आज से 4 साल पहले जब भारत ने लंदन ओलिंपिक में हिस्सा लिया था तब हमारे देश के खिलाडि़यों ने रिकौर्ड 6 मैडल जीते थे. इस बात से जोश में आ कर यह दावा किया जाने लगा था कि खिलाडि़यों का प्रदर्शन इसी तरह निखरता गया तो साल 2016 के रियो ओलिंपिक में हमारी झोली में कम से कम 19 मैडल तो जरूर होंगे. लंदन ओलिंपिक में भारत 55वें नंबर पर था, जबकि इस बार के नतीजे आप सब के सामने हैं. महज 2 मैडल जीत कर भारत 67वें नंबर पर खिसक गया. इस बार तो 117 खिलाडि़यों के अब तक के सब से बड़े भारतीय दल के रूप में हम ने इस ओलिंपिक में शिरकत की थी.

अगर कुश्ती में साक्षी मलिक ब्रौंज मैडल और बैडमिंटन में पी वी सिंधु सिल्वर मैडल नहीं जीततीं, तो नतीजा सिफर ही रहता. यह इसलिए कह रहे हैं क्योंकि रियो ओलिंपिक शुरू होने से पहले किसी भारतीय खेलप्रेमी को उम्मीद नहीं थी कि ये दोनों खिलाड़ी पदक की दावेदार हैं. कुश्ती में सब की नजरें विनेश फोगट पर थीं और बैडमिंटन में साइना नेहवाल पर. सवाल उठता है कि भारतीय खिलाडि़यों से पदक जीतने में चूक कहां हुई? क्या उन का प्रदर्शन खराब रहा? हम आबादी के मामले में तो चीन के बाद दूसरे नंबर पर हैं, लेकिन इस बार के ओलिंपिक की बात करें तो चीन और हमारे पदकों में जमीनआसमान का अंतर रहा. हमारे देश की खेल संस्थाएं इस बात को गंभीरता से क्यों नहीं लेती हैं? हमारे देश के पुरुष खिलाडि़यों को क्या हो गया कि वे अब की बार एक भी मैडल नहीं जीत सके?

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