प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनता को संबोधित करने के लिए मंच पर जब आते हैं तो जनता के रोजमर्रा के हित से जुड़ी कोई बात उन के भाषण में नहीं होती है. न वे गरीबों के बच्चों की शिक्षा की बात करते हैं, न युवाओं को रोजगार देने की बात करते हैं, न बढ़ती महंगाई को कम करने की बात करते हैं, न बिजली-पानी-रसोई गैस की दरों में कमी लाने की बात करते हैं, न पुरानी पैंशन पर कोई आश्वासन और न किसानों को कोई राहत. वे मंच पर चढ़ कर पहली बात यह बताते हैं कि आज उन को कितने नंबर की गाली पड़ी. आज उन को विपक्ष के किस नेता ने क्या कहा.
प्रधानमंत्री मोदी मंच से लोगों को बताते हैं कि हम विश्व की सब से बड़ी इकोनौमी बनने वाले हैं, हम विश्वगुरु बनने वाले हैं, भव्य राम मंदिर बनने से विश्व में भारत का गौरव बढ़ रहा है. सेनाओं का शौर्य बढ़ रहा है. लेकिन इन बातों से आम आदमी को क्या लेनादेना? देश का गरीब आदमी जिस को दोपहर की दो रोटी मिलने के बाद इस बात की चिंता होने लगती है कि पता नहीं रात की रोटी उस को और उस के बच्चों को मिलेगी या नहीं, उस को आप के विश्वगुरु हो जाने से क्या फायदा? आप विश्वगुरु हो जाएं या अंतरिक्ष गुरु, अगर गरीब के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम नहीं कर सकते, उस के बच्चों को शिक्षा नहीं दे सकते, उस के जवान लड़के के हाथों को रोजगार नहीं दे सकते, तो उस की नजर में आप जीरो हैं.
भाजपा जहांजहां भी सत्ता में आई वह रोटी-रोजगार के मुद्दे पर नहीं, बल्कि धर्म के नाम पर देश की जनता के बीच घृणा, वैमनस्य और ध्रुवीकरण पैदा कर के आई है. उस ने जनता को डराया कि हिंदू खतरे में है. उस ने विश्वास दिलाना चाहा कि राम मंदिर निर्माण से ही धर्म की रक्षा होगी. नोटबंदी कर कालाधन निकालने और गरीब के खाते में 15-15 लाख रुपए डालने की झूठी बातें फैला कर उसे झांसे में लिया, मगर सत्ता पाने के बाद वह न गरीब की हुई, न किसान और जवान की. वह तो उद्योपतियों, पूंजीपतियों की कठपुतली बन कर रह गई.
आज भाजपा की बड़ीबड़ी बातों में आम आदमी – किसान, मजदूर, जवान कहीं नहीं है. जबकि विपक्ष के नेता सड़क से संसद तक सीधे जनता से जुड़े मसलों पर बात करते हैं. खासतौर पर आम आदमी पार्टी के नेता और नेतृत्व न सिर्फ जनता के हित की बातें करते आए हैं, बल्कि उन्होंने किया भी है.
आज दिल्ली की अधिकांश जनता को प्रतिमाह आने वाले बिजली-पानी के हजारों रुपए के बिल से राहत मिल चुकी है. गरीबों के बच्चे जिन सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे हैं उन की व्यवस्था किसी प्राइवेट स्कूल की व्यवस्था से कम नहीं है. यही वजह थी कि अरविंद केजरीवाल के पहले मुख्यमंत्रित्व काल का सुशासन देख दूसरी बार भी दिल्ली की जनता ने उन्हें सिरआंखों पर बिठाया. पंजाब में कांग्रेस की जड़जमाई सत्ता को उखाड़ फेंका और आम आदमी पार्टी की सरकार बनवा दी. आजादी के बाद के सात दशकों में आम आदमी पार्टी पहली राजनीतिक पार्टी है जिस ने इतनी तेजी से अपनी जगह जनता के दिल में बनाई.
मगर आम आदमी पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता भाजपा को खटक गई. भाजपा जो आने वाले चंद सालों में ही तानाशाह होने का सपना देखने लगी थी, को आम आदमी पार्टी के कार्यों और उस की लोकप्रियता से खौफ पैदा हो गया. तानाशाही को जनता के सवाल, जनता के मुद्दे पसंद नहीं हैं. लिहाजा, जनता के लिए काम करने वाली पार्टी को खत्म करना जरूरी हो गया. इस के लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों के जरिए पूरी रणनीति तैयार की गई.
पीएमएलए कानून में बदलाव किया गया. कानून को ऐसा बना दिया कि सिर्फ आरोप लगाने भर से ही किसी को जेल भेजा जा सकता है. फिर केजरीवाल पर सीधे हाथ न डाल कर ईडी के जरिए पहले आम आदमी पार्टी के सैकंड लाइन के नेताओं सत्येंद्र जैन, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह को शराब घोटाले में जेल में डाला गया. जबकि आज तक ईडी इस मनीलौन्ड्रिंग केस में फूटी कौड़ी बरामद नहीं कर पाई है. अब आम चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी जेल भेज दिया गया है ताकि चुनाव में खुल कर खेलने के लिए मैदान खाली हो जाए.
लंबे समय से भाजपा की कोशिश थी कि किसी तरह दिल्ली की सरकार गिरा दी जाए और आम आदमी पार्टी के नेताओं को बिखरा दिया जाए. साथ ही साथ वे केंद्रीय जांच एजेंसियों के माध्यम से कांग्रेस को भी धमकाते रहे, तृणमूल के लिए भी मुसीबतें पैदा करते रहे तो बहुजन समाज पार्टी की मायावती को भी धौंस में लिए रहे. कुल जमा यह कि लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकारों को गिराने और उन के गठबंधनों को तोड़ने की रणनीति में भाजपा ने अमानवीयता की सारी हदें पार कर दीं.
विपक्षी नेताओं को डराने के लिए सीबीआई (केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो), आईटी (आयकर विभाग) और ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) जैसी जांच एजेंसियों को उन के पीछे लगा दिया गया. जो विपक्षी हाथपैर जोड़ कर भाजपा में आ गया उस के ऊपर से सारे मुकदमे हटा लिए गए; जो नहीं आए उन को ईडी के जरिए जेल में ठूंसने लगे.
भाजपा की केंद्र सरकार में अगर किसी जांच एजेंसी पर सब से ज्यादा दाग लगे हैं तो वह है ईडी. जो आरोपियों को जेल में ठूंसने के बाद आका के इशारे पर उन्हें ज्यादा से ज्यादा समय तक जेल में रखने के लिए कोर्ट में तारीख पर तारीख लेती रहती है और आरोपपत्र दाखिल नहीं करती कि केस ट्रायल की स्टेज पर पहुंचे.
यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा कि, केंद्रीय एजेंसियों को राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों की जांच पर ही फोकस करना चाहिए. ईडी का खेल देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2 अप्रैल, 2024 को यह कहते हुए आप नेता संजय सिंह को जमानत दे दी कि जब पैसे की कोई रिकवरी अब तक नहीं हुई तो संजय सिंह को और अधिक समय तक हिरासत में रखने की आवश्यकता क्यों है? आखिर संजय सिंह 6 महीने बाद जेल से बाहर आ गए. जल्दी ही मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन भी रिहा होंगे. मगर भाजपा को फिर भी शर्म नहीं आएगी.
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी भारतीय जनता पार्टी की आसन्न हार के मद्देनजर बढ़ती हताशा को दर्शाती है. विपक्षी एकता से डरी भाजपा विपक्षी इंडिया गठबंधन को कमजोर करने के लिए हर दांव आजमा रही है. भाजपा आलाकमान विपक्षी गठबंधन के नेताओं को हर मंच से देश के ‘दुश्मन’ और ‘भ्रष्टाचारी’ करार देने में जुटे हैं. हालांकि सुप्रीम कोर्ट का डंडा पड़ने पर जब इलैक्टोरल बौंड की हकीकत खुली तो जनता ने देखा कि सब से बड़े भ्रष्टाचारी और घोटालेबाज कौन है? बावजूद इस के, भाजपा को शर्म नहीं आई और उस के तमाम प्रवक्ता गोदी मीडिया के मंच पर दूसरी पार्टियों के नेताओं से बहस के नाम पर बदतमीजियां करते ही दिखाई दिए, खासतौर पर आप नेताओं के साथ.
सत्ता के तलुवे चाटने वाला गोदी मीडिया भले दिनभर भाजपा की आरती उतारता रहे मगर दिनभर इन चैनलों को देखने वाले लोग हैं कितने? जो लोग टीवी देखते भी हैं उन को अब समाचार चैनलों के चीखतेचिल्लाते एंकरों में कोई दिलचस्पी नहीं है. असली सच तो सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर है, जहां आम जनता भाजपा को गरियाती नजर आ रही है, खासतौर पर दिल्ली की. दिल्ली की चुनी हुई सरकार को नष्ट करने के लिए जो गंदा खेल खेला जा रहा है उस से जनता में खासा आक्रोश है.
भाजपा अच्छी तरह से जानती थी कि अरविंद केजरीवाल के चुनावी प्रचार अभियान में भारी भीड़ उमड़ेगी और इसीलिए उन के प्रचार को रोकने के लिए ईडी को मुस्तैद किया गया, चुनावी तारीखों का इंतजार किया गया और आखिरकार केजरीवाल को जेल भेज दिया गया. केजरीवाल अब लंबे समय तक जेल में रहेंगे, इस की पूरी संभावना है, क्योंकि ईडी पूछताछ और सहयोग न करने के नाम पर आगे की तारीखें लेती रहेगी.
आम आदमी पार्टी में बचे कुछ मजबूत नेता जिन में सौरभ भारद्वाज और आतिशी मर्लेना के नाम सब से ऊपर हैं, को भी कुछ ही समय में सलाखों में डाल दिया जाएगा. लेकिन देश की जनता इन साजिशों को समझ नहीं रही है, या इन खबरों पर उस की नजर नहीं है, इस मुगालते में भाजपा को नहीं रहना चाहिए. जनता देख भी रही है, समझ भी रही है और लोकसभा चुनाव में जवाब देने के लिए तैयार भी बैठी है. गौरतलब है कि चुनाव आयोग से ले कर केंद्रीय जांच एजेंसियों और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के वक्तव्यों तक पर सुप्रीम कोर्ट भी पैनी नजर बनाए हुए है.
31 मार्च को दिल्ली के रामलीला मैदान में इंडिया गठबंधन की महारैली ने यह साबित कर दिया है कि देश के 2 राज्यों के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल को जेल भेजने से इंडिया गठबंधन और मजबूत हुआ है. अभी तक जो बिखराव और तनातनी गठबंधन के नेताओं के बीच दिख रही थी वह भी बिलकुल खत्म हो चुकी है.
इंडिया गठबंधन के सभी नेता रामलीला मैदान में आयोजित रैली में मौजूद थे, जबकि केजरीवाल और सोरेन के लिए मंच की पहली पंक्ति में 2 कुरसियां प्रतीकात्मक विरोध दर्ज कराने के लिए खाली छोड़ी गई थीं. इस दौरान केजरीवाल, सोरेन और आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह तथा सत्येंद्र जैन की पत्नियां भी मौजूद रहीं. इस दृश्य ने जनता के दिल में हमदर्दी ही पैदा की है. मंच से नेताओं के भाषणों ने भी इस बात को पुख्ता किया कि भाजपा द्वारा ‘अलोकतांत्रिक बाधाएं’ पैदा करने के बावजूद गठबंधन लड़ने, जीतने और देश का लोकतंत्र बचाने के लिए प्रतिबद्ध है. इस रैली में हजारों की संख्या में दिल्ली की जनता ने भाग लिया. इस से चुनाव में भाजपा को हराने का इंडिया गठबंधन का संकल्प और मजबूत हुआ है.