तमिलनाडु की राजनीति रोचक मोड़ ले रही है. मुख्यमंत्री जे जयललिता बुरी तरह बीमार हैं. वे अपोलो अस्पताल के आईसीयू में भरती हैं. वहां वे किसी से नहीं मिल सकतीं. डाक्टर तरहतरह के उपचार कर रहे हैं और दिलासा दे रहे हैं कि वे ठीक हो जाएंगी पर अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम पार्टी के विधायकों, सांसदों व कार्यकर्ताओं के चेहरे उतरे हैं.
जयललिता में कुछ ऐसा करिश्मा है कि वे बिना कुछ खास काम किए लगातार जीतती रही हैं और बारबार भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जाने के बावजूद बहुत बड़ी तादाद में तमिल जनता की चहेती बनी हुई हैं. जयललिता एक जमाने में एम जी रामचंद्रन की सहभागी एक्ट्रैस थीं और उन्हीं के साथ वे राजनीति में आईं. वे आराध्य एमजीआर से ज्यादा लोकप्रिय हुईं.
जयललिता की बीमारी क्या है, कैसी है, क्या ठीक होने लायक है, ये सवाल, सवाल ही हैं क्योंकि राज्य का काम तो जैसेतैसे चल ही रहा है. यह विडंबना है इस देश की कि जिस नेता को चुना गया राज्य सरकार चलाने के लिए, उस की गंभीर बीमारी के बावजूद उसे न तो हटाने की मांग की जाती है न दूसरे नंबर का कोई नेता सरकार चलाने के लिए अपना दावा पेश करता है.
व्यक्तिपूजा इस हद तक यहां चलती है कि नेता को बीमार देख कर भी समर्थकों को नेता की चिंता रहती है, सरकार की नहीं. देश के अधिकांश राज्यों में भी सरकारें लड़खड़ाती चलती हैं तो इसलिए कि लोग नेता को वरीयता देते हैं, शासन को नहीं, नेता के फैसलों को नहीं. देश इसी का खमियाजा भुगत रहा है. व्यक्तिपूजा के चक्कर में नेता के अच्छे कामों और बेकार कामों का अंतर गायब हो जाता है और निकम्मे व असफल नेता भी ऊंची उड़ाने भरते रहते हैं अगर वे चुनाव जीत जाएं.
नेता को दिखाने भर को कुरसी पर नहीं बैठाया जाता. उसे तो काम कर के दिखाना होता है और इस के लिए उस का स्वस्थ होना जरूरी है. जयललिता स्वस्थ हों, यह इच्छा करना हर तमिलनाडुवासी का हक है पर जब तक वे बीमार हैं, मुख्यमंत्री का काम कोई देखने वाला होना चाहिए. यह पद ऐसे ही नहीं छोड़ा जा सकता.