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कुश्ती का मेला

पिछले कुछ वर्षों में कुश्ती को देखने वालों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, यह सत्य है. इस को भांपते हुए धनकुबेरों ने कुश्ती के दंगल की प्रो कुश्ती लीग के नाम से दुकान खोल ली. देशी विदेशी पहलवानों का मेला शुरू हो गया. कुश्ती को धूलमिट्टी से निकाल कर मखमली कारपेट तक पहुंचा दिया. बड़ेबड़े पहलवानों की खरीद फरोख्त शुरू हो गई. पहलवानों पर पैसों की बारिश होने लगी.

आईपीएल की तर्ज पर इसे भुनाने का प्रयास शुरू हो चुका है, फार्मेट भी आईपीएल की ही तरह तैयार किया गया. प्रो कुश्ती लीग यानी पीडब्लूएल का दूसरा चरण 15 दिसंबर से शुरू होगा जिसमें 8 टीमें हिस्सा लेंगी. पिछली बार 54 खिलाडि़यों का पूल था, इस बार 80 खिलाडि़यों का पूल होगा.

इस बार हरियाणा, पंजाब, मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, उत्तर प्रदेश के अलावा 2 टीमें और शामिल की गई हैं. साथ ही, विदेशी पहलवानों की संख्या 24 से बढ़ा कर 40 कर दी गई है.

प्रो. कुश्ती लीग से उन पहलवानों को भी पहलवानी दिखाने का मौका मिल जाता है जो गुमनाम हैं. उन्हें नएनए दांवपेंच सीखने का भी मौका मिलता है क्योंकि इस लीग में कई ऐसे देशीविदेशी नामीगिरामी पहलवान शामिल होते हैं जो ओलिंपिक पदक विजेता रहे हैं.

इस लीग की अच्छी बात यह है कि इस में उन खिलाडि़यों को मौका मिलता है जो छोटे शहरों व गरीब तबकों से आते हैं. अब इस लीग से मिली फीस से वे अपने खेल को और मांज सकते हैं. इन्हें खेल संघों पर आश्रित नहीं रहना पड़ेगा.

अर्थव्यवस्था के अनुकूल माहौल से बाजार में उत्साह

भारतीय सेना के सीमापार जा कर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम देने के बाद भारत व पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव का बाजार पर नकारात्मक असर देखने को मिला.

बौंबे स्टौक एक्सचेंज यानी बीएसई के सूचकांक में उतार चढ़ाव के बीच निवेशकों में उत्साह का माहौल रहा. सूचकांक में 7 अक्टूबर तक लगातार 3 दिनों की गिरावट के बावजूद बाजार में आटोमोबाइल्स क्षेत्र में वाहनों की बिक्री का आंकड़ा बढ़ने से मारुति व होंडा सहित कई प्रमुख कंपनियों के शेयरों के साथ ही बैंकिंग क्षेत्र में तेजी का रुख रहा. रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल के ब्याज दरों में कमी करने के निर्णय से भी बाजार में अच्छा संकेत गया.

हालांकि इस दौरान भारतीय सेना के सीमापार जा कर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम देने के बाद भारत व पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव का बाजार पर नकारात्मक असर देखने को मिला लेकिन अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ के भारतीय अर्थव्यवस्था के मजबूत रहने संबंधी आकलन और सकल घरेलू उत्पाद  यानी जीडीपी दर 7.5 प्रतिशत से ज्यादा रहने के अनुमान से बाजार में अच्छा माहौल रहा.

सलमान संग ऐश्वर्या

जब से ऐश्वर्या राय बच्चन ने कुछ शर्तों के साथ सलमान खान के साथ फिल्म करने की मंशा जाहिर की है, तब से बौलीवुड में लोग आश्चर्यचकित हैं. सब को पता है कि सलमान खान और ऐश्वर्या राय के बीच कैसा रिश्ता रहा है और इस रिश्ते में किस तरह की कड़वाहट आई थी. एक पुरानी कहावत है, ‘मजबूरी में गधे को भी बाप बनाना पड़ता है.’ ऐश्वर्या के अति नजदीकी सूत्रों की मानें तो ऐश्वर्या इसी कहावत पर अमल कर रही हैं.

अभिषेक बच्चन के साथ विवाह करने के बाद से ऐश्वर्या राय बच्चन का कैरियर निरंतर पतन की ओर ही अग्रसर रहा. आराध्या की मां बनने के 5 साल बाद ऐश्वर्या राय ने अपने कैरियर की नई शुरुआत फिल्म‘जज्बा’ के साथ की लेकिन यह बौक्सऔफिस पर धराशायी हो गई. ‘सरबजीत’ की भी कमजोर कड़ी ऐश्वर्या राय बच्चन साबित हुईं. अपने अभिनय कैरियर को पटरी पर लाने के लिए ऐश्वर्या राय बच्चन ने करण जौहर के निर्देशन में मल्टीस्टारर फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ में कई बोल्ड व किसिंग सीन दे डाले.

ऐसे में अपनेआप को सुर्खियों में बनाए रखने के लिए तथा नई फिल्म पाने के लिए कुछ तो शिगूफा छोड़ना ही पड़ेगा.

प्रियंका की किरकिरी

इंटरनैशनल स्टारडम का लुत्फ उठा रहीं प्रियंका चोपड़ा ने एक मैगजीन के कवर पर कुछ ऐसा पहन लिया जिस ने उन की नींद हराम कर दी है. कवर पर छपी तसवीर में उन्होंने जो टीशर्ट पहनी है, उस पर रिफ्यूजी, इमिग्रेंट और ट्रैवलर लिखा है और ट्रैवलर  पर राइट मार्क लगा है जबकि शेष टैक्स्ट को क्रौस किया गया है. तसवीर में शरणार्थियों, प्रवासियों और विदेशियों के प्रति असंवेदनशीलता के चलते उन की आलोचना हो रही है.कइयों को यह प्रचार आपत्तिजनक लग रहा है और वे सीरिया शरणार्थी समस्या व विस्थापित लोगों का हवाला दे कर उन्हें जम कर कोस रहे हैं.   

इस बीच, पत्रिका ने सफाई में हालांकि कहा कि उस ने कवर में प्रवासी, विदेशियों और रिफ्यूजी से भेदभाव न करने और उन के प्रति घृणा नहीं रखने के संदेश की बात की है. लेकिन तब तक प्रियंका की जितनी किरकिरी होनी थी, हो गई. प्रियंका ने जरूर चुप्पी साध रखी है इस मसले पर.

अफवाहों के सहारे दीपिका

किसी ने कहा था कि अफवाहों के बल पर अभिनय कैरियर की नैया पार नहीं की जा सकती. मगर बेचारी दीपिका पादुकोण को तो महज अफवाहों का ही सहारा है. पर अफसोस की बात यह है कि दीपिका पादुकोण अपने प्रचारक या अपने बिजनैस मैनेजर अथवा अपने किसी शुभचिंतक की सलाह पर जो भी अफवाहरूपी गुब्बारा उड़ाती हैं, उस की हवा 2 दिनों में ही निकल जाती है और उन का दांव हर बार खाली जाता है.

फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ के बाद से दीपिका के कैरियर पर काला साया छाया हुआ है. इस साए से छुटकारा पाने के लिए प्रयासरत हैं. आएदिन वे किसी न किसी तरह की खबर को फैला या अफवाह उड़ा कर खुद को सुर्खियों में रखने का प्रयास कर रही हैं. अफसोस यही है कि उन की सारी खबरें या अफवाहें ज्यादा समय तक टिक नहीं पातीं. इतना ही नहीं, इस तरह खुद को सुर्खियों में बनाए रखने के बावजूद उन्हें फिल्म नहीं मिल पा रही है.

नील की सगाई

अभिनेत्रियों की तरह अब अभिनेता भी कैरियर की थमी गाड़ी देख घर बसाने का काम पूरा कर ले रहे हैं जो एक लिहाज से ठीक भी है. अब हर कोई सलमान खान नहीं हो सकता न. हाल में अभिनेता नील नितिन मुकेश ने मुंबई की रुक्मिणी सहाय से सगाई की है. और अगले साल शादी कर लेंगे.

मुंबई में हुए बेहद निजी समारोह में नील ने किसी फिल्मी सितारे को बुलाने के बजाय परिवार को ही अहमियत दी और सगाई कार्यक्रम को बिना वजह का पेजथ्री इवैंट नहीं बनने दिया. उन की होने वाली पत्नी रुक्मिणी एविएशन इंडस्ट्री से जुड़ी हैं.

खास बात यह है कि नील के लिए लड़की पसंद करने का काम उन के घर वालों ने किया है. यानी मामला अरेंज्ड है. वैसे, बौलीवुड में बहुत कम फिल्मी कलाकार ही अरेंज्ड मैरिज करते हैं. इस से पहले शहिद कपूर और मीरा राजपूत की अरेंज्ड मैरिज हुई थी.

सोशल मीडिया और कामचोरी

जब से सोशल मीडिया का क्रेज लोगों के सिर चढ़ा है और इंटरनैट के टैरिफ सस्ते हुए हैं, उन के आलस और कामचोरी में इजाफा हुआ है. ऐसा मानना है अभिनेत्री कंगना रानौत का. वे हमेशा से ही डिजिटल प्लेटफार्मों से दूरी बना कर रखती हैं क्योंकि उन्हें लगता है जिंदगी में सोशल मीडिया की घुसपैठ ने उन्हें सुस्त बना दिया है. वे कहती हैं कि सोशल मीडिया में बातों को नकारात्मक बना कर पेश किया जाता है. इस के अलावा सोशल मीडिया के चलते लोग अपनों के लिए भी वक्त नहीं निकाल पाते. सब स्मार्टफोन्स में बिजी हैं. इस की लत हमें बहाने बनाने पर मजबूर करती है. बात बिलकुल सही है. इस की लत अकर्मण्य और आलसी बना रही है. इस से एक जरूरी दूरी रखने में ही भलाई है.

फिलहाल कंगना अभिनेता सैफ अली खान व शाहिद कपूर के साथ विशाल भारद्वाज के निर्देशन में बन रही फिल्म ‘रंगनू’ की शूटिंग में व्यस्त हैं.  

टेस्ट की घटती लोकप्रियता

इंदौर टेस्ट मैच में भारत ने न्यूजीलैंड को 321 रनों से मात दे कर 3 टेस्ट मैचों की सीरीज में क्लीनस्वीप कर लिया. विराट कोहली की कप्तानी में भारत ने घरेलू धरती पर ऐसा कारनामा पहली बार किया है. भारतीय क्रिकेट और भारतीय खिलाडि़यों के साथसाथ प्रशंसकों के लिए भी यह खुशी की बात है.

क्रिकेट का कलात्मक सौंदर्य वाकई टेस्ट मैचों में ही देखने को मिलता है. लेकिन फटाफट क्रिकेट यानी आईपीएल मैचों की बढ़ती लोकप्रियता से टेस्ट मैचों का भविष्य खतरे में है. दर्शक भी फटाफट क्रिकेट में ज्यादा रुचि लेते हैं. 20-20 मैचों के टिकट फटाफट बिक जाते हैं जबकि टेस्ट मैचों के दौरान स्टेडियम खाली रहते हैं.

पहले एक टेस्ट मैच पूरे 5 दिन चलता था लेकिन अब शायद ही कोई मैच 5 दिन तक चलता है. ज्यादातर मैच 3 दिन में ही समाप्त हो जाते हैं. खिलाडि़यों में न तो अब धैर्य दिखता है और न ही 5 दिन तक खेलने का जज्बा. खिलाड़ी भी अब चाहते हैं कि सबकुछ फटाफट हो. जबकि टेस्ट मैचों में खिलाडि़यों के खेलने की क्षमता का पता चलता है. बल्लेबाजों को अपनी खेलप्रतिभा दिखाने का मौका मिलता है कि वे कितनी देर तक क्रीज पर डटे रह सकते हैं. ठीक इसी तरह गेंदबाजों को भी यह दिखाने का मौका मिलता है कि उन की गेंदबाजी में कितनी धार है.

मगर समय के साथ खिलाड़ी भी बदल गए हैं. टेस्ट मैच को भी वे फटाफट क्रिकेट की तरह खेलना चाहते हैं और चाहते हैं कि तेजी से रन बनाएं. शायद यही वजह है कि अब टेस्ट मैच में 1 दिन में 300 से अधिक रन भी बन जाते हैं. इस से नतीजा जल्दी ही निकल आता है और टेस्ट मैच 3 या 4 दिन में ही समाप्त हो जाता है. आईपीएल धीरे धीरे टेस्ट मैच को खा रहा है. यदि इस पर खेल पदाधिकारी ध्यान नहीं देंगे तो आनेवाले समय में टेस्ट मैच का अस्तित्व समाप्त भी हो सकता है.

बच्चों के मुख से

बड़े भाई की शादी के बाद बहू घर पर आई तो रस्में शुरू हो गईं. कंगना खिलाई हो रही थी. थाल में दूध डाल कर उस में अंगूठियां डाल देते हैं दूल्हादुलहन की. फिर उन से कहते हैं, अंगूठी ढूंढ़ो. जो पहले ढूंढ़ लेता है वह जीतता है. ऐसे 3 बार करते हैं. जो तीसरी बार जीतता है वही जिंदगीभर अपने जीवनसाथी से जीतेगा, ऐसा माना जाता है. रस्म हो रही थी. सभी लोग आनंद ले रहे थे. इतने में मेरा 14 साल का भांजा बोला, ‘‘मामा, मैं जब शादी करूंगा तो सब रस्मों की प्रैक्टिस घर से ही कर के जाऊंगा जिस से कि हारूं नहीं.’’ यह सुन कर सब जोर से हंस पड़े.

– विकास भटनागर, कल्याण (महा.)

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मेरा 6 वर्षीय भतीजा बहुत भोला एवं हाजिरजवाब है. एक बार हम परिजन गपें मार रहे थे. मेरे देवर ने कहा, ‘भाभी, ज्यादातर गाने औरतों, पर ही क्यों बनाए जाते हैं, जैसे ‘नानी तेरी मोरनी को…’ या ‘दादी अम्मा दादीअम्मा मान जाओ…’ या ‘तू कितनी अच्छी है तू कितनी भोली है ओ मां…’ आदि.’ मैं ने कहा, ‘‘पुरुषों पर भी बनते हैं. वैसे, अभी मुझे कोई गाना याद नहीं आ रहा है…’’

मेरा भतीजा हमारी बातें सुन रहा था. बीच में ही तपाक से बोल पड़ा, ‘ना ना करते प्यार तुम्हीं से कर बैठे…’ है. दरअसल, ‘विविध भारती’ पर कुछ देर पहले ही हम सब ने ‘ना ना करते प्यार तुम्हीं से कर बैठे…’ फिल्मी गाना सुना था. ना ना – ना ना तो उसे सुनाई एवं समझ आया पर बाकी के गाने का मतलब वह नहीं समझा. सो, वह समझ बैठा कि वह गाना ‘नाना’ पर है. उस के भोलेपन एवं हाजिरजवाबी पर हम सभी हंस पड़े.

– संध्या, बेंगलुरु (कर्नाटक)

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मेरी ननद का बेटा युवराज 3 साल का था. उसे तीर, धनुष, तलवार (प्लास्टिक वाली) से खेलने का बहुत शौक था. दिनभर किसी राजामहाराजा की तरह खटाखट तलवार चलाता. एक दिन मैं ने यों ही पूछा, ‘‘बाबू, तुम ये दिनभर तीर, धनुष, तलवार क्यों चलाते रहते हो?’’ तो अचानक से मेरी तरफ देखते हुए बजाय मेरे सवाल का जवाब देने के, कहने लगा, ‘‘मामीजी, आप के होंठ एकदम धनुष जैसा दिखते हैं.’’ मैं क्या कहती, उस ने तो मुझे लाजवाब कर दिया था.

– चंद्रकला बाहेती, तिनसुकिया (असम)

मेरे पापा

जब बहस छिड़ती है कि पुरुषों को घर के कामों में हाथ बंटाना चाहिए या नहीं, तो मेरे मानसपटल पर मेरे पापा स्वत: ही छा जाते हैं.

मेरे पापा मेरी मां के हर छोटेबड़े कामों में हाथ बंटाते थे. वे औफिस जाने से पहले सब्जियों को इतनी बारीकी और सलीके से काटते थे कि देखने वाले प्रशंसा किए बिना नहीं रह पाते थे. अभी भी जब लोग मुझ से पूछते हैं, ‘‘इतनी बढि़या सब्जी काटनी किस से सीखी?’’ तो मेरा जवाब होता है, ‘‘पापा से.’’

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– सुधा विजय, मदनगीर (न.दि.)

मेरे पिताजी मेरी सब से छोटी बहन को ले कर स्कूल में उसे दाखिल करवाने गए. उन दिनों हम सब भाईबहन एक ही स्कूल ‘लेडी इरविन हाईस्कूल’, ‘शिमला’ में पढ़ा करते थे. बहन का दाखिला नर्सरी क्लास में करवाया गया. 2 दिनों तक तो वह खुश हो कर स्कूल जाती रही लेकिन तीसरे दिन उस ने स्कूल जाने से एकदम इनकार कर दिया. मां के बहुत पूछने पर बोली, ‘‘मिस से मुझे डर लगता है.’’

पिताजी ने अगले दिन उस का हाथ पकड़ा और चल दिए स्कूल की ओर उसे छोड़ने. कक्षा में प्रवेश करते ही सामने बैठी अध्यापिका पर उन की नजर गई. मिस गहरी लाल लिपस्टिक में थीं और टांग पर टांग रखे कुरसी में धंसी बैठी थीं. प्रकृति ने दिल खोल कर उन्हें सेहत भी दी थी. वे डर के मारे उलटे पांव कक्षा से वापस लौट आए और सीधे पिं्रसिपल के औफिस में जा पहुंचे. प्रिंसिपल से बोले, ‘‘आप ने छोटेछोटे बच्चों के लिए नर्सरी कक्षा में किस तरह की अध्यापिका रखी हुई है?’’

पिं्रसिपल आश्चर्यचकित हो उन की ओर देख कर पूछने लगीं, ‘‘क्यों, क्या हुआ?’’

पिताजी बोले, ‘‘उन्हें देख कर तो मैं ही डर गया. भला, बच्चे नहीं डरेंगे?’’ प्रिंसिपल खूब हंसीं और उसी दिन अध्यापिका को बदल दिया गया.

– मंजू कश्यप, चंडीगढ़ (यू.टी.)

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मुझे बचपन से क्रिकेट खेलने का शौक था, उस के कारण मेरा काफी समय क्रिकेट खेलने में निकल जाता. पढ़ाई के लिए वक्त नहीं मिलता था. एक दिन शाम को क्रिकेट खेल कर मैं घर आया तो पापा ने मुझे सख्ती से समझाया कि वक्त बरबाद करने के लिए नहीं, जिंदगी संवारने के लिए होता है. अगर क्रिकेट खेलना चाहते हो तो साथ में अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान दो.

मैं ने तय कर लिया कि आगे एकएक सैकंड का सदुपयोग करूंगा. संघर्ष के दिनों में उन की हौसलाअफजाई ने मेरी हिम्मत टूटने नहीं दी. आज मैं इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर के टाटा कंपनी में कार्यरत हूं. साथ ही, क्रिकेट की अनेक गतिविधियों में भी मैं आगे रहता हूं. 

– अंकुर 

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