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डर : आखिर क्यों शादी से खुश नहीं था प्रभास ?

मेजर प्रभास अपने बड़े भाई वीर की शादी में घर आया था. घर में खुशी का माहौल था. वीर बैंगलुरु की एक कंपनी में इंजीनियर था. वीर का जहां रिश्ता हो रहा था उस परिवार में 3 लड़कियों में नेहा सब से बड़ी थी. नेहा के पिता नीलेश जल्दी से जल्दी नेहा की शादी कर के जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते थे. नेहा कुछ दिनों से पुणे में जौब कर रही थी, लेकिन अब शादी के बाद सबकुछ पीछे छूटने वाला था. उस के दोस्त, वे पार्टियां वह होस्टल…

प्रभास के आर्मी में होने से सभी लोग बहुत खुश थे. शादी के भीड़भाड़ वाले माहौल में भी लोग उस के चायपानी, खाने का विशेष ध्यान रख रहे थे. हलदी की रात सभी लोगों ने खूब डांस किया. शादी के दिन प्रभास रोज की तरह सुबह 4 बजे ही उठ गया. प्रभास ने पलट कर देखा तो वीर अपने पलंग से गायब था. उस ने पूरे घर मेें चक्कर लगाया. घूमफिर कर वापस पलंग पर आ कर बैठ गया. तभी उसे पलंग के कोने में रखा वीर का खत मिला, जिस में लिखा था, ‘प्रभास, मुझे माफ कर देना, अनन्या नाम की लड़की से मेरी पहले ही रजिस्टर मैरिज हो चुकी है. वह दूसरी जाति की है और मांपिताजी उसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे. इसलिए मैं हमेशा के लिए घर छोड़ कर जा रहा हूं.’

खत पढ़ते ही प्रभास पिता के पास गया. घर के सभी लोग टैंशन में आ गए. सोच में पड़ गए कि लड़की वालों को क्या जवाब दें. अंत में घर के सभी बड़े लोगों ने मिल कर प्रभास को दूल्हा बनाने का निर्णय लिया. परिस्थिति के आगे प्रभास लाचार हो गया. लड़की वालों की सहमति से नेहा और प्रभास का विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ. लेकिन प्रभास इस शादी से खुश नहीं था. छुट्टियां खत्म होने से पहले ही वह ड्यूटी पर जाने की तैयारी करने लगा. प्रभास की मां ने नेहा और प्रभास दोनों के बीच की दूरियां कम करने हेतु नेहा को भी साथ ले जाने की जिद पकड़ी.

मांपिताजी की किटकिट सुनने से बेहतर वह नेहा को साथ ले कर श्रीनगर निकल गया. वहां एक दोस्त की पत्नी डिलीवरी के लिए मायके गई थी तो उस का घर खाली था. दोनों वहीं कुछ दिनों तक रहे. रेलगाड़ी के पूरे सफर में प्रभास एक मिनट के लिए भी नेहा के पास नहीं बैठा और दरवाजे के पास जा कर खड़ा रहा. प्रभास का यह रूखा व्यवहार देख कर नेहा की आंखों में आंसू आने लगे.

नेहा को यह शादी नहीं करनी थी. लेकिन मजबूर थी क्योंकि 2 और भी बेटियां अभी मातापिता को ब्याहनी थीं. मन में विचार आया कि पुणे भाग जाए. नेहा अपनी जिंदगी के बारे में सोच रही थी कि तभी प्रभास आया.

‘‘चलो, श्रीनगर आ गया, बैग लो.’’

नेहा बैग ले कर प्रभास के पीछेपीछे चलने लगी. दोनों ने टैक्सी पकड़ी. रात के 12 बज रहे थे. कुछ दूर जाने पर एक दहशतगर्द टैक्सी के सामने आ कर खड़ा हो गया.

‘‘चलो, चलो, नीचे उतरो, नहीं तो सिर पर गोली मार दूंगा. उतरो, देख क्या रहे हो?’’

‘‘निकलो, जल्दी बाहर निकलो,’’ ड्राइवर घबराते हुए चिल्लाने लगा.

‘‘गाड़ी से दूर खड़े हो जाओ.’’ दहशतगर्द ने चिल्लाते हुए कहा.

तभी आर्मी वाले बंदूक ले कर वहां पहुंचे. नेहा और प्रभास एकदूसरे के साथ लेकिन दूरदूर खड़े थे. इस मौके का फायदा उठा कर दहशतगर्द ने नेहा को दबोच लिया और उस के सिर पर बंदूक तान दी, चिल्लाते हुए कहा, ‘‘खबरदार, अगर कोई आगे आया तो. इस लड़की की जान प्यारी है तो मुझे यहां से जाने दो.’’

‘‘मेजर रजत, बंदूक नीचे करो. उसे जाने दो. बादल, तू यहां से जा, लेकिन उस लड़की को छोड़ दे,’’ कैप्टन वसु ने कहा.

‘‘पहले दूर हटो.’’

कुछ ही पल में दहशतवादी बादल नेहा को ले कर फरार हो गया. प्रभास अब पछता रहा था. नेहा को कुछ हुआ तो मैं खुद को कभी माफ नहीं करूंगा. मैं बेवजह ही नेहा से ऐसा व्यवहार कर रहा था. गलती तो मेरे भाई ने की है और मैं गुस्सा नेहा पर निकाल रहा हूं. वह बिलकुल निराश हो गया था.

‘‘मेजर प्रभास, मैं आप की परिस्थिति समझ सकता हूं. हम हर रास्ते पर चैकिंग कर रहे हैं. नेहा जल्दी ही मिल जाएगी.’’

बादल नेहा को ले कर जंगल में पहुंच गया. उस के पैरों से खून निकल रहा था. उस ने नेहा को गाड़ी से बाहर निकाला. दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गए.

‘‘देखो, मुझे जाने दो प्लीज.’’

‘‘छोड़ दूंगा तुझे, कुछ देर चुप बैठ. मैं भागभाग के थक गया हूं. थोड़ा आराम करने दे मुझे.’’

नेहा शांति से बैठ गई. प्रभास के पास वापस जा कर मैं क्या करूंगी? उस के बजाय यह दहशतगर्द मुझे यहीं मार देगा तो अच्छा होगा, इस तरह के विचार उस के मन में उठ रहे थे. बादल एक घंटे बैठा रहा. बीचबीच में वह नेहा की तरफ देख रहा था. हवा से उड़ते नेहा के घुंघराले बाल, गहरी भूरी आंखें, खूबसूरत चेहरा बादल के मन को आकर्षित कर रहा था. बादल के कदम नेहा की तरफ बढ़ने लगे. नेहा अपने ही विचारों में खोई हुई थी.

थोड़ी देर में बादल नेहा के पास आया. उस के दोनों हाथ और मुंह बांध कर उसे जंगल से बाहर हाईवे पर ले गया. हाईवे के करीब जा कर नेहा को अपनी बांहों में ले कर कहा, ‘‘ये भेंट मुझे हमेशा याद रहेगी.’’

हाईवे पर एक फोरव्हीलर आते देख बादल ने नेहा को उस की तरफ ढकेला और एक ही पल में गायब हो गया. फोरव्हीलर में बैठे लोगों ने नेहा को आर्मी वालों को सौंप दिया.

‘‘कैसी हो तुम,’’ प्रभास ने प्यार से पूछा.

‘‘मेजर प्रभास, पहले आर्मी वाले नेहा से पूछताछ करेंगे. इस के बाद तुम पतिपत्नी एकदूसरे से मिलना.’’

आर्मी वाले पूछताछ के लिए नेहा को अंदर ले गए. बाहर खिड़की के पास प्रभास खड़ा रहा. प्रभास नेहा को एक मिनट के लिए भी छोड़ने को तैयार नहीं था.

‘‘बादल तुम्हें कहां ले कर गया था?’’

‘‘गाड़ी एक जंगल में रुकी थी.’’

‘‘ उस ने तुम्हें कोई तकलीफ दी?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तुम उस के साथ कम से कम एक घंटे थीं. वह कुछ बोल रहा था?’’

‘‘कुछ नहीं, बोल रहा था कि मैं भागभाग कर बहुत थक गया हूं.’’

‘‘और कुछ याद आ रहा है?’’

नेहा सिर नीचे कर के थोड़ी देर सोचने के बाद बोली, ‘‘नहीं.’’ लेकिन नेहा का यह जवाब मेजर रजत को झूठ लग रहा था. प्रभास नेहा को ले कर घर आया. पहले उस ने नेहा से मांफी मांगी और वादा किया कि अब इस के आगे कभी कोई गलती नहीं होगी.

शाम को दोस्तों के साथ प्रभास बाहर घूमने गया. नेहा घर में अकेली थी. बड़े दिनों बाद आज नेहा तनावमुक्त लग रही थी. वह निश्चित हो कर बैड पर लेटी हुई थी. तभी दरवाजे की घंटी बजी. खोला तो वहां एक बुके और एक चिट्ठी पड़ी थी. नेहा ने जल्दी से चिट्ठी खोली, उस में लिखा था, ‘ये भेंट तुम्हें हमेशा मेरी याद दिलाएगी.’ इतना पढ़ते ही नेहा ने तुरंत वह बुके और चिट्ठी दोनों रास्ते पर फेंक दिए और भाग कर घर में आई और दरवाजा बंद कर के रोने लगी. बड़ी मुश्किल से तो प्रभास और नेहा एकदूसरे के करीब आए थे कि यह दूसरी मुसीबत खड़ी हो गई.

प्रभास रात 8 बजे घर आया. लेकिन नेहा के पास प्रभास से बादल के बारे में बात करने की हिम्मत नहीं थी. दूसरे दिन दोनों शौपिंग करने मौल गए. नेहा ने कुछ ड्रैस खरीदीं और ट्रायल के लिए जैसे ही चैंजिंग रूम में गई, बादल ने अपने हाथों से उस का मुंह दबा दिया. नेहा के शांत होने पर उस ने अपना हाथ हटाया.

‘‘देखो, मेरा पीछा मत करो. तुम क्यों मुझे परेशान कर रहे हो?’’

‘‘तुम्हारी आवाज तुम से भी ज्यादा सुंदर है.’’

‘‘तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता है,’’ नेहा ने झटके से दरवाजा खोला.

‘‘हम ऐसे ही रोज मिल सकते हैं. तुम्हारे पति को कुछ पता नहीं चलेगा.’’

‘‘क्यों मिलूं, मैं नहीं मिलना चाहती,’’ नेहा जल्दी से भागी और प्रभास के पास जा कर खड़ी हो गई.

थोड़ी देर में आर्मी वालों की तरफ से खबर मिली कि बादल मौल में आया था. मौल में सीसीटीवी में वह नेहा के साथ दिखाई दे रहा है. प्रभास यह खबर सुन कर हैरान हो गया. प्रभास आर्मीवालों के साथ घर पहुंचा.

‘‘तुम बादल को कैसे पहचानती हो?’’

‘‘मैं उसे नहीं पहचानती हूं. वह मेरे पीछे पड़ा हुआ है.’’

‘‘शायद वह तुम्हारे प्यार में पड़ गया है. देखो नेहा, आज के बाद तुम बादल को पकड़ने में हमारी मदद करोगी,’’ कैप्टन वसु ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं कोशिश करूंगी.’’

योजनानुसार, प्रभास और नेहा कुछ दिनों के लिए एक हिल स्टेशन पर गए. हफ्ता बीत गया, लेकिन बादल नहीं आया. अंत में वे घर आ गए. प्रभास रोज की तरह शाम को घूमने गया. नेहा के मन में बादल के ही विचार घूम रहे थे. तभी बादल खिड़की से कूद कर अंदर आया.

‘‘तुम मेरे बारे में ही सोच रही हो न.’’

‘‘हां, लेकिन तुम इतने दिनों से कहां गायब थे?’’ बादल को घर में रोकने के लिए नेहा उस से मीठीमीठी बातें करने लगी.

‘‘देखा, अब तुम भी मुझ से मिले बिना नहीं रह सकती हो. इसी को प्यार कहते हैं.’’

‘‘हां, हम कल फिर से मिलेंगे.’’

‘‘कल पास वाले मौल के थिएटर में मिलेंगे, अभी मैं जा रहा हूं, नहीं तो तुम्हारा पति आ जाएगा.’’

बादल गया और 5 मिनट में ही प्रभास आ गया.

‘‘वह आया था,’’ नेहा बोली.

‘‘कौन? बादल?’’

‘‘हां, कल मौल के पास थिएटर में बुलाया है उस ने.’’

‘‘बहुत अच्छा. कल तुम थिएटर अकेले जाओगी.’’

‘‘क्या…?’’

‘‘घबराओ मत. आर्मीवाले सादी ड्रैस में तुम्हारे आसपास ही रहेंगे. मैं यदि तुम्हारे साथ रहूंगा, तो वह कल भी पकड़ में नहीं आ पाएगा.’’

दूसरे दिन सुबह नेहा थिएटर जाने के लिए निकली. तय समय

पर नेहा वहां पहुंच गई. थोड़ी ही देर में बादल वहां मोटरसाइकिल से आया. थोड़ी ही देर में आर्मी वालों ने उसे दबोच लिया. उसे भागने का मौका नहीं मिल पाया. आर्मी वालों को देख कर बादल गुस्सा होने लगा.

‘‘धोखा दिया तुम ने, नेहा, यह ठीक नहीं किया. तुम्हें यह बहुत महंगा पड़ेगा.’’

‘‘अरे, तुम हमारे भारतमाता को धोखा दे रहे हो, इसलिए तुम्हारे साथ विश्वासघात करने का मुझे कोई दुख नहीं है.’’

थोड़ी देर में प्रभास वहां पहुंचा. उसे देखते ही नेहा रोने लगी.

‘‘बसबस, अब रोने के दिन खत्म हो गए. जल्दी ही हम कुछ दिनों के लिए गांव जाएंगे.’’

प्रभास के शब्दों से नेहा को साहस मिला और उस के जीवन में खुशियों की शुरुआत हो गई. लेकिन कभीकभी बादल की आंखें और उस की आवाज के बारे में सोच कर वह आज भी डर जाती है.

बेवफा : सरिता ने दीपक से शादी के लिए इंकार क्यों किया था ?

दीपक और सरिता की शादी होना लगभग तय ही था कि सरिता ने अचानक किसी और से शादी कर ली. 20 साल बाद जब दीपक की बहन रागिनी को इस के पीछे की सचाई का पता चला तो उस के पैरों तले जमीन खिसक गई. क्या पता चला था उसे…‘‘मेरीतबीयत ठीक नहीं है रितु, मैं घर जा रही हूं. जाते समय चाबी पहुंचा देना…’’

यह आवाज तो जैसे जानीपहचानी है. एक बार तो मेरे मन में आया कि आंखों से गीली रुई हटा कर उसे देखूं. मगर तब तक दूर जाती सैंडलों की आहट से मैं समझ गईर् कि बोलने वाली जा चुकी है. उस की आवाज अभी भी मेरे कानों में गूंज रही थी, इसलिए मैं अपनी उत्सुकता दबा नहीं पाई.

‘‘यही तो हैं इस ब्यूटीपार्लर की मालकिन सरिता राजवंश… ऊपर ही अपने पति के साथ रहती हैं. रुपएपैसों की कोई कमी नहीं है. बस खालीपन से बचने के लिए यह पार्लर चलाती हैं,’’ जितना पूछा उस से कहीं ज्यादा बता दिया रितु ने.

नाम सुनते ही मेरा रोमरोम जैसे झनझना उठा. चेहरे पर फेस पैक लगा था वरना अब तक न जाने कितने रंग आते और जाते. पिछले ही हफ्ते मेरे पति का तबादला यहां हुआ था. मैं घर में सामान अरेंज करतेकरते काफी थक गई थी. चेहरे की थकान मिटाने के लिए यहां फेशियल कराने आई थी. आश्चर्य कि यह पार्लर मेरी सब से प्यारी सहेली सरिता का था. विश्वास नहीं होता… मैडिकल की तैयारी करने वाली सरिता एक मामूली सा पार्लर चला रही है. लेकिन उस ने मुझे पहचाना क्यों नहीं या पहचान गई इसलिए यहां से चली गई? और भी न जाने कितने सवाल जिन के जवाब मैं पिछले 20 सालों से खोज रही हूं.

वे स्कूलकालेज के दिन… मैं, दीपक भैया और सरिता सब एकसाथ एक ही स्कूल में पढ़ते थे. हम पड़ोसी थे. दीपक भैया मुझ से 2 साल बड़े थे, लेकिन पता नहीं क्यों मां ने हम दोनों का नामांकन एक ही क्लास में करवाया था. दोनों परिवारों की एकजैसी हैसियत के कारण ही शायद हमारी दोस्ती बहुत निभती थी. सरिता के पिताजी एक दफ्तर में क्लर्क थे और मेरी मां एक स्कूल में अध्यापिका. मैं छोटी थी तभी पापा चल बसे थे. दीपक भैया और सरिता की बचपन की दोस्ती धीरेधीरे प्यार का रूप लेने लगी थी. दोनों के जवां दिलों में प्यार का अंकुर फूटने लगा था. मुझे आज भी याद है, रविवार की वह शाम जब दोनों परिवारों के सभी सदस्य मिल कर ‘कुछकुछ होता है’ फिल्म देखने गए थे. दीपक भैया ने गुजारिश की और मैं ने अपनी सीट उन से बदल ली ताकि वे सरिता की हथेलियों को अपने हाथों में ले कर इस संगीतमय और रोमांटिक वातावरण में अपने प्यार का इजहार कर सकें.

फिल्म खत्म होने के बाद सरिता की आंखों की चमक देख कर ही मैं समझ गई थी कि मेरी प्यारी सखी अब हमेशा के लिए मेरे घर में आने वाली है.

पापा की मौत के बाद मैं ने अपने जिस भाईर् को एक पिता की तरह गंभीरतापूर्वक जिम्मेदारियों को निभाते हुए देखा था आज उस के मन में अपनी जिंदगी के प्रति उत्साह एवं आत्मविश्वास देख कर मेरा मन सरिता के प्रति अंदर से झुक जाता था. शायद सरिता के निश्छल प्यार की ही ताकत थी कि पहली बार में ही भैया ने एमबीबीएस की परीक्षा पास कर ली. उस दिन सरिता इतनी खुश थी कि उसे अपने फेल होने का भी कोई गम नहीं था.

सबकुछ इतना अच्छा चल रहा था फिर अचानक एक दिन जब हम दोनों भाईबहन मौसी के घर गए हुए थे और 1 हफ्ते बाद लौटे तो पता चला कि सरिता ने दिल्ली के किसी अमीर आदमी से शादी कर ली है. उस के मम्मीपापा ने भी साफसाफ कुछ बताने से इनकार कर दिया.

फिर तो जैसे दीपक भैया के सारे सपने रेत के घरौंदे की तरह सागर में एकसार हो गए. जिन लहरों से कभी उन्होंने बेपनाह मुहब्बत की थी उन्हीं लहरों ने आज उन्हें गम के सागर में डुबो दिया. उस समय कितनी मुश्किल से मैं ने खुद और भैया को संभाला था यह मैं ही जानती हूं.

‘‘सैवन हंड्रेड हुए मैम,’’ रितु की आवाज सुन कर मैं अतीत से वर्तमान में आ गई. 1 घंटे का फेशियल कब पूरा हो गया पता ही नहीं चला. मैं ने पर्स से रुपए निकाल कर उसे दिए और फिर बाहर आ गई. मैं ने देखा कि बगल में ही ऊपर जाने वाली सीढि़यां थीं.

‘तो सरिता यहीं रहती है,’ सोच मेरे कदम स्वत: ही ऊपर की ओर बढ़ने लगे. सीढि़यों के खत्म होते ही दाहिनी ओर एक दरवाजा था. मैं ने कौलबैल बजाई. मेरे लिए 1-1 पल असहनीय हो रहा था. मैं अपने सारे सवालों के जवाब जानने के लिए उतावली हो रही थी. 20 वर्ष तो बीत गए, मगर ये 20 सैकंड नहीं कट रहे थे. अब तक मैं 4 बार बैल बजा चुकी थी. पुन: बैल बजाने के लिए हाथ उठाया ही था कि दरवाजा खुल गया. मेरे सामने एक अपाहिज, किंतु शानदार व्यक्तित्व का स्वामी व्हील चेयर पर बैठा था.

उस के चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक साफ झलक रही थी. मुझे देख कर एक क्षण के लिए वह अवाक रह गया. मगर अगले ही पल उस ने मुसकराते हुए मुझे अंदर आने को कहा. ऐसा लगा जैसे किसी पुराने मित्र ने मुझे पहचान लिया हो. मगर मेरी आंखें तो कुछ और ही खोज रही थीं.

‘‘सरिता तो अभी घर पर नहीं है. आप रागिनीजी हैं न?’’

उस व्यक्ति के मुंह से अपना नाम सुन कर मैं जैसे आसमान से गिरी… आवाज गले में ही अटक कर रह गई.

‘‘मेरा नाम सुमित है. मांजी और दीपक कैसे हैं? आप का इस शहर में कैसे आना हुआ? आप की शादी तो मुंबई में होने वाली थी न?’’

सवाल तो मैं पूछने आई थी, मगर मुझे नहीं मालूम था कि मुझे ऐसे सवाल सुनने पड़ेंगे… तो क्या सरिता ने अपने पति को सबकुछ बता दिया है?

‘‘आप इतना सबकुछ मेरे बारे में…’’ मेरे हलक से आवाज ही नहीं निकल पा रही थी और फिर मैं बिना कुछ और कहे वहीं सोफे पर धम्म से बैठ गई.

तभी सामने दिखी वह तसवीर, जो हम ने अपने फेयरवैल वाले दिन खिंचवाई थी. मैं दीपक

भैया और सरिता… एक क्षण में मैं समझ गई कि मैं इस घर के लिए अपरिचित नहीं हूं. मगर यह नहीं समझ में आया कि ‘प्यार दोस्ती है,’ कहने वाली सरिता ने अपने प्यार और दोस्ती दोनों के साथ विश्वासघात क्यों किया? वादे को क्यों तोड़ा उस ने?

‘‘अभी 1 घंटा पहले ही सरिता ने आ कर मुझे बताया कि तुम उस के पार्लर में आई हो… वह समझ गईर् थी कि तुम यहां आओगी जरूर. तभी वह यहां से चली गई है.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं. आखिर वह कौन सा मुंह ले कर मेरा सामना कर पाएगी,’’ मेरे मन की कड़वाहट शब्दों में स्पष्ट घुल गई थी.

‘‘सरिता ने जैसा बताया था आप बिलकुल वैसी ही हैं. इतने वर्षों में न तो आप बदलीं और न ही आप की सहेली,’’ सुमित ने कहा तो मैं ने अपनी नजरें उस पर टिका दीं. आखिर कौन सी खूबी है इस में जिस के लिए सरिता ने दीपक भैया के प्यार को ठुकरा दिया?

‘‘सरिता तो आज भी 20 साल पुरानी उन्हीं गलियों में भटक रही है, जहां दीपक की यादें बसती हैं. हर दिन, हर पल वह उन्हीं यादों के सहारे जीती है. दुनिया के लिए तो वह मेरी सरिता है, मगर सही माने में वह आज भी दीपक की ही सरिता है.

‘‘मैं एक दुर्घटना में अपाहिज हो गया था. तब एक केयर टेकर के लिए दिया गया मेरा इश्तिहार पढ़ कर सरिता मेरे पास आई और मुझ से शादी करने की विनती करने लगी. अंधा क्या चाहे दो आंखें… बस मैं ने हां कर दी… सच कहूं तो सरिता जैसी केयरटेकर पा कर मैं धन्य हो गया… मेरे जीवन की खुशियां उस की ही देन हैं.’’

‘‘हमारे घर की खुशियों में आग लगा कर उस ने आप के जीवन में रोशन की है… चमक तो होगी ही,’’ पता नहीं क्यों मैं सीधेसीधे सरिता को बेवफा नहीं कह पा रही थी.

‘‘आप थोड़ा रुकिए मैं अभी आप की गलतफहमी दूर किए देता हूं,’’ कह कर सुमित अंदर से एक डायरी ले आए.

‘‘यह डायरी तो सरिता की है. भैया ने ही उसे उस के जन्मदिन पर उपहारस्वरूप दी थी,’’ कह मैं ने जैसे ही डायरी खोली मेरी नजर एक पत्र पर पड़ी. उस की लिखावट बिलकुल मेरी मां की लिखावट से मिलती थी. अरे, यह तो सचमुच मेरी मां का ही लिखा पत्र है जो उन्होंने सरिता के लिए लिखा था आज से 20 साल पहले-

‘‘सरिता बेटी,

‘‘मैं जानती हूं कि तुम दीपक से बेहद प्यार करती हो और रागिनी तुम्हारी प्यारी सहेली है. मेरी बहन ने दीपक की शादी के लिए एक लड़की देखी है. उस के मातापिता दीपक को बहुत अधिक दहेज दे रहे हैं. तुम तो जानती हो कि दीपक की डाक्टरी की पढ़ाई में मेरे सारे जेवर बिक गए हैं. ऐसे में रागिनी की शादी और दीपक के अच्छे भविष्य के लिए मुझे उस लड़की को ही घर की बहू बनाना पड़ेगा. दीपक तो मेरी बात मानेगा नहीं. ऐसे में उस का भविष्य और रागिनी की जिंदगी अब तुम्हारे हाथों में है. मैं जिंदगी भर तुम्हारा एहसान मानूंगी.

‘‘तुम्हारी मजबूर आंटी.’’

पत्र पढ़ते ही मैं सुबक उठी… ‘‘यह तुम ने क्या कर दिया सरिता? हमारी खुशियों के लिए अपनी जिंदगी में आग लगा ली? आखिर क्यों सरिता? क्या कोई दूसरा रास्ता नहीं था? आज तुम से पूछे बिना मैं यहां से नहीं जाऊंगी. इतने वर्षों तक मैं और दीपक भैया तुम्हें बेवफा समझ कर तुम से नफरत करते रहे और तुम…’’

‘‘दीपक की नफरत ही तो उस के जीने का साधन है. एक ही क्षेत्र में रह कर शायद कहीं किसी मोड़ पर दीपक से मुलाकात न हो जाए, इसीलिए उस ने वह रास्ता ही छोड़ दिया. सरिता कभी नहीं चाहती थी कि तुम लोग उस की हकीकत जानो. इसलिए अगर तुम सच में सरिता को खुश देखना चाहती हो तो उस से बिना मिले ही चली जाओ वरना वह चैन से जी नहीं पाएगी…’’ सुमित ने कहा.

मुझे सुमित की बात सही लगी. मैं एक बार फिर दीपक भैया के प्रति सरिता के प्यार को देख कर नतमस्तक हो गई. सरिता ने तो प्यार और दोस्ती दोनों शब्दों को सार्थक कर दिया था. बस हम ही उसे नहीं समझ पाए.

मधु बना विष : रश्मि के ससुराल में किस बात को लेकर बहस छिड़ गई थी ?

बचपन में होश संभालने के बाद पंकज ने बूआ के मुंह से यही सुना था कि ‘यह तुम्हारी मम्मी की तसवीर है. पहले वह तसवीर पंकज के पिता शिवानंद के कमरे में टंगी थी क्योंकि इस के साथ उन की कुछ यादें जुड़ी थीं. कभी चित्र की नायिका ने शिवानंद से कहा भी था, ‘अब तो मैं सशरीर यहां रहती हूं. तब मेरा इतना बड़ा चित्र क्यों लगा रखा है? अब तो मैं वधू भी नहीं रही, एक बच्चे की मां बन चुकी हूं.’

शिवानंद ने तब हंसते हुए कहा था, ‘क्या करूं मेरी आंखों में तुम्हारा वही रूप समाया हुआ है.’

‘हमेशा पहले जैसा तो नहीं रहेगा,’ रश्मि बोली, ‘अब तो रूप बदल गया है.’ ‘नहीं, रश्मि. हम बूढे़ हो जाएंगे तब भी तुम ऐसी ही याद आती रहोगी,’ शिवानंद भावुक हो कर बोले, ‘पहली झलक यही तो देखी थी.’

यह सच था कि विवाह से पहले शिवानंद और रश्मि ने एक दूसरे को देखा नहीं था. रश्मि को परिवार के दूसरे लोगों ने देखा और पसंद किया. तब जयमाला की रस्म होती नहीं थी. विवाह के समय सबकुछ इतना दबादबा हुआ था कि चाह कर भी शिवानंद पत्नी को देख नहीं सके. विवाह कर घर लौटे तो अपने कमरे में टंगे चित्र में पत्नी को पहली बार देखा तो देखते ही रह गए. इस चित्र को उन के छोटे भाई सदानंद  ने खींचा था और बड़ा करा कर भाई के कमरे में लगा दिया था.

रश्मि के कई बार टोकने पर भी वह चित्र उन के शयनकक्ष में लगा ही रहा. 2 साल में रश्मि ने एक सुंदर से बच्चे को जन्म दिया, जिस का नाम पंकज रखा गया. पंकज भरेपूरे परिवार का दुलारा था. उस के दिन सुख से बीत रहे थे कि रश्मि में पुन: मातृत्व के लक्षण उभरे. घर में बेटा या बेटी को ले कर एक नई बहस छिड़ गई. दादी कहती कि एक बेटा और हो जाए तो पंकज को भाई मिल जाएगा. दोनों भाई उसी तरह साथ रहेंगे जैसे मेरे शिवानंदसदानंद रहे. बूआ पूछती, ‘मां, क्या बहन भाई के सुखदुख की साथी नहीं होती?’

इस तरह के हासपरिहास में 4 महीने बीत गए कि अचानक एक दिन रश्मि अपनी ही साड़ी में उलझ कर सीढि़यों से लुढ़कती हुई नीचे आ गिरी. बच्चा पेट में ही मर गया. रश्मि की चोट गहरी थी. उसे भी बचाया नहीं जा सका.

रश्मि का वधूवेश में लिया चित्र पहले जहां टंगा रहता था उस की मृत्यु के बाद भी वही टंगा रहा. नन्हा पंकज पूछता तो बूआ बहलाते हुए कहतीं, ‘मम्मी, अभी फोटो में से निकल कर आसमान में घूमने गई हैं.’

‘कैसे, प्लेन में बैठ कर?’

‘हां, बेटा.’

‘बूआ, मम्मी, घूम कर कब आएगी?’

‘बस, एकदो दिन में आ जाएगी.’

शिवानंद के विरोध पर उन का विवाह टल गया था. उस दौरान बेटी प्रभा भी शादी कर के अपनी ससुराल चली गई. मां को गृहस्थी संभालना पहाड़ लग रहा था क्योंकि बहू और बेटी के रहते हुए उन में निश्ंिचतता की आदत पड़ गई थी. मां मजबूरी में घर तो संभाल रही थी पर बेटे व पोते की तकलीफ जब देखी नहीं गई तो उन्होंने शिवानंद पर फिर से शादी कर लेने का दबाव यह सोच कर बनाया कि पत्नी आने के बाद पंकज की देखभाल हो जाएगी और शिवानंद का मन भी लग जाएगा.

शिवानंद भी थोड़ा टालमटोल के बाद फिर से विवाह के लिए तैयार हो गए.

शिवानंद की वकालत अच्छी चल रही थी. अपना बड़ा सा मकान था. पिता भी शहर के जानेमाने वकीलों में से थे. उन के विवाह के 4 वर्ष छोड़ दिए जाएं तो सब तरह से वे सुयोग्य वर थे. एक बेटा था तो उसे भी देखने वाले बहुत लोग थे.

शिवानंद की फिर से विवाह की तैयारी होने लगी. चढ़ावे के लिए नई साडि़यां और गहने आए, रश्मि के गहने भी थे जिन्हें नई बहू को देने में किसी को आपत्ति नहीं हो सकती थी.

प्रभा ने यह कहते हुए कि रश्मि भाभी के कुछ गहने चढ़ावे पर नहीं जाएंगे, अलग रख दिए.

‘तुम्हारा मन है तो बाकी मुंहदिखाई में दे देंगे,’ मां ने दुलार में कहा, ‘मांग टीका और नथ तो अभी चढ़ावे के समय जाने दो.’

‘नहीं मां, इन्हें भी अलग ही रहने दो.’ बेटी प्रभा बोली, ‘सब कुछ मुझे पंकज के विवाह में देना है.’

दुलार भरी हंसी से मां ने कहा, ‘पंकज की बहू के लिए पुराने गहने. अरे पगली, तब तक कितना नया चलन हो जाएगा.’

प्रभा मचलते हुए तब बोली थी, ‘अम्मां, यह सब अलग ही रख लें… वह लहंगाचुनरी भी, सभी कुछ मेरे कहने से.’

लाडली बेटी की बात अम्मां ने मान ली और बहू शिखा के लिए सबकुछ नया सामान चढ़ावे में भेजा गया.

अम्मां ने टोका अवश्य था कि बेटी, नई बहू क्या पंकज को उस का हिस्सा नहीं देगी. आखिर उस का हिस्सा तो रहेगा ही.

‘उस के अपने भी तो होंगे, अम्मां. यह सब अलग जमा कर दें.’

मां के मन में विवाद उठा, ‘लड़की अपने लिए तो कुछ नहीं कह रही है पर भतीजे के लिए ममता का यह रूप भी किसी को अच्छा नहीं लग रहा था.’

विवाह हुआ. शयनकक्ष सजा. कुछ याद करते हुए मां ने आदेश दिया और उस दिन रश्मि का वधूवेश में सालों से टंगा चित्र वहां से हट कर पीछे के एक कमरे में लगा दिया गया. प्रभा ने देखा तो वह विचलित हो उठी और वहां से हटा कर तसवीर को पूजा के कमरे में लगाने लगी.

पंकज ने तोतली आवाज में पूछा था, ‘बूआ का कर रही हो. मम्मी ऊपर से आएंगी तो रास्ता भूल जाएंगी न.’

‘मम्मी आ गई हैं,’ यह कहते हुए प्रभा ने पंकज को नववधू शिखा की गोद में बैठाया तो वह यह कहते हुए गोद से उतर गया, ‘नहीं, यह मेरी मम्मी नहीं हैं.’

शूल सा लगा शिखा को सौतेले बेटे का कथन. पंकज अपना हाथ छुड़ा कर  उस कमरे में चला गया जहां पहले उस की मां की तसवीर टंगी थी. पर वहां चित्र नहीं था. ‘अरे, मेरी मम्मी कहां गई,’ करुण स्वर चीत्कार कर उठा.

‘देखो पंकज, यह हैं मम्मी. तुम भूल गए. वह अब यहां आ गई हैं. सब उन की पूजा करेंगे न.’

प्रभा को लगा कि नई मां ला कर पंकज के साथ अन्याय किया गया है. पंकज के प्रति उस की अगाध ममता

ही थी जो उस ने रश्मि भाभी के  गहने शिखा भाभी को न देने की जिद की थी.

शिखा ने 2 पुत्रों और 1 पुत्री को जन्म दिया था. पंकज भी जैसेजैसे समझदार हुआ उस ने मां को मां का सम्मान ही दिया और भाईबहन को अपना माना. मन में कोई विद्वेष नहीं था, पर पूजाघर में जब भी पंकज जाता मां की तसवीर को बेहद श्रद्धा से देखता.

बीतते समय के साथ पंकज इंजीनियर बना तो विवाह के लिए रिश्ते भी आने लगे. उस की राय मांगी गई तो प्रोफेसर  की बेटी निधि उसे पसंद आई. प्रोफेसर ने शिवानंद को सपरिवार घर आने का निमंत्रण दिया. प्रभा उसी दिन ससुराल से आई थी. बोली, मैं भी भाभी के साथ लड़की देखने चलूंगी.

‘‘बूआ,’’ पंकज बोला, ‘‘मुझे कुछ जरूरी काम को पूरा करने के लिए अभी बाहर जाना है. आप और मां लड़की देखने चली जाएं. आप की पसंद मेरी पसंद होगी.’’

लड़की देखने की औपचारिकता पूरी करने के बाद एक माह के अंदर शादी हो गई और निधि दुलहन बन कर पंकज के घर आ गई. अब प्रभा ने रश्मि का चित्र पूजा घर से हटा कर पंकज के कमरे में लगा दिया.

आज सुहागरात है, यह सोच कर प्रभा ने अपनी पसंद के कपड़े निधि को पहनाए. फिर वे सभी गहने जो कभी रश्मि ने शादी के मौके पर पहने थे और जिसे आज के दिन के लिए प्रभा ने मां के पास रखवा दिए थे. निधि को गहने पहना कर देखा तो देखती रह गई. उसे लगा जैसे चित्र में से निकल कर रश्मि आ गई है. अनुकृति ही नहीं असल में है वही.

शयनकक्ष में सुहाग सेज पर प्रतीक्षा में बैठी निधि को देख कर पंकज विक्षिप्त हो उठा, ‘‘मम्मीमम्मी, तुम आ गईं.’’

पंकज के कहे शब्दों को सुन कर दरवाजे पर खड़ी भाभी और बहनें विस्मय से चीख पड़ीं. प्रभा बूआ, देखिए न पंकज को क्या हो गया है? उधर उस के सामने खड़ी निधि विस्मय, अकुलाहट, अचकचाहट से उसे देखती रह गई.

‘‘पंकज क्या है, क्या कह रहे हो? वह निधि है, तुम्हारी पत्नी,’’ बूआ बोली, ‘‘मम्मी कहां से आ गईं? पागल हो गए हो?’’

‘‘आ गई है न बूआ, देखिए न…’’

विस्मय, आश्चर्य, अनहोनी के डर से कांपती प्रभा बूआ अपने को अपराधिनी मानती हुई पंकज को घसीट कर निधि के पास कर आई और निधि का हाथ उस के हाथ में देते हुए बोली, ‘‘पंकज यह तुम्हारी पत्नी है.’’

‘‘नहीं,’’ बूआ का हाथ झटक कर निधि बोली, ‘‘इन्होंने मुझे मम्मी कहा है. मैं दूसरे संबंध की कल्पना नहीं कर सकती. मैं इन की पत्नी नहीं हो सकती,’’ कह कर वह दूसरे कमरे में चली गई.

परिवार के बडे़बूढ़ों के साथ दोस्तों और रिश्तेदारों ने भी निधि को समझाया कि वैदिक मंत्रों के बीच तुम ने सात फेरे लिए हैं, तो कहे के रिश्ते का क्या मूल्य है. बेटी, उसे नाटक समझ कर भूल जाओ.

इस बीच निधि मायके गई तो फिर ससुराल आने का नाम ही नहीं लेती थी. तब घरवालों ने ऊंचनीच समझा कर उसे किसी तरह ससुराल भेज दिया.

पंकज का भ्रम टूट जाए, इस के लिए सब तरह के उपाय किए गए. मनोचिकित्सक से परामर्श भी लिया गया. रश्मि का चित्र पंकज के कमरे से हटा कर अलमारी में बंद कर दिया गया था. रश्मि के पहने गहने और कपडे़ अलग रख दिए गए, इस के बाद सालों बीत जाने पर भी निधि के मन में पंकज के प्रति प्रणय के अंकुर न फूटे. उस के नाम से ही उसे अरुचि हो गई थी. मन बहल जाए इसलिए पिता ने बेटी को पीएच.डी. करने की प्रेरणा दी ताकि अध्ययन में व्यस्त हो कर वह अपने अतीत को भूल जाए.

उधर पंकज को भी एकदो बार अवसर दिया गया कि स्थिति में सुधार हो किंतु वह न सुधर सका. उस की ऐसी मनोदशा देख पिता शिवानंद ने उस का निधि से संबंधविच्छेद करवा दिया. कुछ सालों बाद निधि का अपने सहयोगी से प्रेमविवाह हो गया.

पंकज के मन पर जो गहरा आघात लगा था वह वर्षों के इलाज से थोड़ा बहुत सुधरा, किंतु कभीकभी वह दिमाग का संतुलन खो बैठता था. सरकारी नौकरी थी, चल रही थी, पर कभी भी उस के छूटने की आशंका बनी रहती थी. उस के पुनर्विवाह के लिए संबंध आते रहे किंतु पिता शिवानंद ने कहा कि जब तक वह पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाता वह किसी की लड़की का जीवन बरबाद नहीं करेंगे.

प्रभा बूआ अपने सौम्य, सुंदर, सुयोग्य भतीजे को पागलपन के कगार पर लाने के लिए खुद को दोषी मानती हैं. आंसू बहाती हैैं और कहती हैं, ‘‘मैं ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरे लाड़ की ऐसी परिणति होगी.’’

सांस लेने में हो रही है परेशानी, तो करें नेबुलाइजर का इस्तेमाल

Nebulizer Machine Benefits : श्यामली की मां को बहुत तेज बुखार था. खांसी भी बहुत ज़्यादा उठ रही थी. खांसतेखांसते वे बेदम हुई जा रही थीं. श्यामली जब कालेज से लौटी तो मां की ऐसी हालत देख कर घबरा गई. उस ने जल्दी से रिकशा बुलाया और मां को ले कर पास के अस्पताल पहुंची. ओपीडी में डाक्टर ने श्यामली की मां का चैकअप किया और उन को तुरंत भरती करने का परचा लिख दिया. जनरल वार्ड में श्यामली की मां को भरती किया गया. कुछ देर में नर्स ने श्यामली को कुछ दवाएं लाने के लिए नीचे फार्मेसी में भेजा. श्यामली जब दवाएं ले कर लौटी तो उस ने देखा कि उस की मां के चेहरे पर प्लास्टिक का बड़ा सा मास्क लगा है, जिस में से धुआं सा निकल रहा था और उस की एक मशीन बगल में रखे स्टूल पर चल रही थी.

श्यामली मां के मुंह पर लगी मशीन देख कर रोने लगी. वह रोतेरोते वार्ड से बाहर आई और अपने मामा को फ़ोन कर के उन से कहा कि मां को औक्सीजन लग गई है. उन की हालत बहुत खराब है. पता नहीं ज़िंदा बचेंगी या नहीं. आप तुरंत आ जाइए.

श्यामली के मामाजी दूसरे शहर में रहते थे. श्यामली की बात सुन कर घबरा गए और तुरंत बैग में एक जोड़ी कपड़ा डाल कर बस से निकल पड़े. श्यामली अपनी मां के साथ अकेली थी. उस के पिता का कुछ साल पूर्व निधन हो गया था. पिता की जगह मां को नौकरी मिल गई थी, मगर इधर एक हफ्ते से खांसीबुखार की वजह से वे औफिस नहीं जा रही थीं. श्यामली अभी कालेज में पढ़ रही थी.

मामाजी से बात कर के जब श्यामली वापस मां के पास पहुंची तो उस ने देखा कि नर्स उन के मुंह पर चढ़ा मास्क हटा रही थी. मशीन भी उस ने बंद कर दी थी. वह श्यामली की मां से पूछ रही थी कि अब सांस लेने में कठिनाई तो नहीं हो रही है. मां ने कहा- नहीं.

श्यामली ने नर्स से पूछा- आप ने औक्सीजन क्यों लगाई थी? नर्स ने हंस कर कहा- औक्सीजन नहीं, नेबुलाइजर दिया था ताकि फेफड़े ढीले हों और खांसी में आराम आए.

श्यामली को अपनी बेवकूफी और नादानी पर शर्म आ गई. हाय, मामाजी तो बस स्टेशन के लिए निकल पड़े होंगे, यह सोच कर वह परेशान हो गई. दरअसल श्यामली ही नहीं, हम में से बहुत सारे लोग डाक्टरी में इस्तेमाल होने वाले अनेक उपकरणों के बारे में नहीं जानते हैं. बहुत सारे उपकरण अब अस्पतालों में आमतौर पर इस्तेमाल होने लगे हैं, इन में से एक उपकरण है नेबुलाइजर.

बदलते मौसम का सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है और जिन लोगों की इम्यूनिटी कमजोर होती है, उन पर इस का असर बहुत जल्दी देखने को मिलता है. वे आसानी से वायरल संक्रमणों का शिकार बन जाते हैं और सर्दी-जुकाम उन के फेफड़ों सहित पूरे श्वसन तंत्र को जकड़ लेता है. इस से सांस लेने में भी कठिनाई होने लगती है. सर्दी-जुकाम सुनने में जितना आम लगता है, इस का असर इतना आम नहीं होता है. इस से पीड़ित होना काफी कष्टदायक होता है, इस में बंद नाक, गले में दर्द, लगातार छींक, सिरदर्द, मुंह का कड़वा स्वाद, आंखों में जलन और पानी आना न जाने कितनी अलगअलग तरह की समस्याएं होती हैं. इस की वजह से रेस्पिरेटरी सिस्टम बुरी तरह से प्रभावित हो जाता है. ऐसे में स्टीम लेना सब से आसान और प्रभावी उपाय माना जाता है और स्टीम लेने के लिए नेबुलाइजर का इस्तेमाल करना अब बहुत आम हो गया है. अस्पतालों में तो भरती मरीजों को सुबहशाम नेबुलाइज किया जाता है, ताकि उन को शीघ्र आराम मिल जाए.

नेबुलाइजर के इस्तेमाल से ठीक तरह से सांस लेने में मदद मिलती है. नेबुलाइजर में इस्तेमाल की जाने वाली दवा आसानी से शरीर में पहुंच जाती है और तुरंत अपना असर दिखाने लगती है, जिस की वजह से मरीज को तुरंत आराम मिलता है. नेबुलाइजर का इस्तेमाल सर्दी-जुकाम, संक्रमण, ब्रोंकाइटिस और सीओपीडी जैसी पुरानी बीमारी में जल्दी आराम प्रदान करने के लिए किया जाता है. सर्दी और फ्लू होने के कारण फेफड़े संक्रमित हो जाते हैं, जिस से अस्थमा के लक्षण और अस्थमा के दौरे का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ जाता है. अस्थमा के कारण श्वसन रोगों के विकसित होने की संभावना अधिक हो जाती है. नेबुलाइजर के इस्तेमाल से अस्थमा और फ्लू के इलाज में काफी आराम मिलता है और इस से सूजन भी कम होती है.

नेबुलाइजर के इस्तेमाल के फायदे

नेबुलाइजर सांस की परेशानी में मरीज को सीधे फेफड़े में दवा देने के लिए सब से सरल, फायदेमंद और सुरक्षित तरीका माना जाता है. नेबुलाइजर के इस्तेमाल से दवा शरीर के उस भाग में तुरंत जाती है जहां उस की सब से ज्यादा जरूरत होती है, यानी फेफड़ों में. परंपरागत तरीके से दवा को गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट से हो कर मनुष्य के रक्तप्रवाह में जाने में काफी समय लग जाता है, और फिर आराम मिलने में भी देर होती है. इस के विपरीत नेबुलाइजर दवाओं को सीधे श्वसन तंत्र में पहुंचाता है और मरीज को तुरंत आराम देता है. नेबुलाइजर का उपयोग करने से सांस की समस्याओं को विकसित होने से रोकने के साथसाथ सांस की गंभीर आपातकालीन स्थितियों का इलाज करने में भी मदद मिलती है. मुंह के माध्यम से ली जाने वाली दवाओं की तुलना में, नेबुलाइजर से लेने पर दुष्प्रभावों की संभावना भी काफी हद तक कम हो जाती है.

कैसे काम करता है नेबुलाइजर ?

चिकित्सा उद्योग में नेब्युलाइज़र एक ऐसा उपकरण है जिस का उपयोग दवा को फेफड़ों में एक धूम के रूप में पहुंचाने के लिए किया जाता है. नेबुलाइजर एक एयरकंप्रेशर है. यह माउथपीस के ज़रिए दबाव वाली हवा का लगातार प्रवाह देता है. नेबुलाइजर तरल दवा को धुंध में बदल देता है. इस धुंध को सांस में ले कर दवा को शरीर में पहुंचाया जाता है. शरीर दवा को शीघ्र सोख लेता है. नेबुलाइजर की मदद से सांस लेना आसान हो जाता है. नेबुलाइजेशन श्वसन देखभाल का एक रूप है. यह एक चिकित्सा प्रक्रिया है. अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, लंग्स या सांसों से जुड़ी अन्य परेशानियों व इंफैक्शन की स्थिति में नेबुलाइजर मशीन काफी काम आती है. नेबुलाइजर फेफड़ों तक दवा पहुंचने में 5-10 मिनट लगाता है. नेबुलाइजर का इस्तेमाल हमेशा चेयर पर सीधे बैठ कर किया जाता है ताकि दवा सीधे फेफड़ों तक पहुंच सके.

डाक्टर अकसर अस्थमा, सीओपीडी या अन्य श्वसन संबंधी रोग से ग्रस्त लोगों को ब्रोंकोडाईलेटर्स लिखते हैं. इस में नेबुलाइजर द्वारा स्टेराइल से लाइन सोल्यूशन रोगी के फेफड़ों तक पहुंचाया जाता है. यह वायुमार्ग को तुरंत खोलने और बलगम को पतला करने में मदद करता है. इस से बलगम ढीला हो कर फेफड़ों से आसानी से बाहर निकल जाता है. ये स्टेरौयड श्लेष्म झिल्ली में सूजन को भी शांत करते हैं और शरीर को ठीक होने की दिशा में प्रेरित करते हैं.

घबराहट होने की स्थिति में, सांस फूलने पर, अस्थमा में, सर्दी व जुकाम के संक्रमण में, सीने में जकड़न होने पर, सिस्टिक फाइब्रोसिस या ब्रोन्किइक्टेसिस की समस्या में, कफ व बलगम के निर्माण को रोकने के लिए, संक्रमण के इलाज में एंटीबायोटिक का सेवन करने के लिए, छोटे बच्चों और शिशुओं को आसान तरीके से बिना किसी परेशानी के दवा देने के लिए नेबुलाइजर का इस्तेमाल किया जाता है.

नेबुलाइजर की कीमत

आमतौर पर पोर्टेबल नेबुलाइजर, होम नेबुलाइजर की तुलना में थोड़े महंगे होते हैं. इसे खरीदने से पहले डाक्टर की सलाह जरूर लेनी चाहिए. नेबुलाइजर की कीमत लगभग 500 से 10,000 रुपए के बीच होती है.

नेबुलाइजर का इस्तेमाल कैसे करें ?

नेबुलाइजर के इस्तेमाल से पहले अपने हाथों को साबुन और गरम पानी से अच्छे से धो लें, क्योंकि हाथों में बहुत सारे बैक्टीरिया मौजूद होते हैं, जो आसानी से शरीर के अंदर प्रवेश कर सकते हैं. इस के बाद नली को कंप्रेशर के साथ जोड़ें. अब इस में दवा डालें. फिर इस में अपने माउथपीस या मास्क और होज़ को मैडिसिन कप से जोड़ें. इस के बाद अपना मास्‍क लगाएं या अपने माउथपीस को अपने होंठों के चारों ओर मजबूती से अपने मुंह में रखें. अब अपने नेबुलाइजर को चालू करें और अपने मुंह से तब तक सांस लें जब तक कि सारी दवा खत्म न हो जाए. दवा खत्म हो जाने के बाद नेबुलाइजर को बंद कर दें और दवा व माउथपीस को अच्छे से धो लें और इसे कुछ देर हवा में सूखने के लिए छोड़ दें.

फरवरी के दूसरे सप्ताह कैसा रहा बौलीवुड का कारोबार, जानें पूरी डिटेल्स

Bollywood February 2nd Week 2024 Box Office Collection : फरवरी माह के दूसरे सप्ताह यानी कि 9 फरवरी को शाहिद कपूर और कृति सैनन की फिल्म ‘तेरी बातों में उलझा जिया’ के प्रदर्शन से पहले इस फिल्म को ले कर लोगों में उत्सुकता थी क्योंकि यह एक इंसान और एक रोबोट की प्रेम कहानी है. मगर 90 करोड़ रुपए की लागत में बनी यह फिल्म पहले सप्ताह में बौक्सऔफिस पर धराशाई हो गई. यह तो अपनी आधी लगात भी नहीं एकत्र कर सकी. पूरे सप्ताह में यह फिल्म बौक्सऔफिस पर बामुश्किल 40 करोड़ रुपए ही एकत्र कर सकी जबकि निर्माता ने सोमवार से गुरुवार 4 दिनों के लिए एक टिकट खरीदने पर एक टिकट मुफ्त का औफर भी रखा था.

जी हां, पहले 3 दिन इस फिल्म ने सिर्फ 26 करोड़ रुपए ही जुटाए थे. तब फिल्म के निर्माता ने सोमवार से एक टिकट खरीदने पर एक टिकट मुफ्त का औफर दे दिया. बुधवार के दिन इस औफर के साथ ही वैलेंटाइन डे था. फिर भी पूरे सप्ताह में यह फिल्म 40 करोड़ रुपए ही एकत्र कर सकी. इस में से निर्माता के हाथ में जो रकम जाएगी, उस में निर्माता क्या करेंगे, यह तो वही जानें.

अमित जोशी व आराधना शाह निर्देशित फिल्म ‘तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया’ को बरबाद करने में फिल्म से जुड़े हर इंसान ने अपना योगदान दिया. बतौर लेखक व निर्देशक अमित जोशी व आराधना शाह ने अपने काम को ईमानदारी से नहीं निभाया. एक रोबोट साइंटिस्ट और कंप्यूटर प्रोग्रामर सच जानते हुए भी रोबोट संग प्यार व रोमांस कैसे कर सकता है? चलिए यहां तक भी ठीक था. रोबोट साइंटिस्ट एक महिला रोबोट संग सैक्स भी करता है और उस के साथ विवाह करने के लिए हर किसी से झूठ बोलने व लड़ने के लिए भी तैयार है. इस तरह की कहानी पर कोई कैसे यकीन कर सकता है? मजेदार बात यह कि फिल्म में शाहिद कपूर रोबोट संग सैक्स संबंध बनाता है पर उसे एहसास ही नहीं होता कि वह जिस के साथ हम बिस्तर हो रहा है वह लड़की नहीं है. उस के अंदर कोई इमोशन नहीं है. वह तो एक गुड़िया है, जो उस में भरे गए प्रोग्राम के अनुसार काम करती है.

आखिर फिल्मकारों ने दर्शकों को इतना मूर्ख कैसे समझ लिया है? तो वहीं फिल्म में आर्यन का किरदार निभाने वाले अभिनेता शाहिद कपूर भी कम दोषी नहीं है. वह इस फिल्म में कबीर सिंह ही नजर आता है. वह अपनी अदाकारी से निराश करता है. ऐसे अभिनयहीन कलाकार को प्रति फिल्म 40 करोड़ रुपए दे कर निर्माता कम गलती नहीं कर रहे? रोबोट बनी कृति सैनन को 10 साल हो गए फिल्म इंडस्ट्री में, पर अभिनय वह सीख ही नहीं पाई. इस के बाद बची कसर फिल्म की प्रचार टीम व मार्केटिंग टीम ने पूरी कर दी. फिल्म की कहानी इंसान व रोबोट की प्रेम कहानी है, इस पर मीडिया संग विस्तार से बात कर फिल्म को दर्शकों तक पहुंचाने के बजाय पीआर टीम के कहने पर देश के कुछ शहरों में शाहिद कपूर व कृति सैनन घूमते व डांस करते रहे. शायद यह सभी जानते थे कि इन लोगों ने एक अविश्वसनीय फिल्म बनाई है.

जिस के संग दर्शक नहीं जुड़ सकता. इसलिए भी ये मीडिया से दूर रहे होंगे. पर इस तरह के फिल्मकारों व कलाकारों के कारण सिनेमा डूब रहा है. मल्टीप्लैक्स डूब रहे हैं. 2023 में भी सिनेमा ने कोई कमाई नहीं की थी. 2024 में 6 सप्ताह के दौरान प्रदर्शित फिल्मों ने निर्माताओं व सिनेमाघर मालिकों का ऐसा बंटाधार किया है कि चर्चाएं हैं कि 2024 के अंत तक आधे मल्टीप्लैक्स बंद हो जाएंगे. शाहिद कपूर अपने अहं में ही डूबे हुए हैं. शायद उन्हें कोई सही सलाह नहीं दे रहा. सभी जानते हैं कि उन की 2 फिल्में एक सप्ताह की शूटिंग के बाद बंद कर दी गईं. पर शाहिद कपूर अपने ही रंगढंग में चल रहे हैं. ‘तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया’ की बौक्सऔफिस पर जो दुर्गति हुई है उस का सब से बड़ा खमियाजा शाहिद कपूर को ही भुगतना पड़ेगा.

इन हीरोइनों ने प्लास्टिक सर्जरी से पाया खूबसूरत चेहरा, पर यह जानलेवा भी हो सकती है

Actresses who did plastic surgery : ग्लैमर की दुनिया में हमेशा सुर्खियों में रहने और लोगों का ध्‍यान खींचने के लिए आकर्षक दिखना बेहद जरूरी है. केवल डिज़ाइनर कपडे पहनना, मेकअप और हेयरस्टाइल ही खूबसूरती का पैमाना अब नहीं रहा. इसीलिए अपनी खबसूरती को अधिक निखारने के लिए कई बौलीवुड ऐक्ट्रेसेस तरहतरह के एक्सपैरिमैंट करने से पीछे नहीं रहतीं. इस से वे अपने चेहरे को आकर्षक और खूबसूरत भी बना लेती हैं. बौलीवुड की मोस्ट सक्सैसफुल हीरोइन्स ने भी प्लास्टिक सर्जरी से ही गुड लुक्स पाएं हैं. अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा से ले कर अनुष्का शर्मा, शिल्पा शेट्टी जैसी कई हीरोइन्स हैं जिन्होंने अधिक खूबसूरत दिखने के लिए प्लास्टिक सर्जरी करवाई है और आज हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में सफल हैं.

इस में वे अधिकतर अपनी जो-लाइन, लिप्स, नाक आदि पर एक्सपैरिमैंट करती है, ताकि मोटी नाक, पतले होंठ, अच्छे उभार, सही जो-लाइन आदि को क्रिएट कर सकें. लेकिन कई बार उन का यह दांव उन्‍हीं पर उलटा पड़ जाता है. अच्‍छी दिखने के बजाय उन का मूल रूप ही बिगड़ जाता है, जिस के चलते उन्‍हें सोशल मीडिया पर भी खूब खरीखोटी सुननी पड़ती है. फैंस उन का खूब मजाक बनाते हैं. पर वे इसे करने से परहेज नहीं करतीं क्योंकि पहले भले ही वे पहले कुछ दिनों तक अजीब दिखती हों लेकिन बाद में उन की लुक सही बैठने पर अच्छी दिखने लगती हैं. इस श्रेणी में कुछ खास हीरोइनें हैं जिन्होंने अपने लुक से सब को चकित किया और इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाई. आइए जानें ऐसी ऐक्ट्रेसेस के बारे में-

बाणी कपूर

इस श्रेणी में बाणी कपूर का नाम सब से पहले आता है. बाणी कपूर को फिल्मों में आने का शौक बचपन से था और वे इस की कोशिश भी कर रही थीं. लेकिन उन्हें कोई मौका नहीं मिल रहा था. कई जगह पर उन्हें अपनी लुक्स को ले कर बातें भी सुनने को मिलती थीं. ऐसे में उन्होंने प्लास्टिक सर्जरी करवाई और उन्हें काम मिलने लगा. अब तो बाणी कपूर को पहचान पाना भी मुश्किल हो गया है.

कैटरीना कैफ

फिल्म जगत में सब से ज्यादा फीस लेने वाली अभिनेत्रियों में शुमार कैटरीना कैफ भी सर्जरी करवा चुकी हैं. इतनी खूबसूरत दिखने वाली कैटरीना की नाक उन्हें पसंद नहीं थी, इसलिए उन्होंने उस की सर्जरी करवाई, जिस से उन का लुक ग्लैमरस बन गया.

जान्हवी कपूर

फिल्मो में आने से पहले श्रीदेवी और बोनी कपूर की बेटी जान्हवी कपूर ने भी अपने लुक को चेंज करने के लिए अपनी नाक और ठुड्डी की सर्जरी करवाई है, क्योंकि उन्हें बचपन से ही पता था कि वे बड़ी हो कर ऐक्ट्रेस बनेंगी. सर्जरी के बाद उन के लुक में अच्छा बदलाव आया है. आज वे काफी खूबसूरत दिखती हैं.

सारा अली खान

फिल्म ‘केदारनाथ’ से डैब्यू करने वाली सारा अली खान, सैफ अली खान और अमृता की बेटी हैं. सारा के गुड लुक्स को पसंद करने वाले कई हैं लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि उन्होंने गुड लुक्स सर्जरी से पाए हैं. उन्होंने एक जगह पर कहा भी है कि इंडस्ट्री में खूबसूरत दिखने का प्रैशर रहता है, जिस के चलते ये सब करवाना पड़ता है. इस से खुद में आत्मविश्वास बढ़ता है, लेकिन एक हद तक ही इसे अपनाने में सारा विश्वास रखती हैं.

आलिया भट

खूबसूरत दिखने वाली अभिनेत्री आलिया भट्ट भी बौलीवुड में कदम रखने के बाद खुद को सब से अधिक सुंदर दिखाने के लिए सर्जरी करवा चुकी हैं. उन्होंने नाक और होठों की सर्जरी करवाई है.

आयशा टाकिया

फिल्म ‘टार्जन द वंडर कार’ से फिल्म कैरियर शुरू करने वाली आयशा हमेशा से ही अपनी सर्जरी को ले कर चर्चा में रही हैं. पहले ब्रेस्ट इम्प्लांट, आइब्रो, जो-लाइन फिर लिप सर्जरी आदि करवा डाली. सर्जरी का उन्हें सुंदर दिखने में बहुत अधिक सहारा नहीं मिला, क्योंकि इस से पहले उन के नैचुरल लुक और मीठी मुसकान को दर्शकों ने काफी पसंद किया था.

टीवी स्टार भी कम नहीं

टीवी ऐक्ट्रेसेस भी इस लिस्ट में कम नहीं. कुछ टीवी ऐक्ट्रेसेस लिप और प्लास्टिक सर्जरी से खुद को क्वीन बनाने में कामयाब हो गई हैं. इस में गोल्डस्टार फेम मौनी राय फुलर लिप्स के कारण काफी ट्रोल का शिकार हुईं. उन का ऊपरी होंठ काफी पतला था, जिस से वे खुश नहीं थीं. यही वजह है कि उन्होंने सर्जरी का फैसला लिया. आज उन्हें कई फिल्मों में, कम ही सही पर, अभिनय करने का काम मिल रहा है. ‘विदाई’ फेम अभिनेत्री सारा खान ने भी लिप्स की सर्जरी करवाई है.

दर्दनाक है आंकड़े

यह सही है कि प्लास्टिक सर्जरी से खूबसूरत लुक्स हीरोइनों को मिले हैं और वे अब कामयाब हैं. यही वजह है कि प्लास्टिक सर्जरी का व्यापार बढ़ता जा रहा है. लेकिन कई बार इस का असर गलत होने पर मृत्यु तक हो सकती है. 29 वर्षीय ब्राजीलियाई मौडल और अभिनेत्री लुआना एंड्रेड को लिपोसक्शन सर्जरी के दौरान 4 बार दिल का दौरा पड़ा और उन की मृत्यु हो गई. गौर करने वाली बात यह है कि ऐक्ट्रेस को दिल का दौरा सर्जरी के बीच में ही पड़ा था. कुछ वर्षों पहले कन्नड़ टैलीविज़न अभिनेत्री चेतना राज की भी बेंगलुरु के एक प्राइवेट अस्पताल में मृत्यु होने की ख़बर सामने आई थी.

मीडिया रिपोर्ट की मानें तो वजन कम करने के लिए की जाने वाली सर्जरी के बाद 7 ब्रिटिश नागरिकों की मौत हो गई थी. सब से अधिक चर्चा मेलिसा केर की मौत को ले कर हुई थी, जब तुर्की के सब से बड़े शहर इस्तांबुल में 31 साल की मेलिसा केर की 2019 में एक निजी अस्पताल में नितंब को बढ़ाने की सर्जरी (बट-लिफ़्ट सर्जरी) के दौरान मौत हो गई. वहीं वर्ष 2020 में 3 बच्चों की एक मां ने भी तुर्की जा कर लिपोसक्शन करवाया, लेकिन बाद में उन की मौत हो गई.

क्या है लिपोसक्शन ?

असल में लिपोसक्शन एक ऐसी सर्जिकल प्रक्रिया है जिस के जरिए शरीर में जमी अतिरिक्त चरबी को बाहर निकाला जाता है. इस से अधिकतर मोटापे या वजन को कम करने के लिए ही लोग करवाते हैं और उन्हें मनचाहा शारीरिक अकार मिलता है. डाक्टर व्यक्ति को पूरी तरह स्वस्थ होने पर ही इसे करवाने की सलाह देते हैं, ताकि बाद में किसी प्रकार की दुर्घटना न हो.

जब बढ़ती दाढ़ी की तुलना घटती जीडीपी से की गई थी

‘मुझे बगावत की भनक पहले ही लग चुकी थी, मैं चाहता तो उस दाढ़ी की दाढ़ी पकड़ उसे खींच सकता था,’ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उन की मनमोहक दाढ़ी पर इतने अधिकारपूर्वक कौन बोल सकता है. जाहिर है, सिर्फ उद्धव ठाकरे जिन की वजह से एकनाथ शिंदे आज वहां विराजे हैं जहां तक पहुंचने के लिए अच्छेअच्छों को पापड़ बेलने पड़ते हैं. फिर शिंदे तो दाढ़ी उगने के दिनों में ठाणे में औटोरिकशा चलाते थे.

एक दिन यों ही शिवसेना की रैली में हायहाय उन्होंने की, तो उन का समय ऐसा चमका कि आज वे महाराष्ट्र चला रहे हैं, जिस में 2 पहिए भाजपा के और 2 शिवसेना के हैं. कुछ कलपुर्जे एनसीपी और कांग्रेस के भी इस से जुड़े हैं. अब कब तक यह जुगाड़वाली गाड़ी, बकौल उद्धव ठाकरे, इस दाढ़ी से चल पाएगी, यह राम जाने. कम ही लोग जानते हैं कि एकनाथ शिंदे के बचपन का नाम राहुल पांचाल था और वे सतारा के एक बेहद गरीब कुनबी समुदाय के परिवार से हैं. अपने औटोरिकशा में सवारियां ठूंस कर उन्हें एडजस्ट करने का तजरबा अब सरकार चलाने के काम आ रहा है.

उद्धव क्यों शिंदे से इतना चिढ़ते हैं कि उन का असली नाम जबां पर लाने में भी अपनी तौहीन समझते हैं. यह खीझ, तकलीफ या जलन कुछ भी कह लें किसी से छिपी नहीं रह गई है. महाराष्ट्र में अब हर कोई शिंदे को दाढ़ी नाम से ही बुलाता है. उन की घनी काली दाढ़ी है ही इतनी आईकैचर कि नजर उस पर ठहर कर रह जाती है. आजकल इतनी ‘हाई क्वालिटी’ की दाढ़ियां कम ही देखने में आती हैं.

उद्धव के हमले पर शिंदे चुप नहीं रहे. जवाब में उन्होंने कहा कि इस दाढ़ी के हाथ में आप की नब्ज दबी है. कव्वाली स्टाइल के ये सवालजवाब आम लोगों को समझ नहीं आए कि कौन सी नब्ज यानी राज की बात हो रही है जिस के उजागर होने से महफिल में न जाने क्या हो जाएगा. समझदार लोगों ने दाढ़ी से ज्यादा कुछ नहीं सोचा और उस में भी यही सोचा कि जो भी हो, शिंदे की काली चमकती दाढ़ी का कोई जवाब नहीं. दाढ़ी हो तो शिंदे जैसी, नहीं तो हो ही न.

राजनीति में दाढ़ी की अपनी अलग अहमियत है. यह उस वक्त और बढ़ गई थी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोनाकाल में दाढ़ी रखी थी. इस दाढ़ी में बड़े सस्पैंस थे. वजह, यह कोई ऐरीगैरी दाढ़ी नहीं थी. कांग्रेसियों और वामपंथियों को इस में भी कोई चालाकी और साजिश नजर आ रही थी लेकिन दक्षिणापंथी भक्तगण मोदी की दाढ़ी को वात्सल्य भाव से निहारे जा रहे थे.  उन की नजर में मोदीजी गुरु वशिष्ठ और गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जैसे दिख रहे थे जबकि विरोधियों को उन की दाढ़ी का यह स्टाइल हिंदी फिल्मों के एक विलेन अनवर जैसा लग रहा था. इस दाढ़ी पर कई दिनों तक टीकाटिप्पणियां होती रहीं लेकिन वह सब भी बढ़ी दाढ़ी की तरह निरर्थक साबित हुआ, कोई निष्कर्ष नहीं निकला.

कांग्रेसी नेता शशि थरूर भी मोदी की दाढ़ी को ले कर आंदोलित थे, जिस के लिए उन्होंने इंग्लिश के एक शब्द pogonotrophy का इस्तेमाल किया जिस का मतलब दाढ़ी बढ़ाना होता है. नएनए शब्द लौंच करने के लिए पहचाने जाने वाले थरूर ने एक ट्वीट के जरिए यह तक साबित कर दिया था कि जैसेजैसे जीडीपी गिर रही है वैसे वैसे मोदी की दाढ़ी बढ़ रही है. इस बाबत उन्होंने मोदी के दाढ़ीयुक्त चेहरे के 5 फोटोज भी शेयर किए थे जिन में दाढ़ी क्रमश: बढ़ती हुई नजर आ रही है.

इसी के साथ उन्होंने गिरती हुई जीडीपी के आंकड़े भी शेयर किए थे. इसे ग्राफिक्स इलस्ट्रेशन बताते हुए थरूर ने बढ़ती का नाम दाढ़ी और गिरती का नाम जीडीपी जैसी बात कर दी थी तो मोदीभक्त उन पर भड़क गए थे. उन्हें मोदी तो मोदी, उन की दाढ़ी तक की बुराई सुनना गवारा नहीं था और न आज है. क्योंकि, मोदी उन के आदर्श, आराध्य और प्रभु हैं.

पर ये लोग दाढ़ी के जरिए देश की तरक्की का ग्राफ दे कर थरूर के नहले पर दहला नहीं जड़ पाए थे. अंधभक्ति का एक बड़ा दुर्गुण यही है कि उस के पास सम्यक दृष्टि नहीं होती, फिर तर्कवर्क करना तो दूर की बात है.

मोदी की बढ़ी दाढ़ी के बवाल का जवाब कांग्रेस नेता व सांसद राहुल गांधी ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान दिया था. उन की बढ़ी दाढ़ी पर भी खूब कमैंटबाजी हुई थी. भगवा गैंग में से किसी ने ताना मारा था कि दाढ़ी बढ़ा लेने से आप प्रधानमंत्री नहीं बन जाएंगे. मोदी समर्थक और भक्तों को राहुल की दाढ़ी इतनी चुभी थी कि उन्होंने इस की तुलना सद्दाम हुसैन की दाढ़ी से कर दी थी. असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा शर्मा ने गुजरात में चुनावप्रचार के दौरान जैसे ही यह कहा कि दाढ़ी के चलते राहुल का चेहरा सद्दाम हुसैन जैसा होता जा रहा है, राहुलभक्त भी हावहाव करते उन पर टूट पड़े थे.

कांग्रेसी दिग्गज दिग्विजय सिंह ने कहा था यह वह व्यक्ति है जो कांग्रेस के नेताओं के पैर पकड़ता था. उन को शर्म आनी चाहिए आज वे जो भी हैं कांग्रेस की वजह से हैं. लेकिन हेमंत शर्मा नहीं शरमाए. शर्म तो उन्होंने तभी बेच खाई थी जिस दिन कांग्रेस छोड़ भाजपा जौइन की थी. इस से ज्यादा चुभने वाली बात अलका लाम्बा ने यह कही कि अच्छा हुआ जब हेमंत बिस्वा राहुल से मिलने गए थे तब राहुल ने उन के बजाय अपने वफादार कुत्ते को तरजीह दी. तब हेमंत बिस्वा को यह अंदाजा नहीं रहा होगा कि राहुल की दाढ़ी भी उन्हें बेइज्जत करा देगी.

दाढ़ी से परे दिलचस्प किस्सा राहुल के कुत्ते का है जिसे हेमंत जबतब सुनाया करते हैं कि एक बार जब वे राहुल से मिलने उन के घर पहुंचे तो उन्होंने मेरी बात नहीं सुनी और अपने कुत्ते को बिस्कुट खिलाते पुचकारते रहे. अब राहुल ने उन्हें क्यों नहीं पुचकारा, यह भी कोई सस्पैंस की बात नहीं रह गई थी जो वे अपने मुंह से भाजपा की भाषा बोलने लगे थे.

खैर, वफादारी का ईनाम हेमंत को भी मिला और भाजपा ने उन्हें सुग्रीव व विभीषण की तरह गले लगाते उन का राजतिलक कर दिया यानी असम का मुख्यमंत्री बना दिया, जिस के एवज में वे आज तक मोदी के सामने नतमस्तक रहते हैं और राम नामी इतने हो गए हैं कि असम से सभी दाढ़ी वालों को खदेड़ने की योजनाएं बनाते रहते हैं.

नरेंद्र मोदी की दाढ़ी ज्यादा चर्चित रही थी या राहुल गांधी की, यह तो कोई नहीं बता पाया लेकिन एक फर्क लोगों ने साफ देखा कि राहुल की दाढ़ी खिचड़ी दाढ़ी है, उस में आधे बाल काले हैं जबकि मोदी की दाढ़ी पौराणिक ऋषिमुनियों सरीखी झकास सफेद है. इस का ताल्लुक उम्र से है कि अभी राहुल गांधी जवान हैं जबकि मोदी जी वानप्रस्थ आश्रम की उम्र को भी पार कर चुके हैं. लेकिन वे कुछ भी हो जाएं अब कुरसी नहीं छोड़ने वाले. उम्र उन की राह में बाधा नहीं हो सकती.

अब मुमकिन है कि वे 400 पार की मंशा के लिए फिर से दाढ़ी न बढ़ाने लगें, हालांकि इस की उम्मीद कम है, फिर भी याद यह रखा जाना चाहिए कि वे मोदी हैं और मोदीजी कुछ भी कर सकते हैं, उन की मरजी.

दाढ़ी रखने का रिवाज मानव सभ्यता से मेल खाता हुआ है जिस का उद्भव धर्म से हुआ. हालांकि दाढ़ी खुद धर्मनिरपेक्ष है लेकिन इस दौर में दाढ़ी का भी धर्म होने लगा है. नरेंद्र मोदी ने कभी लोगों को वेशभूषा से पहचानने का मशवरा सार्वजनिक मंच से दिया था तो कई दिग्गज मुसलिम नेता तिलमिला उठे थे कि देखो, उन का इशारा मुसलमानों के कपड़ों और दाढ़ी की तरफ है. इस सच से हर कोई रोज रूबरू होता है कि हिंदुओं की दाढ़ी मुसलमानों की दाढ़ी से भिन्न होती है. इस विवाद से परे देखें तो दाढ़ी धर्मगुरुओं के चेहरे पर हमेशा से चिपकी रही है. उन की देखादेखी साधु और मौलाना वगैरह भी दाढ़ी रखते हैं.

लेकिन झंझट उस वक्त खड़ी होने लगी जब साधुओं के अलावा शैतानों ने भी दाढ़ी रखना शुरू कर दिया. वे अपनी पहचान छिपाने के लिए दाढ़ी बढ़ाते हैं जबकि धार्मिक लोग पहचान उजागर करने के लिए दाढ़ी को फलनेफूलने देते हैं. चंबल के डाकू भी दाढ़ी रखते हैं और अंडरवर्ल्ड के डौन भी व गलियों के गुंडे भी. इसीलिए रोते छोटे बच्चों को चुप कराने के लिए यह कहते  डराया जाता है कि चुप हो जा, नहीं तो झोले और दाढ़ी वाला बाबा आ जाएगा. दाढ़ी न होती तो ये बच्चे भी बाबा से न डरते. अब थोड़ा बदलाव आया है कि अधिकतर गुंडे-डौन वगैरह क्लीन शेव रहने लगे हैं.

राजनीतिक और धार्मिक दाढ़ियों के बाद साहित्यिक दाढ़ियां खूब प्रसिद्ध हुईं. इतनी हुईं कि रवींद्रनाथ टैगोर की दाढ़ी अपनेआप में ब्रैंड बन गई. 70-80 के दाढ़ी रखने के शौकीन युवा सैलून जा कर टैगोर कट दाढ़ी की मांग करते थे और जो समाज का लिहाज नहीं करते थे वे हिटलर कट दाढ़ी रखते थे. कवियों और शायरों की तो पहचान ही उन की दाढ़ियों से होती है. तुकबंदी और पैरोडी के लिए मशहूर हास्य कवि काका हाथरसी की दाढ़ी भी अल्पकाल के लिए ब्रैंड बनी थी.

पंत और निराला की दाढ़ियों की नकल कम ही हुई लेकिन अगर किसी युवा की दाढ़ी बढ़ी हुई दिखती है तो उसे मजनू, शायर, कवि और फिलौसफर जैसे संबोधनों से नवाज दिया जाता है. इधर, कुछ सालों से लोगों की राय दाढ़ी के बारे में बदली है क्योंकि उन का स्टाइल फैशन के तहत आने लगा है जो फिल्मों से प्रेरित होती हैं.

अमिताभ बच्चन ने जब फ्रैंच कट दाढ़ी रखी थी, समूचे युवा आंदोलित हो उठे थे. फ्रैंच कट दाढ़ी रखने की होड़ ऐसी मची थी कि नाइयों की शामत आ गई थी. अमिताभ बच्चन की दाढ़ी के आगे मोदी या राहुल की दाढ़ी कहीं नहीं ठहरती. एक नामी अखबार ने तो अमिताभ की दाढ़ी पर संपादकीय ही लिख डाली थी जबकि संपादकीय आमतौर पर गंभीर सामयिक विषयों पर लिखी जाती है. फिल्मों में खलनायकों की दाढ़ी नायकों की दाढ़ी से ज्यादा लोकप्रिय होती है. ‘अमर अकबर एंथोनी’ फिल्म में प्राण ने 3 तरह की दाढ़ियां रखी थीं.

बढ़ी दाढ़ी अगर विलेन के लिए अनिवार्यता थी तो क्लीन शेव रहना हीरो की अनिवार्यता थी. इस से ही दर्शक दोनों में भेद कर पाता था. यह और बात है कई फिल्मों में नायक को दाढ़ी रखनी पड़ी और विलेन क्लीन शेव रहा.

शक्ति कपूर, रंजीत और गुलशन ग्रोवर अधिकतर फिल्मों में दाढ़ीविहीन दिखे. हीरो ने कहानी की मांग के मुताबिक दाढ़ी रखी. ‘गाइड’ फिल्म में देवानंद की दाढ़ी और ‘क्रोधी’ फिल्म में धर्मेंद्र की दाढ़ी कहानी की मांग थी.

नए दौर के नायक कार्तिक आर्यन, आयुष्मान खुराना और रणबीर कपूर भी किरदार के हिसाब से दाढ़ी रख लेते हैं लेकिन वे लहलहाती हुई नहीं होतीं, 3-4 दिन की बढ़ी हुई होती हैं. यही चलन आज के दौर के युवाओं में ज्यादा देखने में आता है. वे डेली शेव करते हैं. बात युवाओं की हो तो दाढ़ी के माने उन के लिए अलग होते हैं. आमतौर पर युवा फोड़े, फुंसी और मुंहासे छिपाने के लिए दाढ़ी बढ़ाते हैं. कालेज के शुरुआती दिनों में अधिकतर युवा दाढ़ी बढ़ाते हैं पर उस के 2 इंच क्रौस होते ही घबरा भी उठते हैं और फिर सफाचट हो जाते हैं. आजकल की प्रेमिकाओं और पत्नियों को दाढ़ी कम ही भाती है.

दाढ़ी की महिमा अनंत है. इतिहास में अगर दक्षिण और दक्षिणापंथियों की दाढ़ियां दर्ज हैं तो मार्क्स और एंगल्स की दाढ़ियां भी किसी से उन्नीस नहीं थीं. उन की दाढ़ी में तिनके न के बराबर थे, इसलिए बेचारे अपनी प्रासंगिकता खो रहे हैं. ज्यादा तिनके वाली दाढ़ी दुनियाभर में चल रही है.

गुरुनानक, वशिष्ठ, भीष्म पितामह, दशरथ, रावण, वेदव्यास और कबीर तक की दाढ़ियां कम मशहूर नहीं हुईं. कई विदेशी दाढ़ियों ने भी लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा था लेकिन उन में अधिकतर वैज्ञानिक ज्यादा थे, मसलन गैलेलियो, ग्राहम बैल, अल्फ्रेड नोबेल, चार्ल्स डार्विन वगैरह. लेकिन ये सब भी गुजरे कल की बात हो चले हैं. वैज्ञानिक अब दाढ़ी से बहुत ज्यादा मोह नहीं रखते.

इधर, कौर्पोरेट कल्चर के चलते भी दाढ़ियां कम रखी जा रही हैं क्योंकि दाढ़ी न रखना या न बढ़ाना साहबी की निशानी मानी जाती है जो अलिखित वसीयत में अंगरेज दे गए हैं. कलैक्टर, डाक्टर और इंजीनियर से ले कर पटवारी व ड्राइवर, कंडक्टर तक दाढ़ी नहीं बढ़ाते. मुमकिन है यह उन के प्रोफैशन की मांग हो लेकिन यह नपातुला सच है कि कोई 85 फीसदी मर्द जिंदगी में एक न एक बार दाढ़ी जरूर बढ़ाते हैं.

कोरोना के कहर के दौरान तो थोक में दाढ़ियां बढ़ीं थीं क्योंकि किसी को बाहर नहीं निकलना था. उस अप्रिय और बुरे दौर के हंसीमजाक में पत्नियां पतियों को भिक्षुक तक कहने लगी थीं. दाढ़ी पुराण के संक्षिप्त वर्णन के बाद समापन इन शब्दों के साथ कि उद्धव ठाकरे जैसे एकनाथ शिंदे को दाढ़ी कह कर संबोधित करते हैं वैसे ही उन की तरह हर दाढ़ी वाले का नामकरण रिश्ते के साथ होता है. जैसे दाढ़ी वाले फूफा, दाढ़ी वाले मौसा और दाढ़ी वाले मामा वगैरह जो हर किसी की रिश्तेदारी में निकल ही आते हैं. लेकिन, अपने पिता को कभी कोई दाढ़ी वाले पापा नहीं कहता.

रात में बार-बार नींद टूटना भी हो सकता है खतरनाक, हो सकती हैं ये समस्याएं

Sleeping Disorder Causes : अगर आपकी भी बार-बार टूटती है नींद, तो सावधान होने की जरूरत है. जी हां मैं आज इस बारे में यू हीं बात नहीं कर रही है, एक रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ है कि बार-बार नींद टूटने से मानसिक क्षमता पर असर पड़ता है जो कि आगे चलकर खतरनाक हो सकता है इसलिए अगर आपको भी ये परेशानी है तो आपको इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. बीबीसी की एक रिपोर्ट के बारे में आपको बताती हूं जिसने इस मुद्दे पर हाल ही अपनी रिपोर्ट पेश की है. इसमें बेहद ही चौंकाने वाली बातें हैं जिसपर आप सभी का ध्यान जाना जरूरी है.

दरअसल अगर आपको नींद ठीक से नहीं आती है तो इसे साइंस और मेडिकल की भाषा में ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया यानि की OSA के लक्षण कहते हैं जिसका दिमाग पर सीधा असर होता है. इससे दिमाग़ के सोचने-समझने की क्षमता पर बुरा असर पड़ सकता है.
इस विषय पर आई BBC की नई रिपोर्ट कहती है कि भारत में 10 में से एक व्यक्ति इस समस्या का शिकार है, और उम्र बढ़ने पर ये शख्स के दिमाग की कार्य क्षमता पर असर डालता है.

नींद पूरी न होने शरीर पर क्या असर पड़ता है ?

डॉक्टर बताते हैं कि अगर किसी शख्स की नींद पूरी नहीं होती तो केवल दिमाग ही नहीं बल्कि पूरे शरीर पर इसका असर पड़ता और काम करने की क्षमता पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है. इंसान के अंदर चिड़चिड़ापन, कोई भी फैसला लेने में असमर्थ, दिन में नींद आती है, आपकी याददाश्त कमजोर होने लगती है, इंसान चीजें भूलने लगता है. एग्जाइटी की प्रॅाब्लम होने लगती है, इंसान के अंदर शक्ती, ऊर्जा की कमी होने लगती है,ब्लडप्रेशर पर असर पड़ता है, अगर डायबीटिज हो तो बीमारी से निपटने की क्षमता में भी कमी आती है, और दिनभर थकान बनी रहती है. ये तो वो समस्याएं हैं आमतौर पर हर डॉक्टर बताते हैं. लेकिन बीबीसी से बातचीत में पदमश्री से सम्मानित डॉ कामेश्वर प्रसाद ने चौकांने वाले खुलासे किए. दरअसल उन्होंने बताया की लगभग 7505 वयस्कों पर एक शोध किया गया, जिसमें जीनोमिक्स, न्यूरोइमेजिंग और नींद से जुड़े कई पैमानों का अध्ययन किया गया. भारत में ये पहली तरह का शोध है, जिसमें, इसमें महिला और पुरुषों की संख्या लगभग बराबर थी.

उन्होंने बताया की कई देशों की तरह भारत में भी ये समस्या तेजी से फैल रही है. युवाओं के साथ-साथ अब इस समस्या के कारण बुज़ुर्गों की संख्या भी बढ़ रही है. वैसे तो बुजुर्गों को आमतौर पर उम्र बढ़ते-बढ़ते कई बीमारियां घेर लेतीं हैं जिसमें हार्ट अटैक, भूलने की बीमारी, घुटनों में दिक्कत. लेकिन कुछ समस्या नींद पूरी न होने पर भी होती है. और बड़े-बुढ़ों को तो आमतौर पर उम्र के साथ-साथ नींद भी कम आती है.

ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया (OSA) क्या है ?

ओएसए एक डिसआर्डर होता है, ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया (OSA) नींद से जुड़ा एक ब्रीदिंग डिसऑर्डर है. इसकी वजह से सोते समय सांस बार-बार रुकती और फिर चलती है और अगर सांस बार-बार रुकेगी तो जाहिर है कि इंसान की नींद खुल जाएगी और पूरी रात ये सिलसिला चलता रहता है. इसे ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया कहते हैं. कई बार खर्राटों के कारण भी इंसान की नींद टूटती है.
एक नॉर्मल से उदाहरण से समझिए. जो महिलाएं मां बनती है बच्चे के जन्म के बाद करीब कई महीनों तक माता-पिता दोनों की नींद पर असर पड़ता है और ऐसे में उन्हें बच्चे की खुशी तो रहती है लेकिन साथ नींद पूरी न होने के कारण चिड़चिड़ापन आता है क्योंकि रात को बच्चा कई बार दूध पीने के लिए या किसी भी वजह से बार-बार उठता है तो मां को भी उठना पड़ता है. लेकिन क्योंकि बच्चे का खिलखिलाता हुआ चेहरे वो जैसे ही देखते हैं उनकी सारी थकान दूर हो जाती है. लेकिन अन्य व्यक्तियों में अगर ये समस्या है तो खतरनाक बीमारी बन जाती है.

कितनी नींद जरूरी होती है ?

डॉक्टर बताते हैं कि एक नवजात शिशु को ज़्यादा घंटों की नींद लेनी चाहिए जैसे तुरंत पैदा हुआ बच्चा करीब 20 घंटे तक सोता है या 14 से 17 घंटे भी हो सकते हैं. वहीं जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है नींद में कमी आने लगती है. वहीं 18-26 साल के युवा और 26-64 वर्ष के लोगों को सात से नौ घंटे और 65 से ज़्यादा उम्र के लोगों को 7-8 घंटे की नींद लेनी चाहिए. इतनी नींद बहुत जरूरी होती है सेहत के लिए.

मैं एक लड़की की तरफ बेहद आकर्षित हो रहा हूं, क्या मेरा उससे बात करना ठीक होगा ?

सवाल

मैं 28 वर्षीय सिंगल युवक हूं. रोज सुबह मैं बालकनी में बैठ कर जब चाय पीता हूं, उसी वक्त एक महिला सामने सड़क से गुजरती है. वेशभूषा से वह संभ्रांत, सुंदर और लगभग 32-35 वर्ष की लगती है. वह भी मेरी तरफ एक नजर जरूर देखती है. अब मैं रोज उस के आने का इंतजार करता हूं. मैं उस की तरफ बेहद आकर्षित होता जा रहा हूं. उस से बात करना चाहता हूं लेकिन क्या बात करूं, समझ नहीं आ रहा. मन बेचैन रहता है. क्या करूं?

जवाब

सब से पहले तो अपनी खयाली दुनिया से बाहर निकलें. यदि कोई महिला आप की तरफ देखती है तो इस का मतलब यह हरगिज नहीं कि वह आप को पसंद करती है, आप को प्यार करने लगी है. हमारी नजर है और यह किसी भी चीज या किसी की तरफ रहरह कर चली ही जाती है.

इसे भी इत्तफाक ही समझें कि जब आप चाय पीने बैठते हैं वह वहां से गुजरती है. वर्किंग महिला हो तो हो सकता है वही उस का आनेजाने का वक्त हो. आप को तो यह भी मालूम नहीं कि वह कौन है, शादीशुदा है या नहीं है. उस के मन में क्या है. यह आप का एकतरफा आकर्षण है.

आप खयाली दुनिया से बाहर निकलें और अपना वक्त जाया न करें. कुछ दिनों के लिए बालकनी के बजाय कमरे में ही चाय की चुसकी लें. मन धीरेधीरे शांत हो जाएगा. आप इन सब से बाहर निकलना चाहते हैं या फिर इस पचड़े में पड़ना चाहते हैं, यह आप को तय करना है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

एक त्यक्तित्व : क्या चचिया ससुर अपने समय का सदुपयोग कर रहे थे ?

मैं उधड़े ऊन की धुली हुई लच्छी का गोला बनाने में उलझी हुई थी. तभी पीछे से मेरे चचिया ससुर आए और इस के पहले कि मैं कुछ समझूं, उन्होंने मेरे हाथ से ऊन ले लिया और बोले, ‘‘लाओ बहू, यह काम तो मैं भी कर सकता हूं.’’

मेरे मुंह से मात्र ‘अरे’ निकल कर रह गया और उधर उन्होंने गोला बनाना भी शुरू कर दिया. मैं किंकर्तव्यविमूढ़ उन्हें ताकती रह गई.

मेरे चचिया ससुर हाल ही में रेल विभाग के ऊंचे, गरिमापूर्ण पद से सेवानिवृत्त हुए थे. पिछले वर्ष मैं सपरिवार उन के यहां गई थी. वहां उन का बंगला, बगीचा, गाड़ी, नौकरचाकर, माली, आगेपीछे ‘हुजूरहुजूर’ करते अफसर, बाबू और चपरासियों को देख कर मैं उन के ठाटबाट का मन ही मन अंदाजा लगाने लगी थी. दूसरी ओर उन का मेरे हाथ से गोला बनाने के लिए ऊन की लच्छी ले लेना किस हद तक मुझे विस्मय में डाल गया था, कह नहीं सकती.

मैं आम हिंदुस्तानी परिवार की बेटी हूं, जहां लड़कों से काम लेने की कोई परंपरा नहीं होती. काम के लिए सिर्फ बेटी ही दौड़ाई जाती है. लड़के अधिकतर मटरगश्ती ही करते रहते हैं. किसी काम को हाथ लगाना वे अपनी हेठी समझते हैं. मैं ने पुरुषों को दफ्तर काम पर जाते देखा था, पर घर लौटने पर उन्हें कभी किसी नवाब से कम नहीं पाया.

मैं ऐसे माहौल में पल कर बड़ी हुई थी जहां पुरुषपद का सही सम्मान उसे निकम्मा बना कर रखने में माना जाता था. अत: मेरा चाचा के व्यवहार से अचंभित रह जाना स्वाभाविक ही था. वह हंस कर बोले, ‘‘कुछ मत सोचो बहू, मैं तुम्हारा उलझा ऊन सुलझा कर बढि़या गोला बना दूंगा.’’

‘‘वह बात नहीं है, चाचाजी. आप यह काम कर के मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं.’’

‘‘क्यों? क्या मैं इतना खराब गोला बना रहा हूं कि तुम्हें शर्म महसूस हो रही है?’’

‘‘नहीं, नहीं,’’ मेरी समझ में नहीं आया कि और क्या कहूं.

‘‘तुम कुछ मत सोचो. जाओ, अपना काम निबटा लो, मैं यह कर दूंगा,’’ मुझे हिचकिचाता देख कर फिर बोले, ‘‘देखो बहू, मैं तुम्हारी तरह न तो खाना बना सकता हूं, न कढ़ाईबुनाई कर सकता हूं, पर यह गोला बखूबी बना सकता हूं, सो यह काम मुझे करने दो.’’

‘‘नहींनहीं, यह ठीक नहीं लगता. कोई क्या कहेगा?’’ मैं ने धीरे से कहा.

‘‘जो कुछ कहना है, सब तुम ही तो कहे जा रही हो, बहू. दूसरा कोई क्या कहेगा,’’ अब हंस कर चाची ने कहा, ‘‘मैं तो खुद बना देती, पर उलझे ऊन का गोला बनाने का धैर्य मुझ में नहीं, पर तुम्हारे चाचा में है. उन्हें गोला बनाने दो.’’

मैं और काम करने चली गई, पर मुझे बेहद अटपटा सा लगता रहा. मेरे अपने घर में पुरुषों का काम करना सदा हेय और बेकार बैठना आभिजात्य की कसौटी माना जाता रहा था. बहरहाल, उन दिनों मैं ने 3 बड़े पुलोवर उधेड़े थे और सब के गोले बनाए थे चाचा ने.

एक वही काम चाचा ने नहीं किया था, बल्कि घर के छोटेबड़े जितने भी काम पुरुष का मुंह ताकते पड़े रहते हैं, उन सब का जिम्मा उन्होंने अपने ऊपर ले लिया था. घर के मुख्यद्वार पर लगी घंटी भी उन्होंने ठीक करवा दी थी. पता नहीं कैसे चाचा को बिना कहे मालूम पड़ जाता कि मैं किसी चीज के खराब होने से असुविधा में हूं या तो वह खुद उसे ठीक करने बैठ जाते अथवा बाजार से ठीक करवा लाते. उन्होंने कभी मेरे पति के दफ्तर से लौट कर आने और मोटर पर बाजार जाने की प्रतीक्षा नहीं की.

चाचा को देख कर कोई ‘अवकाश प्राप्त’ कह ही नहीं सकता था. वह समय के हर पल का सदुपयोग करते थे. जैसी चुस्तीफुरती उन में थी, वैसी तो जवानों में भी कम ही देखने को मिलती है.

अपने घरों में व्यस्त रहने वाले तो बहुत लोग मिल जाएंगे. परंतु जो दूसरों के घर जा कर भी व्यस्त रह सकें और वह भी अपने काम में नहीं, बल्कि मेजबान के काम में, उस की जितनी प्रशंसा की जाए, कम है. चाचाजी के काम करने का ढंग कुछ ऐसा था कि उन्होंने कभी मुझे यह अनुभव नहीं होने दिया कि वह मुझ पर कोई एहसान कर रहे हैं.

चाचाजी कहते, ‘‘गृहिणी की इच्छा, अनिच्छा सर्वोपरि है क्योंकि वह गृह रूपी पहिए की धुरी है.’’

अब तक तो मैं ने गृहस्वामिनी की मरजी की बात सुनी थी, गृहिणी का इतना सम्मान व महत्त्व पहली बार जाना था.

उस रोज जो चाचाजी ने उधड़े ऊन का गोला बनाने का काम मुझ से लिया तो मेरा मन आत्मग्लानि से भर सा गया था. कोई पुरुष, वह भी बुजुर्ग, ऊपर से ससुराल पक्ष का इतना वरिष्ठ सदस्य, मेरे करने वाला काम मेरे हाथ से ले ले, बता नहीं सकती, कितनी शर्म की बात लग रही थी मुझे. शायद इस ग्लानि से मुक्ति पाने के लिए उस रोज 2 सब्जियां और दाल के स्थान पर 3 सब्जियां, दाल, सलाद बना दिया.

खाने पर बैठते ही चाचाजी ने पूछा, ‘‘अरे, आज क्या कोई मेहमान आने वाला है?’’

‘‘नहीं तो,’’ मैं ने उत्तर दिया.

‘‘तो फिर यह तीसरी तरकारी क्यों?’’

‘‘बस, यों ही. आप को अच्छी लगती है न?’’

चाचाजी ने कोई उत्तर नहीं दिया, पर तीसरी सब्जी को हाथ भी नहीं लगाया. भोजनोपरांत बोले, ‘‘देखो बहू, यदि तुम शाही दस्तरखान बिछा कर हमें मेहमान की तरह बोझ बना कर रखोगी तो हम समझेंगे बहू हमें जल्दी जाने का इशारा कर रही है.’’

‘‘नहीं, नहीं, चाचाजी, आप गलत समझ रहे हैं,’’ मैं ने जल्दी से कहा.

‘‘तो फिर कल से वही 2 तरकारी और दाल, बस.’’

‘‘जी, ठीक है.’’

सास के आतंकित करने वाले बहुत से रूप थे मन में. मगर चाची अपने गोरे, गोलमटोल हाथों में निरंतर सलाइयां चलाते हुए मेरे हर काम में कोई न कोई अच्छाई ढूंढ़ कर उस का गुणगान करती रहतीं.

अपनी गृहस्थी की चक्की में रातदिन जुटी रहने पर भी मैं जानती थी कि बहुत से काम अनभ्यस्त होने के कारण मैं उतनी दक्षता से नहीं कर सकती थी, जितनी कि मेरी जेठानियां, ननदें वगैरह करती थीं. पर चाची ने कभी इंगित नहीं किया कि उन्हें मेरा कोई काम बेढंगा या फूहड़पन से भरा हुआ लगा था.

मैं सोचने लगी, अगर इस महंगाई के जमाने में घर आने वाले मेहमान, चाचा के अनेक गुणों में से एकाध भी ले लें तो मेहमाननवाजी बोझ न महसूस हो. आश्चर्य तो तब होता है, जब बहू सास के घर, सास बहू के घर, बहन बहन के घर, देवरानी जेठानी के घर, ननद भाभी के और भाभी ननद के घर मेहमान बन कर रहती हैं और उन के कारण बढ़े हुए काम में चक्करघिन्नी की तरह घूमती गृहिणी के काम को हलका करने को हाथ नहीं बढ़ातीं, बल्कि हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती हैं.

अकसर देखा गया है कि जो व्यक्ति कार्यकुशल होता है, वह अहंकारी भी होता है. इस के अलावा अधिकतर पत्नियों को अपने पति द्वारा दूसरों का काम करना फूटी आंख नहीं सुहाता. खुद चाहे कितना काम लें अपने पति से, अधिकार है उन्हें, पर कोई दूसरा उन के पति की निपुणता से प्रभावित हो कुछ करने को कह भर दे, तो उन्हें लगता है कि उन के पति का गलत इस्तेमाल हो रहा है, नाजायज फायदा उठाया जा रहा है.

चाचीजी में एक नहीं, हजार अनुकरणीय गुण थे. वह अपने पति को दूसरों का काम ही नहीं करने देती थीं, बल्कि उन के व अपने किए को ऐसा सहज रूप प्रदान करती थीं जैसे कहीं कुछ विशेष या असामान्य हुआ ही न हो.

सोचती हूं, चाचाजी पुरुष जाति को अपने निकम्मेपन के आभिजात्य से उबरने की दीक्षा दे जाते, चाचीजी स्त्रियों को सहिष्णुता और पति पर एकाधिपत्य से मुक्ति दिला जातीं तो वृद्धावस्था शायद कुछ कम शोचनीय हो जाती.

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