संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस के दौरान लंबे भाषण में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने प्रतिपक्ष के नेता के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी की धज्जियां उड़ाते हुए यह तक कह डाला कि नरेंद्र मोदी, आरएसएस या भारतीय जनता पार्टी हिंदुओं के ठेकेदार नहीं हैं और वे ऐसे हिंदू हैं जो हिंसा व नफरत फैलाते हैं. उन के शब्दों पर न जा कर देखें तो उन्होंने यह कहा तो उन हिंदुओं के लिए है जो धर्म का सहारा ले कर सारे देश में मुसलमानों, दलितों, पिछड़ों के ही नहीं, सवर्णों की औरतों के भी खिलाफ हिंसा करते रहते हैं.

हिंदुओं के ज्यादातर देवता हमेशा कोई न कोई हथियार हाथ में रखे हुए दिखाए जाते हैं. अयोध्या में राम लला की मूर्ति, जो भारतीय जनता पार्टी ने लगवाई, को भी छोटा सा धनुष पकड़ा दिया गया. अब यह धनुष हिंसा के लिए ही तो है. जानने की यह बात भी है कि पौराणिक कथाओं के ये पात्र, जिन में बहुतों को देवता मान कर पूजा जाता है, किसी भी कहानी में किसी विदेशी के सामने ये हथियार इस्तेमाल नहीं करते थे. यह हर जगह बारबार कहा गया है कि उन्होंने अधर्मियों के खिलाफ हथियार का इस्तेमाल किया, विदेशियों, लुटेरों, बलात्कारियों के विरुद्ध नहीं.

अधिकांश पात्र, पौराणिक गाथाओं में, स्थापित ऋषिमुनियों के आश्रमों की रक्षा करने के लिए हथियारों का इस्तेमाल करते थे या दूसरे हिंदू से किसी निजी दुश्मनी के कारण. हिंदू धर्म में हर समस्या का हल हिंसा ही है, यह स्पष्ट है. ऋषि राजाओं के पास जाते थे कि वे अपने हथियारों का उपयोग उन्हें तंग करने वालों, उन के यज्ञोंमंत्रों में विघ्न डालने वालों के खिलाफ करें.

इस से क्या इनकार किया जा सकता है कि संपत्ति के हक के लिए छोटे बच्चों से ले कर भाइयों, राजाओं, गुरुओं तक पर हिंसा का इस्तेमाल किया गया और फिर उस का महिमामंडन किया गया.

हिंसा के इसी महिमामंडन की वजह से आज हर पुलिस वाला एनकाउंटर कर सकता है, जबकि स्थापित संविधान और कानून के अनुसार यह एकदम अपराध है चाहे पुलिस वाले द्वारा किया जाए. हमारे यहां औरतों के प्रति हिंसा तो रोज का काम है और इसीलिए भ्रूण हत्या और दहेज हत्या जैसे कानून बनाने पड़े.

जो भारतीय जनता पार्टी अपने को शांति का दूत बताती है उस की मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पहली ऐसी संस्था है जिस की सभा/शाखा में लाठियां ले कर जाना होता है. ये लाठियां हिंसा का प्रतीक हैं. यह गांधीजी की लाठी नहीं है जो बुढ़ापे में काम आती है. आरएसएस की इस लाठी कवायद के पीछे क्या मकसद है, वह किस से सुरक्षा या किस पर आक्रमण का पाठ पढ़ाती है? क्या मुश्किल से 15 फीसदी रह गए मुसलमानों से रक्षा के लिए. नहीं, हिंसा का यह पाठ हर उस हिंदू के लिए होता है जो धर्म के रीतिरिवाज न माने, जो वर्णव्यवस्था को न माने, जो सही दानदक्षिणा न दे.

राहुल गांधी ने मधुमक्खी के छत्ते को छेड़ दिया है. उन की मंशा क्या थी, पता नहीं पर यह स्पष्ट है कि इस सच को भारतीय जनता पार्टी आसानी से नहीं पचा पाएगी कि पिछले 200-250 सालों के हिंदू राजाओं के इतिहास को देख लें तो साफ हो जाएगा कि उन्होंने अपने हथियारों का उपयोग विधर्मी या विदेशी के खिलाफ बहुत कम जबकि हिंदुओं पर ही ज्यादा किया है, कभी पूजापाठ, रीतिरिवाज थोपने के लिए तो कभी धर्म के आचरण के विरुद्ध कुछ करने पर.

मजेदार बात यह रहेगी कि राहुल गांधी तो 10-20 शब्द बोल कर चुप हो गए पर अब हिंदू सफाई देतेदेते अपने हिंसक व्यवहार का उपयोग करने लगें, तो बड़ी बात नहीं. कांग्रेस दफ्तरों पर हमले नहीं हुए तो यह आश्चर्य की बात है. हिंसक ‘हिंदू’ भीड़ पता नहीं क्यों जमा हुई जो यह मांग करती रही कि राहुल गांधी अपने शब्द वापस लें और हिंदू समुदाय से माफी मांगें.

बुल्डोजरी न्याय

दिल्ली में सिविल लाइंस एरिया वह जगह है जहां से 2-3 किलोमीटर की रेंज में दिल्ली राज्य सरकार के दफ्तर, विधानसभा, सचिवालय आदि हैं. दिल्ली सरकार की एजेंसी लैंड एंड डैवलपमैंट अथौरिटी, जो कानून के अंतर्गत केंद्र सरकार के अधीन है और जिसे उपराज्यपाल वीरेंद्र कुमार सक्सेना लीड करते हैं, ने दशकों से 32 एकड़ सरकारी जमीन पर बसीं गैरकानूनी बस्तियां हाल में उजाड़ दीं. लगभग 70 साल से इस जमीन पर लोग पक्के मकान बना कर रह रहे थे जबकि यह उन की मिल्कीयत नहीं थी.

यह सरकारी निकम्मेपन का पक्का सुबूत है. जो अफसर आम आदमी पार्टी के मुखिया व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से 10 सालों से झगड़ा करने का समय निकाल पा रहे थे उन्हें सरकार की संपत्ति की चिंता नहीं थी कि आखिर कैसे उन की जमीन पर कोई आदमी घर बना कर रह सकता है.

नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी केंद्र सरकार की इसी एजेंसी को फटकार लगाई है कि यमुना के बाढ़ वाले इलाके में पक्के मकान कैसे धड़ाधड़ बन रहे हैं. हर थोड़े दिनों बाद खबर आती है कि बुलडोजरों और जेसीबियों से लैस अफसरों व मजदूरों ने सैकड़ों मकान ढहा दिए, ताकि यमुना का पानी बाढ़ के दिनों में नजदीकी बस्तियों में न घुसे. तोड़ना तो सही है पर कब्जा हुआ ही क्यों, इस का जवाब कोई नहीं देता.

यह सिर्फ दिल्ली में हो रहा हो, ऐसा नहीं है. सारे देश में निजी व सरकारी जमीन पर कब्जे करना आम बात है और कभीकभार उन पर बुलडोजर चलते हैं. कुछ राज्यों में सत्ता अपने विरोधियों पर, अगर वे मुसलिम हों तो खासतौर पर, बुलडोजरी न्याय थोप देती है जो एकदम तानाशाही है क्योंकि बहुत सी तोड़फोड़ अपनी जमीन पर कुछ अनधिकृत निर्माण के नाम पर की जाती है.

असल में सरकारी अफसरों का काम तो यह है कि उन की यानी सरकार की जमीन के एक इंच पर भी किसी का कब्जा न हो लेकिन जिन की आंखें चारों ओर लगी रहती हैं वे चुनचुन कर वही कदम उठाते हैं जहां चार पैसे बनने होते हैं.

सरकारी जमीन पर गैरकानूनी कब्जा होने देने से पुलिस, म्यूनिसिपल कौर्पोरेशन, लैंड की मालिक एजेंसी आदि सब के अफसरों को मासिक भुगतान शुरू हो जाता है. अवैध निर्माण मुफ्त में नहीं होते. मुफ्त में तो पटरी पर संदूक भी कोई रख नहीं सकता, इस सब के लिए सरकारी कर्मचारी बहुत ही मुस्तैद रहते हैं, वे तो इंतजार में ही रहते हैं कि कब मौका मिले और ऊपरी कमाई की जा सके.

इस तोड़फोड़ से नुकसान उन नागरिकों का होता है जिन्होंने जमीन का रिश्वत के तौर पर वर्षों किराया दिया. उन के मकान टूट जाते हैं. वे बेघर बना दिए जाते हैं. पर वे अफसर, चाहे अभी भी नौकरी पर हों या रिटायर हो चुके हों, मजे में रहते है. उन पर कोई आंच नहीं आती. कानून, जज, सरकार सब अपने लोगों पर पूरी तरह मेहरबान रहते हैं. पिसता तो नागरिक है चाहे सही काम करे या गलत.

मानव, प्रकृति और विज्ञान

जहां गरमी से उत्तर भारत इस बार ज्यादा परेशान रहा वहीं मौनसून के पहले ?ाटके ने कई हवाई अड्डों की छतों को ढहा दिया. अयोध्या में जो ताबड़तोड़ निर्माण किए गए थे उन में से कुछ को गिरा दिया, कहीं गड्ढे हो गए, कहीं पानी चूने लगा. कई शहर पानीभराव से परेशान हो गए.
क्लाइमेट चेंज, जो वैज्ञानिकों के अनुसार पिछले 100 सालों में कोयला और पैट्रोल ज्यादा फूंकने के कारण हुआ है, अब डर नहीं रहा, दरवाजा फलांग कर घर में घुस चुका है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हाल में उद्घाटित की गईं या बनवाई चीजें पहली बारिश में ही खराब होने लगीं. इसलिए इस का ठीकरा उन के सिर पर फोड़ा गया और नीट व अन्य परीक्षाओं के साथसाथ छतों के, शहरों के, नालों के, रेलडब्बों के लीक के समाचार सोशल मीडिया पर छा गए. नरेंद्र मोदी का सीधे उन में हाथ नहीं है पर जो अपने को सर्वश्रेष्ठ, सर्वगुणसंपन्न, 140 करोड़ लोगों की अकेली आशा होने का ढोल पीट रहा हो, उस को लोगों का रोष तो सहना ही पड़ेगा.

आज जो हो रहा है वह उन सुखों पर प्रकृति का हमला सा है जो सुख मानव पिछले 100-150 सालों से प्रकृति को दोह कर उठा रहा है. प्रकृति का संतुलन बहुत नाजुक है और आप एक चीज को जरा सा डिस्टर्ब करेंगे, उस का असर तुरंत कहीं और पड़ेगा. इस में चिंता करने की आज बात नहीं है क्योंकि आज का प्रकृति का यह कहर अभी पहले से कहीं कम घातक है. पहले प्रकृति सूखा, अतिवर्षा, बाढ़, प्लेग, हैजा, चेचक जैसी महामारियों, आग आदि के जरिए सदियों की मेहनत को रातोंरात नष्ट कर देती थी.

वर्ष 1900 के बाद मानव बेवकूफी

2 बार जरमनी के कारण हुई जब करोड़ों मारे गए और करोड़ों के घर बरबाद हुए पर इन युद्धों के अलावा न शहर उजड़े न शहर जले, न बाढ़ ने शहरों को लीला. जो भी नुकसान जब हुआ, तुरंत विज्ञान और तकनीक के कारण मानव ने भरपाई कर ली. दोनों विश्वयुद्धों के बाद भी जापान, कोरिया से ले कर फ्रांस के तटों तक बमबारियों के कारण जो बरबादी हुई, उसे दोबारा वैसा का वैसा बना लिया गया.
हमारे यहां अब शहरों को तकनीक बदलनी होगी. 12 इंच के सीवरों की जगह 3 फुट या 4 फुट के सीवर डालने होंगे. उन्हें बारबार साफ करना होगा. आंधीतूफान, अतिवर्षा का खयाल रख कर निर्माण करने होंगे.

जापान, जो भूकंपों के लिए जाना जाता था, आज सुरक्षित देश है क्योंकि वहां का निर्माण भूकंप की कल्पना कर के किया जा रहा है. इसी तरह कोई कारण नहीं कि एयरपोर्टों के खंबे, सड़कों के अंडरपास और नए भवन वर्षाप्रूफ न बन सकें. आज भी इंजीनियर इन बातों का खयाल रखते हैं पर चूंकि ये निर्माण नेताओं और अफसरों की देखरेख में होते हैं, उन में मिलावट और बेईमानी की गुंजाइश बहुत रहती है. प्रकृति का यह ?झटका शायद यह समझने में सफल हो जाए कि प्रकृति के साथ ज्यादा खिलवाड़ न करो.

यह न भूलें कि आज प्रकृति के हर कहर के मुकाबले का हल विज्ञान में है. आज तकनीक ऐसी है कि वह माउंट एवरेस्ट को चाहे न हिला सके पर उस में छेद कर सकती है. चांद पर पहुंच सकने वाली तकनीक शहरी पानी को आसानी से हैंडल कर सकती है. बस, एकदो झटकों की जरूरत है, वैज्ञानिक हल खोजने में लग जाएंगे. जो लोग भगवानों की शरण में जाते है उन के बारे में तो शून्य कहा जा सकता है पर जो लैबोरेट्रीज में जाते हैं उन पर 100 प्रतिशत भरोसा कर सकते हैं.

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