story in hindi
story in hindi
आज बहुत सुबह पौ फटने के पहले ही नींद खुल गई थी रमण की, फिर नींद क्या आती, वह ही आ गई थी. उस की सांसों की गरमाहट बिलकुल समीप महसूस होने लगी और खुशबू से रमण का तनबदन तरबतर होने लगा. उस का पास आना और हौले से मुसकरा जाना होंठ को तिरछा करते हुए, पलकों को झपकाना उस के मनमहल में सैकड़ों छोटीछोटी घंटियां टुनटुना गया. वह हाथ बढ़ाता और वह हौले से बाल झटक देती, गीले बालों से मोती बिखर गए उस के चेहरे पर.
“अरे, आज इतनी सुबहसुबह तुम ने नहा भी लिया…” कहते हुए रमण ने अपने चेहरे पर पड़ी उस की जुल्फों से झरती मोतियों को हथेलियों में समेटने की कोशिश करने लगा, तो अहसास हुआ कि ये तो उस के ही नयनों से बहते अश्क हैं, जो चेहरा भिगो रहे हैं और वो… वो… वो तो कहीं नहीं हैं.
उस का सपना टूट जाता है और उठ कर बिस्तर पर बैठ जाता है, खिड़की के परदे सरका कर वह बाहर झांकता है, सचमुच अंधेरा है पूरब में. अभी पौ भी नहीं फटी है. सब सच है, बस उस का होना ही नहीं सच है…
‘उठ जाऊं या फिर से सोने की कोशिश करूं, क्या फर्क पड़ता है,’ रमण ने सोचा.
रात जब बिस्तर पर आया तो देर तक रम्या की यादों के साथ ही रहा. उस वक्त उस की कमी दिल में हलचल मचा पलकों को झपकाने तक में बाधक हो रही थी. देर तक उस के होने के एहसास के साथ वह आंखें भींचे पड़ा रहा था. वह उस के पहलू में करवटें बदल रही थी, कभी छन्न से चूड़ियां बजतीं तो कभी उस की पायल की रुनझुन बेचैन करने लगती. कभी रम्या की रेशमी पल्लू उस को छूती सरसराती हुई सिमट जाती.
कभी वह पास आती, कानों में कुछ फुसफुसाती हुई कहती, रमण दम साधे रहता. उसे मालूम था कि आंखें खोलीं या जबान, तो वह फिर गायब हो जाएगी. रम्या के बगल में बस होने के एहसास से वह आनंदित होता, रोमांचित होता रहता. पर उस के होने का एहसास भी नींद नहीं आने देता. समीप और न होने की सचाई भी बिलकुल यही काम करती. नींद न आनी होती है न, वह आती है चाहे बहाना कुछ भी हो.
अगर रम्या की मौजूदगी का भ्रम न हो, रात की नीरवता में घड़ी की सुइयां भी अपनी टिकटिक से मनहूसियत घोलने लगती हैं. बाहर चली हलकी सी हवा भी शोर मचा नींद भंग करने की दोषी हो जाती है. रम्या के होने से उसे घड़ीघड़ी प्यास या टायलेट जाने की भी जरूरत नहीं होती है, वरना ये दोनों क्रियाएं रातभर उस से उठकबैठक करवा दें.
एक सुकून भरा पल होता है, जब वह अपनी दिवंगत पत्नी को यथार्थ में महसूस करता है. जानतेबूझते हुए भी रमण उस स्थिति में जाने को व्यग्र रहता है, जब उस की रम्या उस के पास आ बैठती है. दिल खाली कर लेता है वह उस के संग, जो बातें दिनभर कुलबुलातीं रहती हैं जी में, कोई तो सुनने वाला होना चाहिए. नातेरिश्तेदार या बच्चों से क्या एक ही बात हर दिन दोहराना कि बहुत खालीपन है रम्या के बिना. और बाकी सारी बातें तो बेमानी ही हैं.
शुरू के महीने बहुत विचलन भरे थे रम्या के बिना, मानो शरीर में जान नहीं, भूख नहीं, प्यास नहीं. दिन और रात का अंतर खत्म हो चुका था, अपने होने का बोध समाप्त था. शरीर तो रम्या का फुंका था, घाट पर जान उस के शरीर से निकल गई थी. निष्प्राण, निष्प्रभ वह पड़ा रहता जीनेमरने के बीच कहीं, भावहीन, रसविहीन, संज्ञाशून्य.
दोस्तों, रिश्तेदारों, बच्चों सब के साथ रह कर रमण देख चुका था. जो शून्यता जीवन में आ चुकी थी उस की कोई भरपाई नहीं थी. दूसरी जगह उसे बिना मतलब एक औपचारिक व्यवहार करना होता. न हर वक्त रो कर किसी और का कीमती पल वह नष्ट करना चाहता था, न दूसरे किसी की बातें उसे छूतीं. जिन दोस्तों की संगत में वह घंटों मगन रहता था, अब न भाती, थोड़ी ही देर में जीवन की निस्सारिता से वह ऊब वहां से भागने को तत्पर होने लगता. पहले बेटेबहू, बेटीदामाद व उन के बच्चों के साथ खुद को परिपूर्ण समझता था, अब एक रम्या ने क्या जीवन से हाथ छुड़ाया, उस का भी सभी रिश्तों से मानो मन भर गया. नहीं लुभाती अब उसे पोती के गीत या कविता, मन नहीं होता कि देखे कि नाती अब कैसा दिख रहा है. बच्चों की नौकरी और औफिस की बातें उसे उबाऊ लगतीं, उस का जी बस और बस रम्या में लगा रहता. नहीं ऊबता उस एलबम को हजारवें बार भी पलट कर, जिस में उस की और रम्या की तसवीरें भरी पड़ी थीं. नहीं ऊब होती उसे बारबार वह वीडियो देखने में, जिस में रम्या ने डांस किया था बेटे की शादी के वक्त.
रम्या की रसोई उस की पुरानी महरी ही संभाल रही थी, चैंक उठी थी वह जब रमण ने उसे इडलियां बनाने को कहा था, क्योंकि उस ने तो कभी रमण को इडली खाते देखा ही नहीं था. इडली तो भाभी को ज्यादा पसंद थी. फिर धीरेधीरे उस ने गौर किया कि भइया अब सिर्फ वही खाना चाह रहे हैं, जो भाभी को पसंद था. हर दिन टेबल से 2 प्लेटें उठाते हुए वह चैंक जाती बारबार, जब दोनों ही प्लेट में जूठा लगा देखती.
घर का अकेलापन ज्यादा भाता, दुनिया से पीठ कर ही रहने की इच्छा प्रबल होने लगी. रम्या इतने आननफानन में यों ही चल बसी थी कि रमण का मन अब तक स्वीकार नहीं कर पाया था. ऐसे भी कोई जाता है भला, एक दिन सुबह उठे और अचानक गिर पड़े. अस्पताल पहुंचते ही डाक्टर मृत घोषित कर दे, उस ने तो न सुना था ऐसे किसी का गुजर जाना. अरे, मरने का कुछ तो बहाना होना चाहिए न? न सर्दी, न बुखार मानो बस सो कर उठी और चल बसी. जब तक शरीर बर्फ सा न हो गया, उस ने किसी को छूने न दिया था. अरे, अभी तो जिम्मेदारियों का बोझ उतरा था, अभी दो महीने पहले तक तो अम्मां की सेवा कर रही थी. उस के पहले नाती के जन्म के बाद एक साल तक उसे पाला था.
‘ऐसे कोई जाता है क्या,’ रमण बड़बड़ाता रहता, मानो कहीं न कहीं उस का कोई दोष रहा होगा, जो रम्या इस तरह चल बसी. वह हर वक्त बीते पलों को ध्यान से गुनता कि कभी क्या रम्या ने कुछ बताया तो नहीं था कि उसे कोई तकलीफ है या उस ने कभी नजरअंदाज तो नहीं किया उस की तकलीफों को. जाने क्यों उसे हर वक्त लगता कि कहीं न कहीं वह गुनाहगार है, उस के इस तरह गुजरने के लिए.
इसीलिए रमण कहीं नहीं जाना चाहता, वह रम्या को छोड़ किसी बात पर ध्यान देना नहीं चाहता था. उसे दिक्कत हो जाती ध्यान केंद्रित करने में कहीं और, अतः अपनी जगह पर रहना ही बेहतर है. अब वहां 2-2 प्लेटें लगा सामने रम्या के बैठे रहने की कल्पना तो नहीं कर पाता न. सचमुच उसे सुख मिलता, जब वह अकेले में टेबल पर 2 प्लेटें लगा कर बैठता, रम्या की पसंद की डिश रखता और महसूस करता कि वह सामने मुसकराती हुई बैठी है, वरना महीनों उस के हलक से खाना नहीं उतरा था, फिर इस व्यवस्था में झूठा ही सही, उसे भी सुकून मिलने लगा.
यों ही खयालों में खोएखोए वह बिस्तर पर बैठा रह गया था कि दरवाजे पर लगी घंटी की आवाज से उस की तंद्रा भंग हुई. महरी आई थी. आते ही उस ने सूचना दी, “आज दोपहर तक दोनों बच्चे आ रहे हैं भइया.”
यह सुन कर रमण चैंक उठा, “तुम्हें किस ने बताया?”
अब रमण असहज होने लगा. उफ्फ, उन के आने से रम्या उस से दूर हो जाएगी, कैसे वह ध्यान कर पाएगा. उसे नहीं मिलना था किसी से.
“कांता बाई तुम ने क्या कहा है बच्चों से…?’’ रमण परेशान होने लगा था. कहीं दो प्लेटों वाली बात तो नहीं बता दी इस ने. उफ्फ…
सचमुच दोपहर तक दोनों बच्चे घर पहुंच गए. इस बार दोनों अकेले ही आए थे. आते ही दोनों पापा को घेर कर बैठ गए. एक पल को अकेले नहीं छोड़ रहे थे. रात होतेहोते रमण उकता गया. ये दोनों कितना बोल रहे हैं, रम्या की उपस्थिति महसूस न कर पाने की झल्लाहट उस पर हावी होने लगी.
सुबह नींद खुली तो देखा 9 बज रहे थे, इतनी देर कैसे सोते रह गया ?
रमण विचार कर ही रहा था कि कांता बाई और बेटे की बातचीत कानों में पड़ी. उसे समझते देर न लगी कि कल उसे नींद की दवा दे कर सुलाया गया था और अब किसी मनोचिकित्सक के यहां ले जाने की तैयारी हो रही है.
4 साल हो गए मम्मी को गए… पापा खुद में खोते जा रहे हैं… हमारे साथ रहना नहीं चाहते… कैसे अकेले छोड़ दें… अच्छा हुआ कि आप ने बता दिया…
शब्द कटकट कर पहुंच रहे थे. रमण ने दुखी मन से आंखें बंद कर लीं फिर से, रम्या की उपस्थिति का अनुभव अनिवार्य लग रहा था. क्यों नहीं भान हो रही उस की उपस्थिति? रमण परेशान होने लगा कि उसे सुनाई दी चूड़ियों की छनछन पर कहीं दूर से आंचल की सरसराहट का भी अनुभव हुआ, पर वह भी कहीं दूर से, बिलकुल वहीं से जहां बच्चे कांता बाई से बातें कर रहे थे.
“तो क्या रम्या अपने बच्चों के आसपास है?”
अचानक रम्या की खनकती सी मधुर आवाज उस के कानों तक आई…
उनींदापन अब तक हावी था कि फिर लगा कि कमरे के बाहर सचमुच रम्या ही धीमेधीमे बोल रही है कहीं, अचानक रमण को भान हुआ कि वह कैसा होता जा रहा है? बेटे के द्वारा मनोचिकित्सक के पास ले जाने वाली बात से वह गंभीर हो उठा. क्या सचमुच कुछ मानसिक विकार उत्पन्न होने लगे हैं उस में? इस तरह काल्पनिक दुनिया में जानबूझ कर जीना एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए ठीक नहीं, पर… पर…
अचानक उसे अनुभव हुआ कि वह कितना स्वार्थी हो गया है, बच्चों ने भी तो अपनी मां को खोया है, वे भी तो वैसे ही व्यथित होंगे जैसे वह, पर उन्हें तो दुनियादारी निभानी शेष ही है, नौकरी, घरगृहस्थी सब देखनी है. उस के जैसा अवकाशप्राप्त तो नहीं हैं.
रमण ने आंखें खोल दीं और बच्चों की तरफ बढ़ चला. रम्या की आवाज का आकर्षण भी उसे बाध्य कर रहा था कि कमरे से बाहर झांके.
रसोई के दरवाजे के पास महफिल सजी थी तीनों की और उस की ही चर्चा चल रही थी, सब परेशान थे.
“ओह, ये बेटी बोल रही है, उस की आवाज सचमुच अपनी मां की ही तरह है, दूर से तो ऐसा ही भान हो रहा था,” रमण को लग रहा था कि बिटिया बोलती रहे.
“पापा, आप उठ गए, नींद आई आप को?” बेटे ने उसे देखते ही लपक कर पूछा.
“हां बेटा, शायद महीनों, वर्षों बाद ऐसी नींद आई होगी,” कहतेकहते रमण का ध्यान बेटे की नाक और होंठों की तरफ अटक गया, हूबहू रम्या की ही तरह तीखी नाक और पतले होंठ. शायद माथा भी और ठुड्डी भी, आज वह अलग नजर से बच्चों को घूर रहा था. बिलकुल अपनी मम्मी की ही तरह बेटी ने कलाई को हिलाया कि उस की चूड़ियां बज गईं.
“ओह, वाकई रम्या तो यहीं अपने कोखजायों में मौजूद है, उस की हाड़मांस से निर्मित उस के ही अंश हैं. मैं बेकार आंखे बंद कर दुनिया से छिप रम्या को खोज रहा था,“ रमण को अचानक मानो बोध हुआ. वह नई निगाह से बच्चों को फिर से देखने लगा और हर कोण में कहीं न कहीं रम्या झलकती रही.
“आज देर तक सोता रह गया, पर जब जागो तभी सवेरा,” कहता रमण अपनी दिनचर्या शुरू करने की कोशिश करने लगा.
घर के कामों से फारिग होने के बाद आराम से बैठ कर मैं ने नई पत्रिका के कुछ पन्ने ही पलटे थे कि मन सुखद आश्चर्य से पुलकित हो उठा. दरअसल, मेरी कहानी छपी थी. अब तक मेरी कई कहानियां छप चुकी थीं, लेकिन आज भी पत्रिका में अपना नाम और कहानी देख कर मन उतना ही खुश होता है जितना पहली रचना के छपने पर हुआ था.
अपने हाथ से लिखी, जानीपहचानी रचना को किसी पत्रिका में छपी हुई पढ़ने में क्या और कैसा अकथनीय सुख मिलता है, समझा नहीं पाऊंगी. हमेशा की तरह मेरा मन हुआ कि मेरे पति आलोक, औफिस से आ कर इसे पढ़ें और अपनी राय दें. घर से बाहर बहुत से लोग मेरी रचनाओं की तारीफ करते नहीं थकते, लेकिन मेरा मन और कान तो अपने जीवन के सब से महत्त्वपूर्ण व्यक्ति और रिश्ते के मुंह से तारीफ सुनने के लिए तरसते हैं.
पर आलोक को साहित्य में रुचि नहीं है. शुरू में कई बार मेरे आग्रह करने पर उन्होंने कभी कोई रचना पढ़ी भी है तो राय इतनी बचकानी दी कि मैं मन ही मन बहुत आहत हो कर झुंझलाई थी, मन हुआ था कि उन के हाथ से रचना छीन लूं और कहूं, ‘तुम रहने ही दो, साहित्य पढ़ना और समझना तुम्हारे वश के बाहर की बात है.’
यह जीवन की एक विडंबना ही तो है कि कभीकभी जो बात अपने नहीं समझ पाते, पराए लोग उसी बात को कितनी आसानी से समझ लेते हैं. मेरा साहित्यप्रेमी मन आलोक की इस साहित्य की समझ पर जबतब आहत होता रहा है और अब मैं इस विषय पर उन से कोई आशा नहीं रखती.
कौन्वैंट में पढ़ेलिखे मेरे युवा बच्चे तनु और राहुल की भी सोच कुछ अलग ही है. पर हां, तनु ने हमेशा मेरे लेखन को प्रोत्साहित किया है. कई बार उस ने कहानियां लिखने का आइडिया भी दिया है. शुरूशुरू में तनु मेरा लिखा पढ़ा करती थी पर अब व्यस्त है. राहुल का साफसाफ कहना है, ‘मौम, आप की हिंदी मुझे ज्यादा समझ नहीं आती. मुझे हिंदी पढ़ने में ज्यादा समय लगता है.’ मैं कहती हूं, ‘ठीक है, कोई बात नहीं,’ पर दिल में कुछ तो चुभता ही है न.
10 साल हो गए हैं लिखते हुए. कोरियर से आई, टेबल पर रखी हुई पत्रिका को देख कर ज्यादा से ज्यादा कभी कोई आतेजाते नजर डाल कर बस इतना ही पूछ लेता है, ‘कुछ छपा है क्या?’ मैं ‘हां’ में सिर हिलाती हूं. ‘गुड’ कह कर बात वहीं खत्म हो जाती है. आलोक को रुचि नहीं है, बच्चों को हिंदी मुश्किल लगती है. मैं किस मन से वह पत्रिका अपने बुकश्ैल्फ में रखती हूं, किसे बताऊं. हर बार सोचती हूं उम्मीदें इंसान को दुखी ही तो करती हैं लेकिन अपनों की प्रतिक्रिया पर उदास होने का सिलसिला जारी है.
मैं ने पत्रिका पढ़ कर रखी ही थी कि याद आया, परसों मेरा जन्मदिन है. मैं हैरान हुई जब दिल में जरा भी उत्साह महसूस नहीं हुआ. ऐसा क्यों हुआ, मैं तो अपने जन्मदिन पर बच्चों की तरह खुश होती रहती हूं. अपने विचारों में डूबतीउतरती मैं फिर दैनिक कार्यों में व्यस्त हो गई. जन्मदिन भी आ गया और दिन इस बार रविवार ही था. सुबह तीनों ने मुझे बधाई दी. गिफ्ट्स दिए. फिर हम लंच करने बाहर गए. 3 बजे के करीब हम घर वापस आए. मैं जैसे ही कपड़े बदलने लगी, आलोक ने कहा, ‘‘अच्छी लग रही हो, अभी चेंज मत करो.’’
‘‘थोड़ा लेटने का मन है, शाम को फिर बदल लूंगी.’’
‘‘नहीं मौम, आज नो रैस्ट,’’ तनु और राहुल भी शुरू हो गए.
मैं ने कहा, ‘‘अच्छा ठीक है, फिर कौफी बना लेती हूं.’’
तनु ने फौरन कहा, ‘‘अभी तो लंच किया है मौम, थोड़ी देर बाद पीना.’’
मैं हैरान हुई. पर चुप रही. तनु और राहुल थोड़ा बिखरा हुआ घर ठीक करने लगे. मैं और हैरान हुई, पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’ कोई कुछ नहीं बोला. फिर दरवाजे की घंटी बजी तो राहुल ने कहा, ‘‘मौम, हम देख लेंगे, आप बैडरूम में जाओ प्लीज.’’
अब, मैं सरप्राइज का कुछ अंदाजा लगाते हुए बैडरूम में चली गई. आलोक आ कर कहने लगे, ‘‘अब इस रूम से तभी निकलना जब बच्चे आवाज दें.’’
मैं ‘अच्छा’ कह कर चुपचाप तकिए का सहारा ले कर अधलेटी सी अंदाजे लगाती रही. थोड़ीथोड़ी देर में दरवाजे की घंटी बजती रही. बाहर से कोई आवाज नहीं आ रही थी. 4 बजे बच्चों ने आवाज दी, ‘‘मौम, बाहर आ जाओ.’’
मैं ड्राइंगरूम में पहुंची. मेरी घनिष्ठ सहेलियां नीरा, मंजू, नेहा, प्रीति और अनीता सजीधजी चुपचाप सोफे पर बैठी मुसकरा रही थीं. सभी ने मुझे गले लगाते हुए बधाई दी. उन से गले मिलते हुए मेरी नजर डाइनिंग टेबल पर ट्रे में सजे नाश्ते की प्लेटों पर भी पड़ी.
‘‘अच्छा सरप्राइज है,’’ मेरे यह कहने पर तनु ने कहा, ‘‘मौम, सरप्राइज तो यह है’’ और मेरा चेहरा सैंटर टेबल पर रखे हुए केक की तरफ किया और अब तक के अपने जीवन के सब से खूबसूरत उपहार को देख कर मिश्रित भाव लिए मेरी आंखों से आंसू झरझर बहते चले गए. मेरे मुंह से कोई आवाज ही नहीं निकली. भावनाओं के अतिरेक से मेरा गला रुंध गया. मैं तनु के गले लग कर खुशी के मारे रो पड़ी.
केक पर एक तरफ 10 साल पहले छपी मेरी पहली कहानी और दूसरी तरफ लेटेस्ट कहानी का प्रिंट वाला फौंडेंट था, बीच में डायरी और पैन का फौंडेंट था. कहानी के शीर्षक और पन्ने में छपे अक्षर इतने स्पष्ट थे कि आंखें केक से हट ही नहीं रही थीं. मैं सुधबुध खो कर केक निहारने में व्यस्त थी. मेरी सहेलियां मेरे परिवार के इस भावपूर्ण उपहार को देख कर वाहवाह कर उठीं. प्रीति ने कहा भी, ‘‘कितनी मेहनत से तैयार करवाया है आप लोगों ने यह केक, मेरी फैमिली तो कभी यह सब सोच भी नहीं सकती.’’ सब ने खुलेदिल से तारीफ की, और केक कैसे, कहां बना, पूछती रहीं. फूडफूड चैनल के एक स्टार शैफ को और्डर दिया गया था.
मैं भर्राए गले से बोली, ‘‘यह मेरे जीवन का सब से खूबसूरत गिफ्ट है.’’ अनीता ने कहा, ‘‘अब आंसू पोंछो और केक काटो.’’
‘‘इस केक को काटने का तो मन ही नहीं हो रहा है, कैसे काटूं?’’
नीरा ने कहा, ‘‘रुको, पहले इस केक की फोटो ले लूं. घर में सब को दिखाना है. क्या पता मेरे बच्चे भी कुछ ऐसा आइडिया सोच लें.’’
सब हंसने लगे, जितनी फोटो केक की खींची गईं, उन से आधी ही लोगों की नहीं खींची गईं.
केक काट कर सब को खिलाते हुए मेरे मन में तो यही चल रहा था, कितना मुश्किल रहा होगा मेरी अलमारी से पहली और लेटेस्ट कहानी ढूंढ़ना? इस का मतलब तीनों को पता था कि सब से बाद में कौन सी पत्रिका आई थी. और पहली कहानी का नाम भी याद था. मेरे लिए तो यही बहुत बड़ी बात थी.
मैं क्यों कुछ दिनों से उलझीउलझी थी, अपराधबोध सा भर गया मेरे मन में. आज अपने पति और बच्चों का यह प्रयास मेरे दिल को छू गया था. क्या हुआ अगर घर में कोई मेरे शब्दों, कहानियों को नहीं समझ पाता पर तीनों मुझे प्यार तो करते हैं न. आज उन के इस उपहार की उष्मा ने मेरे मन में कई दिनों से छाई उदासी को दूर कर दिया था. तीनों मुझे समझते हैं, प्यार करते हैं, यही प्यारभरी सचाई है और मेरे लिए इतना बहुत है.
उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में परिवार वालों ने एक समलैंगिक युवक का दहेज के लालच में एक महिला से शादी करवा दी. बाद में लड़के ने स्वीकारा कि वह गे है और उसे लड़कियों में दिलचस्पी नहीं. महिला ने अपने घरवालों को इस की जानकारी दी. उस के बाद ससुराल वालों ने महिला के साथ मारपीट की. तब पीड़ित महिला ने 5 लोगों के साथ दहेज उत्पीड़न के अलावा अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया.
इस 12 फरवरी को महिला ने पुलिस को शिकायतीपत्र लिख कर बताया कि 29 मई, 2021 को सुरेंद्र कुमार जायसवाल के बेटे मनीष कुमार जायसवाल के साथ उस की शादी कराई गई. महिला के पिता ने शादी में दान, दहेज और अन्य खर्चों के साथ कुल 34 लाख रुपए नकद खर्च किए थे. लेकिन जब बहू ससुराल आई तो उस के साथ अच्छा व्यवहार नहीं हुआ.
साथ ही, पति उसे दांपत्य सुख देने में असमर्थ रहा. उसे एहसास होने लगा कि पति समलैंगिक है या शादी के पहले से शारीरिक, मानसिक बीमारी से ग्रसित है. महिला ने अपने पति मनीष से बात की तो मनीष ने रोते हुए कहा कि मैं ने तुम्हें धोखा दिया है, तुम मुझे तलाक दे दो. मैं ने अपने परिवार और चाचा के दबाव में तुम से शादी की है. मनीष ने अपनी सचाई का खुलासा करते हुए कहा कि वह समलैंगिक हैं. यह सुन कर महिला हैरान रह गई.
जब उस ने यह बात अपने परिजनों को बताने को कहा तो उपरोक्त ससुराल वालों ने महिला के साथ गालीगलौज की और बेल्ट से पिटाई की. जिस के बाद महिला अपने भाई के साथ अपने मायके लौट आई. पुलिस ने महिला की शिकायत पर उस के पति, सास, ससुर, देवर और अन्य मायके वालों समेत 5 लोगों के खिलाफ केस दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी.
अकसर लोग परिवार में किसी का मन रखने के लिए या किसी पारिवारिक स्थिति के दबाव में आ कर शादी के लिए हां बोल देते हैं. लेकिन शादी कोई मजाक नहीं है. शादी इंसान के जीवन का बहुत बड़ा फैसला होता है. इस के बाद जिंदगी मनमाने ढंग से जीने वाली नहीं रह जाती. जिम्मेदारियों का बोझ उठाना पड़ता है. लेकिन कुछ लोग इस बात को समझे बगैर परिवार के दबाव में आ कर शादी के लिए हां बोल देते हैं. ऐसे में शादी के शुरुआती दिन तो अच्छे लगते हैं लेकिन बाद में यह रिश्ता जबरन ढोने वाली मजबूरी बन कर रह जाता है.
ऐसे रिश्ते में न प्यार रहता है और न ही आपसी समझ. इसलिए जब भी आप के घर में आप की शादी की बात चले तो सिर्फ परिवार की मरजी के लिए हां न बोलें. इस शादी में आप को ख़ुशी मिल रही है या नहीं और आप अपने पार्टनर को ख़ुशी दे पाएंगे या नहीं, इस पर विचार जरूर कर लें. चूंकि शादी के बाद निभाना आप को और आप के पार्टनर को है, इसलिए शादी से पहले खुद से कुछ जरूरी सवाल करें, उस के बाद ही कोई फैसला करें.
सब से पहला सवाल है कि आप को अभी शादी क्यों करनी चाहिए ?
इस सवाल का जवाब पूरी ईमानदारी से ढूंढने का प्रयास कीजिए. शादी के बाद आप पार्टनर की जिंदगी का हिस्सा बन जाएंगे. आप को अपने साथ ही पार्टनर की खुशियों का भी खयाल रखना होगा. यही नहीं, शादी करने के बाद आप की इंडिपेंडैंट लाइफ की फ्रीडम खो जाती है. अपने साथी और घर की जिम्मेदारियां उठाने के अलावा आप को कुछ कम्प्रोमाइज भी करने पड़ते हैं. खुद से पूछें कि क्या इन सभी स्थितियों के लिए आप पूरी तरह तैयार हैं? कहीं यह शादी आप किसी मजबूरी में तो नहीं कर रहे?
आप के पार्टनर आप की अपेक्षाओं पर खरा उतरेगा ?
हर व्यक्ति की अपने पार्टनर को ले कर कुछ उम्मीदें होती हैं. ऐसे में जिस लड़की या लड़के से आप के परिवार वाले आप की शादी कराना चाहते हैं, क्या वह पार्टनर बनने के बाद आप की उम्मीदों पर खरा उतर पाएगा. इस बारे में अच्छे से सोच लें और जिस से आप की बात चल रही है, उस से बातें कर के परख लें. अब वह जमाना नहीं है जब लड़कियां एकतरफा समझौता कर के सबकुछ सह लेती थीं. आप का पार्टनर कहां रहना चाहता है, जौब या बिजनैस क्या करना चाहता है, उसे क्या पसंद है और क्या नहीं वगैरह की जानकारी लें. सामने वाले की उम्मीदों को आप किस हद तक पूरा करने में सक्षम हैं, इस के बारे में भी एक बार जरूर सोचें. जरूरत महसूस हो तो उस से दोचार बार मिलें और तसल्ली करें कि आप इस शादी को निभा पाएंगे.
फैमिली प्लानिंग के लिए कितने तैयार हैं आप ?
शादी का फैसला लेने के साथ ही आप को इस बारे में भी जरूर सोचना चाहिए क्योंकि शादी होते ही कुछ समय बाद परिवार के लोगों में बच्चे को ले कर बातें शुरू हो जाती हैं. आप एक या दो साल इन बातों को टाल सकते हैं लेकिन इस के बाद आप को भी फैमिली प्लानिंग करनी ही होगी. बच्चा आ जाने के बाद जिम्मेदारियां कई गुना बढ़ जाती हैं. इन सब के लिए आप किस हद तक तैयार हैं.
जब बात लव मैरिज की हो
भले ही आप अपने साथी के साथ कई वर्षों से रह रहे हों और अपने पार्टनर से बेहद प्यार करती हों लेकिन शादी का डिसिजन वास्तव में एक बड़ा फैसला है. याद रखें, शादी दो दिन की खुशियां नहीं है बल्कि यह जीवनभर का साथ और कमिटमैंट है. आप आज किसी से मिले, कल आप को प्यार हुआ और चंद दिनों में ही आप ने शादी का फैसला कर लिया. यह सबकुछ फिल्मों में देखने या दिल में सोचने में भले ही अच्छा लगता हो लेकिन वास्तविक जीवन इस से काफी अलग होता है. रिश्ते बेहद कोमल और नाजुक पौधे के समान होते हैं जिन्हें बढ़ने में समय लगता है और अगर इन की सही तरह से देखरेख न की जाए तो ये सूख जाते हैं. अगर आप जल्दबाजी में फैसला कर लेती हैं तो हो सकता है कि आप को बाद में पछताना पड़े.
वैसे भी, जब बात शादी की आती है तो मन में कई तरह के संशय होते हैं. जब तक आप के मन के सभी संशय दूर न हो जाएं तब तक आप कदम न बढ़ाएं. इस के लिए आप दोनों साथ मिलबैठ कर बात कर सकते हैं और अपने फ्यूचर प्लान के बारे में डिस्कस कर सकते हैं.
शादी करने के लिए आप दोनों का एकदूसरे को जानना व विश्वास करना बेहद जरूरी है. शादी तब करें जब यह यकीन हो जाए कि आप उन के अतीत से ले कर उन के सपनों के बारे में जानते हैं, साथ ही, उन पर भरोसा कर सकते हैं. शादी के लिए भरोसा बहुत ज़रूरी है.
इन बातों के लिए भी तैयार रहें-
कमिटमैंट और जिम्मेदारियों के लिए तैयार रहें
रिलेशनशिप एक्सपर्ट पौलेट शर्मन के अनुसार, कमिटमैंट एक क्रूशियल स्किल है जो शादी में किसी और के साथ जुड़ने से पहले होनी चाहिए. सब से पहले आप को उस व्यक्ति के बारे में आश्वस्त होना चाहिए जिस से आप शादी कर रहे हैं और उस के साथ कमिटेड होने का निर्णय लेना चाहिए क्योंकि शादी में हमेशा कठिन समय आता है. एकदूसरे के प्रति कमिटेड होने का मतलब है कि आप दोनों एकसाथ कठिन रास्तों से गुजरने के लिए तैयार हैं. कमिटमैंट आप को धैर्य और अनुशासन जैसे अन्य गुणों को विकसित करने में मदद करता है जो रिश्ते में महत्त्वपूर्ण हैं.
अपने साथी के परिवार से भी प्यार जरूरी
जब आप किसी व्यक्ति से विवाह करते हैं तो आप उन के परिवार के साथ विवाह कर रहे होते हैं. विवाह उतना ही परिवारों के बीच का मिलन है जितना व्यक्तियों के बीच. एक परिवार को पुत्र प्राप्त होता है और दूसरे को पुत्री प्राप्त होती है. यानी, आप किसी व्यक्ति से उस के परिवार के फायदों, दायित्वों और तनावों आदि के साथ भी विवाह कर रहे हैं. आप को अपने नए परिवार के सदस्यों के साथ मिलनाजुलना सीखना चाहिए. शादी से पहले यह आसान हो सकता है लेकिन उस के बाद यह पहले जैसा नहीं हो सकता. कभीकभी आप को अपने साथी के परिवार के लिए वैसे ही समझौता करना पड़ सकता है जैसे आप अपने साथी के लिए करते हैं. यदि आप अपने साथी के परिवार के साथ अच्छा व्यवहार करना नहीं सीखते हैं तो इस से विवाह संबंध निभाने में मुश्किलें आ सकती हैं और यह रिश्ता टूट भी सकता है.
सुनिश्चित करें कि आप की उम्मीदें व्यावहारिक हैं
आप अपने साथी से कितना भी प्यार करते हैं या उन्हें अपना आदर्श मानते हों पर यह याद रखें कि कोई भी इंसान पूर्ण नहीं होता. इसलिए शादी करने से पहले खुद को टटोलें कि आप कहीं उन से जरूरत से ज्यादा अपेक्षाएं तो नहीं रखने वाले? यह भी समझें कि ऐसे समय भी आएंगे जब वे इन अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाएंगे और तब भी आप को उन के साथ खड़ा रहना होगा उसी प्यार और विश्वास के साथ.
मैं की जगह हम बनने को तैयार रहें
शादी के बाद आप एकदूसरे के जीवन का हिस्सा बन जाते हैं, इसलिए आप का जीवन अब आप में से प्रत्येक के बारे में नहीं, बल्कि आप दोनों के बारे में है. अब आप अपना जीवन केवल अपने लिए नहीं जिएंगे बल्कि पार्टनर के लिए भी जिएंगे. इसलिए जो फैसले आप शादी से पहले आवेश में आ कर लेते थे उन्हें अब अपने साथी को ध्यान में रखते हुए अधिक सोचसमझ कर लेना होगा. निर्णय लेने से पहले आप को उन से परामर्श करना होगा.
आज के समय में जब युवाओं से पूछा जाता है कि उन की जिंदगी का सब से बड़ा लक्ष्य क्या है तो 70-80 फीसदी का जवाब होता है कि वे धनवान बनना चाहते हैं जबकि 50 फीसदी से ज्यादा युवाओं की जिंदगी का लक्ष्य मशहूर बनना है. मगर क्या महज धन या शोहरत हासिल कर के आप खुश रह सकते हैं? 75 वर्ष तक चले एक शोध का निष्कर्ष कुछ और ही रहा. इस स्टडी का निष्कर्ष यह था कि रिलेशनशिप में इन्वैस्ट करना जिंदगी का सब से बड़ा लक्ष्य होना चाहिए. अच्छे और सच्चे रिश्ते ही खुशहाली का राज हैं.
हमें अकसर सीख दी जाती है कि रातदिन मेहनत से काम करें और ज्यादा से ज्यादा धन और कामयाबी हासिल करें. हमें लगता है कि बस इस से ही जिंदगी अच्छी हो जाएगी. लेकिन इस आपाधापी में हम अपने रिश्तों में इन्वैस्ट करने में पीछे रह जाते हैं. उम्र बढ़ने के बाद एहसास होता है कि हमारी मुट्ठियां खाली ही रह गईं. मन के अंदर भी एक वीरानापन ही रह गया.
द हार्वर्ड स्टडी औफ अडल्ट डैवलपमैंट इंसान की जिंदगी के बारे में की गई एक सब से लंबे वक्त की स्टडी है जिस में 75 बरसों तक 724 लोगों की जिंदगी की स्टडी की गई. इस में उन के काम, उन की जिंदगी, उन की सेहत और तमाम मुद्दों का रेकौर्ड रखा गया. शोधकर्ताओं ने इतने बरसों और इतने लोगों की स्टडी में पाया कि अच्छी रिलेशनशिप हमें खुश और सेहतमंद रखती है. सामाजिक रिश्ते हमारे लिए बहुत अच्छे होते हैं और अकेलापन हमें खाने को दौड़ता है. स्टडी से पता चला कि जो लोग परिवार, दोस्त, कम्युनिटी के साथ सामाजिक तौर पर बेहतर ढंग से जुड़े हुए हैं वे ज्यादा खुश हैं और उन की सेहत भी दूसरों के मुकाबले बेहतर रहती है. अकेले रहने के परिणाम बेहद खराब पाए गए. उन की सेहत मिडलाइफ में गिरने लगती है. उन का दिमाग भी बीच में काम करना कम कर देता है.
स्टडी में दूसरी जो सब से बड़ी बात सामने आई वह यह थी कि यह सिर्फ संख्या की बात नहीं है कि आप के कितने दोस्त हैं बल्कि असल बात यह है कि जिन लोगों के साथ आप की दोस्ती या रिश्ते हैं उन में से कितनों के साथ आप की घनिष्ठता है. यही नहीं, अगर आप द्वंद्व में जीते हैं तो वह आप की सेहत के लिए बहुत खराब होता है. शादी में अगर बहुत ज्यादा उलझन हो जबकि उस में प्यार न हो तो वह सेहत के लिए बहुत बुरा साबित होती है. जबकि अगर आप अपने रिश्ते को ले कर सुरक्षित महसूस करते हैं और इस एहसास के साथ जीते हैं कि कोई है जिस पर वे मुश्किल के वक्त भरोसा कर सकते हैं या जिस से अपने मन के सारे राज शेयर कर सकते हैं तो आप दिमागी तौर पर भी फिट रहते हैं. तात्पर्य यह है कि अच्छे और भरोसेमंद रिश्ते हमारी सेहत और खुशियों के लिए जरूरी हैं.
क्या आज हमें कोई ऐसा शख्स मिल सकता है जिस पर भरोसा कर सकें ?
अब बात करें रिश्तों से जुड़े आज की हकीकत की, रिश्ते तभी प्रगाढ़ होते हैं जब हम सामने वाले से अपने मन की हर बात बिना किसी डर या झिझक के शेयर कर सकें. हमें इस बात का खौफ न हो कि जब कल वह हम से मुंह मोड़ ले और हमारे विरोधी से जा मिले और हमारे सारे राज खोल कर रख दे जैसा कि आज की पौलिटिकल पार्टियां करती हैं. आज किसी एक के सपोर्ट में हैं तो कल किसी और के. दो मिनट में पासा ही पलट देती हैं. विरोधी पार्टी के आगे सारे सीक्रेट्स खोल देती हैं. तभी तो आज कोई पार्टी किसी दूसरी पार्टी पर भरोसा नहीं करती. सब अपनी चाल खेलते हैं. वैसे भी, पार्टी में कौन सा नेता विभीषण निकल आए और दूसरी तरफ का सगा बन कर नाभि में अमृत होने का राज खोल दे, यह कोई नहीं जानता.
जैसे हमारे नेतागण एक दूसरे के प्रति कतई निष्ठावान नहीं, वैसे ही समाज में भी लोग एक दूसरे के पीठ में खंजर घोंपने में माहिर दिखते हैं. आज जब पति पत्नी की, भाई भाई की और पुत्र पिता की हत्या कर रहे हैं, एकदूसरे से आगे भागने की जुगत में नैतिकता ताक पर रख बस भागे जा रहे हैं तो जाहिर है चालबाजियां, झूठ, फरेब और स्वार्थ का बाजार गरम है. इस जमाने में ऐसे रिश्ते मिलने आसान नहीं जिन पर आप आंख मूंद कर भरोसा कर सकें.
कोई राज राज न रहा
अगर आप को ऐसा रिश्ता मिल भी जाता है जिस से आप सारे राज शेयर कर सकें तो ज़रा होशियार रहिए. आज के जमाने में कोई राज राज नहीं रह गया है. एक तरफ आप के मोबाइल के जरिए एक छोटी से छोटी बात, आप की चैट्स, आप के ट्रैवलिंग डिटेल्स, आप के और्डर्स, आप के शौक यानी आप की पूरी जन्मकुंडली, आप के क्रैडिट कार्ड्स, आप के देखे गए या सर्च किए गए वीडियोज और लिंक्स, गूगल सर्च, फ़ोनकौल्स और यहां तक कि आप के द्वारा किए गए लेनदेन आदि सबकुछ पर निगरानी रखी जा रही है. हर वक्त आप पर नजर रखी जाती है. आप का कोई काम, कोई हरकत या कोई बातचीत छिपी नहीं है.
नया स्मार्टफोन पहली बार सैटअप करते वक्त आप से कई परमिशंस मांगी जाती हैं. इस दौरान गूगल अकाउंट से लौगिन करना पड़ता है और यहां से गूगल आप का डाटा जुटाना शुरू कर देता है. फोन में कई सैटिंग्स बाय-डिफौल्ट इनेबल रहती हैं जिन के साथ गूगल आप पर पलपल नजर रखता है. आप को जान कर हैरानी होगी कि आप कब कहां गए, क्या सर्च किया, गूगल इस का पूरा रिकौर्ड भी रखता है. इस तरह जुटाए जाने वाले डाटा का इस्तेमाल यूजर को बेहतर अनुभव देने उस से जुड़े विज्ञापन दिखाने के लिए किया जाता है. मगर शायद ही कोई चाहेगा कि गूगल उस की हर गतिविधि और मूवमैंट का पूरा रिकौर्ड रखे.
इसी तरह सरकार भी हमारे ऊपर हर वक्त नजर रखती है. आजकल हर जगह आधारकार्ड से पहचान दिखाना अनिवार्य कर दिया गया है. आप कहीं ट्रैवल करें, किसी होटल में ठहरें, कोई सिम लें, कहीं अप्लाई करें या इस तरह का कुछ भी काम करें तो आधारकार्ड की कौपी ले ली जाती है. पैनकार्ड के जरिए भी आप के पैसों और लेनदेन पर पूरी नजर रखी जाती है. आप की कोई एक्टिविटी छिप ही नहीं सकती. हर जगह सीसीटीवी कैमरे बाकी कसर पूरी करते हैं. कहने का अर्थ यह है कि सीक्रेट्स रह कहां गए जो आप किसी अपने को राजदार बनाएं और घनिष्टता बढ़ाएं.
इसी तरह किसी पर भरोसा करना भी मुश्किल हो गया है. कब कौन राजदार बन कर आप की सारी बात रिकौर्ड कर ले या फिर आप की एक्टिविटीज की वीडियो बना डाले. पति तक पत्नी की अश्लील वीडियो बना कर रिश्तों को कलंकित कर डालते हैं. इसलिए किसी के करीब जाने या उस के आगे अपना मन खोलने से पहले पचासों बार सोचना पड़ता है. सब के हाथ में स्मार्टफोन होता है. किसी को घनिष्ठ मान कर बात कीजिए और तुरंत सारे राज कैप्चर कर लिए जाएं तो आप क्या करेंगे. आजकल तो घरों में सीक्रेट कैमरे लगा कर राज जान लिए जाते हैं. इसलिए बेहतर यह होगा कि अपनापन बढ़ाने के लिए किसी पर आंख मूंद कर भरोसा न करें. कोई कितना भी अजीज हो, उस से कुछ राज तो छिपा कर अपने मन में रखें ही.
यानी, रिश्तों में घनिष्ठता बढ़ाने से ज्यादा इस बात पर जोर दें कि जब मिलें, खुले मन से मिलें. गिलेशिकवे कहने या पुरानी बातों को ले कर लड़नेझगड़ने के बजाय उस पल को एंजौए करें. हंसे और हंसाए. जीवन के हर पल का आनंद लें. जिंदगी की असली खुशियां यही हैं.
आज के दौर में जिम करने की जरूरत सभी को है. ऐसे में महंगे जिम पैकेज लेना और वहां जाना सभी के लिए सुविधाजनक नहीं होता. जरूरत इस बात ही है कि अपने घर में ही जिम बनाएं. इस के जरिए खुद को फिट रखें. आमतौर पर देखा जाता है कि लोग अपना जिम बनाते समय ट्रेडमिल जैसे इक्विपमैंट खरीद लेते हैं जिन का रखरखाव ही कठिन होता है. अपना जिम बनाते समय इस बात का ध्यान रखें कि ऐसे इक्विपमैंट रखें जिन का प्रयोग सभी लोग कर सके.
घर में अपना जिम बनाने से पैसा और समय दोनों बचेगा. घर में जिम बनाने के लिए एक रूम का चुनाव कर ले, जहां रोशनी और सही वैंटिलेशन हो. ऐसी जगह पर परफैक्ट जिम बनाया जा सकता है. जिम के लिए जरूरी है कि एक अच्छा सा मैट हो. मैट का चुनाव करते समय देखें कि वह फिसलने वाला न हो. मैट के अलावा एक कुरसी और 3 स्टैप्स वाली सीढ़ी की व्यवस्था कर लें. सीढ़ी पर चढ़ कर और उतर कर वेट लौस ऐक्सरसाइज शुरू कर सकते हैं.
सस्ते हैं जिम इक्विपमैंट
घर में जब जिम तैयार करना हो तो ध्यान रखें कि शुरूआत सस्ते इक्विपमैंट से करें. ये इस तरह के हों कि सभी लोग इन का प्रयोग कर सकें. आजकल इस तरह के जिम इक्विपमैंट आराम से मिल जाते हैं. डेक्थोलान जैसी जगह पर एक ही जगह पर सभी इक्विपमैंट बजट के अंदर मिल जाते हैं. अपनी जरूरत के हिसाब से जिम इक्विपमैंट खरीदे जा सकते हैं. ये ऐसे होते हैं जो देखने में अच्छे लगते हैं.
कमरे में सभी जिम इक्विपमैंट रैक पर रखें, जिस से इन को देखते ही जिम का एहसास हो, मन ऐक्सरसाइज करने का करे. जिम के लिए लोवर और टीशर्ट का प्रयोग करें. अच्छे आरामदायक शूज का प्रयोग करें. इस से जिम में ऐक्सरसाइज करते समय कोई दिक्कत नहीं होगी. डंबल्स का प्रयोग करते समय हाथ में ग्लब्स पहनें, जिस से हाथ पर निशान न पड़ें.
जिम इक्विपमैंट में सब से पहली जरूरत डंबल्स की होती है. वेट लिफ्टिंग ऐक्सरसाइज के लिए डंबल्स और बार्बेल्स जरूरी होते हैं. ये 150 रुपए से 500 रुपए प्रतिकिलो वजन के आधार पर मिलते हैं. कुछ स्टोर्स पुराने डंबल्स के साथ एक्सचेंज औफर भी देते हैं. अपनी जरूरत के अनुसार इन का वजन बढ़ा सकते हैं. लड़कियों के प्रयोग के लिए अब ये पिंक कलर में भी आने लगे हैं. वैसे, आमतौर पर ये काले रंग के होते हैं.
अपने जिम में दूसरी सब से जरूरी चीज स्किपिंग रोप यानी रस्सी रखें. किसी भी स्पोर्ट शौप पर स्किपिंग रोप आसानी से मिल जाएगी.
सामान्यतया यह 150 रुपए से 1,500 रुपए तक की रेंज में मिल जाती हैं. अपने बजट और जरूरत के अनुसार इसे ले आएं. रस्सी कूदना बेहद आसान और प्रभावी वर्कआउट है.
इस के अलावा ऐक्सरसाइज बौल का भी प्रयोग कर सकती हैं. खुद को शेप में रखने के लिए ऐक्सरसाइज बौल या स्टेबलिटी बौल काफी प्रभावी होता है. इस का इस्तेमाल दूसरे उपकरणों के साथ भी कर सकते हैं. बाजार में इस की कीमत 600 रुपए से 1,000 रुपए के बीच है. जिन को पतली कमर के लिए जिम जाना पसंद है बे गोल छल्ला या हूप का प्रयोग कर सकती हैं. वेस्ट से कैलोरीज कम करने के लिए हूप एक बेहतरीन उपकरण है. इसे कमर में डाल कर कमर घुमाने से पेट और कमर की चरबी घटती है. हूप खरीदते समय ध्यान रखें कि यह उतना ही बड़ा होना चाहिए जितने बड़े आप हैं. बाजार में इस की कीमत 150 रुपए से शुरू हो सकती है.
स्ट्रेचिंग और शरीर का संतुलन बनाए रखने के लिए रजिस्टेंस बैंड्स का काफी उपयोग किया जाता है. इसे खरीदते वक्त ध्यान रखें कि हैंडल्स की ग्रिप अच्छी हो. ये बाजार में 1,500 से 3,000 रुपए तक की कीमत में मिल सकते हैं. जिम में वेट मशीन का होना भी जरूरी है, जिस से आप अपने वजन में होने वाले बदलावों का रिकौर्ड रख सकें. बाजार में वेट मशीन 800 से 1,500 रुपए की कीमत तक में मिल जाती हैं.
सही तरह से करें ऐक्सरसाइज :
महंगी ट्रेडमिल की जगह पर अपने घर में ही आप एक ही जगह पर खड़ेखड़े जिम कर सकते है. एक बात का खयाल रखें कि जिम की शुरुआत करने के लिए किसी जिम ट्रेनर की मदद लें, जिस से आप को सही तरह से ऐक्सरसाइज करना आ जाए क्योकि गलत तरह से ऐक्सरसाइज करने पर दिक्कत हो सकती है. आजकल हर जिम इक्विपमैंट के साथ उस का प्रयोग कैसे करना है, इस की जानकारी दी जाती है. पत्रपत्रिकाओं और सोशल मीडिया के जरिए भी सही तरह से जिम करना सीख सकते हैं.
जिम करते समय कुछ सावधानियां भी जरूरी हैं. एक तय समय पर ही ऐक्सरसाइज करें. सब से अच्छा समय सुबह का होता है. इस के बाद शाम का समय भी होता है. खाना खाने के तुरंत बाद जिम न करें. पानी और फलों का सेवन करें. जिम का सही लाभ लेने के लिए डाइट का भी ध्यान रखें. इस तरह से आप घर में ही सस्ता जिम बना सकते हैं, जो आप की ऐक्सरसाइज के लिए बहुत सरल होता है. घर में समय निकाल कर इस को नियमित करें. अपनी बौडी की जरूरत के हिसाब से जिम करें. महंगे जिम के पैकेज लेने की जगह घर पर ही जिम बनाएं और खुद को फिट रखें.
सवाल
मैं 21 वर्षीय अविवाहिता हूं. घर में पारिवारिक सदस्यों और दोस्तों के बीच मेरा व्यवहार बिलकुल ठीक रहता है. मैं सहज रहती हूं. लेकिन घर से बाहर अनजान लोगों के बीच मेरा आत्मविश्वास डगमगा सा जाता है और मैं सहज नहीं रह पाती. अपनी बात भी सही ढंग से नहीं कह पाती. मैं ऐसा क्या करूं कि घर से बाहर अनजान लोगों के बीच भी मेरा आत्मविश्वास कायम रहे ?
जवाब
आप की समस्या मनोवैज्ञानिक है जिस के चलते आप अनजान लोगों के बीच अपना आत्मविश्वास कायम नहीं रख पातीं. कई बच्चे जिन्हें बचपन में अनजान लोगों से मेलजोल बढ़ाने से दूर रखा जाता है और सिर्फघर वालों
के बीच ही रखा जाता है उन में आत्मविश्वास की कमी रह जाती है और वे अनजान लोगों के साथ ठीक से संवाद स्थापित नहीं कर पाते. आप अपने आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए घर से बाहर लोगों से मिलेंजुलें. उन से अपनी बात कहने की आदत डालें. शुरू में अगर ऐसा करना मुश्किल लगे तो घर में अकेले में अपनी बात कहने की प्रैक्टिस करें. अपनी खूबियों को उजागर करें. शुरूशुरू में थोड़ी दिक्कत हो सकती है लेकिन निरंतर अभ्यास से आप में आत्मविश्वास जागेगा और आप सहजता से अपनी बात औरों के सामने रख पाएंगी.
55 वर्षीय सुशीलकांत 10 वर्षों से मधुमेह यानी डायबिटीज के मरीज हैं. पिछले कई दिनों से उन की शुगर भी नियंत्रण में नहीं है. एक शाम उन को लगा कि उन की आंखों के आगे अंधेरा सा छा रहा है, फिर कुछ देर ठीक रहा और थोड़ी देर बाद फिर वही स्थिति हो गई. 2 दिनों के बाद अचानक उन्हें लगा कि उन्हें नहीं के बराबर यानी बहुत ही कम दिख रहा है. तुरंत चिकित्सक से संपर्क किया गया. जांच से मालूम हुआ कि मधुमेह का असर आंख पर पड़ा है और उन का रेटिना क्षतिग्रस्त हो गया है. चिकित्सक की सलाह पर शहर के बाहर विशेषज्ञ रेटिना सर्जन से संपर्क किया गया. रेटिना सर्जन के इलाज से उन की आंखों की रोशनी को बचाया जा सका वरना वे नेत्रहीन हो जाते.
मधुमेह यदि ज्यादा पुराना हो या अनियंत्रित हो तो उस का कुप्रभाव आंखों पर अवश्य पड़ता है. इसे चिकित्सा शास्त्र में ‘डायबिटिक रेटिनोपैथी’ कहा गया है. इस जटिलता, जो मधुमेहजन्य है, में आंखों के परदे, जिसे ‘रेटिना’ कहा गया है, की रक्तवाहिनियां नष्ट हो जाती हैं और इस से रक्त बहने लगता है या रिसाव होने लगता है. यह जटिलता समाज के उच्चवर्ग में अधिक देखने को मिलती है. ऐसे में हरेक मधुमेह रोगी को चाहिए कि वह वर्ष में 2 बार अपना नेत्रपरीक्षण अवश्य करवाएं.
दृष्टि पर प्रभाव : कैसे कैसे
एक तरह की रेटिनोपैथी तो अधिकतर लोगों में देखने को मिलती है. इस का कोई लक्षण या संकेत नहीं मिलता. इस में रेटिना में सूजन आ सकती है तथा आंखों के पास गंदगी या मैल जमा हो सकता है. चिकित्सा विज्ञान के अनुसार, आंख की इस छोटी से रक्तवाहिनी को काफी नुकसान झेलना पड़ता है. यह रेटिनोपैथी फैलती नहीं है.
दूसरी तरह की रेटिनोपैथी में नई रक्तवाहिनियां रेटिना के आसपास बनने लगती हैं, जिस से रक्तस्राव होने लगता है. इस में कई बार व्यक्ति की दृष्टि चली जाती है. नई रक्तवाहिनियों के पनपने से रेटिना पर खिंचाव आ सकता है जिस से वह अलग भी हो सकती है. रेटिना की आगे की जैली में भी खून आ सकता है.
जब रेटिना से द्रव्य बाहर निकलता है तो वह रेटिना के बीच ‘मैक्यूला’ पर आने लगता है. इसे ‘मैक्युलोपैथी’ कहा जाता है.
इस के अलावा मधुमेह के रोगियों में मोतियाबिंद भी जल्दी पनपता है. अल्पआय वर्ग में यह ज्यादा देखने को मिलता है क्योंकि उन का ज्यादातर कार्य सूर्य की रोशनी में होता है. रक्त संचार अव्यवस्थित व अपूर्ण होने के कारण आंखों को लकवा भी मार सकता है.
मधुमेह के पुराने मरीजों की दृष्टि में शुरूशुरू में धुंधलापन आता है, रेटिना की सतह तथा दृष्टि के लिए उत्तरदायी मुख्य नाड़ी ‘औप्टिक नर्व’ पर नई रक्त वाहिनियां बनने लगती हैं.
बचाव : कैसे हो मजबूत
– मधुमेह हो या उच्च रक्तचाप या दोनों, इन्हें हर हालत में नियंत्रित रखें. चाहे दवा से या परहेज से.
– अपने रक्तशर्करा व रक्तचाप की नियमित जांच कराएं.
– धूम्रपान या तंबाकू का सेवन त्याग दें.
– हरी सब्जियों का अधिक सेवन करें.
– खुराक में विटामिन ए, विटामिन सी व विटामीन ई आदि का भरपूर सेवन करें.
– फिश या फिशऔयल का सेवन करें.
प्रमुख कारण
– आंख की रेटिना पर कुप्रभाव का पहला महत्त्वपूर्ण कारण है मधुमेह कितने समय से है. एक चिकित्सकीय आंकड़े के अनुसार, करीब 10 वर्षों से मधुमेह के रोगी पर इस के होने की संभावना 50 फीसदी, 20 वर्षों से मधुमेह के रोगी पर 70 फीसदी तथा 30 वर्षों से मधुमेह के रोगी पर 90 फीसदी संभावना रहती है.
– यदि मधुमेह के साथ उच्च रक्तचाप भी है तो संभावना और अधिक बढ़ जाती है.
– गर्भावस्था में भी इस की संभावना बढ़ जाती है.
– यह स्थिति वंशानुगत भी होती है.
– स्त्रियों में पुरुषों की अपेक्षा यह स्थिति अधिक पाईर् जाती है.
निदान तकनीकें
– रक्त शर्करा स्तर की नियमित जांच कराते रहें.
– ‘फंडस फ्लोरिसीन एजिंयोग्राफी’ नामक विशिष्ट जांच से यह स्थिति स्पष्ट हो जाती है कि लेजर तकनीक द्वारा उपचार की जरूरत कहांकहां है.
– ‘औफ्थालमोस्कोप’ नामक उपकरण द्वारा आंखों की नियमित जांच करवाएं.
इस प्रकार, इस वैज्ञानिक जानकारी के साथ मधुमेह के रोगी अपनी आंखों की रोशनी को बचा सकते हैं क्योंकि अंधेपन के कारणों में इस स्थिति की विशेष भूमिका रहती है.
लेजर पद्धति से उपचार
लेजर फोटो कोएगुलेशन द्वारा लेजर बीम प्रभावित रेटिना पर डाली जाती है जिस से रक्तस्राव या रिसाव बंद हो जाता है, साथ ही, दूसरी असामान्य रक्तवाहिनियों का बनना भी बंद हो जाता है. यह उपचार यदि रोगी को समय पर मिल जाए तो परिणाम अच्छे रहते हैं.
यदि रोग काफी ज्यादा बढ़ गया हो तो शल्यक्रिया द्वारा उपचार संभव है, जिसे ‘वीट्रेक्टौमी सर्जरी’ कहा गया है. इस में अलग हुए रेटिना को फिर जोड़ा जाता है.
एक नया इंजैक्शन वीईजीएफ आंखों में लगाया जाता है, जिस के प्रभाव से इस के अतिरिक्त अन्य खामियां भी ठीक हो जाती हैं. इस के साथसाथ लेजर द्वारा भी उपचार लिए जाने के अच्छे परिणाम आते हैं.
महामारी के बाद की दुनिया में हेल्थ इंश्योरेंस के प्रति बढ़ती जागरूकता ने व्यक्तिगत उत्पादों की मांग को भी बढ़ाया है. जिसकी वजह से इंश्योरेंस कंपनिया अब लगातार खुद को विकसित कर रही हैं और ऐसी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी को लेकर आईं है जो पॉलिसीधारकों की आधुनिक जरूरतों के अनुसार लाभ प्रदान करती है.
सिद्धार्थ सिंघल, बिजनेस हेड-हेल्थ इंश्योरेंस, पॉलिसीबाजार डॉट कॉम का कहना है-
व्यक्तिगत उत्पादों और ऐड-ऑन के आने के साथ, हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी की कुछ श्रेणियों में बदलाव आया है. मैटरनिटी इंश्योरेंस एक ऐसी श्रेणी है जो पहले उपभोक्ता के लिए बाद की बात हुआ करती थी लेकिन अब, बढ़ती जरूरतों और मांगों को पूरा करने के लिए इंश्योरेसं कंपनियों द्वारा इसका दायरा बढ़ा दिया गया है.
मैटरनिटी हेल्थ इंश्योरेंस
पॉलिसीबाजार डॉट कॉम में हेल्थ इंश्योरेंस के बिजनेस हेड, सिद्धार्थ सिंघल ने कहा “परिवार नियोजन बहुत ही आवश्यक है इसके अंतर्गत परिवार बढ़ाने से लेकर बच्चे के जन्म के बाद के खर्चों को ध्यान में रखकर सभी फैसले लिए जाते है. आज के समय में, विशेष रूप से मेट्रो शहरों में, शिशु के सुरक्षित जन्म और स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित करने के लिए बहुत सारी योजनाएं बनानी पड़ती हैं. कुछ मामलों में, दंपत्ति को माता-पिता बनने की यात्रा शुरू करने से पहले आईवीएफ या उपचार के अन्य कोर्स के लिए जाने की सलाह दी जा सकती है. लेकिन इसमें बहुत सारा पैसा खर्च हो सकता है. यहीं पर मैटरनिटी बेनिफिट के साथ हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी मदद कर सकती है. आजकल, कई इंश्योरेंस कंपनियों के पास विशेष योजनाएं होती हैं जो मैटरनिटी से जुड़े से जुड़ी सभी खर्चों को कवर करती हैं.”
हेल्थ इंश्योरेसं पॉलिसी में आधुनिक लाभ
व्यापक कवरेज: कुछ साल पहले, मैटरनिटी इंश्योरेंस कवरेज बच्चे के जन्म के साथ शुरू और समाप्त हो जाता था. वे केवल बच्चे के जन्म से संबंधित खर्चों को कवर करते थे. हालांकि, मां की स्वास्थ्य देखभाल इससे कहीं अधिक होती है. इसलिए, नए जमाने की मैटरनिटी योजनाओं अब बहुत अधिक व्यापक हो गई हैं और अब इसमें डिलीवरी से पहले और डिलीवरी के बाद का परामर्श और सहायक प्रक्रियाएं भी शामिल होती हैं. इसके अलावा, यह योजनाएं न केवल मां को कवर करती हैं, बल्कि नवजात शिशु से संबंधित 90 दिनों तक के मेडिकल खर्चों को भी कवर करते हैं, जिसके बाद बच्चे को पॉलिसी में जोड़ा जा सकता है. इनमें नवजात शिशु के टीकाकरण का खर्च भी शामिल है, जो काफी अधिक हो सकता है. यहां तक कि गर्भवती मां के लिए टीके भी इसमें शामिल हैं.
वेटिंग पीरियड में कमी: पहले, दंपत्ति को मैटरनिटी कवरेज का पात्र होने के लिए 2 से 4 साल के वेटिंग पीरियड प्रतीक्षा से गुजरना पड़ता था. लेकिन आधुनिक हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी अब न्यूनतम नौ महीने का वेटिंग पीरियड प्रदान करती हैं. इससे भी बेहतर, कुछ न्यू ऐज पॉलिसी ऐसी सुविधा भी प्रदान करती हैं, जिसमे पति/पत्नी के द्वारा सर्व किए गए वेटिंग पीरियड को पहले दिन से मैटरनिटी कवरेज प्राप्त करने के लिए ट्रांसफर किया जा सकता है.
व्यापक कवरेज दायरा: एक और चुनौती जिसका दम्पत्तियों को सामना करना पड़ता था वह है मातृत्व योजनाओं द्वारा प्रदान किया जाने वाला सीमित कवरेज. हालांकि, आजकल ऐसी योजनाएं हैं जो पॉलिसीधारकों को क्लेम न करने पर मैटरनिटी इंश्योरेंस राशि को अगले साल तक ले जाने की अनुमति देती हैं. पॉलिसी के आधार पर कैरी-फॉरवर्ड बेनिफिट एक निश्चित संख्या में वर्षों तक, अधिकतम 10 वर्षों तक सीमित है. उदाहरण के लिए, अगर पॉलिसी 20,000 रुपये का मैटरनिटी बेनिफिट प्रदान करती है और अगर 10 सालों तक कोई मैटरिनिटी क्लेम नहीं किया गया है, तो हर क्लेम फ्री ईयर के लिए 20,000 रुपये जोड़कर कुल मैटरनिटी कवर बढ़कर 2.2 लाख रुपये हो जाएगा.
इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि आप परिवार नियोजन के लिए इंतजार न करें बल्कि जल्द से जल्द इंश्योरेंस पॉलिसी लेने पर विचार करें ताकि आपकी इंश्योरेंस राशि बढ़ती रहे. इसके अलावा, कवर किए गए वेटिंग पीरियड को अपने जीवनसाथी को देने में सक्षम होने के लाभ के साथ, जो लोग विवाहित नहीं हैं वे भी इस योजना को चुन सकते हैं और पूरी अवधि के लिए मैटरनिटी इंश्योरेंस राशि जमा कर सकते हैं.
मैटरनिटी की अलग-अलग यात्राओं को कवर करना: अलग-अलग महिलाओं के लिए उनका मैटरनिटी सफर अलग-अलग होता है. इसे पहचानते हुए, आजकल कई इंश्योरेंस पॉलिसी असिस्टीड रिप्रोडक्टिव ट्रीटमेंट्स और इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) जैसे बांझपन के उपचार के लिए कवरेज प्रदान करती हैं. इसके अलावा, सरोगेसी के मामले में, दंपत्ति के अलावा, जिनके स्वास्थ्य को हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी के अंतर्गत कवर किया गया है, उनके अलावा सरोगेट माताओं की सरोगेसी और डिलीवरी को भी कवर किया जाएगा. साथ ही जो लोग बच्चा गोद लेना चाहते हैं, उनके लिए ये योजनाएं कानूनी रूप से गोद लेने की प्रक्रिया से संबंधित सभी खर्चों के लिए वित्तीय सुरक्षा भी प्रदान करती हैं. और अगर किसी मेडिकल परेशानी की वजह से गर्भावस्था को समाप्त करना पड़ता है, तो उससे संबंधित खर्चों को भी पॉलिसी के अंतर्गत कवर किया जाता है.
इसलिए, यह कहना उचित है कि ये योजनाएं मैटरनिटी से जुड़ी आपकी सभी जरूरतों को कवर करती हैं, जिससे साफ पता चलता है कि लोग इन पॉलिसीयों में निवेश करना जारी रखेंगे.
मैं एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी कर रही थी. अभी मुझे 2 साल भी नहीं हुए थे. कंपनी का एक बड़ा प्रोजैक्ट पूरा होने की खुशी में शनिवार को फाइव स्टार होटल में एक पार्टी थी. मुझे भी वहां जाना था. मेरे मैनेजर ने मुझे बुला कर खासतौर पर कहा, ‘‘प्रीति, तुम इस प्रोजैक्ट में शुरू से जुड़ी थीं, तुम्हारे काम से मैं बहुत खुश हूं. पार्टी में जरूर आना… वहां और सीनियर लोगों से भी तुम्हें इंट्रोड्यूज कराऊंगा जो तुम्हारे फ्यूचर के लिए अच्छा होगा.’’
‘‘थैंक्यू,’’ मैं ने कहा.
सागर मेरा मैनेजर है. लंबा कद, गोरा, क्लीन शेव्ड, बहुत हैंडसम ऐंड सौफ्ट स्पोकन. उस का व्यक्तित्व हर किसी को उस की ओर देखने को मजबूर करता. सुना है वाइस प्रैसिडैंट का दाहिना हाथ है… वे कंपनी के लिए नए प्रोजैक्ट लाने के लिए कस्टमर्स के पास सागर को ही भेजते. सागर अभी तक इस में सफल रहा था, इसलिए मैनेजमैंट उस से बहुत खुश है.
मैं ने अपनी एक कुलीग से पूछा कि वह भी पार्टी में आ रही है या नहीं तो उस ने कहा, ‘‘अरे वह हैंडसम बुलाए और हम न जाएं, ऐसा कैसे हो सकता है. बड़ा रंगीन और मस्तमौला लड़का है सागर.’’
‘‘वह शादीशुदा नहीं है क्या?’’ मैं ने पूछा.
‘‘एचआर वाली मैम तो बोल रही थीं शादीशुदा है, पर बीवी कहीं और जौब करती है. सुना है अकसर यहां किसी न किसी फ्रैशर के साथ उस का कुछ चक्कर रहा है. यों समझ लो मियांबीवी के बीच कोई तीसरी वो. पर बंदे की पर्सनैलिटी में दम है. उस के साथ के लिए औफिस की दर्जनों लड़कियां तरसती हैं. मेरी शादी के पहले मुझ पर भी डोरे डाल रहा था. मेरी तो अभी शादी भी नहीं हुई है, सिर्फ सगाई ही हुई है… एक शाम उस के नाम सही.’’
‘‘मतलब तेरा भी चक्कर रहा है सागर के साथ… पगली शादीशुदा हो कर ऐसी बातें करती है. खैर ये सब बातें छोड़ और बता तू आ रही है न पार्टी में?’’
‘‘हंड्रेड परसैंट आ रही हूं?’’
मैं शनिवार रात पार्टी में गई. मैं ने पार्टी के लिए अलग से मेकअप नहीं किया था. बस वही जो नौर्मल करती थी औपिस जाने के लिए. सिंपल नेवी ब्लू कलर के लौंग फ्रौक में जरा देर से पहुंची. देखा कि सागर के आसपास 4-5 लड़कियां पहले से बैठी थीं.
मुझे देख कर वह फौरन मेरे पास आ कर बोला, ‘‘वाऊ प्रीति, यू आर लुकिंग गौर्जियस. कम जौइन अस.’’
पहले सागर ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे वाइस प्रैसिडैंट के पास ले जा कर उन से मिलवाया.
उन्होंने कहा, ‘‘यू आर लुकिंग ग्रेट. सागर तुम्हारी बहुत तारीफ करता है. तुम्हारे रिपोर्ट्स भी ऐक्सीलैंट हैं.’’
मैं ने उन्हें थैंक्स कहा. फिर अपनी कुलिग्स की टेबल पर आ गई. सागर भी वहीं आ गया. हाल में हलकी रंगीन रोशनी थी और सौफ्ट म्यूजिक चल रहा था. कुछ स्नैक्स और ड्रिंक्स का दौर चल रहा था.
सागर ने मुझ से भी पूछा, ‘‘तुम क्या लोगी?’’
‘‘मैं… मैं… कोल्डड्रिंक लूंगी.’’
सागर के साथ कुछ अन्य लड़कियां भी हंस पड़ीं. ‘‘ओह, कम औन, कम से कम बीयर तो ले लो. देखो तुम्हारे सभी कुलीग्स कुछ न कुछ ले ही रहे हैं. कह कर उस ने मेरे गिलास में बीयर डाली और फिर मेरे और अन्य लड़कियों के साथ गिलास टकरा कर चीयर्स कहा.
पहले तो मैं ने 1-2 घूंट ही लिए. फिर धीरेधीरे आधा गिलास पी लिया. डांस के लिए फास्ट म्यूजिक शुरू हुआ. सागर मुझ से रिक्वैस्ट कर मेरा हाथ पकड़ कर डांसिंग फ्लोर पर ले गया.
पहले तो सिर्फ दोनों यों ही आमनेसामने खड़े शेक कर रहे थे, फिर सागर ने मेरी कमर को एक हाथ से पकड़ कर कहा, ‘‘लैट अस डांस प्रीति,’’ और फिर दूसर हाथ मेरे कंधे पर रख कर मुझ से भी मेरा हाथ पकड़ ऐसा ही करने को कहा.
म्यूजिक तो फास्ट था, फिर भी उस ने मेरी आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘मुझे स्लो स्टैप्स ही अच्छे लगते हैं. ज्यादा देर तक सामीप्य बना रहता है, कुछ मीठी बातें करने का मौका भी मिल जाता है और थकावट भी नहीं होती है.’’
मैं सिर्फ मुसकरा कर रह गई. वह मेरे बहुत करीब था. उस की सांसें मैं महसूस कर रही थी और शायद वह भी मेरी सांसें महसूस कर रहा था. उस ने धीरे से कहा, ‘‘अभी तुम्हारी शादी नहीं हुई है न?’’
‘‘नहीं, शादी अभी नहीं हुई है, पर 6 महीने बाद होनी है. समरेश मेरा बौयफ्रैंड ऐंड वुड बी हब्बी फौरन असाइनमैंट पर अमेरिका में है.’’
‘‘वैरी गुड,’’ कह उस ने मेरे कंधे और गाल पर झूलते बालों को अपने हाथ से पीछे हटा दिया, ‘‘अरे यह सुंदर चेहरा छिपाने की चीज नहीं है.’’
फिर उस ने अपनी उंगली से मेरे गालों को छू कर होंठों को छूना चाहा तो मैं ‘नो’ कह कर उस से अलग हो गई. मुझे अपनी सहेली का कहा याद आ गया था.
उस के बाद हम दोनों 2 महीने तक औफिस में नौर्मल अपना काम करते रहे.
एक दिन सागर ने कहा, हमें एक प्रोजैक्ट के लिए हौंगकौंग जाना होगा.’’
‘‘हमें मतलब मुझे भी?’’
‘‘औफकोर्स, तुम्हें भी.’’
‘‘नहीं सागर, किसी और को साथ ले लो इस प्रोजैक्ट में.’’
‘‘तुम यह न समझना कि यह मेरा फैसला है… बौस का और्डर है यह. तुम चाहो तो उन से बात कर सकती हो.’’
मैं ने वाइस प्रैसिडैंट से भी रिक्वैस्ट की पर उन्होंने कहा, ‘‘प्रीति, बाकी सभी अपनेअपने प्रोजैक्ट में व्यस्त हैं. 2 और मेरी नजर में थीं, उन से पूछा भी था, पर दोनों अपनी प्रैगनैंसी के चलते दूर नहीं जाना चाहती हैं… मेरे पास तुम्हारे सिवा और कोई औप्शन नहीं है.’’
मैं सागर के साथ हौंगकौंग गई. वहां 1 सप्ताह का प्रोग्राम था. काफी भागदौड़ भरा सप्ताह रहा. मगर 1 सप्ताह में हमारा काम पूरा न हो सका. अपना स्टे और 3 दिन के लिए बढ़ाना पड़ा. हम दोनों थक कर चूर हो गए थे. बीच में 2 दिन वीकैंड में छुट्टी थी.
हौंगकौंग के क्लाइंट ने कहा, ‘‘इसी होटल में स्पा, मसाज की सुविधा है. मसाज करा लें तो थकावट दूर हो जाएगी और अगर ऐंजौय करना है तो कोव्लून चले जाएं.’’
‘‘मैं तो वहां जा चुका हूं. तुम कहो तो चलते हैं. थोड़ा चेंज हो जाएगा,’’ सागर ने कहा.
हम दोनों हौंगकौंग के उत्तर में कोव्लून द्वीप गए. थोड़े सैरसपाटे के बाद सागर बोला, ‘‘तुम होटल के मसाज पार्लर में जा कर फुल बौडी मसाज ले लो. पूरी थकावट दूर हो जाएगी.’’
मै स्पा गई. स्पा मैनेजर ने पूछा, ‘‘आप ने अपौइंटमैंट में थेरैपिस्ट की चौइस नहीं बताई है. अभी पुरुष और महिला दोनों थेरैपिस्ट हैं मेरे पास. अगर डीप प्रैशर मसाज चाहिए तो मेरे खयाल से पुरुष थेरैपिस्ट बेहतर होगा. वैसे आप की मरजी?’’
मैं ने महिला थेरैपिस्ट के लिए कहा और अंदर मसाजरूम में चली गई. बहुत खुशनुमा माहौल था. पहले तो मुझे ग्रीन टी पीने को मिली. कैंडल लाइट की धीमी रोशनी थी, जिस से लैवेंडर की भीनीभीनी खुशबू आ रही थी. लाइट म्यूजिक बज रहा था. थेरैपिस्ट ने मुझे कपड़े खोलने को कहा. फिर मेरे बदन को एक हरे सौफ्ट लिनेन से कवर कर पैरों से मसाज शुरू की. वह बीचबीच में धीरेधीरे मधुर बातें कर रही थी. फिर थेरैपिस्ट ने पूछा, ‘‘आप को सिर्फ मसाज करानी है या कुछ ऐक्स्ट्रा सर्विस विद ऐक्स्ट्रा कौस्ट… पर इस टेबल पर
नो सैक्स?’’
‘‘मुझे आश्चर्य हुआ कि उसे ऐसा कहने की क्या जरूरत थी. मैं ने महसूस किया कि मेरी बगल में भी एक मसाज चैंबर था. दोनों के बीच एक अस्थायी पार्टीशन वाल थी. जैसेजैसे मसाज ऊपर की ओर होती गई मैं बहुत रिलैक्स्ड फील कर रही थी. करीब 90 मिनट तक वह मेरी मसाज करती रही. महिला थेरैपिस्ट होने से मैं भी सहज थी और उसे भी मेरे अंगों को छूने में संकोच नहीं था. उस के हाथों खासकर उंगलियों के स्पर्श में एक जादू था और एक अजीब सा एहसास भी. पर धीरेधीरे उस के नो सैक्स कहने का अर्थ मुझे समझ में आने लगा था. मैं अराउज्ड यानी उत्तेजना फील करने लगी. मुझे लगा. मेरे अंदर कामवासना जाग्रत हो रही है.’’
तभी थेरैपिस्ट ने ‘‘मसाज हो गई,’’ कहा और बीच की अस्थायी पार्टीशन वाल हटा दी. अभी मैं ने पूरी ड्रैस भी नहीं पहनी थी कि देखा दूसरे चैंबर में सागर की भी मसाज पूरी हो चुकी थी. वह भी अभी पूरे कपड़े नहीं पहन पाया था.
दूसरी थेरैपिस्ट गर्ल ने मुसकराते हुए कहा ‘‘देखने से आप दोनों का एक ही हाल लगता है, अब आप दोनों चाहें तो ऐंजौय कर सकते हैं.’’
मुझे सुन कर कुछ अजीब लगा, पर बुरा नहीं लगा. हम दोनों पार्लर से निकले. मुझे अभी तक बिना पीए मदहोशी लग रही थी. सागर मेरा हाथ पकड़ कर अपने रूम में ले गया. मैं भी मदहोश सी उस के साथ चल पड़ी. उस ने रूम में घुसते ही लाइट औफ कर दी.
सागर मुझ से सट कर खड़ा था. मेरी कमर में हाथ डाल कर अपनी ओर खींच रहा था और मैं उसे रोकना भी नहीं चाहती थी. वह अपनी उंगली से मेरे होंठों को सहला रहा था. मैं भी उस के सीने से लग गई थी. फिर उस ने मुझे किस किया तो ऐसा लगा सारे बदन में करंट दौड़ गया. उस ने मुझे बैड पर लिटा दिया और कहा, ‘‘जस्ट टू मिनट्स, मैं वाशरूम से अभी आया.’’
सागर ने अपनी पैंट खोल बैड के पास सोफे पर रख दी और टौवेल लपेट वह बाथरूम में गया. मैं ने देखा कि पैंट की बैक पौकेट से उस का पर्स निकल कर गिर पड़ा और खुल गया. मैं ने लाइट औन कर उस का पर्स उठाया. पर्स में एक औरत और एक बच्चे की तसवीर लगी थी.
मैं ने उस फोटो को नजदीक ला कर गौर से देखा. उसे पहचानने में कोई दिक्कत नहीं हुई. मैं ने मन में सोचा यह तो मेरी नीरू दी हैं. कालेज के दिनों में मैं जब फ्रैशर थी सीनियर लड़के और लड़कियां दोनों मुझे रैगिंग कर परेशान कर रहे थे. मैं रोने लगी थी. तभी नीरू दी ने आ कर उन सभी को डांट लगाई थी और उन्हें सस्पैंड करा देने की वार्निंग दी थी. नीरू दी बीएससी फाइनल में थीं. इस के बाद मेरी पढ़ाई में भी उन्होंने मेरी मदद की थी. तभी से उन के प्रति मेरे दिल में श्रद्धा है. आज एक बार फिर नीरू दी स्वयं तो यहां न थीं, पर उन के फोटो ने मुझे गलत रास्ते पर जाने से बचा लिया. मेरी मदहोशी अब फुर्र हो चली थी.
सागर बाथरूम से निकल कर बैड पर आया तो मैं उठ खड़ी हुई. उस ने मुझे बैड पर बैठने को कहा, ‘‘लाइट क्यों औन कर दी? अभी तो कुछ ऐंजौय किया ही नहीं.’’
‘‘ये आप की पत्नी और साथ में आप का बेटा है?’’
‘‘हां, तो क्या हुआ? वह दूसरे शहर में नौकरी कर रही है?’’
‘‘नहीं, वे मेरी नीरू दीदी भी हैं… मैं गलती करने से बच गई,’’ इतना बोल कर मैं उस के कमरे से निकल गई.
जहां एक ओर मुझे कुछ आत्मग्लानि हुई तो वहीं दूसरी ओर साफ बच निकलने का सुकून भी था. वरना तो मैं जिंदगीभर नीरू दी से आंख नहीं मिला पाती. हालांकि सागर ने कभी मेरे साथ कोई जबरदस्ती करने की कोशिश नहीं की.
इस के बाद 3 दिन और हौंगकौंग में हम दोनों साथ रहे… बिलकुल प्रोफैशनल की तरह
अपनेअपने काम से मतलब. चौथे दिन मैं और सागर इंडिया लौट आए. मैं ने नीरू दी का पता लगाया और उन्हें फोन किया. मैं बोली, ‘‘मैं प्रीति बोल रही हूं नीरू दी, आप ने मुझे पहचाना? कालेज में आप ने मुझे रैगिंग…’’
‘‘ओ प्रीति तुम? कहां हो आजकल और कैसी हो? कालेज के बाद तो हमारा संपर्क ही टूट गया था.’’
‘‘मैं यहीं सागर की जूनियर हूं. आप यहीं क्यों नहीं जौब कर रही हैं?’’
‘‘मैं भी इस के लिए कोशिश कर रही हूं. उम्मीद है जल्द ही वहां ट्रांसफर हो जाएगा.’’
‘‘हां दी, जल्दी आ जाइए, मेरा भी मन लग जाएगा,’’ और मैं ने फोन बंद कर दिया. हौंगकौंग के उस कमजोर पल की याद फिर आ गई, जिस से मैं बालबाल बच गई थी और वह भी सिर्फ एक तसवीर के चलते वरना अनजाने में ही पतिपत्नी के बीच मैं ‘वो’ बन गई होती.