‘‘मिश्राजी, अब तो आप खुश हैं न, आप का काम हो गया…आप का यह काम करवाने के लिए  मुझे काफी पापड़ बेलने पड़े,’’ शची ने मिठाई का डब्बा पकड़ते हुए आदतन कहा.

‘‘भाभीजी, बस, आप की कृपा है वरना इस छोटी सी जगह में बच्चों से दूर रहने के कारण मेरा तो दम ही घुट जाता,’’ मिश्राजी ने खीसें निपोरते हुए कहा.

शची की निगाह मिठाई से ज्यादा लिफाफे पर टिकी थी और उन के जाते ही वह लिफाफा खोल कर रुपए गिनने लगी. 20 हजार के नए नोट देख कर चेहरे की चमक दोगुनी हो गई थी.

शची के पति पल्लव ऐसी जगह पर कार्यरत थे कि विभाग का कोई भी पेपर चाहे वह ट्रांसफर का हो या प्रमोशन का या फिर विभागीय खरीदारी से संबंधित, बिना उन के दस्तखत के आगे नहीं बढ़ पाता था. बस, इसी का फायदा शची उठाती थी.

शुरू में पल्लव शची की ऐसी हरकतों पर गुस्सा हो जाया करते थे, बारबार मना करते थे, आदर्शों की दुहाई देते थे पर लोग थे कि उन के सामने दाल न गलती देख, घर पहुंच जाया करते थे और शची उन का काम करवाने के लिए उन पर दबाव बनाती, यदि उन्हें ठीक लगता तो वे कर देते थे. बस, लोग मिठाई का डब्बा ले कर उन के घर पहुंचने लगे…शची के कहने पर फिर गिफ्ट या लिफाफा भी लोग पकड़ाने लगे.

इस ऊपरी कमाई से पत्नी और बच्चों के चेहरे पर छाई खुशी को देख कर पल्लव भी आंखें बंद करने लगे. उन के मौन ने शची के साहस को और भी बढ़ा दिया. पहले अपना काम कराने के लिए लोग जितना देते शची चुपचाप रख लेती थी किंतु जब इस सिलसिले ने रफ्तार पकड़ी तो वह डिमांड भी करने लगी.

पत्नी खुश, बच्चे खुश तो सारा जहां खुश. पहले जहां घर में पैसों की तंगी के कारण किचकिच होती रहती थी वहीं अब घर में सब तरह की चीजें थीं. यहां तक कि बच्चों के लिए अलगअलग टीवी एवं मोटर बाइक भी थीं.

शची जब अपनी कीमती साड़ी और गहनों का प्रदर्शन क्लब या किटी पार्टी में करती तो महिलाओं में फुसफुसाहट होती थी पर किसी का सीधे कुछ भी कहने का साहस नहीं होता था. कभी कोई कुछ बोलता भी तो शची तुरंत कहती, ‘‘अरे, इस सब के लिए दिमाग लड़ाना पड़ता है, मेहनत करनी पड़ती है, ऐसे ही कोई नहीं कमा लेता.’’

कहते हैं लत किसी भी चीज की अच्छी नहीं होती और जब  यही लत अति में बदल जाती है तो दिमाग फिरने लगता है. यही शची के साथ हुआ. पहले तो जो जितना दे जाता वह थोड़ी नानुकुर के बाद रख लेती लेकिन अब काम के महत्त्व को समझते हुए नजराने की रकम भी बढ़ाने लगी थी. शची की समझ में यह भी आ गया है कि आज सभी को जल्दी है तथा सभी एकदूसरे को पछाड़ कर आगे भी बढ़ना चाहते हैं. और इसी का फायदा शची उठाती थी.

कंपनी को अपने स्टाफ के लिए कुछ नियुक्तियां करनी थीं. पल्लव उस कमेटी के प्रमुख थे. जैसा कि हमेशा से होता आया था कि मैरिट चाहे जो हो, जो चढ़ावा दे देता था उसे नियुक्तिपत्र मिल जाता था तथा अन्य को कोई न कोई कमी बता कर लटकाए रखा जाता था. एक जागरूक प्रत्याशी ने इस धांधली की सूचना सीबीआई को दे दी और उन्होंने उस प्रत्याशी के साथ मिल कर अपनी योजना को अंजाम दे दिया.

वह प्रत्याशी मिठाई का डब्बा ले कर पल्लव के घर गया. उस दिन शची कहीं बाहर गई हुई थी अत: दरवाजा पल्लव ने ही खोला. उस ने उन्हें अभिवादन कर मिठाई का डब्बा पकड़ाया और कहा, ‘‘सर, सेवा का मौका दें.’’

‘‘क्या काम है?’’ पल्लव ने प्रश्नवाचक नजर से उसे देखते हुए पूछा.

‘‘सर, मैं ने इंटरव्यू दिया था.’’

‘‘तो क्या तुम्हारा चयन हो गया है?’’

‘‘जी हां, सर, पर नियुक्तिपत्र अभी तक नहीं मिला है.’’

‘‘कल आफिस में आ कर मिल लेना. तुम्हारा काम हो जाएगा.’’

‘‘धन्यवाद, सर, लिफाफा खोल कर तो देखिए, इतने बहुत हैं या कुछ और का इंतजाम करूं.’’

‘‘अरे, इस की क्या जरूरत थी… जितना भी है ठीक है,’’ पल्लव ने थोड़ा झिझक कर कहा क्योंकि उन के लिए यह पहला मौका था…यह काम तो शची ही करती थी.

‘‘सर, यह तो मेरी ओर से आप के लिए एक तुच्छ भेंट है. प्लीज, एक बार देख तो लीजिए,’’ उस प्रत्याशी ने नम्रता से सिर झुकाते हुए कहा.

पल्लव ने रुपए निकाले और गिनने शुरू कर दिए. तभी भ्रष्टाचार निरोधक दस्ते के लोग बाहर आ गए और पल्लव को धरदबोचा तथा पुलिस कस्टडी में भेज दिया.

शची जब घर लौटी तो यह सब सुन कर उस ने अपना माथा पीट लिया. उसे पल्लव पर गुस्सा आ रहा था कि उन्होंने उसी के सामने रुपए गिनने क्यों शुरू किए…लेते समय सावधानी क्यों नहीं बरती. थोड़ा सावधान रहते तो मुंह पर कालिख तो नहीं पुतती. लोग तो करोड़ों रुपए का वारान्यारा करते हैं पर फिर भी नहीं पकड़े जाते और यहां कुछ हजार रुपयों के लिए नौकरी और इज्जत दोनों जाती रहीं. इच्छाएं इस तरह उस का मानमर्दन करेंगी यह उस ने सोचा भी नहीं था.

जानपहचान के लोग अब बेगाने हो गए थे. वास्तव में वह स्वयं सब से कतराने लगी थी. सब उस की अपनी वजह से हुआ था. पल्लव तो सीधेसीधे काम से काम रखने वाले थे पर उस की आकांक्षाओं के असीमित आकाश की वजह से पल्लव को यह दिन देखना पड़ा है.

शची ने यह सोच कर कि पैसे से सबकुछ संभव है, शहर का नामी वकील किया पर उस ने शची से पहले ही कह दिया, ‘‘मैडम, मैं आप को भुलावे में नहीं रखना चाहता. आप के पति रंगेहाथों पकड़े गए हैं अत: केस कमजोर है पर हां, मैं अपनी ओर से पूरी कोशिश करूंगा.’’

पल्लव अलग से परेशान थे क्योंकि उन की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी. आश्चर्य तो शची को तब होता था जब उसे अपने पति से मिलने के लिए ही नजराना चुकाना पड़ता था.

‘‘तो क्या सारा तंत्र ही भ्रष्ट है. अगर यह सच है तो यह सब दिखावा किस लिए?’’ अपने वकील को यह बात बताई तो वह बोला, ‘‘मैडम, आज के दौर में बहुत कम लोग ईमानदार रह गए हैं. जो ईमानदार हैं उन्हें भी हमारी व्यवस्था चैन से नहीं रहने देती. आप जिन लोगों की बात कर रही हैं वे भी कहीं नौकरी कर रहे हैं, उन्हें भी अपनी नौकरी बचाने के लिए कुछ मामले चाहिए… अब उस में कौन सा मुरगा फंसता है यह व्यक्ति की असावधानी पर निर्भर है.’’

उधर पल्लव सोच रहे थे कि नौकरी गई तो गई, पूरे जीवन पर एक कलंक अलग से लग गया. जिन बीवीबच्चों के लिए मैं ने यह रास्ता चुना वही उसे अब दोष देने लगे हैं. शची तो चेहरे पर झुंझलाहट लिए मिलने आ भी रही थी पर बच्चे तो उन से मिलने तक नहीं आए थे. क्या सारा दोष उन्हीं का है?

कितने अच्छे दिन थे जब शची के साथ विवाह कर के वह इस शहर में आए थे. आफिस जाते समय शची उन से शाम को जल्दी आने का वादा ले लिया करती थी. दोनों की शामें कहीं बाहर घूमने या सिनेमा देखने में गुजरती थीं. अकसर वे बाहर खा कर घर लौटा करते थे. हां, उन के जीवन में परेशानी तब शुरू हुई जब विनीत पैदा हुआ. अभी विनीत 2 साल का ही था कि विनी आ गई और वे 2 से 4 हो गए लेकिन उन की कमाई में कोई खास फर्क नहीं आया.

हमेशा हंसने वाली शची अब बातबात पर झुंझलाने लगी थी. पहले जहां वह सजधज कर गरमागरम नाश्ते के साथ उन का स्वागत किया करती थी अब बच्चों की वजह से उसे कपड़े बदलने का भी होश नहीं रहता था. पल्लव समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें?

बच्चों को अच्छे स्कूल में दाखिल करवाने के लिए डोनेशन चाहिए था. उस स्कूल की मोटी फीस के साथ दूसरे ढेरों खर्चे भी थे…कैसे सबकुछ होगा? कहां से पैसा आएगा…यह सोचसोच कर शची परेशान हो उठती थी.

उन्हीं दिनों उन के एक मातहत का ट्रांसफर दूसरी जगह हो गया. उस ने पल्लव से निवेदन किया तो उन्होंने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर उस का ट्रांसफर रुकवा दिया था. इस खुशी में वह मिठाई के साथ 2 हजार रुपए भी घर दे गया. अब शची उन से इस तरह के काम करवाने का आग्रह करने लगी थी. शुरू में तो वह झिझके भी पर धीरेधीरे झिझक दूर होती गई और वह भी अभ्यस्त हो गए थे. ऊपर की कमाई के पैसों से शची के चेहरे पर आई चमक उन्हें सुकून पहुंचा जाती थी…साथ ही बच्चों की जरूरतें भी पूरी होने लगी थीं.

खूब धूमधाम से उन्होंने पिछले साल ही विनी का विवाह किया था…विनीत भी इसी वर्ष इंजीनियरिंग कर जाब में लगा है. अच्छीभली जिंदगी चल रही थी कि एकाएक वर्षों की मेहनत पर ग्रहण लग गया.

तब पल्लव को भी लगने लगा था कि भ्रष्टाचार तो हर जगह है… अगर वह भी थोड़ाबहुत कमा लेते हैं तो उस में क्या बुराई है. फिर वह किसी से मांगते तो नहीं हैं, अगर कुछ लोग अपना काम होने पर कुछ दे जाते हैं तो यह तो भ्रष्ट आचरण नहीं हुआ. लगता है, उन के साथ किसी ने धोखा किया है या उन्हें जानबूझ कर फंसाया गया है.

कहते तो यही हैं कि लेने वाले से देने वाला अधिक दोषी है पर देने वाला अकसर बच निकलता है जबकि अपना काम निकलवाने के लिए बारबार लालच दे कर वह व्यक्ति को अंधे कुएं में उतरने के लिए प्रेरित करता है और प्यास बुझाने को आतुर उतरने वाला यह भूल जाता है कि कुएं में स्वच्छ जल ही नहीं गंदगी के साथसाथ कभीकभी जहरीली गैसें भी रहती हैं और अगर एक बार आदमी उस में फंस जाए तो उस से बच पाना बेहद मुश्किल होता है. बच भी गया तो अपाहिजों की तरह जिंदगी बितानी पड़ जाती है.

अब पल्लव को महसूस हो रहा था कि बुराई तो बुराई है. किसी के दिल को दुखा कर कोई सुखी नहीं रह सकता. उन्होंने अपना सुख तो देखा पर जिसे अपने सुखों में कटौती करनी पड़ी, उन पर क्या बीतती होगी…इस पर तो उन का ध्यान ही नहीं गया था.

मानसिक द्वंद्व के कारण पल्लव को हार्टअटैक पड़ गया था. सीबीआई ने अपने अस्पताल में ही उन्हें भरती कराया किंतु हालत सुधरने के बजाय बिगड़ती ही जा रही थी. शची, जो इस घटना के लिए, सारी परेशानी के लिए उन्हें ही दोषी मानती रही थी…उन की बिगड़ती हालत देख कर परेशान हो उठी.

पहले जब शची ने पल्लव की बिगड़ती हालत पर सीबीआई का ध्यान आकर्षित किया था तो उन में से एक ने हंसते हुए कहा था, ‘डोंट वरी मैडम, सब ठीक हो जाएगा. यहां आने पर सब की तबीयत खराब हो जाती है.’

उस समय उस की शिकायत पर किसी ने ध्यान नहीं दिया लेकिन दूसरे दिन जब वह मिलने गई तो पल्लव को सीने में दर्द से तड़पते पाया. शची से रहा नहीं गया और वह सीबीआई के सीनियर आफिसर के केबिन में दनदनाती हुई घुस गई तथा गुस्से में बोली, ‘आप की कस्टडी में अगर पल्लव की मौत हो गई तो लापरवाही के लिए मैं आप को छोड़ूंगी नहीं. आखिर कैसे हैं आप के डाक्टर जो वास्तविकता और नाटक में भेद नहीं कर पा रहे हैं.’

शची की बातें सुन कर वह सीनियर अधिकारी पल्लव के पास गया और उन की हालत देख कर उन्हें नर्सिंग होम में शिफ्ट कर दिया पर तब तक देर हो चुकी थी. डाक्टर ने पल्लव को भरती तो कर दिया पर अभी वह खतरे से खाली नहीं थे.

रोतेरोते शची की आंखें सूज गई थीं. कोई भी तो उस का अपना नहीं था. ऐसे समय बच्चों ने भी शर्मिंदगी जताते हुए आंखें फेर ली थीं. इस दुख की घड़ी में बस, उस की छोटी बहन विभा जबतब उस से मिलने आ जाया करती थी जो बहन को समझाबुझा कर कुछ खिला जाया करती थी.

शची टूट एवं थक चुकी थी. जाती भी तो जाती कहां? घर अब वीरान खंडहर बन चुका था. अत: वह वहीं अस्पताल में स्टूल पर बैठे पति को एकटक निहारती रहती थी. पल्लव को सांस लेने में शिकायत होने पर आक्सीजन की नली लगाई गई थी. सदमा इनसान को इस हद तक तोड़ सकता है, आज उसे महसूस हो रहा था. पति की हालत देख कर शची परेशान हो जाती पर कर भी क्या सकती थी. पल्लव की यह हालत भी तो उसी के कारण हुई है.

मन में हलचल मची हुई थी. तर्कवितर्क चल रहे थे. कभी पति को इतना असहाय उस ने महसूस नहीं किया था. दोनों बच्चे अपनीअपनी दुनिया में मस्त थे. पल्लव की गिरफ्तारी की खबर सुन कर उन दोनों ने अफसोस करना तो दूर, शर्मिंदगी जताते हुए किनारा कर लिया था पर बीमार पल्लव को देख कर रहा नहीं गया तो एक बार फिर उन की बीमारी के बारे में उस ने बच्चों को बताया.

विनी ने रटारटाया वाक्य दोहरा दिया था, ‘ममा, मैं नहीं आ सकती, डैड की वजह से मैं घर के सदस्यों से नजर नहीं मिला पा रही हूं…आखिर डैड को ऐसा करने की आवश्यकता ही क्या थी?’

आना तो दूर कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया विनीत की भी थी. शची समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे. बच्चों के मन में पिता के प्रति बनी छवि ध्वस्त हो गई थी…पर क्या वह नहीं जानते थे कि पिता के इतने कम वेतन में तो उन की सुरसा की तरह नित्य बढ़ती जरूरतें व इच्छाएं पूरी नहीं हो सकती थीं.

शची को अपनी कोख से जन्मी संतानों से नफरत होने लगी थी. कितने स्वार्थी हो गए हैं दोनों…पिता तो पिता उन्हें मां की भी चिंता नहीं रही…उस मां की जिस ने उन के अरमानों को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास किए, उन्हीं के लिए गलत रास्ता अपनाया, हर सुखसुविधा दी…अच्छे से अच्छे स्कूल में शिक्षा दिलवाई, धूमधाम से विवाह किया…यहां तक कि दहेज में विनी को जब कार दी थी तब तो उस ने नहीं पूछा कि ममा, इतना सब कैसे कर पा रही हो.

‘तुम बच्चों को क्यों दोष दे रही हो शची?’ उस के मन ने उस से पूछा, ‘उन्होंने तो वही किया जिस के वह आदी रहे थे… जैसे माहौल में तुम ने उन्हें पाला वैसे ही वह बनते गए. क्या तुम ने कभी किसी कमी का एहसास उन्हें कराया या तंगी में रहने की शिक्षा दी…पल्लव तो आदर्शवादी रहे थे, चोरीछिपे किए तुम्हारे काम से नाराज भी हुए थे तब तो तुम्हीं कहा करती थीं कि मैं सिर्फ वेतन में घर का खर्च नहीं चला सकती…तुम तो कुछ नहीं कर रहे हो, जो भी कर रही हूं वह मैं कर रही हूं…और हम मांग तो नहीं रहे…अगर थोड़ाबहुत कोई अपनी खुशी से दे जाता है तो आप को बुरा क्यों लगता है?’ अपनी अंतरात्मा की आवाज सुन वह बोल पड़ी, ‘पर मैं ऐसा तो नहीं चाहती थी.’

‘ठीक है, तुम ऐसा नहीं चाहती थीं पर क्या तुम्हें पता नहीं था कि जो जैसा करता है उस का फल उसे भुगतना ही पड़ता है.’

अपनी आत्मा के साथ हुए वादविवाद से अब शची को एहसास हो गया था कि उसी ने बुराई को प्रश्रय दिया था. पल्लव के विरोध करने पर तकरार होती पर अंतत: जीत उस की ही होती. पल्लव चुप हो जाते फिर घर में खुशी के माहौल को देख कर वह भी उसी के रंग में रंगते गए.

अगर वह पल्लव को मजबूर नहीं करती, उन की सीमित आय में ही घर चलाती और बच्चों को भी वैसी ही शिक्षा देती तो आज पल्लव का यह हाल न होता…कहीं न कहीं पल्लव के इस हाल के लिए वही दोषी है.

पल्लव ने उस की खातिर बुराई का मुखौटा तो पहन लिया था पर शायद मन के अंदर की अच्छाई को मार नहीं पाए थे तभी तो अपनी छीछालेदर सह नहीं पाए और बीमार पड़ गए पर अब पछताए होत क्या जब चिडि़यां चुग गईं खेत.

पल्लव की हिचकी ने उस के मन में चल रहे अंधड़ को रोका. उन्हें तड़पते देख कर वह डाक्टर को बुलाने भागी और जब तक डाक्टर आए तब तक सब समाप्त हो चुका था. उस की आकांक्षाओं के आकाश ने उस का घरसंसार उजाड़ दिया था.

खबर सुन कर विभा भागीभागी आई और उसे देखते ही शची चीत्कार कर उठी, ‘‘पल्लव की मौत के लिए मैं ही दोषी हूं…मैं ही उन की हत्यारिन हूं… पल्लव निर्दोष थे…मेरी गलती की सजा उन्हें मिली…’’

शची का मर्मभेदी प्रलाप सुन कर विभा समझ नहीं पा रही थी कि कैसे उसे संभाले. सचाई का एहसास एक न एक दिन सब को होता है पर यहां देर हो गई थी.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...