Download App

रियो ओलंपिक से ‘रूसी टीम’ बाहर

इंटरनैशनल स्पोर्ट्स ट्राइब्यूनल ने प्रशासन संचालित डोपिंग को लेकर आईएएएफ द्वारा रूस की ट्रैक ऐंड फील्ड पर लगाए गए प्रतिबंध के खिलाफ रूस की अपील खारिज कर दी गई. इसलिए अब रूस की ट्रैक और फील्ड टीम रियो ओलिंपिक में भाग नहीं ले सकेगी.

लुसाने स्थित ट्राइब्यूनल ने एक बयान में कहा, 'स्पोर्ट्स ट्राइब्यूनल की पेनल ने आईएएएफ के फैसले को वैध बताया है जिसके तहत आईएएएफ ने जिस राष्ट्रीय महासंघ को निलंबित कर दिया है, उसके खिलाड़ी आईएएएफ के नियमों के तहत हो रही प्रतिस्पर्धाओं में भाग नहीं ले सकते.'

अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक कमिटी ने कहा था कि स्पोर्ट्स ट्राइब्यूनल की व्यवस्था से उसे यह फैसला लेने में मदद मिलेगी कि क्या पूरी रूसी टीम को रियो खेलों से बाहर कर दिया जाए.

‘टिंडर सोशल’ से बनाएं रियल कनेक्शन

डेटिंग ऐप टिंडर ने नया फीचर लॉन्च किया है. 'टिंडर सोशल' नाम का यह फीचर ग्रुप बनाने, लोगों से मिलने, चैट करने और ऐक्टिविटीज प्लान करने की सुविधा देता है. कंपनी का कहना है, 'टिंडर सोशल इस्तेमाल करके रियल वर्ल्ड की ही तरह लोगों से कनेक्शन बनाए जा सकते हैं. यूजर्स अपने दोस्तों के ग्रुप और एक जैसे इंटरेस्ट वाले लोगों से जुड़ सकते हैं.'

यह फीचर टिंडर ऐप के लेटेस्ट वर्जन में नजर आएगा. यह फीचर डिफॉल्ट रूप से ऑफ होगा और इसे मैन्युअली ऑन करना होगा. कंपनी ने इस फीचर को ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट किया था. टिंडर का कहना है कि टिंडर सोशल के यूजर्स ने इसके जरिए कई ऐक्टिविटीज प्लान कीं.

टिंडर सोशल में यूजर्स 1 से 3 दोस्तों का एक ग्रुप बना सकते हैं. मेंबर्स ग्रुप स्टेटस भी अपडेट कर सकते हैं और आपस में बातचीत भी कर सकते हैं. खास बात यह है कि ग्रुप में जो भी बातचीत होती है, अगली दोपहर को वह गायब हो जाती है.

टिंडर ने बताया, 'अगर ग्रुप मेंबर या दोनों ग्रुप किसी अन्य ग्रुप को राइट स्वाइप करते हैं तो मैच हो जाता है. इससे दोनों ग्रुप कंबाइन हो जाते हैं और उनके मेंबर्स एक-दूसरे से चैट कर सकते हैं. जो लोग टिंडर सोशल को छोड़ना चाहते हैं, वे ऐप सेटिंग्स में जाकर ऐसा कर सकते हैं.

एक यूजर एक वक्त पर एक ही ग्रुप का हिस्सा हो सकता है. ग्रुप क्रिएटर को End Group का ऑप्शन मिलेगा, जिससे वह ग्रुप को डिलीट कर पाएगा. अगर किसी का ग्रुप के सभी सदस्य उसे छोड़ देते हैं तो वह एक्सपायर हो जाएगा.

टिंडर सोशल अभी अमेरिका, यूके, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और भारत के लिए ही जारी हुआ है. भविष्य में इसे अन्य देशों में भी लॉन्च किया जा सकता है.

इंदौर के तीन बन्दे बने ‘कंटेन्ट किंग’

अगर हम स्टार्टअप्स की बात करें तो मध्य भारत में स्थित इंदौर सामान्य तौर पर हमारे माइंड में नहीं आता है. इंदौर की पहचान उभरते आईटी उद्यमियों के लिए एक उद्गम स्थल से अधिक अपने इतिहास तथा चंदेरी और माहेश्वरी साड़ी के लिए बनी हुई है.

इंदौर के युवा उद्यमियों ने कॉन्टेंट वायरल करने वाली विटिफीड (Wittyfeed) नामक वेबसाइट बनाई. यह वेबसाइट कई चैनल्स के जरिए कॉन्टेंट वायरल करती है और जिस कॉन्टेंट को जितने व्यू मिलते हैं, उसके हिसाब से ऑथर को पेमेंट किया जाता है. सबसे तेजी से आगे बढ़ रही कॉन्टेन्ट वायरल वेबसाइट विटिफीड के पीछे विनय सिंघल, परवीन सिंघल और शशांक वैष्णव की मेहनत है.

इन तीनों ने प्रमाणित कर दिया कि क्रिएटिविटी और उद्यमशीलता हो तो सफलता तक पहुंचने में किसी तरह की भौगोलिक अथवा आयु आधारित बाधा आड़े नहीं आती है. शशांक ने कहा, 'कई लोगों को लिखने का शौक होता है लेकिन वे इससे रेवेन्यू जनरेट नहीं कर पाते हैं. हमने विटिफीड के जरिए एक प्लैटफॉर्म डिवेलप किया, जिस पर लोग अपना कॉन्टेंट पोस्ट कर पैसा भी कमा सकते हैं.' आपको जानकर हैरानी होगी कि शशांक की उम्र 26, विनय की उम्र 25 और परवीन की उम्र महज 21 साल है.

विटिफीड पर रोजाना 50 से 60 लाख व्यूअर्स आते हैं. आज यह भारत की सबसे बड़ी वायरल कॉन्टेंट देने वाली कंपनी और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी बन गई है. इस वेबसाइट ने पिछले वित्तीय वर्ष में 36 करोड़ का टर्नओवर कर लिया था. शशांक, परवीन और विनय ने चेन्नई की एसआरएम यूनीवर्सिटी से बीटेक की पढ़ाई की है.

पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने एक ऐसा प्लैटफॉर्म बनाया, जिसमें जरूरत पड़ने पर कॉलेज स्टूडेंट्स को बिना इंटरनेट, मोबाइल के सीधे सूचना दी जा सके. उस दौर में वॉट्सऐप शुरू नहीं हुआ था और लोगों के ग्रुप बनाकर मेसेज करने में काफी पैसे लगते थे. शशांक ने जब यह प्लैटफॉर्म बनाया तो उसे कुछ आईआईटी और चेन्नै के कॉलेज ने खरीदा भी था. हालांकि यह प्लेटफॉर्म अब बंद हो गया है. शशांक के मुताबिक इसी आइडिया से तीनों के बीच दोस्ती बढ़ी और आज उन्होंने करोड़ों की कंपनी खड़ी कर दी है.

व्हाट्सएप पर कैसे हाईड करें अपनी पर्सनल चैट

व्हाट्सएप इकलौता ऐसा मैसेजिंग एप है जो पूरे विश्वभर में पसंद किया जाता है. इसे चलाना बेहद आसान है और इसीलिए यह लगभग सभी की पहली पसंद है. व्हाट्सएप के फीचर्स की बात करें तो इस एप में काम के वो सभी फीचर्स हैं जिनकी यूजर्स को जरुरत होती है. आज हम आपको बता रहे हैं कि आप व्हाट्स एप में कैसे अपनी चैट को हाईड कर सकते हैं. ऐसे में यदि कोई आपका फोन लेकर व्हाट्सएप चेक करने की कोशिश करता भी है तो उसे आपकी पर्सनल चैट (जो आप हाईड करेंगे) नहीं दिखेगी.

आईए जानते हैं कि कैसे व्हाट्सएप पर चैट हाईड कर सकते हैं और फिर कैसे उसे रिस्टोर किया जाता है.

– व्हाट्सएप की चैट को हाईड करने यानी छुपाने के लिए आपको सबसे पहले व्हाट्सएप में जाना होगा.

– व्हाट्सएप के बाद आपको चैट्स पर जाना है(जहाँ पर आपकी सभी चैट होंगी).

– चैट्स में जाकर आपको ऊपर राईट कॉर्नर पर दी ऑप्शन पर क्लिक करना. इसके बाद आपको सेटिंग में जाना है.

– सेटिंग्स में जाकर आपको चैट पर जाना होगा.

– चैट में जाकर आपको कई विकल्प मिलेंगे जिनमें से आपको चैट हिस्ट्री का विकल्प मिलेगा उस पर क्लिक करें.

– यहाँ जाकर आपको आर्काइव ऑल चैट्स का विकल्प मिलेगा जिस पर क्लिक करते ही आपकी सभी चैट आर्काइव में चली जाएगी.

– यदि आपको कोई एक चैट को हाईड करना है तो आप उस चैट पर क्लिक करें.     क्लिक करने के बाद ऊपर एक आर्काइव ऑप्शन दिखाई देगा उस पर क्लिक करें.

– आर्काइव की हुई चैट को देखने के लिए आप एक बार फिर चैट्स पर जाएं. वहां आपको सबसे अंत में आर्काइव चैट फोल्डर दिखेगा. यहाँ आप अपनी आर्काइव चैट देख सकते हैं.

– चैट को आर्काइव से वापस रिस्टोर करने के लिए आपको आर्काइव फोल्डर में जाकर चैट पर क्लिक करना है. वहां आपको रिस्टोर का ये आइकॉन दिखेगा, इस पर क्लिक करते ही आपको चैट वापस आ जाएगी.

तो ये हैं क्रिकेट विश्व कप 2019 के मैनेजिंग डायरेक्टर

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) और इंग्लैंड एवं वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ईसीबी) ने स्टीव एलवर्थी को आईसीसी क्रिकेट विश्व कप 2019 का मैनेजिंग डायरेक्टर नियुक्त करने की संयुक्त रूप से घोषणा की. आईसीसी क्रिकेट विश्व कप 2019 इंग्लैंड और वेल्स में खेला जाएगा.

एलवर्थी इंग्लैंड और वेल्स में होने वाली आईसीसी चैम्पियन्स ट्राफी 2017 और आईसीसी महिला विश्व कप 2017 का काम भी देखेंगे.

एलवर्थी इससे पहले आईसीसी की तीन विभिन्न वैश्विक प्रतियोगिताओं के टूर्नामेंट निदेशक रह चुके हैं जिसमें 2013 में हुई आईसीसी चैम्पियन्स ट्रॉफी और 2009 में हुए आईसीसी विश्व टी20 टूर्नामेंट भी शामिल है.

इन दोनों टूर्नामेंटों का आयोजन इंग्लैंड और वेल्स में किया गया था. इसके अलावा वह 2007 में दक्षिण अफ्रीका में हुए पहले आईसीसी विश्व टी20 टूर्नामेंट के भी टूर्नामेंट निदेशक थे.

दक्षिण अफ्रीका के पूर्व तेज गेंदबाज एलवर्थी ने चार टेस्ट और 39 एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच खेले और राष्ट्रमंडल खेल 1998 और आईसीसी क्रिकेट विश्व कप 1999 में भी हिस्सा लिया. वह ईसीबी और क्रिकेट दक्षिण अफ्रीका में मार्केटिंग और कम्यूनिकेशन में भी सीनियर प्रबंधन पद पर रहे.

पुरुषों की गालियों में महिलाओं का अपमान

भाजपा नेता दयाशंकर सिंह द्वारा मायावती के खिलाफ कहे अपशब्दों का बदला बसपा के लोगों ने दयाशंकर के घर की महिलाओं को गाली देकर लिया. कबिलाई समाज में ऐसा होता रहा है. कई बार महिलाओं के साथ र्दुव्यवहार का बदला महिलाओं के साथ र्दुव्यवहार करके लेते देखा जाता रहा है. रामायण से लेकर महाभारत तक में ऐसे तमाम उदाहरण मिलते हैं.

रावण ने बहन सूपर्णखां के अपमान का बदला लेने के लिये सीता का अपहरण किया. बसपा यानि बहुजन समाज पार्टी तो हमेशा मनुवाद का विरोध करती रही है. रामायण और महाभारत की कहानियों से उसका कोई लेना देना नहीं है. इसके बाद भी बसपा ने कबिलाई संस्कृति पर चलते हुये अपनी नेता मायावती के अपमान का बदला लेने के लिये जिस तरह से दयाशंकर के घर की बहन बेटियों का खुलेआम मंच से गाली दी, वह कुत्सित मानसिकता की निशानी है.

शिक्षा और सभ्य समाज भी पुरुषवादी कुत्सित मानसिकता को दूर नहीं कर पाई है. बसपा छ साल पहले भी इस तरह की मानसिकता का परिचय दे चुकी है. उस समय एक अखबार के मालिक को गालियां देते उससे अपने घर की मां बहनों को पेश करने का नारा लगाया गया था. दो पुरुषों की लड़ाई में महिला को गाली क्यों दी जाती है? यह समझ में आने वाली बात नहीं है. बसपा ने जो किया यह पुरुषवादी कुत्सित मानसिकता की निशानी है. जिसमें दो पुरुषों के बीच लड़ाई होने पर उसके घर की महिला को ही गाली दी जाती है. यह चलन गांव, कबीले और अनपढ़ लोगो का माना जाता था. जहां बात बात पर औरतों के नाम वाली गाली देने का रिवाज था. कई बार तो शादी विवाह में गाये जाने वाले लोकसंगीत में भी इस तरह की गालियों का प्रयोग होता था. सभ्य और शिक्षित समाज से इस तरह की उम्मीद नहीं की जाती है.

बावजूद इसके औरतों को गालियां देने का सिलसिला जारी है. केवल राजनीतिक दलों की ही बात नहीं है. आम दिनों में समाज का बड़ा तबका आपस में ऐसी गालियों का आदान प्रदान करता है. हम बसपा के लोगों की आलोचना कर रहे हैं. यह जरूरी भी है. इससे भी अधिक जरूरी है कि हम अपने जीवन में यह सकंल्प ले कि पुरुषों की लड़ाई में हम औरतों को गाली नहीं देंगे. बसपा नेताओं के खिलाफ दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह भी मुकदमा लिखायेंगी. कानून की नजर में गाली गलत है. वह किसी के खिलाफ भी कयों न दी गई हो? समझने वाली बात यह है कि ऐसे मुकदमों में जल्दी फैसला नहीं आता, जिससे दोषी को सजा नहीं मिलती.

बसपा नेता मायावती कहती हैं ‘दलित समाज के लोग मुझे देवी मानते हैं. अगर कोई उनकी देवी को गलत बोलेगा, तो वो विरोध जरूर करेगे.’ बसपा के कार्यकर्ता बहुत ही अनुशासित तरीके से अपना विरोध कर रहे थे. इसके बाद भी जिस तरह से वह गालियों का प्रयोग कर रहे थे, उससे साफ लगता है कि बसपा का नेतृत्व इस बात से सहमत था. बसपा के प्रदर्शन में पार्टी के सभी बड़ नेता मंच पर मौजूद थे. ऐसे में इस तरह की गालियां किसी सभ्य समाज की निशानी नहीं कही जा सकती. हर दल के नेता और कार्यकता ही नहीं सभी को यह शपथ लेनी चाहिये कि वह औरतों को गाली देकर जलील करने का काम नहीं करेगा.                    

फॉर्च्यून 500 ने जारी की नई सूची

रेवेन्यू के लिहाज से दुनिया की 500 सबसे बड़ी कंपनियों की फॉर्च्यून की सूची में सात भारतीय कंपनियों ने जगह बनाई है. रिटेल बिजनेस की दिग्गज कंपनी वॉलमार्ट इस लिस्ट में पहले पायदान पर है.

भारतीय कंपनियों में इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन सबसे आगे तो रही, लेकिन इसका स्थान 161वां है. 2016 की सूची में खास बात यह है कि नवरत्न कंपनी ओएनजीसी इससे बाहर हो गई है. जबकि निजी क्षेत्र की रत्न एवं आभूषण निर्यात करने वाली कंपनी राजेश एक्सपोर्ट्स ने पहली बार सूची में प्रवेश किया है. उसे 423वां स्थान मिला.

सात भारतीय कंपनियों में चार सार्वजनिक क्षेत्र की हैं. निजी सेक्टर की कंपनियों में रिलायंस इंडस्ट्रीज सबसे आगे है. इसके बाद टाटा मोटर्स और राजेश एक्सपोर्ट्स का नंबर है. सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में इंडियन ऑयल के बाद भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) है. फिर भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम का नंबर है.

इंडियन ऑयल 5470 करोड़ डॉलर (लगभग 3,66,490 करोड़ रुपये) के रेवेन्यू के साथ 161वें नंबर पर है. बीते साल यह सूची में 119वें स्थान पर थी. रिलायंस इंडस्ट्रीज पिछले साल 158वें से खिसककर 215वें पायदान पर पहुंच गई है.

इसी प्रकार भारत पेट्रोलियम 280वें से 358वें नंबर पर आ गई है. हिंदुस्तान पेट्रोलियम को इस साल 367वां स्थान मिला है. जबकि पिछले साल वह 327वें नंबर पर थी.

फिलहाल टाटा मोटर्स और एसबीआई की रैंकिंग में सुधार हुआ है. टाटा मोटर्स 226वें पायदान पर पहुंच गई है. पिछले साल यह कंपनी 254वें स्थान पर थी. इसी प्रकार एसबीआइ 260वें नंबर से छलांग लगाकर 232वें पर पहुंच गया है.

टैक्स डिफॉल्टर्स के पैन कार्ड होंगे ब्लॉक

अगर आप पर इनकम टैक्स बकाया है या इनकम टैक्स विभाग से टैक्स से संबंधित कोई नोटिस आपको मिला है तो इसका जबाव जल्द दीजिए और मामले का निपटारा तुरंत करने का प्रयास करें. अगर इनकम टैक्स विभाग ने आपको टैक्स डिफॉल्टर की लिस्ट में शामिल कर लिया तो आपका पैन कार्ड ब्लॉक कर दिया जाएगा और बैंक से भी आपको लोन नहीं मिलेगा. इसके अलावा टैक्स डिफॉल्टर से प्रॉपर्टी के रजिस्ट्रेशन का अधिकार भी छीन लिया जाएगा. यानी टैक्स डिफॉल्टर्स प्रॉपर्टी के रजिस्ट्रेशन भी नहीं करा सकेंगे.

एक आखिरी मौका

सूत्रों के मुताबिक, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने टैक्स चोरी रोकने के बारे में कई प्रस्ताव वित्त मंत्रालय को भेजे थे, जिनको हरी झंडी दे दी गई है. इसके बाद इनकम टैक्स विभाग ने ऐसे लोगों की सूची तैयार कर ली है, जो बार-बार नोटिस भेजने के बाद भी टैक्स अदा नहीं कर रहे हैं और साथ ही जिनके खिलाफ टैक्स चोरी के मामले भी काफी समय से लंबित पड़े हुए हैं. अब इन लोगों को एक आखिरी नोटिस भेजा रहा है. अगर इन लोगों ने इस नोटिस का भी जवाब नहीं दिया तो इनको टैक्स डिफॉल्टर्स की लिस्ट में डालकर इनके पैन नंबर को ब्लॉक कर दिया जाएगा. ऐसे लोगों की सूची सारे बैंकों को भेजी जाएगी ताकि किसी भी बैंक से ये लोग किसी प्रकार का लोन न ले सकें.

और भी कड़े कदम

विभाग के अधिकारी के मुताबिक, ब्लॉक किए गए पैन कार्ड का नंबर, रजिस्ट्रार ऑफ प्रॉपर्टीज को सर्कुलेट कर यह अनुरोध किया जाएगा कि इन लोगों को अचल संपत्ति के रजिस्ट्रेशन की अनुमति न दी जाए. इन लोगों से कहा जाए कि पहले वे टैक्स संबंधी मामले का निपटारा करके आएं, तभी उनसे बात की जाएगी. वरना उनको प्रापर्टी के रजिस्ट्रेशन की अनुमति नहीं दी जाएगी.

टैक्स पेयर्स का दायरा बढ़ाने पर जोर

इनकम टैक्स विभाग ने करीब एक करोड़ ऐसे लोगों की लिस्ट भी तैयार की है, जिनकी आमदनी इनकम टैक्स के दायरे में आती है. इनमें से कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने कुछ सालों तक इनकम टैक्स रिटर्न भरा, मगर अब नहीं भर रहे हैं. इन सब लोगों को भी नोटिस भेजा जा रहा है. अगर इन लोगों ने नोटिस का जवाब नहीं दिया तो इनको टैक्स डिफॉल्टर्स की लिस्ट में डाला जाएगा.

शिक्षा के नाम पर अरबों की बरबादी

मैडिकल काउंसिल औफ इंडिया की सलाह पर सरकार एमबीबीएस और एमडी की प्रवेश परीक्षाओं के लिए सरकारी व निजी सभी कालेजों के लिए एक ही परीक्षा का आयोजन करने पर राजी हो गई है ताकि छात्रों को मल्टीपल ऐग्जाम न देने पड़ें. मैडिकल काउंसिल के अनुसार लगभग 90 परीक्षाएं आजकल हो रही हैं और कई छात्र प्रवेश फीस तो कई प्रवेश परीक्षाओं की भर देते हैं पर तारीख एक होने के कारण उन्हें कई परीक्षाओं को छोड़ना पड़ता है.

इन परीक्षाओं की फीस, तैयारी, कोचिंग, आनेजाने पर होने वाला खर्च बहुत अधिक है और यदि कोई रिसर्च एजेंसी आंके तो शायद यह कई लाख करोड़ रुपए का निकले, जिस में वह हानि शामिल होगी जो छात्रों को परीक्षा की तैयारी करते हुए कमाई न कर पाने के कारण होती है. लाखों मातापिता अपनी गाढ़ी कमाई के लाखों रुपए बच्चों को एक अदद अच्छे मैडिकल कालेज में प्रवेश दिलाने के लिए खर्च कर देते हैं.

लेकिन यह हल असल में हल नहीं है, हल तो तब होगा जब देशभर में 12वीं की परीक्षा के साथ ही इंजीनियरिंग, मैडिकल, फाइन आर्ट्स, बीबीए, पत्रकारिता, सेना, पुलिस, सिविल सर्विसेस की परीक्षाएं ले ली जाएं. इन सब की प्रवेश परीक्षाओं या नौकरियों की परीक्षाओं में बहुत से सवाल एक जैसे होते हैं. 12वीं कक्षा की परीक्षाओं में कई तरह की विविधताएं जोड़ी जा सकती हैं. 5 की जगह 8-9 पेपर देने तक की छूट हो सकती है जो विषय विशेष के लिए हो सकते हैं. जिन नौकरियों में शिक्षा का स्तर 12वीं है, वहां फिर से परीक्षा लेना भी व्यर्थ है.

शिक्षा के नाम पर देश का अरबों रुपया बरबाद किया जा रहा है. हमारी निरंतर बढ़ती गरीबी का एक कारण यह भी है कि हमारे घरों की कमाई का एक बड़ा हिस्सा निरर्थक कामों में लग रहा है. शायद धर्म से ज्यादा पैसा शिक्षा पर बरबाद हो रहा है. अमीरी पैसा बचाने से आएगी, मंचों पर भाषणों से नहीं, छाती ठोंकने से नहीं. देश को पूंजी भी बचानी चाहिए और लोगों के समय को भी बचाना चाहिए.

गनीमत है कि अति मेधावी छात्रों से मैडिकल की एक परीक्षा ले कर कुछ राहत तो दी जाएगी पर यह आधाअधूरा हल है. अभी बहुत करना बाकी है पर सरकारों के बस में कुछ है, ऐसा लगता नहीं.

 

बाजी मारती लड़कियां, पिछड़ते लड़के

रिजल्ट चाहे हाईस्कूल का आए या इंटर का या फिर आईएएस जैसे प्रतिष्ठित इम्तिहान का, अकसर पढ़ने को मिलता है कि किशोरियों ने फिर बाजी मारी या लाड़लियां अव्वल रहीं. मोटेमोटे अक्षरों वाले इन शीर्षकों में समाज के एक सुखद बदलाव का अतीत और भविष्य की तसवीर भी छिपी है कि कैसे किशोरियां इस मुकाम तक पहुंचीं और वे कौन सी वजह हैं जिन के चलते वे किशोरों को हर स्कूली और प्रतियोगी परीक्षा में पछाड़ रही हैं. जान कर हैरानी होती है कि लगभग 30-40 साल पहले तक किशोरियां प्रतियोगी परीक्षाएं तो दूर स्कूलकालेज भी न के बराबर ही जाया करती थीं. किशोरों के मुकाबले स्कूलकालेजों में उन की संख्या 10त्न भी नहीं थी. पर पढ़ने और कैरियर बनाने का मौका मिलने पर उन्होंने न केवल खुद का लोहा मनवाया बल्कि साबित कर दिया कि वे लड़कों से बढ़ कर हैं.

पढ़नेलिखने और कैरियर बनाने का मौका किशोरियों को यों ही नहीं मिल गया, बल्कि इस के पीछे कई पारिवारिक और सामाजिक कारण हैं. जैसेजैसे लोग छोटे परिवार का महत्त्व समझते गए तो परिवार सीमित होने लगे. इस से पहले जब एक मातापिता की अधिक संतानें पैदा होती थीं तो किशोरियों को ज्यादा नहीं पढ़ाया जाता था. वे घर का कामकाज करती थीं और फिर शादी के बाद दूसरे भरेपूरे घर में जा कर अपनी गृहस्थी की जिम्मेदारी निभाती थीं. छोटे परिवारों के चलन में आते ही किशोरियों की पढ़ाई पर  भी खास ध्यान दिया जाने लगा, क्योंकि अभिभावक उन्हें ले कर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते थे. नतीजतन, किशोरियां आत्मनिर्भर होने लगीं और इतनी तेजी से नौकरियों में आईं कि देखते ही देखते हर जगह उन का वर्चस्व दिखने लगा.

पहले कुछ बड़े और शिक्षित परिवारों में ही किशोरियों को पढ़ाई की छूट थी जो अब बढ़ती जागरूकता के चलते सभी वर्गों की किशोरियों को मिल रही है और अच्छी बात यह है कि शिक्षा और कैरियर में वे खुद को साबित भी कर रही हैं, इसलिए ऐसे शीर्षक पढ़ कर हैरानी होना स्वाभाविक बात है कि मजदूर की बेटी बनी आईएएस या फिर गरीब पिता की लड़की ने 10वीं या 12वीं में टौप किया. किशोरियां क्यों किशोरों से अव्वल साबित हो रही हैं इस के पीछे कई अहम वजह हैं जिन में से पहली यह है कि वे पढ़ाईलिखाई और प्रतियोगी परीक्षा में मिले मौके का पूरा फायदा उठाती हैं. दूसरी वजह भी बड़ी दिलचस्प और सबक सिखाने वाली है जो बताती है कि कैसे आप बाजी मार सकते हैं. किशोरियां किशोरों के मुकाबले पूरी ईमानदारी और लगन से पढ़ाई करती हैं, वे वक्त की बरबादी कम करती हैं. वे दोस्तों के संग घूमनेफिरने, मौस्ती करने और अन्य व्यसनों में नहीं पड़तीं, जो पढ़ाई पर बुरा प्रभाव डालते हैं.

अभी भी किशोरियां रसोई में दखल रखती हैं हालांकि अब यह उन की मजबूरी नहीं रही है, लेकिन एक शौक तो है ही. रसोई के काम करते वे अच्छी प्रबंधक हो जाती हैं. टाइम मैनेजमैंट पर इन दिनों खासा जोर दिया जा रहा है, किशोरियां इस में माहिर होती हैं. मसलन, दैनिक क्रियाओं से ले कर वक्त पर सोने तक का वे खयाल रखती हैं, जिस से पढ़ाई के लिए उन्हें ज्यादा वक्त मिलता है या वे पढ़ाई के लिए ज्यादा वक्त निकाल लेती हैं. किशोरियां मिडिल कक्षाओं से ही कैरियर का महत्त्व समझने लगती हैं, कम उम्र में ही उन्हें यह वास्तविकता समझ आने लगती है कि समाज में स्वाभिमान और सम्मानजनक तरीके से जीने के लिए जरूरी है कि आत्मनिर्भर बना जाए, जो शिक्षा और कैरियर में आगे रह कर ही संभव है. यह भले ही सामाजिक व आर्थिक असुरक्षा के चलते हो, लेकिन बात उन के लिहाज से उन के हक की ही है, जबकि सभी लड़के शिक्षा और नौकरी को लड़कियों जितनी गंभीरता से नहीं लेते.

किशोरियों में अब जागरूकता आने लगी है कि अगर अपनी मरजी से जीना है और पढ़ाई व कैरियर के बाद मनपसंद जीवनसाथी चाहिए तो अव्वल आना जरूरी है, अभिभावक उन पर विश्वास करेंगे और उन के नजरिए का सम्मान कर उन्हें अपने फैसले लेने का हक देंगे. भोपाल की 20 वर्षीय सोहनी बताती है कि वह जब महज 8 साल की थी तब उस के पिता का देहांत हो गया था. सहानुभूति सभी ने जताई. कुछ लोगों ने मदद भी की पर उसे यह समझ आ गया था कि जब वह पढ़ाई दिल से करेगी तभी मुकाम बना पाएगी. सोहनी बताती है कि हालांकि यह तो एक हादसे के बाद की मानसिकता थी पर हर लड़की के मन में कहीं न कहीं यह बात रहती है कि उसे किसी का मुहताज नहीं होना है, इसलिए पढ़ाई के प्रति वे गंभीर रहती हैं. बात बहुत सीधी और स्पष्ट है कि किशोरियां किशोरों की अपेक्षा हालात के प्रति ज्यादा सजग रहती हैं और उन्हें मालूम है कि शिक्षा ही एक ऐसा हथियार है जो उन्हें विपरीत परिस्थितियों में भी सहारा देगा. इसलिए वे जीजान से पढ़ाई करती हैं.

एक अच्छी बात यह है कि अब किशोरियों में प्रतिस्पर्द्धा की भावना तेजी से आ रही है. वे हर स्तर पर खुद को किशोरों से श्रेष्ठ साबित करना चाहती हैं. पढ़ाई और कैरियर में उन का कड़ा मुकाबला लड़कों से ही है जिस में वे पिछड़ना नहीं चाहतीं, इसलिए ज्यादा अव्वल आती हैं. मैरिट को भी वे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लेती हैं तो बात कतई हर्ज की नहीं. किशोरियां पैसों का भी महत्त्व समझती हैं कि कितनी भारीभरकम फीस के अलावा अभिभावक पढा़ई के दूसरे खर्च उठाते हैं. यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अब खुद अभिभावक भी किशोरियों की पढ़ाई पर किशोरों की तरह बराबरी का ध्यान देने लगे हैं. वे समझने लगे हैं कि शिक्षित नौकरीशुदा और स्वाभिमानी लड़की ही सुरक्षित और सुखी रह सकती है, इसलिए वे हर साधन और सहूलियत उन्हें उपलब्ध कराते हैं जो पढ़ाई में सहायक है.

क्लास में किशोरियां हुड़दंग या मस्ती नहीं करतीं बल्कि उन का सारा ध्यान ब्लैकबोर्ड और लैक्चर पर रहता है. भोपाल के एक नामी प्राइवेट स्कूल की शिक्षिका गरिमा जैन बताती हैं कि किशोरों के मुकाबले किशोरियां होमवर्क करने के मामले में भी ज्यादा सजग रहती हैं, इसलिए टीचर्स भी उन पर ज्यादा ध्यान देते हैं. इसे शिक्षा का व्यावसायिक महत्त्व ही कहा जाएगा कि पढ़तेपढ़ते ही किशोरियों को यह समझ आ जाता है कि सर्वोत्तम को ही जीने का अधिकार है, इसलिए वे एक नन्हे पेड़ से वृक्ष बनने में अपनी पूरी ताकत झोंक देती हैं. जब लड़के आउटडोर गेम्स खासतौर से क्रिकेटफुटबौल आदि खेलने और देखने में ही घंटों अपना समय बरबाद कर रहे होते हैं तब किशोरियों का दिमाग किताबकौपियों में गुम रहता है.

यही वे वजह हैं जो किशोरियों को अव्वल बना रही हैं और यह आंकड़ा अभी और बढ़ेगा, यह भी तय दिख रहा है, क्योंकि अब गांवदेहातों की किशोरियां भी शिक्षा के मैदान में कमर कस कर कूद चुकी हैं और मैरिट में भी दिखने लगी हैं. तेजी से स्कूल जाती किशोरियों का सपना अच्छी नौकरी के अलावा वैज्ञानिक, डाक्टर और खिलाड़ी बनना भी है. इस के लिए उन में जिद और जनून दोनों हैं तो अब बारी किशोरों की है कि वे किशोरियों से मुकाबला कर अव्वल आ कर दिखाए.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें