मेरे देवर को दिल्ली से कानपुर जाना था. उस ने देरशाम की रेलगाड़ी पकड़ी जो सुबह कानपुर सैंट्रल पहुंचती थी. कानपुर नगर के निकट पहुंचते ही गाड़ी छोटेछोटे पनकी, गोविंदपुरी नामक स्टेशनों पर थोड़ीथोड़ी देर रुक कर आगे जाती थी. निकट इलाके में रहने वाले यात्री कानपुर सैंट्रल स्टेशन न जा कर वहीं उतर जाते. मेरे देवर को गोविंदनगर जाना था. सो, वह भी अन्य यात्रियों के साथ भाग कर रेल से नीचे उतर गया.

रात के 3 बजे थे, अंधेरा था. वह घर जाने के लिए स्टेशन से बाहर निकला. उस के हाथ में एक छोटा सा सूटकेस था. रिकशा पकड़ने के लिए वह इधरउधर देख रहा था कि उस का ध्यान एक नुक्कड़ पर खड़े 3 साधारण लड़कों पर गया. वह अपनी ही धुन में उन्हें छोड़ कर आगे निकल गया.

अचानक उस ने अपनी गरदन पर पिछली तरफ दबाव अनुभव किया. उस ने मुड़ कर पीछे देखा, तीनों उसे घेर कर खड़े हैं. एक ने आ कर कमीज का कौलर पकड़ कर मुंह पर कस कर मुक्का मारा. बाकी दोनों ने उस का सूटकेस, घड़ी और मोबाइल फोन छीन लिया. जेब में जितने रुपए थे, वे भी निकाल लिए. सूटकेस में देवर की पैंट, कमीज ही थे. जबकि बदमाशों ने रुपयों से भरा सूटकेस समझ कर हमला किया था. हां, देवर की जान बच गई.

कैलाश भदौरिया

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शुक्रवार को दोपहर 12 बजे टैक्सी कर  के हम लोगों ने मुंबई के ताज पैलेस होटल में गए. 2 दिन खूब मस्ती की- खाना, पीना, घूमना. शनिवार की रात को 11 बजे टैक्सी कर के वापस घर आ गए. इतने थक चुके थे कि आ कर सो गए. सुबह उठने पर पता चला, मेरी नातिन का बैग गाड़ी में ही रह गया. अब क्या करें? मैं ने अपने पति से कहा, ‘‘आप नीचे जा कर चौकीदार से पूछो. उस ने रात को जो टैक्सी आई थी उस का नंबर लिखा होगा.’’ नीचे जा कर पति ने चौकीदार से पूछा तो पता चला एक टैक्सी वाला रात को 1 बजे कपड़ों का बैग दे गया है. साथ ही, वह हम लोगों से मिलना चाहता था. रात के 1 बजे चौकीदार ने हम लोगों को जगाना ठीक नहीं समझा.

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