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और फिर भगवान भी गायब हो गए

वह दिन अशोक के लिए आफत बन के सामने आया जब देश के महामहिम ने अपने तुगलकी फैंसले से पुरे देश में तालाबंदी की घोषणा कर दी. भला यह भी कोई बात हुई कि लाखों मजदूरों को महामहिम ने एक ही पल में अनाथ कर दिया. वैसे तो गरीबों का कोई माईबाप नहीं होता लेकिन ऐसे वक्त में उम्मीद तो महामहिम से ही लगाई जा सकती थी. खैर यह बातें अब बैमानी लगती है.

अशोक 35 वर्षीय युवक था जो यूपी के आजमगढ़ जिले से काम की तलाश में दिल्ली आया था. सुना है इस शहर में सब को कुछ न कुछ काम मिल ही जाता है. लेकिन वह सच्चाई जानता था कि यह शहर जितना अमीरों की रंगीनियत के लिए मशहूर है उतना ही मजदूरों की खाल खींच लेने वाले काम को ले कर. और फिर अशोक पांचवी से ऊपर पढ़ा भी तो नहीं था जो उसे बाबू का काम मिल जाता.

अपने लड़कपन में उस ने बड़ेबड़े किसानों की जमीन में कटाई, रुपाई, सिंचाई खूब की लेकिन इस मॉडर्न समाज ने उसे शहर की तरफ खींच ही लिया. सुना है छटांग भर की थोड़ी बहुत जमीन भी बाबा के इलाज में गिरवी रख दिया था. दिल्ली आने से पहले अशोक को लगा था की दिन रात मेहनत कर अपनी जमीन छुड़ा लेगा लेकिन अब तो बस सूद चुका ले वही बहुत है.

जिस जगह अशोक काम कर रहा था वह दिल्ली से थोड़ी दूर सटे नॉएडा में कंस्ट्रक्शन साईट थी. जहां अमीरों के लिए बड़े बड़े 4 बीएचके वाले अपार्टमेंट्स बनाए जा रहे थे. वहीँ उसी साईट से थोड़ी दूर ठेकेदार ने कंस्ट्रक्शन में काम करने वाले मजदूरों के लिए टीनटप्पर के चलते फिरते कामचलाऊ कमरे बनाए हुए थे. यह कमरे सर्दियों में सर्द हो जाते और गर्मियों में गर्म भट्टी. गर्म रात तो आसमान के नीचे जैंसे तैंसे कट जाया करती लेकिन ठिठुरती रातों में मेहरारू के गर्म बदन की याद सताती जिसे बहुत समय से अशोक ने छुआ नहीं था.

महामहीम की घोषणा के बाद नींद कहां आने वाली थी, “इस बेगाने शहर में एक दिन मन नहीं लगता तो इस माचिस की डिबिया जैसे कमरे में कैसे 21 दिन गुजार लें.”

लाकडाउन में शुरू के 3-4 दिन इस डर से बाहर नहीं निकला गया कि ना जाने कौन सी देत्यी बीमारी फ़ैल गई है कि जरा सा बाहर निकले कि सीधा मौत के घाट. लेकिन जब खाने के टोटे पड़ने लगे तो बीमारी गई तेल लेने. भूख की गुड़गुड़ आवाज मानो कमरे में गूँज रही थी, और भूख का देत्य तो ऐंसा जो शरीर का पूरा खून चूस ले और मांस कच्चा चबा जाए.

 कमरे से डेढ़ किलोमीटर दूर पर पहली राशन की दूकान थी. हिम्मत कर अशोक अपने बचेकुचे पैसों से राशन के लिए निकला, जैंसे ही आधा रास्ता पार हुआ कि नाके में पुलिस के हत्थे चढ़ गया. पुलिस की मार तो पड़ी ही साथ में मुर्गा भी बनना पड़ गया. “साला अजीब नोटंकी है, सरकारी खाना तो पहुंच नहीं रहा गरीबों तक लेकिन सरकारी डंडे जरुर पहुंच जाते हैं.” यह बात मन ही मन सोचकर थोडा बहुत राशन ले कर वह वापस लौटा.

अशोक जानता था कि “सरकार हमारे लिए कभी चिंता दिखाएगी नहीं. आखिर प्रवासी मजदूर बमुश्किल वोट देने अपने घरगांव जाते हैं, इसलिए किसी सरकार और पार्टी के लिए हमारी एहमियत न के बराबर है. उन के लिए तो हम कोल्हू का बैल हैं.”

अशोक ने ठान लिया कि अब यहां रहना मतलब भूखे मरने जैंसा है इसलिए यहां से अपने गांव निकलना होगा चाहे जो हो जाए. उसे चिंता थी तो लम्बे सफ़र की.

“न कोई गाड़ी न पैसा. ऊपर से जगह जगह सरकारी पहरा, कहीं आधे रस्ते वापस न लोटना पड़ जाए”. लेकिन तपती दोपहरी में बड़ेबड़े चट्टानों को तोड़ने वाला यह मजदूर इतनी आसानी से हार नहीं मानने वाला था.

उन से योजना बनाई और अगली रात कांधे में बस्ता टांगा जिसके अन्दर एक कम्बल, एक टिकिया साबुन और एक जोड़ी कपड़ा था, वहीँ साइकिल के एक तरफ भिगाए चने और पानी की बोतल की गठरी टांग दी. वह इतना समझ गया था कि उसे बस यह शहर पार करना है उस के बाद बस वो और उसका सफ़र होगा. योजना जैसे बनाई थी उस में वह कामयाब रहा, वह शहर से बचते बचाते बाहर निकल गया.

पहले दिन उस ने लगभग 100 किलोमीटर का लम्बा सफ़र तय किया. रास्तों में लगे साइन बोर्ड को उसने अपना मेप बनाया, गांव से आते जाते उसने रास्तों में पड़ने वाले शहरों के नाम याद किये हुए थे. इसलिए रास्ते में ज्यादा दिक्कत नहीं आई. जहां थोड़ी बहुत समस्या होती तो आसपास कोई सज्जन दिखता तो पूछ लेता. इस दौरान वह रास्ता भी भटका लेकिन वापस मुड़ अपने राह पर निकल पड़ा.

सर के ऊपर पड़ने वाली धूप से काली चमड़ी और काली दिखने लगी थी, शरीर की मांसपेशियां अकड़ने लगी थी, लगातार साइकिल चलाने की वजह से दोनों पावं के बीच चमड़ी छिलने लगी थी.

वह सहसा थक चुका था और शाम भी हो चली थी. उस ने पास में भगवान कृष्ण का एक मंदिर देखा, ढलते सूरज को देखते हुए रात इसी मंदिर के देहली में बिताने की सोची. उस का शरीर भूख और थकान से निढाल हो चुका था. आंखों में गहरी थकान महसूस होने लगी थी. जैंसे उस की आँखे घोर निद्रा में डूबने लगीं हो.

एकाएक उस की नजर भगवान कृष्ण की हंसती हुई मूर्ति पर पड़ी. उसे बिलकुल अच्छा नहीं लगा कि भगवान भी उस की इस विपदा पर हंस रहे हैं. वह उस मूर्ति को देख खीजने लगा. उस ने खीजते हुए कहा “है भगवान तू अगर कहीं है तो इस दुनिया में जो भी मजदूरों ने बनाया है वह सारा मिटा दे.”

उस का इतना ही कहना था कि एकाएक सब कुछ गायब होने लगा.

जिस हवाई जहाज से देश के महामहिम अमीर प्रवासियों को दूसरे देश से ले कर आए थे उस के अंजरपंजर, नटबोल्ट एकाएक सब बिखर कर गायब होने लगे. कोटा से छात्रों को जिन बसों में रेस्क्यू किया गया वह गायब बसें होने लगीं. जो मंडप नेताओं के बच्चों की शादी में लगाया गया वह तम्बूबम्बू सब उखड़ने लगा. सड़के टूटटूट कर मिटटी के मलवे में बदलने लगी. कल कारखानों की मशीनें गायब होने लगीं. रिहायशी बिल्डिंगे, अपार्टमेंट सब धूलधाल हो गए. फ़िल्मी सितारों के गिटार सितार सब टूटने लगे. गली मोहल्ले की स्ट्रीट लाईट, स्कूल, अस्पताल, यहां तक की शरीर में ओढ़े ब्रांडेड कपड़े तक गायब होने लगे.

अशोक का पसीना तब छूटने लगा जब उस ने देखा कि जिस मंदिर में वह खड़ा है वह मंदिर गायब होने लगा है. और सब से बड़ा धक्का उसे तब लगा जब उस ने देखा कि जिस मूर्ति के सामने वह प्रार्थना कर रहा था वह मूर्ति भी मलवे के ढेर में बदल गई है.

अचानक अशोक की आंख खुली वह घबरा गया. वह उठ खड़ा हुआ तो देखा सब सामान्य है. सब अपनी जगह वैसा ही है जैंसा पहले था. उसे आभास हुआ कि उस ने एक बुरा सपना देखा है. शायद शारीरिक थकान के साथ साथ मानसिक थकान ने उसे भीतर तक प्रभावित किया था.

अब जब वह उठ ही गया था तो उस ने आगे का रास्ता नापने का फैसला कर लिया था. अभी अँधेरा खुला भी नहीं था. रास्ते ठीक से नजर नहीं आ रहे थे, लेकिन अशोक जल्दी अपने घरपरिवार के पास पहुंच जाना चाहता था. उस ने बस्ते में रखे चनों को हाथ भी नहीं लगाया था. वह उसे अपने लम्बे सफर के लिए बचाए रखना चाहता था.

जैंसे ही वह थोड़ी ही दूर साइकिल से पहुंचा कि एकाएक पीछे से एक जोर का धक्का उसे लगा. वह 6 मीटर दूर उछल कर गिर पड़ा. गठरी में बंधे चने सड़क पर बिखर गए और शरीर खून से लतपथ हो गया. अंधेरे में ट्रक तेजी से निकल गया, उसकी आंखे धीरे धीरे बंद हो गई, लगता है उस ने अपनी थकान और ताउम्र की पीड़ा से सम्पूर्ण मुक्ति पा ली.

मुझे जंकफूड खाने की आदत है, जिस वजह से मैं मोटी होती जा रही हूं?

सवाल 

मेरी उम्र 25 वर्ष है. खानेपीने की जंकफूड का सेवन करना मेरी कमजोरी है. इसी का नतीजा है कि मैं बहुत मोटी हो गई हूं. मेरी फिजीकल ऐक्टिविटी ज्यादा नहीं है. घर पर ही रहती हूं. मेरा काम औनलाइन ही है, ऐक्सरसाइज करने में आलस करती हूं और खानेपीने पर कंट्रोल नहीं रख पाती. अपनी आदतों से खुद ही परेशान हो गई हूं. जिंदगी के प्रति उदासीन होती जा रही हूं. ऐसा लग रहा है मैं डिप्रैशन का शिकार हो रही हूं. कृपया मुझे इस स्थिति से उबारें.

जवाब
आप खुद मान रहीं हैं कि आप की आदतें गलत हैं फिर भी उन्हें दूर करने का प्रयास नहीं कर रहीं, यह तो गलत है न. खानेपीने का शौकीन होना गलत बात नहीं लेकिन हर चीज की अति गलत होती है. जंकफूड का ज्यादा सेवन, घर पर बैठे रहना, फिजिकल ऐक्सरसाइज न करना इन सब के कारण आप का मोटापा बढ़ा है. उदास होने की जरूरत नहीं, अभी भी वक्त है. आप पहले की तरह पतली हो सकती हैं. ऐसा भी नहीं कि आप के पास वक्त नहीं. घर पर ही रहती हैं. आप अपनी सामान्य रूटीन लाइफ में कुछ परिवर्तन कर के अपना मोटापा कम कर सकती हैं, क्योंकि अभी तो आप की उम्र कम है, आगे चल कर यही मोटापा ब्लड प्रैशर, डायबिटीज, हाई कोलैस्ट्रौल व अन्य कई बीमारियों का कारण बन सकता है. रही बात ऐक्सरसाइज की तो वह तो करनी ही पड़ेगी, उस से आप बच नहीं सकतीं इसलिए आलस बिलकुल मत करें. एरोबिक्स क्लासेस जौइन कर सकतीं हैं. स्विमिंग, जौगिंग, साइक्ंिलग, स्किपिंग, पुशअप इन सब के बाद से शरीर से विभिन्न अंगों की चर्बी को कम किया जा सकता है. दिन में 2 से 3 बार ग्रीन टी पिएं. एक गिलास गुनगुने पानी में एक चम्मच शहद, 3 बड़े चम्मच नीबू का रस, एक चुटकी काली मिर्च पाउडर डाल कर हर रोज सुबह पिएं. रोटी कम सलाद ज्यादा खाएं. रोज 8 गिलास पानी जरूर पिएं. पानी गरम पिएंगी तो शरीर डिटौक्स होने लगेगा. इस में मैटाबोलिज्म बढ़ेगा और बौडी स्लिम होगी. इस के अलावा खाना थोड़ाथोड़ा कर के 4 बार खा सकती हैं. रात को खाना खाने के बाद थोड़ा टहल लें. इन सब बातों को फौलो करेंगी तो वह दिन दूर नहीं जब आप की एक बार फिर परफैक्ट बौडी होगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

जानें कैसे प्रेगनेंसी के लिए खतरा बन सकता है आपका बढ़ता बीएमआई

गर्भावस्था की कुछ सामान्य जटिलताएं मोटी महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी होती हैं, जिन में सम्मिलित हैं- गर्भपात. जैस्टेशनल डायबिटीज, उच्च रक्त दाब (इसे जैस्टेशनल हाइपरटैंशन भी कहा जाता है), प्रीऐक्लैंप्सिया, प्रसव के दौरान सामान्य से अधिक रक्तस्राव आदि. हालांकि ये समस्याएं किसी भी गर्भवती महिला को हो सकती हैं. इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह मोटापे की शिकार है या नहीं, लेकिन बीएमआई (बौडी मास इन्डैक्स) अधिक होने से खतरा बढ़ जाता है.

मोटोपे का डायग्नोसिस बीएमआई की गणना कर के किया जाता है, जो वजन और लंबाई पर आधारित होता है. बीएमआई 30 या  उस से अधिक होना यकीनन मोटापे को परिभाषित करता है.

बीएमआई जितना अधिक होगा, उतना ही गर्भावस्था के दौरान जटिलताएं होने का खतरा अधिक होगा. अगर किसी महिला का बीएमआई 30 या उस से अधिक है, तो इस की संभावना है कि उसे प्रसव पीड़ा के लिए प्रेरित करना पड़ेगा या उसे सिजेरियन सैक्शन का विकल्प चुनना होगा. अगर किसी महिला का बीएमआई 40 से अधिक है, तो डाक्टरों के लिए बच्चे के विकास के बारे में जानकारी प्राप्त करना कठिन हो जाएगा.

बच्चे के लिए खतरा

अगर गर्भावस्था के दौरान आप का वजन अधिक है, तो आप के बच्चे को कुछ निश्चित खतरे होने की आशंका बढ़ जाएगी. इन में सम्मिलित हैं:

– समयपूर्व प्रसव (37 सप्ताह के पहले).

– जन्म के समय वजन अधिक होना.

– मृत बच्चे का जन्म.

– दुर्लभ जन्मजात विकृतियां.

– क्रौनिक कंडीशंस जो मस्तिष्क, स्पाइनल कार्ड, हृदय से संबंधित होती हैं, का खतरा या फिर आगे चल कर डायबिटीज की चपेट में आना.

गर्भावस्था से पहले वेट लौस

अगर आप ने पहले ही वेट लौस सर्जरी करा ली है, तो यह जरूरी सुझाव है कि गर्भधारण के लिए कम से कम 18 महीने प्रतीक्षा करें. मोटापे से ग्रस्त महिलाओं में वजन कम करने से गर्भधारण करने की संभावना बढ़ जाती है. अगर वेट लौस सर्जरी के बाद गर्भधारण की योजना बनाई जाए तो यह मां और-बच्चे दोनों के लिए सुरक्षित हो सकती है. इस से मोटापे के कारण गर्भावस्था से जुड़े खतरे कम हो जाते हैं.

गर्भावस्था के बाद वेट लौस

गर्भावस्था के दौरान वजन बढ़ना आम बात है, लेकिन बहुत सी महिलाओं को इसे कम करना बहुत मुश्किल लगता है. जिन महिलाओं का वजन गर्भावस्था के पहले अधिक था उन के लिए प्रसव के बाद वजन कम करना और अधिक कठिन हो सकता है. इस के कारण जैवविज्ञानी, हारमोनल या पर्यावर्णीय हो सकते हैं.

उन महिलाओं के लिए जिन का बीएमआई 40 या उस से अधिक है, यह एक बहुत ही गंभीर समस्या हो सकती है. इसलिए बैरिएट्रिक सर्जरी उन महिलाओं के लिए जो अत्यधिक मोटी हैं, एक बहुत ही अच्छा विकल्प है. लेकिन बच्चे के  जन्म के बाद उन्हें कम से कम 12 महीने इंतजार करना चाहिए. बच्चे के जन्म के बाद जितने अधिक समय तक वे प्रतीक्षा करेंगी, रिकवरी के लिए उतना ही बेहतर रहेगा. स्वस्थ भार प्राप्त करने और मोटापे से संबंधित स्थितियों जैसे डायबिटीज, हृदय रोग व कैंसर के खतरे से बचने के लिए बैरिएट्रिक सर्जरी सुरक्षित और सब से बेहतरीन उपाय है.

गर्भावस्था में रहें स्वस्थ

कुछ सामान्य स्टैप्स जैसे स्वस्थ खाने, नियमित ऐक्सरसाइज करने और वजन न बढ़न के लिए दिए गए दिशानिर्देशों का पालन करने वाली महिला अपने बच्चे के स्वास्थ्य की सुरक्षा कर सकती है.

गर्भवती होने पर वजन कम करने लिए डाइटिंग करना बच्चे के लिए नुकसानदायक हो सकता है. इस दौरान रोज खूब पानी पीएं, सब्जियां और फल अधिक मात्रा में खाएं. नियमित अंतराल पर पोषक भोजन का सेवन थोड़ीथोड़ी मात्रा में करे. फास्ट फूड, फ्राइड फूड, पैकेज्ड फूड सोडा, पेस्ट्री आदि का सेवन न करें.

स्वस्थ डाइट लेने के साथसाथ सप्लिमैंट्स लेने की भी जरूरत होती है, जिन में विटामिन डी और फौलिक ऐसिड आदि सम्मिलित होते हैं.

अपने शरीर को गर्भवस्था में हो रहे बदलावों से निबटने लिए तैयार करने के लिए गर्भावस्था में नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करना बहुत जरूरी है. यह आप के भार का प्रबंधन करने के सब से अधिक प्रभावी उपायों में से एक है. अगर आप गर्भावस्था से पहले ऐक्सरसाइज नहीं कर रही थीं, तो यह सही समय नहीं है कि आप कड़ी ऐक्सरसाइज शुरू कर दें.

आप प्रतिदिन 5 या 10 मिनट तक ऐक्सरसाइज करने से शुरूआत करें. सब से महत्त्वपूर्ण है कि आप अपने शरीर की सुनें. अगर आप को कोई परेशानी हो रही है तो वर्कआउट करना बंद कर दें. अगर कोई इमरजैंसी हो तो तुरंत डाक्टर से संपर्क करें.

 – डा. तरुण मित्तल (ओबैसिटी ऐंड लैप्रोस्कोपिक सर्जन, सर गंगाराम हौस्टिपल, दिल्ली)

परिवार से जोड़ने के लिए बच्चों को रखें इंटरनैट से दूर

कुछ वर्षों से सोशल मीडिया यानी सोशल नैटवर्किंग साइट्स ने लोगों के जीवन में एक खास जगह तो बना ली है परंतु इस का काफी गलत प्रभाव पड़ रहा है. इस में कोई शक नहीं कि डिजिटल युग में इंटरनैट के प्रयोग ने लोगों की दिनचर्या को काफी आसान बना दिया है. पर इस का जो नकारात्मक रूप सामने आ रहा है वह दिल दहलाने वाला है.

जानकारों का कहना है कि इंटरनैट और सोशल मीडिया की लत से लोग इस कदर प्रभावित हैं कि अब उन के पास अपना व्यक्तिगत जीवन जीने का समय नहीं रहा.

सोशल मीडिया की लत रिश्तों पर भारी पड़ने लगी है. बढ़ते तलाक के मामलों में तो इस का कारण माना ही जाता है, इस से भी खतरनाक स्थिति ब्लूव्हेल और हाईस्कूल गैंगस्टर जैसे गेम्स की है. नोएडा में हुए दोहरे हत्याकांड की वजह हाईस्कूल गैंगस्टर गेम बताया गया है. जानलेवा साबित हो रहे इन खेलों से खुद के अलावा समाज को भी खतरा है. अभिभावकों का कहना है कि परिजनों के समक्ष बच्चों को वास्तविक दुनिया के साथ इंटरनैट से सुरक्षित रखना भी एक चुनौती है. इस का समाधान रिश्तों की मजबूत डोर से संभव है. वही इस आभासी दुनिया के खतरों से बचा सकती है.

पहला केस : दिल्ली के साउथ कैंपस इलाके के नामी स्कूल में एक विदेशी नाबालिग छात्र ने अपने नाबालिग विदेशी सहपाठी पर कुकर्म का आरोप लगाया. दोनों ही 5वीं क्लास में पढ़ते हैं.

दूसरा केस : 9वीं क्लास के एक छात्र ने हाईस्कूल गैंगस्टर गेम डाउनलोड किया. 3-4 दिनों बाद जब यह बात उस के एक सहपाठी को पता चली तो उस ने शिक्षकों और परिजनों तक मामला पहुंचा दिया. परिजनों ने भी इस बात को स्वीकार किया कि बच्चे के व्यवहार में काफी दिनों से उन्हें परिवर्तन दिखाई दे रहा था. समय रहते सचेत होने पर अभिभावक और शिक्षकों ने मिल कर बच्चे की मनोस्थिति को समझा और उसे इस स्थिति से बाहर निकाला.

तीसरा केस : 12वीं कक्षा के एक छात्र की पिटाई 11वीं में पढ़ रहे 2 छात्रों ने इसलिए की क्योंकि वह उन की बहन का अच्छा दोस्त था. यही नहीं, उसे पीटने वाले दोनों भाई विशाल और विक्की उसे जान से मारने की धमकी भी दे चुके थे और ऐसा उन्होंने इंटरनैट से प्रेरित हो कर किया.

चौथा केस : 7वीं कक्षा की एक छात्रा ने मोबाइल पर ब्लूव्हेल गेम डाउनलोड कर लिया. उस में दिए गए निर्देश के मुताबिक उस ने अपने हाथ पर कट लगा लिया. उस की साथी छात्रा ने उसे देख लिया और शिक्षकों को पूरी बात बता दी. कहने के बावजूद छात्रा अपने परिजनों को स्कूल नहीं आने दे रही थी. दबाव पड़ने पर जब परिजनों को स्कूल बुलाया गया तो पता चला कि घर पर भी उस का स्वभाव आक्रामक रहता है. इस के बाद काउंसलिंग कर के उस को गलती का एहसास कराया गया.

एक छात्रा के अनुसार, ‘‘पढ़ाई के लिए हमें इंटरनैट की जरूरत पड़ती है. लगातार वैब सर्फिंग करने से कई तरह की साइट्स आती रहती हैं. यदि हमारे मातापिता साथ होंगे तो हमें अच्छेबुरे का आभास करा सकते हैं. इसलिए हम जैसे बच्चों के पास पापामम्मी या दादादादी का होना जरूरी है.’’

एक अभिभावक का कहना है, ‘‘डिजिटल युग में अब ज्यादातर पढ़ाई इंटरनैट पर ही निर्भर होने लगी है. छोटेछोटे बच्चों के प्रोजैक्ट इंटरनैट के माध्यम से ही संभव हैं. आवश्यकता पड़ने पर उन्हें मोबाइल फोन दिलाना पड़ता है. बहुत सी बातों की तो आप और हमें जानकारी भी नहीं होती. कब वह गलत साइट खोल दे, यह मातापिता के लिए पता करना बड़ा मुश्किल होता है.’’

एक स्कूल प्रिंसिपल का कहना है,  ‘‘एकल परिवार की वजह से बच्चों का आभासी दुनिया के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है. यदि बच्चे संयुक्त परिवार में रहते तो वे विचारों को साझा कर लेते. अभिभावकों को उन की गतिविधियों और व्यवहार पर नजर रखनी चाहिए. हम ने अपने स्कूल में एक सीक्रेट टीम बनाई है जो बच्चों पर नजर रखती है. 14-15 साल के बच्चों में भ्रमित होने के आसार ज्यादा रहते हैं.’’

अपराध और गेम्स

इंटरनैट पर इन दिनों कई ऐसे खतरनाक गेम्स मौजूद हैं जिन्हें खेलने की वजह से बच्चे अपराध की दुनिया में कदम रख रहे हैं. इस का सब से ज्यादा असर बच्चों पर पड़ रहा है. साइबर सैल की मानें तो विदेशों में बैठे नकारात्मक मानसिकता के लोग ऐसे गेम्स बनाते हैं. इस के बाद वे इंटरनैट के माध्यम से सोशल मीडिया पर गेम्स का प्रचारप्रसार कर बच्चों को इस का निशाना बनाते हैं.

साइबर सैल में कार्यरत एक साइबर ऐक्सपर्ट ने बताया कि हाईस्कूल गैंगस्टर और ब्लूव्हेल जैसे गेम्स से 13 से 18 साल के बच्चों को सब से ज्यादा खतरा है. इस उम्र में बच्चे अपरिपक्व होते हैं. इन को दुनियाभर के बच्चों में स्पैशल होने का एहसास कराने का लालच दे कर गेम खेलने के लिए मजबूर किया जाता है. गेम खेलने के दौरान बच्चों से खतरनाक टास्क पूरा करने के लिए कहा जाता है. अपरिपक्व होने के कारण बच्चे शौकशौक में टास्क पूरा करने को तैयार हो जाते हैं. वे अपना मुकाबला गेम खेलने के दौरान दुनिया के अलगअलग देशों के बच्चों से मान रहे होते हैं. गेम खेलने के दौरान वे सहीगलत की पहचान नहीं कर पाते. गेम के दौरान बच्चों में जीत का जनून भर कर उन से अपराध करवाया जाता है.

एक सर्वेक्षण में शामिल 79 प्रतिशत बच्चों ने कहा कि इंटरनैट पर उन का अनुभव बहुत बार नकारात्मक रहा है. 10 में से 6 बच्चों का कहना था कि इंटरनैट पर उन्हें अजनबियों ने गंदी तसवीरें भेजीं, किसी ने उन्हें चिढ़ाया इसलिए वे साइबर क्राइम के शिकार हुए.

इन औनलाइन घटनाओं का वास्तविक जीवन में भी गहरा प्रभाव पड़ता है. इंटरनैट पर दी गई व्यक्तिगत जानकारी का दुरुपयोग होना, किसी विज्ञापन के चक्कर में धन गंवाना आदि बालमन पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं.

मानसिक विकारों के शिकार

सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक, सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर अपना खाता खोलने वाले 84 प्रतिशत बच्चों का कहना था कि उन के साथ अकसर ऐसी अनचाही घटनाएं होती रहती हैं जबकि सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर सक्रिय न रहने वाले बच्चों में से 58 फीसदी इस के शिकार होते हैं.

बाल मनोविज्ञान के जानकारों के अनुसार, आज के बच्चे बहुत पहले ही अपनी औनलाइन पहचान बना चुके होते हैं. इस समय इन की सोच का दायरा बहुत छोटा रहता है और इन में खतरा भांपने की शक्ति नहीं रहती. उन का कहना है कि ऐसी स्थिति में बच्चों को अपने अभिभावक, शिक्षक या अन्य आदर्श व्यक्तित्व की जरूरत होती है जो उन्हें यह समझाने में मदद करें कि उन्हें जाना कहां है, क्या कहना है, क्या करना और कैसे करना है. लेकिन इस से भी ज्यादा जरूरी है यह जानना कि उन्हें क्या नहीं करना चाहिए.

सोशल नैटवर्किंग साइट्स का एक और कुप्रभाव बच्चों का शिक्षक के प्रति बदले नजरिए में दिखता है. कई बार बच्चों के झूठ बोलने की शिकायत मिलती है. 14 साल के बच्चों द्वारा चोरी की भी कई शिकायतें बराबर मिल रही हैं. मुरादाबाद के संप्रेषण गृह के अधीक्षक सर्वेश कुमार ने बताया, ‘‘पिछले 2 वर्षों के दौरान मुरादाबाद और उस के आसपास के इलाकों से लगभग 350 नाबालिगों को गिरफ्तार कर संप्रेषण गृह भेजा गया है. इन में से ज्यादा नाबालिग जमानत पर बाहर हैं लेकिन 181 बच्चे अभी संप्रेषण में हैं.’’

आक्रामक होते बच्चे

मनोचिकित्सक डाक्टर अनंत राणा के अनुसार, पहले मातापिता 14 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों को काउंसलिंग के लिए लाते थे, लेकिन आज के दौर में

8 साल की उम्र के बच्चों की भी काउंसलिंग की जा रही है. अपराध की दुनिया में कदम रखने वाले बच्चे ज्यादातर एकल परिवार से ताल्लुक रखते हैं. ऐसे परिवारों में मातापिता से बच्चों की संवादहीनता बढ़ रही है, जिस वजह से बच्चे मानसिक विकारों के शिकार हो रहे हैं. ऐसे में वे अपने पर भी हमला कर लेते हैं. काउंसलिंग के दौरान बच्चे बताते हैं कि परिजन अपनी इच्छाओं को उन पर मढ़ देते हैं. इस के बाद जब बच्चे ठीक परफौर्मेंस नहीं दे पाते तो उन्हें परिजनों की नाराजगी का शिकार होना पड़ता है. ऐसे हालात में ये आक्रामक हो जाते हैं.

8 से 12 साल के बच्चों की काउंसलिंग के दौरान ज्यादातर परिजन बताते हैं कि उन के बच्चों को अवसाद की बीमारी है. उन का पढ़ाई में मन नहीं लगता. टोकने पर वे आक्रामक हो जाते हैं और इस से अधिक उम्र के बच्चे तो सिर्फ अपनी दुनिया में ही खोए रहते हैं.

साइबर सैल की मदद लें

आप का बच्चा किसी खतरनाक गेम को खेल रहा है या उस की गतिविधियां मोबाइल पर मौजूद इस तरह के गेम की वजह से संदिग्ध लग रही हैं, तो तुरंत साइबर विशेषज्ञ से सलाह ले सकते हैं. फोन पर भी आप साइबर सैल की टीम से संपर्क कर सकते हैं. इस के लिए गूगल एरिया के साइबर सैल औफिस के बारे में जानकारी लें. वहां साइबर सैल विशेषज्ञ के नंबर भी मिल जाएंगे.

ध्यान दें परिजन

– परिजन बच्चों को समय दें और उन से भावनात्मक रूप से मजबूत रिश्ता बनाएं.

– बच्चे की मांग अनसुनी करने से पहले उस की वजह जानें.

– बच्चों के दोस्तों से भी मिलें ताकि बच्चे की परेशानी की जानकारी हो सके.

– बच्चों को अच्छे व बुरे का ज्ञान कराएं.

– बच्चों को व्यायाम के लिए भी उकसाएं.

– बच्चों से अपनी अपेक्षाएं पूरी करने के बजाय उन की काबिलीयत के आधार पर उन से उम्मीद रखें.

गणित नहीं कैमिस्ट्री भी बनी सपा कांग्रेस में गठबंधन, भाजपा की बढ़ी धड़कन

इंडिया गठबंधन ने इस बार मायावती के मास्टर स्ट्रोक का मुकाबला करने की रणनीति तैयार कर ली है. 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने सब से अधिक मुसलिम उम्मीदवार उतार कर समाजवादी पार्टी का गणित बिगाड दिया था. इस बार आजाद समाज पार्टी को साथ ले कर बसपा की कैमिस्ट्री बिगाड़ने का काम किया गया है. समाजवादी पार्टी ने रामजी लाल सुमन को राज्यसभा का उम्मीदवार बना कर बसपा के जाटव वोट में सेंधमारी की है. बसपा जिस तरह से इन चुनावों में खामोश है यह पार्टी की बेचारी को दिखाती है.

इंडिया गठबंधन की कैमिस्ट्री ने लोकसभा चुनाव में बसपा को एक किनारे कर के पूरी लड़ाई को आमनेसामने कर दिया है. अब इंडिया गठबंधन और भाजपा के एनडीए का सीधा मुकाबला होगा. ऐसे में उत्तर प्रदेश में भाजपा का विजय रथ फंस गया है. उस का प्रयास था कि उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन न बन पाए. भाजपा ने लोकदल को अलग करने में सफलता भले हासिल कर ली लेकिन सपा-कांग्रेस को मिलने से नहीं रोक पाई.

मध्य प्रदेश से सीखा सबक

भाजपा का प्रयास था कि सपा-कांग्रेस के बीच फूट डाली जाए. राहुल गांधी ने यहां मध्य प्रदेश वाली गलती नहीं की. मध्य प्रदेश में कमलनाथ ने ‘अखिलेश वखिलेश’ कह कर समाजवादी पार्टी को अपना दुश्मन बना लिया था. इस बार राहुल गांधी ने धैर्य से काम लिया और हर कीमत पर दोस्ती को अंजाम तक पहुंचा दिया. ‘गोदी मीडिया’ बारबार अखिलेश को भड़काने का काम कर रही थी. दोनों ही पार्टियों के प्रदेश स्तर के नेताओं ने खूबसूरती से इस दोस्ती की क्राफटिंग की. जिस से दोनों दलों के बीच केवल गणित ही नहीं कैमिस्ट्री भी बन गई.

उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस गठबंधन के बीच सीटों के बंटवारे में सपा ने कांग्रेस को अमेठी और रायबरेली समेत 17 सीटें दी हैं. सपा और कांग्रेस दोनों के ही लिए यह फायदे का सौदा है. सपा और कांग्रेस में दोस्ती की क्राफटिंग करने में कांग्रेस के यूपी प्रभारी अविनाश पांडे ने डेढ़ महीने मेहनत की. इस दौरान जहां कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने धैर्य से काम लिया. उन के बयान कई बार सपा को असहज करने वाले हो जाते थे.

प्रदेश के नेताओं की गणित ने बनाई बड़े नेताओं कैमिस्ट्री

वहीं सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने हर बात को समझदारी के साथ अखिलेश यादव तक पहुंचाई. जैसे ही स्वामी प्रसाद मौर्य ने पाला बदल कर इस दोस्ती को बिगाड़ने का कदम उठाया सपा ने तय कर लिया कि अब जल्दी ही इस गठबंधन का ऐलान किया जाए.

राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में अखिलेश अमेठी और रायबरेली में शामिल नहीं हुए तब अखिलेश और राहुल गांधी के बीच फोन पर बात हुई. जिस के बाद यह तय हो गया कि घंटों के अंदर गठबंधन हो जाएगा. गठबंधन की सीटों को ले कर हर विवाद इस के बाद खत्म हो गया. कांग्रेस ने सपा को अपर हैंड मानकर बात मान ली. दोनों दलों के बीच गणित कैमिस्ट्री ऐसी बदली की ना-ना करते ‘हां’ हो गई.

सपा प्रमुख अखिलेश यादव को राहुल गांधी की न्याय यात्रा में शामिल होना था. उस के एक दिन पहले उन्होंने सीटों का बंटवारा तय करने की शर्त रख दी. सपा की ओर से 17 सीटों का प्रस्ताव भेजा गया. इस में कुछ सीटों पर कांग्रेस सहमत नहीं थी. सपा हाथरस की जगह सीतापुर चाहती थी. इस के अलावा खीरी और मुरादाबाद सीट पर भी उस का दावा था. प्रदेश के नेताओं के बीच बात न बनती देख राहुल और अखिलेश के बीच फोन पर बात हुई. देर शाम कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने अपने प्रदेश के नेताओं के बीच बात हुई.

मध्य प्रदेश के अनुभव को देखते हुए समन्वय का रास्ता ही बेहतर माना गया. कांग्रेस ने मुरादाबाद, खीरी की जिद छोड़ी और सपा कांग्रेस को सीतापुर देने पर राजी हो गई. दोनों दलों के शीर्ष नेताओं में हुई बातचीत के बाद गठबंधन को अंतिम रूप दे दिया गया.

वोटों का बंटवारा रोकना पहली प्राथमिकता

कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने व उस के कोटे की सीटें बढ़ाने के पीछे 2 अहम फैक्टर माने जा रहे हैं. रालोद के जाने के बाद सपा के पास उस के कोटे की 7 सीटें खाली थीं. कांग्रेस को पहले ही 11 सीट का वादा किया जा चुका था. इस में रायबरेली-अमेठी शामिल नहीं थी. इन को मिला लें तो 13 सीटों पर सपा पहले ही तैयार थी. रालोद के जाने के बाद उदारता दिखाना आसान हो गया. अंदरखाने यह भी फीडबैक था कि अल्पसंख्यक वोटरों में कांग्रेस को ले कर रुझान बेहतर हुआ है.

प्रदेश की 25 से अधिक लोकसभा सीटों पर अल्पसंख्यक वोटरों की भूमिका प्रभावी है. ऐसे में कांग्रेस के अलग लड़ने से इन वोटरों के बंटवारे का भी खतरा था. जिस का सीधा नुकसान सपा को हो सकता था. राज्यसभा के टिकट सहित अन्य मसलों को ले कर भी सपा में मुसलिमों की भागीदारी को ले कर सवाल उठे थे. इसलिए भी सपा ने वोटरों में एका का संदेश देने का दांव खेला है. सीटों के बंटवारे में उस के कोर वोटरों को किसी और के पाले में खिसकने का खतरा न हो, इस पर सपा ने खास ध्यान दिया है. कांग्रेस को मिली सीटों में अमरोहा और सहारनपुर ही ऐसी है जहां अल्पसंख्यक वोटर चुनाव का रुख बदलने की क्षमता रखते हैं.

यूपी के चुनावी मैदान में कांग्रेस को 17 सीटें उसे मिली हैं, उस में रायबरेली ही उस के खाते में है. अमेठी, कानपुर व फतेहपुर सीकरी में कांग्रेस दूसरे नंबर पर थी. बांसगांव में पार्टी ने प्रत्याशी ही नहीं उतारा था. बाराबंकी, प्रयागराज, वाराणसी, झांसी, गाजियाबाद में सपा दूसरे नंबर पर थी. 2019 में कांग्रेस ने 1977 के बाद का सब से खराब प्रदर्शन किया था और उसे एक सीट मिली थी. वोट 7 फीसदी से भी नीचे आ गया. 2022 के विधानसभा चुनाव में वह 2 सीट पर सिमट गई. इस के बाद भी 17 सीटें मिलना उस के लिए फायदे का सौदा है.

सपा का साथ मिलने के चलते अधिकतर सीटों पर कांग्रेस लड़ाई में आ सकेगी. 2019 में सपा व और बसपा जैसे दो बड़े जातीय क्षत्रपों के साथ रहने के बाद भी भाजपा गठबंधन ने यूपी में 64 सीटें जीत ली थीं. अमेठी व कन्नौज में तो सपा, बसपा, कांग्रेस व रालोद सहित पूरा विपक्ष साथ लड़ा था, लेकिन जीत भाजपा को मिली थी. सपा-कांग्रेस को 24 में जीत के लिए जमीन पर और पसीना बहाना पड़ेगा.

2019 और 2024 के बीच गोमती नदी में पानी बहुत बह गया है. राम मंदिर को ले कर वोटर का उत्साह ठंडा दिख रहा है. भाजपा में टिकट वितरण और गठबंधन में तमाम मुश्किलें हैं. अभी जैसे ही सीटों का बंटवारा होगा वह रार सामने आएगी. ओम प्रकाश राजभर योगी मंत्रिमंडल में शामिल न किए जाने से नाराज हैं. भाजपा कई बड़े नेताओं के टिकट काटने जा रही थी. कांग्रेस-सपा के मिलने के बाद भाजपा यह साहस नहीं दिखा पाएगी. पार्टी के अंदरखाने नेताओं में बेचैनी है. जिस का प्रभाव भाजपा के मिशन 80 पर पड़ेगा.

सुलक्षणा : भाग 2- आखिर ससुराल छोड़कर वह अनजान जगह पर क्यों चली गई?

क्या उस का बाकी जीवन ऐसे इनसान के साथ बीतेगा? अपनेआप को अनेकों बार संभाल कर, फिर से उन के सभी ऐब को दरकिनार कर वह उन्हें प्यारसम्मान देती रही, इस उम्मीद से कि शायद वे एक दिन जरूर सुधर जाएंगे. मगर उन के लिए संवेदना, प्यार, अपनापन कोई मायने नहीं रखते थे.

हर बार संबंध बनाने के बाद वे उस पर पैसे फेंकने लगे. 1-2 बार तो उसे समझ नहीं आया, जब लगा कि ये अपनी पत्नी को भी वेश्या समझते हैं. तो उन की यह घटिया सोच उस से बरदाश्त नहीं हुई. उस ने उन के ऐसे बरताव करने पर एतराज जताया.

‘‘तो क्या करेगी तू…? मुकदमा करेगी…? जा कर, अब देख तेरे साथ और क्याक्या करता हूं, आई अपनी वकालत झाड़ने….‘‘
उन्होंने जो कहा, अखिरकार उस के साथ वैसा करने लगे.

उस की बिना मरजी के बारबार वे उस की देह पर वार करते रहे और उन के इस घिनौने कामों को वह खून की प्याली समझ पीती गई. उन के साथ एक कमरें में रहना उस के लिए असहनीय बनता जा रहा था. वह चाहती थी कि वह मर जाए, जिस से उस की जिंदगी को यह सब झेलने से आजादी मिल सके.

आप को क्या लगता है, उस ने मायके में अपनी घुटन भरी यातनाओं का जिक्र नहीं किया होगा…? हजार बार किया, मगर उन के घर औरतों के दुखतकलीफ का कोई महत्व नहीं होता. पिता तक तो खबर ही नहीं पहुंचती, मां और बहनें सब उसे ही ज्यादा पढ़ेलिखे होने की दुहाई देते.

‘‘अरे जैसा है चला, सब को कुछ ना कुछ सहना तो पड़ता है.‘‘

‘‘तू ज्यादा पढ़लिख गई है, इसलिए इतनी शिकायतें करती है.‘‘

‘‘तुम्हारी दोनों बहनंे तो कुछ नहीं कहतीं.‘‘

‘‘इसी वजह से हम औरतों को ज्यादा पढ़ने की छूट नहीं है.‘‘

‘‘अपना सब छोड़छाड़ कर यहां आ कर रहने की सोचना भी मत. ऐसा पीढ़ियों से नहीं हुआ और न होगा, क्योंकि शादी के बाद बेटियों का घर ससुराल ही होता है, भले ही वह जैसा भी हो.‘‘

अपने मायके से वह आशाहीन थी, इसी वजह से उस की हालत बद से बदतर होती चली जा रही थी. उस के शरीर से आत्मा जैसे निकलने के लिए तरस रही हो. इसी बीच उसे पता चला कि वह मां बनने वाली है.

मां बनना इन दुखों के पहाड़ के बीच उस की जिंदगी का सब से खुशनुमा पल था, और सच पूछें तो उसे एक बेटी की चाहत थी, जिस का नाम आकांक्षा रखती, उसे खूब पढ़ालिखा कर अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने की आजादी देती. मगर, यह खुशी भी उस के ससुराल वालों से देखी न गई.

जब उस ने यह बात अपने पति से साझा की तो…

‘‘लड़का ही होगा, अगर लड़की हुई तो कचरे में फेंक दूंगा, समझी.‘‘

उस की कोख में बेटी होने का पता लगाने के बाद, उन्होंने अपनी पहचान और पैसों के रोब से उस की अधूरी आकांक्षाओं के साथ उस के भीतर ही उस का गला घोट देना बेहतर समझा.

इन 6 सालों के बीच वह 2 बार अपनी बरदाश्त की सीमाएं पार होने पर ससुराल छोड़ कर अपने मायके जा चुकी थी.
‘‘तेरी कोख ही मनहूस है… एक बेटा तक नहीं दे सकती…‘‘

बेटा न हुआ तो उस के लिए भी उसे ही जिम्मेदार ठहराया गया.

लेकिन, हर बार सभी की एक ही समझाइश और ससुराल वापिसी करा दी जाती.

‘‘धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. दामाद साब अपनेआप सुधर जाएंगे.‘‘

‘‘तुम सब्र रखो, तुम 2 बार घर छोड़ कर वैसे ही आ चुकी हो, समाज क्या कहेगा?‘‘

‘‘यहां लौट के आ गई, तो बाकी बहनों के ससुराल वाले थूथू करेंगे हम पर.‘‘

‘‘कुछ नहीं तो पिता की इज्जत और उन के व्यापार का तो खयाल करो.‘‘

‘‘इस घर में तलाक का नाम भी मत लेना.‘‘

पिता को भी थोड़ाकुछ पता था, मगर वे अपनी पार्टनरशिप बचाने के चक्कर में जानबूझ कर अनजान बनते रहे और साथ ही उन्हें भी लगता था कि धीरेधीरे चीजें ठीक हो जाएंगी, शादी करने के बाद सब को एडजस्ट करना होता है, वह भी एक न एक दिन कर लेगी.

इतने वक्त सब का हठी व्यवहार देख कर सुलक्षणा को यह अहसास होते देर नहीं लगी कि उस की परेशानियों से किसी को कोई वास्ता नहीं है. अपने घर वालों के द्वारा उस के साथ पराई औलाद जैसा बरताव करते देख उसे असहनीय पीड़ा होती थी.

उसे एक ऐसे पिंजरे में मजबूरन कैद होना पड़ गया था जहां से वह केवल नीले आजाद आकाश में उड़ते हुए खुशहाल पक्षियों को देख सकती थी. उड़ती कैसे? उस की उड़ान तो शादी के पहले से नियत्रंण में रखी गई थी और शादी के बाद मानो उस के पंख ही काट दिए गए हों.

उस बीच उस के लोभी भाई ने शादी रचाई. उस के पिता, भाई और पति में खासा फर्क नहीं था.

पिता के साथ भाई का पैसों को ले कर मतभेद आएदिन होता रहता था. रोजरोज की कहासुनी से तंग वह अपनी शादी पर मिलने वाले पूरे दहेज पर अपना हक लेने की फिराक में था.

उस के ससुराल वालों ने शर्त रखी, ‘‘हमारी इकलौती बेटी से शादी के बाद आप का बेटा घरजमाई बन कर रहेगा, पूरा कारोबार संभालेगा, सारी प्रोपर्टी पर अंत में उस का ही हक होगा, हम उसे अपना बेटा मान कर प्यार देंगे.‘‘

उस का मतलबी भाई मान गया. घर पर कई दिनों की महाभारत और पिता के कई प्रलोभन देने के बावजूद भी भाई नहीं समझा. बड़ी धूमधाम से उन दोनों की शादी संपन्न हो गई और वह घरजमाई बन कर उन्हें धोखा दे कर चलता बना.

वही सुलक्षणा का जीवन नरक से भी बदतर बनता चला जा रहा था, अपनी दूसरी बेटी की जुदाई उसे अंदर से खोखला करती जा रही थी. वह अपने हैवान पति और ससुराल वालों से नफरत करने लगी.

अपने पति के साथ बारबार हमबिस्तर न होने के बहाने बनती रही. वह नहीं चाहती थी कि वो पेट से हो और एक निर्दोष संतान फिर से मार दी जाए. मगर, उस का पति हवस का गिद्ध…

उन की कामवाली के साथ अंतरंग होते उस ने उन्हें अपनी आंखों से देख लिया. जिस इंसान ने अनगिनत बार उस का विश्वास तोड़ा, इस बार, उन की ये निरी हरकत वह बरदाश्त नहीं कर पाई.

उसे पूरा विश्वास हो गया कि इस महल में कभी कोई सुधर नहीं सकता, शायद यही वो पल है, जो इतने सालों से यह कहने इंतजार कर रहा था कि, अब बस, उस ने अपने सारे रिश्ते तोड़ कर ससुराल छोड़ने का फैसला कर लिया.

उस ने आज के दिन अपनेआप को एक नए रूप में ढलते हुए महसूस किया. अंदर से जैसे एक अनवरत देवीरूपी ताकत उस का साहस भरते जा रही थी. वह आवेश में भी आ कर कोई उलटासीधा कदम नहीं उठाना चाहती थी.

वह घर छोड़ कर पहले भी 2 बार जा चुकी थी इस उम्मीद से कि उस के मायके वाले एक बार कह दंे कि ‘‘बेटी, तुम फिक्र मत करो. यह घर भी तो तुम्हारा है,’’ मगर, इस बार अपने मायके कतई न जाने का सूझबूझ कर फैसला लिया, क्योंकि वहां कहने को उस के खुद के भी अपनाने वाले नहीं थे. 2-4 दिन के बाद वही समझा कर फिर वापस उस नरक में धकेल देंगे. इसी रात वह अपने जेवर और पैसे ले कर घर से भाग गई.

कहां जाती? कहां रहती? बिना कुछ परवाह किए वह निरंतर अपना मुंह छिपा कर चलती चली जा रही थी. एक बस गुजरती दिखी और बिना सोचे उस पर सवार हो गई.
2 दिन बाद कहीं सुलक्षणा के मायके में…

‘‘नमस्कार बहनजी, बहू की 2 दिन पहले बेटे से छोटी सी बात पर थोड़ी कहासुनी हो गई थी, तब से घर से गायब है, पक्का आप के पास आ गई होगी, जब गुस्सा शांत हो जाए तो समझा कर वापस भेज दीजिएगा.’’

‘‘नहीं, वह तो यहां नहीं आई. उसे गए हुए पूरे 2 दिन हो गए और आप मुझे अब बता रही हैं? कहां होगी मेरी बेटी, किस हाल में होगी वह?‘‘
‘‘आप चिंता न करें, आ जाएगी, चलिए, मैं बाद में फोन करती हूं.‘‘

‘‘कहां गई मेरी बच्ची… कुछ भी कर के उसे ढूंढ कर लाओ… यह सब आप की गलतियों का नतीजा है, पैसे देख कर अपनी लड़की का सौदा कर आए, वहां बेटे ने अपना सौदा कर लिया… कभी खबर ली, किस हाल में रहती है वह?‘‘ गुस्से के आंसुओं से तिलमिला उस की मां ने पिता से जीवन में पहली बार कुछ कहने की हिम्मत की.
मां की बात सुन कर पिता मायूस हो सिर पर हाथ रख कर बैठ गए, जानते वे भी सब थे, कैसे उन का खुद का खून, बुढ़ापे, व्यापार का सहारा अपने सामने विदा होते देख उन का घमंड अंदर ही अंदर चूरचूर हो चुका था. किसी से क्या स्वीकार करते?

क्या मुद्दों से दूर हो रही हैं हिंदी फिल्में

आजकल हिंसा, बलात्कार, कत्ल, साजिश के चटपटे मसाले लपेट कर बनने वाली फिल्मों और टीवी सीरियलों से आम आदमी से जुड़े मुद्दे गायब हो चुके हैं. लिहाजा आम आदमी उस से कनैक्ट नहीं हो पाता. यही वजह है कि ऐसी मारधाड़ वाली फिल्में बौक्स औफिस पर एकडेढ़ हफ्ते में ही दम तोड़ देती हैं. लेकिन जबजब जनता की दुखती रग पर हाथ रखने वाली फिल्में बौलीवुड ने दीं, वे खूब चलीं और खूब सराही गईं.

समाज के सामने काले सच का परदाफाश करने के लिए कला और कलाकारों के माध्यम से अनेक कोशिशें होती हैं. भ्रष्टाचार पर नाटक खेले जाते हैं. जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं. आंदोलन होते हैं. इसी में एक तरीका फिल्में भी हैं जिन के जरिए न सिर्फ दर्शकों का मनोरंजन होता है बल्कि ये हमें समाज में फैली बुराइयों से रूबरू भी कराती हैं.

भ्रष्टाचार की पोल खोलती फिल्में

भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे पर जबजब कोई फिल्म आई, खूब पसंद की गई. भ्रष्टाचार एक ऐसा मुद्दा है जो भारत की जड़ें धीरेधीरे खोखली कर रहा है. शायद ही कोई ऐसा सरकारी विभाग होगा जिसे भ्रष्टाचार ने छुआ नहीं होगा. करप्शन एक अभिशाप की तरह देशभर में फैला हुआ है. शिक्षा संस्थानों से ले कर हैल्थ सैक्टर तक भ्रष्टाचार अपनी जड़ें जमाए हुए है.

कई बौलीवुड फिल्में हैं, जिन में भ्रष्टाचार की पोल खोली गई है. इस लिस्ट में सब से पहला नाम आता है साल 2005 में बनी फिल्म ‘अपहरण’ का, जिस में लीड रोल निभाया था बौलीवुड ऐक्टर अजय देवगन ने. फिल्ममेकर प्रकाश ?ा के निर्देशन में बनी यह फिल्म भ्रष्टाचार के मुद्दे को उजागर करती है.

अजय देवगन, नाना पाटेकर और बिपाशा बसु स्टारर यह फिल्म बिहार में हो रहे बड़े पैमाने पर अपहरण के मुद्दे और उस से उगाही जाने वाली करोड़ों रुपयों की रकम के खेल को उजागर करती है. वर्ष 2005 में 10 करोड़ रुपए की लागत से बनी इस फिल्म ने बौक्स औफिस पर 21.63 करोड़ रुपए का कलैक्शन किया था.

साल 2018 में रिलीज हुई फिल्म ‘भावेश जोशी सुपरहीरो’ एक आम आदमी के सुपरहीरो बनने की कहानी है. इस का मतलब यह नहीं है कि उस शख्स के अंदर कोई सुपर पावर थी, बल्कि फिल्म की कहानी तो उस के उस जज्बे और ताकत के बारे में थी, जो वह भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ने में दिखाता है.

निर्देशक विक्रमादित्य मोटवाने के निर्देशन में बनी इस फिल्म में प्रियांशु पैन्यूली, हर्षवर्धन कपूर मुख्य किरदार में थे. फिल्म की कहानी 2011 में हुए अन्ना आंदोलन पर आधारित थी, जिस में कुछ युवा भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़क पर उतरते हैं. फिल्म के किरदार भावेश और सिक्कू एकसाथ मिल कर लोगों को इंसाफ दिलाने के लिए सोशल मीडिया प्लैटफौर्म का इस्तेमाल करते हैं और जनता को भ्रष्टाचार के बारे में जागरूक करते हैं.

खुद को फिल्म से कनैक्ट करते दर्शक

बौलीवुड के खिलाड़ी कुमार यानी अक्षय कुमार स्टारर फिल्म ‘गब्बर इज बैक’ में भी भ्रष्टाचार के मुद्दे को बहुत सशक्त तरीके से पेश किया गया है. साल 2015 में आई इस फिल्म में अक्षय कुमार के अलावा श्रुति हासन, करीना कपूर खान, चित्रांगदा सिंह, जयदीप अहलावत, सुनील ग्रोवर मुख्य किरदारों में नजर आए थे. डायरैक्टर कृष के निर्देशन में बनी यह फिल्म स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में भ्रष्टाचार को उजागर करती है. फिल्म एक आम इंसान के जीवन पर आधारित है, जो अपनी पत्नी के साथ खुशहाल जिंदगी गुजार रहा है, लेकिन अचानक उन की जिंदगी में ऐसा भूचाल आता है, जो उस का सबकुछ बरबाद कर देता है.

अपनी बरबादी पर रोने और अवसादग्रस्त होने के बजाय फिल्म का किरदार करप्शन को जड़ से खत्म करने और लोगों को इंसाफ दिलाने के अपने मिशन पर निकल पड़ता है और भ्रष्टाचारियों को चुनचुन कर मारता है.

ऐक्टर अजय देवगन की फिल्म ‘गंगाजल’ भी दर्शकों को खूब पसंद आई थी. फिल्म बिहार में पुलिस डिपार्टमैंट और राजनीतिक गठजोड़ के पाप और उस में पनपते भ्रष्टाचार को दर्शाती है. यह फिल्म भाईभतीजावाद, अपराध, रिश्वतखोरी के खिलाफ आवाज उठाती है. ‘गंगाजल’ में अजय देवगन के अलावा ग्रेसी सिंह, मुकेश भी मुख्य किरदारों में नजर आए थे.

समाज का काला सच उजागर

बौलीवुड में ऐसी कई फिल्में हैं जो भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आधारित हैं. इन में ‘खोसला का घोसला’, अनिल कपूर की फिल्म ‘नायक’ जैसी फिल्में शामिल हैं, जो करप्शन के काले सच को दर्शकों के सामने उजागर करती हैं.

‘खोसला का घोसला’ को 2006 में कारा फिल्म महोत्सव में प्रदर्शित किया गया था और सकारात्मक आलोचनात्मक प्रतिक्रिया के साथ 22 सितंबर, 2006 को रिलीज किया गया था. इस ने 54वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता.

फिल्म ‘नायक’ में एक आम आदमी को मुख्यमंत्री द्वारा एक दिन के लिए राज्य को चलाने की चुनौती दी जाती है. उस एक दिन में वह भ्रष्ट अफसरों की ऐसी क्लास लगाता है कि उस का एक दिन का शासन जबरदस्त सफल होता है. उस के एक दिन के काम को देख कर राज्य के लोग उसे राजनीति में शामिल होने के लिए मजबूर करते हैं, जिस के बाद भ्रष्ट नेता द्वारा उस का घरपरिवार तहसनहस कर दिया जाता है. लेकिन वह हार नहीं मानता और भ्रष्टाचार के खिलाफ कमर कस कर खड़ा हो जाता है.

ये सभी फिल्में ब्लौकबस्टर रहीं. सिनेमाहौल में हफ्तों चलीं क्योंकि ये सभी जनता की रोजमर्रा की परेशानियों से जुड़ी थीं. आज करोड़ोंअरबों रुपए लगा कर बन रही फिल्में 2 दिनों में ही लुढ़क जाती हैं क्योंकि लोग उन से खुद को कनैक्ट नहीं कर पाते हैं.

फिल्म निर्माताओं को सोचना चाहिए कि फिल्में सिर्फ दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए नहीं होतीं, बल्कि इन का गहरा असर उन के दिलदिमाग पर पड़ता है, खासकर युवाओं पर. अगर उन के सामने हिंसा परोसी जाएगी तो उन का स्वभाव उग्र और आक्रामक बनेगा, अगर सामाजिक मुद्दों से उन्हें जोड़ा जाएगा तो उन मुद्दों को सम?ा कर वे समाज का कुछ भला कर सकेंगे.

थप्पड़: स्त्री के वजूद का अपमान

मेरठ के कंकरखेड़ा क्षेत्र में 26 दिसंबर, 2023 को बीटैक की एक छात्रा को सहपाठी लड़के द्वारा थप्पड़ मारने का मामला सामने आया. दरअसल, छात्रा ने साथ में पढ़ने वाले इस छात्र की दोस्ती का प्रस्ताव ठुकरा दिया था, जिस के बाद उस छात्र ने कक्षा में अन्य छात्रों के सामने ही बीटैक की सीनियर छात्रा को कई थप्पड़ जड़े. वह इतने पर ही शांत नहीं हुआ बल्कि गुस्से में कुरसी उठा कर लड़की को मारने की कोशिश की. लड़की ने भाग कर अपनी जान बचाई. बाद में लड़की ने यह घटना घर पर परिजनों को बताई और थाने में रिपोर्ट लिखवाने पहुंची. छात्रा ने आरोप लगाया कि आरोपी कई दिनों से उस पर दोस्ती करने का दबाव बना रहा था. दोस्ती स्वीकार न किए जाने पर वह हिंसा पर उतर आया.

इस बार के बिग बौस में ईशा मालवीय और अभिषेक कुमार ऐसे कंटैस्टैंट हैं जो अपने पास्ट रिलेशन को ले कर चर्चा में रहते हैं. अभिषेक ईशा के एक्स बौयफ्रैंड हैं. एक साल पहले उन का रिश्ता खत्म हो चुका है. उन का रिश्ता टूटने की वजह भी कहीं न कहीं अभिषेक का थप्पड़ और उस की तरफ अग्रेसिव व्यवहार ही था. ईशा ने अंकिता और खानजादी से बात करते वक्त बताया था कि उस ने एक बार अभिषेक को अपने दोस्तों से मिलवाया. ईशा के ज्यादा दोस्त होने की वजह से अभिषेक को गुस्सा आ गया था और उस ने ईशा को सब के सामने थप्पड़ मार दिया था. थप्पड़ की वजह से ईशा की आंख के नीचे निशान पड़ गए थे. इसी के बाद उन का रिश्ता टूटता चला गया.

कुछ समय पहले डायरैक्टर अनुभव सिन्हा की फिल्म ‘थप्पड़’ ऐसे ही विषय को ले कर आई थी. इस में बात शुरू होती है सिर्फ एक थप्पड़ से लेकिन यह पूरी फिल्म महज थप्पड़ के बारे में नहीं थी बल्कि उस के इर्दगिर्द तैयार हुए पूरे तानेबाने और हर उस सवाल को कुरेद कर निकालने की कोशिश करती दिखी जिस ने इस ‘सिर्फ एक थप्पड़’ को पुरुषों के हक का दर्जा दे दिया.

इस में अमृता की भूमिका में तापसी पन्नू अपने पति विक्रम के साथ एक परफैक्ट शादीशुदा जिंदगी बिताती दिखती है. अमृता सुबह उठने से ले कर रात को सोने तक अपने पति और परिवार के इर्दगिर्द घिरी जिंदगी में बिजी है और इस ‘परफैक्ट’ सी जिंदगी में बहुत खुश है. लेकिन इसी बीच एक दिन उन के घर हुई पार्टी में विक्रम अमृता को एक जोरदार थप्पड़ मार देता है तो फिर सबकुछ बदल जाता है. किसी ने सोचा न था कि एक थप्पड़ रिश्ते की नींव हिला देगा. लेकिन अमृता ‘सिर्फ एक थप्पड़’ के लिए तैयार नहीं थी. एक औरत की जंग शुरू होती है एक ऐसे पति के साथ जिस का कहना है कि मियांबीवी में यह सब तो हो जाता है. उस के आसपास के लोगों के लिए यह बात पचा पाना बहुत मुश्किल था कि सिर्फ एक थप्पड़ की वजह से कोई स्त्री अपने ‘सुखी संसार’ को छोड़ने का फैसला कैसे ले सकती है जबकि पुरुष को तो समाज ने स्त्री को मारनेपीटने का हक दिया ही हुआ है.

सवाल स्त्री के मान का

सच यही है कि एक थप्पड़ स्त्री के मानसम्मान और अस्तित्व पर सवाल खड़ा करता है. एक थप्पड़ यह दर्शाता है कि आज भी पुरुषों ने औरत को अपनी प्रौपर्टी सम?ा रखा है, जबरन उस पर अपना हक जमाना चाहते हैं. अगर स्त्री ने हक नहीं दिया तो थप्पड़ की गूंज में उसे एहसास दिलाना चाहते हैं कि उस की औकात क्या है. समाज में उस का दर्जा क्या है.

महिलाओं के खिलाफ हिंसा

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक महिलाओं से हिंसा पूरी दुनिया का भयंकर मर्ज है.  दुनिया की 70 फीसदी महिलाओं ने अपने करीबी साथियों के हाथों हिंसक बरताव ?ोला है, फिर चाहे वह शारीरिक हो या यौनहिंसा. दुनियाभर में हर रोज 137 महिलाएं अपने करीबी साथी या परिवार के सदस्य के हाथों मारी जाती हैं.

हमारे समाज में अकसर लड़कियां और लड़के दोनों ही पुराने रिवाजों से बंधे हुए होते हैं. लड़कियों को यह सिखाया जाता है कि घर के काम करना, पति की सेवा करना और उस की हर बात मानना उन का कर्तव्य है. उन्हें सिखाया जाता है कि पुरुष महिलाओं का मौखिक, शारीरिक या यौनशोषण करने के लिए स्वतंत्र हैं. इस का उन्हें कोई नतीजा भी नहीं भुगतना होगा.

बचपन से लड़कियों का 40 फीसदी समय ऐसे कामों में जाता है जिन के पैसे भी नहीं मिलते. इस का यह नतीजा होता है कि उन्हें खेलने, आराम करने या पढ़ने का समय लड़कों के मुकाबले कम ही मिल पाता है.

प्यू रिसर्च सैंटर की स्टडी

हाल ही में अमेरिकी थिंक टैंक प्यू रिसर्च सैंटर ने एक दिलचस्प स्टडी की थी. इस में भारत में महिलाओं के बारे में पुरुषों की सोच का अध्ययन किया गया. स्टडी में पाया गया कि ज्यादातर भारतीय इस बात से काफी हद तक सहमत हैं कि पत्नी को हमेशा पति का कहना मानना चाहिए.

प्यू रिसर्च सैंटर की यह नई रिपोर्ट हाल ही में जारी की गई. रिपोर्ट 29,999 भारतीय वयस्कों के बीच 2019 के अंत से ले कर 2020 की शुरुआत तक किए गए अध्ययन पर आधारित है.

इस के अनुसार करीब 80 प्रतिशत इस विचार से सहमत हैं कि जब कुछ ही नौकरियां हैं तब पुरुषों को महिलाओं की तुलना में नौकरी करने का अधिक अधिकार है. रिपोर्ट में कहा गया है कि करीब 10 में 9 भारतीय (87 प्रतिशत) पूरी तरह या काफी हद तक इस बात से सहमत हैं कि पत्नी को हमेशा ही अपने पति का कहना मानना चाहिए. यही नहीं,  इस रिपोर्ट के अनुसार ज्यादातर भारतीय महिलाओं ने इस विचार से सहमति जताई कि हर परिस्थिति में पत्नी को पति का कहना मानना चाहिए.

महिलाओं पर केंद्रित होती हैं ज्यादातर गालियां

नारीशक्ति की बात तो होती है लेकिन अभी भी महिलाएं दोयम दर्जे पर हैं. पढ़ीलिखी महिलाएं भी प्रताडि़त हो रही हैं. अगर आप को किसी को अपमानित करना है तो आप उस के घर की महिला को गाली दे देते हैं. उस का चरम अपमान हो जाता है और वह मर्दों के अहंकार को भी संतुष्ट करता है. किसी पुरुष से बदला लेना होगा तो बोलेंगे स्त्री को उठा लेंगे, महिला अपमानित करने का माध्यम बन जाती है. गांव में तो बहुत होता था पहले. अमूमन यह देखा गया था कि ये गालियां समाज के निचले पायदान पर रहने वाले लोग ही देते थे लेकिन अब आम पढ़ेलिखे लोग भी देने लगे हैं.

जब भी कोई बहस ?ागड़े में तबदील होने लगती है तो गालियों की बौछार भी शुरू हो जाती है. यह बहस या ?ागड़ा 2 मर्दों के बीच भी हो रहा हो तब भी गालियां महिलाओं पर आधारित होती हैं. कुल मिला कर गालियों के केंद्र में महिलाएं होती हैं. दरअसल, समय के साथ स्त्री, पुरुषों की संपत्ति होती चली गई और उस संपत्ति को गाली दी जाने लगी. गाली दे कर मर्द अपने अहंकार की तुष्टि करते हैं और दूसरे को नीचा दिखाते हैं. महिलाएं परिवार की इज्जत के प्रतीक के तौर पर देखी जाती हैं. इज्जत को बचाना है तो उसे देहरी के अंदर रखिए. महिलाएं समाज में कमजोर मानी जाती हैं. आप किसी को नीचा दिखाना चाहते हैं, तंग करना चाहते हैं तो उन के घर की महिलाओं- मां, बहन या बेटी को गालियां देना शुरू कर दीजिए. गाली सिर्फ गाली देना ही नहीं है, यह मानसिकता का प्रतीक भी है जो वीभत्स गाली देते हैं और उसे व्यावहारिकता में लाते हैं. इसलिए निर्भया जैसे मामले दिखाई देते हैं.

धर्म है इस सोच का जिम्मेदार

जितने भी धर्म हैं, हिंदू,, इसलाम, कैथोलिक ईसाई, जैन, बौद्ध, सूफी, यहूदी, सिख आदि सभी के संस्थापक पुरुष हैं, स्त्री नहीं. न ही स्त्री किसी धर्म की संचालिका है. न वह पूजापाठ, कथा, हवन कराने वाली पंडित है, न मौलवी है, न पादरी है. वह केवल पुरुष की आज्ञा का पालन करने के लिए इस संसार में जन्मी है. धर्म का मूल आधार ही पुरुषसत्ता है. स्त्री का दोयम दर्जा सिर्फ हिंदू धर्म में ही नहीं, हर धर्मग्रंथ में वह चाहे कुरान हो, बाइबिल हो या कोई और धर्मग्रंथ हो स्त्रियों को हमेशा पुरुष से कमतर माना गया.

धर्म की आड़ में कहानियों के माध्यम से स्त्री जीवन को दासी और अनुगामिनी के रोल मौडल दिखा कर उसी सांचे में ढालने का प्रयास किया जाता है. सीता, सावित्री, माधवी, शकुंतला, दमयंती, द्रौपदी, राधा, उर्मिला जैसी कई नायिकाओं के ‘रोल मौडल’ को सामने रख कर सदियों से स्त्री का अनावश्यक शोषण चलता आ रहा है. पुरुषसत्ता स्वीकृत भूमिका से अलग किसी स्थिति में स्त्री को देखना पसंद नहीं करती. इसलिए धार्मिक आचार संहिता बना कर वह स्त्री की स्वतंत्रता और यौनशुचिता पर नियंत्रण रखती है.

दुनिया का कोई देश या जाति हो, उस का धर्म से संबंध रहा है. सभी धर्मों में स्त्री की छवि एक ऐसी कैदी की तरह रही है जिसे पुरुष के इशारे पर जीने के लिए बाध्य होना पड़ता है. वह पितृसत्तात्मक समाज की बेडि़यों से जकड़ी होती है.

धर्मों में स्त्री सामान्यतया उपयोग और उपभोग की वस्तु है. उस की ऐसी छवि गढ़ी गई है जिस से स्त्री ने भी स्वयं को एक वस्तु मान लिया है. धर्म ने स्त्री को हमेशा पुरुष की दासी के रूप में चित्रित किया. रामचरितमानस में सीता को अग्निपरीक्षा देनी पड़ती है और महाभारत में द्रौपदी को चीरहरण जैसे सामाजिक कलंक से गुजरना पड़ता है.

स्त्री अधिकार की बात हमारे धर्मग्रंथों में कभी की ही नहीं गई. वह पुरुष के श्राप से शिला बन जाती है, पुरुष के ही स्पर्श से फिर से स्त्री बन जाती है. पुरुष गर्भवती पत्नी को वनवास दे देता है, पुरुष अपनी इच्छा से उसे वस्तु की तरह दांव पर लगा देता है. सभी धर्मग्रंथों में उसे नरक की खान, ताड़न की अधिकारी और क्याक्या नहीं कहा गया.

मर्द हिंसा का रास्ता केवल इसलिए अपनाता है क्योंकि वह केवल इसी के माध्यम से सब प्राप्त कर सकता है जिन्हें वह एक मर्द होने के कारण अपना हक सम?ाता है.

इन स्थितियों से महिलाएं तभी उबर सकती हैं जब वे पुरुषसत्ता और धर्मगुरुओं के षड्यंत्र को जान सकें और अपनी शक्ति की पहचान कर सकें. अपने मान की रक्षा के लिए खुद खड़ी हों न कि दूसरों की राह देखें.

मैं पति के साथ घर में सैक्स का आनंद नहीं उठा पाती, क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 26 साल है. शादी हुए 6 महीने हो गए हैं. परिवार संयुक्त और बड़ा है. ऐसी बात नहीं है कि संयुक्त परिवार से मु?ो कोई तकलीफ है. लेकिन समस्या वैवाहिक जीवन जीने को ले कर है. घर छोटा है. घर में सभी होते हैं. सासससुर, 2 ननदें, एक देवर. घर में जानपहचान वालों का आनाजाना भी बहुत है. हफ्ते के सातों दिन घर के कामों में उलझी रहती हूं. पति से खुल कर बात तक नहीं कर पाती. बस, रात में ही हमें थोड़ी प्राइवेसी मिलती है लेकिन तब भी पति के साथ खुल कर सैक्स एंजौय नहीं कर पाती. कभीकभी मन बहुत बेचैन हो जाता है. दूसरी जगह घर भी नहीं ले सकते क्योंकि पति इतना भी नहीं कमाते. अब आप ही बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

सैक्स संबंध हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है. स्वस्थ व जोशीली सैक्स लाइफ हमारे संबंधों को मजबूत बनाती है व जीवन को खुशियों से भरती है. संयुक्त परिवारों में जानबू?ा कर औरतों को दबाने के लिए उन्हें पति से दूर रखा जाता है और वे पति के साथ खुल कर सैक्स एंजौय नहीं कर पातीं. इस के लिए आप को पति से खुल कर बात करनी होगी. सिर्फ आप ही नहीं, आप के पति भी आप की चाह रखते होंगे. बेहतर होगा कि इस के लिए कभी किसी रिश्तेदार के या कभी मायके जाने के बहाने पति के साथ बाहर घूमने जाएं. इस तरह के संबंधों को तो ?ोलना ही होता है, कोई उपाय नहीं मिलता.

 

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

राजनीति पर हावी धर्म

धर्म की इतनी ‘महत्ता’ तो है कि इस का उन्माद पूरे देश या पूरी कौम को अंधा बना सकता है. इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा है जिन में धर्म के नाम पर लाखों को मारा गया, हजारों घर जलाए गए, औरतों से बलात्कार किए गए, बच्चों को जलती आग में फेंका गया. धर्म का उन्माद जगाना सरल इसलिए है क्योंकि बच्चों के पैदा होते ही धर्म के दुकानदार घरों और परिवारों पर हमला कर देते हैं. और फिर तर्क, तथ्य, अर्थ व धर्म के घिसेपिटे आदेशों के अनुसार बच्चों को पाला जाता है. बड़े हो कर वे अपने बच्चों के साथ वही करने लगते हैं जो उन के साथ किया गया था.

यह आश्चर्य की बात है कि हर पीढ़ी में कुछ लोग ऐसे हुए जिन्होंने धर्म की ज्यादती सहने से इनकार कर दिया और एक अपना ठोस रास्ता अपनाया चाहे उस में उन्हें धर्म का कोप सहना पड़ा. हर समाज ने हर युग में ऐसा किया और इसी का नतीजा है कि आज मानव सभ्यता तरहतरह के नए अनुसंधानों व खोजों का लाभ उठा रही है.

हर देश में, अफसोस है, कुछ लोग बारबार सूई को उलटा घुमाने की कोशिश करते रहते हैं. इस में धर्म का धंधा चलाने वालों का बड़ा फायदा है क्योंकि उन की कमाई इसी पर आधारित है कि धर्म के नाम पर अंधे अपनी सुरक्षा व मानसिक शांति के लुभावने-लच्छेदार वादों पर मोटा दान करें व मोटी दक्षिणा दें.

आज 2024 में 2 युद्ध भयंकर पैमाने पर लड़े जा रहे हैं और दोनों में धर्म ही कारण है. रूस-यूक्रेन युद्ध में और्थोडौक्स क्रिश्चियन चर्च का हाथ है जिस में मास्को स्थित सैंटर अपने से अलग हुए यूक्रेन के सैंटर को सबक सिखाना चाहता है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को मास्को के चर्च के किरिल ने ही युद्ध के लिए उकसाया था.

फिलिस्तीन और इजराइज का युद्ध पुराने इसलामी अरबों और यहूदी-इजराइली युद्धों को दोहरा रहा है. आज पूरा पश्चिम एशिया सुलग रहा है क्योंकि यूरोपीय ताकतों के जाने के बाद इस क्षेत्र के नाम पर खड़े हुए नेताओं ने मसजिदों के सहारे ताकत छीन ली और ऐसी छीनी कि इन देशों की जनता अपनों की ही गुलाम हो गई है.

भारत ने एक बड़ा विभाजन 1947 में धर्म के नाम पर देखा और आज तक उस का जहरीला कैंसर हमारी प्रगति में आड़े आ रहा है. पाकिस्तान अपने पड़ोसी अफगानिस्तान की राह पर चल रहा है जहां सेनाओं के सहारे कट्टर धर्मनेताओं की चलती है.

धर्मों ने शांति फैलाई हो, ऐसा नहीं लगता. शांतिप्रिय बौद्ध धर्म को मानने वाले राजाओं ने भी खूब युद्ध किए हैं, भारत में ही नहीं, वहां भी जहां बौद्ध धर्म पहुंच गया था.

आज भारत फिर धर्म की दलदल में धंस रहा है. धर्म राजनीति और परिवार पर हावी हो चुका है. धर्म के नाम पर देश बंट रहा है. हमारी प्राथमिकताएं बदल रही हैं. यूरोप और अमेरिका में भी कुछ देशों में ऐसा ही हो रहा है.

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की संभावित जीत चर्च की जीत होगी और पक्का है कि ट्रंप के फैसले चर्चों को चलाने वालों की गुफाओं से निकलेंगे.

इस की कीमत समयसमय पर आम लोग देते रहे हैं जिन में धर्म के मानने वाले और उदासीन दोनों शामिल रहे हैं. यह अब गंभीर होता जा रहा है. भारत भी अब अफगानिस्तान और ईरान की राह पर है.

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