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खत्म होगी कॉल ड्रॉप की टेंशन, बढ़ेगी डेटा स्पीड

स्पेक्ट्रम ऑक्शन से कन्जयूमर्स को हर हाल में फायदा होगा. कंपनियों के और स्पेक्ट्रम खरीदने से उनकी डेटा स्पीड बढ़ेगी और कॉल ड्रॉप की प्रॉब्लम भी कम होगी. टेलिकॉम कंपनियों ने 2300 Mhz और 1800 Mhz के 4G बैंड में सबसे अधिक दिलचस्पी दिखाई है. इसके बाद 2100 Mhz के 3G बैंड में उनका इंट्रेस्ट दिख रहा है.

ऐनालिस्टों और इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स का कहना है कि इससे कम स्पेक्ट्रम की समस्या खत्म हो जाएगी. ऑक्शन के बाद कंपनियों के पास पर्याप्त एयरवेव्स होंगे, जिससे वॉयस और डेटा सर्विसेज की क्वॉलिटी बेहतर होगी.

कंपनियों का ध्यान अभी डेटा स्पेक्ट्रम हासिल करने पर है. जानकारों का कहना है कि हायर स्पीड डेटा टेक्नॉलजी को अपनाने की वजह से आगे चलकर काफी वॉयस कपैसिटी फ्री होगी, जिससे कॉलड्रॉप की समस्या पर काबू पाने में मदद मिलेगी.

ईवाई में ग्लोबल टेलिकम्युनिकेशंस लीडर प्रशांत सिंघल ने बताया कि फ्रेश स्पेक्ट्रम से ओवरऑल डेटा नेटवर्क्स में काफी सुधार होगा. उनके मुताबिक, इससे मोबाइल ई-कॉमर्स को बढ़ावा मिलेगा. सिंघल ने बताया कि कन्ज्यूमर्स की तरफ से इन्फोटेनमेंट और डिजिटल सर्विसेज की मांग बढ़ सकती है.

उन्होंने यह भी कहा कि 2100 Mhz में नीलाम किए जा रहे 3G एयरवेव्स और 1800 Mhz बैंड के स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल शुरू होने के बाद कॉल ड्रॉप्स काफी कम होंगे. सिंघल के मुताबिक, कन्ज्यूमर्स को इसका फायदा तभी मिलेगा, जब कंपनियां अधिक टेलिकॉम टावर लगाएंगी. उन्होंने बताया कि मार्च 2017 से पहले नए स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल शुरू नहीं हो पाएगा.

एक बड़ी टेलीकॉम कंपनी के सीनियर एग्जिक्युटिव ने बताया कि अधिक डेटा स्पेक्ट्रम मिलने से डेटा स्पीड में कम-से-कम 40 पर्सेंट की बढ़ोतरी होगी. इससे कन्ज्यूमर को हाई स्पीड डेटा सर्विस मिलेगी.

उन्होंने कहा कि ऐसा होने पर 4G यूजर्स तेजी के साथ मूवी या गाना डाउनलोड कर पाएंगे. उन्होंने बताया कि ब्राउजिंग और विडियो देने का एक्सपीरियंस भी पूरी तरह बदल जाएगा.

टेलिकॉम कंपनियों की बिडिंग से वाकिफ एक अन्य सूत्र ने बताया कि विडियो स्ट्रीमिंग में आसानी से कंपनियों को अधिक यूजर्स को ब्रॉडबैंड में शिफ्ट करने में मदद मिलेगी. उन्होंने बताया कि बिना बफरिंग के विडियो स्ट्रीमिंग के लिए कंपनियों को स्पेक्ट्रम कपैसिटी बढ़ानी होगी.

सरकार इस ऑक्शन में रिकॉर्ड 2300 Mhz स्पेक्ट्रम बेच रही है. अभी देश की टेलिकॉम कंपनियों के पास इससे कम स्पेक्ट्रम है. केंद्र ने साफ कर दिया है कि इसके बाद खराब सर्विस के लिए स्पेक्ट्रम की कमी का बहाना नहीं चलेगा.

टेलिकॉम सेक्रटरी जे एस दीपक ने हाल ही में कहा था कि ऑक्शन के बाद देश में स्पेक्ट्रम की कमी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी. इससे क्वॉलिटी बेहतर होने की उम्मीद है.

सोशल साइट्स का टूटता तिलिस्म

कहते हैं जो जितनी जल्दी चढ़ता है उसी तेजी से गिरता भी है. ठीक यही स्थिति सोशल मीडिया की भी हुई है. कई कारणों से यह अपने महत्त्व को खोता जा रहा है. कुल मिला कर लोगों को अब फेसबुक पर ऐक्टिव रहना समय की बरबादी नजर आ रहा है.

पिछले 1-2 साल में जिस तेजी से सोशल साइट्स का क्रेज बढ़ा और युवाओं को फेसबुक का चसका लगा, अब उस की सचाई भी सामने आने लगी है. युवाओं को नई नौलेज देने वाली सोशल साइट्स कई कारणों से अपना महत्त्व खोती जा रही हैं, जिन में एक है समय की बरबादी.

इस विषय पर एक बुद्धिजीवी प्रोफैसर से चर्चा की, तो उन की अभिव्यक्ति हतप्रभ करने वाली थी. हरिद्वार के एक कालेज में वे युवा लेक्चरर हैं और अविवाहित भी. मेरी फेसबुक पर ही उन से मित्रता हुई.

जब मैं ने फेसबुक के बारे में उन के विचार जानने चाहे, तो उन की सब से पहली प्रतिक्रिया यही थी कि इस साइट पर एक संवेदनशील व्यक्ति की कोई अहमियत नहीं होती. तमाम तरह के  झूठ और दिखावे की बातें यहां होती हैं. 

एक शिक्षाविद् होने के नाते उन की अपने विश्वविद्यालय के प्रांगण में अपने स्टूडैंट्स पर भी नजर रहती है. अत: एक शिक्षक के रूप में उन की यही प्रतिक्रिया थी कि ज्यादातर युवकयुवतियां वक्त की बरबादी करते हैं तथा उन्हें न तो समय का खयाल होता है और न ही सामने वाले के ओहदे का.

मसलन, वे खुद व्याख्याता हैं, किंतु सोशल साइट पर यदि वे किसी सुंदर छात्रा पर कमैंट करते हैं, तो उन का स्तर किसी छात्र का सा हो जाता है.

सोशल साइट पर आप हैं, इस का मतलब यह नहीं कि आप वहां हैं, तो आप को बड़ा सम्मान मिलेगा. फेसबुक पर यदि एक लड़की के छात्र तथा टीचर फ्रैंड हैं तो वे एक ही ग्रेड के हो जाएंगे. उस लड़की पर एक स्टूडैंट व टीचर का कमैंट एकसाथ होगा, इस में टीचर को बड़प्पन की आशा कतई नहीं करनी चाहिए.

दरअसल, मेरे परिचित प्रोफैसर मित्र को यह बेहद नागवार गुजर रहा था कि वे एक सम्मानजनक पद पर हैं, किंतु जब वे कहीं कमैंट कर रहे हैं, तो उन का स्तर किसी स्टूडैंट से जरा भी ऊंचा नहीं होता. यह बात उन्हें भीतर तक आहत करती है.

सोशल साइट का दायरा जितना विस्तृत होता है, किसी के भी सम्मान की संभावना उतनी ही कम हो जाती है. यह ऐसा ही होता है, जैसे पानठेले पर गुरुचेले सब साथ में पान खा रहे हों या पब में गुरुशिष्य साथ खापी रहे हों.

इस के चलते सोशल साइट पर उम्र की सीमा खत्म हो गई है. सब अपने मन मुताबिक व्यवहार कर रहे हैं. समाज में जो एक व्यवस्था है वह जैसे भरभरा कर गिर गई है.

प्रोफैसर ने यह भी बताया कि वहां सबकुछ स्तरहीन हो गया है. यदि आप कोई गंभीर बात कहें तो कोई बिलकुल भी प्रतिक्रिया नहीं देता. इस से विचारशील व्यक्ति को  झटका लगता है.

वे युवा शिक्षक बेहद निराश से लगे, यह कहते हुए कि अब उन्हें फेसबुक में कोई आकर्षण महसूस नहीं होता. यहां मित्रता तो एक छलावा भर है. लोग फ्रैंडशिप कर तो लेते हैं, पर उसे निभाते नहीं.

वे शिक्षक मित्र अति संवेदनशील और भावुक हृदय के युवा हैं, यहां तक कि जब मेरे पुत्र की तबीयत खराब थी, तो वे लगातार मेरे बेटे के बारे में पूछते रहते थे. इस से मैं उन की टीस का सहज अनुमान लगा सकती हूं कि वे चाहते हैं कि उन्हें भी फेसबुक के फ्रैंड्स से वैसा ही प्रतिदान मिले. किंतु सचाई कुछ और ही है.

उन की बातों से यही लगता है कि वे सोशल साइट्स पर चल रही निरर्थक बातों और गपबाजी से पूरी तरह ऊब चुके हैं. उन्हें फेसबुक अब पूर्णतया बकवास नजर आ रहा है.

जानकार ये भी मान रहे हैं कि फेसबुक एक ऐसी बाढ़ है, जिस में युवावर्ग ही नहीं उम्रदराज भी अपनी दीनदुनिया भुला कर पूर्णतया डूब चुके हैं. उन्हें न तो अपनी हैसियत का पता है, न ही उम्र का खयाल.

अब छात्रछात्राएं रातरात भर औनलाइन रहते हैं या यों कहें कि उन्हें चैटिंग के बाद ही नींद आती है. कुछ की तो इस चसके से नींद भी पूरी नहीं होती. दफ्तरों में भी पूरे दिन फेसबुक पर अपडेट व कमैंटबाजी चलती रहती है. मेरी एक मित्र का अब फेसबुक से मन भर गया है वह अपनी स्टडी में लगी है, उस का मानना है कि फेसबुक पर ऐक्टिवेट रहना समय की बरबादी है. 

सर्जिकल स्ट्राइक: सबूत पर सियासत क्यों

हमारा देश आस्थावानों का देश है, जिसमें तर्क करने और सवाल पूछने की मुमानियत है, भगवान है यह लोगों ने मान लिया है, मस्तिष्क रेखा गुरु पर्वत की तरफ जाये तो जातक भाग्यवान होता है, जन्मकुंडली के सप्तम भाव मे मंगल हो तो कन्या के विवाह में अडचने आती हैं, यह और ऐसी हजारों बेसरपैर की बातें हमारी रोजमरराई ज़िंदगी का हिस्सा बन चुकी हैं, जिन पर तर्क या सवाल करो तो पंडे तिलमिला उठते हैं, क्योंकि उनकी दुकानदारी खतरे में पड़ने लगती है. सीधे सीधे पूछने वाला नहीं मानता, तो उसे प्रताड़ित किया जाने लगता है और इस पर भी उसके मन में श्रद्धा उत्पन्न न हो तो उसे नर्क पहुंचाने का भी इंतजाम कभी कभी कर दिया जाता है.

भारतीय सेना द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक सवालों के दायरे में है. परसों तक प्रधानमंत्री को इस बाबत सेल्यूट ठोकने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एकाएक ही पलटी मारते हुये सर्जिकल स्ट्राइक की सच्चाई पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है. कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह, रणजीत सुरजेवाला और संजय निरूपम भी इसी बात को दूसरे तरीके से कह रहे हैं कि हमारी सरकार को पाकिस्तान के दुष्प्रचार का जबाब देना चाहिए कि वाकई सर्जिकल स्ट्राइक नाम की कोई क्रिया सम्पन्न हुई भी थी या नहीं.

साध्वी उमा भारती ने बहुत सटीक जबाब केजरीवाल को दे दिया है कि उन्हे पाकिस्तान चले जाना चाहिए, लेकिन भगवान है या नहीं, जैसे बेहूदे सवाल नहीं पूछने चाहिए. कायदे से तो बात या फसाद इसी जवाब के साथ खत्म हो जाना चाहिए, लेकिन उमा या दूसरे महाराजा जैसे लोग यह भूल रहे हैं कि यह त्रेतायुग नहीं कलयुग है और हाल फिलहाल आर्यावर्त मे लोकतन्त्र है. लोग पहले अरविंद केजरीबाल को पानी पी कर कोसेंगे, पर चार दिन बाद खुद ही  सरकार से कहेंगे कि अगर सबूत हों तो दे दो हर्ज क्या है. तब सरकार क्या करेगी, पता नहीं, लेकिन महज एक सवाल पूछ लेने से कोई राष्ट्रद्रोही करार नहीं दिया जा सकता.

पाकिस्तान चले जाओ वाला जवाब लोकतान्त्रिक पैमानों पर कतई खरा नहीं उतरता. अगर कोई नीतिगत अड़चन है या सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर सरकार हाल फिलहाल सर्जिकल स्ट्राइक के बाबत जानकारी देना मुनासिब या जरूरी नहीं समझती तो भी उसे यह सच जनता के सामने रखना चाहिए, जिससे लोगों के मन में किसी तरह का संदेह न पनपे.  बिलाशक देश नाजुक दौर से गुजर रहा है, ऐसे में उमा भारती का बौखलाहट भरा हिंदुवादी जबाब सरकार के पूर्वाग्रह और अदूरदर्शिता को ही दर्शाता है. किसी केजरीबाल से सवाल पूछने का अधिकार छीनने का यह तरीका पौराणिक सा है कि जो हमारी बात न माने, हमारी विचारधारा को नकारे, वह इस देश में रहने काबिल ही नहीं, उसे तिरस्कृत कर दो या फिर नास्तिक करार दे दो. यह न तो सवाल का जवाब है और न ही समस्या का समाधान है, जो बहुत बड़े रूप मे भी सरकार के सामने आ सकती है. 

 

LPG सब्सिडी के लिए जरूरी हुआ आधार कार्ड

सरकार ने एलपीजी गैस सब्सिडी के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य कर दिया है. एलपीजी सिलेंडरों की खरीद पर सब्सिडी पाने के लिए सरकार ने 30 नवंबर तक आधार कार्ड बनवाने का मौका दिया है. इसके बाद आधार कार्ड न रखने वाले लोगों को एलपीजी सब्सिडी नहीं मिलेगी.

फिलहाल केंद्र सरकार एक साल में एक परिवार को 12 सब्सिडी युक्त सिलेंडर देती है. हर सिलेंडर पर मिलने वाली सब्सिडी ग्राहक के खाते में सीधे ट्रांसफर कर दी जाती है, जबकि उनको बाजार दर पर मूल्य चुकाकर सिलेंडर खरीदना होता है.

पेट्रोलियम मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, 'एलपीजी सब्सिडी लेने वाले ग्राहकों के लिए आधार कार्ड जरूरी होगा या फिर उन्हें आधार वेरिफिकेशन करवाना होगा.' बयान में कहा गया कि जिन लोगों के पास आधार कार्ड नहीं है, उन्हें इसके लिए 30 नवंबर तक का वक्त दिया जा रहा है. इसके बाद आधार कार्ड के बिना एलपीजी की सब्सिडी जारी नहीं की जाएगी.

मंत्रालय के मुताबिक जब तक लोगों को आधार कार्ड उपलब्ध नहीं होता है, तब तक फोटोयुक्त बैंक पासबुक, वोटर आईडी कार्ड, राशन कार्ड, किसान क्रेडिट कार्ड या फिर आधार कार्ड की आवेदन पर्ची के आधार पर यह सब्सिडी जारी की जाएगी.

पेट्रोलियम मंत्रालय के मुताबिक यह नोटिफिकेशन असम, मेघालय और जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में एक साथ लागू कर दी गई है.

बिना चाइनीज माल के कहीं सूनी न रह जाए दिवाली!

बाजार संगठनों और राजनीतिक दलों की ओर से इस दिवाली चाइनीज सामान के बहिष्कार की लगातार उठती मांग ने थोक व्यापारियों को मुश्किल में डाल दिया है. दिवाली की चाइनीज सप्लाई लगभग पूरी हो चुकी है और अब बिक्री में किसी भी तरह की बाधा से सिर्फ स्थानीय व्यापारियों का नुकसान होगा. हालांकि मेक इन इंडिया और दूसरी स्कीमों से स्थानीय उत्पादनकर्ताओं का मनोबल बढ़ा है, लेकिन जानकारों का कहना है कि दिवाली की भारी डिमांड अभी घरेलू सप्लाइ से पूरी नहीं हो सकती.

हरियाणा सरकार के कुछ मंत्रियों के आह्वान के बाद मंगलवार को रेवाड़ी, सोनीपत और फरीदाबाद से कई ट्रेड असोसिएशंस की ओर से चाइनीज सामान की खरीद-बिक्री नहीं करने की अपील और कुछ जगहों पर चाइनीज सामान जलाने की खबरें भी आईं. पुरानी दिल्ली के कुछ बाजारों की ट्रेड असोसिएशंस भी अपने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर चाइना के खिलाफ समर्थन जुटाती दिखीं. लेकिन सीधे तौर पर चाइनीज इम्पोर्ट और होलसेल ट्रेडिंग से जुड़े कारोबारियों में इसे लेकर टेंशन देखी जा रही है.

फेडरेशन ऑफ सदर बाजार ट्रेड असोसिएशंस के वाइस चेयरमैन और इम्पोर्टर पवन कुमार ने बताया, 'दिवाली का 90 पर्सेंट चाइनीज माल डिलिवर हो चुका है. पेमेंट भी हो चुका है और कस्टम ड्यूटी भी जा चुकी है. अब किसी भी तरह की रोक से चीन का कुछ नहीं बिगड़ने वाला, जो नुकसान होगा वह भारतीय ट्रेडर्स का होगा.'

उन्होंने बताया कि देश में दिवाली गुड्स की डिमांड साल दर साल 10-15 पर्सेंट की दर से बढ़ रही है. घरेलू मैन्युफैक्चरिंग इसे पूरा नहीं कर सकती. सरकार को चाहिए कि चीन चाइनीज चीजों से घरेलू इंडस्ट्री प्रभावित हो रही है, पहले उन पर बैन लगाए और घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहन दे.

हालांकि होलसेलर्स का मानना है कि बीते कुछ सालों में दिवाली के कुछ चाइनीज उत्पादों की आवक घटती जा रही है. दिल्ली इलेक्ट्रिकल ट्रेडर्स असोसिएशन के मेंबर और चाइनीज लड़ियों के इम्पोर्टर आशीष दीवान कहते हैं, 'इस साल पटाखे और फायर प्रॉडक्ट बिल्कुल नहीं आ रहे. एलईडी लड़ियों और दीयों में सस्ते चाइनीज उत्पादों की मांग बनी हुई है. हालांकि कुछ घरेलू कंपनियां सप्लाई बढ़ा रही हैं, लेकिन वे भी कच्चा माल चाइना से ही मंगा रही हैं.'

कारोबारी मानते हैं कि चाइनीज उत्पादों के खिलाफ मुहिम भावनात्मक और महज इत्तेफाक है. उनका कहना है कि यही तनाव अगर जून-जुलाई में होता तो बहुत से इम्पोर्टर ने माल बुक नहीं कराया होता. कारोबारी कहते हैं कि प्रधानमंत्री ने भी हालिया संदेशों में स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल की बात तो कही, लेकिन चाइनीज उत्पादों का नाम तक नहीं लिया. सरकार अगर इस बारे में स्पष्ट रुख जाहिर कर दे तो घरेलू ट्रेडर भी उसी के मुताबिक अपनी तैयारी करेंगे.

जल्द ही टेनिस कोर्ट पर वापसी करेंगी शारापोवा

टेनिस स्टार मारिया शारापोवा के लिए राहत की खबर है कि 'द कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन ऑफ स्पोर्ट' (CAS) ने शारापोवा पर लगे प्रतिबंध की समयसीमा को कम कर दिया है. शारापोवा के डोप टेस्ट में पॉजिटिव पाए जाने के बाद उन दो साल का बैन लगाया गया था.

CAS ने इस बैन की अवधि को कम कर 15 महीने कर दिया है. रूस ने रसियन टेनिस फेडरेशन के अध्यक्ष शमिल तार्पीशेव के हवाले से इसकी जानकारी दी है.

अब अपने 15 महीने के बैन को पूरा करने के बाद शारापोवा अप्रैल 2017 से टेनिस के कोर्ट पर फिर से दिखाई दे सकेंगी. 29 वर्षीय शारापोवा पर इसी साल जनवरी में डोप टेस्ट में पॉजिटिव पाए जाने के बाद दो साल का बैन लगाया गया था.

उल्लेखनीय है कि शारापोवा को डोप टेस्ट से पहले पांच बार प्रतिबंधित दवा के प्रयोग को लेकर चेतावनी दी गई थी. इसके बावजूद वह डोप टेस्ट में पॉजिटिव पाई गईं. जून में शारापोवा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस बाद की जानकारी दी थी कि वह डोप टेस्ट में फेल हो गईं हैं.

स्मार्टफोन से शक को करें डिलीट

अमन के वाशरूम में घुसते ही रुचि ने उस का फोन उठा लिया और न जाने क्या खंगालने लगी. कुछ देर बाद अमन वाशरूम से निकला, तो उसने रुचि को अपने फोन के साथ छेड़छाड़ करते पकड़ लिया.

अमन: जासूसी कर रही हो मेरी.

रुचि: नहीं, यह पता लगा रही हूं कि आखिर पूरे दिन तुम किस से बात करते रहते हो.

अमन: औफिस का काम करता हूं. कहो तो छोड़ दूं नौकरी?

रुचि: नौकरी क्यों छोड़ोगे, छोड़ना है तो उस लड़की को छोड़ो.

अमन: तुम्हारे बेबुनियाद इलजामों से मैं थक चुका हूं. जब देखो तब शक करती रहती हो.

अमन रुचि का झगड़ा यहीं समाप्त नहीं हुआ. बातों से बातें निकलती गईं और रिश्ता उलझता गया. नौबत तलाक तक पहुंच गई. अमन और रुचि का किस्सा अनोखा नहीं है. ऐसे लोगों की कमी नहीं जो स्मार्टफोन पर अपने पार्टन के इनवौल्वमैंट से चिढ़ते हैं और उन की चिढ़ नफरत और शक में तबदील हो जाती है. वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनके ईगो को बहुत ठेस पहुंचती है जब उन का पार्टनर उन के मैसेजेस या चैट पढ़ लेता है. हैरानी की बात तो यह है कि ऐसे लोग आत्मसम्मन के नाम पर अपने पार्टनर को चोट तक पहुंचाने से नहीं चूकते.

पढ़े लिखे हैं ज्यादा बेवकूफ  

कुछ दिन पहले ऐसा ही बंगलूरू की सुनीता सिंह के साथ हुआ. पेशे से इंजीनियर सुनीता ने अपने पति पर चाकू से केवल इसलिए अटैक कर दिया क्योंकि वे उस के मोबाइल पर आए मैसेज को चोरी से पढ़ रहा था.

लखनऊ हाईकोर्ट में एडवोकेट राकेश त्रिपाठी इस मसले पर कहते हैं, “ बहुत आश्चर्यचकित बात है कि आज की पीढ़ी, जो ज्यादा पढ़ी लिखी और समझदार है, मात्र एक छोटे से स्मार्टफोन के चलते रिश्तों की गंभीरता और सम्मान को दरकिनार कर बेवकूफी की सारी सीमाएं पार कर रही है. जब कि स्मार्टफोन का इस्तेमाल हर तबके के लोग कर रहे हैं. मगर स्मार्टफोन ने सब से अधिक प्रभाव पढ़े लिखे वर्ग के लोगों की जिंदगी पर डाला है. सब से अधिक शक के चलते तलाक, मारपीट, मर्डर के केस इसी वर्ग के लोगों में हो रहे हैं. क्योंकि यह वर्ग अब वर्चुअल वर्ल्ड को ही एक्चुअल वर्ल्ड समझने लगा है. जब कि वास्तविक जीवन की हर जरूरत को स्मार्टफोन के जरिए पूरा नहीं किया जा सकता है. खासतौर से पतिपत्नी के रिश्ते में स्मार्टफोन का दखल गलत परिणामों को दर्शा रहा है.”

शक कर देता है  रिश्ते को खोखला 

स्मार्टफोन की उपयोगिता को नजरअंदाज  नहीं किया जा सकता. इसने मनुष्य के कई काम आसान बना दिए हैं, लेकिन दूसरी तरफ मनुष्य के सोचने के दायरे को छोटा कर दिया है. उदाहरण के तौर पर यदि कोई महिला पति के आगे अपने स्मार्टफोन में व्यस्त है तो पति को यह बात नहीं पचती. उस के मन ही मन 100 विचार कौंध जाते हैं. अतिसंवेदनशील स्थिति में पति अपनी पत्नी के चरित्र पर भी शक करने लगता है. मगर उसे यह विचार नहीं आता कि पत्नी की अपनी नीजता है. यही स्थिति महिलाओं के साथ भी है. पति का स्मार्टफोन उन्हें अपनी सौतन से के समान लगता है.

इस बाबत क्लीनिकल साइकोलौजिस्ट प्रतिष्ठा त्रिवेदी कहती हैं, “ हर पति पत्नी के संबंधों में पारदर्शिता जरूरी है लेकिन अपनी प्राइवेसी खोने के मूल्य पर नहीं. यहां समझने वाली बात यह है कि यदि पार्टनर की किसी बात से परेशानी है तो उस पर खुल कर बात की जाए ना कि उस की जासूसी कर के अपने शक को गहरा किया जाए. शक का क्या है, इस की कोई सीमा नहीं होती. यह रिश्ते को खोखला बना देता है.” इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि यदि पार्टनर कहे कि वो 10 मिनट अकेले बैठना चाहता है तो इस का मतलब यह नहीं कि उस 10 मिनट अकेले बैठ कर वो आप से कुछ छुपा रहा है. यहां उस की निजता को सम्मान देने वाली बात आती है. प्रतिष्ठा कहती हैं, “ प्राइवेसी की अलगअलग लोगों की अलगअलग परिभाषाएं हो सकती हैं. इसे शक की नजर से देखना अकलमंदी नहीं है.”

पासवर्ड शेयरिंग से नहीं बनेगी बात

मैरिटल थैरेपिस्ट एंव माई हसबैंड डजेंट लव मी एंड ही टैक्सटिंग समबडी एल्स के लेखक एंड्रियू जी मार्शल की माने तो, “स्मार्टफोन ने रिश्तों को उलझा दिया है और लोग यह भूल चुके हैं कि किसी की प्राइवेसी में किस हद तक दखल स्वीकार किया जा सकता है.”  यह बात मियां बीवी के रिश्ते में सब से अधिक लागू होती है. पुरानी मानसिकताओं के अनुसार शादी एक ऐसा बंधन है जिस में पति पत्नी को एक दूसरे से सब कुछ शेयर करना चाहिए. इस मानसिकता को अब मौर्डन कपल्स स्मार्टफोन पर भी थोपने लगे हैं. उन का मानना है कि शादी की है तो पार्टनर की हर वस्तु पर हक जताया जा सकता है.

साइकोलौजिस्ट प्रतिष्ठा कहती हैं, “हक जताने तक ठीक है मगर शक करना गलत हैं. पार्टनर की हर बात आप जान सकें यह मुमकिन नहीं क्योंकि हर घटना, जो पूरे दिन में उस के साथ घटी उस का लाइव टैलीकास्ट तो आपका पार्टनर नहीं कर सकता. मगर उस के हाइलाइट्स जरूर आप को पता चल सकते हैं. ऐसे में कुछ छूट जाए तो यह समझना की जानबूझ कर नहीं बताया और उस पर जंग छेड़ देना अकलमंदी नहीं. हो सकता है कुछ बातें आप का पार्टनर आपको समय आने पर ही बताना चाहे, ऐसे में थोड़ा समझदारी से काम लें और पार्टनर को पूरा वक्त दें. बात कैसे भी पता चल जाए इस के पीछे न पड़े. यह पार्टनर को चिड़चिड़ा बना देता है और फिर इस चिड़चिड़ाहट से बचने के लिए पार्टनर बाते छुपाने लगता है.” 

कई बार कुछ लोग अपने बेटरहाफ को इस बात के लिए मजबूर करते हैं कि वो अपने फोन का पासर्वड बता दे. कुछ स्थितियों में तो पार्टनर्स एक दूसरे को  इस डर से अपना पासवर्ड बता भी देते हैं कि शक की कोई गुंजाइश न रहे. लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या गायरेंटी है कि फोन में मौजूद सामग्री से कोई छेड़छाड़ न की गई हो. इस बाबत प्रतिष्ठा कहती हैं, “स्मार्टफोन रखने वाला हर व्यक्ति स्मार्ट होता है. उसे पता होता है कि फोन में कौन सी सामग्री रखी जाए और कौन सी डिलीट कर दी जाए. इतना ही नहीं नई तकनीक के मोबाइल में हिडेन फीचर्स भी होते हैं, जिनकी मदद से सामग्री को फोन में ही छुपाया जा सकता है. ऐसे में पासवर्ड शेयर करने से क्या फायदा.” 

कई बार ऐसा भी होता है कि पार्टनर के फोन पर कुछ ऐसी सामग्री हाथ लग है कि मन में शक पनपने लगता है. इस स्थिती को कैसे संभाला जाए? एक आम दंपति पोरस चड्ढा और उनकी पत्नी स्मिता इस सवाल का जवाब कुछ इस प्रकार देते हैं: पोरस: शक तो एक बीमारी होती है. किसी सही सामग्री को भी शक की नजर से देखा जाए तो उस में भी खामिया निकाली जा सकती हैं. इस लिए अपने साथी पर शक न करें इससे रिश्ते में दरार पड़ जाती है. यदि कोई बात परेशान कर रही हो तो हलके अंदाज में पार्टनर से पूछ लें.  स्मिता: स्मार्टफोन पर ही क्यों पार्टनर यदि चीट करना चाहे तो जरिए और भी हैं. इस लिए पार्टनर के फोन को बारबार चैक करना समय बरबाद  करने जैसा है. इससे अच्छा है कि अपना समय रिश्ते को बहतर बनाने में लगाया जाए.

तीसरे को न करें शामिल

एक  सर्वे से पता चलता है कि लोग अपने पार्टनर के फोन में विपरीत सैक्स द्वारा आए मैसेज को पढ़ने में काफी रुचि लेते हैं, जिस में महिलाओं का अनुपात पुरुषों की अपेक्षा अधिक है. इस बाबत एडवोकेट राकेश त्रिपाठी कहते हैं, “मेरे पास ज्यादातर जो केस आते हैं उनमें महिलाओं को पतियों द्वारा दूसरी औरतों से चैट करने या औरतों द्वारा भेजे गए मैसेजेस से परेशानी होती है वहीं पुरुषों को ज्यादा परेशानी पत्नी के मायके पक्ष के लोगों से अधिक बात करने में होती है. महिलाओं को डर होता है कि पति उन्हें धोखा न दें और पुरुषों को चिंता होती है कि कहीं मायके पक्ष के लोग पत्नी को बहका न दे. दरअसल पति का फोन चैक करने के बाद जब शक करने वाली सामग्री मिल जाती है तो पत्नी का दूसरा कदम मायके पक्ष को इस मसले से जोड़ना होता है. बस यहीं बात बिगड़ जाती है.”

प्रतिष्ठा कहती हैं, रिश्ते में किसी तीसरे को शामिल करना मतलब रिश्ते को बिगाड़ना है. पतिपत्नी जितना आपस में एक दूसरे को समझा सकते हैं, तीसरा व्यक्ति उसका 1 प्रतिशत भी उन्हें नहीं समझा सकता. इसलिए किसी तीसरे व्यक्ति की दखल रिश्ते को उलझा सकती है सिर्फ. अत: निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि स्मार्टफोन के इस दौर में न सिर्फ स्मार्ट बनिए बल्कि अपने पार्टनर को रिश्ते में थोड़ी स्पेस दे कर अपने अहंकार से ऊपर उठ कर अपने रिश्ते में ताउम्र गर्माहट बनाए रखें. फिर देखिये किस तरह शक की गुंजाइश ही खत्म हो जाएगी.

सैक्स, सपने और सच्चाई

डा.पौम स्पर के अनुसार, सपनों  की दुनिया आप के यथार्थ की दुनिया से एकदम अलग हो सकती है. सपने में आप औफिस में बौस के साथ सैक्स कर रहे हैं, जबकि आप उसे पसंद तक नहीं करते. डा. पौम स्पर का मानना है कि लोग अमूमन अपने पुराने साथी के साथ सैक्स के सपने देखते हैं, जबकि वे एक नए रिश्ते में बंध चुके होते हैं. यह एक आम बात है. इस में कुछ भी असामान्य नहीं है.

रवि फैंटेसी की दुनिया में जीता था. हमेशा उस के दिमाग में उथलपुथल मची रहती थी. वह काफी परेशान भी दिखता था. उस के दोस्तों ने जब उसे काफी कुरेदा, तो उस ने बताया कि उसे लगभग रोजाना ऐसा सपना आता है. ऐसे सपने देखना कोई बुरी बात नहीं है और न ही अप्राकृतिक है, लेकिन उस की परेशानी की वजह यह थी कि उसे सपने में केवल सैक्स की बातें आती थीं. आखिर क्यों? कहीं यह दिनभर फैंटेसी में रहने का नतीजा तो नहीं था?

असल में कई लोग सैक्स को ले कर काफी उतावले रहते हैं, लेकिन इसे मन में दबाए रखते हैं. इस कमी को पूरी करने के लिए वे सपनों में इस का अनुभव करते हैं. ऐसा नहीं कि सैक्सी सपनों पर केवल जवां दिलों का ही अधिकार है. मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि सभी उम्र के लोगों को सैक्सी सपने आते हैं. सैक्स से संबंधित सपने अकसर बढ़ती उम्र के साथ बढ़ जाते हैं, लेकिन इन का हमारी सैक्स लाइफ से कोई संबंध नहीं है.

मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि उम्र बढ़ने के साथसाथ रचनात्मक प्रवृत्ति वाले लोेगों को ऐसे सपने भी अधिक आते हैं. वाकई सपनों की दुनिया अजीब है, सोने के बाद हम किस दुनिया में चले जाते हैं हमें मालूम भी नहीं होता. यह दुनिया हमारे असल जीवन से कितनी भिन्न होती है और इस का हमारी जिंदगी से क्या रिश्ता है, कई बार यह सम झना मुश्किल हो जाता है.

आप जब सपने में किसी के साथ सैक्स कर रहे होते हैं और उत्तेजित हो कर जागते हैं, तब आप ने क्या कभी सोचा है कि यह एहसास कहां से आता है? क्या इन सपनों के माने कुछ और भी हो सकते हैं?

सैक्स से जुड़ा विचार भी यदि सपने में आए तो इस का भी एक अर्थ होता है. ऐसा कई लोगों के साथ होता है और काफी आम बात भी है, लेकिन यह एक ऐसा सपना है जो व्यक्ति को हैरत में डाल देता है. आप कोई डरावना या किसी की मृत्यु का सपना देखेंगे तो उसे कुछ समय बाद भुला देने में सफल हो जाएंगे, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि सैक्स से जुड़ा सपना ऐसा होता है जिसे भुलाने का विचार काफी दूर होता है. काफी देर तक तो व्यक्ति यह नहीं सम झ पाता कि उसे ऐसा सपना आया क्यों?

लोग अमूमन अपने पुराने साथी के साथ सैक्स के सपने देखते हैं जबकि वे एक नए रिश्ते में बंध चुके होते हैं. यह एक आम बात है. इस में कुछ भी असामान्य नहीं है. जब कभी आप को मदभरी हसीनाओं की रंगीनियां ख्वाबों में सराबोर कर दें, तो जागने पर शर्मसार न हों, क्योंकि यह केवल आप के रंगीन सपनों की आवारगी का नतीजा नहीं है.

मनोवैज्ञानिकों ने कुछ सपनों के कारण बताए हैं, जिन्हें जान कर आप हैरान हो जाएंगे. अगर आप सेम जैंडर के पार्टनर के साथ सैक्स का सपना देखते हैं, तो परेशान न हों. इस का यह मतलब नहीं है कि आप की बौडी या सोच में सैक्स को ले कर चेंज आ रहा है, बल्कि इस का मतलब है कि आप विश्वास से भरे व्यक्ति हैं और खुद को बहुत प्यार करते हैं. अगर आप सपने में खुद को सिर्फ एक नहीं बल्कि कई पार्टनर्स के साथ सैक्स करते हुए देखते हैं, तो यह आप की दबी हुई सैक्सुअल भावनाओं का प्रतीक है. इस का मतलब है कि आप का मन कुछ प्रयोग करने के लिए तड़प रहा है.

डा. पौम स्पर ने अपनी किताब ‘ड्रीम्स ऐंड सिंबल्स अंडरस्टैंडिंग यौर सबकौंशस डिजायर्स’ में लोगों के बिस्तर के रहस्यों का खुलासा किया है. उन के अनुसार, आप के सैक्स के सपने आप के साथी या जिसे आप बेपनाह चाहते हैं, उस से जुड़े नहीं होते हैं. जब आप सैक्स के सपने देखते हैं और उत्तेजना के साथ जागते हैं, तो इन सपनों के माने कुछ और भी हो सकते हैं. डा. पौम स्पर के अनुसार सपनों की दुनिया आप के यथार्थ की दुनिया से एकदम परे हो सकती है.

डा. पौम स्पर का मानना है कि लोग अमूमन अपने पुराने साथी के साथ सैक्स के सपने देखते हैं, जबकि वे एक नए रिश्ते में बंधे होते हैं. यह एक आम बात है. इस में कुछ भी असामान्य नहीं है.

कई बार आप खुद को किसी अजनबी के साथ बिस्तर पर देखते हैं. वह आप को अपना सा लगता है और खुशी देता है, लेकिन यह  सही नहीं है. दरअसल, इस का मतलब है कि आप को अब अपने भीतर कुछ मर्दाना क्वालिटीज लानी होंगी, जैसे, खुल कर अपनी बात रखना, स्टैंड लेना आदि. यदि आप खुद को किसी ऐसे व्यक्ति के साथ इंटिमेट होता देखें जिस से आप का रिश्ता ही कुछ और है, मसलन, आप की फ्रैंड का पति या कोई और, तो उस का यह कतई मतलब नहीं है कि आप उस की तरफ अट्रैक्ट हैं. आप सिर्फ यह जानने के लिए उतावले हैं कि वह बैड पर क्या चाहता है. साथ ही आप को भी लाइफ में किसी बेहतर इंसान की जरूरत है.

अगर आप सपने में अपनी पूर्व गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड के साथ सैक्स करते हैं तो हो सकता है पुराने प्रेमी या प्रेमिका के साथ आप की सैक्स लाइफ बहुत अच्छी रही हो. हो सकता है कि आप अपने नए साथी की तुलना पुराने साथी से न करती हों, लेकिन आप का अचेतन मन ऐसा करता है. अगर आप सिंगल हैं तो इस का मतलब है कि आप सैक्स मिस कर रहे हैं.

यदि आप सपने में अपने किसी पसंदीदा स्टार के साथ सैक्स करते हैं तो इस का सीधा मतलब है कि आप अपने पार्टनर में और भी बहुत कुछ तलाश रहे हैं. आप स्टार का लुक और सक्सैस को अपने पार्टनर की खूबियों के साथ तोलते हैं.

अगर कोई सपने में अपने पति/पत्नी या प्रेमी के साथ सैक्स करता है, तो इस के अलगअलग मतलब होते हैं या तो आप का रिलेशन काफी बेहतर है या फिर आप को अपने पार्टनर से वह सब नहीं मिल रहा जो आप चाहते हैं. सैक्सोलौजिस्ट कहते हैं कि ऐसा सपना आने पर पार्टनर से बात कर के इस का कारण जानने की कोशिश करनी चाहिए.

यदि आप ने सपने में अपने ऐक्स के साथ काफी क्रेजी रात गुजारी है, तो आप अकेले नहीं हैं, ऐसा कई लोगों के साथ होता है. अगर रीयल लाइफ में आप ऐसा कुछ नहीं कर रहे हैं, तो इस में कोई बुराई भी नहीं है. इस का मतलब यह है कि आप की मौजूदा रिलेशनशिप नीरस हो गई है और आप को उस में कुछ ऐक्साइटमैंट लाने की जरूरत है.                      

सिक्योरिटी फर्स्ट

आज के दौर में सेहत से भी बढ़ कर सुरक्षा का सवाल अहम हो गया है. रोज अखबारों की सुर्खियां असुरक्षित माहौल की ओर इंगित करती हैं. साथ ही आज का दौर गैजेट्स का है जिस से जुड़ कर जहां हम हर समय अपने परिचितों के कौंटैक्ट में रहते हैं, जरूरत पर उन्हें मदद के लिए भी बुला सकते हैं लेकिन जरूरी नहीं कि हर समय हमारे परिचित तक मैसेज पहुंचे या हम तक मदद इसलिए अपनी सुरक्षा के लिए खुद ही सजग रहना होगा.

हाल ही में युवतियों, बच्चों, वृद्धों, दिव्यांगों के लिए इस प्रकार के गैजेट्स, तकनीकी उपकरण लौंच किए गए हैं जिन से न केवल हम सुरक्षित महसूस करते हैं बल्कि घर उपयोग की भी कई चीजें इन में शामिल हैं. इन में शामिल हैं, मिर्च स्प्रे, जीपीएस वौच, शौक देती इलैक्ट्रिक टार्च, बैटरी इन्हैंसर, सीसीटीवी कैमरा, वाहन ट्रैकर आदि.

इन सुरक्षा उपकरणों का प्रदर्शन पिछले दिनों दिल्ली स्थित प्रगति मैदान में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा प्रदर्शनी 2016 में किया गया. जानिए कुछ सुरक्षा उपकरणों के बारे में.

मिर्च स्प्रे

मिर्च अपने आप में ही एक बहुत बड़ा वैपन है जो मुसीबत के समय हमें दुश्मन के शिकंजे से बाहर निकालता है. सलाह भी दी जाती है कि अगर आप किसी अनसैफ रास्ते से गुजरें या फिर डेली आप को अकेले घर लौटना पड़ता हो तो अपने पर्स या बैग में मिर्च पाउडर या मिर्च पाउडर स्प्रे आवश्यक रखें ताकि जब कोई आप को छेड़े तो तुरंत उस की आंख में स्प्रे कर आप वहां से भाग निकले.

लेकिन कभीकभी स्प्रे का आकार दुश्मन को अलर्ट कर देता है और वह वहां से भागने में सफल हो जाता है लेकिन सिक्योरिटी एक्सपो में इस बात को ध्यान रख कर एक ऐसा मिर्च स्प्रे बना कर लौंच किया गया है जिस का साइज बिलकुल इंहेलर जितना है, जिस से जब कभी भी आप बाहर निकलें तो इसे अपनी मुट्ठी में दबा कर रख सकती हैं जिस से किसी को भी आप पर शक नहीं होगा और आप हमलावर को धोखा देने में कामयाब हो जाएंगी तो हुआ न कमाल का मिर्च स्प्रे.

जो बढ़ाए बैटरी की लाइफ

अकसर हम जब भी कोई फोन या इलैक्ट्रौनिक डिवाइस खरीदते हैं तो सब से पहले हमारी नजर उस की बैटरी पर जाती है यानी हम ऐसा डिवाइस खरीदने के इच्छुक होते हैं जिस की बैटरी ज्यादा समय तक चले, लेकिन महंगा फोन खरीदने के बाद भी उस की बैटरी लाइफ ज्यादा नहीं होती है जिस से हम निराश हो जाते हैं.

लेकिन आप की इस निराशा को आशा में बदलते हुए एक स्टार्टअप कंपनी ने बैटरी लाइफ इंहैंसर पेश किया और बताया कि इस से जुड़े 2 कैबल्स को बैटरी के टर्मिनल से जोड़ना होगा. इस से बैटरी की उम्र बढ़ जाएगी. यह दावा सिर्फ कहने भर के लिए नहीं बल्कि जब आप इस का इस्तेमाल करेंगे तब आप खुद यह बात कहने के लिए मजबूर हो जाएंगे.

पल पल की फुटेज आप के मोबाइल पर

आप नहीं जानते कि आप का पड़ोस कैसा है अच्छा या बुरा. आप घर में हैं और बाहर खड़ा आप का वाहन सुरक्षि है भी या नहीं और आप यही सोचसोच कर हर समय परेशान रहते हैं, क्योंकि हर समय आप अपनी कीमती चीजों को अपनी आंखों के सामने नहीं रख पाते. ऐसे में मन में डर बना रहना स्वाभाविक है.

अब आप के इसी डर को दूर करने के लिए सिक्योरिटी एक्सपो में एक ऐसा वन कैमरा सीसीटी कैमरा दिखाया गया है जो आप के घर पर न होने पर भी वहां की पलपल की खबर यानी लाइव फुटेज आप के मोबाइल पर भेजता रहेगा. इस की खासीयत यह है कि यह कैमरा इंटरनैट और बिना इंटरनैट दोनों के काम कर सकता है.

चाबी का छल्ला बड़े काम का

कीरिंग जिसे कि हम चाबी रखने के काम में उपयोग में लाते हैं या फिर कभीकभी अपने फ्रैंड को उस का नाम लिखा की रिंग भी गिफ्ट कर के हरदम उस के दिल के करीब रहना चाहते हैं.

अभी तक आप सिर्फ की रिंग के एक ही उद्देश्य से परिचित होंगे लेकिन आप को बता दें कि सिक्योरिटी एक्सपो जिस का उद्देश्य नए सुरक्षा उपकरणों से परिचित कराना हैमें एक ऐसा की रिंग दर्शाया गया जिसे देख सभी हैरान रह गए क्योंकि भले ही यह दिखने में की रिंग जैसा था लेकिन इस का काम बड़ा निराला है यानी जब भी आप मुसीबत में हो तो इस की रिंग में ले बटन को दबा अनी सुरक्षा खुद कर सकती हैं. क्योंकि इस को दबाने पर इस में से एंबुलैंस और पुलिस की ध्वनि सुनाई देगी, जिसे सुनते ही आसपास के लोग आप की सुरक्षा के लिए मिनटों में हाजिर हो जाएंगे. तो हुआ न कीरिंग आप का बौडी गार्ड.

जीपीएस आधारित बौय/ट्रैकर

जहां आजकल स्मार्ट वौचेज का जमाना है वहीं इन स्मार्ट वौचेज की और स्मार्ट बना रहा है इन में लगा जीपीएस सिस्टम. जो रिस्ट को गुड लुक देने के साथसाथ आप की सिक्योरिटी भी पूरी करता है. क्योंकि इस में ग्लोबल पोजिशिनिंग सिस्टम जो है.

इस बार एक्सपो में बच्चों को सुरक्षा देने के लिए जीपीएस वौच और महिलाओं के लिए ट्रैकर पेश किया गया, जो मोबाइल छिन जाने की स्थिति में भी वर्क करेगा और आप की करंट लोकेशन क्या है इस की जानकारी आप के परिचितों तक पहुंचाता रहेगा.

इस तरह इस बार सिक्योरिटी एक्सपो में पेश किए गए उपकरण महिलाओं, बच्चों आदि की सुरक्षा के लिए काफी मददगार साबित होंगे.

कोटा: छात्रों की आत्महत्याओं का जिम्मेदार कौन

देश में कोटा वर्तमान का ऐजुकेशन हब है जहां देशभर के नौनिहाल प्रतियोगी परीक्षाओं की कोचिंग लेने आते हैं, लेकिन यहां पहुंच कर उन्हें ऐसी अनेक परेशानियों को झेलना पड़ता है जिन्हें झेलते हुए उन की कमर टूट जाती है और हार कर उन्हें मौत को गले लगाना पड़ता है. जी हां, पिछले कुछ वर्षों से तो कुछ ऐसा ही हो रहा है.

यहां दी जा रही कुछ घटनाएं तो युवाओं द्वारा की जा रही आत्महत्या की महज बानगी हैं असलियत तो कुछ और ही है. आंकड़ों पर नजर डालें तो कोई भी वर्ष ऐसा नहीं गया जब यहां तैयारी करने आए युवाओं द्वारा आत्महत्या की घटनाएं न हुई हों.

4 दिसंबर, 2015 : गाजियाबाद की रहने वाली 17 वर्षीय सताक्षी गुप्ता, 6 वर्ष से यहां चाची के घर पर रह कर पढ़ाई के साथ प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही थी. एक दिन सताक्षी ने पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली. पुलिस को कोई सुसाइड नोट नहीं मिला, लेकिन संदेह जताया गया कि पढ़ाई के दबाव के कारण उस ने यह कदम उठाया.

3 दिसंबर, 2015 : 19 वर्षीय मैडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहे वरुण जिंगर ने किराए के मकान में फांसी लगा ली. सुसाइड नोट में उस ने लिखा कि खुद की गलतियों के कारण वह यह कदम उठा रहा है. वह कौन सी गलती थी, इस का कहीं कोई जिक्र नहीं है. पुलिस का मानना है कि पढ़ाई का दबाव बड़ा कारण था.

1 नवंबर, 2015 : 18 वर्षीय अंजलि आनंद 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद 2014 में कोटा आ गई. एसीपीएमटी क्रैक करने के लिए उस ने 1 साल की पढ़ाई ड्रौप की, लेकिन एक दिन फांसी लगा कर अपनी इहलीला समाप्त कर ली. उस ने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि अपनी मौत के लिए वह खुद जिम्मेदार है.

28 अक्तूबर, 2015 : इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहे 17 वर्षीय विकास ने फांसी पर लटक कर खुदकुशी कर ली. उस के सुसाइड नोट में जिक्र है कि उस का रुझान इतिहास और कला में था, लेकिन मम्मीपापा की इच्छा थी कि वह इंजीनियर बने.

कई मामलों में पुलिस मोबाइल कौल की छानबीन नहीं करती. कुछ कोचिंग इंस्टिट्यूट के अधिकारियों का मानना है कि पुलिस केवल खानापूर्ति करती है. जब तक पुलिस हर केस की तह तक नहीं पहुंचेगी, तब तक असलियत का पता नहीं लगेगा. कुछ सामाजिक संगठनों ने बताया कि एक छात्र 5 से 7 घंटे कोचिंग संस्थान में बिताता है, बाकी समय वह बाहर रहता है.

उसे अकेलापन, बीमारी, पोषक तत्त्वों की कमी, परिवार का दबाव, आर्थिक तंगी, आजादी, रोकटोक जैसे कई कारक खुदकुशी के लिए प्रेरित कर सकते हैं. कई छात्र बेहिसाब खर्च करते हैं और कर्ज में डूब जाते हैं. कुछ का विपरीत सैक्स के साथ याराना हो जाता है. ये सब बहुत आसान है क्योंकि छात्र अकेला रहता है.

लगातार बढ़ती आत्महत्याओं को ले कर चिंतित राजस्थान सरकार ने एक ड्राफ्ट बनाने का मन बनाया है, क्योंकि राजस्थान में भी छात्रों द्वारा इस तरह की आत्महत्या करने की घटनाएं अकसर होती रहती हैं. इस कमेटी में कोचिंग संस्थान के संचालक भी शामिल होंगे.

ड्राफ्ट में निम्न बिंदुओं पर ध्यान दिया जाएगा :

–       फीस में अंतर को कम किया जाए.

–       ऐडमिशन के दौरान छात्र और अभिभावक दोनों की काउंसिलिंग हो.

–       फैकल्टी की भी काउंसलिंग हो. फैकल्टी को तनावमुक्त बनाने के लिए प्रेरित किया जाए.

–       एक बैच में छात्रों की संख्या सीमित की जाए.

कोचिंग संस्थानों की फीस और सालाना खर्च डेढ़ से 2 लाख रुपए तक होता है. ऐसे में अभिभावकों को काफी मुश्किलें होती हैं. छात्र पर भी काफी दबाव रहता है. कई पेरैंट्स तो बारबार महंगी फीस, रहनेखाने पर भारी खर्च के बारे में अकसर अपने बच्चों को जताते रहते हैं. ऐसे में छात्रों में हताशा और तनाव व्याप्त होना लाजिमी है.

मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई बैठक में नियंत्रण के लिए राज्य स्तर पर नियम बनाने को ले कर आम सहमति बनी है. बैठक में कहा गया कि बच्चों में बढ़ते तनाव के लिए किसी एक को जिम्मेदार ठहराना सही नहीं है.

उधर, कोटा के एसपी सवाई सिंह ने बताया कि लगभग सभी आत्महत्याएं फंदे से लटक कर की गई हैं.

जो भी आत्महत्या के मामले सामने आए, उन में 10% मामले प्रेम प्रसंग से जुड़े थे, अन्य सभी मामले पढ़ाई को ले कर उपजे तनाव से जुड़े थे. एक कोचिंग सैंटर संचालक ने बताया कि बच्चे हमारे पास तो केवल 4 से 5 घंटे रहते हैं. बाकी समय तो वे बाहर ही होते हैं. आत्महत्या के पीछे और भी कई कारण हो सकते हैं.

इन प्रावधानों पर चर्चा

–       क्लास में छात्रों की संख्या कम की जाए.

–       अभिभावकों की भी काउंसिलिंग हो.

–       कैरियर काउंसिलिंग की जाए. प्रवेश परीक्षाओं में कटऔफ की वास्तविक स्थिति बताई जाए.

–       हर रविवार को साप्ताहिक अवकाश अनिवार्य हो. ऐक्स्ट्रा क्लास या टैस्ट जैसी ऐक्टिविटीज न हों.

–       अनुपस्थित रहने वाले विद्यार्थियों पर निगरानी रखी जाएगी.

–       विद्यार्थियों की आयुवर्ग के हिसाब से मनोरंजक एवं मोटिवेशनल गतिविधियों का भी समावेश किया जाएगा.

पेरैंट्स की अपेक्षाएं

हर पेरैंट्स की अपने बच्चों से काफी अपेक्षाएं रहती हैं. इसलिए वे बच्चों को आईआईटी और मैडिकल परीक्षा क्रैक करने के लिए हर साल कोटा भेजते हैं. जहां इन से मोटी फीस वसूली जाती है और रहनेखाने का भी काफी खर्च आता है. इस के बावजूद यदि स्टूडैंट्स को हाथ कुछ आता नहीं दिखता तो उन के सामने आत्महत्या के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता. मांबाप अपनी दमित इच्छा को बच्चों के जरिए पूरी कराना चाहते हैं, जो उन की बड़ी भूल है.

बच्चों की इच्छा को जाने बिना उन्हें कठिन प्रतिस्पर्द्धा के लिए जबरदस्ती भेजना कतई न्यायोचित नहीं है. 12वीं तक साथ रहने के बाद बच्चों को एकदम अलगथलग रह कर अकेले समय बिताना कठिन हो जाता है.

उन के खाने के स्तर में निरंतर गिरावट, तंग कमरे और घुटन भरे माहौल में गुजारा करना वाकई चुनौती भरा  है.

शुरुआती दौर में कोटा में चुनिंदा कोचिंग संस्थान थे, जहां कमरे बड़े और आरामदायक मिल जाते थे. सस्ते में अच्छा खाना मिल जाता था, लेकिन आज कोटा में पांव रखने की जगह नहीं है. ऐसे माहौल में युवा घुटन महसूस करते हैं और जिंदगी से बेजार हो कर मौत को गले लगा लेते हैं.

पेरैंट्स को अपने बच्चों से उतनी ही अपेक्षाएं रखनी चाहिए जितनी वे आसानी से पूरी कर सकें. पढ़ाई का प्रैशर न ही बनाएं तो बेहतर है.

युवा होने के कारण विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण भी स्वाभाविक है. ऐसे में बिना मार्गदर्शन के यहां रह रहे छात्रछात्राओं को गलत राह पर जाने में भी देर नहीं लगती. कोचिंग संस्थानों को केवल क्लास में अनुशासन कायम रखने और फीस से मतलब होता है तो लौज मालिक को केवल अपने किराए से. इस विषम परिस्थिति में लाखों युवा दिशाहीनता का शिकार हो रहे हैं.           

प्रशासनिक बैठक में किए गए मुख्य निर्णय

–       ऐग्जिट पौलिसी के तहत छात्र जब चाहें कोचिंग की पढ़ाई छोड़ सकते हैं. ऐसे में जितने समय उन्होंने पढ़ाई की है, उन से उतना ही शुल्क लिया जाए.

– प्रदेश में कोचिंग के लिए रैगुलेटरी सिस्टम बनाया जाएगा.

– तनावमुक्ति के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाएं.

– हर कोचिंग संस्थान में 24 घंटे चालू रहने वाली हैल्पलाइ

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