में कोई दिलचस्पी नहीं है. असली सच तो सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर है, जहां आम जनता भाजपा को गरियाती नजर आ रही है, खासतौर पर दिल्ली की. दिल्ली की चुनी हुई सरकार को नष्ट करने के लिए जो गंदा खेल खेला जा रहा है उस से जनता में खासा आक्रोश है.
भाजपा अच्छी तरह से जानती थी कि अरविंद केजरीवाल के चुनावी प्रचार अभियान में भारी भीड़ उमड़ेगी और इसीलिए उन के प्रचार को रोकने के लिए ईडी को मुस्तैद किया गया, चुनावी तारीखों का इंतजार किया गया और आखिरकार केजरीवाल को जेल भेज दिया गया. केजरीवाल अब लंबे समय तक जेल में रहेंगे, इस की पूरी संभावना है, क्योंकि ईडी पूछताछ और सहयोग न करने के नाम पर आगे की तारीखें लेती रहेगी.
आम आदमी पार्टी में बचे कुछ मजबूत नेता जिन में सौरभ भारद्वाज और आतिशी मर्लेना के नाम सब से ऊपर हैं, को भी कुछ ही समय में सलाखों में डाल दिया जाएगा. लेकिन देश की जनता इन साजिशों को समझ नहीं रही है, या इन खबरों पर उस की नजर नहीं है, इस मुगालते में भाजपा को नहीं रहना चाहिए. जनता देख भी रही है, समझ भी रही है और लोकसभा चुनाव में जवाब देने के लिए तैयार भी बैठी है. गौरतलब है कि चुनाव आयोग से ले कर केंद्रीय जांच एजेंसियों और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के वक्तव्यों तक पर सुप्रीम कोर्ट भी पैनी नजर बनाए हुए है.
31 मार्च को दिल्ली के रामलीला मैदान में इंडिया गठबंधन की महारैली ने यह साबित कर दिया है कि देश के 2 राज्यों के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल को जेल भेजने से इंडिया गठबंधन और मजबूत हुआ है. अभी तक जो बिखराव और तनातनी गठबंधन के नेताओं के बीच दिख रही थी वह भी बिलकुल खत्म हो चुकी है.
इंडिया गठबंधन के सभी नेता रामलीला मैदान में आयोजित रैली में मौजूद थे, जबकि केजरीवाल और सोरेन के लिए मंच की पहली पंक्ति में 2 कुरसियां प्रतीकात्मक विरोध दर्ज कराने के लिए खाली छोड़ी गई थीं. इस दौरान केजरीवाल, सोरेन और आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह तथा सत्येंद्र जैन की पत्नियां भी मौजूद रहीं. इस दृश्य ने जनता के दिल में हमदर्दी ही पैदा की है. मंच से नेताओं के भाषणों ने भी इस बात को पुख्ता किया कि भाजपा द्वारा ‘अलोकतांत्रिक बाधाएं’ पैदा करने के बावजूद गठबंधन लड़ने, जीतने और देश का लोकतंत्र बचाने के लिए प्रतिबद्ध है. इस रैली में हजारों की संख्या में दिल्ली की जनता ने भाग लिया. इस से चुनाव में भाजपा को हराने का इंडिया गठबंधन का संकल्प और मजबूत हुआ है.
सवाल
मेरी भाभी की उम्र 24 साल है. मैं उन से 2 साल छोटी हूं. मुझे लगता है कि वे डिप्रैशन में हैं. भैया और भाभी की शादी को अभी एक साल भी नहीं हुआ है. भाभी हमेशा या तो किताबों में डूबी रहती हैं या एकटक किसी दिशा में देखती रहती हैं. मुझे नहीं लगता कि वे भैया के साथ खुश हैं. मैं उन से पूछती हूं तो वे कुछ बताती नहीं हैं. वे कुछ खाती भी नहीं हैं, इसलिए उन का वजन भी लगातार घट रहा है. मैं उन की कैसे मदद कर सकती हूं?
जवाब
आप अपने भैया से इस बारे में बात कीजिए. हो सकता है वे अपनी पत्नी के डिप्रैशन की वजह जानते हों. वे इस में मदद कर सकते हैं. या आप अपनी भाभी से अकेले में पूछने की कोशिश कीजिए कि वे आप के भाई के साथ खुश हैं या नहीं. यदि नहीं तो इस का कारण जानने की कोशिश कीजिए. उन्हें कोई बात अंदर ही अंदर खाए जा रही होगी, इसीलिए आप को उन में अवसाद के लक्षण दिखाई देने लगे हैं. अपनी भाभी की किसी करीबी सहेली या परिवार के किसी सदस्य को इस बारे में बता दीजिए, जिस से वे मदद के लिए आगे आ पाएं.
अवसादग्रस्त व्यक्ति के मन की बात जानना बेहद कठिन होता है और इस के चलते डाक्टर से संपर्क करना अनिवार्य होता है. यदि डाक्टरी सहायता की जरूरत पड़े तो अधिक न सोचें.
अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem
वालेंसिया के पौलिटैक्निक विश्वविद्यालय में सौर विकिरण अनुसंधान समूह के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन किया. अध्ययन के निष्कर्षों को जर्नल औफ द टोटल एनवायरनमैंट में प्रकाशित किया गया. शोध के अनुसार बसंत और ग्रीष्मकाल में विटामिन डी के लिए धूप में 10 से 20 मिनट बैठना पर्याप्त है. लेकिन सर्दी में एक व्यक्ति को विटामिन डी की पर्याप्त मात्रा लेने के लिए कम से कम 2 घंटे बैठने की आवश्यकता होती है. सर्दी और गरमी के बीच यह अंतर इसलिए है क्योंकि सर्दी में हमारी बौडी सिर्फ 10 फीसदी ही सूर्य की किरणों के संपर्क में आ पाती है. इसलिए सर्दी में विटामिन डी की पर्याप्त मात्रा प्राप्त करने में अधिक समय लगता है. वहीं गरमी में हमारे शरीर का 25 फीसदी भाग सूर्य के प्रकाश के संपर्क में होता है और हमें पोषक तत्त्वों को अवशोषित करने के लिए कम समय की आवश्यकता होती है.
दरअसल सूरज की किरणें विटामिन डी प्राप्त करने का सब से आसान और जबरदस्त स्त्रोत होती हैं. धूप में कुछ देर बैठ कर आसानी से विटामिन डी प्राप्त किया जा सकता है. यह हमारे शरीर के लिए एक बहुत ही आवश्यक पोषक तत्त्व है. जबकि इस विटामिन की कमी न सिर्फ अधिकतर भारतीयों में बल्कि दुनियाभर के लोगों में देखी जाती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि लोग गरमी में अलगअलग कारणों से जैसे कि टैनिंग होने का डर, सनबर्न और शरीर में बेचैनी आदि के चलते धूप में नहीं बैठते हैं.
जब शरीर में इस विटामिन की कमी होने लगती है तो शरीर के अंग अलगअलग तरह से प्रभावित होने लगते हैं. हम इस पोषक तत्त्व को भोजन से पर्याप्त रूप से प्राप्त नहीं कर सकते हैं. इसलिए जरूरी है कि विटामिन डी को धूप में बैठ कर ग्रहण किया जाए भले ही मौसम गरमी का हो या सर्दी का.
जब हमारी त्वचा धूप के संपर्क में आती है तो यह कोलैस्ट्रौल के साथ मिल कर विटामिन डी बनाती है. यह पोषक तत्त्व शरीर में कैल्शियम और फोस्फेट के अवशोषण के लिए भी महत्त्वपूर्ण है. यह आप के दांतों और हड्डियों को मजबूत रखने में मदद करता है. विटामिन डी की कमी से हड्डियों, कमजोर मांसपेशियों, रिकेट्स और औस्टियोपोरोसिस जैसी कई स्वास्थ्य समस्याएं हो जाती हैं.
विटामिन डी एक ऐसा विटामिन है जो कि जो शरीर में मैसेजिंग पावर बढ़ाने में मदद करता है, यानी कि यह विटामिन आप के लिए न्यूरोट्रांसमीटर की तरह काम करता है और ब्रेन से ले कर शरीर के हर अंग तक मैसेजिंग का काम करता है.
इस के अलावा यह हार्मोनल हैल्थ को भी बेहतर बनाने में मदद करता है. जिन लोगों में इस विटामिन की कमी होती है उन की मानसिक सेहत प्रभावित हो जाती है. साथ ही, विटामिन डी शरीर में डोपामाइन के लैवल को भी प्रभावित करता है और डिप्रैशन जैसे मनोरोगों का कारण बन सकता है. ऐसे में जरूरी है कि आप विटामिन डी की कमी से बचें और धूप इस काम में मदद कर सकती है.
रोजाना सुबह की धूप लेने से कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से भी बचा जा सकता है. सूरज की किरणों में एंटी कैंसर तत्त्व मिले होते हैं जिन से व्यक्ति को कैंसर का खतरा कम हो जाता है. इस के साथ ही जिन लोगों को कैंसर हैं वे भी धूप में आराम कर सकते हैं. लेकिन ध्यान रखें कि सही समय पर ही धूप लें. सूरज की रोशनी में कई ऐसे गुण पाए जाते हैं जो शरीर में मौजूद इंफैक्शन से लड़ने में हमारी मदद करते हैं. धूप सेंकने से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और शरीर बीमारियों से लड़ने के लिए तैयार हो जाता है. शरीर का ब्लड सर्कुलेशन सही रहता है. शरीर को ऊर्जा मिलती है और शरीर एनर्जेटिक रहता है.
यह कहना गलत नहीं होगा कि बहुत कम ऐसी चीजें हैं जिन में विटामिन डी होता है. ओकरा, डेयरी उत्पाद और मशरूम में विटामिन डी पाया जाता है. विटामिन डी का डेली रिकमेंडेशन डाइटरी इनटेक (आरडीआई) लैवल 70 वर्ष से कम उम्र के लोगों के लिए 600 आईयू और 70 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों के लिए 800 आईयू है. रोजाना कुछ समय धूप में बिताने से आप का शरीर पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी बना सकता है और रोजाना की जरूरत पूरी कर सकता है.
विटामिन डी की कमी होने के कई कारण हैं, मसलन गरमी में बाहर धूप में निकलने से बचना, बदन ढकने वाले पहनावे और सिटिंग जौब करने की मजबूरी.
गरमी के मौसम में अकसर लोग धूप में निकलने से बचते हैं क्योंकि सुबह से ही धूप में काफी गरमी होती है. यही नहीं, शरीर को धूप का फायदा मिले, इस के लिए शरीर के एकतिहाई हिस्से का धूप में एक्सपोजर जरूरी होता है. लेकिन भारतीय पहनावे में शरीर का अधिकांश हिस्सा ढका रहता है जिस वजह से शरीर को जरूरी धूप और धूप से मिलने वाली विटामिन डी नहीं मिल पाती.
इस के अलावा इन दिनों सिटिंग जौब का प्रचलन बढ़ गया है. लोग एसी कार या मैट्रो में औफिस आते हैं. दिनभर एसी केबिन में बैठेबैठे काम करते हैं और देर शाम को घर जाते हैं. इस लाइफस्टाइल में उन्हें धूप में निकलने का मौका ही नहीं मिलता.
गरमी में सुबह का वक्त धूप लेने के लिए सब से सही माना जाता है. रोजाना सुबह 6 बजे से 9.30 के बीच आप कभी भी 15-20 मिनट तक धूप लें तो यह पर्याप्त होता है. जिस दिन तापमान बहुत अधिक हो उस दिन दोपहर में धूप में निकलने से बचना चाहिए क्योंकि इस से सनबर्न से ले कर स्किन कैंसर जैसी समस्याएं हो सकती हैं. लू लगने का भी खतरा रहता है.
शहरों में ज्यादातर लोगों के घर कई मंजिला होते हैं और आसपास सटे हुए होते हैं जिस से बालकनी, छत या गार्डन में धूप लेना संभव नहीं हो पाता. ऐसे में अगर घर से बाहर निकलना मुमकिन नहीं है तो खिड़की के पास खड़े हो कर भी धूप ली जा सकती है. खिड़कियों के परदे और शेड्स रोजाना कुछ घंटों के लिए खुले छोड़ दें ताकि धूप और ताजी हवा घर के अंदर आ सके.
कांच की खिड़कियां हमेशा साफ रखें ताकि उन के जरिए धूप घर के अंदर आ सके. कांच पर जमी धूल रोशनी के समुचित आगमन को रोकती है. सूरज की रोशनी का प्रभाव बढ़ाने के लिए दीवारों पर हलके रंगों के पेंट का इस्तेमाल करें. ये पेंट सूरज की रोशनी को कमरे में बिखेरते हैं. खिड़की के सामने की दीवार पर बड़े आकार का शीशा लगाएं. इस से कमरे में दाखिल होने वाली धूप रिफ्लेक्ट हो कर बिखर जाएगी.
Social Story in Hindi
जसप्रीत कौर की सांस बहुत तेजी से चल रही थी. 65 साल की उम्र में कभी कोई उन्हें प्रोपोज करेगा, उन्होंने कभी भी नहीं सोचा था. जसप्रीत को समझ नहीं आ रहा था कि मानव की बात का वह क्या जवाब दे? क्या यह कोई उम्र है उस की अपने बारे में सोचने की? कुछ ही सालों में तो उस के पोतेपोतियों की शादी होगी. मगर जसप्रीत फिर भी अपनेआप को रोक नहीं पा रही थी. बरसों बाद जसप्रीत को लग रहा था कि वह भी एक औरत है जिसे कोई पुरुष पसंद कर सकता है. मगर क्या एक उम्र के बाद औरत औरत रह जाती है या उसे एक बेजान सामान मान लिया जाता है जैसेकि घर में पड़ा हुआ फालतू फर्नीचर, जिस के न होने से घर खालीखाली लगता है मगर उस का घर में कितना योगदान है किसी को पता नहीं होता.
जसप्रीत को पहननेओढ़ने का बेहद शौक था. शोख रंग जसप्रीत के गोरे रंग पर बेहद फबते भी थे. आज भी जसप्रीत को ऐसा लगता है मानों यह हाल ही की बात हो. हर साल लोहड़ी और बैसाखी पर जसप्रीत आबकारी के सलमासितारों वाले दुपट्टे लेती थी. सिल्क, शिफौन, क्रैब और भी न जाने कितने तरह के सूट जसप्रीत के पास थे. सूट ही नहीं, उसे साड़ियों का भी बेहद शौक था. घर की अलमारी जसप्रीत के कपङों से भरी हुई थी.
पति महेंद्र सिंह को भी जसप्रीत को सजाने का बेहद शौक था. मगर जब कुलवंत 13 साल का था और ज्योत 10 साल की थी तभी महेंद्र सिंह की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी. 2 महीने तक तो जसप्रीत को अपना भी होश नहीं था. मगर फिर बच्चों का मुंह देख कर जिंदगी की तरफ लौटना पड़ा. लगभग 2 महीने बाद जब जसप्रीत ने अलमारी खोली तो उस का मन रुआंसा हो गया था. कितने शौक से उस ने सब कपड़े बनवाए थे. जसप्रीत खड़ीखड़ी रोने लगी तब उस की सास नवाब कौर बोलीं,”पुत्तर, कुदरत के आगे किस की चलती है?”
“तू दिल छोटा मत कर. तू नहीं तो तेरी दुरानी, भाभियां ये कपड़े पहन लेंगी.” जसप्रीत बोलना चाह रही थी कि उस का पति मरा है मगर वह अभी जिंदा है. देखते ही देखते जसप्रीत के कपड़े बांट दिए गए थे. उस की जिंदगी की तरह उस के कपड़े भी बेरंग हो गए थे. देवर और दुरानी ने एहसान जताते हुए कहा,”भाभी, बीजी को आप के पास छोड़े जा रहे हैं, आप को सहारा भी हो जाएगा और आप का मन भी लगा रहेगा.”
जसप्रीत को समझ ही नहीं आ रहा था कि सास नवाब कौर उस का सहारा बनेंगी या जसप्रीत को उन का सहारा बनना पड़ेगा. नवाब कौर के साथ रहने से जसप्रीत को उन के हिसाब से और बच्चों के हिसाब से खाना बनाना पड़ता था. जसप्रीत जरा भी हंसबोल लेती तो नवाब कौर की त्यौरियां चढ़ जाती थीं. उन्हें लगता कि जैसे जसप्रीत बेहयाई कर रही हो. घर से दफ्तर जाते हुए और दफ्तर से घर आ कर जसप्रीत को सारा काम करना पड़ता था और सास की दवापानी का भार अलग से था.
1 साल के भीतर ही जसप्रीत मुरझा गई थी. उस की सांसें तो चल रही थीं मगर जिंदगी कहीं पीछे छूट गई थी. तभी जसप्रीत की जिंदगी में विपुल का पदार्पण हुआ. विपुल जसप्रीत के भाई का दोस्त था. वह कभीकभी जसप्रीत के छोटेमोटे काम कर देता था. जसप्रीत और विपुल करीब आ गए थे. कभीकभी जसप्रीत विपुल के घर भी चली जाती थी. जसप्रीत अब फिर से जिंदगी की तरफ दोबारा कदम बढ़ा रही थी. जसप्रीत ने विपुल की जिंदगी में अपना दोयम दरजा स्वीकार कर लिया था. मगर एक दिन जब जसप्रीत और विपुल को जसप्रीत के देवर ने देख लिया तो उस को लानतसलामत दी गई. जसप्रीत के देवर ने कहा, “भाभी, आप को शर्म नहीं आती इस उम्र में यह सब करते हुए?”
उधर जसप्रीत की सास लगातार बोल रही थीं,”औरतें तो अपने सुहाग के साथ सती हो जाती हैं और एक यह है. अरे, 40 साल की उम्र में कौन सी जवानी चढ़ी हुई है तुम्हें?” जसप्रीत के पास इन बातों का कोई जवाब नहीं था. उधर विपुल भी सब बातों के बाद जसप्रीत से कन्नी काटने लगा था. इस घटना के बाद जसप्रीत की सास अधिक चौकन्नी हो गई थी.
जसप्रीत का परिवार भी जसप्रीत को उस की जिम्मेदारियों से अवगत कराता था कि कैसे एक मां बन कर उसे अपने बच्चों के लिए रोल मौडल बनना है. जसप्रीत ने अपने अंदर की औरत का गला घोंट दिया था.
जसप्रीत की सास के साथसाथ जसप्रीत के अपने मातापिता भी उस की ही जिम्मेदारी बनते जा रहे थे. जब भी भाईभाभियों को कहीं घूमने जाना होता था तो जसप्रीत के मातापिता महीनों उस के साथ रहते थे. जसप्रीत का भी मन करता था बाहर घूमनेफिरने का, मगर न तो हालातों ने कभी इस बात की इजाजत दी और न ही जसप्रीत के आसपास वालों को इस की कभी जरूरत लगी.
जसप्रीत की सास और बाकी परिवार उस को बचत और हाथ रोक कर खर्च करने की ही सलाह देता था. विपुल की घटना के बाद भी जसप्रीत की जिंदगी में पुरषों का सिलसिला चलता रहा. बस, अब जसप्रीत पहले से ज्यादा सतर्क हो गई थी. कभीकभी जसप्रीत को लगता जैसे वह खुद को औरत साबित करने के लिए इधरउधर रेगिस्तान में भटक रही है. जहां भी उसे लगता कि पानी है वह मिराज निकलता. जसप्रीत को लगने लगा था कि वह इंसान नहीं एक सामान है. जब तक वह पुरुष को दैहिक सुख दे सकती है तब तक ही पुरुष उस के आसपास बने रहेंगे.
जल्द ही उस को यह बात समझ आ गई थी कि उस की आंतरिक प्यास इधरउधर के अफेयर से कभी नहीं बुझ पाएगी. वह अपनेआप में सिमट गई थी. जसप्रीत को कुदरत ने एक बेटा दिया हुआ है, थोड़े दिनों की बात और है अब उस के दुख खत्म हो जाएंगे. उन दिनों उस ने भी इन बातों पर विश्वास कर लिया था. जसप्रीत के जीवन की धुरी अब कुलवंत और ज्योत बन गए थे. मगर फिर भी क्यों जसप्रीत के अंदर का खालीपन बढ़ता ही जा रहा था. देखते ही देखते जसप्रीत 55 की हो गई थी. कुलवंत अब परिवार में मुखिया की भूमिका निभा रहा था.
कुलवंत का विवाह हो गया था. कुलवंत अपनी पत्नी में डूब गया था और ज्योत ने भी जल्द ही अपनी पसंद से विवाह कर लिया था. जसप्रीत की सास और मातापिता का निधन हो गया था. कुलवंत बराबर अपनी मां पर पैतृक घर बेचने का दबाव डाल रहा था. जसप्रीत अब 62 की हो गई थी. नौकरी प्राइवेट थी, इसलिए पेंशन नहीं थी. लोगों की सलाह पर उसे लगा कि बेटे से बिगाड़ना ठीक नहीं है इसलिए उस ने घर बेच दिया. कुलवंत ने एक शानदार सोसायटी में फ्लैट ले लिया था. उस फ्लैट में जसप्रीत एकाएक बूढ़ी और अकेली हो गई थी. सारा दिन वह घर के कामों में लगी रहती और अपनी पोती झलक को संभालती. जसप्रीत की जिंदगी बेरंग हो गई थी.
जब झलक का 10वां बर्थडे था तब जसप्रीत की बहू अजीत कौर की मम्मी हरप्रीत भी आई हुई थीं. रंगों और शोखी से भरपूर हरप्रीत को देख कर कोई नहीं कह सकता था कि उन की इतनी बड़ी नातिन हैं. हरप्रीतजी ने ही जबरदस्ती उस रोज जसप्रीत को गुलाबी रंग का सूट पहनाया जो उन के रंग में घुल सा गया था. जाने से पहले हरप्रीतजी ने जसप्रीत से कहा,”आप खुद के लिए जीना सीखिए, आप बस 62 साल की हुई हैं, अभी भी आप के पास जिंदगी है.”
अब जसप्रीत धीरेधीरे ऐक्सरसाइज में ध्यान लगाने लगी थी. सोसायटी के क्लब में जाने से जसप्रीत को अपने कुछ हमउम्र मिले और उसे कुछ ऐसे रास्ते भी मिले जिस से वह अपने लिए कमा भी सकती थी. उस ने धीरेधीरे अपने हमउम्र लोगों की सहायता से औनलाइन ट्रक्सैक्शन, इन्वेस्टमैंट और बैंकिंग सीखी. उस ने अपने आर्थिक फैसले खुद लेने शुरू कर दिए.
जैसे ही जसप्रीत आर्थिक रूप से स्वावलंबी हुई उस के पंख खुलने लगे. बच्चों की जिम्मेदारियां भी पूरी हो गई थीं. इसलिए जसप्रीत ने अब देश घूमने का फैसला किया था. उस के बाहर घूमने का फैसला उस के बेटे को पसंद नहीं आया था. मगर क्योंकि वह अपने पैसे से जा रही थी कोई कुछ बोल नहीं पाया था.
नमिता और अजय की आज शादी है. हमारे शहर के सब से बड़े उद्योगी परिवार का बेटा है अजय, जो अमेरिका से पढ़ाई पूरी कर के अपना कारोबार संभालने हिंदुस्तान आ गया है. अजय के बारे में अखबारों में बहुत कुछ पढ़ने को मिला था. उस की उद्योग विस्तार की योजना, उस की सोच, उस की दूरदृष्टि वगैरहवगैरह और नमिता, हमारे साथ पढ़ने वाली बेहद खूबसूरत लड़की. नमिता की खूबसूरती और उस के कमिश्नर पापा का समाज में रुतबा, इसी के बलबूते पर तो यह शादी तय हुई थी.
कला, काव्य, संगीत आदि सारे रचनात्मक क्षेत्रों में रुचि रखने वाली और पढ़ाई कर के कुछ बनने की चाह रखने वाली नमिता ने अजय जैसा अमीर और पढ़ालिखा वर पाने के लिए अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़ दी. रईस खानदान में शादी की तुलना में पढ़ाई का कोई महत्त्व नहीं रहा.
शादी में पानी की तरह पैसा बहाया गया. शादी के फोटो न केवल भारत में बल्कि विदेशी पत्रिकाओं में भी छपवाए गए. नमिता की खूबसूरती के बहुत चर्चे हुए. नवविवाहित जोड़ा हनीमून के लिए कहां गया, इस के भी चर्चे अखबारों में हुए. फिर आए दिन नमिता की तसवीरें गौसिप पत्रिकाओं में छपने लगीं. लोग उसे रईस कहने लगे और वह पेज 3 की सदस्य बन गई.
एक दिन उस्ताद जाकिर हुसैन का तबलावादन का कार्यक्रम हमारे शहर में था. हम दोस्तों ने नमिता को फोन किया और पूछा, ‘‘चलोगी उस्ताद जाकिर हुसैन का तबला सुनने?’’
हंस कर वह बोली, ‘‘मैं तो कल शाम ही उन से मिलने होटल में गई थी. हमारे बिजनैस हाउस ने ही तो यह कार्यक्रम आयोजित किया है. आज रात उन का खाना हमारे घर पर है. अजय चाहते हैं घर की सजावट खास भारतीय ढंग से हो और व्यंजन भी लजीज हों. इसलिए आज मुझे घर पर रह कर सभी इंतजाम देखने होंगे. आप लोग तबलावादन सुन कर आओ न. हां, आप लोगों को फ्री पास चाहिए तो बताना, मैं इंतजाम कर दूंगी.’’
हम दोस्तों ने उस का आभार मानते हुए फोन रख दिया.
एक दिन पेज 3 पर हम ने उस की तसवीरें देखीं. बेशकीमती साड़ी पहने, मेकअप से सजीधजी गुडि़या जैसी नमिता अनाथालय के बच्चों को लड्डू बांट रही थी. ऐसे बच्चे, जो एक वक्त की रोटी के लिए किसी के एहसान के मुहताज हैं. उन के पास जाते हुए कीमती साड़ी व गहने पहन कर जाना कितना उचित था? वह चाहे गलत हो या सही, मगर बड़े उद्योगी परिवार की सोच शायद यही थी कि बहू की फोटो अनाथों के साथ छपेगी तो वह ऐसी ही दिखनी चाहिए.
उस के जन्मदिन पर बधाई देने के लिए हम ने उसे फोन मिलाना चाहा. काफी देर तक कोई जवाब नहीं मिला, तो हम ने सोचा नमिता अजय के साथ अपना जन्मदिन मना रही होगी. दोनों कहीं बाहर घूमने गए होंगे.
2 घंटे बाद उस का फोन आया, ‘‘मैं तो फलां मंत्रीजी की पत्नी के साथ चाय पार्टी में व्यस्त थी.’’
‘‘मगर उस मंत्री की बीवी के साथ तुम क्या कर रही थीं, वह भी आज के दिन? काफी देर तक तुम ने फोन नहीं उठाया, तो हमें लगा तुम और अजय कहीं घूमने गए होगे.’’
‘‘नहीं रे, अजय एक नई फैक्टरी शुरू करना चाहते हैं. कल उसी फैक्टरी के प्रोजैक्ट की फाइल मंत्रीजी के दफ्तर में जाने वाली है. सब काम सही ढंग से हो जाए, इस के लिए मंत्रीजी की पत्नी से मैं मिलने गई थी. जब पापा कमिश्नर थे, तब इन मंत्रीजी से थोड़ीबहुत जानपहचान थी. अजय कहते हैं, ऐसे निजी संबंध बड़े काम आते हैं.’’
‘‘फिर भी नमिता… शादी के बाद अजय के साथ यह तुम्हारा पहला जन्मदिन है?’’
‘‘अजय ने तो सवेरे ही मुझे सरप्राइज गिफ्ट दे कर मेरा जन्मदिन मनाया. पैरिस से मेरे लिए औरेंज कलर की साड़ी ले कर आए थे.’’
‘‘नमिता, औरेंज कलर तो तुम्हें बिलकुल पसंद नहीं है. क्या वाकई तुम्हें वह साड़ी अच्छी लगी?’’ हम ने पूछा.
‘‘अजय चाहते थे कि मैं औरेंज कलर के कपड़े पहन कर मंत्रीजी की पत्नी से मिलने जाऊं. मंत्रीजी बीजेपी के हैं न.’’
शादी को 1 साल हो गया, तो नमिता के बंगले के लौन में ही बड़ी सी पार्टी का आयोजन था. हम दोस्तों को भी नमिता ने न्योता भेजा, तो हम सारे दोस्त उसे बधाई देने उस के बंगले पर पहुंचे. बंगले के सामने ही बड़ी सी विदेशी 2 करोड़ की गाड़ी खड़ी थी.
नमिता ने चहकते हुए कहा, ‘‘डैडीजी, यानी ससुरजी ने यह कार हमें तोहफे में दी है.’’
‘‘नमिता, तुम्हें तो जंगल ट्रैक में ले जाने लायक ओपन जीप पसंद है.’’
‘‘हां, मगर अजय कहते हैं ऐसी जीप में घूमना फूहड़ लगता है. यह रंग और मौडल अजय ने पसंद किया और डैडी ने खरीद ली. अच्छी है न?’’
पार्टी में ढेरों फोटो खींचे जा रहे थे. गौसिप मैगजीन में अब चर्चे होंगे. नमिता ने किस डिजाइनर की साड़ी पहनी थी, कौन से मेक के जूते पहने थे, कौन से डायमंड हाउस से उस का हीरों का सैट बन कर आया था वगैरहवगैरह…
मम्मीडैडी की पसंद ऐसी है, अजय ऐसा चाहते हैं, अजय वैसा सोचते हैं, पार्टी का आयोजन कैसा होगा, मेन्यू क्या होगा, यह सब कुछ जैसा अजय चाहते हैं वैसा होता है, हम ने नमिता से सुना.
दया आई नमिता पर. नमिता, एक बार अपने अंदर झांक कर तो देखो कि तुम क्या चाहती हो? तुम्हारा वजूद क्या है? तुम्हारी अपनी पहचान क्या है? तुम किस व्यक्तित्व की मलिका हो?
शादी के बाद मात्र एक दिखावटी गुडि़या बन कर रह गई हो. अच्छे कपड़े, भारी गहने, बेशकीमती गाडि़यों में घूमने वाली रईस. मंत्री की पत्नी तक पहुंचने का एक जरिया. यह सब जो तुम कर रही हो, इस में तुम्हारी सोच, चाहत, पसंदनापसंद कहां है? तुम तो एक नुमाइश की चीज बन कर रह गई हो.
फिर भी तुम खुश हो? इंसान पढ़लिख कर अपनी सोच से समाज में अपना स्थान, अपनी पहचान बनाना चाहता है. शादी के बाद अमीरी के साथसाथ समाज में रुतबा तो तुम्हें मिल गया. फिर अपने सोचविचारों से कुछ बनने की, अपना अस्तित्व, अपनी पहचान बनाने की तुम ने जरूरत ही नहीं समझी? दूसरों की सोच तुम्हारा दायरा बन कर रह गई. दूसरों का कहना व उन की पसंदनापसंद को मानते हुए तुम चारदीवारी में सिमट कर रह गईं.
चिडि़या जैसी चहकती हुई नमिता पार्टी में इधरउधर घूम रही थी. मोतियों का चारा पा कर यह चिडि़या बहुत खुश थी. चांदी की थाली में खाना खाते हुए उसे बड़ा आनंद आ रहा था.
अपनी उपलब्धि पर इतराती नमिता अपनेआप को बड़ी खुशकिस्मत समझती थी. नमिता को देख कर ऐसा लगता था, उस की खुशी व चहचहाना इसलिए है, क्योंकि वह समझ नहीं रही है कि वह सोने के पिंजरे की चिडि़या बन गई है. यहां उस के लिए अपनी सोच की उड़ान भरना नामुमकिन है.
अपनी पसंदनापसंद से जिंदगी जीने की उसे इजाजत नहीं है. खुद की जिंदगी पर वह अपने व्यक्तित्व की मुहर नहीं लगा सकती. अपनी जिंदगी पर उस का कोई अधिकार नहीं है.
सोने के पिंजरे में बंद वह बड़ी खुशहाल जिंदगी बिता रही है, लेकिन वह अपनी पहचान मिटा रही है. सोने के पिंजरे में यह चिडि़या इसलिए बहुत खुश है, क्योंकि इसे अपनी कैद का एहसास नहीं है.
सशक्तीकरण एवं स्वतंत्रता का सर्वश्रेष्ठ स्वरूप है वित्तीय स्वतंत्रता. इस से एक प्रगतिशील समाज का निर्माण होता है और समाज से जुड़े सभी जनों का भविष्य उज्ज्वल होता है. आज जीवन के हर क्षेत्र में स्वयं को स्थापित करने के लिए महिलाएं कड़ी मेहनत कर रही हैं. ऐसे में उन के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वे लंबे समय तक अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ बनाए रखें.
यद्यपि लंबे समय के लिए वित्तीय स्वतंत्रता प्रदान करने लायक संपत्ति जुटाना तथा स्वयं के संसाधन निर्मित करने की एकमात्र वजह सशक्तीकरण ही नहीं होती. पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के वित्तीय संसाधन जल्दी चुक जाने की संभावनाएं कहीं ज्यादा होती हैं. भले ही यह वाक्य कठोर लगे, लेकिन सचाई यही है.
औसतन महिलाओं का जीवन सोपान पुरुषों की तुलना में अधिक लंबा होता है. इस का सीधा अर्थ है कि महिलाओं के सामने आर्थिक समस्याएं पैदा होने के खतरे भी वास्तव में अधिक होते हैं. स्पष्ट है कि महिलाओं को अपने स्वास्थ्य की देखभाल तथा सेवानिवृत्ति का इंतजाम करने के लिए अधिक मेहनत करने की आवश्यकता होती है.
ये भी पढ़ें- Holi में कलरफुल पकवानों के लिए ट्राय करें ये टिप्स
विकास के तमाम दावों के बावजूद आमतौर पर महिलाओं को आज भी पुरुषों के मुकाबले कम भुगतान किया जाता है. इसे यों भी समझा जा सकता है कि महिलाओं की जेब में खर्च करने के लिए अपेक्षाकृत कम पैसे बचते हैं. थोड़ी देर के लिए यह भी मान लिया जाए कि वे पुरुषों के बराबर ही पैसे खर्च करती हैं तब भी इस तथ्य से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि आरामदायक और कर्जमुक्त जीवन बिताने के लिए अपनी सेवानिवृत्ति, आपातकालीन कोष, निवेश तथा अन्य वित्तीय उपायों हेतु बचत करने के लिए उन के हाथ में पैसे कम ही पड़ जाते हैं.
यह स्थिति मुसीबतों की काली घटा जैसी लग सकती है, लेकिन कहते हैं न कि जहां अंधेरा है वहीं रोशनी भी है और यहां तो रोशनी की एक बहुत बड़ी लकीर सामने है तेजी से बदल रहे सामाजिक, आर्थिक माहौल से फूटने वाले अवसरों की रोशनी.
भारत में 2008 से 2014 के काल से स्नातक की उपाधि ग्रहण करने वाली महिलाओं का प्रतिशत दोगुना हो गया है. इस दौरान उन की आय में भी 20% से अधिक का इजाफा हुआ है. सामाजिकआर्थिक परिस्थितियों में आए इन सुधारों के चलते कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ी है जिस के फलस्वरूप संभावनाओं में भी वृद्घि हुई है. सामाजिकआर्थिक माहौल में आया यह बदलाव महज उच्च वर्ग तक सीमित नहीं है, बल्कि हकीकत यह है कि आज भारत में
30 लाख से ज्यादा सूक्ष्म, लघु एवं मझोलेउद्यम पूर्ण या आंशिक रूप से महिलाओं की मिल्कीयत हैं. उन की यह उद्यमिता 4-5% की वार्षिक दर से बढ़ती जा रही है.
महिलाओं के लिए ज्यादा वित्तीय स्थिरता और कैरियर की नित नई बढ़ती संभावनाएं उन्हें धनसंपत्ति जुटाने में सक्षम बना रही हैं. ऐसे में उन की जिंदगी के लिए बेहतर वित्तीय नियोजन समझाना आज की जरूरत बन गई है.
‘योजना’ शब्द का सीधा सा मतलब है कि भविष्य को वर्तमान में उतार लाया जाए ताकि हम ‘अभी’ से उस की तैयारी कर सकें.
अभी से तैयारी करें
महिलाओं को चाहिए कि वे अपने सामर्थ्य तथा आमदनी बंद होने पर उत्पन्न होने वाले जोखिम का वास्तविक आकलन करें. वित्तीय नियोजन का पहला कदम है अपने मोल का अनुमान लगाना और उसे बचा कर रखना. महिलाओं को चाहिए कि वे जीविका और जीवनशैली प्रभावित करने वाली अप्रत्याशित परिस्थितियों से स्वयं की और अपने प्रियजनों (इन में बूढे़ मांबाप भी शामिल हैं) की सुरक्षा के लिए पर्याप्त जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा कराएं. अपने परिवार के लिए सब से निस्स्वार्थ निवेश अगर कोई है तो वह है जीवन बीमा. महिलाओं को इस मामले में पहलकदमी जरूर करनी चाहिए.
महिलाओं को चाहिए कि वे अपने अंशदान पर भरोसा रखें और अपने भविष्य पर पड़ने वाले बोझ से बचने के उपाय करें. उन्हें अल्प समय के नकदी प्रवाह जैसेकि घर कि मरम्मत और छुट्टियां आदि, मध्यावधि नकदी प्रवाह जैसेकि कार खरीदना और दीर्घावधि नकदी प्रवाह जैसेकि सेवानिवृत्ति, कर्ज अदायगी आदि के लिए योजनाएं बनाने की जरूरत है. वित्तीय औजारों का एक समुच्चय इन जरूरतों को पूरा करने में सहायक है. इन कुछ औजारों में लिक्विड फंड, मनीबैक बीमा पौलिसी और सेवानिवृत्ति प्लानों का नाम लिया जा सकता है.
महिलाओं को सामने आ कर बड़ेबड़े सपने देखने चाहिए. अपने नाम पर खुद का मकान होने या अपना भविष्य सुरक्षित करने में आखिर गलत ही क्या है? वर्तमान आवश्यकताओं और सेवानिवृत्ति की योजनाओं पर समान ध्यान केंद्रित करना महिलाओं के लिए अनिवार्य है.
ये भी पढ़ें- सनकी वृद्ध, क्या करें युवा?
अगर आप को लगता है कि पैसादाम के मामले में आप एक आत्मनिर्भर महिला हैं और आप की उम्र 40 के पार हो चुकी है, तो कृपया फौरन ये प्रश्न अपनेआप से अवश्य पूछें, क्योंकि आप के पास अगले 40 साल सुरक्षित करने के लिए अभी 15-20 साल और बाकी हैं:
क्या मेरे पास इस बात का वास्तविक अनुमान है कि मैं कितना कमाती हूं और कितना खर्च करती हूं?
अगर नहीं तो अपने लिए एक बजट बनाने वाला ऐप ले आएं और पाईपाई का हिसाब रखना शुरू करें. आप को यह जान कर आश्चर्र्य होगा कि आप की रोजाना वाली ब्रैंडेड कौफी साल भर में आप की जेब पर कितनी बड़ी चपत लगा रही है.
क्या मैं पैसे की ‘बचत’ करती हूं या निवेश?
जी हां, ये दोनों अलगअलग बातें हैं. आप यह मान कर चल सकती हैं कि खर्च न करना ही पैसे की बचत करना है. इस का सीधा अर्थ यह होगा कि आप का पैसा बैंक खाते में पड़ा है जिस पर मात्र 4% की सालाना ब्याज दर मिल रही है और उस पर टैक्स भी लगता है. अब खुद ही अंदाजा लगाएं कि 6% की सालाना महंगाई दर के हिसाब से तो आप के पैसे का मूल्य उलटा घट ही रहा है. इस के साथसाथ यह भी सोचिए कि अंततोगत्वा यह पैसा आप के कितने काम आएगा?
क्या मैं अगले 5 साल बाद से आगे की अपनी जिंदगी देख पा रही हूं?
हम में से ज्यादातर लोग 20-25 साल बाद की प्राथमिकताओं और खुद की जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर पाते (80 साल का होने की तो बात ही छोड़ दीजिए) हम अपने सपोर्ट सिस्टम खासतौर पर वित्तीय प्रणालियों की जरूरतों को कम कर के आंकते हैं. हम भावनात्मक और सामाजिक ढांचे निर्मित करते हुए अपना जीवन गुजार देते हैं, लेकिन धन की कीमत नहीं समझते. इसीलिए समय आ गया है कि आप अपनी सेवानिवृत्ति की योजनाओं पर गंभीरता से विचार करें.
क्या मैं ने अपने और अपने आश्रितों को किन्हीं आकस्मिक आपदाओं से सुरक्षित रखने की व्यवस्था की है?
अकसर हम यह मान कर चलते हैं कि एकल और 40 से ज्यादा की उम्र का होने का मतलब यह होता है कि हमारा कोई आश्रित ही नहीं है जबकि हमेशा यह सच नहीं होता. हमारे बूढ़े मांबाप हो सकते हैं, परिवार हो सकता है जिस की हम इतनी फिक्र करते हैं. सब से महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि हमें खुद की देखभाल की जरूरत सब से ज्यादा होती है.
महिलाओं को चाहिए कि वे अपनी वित्तीय योजनाओं को ले कर सचेत एवं दृढ़ निर्णय लें. इन में खुद के जीवन बीमा से ले कर अपने मातापिता के स्वास्थ्य की देखभाल से संबंधित जरूरतों की पूर्ति करने वाले उपाय शामिल हो सकते हैं. वर्तमान का खयाल रखने के साथसाथ महिलाओं को अपनी सेवानिवृत्ति के लिए एक सुरक्षित पैंशन योजना ले कर भविष्य भी संवारना चाहिए.
हर महिला को चाहिए कि वह अपनी आर्थिक सेहत का जायजा ले और इस के लिए सार्थक योजना बनाए.
– सोनिया नोतानी, इंडिया फर्स्ट लाइफ इंश्योरैंस
विज्ञान वरदान और अभिशाप दोनों ही है. विज्ञान के क्षेत्र में नित नए प्रयोग होते जा रहे हैं, नित नईनई तकनीक सामने आ रही हैं. इन दिनों हर जगह ‘एआई’ यानी कि‘आर्टीफिशियल इंटैलीजैंस’ की चर्चा हो रही है. लोग इसे ले कर काफी आशंकित हैं. बौलीवुड में तो बहुत बड़ा डर बैठा हुआ है. कहा जा रहा है कि अब ‘एआई’ का उपयोग धड़ल्ले से होगा और लेखकों व निर्देशकों की छुट्टी तय है. इन्हीं चर्चाओं के बीच फिल्मकार सैम भट्टाचार्जी ने एआई पर फिल्म ‘आइरा’ का निर्माण किया है. रोहित बोस रौय, राजेश शर्मा, करिश्मा कोटक व रक्षित भंडारी की प्रमुख भूमिकाओं वाली यह फिल्म यूरोप में फिल्माई गई है. 5 अप्रैल को सिनेमाघरों में पहुंचने वाली फिल्म ‘आइरा’ के संगीतकार समीर सेन हैं.
फिल्म के निर्देशक सैम भट्टाचार्जी कहते हैं, ‘‘तकनीक का जमाना है. अब लोग बंदूक के बजाय टैक्नोलौजी के साथ लड़ाई करते हैं. आज तकनीक, डेटा सब से अधिक महत्त्वपूर्ण हो गए हैं. आज डेटा को किस तरह इस्तेमाल किया जा रहा है, हमारी फिल्म एआई की इसी क्रांति के बारे में है. सब से पहले रोहित बोस रौय को मैं ने यह आइडिया सुनाया और मुझे खुशी है कि वे इस भूमिका को करने को तैयार हुए. ‘आइरा’ के वीएफएक्स पर 3 साल तक काम हुआ है. हम ने कुल 1,600 वीएफएक्स बनाए.’’
फिल्म ‘आइरा‘ में एआई तकनीक के दुरुपयोग पर रोशनी डाली गई है. फिल्म में हरी का मुख्य किरदार निभाने वाले अभिनेता रोहित बोस रौय कहते हैं, ‘‘यह फिल्म एआई के गलत इस्तेमाल के पहलू पर प्रकाश डालती है. मैं ने इस में हरी सिंह का किरदार निभाया है. अगर आप मेरे नाम को इंग्लिश में लिख कर उसे उलटा करेंगे तो फिल्म का नाम ‘आइरा’ होगा. हरी एआई तकनीक से ‘आइरा’ नामक ऐप क्रिएट करता है, जिस से कुछ भी रीक्रिएट किया जा सकता है. अगर यह ऐप गलत इंसान के हाथ में पड़ जाए तो क्या अंजाम होगा, फिल्म इसी बारे में है.
“कहानी के अनुसार एक दिन यह ‘ऐप’ गलत हाथों में पड़ जाती है, जिस के चलते हरी को ही कई मुसीबतों से जूझना पड़ता है. यहां तक कि एक दूसरा शख्स हरी बन कर लोगों के सामने पहुंच जाता है और लोग उसे ही हरी समझते हैं. फिल्म का क्लाइमैक्स जबरदस्त है जिस के बारे में मैं अभी से नही बता सकता.’’ रोहित बोस रौय आगे कहते हैं, ‘‘यह फिल्म मेरे लिए बहुत खास है जिस में मेरा किरदार केंद्रीय किरदार है. इस तरह के जौनर का सिनेमा करना और लगभग पूरी फिल्म वीएफएक्स के माध्यम से करना मेरा पहला अनुभव रहा. मेरे बहुत सारे सीन वीएफएक्स के हैं, जहां मुझे हवा में डायलौग बोलना था. शूटिंग के दौरान मैं ने निर्देशक से पूछा था कि मैं संवाद किस के सामने बोल रहा हूं तो उन्होंने कहा कि अभी ‘ब्रेन’ आएगा, जिसे तुम ने क्रिएट किया है यानी कि डेटाबैंक.
“पूरी फिल्म मेरे कंधों पर है. फिल्म एआई के बैकड्रौप पर है मगर इस में रोमांस, ड्रामा, रोमांच, गाने सबकुछ हैं. फिल्म का सस्पैंस जबरदस्त है. अंतिम 5 मिनट का क्लाइमैक्स दर्शकों को देखना होगा. लंदन में इस की शूटिंग का अनुभव यादगार रहा.’’
एआई को न्यूक्लियर बम से भी ज्यादा खतरनाक बताते हुए रोहित बोस रौय कहते हैं, ‘‘एआई तकनीक के फायदे भी हैं. अकसर होता यह है कि जब हमारा अपना कोई प्रिय इस संसार से चला जाता है, तो हम उन की याद में उन की तसवीर लगा लेते हैं या उन के पुराने वीडियो देख लेते हैं. पर एआई के माध्यम से आप उस इंसान को ‘रीक्रिएट’ कर सकते हैं. और वह पूरी जिंदगी आप के बगल में रहेगा.
“पहले की ही तरह आप उस से बातें भी कर सकते हैं लेकिन आप उसे छू नहीं सकेंगे, क्योंकि वह इस संसार में है नहीं. वह तो एक छाया की तरह ही रहेगा. एआई का उपयोग करने से वह इंसान हूबहू वैसा ही होगा जैसा पहले था. पर जब यह ऐप किसी गलत इंसान के हाथ में पड़ जाए, तो ‘आइरा’ जैसी फिल्म बनती है. लेकिन मेरी राय में ‘एआई’ को ले कर लोगों के बीच जागरूकता लाना अति आवश्यक है.
“एआई का उपयोग कर कोई भी इंसान कितना भी बड़ा स्कैम कर सकता है. मेरा मानना है कि ‘एआई’ तो ‘न्यूक्लियर बम’ से भी ज्यादा खतरनाक है क्योंकि न्यूक्लियर बम जिस जगह गिरता है, वह वहां और उसके आसपास के क्षेत्र में ही नुकसान करता है. मगर ‘एआई’ किसी गलत इंसान के हाथ लग जाए, तो वह किसी भी गांव के एक कमरे में बैठ कर पूरे विश्व को नुकसान पहुंचा सकता है. एआई का उपयोग करना बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. माना कि इस के फायदे हैं, मगर यह आगे चल कर नुकसान ज्यादा पहुंचाएगा.’’