मैं एक कंपनी में कार्यरत हूं. मुझे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से कार्य लेना होता है. यूनियन का भी काफी दबाव रहता है. एक दिन मैं ने एक कर्मी से प्रोजैक्ट की आवश्यकतानुसार कच्चे माल के मशीन से टुकड़े कटवाने के लिए कहा. वह कर्मचारी न जाने किस मानसिक स्थिति में था, उस ने साफ मना करते हुए कहा कि मशीन में आवश्यक ब्लेड (आरी) नहीं है, इसलिए काम नहीं हो पाएगा. मुझे बुरा तो लगा पर क्या करती, चुप रह गई. जबकि वे लोग बगल वाले विभाग से ब्लेड मांग कर काम चला लेते हैं. नए ब्लेड का और्डर हो चुका था पर आने में समय था.

लंच के बाद कार्य के लिए मना करने वाले कर्मचारी का फोन आया. वह बोला, ‘‘मैडम, आज काम ज्यादा पैंडिंग हो गया, इसलिए ओवरटाइम देना पड़ेगा.’’ मैं ने तपाक से कहा, ‘‘जब ब्लेड ही नहीं है तो ओवरटाइम में क्या करोगे?’’ सुन कर उस की बोलती बंद हो गई.

अलका कुलश्रेष्ठ, लखनऊ (उ.प्र.)

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मेरी सहेली के घर में एक छोटी सी लेडीज पार्टी थी. तंबोला खेलने का कार्यक्रम भी था. मैं वहां देर से पहुंची.

सब ने मुझ से पूछा, ‘‘इतनी देर क्यों हो गई?’’

मैं ने कहा, ‘‘सास का मीट बना रही थी.’’

मेरा इतना कहना था कि सभी हंसने लगीं. हड़बड़ाहट में कहा गया मेरा वाक्य अर्थ का अनर्थ कर गया. मुझे कहना चाहिए था कि ‘सास के लिए मीट’ बना रही थी.

नीरू श्रीवास्तव, जमशेदपुर (झारखंड)

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हमारे बराबर के फ्लैट में एक रिटायर्ड फौजी अफसर अपने पुत्र के साथ रहते थे. उन का पुत्र एक स्थानीय सरकारी बैंक में ब्रांच मैनेजर था. वे जब भी मुझ से दूसरेतीसरे दिन मिलते तो कहते, ‘‘देखिए, यह मेरी कश्मीरी शौल, जो मैं ने श्रीनगर से खरीदी थी, चूहों ने काट डाली.’’ एक बार जब वे फिर मिले तो कहने लगे, ‘‘यह देखिए मेरा बीकानेरी मखमली कोट, चूहों ने काट कर बेकार कर दिया. यह मेरी वाइफ की बंगलौरी प्योर सिल्क की साड़ी जिसे किसी लायक नहीं रखी चूहों ने.’’ ये सब सुनतेसुनते मैं परेशान हो गया था. एक दिन उन की नई कहानी कहने से पहले ही मैं ने उन से कहा, ‘‘जब चूहों को गरम शालें, सिलकन कपड़े इत्यादि मिलें तो वे मोटे व सूती कपड़ों पर दांत क्यों आजमाएं?’’ उस के बाद उन्होंने यह सब कहना बंद कर दिया.

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