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अब बारिश में नहीं भीगेगा क्रिकेट मैदान!

क्रिकेट का कोई मैच अपने रोमांच के चरम पर हो और बारिश आ जाए, तो सारा मजा किरकिरा हो जाता है. आप अगर अपने दिमाग पर जोर दें, तो आपको कितने ही ऐसे मैच याद आ जाएंगे, जिन्हें बारिश ने धो दिया.

ज्यादा दूर ही क्यों जाएं वर्तमान में न्यूजीलैंड के साथ खेली जा रही टेस्ट सीरीज के पहले दो मैचों में ही बारिश बाधा बनी थी. कुछ देर की बारिश ने मैदान को इतना गीला कर दिया कि मैदान से पानी हटाने के लिए सुपर सोपर्स का इस्तेमाल करना पड़ा.

ऑस्ट्रेलिया में तो ग्राउंड सुखाने के लिए हेलीकॉप्टर तक की मदद ली जाती है. लेकिन बारिश के बाद अब मैदान को सुखाने की जरुरत नहीं पड़ेगी. हैदराबाद में इंजिनियरिंग के एक छात्र यामालैया ने एक ऐसा कवर डिजाइन करने में जुटे हैं, जो क्रिकेट मैदान को तेज बारिश में भी भीगने नहीं देगा.

इस कवर की बदौलत अब मैदान पर सुपर सोपर्स या हेलीकॉप्टर आदि की जरुरत नहीं पडे़गी. यामालैया ने अपने इस खास डिजाइन का पेटेंट हासिल करने के लिए आवेदन दर्ज किया है.

यामालैया के मुताबिक उनका यह कवर किसी भी आकार के ग्राउंड को कवर करने में सक्षम होगा. यह एक ही कवर पूरे ग्राउंड को ढक लेगा. ग्राउंड्स को बारिश से बचाने के लिए अभी कई कवर्स इस्तेमाल में लाए जाते हैं, जिन्हें एक के ऊपर एक रख कर मैदान पर बिछाया जाता है. इसके बावजूद यह कवर पूरे ग्राउंड को गीला होने से बचा नहीं पाते और बारिश रुकने के बाद मैदान को सुखाने के लिए सुपर सोपर्स या हेलीकॉप्टर आदि का सहारा लिया जाता है.

कवर के ऊपर कवर होने से पानी का रिसाव होता है, जिस कारण मैदान भीग जाते हैं. इसके बावजूद मैदान पूरी तरह से नहीं सूख पाते और गीले मैदान की वजह से गेम की कंडीशन प्रभावित होती हैं. फील्डर्स तेज दौड़ नहीं पाते क्योंकि उन्हें चोट लगने का खतरा रहता है और गीले मैदान पर गेंद जाने से वह भारी हो जाती है, जिससे बॉल का स्विंग होना भी बंद हो जाता है. इसके अलावा आउटफील्ड भी स्लो हो जाता है.

यामालैया के अनुसार उनका यह विशाल कवर इस मामले में बेजोड़ है. यामालैया का यह एक ही कवर किसी भी आकार के पूरे मैदान को ढक लेगा और मैदान पर पड़ने वाले पानी को बाउंड्री के बाहर लगे सीवेज सिस्टम में गिराएगा.

मैदान से पानी निकालने के लिए सभी मैदानों में सीवेज सिस्टम की सुविधा रहती है. यह कवर इलेक्ट्रिक मोटरों के जरिए चलेगा, जो एक क्षैतिज रॉड पर बंधा होगा. बारिश के दौरान यह जल्दी ही खुल जाएगा और पूरे मैदान को ढककर उसे भीगने से बचा लेगा.

इस कवर की मदद से बारिश रुकने के बाद उसे सुखाने में जाया होने वाला वक्त भी बचेगा. अगर उनकी यह खोज उनके दावे पर खरी उतरी तो यह क्रिकेट को एक नया आयाम देगी.

साइंस में ग्रेजुएशन कर रहे यामालैया ने अपने इस अनूठे रिसर्च के लिए यामालैया ने अपने कॉलेज से मिल रही टेक्नीकल सपोर्ट के लिए धन्यवाद दिया. साइंस में ग्रेजुएशन कर रहे यामालैया इंग्लिश लिट्रेचर में मास्टर डिग्री हैं.

खाट की राजनीति

राहुल गांधी ने हरियाणा की खाप सभाओं की जगह उत्तर प्रदेश के चुनावों के लिए खाट सभाएं शुरू की हैं. अपनी 2500 किलोमीटर की बस व पैदल यात्रा में राहुल गांधी बीसियों खाट सभाओं में बोलेंगे. पहली खाट सभा के बाद सुनने वाले उठने के बाद खाटें ही ले भागे, तो खूब मजाक उड़ाया गया. सोशल मीडिया और टीवी मीडिया के लोग, जो गद्देदार पलंगों पर सोते हैं, नहीं जानते हैं कि देश की आम जनता के लिए खाट आज भी कितना कीमती है और किस तरह एकएक खाट पर 2-2, 3-3 लोग सोते हैं.

देश के अमीरों के साथ यही दिक्कत है कि वे गरीबी के बारे में जानना ही नहीं चाहते. वे गरीबों से काम लेना चाहते हैं, उन से कर्ज पर ब्याज वसूलते हैं, सस्ते में अनाज खरीदते हैं, उन की जमीनों पर महल, मकान, मौल, मोटर कारखाने बनाना चाहते हैं, पर वे खाट ले जाएं, इस पर उन्हें हंसी आती है. वे राहुल गांधी को ‘खाट बाबा’ कहने लगें, तो आश्चर्य नहीं.

खाट आज भी गरीब घरों में अकेला फर्नीचर होता है. यह अगर चुनावों की खातिर मुफ्त में मिल रहा हो, तो गरीबों पर दया आनी चाहिए. शर्म आनी चाहिए कि पढ़ेलिखों ने इस देश को इस लायक क्यों नहीं बनाया कि शहर का स्लम हो या गांव का झोंपड़ा, खाट की कमी नहीं रहेगी?

देशभर में गरीबों का यही हाल है. तमिलनाडु में जयललिता साडि़यां और टीवी बांट कर जीतती हैं. कहीं मोबाइल दिए जाते हैं, कही लैपटौप देने का वादा होता है. बिहार में साइकिलें दी गईं.

देश के लिए सरकार चुनने के लिए हमारा वोट इतना सस्ता हो चुका है कि कोई भी मोटा पैसा दे कर जीत सकता है. नरेंद्र मोदी ने काले पैसे से 15 लाख हर खाते में जमा करा कर खूब वादा कर के चुनाव जीत लिया. राहुल गांधी ने तो असल खाट दे दी.

राहुल गांधी इन चुनावों में काफी सख्त पैतरे दिखा रहे हैं. 1947 से राज करने वाला परिवार आसानी से अंधेरे की गुमनामी में नहीं खोने वाला, यह अविवाहित बिना बेटेबेटियों वाले राहुल गांधी दिखा रहे हैं. उन का यह काम दिखा रहा है कि अपनी बीमार मां की चिंता एक तरफ करते हुए वे उत्तर प्रदेश के बहुत जरूरी चुनावों के लिए हड्डीपसली एक कर रहे हैं, जबकि चुनावों के बारे में पहले से अंदाजा लगाने वाले उन्हें 20-25 सीटें मिल जाने से ज्यादा का भाव नहीं दे रहे.

राजगद्दी पर बैठने वालों को इस तरह से फिर से शुरुआत करने की आदत रहनी चाहिए. ऐसे कितने ही परिवार हैं, जिन के बच्चों ने राजनीति को दलदल मान कर छोड़ दिया और दादापिता की कमाई पर मौज कर रहे हैं. सोनिया गांधी का 1998 में और अब 2016 में राहुल गांधी का उत्तर प्रदेश के मैदानों में लड़ाई में उतरना कम से कम हिम्मत का काम तो है. कांग्रेस राज किसी और राज से बेहतर होगा, इस की कोई उम्मीद नहीं है, पर लोकतंत्र में वोट की कीमत में खाट की कीमत भी जुड़ी है, यह पक्का है.

सफलता के लिए टाइम मैनेजमैंट जरूरी: सुकृति गुप्ता

‘एक दिन में कोई टौपर नहीं बनता. इस के पीछे छिपी होती है मेहनत, आत्मविश्वास और अपनों का सपोर्ट,‘ ऐसा कहना है दिल्ली की सुकृति गुप्ता का, जिस ने दिल्ली में ही नहीं भारत में 12वीं में टौप किया है. सीबीएसई 2016 की टौपर सुकृति को 500 में से 497 अंक मिले. सफलता की पूरी कहानी सिर्फ किताबी कीड़े से होते हुए नहीं गुजरी. इस में शामिल है सालभर की मेहनत, टाइम मैनेजमैंट, अपनों का सपोर्ट और थोड़ी मौजमस्ती. आइए, जानते हैं उस की सफलता का राज उन्हीं की जबानी.

किसी भी परीक्षा में टौप करना आसान नहीं होता. आप ने यह कर दिखाया है. क्या आप ने ऐग्जाम में टौप करने के लिए कोई खास तैयारी की थी?

मैं ने कोई प्लानिंग नहीं की थी, लेकिन अपना सर्वश्रेष्ठ देने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी और इसी के बल पर मैं ने 12वीं में टौप किया.

जब यह खबर मिली कि आप ने टौप किया है, तो आप को कैसा महसूस हुआ?

मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, क्योंकि मुझे टौप करने की बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी. सच कहूं तो मैं आप से शब्दों में बयां नहीं कर सकती कि मुझे कितनी खुशी महसूस हुई. स्कूल में स्वस्थ प्रतियोगी माहौल मिला, जिस का खूब फायदा हुआ.

अब आगे का गोल क्या है यानी भविष्य की प्लानिंग क्या है?

मैं ने पहले ही तय कर रखा था कि 12वीं के बाद मैं इंजीनियर बनूंगी. अपनी सोच पर कायम हूं. अच्छे संस्थान में ऐडमिशन पाने के लिए ऐंट्रैंस ऐग्जाम की तैयारी कर रही हूं.

हर सफलता के पीछे किसी न किसी का हाथ होता है. आप को पेरैंट्स का कितना सपोर्ट मिला?

मेरे पिता राकेश गुप्ता और मां रेणुका जैन गुप्ता दोनों ने मुझे बहुत सपोर्ट किया. हमारे घर में हमेशा हैल्दी ऐन्वायरमैंट रहा है. जब कभी भी मैं टैंशन में होती तो मुझे उस से मांपापा ही बाहर निकालते. सब से बड़ी बात कि उन्होंने मुझ पर अच्छे नंबर लाने के लिए कभी दबाव नहीं डाला. यही वजह है कि मैं ने पौजिटिव तरीके से सारे पेपर्स दिए.

अपनी सफलता का श्रेय किसे देना चाहती हैं?

मेरी सफलता के पीछे सब से बड़ा हाथ मेरे टीचर्स का है, क्योंकि मुझे स्कूल व कोचिंग दोनों ही जगह टीचर्स का पूरा सहयोग मिला.

हर साल बोर्ड की परीक्षा में लाखों छात्र बैठते हैं. उन से आप क्या कहेंगी?

मैं छात्रों से यही कहूंगी कि दिमाग ठंडा रखें, अपनी तरफ से मेहनत में कसर न छोड़ें. रिजल्ट अपनेआप अच्छा आएगा.

क्या पढ़ाई के दौरान आप को कभी तनाव महसूस हुआ?

नहीं, मैं ने कभी भी तनाव महसूस नहीं किया, क्योंकि मैं कभी 100 अंक लाने के बारे में नहीं सोचती थी. मैं केवल अपनी तरफ से सब से अच्छा करने के बारे में सोचती थी.

आप ने रोजाना कितनी देर पढ़ाई की? आप लड़कियों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करने के लिए क्या संदेश देना चाहेंगी?

कड़ी मेहनत करें और खुद को किसी से कम न समझें.

पढ़ाई के साथ आप की दूसरी हौबी क्या है?

मुझे घूमना पसंद है. मैं पूरी दुनिया घूमना चाहती हूं.

बचपन तो गया…

कभी किताबों में, कभी ऐक्स्ट्रा क्लासेज में, तो कभी हुनर सिखाने वाली गलियों में, बस, एक ही धुन है आगे निकल जाने की. सहनशीलता और धैर्य का पाठ इन्होंने सीखा ही नहीं, गोया इस की प्रतियोगिता अभी शुरू ही नहीं हुई है. धैर्य, सहनशीलता, सरलता, समझदारी इन में से कोई भी संस्कार किसी टीवी चैनल पर नहीं मिलता. ये संस्कार तो घर पर ही बच्चे सीखते थे. संयुक्त परिवार में जानेअनजाने ही बहुत सी बातें बच्चे सीख जाते थे.

दादीनानी की कहानियां जिंदगी के सबक सिखा देती थीं, लेकिन आज बच्चों के पास इतने रिश्ते ही नहीं रह गए. बच्चे इतने व्यस्त हैं कि उन के पास समय ही नहीं है. पेरैंट्स भी नहीं चाहते कि वे फालतू घर में बैठे रहें.

छुट्टियां हैं, तो कुछ नया सीखें

रिएलिटी शो में भाग लेना  आज प्रतिष्ठासूचक बन गया है. अभिभावकों के रुझान को देखते हुए आज ऐसे प्रोग्राम्स की भरमार है. टीवी चैनलों पर नित नए डांस व रिएलिटी शो शुरू हो रहे हैं.

ऐसे ही एक रिएलिटी डांस शो ने पिछले साल मुंबई की 11 साल की नेहा सावंत की जिंदगी छीन ली थी. नेहा ने कई रिएलिटी शोज में भाग लिया. नेहा को लग रहा था कि डांस उस की पढ़ाई पर असर डाल रहा है. उस ने डांस क्लास से बे्रक लेने के बारे में पेरैंट्स से बात की. तनाव इस कदर बढ़ चुका था कि पेरैंट्स के औफिस जाने के बाद उस ने परदे की रौड से लटक कर जान दे दी.

आगे निकलना है, सब से आगे

पिछले कुछ महीनों में किशोरों के आत्महत्या के मामले आश्चर्यजनक रूप से बढ़े हैं. एकैडमिक और पेरैंटल प्रैशर इन मामलों में सब से अहम और पहली वजह रहा है. बच्चे जराजरा सी बात पर परेशान हो कर अपना संतुलन खो बैठते हैं.

जयपुर में कुछ महीने पहले ही बनीपार्क में रहने वाली 15 साल की गरिमा ने महज इसलिए फंदा लगा कर खुदकुशी कर ली कि कंप्यूटर को ले कर उस की छोटे भाई से अनबन हो गई थी.

जयपुर के ही सोडाला इलाके में एक छात्र ने पढ़ाई के तनाव से मुक्ति पाने के लिए जिंदगी से मुक्ति पाना ठीक समझा. कमोबेश यही हाल सभी शहरों के हैं. मुंबई की लिलि, ठाणे की रूपल, अहमदाबाद की रश्मि शर्मा, विजयवाड़ा की स्नेहा, नासिक की रक्षा दिनकर, चंडीगढ़ की साक्षी.

सोचा समझा नहीं

इन बच्चों को संशय था कि वे पेरैंट्स और टीचर्स की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाएंगे. मनोचिकित्सकों, समाजशास्त्रियों और सलाहकारों का मत है कि इसी दबाव को बच्चे अन्यथा ले कर परेशान होते रहते हैं और आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं.

कहीं हम इन बच्चों को आत्महत्या की तरफ तो नहीं धकेल रहे? मनोचिकित्सकों का कहना है, अकसर पढ़ाई के लिए मांबाप की डांट, गुस्सा और बहिष्कार का डर बच्चे के कोमल मन पर हावी हो जाता है, यही वजह है कि वे खुद को खत्म करने की ठान लेते हैं.

छुट्टियों में भी राहत नहीं

मीतू स्कूल से एक फौर्म ले कर आई और मां से बोली, ‘‘वोकेशनल कोर्सेज शुरू होने को हैं, मम्मी, मुझे भी कुछ सीखने जाना है, मेरी सभी फ्रैंड्स कुछ न कुछ कर रही हैं, मैं पीछे रह गई तो?’’

मम्मी भी इसी उधेड़बुन में लगी हैं कि इन छुट्टियों में बिटिया को कौनकौन से कोर्स करवाने हैं. नया सैशन पहले ही शुरू हो गया. उस पर भी थोड़ा ध्यान देना है. इस बार स्कूल मैगजीन में बिटिया छाई रहे, इस के प्रयास जोरों पर हैं. डांस के साथ ड्रामा क्लासेज भी जौइन करवानी होंगी.

पर सच पूछा जाए तो यह मैंटल टौर्चर किस का है? आप का या बच्चों का? जब ये बच्चे बड़े होंगे तो इन का दिमाग कलपुरजों की तरह काम करने लगेगा. नानी के घर की धमाचौकड़ी और दादी की कहानियों से महरूम ये बच्चे न जाने कौन सी दिशा में बहते जा रहे हैं? ऐसे में छोटी सी असफलता उन्हें नाउम्मीदी के अंधेरे कुएं में धकेल देती है.

पूरे साल किताबें घोटघोट कर पीने के बाद छुट्टियों के दिनों की बेफिक्री भी उन्हें नहीं मिल पाती. 12 महीने अनवरत दौड़, छुट्टियों में और भी तेज भागो. ऐसे में लड़खड़ाने और गिरने की आशंका नहीं बढ़ जाएगी क्या?

बच्चों को मजबूत बनाएं

बच्चे 3 साल के हुए नहीं कि एक दबाव निरंतर उन के साथ चलने लगता है. कुछ है जो अंदर ही अंदर पनपता रहता है, किशोर उम्र तक आतेआते नतीजे विस्फोटक भी हो सकते हैं. मनोचिकित्सक कहते हैं, बड़ों के मुकाबले बच्चों में समायोजन की क्षमता काफी कम होती है. मुश्किल समय में जैसे, बोर्ड ऐग्जाम के दौरान बच्चों में अच्छा परफौर्म करने का दबाव रहता है.

किशोरावस्था और वयस्क होने के इस संक्रमणकाल में उन पर अच्छे परीक्षा परिणामों, रोजगार, रिश्तों में समायोजन, जिंदगी में काबिल बनने और सैटल होने जैसे कई तरह के दबाव होते हैं. पेरैंट्स के सपोर्ट की उन्हें इस समय सब से ज्यादा जरूरत होती है.

मातापिता का सब से बड़ा दायित्व है कि वे बच्चों को इन दबावों को झेलना सिखाएं और हिम्मत दें, ताकि वे जिंदगी को हंस कर जीने का उत्साह बनाए रखें.

डा. शैलजा बताती हैं, ‘‘मैं अपने परिचित के घर पर थी. टीवी पर बच्चे की आत्महत्या से जुड़ी खबर आते ही मेरी परिचित ने टीवी का स्विच औफ कर दिया. कारण बताया कि ऐसी खबरें मेरी बेटी के दिमाग पर उलटा असर डालेंगी. मैं दंग रह गई. बच्चों को इस तरह की खबरों से बचाने की कोशिश कहां तक ठीक है? आप तो टीवी बंद कर देंगे, लेकिन जब इस तरह की बातें वे दोस्तों से सुन कर आते हैं, उस का क्या?’’

अपनी निराशा से बच्चों को बचाएं

बाल मनोव्यवहार विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में बच्चों पर 3 साल की उम्र से ही दबाव बनने की शुरुआत हो जाती है. जब उन्हें पढ़ाई में अच्छे प्रदर्शन हेतु ट्यूशन के लिए भेजना शुरू कर दिया जाता है. फिर भी वे अगर दूसरे बच्चों से पीछे हैं, तो पेरैंट्स कुंठित होने लगते हैं. ऐसे में वे आखिर कितना दबाव सहन कर पाएंगे.

उन की भी सुनें

विशेषज्ञों का कहना है कि पेरैंट्स, टीचर्स और बच्चों के बीच लगातार संवाद बना रहना जरूरी है. इस के लिए 24 घंटे उन पर नजर नहीं रखनी चाहिए बल्कि उन की भावनाओं को समझना है. किशोरावस्था में वे कई तरह के बदलावों से गुजर रहे होते हैं और इस समय उन्हें पेरैंट्स की ज्यादा जरूरत होती है कि वे उन्हें समझें, प्यार और भावनात्मक सहारा दें.

पेरैंट्स कामकाजी हैं, तो यह जरूरत और ज्यादा बढ़ जाती है. ऐसे पेरैंट्स की बेटियों पर दबाव और ज्यादा होता है. लड़कियों को यह छूट नहीं होती कि वे किसी से मन की बात कह पाएं, उन पर सामाजिक जिम्मेदारियां भी ज्यादा होती हैं.

सलाह लेने से कतराएं नहीं

बदलती लाइफस्टाइल भी इन मामलों की अधिकता के लिए एक हद तक जिम्मेदार है. एकल परिवारों में बच्चों को दादादादी, चाचाचाची, भाईबहनों और ऐसे ही दूसरे रिश्तों की कमी होती है, जो पेरैंट्स की गैरमौजूदगी में उन का खयाल रखें. समय की कमी के कारण पेरैंट्स से भी बात नहीं हो पाती.

ऐसे में पेरैंट्स और टीचर्स को चाहिए कि वे इन स्थितियों में बच्चों को जूझना सिखाएं. ज्यादा परेशानी है, तो काउंसलिंग करवाई जा सकती है.

बच्चों पर पढ़ाई का अतिरिक्त दबाव बनाने के बजाय उन्हें खुला छोड़ दें, खिलने के लिए. उन्हें चहकने दें. आखिर आप अपने एक बच्चे को कितने रूपों में बांटना चाहते हैं, डांसर, ऐक्टर, पेंटर. इन सारे झूठे फ्रेमों से बाहर निकलें. इस भूलभुलैया में बच्चे खुद को भुला बैठेंगे. उन्हें भी वही बचपन जीने दें, जो कभी आप ने जीया है.                      

मुन्ना माइकल का फर्स्ट लुक आउट

इरोस इंटरनेशनल और नेक्स्टजेन फिल्म्स की आगामी फिल्म मुन्ना माइकल की शूटिंग हाल ही में शुरू हो गई है. निर्माता विक्की रजानी, निर्देशक साबिर खान और अभिनेता टाइगर श्रॉफ इनकी टीम दो फिल्में यानी हीरोपंती और बाघी के बाद अब दर्शको के सामने मुन्ना माइकल लाने की तैयारी में जुट गए हैं. 

टाइगर जो हमेशा महान माइकल जैक्सन के लिए अपने प्यार के बारे में बात करते हैं, अब पॉप आइकन को इस फिल्म में अपने ​मूव्स से फिर जिन्दा करेंगे. बड़े स्तर ​पर मुंबई के नाइटलाइफ़ ​दर्शाते तीन बड़े सेट ​मुलुंड में एक स्टूडियो में ​लगाए गए हैं, जहां ​कोरियोग्राफर गणेश आचार्य के मार्गदर्शन में 400 डांसर्स ने एक गीत के लिए मेहनत की . 

फिल्म के निर्देशक साबिर खान कहते हैं सॉन्ग को मुम्बई में रिकॉर्ड किया गया और सॉन्ग एल ए में स्थित अमेरिकन कोरियोग्राफर्स की टीम को भेजा गया, उसके पश्चात उन्होंने एक डांस वीडियो बनाया जिस पर बॉलीवुड की टीम और टाइगर ने उस वीडियो को देखकर हूबहू डांस किया.

इस गाने में माइकल जैक्सन के आयकॉनिक मूव्स, टो-स्टैंड, क्रोच ग्रैब, मूनवॉक, फ़ीट शफल, एम जे स्पिन, एंटी ग्रेविटी, साइड स्लाइड, रोबट और जैकेट थ्रोबैक यह सब मूव्स टाइगर श्रॉफ करते हुए दिखाई देंगे.

​निर्माता विक्की रजानी कहते हैं कि​ हम सभी जानते हैं टाइगर बॉलीवुड में सबसे अच्छे डांसर हैं, वे अपने मूव्स में दूसरों से कई गुना आगे हैं. उनके मूव्स जादुई हैं और यह अद्भुत मूव्स मुन्ना माइकल में दिखाई देंगे. इस फिल्म से बॉलीवुड में डांस के लिए एक बेंच मार्क सेट होगा.

टाइगर का कहना है कि एम जे महान थे और यह फिल्म पूरी तरह उन्हें समर्पित है, यह एक नई यात्रा है और मुझे आशा है कि वह देख रहे हैं. ​इरोस इंटरनेशनल और विक्की रजानी निर्मित तथा टाइगर श्रॉफ, नवाजुद्दीन सिद्दीकी और निधि अग्रवाल अभिनीत फिल्म मुन्ना माइकल 2017 में 7 जुलाई को प्रदर्शित होगी. 

फोर्स-2 में स्पेशल कैमियो करेंगे फ्रेडी दारूवाला

प्रतिभाशाली अभिनेता फ्रेडी दारूवाला ने अक्षय कुमार स्टारर फिल्म हॉलीडे में नेगेटिव भूमिका निभाई थी. अपने लुक और अपनी एक्टिंग की प्रतिभा से फ्रेडी ने लोगों के बीच अपनी एक अच्छी पहचान बना ली और अब जल्द ही वे निर्माता विपुल अमृतलाल शाह की फिल्म में नज़र आएंगे. अभिनव देव द्वारा निर्देशित फिल्म फोर्स 2 में फ्रेडी, जॉन अब्राहम के साथ स्क्रीन शेयर करेंगे.

सूत्रों का मानना है की फ्रेडी को जब उनके किरदार के बारे में बताया गया तो उन्हें इस किरदार के लिए तुरंत ही हां कहा दी. फ्रेडी का इस बारे में कहना है कि हां मैं इस फिल्म का हिस्सा हूं पर मैं अपने किरदार के बारे में अभी कुछ नहीं बता सकता हूं.

खास बात तो यह है की फ्रेडी और जॉन दोनों ही पारसी फैमिली से सम्बन्ध रखते हैं, दोनों ने ही अपना कैरियर की शुरुआत बतौर मॉडल की थी और दोनों ही फिटनेस  के लिए जाने जाते हैं, और दोनों को ही बाइक  और बाइक राइडिंग में काफी रूचि है. 

फ्रेडी, फिल्म फोर्स के बारे में बताते हैं कि फोर्स 2 वही से शुरू की जाएगी, जहां से फोर्स का अंत किया गया था, लेकिन फिल्म के  आधार में  काफी बदलाव किया गया है. फ्रेडी फोर्स 2 के साथ साथ निर्देशक देवेन भोजवानी की फिल्म कमांडो 2 में भी नज़र आएंगे.

क्या रितिक का करियर बर्बाद कर देंगे राकेश रोशन..?

बौलीवुड का खेल बहुत निराला है. इस खेल को समझकर भी कई कलाकार जानबूझकर या अनजाने या नादानी में गलतियां करते रहे हैं. बौलीवुड का इतिहास गवाह है कि जब भी कलाकारों के निजी जिंदगी के विवाद सुर्खियों में छाते हैं, तो उसका खामियाजा उसी कलाकार को भुगतना पड़ता है. यह एक कटु सत्य है. इस सच से आंखें फेर लेने या आंखे बंद कर लेने से सच नहीं बदल जाएगा. हर कलाकार इस बात से वाकिफ है कि कलाकार की जो छवि समाज या आम जनता या उनके प्रशंसकों के बीच बनती है, उस छवि का असर उनकी प्रदर्शित होने वाली फिल्मों पर पड़ता है.

जब फिल्म ‘‘मोहनजो दाड़ो’’ के प्रदर्शन से कुछ समय पहले रितिक रोशन और कंगना रानौत के बीच विवाद पैदा हुआ था और रितिक रोशन ने अपने किसी शुभचिंतक या अपने पीआरओ यानी कि प्रचारक की सलाह पर अंग्रेजी के अखबार (इस अखबार को लेकर बौलीवुड में आम धारणा यही है कि इसमें बिना पैसा दिए एक शब्द नहीं छपता) में पूरे पृष्ठ पर कंगना रानौत से जुड़े अपने कुछ ईमेल सार्वजनिक किए थे, उसी वक्त ‘‘सरिता’’ पत्रिका ने इसी जगह लिखा था कि इसका खामियाजा उन्हें ही भुगतना पड़ेगा. हर कलाकार को इतना समझदार होना चाहिए कि उन्हे अपनी निजी जिंदगी के विवादों को चुपचाप आपस में बैठकर सुलझा लेना चाहिए, न कि मीडिया में तमाशा बनाकर अपने प्रशंसकों व दर्शकों बीच अपनी छवि धूमिल करनी चाहिए.

उन्हीं दिनों ‘‘सरिता’’ पत्रिका ने जब रितिक रोशन व कंगना के विवाद पर मशहूर व सफल फिल्म निर्देशक आनंद एल राय से बात की थी, तो आनंद एल राय ने बहुत साफ तौर पर कहा था-‘‘मुझे लगता है दोनों समझदार लोग हैं. इन दोनों को सुलझे हुए तरीके से व्यवहार करना चाहिए. मैं किसी की निजी जिंदगी को लेकर कोई बात नहीं करना चाहता. पर हर इंसान की जिंदगी में कुछ चीजें अनवांछित नहीं होनी चाहिए. आप दोनों लोकप्रिय लोग हैं, तो आपकी जिंदगी की हर बात बहुत जल्द आम लोगों तक पहुंच जाती है. ऐसे में अनचाहे दबाव जिंदगी में बनते हैं. जरूरी होता है कि अनचाहे दबाव से बचकर रचनात्मक चीजों पर ध्यान लगाएं. इस तरह की घटनाएं देखकर दुःख होता है. हर कलाकार की अपनी निजी जिंदगी होती है, जिसका लाभ हानि उसे ही भोगना पड़ता है.’’

पर रितिक रोशन और कंगना ने यह समझदारी तब भी नहीं दिखायी थी. ध्यान देने वाली बात यह है कि उस वक्त भी कंगना के साथ विवाद की शुरुआत रितिक रोशन के ही बयान के साथ हुई थी. जिसका खामियाजा रितिक रोशन को फिल्म ‘‘मोहनजो दाड़ो’’ की असफलता से मिल चुका है. भले ही वह आज भी सच को स्वीकार करने का साहस न दिखा पा रहे हों.

मगर फिल्म ‘मोहनजो दाड़ो’ के प्रदर्शन के साथ ही कंगना और रितिक रोशन का विवाद मीडिया से गायब हो गया था. (यूं तो इस विवाद के अदालत पहुंचने की बात हुई थी, पर मामला अदालत पहुंचा या नहीं, इसकी पुष्टि नहीं हुई.)

लेकिन अब जबकि रितिक रोशन की उनके पिता राकेश रोशन के निर्देशन में बनी फिल्म ‘‘काबिल’’ के प्रदर्शन का समय नजदीक आ रहा है, तो एक बार फिर रितिक रोशन व कंगना का विवाद उभर गया है. इस बार इस विवाद को गहराने व सुर्खियों में लाने का काम किया है रितिक रोशन के पिता राकेश रोशन ने.

राकेश रोशन को तो बौलीवुड में काम करने का करीबन चालीस साल का अनुभव है. वह बौलीवुड में बतौर अभिनेता काम करने के बाद अब निर्माता व निर्देशक के रूप में कार्यरत हैं. इसलिए यह माना जाना चाहिए कि वह एक समझदार इंसान हैं.

मगर कुछ दिन पहले राकेश रोशन ने एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में कंगना व रितिक के विवाद पर कहा-‘‘रितिक रोशन बहुत अलग हैं. जब कोई (कंगना रानौत) उसके बारे में गलत बाते फैला रहा था, तब भी उसने शांत रहने व एक सम्मान जनक रास्ता अख्तियार किया था. यदि उसने सच को बाहर लाने का रास्ता चुना, तो उससे बहुत लोगों को धक्का लगेगा.’’

अंग्रेजी अखबार में राकेश रोशन के इस बयान ने पुराने दबे हुए विवाद को फिर से आग दिखा दी. इस बार किसे कितना खमियाजा भुगतना पड़ेगा, यह तो वक्त बताएगा. लेकिन राकेश रोशन के इस बयान के बाद कंगना रानौत का गुस्सा उबल पड़ा. और कंगना ने मीडिया के सामने आकर कहा-‘‘लोग खुद अपने लिए क्यों नहीं खड़े हो पाते. वह (रितिक रोशन) 43 वर्षीय पुरुष हैं. मेरी समझ मे नही आता कि उनके पिता को हर छोटे मोटे विवाद में उनका बचाव करने के लिए आगे क्यों आना पड़ता है.’’

बहरहाल,अब कंगना के इस बयान के बाद राकेष रोशन ने कहा है-‘‘मैं रितिक रोशन व कंगना विवाद पर सही समय आने पर बोलूंगा.’’ राकेष रोशन के इस बयान के बाद बौलीवुड में चर्चाएं हैं कि काश राकेश रोशन ने पहले ही अपने इंटरव्यू में कुछ कहने की बनिस्बत रितिक रोशन व कंगना के विवाद को सुलझाने की दिशा में कदम उठाया होता, तो हर किसी के लिए बेहतर होता. बौलीवुड का एक तबका यह मानकर चल रहा है कि गलती चाहे कंगना की हो या रितिक की, मगर इस विवाद का खामियाजा इन दोनों के साथ बौलीवुड को भी अपरोक्ष रूप से भुगतना पड़ रहा है.

बौलीवुड के अतीत के घटनाक्रम में जाएंगे, तो पाएंगे कि शाहरुख खान हों या आमिर खान या कोई अन्य अभिनेता, किसी को भी निजी जिंदगी से जुड़े विवादों से फायदा नहीं नुकसान हुआ. हां! फिल्मों को लेकर पैदा होने वाले विवाद का फायदा फिल्म को जरूर मिल जाता है.

‘रामलीला’ की आड में ‘राजलीला’

उत्तर प्रदेश में भाजपा ने घोषित तौर पर भले ही मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी की घोषणा न की हो, पर जिस तरह से लखनऊ के मेयर डाक्टर दिनेश शर्मा की पहल पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लखनऊ के ऐशबाग की रामलीला देखने आ रहे हैं, उससे यह साफ हो गया है कि डाक्टर दिनेश शर्मा की मुख्यमंत्री पद की दावेदारी पर मुहर लग गई है. मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी के तौर पर डाक्टर दिनेश शर्मा का नाम पहले भी चल रहा था. अब यह बात पक्की हो गई है कि रामलीला के खेल से राजलीला का एजेंडा तय हो गया है. इस रामलीला के बहाने भाजपा लखनऊ को केन्द्र मानकर उत्तर प्रदेश में अपनी चुनावी लीला दिखायेगी. आमतौर पर देश के प्रधानमंत्री दिल्ली में रामलीला में ही रावण दहन करते हैं. वैसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चुनाव क्षेत्र वाराणसी में रामनगर की रामलीला भी विश्व प्रसिद्व है.

अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दिल्ली की रामलीला के बजाय किसी और शहर की रामलीला देखनी थी तो सबसे पहले रामनगर वाराणसी का ख्याल आना चाहिये था. वहां की रामलीला के मुकाबले लखनऊ की रामलीला कोई बहुत खास नहीं होती है. ऐशबाग रामलीला संमिति के सरंक्षक डाक्टर दिनेश शर्मा लखनऊ के मेयर हैं. वह कहते हैं ‘श्रीरामलीला समिति ऐशबाग का निमंत्रण प्रधानमंत्री कार्यालय में स्वीकार हो गया है. मोदी जी पहले प्रधानमंत्री होंगे, जो इसमें शामिल होंगे.’ प्रधानमंत्री के दौरे की तैयारियां शुरू कर दी गई हैं.

राजनीति के जानकार मानते है कि भाजपा एक बार फिर राम के नाम को आगे कर अपनी धर्म की सियासत को आगे बढायेगी. रामलीला में थीम बदल जायेगा. आतंकवाद को रावण का नाम देकर राष्ट्रवाद से जोड़ा जायेगा. रामलीला के मंच का प्रयोग राजलीला के लिये होगा. प्रधानमंत्री के इस कार्यक्रम में शामिल होने की उम्मीद के बाद से पूरा दृश्य बदल रहा है. ऐशबाग रामलीला समिति के हरीशचन्द्र अग्रवाल कहते हैं रामलीला की थीम 9 अक्टूबर को तय होगी. इस बार रामलीला को भव्य स्वरूप देने का काम तेज कर दिया गया है. इसका स्वरूप वह होगा, जो प्रधानमंत्री के कद को सूट करे. रामलीला में 121 फुट का ऊंचा रावण बनेगा. जिसका दहन प्रधानमंत्री कर सकते हैं.

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों को देखते हुये भाजपा के इस कदम को चुनावी जंग की शुरुआत माना जा रहा है. प्रधानमंत्री के मौजूद रहने से भाजपा का पूरा संगठन सक्रिय हो जायेगा. इसके साथ ही साथ गृहमंत्री और लखनऊ के सांसद राजनाथ सिंह भी यहा रहेंगे. ऐसे में भाजपा अपनी चुनावी तैयारी की योजना पर काम करेगी. लखनऊ की रामलीला के बहाने प्रधानमंत्री नरेनद्र मोदी और भाजपा अपना चुनावी एजेंडा तय कर रही है. राममंदिर का नाम लिये बिना राम के नाम पर वोट मांगने का काम होगा.

गूगल का ये नया फोन बस 15 मिनट में होगा चार्ज

गूगल ऐसा फोन लाया है जो बाकी के स्मार्टफोन्स से बहुत अच्छा साबित हो सकता है. गूगल ने नई पीढ़ी के पिक्सल स्मार्टफोन लॉन्च किया है.

इस फोन की बुकिंग भारत में 13 अक्टूबर से शुरू होगी. इस फोन की बिक्री फ्लिपकार्ट, क्रोमा और रिलायंस डिजिटल पर होगी.

पिक्सल स्मार्टफोन सिल्वर, काले और नीले रंग में मिलेगा. भारत में इसकी कीमत 57,000 रुपए से शुरू होगी. बढ़ेगी प्रतियोगिता संभावना जताई जा रही है कि इस फोन के लॉन्च होने के साथ ही एप्पल और सैमसंग सरीखी अन्य फोन कंपनियों के साथ प्रतियोगिता बढ़ सकती है.

गूगल के इस पिक्सल स्मार्टफोन की खासियत है कि वो मात्र 15 मिनट की चार्जिंग से 7 घंटे तक चलेगी. साथ ही इसमें यूजर का वीडियो एक्सपिरिएंस भी बेहतर बनाए जाने के लिए वीडियो स्टेबलाइजेशन की सुविधा भी दी गई है.

इस स्मार्टफोन को लेकर गूगल ने दावा किया है कि इसके कैमरे से कम समय में तस्वीर क्लिक की जा सकेगी. ये है इस फोन की खासियत दावा किया जा रहा है कि इस स्मार्टफोन के कैमरे में HDR+ के जरिए तस्वीरों की क्वालिटी अच्छी होगी. बताया गया कि इस फोन में गूगल असिस्टेंट की सुविधा भी होगी, इसका इस्तेमाल मैसेज,वाट्सएप और अन्य कामों के लिए कम कर सकते हैं.

इस स्मार्टफोन की बैटरी 2,770 या 3,450 एमएएच की होगी साथ ही इसकी स्टोरेड क्षमता 32 जीबी तक है. इसमें 4 जीबी का रैम होगा. साथ ही इसका क्वाड प्रोसेसर 2×2.15Ghz या 2×1.6Ghz का है. इस स्मार्टफोन की बॉडी अल्मयूनियम की होगी. बताया गया कि इसमें 12 मेगापिक्सल का सेंसर लगा है जिसकी मदद से कम समय में तस्वीर खींची जा सकेगी.

खत्म होगी कॉल ड्रॉप की टेंशन, बढ़ेगी डेटा स्पीड

स्पेक्ट्रम ऑक्शन से कन्जयूमर्स को हर हाल में फायदा होगा. कंपनियों के और स्पेक्ट्रम खरीदने से उनकी डेटा स्पीड बढ़ेगी और कॉल ड्रॉप की प्रॉब्लम भी कम होगी. टेलिकॉम कंपनियों ने 2300 Mhz और 1800 Mhz के 4G बैंड में सबसे अधिक दिलचस्पी दिखाई है. इसके बाद 2100 Mhz के 3G बैंड में उनका इंट्रेस्ट दिख रहा है.

ऐनालिस्टों और इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स का कहना है कि इससे कम स्पेक्ट्रम की समस्या खत्म हो जाएगी. ऑक्शन के बाद कंपनियों के पास पर्याप्त एयरवेव्स होंगे, जिससे वॉयस और डेटा सर्विसेज की क्वॉलिटी बेहतर होगी.

कंपनियों का ध्यान अभी डेटा स्पेक्ट्रम हासिल करने पर है. जानकारों का कहना है कि हायर स्पीड डेटा टेक्नॉलजी को अपनाने की वजह से आगे चलकर काफी वॉयस कपैसिटी फ्री होगी, जिससे कॉलड्रॉप की समस्या पर काबू पाने में मदद मिलेगी.

ईवाई में ग्लोबल टेलिकम्युनिकेशंस लीडर प्रशांत सिंघल ने बताया कि फ्रेश स्पेक्ट्रम से ओवरऑल डेटा नेटवर्क्स में काफी सुधार होगा. उनके मुताबिक, इससे मोबाइल ई-कॉमर्स को बढ़ावा मिलेगा. सिंघल ने बताया कि कन्ज्यूमर्स की तरफ से इन्फोटेनमेंट और डिजिटल सर्विसेज की मांग बढ़ सकती है.

उन्होंने यह भी कहा कि 2100 Mhz में नीलाम किए जा रहे 3G एयरवेव्स और 1800 Mhz बैंड के स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल शुरू होने के बाद कॉल ड्रॉप्स काफी कम होंगे. सिंघल के मुताबिक, कन्ज्यूमर्स को इसका फायदा तभी मिलेगा, जब कंपनियां अधिक टेलिकॉम टावर लगाएंगी. उन्होंने बताया कि मार्च 2017 से पहले नए स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल शुरू नहीं हो पाएगा.

एक बड़ी टेलीकॉम कंपनी के सीनियर एग्जिक्युटिव ने बताया कि अधिक डेटा स्पेक्ट्रम मिलने से डेटा स्पीड में कम-से-कम 40 पर्सेंट की बढ़ोतरी होगी. इससे कन्ज्यूमर को हाई स्पीड डेटा सर्विस मिलेगी.

उन्होंने कहा कि ऐसा होने पर 4G यूजर्स तेजी के साथ मूवी या गाना डाउनलोड कर पाएंगे. उन्होंने बताया कि ब्राउजिंग और विडियो देने का एक्सपीरियंस भी पूरी तरह बदल जाएगा.

टेलिकॉम कंपनियों की बिडिंग से वाकिफ एक अन्य सूत्र ने बताया कि विडियो स्ट्रीमिंग में आसानी से कंपनियों को अधिक यूजर्स को ब्रॉडबैंड में शिफ्ट करने में मदद मिलेगी. उन्होंने बताया कि बिना बफरिंग के विडियो स्ट्रीमिंग के लिए कंपनियों को स्पेक्ट्रम कपैसिटी बढ़ानी होगी.

सरकार इस ऑक्शन में रिकॉर्ड 2300 Mhz स्पेक्ट्रम बेच रही है. अभी देश की टेलिकॉम कंपनियों के पास इससे कम स्पेक्ट्रम है. केंद्र ने साफ कर दिया है कि इसके बाद खराब सर्विस के लिए स्पेक्ट्रम की कमी का बहाना नहीं चलेगा.

टेलिकॉम सेक्रटरी जे एस दीपक ने हाल ही में कहा था कि ऑक्शन के बाद देश में स्पेक्ट्रम की कमी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी. इससे क्वॉलिटी बेहतर होने की उम्मीद है.

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