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नाच और नचा भी रहे हैं इरफान खान

टैलीविजन से कैरियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता इरफान खान ने फिल्म ‘सलाम बौंबे’ में एक छोटी सी भूमिका से अपना फिल्मी सफर शुरू किया था. इस के बाद उन्होंने कई फिल्मों में छोटेबड़े किरदारों को निभाया पर असली पहचान उन्हें ‘मकबूल’, ‘रोग’, ‘लाइफ इन ए मैट्रो’, ‘स्लमडौग मिलेनियर’, ‘पान सिंह तोमर’, ‘लंच बौक्स’ आदि फिल्मों से मिली. फिल्म ‘पान सिंह तोमर’ के लिए उन्हें पद्मश्री सम्मान मिल चुका है. दर्शक ऐसा मानते हैं कि वे अपनी आंखों से ही पूरा अभिनय कर देते हैं. यही वजह है कि लीक से हट कर भी उन की फिल्में सफल होती हैं और दर्शकों को रियलिस्टिक फिल्म देखने को मिलती है.

इरफान खान जयपुर के मुसलिम परिवार से हैं. जब वे एमए की पढ़ाई कर रहे थे तब उन्हें नैशनल स्कूल औफ ड्रामा में स्कौलरशिप मिल चुकी थी. जयपुर से दिल्ली पहुंच कर उन्होंने अभिनय की बारीकियां तो सीखीं, पर फिल्मों में काम मिलना आसान नहीं था. वे मुंबई आए और टीवी का दामन पकड़ा और फिर आगे बढ़े. संघर्ष से वे घबराए नहीं, क्योंकि हीरो बनना उन का लक्ष्य था. उन की इस कामयाबी में वे अपने परिवार का हाथ मानते हैं जिस में वे अपनी पत्नी सुतपा सिकदर को अहम बताते हैं. सुतपा भी एनएसडी की पढ़ी हुई हैं. दोनों वहीं मिले थे. इरफान के 2 बच्चे बाबिल और अयान हैं. इन दिनों इरफान अपनी अगली फिल्म ‘मदारी’ को ले कर चर्चा में हैं. जिस की ‘वन लाइन’ स्टोरी सुतपा की ही है, जिसे बाद में निर्देशक निशिकांत कामत ने डैवलप किया. यह एक थ्रिलर फिल्म है. उन से बात करना रोचक था. पेश हैं अंश:

मदारी फिल्म में आप किसे नचा रहे हैं?

मदारी में नाच भी रहे हैं, नचा भी रहे हैं कि कैसे हम अपने जीवन में कुछ परिस्थितियों के आने पर नाचते रहते हैं और नचाते रहते हैं. कई बार बड़े लैवल पर नाचते हैं, कई बार पूरा देश नाचता है. इस फिल्म में ऐसा ही कुछ हुआ है, यह एक रियल स्टोरी है.

मेरी पत्नी ने जब इस कौंसैप्ट को सुनाया तो मुझे यह पसंद आया. मैं ने सोचा कि कौर्पोरेट को जा कर सुनाते हैं, लेकिन फिर सोचा कि उन्हें पसंद आए या न आए. ऐसे में मैं ने फिल्म को खुद बनाने का निर्णय लिया व अब मैं फिल्म का निर्माता व ऐक्टर दोनों हूं. निशिकांत ने कहानी को अच्छी तरह से डैवलप किया है. वे बहुत अच्छे निर्देशक हैं.

यह फिल्म आप की पत्नी का एक कौंसैप्ट है, साथ ही वे राइटर भी हैं, आप ने डैवलप करने की जिम्मेदारी उन्हें क्यों नहीं दी?

उन्होंने काफी डैवलप किया है पर उन के और मेरे विचार अलग हैं. आज तक ऐसा नहीं हुआ है कि उन की कहानी पर मैं ने काम किया हो. मेरी इच्छा है कि आगे चल कर मैं उन की लिखी कहानी पर काम करूं, पर इस में उन का सहयोग ही काफी है.

क्या रियल लाइफ में आप को कभी किसी ने नचाया है?

वह तो हमेशा ही होता रहता है. घर पर मेरी पत्नी ही नचाने की कोशिश करती है. मुझे लगता है कि अगर मैं ने कुछ गलत नहीं किया है तो किसी के आगे झुक नहीं सकता और यही मुझ में कमी है. जीवन में सौरी को लाना जरूरी होता है, इस से रिश्ता बना रहता है. सुतपा में यह गुण है.

इस फिल्म का कठिन पार्ट क्या था?

यह फिल्म अपनेआप में कठिन है. रोज लगता था कि इस फिल्म को हम ठीक से कर पाएंगे या नहीं. रोज सुबह मेरी और निशिकांत की यही बातें हुआ करती थीं. इस का खाका अलग है साथ ही साथ, नई चीज जितना उत्साह काम में लाती है उतना ही रिस्क या डर भी लाती है कि फिल्म सब को पसंद आएगी या नहीं. लेकिन जब काम करना शुरू किया तो धीरेधीरे सब ठीक होता गया.

रियल लाइफ स्टोरी बनाते समय किस बात का ध्यान रखते हैं?

रियल लाइफ पर फिल्में बड़े पैमाने पर बनाई जाती हैं. ऐसे में ध्यान देना पड़ता है कि कहानी ठीक से कही जाए, लोग उस से जुड़ सकें, आप का मैसेज लोग समझ पाएं. चुनौती बहुत होती है. जो फिल्म लार्जर दैन लाइफ बना रहे हैं, देखना पड़ता है कि हीरो की मूवमैंट सही हो.

आप रोमांटिक फिल्म कब कर रहे हैं?

आगे वही करने वाला हूं. वह भी सुतपा की फिल्म होगी. अभिनेत्री कौन होगी, अभी निश्चय नहीं किया है. मेरे लिए यह देखना बहुत जरूरी होता है कि हीरोइन कौन होगी.

पिता होने के नाते बच्चों को कितनी आजादी देते हैं?

बच्चों को आजादी है लेकिन पूरा दिन कंप्यूटर और गेम खेलो, यह आजादी नहीं है. उन पर नजर रखनी पड़ती है. मेरा व्यवहार ऐसा रहता है कि मैं उन का दोस्त हूं. वे मीडिया के प्रति सैंसेटिव होते हैं, इस का खयाल रखना पड़ता है. आप जो कहें, उसे आप को खुद भी अपनाना पड़ता है. मैं उन को अधिक समय नहीं दे पाता पर कोशिश रहती है कि उन के साथ कुछ समय बिताऊं.

हौलीवुड के अनुभव के बारे में क्या बताना चाहेंगे?

हौलीवुड ने मुझे काफी शेप दिया है. उस ने मुझे जो अनुभव कराया है, एक कलाकार के रूप में वह अमेजिंग है. उसी वजह से वहां और यहां मेरा बैलेंस बना हुआ है.

ड्रीम प्रोजैक्ट क्या है?

ड्रीम प्रोजैक्ट के बारे में मैं अभी अधिक बोलना नहीं चाहता, पता चला कि किसी ने उसी पर फिल्म बना डाली. मुझे उस पर काम करना है और वह बायोपिक होगी. इस के अलावा कुछ मराठी फिल्में करना चाहता हूं.

इंडस्ट्री में क्या बदलाव आए हैं?

औडियंस अच्छे सिनेमा को पसंद करते हैं. यही वजह है कि मराठी फिल्म ‘सैराट’ जैसी रीजनल फिल्में अच्छा बिजनैस कर रही हैं. इंडस्ट्री के लिए यह चुनौती है. खराब यह हो रहा है कि एक फार्मूला फिल्म बनती है और लोग बिना सोचेसमझे उसे बनाते रहते हैं. विचार करने की जरूरत होती है, वरना फ्लौप फिल्मों की संख्या बढ़ जाती है.

निर्माता बन कर किस बात पर खास ध्यान रखते हैं?

फिल्म का ठीक से निर्माण, उस की मार्केटिंग आदि पर विशेष ध्यान देता हूं.

एक्सिडैंटल प्राइम मिनिस्टर

संजय बारू नाम के गैर पेशेवर लेखक को आप शायद भूल चले हों, जिन की लिखी किताबें ‘द एक्सिडैंटल प्राइम मिनिस्टर : द मेकिंग ऐंड अनमेकिंग औफ मनमोहन सिंह’ ने साल 2014 में सियासी गलियारों में खासा हल्ला मचाया था. इस किताब पर अब फिल्म बनाने की तैयारी है जिस में मनमोहन सिंह की भूमिका पंजाब का एक सुदर्शन युवक निभाएगा. वह कौन है, यह अभी इस फिल्म के बाकी पहलुओं की तरह सस्पैंस है फिल्म हालांकि 2017 के आखिर तक प्रदर्शित होगी लेकिन इस के कुछ हिस्से तय है कि प्रचार के लिहाज से वे वक्तवक्त पर दिखाए जाते रहेंगे.

आइफा अवार्ड और बाजीराव

आइफा अवार्ड में इस बार फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ की धूम रही. ज्यादातर अवार्ड इस फिल्म के हिस्से में आए. जहां बैस्ट ऐक्टर की ट्रौफी अभिनेता रणबीर कपूर के हिस्से आई, वहीं दीपिका पादुकोण को बैस्ट ऐक्ट्रैस का खिताब ‘बाजीराव मस्तानी’ के लिए नहीं बल्कि फिल्म ‘पीकू’ के लिए दिया गया. इस साल यह अवार्ड समारोह स्पेन के मैड्रिड में आयोजित किया गया. सर्वश्रेष्ठ निर्देशक की रेस में संजय लीला भंसाली ने ‘बाजीराव मस्तानी’ को ले कर बाजी मारी. वहीं प्रियंका चोपड़ा को फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ के लिए जहां बैस्ट सपोर्टिंग अभिनेत्री का अवार्ड मिला वहीं स्पैशल अवार्ड फौर वुमेन के लिए भी उन्हें ट्रौफी दी गई.

हौलीवुड का लखन

अभिनेता अनिल कपूर अपने दौर में अमिताभ बच्चन के सुपरस्टार स्टेटस को कंपीटिशन दे रहे थे. लेकिन एक समय उन का कैरियर ट्रैक से झटक गया तो खान तिकड़ी ने मोरचा संभाल लिया और फिल्म राम लखन के लखन अपना काम करते रहे. फिर अचानक उन की अंगरेजी फिल्म ‘स्लमडौग मिलेनियर’ ने उन्हें हौलीवुड की राह दिखा दी. और तब से उन पर हौलीवुड का बुखार कुछ ऐसा चढ़ा कि अंगरेजी सीरियल ‘24’ का हिंदी संस्करण बना डाला और उस का दूसरा सीजन भी जल्दी आएगा. इतना ही नहीं, उन्होंने हौलीवुड बैनर्स के साथ अंगरेजी फिल्में ‘रैड’ और ‘एवरी बडी इज फेमस’ के हिंदी संस्करण बनाने का फैसला किया है. गौरतलब है कि अनिल कपूर हौलीवुड फिल्म ‘मिशन इंपौसिबल’ में भी एक छोटा सा किरदार कर चुके हैं जबकि अमेरिकन टीवी सीरीज 24 में प्रमुख किरदार निभा रहे हैं.

खामोश सलमान

अभिनेता सलमान खान जितनी भी कोशिश कर लें, विवाद उन का पीछा नहीं छोड़ता. जब से उन्होंने फिल्म ‘सुलतान’ के प्रमोशन के दौरान रेप्ड वुमेन वाला बयान दिया है, मुश्किल में पड़ गए हैं. महिला संगठनों ने जहां उन के खिलाफ मोरचा खोल दिया है वहीं हरियाणा के हिसार की गैंगरेप पीडि़ता ने सलमान को एक नोटिस भेज कर 10 करोड़ रुपए की क्षतिपूर्ति की मांग की है. पीडि़ता ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के माध्यम से सलमान को यह नोटिस भेजा है. हालांकि उन के इस बयान के लिए पिता सलीम खान सार्वजनिक तौर पर माफी मांग चुके हैं लेकिन सलमान ने इस बात पर कोई टिप्पणी करने के बजाय आगे से ज्यादा न बोलने की बात कह कर चुप्पी साध ली है.

चुनावी हथकंडे

वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में जीत हासिल करने के लिए भारतीय जनता पार्टी हर तरह के हथकंडे अपना रही है जिन में कैराना से हिंदू पलायन का हल्ला और अमित शाह का दलित के घर खाना खाने को भरपूर प्रचार देना शामिल हैं. ये स्टंट अगर वोट दिला दें तो आश्चर्य नहीं, क्योंकि इस देश में इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ के स्टंट से चुनाव जीता था और जयललिता ने अम्मा किचन के नाम पर जीता है.

देश को आज ऐसी सरकारें चाहिए जो लोगों को शांति से काम करने दें, कानून व्यवस्था बनाए रखें और सही तरह से टैक्स वसूलें. सरकारें ये न करने के बजाय कानून व्यवस्था के हक का इस्तेमाल जाति, धर्म, उपजाति के झगड़ों को फैलाने में कर रही हैं. शांति न बनी रहे, इस के लिए जम कर विवाद खड़े किए जा रहे हैं, टैक्स पर टैक्स लादे जा रहे हैं और सरलीकरण के नाम पर दुरूह कंप्यूटर जनित टैक्स व्यवस्था थोपी जा रही है.

भारतीय जनता पार्टी के साथ बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी भी यही कुछ कर रही हैं. उत्तर प्रदेश को हिंदू, मुसलिमों, दलितों, पिछड़ों, अतिपिछड़ों, यादवों, कुर्मियों, ब्राह्मणों में बांटा जा रहा है. गंगाजुमनी संस्कृति को नष्ट कर के उसे खेमों में बदला जा रहा है जिन में रामवृक्ष यादव जैसे सिरफिरे सुभाष चंद्र बोस का नाम ले कर बड़े शहर के बीच अपनी अलग सरकार चला सकते हैं.

चुनावों में कोई वर्ग नाराज न हो जाए या वह वर्ग जो उन्हें वोट नहीं देगा, बुरी तरह सताया जाए की तरकीबें बनने लगी हैं. सभी दल उत्तर प्रदेश को तारतार करने में लग गए हैं. इस करतूत में भगवाई सब से आगे हैं. उत्तर प्रदेश देश के सब से पिछड़े प्रदेशों में से एक है. वहां गरीबी देखनी हो तो कहीं भी खड़े हो जाओ, 100 गज में दिख जाएगी. बदहाल घर, भूखेनंगे बच्चे, बीमार औरतें, बेसहारा वृद्ध, बेतरतीब बसे शहर और बाजार, संकरी गंदी गलियां, कूड़े के ढेर हर 100 गज पर दिख जाएंगे. वहां व्यवस्था नाम की कोई चीज है, लगता नहीं है.

ऐसे में नेता लोग सोचविचार और नारों के मल हर जगह फेंक रहे हैं. केंद्र में सत्तारुढ़ भाजपा को कैराना में बजाय राजनीति खेलने के, वहां अमन स्थापित करना चाहिए था क्योंकि देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी उस की है पर हुकुम सिंह जैसे उस के नेता ऐसे बयान देने लगे मानो वहां भिंडरावाले का राज स्थापित हो गया हो.

देश का मुसलमान आज वैसे ही डरासहमा हुआ है. वह अब दड़बों में बंद है. उसे न केवल सवर्ण हिंदुओं द्वारा हेय दृष्टि से देखा जा रहा है, पिछड़े और दलित भी हिंदूमयी आंखों से देख रहे हैं. उन पर बेबुनियाद आरोप लगा कर, जरमनी के हिटलर की तरह यहूदियों से बरताव करने जैसी कोशिश की जा रही है. यह बेहद खतरनाक है. 3 प्रतिशत सिख देश का क्या हाल कर चुके हैं, हम देख चुके हैं. विकास की दौड़ में हम विध्वंस की तैयारी करते नजर आ रहे हैं.

दो नंबर की बातें

काले धन को ले कर इन दिनों मौजूदा सरकार बड़ीबड़ी बातें कर रही है. खबरिया चैनलों में ऐंकर चिल्लाचिल्ला कर यह कहते नहीं थकते कि दो नंबर का रुपया स्विस बैंकों से वापस आने वाला है. दो नंबर का रुपया वह कालाधन होता है जिसे लेने अथवा देने वाले को पकड़े जाने का भय होता है. इसी तरह दो नंबर का माल, चोरी का वह माल होता है जिसे लेने अथवा देने वाले को सरकारी मेहमान बन कर जेल की हवा खाने का भय रहता है. अब सुनिए दो नंबर की बातें. घबराइए मत. इस में आप को यानी सुनने वाले को कोई भय नहीं क्योंकि आप को कोई नहीं जानता. इस में अगर किसी को कोई भय है तो वह केवल मुझे है क्योंकि मेरा नाम ऊपर साफसाफ लिखा है और मेरा पता भी आसानी से मालूम किया जा सकता है.

मैं ने बीसियों बार भाषण दिए हैं और सुनने वालों पर देश, समाज तथा परिवार सुधार के साथ उन का अपना मानसिक एवं आध्यात्मिक सुधार तथा अन्य सभी प्रकार के सुधार करने पर भी जोर डाला है. इसी  के फलस्वरूप मेरी प्रसिद्धि होती रही है और मैं कभी आर्य समाज का मंत्री, कभी किसी संगठन का प्रधान, कभी किसी यूनियन का अध्यक्ष इत्यादि बनता रहा हूं. भाषणों में सच्चीझूठी बातें रोचकता पूर्वक सुनने पर जब दर्शक तालियां बजाते या वाहवाह करते ?तो मुझे आंतरिक प्रसन्नता होती. पर कमबख्त रमाकांत का डर अवश्य रहता क्योंकि एक वही मेरा ऐसा अभिन्न मित्र तथा पड़ोसी है जो मेरे भाषण सुनने के बाद निजी तौर पर मुझे चुनौती दे डालता, कहता, ‘‘ठीक है गुरु, कहते चले जाओ, पर जब स्वयं करना पड़ेगा तो पता चलेगा.’’

‘‘मेरे दोस्त, मैं अपने भाषणों में जो कुछ कहता हूं वही करता भी हूं. मसलन, मैं अपने घर में रोज न हवन करता हूं और न संध्या. इसीलिए मैं ने अपने किसी भी भाषण में यह नहीं कहा कि लोगों को घर में प्रतिदिन हवन और संध्या करनी चाहिए,’’ मैं ने एक बार अपनी सफाई में कहा. ‘‘और वह जो देशप्रेम की और देश के लिए जान निछावर करने की बड़ीबड़ी बातें कह कर तुम ने हनुमंत को भी पीछे छोड़ दिया है?’’ रमाकांत ने मेरी बात काटते हुए कहा.

मैं ने पूछा, ‘‘कौन हनुमंत?’’

‘‘हनुमंत को नहीं जानते? अरे, वही राजस्थान का गाइड, जो उस राज्य को देखने के लिए आने वाले विदेशी पर्यटकोें को बड़े गौरव से अपना प्रदेश दिखाते हुए कहता है, ‘जनाब, यह है हल्दीघाटी का मैदान जहां महाराणा प्रताप ने मुगलों के दांत खट्टे कर दिए. यह है चित्तौड़गढ़ का किला जहां अलाउद्दीन खिलजी ने पद्मिनी को पाने की जीजान से कोशिश की पर उस की हार हुई. यह है वह स्थान जहां पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गोरी को बारबार हराया और यह है…’ तब आश्चर्यचकित हो कर पर्यटक पूछते हैं कि ‘क्या आप का मतलब यह है कि राजस्थान में मुगलोें को कभी एक भी विजय प्राप्त नहीं हुई?’ इस पर हनुमंत छाती फुला कर कहता है कि ‘हां, राजस्थान में मुगलों की कभी एक भी विजय नहीं हुई और जब तक राजस्थान का गाइड हनुमंत है कभी होगी भी नहीं.’’’

हनुमंत के अंतिम शब्द सुन कर मुझे बड़ी हंसी आई. रमाकांत भी मेरे चेहरे को देख कर हंस पड़ा और बोला, ‘‘तुम ने हनुमंत का दूसरा किस्सा नहीं सुना है?’’

मैं ने कहा, ‘‘नहीं तो.’’

‘‘यह कैसे हो सकता है? भई, तुम ने जरूर सुना होगा.’’

मैं ने फिर कहा, ‘‘नहीं, मैं ने नहीं सुना.’’

रमाकांत बोला, ‘‘अच्छा तो सुनो, एक दिन हनुमंत गा रहा था– ‘जन, गण, मन, अधिनायक…’ सुना है न? ’’

मैं ने कहा, ‘‘नहीं सुना है, भई.’’

‘‘कैसे नहीं सुना? अपना राष्ट्रीय गान ही तो है,’’ यह कह कर रमाकांत जोर से हंस दिया.

मैं ने कहा, ‘‘आ गए हो न अपनी बेतुकी बातों पर?’’

‘‘हां जी, हमारी बातें तो बेतुकी, क्योंकि हमें भाषण देना नहीं आता है. और आप की बातें जैसे तुक वाली होती हैं?’’

मैं ने पूछा, ‘‘कौन सी बातें?’’

‘‘वही जो आज तुम ने दहेज के बारे में कही थीं कि न दहेज लेना चाहिए, न देना. शादियों पर धूमधाम नहीं करनी चाहिए. न रोशनी करनी चाहिए, न शादी में बैंडबाजा होना चाहिए और न बरात ले जानी चाहिए, न गोलीबंदूक. अरे, यदि तुम्हारी कोई लड़की होती और तुम्हें उस की शादी करनी पड़ती तब देखता कि तुम दूसरों को बताए हुए रास्तों पर स्वयं कितना चलते.’’

‘‘मेरी कोई लड़की कैसे नहीं है. मेरी अपनी न सही, मेरे कोलकाता वाले भाईसाहब की तो है. हां, याद आया. रमाकांत, कोई अच्छा सा लड़का नजर में आए तो बताना. कल ही भाईसाहब का फोन आया था कि आशा ने एमएससी तथा बीएड कर लिया है. अब वह 22 साल की हो चुकी है, इसलिए उस की शादी शीघ्र कर देनी चाहिए. कोलकाता में तो अच्छे पंजाबी लड़के मिलते नहीं, इसलिए दिल्ली में मुझे ही उस के लिए कोई योग्य वर ढूंढ़ना है. सोचता हूं कि मैट्रोमोनियल, वैबसाइट व न्यूजपेपर में विज्ञापन दे दूं.’’ रमाकांत बोला, ‘‘सो तो ठीक है गुरु, पर लड़की दिखाए बिना दिल्ली में कौन लड़का ब्याह के लिए तैयार होगा?’’

‘‘तुम ठीक कहते हो रमाकांत, इसीलिए मैं ने भाईसाहब को लिख दिया है कि आप ठहरे सरकारी अफसर, आप को वहां से छुट्टी तो मिलेगी नहीं, इसलिए आशा और उस की मम्मी को दिल्ली भेज दो.’’

‘‘तुम ने मम्मी कहा न, गुरु एक तरफ तो हिंदी के पक्ष में बड़े जोरदार भाषण करते हो और स्वयं  मम्मी शब्द का प्रयोग खूब करते हो.’’ खैर, मैं ने दिल्ली के अंगरेजी के सब से बड़े समाचारपत्र के वैवाहिक कौलम में निम्न आशय का विज्ञापन छपवा दिया.

‘‘एमएससी और बीएड पास, 163 सैंटीमीटर लंबी, 22 वर्षीया, गुणवती और रूपवती, पंजाबी क्षत्रिय कन्या के लिए योग्य वर चाहिए. कन्या का पिता प्रथम श्रेणी का सरकारी अफसर है. ×××××98989.’’ अगले दिनों मोबाइल बजने लगा. मैं ने सब को ईमेल आईडी दे दी कि बायोडाटा उस पर भेज दें. ईमेल आए जिन्हें भिन्नभिन्न लड़के वालों ने विज्ञापन के उत्तर में भेजा था. मैं और रमाकांत उन ईमेल्स को पढ़ने, समझने और उत्तर देने में लग गए. 4 दिनों के भीतर 45 मेल आ गए. उस के एक सप्ताह बाद 30 मेल और आए. इस प्रकार एक विज्ञापन के उत्तर में लगभग 140 लड़के वालों के मेल आ गए. कई सारे मेल और एसएमएस भी आए. 5 तो हमारे महल्ले में ही रहने वालोें के थे. अन्य 30 मेल विवाह करवाने वाले एजेंटों के थे. उन पर लिखा था कि यदि हम उन को फौर्म भर कर देंगे तो उन की एजेंसी योग्य जीवनसाथी खोजने में निशुल्क सेवा करेगी.

मैं ने रमाकांत से विचार कर के 140 में से 110 को अयोग्य ठहरा कर बाकी 30 के उत्तर भेज दिए. उन में से 20 ने हमें लिख भेजा अथवा टैलीफोन, मोबाइल व ईमेल किया कि वे लड़की को देखना चाहते हैं. उन्हीं दिनों आशा और उस की मम्मी कोलकाता से दिल्ली आ गईं. हम ने उन से भी परामर्श कर के लड़के को देखना और लड़की को दिखाना प्रारंभ कर दिया. पर कहीं भी बात बनती नजर नहीं आई. लड़के वालों की ओर से अधिकतर ऐसे निकले जो प्रत्यक्षरूप से तो दहेज नहीं मांगते थे पर परोक्षरूप से यह जतला देते कि उन के यहां तो शादी बड़ी धूमधाम से की जाती है. कोई कहता ‘लेनादेना क्या है? जिस ने लड़की दे दी, वह तो सबकुछ ही दे डालता है.’ यदि बातों ही बातों में मैं लड़के वालों से कहता कि ‘आजकल तो देश में दहेज के विरोध में जोरदार अभियान चल रहा है,’ तो लड़के वाले कहते, ‘जी, विरोध में काफी कहा जा रहा है, पर अंदर ही अंदर सब चल रहा है.’

सगाई न हो पाने के कुछ और कारण भी थे. यदि मेरे विचार में कोई लड़का योग्य होता तो आशा की मम्मी को लड़के वालों के घर का रहनसहन पसंद न आता. दूसरा कारण था, आशा की ऐनक, जिसे देखते ही बहुधा लड़के वाले टाल जाते. इसीलिए आशा ने ऐनक की जगह कौंटैक्ट लैंस लगवा लिए, लेकिन मेरा और रमाकांत का निश्चय था कि हम कोई बात छिपाएंगे नहीं, परिणाम यह होता कि जब हम लड़के वालों को बता देते कि लड़की ने कौंटैक्ट लैंस लगा रखे हैं तो वे कोई न कोई बहाना कर के बात को वहीं खत्म कर देते. तीसरा कारण था, आशा का रंग, जो काला तो नहीं था पर गोरा भी नहीं था. कई लड़के वाले इस बात पर भी जोर देते कि उन का लड़का तो बहुत गोरा है. चौथा कारण यह था कि आशा एमएससी और बीएड तो थी, पर नौकरी नहीं करती थी. और पांचवां कारण यह था कि आशा अमेरिका अथवा यूरोप में रहने वाले किसी लड़के से शादी करना चाहती थी. वह शादी कर के विदेश जाना चाहती थी.

इसी चक्कर में 2 मास बीत गए. आशा निराश होने लगी. उस की मम्मी मेरे घर के सोफे, परदोें तथा सजावट के सामान को और रमाकांत मेरे प्रगतिशील विचारों को दोषी ठहराने लगा. हम ने फिर इकट्ठे बैठ कर स्थिति पर विचार किया. रमाकांत ने आशा से पूछा, ‘‘बेटी, तू क्यों इस बात पर बल देती है कि विदेश में रहने वाले लड़के से ही शादी होनी चाहिए. तुझे क्या पता नहीं कि जो लड़के विदेशों से भारत में शादी करने आते हैं उन में कई धोखेबाज निकल आते हैं?’’

आशा बोली, ‘‘अंकल, मेरी कई सहेलियां शादी कर विदेश गई हैं. वे सब सुखी हैं. उन के व्हाट्सेप व ईमेल मुझे आते रहते हैं और फिर, यही तो उम्र है जब मैं अमेरिका, कनाडा या इंगलैंड जा सकती हूं. नहीं तो सारी उम्र मुझे भी यहीं रह कर अपनी मम्मी की तरह रोटियां ही पकानी पड़ेंगी.’’

मैं ने कहा, ‘‘बेटी, अपनी जननी और जन्मभूमि हर चीज से अच्छी होती है.’’

‘‘ये सब पुरानी व दकियानूसी बातें हैं,’’ आशा ने कहा, ‘‘अंकल, आप यह भी कहते हो कि सारी धरती ही अपना कुटुंब है. फिर मुझे क्यों निराश करते हो?’’ घर के बड़ेबूढ़े समझाते कि शादीब्याह तो जहां लिखा होता है, वहीं होता है. कुछ दिन पहले की बात है कि एक शाम, रमाकांत हमारे घर आया और बोला, ‘‘वह कुछ दिनों के लिए दौरे पर दिल्ली से बाहर जा रहा है.’’ अगले ही दिन किसी लड़के के पिता का मोबाइल पर फोन आया कि उन का लड़का अमेरिका से आया हुआ है और वे लोग आशा को देखने हमारे घर आना चाहते हैं. कोई जानपहचान न होने पर भी हम लोगों ने उन्हें अपने घर बुला लिया. लड़के के पिता, माता और बहन को लड़की पसंद आ गई और हमें वे लोग पसंद आ गए.

अगले दिन लड़के को लड़की और लड़की को लड़का पसंद आ गया. जब लड़के को बताया गया कि लड़की कौंटैक्ट लैंस लगाती है तो उस ने कहा, ‘‘इस में क्या बुराई है, अमेरिका में तो कौंटैक्ट लैंस बहुत लोग लगाते हैं.’’ नतीजतन, 2 दिनों बाद ही उन की सगाई हो गई और सगाई के 5 दिनों बाद शादी कर देने का निश्चय हुआ, क्योंकि लड़के को 10 दिनों के भीतर ही अमेरिका वापस जाना था.

सगाई और शादी में कुल 5 दिनों का अंतर था, इसलिए सारे काम जल्दीजल्दी में किए गए. सगाई के अगले दिन 200 निमंत्रणपत्र अंगरेजी में छप कर आ गए और बंटने शुरू हो गए. 2 दिनों बाद कोलकाता से भाईसाहब आ पहुंचे और वे मुझे डांट कर बोले कि बिना जानपहचान के अमेरिका में रहने वाले लड़के से तुम ने आशा की सगाई क्यों कर दी. उन्होंने 2-3 किस्से भी सुना दिए. जिन से शादी के बाद पता चला था कि लड़का तो पहले से ही ब्याहा हुआ था, बच्चों वाला था, आवारा था या अमेरिका में किसी होटल में बैरा था. मैं ने बहुत समझाया कि यह लड़का बहुत अच्छा है, इंजीनियर है, अच्छे स्वभाव का है. पर भाईसाहब ने मुझे ऐसीऐसी भयानक संभावनाएं बताईं कि मेरे पसीना छूट गया और नींद हराम हो गई. लेकिन मुझे तो लड़के वाले अच्छे लग रहे थे और जब वे भाईसाहब से आ कर मिले तो वे भी संतुष्ट दिखाई देने लगे. शादी से 2 दिन पहले ही घर मेहमानोें से भर गया. सब मनमानी करने लगे. घर की इमारत पर बिजली के असंख्य लट्टू लग गए और घर के आगे की सड़क पर शामियाने लगने शुरू हो गए. महंगाई के जमाने में न जाने कितने गहने और कपड़े खरीदे गए. हलवाइयों का झुंड काम पर लग गया.

शादी की शाम को ब्याह की धूमधाम देख कर मैं स्वयं आश्चर्यचकित था. बैंड के साथ घोड़ी पर चढ़ कर आशा का दूल्हा बरात ले कर आया, जिस के आगेआगे आदमी और औरतें भांगड़ा कर रहे थे. लड़के वाले सनातनधर्मी थे और उन्होंने मुहूर्त निकलवा रखा था कि शादी रात को साढ़े 8 से 11 बजे के बीच हो और ठीक 11 बजे डोली चल पड़े. ठीक मुहूर्त पर शादी हो गई. 11 बजे डोली चलने लगी तो पता चला कि आशा रो रही है. मैं ने आगे बढ़ कर उसे प्यार किया और कहा, ‘‘लड़की तो पराई होती है, रोती क्यों हो?’’ आशा ने मेरे कान में कहा कि वह इसलिए रो रही है कि उस के कौंटैक्ट लैंस रखने की छोटी डब्बी उस के पुराने पर्स में ही रह गई है. जब तक मैं उसे लैंस ला कर नहीं दूंगा वह वहां से जा नहीं सकेगी.

शादी के दूसरे दिन दौड़धूप कर के एक उच्चाधिकारी से सिफारिश करवा कर उसी दिन आशा का पासपोर्ट बनवाया गया. आननफानन जाने की सारी तैयारियां हो गईं. मैं आज ही सुबह आशा और उस के पति को हवाईअड्डे पर? छोड़ कर वापस लौटा हूं और मन ही मन डर रहा हूं कि आज रमाकांत दौरे से वापस लौटेगा और पूछेगा, ‘‘ गुरु, तुम्हारे आदर्शों का कहां तक पालन हुआ? बड़े देशप्रेमी बनते थे, पर अपनी लड़की की शादी विदेश में ही की? आखिर अमेरिका की सुखसुविधाएं भारत में कहां मिलतीं?’’ मैं सोच रहा हूं कि रमाकांत यहीं तक ही पूछे तो कोई बात नहीं, मैं संभाल लूंगा लेकिन अगर उस ने आगे पूछा कि दूसरों के आगे तो सुधार की बड़ीबड़ी बातें करते हो और अपने घर शादी की तो कौनकौन से सुधार लागू किए तो क्या जवाब दूंगा. वह जरूर पूछेगा, क्या निमंत्रणपत्र हिंदी में छपे थे? क्या अंधविश्वासियोें की तरह मुहूर्त को नहीं माना? क्या दहेज नहीं दिया? क्या घर को असंख्य लट्टुओें से नहीं सजाया? क्या धूमधाम से सड़क पर शामियाने नहीं लगाए? क्या सैकड़ों

लोगों ने कानन की टांग मरोड़ कर शादी पर बढि़या से बढि़या खाना नहीं खाया? क्या बरात में बैंडबाजे के साथ उछलकूद कर औरतों ने भी भांगड़ा नहीं किया? क्या जगहजगह काम  निकलवाने में सिफारिशें नहीं लगवाईं और सत्ता का दुरुपयोग नहीं किया? मुझ से इन प्रश्नों का समाधान नहीं हो पा रहा है. मैं क्या करता? मैं तो सभी लोगों को खुश रखना चाहता था. खुशी का मौका था, जैसा घर वाले और मेहमान चाहते थे, होता चला गया. मैं किसकिस को रोकता? मैं रमाकांत से साफ कह दूंगा कि मैं मजबूर था. पर मुझे ऐसा लग रहा है कि रमाकांत कहेगा, ‘रहने दो, अपनी दो नंबर की बातें. दो नंबर के धंधे में पकड़े जाने पर सब लोग अपनी कमजोरी को मजबूरी ही कहते हैं.

इन्हें भी आजमाइए

– किशमिश का पानी पीने से पाचनक्रिया दुरुस्त होती है, खून साफ होता है, एसिडिटी कम होती है. ये सब फायदे आप को किशमिश का पानी पीने के 2 दिनों में ही दिखाई पड़ने लगेंगे.

– बच्चे के कमरे को सजाने का सब से अच्छा तरीका, वहां आर्ट गैलरी बनाना भी हो सकता है. इस से बच्चे को कला में रुचि आएगी. वहां आप कई तसवीरें भी लगा सकती हैं जो उस की स्वयं व आप के साथ हों.

– अगर आप अपनी सुबह एनर्जी से भरपूर बनाना चाहते हैं तो गाजर और संतरे का जूस निकाल कर पिएं. विटामिन सी, ई से भरपूर इस ड्रिंक से पूरे दिन थकान भी नहीं होगी.

– पान के पत्ते पर सरसों का तेल लगा कर, उस पत्ते को हलका गरम कर के मोच वाले स्थान पर बांध लें, आराम मिलेगा.

– गरमियों में चावल जरूर खाना चाहिए. पेट में गरमी होने पर प्रतिदिन चावल खाने से शरीर को ठंडक मिलती है.

– अगर आप डाइटिंग कर रहे हैं तो सेम की फलियां खाएं क्योंकि यह प्रोटीनयुक्त है और फैट फ्री भी.

– अगर आप सोच रही हैं कि क्रोशिए के परदे कैसे लगेंगे, तो ये काफी आर्टिस्टिक लुक देंगे आप के घर को.

कोचिंग इंस्टिट्यूट का ललचाता औफर

मेरा बेटा जरा सा बड़ा क्या हुआ, सारे कोचिंग इंस्टिट्यूट्स की आंखों की किरकिरी बन गया. आज तक सुना था कि बेटियां बड़ी होती हैं तो मांबाप की नींद उड़ जाती हैं पर आजकल तो इन कोचिंग इंस्ट्टियूट वालों ने मेरी नींद उड़ा रखी है. अभी बेचारे ने 10वीं के पेपर दिए ही हैं और ये बरसाती काई की तरह उसे अपने इंस्टिट्यूट में दाखिला देने को मरे जा रहे हैं. मैं खुश था कि मेरा बेटा बड़ा होनहार है, तभी अलगअलग जगह से उस के ऐडमिशन के लिए फोन पर फोन आ रहे हैं. मुझे आज भी याद है वह दिन जब मेरे मोबाइल की घंटी बजी और उधर से अति पढ़ेलिखे सज्जन ने कहा, ‘‘आप मयंक के पिताजी बोल रहे हैं?’’

अब इस से बड़ा गौरव किसी पिता के लिए क्या होगा कि वह अपने बच्चे के नाम से जाना जाए. तो मैं ने भी शान से कहा, ‘‘जी हां, बोल रहा हूं. आप कौन?’’

‘‘जी, मैं कोचिंग इंस्ट्टियूट से बोल रहा हूं.’’ मैं चौंक गया कि मेरे बेटे ने तो इस बाबत कोई चर्चा नहीं की.

खैर, ‘‘कहिए?’’ मैं ने पूछा.

‘‘आप का बेटा 10वीं में आ गया. आप ने उस के भविष्य के बारे में कुछ तो सोचा ही होगा?’’ मेरा मन किया पहले तो उसे धन्यवाद दूं मुझे यह बताने के लिए कि मेरा अपना बेटा 10वीं में आ गया और उस पर मेहरबानी तो देखो, उस के भविष्य के बारे में भी सोच रहा है. मैं तो बस निहाल ही हो गया.

‘‘नहीं, अभी तो हम ने कुछ नहीं सोचा.’’

मेरे ऐसा कहते ही वे सज्जन ऐसे चौंके जैसे मैं ने इंटरनैट के युग में तख्ती की बात कर दी हो.

‘‘क्या? अभी तक नहीं सोचा? खैर, कोई बात नहीं. अब सोच लीजिए. हम बच्चों को इंजीनियरिंग की कोचिंग कराते हैं. ये सारे बच्चे जो आईआईटी में हैं वे सब हमारे यहां ही पढ़े हैं. मैं खुद फिजिक्स पढ़ाता हूं और आईआईटी कानपुर से पढ़ा हूं. मेरी पत्नी कैमिस्ट्री पढ़ाती हैं. वे आईआईटी कानपुर की टौपर हैं.’’ मैं प्रभावित होने ही वाला था कि मेरा माथा ठनका कि इतनी शानदार पढ़ाई करने के बाद भी ट्यूशन सैंटर ही चलाना पड़ रहा है.

‘‘आप भी मयंक को हमारे यहां अभी से दाखिला दिला दें और उस के भविष्य से निश्ंिचत हो जाएं.’’ वह अपनी दुकानदारी समझा रहा था और मैं अपने खयालों में गुम था कि जब मेरे जैसा 33 फीसदी वाला थर्ड डिवीजन पास भी ठिकाने लग गया और ठीकठाक कमाखा रहा है तो कुछ न कुछ तो मयंक भी कर ही लेगा.

‘‘पर मैं ने अपने बेटे से अभी पूछा नहीं है उस के कैरियर के बारे में.’’

‘‘क्या सर, आप पछताएंगे. मैं बताए देता हूं. 2 साल बाद उस के सारे दोस्त इंजीनियर की पढ़ाई करेंगे और वह पीछे रह जाएगा.’’ अब चौंकने की बारी मेरी थी. ‘‘पर उस ने कब कहा कि वह इंजीनियर बनना चाहता है?’’

‘‘उस ने नौनमैडिकल विषय ही लिए हैं ना?’’ उस ने पूछा.

‘‘वह तो अभी 10वीं का रिजल्ट आएगा. तभी वह सबजैक्ट लेगा. अभी तो पेपर खत्म ही हुए हैं.’’ मैं ने उसे यथार्थ से अवगत करवाया.

‘‘सर, आप भी न, जाने कौन से जमाने में रहते हो? आजकल बच्चे पहले ही सब सोच लेते हैं और स्कूल भी उन की प्रतिभा को देख कर पहले ही सब्जैक्ट उन्हें दे देते हैं. खैर, कोई बात नहीं, आप अपने बेटे से बात कर लें, मैं फिर 2-4 दिनों बाद फोन करूंगा.’’ इतना बोल कर उस ने फोन काट दिया. शाम को जब मैं ने अपने नौनिहाल से बात की तो वह बोला, ‘‘पापा, ये इंस्टिट्यूट वाले तो बस जरा सा नंबर मिल जाए, पीछे पड़ जाते हैं.’’

‘‘पर बेटा, अगर तुझे इंजीनियरिंग करनी है तो ले ले दाखिला वे लोग बहुत पढ़ेलिखे हैं.’’

मैं ने फिर बेटे से उन की डिगरियों के बारे में बताया. ‘‘ये सब ऐसे ही होते हैं आप ने कौन सी इन की डिगरी फोन पर देख ली?’’

‘‘पर वैसे तू ने क्या सोचा है, क्या करेगा?’’

‘‘पापा, अभी मैं ने इस बारे में कुछ नहीं सोचा,’’ इतना बोल कर वह अपने कमरे में चला गया. दिल्ली यूनीवर्सिटी की कटऔफ देख कर मेरा मन बैठा जा रहा था कि जब पेपर ही 100 नंबर का आता है तो बच्चा 100.75 फीसदी नंबर कैसे लाएगा. लगता है 2 बार वही पेपर करना पड़ेगा. यानी कि डीयू से पत्ता साफ है और कोचिंग इंस्ट्टियूट के दरवाजे पर सुस्वागतम 12 महीने लिखा है. 4-5 दिनों बाद फिर उस जनाब का फोन आया, ‘‘सर, आप ने क्या सोचा?’’

मेरे ‘हैलो’ बोलते ही उधर से यह प्रश्न आया.

‘‘किस बारे में?’’ हैरान होते हुए मैं ने पूछा.

‘‘इंजीनियरिंग की कोचिंग के बारे में, सर.’’

‘‘नहीं भाई, मेरा बेटा नहीं मान रहा.’’ मैं ने खुलासा किया.

‘‘मैं कह रहा हूं, सर, आप पछताएंगे.’’

‘‘अरे बेटा इंजीनियरिंग नहीं करना चाहता तो क्या मैं खुद ऐडमिशन ले लूं?’’ मैं ने झल्लाते हुए फोन काट दिया. मानना पड़ेगा कि मेरे बेटे को 12वीं उस ने लगातार फोन करकर के पास कराई. जब इंजीनियरिंग में दाल नहीं गली, तो लाइन बदल दी.

‘‘सर, डाक्टर बना लो अपने बेटे को.’’

‘‘हैं?’’ मैं हैरान हो गया कि अब नौन मैडिकल ले कर भी डाक्टर बन जाते हैं. जमाना कितना बदल गया?

‘‘सर, वह तो हमारी सिरदर्दी है. आप तो बस खुश हो जाओ कि आप का बेटा रशिया में डाक्टर बनेगा.’’ रशिया का नाम आते ही दिल रशिया की सैर करने लगा. दिमाग ने डांटा और कहा कि बिना बायोलौजी लिए कोई डाक्टर कैसे बन सकता है. उस से बामुश्किल पीछा छूटा तो एक और फोन आ गया, ‘‘सर, डाक्टर, इंजीनियर न सही, आर्किटैक्ट ही बना लो अपने बेटे को.’’

मैं ने अपने दिमाग पर जोर देते हुए पूछा, ‘‘पर उस के लिए तो ‘नाटा’ का पेपर पास करना होता है न? ‘‘सर, उस की चिंता आप न करें. वो सब हमारी सिरदर्दी है. आप तो बस ‘हां’ कीजिए. हमारा एक इंस्ट्टियूट चंडीगढ़ में भी है. बस, एक ही सीट बची है, वह भी सिर्फ आप के बेटे के लिए. आप अपने बच्चे को एक हफ्ता वहां भेज दीजिए. हम सारी तैयारी करवा देंगे वहीं पर. ‘नाटा’ भी पास करवा देंगे. कोचिंग करवा कर और बच्चे का ऐडमिशन भी करवा देंगे कालेज में. हां, अगर आप चाहें तो आप भी एक हफ्ते के लिए उस के गार्जियन बन कर वहां रहें.’’

‘‘पर मैं वहां एक हफ्ता क्या करूंगा?’’ मैं ने हैरानपरेशान होते हुए पूछा.

‘‘सर, आप उस के साथ रहें, रोज सुबह सुखना लेक पर मौर्निंग वाक पर जाएं. फिर दिन में कभी रौक गार्डन तो कभी पिंजोर गार्डन घूम आएं. आप चाहें तो बीच में 2 दिन शिमला भी घूम आएं.’’ मैं उस का फोन सुन कर अभी तक सदमे में हूं कि वह मेरे बेटे के लिए स्टडी पैकेज औफर कर रहा था या फिर मेरे लिए वैकेशन पैकेज.

जानें क्‍यों स्‍पेशल है टीवीएस की नई स्‍पोर्ट्स बाइक

टीवीएस ने अपनी आने वाली नई स्‍पोर्ट्स  बाइक अकूला 310 का कॉन्‍सेप्‍ट मॉडल 2016 दिल्‍ली ऑटो एक्‍सपो में शोके‍स किया था. यह स्‍पोर्ट्स  बाइक उसके बाद से ही हिट हो गई थी. इसकी काफी चर्चा है और इसी बीच टीवीएस ने इस बाइक की नई तस्‍वीर जारी की है. तस्‍वीर टीज करने के लिए टीवीएस ने Twitter को प्‍लेटफॉर्म के तौर पर चुना. 

इस नई टीवीएस अकूला 310 में एल्‍युमिनियम ट्रेलिस सबफ्रेम, रेस ट्यून्‍ड 4 वॉल्‍व डीओएचसी लिक्विउ कूल्‍उ 310सीसी इंजन लगा है. इसके साथ ही थर्मल एफिशिएंसी के लिए इसमें गिल वेंट्स दिए गए हैं. साथ ही इसमें रैम एयर इंडक्‍शन भी दिया गया है जिससे कि इस बाइक के स्‍पोर्ट्स  बाइक होने की पुष्टि हो जाती है.

 इंजन की बात करें तो टीवीएस ने अकूला 310 में 313सीसी का सिंगल सिलिंडर लिक्विड कूल्‍ड इंजन दिया है जो कि बीएमडब्‍ल्‍यू मोटरराड से लिया गया है. यही इंजन बीएमडब्‍ल्‍यू जी310आर में भी लगा है. इस इंजन से 34बीएचपी की ताकत और 28 न्‍यूटन मीटर का टॉर्क जेनरेट होता है.

इसमें 6 स्‍पीड मैनुअल गियरबॉक्‍स दिया गया है. TVS Akula 310 में यूएसडी फ्रंट फॉर्क, रियर मोनोशॉक्‍स, डुबल चैनल एबीएस और फुली डिजिटल इंस्‍ट्रूमेंट मीटर आदि फीचर्स दिए गए हैं.

टीवीएस ने टीवीएस की रेसिंग इतिहास को ट्रिब्‍यूट देने के लिए इस बाइक का नाम अकूला रखा है, जिसका रशियन मतलब है शार्क. इस बाइक को टीवीएस तमिलनाडु के होसुर प्‍लांट में निर्मित करेगी और इसे कम से कम कीमत में बाजार में उतारने की कोशिश रहेगी. Akula 310 की केटीएम आरसी390, कावासाकी निंजा 300 और यामाहा आर3 से टक्‍कर होगी.

इस बाइक को 2016 के अंत तक लॉन्‍च किया जा सकता है. प्राइसिंग की बात करें तो इसकी एक्‍स शोरूम कीमत 2 से 2.5 lakh के बीच हो सकती है. 

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