हाल ही में दिल्ली के आदर्श नगर की महिला को कष्ट हरने और मनोकामना पूरी करने का भरोसा दे कर दो बाबाओं ने लूट लिया. ये दो ‘फूंक मार’ बाबा थे जिन्होंने माल डबल करने के बहाने नीलम नाम की इस महिला से गहने मंगाए और सब ले कर फरार हो गए.

 

नीलम का पति फ्रूट शौप चलाता है. वह अपने पति को खाना दे कर दोपहर 3 बजे घर लौट रही थी. तभी गली में दो लोग मिले जिन्होंने तांत्रिकों जैसे कपड़े पहने थे. वे नीलम को रोक कहने लगे कि उन पर हनुमानजी की कृपा रहती है. इसलिए मंत्र फूंक कर किसी की भी मनोकामना पूरी कर देते हैं. दोनों ने नीलम से पूछा कि इन दिनों परिवार में पैसों की तंगी बनी रहती है. नीलम के हामी भरते ही दोनों ने उसे मंदिर चलने को कहा ताकि मंदिर में पूजा अनुष्ठान कर के सारे कष्ट हमेशा के लिए खत्म कर दें. नीलम उन की बातों में आ गई और दोनों के साथ पैदल शनि मंदिर पहुंची.

फिर पास के पार्क में बैठ कर दोनों ने पहले कुछ मंत्र फूंके. फिर उस की सोने की बालियां ले लीं. साथ ही मोबाइल भी रख लिया. दोनों बाबाओं ने कहा कि घर में जो भी सोने की जूलरी और कैश है वह ले आओ. उस पर फूंक मार कर जूलरी और कैश को डबल करने का दावा किया. महिला दोनों बाबाओं पर भरोसा कर के अपने घर पहुंची और एक जोड़ी चांदी की पायल, सोने का मंगलसूत्र, सोने का लौकेट और 20 हजार कैश ले कर आ गई. फिर यह सब तिकोना पार्क में उन दोनों बाबाओं को दे दिया. दोनों ने पूरे सामान में फूंक मारी. मंत्र पढ़े फिर राख जैसी चीज मुट्ठी में देकर कहा कि चौराहे पर जा कर अपने सिर से घुमाकर पीछे की और फेंक देना. रास्ते में पीछे मुड़ कर मत देखना. नीलम ने वैसा ही किया. फिर लौट कर वापस पहुंची तो वो दोनों बाबा गायब मिले.

चमत्कार की ख्वाहिश और विज्ञान की हकीकत

दरअसल हम हमेशा ही चमत्कार की तलाश में रहते हैं. हम चाहते हैं हमें बिन मेहनत कहीं से अचानक बहुत सारी दौलत मिल जाए. हमें एकदम से कोई हैंडसम या खूबसूरत पार्टनर मिल जाए. हमारी सब समस्याएं एकदम से खत्म हो जाएं. हम सो कर उठें और हमारी उम्र 10 साल पीछे चली जाए. हम बिल्कुल स्वस्थ हो जाएं. हमारी लौटरी निकल जाए या फिर हमें कोई गढ़ा हुआ धन या खजाना मिल जाए. कहने का मतलब यह कि हम अपने जीवन में सदैव कुछ चमत्कार की ख्वाहिश रखते हैं. इस के लिए हम दूसरों का मुंह ताकते हैं. हमें लगता है कोई चमत्कारी शख्स ही हमारे लिए इस तरह का कोई चमत्कार कर सकता है. ऐसे में अगर कोई फरेबी बाबा, फ़कीर या गुरु हमें इस बात का आश्वासन देता है तो हम एकदम से उस के कहे अनुसार काम करने लगते हैं ताकि वह हमारे लिए तुरंत कोई चमत्कार कर दे.

हमारे धर्म ग्रन्थ, धार्मिक पुस्तकें, धार्मिक रीतिरिवाज से जुड़ी कहानियां और मुल्ला, पादरी, पंडेपुजारी सब हमें चमत्कार की कहानियां सूना कर अपना अंधभक्त बनाने की कोशिश में रहते हैं. आप कोई भी धार्मिक किताब उठा कर पढ़ो उस में कितनी ही चमत्कार की कहानियां मिल जाएंगी. कृष्ण ने बचपन में ही कितने सारे चमत्कार कर डाले थे तो हनुमान भी चमत्कारों में कम नहीं थे. रीतिरिवाजों से जुड़ी कहानियां भले ही वह सावित्री की हों या प्रह्लाद की, तीज की हो या करवा चौथ की चमत्कार हर जगह मिल जाएगा.

हमारे यहां चमत्कार की बहुत सी घटनाओं को धार्मिक रूप से महिमा मंडित किया जाता रहा है. मगर वे घटनाएं वैज्ञानिक धरातल पर महज विज्ञान की सामान्य घटनाएं पाई गईं. याद कीजिए 21 सितंबर 1995 का दिन जब दुनिया का सब से महान धार्मिक चमत्कार घटित होने की अफवाह उड़ी थी. दुनियाभर की मूर्तियों ने दूध पीना शुरु कर दिया था. इस के बाद यही घटना दोबारा 2006 में घटी. भारत के सभी न्यूज़ चैनलों सहित बीबीसी, सीएनएन, वाशिंगटन पोस्ट, न्यूयौर्क टाइम्स, डेली एक्सप्रेस आदि दुनियाभर के अखबारों और चैनलों ने इस को कवरेज दिया था.

तर्कवादी लोग चमत्कार होने की बातों का पुरजोर विरोध करते हैं क्योंकि अधिकतर कथित चमत्कारों का कोई न कोई वैज्ञानिक आधार होता ही है. इस अफवाह का ही मामला लीजिए. तब हजारों की संख्या में श्रद्धालु मंदिरों के बाहर कतारें लगा कर भगवान को दूध पिलाने पहुंच गए थे. अंत में यह भौतिकी का एक सामान्य सा नियम निकला और हमें पता लग गया था कि एक चम्मच से दूध कैसे गायब हो जाता है और गुरुत्व बल के कारण कैसे वह धरती की ओर चला जाता है.

ऐसी मान्यता है कि रामसेतु बनाने के लिए जिन पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था वे पत्थर राम नाम लिखा होने की वजह से पानी में फेंकने के बाद समुद्र में नहीं डूबे बल्कि पानी की सतह पर ही तैरते रहे. कुछ लोग इसे धार्मिक महत्व देते हुए ईश्वर का चमत्कार मानते हैं लेकिन साइंस इस के पीछे जो तर्क देता है वह बिल्कुल विपरीत है.

दरअसल कुछ ऐसे पत्थर होते हैं जिस में कई सारे छिद्र होते हैं. छिद्रों की वजह से यह पत्थर एक स्पौजी यानी कि खंखरा आकार ले लेता है जिस कारण इन का वजन भी सामान्य पत्थरों से काफी कम होता है. इस खास पत्थर के छिद्रों में हवा भरी रहती है. यही कारण है कि यह पत्थर पानी में जल्दी डूबता नहीं है क्योंकि हवा इसे ऊपर ही रखती है.

एक और सब से आम चमत्कार है एक नारियल पर पानी छिड़क कर किसी के शरीर से भूत निकालना. आम तौर पर कथित चमत्कार करने वाले व्यक्ति ने नारियल के रेशों में सोडियम का टुकड़ा छिपाया होता है. जब उस पर पानी छिड़का जाता है तो सोडियम आग पकड़ लेता है और उस से धुंआ उठने लगता है. लोगों यह सोच कर मूर्ख बन जाते हैं कि भूत को पीड़ित के शरीर से निकाल दिया गया है. वास्तव में यह और कुछ नहीं बल्कि पानी और सोडियम की ऊष्मा पैदा करने वाली अभिक्रिया है जिसे भूत निकाले जाने का नाम दे दिया जाता है.

कुछ समय पहले सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा था जिस में एक शख्स बता रहा था कि गंगाजी के पानी में इतना चमत्कार है कि छलनी से पानी नहीं गिरेगा. वीडियो में वह शख्स एक गिलास में पानी भर कर उसे छलनी पर रख कर उल्टा कर देता है लेकिन गिलास का पानी एक बूंद भी नहीं गिरा.

दरअसल इस में कोई चमत्कार नहीं बल्कि विज्ञान है. इसे आप भी घर पर ट्राय कर सकते हैं. वैसे तो छलनी में पानी नहीं रुकता है लेकिन विज्ञान की एक तकनीक का इस्तेमाल कर आप छलनी से पानी गिरने से रोक सकते हैं. इसे पृष्ठ तनाव कहते हैं. जब आप सावधानी से छलनी पर रखे गिलास को उल्टा करते हैं तो एक परत बन जाती है जो पानी को गिरने से रोकती है. इस वीडियो को देखने के बाद एक सोशल मीडिया यूजर ने लिखा कि यह चमत्कार तो है लेकिन विज्ञान का. एक ने लिखा कि इसी तरह विज्ञान दिखा कर चमत्कार बताते रहो हम विश्व गुरु बन जाएंगे. वीडियो को सोशल मैसेज नाम के फेसबुक पेज से शेयर किया गया था. इस वीडियो को कुछ ही दिनों में 20-25 मिलियन से अधिक लोगों ने देखा. हैरानी की बात यह कि अधिकतर लोग इसे चमत्कार मानने लगे.

देखा जाए तो भारत के संविधान का अनुच्छेद 51 ए (एच) ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवीयता और जांच एवं सुधार की भावना का विकास’ करने पर जोर देता है. यहीं इन कथित चमत्कारों और आधुनिक विज्ञान की समझ के बीच टकराव पैदा होता है. लेकिन भारत एक ऐसी जटिल सभ्यता है जहां आस्था, विज्ञान, धर्म और अंधविश्वास सब साथ साथ रहते हैं.

भारत रत्न से सम्मानित किए गए देश के प्रतिष्ठित वैज्ञानिक प्रोफैसर सीएनआर राव से एक सवाल पूछे जाने पर उन्होंने कहा था, ‘मैं चमत्कारों में यकीन नहीं रखता. मैं एक बात आप को बता देना चाहता हूं कि भारत में धर्म, विश्वास, अंधविश्वास और विज्ञान के बीच एक उलझन है. हर किसी को किसी न किसी चीज में आस्था होनी चाहिए. उदाहरण के लिए यदि आप विज्ञान से जुड़े हैं तो आप को भौतिकी के नियमों पर विश्वास होना चाहिए. यदि कोई दर्शन या ईश्वर में आस्था रखता है तो मैं उस के खिलाफ नहीं हूं. हालांकि इस से अंधविश्वास पैदा नहीं होना चाहिए.’

मदर टेरेसा के चमत्कार

सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी चमत्कार की बहुत महिमा देखी जाती है. उदाहरण के लिए मदर टेरेसा नाम से दिमाग में एक तस्वीर उभरती है. नीली धारियों वाली सफेद धोती में लिपटी हुई एक महिला जो बीमार और गरीब लोगों की सेवा कर रही हो. उन को नोबेल शांति पुरस्कार और भारत रत्न से सम्मानित किया गया. वह एक उच्च कोटि की महिला थी लेकिन उन्हें संत का दर्जा मरने के कई साल बाद मिला.

दरअसल ईसाई धर्म में संत होना इतना आसान नहीं. बाक़ायदा पूरी प्रक्रिया का पालन होता है. रिज्यूमे भेजा जाता है, क्रेडेंशियल चेक होते हैं और देखा जाता है कि उस ने कितने चमत्कार किए. दुनिया में रह कर अच्छे काम किए हों ये भी काफ़ी नहीं. दुनिया से चले जाने के बाद भी ज़रूरी है कि संतत्व की झलकियां मिलती रहें. मदर टेरेसा के संतत्व को ले कर किसी को शक नहीं होने के बावजूद आधिकारिक ऐलान ज़रूरी था. चर्च को इंतजार था दो चमत्कारों का जो कथित तौर पर हुए भी और तभी उन्हें यह उपाधि मिली.

मदर टेरेसा का पहला चमत्कार : मोनिका बेसरा का उपचार

मोनिका बेसरा का ट्यूमर ठीक होना पहला चमत्कार था जिस के कारण मदर टेरेसा को संत घोषित किया गया. मोनिका के पेट में लगभग 16 सेंटीमीटर का ट्यूमर था. एक दिन मोनिका प्रार्थना सभा में गई और उस ने मदर टेरेसा की तस्वीर से प्रकाश की किरण निकलती देखी. बाद में एक पदक जिसे अंतिम संस्कार के समय मदर टेरेसा के शरीर पर सीधे स्पर्श कराया गया था. उसे मोनिका के पेट पर रखा गया और एक बहुत ही सरल प्रार्थना की गई, ‘मदर आज आप का दिन है. आप गरीबों से प्यार करती हैं. मोनिका के लिए कुछ करें.’

करीब 8 घंटे बाद मोनिका का ट्यूमर पूरी तरह से गायब हो गया था. ग्यारह डाक्टरों ने मोनिका के मामले की जांच की और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ट्यूमर इतनी जल्दी कैसे गायब हो गया इस का कोई मैडिकल स्पष्टीकरण नहीं है. वेटिकन ने मोनिका के ठीक होने को मदर टेरेसा के पहले चमत्कार के रूप में स्वीकार किया. मोनिका बेसरा का चमत्कारी उपचार 2002 में हुआ था और अक्तूबर 2003 में पोप सेंट जौन पौल द्वितीय ने मदर टेरेसा को संत घोषित किया था.

नेशनल कैथोलिक रजिस्टर के अनुसार, ‘दूसरा चमत्कार दिसंबर 2008 में ब्राजील में हुआ. ब्राजील के सांतोस के 42 वर्षीय मैकेनिकल इंजीनियर मार्सीलियो हेडाड एंड्रिनो को मस्तिष्क में बेक्टीरिया का संक्रमण हो गया था. इस के कारण मस्तिष्क में एक बड़ा फोड़ा हो गया था और सिर में भारी दर्द उठता था.’ इस के अनुसार, ‘एक पादरी के मित्र ने इस नवविवाहित युवक और उस की पत्नी फर्नेडा नासीमेंटो रोचा से मदर टेरेसा की मदद के लिए प्रार्थना करने को कहा. एंड्रिनो तो कोमा में चला गया लेकिन रोचा ने प्रार्थना की. उस समय एंड्रिनो को उस की अंतिम गंभीर सर्जरी के लिए ले जाया गया. इस में कहा गया, जब सर्जन औपरेशन कक्ष में दाखिल हुआ तो उस ने एंड्रिनो को जागा हुआ पाया और वह सर्जन से पूछ रहा था- क्या चल रहा है? एंड्रिनो पूरी तरह ठीक हो गया और इस दंपति के दो बच्चे हुए. चिकित्सकों ने ऐसा होना भी चिकित्सीय रूप से असंभव करार दिया था.

इन चमत्कारों की तथाकथित रूप से पुष्टि की गई और इन्हीं के चलते 2016 में मदर टेरेसा को संत की उपाधि दे दी गई. जाहिर है अपने जीवनकाल में ही ‘गरीबों की मददगार’ और हजारों जरूरतमंदों के लिए ‘जीवित ईश्वर’ कहला चुकी मदर टेरेसा को मरने के बाद संत की उपाधि दी गई. यह इंतजार किया गया कि उन की आत्मा कोई चमत्कार करे. मेसेडोनिया में जन्मीं कैथोलिक नन एग्नेस गोंक्शे बोयाशियु का लोगों की सेवा के लिए पश्चिम बंगाल तक आना और गरीबों तथा बीमारों के लिए काम करना अपने आप में एक खासियत है. लेकिन गरीबों की सेवा का असीम हौसला अपने अंदर समेटे महिला के बारे में यह कहना अतार्किक जैसा है कि उस ने मरने के बाद ‘चमत्कार’ किए और तब उन्हें संत माना गया. मदर टेरेसा के नाम से इन कथित चमत्कारों को जोड़े बिना भी उन्हें संत बनाया जा सकता था.

पाखंडी बाबाओं की हकीकत

नए जमाने के इन बाबाओं के क्या कहने. बैठने के लिए भव्य सिंहासन चाहिए. घूमने के लिए लंबी गाड़ी और ए-ग्रेड बाबा है तो हेलिकौप्टर से कम में काम नहीं चलता. इन का ईश्वर से सीधा कनैक्शन है फिर भी ज़ेड प्लस सिक्यूरिटी चाहिए. बाबा के आसपास 10-20 चेलाचेली दौड़ते रहते हैं. राजनेता इन के आशीर्वाद लेने आ रहे हैं. जहां ये प्रवचन झाड़ते हैं वहां फूलों से भव्य सजावट की जाती है. शहंशाही आसन पर बाबा विराजमान होता है. जनता बेवकूफ है. उन्हें लगता है कि ऐसा करके वे चमत्कार पाएंगे.

बाबाओं की झोलियां लगातार भरती रहती है. बाबाओं के नाम प्रौपर्टी की भरमार, होटल, फ्लैट्स, बड़ीबड़ी गाड़ियां. बाबा के बैंक खाते में हर दिन करोड़ों रुपए आते हैं. ये है 21वीं सदी का अंधविश्वासी भारत. कौन कहता है भारत में पैसे की कमी है. गरीब से गरीब और धनी से धनी बाबा के लिए अपनी संपत्ति कुर्बान कर देना चाहता है.

ये बाबा भी बड़ी सोचसमझ कर ऐसे लोगों को अपना लक्ष्य बनाते हैं जो असुरक्षित हैं. आस्था और अंधविश्वास के बीच बहुत छोटी लकीर होती है जिसे मिटा कर ऐसे बाबा अपना काम निकालते हैं. नौकरी के लिए तरसता व्यक्ति या फिर बेटी की शादी न कर पाने में असमर्थ कोई गरीब इन बाबाओं का टारगेट नहीं. इन का टारगेट है मध्यमवर्ग जो बड़ेबड़े स्टार्स और व्यापारिक घराने के लोगों की श्रद्धा देख कर इन बाबाओं की शरण में आ जाता है. बच्चन फैमिली हो या अंबानी, राजनेता हों या नौकरशाह बड़े लोगों ने जाने अनजाने में इस अंधविश्वास को बल दिया है.

चुनाव जीतने के लिए मंदिरों मस्जिदों या बाबाओं के चक्कर लगाते नेता दरअसल अंधविश्वास का ही प्रचार करते हैं. उन्हें अपना रुतबा, अपनी दौलत कायम रखने का लालच होता है. जो जितना समृद्ध वो उतना ही अंधविश्वासी होता है. फिर समृद्धि के पीछे भागता मध्यमवर्ग इस मामले में क्यों पीछे रहेगा. जब तक हमारी सोच नहीं बदलेगी ऐसे फरेबी बाबा और तांत्रिक हमें मूर्ख बनाते ही रहेंगे.

यह एक हकीकत है कि हर युग में चाहे जिस का भी शासन रहा हो हिंदू शासन हो या मुसलिम शासन इन साधु संतों और तथाकथित गुरुओं बाबाओं का बोलबाला रहा है. शासन में यह लोग दूध मलाई का भोग खाते रहे हैं. शासक वर्ग की कुटिलता और शोषण के टूल के रूप में कार्यरत रहे हैं. किसी एक पीर, फ़कीर या बाबा की पोल खुलतेखुलते दूसरा हाज़िर नाज़िर हो कर लूट खसोट शुरू कर देता है.

हमारा संविधान वैज्ञानिक सोच और उस के आधार पर व्यवस्था चलाने की वकालत करता है और इस का प्रावधान कर रखा है. लेकिन हमेशा उलटी गंगा बहती है. तरह तरह के बाबा, पीर फकीर समय समय पर खुद को किसी न किसी का अवतार कह कर अपना उल्लू सीधा करते ही रहते हैं.

बाबाओं के अलावा ऐसे मंदिर भी हैं जिन में रोज करोड़ों रुपयों का चढ़ावा आता है. दोनों को एक ही श्रेणी में रखा जाना चाहिए. अंतर बस इतना है कि एक में हाड़मांस का पुतला नजर आ रहा है दूसरे में नहीं. लोगों की आस्था और कुछ पैसे देकर काम चमत्कार करवाने की चाह दोनों जगह है.

सबक लेना जरूरी

भारत एक ऐसा देश है जहां आप सड़क से एक बड़े पत्थर को तिलक लगा कर अगरबत्ती सुलगा दीजिए वही आस्था का केंद्र बन जाएगा. लोगों के इस पढ़ेलिखे अनपढ़ होने या फिर चमत्कार की ख्वाहिश रहने की प्रवृत्ति का नाजायज फायदा उठाया जाता है. हमारे देश में पैसा कमाना बहुत आसान है बस आपके दिमाग में एक शातिर खुराफात होनी चाहिए. धर्म हमेशा से ही हमारे देश की सब से बड़ी कमजोरी रहा है.

हाथरस हादसा ऐसे ही अंधविश्वासियों के लिए एक सबक है. आप भीड़ का हिस्सा क्यों बन रहे हैं? आप इन बाबाओं की गुलामी में क्यों लगे होते हैं? ये ढोंगी जादू टोना, चमत्कार के नाम पर रोजाना आपको ठगते हैं, आप के आत्मसम्मान के साथ छल करते हैं. आप की दरिद्रता, गरीबी का फायदा उठाते हैं. आप के जागरूक न होने का लाभ ले कर अपनी कोठियां बनवाते हैं और आप वही के वहीं रह जाते हैं या और भी बुरे हालात हो जाते हैं. ये ढोंगी चमत्कार नहीं कर सकते. ये केवल ढोंग कर के आप को बेवकूफ बना रहे हैं. आप के नाम पर करोड़ों की जमीन पर कब्जा कर रहे हैं. जिस दिन इन ढोंगियों के यहां आप जाना बंद कर देंगे इन की दुकान खुद बख़ुद बंद हो जाएगी.

बाबाओं की सब से ज्यादा शक्तियां और चमत्कार भारत में ही पाए जाते हैं. लेकिन मजेदार बात यह है कि इन की इतनी शक्तियों और चमत्कारों के बावजूद भारत विश्व में सैकड़ों सालों से गुलाम रहे देशों में तीसरा देश कहलाता है. गरीबी, गंदगी, अनुशासनहीनता, लालच, भ्रष्टाचार, अंधभक्ति जैसी समस्याओं से जूझ रहा है किन्तु ये बाबा आज तक देश का कल्याण नहीं कर पाए. यदि आप यकीन कर सकें तो वास्तविकता यह है कि किसी बाबा में कोई शक्ति नहीं, कोई चमत्कार नहीं. आप अपने को टटोलें तो पायेंगे कि शक्ति तो आप में है, चमत्कार तो आप में है. बेवजह ही आप बाबाओं के चक्कर में पड़े थे.

इस देश में पाखंडी व ढोंगी बाबाओं का जमावड़ा हो गया है कि जिधर देखो उधर ये पाखंडी डेरा जमाए हुए हैं. कोई सैक्सी फिल्में बना रहा है तो कोई पूरा सैक्स रैकेट ही चला रहा है. कहीं ये देखने को आ रहा है कि अपनी उम्र से भी आधी से भी कम उम्र की लड़कियों को बाबा अपने प्रेमजाल में फंसा रहे हैं. उन से अनुष्ठान करा रहे हैं.

अच्छा होता आप अपनेआप पर कृपा करते. इन से दूर रह कर अपनी शक्ति को पहचानते. प्रकृति तथा ब्रह्मांड के अचूक, तर्कसम्मत एवं वैज्ञानिक नियमों की पहचान करते. आप अज्ञानता, बेबसी एवं भय के कारण ही तो बाबाओं, ज्योतिषियों, तांत्रिकों या अन्य पाखंडी गुरुओं के पीछे भागते हैं. यदि आप वैज्ञानिक विश्लेषण एवं तर्क से सोचते तो आप की आंखें हमेशा के लिए खुल जातीं. ये फालतू और बेवजह की भागदौड़ हमेशा के लिए बंद हो जाती.

भारत जैसे देश में आज सब से बड़ी आवश्यकता बौद्धिक स्तर को ऊंचा करने की है. साइंटिफिक तरीकों से तथ्यों का विश्लेषण करने की है. आंख मूंद कर विश्वास करना मूर्खतापूर्ण है. हमें अपने बच्चों को स्कूल में सही जानकारी देनी चाहिए. उन्हें तार्किक बातें बतानी चाहिए. इस तरह की ढोंगी बातों को तर्क के आधार पर तुरंत खारिज किया जाना चाहिए. हमारे देश मे ऐसे लोगों को हमेशा हतोत्साहित किया जाना चाहिए जो भोलेभाले लोगों को बेवकूफ बनाते हैं. सरकार को शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन करना चाहिए जिस से हमारे बच्चे तार्किक हो सकें.

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