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बेटियों को आगे बढ़ाइए

हरियाणा की साक्षी मलिक और हैदराबाद की पी वी सिंधु ने रियो ओलिंपिक में पदक दिला कर भारत की इज्जत उतरने से बचा ली. इस के अलावा भारत की इन दोनों बेटियों ने भ्रूणहत्या करने वालों को भी एक संदेश दिया है कि देखो, बेटियों ने ही देश की इज्जत रख ली. आधुनिक युग में बेटियों को जन्म से पहले ही मां की कोख में मार दिया जाता है. यह अपराध भी है और बेवकूफी भी. दुख तब होता है जब एक मां की भी इस अपराध में सहभागिता होती है. उस मां को यह सोचना चाहिए कि वह भी किसी की बेटी है.

भू्रणहत्या देश में एक बड़ी समस्या है. ऐसा नहीं है कि भ्रूणहत्या कम पढ़ेलिखे लोग करते हैं. आप को जान कर हैरानी होगी कि सब से ज्यादा भू्रणहत्या पढ़ेलिखे लोग करते हैं. 2011 के जनसंख्या आंकड़ों के मुताबिक, 1,000 लड़कों में लड़कियों का अनुपात 943 है. हरियाणा में 1,000 लड़कों, पर सिर्फ 876 लड़कियां हैं जबकि पंजाब में यह तादाद 926 है. तमाम प्राइवेट अल्ट्रासाउंड या प्राइवेट क्लीनिक में लिखा हुआ मिल जाएगा कि यहां लिंग परीक्षण नहीं होता है जबकि सचाई यह है कि इन सभी जगहों में लिंग परीक्षण का काम चलता रहता है.

सरकारी अस्पतालों में यह कमोबेश नहीं होता है, पर प्राइवेट अस्पतालों में यह होता है. यदि आप रिसैप्शन में जाएंगे तो एक बार में हो सकता है कि मना कर दिया जाए पर नोटों व पहचान के जोर पर डाक्टर से मिलने के बाद सबकुछ आप आसानी से कर सकते हैं. समाज में यह कोढ़ की तरह है.

जिस तरह साक्षी मलिक, दीपा कर्माकर व पी वी सिंधु के मातापिता ने उन्हें आगे बढ़ाया है उसी तरह आप भी बेटियों को आगे बढ़ाइए, बेटियों को पढ़ाइएलिखाइए, खेलनेकूदने दीजिए. बेटियां घर की चिराग हैं. कई बेटियां रेलगाडि़यां चलाती हैं, भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान उड़ाती हैं, बड़ीबड़ी कंपनियां चलाती हैं, सरकारी और प्राइवेट सैक्टर में बड़ेबड़े ओहदों पर काम करती हैं, परिवार का सहारा बनती हैं, मातापिता का खयाल रखने में बेटों से भी आगे रहती हैं. वे हमारे देश की भविष्य हैं, उन्हें आगे बढ़ने दीजिए. वे भी एक न एक दिन साक्षी व सिंधु बन सकती हैं.

रियो ओलिंपिक 2016 में भारत: खिलाड़ी हुए फेल, बिगड़ गया खेल

आज से 4 साल पहले जब भारत ने लंदन ओलिंपिक में हिस्सा लिया था तब हमारे देश के खिलाडि़यों ने रिकौर्ड 6 मैडल जीते थे. इस बात से जोश में आ कर यह दावा किया जाने लगा था कि खिलाडि़यों का प्रदर्शन इसी तरह निखरता गया तो साल 2016 के रियो ओलिंपिक में हमारी झोली में कम से कम 19 मैडल तो जरूर होंगे. लंदन ओलिंपिक में भारत 55वें नंबर पर था, जबकि इस बार के नतीजे आप सब के सामने हैं. महज 2 मैडल जीत कर भारत 67वें नंबर पर खिसक गया. इस बार तो 117 खिलाडि़यों के अब तक के सब से बड़े भारतीय दल के रूप में हम ने इस ओलिंपिक में शिरकत की थी.

अगर कुश्ती में साक्षी मलिक ब्रौंज मैडल और बैडमिंटन में पी वी सिंधु सिल्वर मैडल नहीं जीततीं, तो नतीजा सिफर ही रहता. यह इसलिए कह रहे हैं क्योंकि रियो ओलिंपिक शुरू होने से पहले किसी भारतीय खेलप्रेमी को उम्मीद नहीं थी कि ये दोनों खिलाड़ी पदक की दावेदार हैं. कुश्ती में सब की नजरें विनेश फोगट पर थीं और बैडमिंटन में साइना नेहवाल पर. सवाल उठता है कि भारतीय खिलाडि़यों से पदक जीतने में चूक कहां हुई? क्या उन का प्रदर्शन खराब रहा? हम आबादी के मामले में तो चीन के बाद दूसरे नंबर पर हैं, लेकिन इस बार के ओलिंपिक की बात करें तो चीन और हमारे पदकों में जमीनआसमान का अंतर रहा. हमारे देश की खेल संस्थाएं इस बात को गंभीरता से क्यों नहीं लेती हैं? हमारे देश के पुरुष खिलाडि़यों को क्या हो गया कि वे अब की बार एक भी मैडल नहीं जीत सके?

सब से पहली बात, हमें यह मान लेना चाहिए कि भारत उस लिहाज से खेलप्रेमियों का देश नहीं है, जैसे दूसरे देश खेलों के प्रति जनूनी हैं. क्रिकेट को छोड़ दें, तो यहां ओलिंपिक में कोई खिलाड़ी अगर मैडल ले आता है, तो रातोंरात वह खेल लोगों की जबान पर चढ़ जाता है. कर्णम मल्लेश्वरी साल 2000 में सिडनी में हुए ओलिंपिक में वेट लिफ्ंिटग में ब्रौंज मैडल लाईं, तो बहुत से भारतीयों को पता चला था कि इस देश में वेट लिफ्ंिटग नामक भी कोई खेल खेला जाता है.

साल 2008 में पहलवान सुशील कुमार ने बीजिंग ओलिंपिक में ब्रौंज मैडल जीता था. उस से पहले भारतीय पहलवानों की इमेज आम लोगों की नजरों में कोई खास अच्छी नहीं थी. चूंकि वे शरीर से ताकतवर होते थे, इसलिए उन्हें दबंग मान लिया जाता था, जो अपनी गठीली देह के दम पर उलटेसीधे काम करते थे.

इतना ही नहीं, अगर एक सवाल सामने रख दिया जाए कि साल 2012 के लंदन ओलिंपिक खेलों में विजय कुमार ने किस खेल में कौन सा मैडल जीता था, तो ज्यादातर लोग बगलें झांकने लगेंगे. आम जनता क्या, खेल से जुड़े सरकारी अफसर और नेतामंत्री तक भी अपने देश के होनहार खिलाडि़यों की उपलब्धियों से कोसों दूर होंगे. यह बड़े दुख की बात है कि आज भी हमारे खिलाडि़यों को सरकार से मनचाहा सपोर्ट नहीं मिलता है. मुक्केबाज मनोज कुमार को अदालत में जा कर ‘अर्जुन अवार्ड’ हासिल करना पड़ा था. ज्यादातर खिलाड़ी अपने दम पर खेल से जुड़ी सुविधाएं जुटाते हैं. कोच मिल जाता है, तो फिजियो नहीं मिलता. जूते मिल जाते हैं, तो दौड़ने के लिए ट्रैक नहीं मिलता. निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने इतना तक कह दिया कि एक मैडल जीतने का मतलब है खिलाडि़यों पर करोड़ों रुपए खर्च करना. भारतीय खिलाड़ी एक और बुनियादी कमी से जूझते हैं, उन की कमजोर डाइट. भारत में ज्यादातर खिलाड़ी किसी खेल को इसलिए अपनाते हैं क्योंकि उन में से बहुत से पढ़ाई में अच्छे नहीं होते हैं. किसी तरह सरकारी नौकरी पानी होती है, इसलिए वे खेल को आसान जरिया मानते हैं. लेकिन वे भूल जाते हैं कि जितनी शारीरिक मेहनत करेंगे, खाना भी उसी हिसाब से खाना होगा. भारत के ज्यादातर खिलाड़ी शाकाहारी हैं. लिहाजा, वे मांसाहारी भोजन से दूर रहते हैं. अगर कोई शाकाहारी खिलाड़ी मांसाहार का सेवन भी करना चाहता है, तो घर के संस्कार और धर्म का दायरा उसे ऐसा करने से रोक देता है.

विदेशी खिलाडि़यों के साथ ऐसा नहीं है. वहां तकरीबन सभी खिलाड़ी मांसाहारी होते हैं, तभी तो अमेरिका, चीन, यूरोप और अफ्रीका के खिलाड़ी भारतीय खिलाडि़यों से ज्यादा फिट दिखते हैं और मैडल भी जीतते हैं. खाने की इसी बंदिश के चलते भारतीय खिलाड़ी स्टैमिना में उतने अच्छे नहीं होते जितने दूसरे देशों के खिलाड़ी.

भारत का सामाजिक ढांचा ऐसा है कि यहां खेलों के बजाय पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है. स्कूलों में खेल पीरियड नाम के होते हैं. स्पोर्ट्स रूम में रखा सामान वहीं सड़ जाता है, लेकिन बच्चों को खेलने के लिए नहीं मिलता. सरकारी स्कूलों में भी यही आलम है. मांबाप भी यही चाहते हैं कि उन का बच्चा सेहत में कितना भी फिसड्डी क्यों न हो, पर इम्तिहान में नंबर लाने में हमेशा अव्वल रहे. अगर कोई बच्चा खेल में जाना भी चाहे, तो उसे इमोशनली ब्लैकमेल कर के या समय व पैसे की बरबादी के नाम पर रोक दिया जाता है. खेलों से जुड़ी एक और बड़ी समस्या यह है कि आज भी खिलाडि़यों के बीच अमीरीगरीबी का फर्क दिखता है. गरीब खिलाडि़यों को अपना कैरियर बनाने में सबकुछ झोंक देना पड़ता है. खिलाड़ी के साथसाथ उस के परिवार के एक सदस्य को भी उतनी ही बड़ी कुरबानी देनी पड़ती है, जितनी खिलाड़ी देता है.

सचिन तेंदुलकर का ही उदाहरण लेते हैं. महान बल्लेबाज और अमीर खिलाड़ी बनने से पहले सचिन भी एक आम परिवार से आते थे. बड़े भाई अजीत तेंदुलकर ने उन की प्रतिभा को परखा और सचिन तेंदुलकर को सचिन तेंदुलकर बनाने के लिए दिनरात एक कर दिया. ऐसा ही कुछ हम भारतीय पहलवान सुशील कुमार के लिए भी कह सकते हैं. उन के पिता दीवान सिंह ने अपने बेटे को घर का दूध अखाड़े तक पहुंचाने को ले कर कभी समझौता नहीं किया, फिर चाहे कैसा भी मौसम क्यों न हो.

लड़कियों के लिए खेलों में आना तो और भी भारी काम होता है. उन पर तमाम तरह की सामाजिक बंदिशें होती हैं. खिलाड़ी के साथसाथ उस के परिवार वालों को दूसरों के ताने सुनने पड़ते हैं. लोग तो यह भी कहने से नहीं चूकते हैं कि बाप हो कर बेटी की कमाई खाएगा.

इस के अलावा सब से बड़ी कमजोरी तो यह है कि हमारे देश में कोई खिलाड़ी ओलिंपिक के लैवल पर मैडल ले आता है, तो उसी से सारी उम्मीदें बंध जाती हैं. इस बार दीपा कर्माकर, पी वी सिंधु, साक्षी मलिक ने कमाल कर दिखाया, तो अगली बार भी मैडल ये ही लाएंगी. कुश्ती है तो योगेश्वर दत्त, निशानेबाजी है तो अभिनव बिंद्रा, तीरंदाजी है तो दीपिका कुमारी. मतलब, खेल से ज्यादा खिलाड़ी को बड़ा बना दिया जाता है और उस पर इतना दबाव लाद दिया जाता है कि अगर वह मैडल नहीं लाया, तो खिलाड़ी ही नहीं है.

साक्षी मलिक और पी वी सिंधु का ही उदाहरण ले लें. मैडल जीतते ही उन पर पैसों की बरसात होने लगी है. इन दोनों खिलाडि़यों पर तकरीबन 20 करोड़ रुपए का इनाम देने का ऐलान हो चुका है. इन्हें इनाम मिले, इस बात में किसी को एतराज नहीं होगा, पर 20 करोड़ रुपए कम रकम नहीं होती. अगर यही रकम रियो जाने से पहले खिलाडि़यों को बुनियादी सुविधाएं देने के लिए बांटी गई होती तो शायद 2-4 मैडल और भारत के नाम हो जाते.

रियो ओलिंपिक अब बीती बात हो गई है, लेकिन अपनी कमियों का आकलन करने का यही उचित समय है. 4 साल बाद टोकियो में ओलिंपिक खेलों का महामेला लगेगा. अगर भारत को अपना प्रदर्शन सुधारना है, तो अभी से खेल और खिलाडि़यों से जुड़ी समस्याओं का हल ढूंढ़ना होगा, वरना ओलिंपिक तो चलते ही रहेंगे, भारत उन में कितना भी फिसड्डी क्यों न रहे.

‘ओलिंपिक लौरेल अवार्ड’

इस बार के ओलिंपिक में एक नई परंपरा की शुरुआत हुई. इंटरनैशनल ओलिंपिक कमेटी ने ओपनिंग सेरिमनी में पहली बार ‘ओलिंपिक लौरेल अवार्ड’ दिया. यह अवार्ड ऐसे शख्स को मिलेगा जिस ने पढ़ाईलिखाई, संस्कृति, तरक्की और शांति के क्षेत्र में अहम योगदान दिया हो. इसी पहल के तहत पहला ‘ओलिंपिक लौरेल अवार्ड’ कीनिया के ऐथलीट रह चुके किप कैनो को दिया गया, जो 2 बार ओलिंपिक चैंपियन रह चुके हैं. अब वे खेलों से रिटायर हो चुके हैं और कीनिया में एक अनाथालय चलाते हैं. इस के अलावा वे कई दूसरे सामाजिक कामों से भी जुड़े हैं.

जुड़ गए नए विवाद

–       मोरक्को के मुक्केबाज हसन साडा को ओलिंपिक खेलगांव की 2 महिला सफाई कर्मचारियों से छेड़छाड़ के आरोप में गिरफ्तार किया गया.

–       आस्ट्रेलिया के तैराक मैक होर्टन ने चीन के दिग्गज तैराक युन यांग को ‘ड्रग चीट’ कहा था. इस कमैंट पर चीन की तैराकी टीम ने मैक होर्टन से माफी की मांग की, जबकि मैक होर्टन ने कहा, ‘‘मैं ने उन के लिए ‘ड्रग चीट’ का इस्तेमाल इसलिए किया क्योंकि वे डोप टैस्ट में पौजिटिव आए थे.’’

–       चीनी दल ने मैडल देने के वक्त फहराए गए अपने देश के झंडे के गलत डिजाइन की शिकायत की. उन्होंने यह महसूस किया कि झंडे पर लगाए गए 4 छोटे सितारों का क्रम सही नहीं था.

–       भारतीय लेखिका शोभा डे के ट्वीट से मचा बवाल. उन्होंने भारतीय खिलाडि़यों के ओलिंपिक में खराब प्रदर्शन पर सोशल नैटवर्किंग साइट पर लिखा, ‘ओलिंपिक में टीम इंडिया का टारगेट- रियो जाओ. सैल्फी लो. खाली हाथ वापस आओ. पैसे और मौकों की बरबादी.’ बाद में इस ट्वीट पर कई खिलाडि़यों ने शोभा डे को आड़ेहाथ लिया था.

–       मारिया लेंक ऐक्वाटिक्स सैंटर के स्विमिंग पूल का पानी एक रात में हरा हो गया. बाद में पता चला कि डाइविंग के एक इवैंट के दौरान वाटर प्यूरीफिकेशन सिस्टम में समस्या आ जाने के चलते पानी का रंग हरा हो गया था.

–       भारतीय खेमे में उस समय काफी किरकिरी हुई जब भारतीय मुक्केबाज मनोज कुमार की जर्सी पर देश का नाम नहीं लिखा था. चेतावनी मिलने के बाद भारतीय खेमे ने तुरंत सारी जर्सियों पर ‘इंडिया’ छपवाया.

–       मिस्र के जूडो खिलाड़ी शेहलबी का मुकाबला इसराईल के खिलाड़ी सासोन से चल रहा था. इसराईली खिलाड़ी ने जीत हासिल कर मिस्र के खिलाड़ी से हाथ मिलाना चाहा, तो उस ने इनकार कर दिया. रैफरी के दोबारा मैट पर बुलाने के बाद भी शेहलबी ने हाथ नहीं मिलाया, बस, सिर झुका कर अभिवादन ही किया.

–       ब्राजील पुलिस ने ओलिंपिक के टिकटों को गैरकानूनी तरीके से बेचने के आरोप में इंटरनैशनल ओलिंपिक कमेटी के दिग्गज सदस्य पैट्रिक हिकी को गिरफ्तार किया. पुलिस ने एक बयान में कहा कि यूरोपीय ओलिंपिक कमेटी और आयरलैंड की नैशनल कमेटी के चीफ पैट्रिक हिकी को रियो में एक होटल से गिरफ्तार किया गया. उन्होंने पुलिस से भागने की कोशिश की थी, पर कामयाब न हो पाए.

–       डोपिंग का दंश झेल रहे भारतीय पहलवान नरसिंह पंचम यादव पर मैट पर उतरने से चंद घंटे पहले 4 साल का बैन लगा दिया गया. दरअसल, नरसिंह यादव की रियो ओलिंपिक में भागीदारी पर वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी ने एतराज जताया था. वह भारत की नैशनल एंटी डोपिंग एजेंसी के उस फैसले से नाराज थी जिस में डोपिंग के एक मामले में नरसिंह यादव को यह कह कर हरी झंडी दे दी गई थी कि उन को धोखे से ऐसी दवा खिला दी गई थी जो बैन है.

–       कुश्ती के 65 किलोग्राम भार वर्ग में मंगोलिया का पहलवान एम गैंजोरिंग उजबेकिस्तान के इख्तियोर नलरूजोब से जीतने के करीब था कि रेफरी ने बलसजोक को एक पैनल्टी अंक दे दिया, जिस से वह जीत गया. इस से नाराज मंगोलिया के कोच ने मैट पर ही कपड़े उतार कर विरोध जताया.

ओलिंपिक में लिखी इन्होंने नई इबारत

सच ही कहा गया है कि अगर लड़कियों पर भरोसा करो तो वे भी बहुतकुछ कर सकती हैं. यही बात ओलिंपिक खेलों में लड़कियों के शानदार प्रदर्शन पर भी लागू होती है. आइए मिलते हैं कुछ ऐसी भारतीय महिला खिलाडि़यों से जिन्होंने खेलों के इस महाकुंभ में एकल खेलों में मैडल जीत कर भारत का नाम रोशन किया :

कर्णम मल्लेश्वरी : आंध्र प्रदेश की इस महिला वेटलिफ्टर खिलाड़ी ने आस्टे्रलिया के खूबसूरत शहर सिडनी में साल 2000 में हुए ओलिंपिक खेलों में 69 किलोग्राम भार वर्ग में सब को चौंकाते हुए कांसे का तमगा हासिल किया था.

एम सी मैरी कौम : 5 बार की वर्ल्ड चैंपियन मुक्केबाज एम सी मैरी कम ने साल 2012 में हुए लंदन ओलिंपिक खेलों में 51 किलोग्राम भार वर्ग में कांसे के तमगे पर पंच मार कर सनसनी मचा दी थी.

साइना नेहवाल : साल 2012 में लंदन ओलिंपिक में एम सी मैरी कौम के साथसाथ भारत की बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल ने भी ब्रौंज मैडल जीता था. उन का चीन की खिलाड़ी जिंग बैंग से मुकाबला था, जो घायल हो गई थीं. नतीजतन, साइना नेहवाल को मैडल से नवाजा गया.

साक्षी मलिक : 23 साल की पहलवान साक्षी मलिक ने रियो ओलिंपिक में 58 किलोग्राम भार वर्ग में रेपचेज में ब्रौंज मैडल के लिए हुए मुकाबले में किर्गिस्तान की पहलवान ऐसुलू ताइनीबेकोवा को आखिरी पलों में पटकनी दे कर मैडल अपने नाम किया.

पी वी सिंधु : ओलिंपिक खेलों के फाइनल में पहुंचने वाली पहली महिला बैडमिंटन खिलाड़ी पी वी सिंधु ने स्पेन की खिलाड़ी कैरोलिना मारिन को  2 घंटा, 25 मिनट तक कड़ी टक्कर दी, पर हार गईं. इस हार में भी उन की जीत थी, क्योंकि उन्होंने भारत को सिल्वर मैडल जो दिलाया था.

कश्मीर और कश्मीरी

कश्मीर का मामला तो उलझता जा रहा है. गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने 2 दिन लगाए तो भी कोई हल नजर नहीं आ रहा. घाटी लगातार कर्फ्यू में है और हर रोज युवा मौतों की खबरें आ रही हैं. एक पूर्व मंत्री ने तो यहां तक कह दिया है कि कहीं कश्मीर की स्थिति का इराक और सीरिया में फैले इसलामिक स्टेट संगठन के नेता लाभ न उठा लें. पाकिस्तान चाहे या न चाहे, इसलामिक स्टेट के पास आज इस तरह की ताकत है कि वह सरहदों की परवा किए बिना, जहां चाहे वार कर सकता है. कश्मीर 1947 से ही देश के लिए एक चुनौती रहा है. आशा थी कि नरेंद्र मोदी अपने आभामंडल के सहारे इसलामी अलगाववादियों को मना लेंगे पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. उन्होंने प्रोग्रैसिव डैमोक्रेटिक पार्टी से मिल कर वहां सरकार तो बना ली पर उस का असर कुछ ज्यादा नहीं हुआ. आम कश्मीरी बहुतकुछ चाहता है और बाकी देश उसे देना नहीं चाहता, न दे सकता है और न ही देना चाहिए.

कश्मीर को बंदूकों के सहारे कब तक काबू में रखेंगे, इस बारे में कहना आसान नहीं है पर मणिपुर, नगालैंड, बोडोलैंड के भारतीय उदाहरण और तमिल टाइगर्स का श्रीलंकाई उदाहरण साफ करता है कि देश से अलग होने वालों के लिए रास्ता आसान नहीं है. 1947 के बाद दुनिया के बहुत थोड़े से ही देशों का जाति, रंग, धर्म, कबीलाई, भाषा आदि कारणों से विभाजन हुआ है. हां, जहां जबरन एक देश ने दूसरे पर कब्जा किया था, वहां आजादियां मिली हैं. वैसे भी, कश्मीरियों के लिए अलगाव कोई हल नहीं है. यह सपना है जो निरर्थक है. अलग होने पर कोई देश ज्यादा तरक्की नहीं करता. भारत में जो राज्य अलग हुए उन्हें उस का क्या लाभ मिला? 2 मुख्यमंत्री हो गए, 2 सचिवालय हो गए, छोटे विधानमंडल बन गए, बस. स्वतंत्र देश को बहुत मस्याओं का सामना करना पड़ता है. नेपाल व भूटान कोई विशेष खुश हों, ऐसा नहीं लगता. हां, उन की राजधानियां अच्छी लगती हैं पर आम जनता त्रस्त थी, त्रस्त है.

बड़ा देश बहुत अवसर देता है. हर उद्योग को बड़ा बाजार देता है. बाहर की चीजें सस्ती होती हैं. नेतागीरी का खर्च कम रहता है. कश्मीरी युवा समझ नहीं रहे कि पूरे देश में उन के लिए नौकरियों और व्यापार के अपार अवसर हैं. जैसे असम, बिहार, पंजाब, मणिपुर, झारखंड के लोग सारे देश में नौकरियां पा रहे हैं वैसे ही अवसर कश्मीरियों के पास हैं. पर विवाद के कारण वे अपना वर्तमान व भविष्य दोनों खराब कर रहे हैं  खद है कि महबूबा मुफ्ती अपनी जीत को दिल जीतने में परिवर्तित नहीं कर सकीं. कश्मीर की समस्या को हल न करने में दिल्ली के नेताओं का दोष ज्यादा है जो जोरजबरदस्ती की भाषा पर ज्यादा भरोसा करते हैं, प्यार व तर्क पर कम.

यह भी खूब रही

मैं एक कंपनी में कार्यरत हूं. मुझे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से कार्य लेना होता है. यूनियन का भी काफी दबाव रहता है. एक दिन मैं ने एक कर्मी से प्रोजैक्ट की आवश्यकतानुसार कच्चे माल के मशीन से टुकड़े कटवाने के लिए कहा. वह कर्मचारी न जाने किस मानसिक स्थिति में था, उस ने साफ मना करते हुए कहा कि मशीन में आवश्यक ब्लेड (आरी) नहीं है, इसलिए काम नहीं हो पाएगा. मुझे बुरा तो लगा पर क्या करती, चुप रह गई. जबकि वे लोग बगल वाले विभाग से ब्लेड मांग कर काम चला लेते हैं. नए ब्लेड का और्डर हो चुका था पर आने में समय था.

लंच के बाद कार्य के लिए मना करने वाले कर्मचारी का फोन आया. वह बोला, ‘‘मैडम, आज काम ज्यादा पैंडिंग हो गया, इसलिए ओवरटाइम देना पड़ेगा.’’ मैं ने तपाक से कहा, ‘‘जब ब्लेड ही नहीं है तो ओवरटाइम में क्या करोगे?’’ सुन कर उस की बोलती बंद हो गई.

अलका कुलश्रेष्ठ, लखनऊ (उ.प्र.)

*

मेरी सहेली के घर में एक छोटी सी लेडीज पार्टी थी. तंबोला खेलने का कार्यक्रम भी था. मैं वहां देर से पहुंची.

सब ने मुझ से पूछा, ‘‘इतनी देर क्यों हो गई?’’

मैं ने कहा, ‘‘सास का मीट बना रही थी.’’

मेरा इतना कहना था कि सभी हंसने लगीं. हड़बड़ाहट में कहा गया मेरा वाक्य अर्थ का अनर्थ कर गया. मुझे कहना चाहिए था कि ‘सास के लिए मीट’ बना रही थी.

नीरू श्रीवास्तव, जमशेदपुर (झारखंड)

*

हमारे बराबर के फ्लैट में एक रिटायर्ड फौजी अफसर अपने पुत्र के साथ रहते थे. उन का पुत्र एक स्थानीय सरकारी बैंक में ब्रांच मैनेजर था. वे जब भी मुझ से दूसरेतीसरे दिन मिलते तो कहते, ‘‘देखिए, यह मेरी कश्मीरी शौल, जो मैं ने श्रीनगर से खरीदी थी, चूहों ने काट डाली.’’ एक बार जब वे फिर मिले तो कहने लगे, ‘‘यह देखिए मेरा बीकानेरी मखमली कोट, चूहों ने काट कर बेकार कर दिया. यह मेरी वाइफ की बंगलौरी प्योर सिल्क की साड़ी जिसे किसी लायक नहीं रखी चूहों ने.’’ ये सब सुनतेसुनते मैं परेशान हो गया था. एक दिन उन की नई कहानी कहने से पहले ही मैं ने उन से कहा, ‘‘जब चूहों को गरम शालें, सिलकन कपड़े इत्यादि मिलें तो वे मोटे व सूती कपड़ों पर दांत क्यों आजमाएं?’’ उस के बाद उन्होंने यह सब कहना बंद कर दिया.

के के सक्सेना, लखनऊ (उ.प्र.)

इन्हें भी आजमाइए

– दूध में पानी की मिलावट परखने के लिए किसी चिकनी सतह पर दूध की कुछ बूंदें गिराएं. अगर बूंदें बगैर निशान छोड़े तेजी से आगे बह जाएं, तो इस में पानी मिला हुआ है. वहीं दूध अगर शुद्ध होगा तो वह धीरेधीरे बहेगा और सफेद धब्बा छोड़ जाएगा.

– जोड़ों में दर्द होने पर प्रतिदिन दालचीनी का गरम पानी से सेवन तो लाभप्रद है ही, इस के अलावा दालचीनी और पानी के घोल को दर्द वाले स्थान पर मालिश करने से भी जोड़ों के दर्द में राहत मिलती है.

– वर्कआउट जूते खरीदने के बाद लोग उन्हें कई साल तक बदलते नहीं, जबकि नियमित वर्कआउट करते हैं. ऐसा न करें 300 से 500 मील के बाद या 6 महीने के बाद जूते बदल दें.

– एक नीबू के रस में 2 बड़े चम्मच जैतून का तेल, एक कप दूध, 2 चम्मच दालचीनी पाउडर मिला कर  5 मिनट के लिए शरीर पर लगाएं. इस के बाद नहा लें, त्वचा खिल उठेगी.

– अगर आप डायबिटीज कंट्रोल करना चाहते हैं तो बेहतर तरीका है हलकी धूप में सुबह सैर करें, जो डाइबिटीज, हृदय रोग और दिमागी समस्याओं से दूर रखती है.

– अगर आप मानसिक तनाव या डिप्रैशन के शिकार हैं तो हलकी धूप में सैर करें. शरीर को विटामिन डी और सैर करने के फायदे मिलेंगे, साथ ही हलकी धूप डिप्रैशन से भी बचाएगी.

एक दास्तां

दिन के पास थीं दास्तानें कितनी

संजोए थी रात भी ख्वाब हसीं

कहने खूबसूरत किस्से थे

सुननी रुबाइयां कुछ भीनी

ठिठक गया चांद

रुपहली खिड़की पर कुछ पल

चांदनी छन्न से बिखर गई

नदियां हंस पड़ीं खिलखिल कर

जरा अकड़, तन गया पर्वत कोई

घाटियों ने गहरी सांसें लीं

दरख्तों ने धरी होंठों पे उंगलियां

शांत हुए भंवरे

चंचल तितलियों की धमाचौकड़ी भी

थम गई बेसाख्ता

झुक सा गया कुछ आसमां

धरा चिहुंकी, थरथरा गई

कुछ दरका, चटखा भी कहीं कुछ

थोड़ा सा लहका, तो बरस भी गया

ज्वार उफना…उतर गया

कुछ अधजला

या अधबुझा सा

सुलगता ही रह गया

चांद के दिल में बस इक कसक

बाकी रह गई.

 

– डा. छवि निगम

 

बच्चों के मुख से

मैं 2 दिनों के लिए अपनी छोटी बहन के यहां दिल्ली से नोएडा गई थी. शाम को 7 बजे का समय होगा. हम दोनों बहनें पलंग पर बैठे परस्पर बातें कर रहे थे, टीवी पर सीरियल भी देख रहे थे. एकाएक बहन का 5 वर्षीय नाती नित्यम मायूस चेहरा लिए आया और हमारी गोद में लेट गया. बोला, ‘‘नानी, आखिर यह पृथ्वी क्यों बनी? इस को किस ने बनाया?’’

मैं ने पूछा, ‘‘क्या हुआ? आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं?’’

नित्यम ने कहा, ‘‘पृथ्वी नहीं होती तो मैं भी नहीं होता, हर रोज सब की डांटमार खाने के लिए.’’ इतना सुनते ही हम सभी हंसहंस कर लोटपोट हो गए.

सुमन सक्सेना, नोएडा (उ.प्र.)

*

मामाजी हमारे घर आए हुए थे. उन्होंने मुझ से पूछा कि क्यों भाई, आप की पढ़ाई तो ठीक ढंग से चल रही है? इस पर मेरे पिताजी ने कहा, पढ़ाई तो कम करता है, 2-3 चमचों के साथ घूमता ज्यादा है. थोड़ी देर बाद मेरी छोटी बहन हलवा ले कर आई. मेरी प्लेट में चम्मच नहीं था, इसलिए मैं ने उसे चम्मच लाने के लिए कहा. तो वह फट से बोली, ‘‘दिनभर तो 2-3 चम्मचों के साथ घूमते हो, निकालो और खाओ.’’

इतना सुनते ही सब लोग इतना हंसे कि बेदम हो गए. बाद में पता चला कि चम्मच खो जाने की वजह से उसे डांट पड़ी थी और वह मुझे चम्मच चोर मान बैठी.   

शिवा वर्मा, फतेहपुर (उ.प्र.)

*

मेरा 4 वर्ष का भतीजा चीकू बहुत नटखट है. सर्दी में जब जुकाम से उस की नाक बंद हो गई तो वह हमें बहुत परेशान कर रहा था, मेरे पास आ कर बोला, ‘‘बूआ मेरी नाक में कुछ है, खुल ही नहीं रही, कुछ करो न.’’ मैं ने तभी डाक्टर से फोन कर दवा पूछी. उन के कहने पर मैडिकल स्टोर से दवा खरीदी और चीकू की नाक में 1-1 बूंद डाल दी, फौरन नाक खुल जाने से वह खुश हो गया. कुछ दिनों बाद मैं लैपटौप पर काम करने जा रही थी और विंडो नहीं खुल रही थी. मैं ने भैया से कहा, ‘‘भैया, क्या करूं यह विंडो तो खुल ही नहीं रही.’’ तभी चीकू की आवाज आई, ‘‘बूआ, इस में नोज ड्रौप डाल दो, फौरन खुल जाएगी,’’ यह सुन कर हम हंसे बिना नहीं रह सके.

सोनिया रायजादा, मेरठ (उ.प्र.)

ट्विंस का अद्भुत संसार

जैमिनी पिक्चर्स की फिल्म ‘निशान’ मानव ट्विन यानी जोड़ा लड़कों की कहानी है. इस फिल्म में विचित्र बात यह है कि एक लड़के को बहुत मारते हैं, वह सामान्य रहता है. परंतु बहुत दूर उस का ट्विन भाई जोरजोर से रोता है. यह एक फिल्मी कहानी है. इस का सचाई से कोई संबंध नहीं है. लक्ष्मण 14 वर्ष वन में कंदमूल खाता रहा जबकि उस का ट्विन भाई शत्रुघ्न राजमहल में मिष्ठान खाता था. यह कभी सुनने को नहीं मिला कि मिष्ठान के स्वाद तक ने कभी लक्ष्मण के मुंह तक पहुंचने का साहस भी किया हो. एक बार एक ट्विन हमारे घर आया, उस ने चायनाश्ता तथा दोपहर का भोजन भी किया, परंतु उस ने यह बिलकुल नहीं कहा कि 40 मील दूर उस का ट्विन भाई घर पर भोजन कर रहा है तथा उसे नाश्ते, भोजन आदि की आवश्यकता नहीं है. ये तो हुई काल्पनिक बातें, अब आप को ट्विंस की हकीकत की दुनिया से रूबरू कराते हैं.

नाइजीरिया का इग्बो ओरा कसबा, स्लीपी टाउन के नाम से जाना जाता है. यहां हर घर में कम से कम एक ट्विन है, किसीकिसी घर में तो 3-3 ट्विंस हैं. नाइजीरिया के साउथ वैस्ट में ट्विन की जन्म दर संसार में सब से अधिक है. 1972 से 1982 में ट्विन की जन्म दर 45 से 50 प्रति 1,000 थी. ऐसा विश्वास है कि गर्भावस्था में महिलाओं द्वारा इलासा लीव्स खाने से ट्विन का जन्म होता है. यहां दूरदूर से तथा विदेश से भी लोग इलासा लीव्स लेने के लिए आते हैं. इस बात पर यकीन किया जाए या नहीं, क्योंकि इस का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. यहां के लोगों का विश्वास है कि ट्विन एक ही समय पर रोते, बीमार पड़ते हैं तथा इन्हें भूख भी एक ही समय पर लगती है. जब ये बड़े हो रहे होते हैं तो मातापिता इन को एकजैसे कपड़े, जूते, बैंगल्स पहनाते हैं तथा इन का हेयरस्टाइल भी एकजैसा रखते हैं. यदि उन्हें पता चल जाए कि उन्होंने अलगअलग कपड़े पहने हुए हैं तो वे बहुत चिल्लाते हैं. यहां के लोगों का मानना है कि ट्विन में एक स्पिरिट होती है. इस तर्क को कितना सच माना जाए, कहा नहीं जा सकता.

मानव ट्विन

एकसाथ पैदा होने वाले जोड़ा बच्चे देखने में एकजैसे लगते हैं, परंतु अभिभावक ही बता सकते हैं कि दोनों में कौन छोटा, कौन बड़ा है. हम ने लास एंजिल्स में 45-50 वर्ष की आयु की अमेरिकी ट्विन महिलाओं को स्टोर में सामान खरीदते देखा था. देखने में दोनों का कद, रंग, रूप तथा शरीर बिलकुल एकजैसा लगता था. दोनों ने सिर से पैर तक एकजैसे कपड़े, आभूषण तथा मेकअप धारण किया हुआ था. ऐसे में उस समय कौन बता सकता था कि कौन छोटा और कौन बड़ा है. परंतु अब नोटरडेम के एक कंप्यूटर वैज्ञानिक ने डिजिटल इमेजिंग सिस्टम की सहायता से ट्विन के छोटाबड़ा होने का पता लगाने की तकनीक खोज निकाली है. भारत में यदि एक माता एकसाथ 2 बच्चों को जन्म देती है तो उन्हें जुड़वां के नाम से पुकारा जाता है. जुड़वां का अर्थ है जुड़े हुए, जिन 2 बच्चों का शरीर किसी प्रकार से जुड़ा हुआ हो, केवल उन्हें ही जुड़वां कहना उचित है. यदि एकसाथ पैदा होने वाले दोनों बच्चे सामान्य है — एक सिर, दो पैर, दो हाथ, एक पेट, दो आंखें आदि तो उन्हें किसी प्रकार से जुड़वां नहीं कहा जा सकता. वास्तव में वे बच्चे जुड़वां न हो कर एकसाथ पैदा होने वाले एक जोड़ा सामान्य बच्चे हैं. सो, इन के लिए जोड़ा शब्द का प्रयोग ही ठीक है.

कोजौइंड ट्विन

रशिया की रहने वाली माशा और डाशा कोजौइंड (कूल्हे से जुड़ी हुई) थीं. उन के 4 हाथ और 3 टांगें थीं. बचपन में अनावश्यक समझ कर तीसरी टांग काट दी गई थी. दोनों एकएक टांग पर नियंत्रण रख कर खड़ी होती थीं. दोनों को जन्म के पश्चात मातापिता को बिना दिखाए मृत घोषित कर दिया गया था. डाक्टरों ने इन पर भिन्नभिन्न प्रकार के प्रयोग किए. एक लड़की को सुई चुभा कर दूसरी पर इस का प्रभाव जानने का प्रयत्न किया, परंतु उस पर इस का कोई प्रभाव नहीं देखा गया.

ट्विन टावर्स औफ न्यूयौर्क

11 सितंबर, 2001, मंगलवार, टीवी पर अचानक समाचार दिखाया गया कि आतंकवादियों ने न्यूयौर्क में विश्वप्रसिद्ध ट्विन टावर्स को उड़ा दिया है. इस घटना को 9/11 के नाम से जाना जाता है. एकएक कर के दोनों टावर्स कुछ ही मिनटों में ध्वस्त हो गए. इस घटना को न्यूयौर्क निवासी कभी नहीं भूल सकते. लगभग 2,996 बच्चे, महिलाएं तथा पुरुष मारे गए तथा 10 अरब डौलर के माल का नुकसान हुआ. अकसर ट्विन शब्द का प्रयोग एकसाथ जन्मे 2 मानव बच्चों के लिए किया जाता है, परंतु न्यूयौर्क के ये टावर्स, ट्विन टावर्स के नाम से ही जाने जाते थे. दोनों टावर्स एकसाथ बन कर तैयार हुए, लंबाई, चौड़ाई, ऊंचाई, लागत भी एकजैसी तथा देखने में भी बिलकुल एकजैसे. ठीक उसी समय कार में एक पुरुष अपने ट्विन भाई के साथ कहीं जा रहा था, उस ने भी ट्विन टावर्स गिरने का समाचार अपनी कार के रेडियो पर सुना. अब कार चलाने वाले व्यक्ति ने घर जा कर सोचा कि उस का तो सारा परिवार ही ट्विन है, उस के ट्विन बच्चे, उस की पत्नी के ट्विन बच्चे, फिर उन दोनों के ट्विन बच्चे.

उस समय जितने भी मानव ट्विन थे, उन्हें साधारण लोगों की अपेक्षा अधिक दुख हुआ. थोड़ी देर में समाचार प्राप्त हुआ कि एक ट्विन फायर फाइटर की आग बुझाते समय मृत्यु हो गई है परंतु संयोग से उस का ट्विन फायर फाइटर भाई बच गया. इस दुर्घटना में कई ट्विंस के मातापिता मारे गए तथा कई ट्विंस के एक भाई या बहन बच गया. आज भी ट्विन टावर के पास से गुजरने वाले लोग कई बार भावुक हो कर सोचते हैं कि मनुष्य के बनाए हुए एकजैसे दिखने वाले ये विचित्र ट्विन टावर्स एकसाथ बने, एकसाथ गिरे तथा मरने तक एकदूसरे के साथ रहे. अब इस स्थान को ग्राउंड जीरो के नाम से जाना जाता है.

अमेरिका में इसी दिन यानी 11 सितंबर, 2001 को 13,238 बच्चों का जन्म, वर्ष 2011 में अमेरिका में लगभग 1 लाख 30 हजार ट्विन, 5,000 ट्रिप्लेट्स तथा 240 क्वाडरुप्लेट्स पैदा हुए. ट्विन की दर लगभग 33 प्रति 1,000 बच्चे थी.

रशिया के वासिलयेव की पहली पत्नी ने 27 बार में 69 बच्चों को जन्म दिया, जिन में 16 ट्विंस (32), 7 ट्रिपलेट्स (21) तथा 4 क्वाडरुप्लेट्स (16) थे. वर्ष 1979 में इंडियाना, अमेरिका में एक 10 वर्ष की कन्या ने ट्विन लड़कियों को जन्म दिया. अमेरिका के इतिहास में उस समय ट्विन को जन्म देने वाली यह सब से कम आयु की महिला थी. इसी शहर में एक महिला ने 29 घंटे में 17 लड़कों को जन्म दे कर गिनीज बुक औफ  वर्ल्ड रिकौर्ड्स में अपना नाम दर्ज करवाया.

ह्यूस्टन, अमेरिका में वर्ष 1998 में औक्ट्प्लेट्स यानी 8 बच्चों को जन्म देने वाली नकीम चुकवू सब से पहली महिला थी. लास एंजिल्स में वर्ष 2009 में एक 33 वर्षीय अविवाहित अमेरिकी महिला ने एकसाथ 8 बच्चों (औक्टप्लेट्स) को जन्म दिया. इन में 6 लड़के और 2 लड़कियां थीं. बच्चों का भार 16 से 40 औंस के बीच था. सिजेरियन औपरेशन करते समय 46 स्टाफ तथा 4 डिलीवरी रूम का इस्तेमाल किया गया. इन बच्चों को उस समय ए से एच तक (8 शब्द) का नाम दिया गया.

अमेरिका के न्यूजर्सी में पैदा हुए मार्क कैली तथा स्कौट कैली नाम के ट्विन एस्ट्रोनौट हैं. दोनों को नासा द्वारा अंतरिक्ष में जाने का सब से पहले अवसर प्राप्त हुआ. दोनों इंजीनियर, टैस्ट पायलट तथा नेवी में काम करते हैं, दोनों विवाहित हैं.

एकसमान दिखने वाले मोसेस तथा आरेन नाम के ट्विन वर्ष 1819 में मिल्लसविल (अमेरिका) नाम के शहर में व्यापार करने के लिए आए थे. उन में इतनी समानता थी कि केवल उन के बहुत करीबी मित्र ही उन की अलगअलग पहचान कर सकते थे. दोनों की पत्नियां सगी बहनें थीं. दोनों के बच्चों की संख्या बराबर थी. दोनों की मृत्यु भी एक ही घातक रोग के कारण कुछ ही घंटों में हो गई. उन के योगदान को देखते हुए मिल्लसविल शहर के नाम को बदल कर ट्विंसबर्ग रखा गया. अगस्त के पहले सप्ताह में हर रविवार को ट्विंसबर्ग शहर में ट्विंस का 2 दिन का मेला लगता है. अमेरिका के हर शहर से ट्विंस इस मेले में भाग लेने के लिए आते हैं.             

स्कूलों में ट्विंस की संख्या

अमेरिका में ऐसे बहुत से स्कूल हैं जहां ट्विंस की भरमार है. मेसाचुसेट्स स्टेट के एक स्कूल में 28 ट्विंस होने का पता चला है.

ब्रुकलिन, न्यूयौर्क का एक स्कूल अपने यहां 29 ट्विंस के साथ अमेरिका में सब से अधिक ट्विंस होने का दावा करता है. अधिक खोज करने पर पता चला है कि टैक्सास स्टेट के एक स्कूल में सब से अधिक 32 ट्विंस हैं. इन स्कूलों में गिनीज बुक औफ  वर्ल्ड रिकौर्ड्स में अपना नाम दर्ज कराने की होड़ लगी हुई है.

सर ह्यूज बीवर ने ट्विन (जोड़ा) नोरिस तथा मेकवहीर्टर की सहायता से गिनीज बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड्स का पहला संस्करण 27 अगस्त, 1955 में निकाला था. आज हर व्यक्ति तथा संस्था अपना अद्भुत काम इस में दर्ज कराने के लिए उत्सुक है.

हमें दक्षिणभारत के एक व्यक्ति ने बताया कि आतिशबाजी बनाने वाले प्रसिद्ध शहर शिवाकाशी (चेन्नई) के एक स्कूल में बहुत ट्विंस थे. इस स्कूल में 3 ट्विंस (6) अध्यापक तथा 56 ट्विंस (112) विद्यार्थी थे. कुल 59 ट्विंस (118) में 29 ट्विंस (58) लड़के, 12 ट्विंस (24) लड़कियां तथा 18 ट्विंस (36) मिश्रित थे.

भारत के उद्योगपति मुकेश अंबानी को वर्ष 2007 में संसार का सब से धनाढ्य व्यक्ति (कुल संपत्ति 63.2 अरब डौलर) घोषित किया गया था. उन के ट्विन पुत्रपुत्री परिवार की शोभा बढ़ा रहे हैं.

संसार के सब से भारी ट्विन

 

अमेरिका के बिल्ली का वजन लगभग 730 पौंड तथा बैनी मेककरारी का वजन 740 पौंड, कमर की मोटाई 84 इंच. ये संसार के सब से भारी ट्विन थे. (गिनीज बुक 2005, 2012).     

टैलीविजन में तनाव के साथ फायदा भी है: अनिल कपूर

अभिनेता व निर्माता अनिल कपूर ने बौलीवुड और हौलीवुड दोनों में काम किया है. जब उन्होंने अपना फिल्मी कैरियर फिल्म ‘हमारे तुम्हारे’ में एक छोटी सी भूमिका से शुरू की थी तो उन्हें लगा नहीं था कि वे इतने कामयाब हीरो बनेंगे. फिल्म ‘वो सात दिन’ उन के कैरियर की टर्निंग पौइंट थी जिस के बाद से उन्हें पीछे मुड़ कर देखना नहीं पड़ा. ‘मेरी जंग’, ‘चमेली की शादी’, ‘जांबाज’, ‘कर्मा’,  ‘मि. इंडिया’, ‘तेजाब’, ‘रामलखन’, ‘घर हो तो ऐसा’, ‘बेटा’, ‘नायक’ और ‘स्लमडौग मिलियनेर’ जैसी हर तरह की फिल्में उन्होंने कीं. टीवी पर उन्होंने फिल्मों की तरह बड़ी स्टारकास्ट के साथ ऐक्शन से भरपूर कार्यक्रम ‘24’ शुरू किया, कमोबेश प्रतिक्रिया के बीच अच्छा ही चला और वे एक बार फिर ‘24’ के सीजन टू को ले कर हाजिर हैं. इस बार वे साइबर क्राइम से मुंबई को बचाने के मिशन पर होंगे. इस बार भी इस सीरीज को अच्छा रिस्पौंस मिला है. वे अपने शो को ले कर काफी उत्सुक हैं. पेश हैं उन से हुई बातचीत के अंश.

इतने दिनों बाद फिर से ‘24’ को शुरू करना कितना मुश्किल था?

बहुत अधिक मुश्किल था. पर जब मैं किसी चीज पर विश्वास कर लेता हूं तो उसे अवश्य करता हूं और सब से अच्छा करने की कोशिश करता हूं. यह शारीरिक और मानसिक रूप से चैलेंजिंग काम है लेकिन मैं इस शो से और इस के ‘फौरमैट’ से प्यार करता हूं, कैसे स्टोरी आगे बढ़ती है, इस के चरित्र, इस की कहानी सब आकर्षक हैं. मैं हमेशा अपने काम से बहुत प्यार करता हूं. इस का ‘कंटैंट’ बहुत अच्छी तरह लिखा गया है. किरदार चाहे कोई भी हो पर वह लिखा किस तरह है, यह अहम है. इस के लिए मेरे साथ एक बड़ी टीम है जो मेरा साथ दे रही है. मैं अकेला केवल मेहनत ही कर सकता हूं लेकिन जब सब का साथ मिला, तो काम शुरू हो गया.

सीक्वल हमेशा तनाव और रिस्क फैक्टर के साथ आते हैं, क्या आप को इस का डर है?

टीवी में तनाव के साथ फायदा भी है. टीवी को आप ने पहला शो दिया और लोगों को अच्छा भी लगा. वे अभी भी जय सिंह राठौड़ को याद करते हैं. उन्हें सोशल साइट्स पर देखते हैं. ऐसे में वे मेरे इस नए काम को देखना चाहेंगे, मेरा विश्वास है.

इस बार साइबर क्राइम पर फोकस रखने की खास वजह?

आजकल साइबर क्राइम काफी बढ़ गया है. यह पूरे विश्व के लिए खतरा बन चुका है. हमारे यहां यह कैसे होता है, कैसे अपराधियों को पकड़ते हैं आदि सभी पर शोध किया, लोगों और पुलिस वालों से मिला, वे कैसे काम करते हैं, इस की जानकारी ली. हर व्यक्ति ने इसे बनाने में काफी मेहनत की है ताकि यह लोगों को विश्वसनीय लगे.

आप ने कभी एक जैसी भूमिका नहीं निभाई. कभी ‘एंग्रीमैन’ तो कभी ‘ऐक्शन हीरो’, इस की वजह क्या थी?

मैं ने कभी एक तरह की भूमिका में अपनेआप को ‘टाइपकास्ट’ नहीं किया, क्योंकि मेरे लिए काफी समय तक काम करना अधिक जरूरी है. मैं 10 साल तक एक बड़ा हीरो बन कर बाद में क्या करूंगा. मुझे काम करने में बहुत मजा आता है. इसलिए मैं ने हर तरह के किरदार निभाए. अगर मैं ने एक तरफ ‘रामलखन’ की तो दूसरी तरफ ‘ईश्वर’ फिल्म भी की. मैं ने हर तरह के रोल निभा कर रिस्क लिया. जैसे ‘लम्हे’, ‘विरासत’ आदि. मैं ने पिता ही नहीं, दादा की भी भूमिका निभाई, पर फिल्म मेरे इर्दगिर्द हो, यह जरूर देखता था.

क्या अभी आप कोई फिल्म कर रहे हैं?

नहीं, अभी मैं पूरा समय ‘24’ में देना चाहता हूं. मैं इस शो का निर्माता और अभिनेता हूं और मेरी जिम्मेदारी है कि मैं एक अच्छा शो लोगों को दूं जिस से उन्हें अच्छा लगे. एक समय में एक ही काम अच्छा होता है. 2 लोगों को आप एकसाथ खुश नहीं कर सकते.

आजकल हौलीवुड में आप के बाद कई कलाकारों ने ‘एंट्री’ की है, क्या इसे बौलीवुड के लिए एक बड़ी ‘अचीवमैंट’ मानते हैं?

अवश्य, यह बात तो मैं ने सालों पहले कही थी कि यहां और भी हमारे कलाकार काम करेंगे, पर तब किसी ने इसे सीरियसली नहीं लिया था. यह कुछ भी नहीं है, मजा तो तब आएगा जब देश के एक यंग कलाकार की पहली फिल्म विदेशी होगी और वह उस में मुख्य भूमिका निभा रहा होगा, तब रियल ‘अचीवमैंट’ होगी.

क्या आप किसी हौलीवुड के कलाकार को अपने शो में शामिल करना चाहते हैं?

अगर स्क्रिप्ट की डिमांड होगी, उन के पास समय होगा तो अवश्य ‘कास्ट’ करूंगा.

रियल लाइफ के 24 घंटों में आप क्या करते हैं?

यह शूटिंग पर निर्भर करता है. अगर मुझे शूट पर जाना हो तो सुबह 5 बजे उठ जाता हूं. उस के बाद थोड़ा व्यायाम फिर तैयार हो कर अपने आवाज के लिए व्यायाम करता हूं और फिर शूट पर चला जाता हूं. शूट न हो तो 7 बजे उठता हूं. टीवी पर शूट का समय 12 घंटे का होता है और समय से शुरू हो जाता है.

पहले आप की बेटी और अब बेटा दोनों फिल्मों में काम कर रहे हैं, क्या आप अपने आप को ‘प्राउड फादर’ महसूस करते हैं?

मैं इस पर कम बात करना चाहता हूं, उन का काम ही बताएगा कि वे कहां पर हैं. कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें पता तक नहीं है कि मेरा एक बेटा भी है, इसलिए मैं चुप रहना चाहता हूं.

इस शो में आप ने ‘बोल्ड’ दृश्य दिए हैं, क्या टीवी शो में यह सही है?

नहीं, ऐसा नहीं है. ये दृश्य जबरदस्ती डाले नहीं गए हैं, इन की जरूरत थी. आज के दर्शक इसे जानते हैं.

‘जज’ बनेंगी श्रद्धा

टैलीविजन इन दिनों उन कलाकारों के लिए कमाई का जरिया बन गया है जो अपने खाली समय में परेशान रहते थे. जो अभिनेता या अभिनेत्री फिल्म के शूट में जब तक व्यस्त हैं तब तक कोई दिक्कत नहीं लेकिन जैसे फिल्म की शूटिंग पूरी हुई, कई कलाकारों को घर बैठना पड़ता है. ऐसे में न सिर्फ उन का वक्त खराब होता है बल्कि कमाई भी नहीं होती. अब इन के लिए ऐसे टीवी शो हैं जहां वे बतौर जज बन के समय भी पास कर रहे हैं और पैसे भी कमा रहे हैं. एक म्यूजिक रिऐलिटी टीवी शो के जरिए श्रद्धा कपूर छोटे परदे की दुनिया में एंट्री कर रही हैं. उन से ‘रा स्टार’ शो के जज पैनल में सिंगर अरिजीत सिंह के साथ जुड़ने के लिए कहा गया है. जैकलीन और मलाइका जैसे कई कलाकार भी इन दिनों यही काम कर रहे हैं.

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