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आठ महीने में सुधारें या वापस जाएं आर्थर: अख्तर

पाकिस्तान के पूर्व तेज गेदबाज शोएब अख्तर ने पाकिस्तानी टीम में सुधार के लिए नए कोच मिकी आर्थर को आठ महीने का वक्त दिया है. अख्तर ने कहा है कि इस बीच आर्थर या तो पाकिस्तानी टीम में सुधार करें या फिर पद छोड़कर चले जाएं.

अख्तर ने कहा कि वह आर्थर को कोच बनाए जाने का समर्थन करते हैं. वह काफी अनुभवी कोच हैं. वह साउथ अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया जैसी टॉप टीमों के कोच रह चुके हैं. एक स्थानीय टीवी चैनल से अख्तर ने कहा कि 'लेकिन आठ महीने का समय हमें बता देगा कि वह फर्क पैदा करेंगे या अपने से पहले के कोचों की तरह चले जाएंगे. क्योंकि इस समय के दौरान हमें कुछ बेहद महत्वपूर्ण श्रृंखलाएं खेलनी हैं. इसलिए या तो वह हमारे क्रिकेट खेलने के तरीके में बदलाव करें या अलविदा कहने का फैसला करें.'

इस पूर्व तेज गेंदबाज ने साफ किया कि पाकिस्तान टीम को कोचिंग देना चुनौतीपूर्ण और हताशा भरा होगा.

श्रीनि ईमानदार शत्रु, शशांक पीठ में छुरा घोंपने वाला: वर्मा

हाल ही में बीसीसीआई अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले शशांक मनोहर को आदित्य वर्मा ने जमकर लताड़ लगाई है. आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामले में याचिका दायर करने वाले आदित्य ने शशांक को धोखेबाज करार देते हुए कहा कि कुर्सी के लिए शशांक कुछ भी कर सकते हैं. साथ ही आदित्य ने कहा कि कम से कम श्रीनिवासन दुश्मनी तो ईमानदारी से निभाया करते थे.

गुस्साए वर्मा ने कहा कि शशांक मनोहर का ताजा फैसला ये दर्शाता है कि वह कुर्सी के लिए कुछ भी कर जाने वाले अधिकारियों में हैं. जब वह बीसीसीआई के अध्यक्ष नहीं थे तब क्रिकेट को मैच फिक्सिंग और स्पॉट फिक्सिंग जैसी कुरीतियों से निजात दिलाने की बातें किया करते थे लेकिन अब वह बीसीसीआई को अपनी जिम्मेदारी पूरी किए बिना ही छोड़े जा रहे हैं और आईसीसी में आकर्षक पद मिलते ही भाग रहे हैं. वह एक ऐसे इंसान है जो पीठ में छुरा भोंकने में विश्वास करते हैं और उन्होंने और उनके साथियों ने पहले श्रीनिवासन के खिलाफ मेरा इस्तेमाल किया और फिर मुझे भी धोखा दिया.

श्रीनिवासन दुश्मनी भी शान से करते थे और उन्होनें अपने दोस्तों को कभी धोखा नहीं दिया. पर मनोहर के लिए वायदों के कोई मायने नहीं है. मुझे ये भी मालूम है कि रत्नाकर शेट्टी की मदद से मुझे बीसीसीआई ऑफिस से बाहर करवाने के पीछे शशांक मनोहर का ही हाथ था. मैंने शेट्टी को लेकर कई शिकायतें भी दर्ज कराई लेकिन उन शिकायतों की कोई सुनवाई नहीं हुई.

उन्होंने कहा कि श्रीनिवासन की भले ही कोई भी मंशा रही हो लेकिन कम से कम उनमें इतना दम तो था कि उन्होंने जो किया सबके सामने किया और कभी अपने दोस्तों को धोखा नहीं दिया. आदित्य ने आगे कहा कि मेरे लिए अब एक ही उम्मीद बची है और वह सुप्रीम कोर्ट का फैसला. मैं उम्मीद करता हूं कि बिहार के नौजवानों को एक बार फिर आईपीएल के टूर्नामेंट में खेलने का मौका मिलेगा.

आपने कभी नहीं सुना होगा इन 7 गैजेट्स के बारे में

क्‍या आपने कभी ऐसी घड़ी के बारे में सुना है जो आपको सुबह उठाने के लिए अलार्म न बजाकर करंट मारे. मैंने तो कभी नहीं सुना, लेकिन अब ऐसी घड़ी मार्केट में आ चुकी है. इस तरह के कई स्‍मार्ट गैजेट्स मार्केट में इन दिनों लांच हो रहे हैं. इन्‍हें देखकर आपको ऐसा लगेगा कि आप जेम्‍स बांड वर्ल्‍ड में आ चुके हैं लेकिन ये मन का धोखा नहीं बल्कि सच हैं.

इस तरह के हाई स्‍मार्ट गैजेट्स काफी मंहगे होते हैं और ये विशेष तौर पर स्‍मार्ट और टेकी यूजर्स के लिए बने होते हैं. इन गैजेट्स का लुक और इनकी बनावट यूजर फ्रैंडली तरीके से डिजाइन होती है जिससे इस्‍तेमाल करने में किसी प्रकार की कोई समस्‍या नहीं आती. आज आपको इस आर्टिकल में हम, ऐसे ही 7 सुपर स्‍मार्ट गैजेट के बारे में बताएंगे, जो आपको अचरज में डाल सकते हैं:

क्‍लॉक

सुबह उठने के टाइम पर आपका ब्रेन, अलॉर्म के लिए तैयार रहता है, आप भी सोचते हैं कि अलॉर्म बजेगा तब उठा जाएगा. लेकिन ये क्‍या… अलॉर्म की बजाय आपको करंट लगा. जी हां… शॉक क्‍लॉक की यही खास बात है. इस क्‍लॉक को बैंड की तरह हाथ में पहनना होता है और अगर आपने उठने में आलस दिखाते हुए स्‍नूज की बटन दबा दी तो आपको झटका लग सकता है और पल भर में ही बिस्‍तर के नीचे दिखाई पड़ सकते हैं.

सोच बदल दे

कई बार आपको ऐसा लगता है कि आपका ध्‍यान कुछ पल के लिए कहीं और लग जाए. लेकिन ऐसा खुद से कर पाना संभव नहीं होता है. थाइंक ने आपकी इस समस्‍या को हल कर दिया. थाइंक नामक इस छोटी सी डिवाइस को आपको सिर में पहनना होता है और आप अपने विचारों को बदल सकते हैं. विचार बदलने की इस प्रक्रिया को न्‍यूरोसिग्‍नलिंग कहते हैं जिसमें डिवाइस के कारण विचारों और मानसिक स्थिति को शिफ्ट कर दिया जाता है.

जूते के फीते खुद-ब-खुद बंध जाएं

नाइकी ने हाल ही में जूतों के मॉडल ''हाइपर एडॉप्‍ट 1.0'' को लांच किया, जो सुपर स्‍मार्ट शू हैं. इस शू को पहनते ही यूजर की एड़ी, एक विशेष प्रकार के सेंसर पर पड़ती है और शू के लैस अपने आप टाइट हो जाते हैं. यानि आपको जूतों के फीते बांधने में वक्‍त जाया नहीं करना पड़ेगा. अगर आपको लगता है कि शू कुछ टाइट या ढीला है तो साइड में दो बटन भी दिए गए हैं जिसकी मदद से आप फीतों का कस सकते हैं या ढीला कर सकते हैं.

पीठ को रखे सीधा

सारा दिन बैठे-बैठे काम करने से पीठ के निचले हिस्‍से में अकड़न हो जाती है और वो सही नहीं होती. ये डिवाइस ऐसे में काफी हेल्‍पफुल रहती है. 4 इंच लम्‍बी अपराइट नामक इस डिवाइस को पीठ में निचले हिस्‍से पर फिक्‍स करना होता है, इससे आप अपनी पीठ नीचे से झुकाकर नहीं बैठ पाते और दर्द भी नहीं होता है. सही मुद्रा में बैठने के कारण स्‍वास्‍थ्‍य सम्‍बंधी समस्‍या भी नहीं होती है.

सोनी की स्‍मार्ट वॉच

सोनी ने हाल ही में एक एफईएस वॉच को स्‍ट्रेप्‍स के साथ लांच किया है जिसमें पैटर्न को बदला जा सकता है. इस घड़ी में डिस्‍प्‍ले के 24 पैटर्न हैं जिन्‍हें यूजर अपने हिसाब से सेलेक्‍ट कर सकता है. सोनी ने वॉच फेस और स्‍ट्रेप के लिए इलेक्‍ट्रॉनिक पेपर का इस्‍तेमाल किया है जोकि इसकी खासियत है.

स्‍मार्ट फीचर वाली अंगूठी

यह रिंग, 18 कैरेट सोने से बनी हुई हैं जिसमें अंदर एक सेंसर फिट होता है जो स्‍मार्ट फोन से कनेक्‍ट होता है. अगर आपका फोन कहीं अंदर या पर्स में रखा हुआ है और इस रिंग में कॉल या मैसेज ब्लिंक करता हुआ दिखेगा. इस तरह, बिना जरूरी कॉल ड्रॉप किए हुए महिलाएं अब पार्टी या फंक्‍शन को एंजाय कर सकती हैं.

हाथ को बनाएं टचस्‍क्रीन

हाल ही में कार्नेगी मेल्‍लॉन प्रोजेक्‍ट के तहत स्‍कि‍नट्रैक नामक डिवाइस तैयार की जा रही है जो बैंड और रिंग के कॉम्‍बो में होगी. इसे पहनने के बाद, हाथ को पूरा स्‍क्रीन में बदला जा सकता है जिससे कभी भी कहीं भी काम करने में आसानी होगी और मजा भी आएगा. यूनिवर्सिटी में फिलहाल इस प्रोजेक्‍ट के अगले स्‍तर पर शोध कार्य किया जा रहा है कि बैंड पहनने वाले की स्किन और साथ में बैठे वाले की हैंड स्किन भी टचस्‍क्रीन में बदल जाएं, जिससे कम्‍यूनिकेट करने में आसानी होगी. इस डिवाइस की रिंग में हाई फ्रिक्‍वैंसी इलेक्ट्रिकल सिग्‍नल होते हैं जो स्‍मार्टफोन से दूर बैठे होने पर भी आपको अपडेट रखते हैं कि क्‍या हो रहा है. इस टेक्‍नोलॉजी का इस्‍तेमाल करते हुए, यूजर की बांह में उसकी अंगुलियों की स्थिति का भी पता लगाया जा सकता है.

स्नैपडील पर अब नहीं मिलेगा डीप डिस्काउंट

स्नैपडील ने 13 मई से अपने प्लेटफॉर्म सेलर्स को किसी भी प्रॉडक्ट के मैक्सिमम रिटेल प्राइस पर 70% से ज्यादा डिस्काउंट देने से रोक दिया है. ऑनलाइन मार्केटप्लेस ने बायर्स की रिटर्निंग हैबिट पर लगाम लगाने के लिए किया है.कंपनी ने 9 मई को सभी सेलर्स को एक मेसेज भेजा था.

उसके मुताबिक, 'हमने पाया है कि बहुत ज्यादा डिस्काउंट यानी डीप डिस्काउंटिंग वाले प्रॉडक्ट्स अक्सर कस्टमर्स की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते. इसके चलते प्रॉडक्ट्स को लेकर कस्टमर्स में अंसतोष बढ़ता है और उसको रिटर्न किए जाने के मामले भी बढ़ते हैं.कस्टमर्स एक्सपीरियंस बेहतर बनाने के लिए अब आपको न तो एमआरपी पर 70% से ज्यादा डिस्काउंट पर नए प्रॉडक्ट्स लिस्ट कराने और न ही लिस्टेड प्रॉडक्ट्स की प्राइस अपडेट करने दिया जाएगा.'

स्नैपडील सहित बाकी दिग्गज मार्केटप्लेस के सेलर्स की शिकायत है कि ई-कॉमर्स कंपनियों के ‘नो क्वेश्चन आस्क्ड पॉलिसी’ के चलते बायर्स के मर्चेंडाइज लौटाने की घटनाएं बढ़ रही हैं. सेलर्स का कहना है कि मर्चेंडाइज रिटर्न बढ़ने से लॉजिस्टिक्स संबंधित दिक्कतें हो जाती हैं क्योंकि इनवेंटरी लंबे समय के लिए ट्रांजिट में फंस जाती है और उसके चलते एकाउंटिंग में भी गड़बड़ियां हो जाती हैं.

रिटेल कंसल्टेंसी फर्म थर्ड आइसाइट के देवांग्शु दत्ता के मुताबिक, ‘यह स्ट्रैटेजी कारगर हो सकती है क्योंकि ईकॉमर्स में नई एफडीआई पॉलिसी को सेलर्स चैलेंज कर सकते हैं. उन्होंने कहा, 'नई ई-कॉमर्स पॉलिसी का मकसद साफ है. सरकार डीप डिस्काउंटिंग को कंट्रोल करना करना चाहती है. इसलिए सरकार को स्नैपडील के फैसले से कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए. लेकिन यह पॉलिसी कीमतों को प्रभावित करेगी इसलिए सेलर्स इसको चुनौती दे सकते हैं.'

डीप डिस्काउंटिंग पर स्नैपडील की पाबंदी कई कैटेगरी के प्रॉडक्ट्स पर लागू होगी, जिनमें औरतों और मर्दों के फैशन, फुटवियर, स्मार्टफोन एक्सेसरीज वगैरह शामिल होंगे. कुछ सेलर्स का कहना है कि यह एक अच्छा कदम है जबकि दूसरों का कहना है कि यह सेलर्स की इनवेंटरी क्लीयर करने की कोशिश में आड़े आ सकती है.

 

गांगुली बन सकते हैं बीसीसीआई सचिव

बीसीसीआई अध्यक्ष पद से शशांक मनोहर के इस्तीफा देने के बाद बीसीसीआई सचिव अनुराग ठाकुर को बीसीसीआई अध्यक्ष पद की दौड़ में सबसे आगे माना जा रहा है. ठाकुर के बीसीसीआई अध्यक्ष बनने की स्थिति में बीसीसीआई सचिव पद खाली हो जाएगा इसलिए माना जा रहा है कि सौरव गांगुली बीसीसीआई सचिव का पद संभाल सकते हैं.

बोर्ड के नियमों के अनुसार कार्यकाल के बीच में सचिव पद खाली होने की स्थिति में अध्यक्ष को सचिव नामित करने का अधिकार है. इसके चलते ठाकुर द्वारा सौरव गांगुली को यह जिम्मेदारी सौंपा जाना लगभग तय माना जा रहा है.

अनुराग ठाकुर की क्रिकेट और राजनीति में गहरी पैठ के चलते उन्हें यह पद संभालने में कोई परेशानी नहीं होगी. वैसे आईपीएल चेयरमैन राजीव शुक्ला और महाराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन के अजय शिर्के को भी अध्यक्ष पद का दावेदार माना जा रहा है.

राजीव शुक्ला को बोर्ड में काफी समर्थन हासिल है, लेकिन वे अपने दोस्त ठाकुर की राह में मुश्किलें खड़ी नहीं करेंगे और वे आईपीएल चेयरमैन जैसा दमदार पद भी छोड़ना नहीं चाहेंगे. पूर्व बीसीसीआई कोषाध्यक्ष शिर्के को शरद पवार का समर्थन हासिल है, लेकिन लोढ़ा समिति की सिफारिशों के चलते दबाव में चल रहे बीसीसीआई में चुनाव की नौबत आने की संभावना नहीं के बराबर है.

ठाकुर को बीसीसीआई अध्यक्ष पद के पूर्व क्षेत्र के 6 राज्य इकाइयों में से किसी एक से नामांकन मिलना चाहिए, जिसमें उन्हें मुश्किल नहीं आएगी. ठाकुर के क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल के अध्यक्ष सौरव गांगुली से मधुर संबंध है और उन्हें वहां से आसानी से नामांकन मिल जाएगा.

गूगल मैप पर लटकी लाइसेंस की तलवार

अगर सरकार मैप को रेग्युलराइज करने और उसके लिए लाइसेंस जारी करने में अपनी मर्जी चलाती है तो बेंगलुरु के कब्बॉन पार्क के रनर्स, हिमालय की तलहटी में ट्रैक करने वाले रोमांचपसंद लोगों और कस्टमर्स की तलाश में लगे रहने वाले गुड़गांव की स्टार्टअप्स मुसीबत में आ सकते हैं. इससे गूगल या ऊबर जैसी दिग्गज टेक्नॉलजी कंपनियों के साथ पिज्जा ऑर्डर करने या कैब बुलाने के लिए रोज मैप यूज करने वाले करोड़ों भारतीय मुश्किल में पड़ जाएंगे.

पिछले हफ्ते पब्लिक कमेंट्स के लिए जारी जियोस्पेशल इन्फर्मेशन रेग्युलेशन बिल के मसौदे के मुताबिक, अगर कोई सैटलाइट या एरियल प्लैटफॉर्म के जरिए इंडिया की मैपिंग करना चाहता है तो उसको सरकारी सिक्यॉरिटी वेटिंग अथॉरिटी (SVA) से लाइसेंस लेना होगा. एक्सपर्ट्स का कहना है कि प्रस्तावित बिल के दायरे में प्रफेशनल ही नहीं, जीपीएस वाले स्मार्टफोन यूजर्स के लिए भी मैप यूज करने वाली कंपनियां और एजेंसियां भी आ जाएंगी.

आईबेक्स एक्सपीडिशंस के फाउंडर मंदीप सिंह कहते हैं कि बिल का मसौदा बेतुका लगता है. यह हजारों अडवेंचर क्लाइंबर्स, ट्रैकर्स और रेस्क्यू मिशन वालों पर भी नेगेटिव असर डाल सकता है. इन लोगों की मैप पर बहुत ज्यादा निर्भरता हो गई है. रॉयल जियोग्राफिकल सोसायटी के फेलो सिंह कहते हैं, 'रूट, ट्रैक वगैरह बनाने का काम गूगल जैसी कंपनियों के मैप के हिसाब से किया जाता है. हमें इसके बारे में अपने कस्टमर्स और गाइड्स को बताना होगा.'

इससे अडवेंचर टूरिज्म इंडस्ट्री की चुनौतियां बढ़ जाएंगी क्योंकि मौजूदा कानून के चलते लोगों को पहाड़ी इलाकों के फिजिकल मैप एक्सेस नहीं है. इसलिए ऑपरेटर्स और उनके क्लाइंट्स गूगल के डिजिटल मैप पर निर्भर रहते हैं.

बिल के खिलाफ “सेव द मैप (http://savethemap.in)” अभियान चला रहे GIS एक्सपर्ट सज्जाद अनवर का कहना है कि बिल का दायरा इतना व्यापक है कि उसमें बड़ी इमेजिंग कंपनियों से लेकर डिलिवरी स्टार्टअप तक आ जाएंगी. उन्होंने कहा, 'बड़ी विडंबना है कि इंडिया में बहुत सारे ऐंड्रॉयड और स्मार्टफोन यूजर्स हैं, जो जाने-अनजाने में जीपीएस के जरिए रियल टाइम बेसिस पर अपनी लोकेशन शेयर करते हैं. वे दौड़ते या टहलते वक्त वॉट्सऐप या किसी डिलीवरी एप के जरिए दोस्तों से लोकेशन शेयर कर रहे हो सकते हैं. कानून बनने के बाद इन सब पर पाबंदी लग जाएगी.'

अनवर ने कहा कि हर स्मार्टफोन यूजर के लिए लाइसेंस लेना एकदम अजीब है. उन्होंने कहा, 'यह भी साफ नहीं है कि यह किस हद तक दंडनीय है. इसको लागू करना बहुत मुश्किल लगता है.' कुछ लोगों को यह गूगल मैप्स से पहले के जमाने की याद दिला सकता है.

पांच दिन तक क्यों कमरे में बंद था यह अभिनेता!

बॉलीवुड अभिनेता विक्की कौशल ने ‘रमन राघव 2.0' में अपने किरदार के लिए खुद को तैयार करने और अपना भयावह रुप बाहर निकालने के लिए अपने आप को पांच दिन तक एक कमरे में बंद रखा. विक्की इससे पहले भी बड़े पर्दे पर कई चुनौतीपूर्ण किरदार निभा चुके हैं.

अनुराग कश्यप के निर्देशन में बनी इस फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी एक कुख्यात हत्यारे का किरदार निभा रहे हैं. ‘मसान' के अभिनेता विक्की ‘रमन राघव 2.0' में एक पुलिसकर्मी की भूमिका में नजर आएंगे.

विक्की ने कहा, ‘यह किरदार अभी तक मैंने जितने भी किरदार निभाए हैं, उनसे काफी अलग है. यह एक आदर्श पुलिसकर्मी नहीं है….बल्कि एक परेशान, बावला, नशा करने वाला अपनी ही कई परेशानियों से जूझ रहा इंसान है. मुझे इसके लिए काफी मेहनत करनी पड़ी क्योंकि यह एक ऐसे इंसान की कहानी थी जिसे मैं आसानी से नहीं समझ पाता.'

‘रमन राघव 2.0' साइको रमन के नाम से भी पहचानी जाती है. यह एक मनोरोगी, कुख्यात किलर की कहानी है जिसने 1960 के दशक के मध्य में मुंबई की सड़कों को आतंकित कर दिया था. ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर' के दोनों भागों में 27 वर्षीय विक्की अनुराग कश्यप के सहायक निर्देशकों में से एक थे.

विक्की ने कहा, ‘मुझे इस किरदार के लिए ऑडिशन देना पडा था. अनुराग सर पहले इस किरदार के लिए एक ऐसे व्यक्ति को लेना चाहते थे जो निजी जिंदगी में भी ऐसा ही हो. वह मुझे लंबे समय से जानते हैं और उन्हें पता था कि मेरा इस किरदार से दूर दूर तक कोई मेल नहीं है. पर मैंने इसको करने का प्रयास किया.' 

विक्की ने कहा, ‘मैंने पांच दिन तक खुद को एक कमरे में बंद रखा. वहां न कोई रोशनी थी, न फोन, न वाईफाई, न टीवी. मैंने सब चीजों से खुद को अलग कर लिया था. मैं अपने अंदर के भयावह रुप को बाहर लाना चाहता था.' विक्की ने इस दौरान अपने परिवार वालों और दोस्तों को भी उनसे संपर्क न करने को कहा था. यह फिल्म बड़े पर्दे 24 जून को रिलीज होगी.

ले बाबुल घर आपनो…

न जाने शंभुजी को क्या हो गया था, इतनी बड़ी कोठी, कार, नौकरचाकर, पैसा देखते ही चौंधिया गए थे. शायद उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन उन के दामन में इतनी दौलत आएगी कि जिसे समेटने के लिए उन्हें स्वार्थ के दरवाजे खोल कर बुद्धि के दरवाजे बंद कर देने पड़ेंगे.

‘‘मुझे जीवनसाथी की जरूरत है, पापा, दौलत पर पहरा देने वाले पहरेदार की नहीं,’’ सीमा ने साफ शब्दों में अपनी बात कह दी.

शंभुजी कोलकाता से लौट कर आए तो उन्हें बड़ी हैरानी हुई. हमेशा दरवाजे पर स्वागत करने वाली सीमा आज कहीं भी नजर नहीं आ रही थी. मैसेज तो उन्होंने कोलकाता से चलने से पहले ही उस के मोबाइल पर भेज दिया था. क्या उस ने पढ़ा नहीं? लेकिन वे तो हमेशा ही ऐसा करते हैं. चलने से पहले मैसेज कर देते हैं और उन की लाड़ली बेटी सीमा दरवाजे पर मिलती है. उस का हंसता चेहरा देखते ही वे अपनी सारी थकान, सारा अकेलापन पलभर में भूल जाते हैं. शंभुजी का मन उदास हो गया. कहां गई होगी सीमा? मोबाइल भी घर पर छोड़ गई. किस से पूछें वे? और उन्होंने एकएक कर के सारे नौकरों को बुला लिया. पर किसी को पता नहीं था कि सीमा कहां है. सब का एक ही जवाब था, ‘‘सुबह घर पर थी, फिर पता नहीं बिटिया कहां गई.’’

शंभुजी ने सीमा का मोबाइल चैक किया. उन का मैसेज उस ने पढ़ लिया था. फिर भी सीमा घर में नहीं रही. क्या होता जा रहा है उसे? पिछले कई महीनों से वे देख रहे हैं, सीमा में कुछ परिवर्तन होते जा रहे हैं. न वह उन के साथ उतना लाड़ करती है, न उन्हें अपने मन की कोई बात ही बताती है और न ही अब उन से कुछ पूछती है. पिछली बार जब वे कोलकाता जा रहे थे, तो उन्होंने कितना पूछा था, ‘क्यों, बेटे, तुम्हें कुछ मंगवाना है वहां से?’ तो बस, केवल सिर हिला कर उस ने न कर दी थी और वहां से चली गई थी.

पहले जब वे कहीं जाते थे, तो कैसे उन के गले में बांहें डाल कर लटक जाती थी, और मचल कर कहती थी, ‘पापा, जल्दी आ जाइएगा, इतने बड़े सूने घर में हमारा मन नहीं लगता.’

उन का भी कहां इस घर में मन लगता है. यह तो सीमा ही है, जिस के पीछे उन्होंने इतने बरस हंसतेहंसते काट दिए हैं और अपनी पत्नी मीरा को भी भुला बैठे हैं. जबजब वे सीमा को देखते हैं, उन्हें हमेशा यही संदेह होता है, मीरा लौट आई है. और वे अपने अकेलेपन की खाई को सीमा की प्यारीप्यारी बातों से पाट देते हैं.

एक दिन सीमा भी तो पूछ बैठी थी, ‘पापा, मेरी मां बहुत सुंदर थीं?’

‘हां बेटा, बहुत सुंदर थी?’

‘बिलकुल मेरी तरह?’

‘हां, बिलकुल तेरी तरह.’

‘वे आप से रूठती भी थीं?’

‘हां बेटा.’

‘मेरी तरह?’

‘आज तुम्हें क्या हो गया है, सीमा? यह सब तुम्हें किस ने बताया है?’ वे नाराज हो गए थे.

‘15 नंबर कोठी वाली रेखा चाची हैं न, उन्होंने कहा था, मां बहुत अच्छी थीं. आप उन की बात नहीं मानते थे तो वे रूठ जाती थीं,’ सीमा बड़े भोलेपन से बोली थी.

‘तू वहां मत जाया कर, बेटी. अपने घर में क्यों नहीं खेलती? कितने खिलौने हैं तेरे पास?’ उन्होंने प्यार से समझाया था.

‘वहां शरद है न, वह मेरे साथ कैरम खेलता है, बैडमिंटन खेलता है, यहां मेरे साथ कौन खेलेगा? आप तो सारा दिन घर से बाहर रहते हैं,’ वह रोआंसी हो आई थी.

वे उस छोटी सी बेटी को कैसे बताते कि उस की मां उन से क्यों रूठ जाती थी. वे तो आज तक अपने को कोसते हैं कि मीरा की वे कोई भी इच्छा पूरी न कर सके. कितनी स्वाभिमानी थी वह? इतनी बड़ी जायदाद की भी उस की नजर में कोई कीमत न थी. हमेशा यही कहती थी कि वह सुख भी किस काम का जिस से हमेशा यह एहसास होता रहे, यह हमारा अपना नहीं, किसी का दिया हुआ है.

यह जो आज इतना बड़ा राजपाट है, यह सब उन्हें मीरा की बदौलत ही तो मिला था. लेकिन मीरा ने कभी इस राजपाट को प्यार नहीं किया. न जाने शंभुजी को क्या हो गया था, इतनी बड़ी कोठी, कार, नौकरचाकर, पैसा देखते ही चौंधिया गए थे. शायद उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन उन के दामन में इतनी दौलत आ आएगी कि जिसे समेटने के लिए उन्हें स्वार्थ के दरवाजे खोल कर बुद्धि के दरवाजे बंद कर देने पड़ेंगे.

बहुत बड़ा कारोबार था मीरा के पिताजी का. कितने ही लोग उन के दफ्तर में काम करते थे. शंभुजी भी वहीं काम करते थे. वे बहुत ही स्मार्ट, होनहार और ईमानदार व्यक्ति थे. अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने मीरा के पिता का मन जीत लिया था. शंभुजी से उन की कोई बात छिपी नहीं थी, और शंभुजी भी उन की बात को अपनी बात समझ कर न जाने पेट के किस कोने में रख लेते थे, जिस से कोई जान तक नहीं पाता था. मीरा की मां ने ही एक दिन पति को सुझाव दिया था, ‘क्योंजी, तुम तो दिनरात शंभुजी की प्रशंसा करते हो. अगर हम अपनी मीरा की शादी उन से कर दें, तो कैसा रहेगा? गरीब घर का लड़का है, अपने घर रह जाएगा.’

‘मैं भी कितने दिनों से यही सोच रहा था. मुझे भी ऐसा लड़का चाहिए जो मेरा कारोबार भी संभाल ले, और हमारी बेटी भी हमारे पास रह जाए,’ मीरा के पिता ने बात का समर्थन किया था.

‘मेरी चिंता दूर हुई. लेदे कर एक ही तो औलाद है, वही आंखों से दूर हो जाए तो यह तामझाम किस काम का?’

‘लड़का हीरा है, हीरा. चरित्रवान, स्मार्ट, मेहनती, ईमानदार, यह समझ लो, चिराग ले कर ढूंढ़ने से भी ऐसा लड़का हमें नहीं मिलेगा.’

‘तो बात पक्की कर लो. यह जरूर जतला देना, घरजमाई बन कर रहना पड़ेगा. उसे मंजूर हो तो बस चट मंगनी पट ब्याह वाली बात कर ही डालो,’ मीरा की मां ने पुलकित हो कर कहा था.

बात पक्की हो गई थी. बड़ी धूमधाम से मीरा और शंभुजी की शादी हुई थी. शंभुजी के पांव धरती पर नहीं पड़ते थे. पहले तो दफ्तर में काम करने वाले सभी साथियों ने ईर्ष्या की थी, लेकिन धीरेधीरे वे सब के लिए छोटे मालिक हो गए थे. मीरा के पिता तो जैसे उन्हें पा कर पूरी तरह निश्ंिचत हो गए थे. धीरेधीरे सारा कारोबार ही उन्होंने शंभुजी को सौंप दिया था.

मीरा भी उन जैसा पति पा कर गर्व से फूल उठी थी और मन ही मन उस ने अपने मातापिता की बुद्धि को सराहा भी था. कुछ समय तक तो सबकुछ ठीकठाक चलता रहा था, लेकिन बाद में मीरा महसूस करने लगी थी जैसे पिताजी ने, दामाद नहीं, गुलाम खरीदा हो. शंभुजी सोए हों, या उस से प्रेमालाप कर रहे हों, बस पिताजी का एक बुलावा आया नहीं कि वे उठ कर चल देते. ऐसे में मीरा प्यार से उन्हें समझाती और कहती, ‘पिताजी से कह क्यों नहीं देते कि वक्तबेवक्त न बुलाया करें.’

‘अरे भई, काम होता है, तभी तो बुलाते हैं, और काम कोई वक्त देख कर तो नहीं आता,’ शंभूजी भी प्यार से जवाब देते.

‘पहले भी तो वे स्वयं काम संभालते थे, अब क्यों नहीं संभालते?’ मीरा उखड़ जाती.

‘इसी लिए तो उन्होंने तुम जैसी पत्नी का मुझे पति बना दिया है, ताकि मैं उन का बोझ हलका करूं,’ शंभुजी हंस कर टाल देते.

‘फिर उन्हें बेटी देने की क्या जरूरत थी. बोझ हलका करने के लिए तुम्हें रुपयों से खरीदा भी जा सकता था. तुम नहीं बोल सकते तो मैं पिताजी से कहूंगी कि आप साथसाथ काम करने के लिए कोई दूसरा नौकर रख लीजिए,’ मीरा नाराज हो जाती.

‘तुम तो बहुत भावुक हो, मीरा. जितनी मेहनत और ईमानदारी से अपने घर का आदमी काम कर सकता है, कोई दूसरा करेगा क्या?’ वे तर्क देते.

‘यह क्यों नहीं कहते कि तुम बिक गए हो. तुम्हें पत्नी की नहीं, सिर्फ दौलत की जरूरत थी,’ और मीरा फफक कर रो पड़ी थी.

शंभुजी कितने ही प्यार से क्यों न समझाते लेकिन मीरा को यह कतई पसंद नहीं था कि वे घरदामाद बन कर रहें. वह हमेशा यही कहती थी, ‘घरदामाद तो पालतू कुत्ते की तरह होता है, जो टुकड़े खा कर दिनरात वफादारी करता है. तुम क्यों नहीं अलग मकान ले लेते. तुम जैसे भी रखोगे, मैं उसी तरह रहूंगी. तुम से कभी गिला नहीं करूंगी. मुझे यह तो एहसास रहेगा, मेरा अपना घर है, तुम मेरे हो. यहां तो हमेशा मुझे ऐसा लगता है जैसे हम पिताजी की दया पर पल रहे हैं और तुम भी सोचते होगे कि यदि मैं ने कहीं विद्रोह किया, तो पिताजी रोजी ही न छीन लें.’

‘न जाने तुम क्यों गलत ढंग से सोचने लगी हो? मैं ने तो कभी इस तरह सोचा भी नहीं. मीरा, तुम पहले भी तो इस घर में रहती थीं, तब तुम ऐसा क्यों नहीं सोचती थीं?’

‘तब मैं कुआंरी थी. कुआंरी लड़की हमेशा अपनी नई दुनिया बसाने के सपने देखती है. एक ऐसे पति का सपना, जो उसे घर देगा, उस के सुखदुख का भागीदार होगा, और वह उस के हर सुखदुख की चादर अपने ऊपर ओढ़ लेगी. बताओ, क्या दिया तुम ने मुझे अपनी ओर से? बाकी सब छोड़ भी दें तो प्यार और विश्वास भी तुम नहीं दे सके, जिस समय भी मेरे पास होते हो, तुम्हें यही खयाल रहता है कि पिताजी के कहे काम सब पूरे हो गए कि नहीं, कहीं वे यह न सोचें, शादी होते ही लापरवाह हो गया है.’

इसी तरह तकरार और प्यार में वर्ष छलांगें लगाते निकल रहे थे. मीरा की गोद में सीमा भी आ गई थी. सीमा को पा कर मीरा काफी हद तक सहज हो गई थी. उन्होंने सोचा था, ‘मीरा सीमा को पा कर तनाव से शायद मुक्त हो गई है.’ लेकिन यह उन की भूल थी.

सीमा जैसेजैसे बड़ी होती गई, मीरा की खामोशी बढ़ती गई. वह हमेशा देखती, सीमा की हर जरूरत पिताजी पूरी करते हैं, उस का भविष्य कैसे संवारना है, यह भी पिताजी सोचते हैं. बिलकुल उसी तरह, जिस तरह उन्होंने उस के लिए सोचा था.

शंभुजी ने तो एक दिन भी यह महसूस नहीं किया कि बाप का अपनी संतान के लिए क्या कर्तव्य होता है. मीरा की जरूरत पिताजी आ कर पूछते. शंभुजी को इस से कोई अंतर नहीं पड़ता था. बस, उन्हें यही संतोष था कि पिताजी के होते उन्हें चिंता करने की क्या आवश्यकता है, या पिताजी उन पर कितने प्रसन्न हैं, क्योंकि उन्होंने उन का व्यापार और बढ़ा दिया था. मीरा की हर बात चिकने घड़े पर पड़े पानी की तरह उन के ऊपर से फिसल जाती थी.

एक दिन बेहद गुस्से में मीरा ने कहा था, ‘इन सुखों की खातिर तुम ने अपनेआप को बेच दिया है. अपनी आजादी, अपने आदर्शों तक को दांव पर लगा दिया है.’

‘तुम सुखी रहो, इसी लिए तो यह सब किया है मैं ने, वरना मैं अकेला तो दो रोटी और दो कपड़ों में ही प्रसन्न था. यदि तुम्हारी खुशी के लिए स्वयं मुझे भी बिकना पड़ा तो भी मैं पीछे नहीं हटूंगा, मीरा,’ शंभुजी ने हंस कर बात टालनी चाही थी.

‘मेरा नाम ले कर झूठ मत बोलो. तुम जानते हो इस पैसे की दुनिया से मुझे कभी प्यार नहीं रहा जहां आदमी आजादी से अपनी कोई इच्छा ही पूरी न कर सके, जहां आगेपीछे नौकरों की फौज खड़ी हो. मैं खुली हवा में सांस लेना चाहती हूं. प्लीज, मुझे अलग ले जाओ, ताकि मैं अपना छोटा सा संसार बना सकूं, और सोच सकूं, यह घर मेरा है, जहां सुकून हो, जहां तुम हो, हमारी बच्ची हो, और मैं होऊं,’ और मीरा रो पड़ी थी.

‘ठीक है, मीरा. मैं वचन देता हूं, हम उसी तरह रहेंगे जैसे तुम चाहती हो. मैं पिताजी से जरूर बात करूंगा,’ उन्होंने मीरा को प्यार से थपथपा दिया था.

जब मीरा ने देखा कि यह तकरार भी चिकने घड़े की बूंद बन गई है तो वह हमेशा के लिए चुप हो गई थी. शायद उस ने ‘जो है, सो ठीक है,’ समझ कर ही संतोष कर लिया था.

दूसरे बच्चे के समय मीरा की तबीयत बहुत बिगड़ गई थी. डाक्टरों की भीड़ भी उसे नहीं बचा सकी थी. तब यही शंभुजी सीमा को छाती से लगा कर फूटफूट कर रो पड़े थे. उन्होंने मन ही मन मीरा से कितनी बार माफी मांगी थी और वादा किया था, ‘तुम्हारी सीमा की मैं हर इच्छा पूरी करूंगा. मैं स्वयं उस का खयाल रखूंगा, उसे मां बन कर पालूंगा.’

कितना स्नेह और ममत्व उन्होंने बेटी को दिया था. उस के उठने से ले कर सोने तक, हर बात का ध्यान वे खुद रखते थे. बाहर जाना भी कितना कम कर दिया था. लेकिन कभीकभी जब सीमा उन्हें टकटकी लगाए देखने लगती थी तो न जाने वे क्यों सिहर उठते थे. उन्हें महसूस होता था, ये निगाहें सीमा की नहीं, मीरा की हैं, जो उन से कुछ कहना चाह रही हैं, तो वे घबरा कर यह पूछ बैठते, ‘कुछ कहना है, बेटी?’

‘कुछ नहीं, पापा,’ जब सीमा कहती तो उन की सांस की गति ठीक होती.

समय के साथ सीमा बड़ी हुई. मीरा के मातापिता का साथ छूटा. सारा कारोबार फिर एक बार शंभुजी पर आ पड़ा. यह वही जिम्मेदारी थी जो किसी को दी नहीं जा सकती थी और फिर धीरेधीरे वे पहले की तरह व्यस्तता के बीच खोने लगे थे.

एक दिन जब वे काफी रात गए घर लौटे थे, तो यह देख कर हैरान हो गए थे कि जल्दी सो जाने वाली सीमा, आज बालकनी में खड़ी उन का इंतजार कर रही है. वे हैरानी से बोले थे, ‘सोई क्यों नहीं?’

‘आप जल्दी क्यों नहीं आते? अकेले मेरा मन नहीं लगता,’ सीमा गुस्से में थी.

‘मेरा बहुत काम होता है, इसी लिए देर हो जाती है. आज कोई पहली बार तो मैं देर से नहीं आया?’ उन्होंने प्यार से समझाया था.

‘इतनी रात तक किसी का काम नहीं होता. आप झूठ बोलते हैं. आप पार्टियों में जाते हैं, शराब पीते हैं, इसी लिए आप को देर हो जाती है.’

‘सीमा,’ वे नाराज हो गए थे.

‘डांटिए मत, मैं कालेज से देर से आऊंगी, तब आप को अच्छा लगेगा?’ वह भी सख्ती से बोली थी, ‘मैं कहे देती हूं, अब आप देर से आएंगे तो मैं खाना नहीं खाऊंगी.’ और वह पैर पटकती हुई चली गई थी.

वे हैरान से खड़े देखते रह गए थे. मीरा और सीमा में कितना साम्य है. वह अगर हवा का तेज झोंका थी तो यह सबकुछ हिला देने वाली तेज आंधी.

कुछ दिन तक तो वे समय पर घर पहुंचते रहे थे. लेकिन क्रम टूटते ही घर में तूफान आ जाता था. एक बार तो सीमा ने हद कर दी थी. महाराज के बारबार खाने के लिए बुलाने पर उस ने खाने की मेज ही उलट कर रख दी थी, और चिल्ला कर कहा था,

‘मैं शीला चाची के यहां जा रही हूं. डाक्टर साहब के साथ शतरंज खेलूंगी. पिताजी से कह देना, जिस समय मेरा मन होगा, मैं वापस आऊंगी. मुझे वहां लेने आने की कोई जरूरत नहीं.’ और वह दनदनाती हुई चली गई थी.

जब शंभुजी को पता चला तो वे चाह कर भी उसे लेने नहीं जा सके थे. उन्हें डर था, ‘जिद्दी लड़की है, वहीं कोई नाटक न शुरू कर दे.’

12 बजे के करीब डाक्टर साहब का बेटा दीपक उसे छोड़ने आया था तो वह बिना उन्हें देखे अपने कमरे में चली गई थी. पीछेपीछे भारी कदमों से उन्हें उस के कमरे में जाना पड़ा था, ‘खाना नहीं खाओगी, बेटी?’

‘मैं ने खा लिया है,’ वह लापरवाही से बोली थी.

‘तुम डाक्टर साहब के यहां रात को क्यों गई थी?’ उन्होंने सख्ती से पूछा था.

‘आप भी तो वहां जाते हैं. वे भी हमारे घर आते हैं,’ वह भी सख्त हो गई थी.

‘वे मेरे मित्र हैं, बेटी. तुम समझती क्यों नहीं? तुम अब बड़ी हो गई हो. रात को अकेले तुम्हें…’ आगे वे बात पूरी नहीं कर सके थे.

‘मैं वहां जरूर जाऊंगी. दीपक मुझे घुमाने ले जाता है. मेरा खयाल रखता है. वह भी मेरा दोस्त है. जब आप को फुरसत नहीं मिलती तो मैं अकेली क्या करूं?’

इतना सुनते ही उन का सिर चकराने लग गया था. इन बातों का तो उन्हें पता ही नहीं था. वे तो अपने काम में ही इतने व्यस्त रहते थे कि बाहर क्या हो रहा है, कुछ जानते ही न थे. डाक्टर साहब जरूर उन्हें कभीकभी खींच कर पार्टियों में या क्लब में ले जाते थे.

फिर उन्हें यह भी जानकारी मिली कि, सीमा दीपक के साथ फिल्म देखने भी जाती है तो वे बड़े परेशान हो गए थे. पहले तो उन्हें सीमा पर गुस्सा आया था कि कभी मुझ से पूछती तक नहीं, लेकिन फिर वे स्वयं पर भी नाराज हो उठे थे, उन्होंने ही बेटी से कब, कुछ जानना चाहा था.

सीमा कुछ और सयानी हो गई थी. उन्होंने भी सोचा था, ‘दीपक अच्छा लड़का है. अगर सीमा उसे पसंद करती है तो वे उस की इस खुशी को जरूर पूरा करेंगे. सीमा के सिवा उन का है ही कौन? यह घर, यह कारोबार किसी को तो संभालना ही है. फिर दीपक तो बड़ा ही प्यारा लड़का है.’ और वे निश्ंिचत हो गए थे.

अब वे सीमा से हमेशा दीपक के बारे में पूछा करते थे. वे यह भी देख रहे थे, सीमा धीरेधीरे गंभीर होती जा रही है.

एक दिन बातोंबातों में सीमा ने कहा था, ‘पिताजी, आप क्यों नहीं किसी को अपने विश्वास में ले लेते? उसे सारा काम समझा दीजिए, तो आप का कुछ बोझ तो हलका हो ही जाएगा. आप को कितना काम करना पड़ता है.’

‘हां, बेटा, मैं भी कई दिनों से यही सोच रहा था. पहले तुम्हारे हाथ पीले कर दूं, फिर कारोबार का बोझ भी अपने ऊपर से उतार फेंकूं. अब मैं भी बहुत थक गया हूं, बेटी.’

‘आप एक चैरिटेबल ट्रस्ट क्यों नहीं बना देते? उस से जितना भी लाभ हो, गरीबों की सहायता में लगा दिया जाए. गरीबों के लिए एक अस्पताल बनवा दीजिए. एक स्कूल खुलवा दीजिए. इतने पैसों का आप क्या करेंगे?’

‘बेटी, अपना हक यों बांट देना चाहती हो,’ वे हैरानी से बोले थे.

‘मैं भी इतना पैसा क्या करूंगी. आदमी की जरूरतें तो सीमित होती हैं, और उसी में उसे खुशी होती है. इतना पैसा किस काम का जो किसी दूसरे के काम न आ सके, बैकों में पड़ापड़ा सड़ता रहे. सब बांट दीजिए, पापा.’

‘कैसी बातें करती हो, मैं ने सारी जिंदगी क्या इसी लिए खूनपसीना एक किया है कि मैं कमा कर लोगों में बांटता फिरूं. तुम नहीं जानतीं. मैं ने इसी व्यापार को बढ़ाने की खातिर क्या कुछ खोया है?’

‘मुझे सब पता है, पापा. इसी लिए तो कहती हूं, आप समेटतेसमेटते फिर कुछ न खो बैठें. एक बार बांट कर तो देखिए, आप को कितना सुख मिलता है. जो खुशी दूसरों के लिए कुछ कर के हासिल होती है, वह खुद के लिए समेट कर नहीं होती.’

‘यह तुम क्या कह रही हो?’

‘डाक्टर चाचा भी तो यही कहते हैं, पापा, देखिए न, वे गरीबों का मुफ्त इलाज करते हैं. वे हमेशा यही कहते हैं, बस, जितने की मुझे जरूरत होती है, मैं रख लेता हूं, बाकी दूसरों को दे देता हूं, ताकि मेरे साथसाथ दूसरों का भी काम चलता रहे.’

वे बेटी का मुंह देखते रह गए थे. अच्छा हुआ सीमा ने बात खोल दी, नहीं तो वे कितनी बड़ी गलती कर बैठते. नहीं, नहीं, उन्हें तो ऐसा लड़का चाहिए जो व्यापार को संभाल सके. वे इस तरह अपनी दौलत को कभी नहीं लुटाएंगे. और उन्होंने निश्चय किया था, वे अपनी तरफ से तलाश शुरू कर देंगे. यह काम जल्दी ही करना होगा.

जल्दी काम करने का नतीजा भी सीमा की नजरों से छिपा नहीं रहा. शंभुजी के औफिस की टेबल पर उस ने जब कई लड़कों के फोटो देखे तो वह सबकुछ समझ गई थी. उसी दिन वे कोलकाता जाने वाले थे. सीमा ने सबकुछ देखने के बाद केवल इतना ही कहा था, ‘पापा, आप इतनी जल्दी न करें, तो अच्छा है.’

‘तुम्हें मेरे फैसले पर कोई आपत्ति है.’

‘मेरा अपना भी तो कोई फैसला हो सकता है,’ उस ने दृढ़ता से कहा था.

‘मुझे तुम्हारे फैसले पर आपत्ति नहीं, बेटी. दीपक मुझे भी पसंद है. लेकिन मेरी भी तो कुछ खुशियां हैं, कुछ इच्छाएं हैं. तुम जानती हो, दीपक को शादी के बाद…’

‘आप पहले कोलकाता हो आइए. इस बारे में हम फिर बात करेंगे,’ उस ने उन की बात काट दी थी.

वे निश्ंिचत हो कर चले गए थे, और आज वापस आए थे. लेकिन दरवाजे पर इंतजार करती सीमा कहीं नजर नहीं आ रही थी.

वे तेजी से उस के कमरे में गए, शायद उस ने कोई मैसेज छोड़ा हो लेकिन कहीं कुछ भी नहीं था. सबकुछ व्यवस्थित था. तभी नौकर ने आ कर धीरे से कहा, ‘‘सीमा बिटिया आ गई है.’’

सीमा जब उन के सामने आ कर खड़ी हुई थी तो वे उसे अपलक देखते रह गए थे. इन 6 दिनों में सीमा को क्या हो गया है. लगता है, जैसे इतने दिनों तक सोई ही न हो, ‘‘कहां गई थी, बेटी?’’

‘‘रमेशजी के यहां, मां की तबीयत ठीक नहीं थी. उन्होंने बुलवा भेजा था.’’

‘‘मां…कौन मां?’’ वे हैरान थे.

‘‘रेखा चाची, यानी शरदजी की मां. शरदजी की भी तबीयत ठीक नहीं है. मैं यही बताने आई थी, कहीं आप चिंता न करने लगें. मुझे अभी फिर वापस जाना है. उन की देखभाल करने वाला कोई नहीं. दोनों बीमार हैं. शायद मुझे रात को भी वहीं रहना पड़े.’’

‘‘उन का नौकर उन की…’’ वे बात पूरी नहीं कर सके थे.

‘‘जितनी सेवा कोई अपना कर सकता है, उतनी सेवा क्या नौकर करेगा? मेरा मतलब तो आप समझ गए न, मैं ने कहा था न, पिताजी मेरा भी कोई फैसला हो सकता है.’’

‘‘और डाक्टर का बेटा दीपक?’’ वे हैरान थे.

‘‘वह तो बचपन की पगडंडियों पर लुकाछिपी खेलने वाला दोस्त था, जो जवानी के मोड़ पर आ कर आप की दौलत से भी आंखमिचौली खेलना चाहता था. मुझे जीवनसाथी की जरूरत है, पापा, दौलत पर पहरा देने वाले पहरेदार की नहीं. मैं जानती हूं, आप को मेरी बातों से दुख हो रहा है. लेकिन यह भी तो सोचिए, लड़की के जीवन में एक वह भी समय आता है जब वह बाबुल का घर छोड़ कर पति के घर जाने के लिए आतुर हो जाती है. इसी में उसे जिंदगी का सुख मिलता है. मांबाप की भी तो यही खुशी होती है कि लड़की अपने घर में सुखी रहे. आप शरद को भी बचपन से जानते हैं, आप भी अपना फैसला बदल डालिए, इसी में मेरी खुशी है और आप का सुख,’’ और वह जाने को तैयार हो गई.

‘‘रुक जाओ, बेटी, मुझे तुम्हारा फैसला मंजूर है. तुम ने तो एकसाथ मेरे दोदो बोझ हलके कर दिए हैं. बेटी का बोझ और धन का बोझ. इसे भी अपनी मरजी से ठिकाने लगा देना, बेटी, जिस से कइयों को खुशियां मिलती रहें,’’ कहतेकहते उन की आंखें नम हो गई थीं.

‘‘पापा,’’ वह भाग कर मुद्दत से प्यासे पापा के हृदय से लग कर रो पड़ी थी.

अब पॉसिबल है ‘फेसबुक ऐट वर्क’

कई कॉर्पोरेट दफ्तरों में फेसबुक के इस्तेमाल पर रोक लगाई गई है, मगर कंपनी ने इसका एक समाधान निकाला है. जोमैटो, पेटीएम, बुकमाइशो, डेलिवरी, यस बैंक, गोदरेज और एलऐंडटी समेत कई कंपनियां अपने दफ्तर में फेसबुक यूज कर रही हैं. दरअसल ये कंपनियां फेसबुक का एक खास वर्जन इस्तेमाल कर रही हैं, जिसका नाम है- Facebook At Work.

'Facebook At Work' फेसबुक का ही एक संस्करण है. यह वर्जन खासतौर पर ऑफिस में इस्तेमाल के लिए बना है. सामान्य फेसबुक में जहां आपकी न्यूजफीड दोस्तों की तस्वीरों और अन्य पोस्ट्स वगैरह से भरी रहती है, वहीं इसमें स्प्रेडशीट्स, प्रॉजेक्ट्स और अन्य असाइनमेंट्स वगैरह नजर आते हैं.

फेसबुक ऐट वर्क के डायरेक्टर जूलियन कोडोरनिओ ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बात करते हुए कहा, 'एक ऐसे प्लैटफॉर्म की जरूरत महसूस की जा रही थी, जिसे बिना ईमेल या ऑफिशल मोबाइल नंबर के ऐक्सेस किया जा सके.'

'ऐट वर्क' वैरियंट में फेसबुक ने नॉर्मल वेबसाइट के कई फीचर शामिल किए हैं, मगर इसका अपना अलग नेटवर्क और मेसेजिंग एप है. इसमें न कैंडी क्रश है, न इस तरह का कोई अन्य एप. यह फेसबुक के गहरे नीले रंग के बजाय स्लेट ग्रे रंग में है. इसके लिए लॉगइन भी अलग से करना होगा.

फेसबुक ऐट वर्क अभी शुरुआती दौर में है. यह प्लैटफॉर्म 'एंटरप्राइज नेटवर्क्स' की कैटिगरी में आती है. इस तरह के नेटवर्क ऑफिस के अंदर ही मेसेज शेयर करने या प्रॉजेक्ट्स पर चर्चा करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं. फेसबुक ऐट वर्क का मुकाबला इसी तरह के अन्य नेटवर्क्स Slack और माइक्रोसॉफ्ट के Yammer से है.

फेसबुक ने साल 2015 में 'वर्क' वैरियंट के लिए बीटा प्लैटफॉर्म लॉन्च किया था. इस पायलट प्रॉजेक्ट को सबसे पहले रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड के साथ शुरू किया गया था. भारत में एलऐंडटी पहली कंपनी थी, जिसने अप्रैल में इसे आजमाना शुरू किया.

खास बात यह है कि इस वर्जन में कोई ऐड नहीं है. कंपनी सब्स्क्रिप्शन मॉडल पर रेवेन्यू कमाती है, मगर उसने इस वर्जन की फीस और सब्स्क्रिप्शन प्लान के बारे में बताने से इनकार कर दिया. कंपनी का दावा है कि 6,000 से ज्यादा कंपनियों ने ट्रायल के लिए साइन अप किया है.

 

सलमान की शादी से नाखुश है ये अभिनेत्री!

सलमान ने कितनी ही हीरोइनों की जिंदगी बनाई है, उन्हें अपनी फिल्मों में काम दिया. ऐसे में वो उम्मीद करते हैं कि उनकी हीरोइनें भी उनकी खुशी में शरीक हों, उनकी गर्लफ्रेंड से दोस्ती करें. लेकिन इस हीरोइन की तो सोच कुछ और ही है.

ये हैं डेजी शाह जो सलमान के साथ फिल्म जय हो से डेब्यू कर चुकी हैं और सलमान के कहने पर ही हेट स्टोरी 3 का अहम हिस्सा बन पाई थीं. खबर है कि डेजी और सलमान की गर्लफ्रेंड लूलिया की आपस में नहीं बनती.

9 मई को हुए एक अवार्ड फंक्शन में जब डेजी से पूछा गया कि उनके और लूलिया के बीच कैसे रिश्ते हैं तो डेजी ने सवाल से बचने की कोशिश की और 'नो कमेंट्स' कह कर पल्ला झाड़ लिया.

लेकिन फिर भी जब उनसे बार बार पूछा गया तो उन्होंने साफ किया कि उनके औऱ लूलिया के बीच कोई तनाव नहीं है और लड़ाई की खबरें झूठी हैं. लेकिन वहीं जब सलमान और लूलिया की शादी पर उनकी राय ली गई तो वे साफ मुकर गईं.

डेजी ने कहा, मैं शादी के खिलाफ हूं. इसलिए मैं नहीं चाहूंगी कि मेरा कोई दोस्त भी शादी करे.' अब ये भला कैसी वजह हुई, ये तो डेजी ही जानें. कहीं ऐसा न हो, डेजी के ऐसे बयान के बाद वो सलमान की शादी में शामिल होने से रह जाएं और उन्हें न्योता ही न मिले!

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