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कार्टूनिस्ट सुखवंत कलसी का ‘चाचा भतीजा’

इन दिनों टीवी पर बच्चों के लिए प्रसारित हो रही एनीमेशन फिल्में व एनीमेशन सीरीज काफी लोकप्रियता बटोर रही हैं. जब से धीरज बेरी निर्देशित व केतन मेहता की कंपनी द्वारा निर्मित बाल एनीमेशन सीरीज ‘‘मोटू पतलू’’ ने सफलता के नए रिकार्ड कायम किए हैं, तब से इस तरह के विषयों पर कई एनीमेशन सीरीज बन रही हैं. इसी के चलते इन दिनों ‘हंगामा टीवी’ पर प्राइम टाइम स्लाट दोपहर ढाई बजे मशहूर कार्टूनिस्ट सुखवंत कलसी लिखित व धीरज बेरी निर्देशित बाल सुपर हीरो वाली एनीमेशन सीरीज ‘‘बुरे काम का बुरा नतीजा क्यों भई चाचा हां भतीजा’’ के नाम से प्रसारित हो रहा है, जिसे लोग ‘चाचा भतीजा’ भी कह रहे हैं.

एनीमेशन सीरीज ‘‘बुरे काम का बुरा नतीजा क्यों भई चाचा हां भतीजा’’ के लेखक सुप्रसिद्ध कार्टूनिस्ट व टीवी के ‘मूवर्स एंड शेकर्स’, ‘जानी आला रे’, ‘कामेडी नाइट्स विथ कपिल’, ‘राजू हाजिर हो’, ‘नानसेंस अनलिमिटेड’, ‘फंजाबी चक दे’, ‘लाफ्टर चैलेंज’ और ‘कामेडी सर्कस’ सहित कई बडे़ कामेडी सीरियलों के लेखक सुखवंत कलसी हैं. सुखवंत कलसी ने 34 साल पहले एक एक्शन कामिक हीरो की रचना की थी और वह कामिक हीरो सीक्रेट एजेंट 005 जूनियर जेम्स बान्ड अपने चाचू बलवंत राय चौधरी के साथ मिलकर अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचाता है.

हास्य सीरियल लिखते लिखते बच्चों के लिए एनीमेशन सीरीज की तरफ मुड़ने के सवाल पर सुखवंत कलसी कहते हैं-‘‘मैं बच्चों की एक लोकप्रिय पत्रिका का करीब तीस साल से संपादन कर रहा हूं. बच्चों के साथ मेरा काफी करीबी रिश्ता रहा है. इसीलिए अब मैं टेलीवीजन पर बच्चों के लिए काम कर रहा हूं.’’

आगे की योजना की चर्चा करते हुए सुखवंत कलसी ने कहा- ‘‘करीब तीस वर्षों से मूर्खिस्तान कार्टून सीरीज प्रिंट मीडिया के अलावा सोशल मीडिया पर भी काफी पापुलर है. वाट्स्एप्प के जरिए मैं अपने दोस्तों के साथ साथ बालीवुड के कई बडे़ दिग्गजों को मूर्खिस्तान का एक कार्टून डेली पोस्ट करता हूं, जो कि काफी सराहा जाता है. 2017 में मूर्खिस्तान की भी एनीमेशन सीरीज शुरू हो जाएगी. इसके अलावा दो हास्य व रोमांचक फिल्में लिख रहा हूं.’’

हिन्दुत्व का डंका बजाता सर्जिकल एनकाउंटर

आम लोगों ने सरकार को क्लीन चिट यह कहते हुये दे दी है कि अगर यह असली एनकाउंटर था तो पुलिस को सौ और अगर फर्जी था तो दो सौ सेल्यूट, क्योंकि आतंकवादी तो असली थे. भोपाल की सेंट्रल जेल से दिवाली की देर रात कोई 2-3 बजे सिमी के 8 कैदी फिल्मी स्टाइल में फरार हुये थे और जाते जाते एक हवलदार रमाशंकर यादव की हत्या कर गए थे. इसके बाद बड़े नाटकीय तरीके से पुलिस वालों ने महज 8 घंटे बाद आठों संदिग्ध कैदियों या आतंकियों को इंटखेड़ी गांव मे हुई मुठभेड़ में मार गिराया.

कहानी यहां खत्म नहीं हुई, बल्कि यहां से शुरू हुई, जब कांग्रेस ने इस एनकाउंटर और कैदियों के यूं इतमीनान से फरार होने पर सवाल दागना शुरू कर दिये कि कैदियों के पास हथियार कहां से आए, उन्हे नए कपड़े किसने मुहैया कराये, उन्हे जूते किसने दिलाये, ऐसे कई सवाल जो जेल महकमे में पसरी घूसखोरी और लापरवाही को उजागर करते हुये थे, का जबाब भाजपा ने यह कहते दिया कि इस पर राजनीति न की जाये. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो ऐसी राजनीति पर लानत दे डाली जो शहादत का सम्मान न करे.

वैसे भी घटना के 24 घंटे बाद माहौल अपने पक्ष मे देख वे उत्साहित थे कि लोगों ने मुद्दे की बात को ज्यादा तूल नहीं दिया और मामला जैसा कि वे और भगवा खेमा चाहता था अघोषित रूप से देश प्रेम और राष्ट्र भक्ति की आड़ में हिन्दुत्व में सिमट कर रह गया. इसलिए ताबड़तोड़ तरीके से इस एनकाउंटर को अंजाम देने बाली पुलिस टीम पर नगद इनाम की बौछार कर दी गई. शहीद के खिताब से नवाज दिये गए मृत हवलदार को दौगुनी श्रद्धा निधि दी गई, तो उसका बेटा चुप हो गया जो एक दिन पहले तक कह रहा था कि जेल में पैसे लेकर ड्यूटियां लगाई और रद्द की जाती हैं.

रहे सहे सवालों और संदेहों के बाबत जांच की ज़िम्मेदारी एनआईए को सौंप दी गई. जेल के कुछ मुलाज़िम और अफसर तो घटना के तुरंत बाद बर्खास्त किए ही जा चुके थे. अब सब कुछ ठीक ठाक और नियंत्रण में है, क्योंकि अब ऐसा कोई वीडियो वायरल नहीं हो रहा है, जिससे यह लगे  कि यह मुठभेड़ पूर्व नियोजित या फर्जी थी. ऐसे वायरल हुये वीडियो, जो पुलिस का सहयोग करने वाले गांव वालों ने शौकिया तौर पर बना डाले थे, गायब हो चले हैं और गुणगान पुलिस वालों का हो रहा है . साफ दिख रहा है कि भोपाल के इस संदिग्ध एनकाउंटर का हश्र भी व्यापम घोटाले जैसा होने के इंतजाम कर दिये गए हैं, जिसके तमाम बड़े आरोपी सीबीआई जांच के दौरान जमानत पर बाहर आए और ठाट से गुजर कर रहे हैं. साफ यह भी दिख रहा है कि केंद्रीय जांच एजेंसियां राज्य सरकार की मदद के लिए नियुक्त की जाती हैं.

कांग्रेस प्रभावी तरीके से इस मुठभेड़ के बाबत सवाल नहीं उठा पाई तो उत्तर प्रदेश से बसपा प्रमुख मायावती को कहना पड़ा कि कहीं  पुलिस का दुरुपयोग तो मनमाने तरीके से नहीं हो रहा, मुस्लिम वोटों को अपने पाले में लाने की जुगत में लगी मायावती को इस बयान से कितना नफा होगा, यह तो आने वाले वक्त मे पता चलेगा, लेकिन भाजपा को हिंदुओं का अपार समर्थन मिल रहा है, जो यूपी विधान सभा चुनाव में मुद्दों के टोटों से जूझ रही है. लोग उत्तेजित और आंदोलित हैं कि मुस्लिम आतंकियों का सफाया हो रहा है, कैसे और क्यों हो रहा है इससे उन्हे सरोकार नहीं यानि माहौल ऐसा बनाया जा चुका है कि राष्ट्र भक्ति और देश प्रेम अब धर्म का दूसरा नाम हो गयें हैं, जो इस बाबत सवाल करे वह गद्दार है देशद्रोही हैं, इसलिए मत पुछो कि जो हुआ वो लौकतान्त्रिक था या नहीं, विधि सम्मत था या नहीं. रही बात भोपाल के इस सर्जिकल एनकाउंटर की, तो जेल के गद्दारों पर खामोशी औढ़ना लोगों की मजबूरी हो गई है. सिर्फ देशभक्ति जताने इसे असली मानते कोई सवाल न पूछना या दलील न देने की गलती की सजा भुगतने के लिए लोगों को तैयार रहना चाहिए.

जिसकी पार्टी, वही अध्यक्ष

राजनीतिक दल देश में लोकतंत्र स्थापना की लड़ाई लड़ने और अंतिम आदमी को उसका हक दिलाने की बात करते हैं. सही मायनों में खुद राजनीतिक दलों में लोकतंत्र नहीं है. छोटी बड़ी हर पार्टी एक ही राह पर चल रही है. इस वजह से कोई इस बात के खिलाफ नहीं खड़ा हो रहा. पहले कांग्रेस इस बीमारी की शिकार थी धीरे धीरे सभी दल इस राह पर चल पड़े. क्षेत्रिय दलों के आने के बाद तो यह बीमारी पूरी तरह से महामारी का रूप ले चुकी है. पार्टी संविधान कानून के मुताबिक पार्टी अध्यक्ष का चुनाव करना मजबूरी होती है, इसलिये पार्टी अध्यक्ष के चुनाव का दिखावा किया खानापूर्ति भर के लिये किया जाता है. सच बात है कि राजनीति में जिसकी पार्टी वही अध्यक्ष का फार्मूला चल रहा है.

कांग्रेस में जिस समय परिवार के लोग अध्यक्ष होते थे सभी दल उस पर परिवारवाद का आरोप लगाते थे. अब सारे दल उसी राह पर है. सालों साल से पार्टी संस्थापक ही पार्टी का अध्यक्ष होने लगा है. समय समय पर उसे अध्यक्ष चुने जाने की घोषणा करके जनता को यह दिखाया जाता है कि उनकी पार्टी में लोकतंत्र है. ताजा समाचार राष्ट्रीय लोकदल से आया है. जहां पर पार्टी के प्रमुख चौधरी अजीत सिंह को सातवी बार राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया है. लोकदल अकेला उदाहरण नहीं है. समाजवादी पाटी में मुलायम सिंह यादव अध्यक्ष हैं. बहुजन समाज पार्टी में मायावती अध्यक्ष हैं. राष्ट्रीय जनता दल में लालू प्रसाद यादव अध्यक्ष हैं. इस परिपाटी की जनक कांग्रेस में सोनिया गांधी के बाद उनके पुत्र राहुल गांधी अध्यक्ष की लाइन में खडे हैं.

नेशनल कांफ्रेंस, राष्ट्रवादी कांग्रेस, शिवसेना जैसे बहुत सारे दल उदाहरण हैं. किसी दल में अध्यक्ष का चुनाव नहीं होता. इसकी वजह से दलों में आंतरिक लोकतंत्र खत्म होता जा रहा है. कम्यूनिस्ट पार्टियां में इस बीमारी को दूर रखा गया है पर वहां अब नये नेता का उदय नहीं हो रहा. भारतीय जनता पार्टी इस बात का दिखावा करती है कि वहां सगठन में आंतरिक लोकतंत्र है. सच्चाई यह है कि सालों साल के किसी अध्यक्ष का चुनाव मतदाता पेटी के जरीये नहीं हुआ है. वहां भी आपसी सहमति के नाम पर लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है. राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की बात हो या उत्तर प्रदेश अध्यक्ष केशव मौर्य की सभी उपर से थोपे गये नेता हैं.

असल में अब राजनीति सेवा का जरीया नहीं रही. ऐसे में हर कोई उसको अपने पूरे कब्जे में रखना चाहता है. यह शुरुआत कांग्रेस से हुई जहां पर इंदिरा गांधी अपने मन से लोगों का चयन करती थी. अब पार्टी अध्यक्ष ही नहीं पार्टी के मुख्यमंत्री तक के लिये विधायकों की राय नहीं ली जाती. पार्टी अध्यक्ष विधायकों को अपनी बात मनवा लेता है. अब पार्टियां जनता के सहयोग या चंदे से नहीं चलती. इनको चलाने में किसी कंपनी की तरह इनवेस्टमेंट करना पडता है. पार्टी संस्थापक अपने जोर और प्रभाव से इंवेस्टमेंट करता है. ऐसे में वह किसी भी तरह से पार्टी को अपने ही प्रभाव में रखना पसद करता है.       

एप्स बार-बार हो रही हैं क्रैश, ऐसे निपटें

क्या आपको कभी स्मार्टफोन में एप्स न चलने की परेशानी का सामना करना पड़ा है. अगर हां तो हम लेकर आए हैं ऐसे टिप्स जो आपको इन समस्याओं से आपको निजात दिला सकते हैं. कई बार ऐसा होता है कि व्हाट्सएप के नोटिफिकेशन टाइम से नहीं आते, फोटोज डिलीट हो जाती हैं, वीडियोज नहीं चलते ऐसी ही कुछ परेशानियों की वजह होती है सेटिंग्स बिगड़ जाना. हम आपको ऐसी सेटिंग्स के बारे में बताएंगे जिनके बिगड़ जाने पर सोशल मीडिया एप्स या कोई भी कॉमन एप बंद हो सकती है.

बैकग्राउंड डाटा ऑफ कर देना

इंटरनेट से चलने वाली एप्स को ऑफ करना सबसे बड़ी गलती होती है. अगर आप व्हाट्सएप यूज कर रहे हैं और आपने फोन का बैकग्राउंड डाटा बंद कर दिया है तो न तो व्हाट्सएप के मैसेज आएंगे और न ही नोटिफिकेशन्स.

कैसे करें ठीक?

1. इसके लिए सेटिंग्स में जाएं फिर Data Usage पर क्लिक करें और व्हाट्सएप पर टैप करें.

2. यहां से Restrict Background Data को अनचेक कर दें.

3. इसके अलावा अगर ये पहले से ही अनचेक है तो सेटिंग्स में जाकर Application settings पर क्लिक करें और फिर व्हाट्सएप पर जाकर Show Notifications को चेक कर दें.

4. ये तरीका फेसबुक के साथ भी अपनाया जा सकता है.

गलती से Disable हो गया एप

अगर आपने किसी भी एप को गलती से डिसेबल कर दिया है तो इसके लिए:

सबसे पहले सेटिंग्स पर जाएं फिर Application Manager पर क्लिक करें. उदाहरण के तौर पर अगर फेसबुक काम नहीं कर रहा है तो: अब फेसबुक एप के ऑप्शन पर टैप करें. यहां आपको अगर Enable app का ऑप्शन मिले तो उसे क्लिक कर दें.

Clear Data को गलती से कर दिया है सेलेक्ट

ध्यान रहे की अगर आप अपनी फोटोज और वीडियोज को डिलीट नहीं करना चाहते तो Clear Data ऑप्शन पर कभी क्लिक ना करें. अगर फिर भी आपने इस पर क्लिक कर दिया है और आपके सभी फोटो और वीडियो डिलीट हो गए हैं तो व्हाट्सएप या किसी भी एप (जिसपर Clear Data ऑप्शन सेलेक्ट किया था) को रीइंस्टॉल करना होगा. इसके बाद बैकअप डाटा पर क्लिक कर दें आपका डाटा वापस आ जाएगा.

अपडेट्स अनइंस्टॉल कर दिया तो

अगर आपने किसी एप की अपडेट बंद कर दी है तो आपके पास नोटिफिकेशन आना बंद हो जाती हैं. इसके लिए आप गूगल प्ले स्टोर में जाएं. वहां, सेटिंग्स में जाकर एप अपडेट्स को चेक करें. अगर आपकी एप पर अपडेट आ गया है तो उसपर क्लिक कर दें.

SBI ने दिया सस्ते होम लोन का तोहफा

स्‍टेट बैंक ऑफ इंडि‍या (एसबीआई) ने होम लोन की ब्‍याज दरों को कम कर दि‍या है. एसबीआई की होम लोन की दर घटाकर 9.1-9.15 फीसदी की दी गई है. यह ब्‍याज दर 6 साल के नि‍चले लेवल पर पहुंच गई है. एसबीआई ने ब्‍याज दरों में 0.15 फीसदी की कमी की है. रि‍जर्व बैंक ऑफ इंडि‍या (आरबीआई) की ओर से ब्‍याज दरों को कम करने के बाद यह कदम उठाया गया है.

अब कि‍तनी हो जाएगी ब्‍याज दरें 

– नई ब्याज दरों के तहत एसबीआई का एक साल केे एमसीएलआर की दर 8.90 फीसदी हो जाएगी.

– महि‍लाओं के लि‍ए यह ब्‍याज दर 9.01 फीसदी कर दी गई है.

– बाकी सभी कस्‍टमर्स के लि‍ए यह ब्‍याज दर 9.15 फीसदी कर दी गई है.

– वहीं, एसबीआई ने ओवरनाइट एमसीएलआर को 8.65 फीसदी रखा है जबकि‍ एक माह के लि‍ए यह रेट 8.75 फीसदी है.

आईसीआईसीआई भी घटा चुका है रेट

– आईसीआईसीआई बैंक ने सभी अवधि‍ वाले एमसीएलआर आधारि‍त मार्जि‍न कॉस्‍ट ऑफ फंड्स में कमी की है.

– बैंक ने ब्‍याज दर में 0.10 फीसदी की कटौती की है.

– आईसीआईसीआई बैंक की यह दर 8.95 फीसदी होगी.

लगातार दबाव के बाद ब्‍याज दर में कटौती

– रि‍जर्व बैंक ऑफ इंडि‍या (आरबीआई) की ओर से बैंकों पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है.

– रेग्‍युलेटर की ओर से लोगों को ब्‍याज दरों में कटौती का फायदा नहीं पहुंचा रहे हैं.

– इसके अलावा, फाइनेंशि‍यल ईयर की दूसरी छमाही में ‘व्‍यस्‍त सीजन’ से पहले लोन की डि‍मांड बढ़ने वाली है. इसे देखते हुए बैंकों ने यह कदम उठाया है.

एंड्रायड यूजर ऐसे पाएं बेहतर अनुभव

एंड्रायड, एक ऐसा ओएस है जिस पर देश-दुनिया के करोड़ो लोग हर समय लगे रहते हैं. यूजर फ्रैंडली होने की वजह से यह ऑपरेट करने में लोगों को काफी आसान लगता है. लेकिन हर यूजर को इसके सिर्फ कुछेक फीचर्स के बारे में ही पता होता है. अगर आप एंड्रायड के हर फीचर को जान जाएं तो आपको यह और खास लगने लगेगा.

एंड्रायड को कुछ स्‍पेशल टच की मदद से आसानी से आपॅरेट किया जा सकता है. बस आपको टाईमिंग और कहां टच करना है, इसके बारे में सही जानकारी होनी चाहिए.  

एप की सेटिंग में जाने के लिए

अगर आप किसी एप की सेटिंग में जाना चाहते हैं तो पूरी प्रक्रिया करने की जरूरत नहीं है. आप सिर्फ उसी एप पर देर तक अपनी फिंगर को टैप किए रहें. एप की सेटिंग अपने आप खुलकर सामने आ जाएगी.

शब्‍द पर डबल टैप से पाएं शॉर्टकट

जब से एंड्रायड में मार्शमैलो आया है, काफी सारे अपग्रेडेशन आ गए हैं. अगर आप किसी शब्‍द पर डबल टैप करें तो कॉपी पेस्‍ट का फंक्‍शन खुलकर सामने आ जाता था, लेकिन अब किसी शब्‍द पर डबल टैप करने से तीन वर्टिकल डॉट वाला मेन्‍यू बटन सामने आता है जिसमें कॉपी और शेयर की विकल्‍प होता है. यह मेन्‍यू बटन, आपको उस शब्‍द को वेब पर सर्च करने, ट्रांसलेट करने और गूगल एसिस्‍टेंट में भी मदद करता है. आप इसे बिना स्‍क्रीन को छोड़े हुए भी कर सकते हैं.

किसी भी स्‍क्रीन पर जूम इन

कई एप आपको किसी भी स्‍क्रीन पर दो अंगुलियों को रखकर जूम इन करने की सुविधा प्रदान करती हैं. हालांकि, सारी एप ये सुविधा नहीं देती हैं. पर अगर आप एंड्रायड यूजर हैं तो इस प्रक्रिया को फॉलो करें – Settings > Accessibility > Magnification gestures, इसके माध्‍यम से आप किसी भी स्‍क्रीन को मैग्‍नी‍फाई कर सकते हैं.

गूगल कीबोर्ड को छोटा करना

अगर आपको ऐसा लगता है कि आपको स्‍क्रीन पर बहुत बड़ा गूगल कीबोर्ड नहीं चाहिए तो आप इसके एंटर बटन पर प्रेस करें, ऐसा कुछ सेकेंड के लिए करना होगा. आपके सामने कीबोर्ड के लिए नए विकल्‍प खुलकर आ जाएंगे.

होम स्‍क्रीन से एप डिलीट करना

अगर आप किसी एप को डिलीट या अनइंस्‍टॉल करना चाहते हैं तो होमस्‍क्रीन पर उस एप के आईकन पर लॉन्‍ग प्रेस करें और आपके सामने अनइंस्‍टॉल का ऑप्‍शन आ जाएगा, उस पर ले जाएं. एप रिमूव हो जाएगी.

रिटायरमेंट से पहले हो जाएगा PF का हिसाब

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ने कहा कि अब मृत्यु संबंधी दावे महज 7 दिन के भीतर ही निपटाए जाएंगे. ईपीएफओ ने फील्ड में काम करने वाले अपने अधिकारियों को मृत्यु संबंधी क्लेम को सात दिन के अंतर निपटाने के बारे में दिशानिर्देश जारी कर दिए हैं. इसी तरह सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों का हिसाब सेवा पूरी होने से पहले ही तय करने को कहा गया है.

श्रम मंत्रालय ने एक नोटीफिकेशन में बताया कि मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने पीएम नरेंद्र मोदी की ओर से 26 अक्तूबर को हुई बैठक में दिए गए दिशानिर्देशों पर की गई कार्रवाई की समीक्षा की है. इसमें केंद्रीय भविष्य निधि कोष आयुक्त ने मंत्री को बताया कि प्रधानमंत्री के निर्देश पर ईपीएफओ ने सेवानिवृत्ति और मृत्यु संबंधी दावों के निपटान के बारे में विस्तृत दिशानिर्देश जारी कर दिए हैं. सोशल मीडिया पर की जाने वाली पीएफ से जुड़ी शिकायतों के निपटाने पर भी पूरा ध्यान दिया जाएगा.

सर्वाधिक गोल करने वाले क्लोस ने लिया संन्यास

जर्मनी के स्टार फुटबॉलर और विश्व कप में सर्वकालिक सर्वाधिक गोल करने वाले मिरोस्लाव क्लोस ने संन्यास लेने की घोषणा कर दी. जर्मनी की तरफ से 137 अंतरराष्ट्रीय मैचों में सर्वाधिक 71 गोल करने वाले क्लोस पिछले सीजन में लाजियो के साथ अनुबंध समाप्त होने के बाद किसी क्लब से नहीं जुड़ पाए थे. अब वह राष्ट्रीय टीम के कोचिंग स्टाफ से जुड़ेंगे.

38 साल के क्लोस ने दो साल पहले मेजबान ब्राजील के खिलाफ सेमीफाइनल में जर्मनी की 7-1 से जीत के दौरान विश्व कप में रिकार्ड 16वां गोल किया था. उन्होंने ब्राजील के स्टार रोनाल्डो का रिकॉर्ड तोड़ा था. जर्मनी ने तब खिताब भी जीता था.

अब क्लोस की योजना जर्मनी के कोचिंग स्टाफ से जुड़ने की है. इसके लिये मुख्य कोच जोचिम लोउ ने उनके सामने पेशकश की थी. जर्मन फुटबॉल संघ (डीएफबी) के बयान के अनुसार क्लोस अपना कोचिंग करियर शुरू करने से पहले स्वयं अभ्यास कार्यक्रम से जुड़ेंगे.

क्लोस ने कहा, ‘‘मुझे राष्ट्रीय टीम में सबसे अधिक सफलता मिली. वह समय शानदार रहा और उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. इसलिए मैं फिर से डीएफबी में वापसी करने को लेकर खुश हूं.’’

उत्तर प्रदेश में कौन कहां है…?

उत्तर प्रदेश में कौन कहां है? सरकार बनी सपा आपसी लड़ाई लड़ते हुए, मरहम-पट्टी कर रही है. बसपा बिखराव के साथ संभलने में लगी है. भाजपा अपने को जितना मजबूत दिखा रही थी उतनी है नहीं. ‘265 प्लस‘ का नारा, कमजोर पड़ा है. मोदी छाप सर्जिकल स्ट्राइक का कोरामिन उसे मिल गया है. कांग्रेस सरकार बनाने के इरादे को मजबूत कर रही है. सोनिया गांधी का बनारस रोड शो, राहुल गांधी की खाट सभायें सफल रहीं. हर वर्ग में बनती उसकी नयी पहचान है. कह सकते हैं, कि कांग्रेस में एकजुटता बढ़ी है. विश्वास बढ़ा है. लोग तीन दशक बाद प्रदेश के लोग कांग्रेस को देख और सुन रहे हैं.

लालू-नीतीश के होने की उम्मीद थी, वह नहीं है. वामपंथी चुनाव परिदृश्य में, अब तक कहीं नहीं. लखनऊ में आयोजित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के एक कार्यक्रम में जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार पहुंचे थे. उन्हें पार्टी से पूछना और बताना चाहिये कि वामपंथी राजनीतिक दल कहीं क्यों नहीं हैं? क्या वे इतने भी नहीं हैं, कि चुनाव को वर्ग संघर्ष को स्पष्ट करने का जरिया बना सकें? जबकि फासीवाद का पहला हमला उन पर और उस वर्ग पर होता है, जो समाज में बहुसंख्यक है. जिसकी शुरुआत हो चुकी है. शायद उन्होंने मान लिया है, कि उत्तर प्रदेश उनके लायक नहीं है, जहां धर्म, जाति और पुरातन की जकड़ है. जहां वर्ग नहीं वर्ण है. जहां आदमी नहीं हिंदू, मुसलमान, दलित रहते हैं. जहां ब्राम्हण, क्षत्रीय और सिंह बने यादव हैं.

भाजपा का समीकरण यही है, और कांग्रेस भी इसी समीकरण को साध रही है. सपा, बसपा इस समीकरण से अलग नहीं. इन सबके अलावा जो भी है, वह बेहाल है, उनकी बस जुड़ने की राजनीति है. और जुड़ने के लिये आधार वह पलड़ा है, जो सही तरीके से ‘तौलना‘ जाने. तराजू कहीं नहीं, बस मोल-भाव है. वैसे सभी राजनीतिक दल सरकार बनाने के लिये चुनावी गठजोड़ के साथ अखाड़े में अकेले दम ठोक रहे हैं. भाजपा भी अपना दल- अनुप्रिया पटेल को जोड़ने के बाद थम गयी है और संघ के स्वयं सेवकों की सक्रियता बढ़ गयी है. जो जीत सके, उसे अपना बनाने की नीति है.

कांग्रेस ने राहुल गांधी की यात्राओं के जरिये अब तक का चुनावी समीकरण बिगाड दिया है. क्योंकि उत्तर प्रदेश चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस के होने को खारिज मान लिया था. यह मान लिया था, कि कांग्रेस बेदम है. उसकी वापसी दमदार नहीं हो सकती. लेकिन पिछले महीने देवरिया से शुरू हुई राहुल गांधी की किसान सभा मेरठ होते हुए जब दिल्ली पहुंची, उसके सफल होने की खबर उसके साथ थी. शायद, पहली बार राहुल गांधी को बेबाक सफलता मिली. कांग्रेस और राहुल गांधी के लिये लोगों में गहरा आकषर्ण नजर आया. तमाम स्थितियों का आंकलन यही है, कि कांग्रेस खारिज नहीं हुई है. भाजपा ने भी यह जान लिया है.

नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय स्तर पर अल्प संख्यक समुदाय को सहला रहे हैं, कि ‘‘मुसलमानों को वोट बैंक समझना गलत है.‘‘ मगर भाजपा जब तक संघ और हिंदूवादी संगठनो के दायरे में है, और वह इस दायरे से कभी नहीं निकल सकती, तब तक उसकी नीतियां नहीं बदलेंगी. वह अपना ‘हिंदू कार्ड‘ भी नहीं छोडेंगी. सपा, बसपा और कांग्रेस के निशाने पर भापजा और नरेंद्र मोदी ही है. यदि मोदी न हों, तो भाजपा उत्तर प्रदेश में कमजोर है. मोदी यहां डफली और मुनादी की तरह बज रहे हैं, और चुनाव तक उनकी ही डफली बजती रहेगी, उनकी ही मुनादी होती रहेगी.

अब आप सोचें और बतायें- विकास का एजेण्डा कहां है? आम आदमी का हित कहां है? चुनाव हमारी किस समस्या का समाधान है? सरकारें यदि आम जनता के हितों की पक्षधर नहीं, तो चुनी हुई सरकारों का मतलब क्या है?

आम जनता बाजार में जैसे श्रम का स्त्रोत और उपभोक्ता है, राजनीति के बाजार में भी वह सरकार बनाने और भारी मुनाफा कमाने का जरिया है.

जयललिता होने की महत्ता

तमिलनाडु की राजनीति रोचक मोड़ ले रही है. मुख्यमंत्री जे जयललिता बुरी तरह बीमार हैं. वे अपोलो अस्पताल के आईसीयू में भरती हैं. वहां वे किसी से नहीं मिल सकतीं. डाक्टर तरहतरह के उपचार कर रहे हैं और दिलासा दे रहे हैं कि वे ठीक हो जाएंगी पर अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम पार्टी के विधायकों, सांसदों व कार्यकर्ताओं के चेहरे उतरे हैं.

जयललिता में कुछ ऐसा करिश्मा है कि वे बिना कुछ खास काम किए लगातार जीतती रही हैं और बारबार भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जाने के बावजूद बहुत बड़ी तादाद में तमिल जनता की चहेती बनी हुई हैं. जयललिता एक जमाने में एम जी रामचंद्रन की सहभागी एक्ट्रैस थीं और उन्हीं के साथ वे राजनीति में आईं. वे आराध्य एमजीआर से ज्यादा लोकप्रिय हुईं.

जयललिता की बीमारी क्या है, कैसी है, क्या ठीक होने लायक है, ये सवाल, सवाल ही हैं क्योंकि राज्य का काम तो जैसेतैसे चल ही रहा है. यह विडंबना है इस देश की कि जिस नेता को चुना गया राज्य सरकार चलाने के लिए, उस की गंभीर बीमारी के बावजूद उसे न तो हटाने की मांग की जाती है न दूसरे नंबर का कोई नेता सरकार चलाने के लिए अपना दावा पेश करता है.

व्यक्तिपूजा इस हद तक यहां चलती है कि नेता को बीमार देख कर भी समर्थकों को नेता की चिंता रहती है, सरकार की नहीं. देश के अधिकांश राज्यों में भी सरकारें लड़खड़ाती चलती हैं तो इसलिए कि लोग नेता को वरीयता देते हैं, शासन को नहीं, नेता के फैसलों को नहीं. देश इसी का खमियाजा भुगत रहा है. व्यक्तिपूजा के चक्कर में नेता के अच्छे कामों और बेकार कामों का अंतर गायब हो जाता है और निकम्मे व असफल नेता भी ऊंची उड़ाने भरते रहते हैं अगर वे चुनाव जीत जाएं.

नेता को दिखाने भर को कुरसी पर नहीं बैठाया जाता. उसे तो काम कर के दिखाना होता है और इस के लिए उस का स्वस्थ होना जरूरी है. जयललिता स्वस्थ हों, यह इच्छा करना हर तमिलनाडुवासी का हक है पर जब तक वे बीमार हैं, मुख्यमंत्री का काम कोई देखने वाला होना चाहिए. यह पद ऐसे ही नहीं छोड़ा जा सकता.

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