क्या युवतियों को बिगड़ैल युवक ज्यादा रिझाते हैं? समीक्षकों की मानें तो फिल्म ‘इश्कजादे’ की जबरदस्त सफलता का राज भी यही था. इस फिल्म की नायिका परिणीति चोपड़ा अधीर, बेखौफ और उद्दंड युवक अर्जुन कपूर की जोरजबरदस्ती पर खफा होने के बजाय मरमिटती है. दिलचस्प बात है कि युवतियों पर फिल्म का जादू सिर चढ़ कर बोला और फिल्म ने बेहिसाब बिजनैस किया. दरअसल, इतिहास के हर दौर में युवावर्ग की छवि विद्रोही और क्रांतिकारी रही है. ऐसे में बाजार का सत्यम् शिवम् सुंदरम् युवा ही है, लेकिन युवाओं की शालीनता के बजाय उन का अक्खड़पन ही युवतियां को भाता है. उन की बेफिक्री और बेतकल्लुफी उन्हें उन के करीब ले जाती है.

प्यारमुहब्बत के मामले में युवा इतने औपचारिक हैं कि सीधा सम पर आते हैं, आलाप तक नहीं लेते.

एक जमाने में युवा धर्मेंद्र की फिल्म ‘फूल और पत्थर’ ने रिकौर्डतोड़ प्रदर्शन किया था. उस के फौलादी जिस्म, अक्खड़पन और निर्ममता ने युवतियों को उस का दीवाना बना दिया था. कोटा से इंजीनियरिंग की कोचिंग ले रही विशाखा सब्बरवाल कहती हैं, ‘‘आप ही बताइए, फिल्मों में हीरोइन उस पर रीझती है जो गुंडेबदमाशों से उस की हिफाजत कर सके. सीधासादा, मुश्किलों से मुंह छिपाने वाला युवक भला किस काम का? मेरा लाइफपार्टनर तो ऐसा ही युवक बनेगा जो बेखौफ हो. मेरी तरफ गलत नजरों से देखने वाले को सलमान खान की तरह एक ही घूंसे में धूल चटा दे.’’

फैमिली काउंसलर के तौर पर सक्रिय अर्चना कौशिक का कहना है, ‘‘दरअसल, आज की युवतियां पूरी तरह फिल्मी चकाचौंध से प्रभावित हैं और जिस तरह आजकल यौनशोषण और दुष्कर्म की घटनाओं में इजाफा हो रहा है, उन की कल्पना लाइफपार्टनर के रूप में ‘मैचोमैन’ गढ़ती नजर आती है, जो समय पर विनम्र और सभ्य इस माने में हो कि उन का बौडीगार्ड भी साबित हो सके, सलमान सरीखा.’’ लेकिन क्या अक्खड़ किस्म के युवक युवतियों को भावनात्मक सम्मान दे पाते हैं? अर्चना स्वीकार करती हैं कि शायद नहीं, लेकिन युवतियां ऐसे ही युवकों में ‘सितारा सिंड्रोम’ देखती हैं.

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