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अहम व ज्योतिष पर भरोसे के चलते राज कुमार राव अपने कैरियर पर मार रहे कुल्हाड़ी?

गुड़गांव, हरियाणा में जन्मे व पलेबढ़े राज कुमार यादव ने ‘पुणे फिल्म संस्थान’ से अभिनय का प्रशिक्षण लेने के बाद बौलीवुड में कदम रखा था. उन के पिता सत्य प्रकाश यादव, हरियाणा राजस्व विभाग में एक सरकारी कर्मचारी थे. उन की मां कमलेश यादव, एक गृहिणी थीं. उन्होंने अपनी 12वीं कक्षा एस.एन. से पूरी की. सिद्धेश्वर वरिष्ठ. सेक पब्लिक स्कूल, जहां उन्होंने स्कूली नाटकों में भाग लिया. आत्मा राम सनातन धर्म कालेज, (दिल्ली विश्वविद्यालय) से स्नातक की उपाधि प्राप्त की, जहां वह क्षितिज थिएटर ग्रुप और दिल्ली में श्री राम सेंटर के साथ थिएटर कर रहे थे. 2008 में वह पुणे फिल्म संस्थान चले गए. 2010 में अमिताभ बच्चन व परेश रावल के साथ राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘रण’ में न्यूज रीडर का छोटा सा किरदार निभा कर अपने अभिनय कैरियर की शुरूआत की थी. इस फिल्म के साथ ही उन्हें दिबाकर बनर्जी ने अपनी एंथोलौजी फिल्म ‘‘लव सैक्स और धोखा’ में हीरो भी बना दिया. एक तरफ फिल्म ‘रण’ ने ‘टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फैस्टिवल’ में प्रदर्शित हो कर जलवा बिखेरा तो दूसरी तरफ ‘लव सैक्स और धोखा’ भी सफल हो गई. राज कुमार यादव रातोंरात स्टार बन गए तो वहीं 2010 से ही उन्होंने अभिनेत्री पत्रलेखा पसल संग रोमांस फरमाना भी शुरू कर दिया. ( पूरे 12 वर्ष तक प्यार की पतंग उड़़ाने के बाद 15 नवंबर 2021 में दोनों विवाह के बंधन में बंध गए.) फिर वह ‘रागिनी एमएमएस’, ‘शैतान’, ‘गैंग आफ वासेपुर 2’, ‘चिटगांव’ और अमीर खान प्रोडक्शन की फिल्म ‘तलाश’ में भी नजर आए. पर यह सभी कलात्मक फिल्में थीं जिन से उन्हें चर्चा तो मिली मगर व्यावसायिक सफलता नहीं मिली.

2012 में हंसल मेहता निर्देशित फिल्म ‘शाहिद’ प्रदर्शित हुई, जिस के लिए राज कुमार यादव को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और उन के लिए व्यावसायिक सिनेमा के रास्ते खुल गए. 2013 में फिल्म ‘काई पो चे’ में उन के अभिनय के लिए उन्हें काफी सराहा गया. 2014 में उन्होंने कंगना रानौत के साथ फिल्म ‘क्वीन’ की और इस फिल्म को मिली जबरदस्त सफलता ने उन के सामने सफलता के सारे रास्ते खोल दिए. अब तक वह साबित कर चुके थे कि उन के अंदर अभिनय क्षमता कूटकूट कर भरी हुई थी. वह फिल्म ‘शाहिद’ के बाद निर्देशक हंसल मेहता के पसंदीदा कलाकार बन चुके थे. ‘क्वीन’ के बाद हंसल मेहता ने उन्हें ‘सिटी लाइट’ में उन की प्रेमिका पत्रलेखा संग अभिनय करने का अवसर दिया. दोनों ने कमाल का अभिनय किया. फिल्म ‘सिटीलाइट’ राजस्थान के एक गरीब किसान परिवार की कहानी बताती है, जो आजीविका की तलाश में मुंबई आता है.

लेकिन अब उन के अंदर अचानक इस देश का सर्वाधिक व्यस्त व यानी कलाकार बनने की भूख संवार हो चुकी थी. इसी लालच में उन्होंने अपने पीआर व मैनेजर के इशारे पर नाचना शुरू कर दिया. सब से पहले उन्होंने अपना नाम ‘राज कुमार यादव’ से बदल कर ‘राज कुमार राव’ कर लिया तथा अंगरेजी में नाम की स्पेलिंग एक ‘एम’ अलग से जोड़ लिया. नाम बदलने का कारण बताया, ‘‘राव या यादव, मैं दोनों में से किसी एक उपनाम का उपयोग कर सकता हूं क्योंकि दोनों पारिवारिक नाम हैं. पर स्पेलिंग में ‘एम’ जोड़ने के सवाल राज कुमार राव ने कहा था कि नाम में ‘एम’ जोड़ने का फैसला अंक ज्योतिष की सलाह पर किया. (कुछ लोग कहते हैं कि एक अंक ज्योतिष की माने तो नाम में इस तरह का बदलाव सिर्फ साढ़े 3 वर्ष तक के लिए ही ठीक रहता है लेकिन इस बारे में मेरी कोई समझ नहीं है.)

नाम बदलने के बाद 2015 में वह सोनम कपूर के साथ अभिषेक डोगरा की फिल्म ‘‘डौली की डोली’’ में वह सह नायक तथा विद्या बालन के साथ फिल्म ‘हमारी अधूरी कहानी’ में नजर आए. यह दोनों फिल्में ठीकठाक ही रहीं पर फिर हंसल मेहता के निर्देशन में वह मनोज बाजपेयी के साथ फिल्म ‘अलीगढ़’ में सहायक भूमिका में नजर आए. 4 अक्तूबर 2015 को प्रदर्शित फिल्म ‘अलीगढ़’ की लागत 11 करोड़ थी,पर इस ने बाक्स आफिस पर सिर्फ 4 करोड़ कमाए थे,जबकि फिल्म को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी चर्चा मिली थी. राव को फिल्म में उन के प्रदर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नोमीनेट किया गया था. अब यह नाम बदलने का परिणाम था या…

2016 में वह ‘ट्रेप्ड’, ‘बहन होगी तेरी’, ‘बरेली की बर्फी’ में नजर आए. यह फिल्में ठीकठाक चली. 2017 में अमित मसूरकर की फिल्म ‘‘न्यूटन’’ में राज कुमार राव ने पंकज त्रिपाठी के साथ अभिनय किया. इस फिल्म में राव ने न्यूटन का शीर्ष किरदार निभाया था. इस में राजकुमार राव एक ईमानदार सरकारी क्लर्क की भूमिका में नजर आए थे,जिसे नक्सल-नियंत्रित शहर में चुनाव ड्यूटी पर भेजा जाता है. 10 करोड़ की लागत में बनी इस फिल्म ने 85 करोड़ कमा कर इतिहास रच दिया. कहा जाता है कि इस फिल्म की सफलता के बाद अचानक राज कुमार राव अहम के शिकार हो गए. उन्होंने पत्रकारों से भी दूरी बना ली. जबकि ‘न्यूटन’ के प्रदर्शन से पहले तक वह हर पत्रकार के संग घुलते मिलते थे.

2017 में वह ओमर्टा’, कृति खरबंदा संग ‘शादी में जरुर आना’ व ऐश्वर्या राय संग ‘फन्ने खां’ जैसी फिल्में की. 2018 में राज कुमार राव ने अमर कौशिक निर्देशित फिल्म ‘‘स्त्री’’ में पंकज त्रिपाठी व श्रृद्धा कपूर के साथ अभिनय किया. 14 करोड़ की लागत में बनी इस फिल्म ने 180 करोड़ कमा कर हंगामा मचा दिया. इस फिल्म की सफलता के बाद राज कुमार राव के अंदर बहुत बड़ा बदलाव आया, जिस ने उन्हें पतन की ओर ले जाना शुरू किया. सच यही है कि राज कुमार राव के कैरियर में अंतिम सफल फिल्म 2018 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘स्त्री’’ ही है. ‘स्त्री’ के बाद वह ‘लव सोनिया’ में नजर आए थे, जिस ने बाक्स आफिस पर पानी तक नहीं मांगा. फिर वह 30 करोड़ की लागत से बनी हिंदी व अंगरेजी भाषा की फिल्म ‘‘5 वेंडिंग्स’ में नरगिस फाखरी के साथ नजर आए, जिस ने बाक्स आफिस पर सिर्फ 20 लाख रूपए ही कमाए.

उस के बाद 2019 में ‘एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा’, ‘जजमेंटल है क्या’, ‘शिमला मिर्च’, ‘मेड इन चाइना’, ‘लूडो’, ‘छलांग’, ‘द व्हाइट टाइगर’, ‘रूही’, ‘हम दो हमारे दो’, ‘बधाई दो’, ‘हिट : द फस्ट केस’, ‘मोनिका ओ माय डार्लिंग’, ‘भेड़िया’, ‘भीड़’ सहित कुल 16 फिल्मों में नजर आ चुके हैं और यह सभी 16 फिल्में बाक्स आफिस पर बुरी तरह से असफल रही हैं. इन में से एक भी फिल्म अपनी लागत वसूलने में कामयाब नहीं रही. मगर मगर राज कुमार राव आज भी अपनेआप को भारत का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता मानते हैं. रस्सी जल गई मगर अकड़ नहीं गई.

सफलतम फिल्म ‘‘स्त्री’’ के बाद अब राज कुमार राव की 17वीं फिल्म ‘‘श्रीकांत’’ 10 मई 2024 को प्रदर्शित हुई है. यह फिल्म उद्योगपति श्रीकांत बोला की बायोपिक फिल्म है जो कि बचपन से ही अंधे हैं. एक अच्छे विषय पर बनी इस फिल्म का भविष्य भी आधार में है क्योंकि इस फिल्म की एडवांस बुकिंग लगभग शून्य है, जो कि चिंता का विषय है. माना कि फिल्म के पीआरओ ने मशक्कत कर कुछ पत्रकारों से फिल्म को चार से पांच स्टार दिलवा दिए हैं और फिल्म निर्माण कंपनी टीसीरीज ने भी 10 मई की सुबह लोगों के घर पहुंचे अखबारों में पूरे पेज का विज्ञापन भी छपवा दिया है. मगर निर्माता भूल गए कि फिल्म आलोचक द्वारा दिए गए ‘स्टार’ किसी भी फिल्म की सफलता की गारंटी नहीं है. अगर ऐसा होता, तो ‘मैदान’ और ‘बड़े मियां छोटे मियां’ को उतनी बुरी असफलता न मिलती कि सिनेमाघर मालिकों को सिनेमाघर बंद करने जैसा कदम उठाना पड़ता.

‘मैदान’ और ‘बड़े मियां छोटे मियां’ को भी कई पत्रकारों ने चार से पांच स्टार दिए थे. दूसरी बात दर्शक भी समझ चुका है कि इन पत्रकारों पर यकीन करना गलत है,जिन के नाम विज्ञापन में छपते हैं क्योंकि खुद करण जोहर सहित कई फिल्मी हस्तियां पिछले दिनों खुलेआम कह चुकी हैं कि वह फिल्म आलोचकों को पैसे दे कर उन से मनचाहा ‘स्टार’ दिलवाते हैं फिर उन के नाम के साथ विज्ञापन छपवाते हैं. हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि वर्तमान समय में बड़े अंगरेजी के अखबारों में पूरे पेज का विज्ञापन छपवाने के लिए 5 लाख रूपए तक देना पड़ता है. अब सवाल यह भी उठ रहा है कि 10 मई की सुबह विज्ञापन पर खर्च की गई रकम क्या फिल्म ‘श्रीकांत’ बाक्स आफिस पर इकट्ठा कर सकेगी?

यदि हम अतीत पर नजर दौड़ाएं तो अतीत में अंधे किरदरों पर जो भी फिल्में आईं उन में से कोई भी फिल्म बाक्स आफिस पर सफलता दर्ज नहीं करा पाईं फिर चाहे नसिरूद्दीन शाह की फिल्म ‘स्पर्श’ हो, जया प्रदा की ‘सरगम’ हो, अक्षय कुमार की ‘आंखें’ हो, अमिताभ बच्चन व रानी मुखर्जी की ‘ब्लैक’ हो या तापसी पन्नू की ‘ब्लर’ हो या सोनम कपूर की फिल्म ‘ब्लाइंड’ ही क्यों न हो.

इतना ही नहीं बाल कलाकार यज्ञ भसीन की एथलिट बनने वाले अंधे बालक की कहानी बयां करने वाली फिल्म ‘‘बिस्वा’’ पिछले 3 वर्ष से भी अधिक समय से सिनेमाघरों में पहुंचने का इंतजार कर रही है, पर उसे वितरक हाथ नही लगा रहे हैं. इस से यह आभास होता है कि शायद दर्शक अंधे किरदरों को परदे पर देखना नहीं चाहता. मगर ‘श्रीकांत’ में अंतर यह है कि यह फिल्म एक जीवित इंसान की बायोपिक फिल्म है, एक ऐसा बचपन से ही दृष्टि बाधित उद्योगपति जिस की इच्छा देश का राष्ट्रपति बनने की है.

विषय अच्छा,फिल्म अच्छीः मगर मनोरंजन शून्य

जहां तक बात फिल्म ‘श्रीकांत’ की है तो इस बायोपिक फिल्म की कहानी 1992 से 2024 तक की है. कहानी का संदेश भी बहुत अच्छा है. श्रीकांत बोला के दृष्टि बाधित किरदार को अभिनेता राजकुमार राव ने बड़ी संजीदगी और आत्मसात कर निभाया है. मगर फिल्म इंटरवल तक तो रोचक होने के साथ ही दर्शकों को बांध कर भी रखती है, पर इंटरवल के बाद फिल्म शिथिल हो गई है. लेखक व निर्देशक की पकड़ से फिल्म का दूसरा भाग बाहर हो गया है. इस के अलावा फिल्म बहुत शुष्क है, मनोरंजन का अभाव है. जबकि दर्शक संदेश के साथ साथ मनोरंजन भी चाहता है.

यह फिल्म ‘इलीट’ क्लास को पंसद आएगी, मगर आम दर्शक इस से दूर रह सकता है. फिल्म के निर्देशक तुशार हिरानंदानी इस से पहले फिल्म ‘सांड़ की आंख’ के अलावा वेब सीरीज ‘स्कैम 2003’ निर्देशित कर चुके हैं, जिन्हें सिर्फ ‘इलीट’ क्लास ने ही पसंद किया था.

आम दर्शक के इस फिल्म से दूर रहने की कई वजहें हैं. पहली वजह फिल्म में मनोरंजन का अभाव है. दूसरी वजह फिल्म का प्रचार ठीक से नहीं हुआ है. फिल्म को ले कर कोई ‘बज’/ चर्चा हीन हीं है. ऐसे में दर्शक कैसे सिनेमाघरों की तरफ जाएगा? दर्शकों को सिनेमाघर के अंदर खींच कर लाने वाले ‘करिश्मा’ का राजकुमार राव में अभाव है. वह तो इन दिनों टीवी स्टार बन कर रह गए हैं. राजकुमार राव ने पता नहीं किस की सलाह पर पिछले दिनों प्लास्टिक सर्जरी करा कर अपना चेहरा भी खराब कर लिया है, उन का नया चेहरा भी दर्शकों को पसंद नहीं आ रहा है. वर्तमान समय में दर्शकों का सिनेमाघरों में जाने से मोहभंग हो चुका है, क्योंकि उसे सिनेमाघर के अंदर अपनी गाढ़ी कमाई की रकम को खर्च करने पर उचित मनोरंजन नहीं मिलता है.

ऐसे में दर्शकों को सिनेमाघर तक खीेच कर लाने की जिम्मेदारी कलाकार पर बढ़ गई है. लेकिन राजकुमार राव ने भी वही गलती की, जो गलती अजय देवगन ने अपनी फिल्म ‘मैदान’ के प्रदर्शन के वक्त की थी. अजय देवगन ने ‘मैदान’ को प्रमोट नहीं किया और एक अच्छी फिल्म, एक अच्छी कहानी लोगों तक नही पहुंच पाई. फिल्म ‘मैदान’ बाक्स आफिस पर बुरी तरह से नाकाम रही. कुछ ऐसी ही गलती अब राजकुमार राव ने भी की है. राज कुमार राव ने फिल्म के अंदर अपने अभिनय से ‘श्रीकांत’ के किरदार को जीवंतता प्रदान की है, लेकिन वह फिल्म के प्रदर्शन से पहले इस फिल्म को सही ढंग से प्रमोट करने से दूर रहे. उन का अहम अब उन्हें पत्रकारों से मिलने नहीं देता? उन्हें लगता है कि सोशल मीडिया की बदौलत वह अपने आप को सुपरस्टार बनाए रखेंगे. जो कि गलत सोच है. हकीकत तो यही है कि सोशल मीडिया ने कलाकारों के स्टारडम को खत्म किया है जिन कलाकारों के सोशल मीडिया पर एक करोड़ फोलोवअर्स हैं, उन की भी फिल्म देखने के लिए भी 25 हजार दर्शक नहीं मिल रहे हैं. इस सच पर हर कलाकार को सोचना चाहिए.

माना कि किसी भी फिल्म की सफलता का कोई तयशुदा नियम नहीं है. हर शुक्रवार को कलाकार की किस्मत भी बदलती है मगर कटु सत्य यह है कि ज्योतिषी या अंक ज्योतिषी के टोटकों से अथवा नाम की स्पेलिंग बदल लेने से भी फिल्म को सफलता नहीं मिलती तो वहीं हर इंसान का अहम भी उसे ले डूबता है. राज कुमार राव को अपनी पिछली 16 फिल्मों के परिणामों पर बैठ कर गौर करना चाहिए कि उन की तरफ से कहां क्या चूक हुई है?

राज कुमार राव को याद रखना चाहिए कि ‘श्रीकांत’ के बाक्स आफिस पर सफलता या असफलता का असर 31 मई को ही प्रदर्शित होने वाली उन की दूसरी फिल्म ‘मिस्टर एंड मिसेस माही’ पर भी पड़ेगा. काश!वह इस फिल्म को सही ढंग से प्रमोट करे, अभी उन के पास वक्त है.

मिस्टर एंड मिसेस माही : सब कुछ नकली (डेढ़ स्टार)

2013 से 2015 तक करण जोहर के साथ काफी विद करण में कार्य करने के बाद ‘ऐ दिल मुश्किल’, ‘जवानी है दीवानी’ में बतौर सहायक जुड़े रहे शरण शर्मा ने बतौर स्वतंत्र निर्देशक फिल्म ‘गुंजन सक्सेना : द कारगिल गर्ल’ निर्देशित की थी. उस के बाद अब वह फिल्म ‘मिस्टर एंड मिसेस माही’ ले कर आए हैं.

2 घंटे 18 मिनट की लंबी अवधि वाली इस फिल्म में उन्होंने क्रिकेट खेल की पृष्ठभूमि के साथ पुरूष सत्तात्मक सोच के साथ ही पुरूष मानसिकता, अपनी पत्नी के हर काम का क्रेडिट खुद लेले से ले कर मतलबी पिता तक का मुद्दा उठाया है. कुल मिला कर कहानी का केंद्र बिंदु यह है कि ‘हर सफल महिला के पीछे एक पुरुष होता है, जो उस के माध्यम से अपने सपनों को साकार करता है.’ तो वहीं इस में स्पोर्ट्स मेलो ड्रामा और रोमकौम का चूरन भी है पर फिल्म देखते हुए ‘अभिमान’ सहित कई दूसरी फिल्में याद आती हैं, तो वहीं फिल्म ‘धड़क’ के होली गीत के दृश्यों को नकल कर के इस में पिरोया गया है.

महेंद्र अग्रवाल (राजकुमार राव), जिस ने अपना उपनाम ‘माही’ रखा हुआ है, क्रिकेट जगत में बल्लेबाज के रूप में अपना स्थान बनाने के लिए प्रयास रत है. उन के पिता की क्रिकेट के खेल से जुड़ी सामग्री बैट, बौल आदि बेचने की दुकान है. पर बल्लेबाज के तौर पर महेंद्र औसत दर्जे का खिलाड़ी है और हर बार वह जलन में दूसरे खिलाड़ी को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करता है, जिस के चलते उस का ‘इंडिया’ टीम में चयन नहीं हो पाता. उस का कोच बेनी शुक्ला (संजय शर्मा) भी मानता है कि वह औसत दर्जे का खिलाड़ी है.

अब उसे अपने पिता (कुमुद मिश्रा) की दुकान पर बैठना पड़ता है. इस असफलता से वह कड़वाहट से भर गया है. उस के पिता उस की शादी डाक्टर महिमा (जान्हवी कपूर) से उस के बारे में झूठ बोल कर कराना चाहते हैं, पर महेंद्र खुद, महिमा से मिल कर अपना सच बता देते हैं.

महिमा भी ‘माही’ नाम से ही जानी जाती है. महिमा, महेंद्र की इमानदारी से प्रभावित हो कर उस से शादी कर लेती है. सुहागरात की ही रात महेंद्र को पता चल जाता है कि उस की पत्नी महिमा क्रिकेट मैच देखने की शौकीन है, क्योंकि बचपन में उस ने क्रिकेट खेला है. हर तरफ से हार कर अब महेंद्र बेनी की सलाह पर क्रिकेट कोच बनना चाहता है. पर उस से क्रिकेट की कोचिंग कौन लेगा? अपने स्वार्थ व अहम में अंधे महेंद्र, महिमा की बल्ले के कौशल को देखने के बाद उसे प्रशिक्षित करने का निर्णय ले, महिमा को समझाता है कि डाक्टरी छोड़ कर उसे क्रिकेटर बनना चाहिए.

महिमा अपने पति की बातों में आ जाती है. 6 माह की ट्रेनिंग के बाद महिमा अच्छी खिलाड़ी बन जाती है और वह एक टीम का हिस्सा बन जाती है. टीम का हिस्सा बनने पर महेंद्र चाहता है कि इंटरव्यू में महिमा उस की प्रशंसा करे कि वह महेंद्र की कोचिंग की बदौलत आज क्रिकेटर बन पाई. पर ऐसा न होने पर महेंद्र, महिमा से नाराज हो जाता है. जिस का असर महिमा के खेल पर भी पड़ता है.

महेंद्र का अहम कहता है कि महिमा को उसी ने बनाया है. इसलिए सारा श्रेय उसे मिलना चाहिए लेकिन जब महेंद्र से उस की मां बात करती है तो महेंद्र को अपनी गलती का अहसास होता है फिर महिमा का चयन ‘इंडिया’ टीम में हो जाता है.

लेखक ने विषय तो अच्छा चुना था पर उस के साथ न्याय करने में असफल रहे हैं. फिल्म में पुरुषों की महत्वाकांक्षा, मतलबी पिता द्वारा अपने बेटे का कैरियर बरबाद करने से ले कर सफलता के अहंकार की कमजोरी सहित कई मुद्दों पर तीखी बात कही गई है, मगर कमजोर पटकथा व दूसरी फिल्मों के दृश्यों की नकल करते हुए लेखक व निर्देशक ने फिल्म को तबाह कर डाला.

फिल्म में अस्पताल का एक दृश्य है, जहां डाक्टर महिमा एक मरीज के औपरेशन के वक्त अपने सीनियर डाक्टर को असिस्ट करने जा रही है, तब उस का पति उसे इस बात पर दबाव डालता है कि वह डक्टरी छोड़ कर क्रिकेटर बन जाए. यह दृश्य ही गलत है. यह दृश्य घर पर होता तो ठीक था मगर ऐन औपरेशन से पहले अस्पताल में इस दृश्य के चलते किसी इंसान की जान जा सकती है. इस तरह के दृश्य पर सेंसर को भी कैंची चलानी चाहिए थी.

खैर, फिल्म में होता यही है कि महिमा, तीन एमएल की बजाय छह एमएल का इंजैक्शन, मरीज को लगान वाली होती है पर सीनियर डाक्टर की सजगता के चलते वह महिमा को रोक लेता है. लेखक व निर्देशक ने जिस तरह से चरित्र व कहानी रची है, उस से पुरूष व महिला की मानसिकता, सोच पूरी तरह से उभर कर नहीं आ पाती. बल्कि फिल्म पूरी तरह से एकतरफा नजर आती है.

फिल्म में पुरूष व नारी समानता की बात गायब है यदि एक पुरूष अपने बेटे का कैरियर बरबाद करता है तो दूसरा पिता अपनी बेटी को अपने इशारे पर नचाता है. इंटरवल से पहले फिल्म काफी कमजोर है. ऊपर से निर्देशक ने फिल्म ‘धड़क’ के होली गीत वाले दृष्यों को इस में ज्यों का त्यों फिल्मा दिया है. फिल्म में क्रिकेट के दृश्य नकली से भी नकली हैं. निर्देशक की कल्पना भी अजीब है कि जिस ने बचपन में गलीमहल्ले में क्रिकेट खेला था, वह जवानी में डाक्टर बनने के बाद महज 6 माह की ट्रेनिंग में ही ‘इंडिया’ टीम का हिस्सा बन जाती है. फिल्म के कुछ संवाद जरुर अच्छे बन पड़े हैं.

पूरी फिल्म राजस्थान में फिल्माई गई है. फिल्म में राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा और वहां की उप मुख्यमंत्री दिया कुमारी का धन्यवाद ज्ञापन भी है, तो इस का मतलब इस फिल्म को राजस्थान सरकार से सब्सिडी मिली है. इसी कारण इस में दर्शकों को सनातनी प्रेम का आभास होगा. फिल्म की कहानी राजस्थानी पृष्ठभूमि की है मगर गाना पंजाबी है. वाह..क्या कहना..जबकि सभी जानते हैं कि राजस्थानी फोक गीतसंगीत काफी लोकप्रिय है.

फिल्म के प्रचारक ने थोड़ी मेहनत की होती तो शायद यह फिल्म शुक्रवार को 99 रूपए की टिकट दर पर दर्शकों को सिनेमाघर तक ले आती.

महेंद्र के किरदार में कई दृश्यों में राजकुमार राव बुरी तरह से निराश करते हैं. जब क्रिकेट टीम में चयन नहीं होता और अब उन्हें पता है कि उन्हें मजबूरन अपने पिता की दुकान पर बैठना पड़ेगा, उस वक्त उन के चेहरे पर जिस तरह के बेबसी, लाचारी के साथ अपनेआप पर कोफ्त होने के भाव आने चाहिए थे, वह नहीं आते.

कुछ दृश्यों में तो वह शाहरुख खान की नकल करते हुए नजर आते हैं. मतलब राज कुमार राव अपने अंदर की अभिनय प्रतिभा को भूलते जा रहे हैं. महिमा के किरदार में जान्हवी कपूर कुछ दृश्यों में ही अच्छी लगी है, अन्यथा वह बेदम ही है. कुमुद मिश्रा अपने किरदार में जमे हैं. संजय शर्मा भी ठीकठाक हैं. पूर्णेंदु भट्टाचार्य और जरीना वहाब के हिस्से करने को कुछ खास नहीं रहा.

सैक्स स्कैंडल हश मनी केस में दोषी ठहराए गए डोनाल्ड ट्रंप

अमेरिका में राष्ट्रपति पद – 2024 की दौड़ में शामिल डोनाल्ड ट्रंप को हाई कोर्ट से बड़ा झटका लगा है. अमेरिकी अदालत ने उन्हें सैक्स स्कैंडल हश मनी केस में दोषी ठहराया है. इस मामले में उन पर 34 केसेस चल रहे थे, जिन में से सभी में उन को दोषी करार दिया गया है. सजा के लिए न्यायाधीश ने आगामी 11 जुलाई की तारीख तय की है. डोनाल्ड ट्रंप का दोषी करार दिया जाना अभूतपूर्व और ऐतिहासिक फैसला है, जिस ने उन्हें देश के इतिहास में किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने वाला पहला पूर्व राष्ट्रपति बना दिया है.

अमेरिका में नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं. उस से ठीक पहले ट्रंप को सजा होना किसी बड़े सदमे से कम नहीं है. इस से उन के समर्थकों में उन की छवि को नुकसान तो अवश्य पहुंचेगा. ट्रंप के लिए ऐसे वक्त में सजा का ऐलान होने जा रहा है, जब रिपब्लिकन पार्टी की ओर से वह राष्ट्रपति पद के लिए 2024 के उम्मीदवार हैं.

रिपब्लिकन अमेरिकी हाउस के स्पीकर माइक जानसन ने डोनाल्ड ट्रम्प के कृत्य को शर्मनाक करार दिया है. उन्होंने कहा कि, ”आज का दिन अमेरिका के इतिहास में बहुत ही शर्मनाक है. डैमोक्रेट्स ने विपक्षी पार्टी के नेता को हास्यास्पद आरोपों में दोषी ठहराए जाने पर खुशी मनाई, जो एक निष्कासित, दोषी अपराधी की गवाही पर आधारित था. यह पूरी तरह से राजनीतिक एक्सरसाइज थी न की कानूनी.”

डोनाल्ड ट्रंप पर आरोप है कि उन्होंने पोर्न स्टार स्टोर्मी डेनियल्स को चुप कराने के लिए पैसे दिए और की गई पेमेंट को छिपाने के लिए व्यावसायिक रिकोर्ड में हेरफेर किया. ट्रंप पर पोर्न स्टार स्टोर्मी डेनिएल्स को साल 2016 में चुनाव से पहले 1 लाख 30 हजार डौलर का भुगतान करने का आरोप है. न्यूयौर्क सरकार के वकीलों का कहना है कि यह मामला ट्रंप की तरफ से उन के दस्तावेजों के साथ हेराफेरी से जुड़ा है, इसे न्यूयौर्क में एक आपराधिक मामले के रूप में दर्ज किया गया है. अमेरिकी अख़बार वाल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप के वकील माइकल कोहेन के माध्यम से ट्रंप ने पोर्न स्टार को यह रकम उन के अफेयर और सैक्स की बात सार्वजनिक नहीं करने के समझौते के तहत दी थी. जानकारी के मुताबिक पोर्न स्टार उस दौरान उन के अफेयर की कहानी को बेचने के लिए कथित तौर पर अमेरिका के ही एक अखबार नेशनल इंक्वायरर के संपर्क में थीं. इस के अलावा उन्होंने एक अन्य अखबार को इंटरव्यू भी दिया था.

पोर्न स्टार स्टोर्मी डेनियल्स ने साल 2011 में ‘इन टच वीकली’ को एक इंटरव्यू दिया था. इस इंटरव्यू में उन्होंने दावा किया था कि ट्रंप ने उन को रात के खाने के लिए अपने होटल के कमरे में बुलाया था. जब डेनिएल्स ट्रंप के होटल रूम में पहुंचीं तो ट्रंप सोफे पर लेटे हुए टीवी का मजा ले रहे थे. उन्होंने सिर्फ एक पायजामा ही पहना हुआ था. पोर्न स्टार का दावा है कि जब वे बाथरूम से फ्रेश हो कर बाहर आई तो ट्रंप ने उन को सैक्स के लिए आमंत्रित किया और वे मना नहीं कर पाई. दोनों के बीच यौन संबंध बने. बाद में डेनियल्स को शर्मिंदगी महसूस हुई क्योंकि उस वक़्त डेनियल्स की उम्र 27 वर्ष थी जबकि ट्रंप उस के पिता से भी अधिक उम्र के थे. साल 2018 में दिए एक टीवी इंटरव्यू में पोर्न स्टार ने दावा किया कि उन को दोनों के रिश्ते पर चुप्पी साधने की धमकी दी गई थी. बता दें कि पोर्न स्टार डेनियल्स ने जो इंटरव्यू 2011 में दिया था, उस को 2018 में रिलीज किया गया था.

स्टोर्मी डेनियल्स का असली नाम स्टेफनी क्लिफोर्ड है. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत पोर्न फिल्म इंडस्ट्री में एक ऐक्ट्रेस के तौर पर की थी. 2004 में वह राइटर और डायरेक्टर भी बन गईं. उन का मौजूदा नाम स्टोर्मी डेनियल्स एक अमेरिकी बैंड और एक व्हिस्की ब्रांड से लिया गया है. उन्होंने कई फिल्मों के म्यूजिक वीडियो में भी काम किया है, जिस से उन को लोकप्रियता हासिल हुई. खास बात यह है कि स्टोर्मी डेनियल्स साल 2010 में लुइसियाना में सीनेट की उम्मीदवार थीं. हालांकि उन्होंने इस रेस से खुद को पीछे खींचते हुए कहा था कि उन को कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा है.

ट्रंप के खिलाफ आवाज उठाने की वजह से स्टोर्मी डेनियल्स को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. डेनियल्स ने दावा किया है कि ट्रंप के राज खोलने के बाद उन के खिलाफ गोल्ड डिगर, फ्रोड और कई भद्दी बातें कही जाती रही हैं और सब से बड़ी परेशानी यह है कि अब उन्हें जान से मारने की धमकी भी मिल रही है. उन का कहना है कि यह धमकियां उन्हें ट्रंप के समर्थकों की ओर से सोशल मीडिया पर दी जा रही हैं. गंभीर बात यह है कि धमकियां किसी बोट अकाउंट से नहीं बल्कि ओरिजिनल अकाउंट से मिल रही हैं. एक यूजर ने लिखा, ‘मैं तुम्हारा गला काटने के लिए तुम्हारे घर आऊंगा.’ स्टोर्मी डेनियल्स कहती है, ”मुझे डर है कि वो राष्ट्रपति न बन जाएं, अगर वो राष्ट्रपति बन गए तो मेरी मुश्किलें बढ़ जाएंगी.”

ट्रंप को कोर्ट ने दोषी करार दे दिया है, लेकिन उन की सजा का ऐलान अभी नहीं हो पाया है. सजा की घोषणा 11 जुलाई को होनी है. कानून के हिसाब से उन्हें अधिकतम 4 साल की सजा हो सकती है. सजा का ऐलान रिपब्लिकन पार्टी के अधिवेशन से ठीक पहले होगा. 15 जुलाई को होने वाले अधिवेशन में ही ट्रंप की उम्मीदवारी की आधिकारिक घोषणा होनी है. उन की सजा का असर 5 नवंबर को होने वाले चुनाव पर सीधा असर डालेगी. चुनाव प्रचार के दौरान मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ कई बार उन का वादविवाद भी होगा, जिस में यह मुद्दा प्रखरता से उठेगा और ट्रंप को उस का सामना करना होगा. अब चुनाव में यह उन की साख पर कितना बट्टा लगाएगा यह समय ही बताएगा.

अमेरिकी कानून के हिसाब से डोनाल्ड ट्रंप दोषी ठहराए जाने के बाद भी चुनाव लड़ सकते हैं. संविधान के मुताबिक राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए 35 वर्ष की आयु और जन्मजात अमेरिकी नागरिक होने की ही शर्त है. यानी जेल से भी ट्रंप चुनाव लड़ सकते हैं . हालांकि यह आशंका बनी हुई है कि जेल में ट्रंप की हत्या हो सकती है, क्योंकि वहां पर सीक्रेट सर्विस के लोग ट्रंप की सुरक्षा में नहीं रहेंगे. खैर, फैसला सुनाए जाने के तुरंत बाद आपदा में अवसर ढूंढने की तर्ज पर ट्रंप की कैंपेन टीम ने चंदा जुटाने के लिए एक अपील जारी की है, जिस का टाइटल है – ‘मैं एक राजनीतिक कैदी हूं.’

महिलाएं वोटिंग में आगे, अधिकार में पीछे

2024 के लोकसभा चुनाव से पहले महिला आरक्षण के बड़ा मुद्दा बनता दिख रहा था. मोदी सरकार ने लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पास किया था. यह साफ हो गया था कि महिला आरक्षण 2029 के पहले लागू नहीं हो सकेगा, लेकिन महिलाओं को इतनी उम्मीद थी कि 2024 के लोकसभा चुनाव में महिलाओं को ज्यादा टिकट मिल सकेंगे. जब महिलाओं को लोकसभा में टिकट देने का मौका आया तो सभी दलों की हालत एक जैसी दिखी. केवल टिकट देने की ही बात नहीं थी पार्टी संगठनों में महिलाओं को हाशिए पर रखा गया है.

महिला आरक्षण को संविधान के 106वें संशोधन अधिनियम के तहत मोदी सरकार ने ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ बनाया. इस के तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया है. इस का श्रेय लेने के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों तरफ से प्रयास किए गए. लेकिन जब लोकसभा चुनाव में टिकट देने का नम्बर आया तो दोनों ही दल फिसड्डी साबित हुए.

कांग्रेस द्वारा केवल 13.8 प्रतिशत महिलाओं को टिकट दिया गया. भाजपा ने 16.1 प्रतिशत महिलाओं को टिकट दिया. यह बात और है कि चुनाव में महिला आरक्षण बिल पास करने का श्रेय लेने का काम चुनावी प्रचार में किया गया. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बताया कि कैसे महिला आरक्षण विधेयक ‘राजनीतिक कारणों से’ 30 वर्षों तक लटका रहा, और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इसे ठंडे बस्ते से बाहर लाया गया. उन्होंने कहा, ‘यह हमारी सरकार की फैसले लेने की मानसिकता को दर्शाता है.’

जिन दलों की कमान महिला नेताओं के हाथ है वहां भी महिला उम्मीदवारों की संख्या में कोई बढ़ोत्तरी नहीं दिखी. कांग्रेस में सब से लंबे समय तक सोनिया गांधी, अध्यक्ष रहीं. महिलाओं को टिकट देने के बारे में वहां भी कोई उदार मन से काम नहीं किया गया. ऐसे ही टीएमसी की ममता बनर्जी और बसपा की मायावती के साथ भी हुआ. महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा टिकट देने के बारे में इन की भी कोई नीति नहीं है. यही हालत क्षेत्रिय दलों की भी देखने को मिलती है. महिलाओं के नाम पर केवल परिवार की महिलाओं को ही टिकट दिए गए.

इस लोकसभा चुनाव में बसपा ने केवल 7 प्रतिशत टिकट महिलाओं को दिए. सब से अधिक 28 प्रतिशत टिकट टीएमसी की ममता बनर्जी ने दिए. इन में ज्यादातर फिल्मी हीरोइने हैं. आम आदमी पार्टी जिस ने राजनीति में बदलाव को आगे रख कर काम किया लोकसभा चुनावों में उस ने भी महिलाओं को दरकिनार किया. आप ने दिल्ली और पंजाब में एक भी महिला को टिकट नहीं दिया.

भारत के चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, मतदाता लिंग अनुपात 2019 में 928 महिलाओं से 1,000 पुरुषों से बढ़ कर 2024 में 948 हो गया है. 12 राज्यों केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता लिंग अनुपात 1,000 से अधिक है, जो दर्शाता है कि मतदाताओं में महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक है.

2014 से ले कर लोकसभा के चुनाव दर चुनाव महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से अधिक रहा है. महिलाएं मतदान करने में पुरुषों से आगे निकल गई हैं. इस के बाद भी लोक सभा चुनाव में उन को न उम्मीदवार बनाया जा रहा न उन के मुद्दे उठाए जा रहे हैं. निकाय और पंचायत चुनावों में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण मिला हुआ है इस के बाद भी ज्यादातर टिकट राजनीतिक परिवारों की महिलाओं और नाते रिश्तेदारों को दिए जाते हैं.

आंकड़े क्या कहते हैं ?

चुनाव आयोग के अनुसार 1957 में कुल 45 महिलाओं ने लोकसभा चुनाव लड़ा था. 2019 में यह संख्या 726 थी. इस दौरान पुरुषों की संख्या 1474 से बढ़ कर 7,322 तक पहुंच चुकी है. पिछले चुनाव में 9 फीसदी उम्मीदवार महिलाएं थीं, जबकि 1957 में यह आंकड़ा 2.9 फीसदी था. 62 साल में पुरुष उम्मीदवारों की संख्या 5 गुना और महिला उम्मीदवारों की संख्या में 16 गुना का इजाफा हुआ है. हालांकि, अब तक किसी भी चुनाव में महिला उम्मीदवारों की संख्या 1000 का आंकड़ा नहीं छू पाई है.

1957 में 45 में से 22 महिलाएं चुनाव जीतने में सफल रही थीं. सफल महिला उम्मीदवारों का प्रतिशत 48.88 था. 2019 में यह घट कर 10.74 रह गया है. पिछले चुनाव में 726 महिला उम्मीदवारों में सिर्फ 78 ही जीत हासिल कर पाईं. 1957 में 31.7 फीसदी पुरुष उम्मीदवार जीते थे, लेकिन 2019 में 6.4 फीसदी उम्मीदवारों को ही जीत मिली.

1957 में देश की संसद में महिलाओं की भागीदारी सिर्फ 5.4 फीसदी थी. 2019 तक यह बढ़ कर 14.4 फीसदी हो चुकी है, लेकिन अभी भी यह बेहद कम है. संसद में महिला आरक्षण का कानून पास होने पर 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी. इस स्थिति में कम से कम 181 सांसद महिलाएं होंगी.

लीडर के रूप में स्वीकार्य नहीं

आजादी के बाद कई महिला नेताओं ने अपनी क्षमता को साबित किया है. इन में इंदिरा गांधी, जयललिता, सुषमा स्वराज, मायावती और ममता बनर्जी जैसी प्रमुख हैं. इंदिरा गांधी का कांग्रेस में विरोध हुआ था. उन की ‘गूंगी गुडिया’ कहा जाता था. सत्ता में आने के बाद इन सभी महिला नेताओं ने अपने कामों से लोगों को लोहा मनवाया. इस के बाद भी पार्टी और सरकार के मुख्य पदों पर महिलाओं को नहीं रखा जाता है. इस की वजह यह है कि पुरूष वर्ग महिलाओं को लीडर के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं है.

इस वजह से जब सब से जरूरी हो जाता है तभी मजबूरी में उन को आगे बढ़ाते हैं. राजनीति में जो महिलाएं आगे दिखती भी हैं उन को भी किसी की पत्नी और बेटी होने के कारण अवसर मिलते हैं. राजनीति में साधारण किस्म की केवल उन महिलाओं को ही मौके मिलते हैं जो किसी न किसी क्षेत्र में मुकाम हासिल कर चुकी हो या उन के पीछे परिवार पैसा खर्च करने को तैयार हो. हेमा मालिनी, स्मृति ईरानी, कंगना रनौत को उन के फिल्मी बैकग्राउंड की वजह से टिकट मिले हैं तो माधवी लता को पारिवारिक बैकग्राउंड की वजह से.

महिलाओं के मुद्दे नदारद

पूरे लोकसभा चुनाव में सब से अधिक वोट महिला मतदाताओं के पड़े हैं. पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले 2 से 6 प्रतिशत तक इस में बढ़ोत्तरी हुई है. जीत और हार का गणित महिला वोटरों ने ही लिखा है. इस के बाद भी चुनावी मुद्दे महिलाओं की परेशानियों को हल करने वाले नहीं थे. 2019 के लोकसभा चुनाव में अधिकतर सांसदों ने वादा किया था कि हर विधानसभा में महिलाओं का एक बड़ा डिग्री कालेज खोला जाएगा लेकिन चुनाव जीतने के बाद ज्यादातर इस वादे से मुकर गए.

निर्भया कांड के बाद महिलाओं की सुरक्षा के लिए सेफ सिटी परियोजना बनाई गई थी. इस में कामन टौयलेट की जगह पिंक टौयलेट बनाए जाने थे. जिन का उपयोग सिर्फ महिलाएं ही कर सकें. इन का संचालन भी महिलाओं के ही हाथ में देना था. किसी भी शहर में यह पिंक टौयलेट दिखाई नहीं देते हैं. जिन शहरों में यह बने भी हैं वहां भी पर्याप्त नहीं हैं. अब इस का बजट भी खर्च नहीं होता है. कहीं इन के लिए जमीन नहीं मिल रही तो कहीं पैसा नियति नहीं है.

महिलाएं कम दोषी नहीं

राजनीति में अपनी हालत के लिए महिलाएं कम दोषी नहीं है. जब उन को सांसद, विधायक या मंत्री के रूप में काम करने का मौका मिलता है तो वह खुद महिला मुद्दों को नहीं उठाती हैं. अमेठी की सांसद स्मृति इरानी को जब केंद्रीय मंत्रिमंडल में काम करने का मौका मिला तो उन्होंने महिला हितों पर काम नहीं किया. उन की सारी उर्जा गांधी नेहरू परिवार और राहुल गांधी को कोसने में चली गई. हेमा मालिनी ने भी अपने क्षे़त्र की महिलाओं के लिए कोई उल्लेखनीय काम नहीं किया. उन की चुनाव के समय गेहूं काटते हुए फोटो दिखी.

मेनका गांधी लगातार 8 साल बार से सांसद हैं. जिस तरह से पशुओं के लिए उन की संस्था काम करती है महिलाओं के लिए उन के काम नहीं दिखते हैं. सोनिया गांधी ने 2005 में लड़कियों को पिता की संपत्ति में बराबर का हिस्सा दिलाने वाला कानून बना कर महिलाओं को अधिकार दिलाए. चाह कर भी वह महिला आरक्षण कानून सदन में पास नहीं करा पाई. मायावती ने मुख्यमंत्री रहते महिलाओं के लिए कोई अलग से काम नहीं किया. जबकि अखिलेश यादव ने महिला सुरक्षा के लिए पुलिस हेल्प 1090 शुरू किया था.

ममता बनर्जी ने दूसरे दलों के मुकाबले सब से अधिक टिकट महिलाओं को दे कर कुछ अलग करने का प्रयास किया है. महिलाएं खुद अपने मुद्दों पर मुखर हो कर बात नहीं करती हैं. ज्यादातर महिलाएं चौका चूल्हा और चाटुकारिता में लगी रहती हैं. कभी धर्म के नाम पर कलश यात्राएं निकालती हैं तो कभी परिवार के भले के लिए पूजा और व्रत में लगी रहती हैं. अपने मुद्दे अपनी बेहतरी के लिए जरूरी है कि पहले आत्मनिर्भर बनें फिर राजनीति में जाएं. वहां अपनी पहचान बनाएं तभी महिलाओं का चुनाव लड़ना सार्थक होगा.

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की सिंगल मदर, दिखावा या सच में हैं स्ट्रोंग ये ब्यूटीफुल लेडीज

वैब सीरीज ‘हीरामंडी’ को ले कर टीवी आर्टिस्ट संजीदा शेख काफी चर्चा में है, क्योंकि उन्होंने उस सीरीज में दमदार अभिनय किया है, जिसे दर्शक काफी पसंद कर रहे हैं. संजीदा शेख टीवी की जानीमानी अभिनेत्री हैं और प्रोफैशनल लाइफ के साथ पर्सनल लाइफ को ले कर भी चर्चा में रहती हैं. रियल लाइफ में पति अभिनेता आमिर अली के साथ 10 साल साथ रहने के बाद तलाक हो चुका है. उन की एक बेटी है जिस की परवरिश वे अकेले कर रही हैं और इस बात से खुश हैं कि वे सिंगल मदर हैं. एक जगह उन्होंने कहा है कि ‘मेरी बेटी मेरी स्ट्रेंथ है, उस ने जिंदगी में मुझे ऐसे स्टेप्स लेने की हिम्मत दी है जिन के बारे में मैँ सोच भी नहीं सकती थी. अब मैँ पहले से अधिक स्ट्रोंग हो चुकी हूं. मैं ने जब पहली बार अपनी बेटी को देखा तो लगा कि छोटी संजीदा आ गई है, मेरी जिंदगी उस के आसपास घूमती है.

आत्मनिर्भर बनना जरूरी

देखा जाए तो आज महिलाएं आत्मनिर्भर हैं और वे हर काम अकेले हर क्षेत्र में कर सकती हैं. सुमन भी 10 साल के बेटे की सिंगल मां हैं और एक आईटी कंपनी में काम करती हैं. उन्होंने पति को तलाक इसलिए दिया क्योंकि वे डोमेस्टिक वौयलेंस की शिकार थीं. पहले तो उन के परिवार वालों ने सुमन को काफी मनाने की कोशिश की, ताकि वे तलाक न लें, लेकिन सुमन रोजरोज के झगड़े से तंग आ चुकी थीं और उन्हें काम पर मन लगाना भी मुश्किल हो रहा था. बच्चे को वे इस माहौल से हट कर पालना चाहती थीं, इसलिए अपनी बात पर अड़ी रहीं और डिवोर्स लिया. आज वे अपनी जिंदगी से बहुत खुश हैं.

मानसिकता हो सही

यह सही है कि सिंगल मदर होने पर बड़े शहरों में अधिक समस्या नहीं होती, लेकिन छोटे शहरों में कई बार बहुत ताने महिला को सुनने पड़ते हैं. यही वजह है कि डिवोर्स के बाद 6 साल की बेटी को ले कर अनुसूया वाराणसी से मुंबई जौब ले कर आई और आज उस के इस निर्णय को परिवार वाले भी मानने लगे हैं. परिवार की मानसिकता सब से अधिक सही होना आवश्यक है, ताकि कोई महिला सिंगल पेरैंट होने से घबराए नहीं.

आंकड़े क्या कहते हैं

भारत में 4.5 फीसदी घर अकेली कमाने वाली औरतों के दम पर चलते हैं. यह बात संयुक्त राष्ट्र महिला (यूएन वुमेन) की एक रिपोर्ट में सामने आई है. इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सिंगल मदर्स की संख्या 1.3 करोड़ है. रिपोर्ट के मुताबिक, अनुमानित ऐसी ही 3.2 करोड़ महिलाएं संयुक्त परिवारों में भी रह रही हैं. रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि 10 में से 8 सिंगल पेरैंट परिवारों को महिलाएं (84 फीसदी) घर चला रही हैं. यानी, 10.13 करोड़ परिवारों में महिलाएं अपने बच्चे के साथ रहती हैं.

सिंगल मदर पर बनी फिल्में

बौलीवुड में ऐसी कई फिल्में सिंगल मदर पर बनी हैं जिन्हें दर्शकों ने काफी पसंद किया है.

निल बटे सन्नाटा

2016 में आई फिल्म ‘नील बटे सन्नाटा’ में स्वरा भास्कर ने सिंगल मदर का रोल निभाया है, जो पढ़ीलिखी नहीं है पर अपने बच्चे को पढ़ालिखा कर, आत्मनिर्भर बनाकर, बड़े सपने देखने को प्रेरित कर उसे शिक्षा के महत्त्व को बताती नजर आई है.

जज्बा

यह क्रिमिनल स्टोरी वाली फिल्म है. फिल्म ‘जज्बा’ में ऐश्वर्या राय लौयर और सिंगल मां का रोल निभा रही है.

हैलिकौप्टर ईला

एक मां अपने बच्चे का हौसला बढ़ाती है, पर बच्चा भी अपनी मां को फिर से उस के सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित कर सकता है. काजोल, रिद्धि सेन स्टारर फिल्म ‘हैलिकौप्टर ईला‘ 2018 में रिलीज़ हुई थी.

कहानी 2

वर्ष 2016 में आई सस्पैंस फिल्म ‘कहानी 2’ में सिंगल मदर विद्या बालन अपनी बेटी को तलाश करते नजर आई.

पा

वर्ष 2009 में रिलीज हुई फिल्म ‘पा’ में विद्या बालन सिंगल मदर के किरदार में है और अपने दुर्लभ बीमारी से ग्रस्त बच्चे की देखभाल कर रही होती है और कहानी तब मोड़ लेती है जब उस की मुलाकात बच्चे के असली पिता से सालों बाद होती है.

इंटरटेनमैंट इंडस्ट्री की सिंगल मदर्स

इतना ही नहीं, बौलीवुड की कई ऐसी अदाकारा हैं जो सिंगल मदर हो कर बच्चों की सही ढंग से परवरिश कर रही हैं और उन्हें समाज या धर्म से कोई सरोकार नहीं क्योंकि वे अपनी जिंदगी अपनी तरीके से जीना चाहती हैं. इस में सब से पहला नाम अभिनेत्री नीना गुप्ता का आता है. उन्होंने बिना किसी की परवा किए बेटी मसाबा को जन्म दिया और आज एक खुशनसीब मां हैं.

श्‍वेता तिवारी

एकता कपूर के फेमस टीवी सीरियल ‘कसौटी जिंदगी की’ में प्रेरणा की भूमिका निभा चुकी श्‍वेता तिवारी सिंगल मदर हैं. श्‍वेता बेहतरीन ऐक्ट्रैस होने के साथ ही एक बेहद स्ट्रौंग महिला हैं. श्‍वेता ने 2 शादियां कीं, लेकिन दोनों ही असफल रहीं. अपनी बेटी और बेटे की वे अकेली ही जिम्‍मेदारी उठा रही हैं. श्वेता ने एक इंटरव्यू में कहा कि ‘सिंगल मदर बनना आसान नहीं होता, लेकिन अगर आप किसी गलत परिवेश में हैं तो उस से निकलना जरूरी होता है.’ दरअसल, सिंगल मदर बन कर भी बच्चे की परवरिश करने की शक्ति हर महिला में होती है.

जूही परमार

टीवी सीरियल ‘कुमकुम’ की लीड ऐक्ट्रैस रहीं जूही परमार भी सिंगल मदर हैं. जूही ने पति सचिन श्रौफ से शादी के 9 साल बाद जब अलग होने का फैसला लिया तब उन के कंधों पर बेटी समायरा की परवरिश की जिम्‍मेदारी थी. इस बात से जूही घबराईं नहीं, बल्कि बेटी की कस्‍टडी अपने पास रखी और उसे अच्‍छी लाइफ देने के लिए फिर से काम शुरू किया.

उर्वशी ढोलकिया

अभिनेत्री उर्वशी ढोलकिया एक फेमस ऐक्ट्रैस होने के साथ ही उर्वशी 2 बेटों की मां भी हैं. उर्वशी जब 16 वर्ष की थीं, तब ही उन की शादी हो गई थी और 17 साल की उम्र में उन के 2 जुड़वां बच्‍चे हुए थे. शादी के 2 साल में ही उर्वशी ने रिश्‍ते में इतनाकुछ सह लिया था कि तलाक के अलावा उन के सामने कोई रास्ता ही नहीं बचा था. इतनी कम उम्र में 2 बच्‍चों की जिम्‍मेदारी उठाने के लिए उर्वशी ने टीवी इंडस्‍ट्री में काम शुरू किया.

कोंकणा सेन शर्मा

‘लिपस्टिक अंडर माय बुर्का’ ऐक्ट्रैस कोंकणा सेन शर्मा ने भी शादी के 5 वर्षों बाद पति रणवीर शौरी से अलग होने का फैसला लिया. उन्होंने अपने बेटे हारून शोरी की परवरिश सिंगल मदर के तौर पर की.

पूजा बेदी

बौलीवुड की सिंगल मदर की लिस्ट में पूजा बेदी का नाम भी शामिल है, जिन्होंने साल 1994 में बिजनैसमैन फरहान फर्नीचरवाला से शादी की थी, लेकिन साल 2003 में वे अपने पति से अलग हो गईं. इस के बाद ऐक्ट्रैस ने अपनी बेटी आलिया फर्नीचरवाला और उमर फर्नीचरवाला की परवरिश अकेले ही की.

सुष्मिता सेन

ऐक्ट्रैस सुष्मिता ने इंडस्ट्री में खूब नाम कमाया है. लेकिन पर्सनल लाइफ में उन्हें काफी उतारचढ़ाव का सामना करना पड़ा. ऐक्ट्रैस ने अभी तक शादी नहीं की है. उन्होंने 2 बेटियों रिनी और अलीशा को गोद लिया हुआ है और उन की परवरिश वो अकेले ही कर रही हैं. उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा है कि ‘सिंगल मदर बनने की बात मैं ने 16 साल की उम्र में सोची थी और यह निर्णय पहले मेरे पिता ने नहीं माना था, लेकिन मेरी जिद के आगे उन्होंने अपनी सहमति दी.’

करिश्मा कपूर

कपूर खानदान की बेटी और बेहतरीन ऐक्ट्रैस करिश्मा कपूर भी अब सिंगल मदर हैं. उन्होंने शादी में काफी दुख झेला और इसी के चलते पति संजय कपूर से तलाक लिया. तलाक के बाद करिश्मा ने दूसरी शादी नहीं की. ऐक्ट्रैस अकेले ही अपने दोनों बच्चों की परवरिश कर रही हैं और फिर से काम भी कर रही हैं.

अमृता सिंह

अभिनेता सैफ अली खान की एक्स वाइफ अमृता सिंह भी एक स्ट्रोंग मदर हैं. ऐक्ट्रैस ने अकेले ही सारा अली खान और इब्राहिम अली खान का पाला है.

सिंगल मदर्स के लिए कुछ टिप्स

वैसे तो सिंगल मदर बन कर काम करने के साथ बच्चे को पालना आसान नहीं होता, कई प्रकार की चुनौतियों का सामना उन्हें करना पड़ता है, लेकिन कुछ खास बातों का ध्यान रखने पर बच्चा अनुशासित और आत्मनिर्भर बन जाता है. कुछ टिप्स निम्न हैं-

• बच्चों के लिए नियम और सीमाएं स्थापित करें, ताकि उन्हें पता चले कि कब और कैसे उन्हें आप के साथ व्यवहार करना है. उन्हें बचपन से ही हर गलत और सही की पहचान करवाएं.

• अपने जीवन में उन की भागीदारी के नियम बनाएं, मसलन साथसाथ किचन में हाथ बंटाना, घर की साफसफाई में उन का सहयोग लेना, किसी बात को उन से शेयर करना आदि.

• बच्चों के साथ फैमिली टाइम का शैड्यूल बनाएं, ताकि उन्हें आप की कमी महसूस न हो, बच्चे के साथ किसी पारिवारिक गेटटूगेदर का कार्यक्रम भी बनाएं.

• अच्छे व्यवहार के लिए पुरस्कृत करना न भूलें, इस से बच्चों में अच्छे व्यवहार करने की भावना विकसित होती है, जो उन के भविष्य में भी उन के काम आती है.

• आप को अकेले रहने या अधिक काम पड़ने पर किसी प्रकार की समस्या न हो, इस के लिए एक सपोर्ट सिस्टम होना जरूरी है जो आप को तनाव को दूर करने में मदद कर सके और आप के पीछे आप को सहारा दे सके.

समझौता : रिया ने कैसे हालात से समझौता किया

‘‘यह क्या राजीव, तुम अभी तक कंप्यूटर में ही उलझे हुए हो?’’ रिया घर में घुसते ही तीखे स्वर में बोली थी. ‘‘कंप्यूटर में उलझा नहीं हूं, काम कर रहा हूं,’’ राजीव ने उतने ही तीखे स्वर में उत्तर दिया था. ‘‘ऐसा क्या कर रहे हो सुबह से?’’ ‘‘हर बात तुम्हें बतानी आवश्यक नहीं है और कृपया मेरे काम में विघ्न मत डालो,’’ राजीव ने झिड़क दिया तो रिया चुप न रह सकी. ‘‘बताने को है भी क्या तुम्हारे पास? दिन भर बैठ कर कंप्यूटर पर गेम खेलते रहते हो. कामधंधा तो कुछ है नहीं.

मुझे तो लगता है कि तुम काम करना ही नहीं चाहते. प्रयत्न करने पर तो टेढ़े कार्य भी बन जाते हैं पर काम ढूंढ़ने के लिए हाथपैर चलाने पड़ते हैं, लोगों से मिलनाजुलना पड़ता है.’’ ‘‘तो अब तुम मुझे बताओगी कि काम ढूंढ़ने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?’’ ‘‘ठीक कहा तुम ने. मैं होती कौन हूं तुम से कुछ कहने वाली. मैं तो केवल घर बाहर पिसने के लिए हूं. बाहर काम कर के लौटती हूं तो घर वैसे का वैसा पड़ा मिलता है.’’

‘‘ओह, मैं तो भूल ही गया था कि अब तुम ही तो घर की कमाऊ सदस्य हो. मुझे तो सुबह उठते ही तुम्हें साष्टांग प्रणाम करना चाहिए और हर समय तुम्हारी सेवा में तत्पर रहना चाहिए. मैं अपनी तरफ से भरसक प्रयत्न कर भी रहा हूं कि महारानीजी को कोई कष्ट न पहुंचे. फिर भी कोई कोरकसर रह जाए तो क्षमाप्रार्थी हूं,’’ राजीव का व्यंग्यपूर्ण स्वर सुन कर छटपटा गई थी रिया.

‘‘क्यों इस प्रकार शब्दबाणों के प्रयोग से मुझे छलनी करते हो राजीव? अब तो यह तनाव मेरी सहनशक्ति को चुनौती देने लगा है,’’ रिया रो पड़ी थी. ‘‘यह क्यों नहीं कहतीं कि बेकार बैठे निखट्टू पति को तुम सह नहीं पा रही हो. दिन पर दिन कटखनी होती जा रही हो.’’ क्रोधित स्वर में बोल राजीव घर से बाहर निकल गया था. रिया अकेली बिसूरती रह गई थी.

मातापिता को आपस में तूतू मैंमैं करते देख दोनों बच्चे किशोर और कोयल अपनी किताबें खोल कर बैठ गए थे और कनखियों से एकदूसरे को देख कर इशारों से बात कर रहे थे. शीघ्र ही इशारों का स्थान फुसफुसाहटों ने ले लिया था. ‘‘मम्मी बहुत गंदी हैं, घर में घुसते ही पापा पर बरस पड़ीं. पापा कितना भी काम करें मम्मी उन्हें चैन से रहने ही नहीं देतीं,’’ कोयल ने अपना मत व्यक्त किया था. ‘‘मम्मी नहीं पापा ही गंदे हैं, घर में काम करने से कुछ नहीं होता.

बाहर जा कर काम करने से पैसा मिलता है और उसी से घर चलता है. मम्मी बाहर काम न करें तो हम सब भूखे मर जाएं.’’ किशोर ने प्रतिवाद किया तो कोयल उस पर झपट पड़ी थी और दोचार थप्पड़ जमा दिए थे. फिर तो ऐसा महाभारत मचा कि दोनों के रोनेबिलखने पर ही समाप्त हुआ था. कोहराम सुन कर रिया दौड़ी आई थी. वह पहले से ही भरी बैठी थी. उस ने दोनों बच्चों की धुनाई कर दी और उन का कं्रदन धीरेधीरे सिसकियों में बदल गया था.

रिया बच्चों को मारपीट कर देर तक शून्य में ताकती रही थी, जबकि चारों ओर फैला अस्तव्यस्त सा उस का घर उसे मुंह चिढ़ा रहा था. ‘मेरे हंसतेखेलते घर को न जाने किस की नजर लग गई,’ उस ने सोचा और फफक उठी. कभी वह स्वयं को संसार की सब से भाग्यशाली स्त्री समझती थी. आर्थिक मंदी के कारण 6 माह पूर्व राजीव की नौकरी क्या गई घर की सुखशांति को ग्रहण ही लग गया था. वहीं से प्रारंभ हुआ था उन की मुसीबतों का सिलसिला.

80 हजार प्रतिमाह कमाने वाले व्यक्ति के बेरोजगार हो जाने का क्या मतलब होता है. यह राजीव को कुछ ही दिनों में पता चल गया था. जो नौकरी रिया ने शौकिया प्रारंभ की थी इस आड़े वक्त में वही जीवन संबल बन गई थी. न चाहते हुए भी उसे अनेक कठोर फैसले लेने पड़े थे. उच्ववर्गीय पौश इलाके के 3 शयनकक्ष वाले फ्लैट को छोड़ कर वे साधारण सी कालोनी के दो कमरे वाले फ्लैट में चले आए थे. पहले खाना बनाने, कपड़े धोने तथा घर व फर्नीचर की सफाई, बरतन धोने वाली अलगअलग नौकरानियां थीं पर अब एक से ही काम चलाना पड़ रहा था.

नई कालोनी में 2 कारों को खड़े करने की जगह भी नहीं थी. ऊपर से पैसे की आवश्यकता थी अत: एक कार बेचनी पड़ी थी. सब से कठिन निर्णय था किशोर और कोयल को महंगे अंतर्राष्ट्रीय स्कूल से निकाल कर साधारण स्कूल में डालने का. रियाराजीव ने बच्चों को यही समझाया था कि पढ़ाई का स्तर ठीक न होने के कारण ही उन्हें दूसरे स्कूल में डाल रहे हैं पर जब एक दिन किशोर ने कहा कि वह मातापिता की परेशानी समझता है और अच्छी तरह जानता है कि वे उसे महंगे स्कूल में नहीं पढ़ा पाएंगे तो राजीव सन्न रह गया था. रिया के मुंह से चाह कर भी कोई बोल नहीं फूटा था.

इस तरह की परिस्थिति में संघर्ष करने वाला केवल उन का ही परिवार नहीं था, राजीव के कुछ अन्य मित्र भी वैसी ही कठिनाइयों से जूझ रहे थे. वे सभी मिलतेजुलते, एकदूसरे की कठिनाइयों को कम करने का प्रयत्न करते. इस तरह हंसतेबोलते बेरोजगारी का दंश कम करने का प्रयत्न करते थे. अपनी ओर से रिया स्थिति को संभालने का जितना ही प्रयत्न करती उतनी ही निराशा के गर्त्त में गिरती जाती थी. पूरे परिवार को अजीब सी परेशानी ने घेर लिया था. बच्चे भी अब बच्चों जैसा व्यवहार कहां करते थे. पहले वाली नित नई मांगों का सिलसिला तो कब का समाप्त हो गया था.

जब से उन्हें महंगे अंतर्राष्ट्रीय स्कूल से निकाल कर दूसरे मध्यवर्गीय स्कूल में डाला गया था, वे न मित्रों की बात करते थे और न ही स्कूल की छोटीमोटी घटनाओं का जिक्र ही करते थे. रिया को स्वयं पर ही ग्लानि हो आई थी. बिना मतलब बच्चों को धुनने की क्या आवश्यकता थी. न जाने उन के कोमल मन पर क्या बीत रही होगी. भाईबहनों में तो ऐसे झगड़े होते ही रहते हैं. कम से कम उसे तो अपने होश नहीं खोने चाहिए थे पर नहीं, वह तो अपनी झल्लाहट बच्चों पर ही उतारना चाहती थी. रिया किसी प्रकार उठ कर बच्चों के कमरे में पहुंची थी. किशोर और कोयल अब भी मुंह फुलाए बैठे थे. रिया ने दोनों को मनायापुचकारा, ‘‘मम्मी को माफ नहीं करोगे तुम दोनों?’’

बच्चों का रुख देख कर रिया ने झटपट क्षमा भी मांग ली थी. ‘‘पर यह क्या?’’ डांट खा कर भी सदा चहकती रहने वाली कोयल फफक पड़ी थी. ‘‘अब हमारा क्या होगा मम्मी?’’ वह रोते हुए अस्पष्ट स्वर में बोली थी. ‘‘क्या होगा का क्या मतलब है? और ऐसी बात तुम्हारे दिमाग में आई कैसे?’’ ‘‘पापा की नौकरी चली गई मम्मी. अब आप उन्हें छोड़ दोगी न?’’ कोयल ने भोले स्वर में पूछा था. ‘‘क्या? किस ने कहा यह सब? न जाने क्या ऊलजलूल बातें सोचते रहते हो तुम दोनों,’’ रिया ने किशोर और कोयल को झिड़क दिया था पर दूसरे ही क्षण दोनों बच्चों को अपनी बाहों में समेट कर चूम लिया था. ‘‘हम सब का परिवार है यह. ऐसी बातों से कोई किसी से अलग नहीं होता.

हमसब का बंधन अटूट है. पापा की नौकरी चली गई तो क्या हुआ? दूसरी मिल जाएगी. तब तक मेरी नौकरी में मजे से काम चल ही रहा है.’’ ‘‘कहां काम चल रहा है मम्मी? मेरे सभी मित्र यही कहते हैं कि अब हम गरीब हो गए हैं. तभी तो प्रगति इंटरनेशनल को छोड़ कर हमें मौडर्न स्कूल में दाखिला लेना पड़ा. ‘टाइगर हाइट्स’ छोड़ कर हमें जनता अपार्टमेंट के छोटे से फ्लैट में रहना पड़ रहा है.’’ किशोर उदास स्वर में बोला तो रिया सन्न रह गई थी. ‘‘ऐसा नहीं है बेटे. तुम्हारे पुराने स्कूल में ढंग से पढ़ाई नहीं होती थी इसीलिए उसे बदलना पड़ा,’’ रिया ने समझाना चाहा था.

पर अपने स्वर पर उसे स्वयं ही विश्वास नहीं हो रहा था. बच्चे छोटे अवश्य हैं पर उन्हें बातों में उलझाना बच्चों का खेल नहीं था. कुछ ही देर में बच्चे अपना गृहकार्य समाप्त कर खापी कर सो गए थे पर रिया राजीव की प्रतीक्षा में बैठे हुए ऊंघने लगी थी. रात के 11 बज गए तो उस ने मोबाइल उठा कर राजीव से संपर्क करने का प्रयत्न किया था. घर से रूठ कर गए हैं तो मनाना तो पड़ेगा ही. पर नंबर मिलाते ही खाने की मेज पर रखा राजीव का फोन बजने लगा था.

‘‘तो महाशय फोन यहीं छोड़ गए हैं. इतना गैरजिम्मेदार तो राजीव कभी नहीं थे. क्या बेरोजगारी मनुष्य के व्यक्तित्व को इस तरह बदल देती है? कब तक आंखें पसारे बैठी रहे वह राजीव के लिए. कल आफिस भी जाना है.’’ इसी ऊहापोह में कब उस की आंख लग गई थी, पता ही नहीं चला था. दीवार घड़ी में 12 घंटों का स्वर सुन कर वह चौंक कर उठ बैठी थी. घबरा कर उस ने राजीव के मित्रों से संपर्क साधा था. ‘‘कौन? रमोला?’’ रिया ने राजीव के मित्र संतोष के यहां फोन किया तो फोन उस की पत्नी रमोला ने उठाया था. ‘‘हां, रिया, कहो कैसी हो?’’

‘‘सौरी, रमोला, इतनी रात गए तुम्हें तकलीफ दी पर शाम 6 बजे के गए राजीव अभी तक घर नहीं लौटे हैं. तुम्हारे यहां आए थे क्या?’’ ‘‘कैसी तकलीफ रिया, आज तो लगता है सारी रात आंखों में ही कटेगी. राजीव आए थे यहां. राजीव और संतोष ने साथ चाय पी. गपशप चल रही थी कि मनोज की पत्नी का फोन आ गया कि मनोज ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली है. दोनों साथ ही मनोज के यहां गए हैं. पर उन्हें तुम्हें फोन तो करना चाहिए था.’’ ‘‘राजीव अपना मोबाइल घर ही भूल गए हैं. पर मनोज जैसा व्यक्ति ऐसा कदम भी उठा सकता है मैं तो सोच भी नहीं सकती थी.

हुआ क्या था?’’ ‘‘पता नहीं, संतोष का फोन आया था कि मनोज और उस की पत्नी में सब्जी लाने को ले कर तीखी झड़प हुई थी. उस के बाद वह तो पास के ही स्टोर में सब्जी लेने चली गई और मनोज ने यह कांड कर डाला,’’ रमोला ने बताया था. ‘‘हाय राम, इतनी सी बात पर जान दे दी.’’ ‘‘बात इतनी सी कहां है रिया. ये लोग तो आकाश से सीधे जमीन पर गिरे हैं. छोटी सी बात भी इन्हें तीर की तरह लगती है.’’ ‘‘पर इन्होंने एकदूसरे को सहारा देने के लिए संगठन बनाया हुआ है.’’ ‘‘कैसा संगठन और कैसा सहारा? जब अपनी ही समस्या नहीं सुलझती तो दूसरों की क्या सुलझाएंगे.’’

रमोला लगभग रो ही पड़ी थी. ‘‘संतोष भैया फिर भी तकदीर वाले हैं कि शीघ्र ही दूसरी नौकरी मिल गई.’’ रिया के शब्द रमोला को तीर की तरह चुभे थे. ‘‘तुम से क्या छिपाना रिया, संतोष के चाचाजी की फैक्टरी है. पहले से एकतिहाई वेतन पर दिनरात जुटे रहते हैं.’’ ‘‘ऐसा समय भी देखना पड़ेगा कभी सोचा न था,’’ रिया ने फोन रख दिया था.  रिया की चिंता की सीमा न थी. इतनी सी बात पर मनोज ने यह क्या कर डाला. अपनी पत्नी और बच्चे के बारे में भी नहीं सोचा. रिया पूरी रात सो नहीं सकी थी. उस के और राजीव के बीच भी तो आएदिन झगड़े होते रहते हैं.

वह तो दिन भर आफिस में रहती है और राजीव अकेला घर में. उस से आगे तो वह सोच भी नहीं सकी और फफक कर रो पड़ी थी. राजीव लगभग 10 बजे घर लौटे थे. ‘‘यह क्या है? कल छह बजे घर से निकल कर अब घर लौटे हो. एक फोन तक नहीं किया,’’ रिया ने देखते ही उलाहना दिया था. ‘‘क्या फर्क पड़ता है रिया. मैं रहूं या न रहूं. तुम तो अपने पावों पर खड़ी हो.’’ ‘‘ऐसी बात मुंह से फिर कभी मत निकालना और किसी का तो पता नहीं पर मैं तो जीतेजी मर जाऊंगी,’’ रिया फफक उठी थी. ‘‘यह संसार ऐसे ही चलता रहता है रिया.

देखो न, मनोज हमें छोड़ कर चला गया पर संसार अपनी ही गति से चल रहा है. न मनोज के जाने का दुख है और न ही उस के लिए किसी की आंखों में दो आंसू,’’ राजीव रो पड़ा था. पहली बार रिया ने राजीव को इस तरह बेहाल देखा था. वह बच्चों के सामने ही फूटफूट कर रो रहा था. रिया उसे अंदर लिवा ले गई थी. किशोर और कोयल आश्चर्यचकित से खड़े रह गए थे.

‘‘तुम दोनों यहीं बैठो. मैं चाय बना लाती हूं,’’ रिया हैरानपरेशान सी बच्चों को बालकनी में बिठा कर राजीव को सांत्वना देने लगी थी. वह नहीं चाहती थी कि राजीव की इस मनोस्थिति का प्रभाव बच्चों पर पड़े. ‘‘ऐसा क्या हो गया जो मनोज हद से गुजर गया. पिछले सप्ताह ही तो सपरिवार आया था हमारे यहां. इतना हंसमुख और मिलनसार व्यक्ति अंदर से इतना उदास और अकेला होगा यह भला कौन सोच सकता था,’’ रिया के स्वर में भय और अविश्वास साफ झलक रहा था.

उत्तर में राजीव एक शब्द भी नहीं बोला था. उस ने रिया पर एक गहरी दृष्टि डाली थी और चाय पीने लगा था. ‘‘मनोज की पत्नी और बच्चे का क्या होगा?’’ रिया ने पुन: प्रश्न किया था. वह अब भी स्वयं को समझा नहीं पाई थी. ‘‘उस के पिता आ गए हैं वह ही दोनों को साथ ले जाएंगे. पिता का अच्छा व्यवसाय है. मेवों के थोक व्यापारी हैं. वह तो मनोज को व्यापार संभालने के लिए बुला रहे थे पर यह जिद ठाने बैठा था कि पिता के साथ व्यापार नहीं करेगा.’’ रिया की विचार शृंखला थमने का नाम ही नहीं ले रही थी. मनोज की पत्नी मंजुला अकसर अपनी पुरातनपंथी ससुराल का उपहास किया करती थी. पता नहीं उन लोगों के साथ कैसे रहेगी. उस के दिमाग में उथलपुथल मची थी. कहीं कुछ भी होता था तो उन के निजी जीवन से कुछ इस प्रकार जुड़ जाता था कि वह छटपटा कर रह जाती थी.

राजीव भी अपने मातापिता की इकलौती संतान है. वे लोग उसे बारबार अपने साथ रहने को बुला रहे हैं. उस के पिता बंगलौर के जानेमाने वकील हैं पर रिया का मन नहीं मानता. न जाने क्यों उसे लगता है कि वहां जाने से उस की स्वतंत्रता का हनन होगा. धीरेधीरे जीवन ढर्रे पर आने लगा था. केवल एक अंतर आ गया था. अब रिया ने पहले की तरह कटाक्ष करना छोड़ दिया था. वह अपनी ओर से भरसक प्रयास करती कि घर की शांति बनी रहे. उस दिन आफिस से लौटी तो राजीव सदा की तरह कंप्यूटर के सामने बैठा था. ‘‘रिया इधर आओ,’’ उस ने बुलाया था.

वह रिया को कुछ दिखाना चाहता था. ‘‘यह तो शुभ समाचार है. कब हुआ था यह साक्षात्कार? तुम ने तो कुछ बताया ही नहीं,’’ रिया कंप्यूटर स्क्रीन पर एक जानीमानी कंपनी द्वारा राजीव का नियुक्तिपत्र देख कर प्रसन्नता से उछल पड़ी थी. ‘‘इतना खुश होने जैसा कुछ नहीं है एक तो वह आधे से भी कम वेतन देंगे, दूसरे मुझे बंगलौर जा कर रहना पड़ेगा. यहां नोएडा में उन का छोटा सा आफिस है अवश्य, पर मुझे उन के मुख्यालय में रहना पड़ेगा.’’ ‘‘यह तो और भी अच्छा है. वहां तो तुम्हारे मातापिता भी हैं. उन की तो सदा से यही इच्छा है कि हमसब साथ रहें.’’

‘‘मैं सोचता हूं कि पहले मैं जा कर नई नौकरी ज्वाइन कर लेता हूं. तुम कोयल और किशोर के साथ कुछ समय तक यहीं रह सकती हो.’’ ‘‘नहीं, न मैं अकेले रह पाऊंगी न ही कोयल और किशोर. सच कहूं तो यहां दम घुटने लगा है मेरा. मेरे मामूली से वेतन में 6-7 महीने से काम चल रहा है. तुम्हें तो उस से दोगुना वेतन मिलेगा. हमसब साथ चलेंगे.’’  कोयल और किशोर सुनते ही प्रसन्नता से नाच उठे थे. उन्होंने दादादादी के घर में अपने कमरे भी चुन लिए थे.

राजीव के मातापिता तो फोन सुनते ही झूम उठे थे. ‘‘वर्षों बाद कोई शुभ समाचार सुनने को मिला है,’’ उस की मां भरे गले से बोली थीं और आशीर्वादों की झड़ी लगा दी थी. ‘‘पर तुम्हारी स्वतंत्रता का क्या होगा?’’ फोन रखते ही राजीव ने प्रश्न किया था. ‘‘इतनी स्वार्थी भी नहीं हूं मैं कि केवल अपने ही संबंध में सोचूं. तुम ने साथ दिया तो मैं भी सब के खिले चेहरे देख कर समझौता कर लूंगी.’’ ‘‘समझौता? इतने बुरे भी नहीं है मेरे मातापिता, आधुनिक विचारों वाले पढ़ेलिखे लोग हैं और मुझ से अधिक मेरे परिवार पर जान छिड़कते हैं.’’ इतना कह कर राजीव ने ठहाका लगाया तो रिया को लगा कि इस खुशनुमा माहौल के लिए कुछ बलिदान भी करना पड़े तो वह तैयार है.

क्या लाइगेशन औपरेशन कराने के बाद भी प्रैगनैंसी हो जाती है, क्या यह बात सच है?

सवाल

मैं 27 साल की विवाहिता हूं. मेरे 2 बेटे हैं. मुझे 2 बार अबौर्शन करवाने की भी जरूरत पड़ी है. छोटे बेटे के जन्म के बाद मैं ने ट्यूब्ल लाइगेशन करवा लिया था. पिछले दिनों मेरी कुछ सहेलियों ने बताया कि लाइगेशन औपरेशन कराने के बाद भी प्रैगनैंसी हो जाती है. क्या यह बात सच है? क्या मुझे अब भी गर्भनिरोधक युक्ति अपनाने की जरूरत है?

जवाब

यह सच है कि हर किसी गर्भनिरोधक उपाय की तरह लाइगेशन औपरेशन भी कभीकभार फेल हो सकता है. यह परेशानी लाइगेशन औपरेशन के तुरंत बाद के दिनों से ले कर औपरेशन के कई साल बाद किसी भी समय सामने आ सकती है. इंगलैंड में हुए अध्ययनों में देखा गया है कि लाइगेशन औपरेशन करवाने वाली 2000 में से 1 स्त्री में औपरेशन के बाद भी प्रैगनैंसी हो जाती है.

दरअसल, इस औपरेशन में स्त्री की दोनों फैलोपियन ट्यूबों पर छल्ला, क्लिप या धागे की गांठ कस दी जाती है. उस से दोनों ट्यूबों का भीतरी रास्ता बंद हो जाता है. नतीजतन ओवरी में पक कर छूटा अंडा न तो बच्चेदानी तक पहुंच पाता है और न ही समागम के समय योनि में छूटे पुरुष शुक्राणु बच्चेदानी से फैलोपियन ट्यूब तक की यात्रा पूरी कर पाते हैं. फलस्वरूप अंडे और शुक्राणु का मिलन नहीं हो पाता और स्त्री प्रैगनैंसी से बची रहती है.

पर इक्केदुक्के मामलों में फैलोपियन ट्यूबों पर डाला गया छल्ला, क्लिप या तो औपरेशन के समय ही ठीक से नहीं डल पाता या फिर समय बीतने पर अपने स्थान से फिसल जाता है जिस से फैलोपियन ट्यूबें फिर से खुल जाती हैं और प्रैगनैंसी होने की संभावना फिर से बन जाती है.

पर इस फेल्योर का रिस्क इतना कम है कि लाइगेशन औपरेशन कराने के बाद कोई दूसरी गर्भनिरोधक युक्ति अपनाना तर्कसंगत नहीं लगता. आप के लिए वाजिब यही है कि आप यही मानें कि आप का लाइगेशन औपरेशन विफल नहीं होगा.

गांठें: एक बेटी ने कैसे खोली मां के दिल की गांठ

सरला ने चहकते हुए घर में प्रवेश किया. सब से पहले वह अपनी नई आई भाभी दिव्या से मिली.

‘‘हैलो भाभी, कैसी हो.’’

‘‘अच्छी हूं, दीदी,’’ एक फीकी सी मुसकान फेंक कर दिव्या ने कहा और सरला के हाथ की अटैची अपने हाथ में लेते हुए धीरे से बोली, ‘‘आप सफर में थक गई होंगी. पहले चल कर थोड़ा आराम कर लें. तब तक मैं आप के लिए चायनाश्ता ले कर आती हूं.’’

सरला को बड़ा अटपटा सा लगा. 2 ही महीने तो शादी को हुए हैं. दिव्या का चमकता चेहरा बुझ सा गया है.

सरला अपनी मां से मिली तो मां उसे गले से लिपटाते हुए बोलीं, ‘‘अरी, इतनी बड़ी अटैची लाने की क्या जरूरत थी. मैं ने तुझ से कहा था कि अब यहां साडि़यों की कोई कमी नहीं है.’’

‘‘लेकिन मां, साडि़यां तो मिल जाएंगी, ब्लाउज कहां से लाऊंगी? कहां पतलीदुबली भाभी और कहां बुलडोजर जैसी मैं,’’ सरला ने कहा.

‘‘केवल काला और सफेद ब्लाउज ले आती तो काम चल जाता.’’

‘‘अरे, ऐसे भी कहीं काम चल पाता है,’’ बाथरूम में साबुन- तौलिया रखते हुए दिव्या ने  कटाक्ष किया था.

सरला के मन में कुछ गढ़ा जरूर, लेकिन उस समय वह हंस कर टाल गई.

हाथमुंह धो कर थोड़ा आराम मिला. दिव्या ने नाश्ता लगा दिया. सरला बारबार अनुभव कर रही थी कि दिव्या जो कुछ भी कर रही है महज औपचारिकता ही है. उस में कहीं भी अपनापन नहीं है. तभी सरला को कुछ याद आया. बोली, ‘‘देखो तो भाभी, तुम्हारे लिए क्या लाई हूं.’’

सरला ने एक खूबसूरत सा बैग दिव्या को थमा दिया. दिव्या ने उचटती नजर से उसे देखा और मां की ओर बढ़ा दिया.

‘‘क्यों भाभी, तुम्हें पसंद नहीं आया?’’

‘‘पसंद तो बहुत है, दीदी, पर…’’

‘‘पर क्या, भाभी? तुम्हारे लिए लाई हूं. अपने पास रखो.’’

दिव्या असमंजस की स्थिति में उसे लिए खड़ी रही. मांजी चुपचाप दोनों को देख रही थीं.

‘‘क्या बात है, मां? भाभी इतना संकोच क्यों कर रही हैं?’’

‘‘अरी, अब नखरे ही करती रहेगी या उठा कर रखेगी भी. पता नहीं कैसी पढ़ीलिखी है. दूसरे का मन रखना जरा भी नहीं जानती. नखरे तो हर वक्त नाक पर रखे रहते हैं,’’ मां ने तीखे स्वर में कहा.

‘‘मां, भाभी से ऐसे क्यों कह रही हो? नईनई हैं, आप की आज्ञा के बिना कुछ लेते संकोच होता होगा.’’

सरला का अपनापन पा कर दिव्या के अंदर कुछ पिघलने लगा. उस की नम हो आई आंखें सरला से छिपी न रह सकीं.

सरला सभी के लिए कोई न कोई उपहार लाई थी. छोटी बहन उर्मिला के लिए सलवार सूट, उमेश के लिए नेकटाई और दिवाकर के लिए शर्ट पीस. उस ने सारे उपहार निकाल कर सामने रख दिए. सब अपनेअपने उपहार ले कर बड़े प्रसन्न थे.

‘‘भाभी, आप कश्मीर घूमने गई थीं. हमारे लिए क्या लाईं?’’ सरला ने टोका.

दिव्या एक फीकी सी मुसकान के साथ जमीन देखने लगी. भला क्या उत्तर दे? तभी दिवाकर ने कहा, ‘‘दीदी, भाभी जो उपहार लाई थीं वे तो मां के पास हैैं. अब मां ही आप को दिखाएंगी.’’

‘‘दिवाकर, तू बहुत बोलने लगा है,’’ मां ने झिड़का.

‘‘इस में डांटने की क्या बात है, मां? दिवाकर ठीक ही तो कह रहा है,’’ उमेश ने समर्थन किया.

‘‘अब तू भी बहू का पक्ष लेने लगा,’’ मां की जुबान में कड़वाहट घुल गई.

‘‘सरला, तुम्हीं बताओ कि इस में पक्ष लेने की बात कहां से आ गई. एक छोटी सी बात सीधे शब्दों में कही है. पता नहीं मां को क्या हो गया है. जब से शादी हुई है, जरा भी बोलता हूं तो कहती हैं कि मैं दिव्या का पक्ष लेता हूं.’’

स्थिति विस्फोटक हो इस से पहले ही दिव्या उठ कर अपने कमरे में चली गई. आंसू बहें इस से पहले ही उस ने आंचल से आंखें पोंछ डालीं. मन ही मन दिव्या सोचने लगी कि अभी तो गृहस्थ जीवन शुरू हुआ है. अभी से यह हाल है तो आगे क्या होगा?

जिस तरह सरला अपने भाईबहनों के लिए उपहार लाई है उसी तरह दिव्या भी सब के लिए उपहार लाई थी. अपने इकलौते भाई मनीष के लिए टीशर्र्ट और अपनी मम्मी के लिए शाल कितने मन से खरीदी थी. पापा का सिगरेट केस कितना खूबसूरत था. चलते समय पापा ने 2 हजार रुपए चुपचाप पर्स में डाल दिए थे, उन की लाड़ली घूमने जो जा रही थी. मम्मीपापा और मनीष उपहार देख कर कितने खुश होंगे, इस की कल्पना से वह बेहद खुश थी.

सरला, उर्मिला, मांजी तथा दिवाकर के लिए भी दिव्या कितने अच्छे उपहार लाई थी. उमेश ने स्वयं उस के लिए सच्चे मोतियों की माला खरीदी थी और वह कश्मीरी कुरता जिसे पहन कर उस ने फोटो खिंचवाई थी.

कश्मीर से कितने खुशखुश लौटे थे वे और एकएक सामान निकाल कर दिखा रहे थे. मांजी के लिए कश्मीरी सिल्क की साड़ी, पापाजी के लिए गरम गाउन, उर्मिला के लिए कश्मीरी कुरता, दिवाकर के लिए घड़ी और सरला के लिए गरम शाल. मांजी एकएक सामान देखती गईं और फिर सारा सामान उठा कर अलमारी में रखवा दिया. तभी मांजी  की नजर दिव्या के गले में पड़ी मोतियों की माला पर पड़ी.

उर्मिला ने कहा, ‘भाभी, क्या यह माला भी वहीं से ली थी? बड़ी प्यारी है.’

और दिव्या ने वह माला गले में से उतार कर उर्मिला को दे दी थी. उर्मिला ने पहन कर देखी. मांजी एकदम बोल उठीं, ‘तुझ पर बड़ी जम रही है. चल, उतार कर रख दे. कहीं आनेजाने में पहनना. रोज पहनने से चमक खराब हो जाएगी.’

उमेश और दिव्या हतप्रभ से रह गए. उमेश द्वारा दिव्या को दिया गया प्रथम प्रेमोपहार उर्मिला और मांजी ने इस तरह झटक लिया, इस का दुख दिव्या से अधिक उमेश को था. उमेश कुछ कहना चाहता था कि दिव्या ने आंख के इशारे से मना कर दिया.

2 दिन बाद दिव्या का इकलौता भाई मनीष उसे लेने आ पहुंचा. आते ही उस ने भी सवाल दागा, ‘दीदी, यात्रा कैसी रही? मेरे लिए क्या लाईं?’

‘अभी दिखाती हूं,’ कह कर दिव्या मांजी के पास जा कर बोली, ‘मांजी, मनीष और मम्मीपापा के लिए जो उपहार लाई थी जरा वे दे दीजिए.’

‘तुम भी कैसी बातें करती हो, बहू? क्या तुम्हारे लाए उपहार तुम्हारे मम्मीपापा स्वीकार करेंगे? उन से कहने की जरूरत क्या है. फिर कल उर्मिला का विवाह करना है. उस के लिए भी तो जरूरत पड़ेगी. घर देख कर चलना अभी से सीखो.’

सुन कर दिव्या का मन धुआंधुआं हो उठा. अब भला मनीष को वह क्या उत्तर दे. जब मन टूटता है तो बुद्धि भी साथ नहीं देती. किसी प्रकार स्वयं को संभाल कर मुसकराती हुई लौट कर वह  मनीष से बोली, ‘तुम्हारे जीजाजी आ जाएं तभी दिखाऊंगी. अलमारी की चाबी उन्हीं के साथ चली गई है.’

उस समय तो बात बन गई लेकिन उमेश के लौटने पर दिव्या ने उसे एकांत में सारी बात बता दी. मां से मिन्नत कर के किसी प्रकार उमेश केवल मनीष की टीशर्ट ही निकलवा पाया, लेकिन इस के लिए उसे क्या कुछ सुनना नहीं पड़ा.

मायके से मिले सारे उपहार मांजी ने पहले ही उठा कर अपनी अलमारी में रख दिए थे. दिव्या को अब पूरा यकीन हो गया था कि वह दोबारा उन उपहारों की झलक भी नहीं देख पाएगी.

शादी के बाद दिव्या के रिश्तेदारों से जो साडि़यां मिलीं वे सब मांजी ने उठा कर रख लीं  और अब स्वयं कहीं पड़ोस में भी जातीं तो दिव्या की ही साड़ी पहन कर जातीं. उर्मिला ने अपनी पुरानी घड़ी छोड़ कर दिव्या की नई घड़ी बांधनी शुरू कर दी थी. दिव्या का मन बड़ा दुखता, लेकिन वह मौन रह जाती. कितने मन से उस ने सारा सामान खरीदा था. समझता उमेश भी था, पर मां और बहन से कैसे कुछ कह सकता था.

‘‘क्या हो रहा है, भाभी?’’ सरला की आवाज सुन दिव्या वर्तमान में लौट आई.

‘‘कुछ नहीं. आओ बैठो, दीदी.’’

‘‘भाभी, तुम्हारा कमरा तुम्हारी ही तरह उखड़ाउखड़ा लग रहा है. रौनक नहीं लगती. देखो यहां साइड लैंप रखो, इस जगह टू इन वन और यहां पर मोर वाली पेंटिंग टांगना. अच्छा बताओ, तुम्हारा सामान कहां है? कमरा मैं ठीक कर दूं. उमेश को तो कुछ होश रहता नहीं और उर्मिला को तमीज नहीं,’’ सरला ने कमरे का जायजा लेते हुए कहा.

‘‘आप ने बता दिया. मैं सब बाद में ठीक कर लूंगी, दीदी. अभी तो शाम के खाने की व्यवस्था कर लूं,’’ दिव्या ने उठते हुए कहा.

‘‘शाम का खाना हम सब बाहर खाएंगे. मैं ने मां से कह दिया है. मां अपना और बाबूजी का खाना बना लेंगी.’’

‘‘नहीं, नहीं, यह तो गलत होगा कि मांजी अपने लिए खाना बनाएंगी. मैं बना देती हूं.’’

‘‘नहीं, भाभी, कुछ भी गलत नहीं होगा. तुम नहीं जानतीं कि कितनी मुश्किल से एक दिन के लिए आई हूं, मैं तुम से बातें करना चाहती हूं. और तुम भाग जाना चाहती हो. सही बताओ, क्या बात है? मुंह क्यों उतरा रहता है? मैं जब से आई हूं कुछ गड़बड़ अनुभव कर रही हूं. उमेश भी उखड़ाउखड़ा लग रहा है. आखिर बात क्या है, समझ नहीं पा रही.’’

‘‘कुछ भी तो नहीं, दीदी. आप को वहम हुआ है. सभी कुछ तो ठीक है.’’

‘‘मुझ से झूठ मत बोलो, भाभी. तुम्हारा चेहरा बहुत कुछ कह रहा है. अच्छा दिखाओ भैया ने तुम्हें कश्मीर से क्या दिलाया?’’

दिव्या एक बार फिर संकोच से गढ़ गई. सरला को क्या जवाब दे? यदि कुछ कहा तो समझेगी कि मैं उन की मां की बुराई कर रही हूं. दिव्या ने फिर एक बार झूठ बोलने की कोशिश की, ‘‘दिलाते क्या? बस घूम आए.’’

‘‘मैं नहीं मानती. ऐसा कैसे हो सकता है? अच्छा चलो, अपनी एलबम दिखाओ.’’

और दिव्या ने एलबम सरला को थमा दी. चित्र देखतेदेखते सरला एकदम चिहुंक उठी, ‘‘देखो भाभी, तुम्हारी चोरी पकड़ी गई. यही माला दिलाई थी न भैया ने?’’

अब तो दिव्या के लिए झूठ बोलना मुश्किल हो गया. उस ने धीरेधीरे मन की गांठें सरला के सामने खोल दीं. सरला गंभीरता से सब सुनती रही. फिर दिव्या की पीठ थपथपाती हुई बोली, ‘‘चिंता मत करो. सब ठीक हो जाएगा. अब तुम बाहर चलने के लिए तैयार हो जाओ. उमेश भी आता ही होगा.’’

दिव्या मन ही मन डर रही थी कि हाय, क्या होगा. वह सोचने लगी कि सरला से सब कह कर उस ने ठीक किया या गलत.

बाहर वह सब के साथ गई जरूर, लेकिन उस का मन जरा भी नहीं लगा. सभी चहक रहे थे पर दिव्या सब के बीच हो कर भी अकेली बनी रही. लौटने के बाद सारी रात अजीब कशमकश में बीती. उमेश भी दिव्या को परेशान देख रहा था. बारबार पूछने पर दिव्या ने सिरदर्द का बहाना बना दिया.

दूसरे दिन सुबह नाश्ते के बाद सरला ने कमरे में आ कर कहा, ‘‘भैया, आज आप के दफ्तर की छुट्टी. मैटिनी शो देखने चलेंगे. उर्वशी में अच्छी फिल्म लगी है.’’

सब जल्दीजल्दी काम से निबटे. दिव्या भी पिक्चर जाने के  लिए तैयार होने लगी. तभी उर्मिला ने आ कर कहा, ‘‘भाभी, मां ने कहा है, आप यह माला पहन कर जाएंगी.’’

और माला के साथ ही उर्मिला ने घड़ी भी ड्रेसिंग टेबिल पर रख दी. दिव्या को बड़ा आश्चर्य हुआ. उमेश भी कुछ नहीं समझ पा रहा था. आखिर यह चमत्कार कैसे हुआ?

सब पिक्चर देखने गए, लेकिन उर्मिला और मांजी घर पर रह गए. दिव्या और उमेश पिक्चर देख कर लौटे तो जैसे उन्हें अपनी ही आंखों पर विश्वास नहीं हो पा रहा था. यह कमरा तो उन का अपना नहीं था. सभी कुछ एकदम बदलाबदला सा था. दिव्या ने देखा, सरला पीछे खड़ी मुसकरा रही है. दिव्या को समझते देर न लगी कि यह सारा चमत्कार सरला दीदी की वजह से हुआ है.

उमेश कुछ समझा, कुछ नहीं. शाम की ट्रेन से सरला को जाना था. सब तैयारियां हो चुकी थीं. दिव्या सरला के लिए चाय ले कर मांजी के कमरे में जा रही थी, तभी उस ने  सुना, सरला दीदी कह रही थीं, ‘‘मां, दिव्या के साथ जो सलूक तुम करोगी वही सुलूक वह तुम्हारे साथ करेगी तो तुम्हें बुरा लगेगा. वह अभी नई है. उसे अपना बनाने के लिए उस का कुछ छीनो मत, बल्कि उसे दो. और उर्मिला तू भी भाभी की कोई चीज अपनी अलमारी में नहीं रखेगी. बातबात पर ताना दे कर तुम भैया को भी खोना चाहती हो. जितनी गांठें तुम ने लगाई हैं एकएक कर खोल दो. याद रहे फिर कोई गांठ न लगे.’’

और दिव्या चाय की ट्रे हाथ में लिए दरवाजे पर खड़ी आंसू बहा रही थी.

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‘‘दीदी, आप जैसी ननद सब को मिले,’’ चाय की ट्रे मेज पर रख कर दिव्या ने सरला के पांव छूने को हाथ बढ़ाए तो सरला ने उसे गले से लगा लिया.

खुशियों के फ़ूल: किस बात से डर गए थे निनाद और अम्बा

लेखिका-रेणु गुप्ता

“मिस्टर निनाद, आप और आपकी वाइफ कोरोना पोजिटिव आए हैं, लेकिन आपके सिम्टम्स बहुत माइल्ड हैं. इसलिए आप दोनों को अपने घर पर ही सेल्फ क्वॉरेंटाइन में रहना होगा. यह रही शहर की कोरोनावायरस हैल्प लाइन का नंबर. अगर आपकी तबीयत खराब लगे तो आप इस नंबर पर फोन करिएगा.आपको हॉस्पिल ले जाने का पूरा इंतजाम हो जाएगा. अभी आपको हौस्पिटलाइजेशन की कोई जरूरत नहीं. अब आप घर जा सकते हैं. गुड लक.”

निनाद और अम्बा  डॉक्टर की बातें सुनकर सदमे  में थे.कोरोना और उनको? दोनों के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी. करोना के खौफ से दोनों के चेहरों से मानो रक्त निचुड़ सा गया था.उन्हें लग रहा था, मानो उनके पांव तले जमीन न रही थी.

हॉस्पिटल से बाहर निकल कर निनाद ने अपनी पत्नी अम्बा  से कहा ,”प्लीज़ अम्बा, घर  चलो, तुम्हारी भी तबीयत ठीक नहीं है. कोरोना का नाम सुन कर मैं हिल गया हूं. कोरोना से मौत की इतनी कहानियाँ सुन सुन कर मुझे दहशत सी हो रही है. बहुत  घबराहट हो रही है. तुम साथ होगी तो मेरी हिम्मत बनी रहेगी. प्लीज अम्बा, ना मत करना. फिर घर जाओगी तो मां को भी तुमसे बीमारी लगने का डर होगा.”

निनाद के मुंह से  प्लीज और  घर जाने की रिक्वेस्ट सुन अम्बा  बुरी तरह से चौंक गई थी. वह मन ही मन सोच रही थी, “इस बदज़ुबान और हेकड़ निनाद  को क्या हुआ? शायद तीन  महीने मुझसे अलग रहकर आटे दाल का भाव पता चल गया है इन्हें. इस बीमारी की स्थिति में किसी और परिचित या रिश्तेदार के घर जाना भी ठीक नहीं. कोई घर ऐसा नहीं जहां मैं इस मर्ज के साथ एकांत में रह सकूं. इस बीमारी में माँ के पास भी जा सकती. फिर निनाद की उसे अपने घर ले जाने की रट देख कर मन में कौतुहल जगा था, देखूं, आखिर माजरा क्या है जो ज़नाब इतनी मिन्नतें कर रहें हैं मुझे घर ले जाने के लिए. मन में दुविधा का भाव था, निनाद के घर जाये या नहीं. उससे तलाक की बात भी चल रही है. कि तभी हॉस्पिटल की ऐम्बुलेंस आगई और निनाद ने ऐम्बुलेंस का दरवाज़ा उसके लिए खोलते हुए उसे कंधों से उसकी ओर लगभग धकेलते से हुए उससे कहा, “बैठो अम्बा, क्या सोच रही हो,’’ और वह विवश ऐम्बुलेंस में बैठ गई.’’

घर पहुंचकर निनाद अम्बा  से बोला, “मैं पास  की दुकान को दूध सब्जी की होम डिलीवरी के लिए फोन करता हूं.”

“ओके.”

दुकान को फोन कर निनाद  नहा धोकर अपने बेडरूम में लेट गया और अम्बा  घर के दूसरे बेडरूम में. अम्बा  को तनिक थकान हो  आई थी और उसने आंखें बंद कर लीं. उसकी बंद पलकों में बरबस निनाद के साथ गुज़रा समय मानो सिनेमाई रील की मानिंद ठिठकते ठहरते चलने लगा  और वह बीते दिनों की भूल भुलैया में अटकती भटकती खो गई.

वह सोच रही थी, जीवन कितना अनिश्चित होता है. निनाद  से विवाह कर वह कितनी खुश थी, मानो सातवें आसमान में हो. लेकिन उसे क्या पता था, निनाद  से शादी उसके जीवन की सबसे बड़ी भूल होगी.

एक सरकारी प्रतिष्ठान में वैज्ञानिक अम्बा  और एक बहुराष्ट्रीय प्रतिष्ठान में वैज्ञानिक निनाद  का तीन वर्षों पहले विवाह हुआ था. निनाद ने उस दिन  अपने शहर की किसी कॉन्फ्रेंस में अपूर्व  लावण्यमयी अम्बा  को बेहद आत्मविश्वास  से एक प्रेजेंटेशन  देते सुना था, और वह उसका मुरीद हो गया. शुष्क, स्वाभाव के निनाद को अम्बा  को देखकर शायद पहली बार प्यार जैसे रेशमी, मुलायम जज़्बे का एहसास हुआ था. कॉन्फ्रेंस से घर लौट कर भी अम्बा  और उसका ओजस्वी धाराप्रवाह भाषण उसके चेतना मंडल पर अनवरत छाया रहा. उसके कशिश भरे, धीर गंभीर सौंदर्य ने सीधे उसके हृदय पर दस्तक दी थी और उसने लिंकडिन पर उसका प्रोफाइल ढूंढ उसके बारे में पूरी जानकारी प्राप्त की थी. उसके माता पिता की बहुत पहले मृत्यु हो चुकी थी.इसलिए उसने स्वयं  उसे फोन कर और फ़िर उससे मिलकर उसे विवाह का प्रस्ताव दिया था.

अम्बा  की विवाह योग्य उम्र हो आई थी. सो मित्रों परिचितों से निनाद  की नौकरी, घर परिवार और चाल चलन की तहकीकात कर उसने निनाद  से विवाह करने की हामी भर दी.

अम्बा  की मात्र मां जीवित थी. वह  बेहद गरीब परिवार से थी. पिता एक पोस्टमैन थे. उनकी मृत्यु उसके बचपन में ही हो गई थी. तो प्रतिष्ठित पदधारी निनाद  का विवाह प्रस्ताव अम्बा  और उसकी मां को बेहद पसंद आया.शुभ मुहूर्त में दोनों का परिणय  संस्कार संपन्न हुआ .

विवाह  के उपरांत सुर्ख लाल जोड़े में सजी, पायल छनकाती अम्बा  निनाद के घर आ गई, लेकिन यह विवाह उसके जीवन में खुशियों के फूल कतई न खिला सका. निनाद एक बेहद कठोर स्वाभाव  का कलह  प्रिय इंसान था. बात-बात पर क्लेश  करना उसका मानो  जन्म सिद्ध अधिकार था. फूल सी कोमल तन्वंगी अम्बा  महीने भर में ही समझ गई  कि यह विवाह कर उसने जीवन की सबसे गुरुतर  भूल की है. दिनों दिन पति के क्लेश से उसका  खिलती कली सा मासूम मन और सौंदर्य कुम्हलाने  लगा.

निनाद  बात बात पर उसे अपने से कम हैसियत के परिवार का तायना देता.गाहे बगाहे  वह मां से मिलने जाती तो उस से लड़ता. मामूली बातों पर उससे उलझ पड़ता. बात बात पर उसे झिड़कता.

अम्बा  एक बेहद सुलझी हुई, समझदार और मैच्योर युवती  थी. वह भरसक निनाद को अपनी ओर से कोई मौका नहीं देती कि वह क्रुद्ध  हो लेकिन दुष्ट निनाद  किसी न किसी बात पर उससे रार  कर ही बैठता.

निनाद अम्बा  के विवाह को तीन  वर्ष बीत  चले.पति के खुराफ़ाती स्वभाव से त्रस्त अम्बा  कभी-कभी सोचती, पति से अलग होकर उसे इस यातना से मुक्ति मिल जाएगी.जिस दिन गले तक निनाद के दुर्व्यवहार से भर जाती, मां से अपनी व्यथा कथा साझा  करती.उससे अलग होने की मंशा जताती. लेकिन पुरातनपंथी मां हर बार उसे धीरज रखने की सलाह देकर चुप करा कर वापस अपने घर भेज देती.

एक  दिन लेकिन हद ही हो गई. उस दिन अम्बा  मां के घर से लौटी ही थी, कि रात के आठ  बजे तक टेबल पर डिनर सर्व ना होने की फ़िजूल सी बात पर निनाद उस पर गुस्से से फट पड़ा और उस दिन निनाद का बेवजह गुस्से से चीखना चिल्लाना सुन अम्बा  का धैर्य जवाब दे गया. वह उल्टे पैरों वापस मां के घर चली आई. बहुत सोच विचार कर मां के यहां एक माह  रहने के बाद उसने निनाद को फोन करके कहा “निनाद, अब मैं यहां माँ के साथ ही रहूँगी. तुम्हारे घर नहीं लौटूंगी. मुझे तुमसे तलाक चाहिए.’’

अम्बा की यह बात सुनकर निनाद अतीव क्रोध से बिफर उठा. अम्बा की तलाक की मांग उसे अपने पौरुष पर प्रहार लगी. सो गुस्से से भड़कते हुए वह चिल्लाया, “शौक से रहो माँ के साथ.मैं भी तुम्हारे बिना मरा नहीं जा रहा. जब चाहोगी तलाक मिल जाएगा.’’

मन ही मन समझता था कि वह पत्नी के साथ ज्यादती कर रहा है लेकिन अपने पुरुषोचित, अड़ियल  और अहंवादी  स्वाभाव से मजबूर था.

अम्बा तलाक की कार्यवाही शुरू करने के लिए एक अच्छे वकील की तलाश में जुट गई थी. अम्बा को माँ के यहां आए तीन माह हो चले थे.तभी अम्बा को एक अच्छी महिला वकील मिल गई थी और वह उससे मिलने ही वाली थी कि तभी  उन्हीं दिनों लंदन में एक कॉन्फ्रेंस में दोनों को जाना पड़ा. कॉन्फ्रेंस अटेंड कर एक ही फ़्लाइट से वे दोनों अपने देश लौटे ही थे कि लंदन में कोरोना  के प्रकोप के चलते  अपने शहर के एयरपोर्ट पर निनाद को हल्का बुखार निकला. फिर हौस्पिटल में दोनों का कोरोना का टेस्ट हुआ और उसमें  दोनों कोरोना पॉजिटिव निकले

कि तभी निनाद की  पुकार से उसकी तंद्रा टूटी और वह वर्तमान में वापस आई और दौड़ी-दौड़ी निनाद के पास गई.

निनाद आंखें बंद कर लेटा हुआ था.”अम्बा,  मेरे पास बैठो.  मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा.”

” कैसा लग रहा है निनाद?”

”  बहुत कमजोरी लग रही है और घबराहट हो रही है.”

“अरे घबराने की क्या बात है?  चलो मैं तुम्हारे लिए गर्मागर्म टमेटो सूप बनाकर लाती हूं.सूप पीकर तुम बेहतर फ़ील करोगे,” यह कहकर अम्बा  रसोई में जाकर दस  मिनट में सूप बनाकर ले आई.

” अम्बा,  हम दोनों ठीक तो हो जाएंगे ना?”

” हां हां बिल्कुल ठीक हो जाएंगे. डाक्टर ने कहा था न, हम दोनों के ही सिमटम्स बहुत माइल्ड हैं. डरने की कोई बात नहीं है. तुम सोने की कोशिश करो. सो लोगे तो बेहतर फील करोगे.”

” तुम भी जा कर आराम करो. तुम्हें भी तो थकान हो रही होगी.”

” नहीं नहीं, मेरा इंफेक्शन  शायद  कुछ ज्यादा ही माइल्ड है. मुझे कुछ गड़बड़ फील नहीं हो रहा. तुम सो जाओ.”

तभी निनाद ने अपना हाथ बढ़ाकर अम्बा का हाथ थाम उसे जकड़ लिया और उसे खींच कर अपने पास बिठाते हुए उससे बेहद मीठे स्वरों में बोला, “मुझसे नाराज़ हो? मैं अपनी पिछली गलतियों को लेकर बेहद शर्मिंदा हूं. मेरे पास बैठो. तुम मुझसे दूर चली जाती हो तो मुझे लगता है, मेरी जिंदगी मुझसे दूर चली गई. वापिस आजाओ अम्बा मेरी ज़िंदगी में. तुम्हारे बिना मैं बहुत अकेला हो गया हूँ.“ यह कह कर उसने उसकी  हथेली को चूम उसके हाथों को अपनी गिरफ़्त में जकड़ लिया.”

महीनों बाद पति के स्नेहिल स्पर्श और स्वरों  से अम्बा  एक अबूझ  मृदु ऐहसास  से भर उठी लेकिन दूसरे ही क्षण वह असमंजस से भर उठी. तीन वर्षों तक उसका दुर्व्यव्हार सह कर क्या अब उसे एक बार फिर उसके करीब आना चाहिए?

पति के हाथों को जकड़े जकड़े अम्बा  सोच रही थी, “काश, तुम पहले भी ऐसे ही रहते तो जिंदगी कितनी खुशनुमा होती.”

अगली सुबह निनाद  जब उठा तो उसके सर में तेज दर्द था. अम्बा  ने निनाद के फैमिली डॉक्टर को निनाद के चेकअप के लिए बुलाया. वह आए और निनाद  की हालत देख अम्बा  से बोले, “चिंता की कोई बात नहीं है. अभी भी इनके सिम्टम्स माइल्ड ही  हैं. हॉस्पिटलाइजेशन की जरूरत नहीं है. बस इन पर पूरे वक्त वॉच रखिए और तबीयत बिगड़े तो मुझे इन्फॉर्म करिए. आपको भी कोरोना का इंफेक्शन है. बेहतर होगा यदि आप एक नर्स रख लें.”

“नहीं-नहीं डॉक्टर, मैं बिल्कुल ठीक हूं.  ना मुझे कोई कमजोरी लग रही न ही कहीं दर्द है. आप निश्चिंत रहिए मैं इन पर पूरे वक्त वॉच रखूंगी.”

डाक्टर के जाने के बाद निनाद  ने अम्बा  से कहा, “तुम  इतना लोड लोगी तो तुम भी बीमार पड़ जाओगी. प्लीज कोई नर्स रख लो.”

“हां, इस बारे में सोचती हूं. तुम अभी सो जाओ.’’

निनाद को चादर उढ़ा वह दूसरे बेडरूम में अपने पलंग पर लेट गई. पिछले दिन से अम्बा गंभीर सोचविचार में मग्न थी. निनाद को लेकर वह कुछ फैसला नहीं कर पा रही थी. निनाद के रवैये से स्पष्ट था, वह अब समझौते के मूड में था, लेकिन क्या वह पिछले तीन वर्षों तक उसके दिये घावों को भुला कर उसकी इच्छानुसार उसके साथ एक बार फिर जिंदगी की नई शुरुआत कर पाएगी.वह घोर द्विविधा में थी. निनाद के बंधन को काट फेंके या फिर गुजरे दिनों को भुला कर एक नया आगाज़ करे? एक ओर उसका मन कहता, इंसान की फितरत कभी नहीं बदलती. उसने उसके साथ एक नई शुरुआत कर भी ली तो क्या गारंटी है कि वह उसे दोबारा तंग नहीं करेगा? तभी दूसरी ओर वह सोचती, जब निनाद ने अपनी गलती मान ली है तो एक मौका तो उसे देना ही चाहिए.अनायास उसके कानों में माँ के धीर गंभीर शब्द गूंज उठे, “रिश्तों की खूबसूरती उन्हें बनाए रखने में होती है, ना की उन्हें तोड़ने में.“

जिंदगी के इस मोड पर वह स्पष्टता से कुछ सोच नहीं पा रही थी, कि क्या करे.

बीमारी के इस दौर में निनाद एक दम बदला बदला नज़र आ रहा था. वह   बेहद डर गया था. वह एक बेहद डरपोक किस्म का, कमज़ोर दिल का इंसान था.उसे लगता वह कोरोना से मर जाएगा. ठीक नहीं होगा. वह बेहद कमज़ोरी फील कर रहा था. अम्बा  को यूं दिन रात अपनी देखभाल करते देख मन ही मन उसने न जाने कितनी बार अपने आप से दोहराया, “इस बार बस मैं ठीक हो जाऊं, अम्बा  को बिल्कुल तंग नहीं करूंगा. उसे पूरा प्यार और मान दूंगा. अब उसपर बिलकुल नहीं चिल्लाऊंगा.” अम्बा को इस तरह समर्पित भाव से अपनी सेवा करते देख वह गुजरे दिनों में उसके प्रति अपने दुर्व्यवहार को लेकर घोर  पछतावे से भर उठा. साथ ही कोरोना से मौत के खौफ ने उसे बहुत हद तक  बदल दिया था.

उस दिन रात का एक  बज रहा था. निनाद की तबीयत अचानक बिगड़ गई थी.  उसके हाथ पैरों में बहुत दर्द हो रहा था. वह बार-बार दर्द से हाथ पैर पटक रहा था. अम्बा  उसके हाथ पैर दबा रही थी. अम्बा  के हाथ पैर दबाने से उसे बेहद आराम लगा था और भोर होते होते वह गहरी नींद में सो गया था. इतनी देर तक उसके हाथ पैर दबाते दबाते अम्बा  भी थकान से बेदम हो गई थी लेकिन मन में कहीं अबूझ सुकून का भाव था. वह कोरोना की वज़ह से  निनाद में आए परिवर्तन को भांप रही थी. निनाद अब  बेहद बदल गया था. उसकी आंखों में अपने लिए प्यार का समुंदर उमड़ते  देख वह मानो  भीतर तक भीग  उठती लेकिन दूसरे की क्षण पुराने दिनों की याद कर भयभीत हो उठती.

अगली सुबह अम्बा ने डाक्टर को बुलवाया. उन्होंने निनाद के लिए कुछ दवाइयाँ लिख दीं. उन दवाइयों  से निनाद  की तबीयत धीमे धीमे सुधरने लगी थी. दस  दिनों में वह बिस्तर से उठ बैठा था.

वह  दिन उन दोनों की जिंदगी का एक अहम दिन था जब दोनों अस्पताल में टेस्ट के बाद कोरोना नेगेटिव निकले थे. अभी उन्हें चौदह दिनों तक क्वारंटाइन में और रहना था. सो दोनों फिर से निनाद के घर चले गए.

घर पहुंचकर निनाद ने अम्बा से  कहा, “अम्बा,  में ताउम्र तुम्हारा शुक्रगुजार रहूंगा कि तुम मेरी सारी ज़्यादतियाँ  भुलाकर मुझे मौत के मुंह से वापस खींच लाई. मैं वादा करता हूं तुमसे, अब कभी पुरानी  गलतियां  नहीं दोहराऊंगा. कभी बेबात तुम पर नहीं चिल्लाऊंगा. आई एम रीयली वेरी सॉरी. मुझे माफ कर दो.’’

“निनाद, तुम्हारे माफ़ी मांगने से क्या रो रो कर, कुढ़ते झींकते तुम्हारे साथ बिताए तीन साल अनहुए हो जाएँगे? उन तीन सालों में तुमने मुझे जो दर्द दिया, तुम्हारे सॉरी कह देने से क्या उनकी भरपाई हो जाएगी? मैं कैसे मान लूँ कि तुम अब पुरानी बातें नहीं दोहराओगे? नहीं नहीं, हम अलग अलग ही ठीक हैं. अब मुझमें तुम्हारी फ़िज़ूल की कलह को झेलने की सहनशक्ति भी नहीं बची है.मैं अकेले बहुत सुकून से हूँ.“

उसकी बातें सुन निनाद ने उससे फिर से मिन्नतें की “अम्बा, मेरा यकीन करो, तुमसे अलग रह कर अब मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है कि मैंने तुम्हारे साथ बहुत अन्याय किया. बेवज़ह तुमसे झगड़ा करता रहा. प्लीज़ अम्बा, एक बार मुझे माफ़ करदो. वादा करता हूँ, तुम्हें कभी मुझसे शिकायत नहीं होगी. प्लीज़ अम्बा.’’

निनाद की ये बातें सुन अम्बा को अभी तक यकीन नहीं हो रहा था कि यह वही निनाद है जो कुछ महीनों पहले तक उससे बात बात पर लड़ाई मोल लेता था. बहाने बहाने से उसे सताता था. कुछ सोच कर उसने निनाद से कहा, “इस बार तो मैं तुम्हारी बात मान  लेती हूँ, लेकिन एक बात कान खोलकर सुन लो, अगर  अब तुमने फिर से बेबात मुझसे कभी भी कलह की, बेवज़ह मुझसे झगड़े तो मैं उसी वक़्त  तुम्हें छोड़ कर चली जाऊँगी और तुमसे तलाक लेकर रहूंगी. पढ़ी लिखी अपने पैरों पर खड़ी हूं, अकेले जिंदगी काटने का दम खम  रखती हूं. इतने दिनों से अकेली बड़े चैन से रह ही रही हूँ. अब मैं तुम्हें अपनी मानसिक शांति भंग करने की इज़ाजत  हर्गिज़ हर्गिज़  नहीं दूँगी. ना ही अपनी बेइज्ज़ती करवाऊंगी. तुम्हें अपनी गलती का एहसास हो गया, इसलिए इस बार तो मैंने तुम्हें माफ़ किया लेकिन याद रखना, अगली बार तुम्हें कतई माफ़ी नहीं मिलेगी.“

“नहीं, नहीं अम्बा, भरोसा रखो, अब मैं तुम्हें शिकायत का मौका हर्गिज़ हर्गिज़ नहीं दूंगा. मैं वास्तव में अपनी पुरानी ज़्यादतियों के लिए बहुत शर्मिंदा हूँ. अब हम एक नई जिंदगी की शुरुआत करेंगे. जिंदगी की यह दूसरी पारी तुम्हारे नाम, माय लव,” यह  कहते हुए निनाद ने अम्बा  को अपने सीने से लगा लिया था .

पति की बाहों में बंधी अम्बा  को लगा, मानो पूरी दुनिया उसकी मुट्ठी में थी. निनाद  के साथ साझा, सुखद  भविष्य के सतरंगे  सपने उसकी आंखों में झिलमिला उठे.उसे लगा, एक अर्से बाद उसके चारों ओर खुशियों के फ़ूल गमक महक उठे थे.

नया रिश्ता : पार्वती और विशाल ने बुढ़ापे में एक-दूसरे को अपना जीवनसाथी चुना

लेखक-ताराचंद मकसाने

अमित की मम्मी पार्वती ने शरमाते हुए विशाल कुमार को अंगूठी पहनाई तो अमित की पत्नी शिवानी और उन के बच्चे अनूप व अतुल ने अपनी दादी पर फूलों की बरसात करनी शुरू कर दी. बाद में विशाल कुमार ने भी पार्वती को अंगूठी पहना दी. माहौल खुशनुमा हो गया, सभी के चेहरे खिल उठे, खुशी से झूमते बच्चे तो अपने नए दादा की गोद में जा कर बैठ गए.

यह नज़ारा देख कर अमित की आंखें नम हो गईं. वह अतीत की यादों में खो गया. अमित 5 वर्षों से शहर की सब से पौश कालोनी सनराइज सोसाइटी में रह रहा था. शिवानी अपने मिलनसार स्वभाव के कारण पूरी कालोनी की चहेती बनी हुई थी. कालोनी के सभी कार्यक्रमों में शिवानी की मौजूदगी अकसर अनिवार्य होती थी.

अमित के मातापिता गांव में रहते थे. अमित चाहता था कि वे दोनों उस के साथ मुंबई में रहने के लिए आ जाएं मगर उन्होंने गांव में ही रहना ज्यादा पसंद किया. वे साल में एकदो बार 15-20 दिनों के लिए जरूर अमित के पास रहने के लिए मुंबई आते थे. मगर मुंबई आने के 8-10 दिनों बाद ही गांव लौटने का राग आलापने लग जाते थे.

वक्त बीत रहा था. एक दिन रात को 2 बजे अमित का मोबाइल बजा.

‘हैलो, अमित बेटा, मैं तुम्हारे पिता का पड़ोसी रामप्रसाद बोल रहा हूं. बहुत बुरी खबर है, तुम्हारे पिता शांत हो गए है. अभी घंटेभर पहले उन्हें हार्ट अटैक आया था. हम उन्हें अस्पताल ले कर जा रहे थे, रास्ते में ही उन्होंने दम तोड़ दिया.’

अपने पिता की मृत्यु के बाद अमित अपनी मम्मी को अपने साथ मुंबई ले कर आ गया. बतौर अध्यापिका सेवानिवृत्त हुई पार्वती अपने पति के निधन के बाद बहुत अकेली हो गई थी. पार्वती को पुस्तकें पढ़ने का बहुत शौक था. अमित और शिवानी के नौकरी पर जाने के बाद वह अपने पोते अनूप और अतुल को पढ़ाती थी. उन के होमवर्क में मदद भी करती थी.

पार्वती को अमित के पास आए 2 साल हो गए थे. अमित के पड़ोस में विशाल कुमार रहते थे. वे विधुर थे, नेवी से 2 साल पहले ही रिटायर हो कर रहने के लिए आए थे. उन का एक ही बेटा था जो यूएस में सैटल हो गया था. एक दिन शिवानी ने पार्वती की पहचान विशाल कुमार से करवाई. दोपहर में जब बच्चे स्कूल चले जाते थे तब दोनों मिलते थे. कुछ दिनों तक दोनों के बीच औपचारिक बातें होती थीं. धीरेधीरे औपचारिकता की दीवार कब ढह गई, उन्हें पता न चला. अब दोनों के बीच घनिष्ठता बढ़ गई. पार्वती और विशाल कुमार का अकेलापन दूर हो गया.

एक दिन शिवानी ने अमित से कहा- ‘अमित, पिछले कुछ दिनों से मम्मी में आ रहे बदलाव को तुम ने महसूस किया क्या?’

अमित की समझ में कुछ नहीं आ रहा था, उस ने विस्मय से पूछा- ‘मैं कुछ समझा नहीं, शिवानी, तुम क्या कह रही हो?’

‘अरे अमित, मम्मी अब पहले से ज्यादा खुश नज़र आ रही हैं, उन के रहनसहन में भी अंतर आया है. पहले मम्मी अपने पहनावे पर इतना अधिक ध्यान नहीं देती थीं, आजकल वे बहुत ही करीने से रह रही हैं. उन्होंने अपने संदूक से अच्छीअच्छी साड़ियां निकाल कर वार्डरोब में लटका दी हैं. आजकल वे शाम को नियमितरूप से घूमने के लिए जाती हैं…’

अमित ने शिवानी की बात बीच में काटते हुए पूछा- ‘शिवानी, मैं कुछ समझा नहीं, तुम क्या कह रही हो?’

‘अरे भई, मम्मी को एक दोस्त मिल गया है. देखते नहीं, आजकल उन का चेहरा खिला हुआ नज़र आ रहा है.’

‘व्हाट…कैसा दोस्त, कौन दोस्त, शिवानी. प्लीज पहेली मत बुझाओ, खुल कर बताओ.’

‘अरे अमित, आजकल हमारे पड़ोसी विशाल अंकल और मम्मी के बीच याराना बढ़ रहा है,’ यह कहती हुई शिवानी खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘वाह, यह तो बहुत अच्छी बात है. मम्मी वैसे भी अकेली पड़ गई थीं. वे हमेशा किताबों में ही खोई रहती थीं. कोई आदमी दिनभर किताबें पढ़ कर या टीवी देख कर अपना वक्त भला कैसे गुजार सकता है. कोई तो बोलने वाला चाहिए न. चलो, अच्छा हुआ मगर यह सब कब से हो रहा है, मैं ने तो कभी महसूस नहीं किया. तुम्हारी पारखी नज़रों ने यह सब कब भांप लिया? शिवानी, यू आर ग्रेट…’ अमित ने विस्मय से कहा.

‘अरे अमित, तुम्हें अपने औफिस के काम, मीटिंग, प्रोजैक्ट्स आदि से फुरसत ही कहां है, मम्मी अकसर मुझ से तुम्हारी शिकायत भी करती हैं कि अमित को तो मुझ से बात करने का वक्त भी नहीं मिलता है,’ शिवानी ने शिकायत की तो अमित तुरंत बोला, ‘हां शिवानी, तुम सही कह रही हो, आजकल औफिस में इतना काम बढ़ गया है कि सांस लेने की फुरसत तक नहीं मिलती है. मगर मुझे यह सुन कर अच्छा लगा कि अब मम्मी बोर नहीं होंगी. साथ ही, हमें कभी बच्चों को ले कर एकदो दिन के लिए बाहर जाना पड़ा तो मम्मी घर पर अकेली भी रह सकती हैं.’ अमित ने अपने दिल की बात कह दी.

‘मगर अमित, मैं कुछ और सोच रही हूं,’ शिवानी ने धीरे से रहस्यमयी आवाज में कहा तो अमित ने विस्मयभरी आंखों से शिवानी की सूरत को घूरते हुए कहा- ‘हां, बोलो, बोलो, तुम क्या सोच रही हो?’

‘मैं सोच रही हूं कि तुम विशाल अंकल को अपना पापा बना लो,’ शिवानी ने तुरुप का पता फेंक दिया.

‘क्या…तुम्हारा दिमाग तो नहीं खिसक गया,’ अमित लगभग चिल्लाते हुए बोला.

‘अरे भई, शांत हो जाओ, पहले मेरी बात ध्यान से सुनो. मम्मी अकेली हैं, उन के पति नहीं हैं. और विशाल अंकल भी अकेले हैं व उन की पत्नी नहीं हैं. जवानी की बनिस्पत बुढ़ापे में जीवनसाथी की जरूरत ज्यादा होती है. मम्मी और विशाल अंकल दोनों सुलझे हुए विचारों के इंसान हैं, दोनों सीनियर सिटिजन हैं और अपनी पारिवारिक व सामाजिक जिम्मेदारियों से मुक्त हैं.

‘विशाल अंकल का इकलौता बेटा है जो यूएस में सैटल है. विशाल अंकल के बेटे सुमित और उस की पत्नी तान्या से मेरी अकसर बातचीत भी होती रहती है. वे दोनों भी चाहते हैं कि उन के पिता यूएस में हमेशा के लिए आ जाएं मगर उन्हें तो अपने वतन से असीम प्यार है, वे किसी भी कीमत पर वहां जाने को राजी नहीं, सेना के आदमी जो ठहरे. फिर उन का तो कहना है कि वे आखरी सांस तक अपने बेटे और बहू को भारत लाने की कोशिश करते रहेंगे. मगर वे अपनी मातृभूमि मरते दम तक नहीं छोडेंगे.’ अमित बड़े ध्यान से शिवानी की बात सुन रहा था.

शिवानी ने किंचित विश्राम के बाद कहा, ‘अमित, अब मैं मुख्य विषय पर आती हूं. तुम ने ‘लिवइन रिलेशनशिप’ का नाम तो सुना ही होगा.’

शिवानी की बात सुन कर अमित के चेहरे पर अनभिज्ञता के भाव तेजी से उभरने लगे जिन्हें शिवानी ने क्षणभर में पढ़ लिया और अमित को समझाते हुए बोली- ‘अमित, आजकल हमारे देश में विशेषकर युवाओं और बुजुर्गों के बीच एक नए रिश्ते का ट्रैंड चल रहा है जिसे ‘लिवइन रिलेशनशिप’ कहते हैं. इस में महिला और पुरूष शादी के बिना अपनी सहमति के साथ एक ही घर में पतिपत्नी की तरह रह सकते हैं. आजकल शिक्षित और आर्थिक रूप से स्वतंत्र लोग इस तरह की रिलेशनशिप को अधिक पसंद करते है क्योंकि इस में विवाह की तरह कानूनी प्रक्रिया से गुजरना नहीं पड़ता है. भारतीय कानून में भी इसे स्वीकृति दी गई है.

‘शादी के टूटने के बाद आप को कई तरह की कानूनी प्रक्रियाओं से गुजरना पडता है मगर इस रिश्ते में इतनी मुश्किलें नहीं आती हैं. लिवइन रिलेशनशिप में रहने का फैसला आप को सामाजिक व पारिवारिक दायित्वों से मुक्ति देता है. इस रिश्ते में सामाजिक व पारिवारिक नियम आप पर लागू नहीं होते हैं. अगर यह रिश्ता टूट भी जाता है तो आप इस में से आसानी बाहर आ सकते हैं. इस में कोई कानूनी अड़चन भी नहीं आती है. इसलिए मैं चाहती हूं कि…’ बोलती हुई शिवानी फिर रुक गई तो अमित अधीर हो गया और झल्लाते हुए बोला- ‘अरे बाबा, लगता है तुम ने ‘लिवइन रिलेशनशिप’ विषय में पीएच डी कर रखी है. पते की बात तो बता नहीं रही हो, लैक्चर दिए जा रही हो.’

‘अरे यार, बता तो रही हूं, थोड़ा धीरज रखो न,’ शिवानी ने मुसकराते हुए कहा.

‘ठीक है, बताओ,’ अमित ने बात न बढ़ाने की मंशा से कहा.

‘अमित, मैं चाहती हूं कि हम मम्मी और विशाल अंकल को ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रहने के लिए राजी कर लेते हैं ताकि दोनों निश्चिंत और स्वच्छंद हो कर साथसाथ घूमफिर सकें,’ शिवानी ने अपने मन की बात कह दी.

‘मगर शिवानी, क्या मम्मी इस के लिए तैयार होंगी?’ अमित ने संदेह व्यक्त किया.

‘क्यों नहीं होंगी, वैसे भी आजकल दोनों छिपछिप एकदूसरे से मिल रहे हैं, मोबाइल पर घंटों बात करते हैं. लिव इन रिलेशनशिप के लिए दोनों तैयार हो जाएंगे तो वे दुनिया से डरे बगैर खुल कर मिल सकेंगे, साथ में भी रह सकेंगे,’ शिवानी ने अमित को आश्वस्त करते हुए कहा.

‘इस के लिए मम्मी या विशाल अंकल से बात करने की मुझ में तो हिम्मत नहीं है बाबा,’ अमित ने हथियार डालते हुए कहा.

‘इस की चिंता तुम न करो, अमित. अपनी ही कालोनी में रहने वाली मेरी एक खास सहेली रेणू इस मामले में मेरी सहायता करेगी. वह इस प्रेमकहानी से भलीभांति वाकिफ भी है. हम दोनों मिल कर इस शुभकार्य को जल्दी ही अंजाम दे देंगे. हमें, बस, तुम्हारी सहमति का इंतजार है,’ शिवानी ने विश्वास के साथ यह कहा तो अमित की व्यग्रता कुछ कम हुई.

उस ने शांत स्वर में कहा, ‘अगर मम्मी इस के लिए तैयार हो जाती हैं तो भला मुझे क्यों एतराज होगा. उन्हें अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने का हक तो है न.’

अमित की सहमति मिलते ही शिवानी और रेणु अपने मिशन को अंजाम देने में जुट गईं. शिवानी को यह विश्वास था कि पार्वती और विशाल अंकल पुराने जमाने के जरूर हैं मगर उन्हें आधुनिक विचारधारा से कोई परहेज नहीं है. दोनों बहुत ही फ्लैग्जिबल है और परिवर्तन में यकीन रखते हैं. एक संडे को शिवानी और रेणू गुलाब के फूलों के एक सुंदर गुलदस्ते के साथ विशाल अंकल के घर पहुंच गईं.

विशाल कुमार ने अपने चिरपरिचित मजाकिया स्वभाव में उन का स्वागत करते हुए कहा- ‘वाह, आज सूरज किस दिशा में उदय हुआ है, आज तो आप दोनों के चरण कमल से इस गरीब की कुटिया पवित्र हो गई है.’

शिवानी और रेणू ने औपचारिक बातें समाप्त करने के बाद मुख्य बात की ओर रुख किया. रेणू ने कहना शुरू किया-

‘अंकल, आप की और पार्वती मैडम की दोस्ती से हम ही नहीं, पूरी कालोनी वाकिफ है. इस दोस्ती ने आप दोनों का अकेलापन और एकांतवास खत्म कर दिया है. कालोनी के लोग क्या कहेंगे, यह सोच कर अकसर आप दोनों छिपछिप कर मिलते हैं. अंकल, हम चाहते हैं कि आप दोनों ‘औफिशियली’ एकदूसरे से एक नया रिश्ता बना लो और दोनों खुल कर दुनिया के सामने आ जाओ…’

कुछ गंभीर बने विशाल कुमार ने बीच में ही पूछा, ‘मैं समझा नहीं, रेणू. तुम कहना क्या चाहती हो?’

‘अंकल, आप और पार्वती मैडम ‘लिवइन रिलेशनशिप’ बना लो, फिर आप को दुनिया का कोई डर नहीं रहेगा. आप कानूनीरूप से दोनों साथसाथ रह सकते हैं और घूमफिर सकते हैं,’ यह कहती हुई शिवानी ने ‘लिव इन रिलेशनशिप’ के बारे में विस्तृत जानकारी विशाल अंकल दे दी.

विशाल अंकल इस के लिए तुरंत राजी होते हुए बोले-

‘यह तो बहुत अच्छी बात है. दरअसल, मेरे और पार्वती के बीच अब तो अच्छी कैमिस्ट्री बन गई है. हमारे विचारों में भी बहुत समानता है. हम जब भी मिलते हैं तो घंटों बाते करते हैं. पार्वती को हिंदी साहित्य की अकूत जानकारी है. उस ने अब तक मुझे हिंदी की कई प्रसिद्ध कहानियां सुनाई हैं.’

‘अंकल, अब पार्वती मैडम को लिवइन रिलेशनशिप के लिए तैयार करने की जिम्मेदारी आप की होगी.’

‘यस, डोन्ट वरी, आई विल डू इट. मगर जैसे आप दोनों ने मुझ से बात की है, वैसे एक बार पार्वती से भी बात कर लो तो ज्यादा ठीक होगा, बाकी मैं संभाल लूंगा.’

विशाल अंकल को धन्यवाद दे कर शिवानी और रेणू खुशीखुशी वहां से विदा हुईं. अगले संडे दोनों ने पार्वती से बात की. पहले तो उन्होंने ना नू, ना नू किया, मगर शिवानी और रेणू जानती थीं कि पार्वती दिल से विशाल कुमार को चाहती हैं और वे इस रिश्ते के लिए न नहीं कहेंगी, फिर उन दोनों की बेहतर कन्विन्सिंग स्किल के सामने पार्वती की ‘ना’ कुछ ही समय के बाद ‘हां’ में बदल गई.

शिवानी ने दोनों की ‘लिव इन रिलेशनशिप’ की औपचारिक घोषणा के लिए एक दिन अपने घर  पर एक छोटी पार्टी रखी थी, जिस में अमित, शिवानी और विशाल कुमार के बहुत करीबी दोस्त ही आमंत्रित थे. विशाल और पार्वती ने एकदूसरे को अंगूठियां पहना कर इस नए रिश्ते को सहर्ष स्वीकर कर लिया.

“अरे अमित, कहां खो गए हो, अपनी मम्मी और नए पापा को केक तो खिलाओ,” शिवानी ने चिल्ला कर यह कहा तो अमित अतीत से वर्तमान में लौटा.

इस नए रिश्ते को देख अमित की नम आंखों में भी हंसी चमक उठी.

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