खाने की चीजों के दाम चढ़ने से सरकार परेशान है. महंगाई की फिक्र कर रही सरकार ने समय से पहले राज्यों के खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्रियों की बैठक बुलाई है. सरकार दाल (विशेषकर अरहर) और चीनी के दाम बढ़ने से परेशान है. वो चाहती है कि राज्य सरकारें अपनी मशीनरी को कसें और कालाबाजारी को रोकने जैसे अन्य कदम उठाए जाएं.

 सरकार ने 51 हजार मीट्रिक टन दाल बाजार से और 26 हजार मीट्रिक टन दाल विदेश से मंगाई है. लिहाजा वह जानती है कि दाल की कमी नहीं है, इसलिए राज्य अपने यहां दाल की कमी नहीं होने दें. अरहर पर सरकार राज्यों को विशेष रियायत भी दे रही है.

दिलचस्प बात यह है कि सरकार के पास पर्याप्त दाल होने के बावजूद राज्य दाल की डिमांड नहीं कर रहे हैं. बताया जाता है कि आंध्र प्रदेश के अलावा किसी राज्य ने सरकार से दाल नहीं मांगी है. सरकार इस बात की भी फिक्र कर रही है कि उसके कहने के बावजूद पश्चिम बंगाल और केरल जैसे कई राज्यों ने दाल की स्टॉक सीमा तय नहीं की है.

पिछले साल भी विदेश से मंगाई दाल को बमुश्किल सरकार दिल्ली और तमिलनाडु जैसे राज्यों में खपा सकी थी. सरकार इस बात को समझ रही है कि दाल को गरीब की थाली से जोड़कर देखा जाता है और अगर बाजार में दाल महंगी बिकती है तो सरकार की बड़ी आलोचना होती है. पिछले साल विभिन्न मंत्रालयों के बीच दाल को लेकर तालमेल की कमी थी, लेकिन इस बार सरकार ऐसी स्थिति निर्मित नहीं होने देना चाहती.

चीनी की मिठास में कमी सरकार को अभी से अखर रही है. यही वजह है कि उसने चीनी की स्टॉक लिमिट तय कर दी है और सब्सिडी पर भी रोक लगा दी है.सरकार का रुख यही है कि चीनी के दाम 40 रुपए से नीचे रखने के लिए जो भी बन पड़ेगा वो किया जाएगा, भले ही इसके लिए चीनी के कारखानों के साथ कड़ाई ही क्यों न दिखानी पड़े.

 

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