सशक्तीकरण एवं स्वतंत्रता का सर्वश्रेष्ठ स्वरूप है वित्तीय स्वतंत्रता. इस से एक प्रगतिशील समाज का निर्माण होता है और समाज से जुड़े सभी जनों का भविष्य उज्ज्वल होता है. आज जीवन के हर क्षेत्र में स्वयं को स्थापित करने के लिए महिलाएं कड़ी मेहनत कर रही हैं. ऐसे में उन के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वे लंबे समय तक अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ बनाए रखें.
यद्यपि लंबे समय के लिए वित्तीय स्वतंत्रता प्रदान करने लायक संपत्ति जुटाना तथा स्वयं के संसाधन निर्मित करने की एकमात्र वजह सशक्तीकरण ही नहीं होती. पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के वित्तीय संसाधन जल्दी चुक जाने की संभावनाएं कहीं ज्यादा होती हैं. भले ही यह वाक्य कठोर लगे, लेकिन सचाई यही है.
औसतन महिलाओं का जीवन सोपान पुरुषों की तुलना में अधिक लंबा होता है. इस का सीधा अर्थ है कि महिलाओं के सामने आर्थिक समस्याएं पैदा होने के खतरे भी वास्तव में अधिक होते हैं. स्पष्ट है कि महिलाओं को अपने स्वास्थ्य की देखभाल तथा सेवानिवृत्ति का इंतजाम करने के लिए अधिक मेहनत करने की आवश्यकता होती है.
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विकास के तमाम दावों के बावजूद आमतौर पर महिलाओं को आज भी पुरुषों के मुकाबले कम भुगतान किया जाता है. इसे यों भी समझा जा सकता है कि महिलाओं की जेब में खर्च करने के लिए अपेक्षाकृत कम पैसे बचते हैं. थोड़ी देर के लिए यह भी मान लिया जाए कि वे पुरुषों के बराबर ही पैसे खर्च करती हैं तब भी इस तथ्य से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि आरामदायक और कर्जमुक्त जीवन बिताने के लिए अपनी सेवानिवृत्ति, आपातकालीन कोष, निवेश तथा अन्य वित्तीय उपायों हेतु बचत करने के लिए उन के हाथ में पैसे कम ही पड़ जाते हैं.
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