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ब्रॉक लेसनर पर लग सकता है 2 साल का बैन

UFC 200 चैम्पियन और WWE के दिग्गज रेसलर ब्रॉक लेसनर को बड़ा झटका लगा है. जीत के बाद ब्रॉक लेसनर ड्रग टेस्ट में फेल पाए गए थे. उनका 28 जून को आउट ऑफ द कॉम्पीटिशन ड्रग टेस्ट किया गया था, जिसमें भी वो पॉजीटिव पाए गए.

ब्रॉक लेसनर को एस्ट्रोजन ब्लॉकर क्लोमीफीन के सेवन के दोषी पाए गए हैं. जिसका इस्तेमाल एथलीट्स एस्ट्रोजन लेवल को कंट्रोल करने के लिए करते हैं.

दो साल का लग सकता है बैन

UFC ब्रॉक लेसनर के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है. खबरों की मानें तो उन पर 2 साल का बैन और भारी जुर्माना लग सकता है. UFC ने कहा कि यूएस एंटी डोपिंग एजेंसी के अनुसार 9 जुलाई को ब्रॉक लेसनर का लिया गया सैम्पल पॉजीटिव पाया गया.

दूसरे टेस्ट में भी वे पॉजिटिव ही रहे हैं. अब एजेंसी टेस्ट पॉजीटिव पाए जाने के बाद नतीजों की समीक्षा करेगी.

लॉस वेगास में हुआ था टेस्ट

इस मामले में नेवाडा स्टेट एथलेटिक्स कमीशन को भी अधिकार है, क्योंकि UFC 200 लॉस वेगास में हुआ था. हालांकि UFC ने उस पदार्थ के बारे में नहीं बताया है, जिसके सेवन का ब्रॉक लेसनर को दोषी पाया गया है.

हंट को किया था ढेर

WWE स्टार ब्रॉक लेसनर ने अल्टीमेट फाइटिंग चैम्पियनशिप-200 (UFC) के पहले राउंड के मुकाबले में जोरदार वापसी की थी. उन्होंने नॉक आउट किंग नाम से फेमस मार्क हंट को 6-3 से धूल चटाई. पूर्व WWE हैवीवेट चैम्पियन शानदार फॉर्म में दिखा.

उन्होंने शुरुआत में एक-दो पंच ही खाने के बाद अटैकिंग फाइट स्टार्ट कर दी और कुछ ही देर में मार्क को ढेर कर दिया. फाइट को जीतने के बाद लेसनर को 16 करोड़ रुपए मिले. उन्होंने लगभग 5 साल बाद UFC में वापसी की थी.

बया के विचित्र घोंसले

विभिन्न जाति के पक्षी अलगअलग डिजाइन व आकार के घोंसले बनाते हैं. अधिकतर पक्षी किसी पेड़ की ऊंची, चौड़ी शाखा पर घासफूंस व तिनकों से घोंसला बनाते हैं. कठफोड़वा पक्षी पेड़ के तने में अपनी चोंच से बड़ा सा छेद कर के घोंसला बनाता है लेकिन बया पक्षी कुछ अलग हट कर वृक्ष की डाल से लटकता हुआ इतना खूबसूरत घोंसला बनाता है कि उसे देख कर आश्चर्य होता है. यही नहीं, कई बार तो एक ही वृक्ष पर बया के लटकते हुए बहुत से आकर्षक घोंसले देखे जा सकते हैं. बया के घोंसले लौकी के आकार के होते हैं. ऊपर से पतले और नीचे से गोल. ये घोंसले पेड़ों पर झूलते हुए दिखाई देते हैं, लेकिन ये इतने मजबूत होते हैं कि कभी नीचे नहीं गिरते, भयंकर आंधी आने पर भी झूलते रहते हैं.

दूसरे पक्षियों में नर और मादा मिल कर घोंसले बनाते हैं जबकि नर बया ही अपने नर साथियों के साथ मिल कर घोंसले बनाते हैं. नर बया अधिकतर बबूल के वृक्ष पर अपने घोंसले बनाता है, जबकि दूसरे पक्षी बबूल के वृक्ष से दूर रहते हैं. बबूल के कांटों के कारण शत्रुओं से घोंसले की सुरक्षा होती है. बया के घोंसले ऊपर से पतले व नीचे से गोलाकार होते हैं. ऊपर की ओर से घोंसले में आनेजाने का रास्ता होता है जबकि नीचे की ओर 2 कोष्ठ होते हैं. एक कोष्ठ में मादा बया अंडे देती है. उस कोष्ठ को बंद रखा जाता है. कोष्ठ को बंद रखने से शत्रुओं से अंडों की सुरक्षा होती है.

नर बया बारिश का मौसम शुरू होते ही घोंसले बनाना शुरू करता है. कई नर बया मिल कर घोंसला बनाते हैं. जब पूरा घोंसला बन जाता है तो मादा बया आ कर उस का निरीक्षण करती है. यदि उसे घोंसला पसंद नहीं आता तो नर बया को दूसरा घोंसला बनाना पड़ता है. घोंसला पसंद आने पर नर और मादा उस घोंसले में पतिपत्नी की तरह मिल कर रहते हैं. कुछ दिन बाद मादा वहां अंडे देती है. अंडे देने के बाद उस कोष्ठ को बंद कर दिया जाता है. मादा बया अंडों पर बैठ कर अंडे सेती है. नर बया उसी वृक्ष पर दूसरा घोंसला बनाना शुरू कर देता है. जब दूसरा घोंसला बन कर तैयार हो जाता है तो कोई अन्य मादा बया वहां आ कर रहने लगती है. नर बया भी उस के साथ रहने लगता है. मादा बया उस नर बया की दूसरी पत्नी बन जाती है. उस मादा बया के अंडे देने पर नर बया दूसरा घोंसला बनाना शुरू कर देता है. कुछ ही महीने में उस वृक्ष पर बया के कई घोंसले दिखाई देने लगते हैं. आसपास के वृक्षों पर भी बया के घोंसले होने से यह घोंसलों की बस्ती दिखाई देती है.

VIDEO: लड़कियों से इस तरह होती है पब्लिक ट्रांसपोर्ट में छेड़खानी

सफर के दौरान अक्सर लड़कियों को छेड़खानी और यौन उत्पीड़न जैसे हालातों से दो-चार होना पड़ता है. सफर के दौरान लड़कियों को अकेला पाकर लोग उसका फायदा उठाने की कोशिश करते है.

इस लिक पर क्लिक कर आप भी देखिए लड़कियों से किस तरह होती है पब्लिक ट्रांसपोर्ट में छेड़खानी

http://www.sarita.in/web-exclusive/eve-teasing-with-girls-in-public-transport-watch-shocking-video

बुजुर्ग भी पीछे नहीं

उत्तर प्रदेश में वुमन पॉवर लाइन 1090 के आंकड़ों में इस बात का खुलासा हुआ है कि उम्रदराज लोग लड़कियों के साथ छेड़खानी करने में सबसे आगे हैं. आईजी वुमन पॉवर लाइन नववीत सिकेरा ने बताया कि जो लोग अभी तक जेल भेजे गये है उनमें से 68 फीसदी लोग 50 वर्ष से अधिक हैं. सिकेरा के अनुसार कुल 573 लोगों को जेल भेजा गया है, जिनमें से 50 के पार उम्र वाले सबसे अधिक है. उन्होंने बताया कि इन लोगों का मानसिक परीक्षण कराया गया जिसमें पाया गया कि यह मानसिक बीमार भी हैं. आईजी सिकेरा ने बताया कि फोन के जरिए छेड़खानी करने वाले ज्यादादर डर जाते हैं और दोबारा यह नहीं करते हैं लेकिन बुजुर्ग छेड़खानी से बाज नहीं आते हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें लगता है कि लड़कियां उनकी शिकायत नहीं करेंगी.

नौकरी देने के नाम पर कंसल्टेंसी चला रहे रवि शंकर के पास जब एक लड़की नौकरी करने गयी तो वह लड़की के साथ अश्लील हरकत करने लगा और उसकी आपत्तिजनक तस्वीर लेकर उसे ब्लैकमेल कर रहा था. लेकिन लड़की की शिकायत के बाद उसे जेल भेज दिया गया. सिकेरा ने बताया कि हम शिकायकर्ता लड़की की कभी भी पहचान को सार्वजनिक नहीं करते हैं. हमारा उद्देश्य होता है कि अपराधियों में डर बैठाया जाए ताकि उन्हें ऐसे अपराध करने से रोका जा सके. आपको बता दें कि वुमेन पॉवर लाइन की शुरुआत 2012 में की गयी थी.

यौन उत्पीड़न क्या है?

विशाखा बनाम राजस्थान राज्य में सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देश में दी गयी परिभाषा के अनुसार "यौन भावना से संचालित महिला की इच्छा के विरुद्ध किए गए व्यवहार को यौन प्रताड़ता माना जाएगा" जैसे –

•       शारीरिक स्पर्श तथा कामोद्दीप्त चेष्टाएं

•       यौन-स्वीकृति की मांग अथवा प्रार्थना

•       काम वासना से प्रेरित टीका टिप्पणी

•       किसी कामोत्तेजक कार्य-व्यवहार / सामग्री का प्रदर्शन

•       महिला की इच्छा के विरुद्ध यौन संबंधी कोई भी अन्य शारीरिक, मौखिक या अमौखिक आचरण

नाविक: भारत का अपना जीपीएस

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने 28 अप्रैल, 2016 को देश की सामरिक और नागरिक जरूरतों की आत्मनिर्भरता की दिशा में एक उपलब्धि हासिल करने की ओर कदम बढ़ा दिए. इसरो ने देश के नैविगेशन सैटेलाइट-आईआरएनएसएस (इंडियन रीजनल नैविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) की शृंखला में उपग्रह आईआरएनएसएस-1जी को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित कर दिया. यह सैटेलाइट 2013 से 2015 के बीच छोड़े गए कुल 7 उपग्रहों की कड़ी में आखिरी था. इस कड़ी के पूरा होने पर भारत के पास अपना जीपीएस यानी देशी गलोबल पोजिशनिंग सिस्टम होगा. इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए भारतीय जीपीएस का एक नया नामकरण भी किया. उन्होंने इसे ‘नाविक’ का संबोधन दिया, जिस का अभिप्राय ‘नैविगेशन विद इंडियन कौन्स्टेलेशन’ निकलता है. प्रधानमंत्री ने इसे ‘मेक इन इंडिया,’ ‘मेड इन इंडिया’ और ‘मेड फौर इंडिया’ का सपना पूरा करने वाली एक उपलब्धि भी बताया.

क्या है जीपीएस

जीपीएस का शाब्दिक अर्थ ‘ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम’ है. यह अंतरिक्ष स्थित उपग्रहों पर आधारित एक ऐसा सिस्टम है, जिस से हर मौसम में पृथ्वी के किसी भी स्थान के बारे में किसी भी समय जानकारी मिल सकती है. इस सिस्टम की ज्यादा उपयोगिता सेना को, नागरिक सेवाओं को और ऐप आधारित वाणिज्यिक सेवाओं के संबंध में है. ऐसा एक सिस्टम सब से पहले अमेरिका ने बनाया था जो जीपीएस रिसीवर रखने वाले हर व्यक्ति को मुफ्त में उपलब्ध कराया गया. अमेरिका ने 1973 में जीपीएस प्रोजैक्ट पर काम करना शुरू किया था. यूएस डिपार्टमैंट औफ डिफैंस ने खासतौर से इसी के लिए अंतरिक्ष में स्थापित किए गए 24 उपग्रहों की मदद से यह सिस्टम बनाया था, जिस ने 1995 में काम करना शुरू कर दिया था.

मूल रूप से जीपीएस एक अमेरिकी सिस्टम ही है और अमेरिका इस का इस्तेमाल अपने सैन्य व नागरिक हितों के लिए करता है. अमेरिकी जीपीएस का इस्तेमाल करने पर इस का रिसीवर भी साथ ले कर चलना होता है पर अमेरिकी जीपीएस को टक्कर देने के लिए रूस ने ग्लोनास (रशियन ग्लोबल नैविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) बनाया, लेकिन इस से पूरी दुनिया में सेवाएं नहीं मिलती हैं. इस के अलावा यूरोपीय संघ का ‘गैलीलियो पोजिशनिंग सिस्टम’, चीन का ‘बाइडु नैविगेशन सैटेलाइट सिस्टम’ और जापान का ‘क्वासी जेनिथ सैटेलाइट सिस्टम’ भी हैं जो अलगअलग क्षेत्रों में लोगों को जीपीएस सेवाएं मुहैया करा रहे हैं. इन में सब से नया भारत का ‘नाविक’ है.

इस की जरूरत क्यों है

जीपीएस पर अमेरिकी एकाधिकार का एक नतीजा यह निकला कि अमेरिका न तो किसी देश की सभी नागरिक जरूरतों के लिए अपने जीपीएस के इस्तेमाल की इजाजत देता है और न ही भारतीय सैन्यबलों को संवेदनशील जानकारियां मुहैया कराता है. इसी मजबूरी में भारत ने एक समय जीपीएस के रूसी विकल्प ग्लोनास सिस्टम में भागीदारी का समझौता किया था, पर उस से भी समस्याएं नहीं सुलझीं, क्योंकि ग्लोनास की अपनी सीमाएं थीं पर अब हमारा अपना जीपीएस हमें दूसरे देशों की बैसाखियों से आजाद करा सकेगा. जीपीएस की जरूरतों को सब से ज्यादा प्राकृतिक आपदाओं के समय महसूस किया जाता है. पिछले कुछ वर्षों में उत्तराखंड व जम्मूकश्मीर की बाढ़, भूकंप और देश के अलगअलग हिस्सों में चक्रवाती तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं के वक्त स्वदेशी जीपीएस की जरूरत महसूस हुई है. कुछ ऐसी ही जरूरत सीमा पर चीनपाकिस्तान की तरफ से होने वाली घुसपैठ पर नजर रखने के संबंध में भी है. कहा जाता रहा है कि यदि हमारे पास अपना जीपीएस होता, तो दुश्मन देशों के सैनिकों और आतंकवादियों की भारतीय सीमा में आवाजाही का पहले से पता चल जाता. इसी तरह प्राकृतिक आपदा में लापता लोगों को उन के मोबाइल की लोकेशन के आधार पर आसानी से ढूंढ़ा जा सकता था. इंटरनैट सुविधा से लैस मोबाइल फोन में जीपीएस तकनीक ही काम करती है, जिस से लोग किसी लोकेशन के बारे में आसानी से जान सकते हैं.

जीपीएस  की मदद से उड़ते विमानों, समुद्री जहाज, जमीन पर चलते वाहनों के साथसाथ मोबाइल फोन या किसी अन्य नैविगेशन सिस्टम से लैस व्यक्ति की लोकेशन का पूरी सटीकता से पता लगाया जा सकता है. अभी तक इन सभी कार्यों के लिए हम पूरी तरह से अमेरिका पर निर्भर रहे हैं. अब तो जिस तरह ऐप आधारित टैक्सी सेवाएं देश के बड़े शहरों में चलने लगी हैं और कई कारों में भी जीपीएस लगा होता है, तो उस से कारचालक किसी स्थान पर जाने के सही रास्ते का आसानी से पता लगा सकता है. आम लोग भी अपने मोबाइल फोन में जीपीएस ऐप के जरिए स्थान, रास्ते और महत्त्वपूर्ण जगहों की सूचनाएं पा सकते हैं.

अमेरिका से मुकाबला नहीं

इस में संदेह नहीं कि भारतीय जीपीएस फिलहाल अमेरिकी सिस्टम का पूरी ताकत से मुकाबला नहीं कर सकता. पृथ्वी की जियोस्टेशनरी (भूस्थैतिक) कक्षा यानी अंतरिक्ष में 36 हजार किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित अमेरिका के 24 सैटेलाइट पूरी पृथ्वी पर नजर रखते हैं. 24 उपग्रहों से हर वक्त मिलने वाली जानकारियों और संकेतों के सहारे दुनिया के किसी भी कोने में मौजूदा विमानों, जहाजों, वाहनों या मोबाइलफोन धारकों की सहीसही लोकेशन का पता, ठिकाना तुरंत मालूम किया जा सकता है, इस तुलना में मई, 2015 में पूरा होने के बावजूद भारतीय जीपीएस थोड़ा कमजोर होगा, क्योंकि यह केवल भारत और इस के आसपास के 1,500 वर्ग किलोमीटर इलाके की चौकसी कर सकेगा. भारतीय सैटेलाइट्स की आईआरएनएसएस शृंखला के 7 उपग्रहों में से 4 सैटेलाइट जियोस्टेशनरी कक्षा में स्थापित किए गए हैं. इस कक्षा में स्थापित उपग्रहों को जमीन से देखने पर लगता है जैसे वे आकाश में एक ही जगह पर स्थित हों. इस के अतिरिक्त 3 सैटेलाइट जियोसिनक्रोनस कक्षा में स्थापित किए गए हैं जो पृथ्वी के ऊपर अंतरिक्ष में अंगरेजी के 8 के आकार में भ्रमण करते दिखाई देते हैं. 2 अलगअलग कक्षाओं में स्थापित इन 7 उपग्रहों की मदद से भारतीय उपमहाद्वीप में सैन्य गतिविधियों और नागरिक जरूरतों की आसानी से पूर्ति हो सकेगी. लेकिन फिलहाल इस क्षमता का सीमित व्यावसायिक दोहन ही हो सकेगा. यदि भारत भी 24 सैटेलाइट छोड़ कर अमेरिकी जीपीएस के बराबर क्षमता विकसित कर लेता है, तो पूरी दुनिया को जीपीएस से मिलने वाली जानकारियों और सिगनलों को प्रतिस्पर्धी कीमतों पर बेच कर मुनाफा कमा सकता है. भारतीय जीपीएस के तहत आरंभ से ही 2 तरह की सेवाएं देने की योजना बनाई गई है. इस में पहली स्टैंडर्ड पोजिशनिंग सर्विस है, जिस का इस्तेमाल कोई भी कर सकता है यानी इस से मिलने वाली जानकारियां जरूरत पड़ने पर किसी को भी मुफ्त में दी जा सकती हैं और उन्हें बेचा भी जा सकता है. दूसरी सर्विस रेस्ट्रिक्टेड श्रेणी की है, जिस में मिलने वाले संकेतों का इस्तेमाल सिर्फ सरकारी एजेंसियां या सेना ही कर सकती है.

कारोबार भी है एक मकसद

इस में दो राय नहीं कि जीपीएस में आत्मनिर्भरता की यह पहल भारत को दुनिया की अग्रिम पंक्ति वाले देशों की कतार में ला खड़ा करती है, लेकिन अब उद्देश्य इस तरह की सेवाओं के व्यावसायिक दोहन का भी होना चाहिए. तात्पर्य यह है कि हम अपनी सैन्य और नागरिक जरूरतों को पूरा करने के साथसाथ ऐसी सेवाओं को दुनिया के बाजारों में बेच कर विदेशी मुद्रा कमाने के उपाय भी करें. अगर भारत भी अमेरिका की तरह 24 सैटेलाइट्स का चक्र बना कर पूरी पृथ्वी को अपने जीपीएस के तहत ले आता है, तो जरूरत के वक्त न सिर्फ हम अपने विमानों, जहाजों और लोगों की दुनिया के किसी भी कोने में लोकेशन जान सकते हैं, बल्कि अपने देश से बाहर की जमीनों पर होने वाली सैन्य और नागरिक गतिविधियों से जुड़ी जानकारी अपनी सुविधानुसार किसी दूसरे देश को बेच भी सकते हैं. यही नहीं, जिस तरह अमेरिका ने अपने जीपीएस के तहत पूरी दुनिया पर अंतरिक्ष से अपनी निगरानी कायम कर रखी है, उसी तरह हम भी उस निगरानी का तोड़ अपनी तरफ से निकाल सकते हैं.

उल्लेखनीय है कि टनों वजनी उपग्रहों के पृथ्वी की सतह से 36 हजार किलोमीटर ऊपर अंतरिक्ष में जीएसएलवी द्वारा पहुंचाने की क्षमता हासिल कर के भारत पहले ही अमेरिका, रूस, चीन, जापान और यूरोपीय देशों की श्रेणी में आ चुका है. सिर्फ रौकेट का निर्माण और प्रक्षेपण ही नहीं, बल्कि कई विदेशी एजेंसियां भारतीय सैटेलाइट ट्रांसपौंडर की सेवाएं भी खरीदती हैं यानी उन के ट्रांसपौंडर या तो लीज या किराए पर लेती हैं या फिर उन से ली गई तसवीरों और आंकड़ों को खरीदती हैं. जैसे प्रख्यात विदेशी स्पेस एजैंसी, इंटैलसैट ने जब भारत के रिमोट सैंसिंग सैटेलाइट की सेवाएं ली थीं, जबकि 1999 में 2 अन्य एजेंसियों, स्पौंच औफ फ्रांस व अमेरिका की लैंडसैट ने 7 करोड़ डौलर में इसरो के सहयोगी संगठन, ऐंट्रिक्स कौरपोरेशन से तसवीरें खरीदी थीं, उस वक्त इस किस्म के सौदे से स्पेस मार्केट में एक तरह की सनसनी फैल गई थी. अकेले वर्ष 2000 में ही इसरो के सहयोगी संगठन, ऐंट्रिक्स कौरपोरेशन से ग्लोबल मार्केट ने उस के 5 रिमोट सैंसिंग सैटेलाइट्स से ली गई तसवीरें 70 लाख डौलर में खरीदी थीं.

उपग्रहों के प्रक्षेपण, रिमोट सैंसिंग उपग्रहों से खींची गई तसवीरों की बिक्री और संचार उपग्रहों के ट्रांसपौंडर्स को किराए पर देने से निश्चय ही भारत को काफी विदेशी मुद्रा हासिल हुई है. यही नहीं इनसेट श्रेणी के उपग्रहों और जीएसएलवी के सफल प्रक्षेपण के आधार पर भारत ने साबित किया है कि वह विदेशी स्पेस एजेंसियों के मुकाबले न सिर्फ बेहद कम कीमत में सैटेलाइट लौंच कर सकता है, बल्कि दुर्घटनारहित प्रक्षेपण की गारंटी दूसरों से ज्यादा दे सकता है.

इन बातों ने दुनिया में भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो को एक मुकाम दिया है. इसी तरह यदि हमारा स्वदेशी जीपीएस दुनिया के कई मुल्कों को सस्ती दरों पर ग्लोबल पोजिशनिंग से संबंधित सेवाएं मुहैया कराएगा, तो इस बाजार में भारत की और धाक जमेगी.

भारत अगर दुनिया के उपग्रह बाजार से भारी कमाई करने में समर्थ होगा, तो इस से न सिर्फ हमारी अर्थव्यवस्था में सुधार होगा, बल्कि गरीबों की जिंदगी भी खुशहाल हो सकेगी.

तरह तरह के उपयोग

वैज्ञानिक और व्यावसायिक कार्यों के अलावा निगरानी व ट्रैकिंग जैसे कामों में जीपीएस बड़े कमाल की सुविधा देता है. इस से उन जगहों की जानकारी भी मिल जाती है, जहां से आमतौर पर दूसरे संकेत मिलने मुश्किल होते हैं, जैसे पानी के अंदर, किसी इमारत के भीतर या गुफाओं में. मोटे तौर पर इस का इस्तेमाल नागरिक और सैन्य सेवाओं में होता है. नागरिक सेवाओं के तहत नक्शा बनाने, किसी स्थान के फोटो और अन्य सूचनाएं संप्रेषित करने, भूकंप से जुड़ी गतिविधियों की जानकारी लेने और वाहन संचालन के दौरान रास्तों की सही सूचना भी देने का काम करता है. किसी वाहन, व्यक्ति या पालतू पशु का पता लगाने के लिए भी जीपीएस व्हीकल ट्रैकिंग सिस्टम, पर्सन ट्रैकिंग सिस्टम और पेट ट्रैकिंग सिस्टम काम में लाए जाते हैं.

जहां तक सैन्य उपयोग की बात है, तो सैनिक किसी अनजान जगह अथवा अंधेरे में जीपीएस की मदद से स्थान और वस्तुओं की जानकारी लेते हैं. किसी मार गिराए गए विमान के स्थान का पता भी जीपीएस से उस में लगे यंत्रों की मदद से चल जाता है.

सैन्य टुकडि़यों का संचालन भी जीपीएस से लैस होता है, जिस से वे उड़ते विमानों, ड्रोन के अलावा जमीन पर मौजूद टैंक आदि का पता लगा कर उन्हें अपने निशाने पर ले सकते हैं. लंबी दूरी की मिसाइलें भी जीपीएस से लैस होती हैं, जिस से वे अपने लक्ष्य तक पूरी सटीकता से प्रहार कर पाती हैं

बंद हुई दुनिया की सबसे बड़ी पायरेसी साइट

दुनिया की सबसे बड़ी पायरेसी साइट कही जाने वाली किकऐस टॉरंट्स (Kickass Torrents) को अमेरिकी सरकार ने बंद करवा दिया है. यही नहीं क्रिमिनल चार्ज लगाते हुए वेबसाइट के संस्थापक यूक्रेन के नागरिक को अरेस्ट कर लिया है. इस व्यक्ति पर एक अरब डॉलर की कीमत की अवैध रूप से कॉपी गई फिल्मों, म्यूजिक कैसेट्स और अन्य सामग्री को बांटने का आरोप है. अमेरिका के जस्टिस डिपार्टमेंट के अनुसार यूक्रेन के रहने वाले 30 वर्षीय आरटम वॉलिन के खिलाफ आपराधित शिकायत दर्ज कराई गई थी.

बुधवार को अमेरिकी एजेंसियों ने वॉलिन को पोलैंड से अरेस्ट कर लिया. वॉलिन पर कॉपीराइट कानूनों का उल्लंघन करने, मनी लॉन्ड्रिंग और अन्य आरोपों के तहत केस दर्ज किए गए हैं. वॉलिन पर आरोप है कि वह खुद किकऐस टॉरंट्स, जिसे KAT भी कहते हैं, का मालिक है. यह साइट बीते कुछ सालों में पूरी दुनिया में पायरेटिड कॉन्टेंट का सबसे बड़ा स्रोत बन चुकी थी. साइट और उसके मालिक के खिलाफ दर्ज कराई गई आपराधिक शिकायत में कहा गया है, 'यह साइट अपने यूजर्स को अच्छा माहौल देती है, जिसमें लोग कॉन्टेंट सर्च करते हैं और डाउनलोड कर सकते हैं. यह सीधे तौर पर कॉपीराइट कानूनों का उल्लंघन है.'

अमेरिका के जस्टिस डिपार्टमेंट के बयान के मुताबिक, 'किकऐस टॉरंट्स नाम की यह साइट लोगों को फिल्म, विडियो गेम, टेलिविजन प्रोग्राम्स, म्यूजिक और अन्य इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रसारित सामग्री मुहैया कराती है. यह साइट इंटरनेट पर सबसे ज्यादा विजिट करने वाली कंपनियों में 69वें स्थान पर है.'

असिस्टेंट अटॉर्नी जनरल लेसली कॉल्डवेल ने कहा, 'वॉलिन पर दुनिया की सबसे ज्यादा विजिट होने वाली अवैध फाइल शेयरिंग वेबसाइट चलाने के आरोप में केस दर्ज किया गया है. यह शख्स एक अरब डॉलर से अधिक की कीमत वाली कॉपीराइट सामग्री को वितरित करने का आरोपी है.' कॉल्डवेल के मुताबिक, 'दुनिया भर के कानूनों को चकमा देने के लिए यह शख्स साइट चलाने के लिए कई सर्वर का इस्तेमाल कर रहा था. यह समय-समय पर अपने डोमेन को बदलता रहता था. इस शख्स को पोलैंड से अरेस्ट कर लिया गया है.'

मदारीः नई बोतल में पुराना मसाला

इरफान की बहुचर्चित फिल्म ‘‘मदारी’’ देखते समय हमारे जेहन में बार बार कुछ दिन पूर्व एक खास मुलाकात में सफलतम निर्देशक आनंद एल राय के कहे हुए वाक्य याद आ रहे थे. आनंद एल राय ने कहा था-‘‘मेरा मानना है कि सीरियल, वेब सीरीज, डिजिटल सिनेमा, टेली फिल्म, फीचर फिल्में, यह सब अलग अलग माध्यम हैं. किसी भी कहानी पर टेलीफिल्म या सीरियल या फिल्म नही बन सकती. फिल्मों का कहानी कथन अलग है. वेब सीरीज का कहानी कथन अलग है.’’

पर इस बात को इरफान और उनकी पत्नी सुतपा सिकदर नही समझ पायी. कुछ वर्ष पहले मुंबई में मैट्रो रेलवे के निर्माण के दौरान अंधेरी पूर्व इलाके में मैट्रो का निर्माणाधीन पुल गिर गया था, जिसमें कुछ मौते हुई थी. इसी सिरे को पकड़कर इरफान व उनकी पत्नी सुतपा ने फिल्म ‘मदारी’ बना डाली. मगर वह इस सिरे को पकड़कर एक मनोरंजक कहानी नहीं गढ़ पायी. पूरी फिल्म देखने के बाद अहसास होता है कि यदि इस पर वह एक लघु फिल्म बनाते तो ज्यादा बेहतर होता.

फिल्म की कहानी एक आम इंसान निर्मल कुमार (इरफान) के बेटे की मौत की है, जिसकी पुल के गिरने पर उसके नीचे दबकर मौत हो जाती है. सरकार उन्हे मुआवजा देती है. पर निर्मल कुमार को लगता है कि सरकार ने उनके बेटे की मौत के साथ न्याय नहीं किया. दोषियों को सजा नहीं दी. तब वह देष के गृह मंत्री (तुषार दलवी) के बेटे रोहन को अगवा कर लेता है. अब पूरी सरकारी मशीनरी गृह मंत्री के बेटे का पता लगाने व अगवा करने वाले को पकड़कर सजा देने पर लग जाती है.

पुलिस विभगा के एक उच्च अधिकारी नचिकेत (जिम्मी शेरगिल) को इसकी जिम्मेदारी दी जाती है. पर निर्मल कुमार, रोहन को लेकर एक जगह से दूसरी जगह घूमता रहता है. उसकी मांग है कि उसके बेटे के साथ हुए हादसे की जांच कर दोषियों को सजा दी जाए. अंततः एक मुकाम वह आता है जब निर्मल कुमार अपने मुंबई के घर पर गृह मंत्री सहित सभी सरकारी विभाग के लोगों को जमा करता है. जहां गृहमंत्री कहते हैं-‘‘सरकार भ्रष्ट नहीं है. भ्रष्टाचार की सरकार है. सरकार व विपक्ष दोनो ही इसके भागीदार हैं.’’

देश के भ्रष्टाचार व सिस्टम की कमियों को लेकर तमाम फिल्में पहले भी बन चुकी हैं. इसलिए विषयवस्तु के स्तर पर ‘‘मदारी’’ में कुछ भी नवीनता नही है. प्रस्तुतिकरण का तरीका नया है. पर फिल्म की लंबाई इसकी सबसे बड़ी कमजोर कड़ी है. दूसरी कमजोर कड़ी पटकथा लेखन की है. पटकथा लेखक यह भूल गयी कि यह फिल्म है न कि टीवी सीरियल. सीरियल की ही तरह ‘मदारी’ की कहानी आगे बढ़ती है, सिर्फ कुछ घटनाक्रम घटित होते रहते हैं.

निर्मल कुमार, रोहन के साथ एक जगह से दूसरे जगह यानी कि भारत भ्रमण करते हुए दर्शकों को भारत के कुछ अच्छे लोकेषन की सैर कराता रहता है. पर इसके चलते इंटरवल से पहले फिल्म बहुत ही शुष्क व बोरिंग हो जाती है. इंटरवल के बाद कहानी थोड़ी सी गति पकड़ती है, पर फिर लंबी खिंच जाती है. पूरी फिल्म का सार तो फिल्म क्लायमेक्स ही है. फिल्म में सिस्टम पर चोट करने वाले कुछ संवाद काफी अच्छे बने है. फिल्म के निर्देशक निशिकांत कामत एक बार फिर बुरी तरह से असफल हुए हैं. यदि एक अच्छा निर्देशक होता, तो शायद फिल्म ज्यादा बेहतर बन सकती थी.

फिल्म में बाल कलाकार के अलावा इरफान व जिम्मी शेरगिल ने बेहतरीन अभिनय किया है. कई दृश्यों में इरफान की आंखे खुद ब खुद बहुत कुछ कह जाती हैं. मगर फिल्म में पिता कहीं नजर नही आता. कैमरामैन ने पहाड़ों से लेकर रेगिस्तान तक की लोकषशन को बखूबी अपने कैमरे में कैद किया है.

बिगड़ैल मैचो पर फिदा युवतियां

क्या युवतियों को बिगड़ैल युवक ज्यादा रिझाते हैं? समीक्षकों की मानें तो फिल्म ‘इश्कजादे’ की जबरदस्त सफलता का राज भी यही था. इस फिल्म की नायिका परिणीति चोपड़ा अधीर, बेखौफ और उद्दंड युवक अर्जुन कपूर की जोरजबरदस्ती पर खफा होने के बजाय मरमिटती है. दिलचस्प बात है कि युवतियों पर फिल्म का जादू सिर चढ़ कर बोला और फिल्म ने बेहिसाब बिजनैस किया. दरअसल, इतिहास के हर दौर में युवावर्ग की छवि विद्रोही और क्रांतिकारी रही है. ऐसे में बाजार का सत्यम् शिवम् सुंदरम् युवा ही है, लेकिन युवाओं की शालीनता के बजाय उन का अक्खड़पन ही युवतियां को भाता है. उन की बेफिक्री और बेतकल्लुफी उन्हें उन के करीब ले जाती है.

प्यारमुहब्बत के मामले में युवा इतने औपचारिक हैं कि सीधा सम पर आते हैं, आलाप तक नहीं लेते.

एक जमाने में युवा धर्मेंद्र की फिल्म ‘फूल और पत्थर’ ने रिकौर्डतोड़ प्रदर्शन किया था. उस के फौलादी जिस्म, अक्खड़पन और निर्ममता ने युवतियों को उस का दीवाना बना दिया था. कोटा से इंजीनियरिंग की कोचिंग ले रही विशाखा सब्बरवाल कहती हैं, ‘‘आप ही बताइए, फिल्मों में हीरोइन उस पर रीझती है जो गुंडेबदमाशों से उस की हिफाजत कर सके. सीधासादा, मुश्किलों से मुंह छिपाने वाला युवक भला किस काम का? मेरा लाइफपार्टनर तो ऐसा ही युवक बनेगा जो बेखौफ हो. मेरी तरफ गलत नजरों से देखने वाले को सलमान खान की तरह एक ही घूंसे में धूल चटा दे.’’

फैमिली काउंसलर के तौर पर सक्रिय अर्चना कौशिक का कहना है, ‘‘दरअसल, आज की युवतियां पूरी तरह फिल्मी चकाचौंध से प्रभावित हैं और जिस तरह आजकल यौनशोषण और दुष्कर्म की घटनाओं में इजाफा हो रहा है, उन की कल्पना लाइफपार्टनर के रूप में ‘मैचोमैन’ गढ़ती नजर आती है, जो समय पर विनम्र और सभ्य इस माने में हो कि उन का बौडीगार्ड भी साबित हो सके, सलमान सरीखा.’’ लेकिन क्या अक्खड़ किस्म के युवक युवतियों को भावनात्मक सम्मान दे पाते हैं? अर्चना स्वीकार करती हैं कि शायद नहीं, लेकिन युवतियां ऐसे ही युवकों में ‘सितारा सिंड्रोम’ देखती हैं.

जयपुर के एक निजी कालेज की छात्रा सुविरा कहती है, ‘‘दरअसल, ये लोग अपना कोई छिपाव नहीं करते. आप के सामने कुछ पीछे कुछ? कम से कम ऐसे तो नहीं… फिर भला ऐसे खिलंदरों पर दिल क्यों न आए?’’ कोटा में निजी क्लिनिक चला रहीं मनोचिकित्सक डा. सुशीला बरथूनिया कहती हैं कि कई बार ऐसे मामले मेरे पास आते हैं, जिन में युवतियों के पेरैंट्स चाहते हैं कि मैं उन की लड़की को प्रेमप्यार के मामले में गुमराह होने से बचाऊं और उन की लड़की की ठीक से काउंसलिंग करूं? कामिनी नामक एक युवती का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि एक शादीशुदा युवक से उस का अफेयर हो गया था. युवती उस के दिलफैंक अंदाज पर मर मिटी थी.

मैं ने पूछा, ‘ठीक है युवक मस्तमौला किस्म का है, लेकिन अपनी दिलफैंक आदतों से मजबूर हो कर अगर किसी और पर उस का दिल आ गया तो क्या करोगी?’ युवती युवक की इस कदर दीवानी थी कि मेरा कोई तर्क उसे हजम नहीं हुआ. आखिर वही हुआ जिस का अंदेशा था… यानी 4-6 महीने की वैवाहिक जिंदगी के बाद भंवरा किसी और फूल पर जा बैठा… इश्क के अंधे जनून में युवती उस युवक का मन ही नहीं पढ़ पाई. इस से पहले युवती ने उस युवक से मुझे भी मिलवाया था. बोलचाल से ही वह ‘प्लेबौय’ जैसा लगता था. वह यह नहीं समझ पाई कि इस तरह के लोग वर्तमान में जीने वाले होते हैं. भविष्य से उन का कोई सरोकार नहीं होता, जबकि युवतियां कैसी भी हों? लंबे सफर का रिश्ता चाहती हैं.

डा. बरथूनिया कहती हैं, ‘‘प्यार का जज्बा बेमानी नहीं होता, लेकिन गलत चयन अपनेआप उसे बेमानी कर देता है.’’ कथाकार रचना परांजपे कहती हैं, ‘‘दरअसल, सिनेमाई इश्क से युवतियां बेहद प्रभावित होती हैं. हीरो का खिलंदरपन उन के रोमरोम में बस जाता है, लेकिन पता नहीं क्यों दीवानगी का खुमार उन्हें उन की जिंदगी के काले पन्ने नहीं पढ़ने देता? बौलीवुड की दुनिया में कितने रिश्ते स्थायी मिलते हैं? शायद दोचार. जो आज है, वह कल साथ होगा, कहा नहीं जा सकता. जिस युवक में युवतियों को अपने पसंदीदा हीरो का अक्स नजर आ जाए, समझ लो वह युवती गई काम से.

‘‘एक बार किसी ‘डेन’ में जिस वक्त मैं अपनी एक सहेली के साथ कौफी पी रही थी पीछे एक जोड़े की बातचीत सुनाई दी, युवक कह रहा था, ‘हाय, तुम मनीषा पटेल जैसी लगती हो?’ युवती का जवाब था, ‘और तुम सन्नी देओल?’ मैं जानती हूं वह भावनाओं का एक तूफान था. आज जिसे वह मनीषा बता रहा है, कल किसी और युवती के साथ होगा तो उसे कैटरीना कैफ बताएगा. पता नहीं युवतियां बदरंग आसमान में प्रेम का परवाज भरते हुए पंखों के टूटने से नहीं डरतीं, जबकि मुहब्बत में चोट युवतियां ही खाती हैं. ‘‘आजकल का प्रेम तो वैसे भी सात्विक नहीं रहा. किसी जमाने में प्रेमी एकदूसरे के दीदार को महीनों तरस जाते थे. आज तो पहले सैक्स, फिर कुछ और. इश्क की सताई युवतियां सबकुछ जानती हैं, बावजूद इस के उसी के गले का हार बनने को बेताब रहती हैं, जो पहले ही उन की जिंदगी को ‘हार’ में बदलने के मनसूबे बनाए बैठा होता है.’’

रंगकर्मी चेतना श्रीवास्तव एक घटना का उल्लेख करती हैं, ‘‘हमारे पड़ोस में एक गुजराती परिवार किराए पर रहता था. मकान मालिक भले ही सरल स्वभाव के थे, लेकिन उन का लड़का यशवंत हर माने में अकड़ू और अक्खड़ था और बातबात पर मारपीट करता रहता था. मीता गुजराती परिवार की कालेज गोइंग युवती थी. रास्ते में लंपट और शोहदे किस्म के युवकों ने मीता का कालेज आनाजाना मुश्किल कर रखा था. उन की रोज की फबतियों से बुरी तरह छलनी हुई मीता रोंआसी हो घर लौटती थी. मातापिता को कहने से इसलिए कतराती थी कि कहीं कालेज न छुड़वा दें. ‘‘इत्तफाक से एक दिन शाम को मीता घर लौट रही थी. धुंधलका गहरा गया था और गली में लोगों की आवाजाही कम हो गई थी. उस के पीछे पड़े रहने वाले गुंडों की तो जैसे आज मुंहमांगी मुराद पूरी हो गई थी. उन्होंने मीता को चारों तरफ से घेर लिया गुंडे मीता के साथ छेड़खानी कर पाते तभी उस के मकान मालिक का बेटा यशवंत इत्तफाक से वहां से निकला. उस ने मदद के लिए पुकारती मीता को देखा तो माजरा समझ गया. उस ने लपक कर गुंडों की ताबड़तोड़ धुनाई कर दी. गुंडों को वहां से भागना पड़ा. मीता के लिए तो यशवंत जैसे हीरो ही हो गया.’’ चेतना ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘इस घटना से मीता यशवंत की इतनी दीवानी हुई कि उस से शादी कर बैठी. लेकिन वह बिगडै़ल शहजादा अच्छा पति साबित नहीं हो सका. मीता ने उसे सुधारने की बेहिसाब कोशिश की, लेकिन वह नहीं सुधरा.’’

मनोचिकित्सक डा. एम एल अग्रवाल कहते हैं कि इस तरह की भावुक युवतियां विश्वास में छले जाने से ज्यादा आहत होती हैं, लेकिन उबरने के बाद उन में गहरी परिपक्वता भी आ जाती है. अलबत्ता ऐसा भी होता है कि कभीकभी युवामन में छिपा वात्सल्य भाव इस तरह के दबंगों को सुधार भी देता है, लेकिन ऐसे उदाहरण बहुत कम मिलते हैं. मनोचिकित्सक डा. रतना जैन कहती हैं, ‘‘आजकल की युवतियों को जोखिम ज्यादा लुभाता है, लेकिन इस की कीमत उन्हें तब चुकानी पड़ती है, जब वे जिंदगी की डोर उस से बांध चुकी होती हैं.’’

यशवंत अपने पौरुषीय अहंकार में एक बेहद प्यार करने वाली पत्नी को गंवा बैठा. समाजशास्त्रियों की मानें तो बिगड़ैल युवा होते ही ऐसे हैं, जो खिलौना तोड़ कर ही संतुष्ट होते हैं. इस युवा मस्ती मंत्र को ले कर अनेक फिल्में भी गढ़ी गई हैं. अयान मुखर्जी की रणवीरदीपिका अभिनीत फिल्म ‘ये जवानी है दीवानी’ ने क्या मैसेज दिया, युवा अधीर हैं, गैरजिम्मेदार हैं, बदतमीज हैं, बेबाक हैं और प्यार का मतलब उन के लिए सैक्स है? उन का आहत अहंकार कब फन उठा ले, पता नहीं चलता. फिर भी युवती उस के लिए बेकरार है, लेकिन प्रश्न है कि इन प्रसंगों में पड़ कर बिगड़ैल युवक की परिणिता बनना, उस से ब्याह रचाना, बच्चे पैदा करना और फिर जिंदगी भर की शारीरिक और मानसिक यातना सहना या फिर बदमजा शादी की उतरन को जिंदगी भर ढोना, कहां तक जायज है लंपटता और क्षमाशीलता दोनों बातें वास्तविक जीवन में नहीं चल सकतीं. कुछ युवतियां निर्वाह कर लेंगे, सरीखी भावना भले ही रख लें, किंतु पतिपत्नी का रिश्ता इतना निजी होता है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता को कायम रखते हुए साथ रहना आसान नहीं होता. समाजशास्त्री देवेश जोशी की मानें तो रिश्ते संपूर्ण निवेश से ही मजबूत होते हैं. 

सैलिब्रेशन का सैक्सी अंदाज: नो पैंट डे

अगर आप को किसी पार्टी में जाना हो और पता चले कि वहां थीम ड्रैस टीशर्ट, शर्ट वगैरा के साथ सिर्फ लोअर गारमैंट्स ही पहनने हैं, तो सुन कर आप को अजीब लगेगा. ऐसे में या तो आप पार्टी में जाने का अपना इरादा ही बदल देंगे या फिर जाएंगे तो टीशर्ट के साथ पैंट वगैरा पहन कर. लेकिन जब आप वहां दूसरे लोगों को लोअर गारमैंट्स में देखेंगे तो खुद पर बहुत भन्नाएंगे कि क्यों आप ने शर्म के कारण थीम ड्रैस को फौलो नहीं किया. हो सकता है अगले ही पल आप अपना ट्राउजर उतार कर लोअर गारमैंट में पार्टी की मस्ती का लुत्फ उठाने लगें. यहां सिर्फ एक थीम पार्टी की ही बात नहीं की जा रही है, बल्कि ऐसा ही एक डे दुनिया के अधिकांश देशों में हर वर्ष मनाया जाता है, जिसे ‘नो पैंट डे’ के नाम से जाना जाता है. इस दिन लोग पैंट की जगह लोअर गारमैंट्स में पूरा दिन बिता कर खूब मस्ती करते हैं.

कैसे हुई शुरुआत

एक दिन औस्टिन की टैक्सास यूनिवर्सिटी के कैंपस में बैठेबैठे कालेज स्टूडैंट्स  दिमाग में खयाल आया कि क्यों न सैमेस्टर खत्म होने पर कुछ नया कर के धमाल मचाया जाए, तभी उन के दिमाग में यह मस्त आइडिया आया कि सैमेस्टर के खत्म होने पर सभी एक दिन ‘नो पैंट डे’ मनाएंगे यानी उस दिन कोई भी पैंट नहीं पहनेगा और सिर्फ लोअर गारमैंट में ही काम चलाया जाएगा, जिस से एक दिन हमें अलग ढंग से खुद को प्रदर्शित करने का मौका मिलेगा. शुरुआत में यह केवल एक देश तक ही सीमित रहा लेकिन धीरेधीरे इस मस्ती को देखते हुए, वर्ष 2000 तक दुनिया के अधिकांश देशों में यह डे मनाया जाने लगा. यह दिन मई के प्रथम शुक्रवार को मनाया जाता है.

कैसे मनाते हैं

इस दिन पैंट की छुट्टी होती है और लोग फुल रिलैक्स मूड में व कंफर्टेबल हो कर अपनी चड्डियों में सड़कों पर टहलते हैं. नंगी टांगों पर फ्रैश हवा पड़ने से मन रोमांचित हो उठता है. कोई घूरघूर कर भी नहीं देखता बल्कि खुली सोच के साथ सभी इस दिन को ऐंजौय करते हैं.

सोच नई, मस्ती डबल

नो पैंट डे को देख कर ही दुनियाभर में ‘नो पैंट्स सब वे राइड डे’ भी मनाया जाने लगा. इसे 2002 में पहली बार न्यूयार्क में मनाया गया, जिस में 7 लोगों ने हिस्सा लिया. फिर 2006 में 150 लोगों ने इस में हिस्सा ले कर इस के प्रति अपनी बढ़ती दिलचस्पी दिखाई. आज दुनियाभर में यह मशहूर हो गया है. जनवरी, 2016 में पहली बार मास्को में भी इस इवैंट का आयोजन किया गया. भारत में भी बेंगलुरु में पहली बार 12 जनवरी, 2014 को नो पैंट्स सब वे राइड डे मनाया गया. यह इवैंट सर्दियों में आयोजित किया जाता है इसलिए सभी विंटर कौट्स, टोपियां, स्कार्फ और ग्लव्स आदि पहने होते हैं, सिर्फ मिसिंग होती है तो पैंट.

क्यों लुभाता है यह दिन
फन के साथ स्टाइल का तड़का

जब दिन इतना हौट अंदाज में सैलिब्रेट किया जा रहा है तो फिर आप भी क्यों न इस दिन अपनी मस्त फिगर पर स्टाइलिश लोअर गारमैंट पहन कर सब की नजरों में चढ़ जाएं?

अब आप सोचेंगे कि लोअर गारमैंट्स में कैसा स्टाइल, तो आप को बता दें कि इस में ढेरों स्टाइल्स हैं जैसे आप कलरफुल अंडरवियर पहनने के साथसाथ एंब्रौयडरी, नैट, लैस, स्लोगन लिखे गारमैंट्स तो ट्राई कर ही सकते हैं साथ ही इन के ऊपर ऐक्सैसरीज का स्टाइल कैरी कर के खुद को ग्लैमरस लुक भी दे सकते हैं.

फुल कंफर्ट इन…

कंफर्ट की बात करें तो वह तो सिर्फ हमें अपने बैडरूम में ही मिल सकता है, जिस में जैसे चाहे कपड़े पहनो, कोई रोकनेटोकने वाला नहीं होता, लेकिन अगर वही कंफर्ट हमें बाहर भी मिल जाए तो कोई भी इस आजादी को मिस नहीं करना चाहेगा, क्योंकि लोअर हो या अपर गारमैंट्स में घूमना हमें फुल कंफर्ट जो देता है.

नो वल्गैरिटी, फील जबरदस्त

फन के लिए मनाए जाने वाले इस दिन में वल्गैरिटी न के बराबर होती है, क्योंकि हम इस में खुद को बिलकुल न्यूड नहीं रखते बल्कि टीशर्ट वगैरा के साथ लोअर गारमैंट्स में होते हैं, जिसे अगर देखा जाए तो बिलकुल शौर्ट्स की ही तरह होता है. दोनों के साइज में बहुत कम फर्क होता है. लेकिन कंफर्टेबल इतना कि आप का पूरा दिन कैसे बीत गया पता ही नहीं चलेगा. स्पेस का टैंशन नहीं देशविदेश में जब भी कभी कोई आयोजन या फैस्टिवल सैलिब्रेट होता है जैसे बुल फाइट डे, टमाटर फैस्टिवल डे तो उस के लिए स्पेस की जरूरत होने के साथसाथ सारा अरेंजमैंट करने के लिए भारी पूंजी भी लगानी पड़ती है. लेकिन इस में ऐसा कुछ नहीं है, क्योंकि यह दिन किसी खास जगह पर सैलिबे्रट नहीं किया जाता बल्कि इस में हम खुद को रिलैक्स करने के लिए सिर्फ अपनी पैंट उतारते हैं.

ऐंजौयमैंट की करें पूरी तैयारी

फन में जैंडर नहीं बाधा

युवतियां अकसर ऐसा सोचती हैं कि अगर हम लोअर गारमैंट्स पहनने के इस रूल को फौलो करेंगी तो देखने वाले हमें क्या कहेंगे, कैसी नजरों से देखेंगे. तो आप को बता दें कि ऐसा आप अकेली नहीं बल्कि इस दिन को सैलिबे्रट करने की इच्छा रखने वाली हर युवती करेगी. बस, ध्यान रखें, ऐसे कपड़े पहन कर खुद को सेफ रखें, ज्यादा शोऔफ न करें और न ही किसी को खुद को छूने की आजादी दें.

वैक्सिंग कराना न भूलें

बौडी साफसुथरी लगेगी तो आप का कौन्फिडैंस खुद ब खुद बढ़ जाएगा और आप को लोअर गारमैंट पहनने में भी डबल मजा आएगा. लेकिन युवतियां इस दिन को खुल कर जीने से पहले टांगों की वैक्सिंग कराना न भूलें ताकि खुद को अच्छा लगने के साथसाथ औरों को भी आप को देख कर अच्छा लगे.

सोच गलत न रखें

भले ही आप छोटे कपड़े पहनें या फिर अंडर गारमैंट्स में घूमें, लेकिन इन छोटे कपड़ों के साथ अपनी सोच छोटी न रखें. किसी को भी गंदी नजर से न देखें और न ही इस दौरान जानबूझ कर किसी को टच करने की कोशिश करें बल्कि हैल्दी सोच व हैल्दी ऐन्वायरन्मैंट क्रिऐट कर के इस दिन को जीए

योजना

कैमिस्ट्री लैब में साथ साथ कैमिकल एनालिसिस करते कब सुरेंद्र और सीमा एकदूसरे के दिल का एनालिसिस कर बैठे, पता ही नहीं चला. उन के सारे गुण एकदूसरे से मिलते थे. पूरी तरह ताले और चाबी की तरह जैसे मानो इन्हें एकदूसरे के लिए ही बनाया गया हो. सुरेंद्र लुधियाना के एक बिजनैसमैन का बेटा था और सीमा हिमाचल के पहाड़ी शहर सोलन की रहने वाली थी. सुरेंद्र ने सीमा के बारे में अपने घर पर  सबकुछ बता रखा था और एकाध बार वह सीमा को ले कर अपने घर भी गया था. सुरेंद्र के घर वालों को वह बिंदास पहाड़ी नदी सी ऊर्जावान लड़की काफी पसंद आई थी.

कहते हैं न ‘इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते,’ सो सुरेंद्र और सीमा के संबंधों की खबर सीमा के घर सोलन तक जा पहुंची थी. पहाड़ी शहर के पुराने खयालों के लोग डरते थे. उन के लिए तो लड़की की इज्जत ही सबकुछ थी. अगर लड़की ने बिरादरी से बाहर शादी कर ली तो हम यहां किस मुंह से रह पाएंगे? झूठी इज्जत के मारे सीमा के घर वालों ने उस की पढ़ाई बीच में ही छुड़वा दी, उस से मोबाइल छीन लिया और सुरेंद्र को कभी सीमा से न मिलने की चेतावनी दे दी. आननफानन में सीमा की शादी कसबे के ही एक अन्य युवक से तय कर दी गई जो कसबे में एक छोटी सी किराने की दुकान चलाता था.

पर कहते हैं न कि पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी कभी पहाड़ पर नहीं रुकते. सीमा ने भी किसी तरह एक सहेली के मोबाइल से सुरेंद्र को फोन कर के सारे हालात बता दिए थे. सीमा ने सुरेंद्र से कहा कि वह अब और अधिक बरदाश्त नहीं कर सकती. दोनों कहीं भाग चलते हैं, लेकिन सुरेंद्र ने साफ इनकार कर दिया. उस का कहना था कि वह भाग कर शादी करने के विरुद्ध है. सुरेंद्र को खुद पर बहुत विश्वास था तो सीमा को उस पर अति विश्वास. वह खुद से ज्यादा भरोसा सुरेंद्र पर करती थी. सुरेंद्र ने अपने प्यार को पाने के लिए एक योजना बनाई और सीमा को इस से अवगत करवा दिया. योजना सुन कर उदास रहने वाली सीमा खिल उठी.

सीमा ने घर वालों की इच्छा के अनुसार चंदर से शादी के लिए हामी भर दी थी. उस ने शादी का एक कार्ड सुरेंद्र को भी भेज दिया था. इंतजार का एकएक पल उसे बड़ा लंबा लगता था, आखिर इंतजार की घडि़यां खत्म हुईं और शादी का दिन भी करीब आ पहुंचा. शादी के दिन सुरेंद्र भी अपने दोस्तों के साथ वहां आ पहुंचा था. तय योजना के अनुसार फेरों से ठीक पहले सीमा ने अचानक खड़े हो कर चंदर को एक जोरदार थप्पड़ मारा और चिल्ला कर बोली, ‘‘मुझे नहीं करनी इस दहेज लोभी से शादी जो दहेज में कार मांग रहा है.’’

सीमा की इस हरकत पर वर वधु दोनों तरफ के लोग सन्न रह गए. सीमा के पिता धीरे से बोले, ‘‘यह क्या कह रही हो, कार तो हम खुद ही दे रहे हैं.’’ ‘‘इन बेकारों को कार, फिर कल कुछ और मांगेंगे,’’ सीमा चिल्ला कर बोली. अब तक बरात में खलबली मच चुकी थी. ‘‘कौन करेगा ऐसी बदतमीज युवती से शादी, घर पर बैठेगी कुंआरी,’’ तभी दूल्हे के बाप ने चिल्ला कर कहा और बरात को बैरंग लौट चलने का आदेश दिया. सुरेंद्र तो इसी इंतजार में था, सो उस ने तुरंत प्रस्ताव रखा, ‘‘आप लोग घबराएं नहीं, मैं करूंगा इस बहादुर युवती से शादी, वह भी बिना किसी दहेज के.’’ सीमा को योजना सफल होती दिख रही थी, वह तो इस पल के लिए तैयार ही थी सो उस ने तुरंत हामी भर दी. सीमा के पिता हालात के आगे मजबूर हो चुके थे, मरता क्या न करता, सो शादी के लिए तैयार हो गए. सुरेंद्र की योजना सफल हो गई थी. उसे अपना प्यार मिल गया था. इस योजना की सफलता ने प्रेमियों को मिला दिया था.

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