बच्चों की परवरिश का यह सब से बेहतर दौर है. आज उन्हें तमाम सुखसुविधाएं, साधन और आजादी मिली हुई है. उन्हें महंगी शिक्षा दिलाने में मांबाप लाखों रुपए खर्च करने से नहीं हिचकते क्योंकि उन की पहली प्राथमिकता संतान और उस का बेहतर भविष्य है. अभिभावकों की कमाई का आधे से ज्यादा पैसा बच्चों पर खर्च हो रहा है, यह कम हैरत की बात नहीं क्योंकि पहले ऐसा नहीं था, तब तसवीर कुछ और थी. अपने बच्चों के सुखसहूलियतों की खातिर मांबाप कोल्हू के बैल की तरह पैसा कमाने में जुटे हैं. इस की अहम वजह है अब बच्चे पहले की तरह थोक में नहीं 1 या 2 ही पैदा किए जा रहे हैं.

मौजूदा मांबाप चाहते हैं कि जो उन्हें उन के मांबाप से नहीं मिल सका, वह सब वे किसी भी कीमत पर अपने बच्चों को दें. एमएनआईटी भोपाल के एक 46 वर्षीय प्राध्यापक आर के बघेल का कहना है, ‘‘आज की पीढ़ी को वह सब मिल रहा है जो हमारी पीढ़ी को नहीं मिला था. आज के बच्चे हमारी तरह तंगी में नहीं पढ़ रहे. वे कोर्स की 1 किताब मांगते हैं हम 4 ला कर देते हैं. कंप्यूटर, इंटरनैट, एसी, कार, गीजर जैसी चीजें हर उस घर में मौजूद हैं जिस की आमदनी 60-70 हजार रुपए है,’’ बघेल बात को स्पष्ट करते हुए आगे कहते हैं, ‘‘ऐसा महज संपन्न परिवारों में ही नहीं है बल्कि कम कमाई वाले मांबाप भी हैसियत से बढ़ कर बच्चों की जरूरतों और इच्छाओं पर खर्च कर रहे हैं और इस के लिए अधिकांश मांएं नौकरी भी कर रही हैं.’’ भोपाल के सीनियर पीडिएट्रिक ए एस चावला की मानें तो, ‘‘बच्चों की परवरिश पर आजकल के मांबाप उन के जन्म से पहले से ही पैसा खर्चने में कंजूसी नहीं करते. बच्चे अब वैज्ञानिक तरीके से पाले जा रहे हैं. पहले की तरह कुदरत के भरोसे नहीं पलते. बच्चे अब मांबाप की पहली प्राथमिकता हैं.

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