रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की ग्लानि और अपराधबोध आखिरकार दिल चीर कर जबां तक आ ही गए. उन्होंने देर से ही सही, सरेआम कह दिया कि नोटबंदी का सरकार का फैसला देशहित का नहीं था. यह बात राजन गोलमोल कर गए कि अगर वे सरकार के इस फैसले से सहमत नहीं थे तो क्यों उन्होंने इस मूर्खतापूर्ण फैसले का वक्त रहते विरोध नहीं किया. निसंदेह राजन ने इस्तीफा दे कर अपने स्वाभिमान की रक्षा कर ली थी पर उन की तब की तटस्थता की कीमत अब देश चुका रहा है.
नोटबंदी एक अहम घटना थी जिस के दीर्घकालिक नतीजे जब तक आएंगे तब तक लोग राजन को भूल चुके होंगे पर नरेंद्र मोदी को माफ कर पाएंगे, ऐसा कहने की कोई वजह नहीं.
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