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अब विदेशी टुरिस्ट दिलायेंगे टैक्स में छूट

घर पर सैलानियों को ठहराने वालों को केन्द्र सरकार टैक्स में छूट का तोहफा दे सकती है. इससे अपने घर में पर्यटकों की आवभगत करने वालों की मोटी कमाई भी हो सकेगी. सरकार विदेशी पावणों को घर पर ठहराने को स्टार्ट अप का दर्जा देना चाहत है. इसी के तहत ये सभी छूट मिलने वाली हैं. पर्यटन मंत्रालय ने एक नई गाइडलाइन बनाई है, जिसके तहत घरों में पर्यटकों को ठहराने पर पहले से चली आ रही नीति में बदलाव किए गए हैं.

पीएम को दिया था प्रजेन्टेशन

जनवरी में सचिवों के एक समूह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस संबंध में एक प्रेजेंटेशन दिया था. उसमें कहा गया था कि स्टार्ट-अप इंडिया की मूल भावना के अनुसार रोजगार के मौके बनाने और देश में होटल के 1.9 लाख कमरों की कमी को दूर करने में होम स्टे का सिस्टम बड़ा योगदान कर सकता है. इसे पर्यटन क्षेत्र को बढ़ावा देने वाले कदम के रूप में देखा जाना चाहिए.

होम स्टे के बारे में सचिवों की समिति ने प्रस्ताव दिया है कि यह सेवा देने वालों से कोई सर्विस टैक्स या दूसरे वाणिज्यिक टैक्स न लिए जाएं और उनकी लाइसेंसिंग प्रक्रिया ऑनलाइन कर दी जाए.

 

 

महंगाई डायन खाए जात है…!

खाने की चीजों के दाम चढ़ने से सरकार परेशान है. महंगाई की फिक्र कर रही सरकार ने समय से पहले राज्यों के खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्रियों की बैठक बुलाई है. सरकार दाल (विशेषकर अरहर) और चीनी के दाम बढ़ने से परेशान है. वो चाहती है कि राज्य सरकारें अपनी मशीनरी को कसें और कालाबाजारी को रोकने जैसे अन्य कदम उठाए जाएं.

 सरकार ने 51 हजार मीट्रिक टन दाल बाजार से और 26 हजार मीट्रिक टन दाल विदेश से मंगाई है. लिहाजा वह जानती है कि दाल की कमी नहीं है, इसलिए राज्य अपने यहां दाल की कमी नहीं होने दें. अरहर पर सरकार राज्यों को विशेष रियायत भी दे रही है.

दिलचस्प बात यह है कि सरकार के पास पर्याप्त दाल होने के बावजूद राज्य दाल की डिमांड नहीं कर रहे हैं. बताया जाता है कि आंध्र प्रदेश के अलावा किसी राज्य ने सरकार से दाल नहीं मांगी है. सरकार इस बात की भी फिक्र कर रही है कि उसके कहने के बावजूद पश्चिम बंगाल और केरल जैसे कई राज्यों ने दाल की स्टॉक सीमा तय नहीं की है.

पिछले साल भी विदेश से मंगाई दाल को बमुश्किल सरकार दिल्ली और तमिलनाडु जैसे राज्यों में खपा सकी थी. सरकार इस बात को समझ रही है कि दाल को गरीब की थाली से जोड़कर देखा जाता है और अगर बाजार में दाल महंगी बिकती है तो सरकार की बड़ी आलोचना होती है. पिछले साल विभिन्न मंत्रालयों के बीच दाल को लेकर तालमेल की कमी थी, लेकिन इस बार सरकार ऐसी स्थिति निर्मित नहीं होने देना चाहती.

चीनी की मिठास में कमी सरकार को अभी से अखर रही है. यही वजह है कि उसने चीनी की स्टॉक लिमिट तय कर दी है और सब्सिडी पर भी रोक लगा दी है.सरकार का रुख यही है कि चीनी के दाम 40 रुपए से नीचे रखने के लिए जो भी बन पड़ेगा वो किया जाएगा, भले ही इसके लिए चीनी के कारखानों के साथ कड़ाई ही क्यों न दिखानी पड़े.

 

विश्व बैंक ने की ‘आधार’ की सराहना

भारत की विशिष्ट पहचान पत्र वाली ‘आधार’ योजना की सफलता से विश्व बैंक काफी प्रभावित है. वह इसके अनुभवों का लाभ अफ्रीकी महाद्वीप सहित अन्य देशों में पहुंचाने के विकल्प तलाश रहा है. यह जानकारी विश्व बैंक में भारत के एक शीर्ष अधिकारी ने दी.

भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के महानिदेशक डॉ अजय भूषण पांडे ने कहा , ‘यहां लोग (विश्व बैंक में) आधार के बड़े प्रशंसक हैं. वे ऐसे विकल्प तलाश रहे हैं कि अन्य देशों को उनकी रणनीतियां बनाने में आधार के अनुभवों के उपयोग करने की सलाह दे सकें.’ पांडे यहां विश्व बैंक के अधिकारियों के साथ बैठकें करने के लिए आए थे.

इन बैठकों में उन्होंने आधार के संबंध में अपनी बातें रखीं. इसके अलावा उन्होंने उन देशों के प्रतिनिधियों से भी विमर्श किया जो ‘आधार’ को अपने यहां लागू करना चाहते हैं.

एक आधार कार्ड का खर्च एक डॉलर से भी कम

अपनी प्रस्तुति में उन्होंने बताया कि कैसे आधार का प्रयोग विभिन्न तरह के सब्सिडी कार्यक्रमों के लिए किया जा रहा है और इससे सरकार के धन की बचत हुई है. उन्होंने कहा कि आधार के तहत अब एक अरब से भी ज्यादा लोगों की ऑनलाइन पहचान है. इसके अलावा एक आधार कार्ड को जारी करने का खर्च एक डॉलर से भी कम है.

इसके अलावा इसका प्रयोग कभी भी, कहीं भी बिना किसी टोकन के किया जा सकता है. इसके ढेर सारे प्रयोग हैं. इसके अलावा आधार से दरवाजे तक बैंकिंग व्यवस्था पहुंची है, सब्सिडियों का सीधा हस्तांतरण संभव हुआ है जिससे सरकार की अरबों डॉलर की बचत हुई है.

उन्होंने बताया कि कई अफ्रीकी देशों के लिए यह काफी आकर्षक है. वह भी ऐसी ही व्यवस्था को अपनाकर अपने नागरिकों को एक पहचान पत्र जारी करना चाहते हैं. इस तरह से वह काफी धन बचाने में सक्षम हो सकेंगे साथ ही अपने सब्सिडी कार्यक्रमों को प्रभावी रूप से लागू कर सकेंगे.  

 

सोलर सिस्टम ऊर्जा का नया भविष्य

सूरज ऊर्जा का कभी न खत्म होने वाला भंडार है. ऐसे में इस का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने में ही अक्लमंदी है. साधारण बिजली महंगी होने के साथसाथ अकसर गायब भी रहती है और जनरेटर व डीजल का इस्तेमाल करना सभी के लिए मुमकिन नहीं होता. यानी अब वक्त आ गया है सोलर ऊर्जा का. यकीनन सोलर ऊर्जा यानी धूप से मिलने वाली ऊर्जा भविष्य की जरूरत है. सोलर ऊर्जा से चलने वाली मशीनों को ले कर नएनए प्रयोग हो रहे हैं. सोलर के साथ सब से खास बात यह है कि इस से ध्वनि प्रदूषण, बिजली बिल और पावर कट की खामियों से बचा जा सकता है. बिजली की कटौती, बिजली की बढ़ती कीमत, लो वोल्टेज की समस्या और जनरेटर के महंगे इस्तेमाल से सोलर ऊर्जा की मांग बढ़ती जा रही है.

घरेलू सोलर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए केंद्र और प्रदेश सरकार ने 40 फीसदी छूट देने का काम भी शुरू किया है, जिस की वजह से सोलर वाटर पंप सिस्टम, सोलर पावर प्लांट, सोलर रूफटौफ इनवर्टर, सोलर वाटर हीटर की मांग बढ़ती जा रही?है. किसानों के लिए सोलर सब्सिडी योजना सरकार चला रही है, जिस की वजह से किसानों को 75 फीसदी अनुदान मिल जाता है. किसानों के अलावा दूसरे लोगों के लिए भी सोलर सिस्टम लगाना सरल होता जा रहा?है. जिस तरह से केंद्र और प्रदेश सरकारें सोलर सिस्टम को बढ़ावा दे रही हैं, उस के चलते बैंक भी अब सोलर सिस्टम को बढ़ावा दे रहे हैं.

पूरे देश में मिलने वाला वातावरण ऐसा होता है, जिस में सूर्य की किरणें खूब मिलती हैं. सूर्य की इन किरणों का सोलर ऊर्जा के क्षेत्र में बहुत अच्छा इस्तेमाल किया जा सकता है. धीरेधीरे सोलर ऊर्जा का इस्तेमाल पूरे देश में होने लगा है. अब इस का इस्तेमाल फैक्टरियों में भी होने लगा है. सोलर पावर प्लांट के इस्तेमाल से बिजली बनाने का काम तेजी से होने लगा है, जिस से बिजली के इस्तेमाल की दूसरी चीजों को चलाया जा सकता है. यह बिजली की जगह इस्तेमाल होने लगा है. नई पीढ़ी के लिए सोलर ऊर्जा का नया रास्ता बनता जा रहा है. इस से बिजली की महंगी दरों से ही नहीं उस पर निर्भर रहने से भी बचा जा सकता है. आज के समय में सोलर ऊर्जा के इस्तेमाल से कई चीजों को चलाया जा रहा?है.

मोबाइल सिंचाई सोलर पैनल सिस्टम

बस्ती जिले के खड़का देवरी गांव के रहने वाले किसान आज्ञाराम वर्मा ने मोबाइल सोलर सिस्टम बना लिया है. सरकार द्वारा आज्ञाराम वर्मा को सिंचाई के लिए सोलर सिस्टम दिया गया था. आज्ञाराम वर्मा के पास अलगअलग जमीनें थीं. ऐसे में एक ही खेत में सोलर पैनल लगाने से काम नहीं चल रहा था. आज्ञाराम वर्मा ने इस के लिए अलग जुगाड़ तकनीक का सहारा लिया. उन्होंने सोलर पैनल को एक ट्राली पर फिट कर दिया. इस के बाद जिस खेत में सिंचाई की जरूरत होती थी, आज्ञाराम ट्रैक्टर के जरीए उसे खींच कर वहां ले जाते थे. पंपसेट के साथ जोड़ देने से एक ही सोलर पंप से कई खेतों की सिंचाई होने लगी. आज्ञाराम वर्मा प्रगतिशील किसान हैं. उन को राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया. आज्ञाराम वर्मा कहते हैं, ‘मोबाइल सोलर पैनल के बनने से एक ही सोलर पैनल से कई पंपसेटों से पानी लिया जा सकता है.’

सोलर पावर प्लांट

उन क्षेत्रों में इस से बहुत लाभ होता है, जहां पर बिजली की आवाजाही बड़ी समस्या के रूप में सामने होती है. सोलर पावर प्लांट में सोलर ऊर्जा को बिजली की तरह इस्तेमाल किया जाता?है. सोलर ऊर्जा बैटरी में जमा हो जाती है. इस के बाद उस का इस्तेमाल कभी भी किया जा सकता है. सोलर से मिलने वाली एनर्जी में खर्च कम होता है. इस से बिजली से चलने वाले हर यंत्र को चलाया जा सकता है. सोलर पावर प्लांट 1 किलोवाट से ले कर 10 किलोवाट तक का हो सकता है. जितनी बिजली की जरूरत हो उतने किलोवाट का इस्तेमाल किया जा सकता है.

सोलर रूफटाप इनवर्टर

इस के द्वारा अपने घर की छत पर ही सोलर पैनल लगा कर घर के इनवर्टर का इस्तेमाल किया जा सकता है. इस से बिजली की खपत कम हो जाती है. सोलर पावर से बैटरी की बैकअप पावर बढ़ जाती है. अब कई सोलर लाइट सिस्टम भी आने लगे हैं, जिन में सोलर पैनल लगे होते हैं, जिस से रात को रोशनी मिलती है. अब सोलर पैनल की कीमत और रखरखाव सरल होने से इस की खपत बढ़ रही है. लाइट के लिए 500 रुपए की कीमत से ले कर ज्यादा कीमत के उपकरण आने लगे हैं. इन को दिन में सूर्य की रोशनी से चार्ज किया जाता है और रात में ये रोशनी देने का काम करते हैं. इन में लगने वाली बैटरी बिजली में लगने वाली बैटरी के मुकाबले ज्यादा चलती है, इसलिए भी इन का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है. आटोमैटिक सोलर स्ट्रीट लाइट सिस्टम में सूर्य की रोशनी खत्म होते ही?स्ट्रीट लाइट जल जाती है. इस का इस्तेमाल घर, दुकान और खेत वगैरह कहीं भी हो सकता है.

सोलर वाटर हीटर

जाड़ों में गरम पानी के लिए अब बिजली या एलपीजी गैस से ज्यादा सस्ता सोलर वाटर हीटर आने लगा है. इस में हीटर को सोलर ऊर्जा से चलाया जाता है, जिस से पानी गरम मिलता है. होटलों, घरों व कारखानों में इस का इस्तेमाल बढ़ने लगा है. यह पानी को गरम करने का सब से सस्ता साधन हो गया है. जाड़ों में गरम पानी की जरूरत हर जगह पड़ती है. कपड़े व बरतन धोने के साथ ही साथ गरम पानी से नहाने के लिए भी इस का इस्तेमाल किया जाता है.

सोलर ऊर्जा सिस्टम को लगाने के लिए एक बार पैसा लगाना पड़ता है, इस के बाद सालोंसाल मुफ्त में बिजली मिलती है. अब सरकार इसे बढ़ावा देने के लिए तमाम तरह की योजनाएं चला रही है. केवल खेती के लिए ही नहीं, जीवन के दूसरे कामों के लिए भी सोलर ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ रहा है. बैंकों के द्वारा सोलर सिस्टम को लगवाने के लिए तमाम तरह की योजनाओं के जरीए लोन भी दिए जा रहे हैं.

सरकार जल्द ही इस सोलर पैनल के जरीए बिजली पैदा कर के उसे कुछ घरों तक पहुंचा कर पैसा कमाने की योजना भी तैयार कर रही है. दरअसल सोलर ऊर्जा आने वाले दिनों की जरूरत है. यह सब से सस्ती मिलने वाली ऊर्जा है. जरूरत इस बात की है कि सोलर सिस्टम को सस्ता किया जाए, जिस से यह गरीब लोगों तक पहुंच सके. पूरी दुनिया के देश सोलर एनर्जी पर काम कर रहे हैं. भारत में भी तेजी से में यह काम होने लगा है. खेतीकिसानी से ले कर दूसरे जरूरी काम इस के जरीए होने लगे हैं. यह केवल रोशनी की दिशा में ही नहीं, बल्कि पर्यावरण के लिहाज से भी बहुत फायदेमंद है. इसे लगातार बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है. बिजली के बेहतर जरीए के रूप में सौर ऊर्जा का इस्तेमाल किया जा रहा?है. दिनोंदिन इस का इस्तेमाल और इस से मिलने वाली राहत बढ़ती जा रही है.

प्याज भंडारण का सस्ता तरीका

प्याज पैदा करने के मामले में भारत चीन के बाद दूसरे नंबर पर है. भारत में प्याज की सब से ज्यादा पैदावार महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात व हरियाणा राज्यों में होती है. देश में प्याज की 3 बार फसलें ली जाती?हैं. एक फसल जनवरी से मार्च तक, दूसरी फसल रबी के मौसम में मार्च से जून तक, तीसरी खरीफ में अक्तूबर से दिसंबर तक. साल में 3 बार प्याज की फसल लेने के बाद भी समयसमय पर प्याज के दाम बढ़ने लगते?हैं.

इस का पहला कारण मौसम की मार?है, जिस से फसल खराब होने पर प्याज की कमी हो जाती है. दूसरा खास कारण है देश में प्याज के भंडारण के लिए कोल्ड स्टोरों की कमी होना. आमतौर पर प्याज का ज्यादा दिनों तक भंडारण घर में नहीं किया जा सकता. किसान प्याज का?भंडारण न कर के बाजार में जल्दी बेच देते हैं, क्योंकि कुछ समय के बाद प्याज खराब होने लगता है.

क्या करें किसान

किसानों को चाहिए कि जब फसल तैयार हो जाए तो उस में तकरीबन 1 महीने पहले से पानी न दें. इस से जमीन एकदम सूख जाएगी और प्याज में नमी भी नहीं रहेगी. उस के बाद प्याज खेत से खोदें. जिस से प्याज ज्यादा दिनों तक सुरक्षित रहेगी. प्याज भंडारण के कम लागत के तरीकों में किसी कमरे की जमीन पर भूसा बिछा दें और उस के ऊपर प्याज फैला दें. इस में प्याज की नमी को भूसा सोख लेता है और प्याज जल्दी खराब नहीं होता है. कमरे में हवा का आनाजाना सही रहना चाहिए. कमरे में खिड़की आदि जरूर हो.

दूसरे तरीके की जानकारी नरसिंहपुर, मध्य प्रदेश के राजाराम पटेल के द्वारा मिली. उन्होंने बताया कि सब से पहले जमीन पर सूखे हुए अरहर के पेड़ों को बिछा देते हैं. उस के ऊपर गोल या चौकोर घेरे की बनी हुई जाली रख देते हैं. अब उस के अंदर बीच में एक कोई भी पुराना टूटा हुआ पाइप जिस में जगहजगह हवा आनेजाने के लिए छेद किए हुए हों, रख देते हैं.

अगर घेरा बड़ा है तो पाइपों का ज्यादा इस्तेमाल करना होगा. इन पाइपों के जरीए जमीन की सतह तक हवा आनेजाने का रास्ता रहता है. उस के बाद जाली वाले घेरे में प्याज भर देते हैं. इस को खुली और छायादार जगह में रख देते हैं. इस तरीके से प्याज भंडारण करने में 1 फीसदी ही प्याज खराब होने की गुंजाइश होती है. 6 फुट चौड़े और 5 फुट ऊंचाई वाले घेरे में तकरीबन 5 क्विंटल प्याज आसानी से रखा जा सकता है. अपनी जरूरत के हिसाब से स्टोरेज का निर्माण छोटा या बड़ा भी कर सकते हैं. प्याज को सड़ने से बचाने के लिए खासतौर से नमी और गरमी से बचाना होता है. इस तरह के स्टोरेज में हवा का आनाजाना सही तरह से होता?है, जिस से प्याज जल्दी खराब नहीं होता और जब प्याज के रेट बाजार में सही मिलें तब प्याज को बेचें.

जीरे की फसल में चरमा रोग का खतरा

हाल ही में वर्षा, ओस और बादलों को देखते हुए जीरे की फसल में चरमा (झुलसा या ब्लाइट) रोग लगने का खतरा है. यह रोग ‘आल्टरनेरिया बर्नसाई’ नामक कवक से होता?है. फसल में फूल आने शुरू होने के बाद अगर बादल छाए रहते?हैं, तो यह रोग लग जाता है. जीरे की फसल में फूल आने से ले कर फसल पकने तक यह रोग कभी भी  हो सकता?है. मौसम अनुकूल होने पर यह रोग बहुत तेजी से फैलता?है.

रोग के लक्षण

जीरे की पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बों के रूप में रोग के लक्षण दिखाई देते?हैं. धीरेधीरे ये काले रंग में बदल जाते?हैं. पत्तियों से तने व बीज पर इस का बढ़ता?है. इस की वजह से पौधों के सिरे झुक जाते हैं. यह रोग हमेशा फूल आने के बाद ही होता है, क्योंकि उस समय पौधों में ‘बायोकैमिकल’ बदलाव होते हैं जो फफूंद को रोग फैलाने में सहायक होते?हैं.

रोग के लिए सही हालात

रोग में इजाफे के लिए तकरीबन 3 दिनों तक अधिक नमी (90 फीसदी या ज्यादा) और 23 से 28 डिगरी सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है. संक्रमण के बाद यदि नमी लगातार बनी रहे या बारिश हो जाए तो रोग भयानक रूप ले लेता?है. आमतौर पर रोग हवा के मुताबिक बढ़ता है. खराब जमीन व पौधों का मलबा संक्रमण करने में मददगार होता है. नए क्षेत्रों में शुरुआती संक्रमण करने में बीज अहम होते?हैं. घने पौधों में रोग तेजी से फैलता है.

रोकथाम

* स्वस्थ बीज बोने के काम में लीजिए.

* सिंचाई का सही इंतजाम करें और ज्यादा सिंचाई न करें.

* ज्यादा पानी वाली फसल जीरे के पास न लगाएं.

* फूल आते समय अगर आकाश में बादल दिखाई दें व रोग के शुरू में डाइफेनोकोनाजोल 0.05 फीसदी या मेंकोजेब 0.2 फीसदी या थायोफिनेट मिथाइल 0.1 फीसदी घोल का छिड़काव करें. जरूरत के मुताबिक 12 से 15 दिनों बाद छिड़काव दोहराएं. ध्यान रहे कि जीरा एक निर्यात की चीज है इसलिए अंधाधुंध दवाओं का इस्तेमाल न करें और समय पर रोगों का इलाज करें, ताकि दवाओं का असर बीजों पर न रहे और जीरे की गुणवत्ता पर खराब असर नहीं पड़े.

नीम से कीड़ों की रोकथाम

तमाम फसलों में कीड़ों की समस्या हमेशा से रही है और पुराने जमाने से ले कर आज तक कीड़ों से बचाव के लिए तरहतरह की तरकीबें आजमाई जाती रही हैं. कीटों की रोकथाम के लिए रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल काफी अरसे से लगातार किया जा रहा?है. पहले तो इन के खराब असर को ज्यादा महसूस नहीं किया गया, मगर अब यह बात पूरी तरह से साफ हो चुकी है कि रासायनिक कीटनाशक इनसानों की सेहत के लिए बेहद घातक होते हैं. लिहाजा अब वक्त आ गया है रासायनिक कीटनाशकों के बगैर काम चलाने का. ऐसे में कुदरती खूबियों से भरपूर नीम का इस्तेमाल काफी कारगर साबित हो सकता?है.

रासायनिक कीटनाशक महज इनसानों की सेहत के लिए ही घातक नहीं होते, बल्कि ये जानवरों को भी काफी नुकसान पहुंचाते हैं. ऐसे में इकलौता रास्ता है कि वानस्पतिक कीटनाशक ही इस्तेमाल किए जाएं और तमाम वानस्पतिक कीटनाशकों में नीम काफी असरदार साबित हुआ है. नीम को पुराने जमाने से ही औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है और अब यह तमाम फसलों के लिए भी बेहतरीन कीटनाशक का काम करता है.

नीम के कीटनाशक तत्त्वों की जांचपड़ताल को ले कर भारत सहित कई देशों में खोजबीन की गई है. तमाम प्रयोगों के बाद यह हकीकत सामने आई है कि नीम के पेड़ के फल, बीज, डाल, तना व पत्तियों में असरदार कीटनाशक की खूबियां मौजूद हैं. नीम कीड़ों के खिलाफ कई तरह से काम करता है.

कृषि वैज्ञानिकों द्वारा किए गए प्रयोगों से नीम के कीटनाशक गुणों की हकीकत का खुलासा हुआ है. नीम तमाम कीड़ों के खिलाफ निम्न तरीके से रोकथाम करता?है.

एंटीफीडेंट : यह फसल को कीड़ों द्वारा खाने के रूप में लेने से रोकता है. यानी इस के असर से कीड़े फसल को खा नहीं पाते.

कीड़ा वृद्धि बाधक : अगर कीट नीम वाली यानी नीम के असर वाली फसल को खा लेता है, तो इस से उस का विकास रुक जाता है. वृद्धि न होने से कीट उतना घातक नहीं रह पाता.

कीटनाशक : वैसे तो नीम के असर वाली फसल को खाने से कीड़े घबराते हैं और अगर गलती से खा लें तो फिर उन का बचना मुश्किल होता है. नीम की तेजी अमूमन कीड़ों को मार देती है.

नीम की इन्हीं खूबियों को देखते हुए कई कंपनियों ने नीम से बने कारगर कीटनाशक बाजार में पेश किए हैं. इन कीटनाशकों का किसानों द्वारा धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है. नींबीसिडिन, नीमार्क, नीमाप्लस, नीमगोल्ड, नीमगार्ड, मार्गोसाइड, मार्गोइकोनीम व आजोनीम वगैरह नीम से बनाए गए खास कीटनाशक हैं. नामी कंपनियों द्वारा बनाए गए इन कीटनाशकों के अलावा नीम द्वारा कीटनाशक बनाने की घरेलू विधियां भी आजमाई जा रही?हैं, जो बेहद आसान हैं.

घर में बनाएं कीटनाशक

कड़वी नीम के पके हुए मीठे फल गांवों के बच्चों द्वारा चाव से चूसे जाते हैं. ये फल बच्चों के लिए काफी फायदेमंद होते हैं. इन से बच्चे फोड़ेफुंसियों से बचे रहते हैं. ये फल पेड़ स टूट कर खुदबखुद जमीन पर गिर जाते?हैं. इन्हें झाड़ू की मदद से जमा कर लेते हैं. रात भर में टूटे फलों को सुबहसुबह ही बटोर लेना चाहिए, ताकि वे जानवरों, गाडि़यों या इनसानों द्वारा कुचले न जाएं. इन में से सड़े या खराब फलों को छांट कर अलग कर देना चाहिए. इन फलों को कुछ जगहों पर ‘गल्ला’ कहते हैं, तो कई लोग इन्हें ‘निंबोली’ भी कहते हैं. नीम के फलों को पेड़ से सीधे भी तोड़ सकत हैं, पर वे पूरी तरह पके नहीं होते हैं. उन्हें 2-3 दिनों तक रख कर पकाना पड़ता है. नीम के फलों को जमा करने के बाद बांस या जूट की टोकरी में रख देते हैं. फलों को रखने के लिए धातु या प्लास्टिक के डब्बों या बर्तनों का इस्तेमाल सही नहीं रहता है. हवादार टोकरी न होने पर फलों को जमा कर के पेड़ के नजदीक ही ढेर बना देना ठीक रहता है.

फलों को जमा करने के 2 दिनों यानी 48 घंटों के अंदर फलों का गूदा अलग कर लेना चाहिए. इस काम के लिए एक बर्तन में पानी डाल कर उस में जमा किए गए फलों को डाल देना चाहिए. इस के बाद हाथों से फलों को रगड़ने से फलों का गूदा निकल जाता है. गूदा हटाने के बाद नीम के बीजों को पक्के फर्श या किसी भी सूखी जगह पर फैला कर धूप में सुखा लेते हैं. धूप में सुखाने के बाद बीजों को 2-3 दिनों तक किसी छायादार जगह पर भी सुखाना चाहिए. अच्छी तरह सूखने के बाद बीजों को बोरे या?टोकरे में रखते हैं.

कीटनाशक यानी नीम का सत बनाने के लिए नीम के बीजों को पीस लिया जाता है. एक बाल्टी में नाप कर पानी भरने के बाद उस में तोल के हिसाब से पीसे हुए नीम के बीज डालते?हैं. करीब 10 मिनट तक लकड़ी के डंडे से?घोल को मिलाने के बाद 6 से 16 घंटों के लिए छोड़ दें. इस के बाद फिर से करीब 10 मिनट तक लकड़ी के डंडे से घोल को मिलाएं. इस के बाद घोल को बारीक कपड़े से अच्छी तरह छान लें. घोल छानते वक्त खयाल रखें कि बड़े कण?घोल में न आने पाएं. घोल में कण आने से छिड़काव के वक्त मशीन के जाम होने का डर रहता है. नीम के बीजों से बने घोल को छिड़काव करने वाली मशीन में डाल कर फसलों पर स्प्रे करना चाहिए.

फीसदी मात्रा : नीम के घोल को हर किस्म के कीटों की रोकथाम के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है और इस की कोई भी मात्रा कारगर साबित होती है, क्योंकि यह नुकसान रहित होता है.

वैसे वैज्ञानिकों की सलाह के मुताबिक फीसदी मात्रा के हिसाब से घोल बनाया जा सकता है. मसलन 5 फीसदी का घोल बनाने के लिए 500 ग्राम नीम के बीजों का पाउडर 10 लीटर पानी में मिलाया जाता है. कुल मिला कर नीम से बना यह कीटनाशक हर फसल की कीड़ों से हिफाजत करता?है और इस से इनसानों या जानवरों को कोई खतरा भी नहीं रहता. 

बिंद्रा बनें रियो ओलंपिक के गुडविल एम्बेसडर

रियो ओलंपिक के लिए भारत के गुडविल एम्बेसडर सलमान खान को घोषित किया गया तो इस पर खूब विवाद हुआ. अब भारतीय ओलंपिक महासंघ (आईओए) इस मामले में फूंक-फूंक कर कदम रखना चाहता है.

सलमान खान के बाद अब अभिनव बिंद्रा भी रियो ओलंपिक खेलों के गुडविल एंबेसडर बनने के लिए  तैयार हो गए हैं. बॉलीवुड सुपरस्टार सलमान खान के इन खेलों का गुडविल एंबेसडर बनने के बाद से विवाद खड़ा हो गया है,  लेकिन ओलंपिक की निजी प्रतियोगिताओं में भारत के इकलौते स्वर्ण पदक विजेता शूटर अभिनव ब्रिंद्रा भी इन खेलों का गुडविल एंबेसडर बनने को राज़ी हो गए हैं.

ब्रिंद्रा ने खत लिखकर बताया कि भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष और महासचिव ने उनसे भारतीय दल का गुडविल एंबेसडर बनने की पेशकश की थी. उन्होंने कहा कि उन्हें फ़ख़्र महसूस हो रहा है कि वे भारतीय कॉन्टिंजेंट के गुडविल एंबेसडर नियुक्त किए गए हैं. अभिनव ने लिखा है कि उन्हें इसके काबिल समझा गया और वे इसे पूरी विनम्रता के साथ स्वीकार करते हैं. इस मशहूर शूटर ने कहा कि उनका पूरा जीवन ओलंपिक के लिए समर्पित रहा है और आगे भी रहेगा. वे पूरे फ़ोकस के साथ रियो ओलंपिक खेलों में बेहतरीन करने की कोशिश करेंगे.

उन्होंने यह भी लिखा है कि इस बारे वे 15 जुलाई तक आईओए और खिलाड़ियों की मदद के लिए तैयार रहेंगे और उसके बाद अपने गेम पर फ़ोकस करेंगे. रियो ओलंपिक खेल 5 से 21 अगस्त तक आयोजित होंगे. उन्होंने खेलप्रेमियों से भी भारतीय टीम की मदद करने की अपील की है. रियो ओलंपिक खेलों के लिए आईओए की मार्केटिंग टीम आईओएस (IOS) के ज़रिये इसके अलावा भारत रत्न सचिन तेंदुलकर और संगीतकार एआर रहमान से भी पेशकश की गई है. लेकिन इन सितारों की ओर से अब तक कोई जवाब नहीं आया है.

ब्रिटेन में बढ़ा भारत का निवेश

ब्रिटेन में भारतीय कंपनियों का निवेश 2015 में करीब 65 % बढ़ा और अमेरिका तथा फ्रांस के बाद भारत इस देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत बना गया है. यहां जारी एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है. रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटेन में तीव्र-वृद्धि दर्ज करने वाली भारतीय कंपनियों की संख्या साल भर पहले 36 थी जो बढ़कर 62 हो गई.

इस श्रेणी में ऐसी कंपनियों को रखा गया है जिनका कारोबार 10 % से अधिक की दर से बढ रहा है. ग्रांट थार्नटन यूके एलएलपी द्वारा भारतीय उद्योग मंडल सीआईआई के साथ मिल कर प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया कि तीव्र वृद्धि वाली भारतीय कंपनियों का कुल कारोबार 2015 में बढ़कर 26 अरब पाउंड हो गया जो 2014 में 22 अरब पाउंड था.

इस रिपोर्ट का शीर्षक है – 'इंडिया मीट्स ब्रिटेन 2016 : ट्रैकिंग दी यूकेज टाप इंडियन कंपनीज.' ग्रांट थार्नटन यूके एलएलपी में दक्षिण एशियाई समूह प्रमुख अनुज चंदे ने कहा, 'इस रिपोर्ट से स्पष्ट है कि भारतीय कंपनियों द्वारा ब्रिटेन में निवेश का स्तर ऊंचा है. 2015 में भारत से यहां प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 65 % बढ़ा जिससे ब्रिटेन के लिए भारत एफडीआई का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत बन गया है.'

 

नही पसीजे जेटली, देना होगा उत्पाद शुल्क

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साफ शब्दों में कहा है कि गैर चांदी के जेवरों पर एक प्रतिशत उत्पाद शुल्क केवल 6 करोड़ से अधिक के सालाना कारोबार वाले सुनारों पर लगाया गया है और इसे वापस नहीं लिया जाएगा. साथ ही उन्होंने भरोसा दिलाया कि किसी भी सुनार को जांच के नाम पर परेशान नहीं किया जाएगा.

वित्त मंत्री ने इन जेवरों पर उत्पाद शुल्क को सही बताते हुए यह भी साफ कर दिया कि सरकार की जरी के कारीगर को तकलीफ देने की कोई मंशा नहीं है लेकिन अब लोगों को लक्जरी आइटम पर शुल्क देने की आदत डाल लेनी चाहिए. उन्होंने कहा कि यदि लक्जरी आइटमों पर कर नहीं दिया जाएगा तो इसका बोझ जरूरी चीजों पर जोड़कर लोगों से वसूला जाएगा.

उन्होंने यह भी कहा कि एक बार वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने के बाद उत्पाद शुल्क अपने आप हट जाएगा.जेटली ने कहा कि इस शुल्क को हटाने के लिए छोटे स्वर्णकार और दस्तकारों का सहारा लेना गलत है. यह उत्पाद शुल्क केवल बड़े सुनारों और इस क्षेत्र की बड़ी कंपनियों पर लगाया गया है. उन्होंने कहा कि वह भरोसा देना चाहते हैं कि किसी भी दुकान पर कोई भी एक्साईज अधिकारी जांच के लिए नहीं जाएगा और सुनारों को यह शुल्क अपने वैट रिटर्न के आधार पर ही देना होगा. उन्होंने कहा कि यदि कोई अधिकारी जांच के लिए आता है तो उसका फोटो खींचकर मुझे भेज दें.

उन्होंने कहा कि सुनारों को परेशानी न हो इसलिए सरकार ने अर्थशास्त्री अशोक लाहिड़ी की अगुआई में एक समिति बनाई है और इसमें सुनारों के भी तीन लोग रहेंगे. सरकार इस समिति की सिफारिशों के आधार पर आगे भी कदम उठाने को तैयार है. उन्होंने कहा कि इसके दायरे में आने वाले सुनारों के पंजीकरण की तारीख बढ़ाकर 30 जून तक कर दी है. अब तक केवल 206 सुनारों ने ही अपना पंजीकरण कराया है.

 

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