Download App

संग्रहालय का स्यापा

इंदिरा गांधी वाले आपातकाल में अच्छेअच्छे वक्ताओं की घिग्घी बंध गई थी. इंदिरा गांधी की तानाशाही पर बिना डरे जिन्होंने विरोध दर्ज कराया था, दुष्यंत कुमार त्यागी उन में से एक थे. दुष्यंत कुमार को हिंदी गजलों का गालिब कहा जाता है. उस दौर में उन्होंने जो गजलें कहीं वे आज भी गजलप्रेमियों के जेहन में संग्रहित हैं. इन दिनों जाने क्यों कइयों ने दोबारा उन की गजलों को याद करना शुरू कर दिया है.

दुष्यंत भोपाल के जिस सरकारी मकान में रहते थे उसे, स्मार्ट सिटी बनाने के लिए, प्रदेश सरकार ने जमींदोज कर दिया और दुष्यंत कुमार पांडुलिपि संग्रहालय को तोड़ने के लिए सरकार भी आमादा हो आई तो साहित्यकार, कलाकार, पत्रकार और बुद्धिजीवी तिलमिलाते सड़कों पर आ गए. और संग्रहालय न तोड़ने की मांग करने लगे. इन्हें कौन समझाए कि इन संग्रहालयों, धरोहरों, मूर्तियों और स्मारकों में झांकने भी कोई नहीं जाता.

हानि के बाद ग्लानि

रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की ग्लानि और अपराधबोध आखिरकार दिल चीर कर जबां तक आ ही गए. उन्होंने देर से ही सही, सरेआम कह दिया कि नोटबंदी का सरकार का फैसला देशहित का नहीं था. यह बात राजन गोलमोल कर गए कि अगर वे सरकार के इस फैसले से सहमत नहीं थे तो क्यों उन्होंने इस मूर्खतापूर्ण फैसले का वक्त रहते विरोध नहीं किया. निसंदेह राजन ने इस्तीफा दे कर अपने स्वाभिमान की रक्षा कर ली थी पर उन की तब की तटस्थता की कीमत अब देश चुका रहा है.

नोटबंदी एक अहम घटना थी जिस के दीर्घकालिक नतीजे जब तक आएंगे तब तक लोग राजन को भूल चुके होंगे पर नरेंद्र मोदी को माफ कर पाएंगे, ऐसा कहने की कोई वजह नहीं.

अब त्रिशूल दीक्षा

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इन दिनों बेहद परेशान हैं जिस की वजह आरएसएस और उस के आनुषंगिक संगठन बजरंग दल व विश्व हिंदू परिषद हैं. कोलकाता के एक कार्यक्रम में ममता ने संघ प्रमुख मोहन भागवत को नहीं आने दिया तो उन्होंने ममता को सबक सिखाने का जिम्मा इन संगठनों को सौंप दिया. ये संगठन हिंदुत्व के नाम पर हुल्लड़ मचाने के तकनीकी और मैदानी विशेषज्ञ हैं. अपने आकाओं का इशारा मिलते ही इन संगठनों ने घोषणा कर दी कि इस दशहरे पर पूरे पश्चिम बंगाल में त्रिशूल दीक्षा का आयोजन किया जाएगा.

पूरी उम्मीद या आशंका है कि इस साल पश्चिम बंगाल का प्रसिद्ध दशहरा कुछ ज्यादा ही धूमधाम से मनेगा जिस से निबटने के लिए ममता को प्रस्तावित त्रिशूल दीक्षा का दायरा समेटने के लिए कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा वरना वैचारिकता के नाम पर जिस धार्मिक हिंसा की भूमिका लिखी जा रही है वह बंगाल को कंगाल बना कर ही छोड़ेगी.

इन्हें आजमाइए

– अपने व्यक्तित्व को आकर्षक व बेहतर बनाना चाहते हैं तो झूठ न बोलें, किसी को नीचा न दिखाएं और जिस चीज के बारे में जानकारी न हो उस के बारे में अपनी अज्ञानता प्रकट कर दें क्योंकि ओवर स्मार्टनैस में गलत बात बोल कर आप बेवजह अपनी छवि खराब कर लेंगे.

– किसी भी काम में हम तभी सफल होते हैं जब हम उसे योजनाबद्ध तरीके से करते हैं. इसलिए जरूरी है कि आप लक्ष्य तय करने के बाद प्लान बना लें. ध्यान रखें प्लान बनाने में न तो जल्दबाजी करनी चाहिए और न ही बहुत देर करनी चाहिए.

– परिस्थिति चाहे कितनी भी नकारात्मक क्यों न हो जाए अगर आप अपना आपा नहीं खोते हैं तो आप का व्यक्तित्व दूसरों से अलग निखर कर सामने आएगा.

– गर्भावस्था के दौरान धीमा, मधुर और अच्छा संगीत सुनें. यह आप को तनावमुक्त रखेगा और आप के मूड को फ्रैश करेगा.

– अगर आप को दिल से संबंधित बीमारी है, ब्लडप्रैशर है या शुगर है तो आप को अंडे का पीला हिस्सा नहीं खाना चाहिए.

– प्याज खाने से दिल की धमनियों में खून के थक्के नहीं जमते, यह दिल की सुरक्षा करता है

ऐसा भी होता है

मेरे देवर को दिल्ली से कानपुर जाना था. उस ने देरशाम की रेलगाड़ी पकड़ी जो सुबह कानपुर सैंट्रल पहुंचती थी. कानपुर नगर के निकट पहुंचते ही गाड़ी छोटेछोटे पनकी, गोविंदपुरी नामक स्टेशनों पर थोड़ीथोड़ी देर रुक कर आगे जाती थी. निकट इलाके में रहने वाले यात्री कानपुर सैंट्रल स्टेशन न जा कर वहीं उतर जाते. मेरे देवर को गोविंदनगर जाना था. सो, वह भी अन्य यात्रियों के साथ भाग कर रेल से नीचे उतर गया.

रात के 3 बजे थे, अंधेरा था. वह घर जाने के लिए स्टेशन से बाहर निकला. उस के हाथ में एक छोटा सा सूटकेस था. रिकशा पकड़ने के लिए वह इधरउधर देख रहा था कि उस का ध्यान एक नुक्कड़ पर खड़े 3 साधारण लड़कों पर गया. वह अपनी ही धुन में उन्हें छोड़ कर आगे निकल गया.

अचानक उस ने अपनी गरदन पर पिछली तरफ दबाव अनुभव किया. उस ने मुड़ कर पीछे देखा, तीनों उसे घेर कर खड़े हैं. एक ने आ कर कमीज का कौलर पकड़ कर मुंह पर कस कर मुक्का मारा. बाकी दोनों ने उस का सूटकेस, घड़ी और मोबाइल फोन छीन लिया. जेब में जितने रुपए थे, वे भी निकाल लिए. सूटकेस में देवर की पैंट, कमीज ही थे. जबकि बदमाशों ने रुपयों से भरा सूटकेस समझ कर हमला किया था. हां, देवर की जान बच गई.

कैलाश भदौरिया

*

शुक्रवार को दोपहर 12 बजे टैक्सी कर  के हम लोगों ने मुंबई के ताज पैलेस होटल में गए. 2 दिन खूब मस्ती की- खाना, पीना, घूमना. शनिवार की रात को 11 बजे टैक्सी कर के वापस घर आ गए. इतने थक चुके थे कि आ कर सो गए. सुबह उठने पर पता चला, मेरी नातिन का बैग गाड़ी में ही रह गया. अब क्या करें? मैं ने अपने पति से कहा, ‘‘आप नीचे जा कर चौकीदार से पूछो. उस ने रात को जो टैक्सी आई थी उस का नंबर लिखा होगा.’’ नीचे जा कर पति ने चौकीदार से पूछा तो पता चला एक टैक्सी वाला रात को 1 बजे कपड़ों का बैग दे गया है. साथ ही, वह हम लोगों से मिलना चाहता था. रात के 1 बजे चौकीदार ने हम लोगों को जगाना ठीक नहीं समझा.

सो, टैक्सी वाला अपना मोबाइल नंबर दे कर चला गया. ऐसे लोग आज भी हैं इस दुनिया में.

शशी चतुर्वेदी

यह भी खूब रही

मेरी भतीजी दिल्ली से कार द्वारा लखनऊ आई थी. 2 दिनों बाद उसे वापस जाना था. वह बोली, ‘‘बूआ, कार की पिछली सीट खाली है. दिल्ली चल पड़ो.’’ प्रोग्राम बन गया और वापसी के लिए ग्वालियर-बलरामपुर ऐक्सप्रैस ट्रेन का टिकट मिल गया. ऊपर की बर्थ थी. वापस लखनऊ जाने के लिए भांजा रात 8:30 बजे ट्रेन में मुझे चढ़ा कर चला गया. मैं अपनी सीट पर बैठ गई. नीचे की दूसरी बर्थ पर एक लड़का और एक बर्थ पर लड़की थे. दोनों गपें मार रहे थे.

मैं ने किनारे बैठ कर खाना खा लिया. तब मैं ने कहा, ‘‘बच्चो, क्या तुम दोनों में से एक नीचे की सीट मुझ से चेंज कर लोगे. मैं ऊपर चढ़ नहीं पाऊंगी. बुजुर्ग हूं.’’

दोनों ने कहा, ‘‘नहीं आंटी, हमें भी प्रौब्लम है.’’

जब दोनों ने साफ इनकार कर दिया तब कोई चारा न देख कर 10 मिनट बाद मैं ने एक चादर निकाली जो मैली थी, और नीचे सीटों के बीच में बिछाने लगी.  दोनों ने देखा तो पूछने लगे, ‘‘ये क्या कर रही हैं? नीचे तो हमारा सामान है.’’

मैं ने कहा, ‘‘मैं ऊपर चढ़ नहीं सकती, इसलिए नीचे चादर बिछा कर लेट जाऊंगी. बैठी तो रह नहीं सकती. सुबह 4:30 बजे लखनऊ आ जाएगा.’’ उन्हें बलरामपुर जाना था. पता नहीं क्या सोचा, दोनों ने आपस में इशारे किए, फिर लड़की बोली, ‘‘ठीक है, मैं ऊपर चली जाती हूं. आप मेरी सीट पर सो जाइए.’’

क्या करती, जब बुढ़ापे में कोई मदद न करे, तो ऐसे ही बात बनानी पड़ती है.

माला वाही

*

हमारे पड़ोसी के लड़के की शादी कुछ ही दिनों पहले हुई. बहू उत्तर प्रदेश के जौनपुर शहर की है. ससुराल में सब को पंजाबी बोलते देख वह भी पंजाबी बोलने की कोशिश करने लगी.

एक दिन उन के घर कोई परिचित मिठाई ले कर आए. सब उन को मुबारकबाद दे रहे थे. नई बहू बोली, ‘‘अंकल, तैनूं बधाइयां.’’ उन्होंने बिना कुछ कहे मुंह दूसरी ओर कर लिया. उन के जाने के बाद सब हंस पड़े और बहू को बताया कि बड़ों को तैंनू नहीं, तोहानूं कहते हैं.

उस के बाद बहू ने बाहर वालों के साथ पंजाबी में बोलने की हिम्मत नहीं की.

निर्मल कांत गुप्ता

बड़ा फील करने के अवसर पगपग पर

हर आदमी बड़ा होना, बड़ा बनना चाहता है. लेकिन हर आदमी बड़ा बन नहीं सकता. यदि सभी बड़े बन जाएं तो फिर कोई बड़ा नहीं रहेगा क्योंकि कोई छोटा नहीं बचेगा. आदमी जो मुकाम हासिल नहीं कर पाता है, वह उस के अवचेतन में बैठ जाता है और समयसमय पर प्रकट होता है. कोई सोते में सपने देखता है तो कोई जागते में देखता है.

वैसे, जो बड़ा नहीं बन पाया उस के लिए हर जगह अवसर उपलब्ध हैं कि वह अपनेआप को दूसरों से बड़ा फील करे. एक उदाहरण ले लें, एक प्रसिद्ध गायक का कार्यक्रम शहर के औडिटोरियम में चल रहा था. हजारों की भीड़ होने से जगह की मारामारी हो रही थी. कुरसियां भीड़ से काफी कम थीं. जो पहले आ गए वे कुरसी पा गए. जो देर से आए उन्हें यहांवहां खड़ा होना पड़ा. अब जो कुरसी में बैठे थे वे इन खड़े लोगों से अपने को बड़े समझने लगे. यह भाव उन में ज्यादा झलक रहा था जिन की कुरसी के बिलकुल पास 10-15 लोग खड़े थे. वे अब कार्यक्रम कम देख रहे थे, खड़े लोगों को ज्यादा देख रहे थे. यहां अवसर था छोटे होते हुए भी अपने को बड़ा फील करने का. एकदो चवन्नी के चलन से बाहर होने के बाद भी अपनेआप को हजार रुपए के सिक्के के बराबर समझ रहे थे. बड़े होने के अवसर बड़ा न होते हुए भी हर जगह हैं.

दूसरी स्थिति लीजिए, आप भद्र पुरुष हैं. अचानक शहर से बाहर जाना पड़ा. ट्रेन में आरक्षण नहीं मिला. आप को स्लीपर में बिना आरक्षण के जाना पड़ा. ट्रेन में खचाखच भीड़ थी. कई लोग अर्थ पर थे, मतलब फर्श पर. आप जिस बर्थ पर बैठे, वह आरक्षित थी. बैठे हुए सज्जन ने पहले तो कोई प्रतिक्रिया नहीं की लेकिन बाद में पूछ बैठे कि आप का बर्थ नंबर कौन सा है. आप ने कहा कि अभी तो टीटीई का इंतजार कर रहे हैं. आप ने उसे बड़ा फील करने का अवसर प्रदान कर दिया.

वह बड़ा फील कर रहा था लगातार और आप उस के रहमोकरम पर थे. आप जब कभी अर्थ पर बैठे लोगों और कभी इस को देखते तो आप को लगता कि वह आप से बड़ा है. उस के चेहरे के हावभाव से ऐसा लगता भी था. ऐसे ही स्थिति सिटी बसों में भी बनती है यदि आप को खड़ा होना पड़े और कोई बैठा हो. लेकिन यहां बड़ा होने का खयाल बहुत कम समय के लिए रहता है. जो आज सीट पर बैठा है वह कल खड़ा हो कर छोटा फील कर सकता है.

छोटा होते हुए बड़ा फील करने के बड़े अवसर हैं. आप सिनेमा देखने सपरिवार गए हैं. लाइन में लगे हैं टिकट लेने के लिए और आप के पहले वाले को टिकट मिल गया है. आप के आते ही टिकटखिड़की धड़ाम से बंद हो जाती है. अब जिसे टिकट मिल गया है उस के चेहरे पर मुसकान है. आप के चेहरे पर मायूसी. वह बड़ा फील कर रहा है. छोटा आदमी हो सकता है, फेरी लगा कर पेट भरता हो या गुब्बारे बेचता हो लेकिन इस समय उस का मुंह प्रसन्नता की हवा से गुब्बारे की तरह फूल कर कुप्पा हो गया है. आज सपरिवार वह इस हिट मूवी को देखेगा और आप टिकटरूपी खेल में हिटविकेट हो गए हैं. आप की पत्नी का भी मुख फूल कर कुप्पा हो गया है लेकिन यह नाराजगी की हवा भरने से हुआ है.

यही तत्काल के आरक्षण की लाइन में भी होता है. आप सुबह 6 बजे से जा कर लाइन में लग गए हैं. आप के पहले 4 बजे से ही कई लोग लगे हैं. 8 बजे खिड़की छपाक से खुलती है, काम शुरू हो गया है. कैसे पता चला? रेलवे के चरमराते हुए डौट मैट्रिक्स प्रिंटर की कर्णभेदी ध्वनि लय में सुनाई दे रही है.

लाइन में सब बराबर हैं रिकशे वाला, आटो वाला, फेरी वाला, बाबू, अधिकारी, व्यापारी, प्रोफैशनल. लेकिन आप के नंबर आने के पहले 4 आदमी और हैं. आप व पीछे के सभी हाथ मलते रह गए जब छपाक से खुली खिड़की धड़ाम से बंद हो गई. ऐसी कि लगा कि धड़कन न बंद हो जाए. अब जो आदमी आरक्षण करवा कर जा रहा था, वह आप जैसे छोटे रह गए लोगों के सामने अपने को बड़ा समझेगा ही.

आप बड़े बाप की औलाद हो, कार से कालेज आते हो. आप के कालेज का आज रिजल्ट आया है. आप सैकंड ग्रेड में आए हैं जबकि रामरतन मोची का साइकिल में आने वाला लड़का फर्स्ट ग्रेड में है. अब उस का समय है बड़ा फील करने का.

बड़ा फील करने का अवसर तो किसी होटल बुक करते समय भी उपलब्ध है. सीजन है, होटल्स बुक हैं. पर्यटकों से भरे पड़े हैं. आप भी पहुंच गए हैं. होटलों के चक्कर काट रहे हैं. कहीं कमरा नहीं मिला. 7वीं होटल में आए हैं. एक ही कमरा बचा है. एक अनार और 4 बीमार, 3 और लोग कमरे को खोजते आ गए हैं. एक ज्यादा व्यावहारिक निकला. ऐसे मौके पर उस ने बिना कमरे को देखे ही हां कर बुक कर दिया. अब आप तीनों छोटों के सामने वह अंदर ही अंदर मुसकराता हुआ बड़ा फील कर रहा है.

भगवानों की दुकानों में भी लोग अपने को बड़ा फील करते हैं या करवाते हैं. कहने को यहां सब बराबर होने चाहिए लेकिन कई लोग खुद दुकानदार पंडों को पैसा दे कर उन से वीआईपी पास बनवा लेते हैं और लाइन से हट कर सीधे पूजा के प्रोडक्ट के सामने पतली गली से पहुंच जाते हैं. श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखते ही रह जाती है और ये अपने को बड़ा फील करने लगते हैं.

बड़ा फील करने के अवसर हर जगह हैं. बड़ा बनना बड़ा कठिन है, बड़ा फील करना बड़ा आसान है. बस, मौका मिलना चाहिए. ठीक है समय ने आप को अभी तक छोटा ही रखा है. लेकिन बड़ा फील करने, थोड़ी देर के लिए बड़ा बन जाने के अवसर पगपग पर हैं.

वैसे भी, इस देश में आम आदमी छोटा ही रह जाता है ताउम्र. यहां बड़ा माना जाता है उस को जिस के पास धनदौलत हो, भले ही वह घोटालेबाजी से, कालाबाजारी से या सरकारी धन में पलीता लगा कर की गई कमाई हो. और यहां बड़ा बनने के अवसर अधिकारी, ठेकेदार, नेता व दलालों को ज्यादा मिलते हैं. तो फिर, बड़ा फील करने के जितने अवसर मिलते हैं उन को एंजौय करने में ही समझदारी है.

जीवन की मुसकान

मैं मुंबई के चेंबूर इलाके में होस्टल में रह कर अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही थी. इसी बीच एक बार मेरी बूआजी और फूफाजी मुंबई घूमने के लिए आए. हम लोगों ने एस्सेल वर्ल्ड घूमने जाने का प्रोग्राम बनाया. हालांकि मैं भी अभी मुंबई और उस के रास्तों से अनजान थी, फिर भी इतना मालूम था कि सैंट्रल मुंबई से ट्रेन पकड़ कर गोरेगांव पहुंच कर, फिर वहां से एस्सेल वर्ल्ड पहुंचना आसान होता है.

हम लोग मुंबई सैंट्रल पहुंच गए और वहां से गोरेगांव के लिए लोकल ट्रेन का इंतजार करने लगे. जैसे ही एक लोकल ट्रेन आ कर रुकी, हम सब लोग उस में चढ़ गए. फूफाजी ने पूछा, ‘‘बेटे, यह कौन सा कंपार्टमैंट है?’’ लेकिन अनजाने में मैं ने कहा, ‘‘लोकल ट्रेन है, इसलिए सब कंपार्टमैंट एक से होते हैं.’’

इतने में ही टीटीई आए. जब उन्होंने हम से टिकट मांगी तो, हम ने उन्हें टिकटें दिखाईं. वे बोले, ‘‘ये सैकंड क्लास के टिकट हैं और आप फर्स्ट क्लास कंपार्टमैंट में आ गए हैं. आप को जुर्माना देना होगा.’’

हम ने उन्हें पूरी बात बताई तो उन की समझ में आ गया कि हम इस नगर और ट्रेन के सफर से अनजान हैं. उन्होंने अगले स्टेशन पर हमें आदरपूर्वक उतार कर स्वयं दूसरे ट्रेन में बैठाया. मुझे अपनी मूर्खता पर हंसी भी आ रही थी और गुस्सा भी. लेकिन साथ ही, उन टीटीई के व्यवहार ने हमारा मन कृतज्ञता से भर दिया था.

एक पाठिका

*

मैं अपने पति के साथ दिल्ली से हैदराबाद आ रही थी. मैं ने ट्रेन में हाथमुंह धोते समय अपने हाथ की घड़ी, जो कि बिलकुल नईर् थी, और चांदी की एक अंगूठी उतार कर वहीं वाशबेसिन पर रख दी और वहीं भूल कर आ गई.

थोड़ी देर बाद एक सज्जन पूछते हुए हमारे पास पहुंचे और कहा, ‘‘आप की घड़ी और चांदी की अंगूठी वाशबेसिन पर छूट गई थी.’’ जब मैं ने उन सज्जन से पूछा, ‘‘आप को ये कैसे मिलीं?’’ तो उन्होंने बताया, ‘‘एक बच्चा, जो कि ट्रेन में झाड़ू लगा रहा था, उस ने मुझे ला कर दी.’’

मुझे अपने खोए हुए सामान के मिलने की खुशी के साथ यह खुशी भी हो रहा थी कि आखिर वह कौन बच्चा था जो इतना गरीब होते हुए भी ईमानदार था. सच है कि एक गरीब इंसान के दिल में भी ईमानदारी का जज्बा होता है.

सीमा खातून

सऊदी अरब में कायम भेदभाव पर अब चिंता करना जरूरी है

सऊदी अरब अपने यहां के सख्त कानूनों के चलते दुनिया के कई देशों के निशाने पर रहा है. मृत्युदंड देने वाले मुल्कों में सर्वोपरि स्थान रखने वाला यह देश जहां विश्वपटल पर अपना रुतबा और अमलदखल रखने वाले प्रख्यात लोगों की आलोचना का पात्र बना हुआ है, वहीं आम कामगार भी सऊदी दोहराव की तीखी निंदा करते देखे जाते हैं.

मौत की सजा के तौर पर सिर कलम किए जाने को अमानवीय कृत्य के रूप में देखासमझा जाता है. जब सऊदी अरब की पुलिस देश या विदेश के किसी व्यक्ति को मादक पदार्थ व अश्लील साहित्य के साथ गिरफ्तार करती है या किसी व्यक्ति को देशद्रोह के आरोप में कैद किया जाता है, तब इसलामी अदालत उस के प्रति काफी सख्त रवैया अपनाती है.

अधिकांश मामलों में मौत की सजा का निर्धारण किया जाता है. मृत्युदंड के लिए सऊदी अरब की हुकूमत फांसी की सजा कम ही देती है. वह मौत की सजा पाए दोषियों का सरेआम सिर कलम कराती है. दोनों हाथ और पैर बंधे अपराधी को काला नकाब पहना कर जमीन पर बैठाया जाता है तथा जल्लाद तलवार के एक ही प्रहार से मुजरिम का सिर, धड़ से अलग कर देता है.

कठोर कानून

पुरुष द्वारा महिला का बलात्कार करने या महिला को बहलाफुसला कर उस का शील भंग एवं यौन उत्पीड़न करने के पाश्विक मामले में जहां दोषी पाए जाने वाले मर्द के शरीर पर कोड़े लगाने या संगसार (पत्थर मार कर मृत्युदंड दिया जाना) करने के क्रूरतम दंड का प्रावधान है, वहीं आपसी रजामंदी से अवैध शारीरिक संबंध स्थापित करने के आरोपी युगल को अपराध सिद्घ होने की दशा में सरेआम संगसार किए जाने की सजा निर्धारित है.

चोरी करने के इलजाम में हाथ काटने की सजा है, तो किसी की हत्या करने के जुर्म में मौत का दंड दिए जाने का कानून भी है. कत्ल के मामले में यदि मृतक के परिवार के लोग खूनबहा (पीडि़त परिवार द्वारा क्षमा करने के बदले कातिल से ली जाने वाली धनराशि) ले लेते हैं, तब हत्यारे की जान बख्श दी जाती है वरना उसे हर हालत में मृत्युदंड दिया जाता है.

हत्या की वारदातों में भी यह बात देखनेसुनने में आती है कि यदि कातिल सऊदी अरब के धनवान शेख से संबंधित है, तब वह पीडि़त से समझौता कर उसे खूनबहा के तौर पर तलब की गई रकम को अदा करता है तथा पीडि़त परिवार हासिल की गई कीमत के बदले हत्यारे को माफ कर देता है. लेकिन दूसरे देशों के नागरिकों को यह अवसर मुश्किल से ही मिलता है. गरीब कातिल के लिए तो हर हाल में मृत्यु की सजा भुगतना निश्चित है.social

अपराधों की बढ़ोतरी

कहना गलत नहीं होगा कि कठोरतम कानून के बावजूद सऊदी अरब की शरीआ अदालत में हर साल मौत की सजा पाने वाले, संगसार किए जाने वाले, हाथ काटे जाने वाले और हर जुर्म की सजा पाने वाले अपराधियों की संख्या कम होती नजर नहीं आ रही है. अपराधों में बढ़ोतरी का एक कारण जहां समाज में उत्पन्न आर्थिक असमानता के साथ कई प्रकार की विसंगतियां हैं, वहीं न्यायिक प्रक्रिया के जल्दी निबटारे के चलते प्रत्येक मामले में कानून का पूरा पालन नहीं किया जाना भी प्रमुख कारक माना जाता है.

भेदभाव क्यों

सऊदी अरब के पूर्वी सूबे में घटित वारदात में सऊदी शेख ने अपनी पत्नी की केवल इस बात के लिए दूसरी बार पिटाई करते हुए उस के चेहरे पर थूक दिया था कि महिला अपने पति की आज्ञा के बिना किसी जरूरी कार्य के लिए घर से बाहर चली गई थी. महिला का भाई उस प्रकरण को अदालत में ले गया तथा अपने बहनोई के विरुद्घ बहन के साथ मारपीट करने का इलजाम लगाते हुए रिपोर्ट दर्ज कराई.

सऊदी नागरिक शेख ने अदालत-ए-शरीआ के सामने अपने जुर्म का इकरार करने के साथ बीवी को थप्पड़ रसीद करने व चेहरे पर थूकने का कारण भी बताया. सऊदी अरब की त्वरित न्यायिक प्रक्रिया के चलते आरोपी को एक सप्ताह के कारावास और 30 कोड़े मारे जाने की सजा सुनाई गई. पिछले वर्ष नवंबर के पहले सप्ताह में हुई इस घटना का एक सप्ताह के भीतर फैसला सुना कर आरोपी को दंडित किए जाने की तो हर हालत में प्रशंसा की जानी चाहिए किंतु सऊदी अरब में गृहकार्य के लिए गई भारतीय महिला कस्तूरी मुनिराथिनम के साथ इंसाफ नहीं किया गया, आखिर क्यों?

कोई सुनवाई नहीं

तमिलनाडु के मोंगुलेरी गांव की कस्तूरी मुनिराथिनम अपने बीमार पति और 4 बच्चों के साथ गुरबतभरी जिंदगी गुजार रही थी. यही पारिवारिक मजबूरी उसे खाड़ी देश तक ले गई. एजेंट ने उसे सुनहरे सपने दिखाए और परिवार के सुखद भविष्य की कल्पना में कस्तूरी मुनिराथिनम सऊदी अरब की राजधानी रियाज पहुंच गई. उसे 150 रियाल मासिक पगार पर एक शेख के यहां गृहकार्य की नौकरी दिलाई गई. शेख का परिवार सख्तमिजाज था. कस्तूरी से घर का कामकाज कराने के बावजूद उसे भरपेट भोजन नहीं दिया जाता था. शेख की पत्नी उस से अच्छा व्यवहार नहीं करती थी तथा जबतब प्रताडि़त करती रहती थी.

कस्तूरी ने शेख परिवार के जुल्म से मुक्ति के लिए उन से स्वदेश भेजने की गुजारिश की. लेकिन पीडि़ता को अपने देश लौटने की अनुमति नहीं दी गई. स्थानीय अधिकारियों से शिकायत करने पर शेख परिवार और नाराज हो गया. आखिरकार कस्तूरी ने तंग आ कर भागने का फैसला किया.

एक दिन उस ने अपनी 2 साडि़यों को एकजगह बांधा तथा दूसरी मंजिल से खिड़की के रास्ते नीचे उतरने की कोशिश की. हड़बड़ाहट में कस्तूरी खिड़की से कमरे में गिर गई. शेख परिवार की महिला ने कस्तूरी को सबक सिखाने के मकसद से उस का दाहिना हाथ काट दिया. इस पाश्विक वारदात के बाद कस्तूरी मुनिराथिनम को अस्पताल ले जाया गया. शेख और उस की पत्नी ने, अधिकारियों को, भागने का प्रयास करते समय खिड़की सेनीचे गिरने के कारण हाथ कट जाने की जानकारी दी.

रोती और बिलखती कस्तूरी ने अफसरों को हकीकत से आगाह कराने का बहुत प्रयास किया, लेकिन किसी ने भी उस की बात पर विश्वास नहीं किया. मामले के तूल पकड़ने और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के हस्तक्षेप के बाद कस्तूरी मुनिराथिनम वतन लौट आई.

उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि परिवार की खुशहाली के प्रयास में उसे अपना दाहिना हाथ गंवाना पड़ेगा. अब वह कोई भी कार्य कर सकने की स्थिति में नहीं है. किसी सऊदी नियोक्ता द्वारा अत्याचार की यह पहली वारदात नहीं है, इस से पहले भी इस प्रकार के न जाने कितने वाकियात खाड़ी देशों में हो चुके हैं.social

महिला उत्पीड़न की ये घटनाएं यह अवगत कराने के लिए पर्याप्त हैं कि सऊदी अरब में स्थानीय और बाह्य नागरिकों के साथ किस हद तक भेदभाव किया जाता है. भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश और नेपाल समेत कितने ही मुल्कों के नागरिक, कर्मचारी, कुशल कारीगर तथा मजदूरों के रूप में अपने परिवार का  भविष्य संवारने का स्वप्न ले कर खाड़ी मुल्कों में नौकरियां करने जाते हैं. उन में से अधिकांश लोगों के सपने वहां कदम रखते ही कांच की तरह टूट कर बिखर जाते हैं.

स्थानीय बाह्य का अंतर

सऊदी अरब में 21 वर्ष तक कार्य करने वाले मंसूर कुरैशी बताते हैं कि सभी सऊदी शेख एकजैसे और सख्तमिजाज नहीं हैं. बद्दू नाम से जाने जानेवाले सऊदी अरब के पुराने बाशिंदे, विदेशियों को अपेक्षाकृत ज्यादा तंग करते हैं. वे काम भी अधिक कराते हैं और अकसर वेतन रोक भी लेते हैं.

मंसूर कुरैशी के मुताबिक, शाह अब्दुल्ला-बिन-अब्दुल अजीज के कार्यकाल में दाखिली और खारजी (स्थानीय और बाह्य) का अंतर शुरू हो गया था. इस अंतर के चलते सऊदी नागरिकों के हौसले बुलंद हो गए और बाहर के रहने वालों का उत्पीड़न बढ़ गया. आज हालत यह है कि पुलिस और अधिकारी विदेशी द्वारा सऊदी नागरिक के विरुद्घ की गई शिकायत पर तवज्जुह ही नहीं देते. सऊदी बाशिंदे के झूठ को भी सच माना जाता है.

अपनी आंखों देखी वारदात बयान करते हुए मंसूर कुरैशी बताते हैं कि एक बार सऊदी शेखों के 3-4 बिगड़ैल लड़के चौराहे पर खड़ी एक विदेशी किशोरी को पुलिस के सामने ही घसीट कर अपने साथ ले गए थे, लेकिन पुलिस मूकदर्शक के समान अन्याय होते देखती रही. यदि पुलिस विदेशी किशोरी का बचाव करती, तो भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति पर लगाम लग सकती थी. पुलिस के ऐक्शन नहीं लेने से खुराफातियों का दुसाहस बढ़ना निश्चित है.

सऊदी अरब में कानून सख्त होने के बावजूद वहां के नागरिकों और शाही खानदान के लोगों की निडरता व दुसाहस की घटनाएं जबतब सामने आती रहती हैं. इस का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वे यौन उत्पीड़न व मादक पदार्थों की तस्करी जैसे अपराध करने से भी नहीं चूकते, जबकि इस के लिए वहां कठोर सजाएं हैं.

अमेरिका की 3 महिलाओं द्वारा सऊदी अरब के 29 वर्षीय एक राजकुमार मजेद अब्दुल अजीज अल सऊद के खिलाफ 22 अक्तूबर, 2015 को हिंसक ढंग से धमकाने और यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया गया. इन्हें सितंबर में लास एंजिलिस के बेवर्ली हिल्स स्थित राजकुमार के बंगले की देखभाल के लिए नियुक्त किया गया था. उधर, 17 नवंबर, 2015 को नशीली दवाइयों की तस्करी के आरोप में सऊदी अरब के एक अन्य राजकुमार अब्दुल अजीज अल सऊद समेत 5 लोगों को बेरुत हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया गया है. इन के पास से करीब 2 टन केप्टागान पिल तथा कोकीन बरामद हुई है.social

लूटपाट की बढ़ती घटनाएं

सऊदी अरब में करीब 23 साल तक काम कर चुके भुक्तभोगी शमशाद अहमद ने बताया कि एक बार रियाज में 4-5 सऊदी युवकों ने कई खारजी (विदेशी) कामगारों के कमरों में धावा बोल कर लूटपाट की थी. बाद में वे उस के रिहायशी कक्ष में आ घुसे और वहां मौजूद कर्मचारियों को दीवार की ओर मुंह कर के खड़ा करने के बाद उन की जेबों से रियाल ही नहीं बल्कि अलमारी तोड़ कर उस में रखी रकम भी लूट कर ले गए थे.

वारदात के समय के तहखाने में छिप कर, अंधेरा कर लेने की वजह से वह बच गया था. पिछले 12 साल से सऊदी अरब में काम कर रहे वकील अहमद का कहना है कि शेखों के आवारा किस्म के लड़के अपना खर्च पूरा करने के लिए बाह्य मजदूरों से अकसर गलियों में पैसे छीन लेते हैं. कुछेक तो इतने दुसाहसी होते हैं कि रास्ते में अपना वाहन रोक कर सड़क पर जा रहे खारजियों से दिन में ही लूटपाट की घटना को अंजाम दे डालते हैं.

सऊदी अरब में स्थानीय और बाह्य का अंतर चरम पर तो है ही, सऊदी महिलाओं के अधिकार बहाली के मामलों में भी अभी काफी अंतर व दोहराव देखा जा रहा है. महिलाओं की संसद में उपस्थिति निर्धारित है, लेकिन उन के बैठने का स्थान पुरुषों से अलग है. औरतों को मौल व बकालों (दुकानों) में महिलाओं के अधोवस्त्र व अन्य सामान बेचने की इजाजत हैं, किंतु पुरुष व महिलाओं को अलगथलग रखने के लिए मौल के बीच में 6 फुट ऊंची दीवार बनानी जरूरी है.

महिलाएं पूरे कपड़े पहन कर खेलों में भाग ले सकती हैं, किंतु वे परिवार के सदस्य की प्रतिछाया में ही ऐसा कर सकती हैं. युवतियां दुपहिया वाहन चला सकती हैं, लेकिन खानदान के किसी मर्द की निगरानी में. महिलाएं, बतौर वकील, अदालतों में कार्य कर सकती हैं, लेकिन तजरबेकार पुरुष वकील के अधीन.

महिलाओं के लिए अलग विभाग

सऊदी अरब के विधि मंत्रालय ने मुल्क की अदालतों में औरतों की शिनाख्त के लिए बायोमैट्रिक सिस्टम लागू करने के साथ अपने अधीन आने वाली संस्थाओं में महिलाओं की नियुक्ति का निर्णय लिया है, किंतु उन के लिए अलग से विभाग बनाए जा रहे हैं.

कानून के मामले में सऊदी अरब की वैश्विक स्तर पर अपनी अलग और सख्त छवि है. ऐसे में कानून का पालन करते समय दाखिली व खारजी (सऊदी व विदेशी) का भेद मिटा कर, दोनों पक्षों को समान नजरिए से देख कर कानून के तहत फैसला सुनाने के महत्त्व को अपनाने से दुनिया में सऊदी अरब शासन की निष्पक्षता बढ़ेगी. इस के साथ ही कस्तूरी मुनिराथिनम के साथ किए गए अमानवीय बरताव जैसी घटनाओं पर अंकुश भी लग सकेगा. हालांकि सऊदी अरब इस पर विचार करेगा, इस की उम्मीद कम ही है.

अपराध एक सजा अलगअलग

सऊदी अरब के एक व्यक्ति को अपनी पत्नी के गाल पर तमाचे लगाने और मुंह पर थूकने की वारदात में अदालत-ए-शरीआ ने आरोपी शेख को मुजरिम करार देते हुए एक सप्ताह के कठोर कारावास और 30 कोड़े मारे जाने का दंड सुनाया, जबकि भारतीय मूल की कामकाजी महिला कस्तूरी मुनिराथिनम का अकारण दाहिना हाथ काट डालने वाली सऊदी मुजरिम महिला के खिलाफ किसी तरह की कानूनी कार्यवाही नहीं की गई.

एजेंटों का जाल

सऊदी अरब जाने वाले बेरोजगार युवक महाजन से ब्याज पर रुपए उधार ले कर, बैंक या किसी धनवान के पास मकान गिरवी रख कर या फिर औनेपौने दामों में अपना खेत बेच कर तथाकथित एजेंटों के दरबार में लाखों रुपए चढ़ाते हैं. हासिल की गई रकम एक एजेंट से दूसरे एजेंट तक, दूसरे से तीसरे, तीसरे से चौथे और इसी तरह आगे बढ़ती हुई दिल्ली या मुंबई की किसी गली में छोटा सा कार्यालय खोले बैठे असली एजेंट तक पहुंचती है. इस तरह बेरोजगारों का खूब दोहन किया जाता है.

संकट में नीतीश कुमार : सृजन घोटाला, सरकार का मुंह काला

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 18 अगस्त को सृजन घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश कर दी. इस घोटाले में कई सरकारी बैंक भी लिप्त हैं. मामले में अब तक 10 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जा चुकी हैं. 9 एफआईआर भागलपुर में और 1 सहरसा में दर्ज की गई हैं. 12 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है और अब तक 1,200 करोड़ रुपए से ज्यादा के घोटाले का पता चला है. जांच में लगे अफसरों को घोटाले की रकम के और बढ़ने की आशंका हैं.

18 अगस्त को बैंक औफ बड़ौदा के सहायक मैनेजर अतुल रमण को गिरफ्तार किया गया. साल 2013 में अतुल की बहाली हुई थी. एसआईटी की टीम ने भागलपुर के परबत्ती इलाके में स्थित उस के घर से उसे उठाया.

अतुल ने एसआईटी को बताया कि वह सृजन महिला विकास समिति भागलपुर की संचालिका मनोरमा देवी के इशारों पर काम कर रहा था. उस की नौकरी नई थी, इस वजह से उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था और वह मनोरमा देवी के निर्देशों का पालन भर कर रहा था.

अतुल पर आरोप है कि वह सरकारी रकम को सृजन के खाते में ट्रांसफर करवाने में मुख्य भूमिका अदा करता था. उस के बदले उसे मनोरमा देवी से मोटा कमीशन मिलता था.

अप्रैल महीने में उस ने तिलकामांझी खानपट्टी में रहने वाली बीबी हुजमान निगार नाम की महिला से इशाकचक थाना के बरहपुरा महल्ले में 51 लाख रुपए में एक मकान खरीदा था. अतुल की पत्नी जूली के नाम पर बैंक औफ बड़ौदा के खाते में 5 लाख 12 हजार रुपए जमा हैं. इस के अलावा तिलकामांझी के बैंक औफ इंडिया में 1 लाख रुपए समेत ततारपुर और स्टेट बैंक के सिटी ब्रांच और यूको बैंक में उस के और उस की पत्नी के नाम पर काफी रुपए जमा हैं. अतुल और उस की पत्नी के पास 10 लाख 5 हजार रुपए के गहने हैं.

अतुल ने एसआईटी के सामने कुबूल किया कि बैंक औफ बड़ौदा के सीनियर मैनेजर वरुण कुमार सिन्हा और रिटायर सहायक संत कुमार सिन्हा बैंक के सरकारी खातों को देखते थे और वही दोनों सृजन के खाते में रुपए ट्रांसफर करते थे.

अतुल का दावा है कि सरकारी खातों में कई गड़बडि़यां देख कर उस ने वरुण कुमार सिन्हा से इस की शिकायत की थी तो कहा गया कि खातों को देखने का काम उस का नहीं है. जैसा कहा जाता है, वैसा करते रहो. अतुल ने घोटाले में बैंक के पूर्व मैनेजर जी पी पांडा, सरफराउद्दीन, अरुण कुमार सिंह, इंडियन बैंक के अजय कुमार पांडे, मनोरमा देवी का ड्राइवर अंसार और वंशीधर समेत कई नामों का खुलासा किया है.

सृजन की सचिव प्रिया कुमार और उस के पति अमित कुमार की गिरफ्तारी के लिए पुलिस पटना, दिल्ली, रांची और बेंगलुरु में छापामारी कर रही है. मनोरमा देवी की बहू प्रिया कुमार रांची के एक बड़े कांग्रेसी नेता की बेटी है. उस नेता का एक रिश्तेदार केंद्र सरकार में मंत्री भी है. केंद्र में उन के मंत्री रहते हुए सृजन को केंद्र सरकार की कई योजनाएं मिली थीं. पुलिस इस की भी छानबीन कर रही है. मनोरमा के बेटे अमित कुमार के बारे में पुलिस को जानकारी मिली है कि दिल्ली में अमित कोई कार्यक्रम करता तो केंद्रीय मंत्री उस में शामिल होते थे.

सृजन घोटाले की किंगपिन मनोरमा देवी के बेटे अमित कुमार और उस की पत्नी प्रिया पुलिस को लगातार चकमा देने में कामयाब रहे हैं. दोनों अपने करीबियों से फोन के बजाय व्हाट्सऐप से बातें कर रहे हैं, जिस से पुलिस को उन का लिंक नहीं मिल रहा है. बिहार पुलिस के अनुरोध पर अमित और प्रिया के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी किया गया है. हैरत की बात यह है कि पद्म सम्मान के लिए भी मनोरमा देवी दावा कर चुकी थी. 1,200 करोड़ रुपए के महाघोटाले की मास्टरमाइंड और सृजन की संस्थापिका मनोरमा ने वर्ष 2016 के पद्म सम्मान के लिए गृह मंत्रालय को आवेदन भेजा था. 13 फरवरी, 2017  को मनोरमा की मौत हो गई. सृजन एनजीओ को बनाना और उस से 6 हजार महिलाओं को जोड़ कर उन्हें स्वरोजगार मुहैया कराने का आधार बना कर आवेदन किया गया था.bihar politics

घोटाले का खेल

सृजन महिला विकास सहयोग समिति नाम के एनजीओ के जरिए घोटाले का खेल साल 2006-07 में ही शुरू हो चुका था. घोटाले से परदा हटने में करीब 10 वर्ष लग गए और घोटालेबाज चांदी काटते रहे. भागलपुर जिला प्रशासन को विभिन्न योजनाओं की रकम सरकार द्वारा भेजी जाती थी. भागलपुर जिला प्रशासन के बैंक खातों में पहुंची रकम को प्रशासन द्वारा विभिन्न योजनाओं के लिए खोले गए सरकारी बैंक खातों में ट्रांसफर कर दिया जाता था. घोटाले की नींव वहीं से पड़ी.

अफसरों के फर्जी हस्ताक्षर से इन बैंकों के खातों से रुपए सृजन के खातों में ट्रांसफर कर दिए जाते थे. एनजीओ द्वारा रुपयों को बाजार में ब्याज पर लगाया जाता था. जब किसी योजना के लिए राशि की निकासी का चैक जारी होता तो उतना रुपया एनजीओ द्वारा संबंधित खाते में डाल दिया जाता था. यह खेल पिछले 10-11 सालों से चल रहा था.

एनजीओ की संचालिका मनोरमा देवी की फरवरी 2017 में मौत हो गई. उस के बाद सरकार द्वारा लाभार्थियों को देने वाले चैक बाउंस होने लगे. जांच में पता चला कि सरकारी खातों में तो रुपए हैं ही नहीं, जबकि बैंक स्टेटमैंट में रुपया होने की बात कही जाती थी. मनोरमा देवी की मौत के बाद खेल बिगड़ गया और सारे मामले का खुलासा होने लगा. जांच में पाया गया है कि भागलपुर सैंट्रल कोऔपरेटिव बैंक का इंडियन बैंक के खाते में रखे 30 करोड़ 17 लाख 52 हजार रुपए और बैंक औफ बड़ौदा में रखे 17 करोड़ 94 लाख 85 हजार रुपए गायब हैं. दोनों बैंकों के स्टेटमैंट में तो रुपया दिखा रखा है, लेकिन खाते से रुपया गायब है.

एडीजी (हैडक्वार्टर) संजीव कुमार सिंघल ने बताया, ‘‘मनोरमा देवी की मौत के बाद सृजन से जुड़े अकाउंट डिसऔर्डर होने लगे, तो हंगामा खड़ा हो गया. जब मामले की जांच की गई तो पिछले 10 वर्षों से हो रहे घोटाले का भंडाफोड़ होने लगा.’’

बैंक और प्रशासनिक अफसरों की मिलीभगत से हुए इस घोटाले में दर्जनों अफसरों और सृजन महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड के तमाम पदधारकों के खिलाफ जालसाजी, धोखाधड़ी और फर्जी निकासी के मामले भागलपुर के तिलकामांझी थाने में दर्ज कराए गए.

एफआईआर में भागलपुर के 3 पूर्व जिलाधीशों नर्मदेश्वर लाल, संतोष कुमार मल्ल और विपिन कुमार के जाली हस्ताक्षर से बैंक प्रबंधकों द्वारा सृजन के खाते में रकम ट्रांसफर करने का आरोप लगाया गया है. नर्मदेश्वर लाल के फर्जी दस्तखत से 20 करोड़ रुपए और संतोष मल्ल व विपिन कुमार के जाली दस्तखतों से 5-5 करोड़ रुपए की निकासी की गई थीं.

आर्थिक अपराध इकाई के आईजी जितेंद्र सिंह गंगवार कहते हैं, ‘‘जिला भू अर्जन विभाग और जिला नजारत के खातों से सरकारी रकम का गोलमाल हुआ है. इन विभागों के लेखा अधिकार और मुलाजिम घोटाले में शामिल हैं. इस के साथ ही इंडियन बैंक और बैंक औफ बड़ौदा के मुलाजिम भी इस में शामिल हैं. सृजन घोटाला के जरिए जहां दोनों बैंकों को मोटा बिजनैस मिल रहा था वहीं बैंक के अफसरों और मुलाजिमों की जेबें भी गरम हो रही थीं.’’

अफसरों की मिलीभगत

सवाल उठता है कि इतने बड़े घोटाले का खेल पिछले एक दशक से चल रहा था और किसी को भनक तक नहीं लगी? सरकारी खाते में रकम जाते ही उसे तुरंत कैसे सृजन के खाते में ट्रांसफर कर दिया जाता था? सालाना औडिट में भी इस घोटाले का पता क्यों नहीं लग पाता था?

मुख्यमंत्री नगर विकास योजना की 12 करोड़ 20 लाख रुपए की राशि जब इंडियन बैंक के सरकारी खाता नंबर-6268727981 में जमा होनी थी तो किस ने और कैसे उस राशि को सृजन महिला विकास सहयोग समिति के खाते में जमा करवा दिया? प्रशासन और बैंक अफसरों की सांठगांठ के बगैर ऐसा मुमकिन ही नहीं है. वहीं दूसरी ओर, सृजन की ओर से करीब ढाई वर्षों बाद उसी सरकारी खाते में 20 करोड़ रुपए जमा कर दिए गए. आखिर सरकारी खाते में आरटीजीएस के जरिए इतनी बड़ी रकम क्यों जमा की गई?

सृजन के जरिए करोड़ों रुपयों के घोटाले का पैसा रियल स्टेट कारोबार में लगाया गया है. सरकारी खातों से सृजन के खाते में जमा की गई रकम में से करोड़ों रुपए दूसरे राज्यों में भी ट्रांसफर किए गए हैं. आरटीजीएस और चैक के जरिए दिल्ली, गाजियाबाद, गुड़गांव, ओडिशा और झारखंड के रियल स्टेट कंपनियों को रुपए दिए गए हैं.

घोटाले से भरी तिजोरियां

सृजन घोटाले की रकम की सूंड़ धीरेधीरे बढ़ती ही जा रही है. यह 1,200 करोड़ रुपए के आसपास पहुंच चुकी हैं और इस के अभी भी बढ़ने की आशंका है. घोटाले में शामिल भागलपुर जिला कल्याण पदाधिकारी अरुण कुमार का मासिक वेतन 60 हजार रुपए हैं जबकि वह करोड़ों की संपत्ति का मालिक बन बैठा है.

पटना के श्रीकृष्णपुरी महल्ले के भगवान कुंज अपार्टमैंट के फ्लैट नंबर 205 में ईओयू ने छापा मारा तो 45 लाख रुपए नकद, करोड़ों रुपए के गहने, अलगअलग बैंकों की 19 पासबुकें बरामद की गईं. पटना के शास्त्रीय महल्ले के आदर्श नगर में अरुण के नाम से जमीन है और बारीपथ में 1 करोड़

15 लाख रुपए की 2 दुकानें हैं. फ्रेजर रोड के डुंडा शाही कमर्शियल कौंपलैक्स में 2 दुकानें उस के नाम से हैं, जिन की कीमत 2 करोड़ रुपए के करीब है. अरुण की पत्नी इंदू देवी करोड़ों रुपए की दौलत की मालकिन है.

भागलपुर के पूर्व एसडीओ कुमार अनुज की पत्नी दिव्या सिन्हा सृजन से जुड़ी हुई थी. उन्होंने अनुज को 8 लाख रुपए की हार्ले डैविंसन मोटरसाइकिल गिफ्ट में दी थी. अनुज के घर का खर्च भी सृजन के पैसे से चल रहा था क्योंकि पिछले 10 महीने में उस ने अपने वेतन की निकासी ही नहीं की थी.

एनजीओ सृजन की स्थापना 1996 में हुई थी. दावा किया गया था कि संस्था गांव की औरतों के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और नैतिक विकास का काम करती है. इस का कार्य क्षेत्र भागलपुर जिला के सबौर, गौरडीह, कहलगांव, जगदीशपुर, सन्हौला समेत 16 प्रखंडों तक फैला हुआ है.

इस का मकसद औरतों को एकजुट करना, उन्हें स्वरोजगार के लिए ट्रेनिंग देना, बचत करने का गुर सिखाना, उत्पादन और मार्केटिंग की जानकारी देना, साक्षरता को बढ़ाना और प्राथमिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करना है. अपने मकसद से भटक कर संस्था प्रशासनिक अफसरों और बैंकों के अफसरों के साथ मिल कर सरकारी फंड का बंदरबांट करने में लग गई थी.

किसानों को मुआवजा देने के लिए केंद्र और राज्य सरकार के रुपए जिले में जाते थे, उन्हें फर्जी तरीके से सृजन के खाते में ट्रांसफर कर दिया जाता था. जांच में खुलासा हुआ है कि जिलाधीश और दूसरे अफसरों के हस्ताक्षर वाले चैक को पहले सरकारी खातों में जमा कराया जाता था, उस के बाद उस रकम को सृजन के खाते में ट्रांसफर कर दिया जाता था.

सृजन उन रुपयों को खुलेबाजार में कर्र्ज पर लगाती, व्यापारियों को उधार देती, रियल स्टेट के कारोबार में लगाती, अफसरों को कर्ज बांटती थी. सरकारी खातों में जब जितने रुपयों की जरूरत होती तो सृजन उतने रुपए सरकारी खातों में डाल देती थी. इस मामले में बैंक अफसर सृजन को जानकारी देते थे कि किसी योजना के लिए रुपए निकासी का चैक आया है और सृजन के संचालक उतने रुपए सरकारी खाते में डाल देते थे. इस वजह से सृजन की कारस्तानी पकड़ में नहीं आती थी. सृजन की मुख्य संचालिका मनोरमा देवी की मौत के बाद सारे गोरखधंधे से परदा हटने लगा.

नेताओं और सरकारी अफसरों के साथ मिल कर ही सृजन ने घोटाले के पौधे को सींचसींच कर बड़ा पेड़ बना दिया था. समाज कल्याण विभाग की मानें तो वर्ष 2002-03 में जब अमिताभ वर्मा सहकारिता विभाग के सचिव थे तो उन्होंने भी सृजन को काफी मदद पहुंचाई थी. 1988 से ले कर 2003 तक सरकार ने तमाम कोऔपरेटिव बैंकों के अधिकार छीन लिए थे और उन के सभी पदों के लिए होने वाले चुनाव पर रोक लगा रखी थी. उस के बाद भी सृजन की संचालिका मनोरमा देवी को बिहार स्टेट कोऔपरेटिव बैंक का डायरैक्टर बना दिया गया था.

डायरैक्टर बनने के बाद जब डैलिगेट्स के चुनाव हुए तो उस में मनोरमा हार गई थी. कुल 17 वोट का इस्तेमाल हुआ था और मनोरमा 2 वोट से चुनाव हार गई थी. उस समय भागलपुर के सैंट्रल कोऔपरेटिव बैंक के एमडी रहे कवींद्र नाथ ठाकुर ने हद से बाहर जा कर मनोरमा की मदद की. उन्होंने जीते हुए डैलीगेट्स के नाम सहकारिता विभाग के हैडक्वार्टर को भेजे ही नहीं और मनोरमा पूरे 5 वर्षों तक डायरैक्टर बनी रह गई और बेधड़क हो कर घोटाले का खेल खेलती रही.

कोऔपरेटिव बैंक की डायरैक्टर बनने के बाद मनोरमा का संपर्क बड़े नेताओं और अफसरों के बीच बढ़ने लगा. बैंक के नियमों और भारतीय रिजर्व बैंक की गाइडलाइन की अनदेखी कर मनोरमा ने अपने ही एनजीओ सृजन को बड़ेबड़े लोन दे दिए थे. सृजन के जरिए सरकारी रकम कई नेताओं को भी कर्ज के रूप में दी गई थी.

वर्ष 2007 से ले कर 2014 तक भागलपुर सैंट्रल कोऔपरेटिव बैंक के एमडी रहे पंकज झा ने भी खुलेदिल और हाथों से मनोरमा की अवैध तरीके से मदद की. बैंक के अकाउंट्स मैनेजर हरिशंकर उपाध्याय के साथ मिल कर पंकज ने सरकारी खाते को स्टेट बैंक से हटा कर इंडियन बैंक में खुलवा लिया. उस के बाद कोऔपरेटिव बैंक में रखे किसानों के रुपए सृजन के खाते में ट्रांसफर होने लगे. उस के बाद घोटाले ने काफी तेज रफ्तार पकड़ ली थी. हरिशंकर की पहुंच व पैरवी इतनी दमदार थी कि उस की बहाली भागलपुर सैंट्रल कोऔपरेटिव बैंक में हुई और वहीं से वह रिटायर भी हुआ. कभी भी उस का तबादला नहीं हुआ.

सृजन महाघोटाला को छिपाने और दबाने के लिए घोटालेबाजों ने एक के बाद एक कई घोटाले कर डाले. घोटाले का परतदरपरत खुलना साबित करता है कि अभी इस की कई परतें खुलनी बाकी हैं. 1996 में हुए 960 करोड़ रुपए के चारा घोटाले को इस ने काफी पीछे छोड़ दिया है. सरकारी खजाने का जम कर दुरुपयोग हुआ और उस से करोड़ों रुपए बनाए गए. सरकारी अफसरों के साथ सृजन के लोगों की ऐसी सांठगांठ थी कि नियमों के खिलाफ जा कर प्रखंडों के सरकारी खाते सृजन में खोले गए. वर्ष 2006 में उस समय भागलपुर के जिलाधीश विपिन कुमार ने सृजन में खोले गए सभी सरकारी खातों को बंद करने का आदेश दिया था. जिलाधीश के आदेश के बाद 2-4 खातों को तो बंद कर दिया गया पर बाकी खाते चलते रहे.

सृजन के जरिए घोटाले का खेल साल 2000 से ही शुरू हो गया था. उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी कहते हैं कि लालूराबड़ी के राज से ही सृजन का खेल शुरू हो गया था. संस्था को दफ्तर के लिए साल 2000 में ही ट्राइसेम भवन 30 साल के लिए लीज पर दे दिया गया था. राबड़ी के शासनकाल में ही उसे साबौर में 24 डिसमिल जमीन दी गई. सरकारी रकम को सृजन के खाते में जमा करने का आदेश 2003 में ही जारी किया गया था.

सृजन घोटाले में गिरफ्तार नाजिर महेश मंडल की हिरासत में मौत हो जाने के बाद और भी हंगामा खड़ा हो गया है. पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव कहते हैं कि सृजन घोटाला मध्य प्रदेश के व्यापमं घोटाले से भी बड़ा है. घोटाले के आरोपियों को मारा जा रहा है, ताकि सचाईर् सामने नहीं आ सके. मंडल की मौत पर पुलिस सफाई दे रही है कि उस की मौत बीमारी की वजह से हुई है.

बिहार के डीजीपी पी के ठाकुर कहते हैं कि 14 अगस्त को गिरफ्तार किया गया महेश मधुमेह और किडनी का मरीज था. उसे न्यायिक हिरासत में भेजते समय बीमारी के सारे कागजात साथ भेजे गए थे. जेल अस्पताल के अलावा मायागंज के अस्पताल में भी उस का इलाज कराया गया. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के मापदंड के मुताबिक कैदी का पूरा ध्यान रखा गया था.

भागलपुर के पूर्व जिलाधीश के पी रमैया ने 20 दिसंबर, 2003 को चिट्ठी लिख कर सभी बीडीओ को आदेश दिया था कि सृजन के खाते में सरकारी योजनाओं की रकम जमा की जाए. रमैया की वह चिट्ठी जिला प्रशासन के रिकौर्ड से गायब है. 24 अगस्त को एसआईटी ने जब चिट्ठी की मूल कौपी की मांग की तो वह चिट्ठी नहीं मिली. चिट्ठी की एंट्री जिस रजिस्टर में की जाती है, वह भी गायब है. एसआईटी और ईओयू के पास चिट्ठी की फोटोकौपी है और वे मूल कौपी पाना चाहते हैं.

ऐसे उजागर हुआ महाघोटाला

भागलपुर भू अर्जन कार्यालय ने 74 करोड़ रुपए का बैंक औफ बड़ौदा का चैक बिहार सरकार के खाते में ट्रांसफर करने के लिए भेजा. रिकौर्ड के मुताबिक, भू अर्जन के खाते में 175 करोड़ रुपए जमा थे. चैक को ट्रेजरी से चालान के साथ स्टेट बैंक भेजा गया. स्टेट बैंक ने चैक के खाते को क्लीयरैंस के लिए बैंक औफ बड़ौदा को भेजा.

बैंक औफ बड़ौदा ने विभिन्न कारण बता कर 3 बार चैक को स्टेट बैंक को वापस कर दिया. स्टेट बैंक ने उस चैक को भू अर्जन विभाग को लौटा दिया. बैंक द्वारा अलगअलग वजहें बता कर एक ही चैक को 3 बार वापस लौटाने से प्रशासन के कान खड़े हो गए.

प्रशासन ने बैंक औफ बड़ौदा को पत्र भेज कर रकम देने को कहा और एफआईआर दर्ज कराने की धमकी दी तो बताया गया कि खाते में पर्याप्त रकम नहीं है. इस की जानकारी 30 जुलाई को जिलाधीश को दी गई. मामले की जांच की गई तो महाघोटाला सामने आया.

कई सवालों का जवाब देना है सरकार को

सृजन घोटाले की भनक सीए संजीत कुमार को 2013 में लगी थी और उन्होंने आरबीआई से इस की शिकायत भी की थी. आरबीआई ने सहयोग समिति के रजिस्ट्रार को जांच का आदेश दिया था पर उस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई. भागलपुर, बांका और सहरसा जिलों के प्रशासन ने सृजन घोटाले को दबाने की खूब कोशिश की. 2003 में तब के डी एम रमैया ने भी बीडीओ को सृजन के खाते में सरकारी रकम जमा कराने का निर्देश दिया था. 2008 में तब के डीएम ने उस आदेश पर रोक तो लगा दी पर मामले की जांच नहीं की. अगर जांच की गई होती तो मुमकिन है कि उसी समय घोटाले का भंडाफोड़ हो जाता. इस के साथ ही, कभी इस बात की पड़ताल किसी ने नहीं की कि सहरसा जिला के भू अर्जन विभाग का खाता भागलपुर के बैंक औफ बड़ौदा में क्यों रखा गया था?

वर्ष 2013 में जयश्री ठाकुर का 7 करोड़ 32 लाख रुपए का चैक सृजन में क्यों जमा कराया गया जबकि सृजन कोईर् बैंक नहीं था और न ही उसे आरबीआई से लाइसैंस मिला था? बांका जिला की भू अर्जन पदाधिकारी रही जयश्री ठाकुर के घर पर आर्थिक अपराध इकाई ने आय से अधिक संपति के मामले में छापा मारा था. उस समय भी प्रशासन ने मामले की जांच क्यों नहीं की?

खास बात यह है कि सृजन का हर साल औडिट होता था. औडिट रिपोर्ट में साफ था कि वहां बैंक चलाया जाता है, जबकि उसे केवल कोऔपरेटिव सोसाइटी चलाना था. औडिट रिपोर्ट सहकारिता विभाग और जिलाधीश को भेजी जाती थी पर कभी किसी ने जांच की जरूरत नहीं समझी.

उबलते लालू यादव

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव कहते हैं कि नीतीश कुमार और सुशील मोदी के संरक्षण में घोटाला हुआ है. यह पशुपालन से भी बड़ा घोटाला है. दोनों ने घोटाले को छिपाने के लिए ही सरकार बनाई है. घोटाले की शुरुआत साल 2005 में हुई और उसी साल नीतीश मुख्यमंत्री और सुशील मोदी उपमुख्यमंत्री बने थे.

लालू कहते हैं कि सृजन घोटाला करीब 2 हजार करोड़ रुपए का है और इस के मास्टरमाइंड सुशील कुमार मोदी हैं. वर्ष 2005 से ले कर 2013 तक वही वित्त मंत्री थे. उन के साथ ही भाजपा नेता और भागलपुर के पूर्व सांसद शाहनवाज हुसैन, गिरिराज सिंह और सुशील कुमार मोदी की बहन समेत 20 आईएएस अफसर भी फंसेंगे. 25 जुलाई, 2012 को केंद्र सरकार को इस घोटाले के बारे में चिट्ठी लिख कर जानकारी दी गई थी और जांच करने की अपील की गई थी, लेकिन कोईर् जांच नहीं कराई गई. लालू दावा करते हैं कि पूरा घोटाला नीतीश कुमार की जानकारी में था, पर वे चुप्पी साधे रहे.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें