सवाल –

मेरे परिवार में 4 साल का एक बालक है. वह अकसर भय की मुद्रा में रहता है. पूछने पर बोलता है कि ‘कौए से डरता है’. यह पूछने पर कि कौआ कहां है, वह अपने कमरे की खिड़की से बाहर की ओर संकेत करते हुए कहता है कि वहां है कौआ. हम ने मकान बदला है, तब से ऐसा है. उस की खिड़की से बाहर कुछ दूरी पर स्थित एक मकान की छत पर शाम को अंधेरा होने पर बैलून की आकृति या बाल्ब दिखाई पड़ता है, जिस से लाल रंग की रोशनी निकलती है, उसे ही वह कौआ समझता है. दिन में डरने की बात करता है, तब तकिए को देख डरता है, खिलौनों से डरता है. रात में सोतेसोते डर जाता है. इस वजह से कुछ गुस्सैल, चिड़चिड़ा, जिद्दी सा हो गया है. बीचबीच में यूं डरने का हावभाव परिवार के लिए चिंता का विषय है. आप अपनी कुछ राय दीजिए.

जवाब –

मकान बदलने के बाद ही बच्चे में यह बदलाव आया है तो ऐसा लगता है कि बच्चे के दिलोदिमाग पर जगह परिवर्तन, घर परिवर्तन से यह प्रभाव पड़ा है. बच्चे कोमल मनोस्थिति के होते हैं. क्या सोचते हैं, समझते हैं, पूरी तरह से स्पष्ट रूप से व्यक्त नहीं कर पाते. खिड़की से बाहर कौआ है. ऐसी कल्पना बच्चे ने दिमाग में बैठा ली है और उसे सच का आकार दे दिया है. हो सकता है उसे अपने तकिए, खिलौनों में भी कौए की आकृति नजर आती हो और वह भयभीत हो जाता हो.

दूसरी बात यह कि जिद्दी हो रहा है तो बच्चे अपनी जिद पूरी न होने पर रोतेचीखते तो हैं ही. हां, हर बात पर ऐसा करने लगें तो चिंता का विषय हो सकता है.

खैर, अहम बात है बच्चे के डरने की, तो बच्चे के सोने का कमरा बदल दें. बच्चे को कमरे में अकेला न सुलाएं. मातापिता उस के साथ ही रहें. बच्चे के साथ घूमेंफिरें, उसे बाहर खानेपिलाने ले जाएं. घर का माहौल खुशनुमा बना कर रखें. बच्चे को किसी न किसी एक्टिविटी में इनवौल्व रखें, इस से उस का दिमाग बेकार की बातों की तरफ नहीं जाएगा.

बच्चा अभी छोटा है. उम्र के साथसाथ मानसिक विकास होता जाता है. बातें समझने लगेगा तो हो सकता है धीरेधीरे यह भय की स्थिति कम होतेहोते खत्म हो जाए. बच्चे पर पूरा ध्यान देने की जरूरत है.

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