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मैं ऐसा क्या करूं कि अनजान लोगों के बीच भी मेरा आत्मविश्वास कायम रहे ?

सवाल

मैं 21 वर्षीय अविवाहिता हूं. घर में पारिवारिक सदस्यों और दोस्तों के बीच मेरा व्यवहार बिलकुल ठीक रहता है. मैं सहज रहती हूं. लेकिन घर से बाहर अनजान लोगों के बीच मेरा आत्मविश्वास डगमगा सा जाता है और मैं सहज नहीं रह पाती. अपनी बात भी सही ढंग से नहीं कह पाती. मैं ऐसा क्या करूं कि घर से बाहर अनजान लोगों के बीच भी मेरा आत्मविश्वास कायम रहे ?

जवाब

आप की समस्या मनोवैज्ञानिक है जिस के चलते आप अनजान लोगों के बीच अपना आत्मविश्वास कायम नहीं रख पातीं. कई बच्चे जिन्हें बचपन में अनजान लोगों से मेलजोल बढ़ाने से दूर रखा जाता है और सिर्फघर वालों

के बीच ही रखा जाता है उन में आत्मविश्वास की कमी रह जाती है और वे अनजान लोगों के साथ ठीक से संवाद स्थापित नहीं कर पाते. आप अपने आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए घर से बाहर लोगों से मिलेंजुलें. उन से अपनी बात कहने की आदत डालें. शुरू में अगर ऐसा करना मुश्किल लगे तो घर में अकेले में अपनी बात कहने की प्रैक्टिस करें. अपनी खूबियों को उजागर करें. शुरूशुरू में थोड़ी दिक्कत हो सकती है लेकिन निरंतर अभ्यास से आप में आत्मविश्वास जागेगा और आप सहजता से अपनी बात औरों के सामने रख पाएंगी.

अनकंट्रोल डायबिटीज से छीन सकती है आंखों की रोशनी, जानें बचाव के उपाय

55 वर्षीय सुशीलकांत 10 वर्षों से मधुमेह यानी डायबिटीज के मरीज हैं. पिछले कई दिनों से उन की शुगर भी नियंत्रण में नहीं है. एक शाम उन को लगा कि उन की आंखों के आगे अंधेरा सा छा रहा है, फिर कुछ देर ठीक रहा और थोड़ी देर बाद फिर वही स्थिति हो गई. 2 दिनों के बाद अचानक उन्हें लगा कि उन्हें नहीं के बराबर यानी बहुत ही कम दिख रहा है. तुरंत चिकित्सक से संपर्क किया गया. जांच से मालूम हुआ कि मधुमेह का असर आंख पर पड़ा है और उन का रेटिना क्षतिग्रस्त हो गया है. चिकित्सक की सलाह पर शहर के बाहर विशेषज्ञ रेटिना सर्जन से संपर्क किया गया. रेटिना सर्जन के इलाज से उन की आंखों की रोशनी को बचाया जा सका वरना वे नेत्रहीन हो जाते.

मधुमेह यदि ज्यादा पुराना हो या अनियंत्रित हो तो उस का कुप्रभाव आंखों पर अवश्य पड़ता है. इसे चिकित्सा शास्त्र में ‘डायबिटिक रेटिनोपैथी’ कहा गया है. इस जटिलता, जो मधुमेहजन्य है, में आंखों के परदे, जिसे ‘रेटिना’ कहा गया है, की रक्तवाहिनियां नष्ट हो जाती हैं और इस से रक्त बहने लगता है या रिसाव होने लगता है. यह जटिलता समाज के  उच्चवर्ग में अधिक देखने को मिलती है. ऐसे में हरेक मधुमेह रोगी को चाहिए कि वह वर्ष में 2 बार अपना नेत्रपरीक्षण अवश्य करवाएं.

दृष्टि पर प्रभाव : कैसे कैसे

एक तरह की रेटिनोपैथी तो अधिकतर लोगों में देखने को मिलती है. इस का कोई लक्षण या संकेत नहीं मिलता. इस में रेटिना में सूजन आ सकती है तथा आंखों के पास गंदगी या मैल जमा हो सकता है. चिकित्सा विज्ञान के अनुसार, आंख की इस छोटी से रक्तवाहिनी को काफी नुकसान झेलना पड़ता है. यह रेटिनोपैथी फैलती नहीं है.

दूसरी तरह की रेटिनोपैथी में नई रक्तवाहिनियां रेटिना के आसपास बनने लगती हैं, जिस से रक्तस्राव होने लगता है. इस में कई बार व्यक्ति की दृष्टि चली जाती है. नई रक्तवाहिनियों के पनपने से रेटिना पर खिंचाव आ सकता है जिस से वह अलग भी हो सकती है. रेटिना की आगे की जैली में भी खून आ सकता है.

जब रेटिना से द्रव्य बाहर निकलता है तो वह रेटिना के बीच ‘मैक्यूला’ पर आने लगता है. इसे ‘मैक्युलोपैथी’ कहा जाता है.

इस के अलावा मधुमेह के रोगियों में मोतियाबिंद भी जल्दी पनपता है. अल्पआय वर्ग में यह ज्यादा देखने को मिलता है क्योंकि उन का ज्यादातर कार्य सूर्य की रोशनी में होता है. रक्त संचार अव्यवस्थित व अपूर्ण होने के कारण आंखों को लकवा भी मार सकता है.

मधुमेह के पुराने मरीजों की दृष्टि में शुरूशुरू में धुंधलापन आता है, रेटिना की सतह तथा दृष्टि के लिए उत्तरदायी मुख्य नाड़ी ‘औप्टिक नर्व’ पर नई रक्त वाहिनियां बनने लगती हैं.

बचाव : कैसे हो मजबूत

–       मधुमेह हो या उच्च रक्तचाप या दोनों, इन्हें हर हालत में नियंत्रित रखें. चाहे दवा से या परहेज से.

–       अपने रक्तशर्करा व रक्तचाप की नियमित जांच कराएं.

–       धूम्रपान या तंबाकू का सेवन त्याग दें.

–       हरी सब्जियों का अधिक सेवन करें.

–       खुराक में विटामिन ए, विटामिन सी व विटामीन ई आदि का भरपूर सेवन करें.

–       फिश या फिशऔयल का सेवन करें.

प्रमुख कारण

–       आंख की रेटिना पर कुप्रभाव का पहला महत्त्वपूर्ण कारण है मधुमेह कितने समय से है. एक चिकित्सकीय आंकड़े के अनुसार, करीब 10 वर्षों से मधुमेह के रोगी पर इस के होने की संभावना 50 फीसदी, 20 वर्षों से मधुमेह के रोगी पर 70 फीसदी तथा 30 वर्षों से मधुमेह के रोगी पर 90 फीसदी संभावना रहती है.

–       यदि मधुमेह के साथ उच्च रक्तचाप भी है तो संभावना और अधिक बढ़ जाती है.

–       गर्भावस्था में भी इस की संभावना बढ़ जाती है.

–       यह स्थिति वंशानुगत भी होती है.

–       स्त्रियों में पुरुषों की अपेक्षा यह स्थिति अधिक पाईर् जाती है.

निदान तकनीकें

–       रक्त शर्करा स्तर की नियमित जांच कराते रहें.

–       ‘फंडस फ्लोरिसीन एजिंयोग्राफी’ नामक विशिष्ट जांच से यह स्थिति स्पष्ट हो जाती है कि लेजर तकनीक द्वारा उपचार की जरूरत कहांकहां है.

–       ‘औफ्थालमोस्कोप’ नामक उपकरण द्वारा आंखों की नियमित जांच करवाएं.

इस प्रकार, इस वैज्ञानिक जानकारी के साथ मधुमेह के रोगी अपनी आंखों की रोशनी को बचा सकते हैं क्योंकि अंधेपन के कारणों में इस स्थिति की विशेष भूमिका रहती है.

लेजर पद्धति से उपचार

लेजर फोटो कोएगुलेशन द्वारा लेजर बीम प्रभावित रेटिना पर डाली जाती है जिस से रक्तस्राव या रिसाव बंद हो जाता है, साथ ही, दूसरी असामान्य रक्तवाहिनियों का बनना भी बंद हो जाता है. यह उपचार यदि रोगी को समय पर मिल जाए तो परिणाम अच्छे रहते हैं.

यदि रोग काफी ज्यादा बढ़ गया हो तो शल्यक्रिया द्वारा उपचार संभव है, जिसे ‘वीट्रेक्टौमी सर्जरी’ कहा गया है. इस में अलग हुए रेटिना को फिर जोड़ा जाता है.

एक नया इंजैक्शन वीईजीएफ आंखों में लगाया जाता है, जिस के प्रभाव से इस के अतिरिक्त अन्य खामियां भी ठीक हो जाती हैं. इस के साथसाथ लेजर द्वारा भी उपचार लिए जाने के अच्छे परिणाम आते हैं.

मैटरनिटी कवरेज 2.0 : न्यू ऐज हेल्थ पॉलिसी में मैटरनिटी बेनिफिट का दायरा हुआ और व्यापक

महामारी के बाद की दुनिया में हेल्थ इंश्योरेंस के प्रति बढ़ती जागरूकता ने व्यक्तिगत उत्पादों की मांग को भी बढ़ाया है. जिसकी वजह से इंश्योरेंस कंपनिया अब लगातार खुद को विकसित कर रही हैं और ऐसी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी को लेकर आईं है जो पॉलिसीधारकों की आधुनिक जरूरतों के अनुसार लाभ प्रदान करती है.

सिद्धार्थ सिंघल, बिजनेस हेड-हेल्थ इंश्योरेंस, पॉलिसीबाजार डॉट कॉम का कहना है-

व्यक्तिगत उत्पादों और ऐड-ऑन के आने के साथ, हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी की कुछ श्रेणियों में बदलाव आया है. मैटरनिटी इंश्योरेंस एक ऐसी श्रेणी है जो पहले उपभोक्ता के लिए बाद की बात हुआ करती थी लेकिन अब, बढ़ती जरूरतों और मांगों को पूरा करने के लिए इंश्योरेसं कंपनियों द्वारा इसका दायरा बढ़ा दिया गया है.

मैटरनिटी हेल्थ इंश्योरेंस

पॉलिसीबाजार डॉट कॉम में हेल्थ इंश्योरेंस के बिजनेस हेड, सिद्धार्थ सिंघल ने कहा “परिवार नियोजन बहुत ही आवश्यक है इसके अंतर्गत परिवार बढ़ाने से लेकर बच्चे के जन्म के बाद के खर्चों को ध्यान में रखकर सभी फैसले लिए जाते है. आज के समय में, विशेष रूप से मेट्रो शहरों में, शिशु के सुरक्षित जन्म और स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित करने के लिए बहुत सारी योजनाएं बनानी पड़ती हैं. कुछ मामलों में, दंपत्ति को माता-पिता बनने की यात्रा शुरू करने से पहले आईवीएफ या उपचार के अन्य कोर्स के लिए जाने की सलाह दी जा सकती है. लेकिन इसमें बहुत सारा पैसा खर्च हो सकता है. यहीं पर मैटरनिटी बेनिफिट के साथ हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी मदद कर सकती है. आजकल, कई इंश्योरेंस कंपनियों के पास विशेष योजनाएं होती हैं जो मैटरनिटी से जुड़े से जुड़ी सभी खर्चों को कवर करती हैं.”

हेल्थ इंश्योरेसं पॉलिसी में आधुनिक लाभ

व्यापक कवरेज: कुछ साल पहले, मैटरनिटी इंश्योरेंस कवरेज बच्चे के जन्म के साथ शुरू और समाप्त हो जाता था. वे केवल बच्चे के जन्म से संबंधित खर्चों को कवर करते थे. हालांकि, मां की स्वास्थ्य देखभाल इससे कहीं अधिक होती है. इसलिए, नए जमाने की मैटरनिटी योजनाओं अब बहुत अधिक व्यापक हो गई हैं और अब इसमें डिलीवरी से पहले और डिलीवरी के बाद का परामर्श और सहायक प्रक्रियाएं भी शामिल होती हैं. इसके अलावा, यह योजनाएं न केवल मां को कवर करती हैं, बल्कि नवजात शिशु से संबंधित 90 दिनों तक के मेडिकल खर्चों को भी कवर करते हैं, जिसके बाद बच्चे को पॉलिसी में जोड़ा जा सकता है. इनमें नवजात शिशु के टीकाकरण का खर्च भी शामिल है, जो काफी अधिक हो सकता है. यहां तक   कि गर्भवती मां के लिए टीके भी इसमें शामिल हैं.

वेटिंग पीरियड में कमी: पहले, दंपत्ति को मैटरनिटी कवरेज का पात्र होने के लिए 2 से 4 साल के वेटिंग पीरियड प्रतीक्षा से गुजरना पड़ता था. लेकिन आधुनिक हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी अब न्यूनतम नौ महीने का वेटिंग पीरियड प्रदान करती हैं. इससे भी बेहतर, कुछ न्यू ऐज पॉलिसी ऐसी सुविधा भी प्रदान करती हैं, जिसमे पति/पत्नी के द्वारा सर्व किए गए वेटिंग पीरियड को पहले दिन से मैटरनिटी कवरेज प्राप्त करने के लिए ट्रांसफर किया जा सकता है.

व्यापक कवरेज दायरा: एक और चुनौती जिसका दम्पत्तियों को सामना करना पड़ता था वह है मातृत्व योजनाओं द्वारा प्रदान किया जाने वाला सीमित कवरेज. हालांकि, आजकल ऐसी योजनाएं हैं जो पॉलिसीधारकों को क्लेम न करने पर मैटरनिटी इंश्योरेंस राशि को अगले साल तक ले जाने की अनुमति देती हैं. पॉलिसी के आधार पर कैरी-फॉरवर्ड बेनिफिट एक निश्चित संख्या में वर्षों तक, अधिकतम 10 वर्षों तक सीमित है. उदाहरण के लिए, अगर पॉलिसी 20,000 रुपये का मैटरनिटी बेनिफिट प्रदान करती है और अगर 10 सालों तक कोई मैटरिनिटी क्लेम नहीं किया गया है, तो हर क्लेम फ्री ईयर के लिए 20,000 रुपये जोड़कर कुल मैटरनिटी कवर बढ़कर 2.2 लाख रुपये हो जाएगा.

इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि आप परिवार नियोजन के लिए इंतजार न करें बल्कि जल्द से जल्द इंश्योरेंस पॉलिसी लेने पर विचार करें ताकि आपकी इंश्योरेंस राशि बढ़ती रहे. इसके अलावा, कवर किए गए वेटिंग पीरियड को अपने जीवनसाथी को देने में सक्षम होने के लाभ के साथ, जो लोग विवाहित नहीं हैं वे भी इस योजना को चुन सकते हैं और पूरी अवधि के लिए मैटरनिटी इंश्योरेंस राशि जमा कर सकते हैं.

मैटरनिटी की अलग-अलग यात्राओं को कवर करना: अलग-अलग महिलाओं के लिए उनका मैटरनिटी सफर अलग-अलग होता है. इसे पहचानते हुए, आजकल कई इंश्योरेंस पॉलिसी असिस्टीड रिप्रोडक्टिव ट्रीटमेंट्स और इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) जैसे बांझपन के उपचार के लिए कवरेज प्रदान करती हैं. इसके अलावा, सरोगेसी के मामले में, दंपत्ति के अलावा, जिनके स्वास्थ्य को हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी के अंतर्गत कवर किया गया है, उनके अलावा सरोगेट माताओं की सरोगेसी और डिलीवरी को भी कवर किया जाएगा. साथ ही जो लोग बच्चा गोद लेना चाहते हैं, उनके लिए ये योजनाएं कानूनी रूप से गोद लेने की प्रक्रिया से संबंधित सभी खर्चों के लिए वित्तीय सुरक्षा भी प्रदान करती हैं. और अगर किसी मेडिकल परेशानी की वजह से गर्भावस्था को समाप्त करना पड़ता है, तो उससे संबंधित खर्चों को भी पॉलिसी के अंतर्गत कवर किया जाता है.

इसलिए, यह कहना उचित है कि ये योजनाएं मैटरनिटी से जुड़ी आपकी सभी जरूरतों को कवर करती हैं, जिससे साफ पता चलता है कि लोग इन पॉलिसीयों में निवेश करना जारी रखेंगे.

पति पत्नी और वो : प्रीती के मैनेजर ने सभी लोगों को क्यों बुलाया था ?

मैं एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी कर रही थी. अभी मुझे 2 साल भी नहीं हुए थे. कंपनी का एक बड़ा प्रोजैक्ट पूरा होने की खुशी में शनिवार को फाइव स्टार होटल में एक पार्टी थी. मुझे भी वहां जाना था. मेरे मैनेजर ने मुझे बुला कर खासतौर पर कहा, ‘‘प्रीति, तुम इस प्रोजैक्ट में शुरू से जुड़ी थीं, तुम्हारे काम से मैं बहुत खुश हूं. पार्टी में जरूर आना… वहां और सीनियर लोगों से भी तुम्हें इंट्रोड्यूज कराऊंगा जो तुम्हारे फ्यूचर के लिए अच्छा होगा.’’

‘‘थैंक्यू,’’ मैं ने कहा.

सागर मेरा मैनेजर है. लंबा कद, गोरा, क्लीन शेव्ड, बहुत हैंडसम ऐंड सौफ्ट स्पोकन. उस का व्यक्तित्व हर किसी को उस की ओर देखने को मजबूर करता. सुना है वाइस प्रैसिडैंट का दाहिना हाथ है… वे कंपनी के लिए नए प्रोजैक्ट लाने के लिए कस्टमर्स के पास सागर को ही भेजते. सागर अभी तक इस में सफल रहा था, इसलिए मैनेजमैंट उस से बहुत खुश है.

मैं ने अपनी एक कुलीग से पूछा कि वह भी पार्टी में आ रही है या नहीं तो उस ने कहा, ‘‘अरे वह हैंडसम बुलाए और हम न जाएं, ऐसा कैसे हो सकता है. बड़ा रंगीन और मस्तमौला लड़का है सागर.’’

‘‘वह शादीशुदा नहीं है क्या?’’ मैं ने पूछा.

‘‘एचआर वाली मैम तो बोल रही थीं शादीशुदा है, पर बीवी कहीं और जौब करती है. सुना है अकसर यहां किसी न किसी फ्रैशर के साथ उस का कुछ चक्कर रहा है. यों समझ लो मियांबीवी के बीच कोई तीसरी वो. पर बंदे की पर्सनैलिटी में दम है. उस के साथ के लिए औफिस की दर्जनों लड़कियां तरसती हैं. मेरी शादी के पहले मुझ पर भी डोरे डाल रहा था. मेरी तो अभी शादी भी नहीं हुई है, सिर्फ सगाई ही हुई है… एक शाम उस के नाम सही.’’

‘‘मतलब तेरा भी चक्कर रहा है सागर के साथ… पगली शादीशुदा हो कर ऐसी बातें करती है. खैर ये सब बातें छोड़ और बता तू आ रही है न पार्टी में?’’

‘‘हंड्रेड परसैंट आ रही हूं?’’

मैं शनिवार रात पार्टी में गई. मैं ने पार्टी के लिए अलग से मेकअप नहीं किया था. बस वही जो नौर्मल करती थी औपिस जाने के लिए. सिंपल नेवी ब्लू कलर के लौंग फ्रौक में जरा देर से पहुंची. देखा कि सागर के आसपास 4-5 लड़कियां पहले से बैठी थीं.

मुझे देख कर वह फौरन मेरे पास आ कर बोला, ‘‘वाऊ प्रीति, यू आर लुकिंग गौर्जियस. कम जौइन अस.’’

पहले सागर ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे वाइस प्रैसिडैंट के पास ले जा कर उन से मिलवाया.

उन्होंने कहा, ‘‘यू आर लुकिंग ग्रेट. सागर तुम्हारी बहुत तारीफ करता है. तुम्हारे रिपोर्ट्स भी ऐक्सीलैंट हैं.’’

मैं ने उन्हें थैंक्स कहा. फिर अपनी कुलिग्स की टेबल पर आ गई. सागर भी वहीं आ गया. हाल में हलकी रंगीन रोशनी थी और सौफ्ट म्यूजिक चल रहा था. कुछ स्नैक्स और ड्रिंक्स का दौर चल रहा था.

सागर ने मुझ से भी पूछा, ‘‘तुम क्या लोगी?’’

‘‘मैं… मैं… कोल्डड्रिंक लूंगी.’’

सागर के साथ कुछ अन्य लड़कियां भी हंस पड़ीं. ‘‘ओह, कम औन, कम से कम बीयर तो ले लो. देखो तुम्हारे सभी कुलीग्स कुछ न कुछ ले ही रहे हैं. कह कर उस ने मेरे गिलास में बीयर डाली और फिर मेरे और अन्य लड़कियों के साथ गिलास टकरा कर चीयर्स कहा.

पहले तो मैं ने 1-2 घूंट ही लिए. फिर धीरेधीरे आधा गिलास पी लिया. डांस के लिए फास्ट म्यूजिक शुरू हुआ. सागर मुझ से रिक्वैस्ट कर मेरा हाथ पकड़ कर डांसिंग फ्लोर पर ले गया.

पहले तो सिर्फ दोनों यों ही आमनेसामने खड़े शेक कर रहे थे, फिर सागर ने मेरी कमर को एक हाथ से पकड़ कर कहा, ‘‘लैट अस डांस प्रीति,’’ और फिर दूसर हाथ मेरे कंधे पर रख कर मुझ से भी मेरा हाथ पकड़ ऐसा ही करने को कहा.

म्यूजिक तो फास्ट था, फिर भी उस ने मेरी आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘मुझे स्लो स्टैप्स ही अच्छे लगते हैं. ज्यादा देर तक सामीप्य बना रहता है, कुछ मीठी बातें करने का मौका भी मिल जाता है और थकावट भी नहीं होती है.’’

मैं सिर्फ मुसकरा कर रह गई. वह मेरे बहुत करीब था. उस की सांसें मैं महसूस कर रही थी और शायद वह भी मेरी सांसें महसूस कर रहा था. उस ने धीरे से कहा, ‘‘अभी तुम्हारी शादी नहीं हुई है न?’’

‘‘नहीं, शादी अभी नहीं हुई है, पर 6 महीने बाद होनी है. समरेश मेरा बौयफ्रैंड ऐंड वुड बी हब्बी फौरन असाइनमैंट पर अमेरिका में है.’’

‘‘वैरी गुड,’’ कह उस ने मेरे कंधे और गाल पर झूलते बालों को अपने हाथ से पीछे हटा दिया, ‘‘अरे यह सुंदर चेहरा छिपाने की चीज नहीं है.’’

फिर उस ने अपनी उंगली से मेरे गालों को छू कर होंठों को छूना चाहा तो मैं ‘नो’ कह कर उस से अलग हो गई. मुझे अपनी सहेली का कहा याद आ गया था.

उस के बाद हम दोनों 2 महीने तक औफिस में नौर्मल अपना काम करते रहे.

एक दिन सागर ने कहा, हमें एक प्रोजैक्ट के लिए हौंगकौंग जाना होगा.’’

‘‘हमें मतलब मुझे भी?’’

‘‘औफकोर्स, तुम्हें भी.’’

‘‘नहीं सागर, किसी और को साथ ले लो इस प्रोजैक्ट में.’’

‘‘तुम यह न समझना कि यह मेरा फैसला है… बौस का और्डर है यह. तुम चाहो तो उन से बात कर सकती हो.’’

मैं ने वाइस प्रैसिडैंट से भी रिक्वैस्ट की पर उन्होंने कहा, ‘‘प्रीति, बाकी सभी अपनेअपने प्रोजैक्ट में व्यस्त हैं. 2 और मेरी नजर में थीं, उन से पूछा भी था, पर दोनों अपनी प्रैगनैंसी के चलते दूर नहीं जाना चाहती हैं… मेरे पास तुम्हारे सिवा और कोई औप्शन नहीं है.’’

मैं सागर के साथ हौंगकौंग गई. वहां 1 सप्ताह का प्रोग्राम था. काफी भागदौड़ भरा सप्ताह रहा. मगर 1 सप्ताह में हमारा काम पूरा न हो सका. अपना स्टे और 3 दिन के लिए बढ़ाना पड़ा. हम दोनों थक कर चूर हो गए थे. बीच में 2 दिन वीकैंड में छुट्टी थी.

हौंगकौंग के क्लाइंट ने कहा, ‘‘इसी होटल में स्पा, मसाज की सुविधा है. मसाज करा लें तो थकावट दूर हो जाएगी और अगर ऐंजौय करना है तो कोव्लून चले जाएं.’’

‘‘मैं तो वहां जा चुका हूं. तुम कहो तो चलते हैं. थोड़ा चेंज हो जाएगा,’’ सागर ने कहा.

हम दोनों हौंगकौंग के उत्तर में कोव्लून द्वीप गए. थोड़े सैरसपाटे के बाद सागर बोला, ‘‘तुम होटल के मसाज पार्लर में जा कर फुल बौडी मसाज ले लो. पूरी थकावट दूर हो जाएगी.’’

मै स्पा गई. स्पा मैनेजर ने पूछा, ‘‘आप ने अपौइंटमैंट में थेरैपिस्ट की चौइस नहीं बताई है. अभी पुरुष और महिला दोनों थेरैपिस्ट हैं मेरे पास. अगर डीप प्रैशर मसाज चाहिए तो मेरे खयाल से पुरुष थेरैपिस्ट बेहतर होगा. वैसे आप की मरजी?’’

मैं ने महिला थेरैपिस्ट के लिए कहा और अंदर मसाजरूम में चली गई. बहुत खुशनुमा माहौल था. पहले तो मुझे ग्रीन टी पीने को मिली. कैंडल लाइट की धीमी रोशनी थी, जिस से लैवेंडर की भीनीभीनी खुशबू आ रही थी. लाइट म्यूजिक बज रहा था. थेरैपिस्ट ने मुझे कपड़े खोलने को कहा. फिर मेरे बदन को एक हरे सौफ्ट लिनेन से कवर कर पैरों से मसाज शुरू की. वह बीचबीच में धीरेधीरे मधुर बातें कर रही थी. फिर थेरैपिस्ट ने पूछा, ‘‘आप को सिर्फ मसाज करानी है या कुछ ऐक्स्ट्रा सर्विस विद ऐक्स्ट्रा कौस्ट… पर इस टेबल पर

नो सैक्स?’’

‘‘मुझे आश्चर्य हुआ कि उसे ऐसा कहने की क्या जरूरत थी. मैं ने महसूस किया कि मेरी बगल में भी एक मसाज चैंबर था. दोनों के बीच एक अस्थायी पार्टीशन वाल थी. जैसेजैसे मसाज ऊपर की ओर होती गई मैं बहुत रिलैक्स्ड फील कर रही थी. करीब 90 मिनट तक वह मेरी मसाज करती रही. महिला थेरैपिस्ट होने से मैं भी सहज थी और उसे भी मेरे अंगों को छूने में संकोच नहीं था. उस के हाथों खासकर उंगलियों के स्पर्श में एक जादू था और एक अजीब सा एहसास भी. पर धीरेधीरे उस के नो सैक्स कहने का अर्थ मुझे समझ में आने लगा था. मैं अराउज्ड यानी उत्तेजना फील करने लगी. मुझे लगा. मेरे अंदर कामवासना जाग्रत हो रही है.’’

तभी थेरैपिस्ट ने ‘‘मसाज हो गई,’’ कहा और बीच की अस्थायी पार्टीशन वाल हटा दी. अभी मैं ने पूरी ड्रैस भी नहीं पहनी थी कि देखा दूसरे चैंबर में सागर की भी मसाज पूरी हो चुकी थी. वह भी अभी पूरे कपड़े नहीं पहन पाया था.

दूसरी थेरैपिस्ट गर्ल ने मुसकराते हुए कहा ‘‘देखने से आप दोनों का एक ही हाल लगता है, अब आप दोनों चाहें तो ऐंजौय कर सकते हैं.’’

मुझे सुन कर कुछ अजीब लगा, पर बुरा नहीं लगा. हम दोनों पार्लर से निकले. मुझे अभी तक बिना पीए मदहोशी लग रही थी. सागर मेरा हाथ पकड़ कर अपने रूम में ले गया. मैं भी मदहोश सी उस के साथ चल पड़ी. उस ने रूम में घुसते ही लाइट औफ कर दी.

सागर मुझ से सट कर खड़ा था. मेरी कमर में हाथ डाल कर अपनी ओर खींच रहा था और मैं उसे रोकना भी नहीं चाहती थी. वह अपनी उंगली से मेरे होंठों को सहला रहा था. मैं भी उस के सीने से लग गई थी. फिर उस ने मुझे किस किया तो ऐसा लगा सारे बदन में करंट दौड़ गया. उस ने मुझे बैड पर लिटा दिया और कहा, ‘‘जस्ट टू मिनट्स, मैं वाशरूम से अभी आया.’’

सागर ने अपनी पैंट खोल बैड के पास सोफे पर रख दी और टौवेल लपेट वह बाथरूम में गया. मैं ने देखा कि पैंट की बैक पौकेट से उस का पर्स निकल कर गिर पड़ा और खुल गया. मैं ने लाइट औन कर उस का पर्स उठाया. पर्स में एक औरत और एक बच्चे की तसवीर लगी थी.

मैं ने उस फोटो को नजदीक ला कर गौर से देखा. उसे पहचानने में कोई दिक्कत नहीं हुई. मैं ने मन में सोचा यह तो मेरी नीरू दी हैं. कालेज के दिनों में मैं जब फ्रैशर थी सीनियर लड़के और लड़कियां दोनों मुझे रैगिंग कर परेशान कर रहे थे. मैं रोने लगी थी. तभी नीरू दी ने आ कर उन सभी को डांट लगाई थी और उन्हें सस्पैंड करा देने की वार्निंग दी थी. नीरू दी बीएससी फाइनल में थीं. इस के बाद मेरी पढ़ाई में भी उन्होंने मेरी मदद की थी. तभी से उन के प्रति मेरे दिल में श्रद्धा है. आज एक बार फिर नीरू दी स्वयं तो यहां न थीं, पर उन के फोटो ने मुझे गलत रास्ते पर जाने से बचा लिया. मेरी मदहोशी अब फुर्र हो चली थी.

सागर बाथरूम से निकल कर बैड पर आया तो मैं उठ खड़ी हुई. उस ने मुझे बैड पर बैठने को कहा, ‘‘लाइट क्यों औन कर दी? अभी तो कुछ ऐंजौय किया ही नहीं.’’

‘‘ये आप की पत्नी और साथ में आप का बेटा है?’’

‘‘हां, तो क्या हुआ? वह दूसरे शहर में नौकरी कर रही है?’’

‘‘नहीं, वे मेरी नीरू दीदी भी हैं… मैं गलती करने से बच गई,’’ इतना बोल कर मैं उस के कमरे से निकल गई.

जहां एक ओर मुझे कुछ आत्मग्लानि हुई तो वहीं दूसरी ओर साफ बच निकलने का सुकून भी था. वरना तो मैं जिंदगीभर नीरू दी से आंख नहीं मिला पाती. हालांकि सागर ने कभी मेरे साथ कोई जबरदस्ती करने की कोशिश नहीं की.

इस के बाद 3 दिन और हौंगकौंग में हम दोनों साथ रहे… बिलकुल प्रोफैशनल की तरह

अपनेअपने काम से मतलब. चौथे दिन मैं और सागर इंडिया लौट आए. मैं ने नीरू दी का पता लगाया और उन्हें फोन किया. मैं बोली, ‘‘मैं प्रीति बोल रही हूं नीरू दी, आप ने मुझे पहचाना? कालेज में आप ने मुझे रैगिंग…’’

‘‘ओ प्रीति तुम? कहां हो आजकल और कैसी हो? कालेज के बाद तो हमारा संपर्क ही टूट गया था.’’

‘‘मैं यहीं सागर की जूनियर हूं. आप यहीं क्यों नहीं जौब कर रही हैं?’’

‘‘मैं भी इस के लिए कोशिश कर रही हूं. उम्मीद है जल्द ही वहां ट्रांसफर हो जाएगा.’’

‘‘हां दी, जल्दी आ जाइए, मेरा भी मन लग जाएगा,’’ और मैं ने फोन बंद कर दिया. हौंगकौंग के उस कमजोर पल की याद फिर आ गई, जिस से मैं बालबाल बच गई थी और वह भी सिर्फ एक तसवीर के चलते वरना अनजाने में ही पतिपत्नी के बीच मैं ‘वो’ बन गई होती.

घर लौट जा माधुरी : जवानी की दहलीज पर पैर रखते ही माधुरी की जिंगदी में क्या बदलाव आया ?

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डर : शिवानी और उसके पति के बीच क्यों थी दूरियां ?

बच्चों की डाक्टर होते हुए भी शिवानी सीधी, सरल और हंसमुख थी. जिस दिन उस की मां ने बताया कि उसे कोई डाक्टर देखने आ रहा है, मन में तरहतरह की कल्पनाएं करती शिवानी घर पहुंची.

डाक्टर शिवेन वर्मा और उन की बहन आए. डाक्टर वर्मा ने शिवानी से काफी देर तक बातें कीं. फिर सब खापी कर अपने घर चले गए. कुछ दिनों बाद शिवानी और डाक्टर शिवेन वर्मा विवाह के बंधन में बंध गए.

शिवानी नए घर में आ गई. ससुराल में उसे सभी का प्यार मिला, सभी प्यार से मिलते, बातें करते लेकिन उसे महसूस होने लगा कि डा. शिवेन खामोश और कुछ अलग किस्म के इनसान हैं. उन के यहां सुबह उठ कर एकदूसरे को विश करना मना था. जब भी शिवानी पति को ‘गुडमार्निंग’ कहती, डा. शिवेन को शिकायत होती कि दिन भर के लिए उन का मूड खराब हो गया.

जब तक शिवेन स्वयं से कोई बात न बताएं तो ठीक रहता लेकिन अगर शिवानी ने कुछ पूछ लिया तो मानो घर में भूचाल आ जाता था.

डा. शिवेन रात को क्लीनिक से आ कर खाना खाते ही टेलीविजन के आगे 4-5 घंटे बैठ कर कार्यक्रम देखते. शनिवार- इतवार ताश खेलने निकल जाते, पतिपत्नी का रिश्ता सिर्फ नाम का रह गया था.

शिवानी हमेशा शिवेन के गुस्से से डरती रहती. यह डर उस के दिलोदिमाग में इतनी गहराई से घर करता जा रहा था कि घर में शिवेन के आते ही वह दूरदूर रहती.

शिवानी को अपनी बड़ी ननद से पता चला कि शिवेन ने बचपन से ही अपनी मां को कभी ‘मां’ नहीं कहा था. शिवानी सोचती रही कि आखिर क्या कारण है कि शिवेन ने अपनी मां को ‘मां’ कह कर नहीं पुकारा. शायद मां से ही नफरत के चलते डा. शिवेन शिवानी पर अपना गुस्सा उतारते, लेकिन सालों बाद शिवानी को पता चला कि शिवेन की मां बचपन में उन की बहनों को ज्यादा प्यार देती थीं. सब से छोटा शिवेन हमेशा मां के प्यार के लिए तरसता रहता, कुढ़ता और चुपचाप रोता रहता.

मां से प्यार की कमी के कारण

डा. शिवेन को महिलाओं से नफरत सी हो गई थी. इसलिए वह हमेशा चाहते कि औरतों को दबा कर रखें और शिवानी उन की इस सोच का शिकार बन रही थी. प्यार के नाम पर बड़ी कंजूसी से ही प्यार के दो बोल बोलते.

डा. शिवेन के होंठों पर हंसी का नामोनिशान भी नहीं होता. हमेशा मुंह चढ़ा कर बैठता. विवाह के बाद दिन महीनों में और महीने सालों में बदल गए. शिवानी की जिंदगी में न कोई खुशी थी न कोई सुख.

वह क्लीनिक जा कर अपने मरीज को देखती. उस की अच्छीभली प्रैक्टिस चल रही थी. पार्टटाइम में भी वह नर्सिंग होम में जा कर काम करती. दोनों हाथों से कमा कर वह डा. शिवेन को देती पर उस की अपनी कमाई का हिसाब पूछने का उसे कोई हक न था. दिन की धूप में सायों की तरह कभी- कभार गलती से डाक्टरों के जिस्म छू जाते थे. शिखा के जन्म के बाद शिवानी को बड़ी उम्मीद थी कि शायद डा. शिवेन बदल जाएंगे पर उस का वह भ्रम भी टूट गया.

शिखा के साथ यदाकदा डा. शिवेन हंसतेखेलते पर ज्यादातर वह अपनी ही दुनिया में मस्त रहते. रोजरोज की बेरुखी से तंग आ कर शिवानी ने ससुराल में सासू मां के यहां जाने का फैसला कर लिया. वहां पहुंच कर उस ने बताया कि वह अब वापस शिवेन के पास नहीं जाएगी. 25 साल हो गए पर आज भी वहां जिंदा लाश की तरह घूमती रहती है.

शिवानी की बातें सुन कर उस की सासू मां को धक्का सा लगा. उन्होंने फौरन बेटे के पास जा कर रहने का फैसला लिया.

मां शिवेन के पास रहते हुए धीरेधीरे उसे प्यार के पालने में झलाने लगीं और अपनी उस भूल को सुधारने में वह कामयाब रहीं क्योंकि एक दिन शिवेन भी कहते हुए ‘मां’ से लिपट गए. मां ने अपने बेटे को समझया, ‘‘शिवेन, तुम हमेशा मेरे दिल में थे. मैं ने सब से ज्यादा तुम्हें प्यार किया है. आखिर तुम मेरा भविष्य और इस खानदान के वारिस हो. शायद तुम किसी के साथ प्यार बांटते हुए नहीं देख सके जबकि वे भी तुम्हारी सगी बहनें थीं.’’

कई महीनों के बाद मां वापस घर आ गईं और किसी तरह मना कर बहू शिवानी को फिर से शिवेन के पास भेजा, लेकिन जाते समय कई हिदायतें भी दीं कि शिवानी बेटी, किसी चीज में अपना दिल लगाओ, गाने सुनो, टेलीविजन देखो. एक बच्ची है उसे समय से देखो. तुम खुद से कुछ मत पूछना, जब दिल होगा शिवेन तुम्हें खुद बताएगा. और हां, शिवानी, तुम पार्टटाइम वाले पैसे से अपना अलग खाता खोल कर उस में पैसे जमा करो. यह जिंदगी है…कब कहां जरूरत पड़ जाए, किसे मालूम है.

शिवानी सास की कही बातों का अर्थ समझ न सकी फिर भी अपने खाली समय को व्यस्त रखने के लिए वह सुगम संगीत, योगा आदि करने लगी. वह सुबह उठ कर सैर के लिए जाती, बाकी समय क्लीनिक पर प्रैक्टिस और घर के घरेलू कामों में गुजारती. इस तरह दिन बीत जाता और थकहार कर बिस्तर पर गिरते ही नींद आ जाती. शिवानी हर समय अपने को मजबूत बना कर कम से कम बात करने की कोशिश करती. सालों से वह रात में अकेली सोती, क्योंकि उस को कभी शिवेन का इंतजार नहीं रहता. वह हर तरह से शिवेन से दूर रहती थी.

डा. शिवेन जिस ने उम्र भर शिवानी पर अपनी हुकूमत दिखाई, उसे बच्चों की तरह डरा कर रखा, अब खुद अकेला सा महसूस करता था. अकसर अब डा. शिवेन के सूखे होंठों पर हंसी दिखाई देती और वह जानबूझ कर शिवानी से कुछ न कुछ बात करने की कोशिश करता, लेकिन बरसों से डरीसहमी शिवानी का डर खत्म नहीं होता. वह नपेतुले शब्दों में जवाब देती. कभी डा. शिवेन रात को रंगीन बनाने की कोशिश करते तो शिवानी की तटस्थता को देख कर खामोश हो जाते. शिवेन शिकायत के लहजे में शिवानी से कह देते कि तुम तो बिलकुल साथ नहीं देतीं. बुत सी रहती हो. यह तो मैं ही हूं जो निभा रहा हूं.

शिवानी कहती, ‘‘रहने दो, डाक्टर साहब. साल में 365 दिन होते हैं सिर्फ 1 दिन नहीं होता. जब भूलेबिसरे गीतों की तरह आप आएंगे तो मैं क्या करूं.’’

बदलते वक्त के साथ डा. शिवेन भी अपने को काफी हद तक बदल चुके थे लेकिन बरसों से बनाए अपने व्यवहार में कभीकभी पुरानी पहचान बन कर गुस्सा अपनी झलक दिखाता. शिवानी एक कदम आगे बढ़ती पर जरा से गुस्से की झलक देख कर वह घबरा कर दो कदम पीछे हट जाती, लेकिन जल्दी ही फिर से उठ कर प्यार की डगर पर चलती.

धीरेधीरे शिवानी का डर खत्म हो रहा था, वह थोड़ीथोड़ी हंसने लगी थी. धीरेधीरे उस के मन का सूनापन भी खत्म होने लगा. हमेशा शिवानी केवल इस बात से भयभीत रहती कि कहीं शिवेन को गुस्सा न आ जाए. मन ही मन सास का शुक्रिया अदा करती तो कभी स्वयं से ही कहती, ‘‘काश, पहले मां से कहा होता. कभी शिवानी सोचती कि मुझे भी वक्त के साथ बदलना है. शायद तभी हमेशा

फांस : डॉक्टर साहब से उनकी पत्नी क्यों दूरदूर रहने लगी थी ?

शाम को फिर उन का फोन आया था, वही बातें जो रोज कहते हैं.‘‘अंजू, मैं तुम्हारे बिना रह नहीं पा रहा हूं, मैं तुम्हारे साथ रहना चाहता हूं. बेटेबहू की अपनी जिंदगी है. तुम अकेले गांव में रहती हो, मुझे अच्छा नहीं लगता है. मुझे आने दो अपने पास या तुम यहीं आ जाओ.’’

मैं ने हूं हां कर मोबाइल औफ कर दिया. स्विच औफ करने से कहीं यादें थोड़े न औफ हो जाती हैं, बल्कि एकांत पा उस के काले, डरावने, नुकीले पंजे मानस को दबोच लेते हैं.

बात प्रतापगढ़ की है जब मैं तीसरी बार गर्भवती थी. इन्हें किसी से बोलते सुना, ‘बीवी अधिक परेशान करे तो उसे बिजी कर दो, 9 महीने उलटियां करने में और 2 साल बच्चे पालने में.’ इन की वह हंसी मैं आज तक नहीं भूल पाई. पर एक बात जो और भी पहले की है, तब शादी नईनई हुई थी. इन की पीजी की पढ़ाई चल रही थी, तो मैं भी अपनी छुट्टियों के बीच मैडिकल कालेज के होस्टल में जा कर रहती थी उन के साथ. नई शादी हुई थी, इन की बड़ी याद आया करती थी. तब अपनी और इन की पढ़ाई दुश्मन सी लगती.

कभीकभी इन के दोस्तों के हंसीमजाक मुझे कुछ बताते हुए से प्रतीत होते. फिर मैं ने इन को अपनी महिला सहपाठियों से भी बड़ी ही अंतरंगता से बातें करते देखा. कभी किसी से, तो कभी किसी और से. मैं सोचती कि शायद मैडिकल कालेज में लड़केलड़कियां आपस में इतनी ही बेबाकी और अंतरंगता से रहते होंगे. मैं दिमाग को झटकने की कोशिश करती और नई शादीशुदा जिंदगी का रस लेने को तत्पर हो जाती.

गरमी की अपनी छुट्टियों में मैं फिर इन के होस्टल में थी. कमरे में इन के दोस्त आतेजाते रहते थे. मुझे इन की महिला सहपाठियों से घनिष्ठता अब खटकने लगी थी. बातचीत के दौरान मेरे सामने ही इन का उन्हें यहांवहां छू लेना, अजीब से मजाक कर लेना मुझे भद्दा लगता. यह अलग बात थी कि ये मुझ से भी सब के सामने ही वैसे ही प्यार जता देते. फिर भी मुझे यह खुलापन भौंडा लगता.

धीरेधीरे मुझे इन की प्लेबौय टाइप छवि समझ आने लगी थी. दबीछिपी जबान से इन के ही कुछ मित्रों ने इन की रासलीलाओं का सूत्र मुझे थमा दिया. मैं अवाक सी जड़वत, जिंदगी के इस रूप को देख सहमने लगी. उम्र में मैं इन से अच्छीखासी छोटी ही थी, ज्यादा झगड़ नहीं पाई.

उन्हीं दिनों पहले बच्चे के होने की आहट सुनाई दी थी. इन की तो पढ़ाई ही चल रही थी, मेरी देखभाल और बढ़ते खर्चों के मद्देनजर मुझे सासससुर के पास गांव जाना पड़ गया. बेटे के जन्म के कुछ महीनों में इन की नौकरी लग गई. गृहस्थी शुरू हुई, ब्लौक में पोस्ंिटग थी. एक दिन घर के नौकर को कील गड़ गई तो उसे ले मैं इन के ब्लौक हौस्पिटल पहुंची तो देखा कि ये नर्सों के बीच किशनकन्हैया बने कुछ अजीब ही भावभंगिमा में हैं. मन वितृष्णा से भर गया.

धीरेधीरे इन की प्राइवेट प्रैक्टिस जम कर चलने लगी. घर में ऐशोआराम बढ़ने लगे. इन का व्यवहार मेरे प्रति हमेशा बढि़या ही रहता, पर पता नहीं क्यों मैं इन के बिंदासपन को स्वीकार नहीं कर पा रही थी. तभी एक लोकल मैग्जीन में इन के किसी लेडी डाक्टर के साथ के चटपटे किस्से सुर्खियां बन गए. यह वह दौर था जब मैं तीसरी बार मां बनने वाली थी. पैसा कितना ताकतवर है, मैं देख रही थी. घरपरिवार, समाज में ये एक सम्मानीय भूमिका में रहते थे.

मेरी निर्लिप्तता बढ़ती जा रही थी. अपने प्रति मैं बिलकुल लापरवाह हो गई थी. 3 छोटे बच्चे और इन की रंगरेलियों के किस्सों ने मुझे जीवन से बेजार कर दिया था. घर में पैसों की बरसात हो रही थी, दूरदूर के रिश्तेदार इलाज और मदद के लिए सटे रहते थे.

और तो और, मैं उस दिन बिखर ही गई थी जब मेरे पिताजी ने मुझे समझाते हुए कहा, ‘जरा ढंग से रहा कर, कैसे पगली सी रहती हो? तेरे इसी व्यवहार, रहनसहन के चलते जमाई बाबू उस डाक्टरनी की तरफ आकर्षित रहते हैं.’ मैं ने पिताजी को बुलाया था इस घर से अपनी रिहाई हेतु पर डाक्टर जमाई ने नोटों की गड्डी से उन की सारी जिम्मेदारियों के साथ उन का जमीर भी खरीद लिया था.

बच्चे बड़े हो रहे थे. पहले बीचबीच में मैं अपना आक्रोश निकालती भी थी, लड़तीझगड़ती भी थी. पर जाने क्यों अब बिलकुल सरैंडर मुद्रा में आ गई थी. बच्चों को अपना सर्वश्रेष्ठ वक्त देना मेरा मकसद हो गया. मैं ने बच्चों की परवरिश में इन की किसी भी हरकत को अब तवज्जुह देना ही छोड़ दिया.

एक दिन घर पर अकेली थी, देखा, ये बड़ेबड़े पैकेट्स लिए घर में दाखिल हुए. बड़ा लाड़ जताते हुए 4 साडि़यां मुझे दीं. साडि़यां ले मैं उठने लगी तो देखा और पैकेट्स हैं, सोचा, बच्चों के लिए कुछ होगा. खोला, तो देखा ठीक वैसी ही साडि़यां हैं जो इन्होंने मुझे दी थीं.

‘अंजू, छोड़ो वे तुम्हारी नहीं हैं.’

इन के होंठों पर एक कुटिल मुसकान थी. जाने क्यों इन का यह दुस्साहस बरदाश्त नहीं हुआ. मैं ने सभी साडि़यों को समेटा और आंगन में बैठ कर आग लगा दी. इन्हें लगा मैं आत्मदाह करने जा रही हूं, खींच कर मुझे हटाया.

कुछ दिनों बाद मैं चौथे बच्चे की मां बनने वाली थी. समय बीतता गया. मैं ने कभी घर त्यागने, मरने या तलाक लेने की नहीं सोची. लगता, बच्चों से क्यों उन के बाप को छीन लूं. क्यों उन के मन में पिता की छवि खराब कर एक अभिशप्त बचपन का ठप्पा लगा दूं. उम्र के साथ इन की कामुकता में भी मुझे कमी महसूस हो रही थी. नई जगह पर पोस्ंिटग से प्रैक्टिस में भी कमी आई.

ये पति जैसे भी रहे, पर ये बाप अच्छे साबित हुए. खूब अच्छे से चारों बच्चों को पढ़ाया और सभी अपने क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ मुकाम पर पहुंचे. हर बच्चे की आत्मनिर्भरता मुझे अपनी रिहाई की तरफ बढ़ा रही थी.

देख रही थी कि इन की निर्भरता मुझ पर बढ़ती जा रही थी. वक्त के साथ अब ये तरहतरह की बीमारियों से ग्रस्त रहने लगे थे. मैं बिलकुल निर्लिप्त रहती, तटस्थ हो इन्हें रातभर खांसतेकराहते सुनती. जाने क्यों मेरी सारी मानवता इन को कष्ट में देख सुसुप्त अवस्था में चली जाती. मेरी उदासीनता देख ये तबीयत बिगड़ती महसूस होने पर अपने ही हौस्पिटल में भरती हो जाते. एक बार हौस्टिपल में ही इन्हें हृदयाघात महसूस हुआ, तो वहीं एक मरीज को हटा खुद बैड पर लेट गए. मुझे खबर मिली, पर मैं ने जाना जरूरी नहीं समझा. मैं क्या करती, डाक्टर्स तो थे ही वहां.

दिल्ली में रहने वाला बेटा आ कर इन्हें अपने साथ आदर सहित ले गया. पर सब आश्चर्यचकित हो गए जब मैं ने साथ जाने से इनकार कर दिया. सच, बरसों बाद लगा कि मैं ने सांस ली है. मेरी जिम्मेदारियां पूरी हो चली थीं. इन के प्रति मैं अपनी कोई जवाबदेही नहीं समझती थी. खबर मिली कि ये ठीक होने को हैं, और लौटने को बेचैन हैं. मुझे लगा कि गले में कुछ फंस गया फिर. उसी दिन मैं ने गांव का टिकट कराया. मुझे इन के आने से पहले घर से निकलना था. घर की चाबी शहर के दूसरे छोर पर रहने वाली बेटी को सौंप दी.

बच्चेरिश्तेदार सब मुझे अर्धपागल ही समझते होंगे, पर अब मैं ने सोचना, परवा करना छोड़ दिया है. यहां गांव में सुकून और एकांत ही मेरे साथी हैं. इन का फोन आता रहता है, साथ रहने के लिए मिन्नतें करते हैं, बोलते हैं, ‘‘अंजू, तुम लड़ोझगड़ो, पर यों चुप नहीं रहो.’’ जाने क्यों अब इन से कुछ कहनेसुनने की इच्छा ही नहीं होती.

जिंदगी मानो गले की फांस बन गईर् थी. अब इस फांस से मुक्त होना चाहती हूं. ममता ने बेडि़यां डाल रखी थीं, सो, कुछ देर हो गई. पर अब दोबारा इस फांस में अपनी सांस नहीं डालूंगी.

राज्यसभा में क्यों पहुंचीं सोनिया गांधी ?

Sonia Gandhi in Rajya Sabha : नेहरू-गांधी परिवार से 1964 में इंदिरा गांधी पहली बार राज्यसभा पहुंचीं थीं. वे राज्यसभा पहुंचने वाली इस परिवार की दूसरी सदस्य हैं. 1964 में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने. लाल बहादुर शास्त्री कैबिनेट में इंदिरा गांधी को सूचना और प्रसारणमंत्री बनाया गया. 1964 से 67 तक वे राज्यसभा की सदस्य रहीं. 1966 में लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं. 1967 में हुए आम चुनाव में वे उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ीं और संसद में पहुंचीं.

रायबरेली लोकसभा सीट से 2004 से सोनिया गांधी लगातार सांसद चुनी जाती रही हैं. अब उन्होंने 14 फरवरी को राजस्थान से राज्यसभा के लिए नामांकन भरा है. वे राज्यसभा के जरिए संसद की सदस्य रहेंगी. इस के मुख्यरूप से 3 प्रमुख कारण माने जा रहे हैं- 77 साल की सोनिया गांधी के लिए 2024 का लोकसभा चुनाव रायबरेली सीट से जीतना कठिन था. सोनिया गांधी का स्वास्थ्य इतना अच्छा नहीं है कि वे चुनावी भागदौड़ कर सकें. सोनिया गांधी के रणनीतिकारों को यह लग रहा था कि भाजपा ने जिस तरह से राहुल गांधी को अमेठी में घेर कर चुनाव हराया वैसा ही वह सोनिया गांधी के साथ रायबरेली में कर सकती है.

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का जनाधार लगातार घट रहा है. ऐसे में सोनिया गांधी का रायबरेली से लड़ना खतरनाक हो सकता था. चुनाव हारने के बाद उन को दिल्ली स्थित अपना आवास खाली करना पडता. ऐसे में वे कहां रहतीं, यह सवाल बड़ा था, राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता जाने के बाद उन को कुछ दिन कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास में रहना पडा. इस के बाद राहुल गांधी ने निजामुद्दीन ईस्ट में किराए का आवास लिया. गांधी परिवार के पास अपना कोई आवास नहीं है. 10 जनपथ का आवास सोनिया गांधी का सरकारी आवास है. सांसद न रहने पर इस को खाली करना पड़ता. राज्यसभा से सांसद बनने के बाद यह परेशानी नहीं आएगी.

क्यों खास है 10 जनपथ ?

सोनिया गांधी 5 बार की सांसद हैं. 10 जनपथ वाला आवास 15,181 वर्ग मीटर में फैला हुआ है. इस के ठीक पीछे 24 अकबर रोड पर कांग्रेस पार्टी का मुख्यालय है. इसलिए भी 10 जनपथ कांग्रेस के लिए अहम है. यहां से सोनिया और राजीव की यादें भी जुड़ी हैं. 10 जनपथ 1975 की इमरजैंसी के दौरान यूथ कांग्रेस का कार्यालय हुआ करता था जब अंबिका सोनी इस की अध्यक्ष थीं और संजय गांधी इस के संरक्षक थे. 1977 की कांग्रेस की हार के झटके बहुत बड़े थे. तब यूथ कांग्रेस के औफिस को बंद कर दिया गया. 10 जनपथ में 1977 से 89 के बीच कुछ समय के लिए प्रैस काउंसिल औफ इंडिया का दफ्तर हुआ करता था. लाल बहादुर शास्त्री भी यहां बतौर प्रधानमंत्री रहे हैं.

गांधी परिवार के पास नहीं है अपना घर

सोनिया गांधी के राज्यसभा से संसद में जाने की सब से बड़ी वजह उन के सरकारी आवास 10 जनपथ को माना जा रहा है. यहां पर वे लगभग 35 सालों से रह रही हैं. 1989 में राजीव गांधी को यह आवास बतौर नेता प्रतिपक्ष के रूप मे रहने के लिए मिला था. सोनिया तभी से यहां रह रही हैं. अभी हाल में राहुल गांधी और प्रियंका को लुटियंस दिल्ली से अपने सरकारी आवास खाली करने पड़े थे.

राहुल गांधी की संसद सदस्यता जाने के बाद उन्हें अपना 12 तुगलक रोड वाला आवास खाली करना पड़ा था. बाद में सदस्यता बहाल होने के बाद राहुल को यह बंगला वापस मिला था. लेकिन राहुल यहां नहीं आए. इसी तरह प्रियंका गांधी वाड्रा को भी सुरक्षा कारणों से आवंटित अपना बंगला 34 लोधी स्टेट खाली करना पड़ा था. यह बंगला 1997 में प्रियंका को सुरक्षा कारणों से दिया गया था. प्रियंका गांधी खान मार्केट के पास सुजान सिंह पार्क में रह रही हैं जहां उन्होंने एक घर किराए पर लिया है. उन का कार्यालय 10 जनपथ के एक पोर्टा केबिन में चल रहा है. उन के व्यवसायी पति रौबर्ट वाड्रा के पास गुरुग्राम में आलीशान आवास है.

54 सालों से नेहरू-गांधी परिवार के पास अपना निजी आवास नहीं है. इस परिवार का मकान इलाहाबाद स्थित आनंद भवन था. जवाहरलाल नेहरू जब यहां से दिल्ली गए तो 7 यार्क रोड पर रहने लगे. 1947 में स्वतंत्र भारत के प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद वे तीन मूर्ति भवन चले गए थे. इलाहाबाद अब प्रयागराज स्थित आनंद भवन को 1970 में इंदिरा ने राष्ट्र को दान कर दिया. तब से यहां से परिवार का जुड़ाव खत्म हो गया.

1977 में जब इंदिरा गांधी सत्ता से बाहर हुईं तो उन के पास रहने के लिए घर नहीं था. फिरोज गांधी ने अपनी मौत से एक साल पहले 1959 में महरौली में जमीन खरीदी थी. सालों बाद राजीव गांधी ने वहां एक फार्महाउस बनाया था. उन का महरौली फार्महाउस तब आधा ही बना था. तब इंदिरा गांधी के करीबी रहे मोहम्मद यूनुस ने इंदिरा और उन के परिवार को अपना निजी आवास 12 विलिंगडन क्रिसेंट देने की पेशकश की. मोहम्मद यूनुस स्वयं दक्षिण दिल्ली में एक बंगले में चले गए. 12 विलिंग्डन क्रिसेंट गांधी परिवार का घर बन गया. इंदिरा, राजीव, उन की पत्नी सोनिया, उन के बच्चे- राहुल और प्रियंका, संजय, मेनका और 5 कुत्ते सभी वहां चले गए. इतने बड़े परिवार के बाद वहां किसी भी राजनीतिक गतिविधि के लिए लगभग कोई गुंजाइश या जगह नहीं बची.

सोनिया युग का खत्म होता दौर

सोनिया गांधी ने कांग्रेस को पुनर्जीवित किया. वे कांग्रेस को वापस सत्ता में ले कर आईं. उन्होंने गठबंधन बनाया. वे 20 साल कांग्रेस प्रमुख रहीं. उन्होंने सालों पार्टी को एकजुट रखा. राज्यसभा में जाने का फैसला यह बताता है कि वे रिटायर नहीं हो रही हैं, ऐक्टिव पौलिटिक्स से खुद को दूर कर रही हैं. सोनिया गांधी पहली बार अमेठी से 1999 में सांसद बनीं. पहले अमेठी से उन के पति राजीव गांधी चुनाव लड़ते थे. साल 2004 में सोनिया ने रायबरेली से चुनाव लड़ा. इस के बाद अमेठी सीट से राहुल गांधी ने चुनाव लड़ा. 2019 में राहुल गांधी अमेठी से चुनाव हार गए थे.

राजनीति में आने के बाद सोनिया गांधी ने कई अहम फैसले लिए, जो दूसरे नेता नहीं ले पा रहे थे. इन में रोजगार गारंटी योजना, भोजन का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार और लड़कियों को पिता की जायदाद में हक जैसे फैसले प्रमुख थे. उन के पार्टी अध्यक्ष रहते देश में पहली बार महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल और लोकसभा की पहली दलित महिला अध्यक्ष मीरा कुमार बनाई गईं. महिलाओं के आरक्षण का बिल भी उन के कार्यकाल में पेश हुआ. उन्होंने 2 गठबंधन सरकार बनाने में कामयाबी पाई. यूपीए-1 और 2 के दौरान उन्हें बहुत ताकतवर माना जाता था. असली सत्ता उन्हीं के पास थी. सोनिया गांधी 25 साल अपनी पार्टी में शीर्ष पर रहने के बाद लोकसभा से हट रही हैं. यह पार्टी में पीढ़ी के बदलाव का भी संकेत है.

उतारचढ़ाव भरा रहा सोनिया का कार्यकाल

गैरभारतीय मूल की होने के बाद भी सोनिया गांधी ने जिस तरह से भारत देश और समाज को अपनाया वह बड़ा उदाहरण है. उन्होंने अपने जीवन में काफी उतारचढ़ाव देखे. इटली में एक सामान्य परिवार में पैदा हुईं सोनिया की 1968 में राजीव गांधी से शादी के बाद भारत आना पड़ा. वे प्रधानमंत्री परिवार की बहू बनीं. इस के बाद इमरजैंसी, इंदिरा गांधी की हार, सास इंदिरा गांधी और फिर पति राजीव गांधी को खोने की भारी विपदाओं का सामना करना पड़ा उन्हें.

1984 में जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई. राजीव गांधी को अचानक राजनीति में आना पड़ा. वे देश के प्रधानमंत्री बन गए. सोनिया तब सहम गई थीं. वे अपनी सास की दिनदाहड़े हत्या के बाद अपने पति को राजनीति में नहीं आने देना चाहती थीं. 1991 में सोनिया का डर सही हो गया और राजीव गांधी लोकसभा चुनावप्रचार के दौरान तमिलनाडु की एक रैली में आत्मघाती हमले के शिकार हो गए. राजीव के बाद राजनीति को ले कर ऊहापोह का दौर था. सोनिया ने कभी पति राजीव को जो सलाह दी थी, खुद के लिए वही मौका आया तो अड़ी रहीं. उन्होंने खुद को सत्ता से हमेशा दूर रखा.

सीताराम केसरी की अगुआई में कांग्रेस पार्टी कमजोर होने लगी तो सोनिया गांधी पर कमान संभालने का दबाव बढ़ने लगा. 6 साल बाद सोनिया को अपना फैसला वापस लेना पडा. 1997 में सोनिया ने कांग्रेस जौइन की. 1998 में उन्हें कांग्रेस की कमान भी सौंप दी गई. कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर उन के सामने सब से बड़ी चुनौती थी पार्टी को संगठित करना जो नेताओं के बीच आंतरिक कलह के कारण लगातार कमजोर पड़ रही थी. सोनिया ने कांग्रेस पद संभाला तो अगले ही वर्ष लोकसभा के चुनाव हो गए.

1999 के आम चुनाव में सोनिया ने उत्तर प्रदेश की अमेठी और कर्नाटक की बेल्लारी सीट से पहली बार चुनावी लड़ाई लड़ी. उन्हें दोनों जगहों पर सफलता मिली और 13वीं लोकसभा में वे पहली बार संसद पहुंच गईं. बेल्लारी में उन्होंने बीजेपी की धाकड़ नेता सुषमा स्वराज को हराया था. यह सीट छोड़ दी और अमेठी का प्रतिनिधित्व करती रहीं. 2004 के लोकसभा चुनावों मे 145 सीटें पा कर कांग्रेस सब से बड़ी पार्टी बन गई. सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बन सकती थीं. सत्ता से दूरी बनाए रखने के अपने फैसले पर वे टिकी रहीं. प्रधानमंत्री के रूप में डाक्टर मनमोहन सिंह का नाम आगे कर दिया.

2004 में गठबंधन की सरकार चलाने के लिए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) बना. सोनिया उस की चेयरपर्सन चुनी गईं. नीतिगत मामलों में मनमोहन सरकार को निर्देशित करने के लिए राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) का गठन किया गया और इस की अध्यक्ष भी सोनिया गांधी बनीं. 2004 से 2014 तक के मनमोहन सिंह सरकार को सोनिया ने परदे के पीछे से चलाने का काम किया. सोनिया गांधी भले ही ऐक्टिव पौलिटिक्स से दूर हों पर उन्होंने अभी राजनीति से संन्यास नहीं लिया है.

चुनावी बौंड पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती, केंद्र सरकार को दिया झटका

लोकसभा चुनाव से महज 2 महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को करारा झटका दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बौंड स्कीम को अवैध करार देते हुए उस पर रोक लगा दी है. इस तरह इलैक्टोरल बौंड्स के जरिए राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाला गुप्त धन अब नहीं मिल सकेगा, जिस के एवज में बड़े धनाढ्य व्यवसाई वर्ग सरकार से अपने मनचाहे काम करवाते थे. फैसला सुनाते हुए सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि चुनावी बौंड सूचना के अधिकार का उल्लंघन है. वोटर्स को पार्टियों की फंडिंग के बारे में जानने का पूरा हक है. अदालती बैंच ने कहा कि जनता को यह जानने का हक़ है कि राजनितिक पार्टियों के पास पैसा कहां से आता है और कहां जाता है.

सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी दूरदर्शिता दिखाते हुए इलैक्टोरल बौंड्स को रद्द करने का फैसला सुनाया है. डैमोक्रेसी को बचाए रखने के लिए यह बहुत महत्त्वपूर्ण कदम है. भारत के तमाम पड़ोसी देश चाहे वह पाकिस्तान हो, श्रीलंका हो या बंगलादेश हो, धनबल की ताकत के चलते वहां डैमोक्रेसी हाशिए पर पहुंच गई है. पाकिस्तान में हालत सब से खराब है जहां चुनी हुई सरकार के बावजूद सारे धनबल की ताकत सेना के पास केंद्रित होने से डैमोक्रेसी के परखच्चे उड़े हुए हैं. श्रीलंका और बंगलादेश की भी कमोबेश यही हालत है. भारत में जिस तरह धनबल की सारी ताकत सिर्फ एक राजनीतिक पार्टी के हाथों में जा रही है उस को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट का फैसला डैमोक्रेसी को बचाने की दिशा में बहुत अहम कदम माना जा रहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ़ कहा है कि बौंड खरीदने वालों की लिस्ट सार्वजनिक की जाए. स्टेट बैंक औफ इंडिया साल 2023 के अप्रैल महीने से ले कर अब तक की सारी जानकारियां चुनाव आयोग को दे और आयोग ये जानकारियां कोर्ट को दे. यही नहीं, 12 अप्रैल, 2019 से जब से चुनावी बौंड लेने की प्रक्रिया शुरू हुई तब से अब तक किनकिन लोगों ने चुनावी बौंड खरीदे और कितनी रकम लगाई, यह जानकारी भी स्टेट बैंक औफ़ इंडिया 3 हफ्ते में इकट्ठा कर सुप्रीम कोर्ट को दे.

कोर्ट का कहना है कि चुनावी बौंड के माध्यम से कौर्पोरेट योगदानकर्ताओं के बारे में जानकारी का खुलासा किया जाना चाहिए क्योंकि कंपनियों द्वारा दान पूरी तरह से किसी फायदे के मद्देनज़र दिया जाता है. तो पौलिटिकल पार्टियों को लाखोंकरोड़ों रुपयों का दान दे कर किनकिन कंपनियों ने सरकार से कैसेकैसे फायदे उठाए, ये बातें सार्वजनिक होनी चाहिए.

कोर्ट ने माना कि गुमनाम चुनावी बौंड सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन है. सीजेआई ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इलैक्टोरल बौंड के अलावा भी कालेधन को रोकने के दूसरे तरीके हैं. अदालत ने कहा कि इलैक्टोरल बौंड की गोपनीयता ‘जानने के अधिकार’ के खिलाफ है. राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में जानकारी होने से लोगों को मताधिकार का इस्तेमाल करने में स्पष्टता मिलती है. राजनीतिक दलों की फंडिंग की जानकारी उजागर न करना सूचना के अधिकार मकसद के विपरीत है.

गौरतलब है कि चुनावी बौंड योजना को मोदी सरकार ने 2 जनवरी, 2018 को अधिसूचित किया था. इस के मुताबिक चुनावी बौंड को भारत का कोई भी नागरिक या देश में स्थापित इकाई खरीद सकती थी. कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बौंड खरीद सकता था. जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 29 ए के तहत पंजीकृत राजनीतिक दल चुनावी बौंड स्वीकार करने के पात्र थे. शर्त बस यही थी कि उन्हें लोकसभा या विधानसभा के पिछले चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट मिले हों. चुनावी बौंड को किसी पात्र राजनीतिक दल द्वारा केवल अधिकृत बैंक के खाते के माध्यम से भुनाया जाता था. बौंड खरीदने के पखवाड़े भर के भीतर संबंधित पार्टी को उसे अपने रजिस्टर्ड बैंक खाते में जमा करने की अनिवार्यता होती थी. अगर पार्टी इस में विफल रहती है तो बौंड निरर्थक और निष्प्रभावी यानी रद्द हो जाता था.

क्या होते हैं इलैक्टोरल बौंड ?

साल 2018 में इस बौंड की शुरुआत हुई. इसे लागू करने के पीछे मत था कि इस से राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और साफसुथरा धन आएगा. इस में व्यक्ति, कौर्पोरेट और संस्थाएं बौंड खरीद कर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में देती थीं और राजनीतिक दल इन बौंड को बैंक में भुना कर रकम हासिल कर लेता था. भारतीय स्टेट बैंक की 29 शाखाओं को इलैक्टोरल बौंड्स जारी करने और उसे भुनाने के लिए अधिकृत किया गया था. ये शाखाएं नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, गांधीनगर, चंडीगढ़, पटना, रांची, गुवाहाटी, भोपाल, जयपुर और बेंगलुरु की थीं.

क्यों जारी हुआ था इलैक्टोरल बौंड ?

चुनावी फंडिंग व्यवस्था में सुधार के लिए सरकार ने साल 2018 में इलैक्टोरल बौंड की शुरुआत की थी. 2 जनवरी, 2018 को मोदी सरकार ने इलैक्टोरल बौंड स्कीम को अधिसूचित किया था. इलैक्टोरल बौंड फाइनैंस एक्ट 2017 के तहत लाए गए थे. ये बौंड्स साल में 4 बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किए जाते थे. इस के लिए ग्राहक बैंक की शाखा में जा कर या उस की वैबसाइट पर औनलाइन जा कर इसे खरीद सकता था.

छिपे हुए दानदाता

कोई भी डोनर अपनी पहचान छिपाते हुए स्टेट बैंक औफ इंडिया से एक करोड़ रुपए मूल्य तक के इलैक्टोरल बौंड्स खरीद कर अपनी पसंद के राजनीतिक दल को चंदे के रूप में दे सकता था. यह व्यवस्था दानकर्ताओं की पहचान नहीं खोलती है और इसे टैक्स से भी छूट प्राप्त है. आम चुनाव में कम से कम 1 फीसदी वोट हासिल करने वाले राजनीतिक दल को ही इस बौंड से चंदा हासिल हो सकता था. केंद्र सरकार ने इस दावे के साथ इस बौंड की शुरुआत की थी कि इस से राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और साफसुथरा धन आएगा. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जनवरी 2018 में लिखा था, ‘इलैक्टोरल बौंड की योजना राजनीतिक फंडिंग की व्यवस्था में ‘साफसुथरा’ धन लाने और ‘पारदर्श‍िता’ बढ़ाने के लिए लाई गई है.’ जबकि, पूरी प्रक्रिया एक छलावा थी.

यह बड़ेबड़े उद्योगपतियों द्वारा अपनी काली कमाई को खपाने और उस के एवज में सरकार से अपने फायदे वाले काम करवा लेने का बढ़िया माध्यम बन गया. अपनी पसंदीदा पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने के लिए विदेश में बैठे हजारों समर्थक भी इस माध्यम से अपनी पहचान छिपा कर बड़ीबड़ी रकमें पार्टी खाते में पहुंचाने लगे, जिस का इस्तेमाल पार्टी द्वारा आम जनता को लुभाने व उन से अपने हक़ में वोट प्राप्त करने के लिए होने लगा. कम मात्रा में ही सही बौंड का फायदा बीजेपी के अलावा अन्य पार्टियों ने भी उठाया. अब जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला भूकंप की तरह आया है तो राजमहल और झोंपड़ियां सभी हिल रही हैं.

कैसे काम करते हैं ये बौंड ?

एक व्यक्ति, लोगों का समूह या एक कौर्पोरेट बौंड जारी करने वाले महीने के 10 दिनों के भीतर एसबीआई की निर्धारित शाखाओं से चुनावी बौंड खरीद सकता था. जारी होने की तिथि से 15 दिनों की वैधता वाले बौंड 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, एक लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए के गुणकों में जारी किए जाते थे. ये बौंड्स नकद में नहीं खरीदे जा सकते और खरीदार को बैंक में केवाईसी (अपने ग्राहक को जानो) फौर्म जमा करना होता था.

भुनाने पर खाते में जाता था पैसा

सियासी दल एसबीआई में अपने खातों के जरिए बौंड को भुना सकते हैं. यानी, ग्राहक जिस पार्टी को यह बौंड चंदे के रूप में देता था वह इसे एसबीआई के अपने निर्धारित अकाउंट में जमा कर भुना सकता था. पार्टी को नकद भुगतान किसी भी दशा में नहीं किया जाता और पैसा उस के निर्धारित खाते में ही जाता था. इलैक्टोरल बौंड्स के जरिए राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने वाले व्यक्तियों की पैसे देने वालों के आधार और अकाउंट की डिटेल मिलती थी. इलैक्टोरल बौंड में योगदान ‘किसी बैंक के अकाउंट, पेई चैक या बैंक खाते से इलैक्ट्रौनिक क्लीयरिंग सिस्टम’ द्वारा ही किया जाता था.

क्या कहती है याचिकाकर्ता ?

चुनावी बौंड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर एक याचिकाकर्ता जया ठाकुर ने कहा- “अदालत ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों को कितना पैसा और कौन लोग देते हैं, इस का खुलासा होना चाहिए. 2018 में जब यह चुनावी बौंड योजना प्रस्तावित की गई थी तो इस योजना में कहा गया था कि आप बैंक से बौंड खरीद सकते हैं और पैसा पार्टी को दे सकते हैं जो आप देना चाहते हैं लेकिन आप का नाम उजागर नहीं किया जाएगा, जो कि सूचना के अधिकार के खिलाफ है. इन जानकारियों का खुलासा किया जाना चाहिए कि किस का पैसा है और ये एक्सट्रा धन उस के पास कहां से आया है जो वह दान दे रहा है. इसलिए मैं ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की जिस में मैं ने कहा कि यह पारदर्शी होना चाहिए और उन्हें नाम बताना चाहिए व राशि, जिस ने पार्टी को राशि दान की. इस योजना में शेल कंपनियों के माध्यम से योगदान करने की अनुमति दी गई है, जो गैरकानूनी है.”

तीन बड़ी संस्थाओं ने इलैक्टोरल बौंड को गलत बताया

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलैक्टोरल बौंड के जरिए कालेधन को कानूनी किया जा सकता है. विदेशी कंपनियां सरकार और राजनीति को प्रभावित कर सकती हैं.

चुनाव आयोग ने कहा कि चंदा देने वालों के नाम गुमनाम रखने से पता लगाना संभव नहीं होगा कि राजनीतिक दल ने धारा 29 (बी) का उल्लंघन कर चंदा लिया है या नहीं. विदेशी चंदा लेने वाला कानून भी इस से बेकार हो जाएगा.

आरबीआई ने कहा था कि इलैक्टोरल बौंड मनीलौन्ड्रिंग को बढ़ावा देगा. इस के जरिए ब्लैक मनी को व्हाइट करना संभव होगा.

‘दिल्ली चलो’ नारे के साथ किसानों का दिल्ली कूच, चौतरफा घिरी केंद्र सरकार

देशभर के किसानों ने अपनी मांगों को ले कर एक बार फिर केंद्र सरकार को घेर लिया है. किसानों के ‘दिल्ली चलो’ मार्च को करीब 200 से अधिक संगठनों का समर्थन प्राप्त है. न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की गारंटी को ले कर कानून बनाने समेत विभिन्न मांगों के लिए पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों ने राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन की पूरी तैयारी कर ली है.

इस के अलावा भी किसानों की अनेक मांगें हैं, जिन के लिए वे सालों से संघर्षरत हैं. किसान लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों को न्याय दिलाने की मांग कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश के लखीमपुर में 8 लोगों की जानें गई थीं जिन में 4 किसान थे. इस में सीधेसीधे आरोप भाजपा नेता व केंद्रीय मंत्री अजय कुमार मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा पर लगा था.

किसानों की मांग है कि भारत को डब्ल्यूटीओ से बाहर निकाला जाए. किसान चाहते हैं कि कृषि वस्तुओं, दूध उत्पादों, फलों, सब्जियों और मांस पर आयात शुल्क कम करने के लिए भत्ता बढ़ाया जाए. किसानों की यह भी मांग है कि किसानों और 58 साल से अधिक आयु के कृषि मजदूरों के लिए पैंशन योजना लागू कर के 10 हजार रुपए प्रतिमाह पैंशन दी जाए.

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में सुधार के लिए सरकार की ओर से स्वयं बीमा प्रीमियम का भुगतान करना, सभी फसलों को योजना का हिस्सा बनाना और नुकसान का आंकलन करते समय खेत के एकड़ को एक इकाई के रूप में मान कर नुकसान का आकलन करना भी उन की मांगों में शामिल हैं.

किसान नेताओं का कहना है कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 को उसी तरीके से लागू किया जाना चाहिए और भूमि अधिग्रहण के संबंध में केंद्र सरकार की ओर से राज्यों को दिए गए निर्देशों को रद्द किया जाना चाहिए. इस के अलावा कीटनाशक, बीज और उर्वरक अधिनियम में संशोधन कर के कपास सहित सभी फसलों के बीजों की गुणवत्ता में सुधार किया जाए.

सरकार ने नहीं की मांग पूरी

2 वर्षों पहले दिल्ली के बौर्डर पर धरने पर बैठे किसानों का आंदोलन इतना मुखर था कि नरेंद्र मोदी सरकार को 3 कृषि कानूनों- कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून 2020, कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तुएं संशोधन अधिनियम 2020 को रद्द करना पड़ा था.

किसानों को डर था कि सरकार इन कानूनों के जरिए पूंजीपतियों की घुसपैठ कृषि क्षेत्र में बढ़ा देगी और कुछ चुनिंदा फसलों पर मिलने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्य देने के नियम खत्म कर सकती है. इस के बाद उन्हें बड़ी एग्री-कमोडिटी कंपनियों का मुहताज होना पड़ेगा.

उस दौरान एक मांग स्वामीनाथन आयोग को लागू किए जाने को ले कर भी थी. मोदी सरकार ने उस दौरान न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू करने का वादा भी किया था, जो सिर्फ चर्चाओं तक ही सिमट गया.

इस मसले पर किसान कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय की अगुआई में कमेटी बनाई गई थी. इन मंत्रियों की किसानों के साथ हाल ही में 2 बार (8 फरवरी और 12 फरवरी) बातचीत हुई, जो बेनतीजा रही. इस के बाद ही किसान संगठनों ने यह फैसला लिया कि 13 फरवरी को वे दिल्ली कूच करेंगे.

किसानों का कूच

विभिन्न किसान संगठनों के दिल्ली कूच करने के आह्वान के बाद किसानों ने दिल्ली की तरफ बढ़ना शुरू कर दिया, जिस में बड़ी संख्या में युवा भी हैं. किसानों को दिल्ली में घुसने से रोकने के लिए बौर्डर पर खतरनाक कील-कांटे बिछाए जा गए हैं.

हरियाणा-पंजाब के शंभू बौर्डर पर पुलिस और किसानों के बीच संग्राम शुरू हो गया है. पुलिस ने ड्रोन के जरिए किसानों पर आंसू गैस के गोले छोड़े हैं. किसान वहीं डटे हुए हैं. इस विरोध प्रदर्शन के लिए यूपी के साथ ही हरियाणा और पंजाब के किसान भी दिल्ली की ओर बढ़ रहे हैं. बड़ी संख्या में किसान सड़क का मार्ग छोड़ कर खेतों के रास्ते निकल पड़े हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक किसानों ने अंबाला-शंभू, खनौरी-जींद और डबवाली बौर्डर्स से दिल्ली में दाखिल होने की योजना बना रखी है. हरियाणा सरकार ने सीमाओं पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए हैं. 15 जिलों में धारा 144 लागू कर दी गई है. गाजीपुर, सिंघु और टिकरी में भी पुलिस बल तैनात हैं.

किसानों के प्रदर्शन के बीच किसान नेता सरवन सिंह पंढेर का बयान आया है. उन्होंने कहा है कि वे नहीं चाहते हैं कि किसी तरह की अव्यवस्था हो. उन्होंने कहा कि किसान संगठन सरकार के साथ टकराव से बचना चाहते हैं और कुछ हासिल हो, इसी आशा व भरोसे की वजह से ही मीटिंग में बातचीत कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि हरियाणा के हर गांव में पुलिस भेजी जा रही है. ऐसा लग रहा है कि पंजाब और हरियाणा भारत के राज्य नहीं हैं, बल्कि इंटरनैशनल बौर्डर बन गए हैं. उन्होंने यह भी कहा कि अगर सरकार बुलाना चाहेगी तो वे बातचीत के लिए तैयार हैं.

दिल्ली कूच करने के आह्वान में इस बार भारतीय किसान यूनियन शामिल नहीं है और औल इंडिया किसान सभा ने भी किसानों के आंदोलन से फिलहाल दूरी बनाई हुई है, जबकि संयुक्त किसान मोरचा के बैनर तले 16 फरवरी को राष्ट्रव्यापी भारत बंद का आह्वान किया गया है, जिस में तमाम किसान और मजदूर पूरे दिन हड़ताल पर रहेंगे और काम बंद करेंगे.

दोपहर 12 बजे से ले कर शाम 4 बजे तक देश के सभी राष्ट्रीय राजमार्गों का घेराव किया जाएगा और हाईवे बंद किए जाएंगे. भाकियू नेता राकेश टिकैत ने कहा, “क्या पाकिस्तान के बौर्डर पर कीलकांटे लगे हैं, दीवारें खड़ी हैं, यह तो अन्याय है. अगर इस तरह अत्याचार होंगे तो हम भी आ रहे हैं. न हम किसान से दूर हैं, न दिल्ली से.”

भाकियू नेता राकेश टिकैत ने आगे कहा, “हम आंदोलन का हिस्सा अभी तक तो नहीं हैं. मगर इस का मतलब नहीं है कि हम किसानों के आंदोलन को समर्थन नहीं दे रहे.”

उन्होंने कहा कि चंडीगढ़ में किसान नेताओं और सरकार के मंत्रियों के बीच सहमति नहीं बन पाई क्योंकि न्यूनतम समर्थन मूल्य देने पर सरकार सहमत नहीं हो रही है और मामले को लटकाए रख रही है. टिकैत का कहना है कि किसानों के पिछले आंदोलन को समाप्त हुए 13 महीने बीत गए हैं लेकिन न तो आंदोलन कर रहे किसानों पर से आपराधिक मामले वापस लिए गए हैं और न ही उन्हें अपनी फसलों का सही मूल्य ही मिल पा रहा है.

उन्होंने कहा, “स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट को लागू करने में अभी भी आनाकानी चल रही है जिस की वजह से पूरे देश के किसान नुकसान उठा रहे हैं. इस आंदोलन में हम शामिल नहीं थे, लेकिन नाइंसाफी हुई, तो हम भी आंदोलन में कूदने पर मजबूर हो जाएंगे.”

2 चेहरे कर रहे किसान आंदोलन को लीड

किसान आंदोलन का जिक्र जब भी होता है तो दिमाग में सब से पहला नाम राकेश टिकैत का आता है. राकेश टिकैत 2020 में हुए किसान आंदोलन के बड़े चेहरे थे. कृषि कानूनों के विरोध में शुरू हुए उस आंदोलन का नेतृत्व करने वाले राकेश टिकैत इस बार शुरू हुए किसानों के आंदोलन का नेतृत्व नहीं कर रहे हैं. इस बार 2 नए चेहरे इस आंदोलन को लीड कर रहे हैं. इन में एक नाम पंजाब किसान नेता सरवन सिंह पंढेर का है, जिन के नेतृत्व में पंजाब से हजारों किसान दिल्ली कूच कर रहे हैं. वहीं दूसरा नाम जगजीत सिंह डल्लेवाल का है जो इस आंदोलन की अगुआई कर रहे हैं.

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