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राष्ट्रीय परिषद की बैठक से पहले बोले कुमार विश्वास, मैं कड़वी दवा हूं

राजधानी के अलीपुर में 2 नवंबर को आयोजित होने वाली आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक से पहले ही ‘आप’ नेता कुमार विश्वास ने तेवर दिखा दिए हैं. अमानतुल्लाह खान का निलंबन वापस लिए जाने से कुमार खासे नाराज हैं. कुमार ने कहा, मैं नीम की तरह कड़वी दवा हूं. सूचना मिली है कि मुझे राष्ट्रीय परिषद की बैठक में बोलने नहीं दिया जाएगा. वक्ताओं की सूची में मेरा नाम भी नहीं है, लेकिन अगर कार्यकर्ता चाहेंगे तो मैं जरूर बोलूंगा. उन्होंने कहा कि केजरीवाल से बात हुई है या नहीं, यह मैं नहीं बताऊंगा. हां यह तय है कि राष्ट्रीय परिषद की बैठक में बोलने वाले वक्ताओं में मेरा नाम नहीं है.

विश्वास ने कहा कि मेरे लिए अमानतुल्लाह खान या राज्यसभा कोई मुद्दा नहीं है. मैंने भी जब राष्ट्रीय हित में बोलना चाहा तो मुझे पार्टी में किनारे लगाने का प्रयास किया गया.

मिश्र का निशाना, अब तो खुलकर सच बोलें कुमार

अमानतुल्लाह खान का निलंबन खत्म होने पर ‘आप’ विधायक कपिल मिश्र ने कुमार विश्वास पर निशाना साधा है. उन्होंने ट्वीट किया कि अब अमानतुल्लाह का निलंबन खत्म, मतलब जो भी अमानत ने कुमार के बारे में कहा था, उसे अब सच माना गया. कपिल मिश्र ने कुमार बाबत कहा, मैंने बार-बार आपसे आग्रह किया था कि आप इनके भ्रष्टाचार को कितना भी छिपा लें, ये आपको साजिशों में फंसा कर ही दम लेंगे. आपको अब खुलकर सच कहना होगा. डर के आगे जीत है.

निजी हमलों से कुछ नहीं होगा : कुमार विश्वास

मेरे ऊपर निजी हमलों से कुछ नहीं होगा. ‘आप’ में बोलने वाले नेताओं को राजनीतिक तौर पर किनारे करने की परंपरा पुरानी हो चली है. इससे पहले भी जब किसी नेता ने पार्टी के हित की बात कही है तो उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. मयंक गांधी और अंजलि दमानिया के साथ ऐसा ही हुआ था.

सालाना बैठक में 450 प्रतिनिधि शामिल होंगे

‘आप’ की सालाना बैठक में साढ़े चार सौ प्रतिनिधियों के भाग लेने की संभावना है. बैठक सुबह 9 बजे शुरू होगी. पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरिंवद केजरीवाल सहित कई वरिष्ठ नेता बैठक को संबोधित करेंगे. बैठक में पार्टी के विस्तार और दूसरे राज्यों में चुनाव लड़ने की संभावनाओं पर चर्चा होगी.

कैसे दूर होते गए

पार्टी भटक रही : पार्टी के राजस्थान प्रभारी और पीएसी के सदस्य कुमार विश्वास ने एक टीवी चैनल को दिए साक्षात्कार में ‘बैक टू बेसिक्स’ की बात कही थी. उनका कहना था कि पार्टी अपने मूल सिद्धांतों और विचारधारा से दूर हटती जा रही है. दूसरी पार्टियों से आकर आप में शामिल हुए लोगों के कारण अब यह पार्टी भी कांग्रेस-भाजपा की राह पर चल पड़ी है. मैंने राज्यसभा सीट के कई ऑफर ठुकराएं हैं.

भाजपा एजेंट बताया गया : पार्टी ने विधायक अमानतुल्लाह खान कुमार पर आप को तोड़ने का आरोप लगाया था. खान ने कुमार को भाजपा का एजेंट तक कह दिया था. इसके बाद पार्टी ने अप्रैल माह में खान को निलंबित कर दिया. अब एकाएक पार्टी में उनकी दोबारा वापसी कुमार विश्वास के लिए बड़ा झटका मानी जा रही है.

कोटा की सैंट्रल जेल में इस तरह हुई एक अनूठी शादी

दुलहन के लाल जोड़े में सजी देवकी बेहद खुश थी. उस की खुशियां छिपाए नहीं छिप रही थीं. खुश होती भी क्यों न, उस की शादी जो हो रही थी. शादी होना कोई नई बात नहीं थी. आमतौर पर हर युवती की शादी होती है. यह अलग बात है कि किसी की शादी जल्दी हो जाती है तो किसी की देर से होती है. देवकी की शादी में नई बात यह थी कि उस की शादी जेल में हो रही थी. वह महिला कैदी थी. जेल जाने के बाद उसे अपनी शादी की उम्मीद कम ही रह गई थी. आप ने शायद ही सुना हो कि किसी जेल में बारात आई है और शादी हुई है. लेकिन राजस्थान की कोटा जेल में इसी साल 9 मई को ऐसा ही हुआ है.

कोटा की सैंट्रल जेल में बाकायदा बारात आई, मंडप सजा और वरमाला भी हुई. पंडित ने विधिविधान से मंत्रोच्चार कर के फेरे भी कराए. जेल की ऊंची चारदीवारी में सलाखों के पीछे यह शादी राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश पर हुई थी.

बारां जिले के थाना कैथून के गांव गोल्याहेड़ी के रहने वाले बाबूलाल मेहर की 22 साल की बेटी देवकी अपनी भाभी ऊषा की दहेज हत्या के मामले में 27 अप्रैल, 2017 से कोटा की सैंट्रल जेल में बंद थी.

भाभी की दहेज हत्या के आरोप में उस की गिरफ्तारी होने से काफी पहले ही उस की शादी बारां जिले के थाना अंता के गांव बिशनखेड़ी के रहने वाले राधेश्याम के 23 साल के बेटे महेश से तय हो चुकी थी. दोनों की शादी 9 मई को बारां जिले में आयोजित होने वाले सामूहिक विवाह समारोह में होनी थी.

शादी के लिए दोनों परिवारों ने तैयारी भी शुरू कर दी थी. महेश जैसा जीवनसाथी मिलने पर देवकी खुश थी. वहीं महेश भी देवकी को जीवनसंगिनी के रूप में पा कर काफी खुश था. महेश रेलवे के सर्वे डिपार्टमेंट में प्राइवेट नौकरी करता था. दोनों परिवारों की सहमति से 26 अप्रैल, 2017 को लगन हो गया था, लेकिन इस के अगले ही दिन दोनों परिवारों की खुशियों पर ग्रहण सा लग गया.social

पुलिस ने ऊषा की भाभी की दहेज हत्या के आरोप में उस की सास कमला देवी के अलावा ननद देवकी को 27 अप्रैल, 2017 को गिरफ्तार कर लिया था. पुलिस ने मांबेटी को गिरफ्तार कर के मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में कोटा की सैंट्रल जेल भेज दिया गया.

देवकी के भाई लड्डूलाल की शादी करीब 3 साल पहले ऊषा से हुई थी. ससुराल में संदिग्ध परिस्थितियों में उस की मौत होने से बूंदी जिले के इटोड़ा के रहने वाले ऊषा के भाई सत्यनारायण ने 24 अक्तूबर, 2016 को थाना कैथून में ऊषा की दहेज हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया था.

देवकी के जेल जाने से दोनों ही परिवारों की खुशियों पर ग्रहण लग गया था. देवकी को जमानत पर रिहा कराने के लिए उस के घर वालों के अलावा महेश के घर वाले भी कोशिश करते रहे, पर सफल नहीं हुए. स्थानीय अदालत ने जमानत देने से इनकार कर दिया.

इस के बाद देवकी की शादी को आधार बना कर राजस्थान उच्च न्यायालय में जमानत की अर्जी दाखिल की गई. लेकिन हाईकोर्ट ने भी जमानत देने से मना कर दिया. वहां से यह रियायत जरूर मिल गई कि देवकी की शादी जेल में हो सकती है.

हाईकोर्ट ने निर्देश दिए थे कि शादी के लिए वर एवं वधू दोनों पक्षों के 10 लोग 8 घंटे तक जेल में रह सकते हैं. कोटा नगर निगम के अधिकारियों को भी शादी का पंजीयन करने का आदेश दिया गया था, साथ ही कोटा सैंट्रल जेल प्रशासन को आदेश दिया गया था कि देवकी की शादी के आवश्यक इंतजाम जेल में किए जाएं.

उच्च न्यायालय के आदेश पर कोटा जेल में 9 मई को देवकी और महेश की शादी की जरूरी तैयारी की गई. मंडप सजाया गया. वर एवं वधू पक्ष के लोग जेल पहुंचे. दोनों पक्षों की महिलाओं ने देवकी को दुलहन के लाल जोड़े में सजाया. पंडित रमेशचंद्र शर्मा ने अग्नि के समक्ष मंत्रोच्चार के बीच देवकी और महेश के फेरे कराए.

सादगी से हुई इस शादी में पुलिस अधिकारी भी शामिल हुए. अधिकारियों और जेल में मौजूद सुरक्षाकर्मियों, कैदियों एवं अन्य लोगों ने नवदंपति को सुखी विवाहित जीवन का आशीर्वाद दिया. बंदी के रूप में मां कमला ने बेटी और दामाद महेश को आंसुओं के बीच आशीर्वाद दिया.

इस शादी में यह बात अजीब रही कि दूल्हा फेरे लेने के बाद भी दुलहन को अपने साथ नहीं ले जा सका. मां भी अपनी बेटी को विदा नहीं कर सकी. शादी के बाद दुलहन को जेल की बैरक में भेज दिया गया. दूल्हा महेश अकेला ही अपने घर वालों के साथ जेल से बाहर आ गया.

कोटा सैंट्रल जेल के अधीक्षक सुधीर प्रकाश पूनिया का कहना था कि किसी बंदी की जेल में शादी का शायद यह पहला मामला है. कथा लिखे जाने तक महेश अपनी दुलहन के जेल से बाहर आने का इंतजार कर रहा था.

देवकी को जमानत पर रिहा कराने के लिए दोनों ही पक्ष अदालतों के चक्कर काट रहे हैं. महेश को उम्मीद है कि देवकी को जल्द जमानत मिल जाएगी. इस के बाद दहेज हत्या के मथित मामले में देवकी के साथ अदालत इंसाफ करेगी.

तंत्र मंत्र के नाम पर चढ़ती मासूमों की बलि

पंजाब के बठिंडा जिले के कोटफत्ता का एक इलाका है वड्डा खूह (बड़ा कुआं) यहीं के वार्ड नंबर- 3 के एक घर में 8 मार्च, 2017 को शाम करीब 5 बजे बड़ा ही भयावह और दिल दहला देने वाला मंजर था. मंजर भी ऐसा, जिसे देख कर पत्थरदिल इंसान की भी आत्मा कांप उठे. घर के एक कमरे का दृश्य बड़ा ही रहस्यमय और डरावना था. उस समय उस कमरे में कई लोग थे, उन के अलावा वहां पर 2 मासूम बच्चे भी बैठे थे. कमरे के बीचोंबीच एक धूना (हवनकुंड) था, जिस में आग जल रही थी. कमरे के दरवाजे और खिड़कियां सब बंद थे.

एक अधेड़ औरत जिस की उम्र करीब 55 साल थी, वह हवनकुंड के पास की एक गद्दी पर बैठी थी. वह शायद अंदर बैठे लोगों की मुखिया थी. वह औरत अपने सिर को इधरउधर झुलाते हुए जोरजोर से कोई मंत्र पढ़ कर उस हवनकुंड में सामग्री डाल रही थी. वहां मौजूद अन्य लोग भी उस का अनुसरण करते हुए मंत्रों के साथ धूने में हवन सामग्री डाल रहे थे. इस क्रिया के बीचबीच में वह औरत जोरजोर से ऊपर की ओर देखते हुए अट्टहास करने लगती.

उस के पास बैठा लगभग 30 वर्षीय पुरुष भी अपनी गरदन ऊंची कर के अपने मुंह से जोरजोर से सांप के फुफकारने जैसी शू..शू.. की आवाज निकालता.

धूनी में एक चिमटा रखा हुआ था जो आग से काफी गरम हो गया था. वह अधेड़ उम्र की महिला इस क्रिया के बीचबीच में उस गरम चिमटे से वहां बैठे 2 मासूम बच्चों को मारने लगती थी. उन दोनों बच्चों में एक की उम्र 5 साल और दूसरे की करीब 2 साल थी. गरम चिमटा लगते ही दोनों बच्चे पीड़ा से बिलबिला उठते थे.

दोनों बच्चों की पीड़ा पर वह औरत दुखी होने के बजाय खुश होती. वहां जो और लोग बैठे थे, वे जोश के साथ तांत्रिक क्रिया पूरी करने में लगे हुए थे इसलिए बच्चों के चिल्लाने की तरफ उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया.

वे लोग आगे क्या करने वाले थे, यह कहना मुश्किल था लेकिन उन के चेहरे के भाव और उन के क्रियाकलाप देख कर इतना अनुमान तो लगाया जा सकता था कि उन के इरादे नेक नहीं थे.

खिड़की की झिर्री से यह भयानक दृश्य देख कर 65 वर्षीय मुख्तियार सिंह की आत्मा सिहर उठी. कुछ देर तक वह खिड़की के पास गुमसुम सा खड़ा सोचता रहा कि उसे क्या करना चाहिए. 2 मासूम बच्चों की जिंदगी का सवाल था.

आखिर उस ने जोरजोर से कमरे का दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया. काफी देर दरवाजा पीटने पर भी कमरे में बैठे लोग अपनीअपनी जगह से नहीं हिले तो उस ने अपनी बहू रोजी के कमरे की ओर देखा. पर उस के कमरे पर ताला लगा हुआ था.Crime story

मुख्तियार रोजी के बंद कमरे की खिड़की के पास गया तो उसे कमरे में रोजी बैठी दिखाई दी. रोजी उस के बेटे की पत्नी थी. वह उस से बोला, ‘‘तुम्हें यहां किस ने बंद किया है? ताले की चाबी कहां है?’’

‘‘मैं कमरे में लेटी थी तो पता नहीं कौन बंद कर के चला गया. बच्चे भी पता नहीं कहां हैं. उन के रोने और चीखने की आवाजें आ रही हैं. पता नहीं वे क्यों रो रहे हैं.’’ कहते हुए उस की आंखों में आंसू छलक आए.

रोजी को पता था कि उस की सास निर्मल कौर व परिवार के अन्य लोग उस के दोनों बच्चों के साथ 2 दिन से तांत्रिक क्रियाएं कर रहे थे. उसे डर था कि वे लोग कहीं आज भी बच्चों पर तांत्रिक क्रियाएं तो नहीं कर रहे.

दरअसल, जिस बंद कमरे में यह तांत्रिक अनुष्ठान हो रहा था, उस कमरे में रोजी की सास निर्मल कौर, पति कुलविंदर सिंह, देवर जसप्रीत, ननद गगन कौर तथा बठिंडा के ही गांव दयोन से 3-4 तांत्रिक आए हुए थे जोकि निर्मल कौर की तांत्रिक क्रियाएं संपन्न करवाने में मदद कर रहे थे.

निर्मल कौर पिछले 5-6 सालों से अपने घर पर तंत्रमंत्र द्वारा समस्याओं का समाधान करने के नाम पर लोगों को बेवकूफ बना रही थी. गांव के अंधविश्वासी और भोलेभाले लोगों के अलावा शहर के पढ़ेलिखे लोग भी उस के पास आया करते थे. निर्मल कौर से पहले उस का पति मुख्तियार सिंह यह काम करता था. वैसे मुख्तियार सिंह बठिंडा की फौजी छावनी में नौकरी करता था.

लगभग 4-5 साल पहले वह अपने घर पर ही तंत्रमंत्र की क्रियाएं करता था. धीरेधीरे लोग अपनी समस्याएं ले कर उस के पास आने लगे. उन में से कुछ को फायदा हुआ तो वे उसे प्रसाद के लिए पैसे देने लगे थे. उन पैसों से उस के घर की कुछ जरूरतें पूरी हो जाया करती थीं.

पता नहीं मुख्तियार सिंह को क्या सूझी कि उस ने झाड़फूंक सब बंद कर दिया. इस के बाद उस की पत्नी निर्मल कौर ने उस की गद्दी संभाल कर झाड़फूंक करना शुरू कर दिया. वह बाकायदा व्यापारिक तरीके से काम करने लगी.

निर्मल कौर को 2 साल में ही बहुत अच्छा तजुर्बा हो गया. इस के बाद उस ने यह प्रचारित करना शुरू कर दिया कि उस की आत्मा परमात्मा से मिल कर एकाकार हो गई है. अब उस ने खुद को देवी घोषित कर दिया था.

निर्मल कौर अपने बड़े बेटे कुलविंदर सिंह उर्फ विक्की को भी अपने साथ रखती थी. वह भी मां के साथ अलग गद्दी पर बैठने लगा था. एक साल बाद उस ने खुद के बारे में यह प्रचारित करना शुरू कर दिया कि पूजापाठ से खुश हो कर भगवान विष्णु ने उसे अपने शेषनाग की आत्मा दे दी है.

अंधविश्वासी लोगों की वजह से मांबेटे का धंधा खूब फलफूल रहा था. जबकि वास्तविकता यह थी कि उन के पास न तो कोई सिद्धि थी और न ही उन्हें किसी तंत्रमंत्र के कखग का पता था.

बठिंडा के रहने वाले मल्ल सिंह बेहद गरीब इंसान थे. उन के 7 बेटे थे. जैसेतैसे मजदूरी कर के वह अपने परिवार को पाल रहे थे. गरीबी की वजह से वह बच्चों को पढ़ालिखा नहीं सके पर समय के साथ जैसेजैसे बच्चे बड़े होते गए, वह उन से भी मजदूरी कराने लगे. वह 2-3 बेटों की शादी कर पाए थे कि उन की मृत्यु हो गई. बाकी की शादी बाद में हो गई थी. उन का सब से बड़ा बेटा लाभ सिंह था और छोटा मुख्तियार सिंह. मुख्तियार की उम्र इस समय करीब 65 साल है.Crime story

लाभ सिंह और मुख्तियार सिंह दोनों के मकान सटे हुए थे. मुख्तियार के परिवार में पत्नी निर्मल कौर के अलावा 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. बड़े बेटे कुलविंदर उर्फ विक्की की शादी रोजी से हो गई थी. बाद में रोजी 2 बच्चों की मां बनी, जिस में 5 साल का बेटा रंजीत सिंह और 3 साल की बेटी अनामिका थी.

मुख्तियार सीधासादा आदमी था, इसलिए घर को निर्मल कौर ही संभाले हुए थी. उस ने अपनी दोनों बेटियों गगन कौर और अमन कौर की भी शादी कर दी थी. निर्मल कौर एक जिद्दी और दबंग प्रवृत्ति की महिला थी. दूसरे जब वह गद्दी पर बैठती तो खुद को देवी ही समझती थी, इसलिए लोग उसे बहुत सम्मान देते थे. निर्मल कौर का जेठ जोकि उस के एकदम बराबर में ही रहता था, वह निर्मल के क्रियाकलापों को ढोंग मानता था. इसी वजह से वह उस से कोई खास वास्ता नहीं रखता था.

निर्मल कौर की छोटी बहन प्रेमलता लुधियाना में दर्शन सिंह के साथ ब्याही थी. पिछले साल से वह लगातार बीमार चल रही थी. उस ने पीजीआई चंडीगढ़ में भी अपना इलाज करवाया था पर कोई फायदा नहीं हुआ था. डाक्टरों ने बताया था कि उसे कोई बीमारी नहीं है. वह एकदम फिट है. जबकि प्रेमलता का कहना था कि वह बीमार है.

दूसरे निर्मल कौर की बेटी गगन कौर शादी के 6 साल बाद भी मां नहीं बन सकी थी. डाक्टरों ने उस की व उस के पति की कई जांच करने के बाद पाया कि गगन और उसके पति शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं. स्वस्थ होने के बावजूद उन के आंगन में बच्चे की किलकारी नहीं गूंज रही थी.

तमाम लोग गगन की मां निर्मल कौर के पास अपनी समस्याएं ले कर आते थे. वे उसे देवी समझते थे. निर्मल कौर अपनी बहन और बेटी की समस्या भी दूर करना चाहती थी. एक दिन अपनी गद्दी पर बैठ कर निर्मल कुछ देर के लिए ध्यानमग्न हो गई.

कमरे में बहन प्रेमलता और बेटी गगन कौर बैठी थीं. कुछ देर बाद निर्मल ने अपनी आंखें खोल कर बताया, ‘‘मुझे सब साफसाफ दिखाई दे रहा है कि तुम्हारी दोनों की समस्या कैसे पैदा हुई और वह कैसे दूर होगी.’’

इतना सुनते ही गगन कौर और प्रेमलता उसे गौर से देखते हुए बोलीं, ‘‘अब क्या करना होगा बाबाजी?’’

जिस समय निर्मल कौर अपनी गद्दी पर बैठी होती थी, उस समय सभी उसे बाबाजी कह कर संबोधित करते थे. वह बोली, ‘‘बच्चा, तुम्हें कुछ नहीं करना है. अगले हफ्ते से हम खुद सभी काम संपूर्ण करेंगे. इस एक हफ्ते में हम पूरा इंतजाम कर लेंगे. दोनों के जीवन में खुशियां ही खुशियां होंगी. उस ने गगन कौर से भी कहा कि उस के 5 बेटे होंगे.’’

अगले दिन निर्मला अपने बेटे कुलविंदर को साथ ले कर हरियाणा के सिरसा जिले के गांव कालांवाली मंडी चली गई. वहां पर एक तथाकथित तांत्रिक लखविंदर सिंह उर्फ लक्की बाबा रहता था. पूरे दिन निर्मल कौर और लक्की बाबा की आपस में मंत्रणा चलती रही.

अगले दिन लक्की बाबा निर्मल कौर के घर आ गया. लक्की बाबा, निर्मल कौर और कुलविंदर उर्फ विक्की दिन भर गद्दी वाले कमरे में बैठ कर न जाने क्या पूजापाठ करते थे. यह बात 2 मार्च, 2017 की है.

पूजापाठ समाप्त कर के शाम को लक्की बाबा अपने गांव चला गया. इस के 2 दिन बाद निर्मल कौर ने पास के गांव दयोन से 4 अन्य तथाकथित तांत्रिकों को अपने घर बुलवाया और 2 दिनों तक उन के साथ पूजापाठ करती रही. सभी पूजापाठ की क्रियाओं में केवल निर्मल का बेटा कुलविंदर ही शामिल होता था. उस के अलावा घर के किसी अन्य सदस्य को गद्दी वाले कमरे में जाने की इजाजत नहीं थी.

6 मार्च को निर्मल ने अपनी बहन प्रेमलता और बेटी गगन को भी बुलवा लिया था. अगले दिन उस ने प्रेमलता को कुछ समझा कर वापस उस की ससुराल लुधियाना भेज दिया. जबकि गगन कौर अपनी मां के पास ही रुक गई थी.

इन सब से पहले 5 मार्च को निर्मल ने अपने दोनों पोतेपोती को अपने कमरे में कैद कर लिया था. पूजापाठ के दौरान ये लोग सभी बच्चों की झाड़फूंक करते और उत्तेजित हो कर कभी उन्हें थप्पड़ मारते, कभी बाल नोचते तो कभी चिमटे मारते थे. बच्चे जोरजोर से चीखतेचिल्लाते थे.Crime story

निर्मल कौर के पड़ोसियों सहित बच्चों की मां रोजी भी जानती थी कि बंद कमरे में झाड़फूंक के नाम पर बच्चों के साथ अत्याचार हो रहा है पर किसी की इतनी हिम्मत नहीं थी कि कोई इस अत्याचार को रोक सके. बड़ी बात तो यह थी कि खुद बच्चों का पिता कुलविंदर सिंह भी इस अत्याचार में शामिल था. यहां तक कि बच्चों के चाचा जसप्रीत, बुआ गगन कौर, अमन कौर और दादा मुख्तियार सिंह भी अच्छी तरह जानते थे कि बंद कमरे में दोनों मासूमों पर कैसेकैसे अत्याचार हो रहे हैं. लेकिन वे कुछ नहीं कर सकते थे.

8 मार्च को मुख्तियार सिंह ने जब खिड़की की झिर्री से कमरे के भीतर का दृश्य देखा तो उस की अंतरात्मा कांप उठी. हिम्मत कर के वह अपने बडे़ भाई लाभ सिंह के पास पहुंचा और उसे सारी बातें विस्तार से सुनाते हुए कहा, ‘‘वीरजी, मेरे को ऐसा लगता है कि कमरे में बैठे सभी लोग कोई नशा किए हुए हैं. उन के होशहवास कायम नहीं हैं. मैं तो दरवाजा बजाबजा कर हार गया हूं.’’

मुख्तियार सिंह और लाभ सिंह घर के बाहर खड़े आपस में बातें कर ही रहे थे कि तभी वहां कुछ पड़ोसी और गांव वाले भी जमा हो गए. अब उस बंद कमरे से दोनों बच्चों के चीखने की तेजतेज आवाजें आनी शुरू हो गई थीं. तभी लाभ सिंह व गांव के कुछ लोग उस बंद कमरे की ओर दौड़े.

जोर से धक्के मारमार कर उन्होंने खिड़की का एक पल्ला खोल लिया था. जब उन्होंने खिड़की से भीतर देखा तो उन के पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई और सांसें जहां की तहां रुक सी गईं. अंदर का दृश्य दिल को दहला देने वाला था.

सब ने देखा कि मंत्रोच्चारण करते हुए निर्मल कौर और कुलविंदर सिंह दोनों बच्चों को गर्म चिमटे से बुरी तरह पीट रहे थे. अपने बचाव में दोनों बच्चे कमरे में इधरउधर भागने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन बारबार नीचे गिर पड़ते थे. अचानक मंत्र पढ़ते हुए निर्मल ने एक मुट्ठी सामग्री भर कर धूने में जोर से फेंकते हुए ‘फट्ट स्वाहा’ कहा और साथ ही बच्चों की ओर अपनी अंगुली उठा दी.

निर्मल कौर का संकेत मिलते ही कुलविंदर ने बारीबारी दोनों बच्चों को पकड़ कर जमीन पर औंधे मुंह लेटा दिया. दोनों मासूम बुरी तरह तड़प रहे थे और छूटने का असफल प्रयास कर रहे थे. एकाएक मंत्र पढ़ते हुए निर्मल कौर अपनी गद्दी से उठी और झूमते हुए किसी मस्त हाथी की तरह झूमते हुए औंधे मुंह जमीन पर पड़े मासूम की पीठ पर सवार हो कर जोरजोर से अट्टहास करने लगी. साथ ही उस ने बच्चे के सिर के बालों को पकड़ कर खींचते हुए उस का चेहरा जमीन पर जोरजोर से पटकना शुरू कर दिया. फिर उस ने कुलविंदर की ओर देखते हुए जोर से कहा, ‘‘शेषनाग… सवारी करो.’’

मां का आदेश मिलते ही कुलविंदर उलटा लेट गया और अपनी गरदन ऊंची कर सांप की तरह ही जमीन पर रेंगते हुए धीरेधीरे अपनी 3 वर्षीय बेटी अनामिका की ओर बढ़ने लगा. अनामिका के निकट पहुंच कर उस ने सांप की ही तरह जोर से फुफकारा और औंधे मुंह लेटी अपनी मासूम बच्ची की पीठ पर सवार हो कर जोरजोर से उछलने लगा.

यह सब देख कर लाभ सिंह और मुख्तियार सिंह सिहर उठे. कमरे के अंदर मौजूद लोग आवाज देने पर भी दरवाजा नहीं खोल रहे थे, इसलिए दोनों भाई गांव के कुछ लोगों के साथ थाना कोटफत्ता की ओर दौड़े. थाने पहुंच कर उन्होंने थानाप्रभारी कृष्णकुमार को सब कुछ बता दिया.

तंत्रमंत्र के नाम पर वे लोग बच्चों के साथ कुछ अनर्थ न कर दें, इसलिए थानाप्रभारी अपने साथ एएसआई दर्शन सिंह, गुरप्रीत सिंह, हैडकांस्टेबल राजवंत सिंह, अजैब सिंह, कांस्टेबल लखविंदर सिंह, लेडी कांस्टेबल अमनदीप कौर और मनप्रीत कौर को साथ ले कर तुरंत घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. पर पुलिस टीम के पहुंचने के पहले ही दोनों मासूमों ने उन दरिंदों के अत्याचार न झेल पाने के कारण तड़पतड़प कर अपने प्राण त्याग दिए.

जिस समय लाभ सिंह और मुख्तियार सिंह पुलिस के साथ अपने घर पहुंचे, तब तक देर हो चुकी थी. निर्मल कौर और उस का बेटा कुलविंदर सिंह दोनों मृत मासूमों के मुंह में ट्यूबलाइट का कांच ठूंस रहे थे. थानाप्रभारी कृष्ण कुमार ने जब निर्मल को रोकना चाहा तो वह दहाड़ते हुए बोली, ‘‘खबरदार, नजदीक आने की कोशिश की तो मैं तेरा सर्वनाश कर दूंगी. मैं देवी हूं. अभी मैं इन दोनों को जिंदा कर दूंगी. इस के बाद न प्रेमलता कभी बीमार होगी और न ही गगन कौर संतानहीन रहेगी.’’

पुलिस के पहुंचने पर गांव के तमाम लोगों के अलावा महिलाएं भी इकट्ठी हो गई थीं. थानाप्रभारी के आदेश पर लेडी पुलिस ने गांव की ही कुछ महिलाओं की मदद से निर्मल कौर को काबू किया. पुलिस ने तुरंत दोनों बच्चों की लाशें अपने कब्जे में ले लीं. एएसआई दर्शन सिंह ने निर्मल कौर, कुलविंदर सिंह और अन्य लोगों को गाड़ी में बिठा लिया. तब तक यह खबर पूरे कोटफत्ते में फैल गई थी.

इस के बाद लोगों की भीड़ ने पुलिस की गाड़ी को घेर लिया. लोग उन दोनों मांबेटे को अपने हाथों से सजा देना चाहते थे. वास्तव में उस समय भीड़ इतनी आक्रोशित थी कि यदि वे दोनों भीड़ के हत्थे चढ़ जाते तो पीटपीट कर उन की हत्या कर दी जाती. थानाप्रभारी ने लोगों को समझाना चाहा पर लोग उन की कोई बात सुनने को तैयार नहीं थे. लोगों की पुलिस से झड़प तक हो गई.

अतिरिक्त पुलिस बल मंगवा कर बड़ी मुश्किल से उन्हें निकाल कर थाने पहुंचाया तो पब्लिक ने थाने को घेर लिया. हालात बेकाबू होता देख थानाप्रभारी ने एसएसपी स्वप्न शर्मा को हालात से अवगत करा दिया. इस के बाद कुछ ही देर में कई थानों की पुलिस वहां पहुंच गई. एसएसपी स्वप्न शर्मा, एसपी विनोद कुमार, डीएसपी कुलदीप सिंह सोही सहित कई आला अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों के काफी समझानेबुझाने के बाद करीब आधी रात को मामला शांत हुआ. पुलिस कुलविंदर की बीवी रोजी को भी पूछताछ के लिए अपने साथ ले गई.

तमाशा 8 तारीख की आधी रात तक चलता रहा. रात लगभग सवा 12 बजे इंसपेक्टर कृष्ण कुमार ने लाभ सिंह द्वारा पहले दी गई तहरीर के आधार पर भादंवि की धारा 302, 34 के अंतर्गत दोनों मासूम बच्चों रंजीत सिंह और अनामिका की बेरहमी से की गई हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

निर्मल कौर और कुलविंदर सिंह उर्फ विक्की तथा उस की पत्नी रोजी कौर को उसी समय गिरफ्तार कर के पूछताछ के लिए जिला मुख्यालय औफिस ले जाया गया. अगले दिन पूछताछ के बाद दोनों मांबेटे को तलवंडी साबो की जिला अदालत में पेश किया.

पुलिस ने निर्मल कौर के कमरे से तंत्रमंत्र का सामान, चिमटा आदि बरामद कर लिया. साथ ही कमरे से काफी मात्रा में नशीला पदार्थ भी बरामद किया.

अकाल गुरमति प्रचार कमेटी के मंजीत सिंह खालसा, सिख फेडरेशन के परणजीत सिंह जग्गी, भारतीय किसान क्रांतिकारी यूनियन के अध्यक्ष सुरजीत सिंह फूल, भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के पंजाब प्रभारी तथा तर्कशील सोसायटी भूरा सिंह महमा व जीरक सिंह सहित शहर के अन्य लोगों ने एसपी कार्यालय का घेराव कर मांग की कि बच्चों की मां रोजी कौर को इस मामले से बाहर रखा जाए, क्योंकि वह निर्दोष है.

जबकि एसपी विनोद कुमार और डीएसपी कुलदीप सिंह सोही का कहना था कि पिछले 4 दिनों से यह सब तमाशा उस की आंखों के सामने चल रहा था. यदि वह चाहती तो पहले ही पुलिस की सहायता ले सकती थी. इस से दोनों बच्चों की जान बच जाती.

रोजी को उस के पति और सास ने 8 मार्च को शाम के समय कमरे में बंद किया था. बंद के दौरान भी उस के पास मोबाइल फोन था. यदि वह चाहती तो पुलिस को या दूसरे लोगों को सूचित कर सकती थी. पर उस ने ऐसा नहीं किया. पुलिस को अंदेशा है कि शायद वह भी इस साजिश में शामिल थी.

पुलिस इस बात की भी छानबीन कर रही है कि मृतक बच्चों के दादा मुख्तियार सिंह की इस मामले में कितनी संलिप्तता है. 2 निर्दोष मासूमों की तंत्रमंत्र के नाम पर हुई हत्या से शहर भर में तनाव जैसा माहौल हो गया. लोगों ने बाजार बंद कर विरोध प्रकट किया तथा शहर के अन्य तांत्रिकों व बाबाओं के खिलाफ काररवाई की मांग की. पुलिस ने भी जरूरी काररवाई करते हुए तांत्रिकों की धरपकड़ शुरू कर दी.

शहर की तनावपूर्ण स्थिति को देखते हुए चप्पेचप्पे पर पुलिस तैनात कर दी गई. पोस्टमार्टम के बाद भारी पुलिस बल की मौजूदगी में दोनों बच्चों का अंतिम संस्कार किया गया. अंतिम संस्कार के बाद पुन: भीड़ ने उग्र रूप धारण कर मांग उठाई कि सिरसा के तांत्रिक लक्की बाबा उर्फ लखविंदर को भी गिरफ्तार किया जाए.

हालांकि इस घटना के समय वह वहां नहीं था पर 2 दिन पहले वहां आया था. अत: पुलिस ने लक्की बाबा की तलाश में छापेमारी शुरू कर दी. वह कहीं छिप गया था. अंत में पुलिस का दबाव बढ़ता देख कर उस ने खुद ही 19 मार्च, 2017 को थाना कोटफत्ता में आत्मसमर्पण कर दिया.

थानाप्रभारी लक्की बाबा को अदालत में पेश कर पूछताछ के लिए एक दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया. पूछताछ के बाद उसे अगले दिन पुन: अदालत में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

निर्मल कौर, कुलविंदर सिंह, रोजी कौर, प्रेमलता, गगन कौर, मुख्तियार सिंह, लक्की बाबा से की गई पूछताछ से निर्मल कौर के स्वयंभू देवी बनने की जो कहानी सामने आई, उस से पता चलता है कि लोगों के अनपढ़ और अंधविश्वासी होने का फायदा उठाते हुए वह समाज में अपना वर्चस्व कायम करना चाहती थी.

लगभग 6 साल पहले मुख्तियार सिंह पूजापाठ और झाड़फूंक करता था. वह यह काम बिना किसी लालच के करता था. कुछ लोगों को फायदा होने लगा तो उस के पास आने वाले लोगों की संख्या बढ़ गई. उस की पत्नी निर्मल कौर उस से इस काम के बदले पैसे लेने की बात कहती. पति के मना करने पर वह उस से झगड़ती और आने वाले लोगों से पैसे देने के लिए खुद कहती.

मुख्तियार ने उस की एक न सुनी. तब मुख्तियार ने झाड़फूंक का काम बंद कर दिया. इस के बाद उस की पत्नी निर्मल ने गद्दी पर बैठना शुरू किया. उस ने अपने बेटे कुलविंदर सिंह को भी अपने साथ लगा लिया. फिर दोनों ने तंत्रमंत्र के नाम पर लोगों को लूटना शुरू कर दिया.

वह खुद तो नशा करती ही थी, साथ ही आने वाले लोगों को भी प्रसाद में नशा मिला कर देती थी. नशे की जद में आ कर खुद को शक्तिशाली दिखाने के चक्कर में वह खुद के ही पोतेपोती का कत्ल कर बैठी. जेल पहुंचने के बाद अपने ही हाथों अपना वंश उजाड़ने वाली निर्मल कौर और उस के बेटे कुलविंदर सिंह को अपने किए पर बहुत पछतावा है.

फटाफट काम के लिए ऐसे करें अपने किचन को तैयार

रसोईघर किसी भी घर का बेहद अहम हिस्सा होता है. त्योहारी मौसम में अपने रसोईघर को किनकिन चीजों से सजाएं आइए जानते हैं:

रसोईघर की सजावट

रंग: अपनी किचन के लिए उपयुक्त कलर का चुनाव करना बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इस से उस की पूरी छवि निर्धारित होती है. बैगनी या हरे जैसे गहरे और गंभीर रंगों से परहेज करें. मनभावन वातावरण बनाने के लिए इन की जगह पीला, मटमैला, नारंगी आदि तटस्थ रंगों का चयन करें.

टाइल्स: सजावटी टाइल्स किचन की दीवारों को दागधब्बों से बचाने के साथसाथ उन का आकर्षण और ज्यादा बढ़ा देती हैं. इन दिनों औनलाइन और औफलाइन दोनों तरीकों से किचन टाइल्स उपलब्ध हैं. पसंदीदा वैराइटीज हैं- मोजेक, सिरैमिक और प्रिंटेड सिरैमिक, रस्टिक, मैट वाल टाइल्स और ग्लौसी सीरीज डिजिटल वाल टाइल्स आदि. आप फलों एवं अन्य भोजन सामग्री के चित्र उकेरी टाइल्स भी पसंद कर सकती हैं.

खिड़कियां: खिड़कियां किसी भी रसोईघर का महत्त्वपूर्ण हिस्सा होती हैं. इसलिए सर्वोत्तम वैराइटी में ही पैसे लगाएं. विंडोज का किचन में प्राकृतिक रोशनी को प्रवेश देने का महत्त्वपूर्ण काम होता है. आजकल झिलमिल सी दिखने वाली खिड़कियां बहुत पसंद की जा रही हैं. रसोईघर को आकर्षक बनाने के लिए कई इंटीरियर डिजाइनर इन का इस्तेमाल कर रहे हैं.

चिमनी: किचन चिमनी में हर साल बहुत बदलाव आ रहे हैं और इस की मांग लगातार बढ़ रही है, क्योंकि यह मौड्यूलर किचन का अनिवार्य हिस्सा बन गई है. किचन चिमनी मुख्यरूप से 3 प्रकार के फिल्टर्स के साथ आ रही हैं- कैसेट फिल्टर, कार्बन फिल्टर और बैफल फिल्टर. इन में बैफल फिल्टर भारतीय किचन के लिए सर्वोत्तम है.

किचन काउंटर टौप: उपयुक्त किचन टौप का चयन करने से किचन की उत्पादकता तो बढ़ती ही है, साथ ही इस का आकर्षण भी बढ़ जाता है. यों तो ग्रेनाइट किचन टेबल या टौप बहुत लोकप्रिय हैं, लेकिन आप संगमरमर (काला और सफेद) और विभिन्न प्रकार की चीनीमिट्टी का भी पसंद कर सकते हैं. किचन काउंटर टौप्स में अब तो कौंपैक्ट क्वार्ट्ज का भी जलवा है और नए जमाने के लोग इसे खूब पसंद कर रहे हैं.

रोशनी: रसोईघर में प्रकाश की व्यवस्था बेहद अनिवार्य है. इसलिए अपनी किचन के संपूर्ण सौंदर्यीकरण के लिए अच्छी क्वालिटी के लैंप, बल्ब आदि लगाने चाहिए. एलईडी और हैलोजन किचन लाइट्स भी काफी पसंद की जा रही हैं.

किचन कैबिनेट: जब बात स्टोरेज की आती है, तो किचन कैबिनेट्स बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं. प्रीलैमिनेटेड पार्टिकल बोर्ड्स, हार्डवुड, मरीन प्लाई, हाइब्रिड वुड प्लास्टिक कंपोजिट आदि कुछ बेहतरीन किचन कैबिनेट्स हैं.

रसोईघर की सजावट के इन साधनों के अलावा आप किचन केरौसेल का भी इस्तेमाल कर सकती हैं और जगह बचाने के लिए किचन में काम के लिहाज से ऐडजस्ट होने योग्य टेबल भी खरीद सकती हैं.

रसोईघर का सामान

चलिए अब मौजूदा वक्त में रसोईघर में इस्तेमाल हो रहे विभिन्न प्रकार के सामान की जानकारी देते हैं, जो आप के रसोईघर को  और भी आकर्षक बना देंगे:

एअर फ्रायर: यह ऐसा भोजन तैयार करता है, जिस में तेल के जरीए फ्राई किए गए भोजन की तुलना में 80% कम फैट होता है और साथ ही इस के स्वाद में भी कमी नहीं आती है. घर पर एअर फ्रायर होने से पारंपरिक डीप फ्रायर के विपरीत अधिक तेल का इस्तेमाल किए बिना आप पोटैटो चिप्स, चिकन, फिश या पेस्ट्रीज आदि को फ्राई कर सकती हैं.

जूसर: ताजा जूस पैक्ड जूस की तुलना में बेहतर रहता है. यह आप को न सिर्फ तरोताजा बनाए रखेगा, बल्कि उमस वाले इस मौसम में पानी की कमी से भी बचाए रखेगा.

स्मार्ट कुकी ओवन: 10 मिनट के कम से कम वक्त की तैयारी में फ्रैश बेकिंग के लिए स्मार्ट कुकी ओवन शानदार है.

शावरमा ग्रिलर: शावरमा ग्रिलर के साथ घर पर ही शावरमा बनाएं. ये न सिर्फ स्वादिष्ठ होते हैं, बल्कि इन में कई स्वास्थ्यवर्धक गुण भी मौजूद होते हैं. अच्छी तरह से तैयार शावरमा प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट के मजबूत स्रोत हैं. इन में स्वस्थ फैट होता है.

– सुनील गुप्ताए संस्थापक एवं निदेशक, ऐक्सपोर्ट्स इंडिया डौट कौम

घर और औफिस में तालमेल बनाने का उपाय हम आपको बताते हैं

मान्या की शादी 4 महीने पहले ही हुई है. वह बैंक में है. पहले संयुक्त परिवार में रह रही थी. इसलिए उस पर काम का बोझ अधिक नहीं था. लेकिन शादी के 2 महीने बाद ही पति का ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया. मान्या को भी पति के साथ जाना पड़ा. वह जिस बैंक में थी उस की अन्य शाखा भी उस शहर में थी, इसलिए मान्या ने भी वहां तबादला करा लिया.

दोनों परिवार से दूर अनजाने शहर में रह रहे हैं. यहां मान्या के ऊपर घर व औफिस की दोहरी जिम्मेदारियों का बोझ आ पड़ा. बचपन से संयुक्त परिवार में रही थी. इसलिए उस ने अकेले काम का इतना अधिक बोझ कभी नहीं संभाला था. उस का टाइम मैनेजमैंट गड़बड़ाने लगा. वह घर और दफ्तर के कार्यों के बीच अपना सही संतुलन नहीं बना पा रही थी. धीरेधीरे उस की सेहत पर इस का असर दिखने लगा.

एक दिन अचानक मान्या औफिस में बेहोश  हो गई. उसे हौस्पिटल ले जाया गया. डाक्टर ने बताया कि वह तनाव से घिरी है. इस का असर उस के स्वास्थ्य पर पड़ने लगा है. उस के बेहोश होने की वजह यही है.

1 हफ्ता मान्या ने घर पर आराम किया. कई रिश्तेदार और दोस्त उस से मिलने आए. एक दिन उस की एक खास सखी भी आई, जो मल्टीनैशनल कंपनी में मैनेजर थी. उस ने बताया, ‘‘तुम्हारे तनाव और बीमारी की वजह तुम्हारे द्वारा टाइम को सही तरीके से मैनेज नहीं करना है. वर्किंग वूमन के लिए अपने टाइम को इस तरह से बांटना कि तनाव और डिप्रैशन जैसी स्थिति न आए, बहुत जरूरी होता है.’’

आधुनिक समय में कामकाजी महिलाओं को घर और औफिस की दोहरी जिम्मेदारियां उठानी पड़ रही हैं, जिन में वे उलझ जाती हैं. वे हर जगह खुद को साबित करने और अपना शतप्रतिशत देने की चाह में तनाव की शिकार हो जाती हैं. पति और बच्चों के साथ समय नहीं बिता पातीं. सोशल लाइफ से दूर होती जाती हैं. औफिस में घर की परेशानियां और घर में औफिस की परेशानियों के साथ कार्य करना, ऐसे बहुत से कारण हैं, जो उन की जिंदगी में कहीं न कहीं ठहराव सा ला देते हैं, जो उन की सुपर वूमन की छवि पर एक प्रश्नचिह्न होता है.

ऐसे में जिंदगी में आई इन मुश्किलों का सामना जिंदादिली के साथ किया जाए, तो हार के रुक जाने का मतलब ही नहीं बनता. वैसे भी जिंदगी में सफलता का मुकाम कांटों भरी राह को तय करने के बाद ही मिलता है.

दोहरी जिम्मेदारी निभाएं ऐसे

आइए जानते हैं किस तरह वर्किंग वूमन अपनी दोहरी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुए दूसरी महिलाओं के लिए कामयाबी की मिसाल बन सकती हैं:

आज जमाना ब्यूटी विद ब्रेन का है. अत: सुंदरता के साथसाथ बुद्धिमत्ता भी जरूरी है. हमेशा सकारात्मक सोच रखें. नकारात्मक विचारों को खुद पर हावी न होने दें.

ऐसी दिनचर्या बनाएं, जिस में आप अपनी पर्सनल और प्रोफैशनल लाइफ को समय दे सकेें.

अपने व्यक्तित्व पर ध्यान दें. अपनी कमियों को दूर करने का प्रयास करें, क्योंकि यह आप के व्यक्तित्व विकास में बाधक बनती है. अपने अंदर आत्मनिरीक्षण करने की आदत विकसित करें. इस के अलावा अपने दोस्तों, शुभचिंतकों से भी अपनी कमियां जानने की कोशिश करें.

– वर्किंग वूमन के लिए टाइम मैनेजमैंट बहुत जरूरी है. इसलिए औफिस और घर पर समय की बरबादी को रोकने का हर संभव प्रयास करें. कौन सा कार्य कितने समय में करना है, इस की रूपरेखा मस्तिष्क या लिखित रूप में आप के पास होनी चाहिए.

– घर के कामों में परिवार के सदस्यों और बच्चों की मदद जरूर लें. साथ ही अपनी समस्याओं को परिवार के सदस्यों से प्यार से बताएं.

– औफिस में अकसर आप को आलोचना का शिकार भी होना पड़ता होगा. ऐसी बातों को नकारात्मक ढंग से न लें. अपनी कार्यक्षमता, संयमित व्यवहार और अपने आदर्शों से आप किसी न किसी दिन अपने आलोचकों को मुंह बंद कर ही देंगी.

– यदि आप को औफिस में अतिरिक्त जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं, तो उन से पीछा छुड़ाने के बजाय उन्हें सकारात्मक तरीके से निभाएं, क्योंकि ऐसी जिम्मेदारियां आप की कार्यक्षमता की, परीक्षा की जांच के लिए भी आप को दी जा सकती हैं.

  • वीकैंड पति व बच्चों के नाम कर दें. इस दिन मोबाइल फोन से जितनी हो सके दूरी बना कर रखें. बच्चों और पति को उन की फैवरेट डिश बना कर खिलाएं. शाम के समय मूड फ्रैश करने के लिए परिवार के साथ पिकनिक स्पौट या आउटिंग पर जाएं. इस तरह आप खुद को अगले सप्ताह के कामों के लिए फ्रैश और कूल महसूस करेंगी.

– औफिस में अपने काम को पूरी ईमानदारी और लगन से करें. लंच में ज्यादा समय न खराब करें. देर तक मोबाइल पर बातें करने से बचें.

द्य औफिस में सहकर्मियों से न तो अधिक निकटता रखें और न ही अजनबियों जैसा व्यवहार करें. औफिस में सहकर्मियों के साथ फालतू की बहस से बचें. उन के साथ आप को जादा देर तक काम करना होता है. अत: उन के साथ दोस्ताना संबंध बना कर चलें.

– औफिस की परेशानियों को घर न लाएं. ज्यादा देर टीवी देख कर या मोबाइल पर बातें कर के समय खराब न करें.

– जहां तक हो घर जा कर खाना खुद ही बनाएं. रोजरोज बाहर का खाना और्डर न करें. यह आप और आप के परिवार के लिए सही नहीं.

– आप की दोहरी भूमिका निभाने में पारिवारिक सदस्यों का सहयोग बहुत ही जरूरी है. इसलिए  व्यवहारिक जीवन में पतिपत्नी को एकदूसरे की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए और एकदूसरे की परेशानी को हल करने के लिए आपस में काम बांट लेने चाहिए.

आप का अपने लिए भी समय निकालना जरूरी है ताकि आप इस बीच शौपिंग आदि कर के अपना मूड फ्रैश कर सकें. रोजाना औफिस और घर के बीच की भागदौड़ की थकावट आप की सुंदरता कम कर सकती है. इस के लिए पार्लर में जा कर अपने सौदर्य में चार चांद लगाएं. चाहें तो पति को एक दिन के लिए बच्चों की जिम्मेदारी सौंप कर फ्रैंड्स के साथ मूवी देखने का प्रोग्राम बनाएं.

घर संभालता प्यारा पति दे रहा है समाज की संकुचित सोच को चुनौती

सुबह के 8 बजे हैं. घड़ी की सूइयां तेजी से आगे बढ़ रही हैं. स्कूल की बस किसी भी क्षण आ सकती है. घर का वातावरण तनावपूर्ण सा है. ऐसे में बड़ा बेटा अंदर से पापा को आवाज लगाता है कि उसे स्कूल वाले मोजे नहीं मिल रहे. इधर पापा नानुकुर कर रही छोटी बिटिया को जबरदस्ती नाश्ता कराने में मशगूल हैं. इस के बाद उन्हें बेटे का लंचबौक्स भी पैक करना है. बेटे को स्कूल भेज कर बिटिया को नहलाना है और घर की डस्टिंग भी करनी है.

यह दृश्य है एक ऐसे घर का जहां बीवी जौब करती है और पति घर संभालता है यानी वह हाउस हसबैंड है. सुनने में थोड़ा विचित्र लगे पर यह हकीकत है.

पुरातनपंथी और पिछड़ी मानसिकता वाले भारतीय समाज में भी पतियों की यह नई प्रजाति सामने आने लगी है. ये खाना बना सकते हैं, बच्चों को संभाल सकते हैं और घर की साफसफाई, बरतन जैसे घरेलू कामों की जिम्मेदारी भी दक्षता के साथ निभा सकते हैं.

ये सामान्य भारतीय पुरुषों की तरह नहीं सोचते, बिना किसी हिचकिचाहट बिस्तर भी लगाते हैं और बच्चे का नैपी भी बदलते हैं. समाज का यह पुरुष वर्ग पत्नी को समान दर्जा देता है और जरूरत पड़ने पर घर और बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी उठाने को भी हाजिर हो जाता है.

हालांकि दकियानूसी सोच वाले भारतीय अभी भी ऐसे हाउस हसबैंड को नाकारा और हारा हुआ पुरुष मानते हैं. उन के मुताबिक घरपरिवार की देखभाल और बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी सदा से स्त्री की रही है, जबकि पुरुषों का दायित्व बाहर के काम संभालना और कमा कर लाना है.

हाल ही में हाउस हसबैंड की अवधारणा पर आधारित एक फिल्म आई थी ‘का एंड की.’ करीना कपूर और अर्जुन कपूर द्वारा अभिनीत इस फिल्म का मूल विषय था- लिंग आधारित कार्यविभेद की सोच पर प्रहार करते हुए पतिपत्नी के कार्यों की अदलाबदली.

लिंग समानता का जमाना

आजकल स्त्रीपुरुष समानता की बातें बढ़चढ़ कर होती हैं. लड़कों के साथ लड़कियां भी पढ़लिख कर ऊंचे ओहदों पर पहुंच रही हैं. उन के अपने सपने हैं, अपनी काबिलीयत है. इस काबिलीयत के बल पर वे अच्छी से अच्छी सैलरी पा रही हैं. ऐसे में शादी के बाद जब वर्किंग कपल्स के बच्चे होते हैं तो बहुत से कपल्स भावी संभावनाओं और परेशानियों को समझते हुए यह देखते हैं कि दोनों में से किस के लिए नौकरी महत्त्वपूर्ण है. इस तरह आपसी सहमति से वे वित्तीय और घरेलू जिम्मेदारियों को बांट लेते हैं.

यह पतिपत्नी का आपसी फैसला होता है कि दोनों में से किसे घर और बच्चों को संभालना है और किसे बाहर की जिम्मेदारियां निभानी हैं.

यहां व्यवहारिक सोच महत्त्वपूर्ण है. यदि पत्नी की कमाई ज्यादा है और कैरियर को ले कर उस के सपने ज्यादा प्रबल हैं तो जाहिर है कि ऐसे में पत्नी को ब्रैड अर्नर की भूमिका निभानी चाहिए. पति पार्टटाइम या घर से काम करते हुए घरपरिवार व बच्चों को देखने का काम कर सकता है. इस से न सिर्फ बच्चों को अकेला या डेकेयर सैंटर में छोड़ने से पैदा तनाव कम होता है, बल्कि उन रुपयों की भी बचत होती है जो बच्चे को संभालने के लिए मेड या डेकेयर सैंटर को देने पड़ते हैं.

हाउस हसबैंड की भूमिका

हाउस हसबैंड होने का मतलब यह नहीं है कि पति पूरी तरह से पत्नी की कमाई पर निर्भर हो जाए या जोरू का गुलाम बन जाए. इस के विपरीत घर के काम और बच्चों को संभालने के साथसाथ वह कमाई भी कर सकता है. आजकल घर से काम करने के अवसरों की कमी नहीं. आर्टिस्ट, राइटर्स ज्यादा बेहतर ढंग से घर पर रह कर काम कर सकते हैं. पार्टटाइम काम करना भी संभव है.

सकारात्मक बदलाव

लंबे समय तक महिलाओं को गृहिणियां बना कर सताया गया है. उन के सपनों की अवहेलना की गई है. अब वक्त बदलने का है. एक पुरुष द्वारा अपने कैरियर का त्याग कर के पत्नी को अपने सपने सच करने का मौका देना समाज में बढ़ रही समानता व सकारात्मक बदलाव का संदेश है.

एकदूसरे के लिए सम्मान

जब पतिपत्नी अपनी ब्रैड अर्नर व होममेकर की पारंपरिक भूमिकाओं को आपस में बदल लेते हैं, तो वे एकदूसरे का अधिक सम्मान करने लगते हैं. वे पार्टनर की उन जिम्मेदारियों व काम के दबाव को महसूस कर पाते हैं, जो इन भूमिकाओं के साथ आते हैं.

एक बार जब पुरुष घरेलू काम और बच्चों की देखभाल करने लगता है तो खुद ही उस के मन में महिलाओं के लिए सम्मान बढ़ जाता है. महिलाएं भी उन पुरुषों को ज्यादा मान देती हैं जो पत्नी के सपनों को उड़ान देने में अपना योगदान देते हैं और स्त्रीपुरुष में भेद नहीं मानते.

जोखिम भी कम नहीं

समाज के ताने: पिछड़ी और दकियानूसी सोच वाले लोग आज भी यह स्वीकार नहीं कर पाते कि पुरुष घर में काम करे व बच्चों को संभाले. वे ऐसे पुरुषों को जोरू का गुलाम कहने से बाज नहीं आते. स्वयं चेतन भगत ने स्वीकार किया था कि उन्हें ऐसे बहुत से सवालों का सामना करना पड़ा जो सामान्यतया ऐसी स्थिति में पुरुषों को सुनने पड़ते हैं. मसलन, ‘अच्छा तो आप की बीवी कमाती है?’ ‘आप को घर के कामकाज करने में कैसा महसूस होता है? वगैरह.’

पुरुष के अहं पर चोट: कई दफा खराब परिस्थितियों या निजी असफलता की वजह से यदि पुरुष हाउस हसबैंड बनता है तो वह खुद को कमजोर और हीन महसूस करने लगता है. उसे लगता है जैसे वह अपने कर्त्तव्य निभाने (कमाई कर घर चलाने) में असफल नहीं हो सका है और इस तरह वह पुरुषोचित कार्य नहीं कर पा रहा है.

मतभेद: जब स्त्री बाहर जा कर काम कर पैसे कमाती है और पुरुष घर में रहता है तो और भी बहुत सी बातें बदल जाती हैं. सामान्यतया कमाने वाले के विचारों को मान्यता दी जाती है. उसी का हुक्म घर में चलता है. ऐसे में औरत वैसे इशूज पर भी कंट्रोल रखने लगती है जिन पर पुरुष मुश्किल से ऐडजस्ट कर पाते हैं.

सशक्त और अपने पौरुष पर यकीन रखने वाला पुरुष ही इस बात को नजरअंदाज करने की हिम्मत रख सकता है कि दूसरे लोग उस के बारे में क्या कह रहे हैं. ऐसे पुरुष अपने मन की सुनते हैं न कि समाज की.

स्त्रीपुरुष गृहस्थी की गाड़ी के 2 पहिए हैं. आर्थिक और घरेलू कामकाज, इन 2 जिम्मेदारियों में से किसे कौन सी जिम्मेदारी उठानी है, यह कपल को आपस में ही तय करना होगा. समाज का दखल बेमानी है.

जानेमाने हाउस हसबैंड्स

ऐसे बहुत से जानेमाने चेहरे हैं, जिन्होंने अपनी इच्छा से हाउस हसबैंड बनना स्वीकार किया है-

भारतीय लेखक चेतन भगत, जिन के उपन्यासों पर ‘थ्री ईडियट्स’, ‘2 स्टेट्स’, ‘हाफ गर्लफ्रैंड’ जैसी फिल्में बन चुकी हैं, ने अपने जुड़वां बच्चों की देखभाल के लिए हाउस हसबैंड बनने का फैसला लिया.

वे ऐसे दुर्लभ पिता हैं, जिन्होंने आईआईटी, आईआईएम से निकलने के बाद अपने बच्चों को अपने हाथों बड़ा किया. हाउस हसबैंड बनने का फैसला उन्होंने तब लिया था जब वे अपने कैरियर में ज्यादा सफल नहीं थे जबकि उन की पत्नी यूबीएस बैंक की सीईओ थीं. चेतन भगत ने नौकरी छोड़ कर भारत आने का फैसला लिया और खुशीखुशी घर व बच्चों की देखभाल में समय लगाने लगे. साथ में लेखन का कार्य भी चलता रहा. आज उसी चेतन भगत के उपन्यासों का लोगों को बेसब्री से इंताजर रहता है.

कुछ इसी तरह की कहानी जानेमाने फुटबौलर डैविड बैकहम की भी है, जिन्होंने प्रोफैशनल फुटबौल की दुनिया से अलविदा कह कर हाउस हसबैंड बनने का फैसला लिया. एक टैलीविजन शो के दौरान उन्होंने स्वीकारा था कि वे अपने 4 बच्चों के साथ समय बिता कर ऐंजौय करते हैं. बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना, स्कूल छोड़ कर आना, लंच बनाना, सुलाना जैसे सभी कामों को वे बड़ी सहजता से करते हैं.

न्यूटन इनवैस्टमैंट मैनेजमैंट की सीईओ हेलेना मोरिसे लंदन की चंद ऐसी महिला सीईओ में से एक हैं जो 50 बिलियन पाउंड्स से ज्यादा का कारोबार संभालती हैं और करीब 400 से ज्यादा कर्मचारियों पर हुक्म चलाती हैं. वे 9 बच्चों की मां भी हैं. जब हेलेना ने बिजनैस वर्ल्ड में अपना मुकाम बनाया तो उन के पति रिचर्ड ने खुशी से घर पर रह कर बच्चों की जिम्मेदारी उठाना स्वीकारा.

कुछ इसी तरह की कहानी भारत की सब से शक्तिशाली बिजनैस वूमन, इंदिरा नूई की भी है. पेप्सिको की सीईओ और चेयरमैन इंदिरा नूई के पति अपनी फुलटाइम जौब को छोड़ कर कंसलटैंट बन गए ताकि वे अपनी दोनों बच्चियों की देखभाल कर सकें.

इसी तरह बरबेरी की सीईओ ऐंजेला अर्हेंड्स के पति ने भी अपनी पत्नी के कैरियर के लिए अपना बिजनैस समेट लिया और बच्चों की देखभाल व घर की जिम्मेदारियां अपने ऊपर ले लीं.

डिप्लोमैट जेम्स रुबिन ने भी खुशीखुशी अपनी हाई प्रोफाइल जौब छोड़ दी ताकि वे अपनी पत्नी जर्नलिस्ट क्रिस्टीन अमान पोर को सफलता की सीढि़यां चढ़ता देख सकें. उन्होंने जौब छोड़ कर अपने बेटे की परवरिश करने की ठानी.

क्या केदारनाथ फिल्म की शूटिंग पूरी हो भी पाएगी या नहीं

सैफ अली खान व अमृता सिंह की बेटी सारा अली खान के करियर की पहली फिल्म ‘‘केदारनाथ’’ को लेकर बौलीवुड में अफवाहों का बाजार गर्म है. बौलीवुड में चर्चाएं हैं कि इस फिल्म के साथ कुछ भी सही नहीं हो रहा है.

रचनात्मक मतभेद के चलते फिल्म के निर्देशक अभिषेक कपूर और सुशांत सिंह राजपूत के बीच कई बार घमासान हो चुका है. यहां तक कि अब सुशांत सिंह राजपूत इस फिल्म की शूटिंग के लिए तारीख नहीं दे रहे हैं.

जबकि कुछ दिन पहले सुशांत सिंह राजपूत ने बंटी वालिया की फिल्म ‘‘रौ’’ यह कर छोड़ी थी कि वह सारा अली खान के करियर की पहली फिल्म का हिस्सा बनना चाहते हैं, इसलिए वह केदारनाथ करेंगे.

‘केदारनाथ’ की शूटिंग का पहला शिड्यूल भी बड़ी मुश्किल से पूरा हो पाया था. सूत्रों का दावा है कि अब सुशांत सिंह राजपूत दूसरे शिड्यूल की शटिंग के लिए समय नहीं दे रहे हैं.

इसी बीच बौलीवुड में यह खबर भी फैली हुई है कि फिल्म के निर्देशक अभिषेक कपूर उर्फ गट्टू किसी की नाराजगी किसी अन्य के सिर फोड़ रहे हैं. ताजा तरीन खबर है कि अभिषेक कपूर ने रचनात्मक मतभेद का बहाना कर अपनी यूनिट यानी कि फिल्म ‘‘केदारनाथ’’ के कैमरामैन, कार्यकारी निर्माता सहित कईयों को फिल्म से बाहर का रास्ता दिखा दिया है.

सूत्र दावा कर रहे हैं कि अभिषेक कपूर ने अब सुशांत सिंह राजपूत से कह दिया है कि वह शूटिंग के लिए जनवरी या फरवरी 2018 में वक्त देंगे, तो भी उन्हे समस्या नहीं है.

तो वहीं बौलीवुड के गलियारों में यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि क्या ‘‘केदारनाथ’’ का निर्माण होगा, या इसी तरह हमेशा के लिए अधर में लटकी रहेगी, इस सवाल का जवाब देने के लिए फिलहाल कोई सामने नहीं आ रहा है.

इस प्रक्रिया को अपनाकर iOs से Android में ट्रांसफर करें डाटा

एंड्रौयड यूजर्स को iOS प्लेटफौर्म पर अपने फोन के कौन्टैक्ट्स, फोटोज, वीडियो आदि ट्रांसफर करने में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. एप्पल ने यूजर्स की इसी परेशानी को ध्यान में रखते हुए Move to iOS एप लौन्च की है.

इस एप की मदद से नए आईफोन यूजर अपने एंड्रौयड डिवाइस से सभी डाटा को ट्रांसफर कर सकते हैं. यही नहीं इस एप की मदद से यूजर्स उस एप को भी अपने आईफोन में फ्री डाउनलोड कर सकते हैं, जो वे पहले से ही एंड्रौयड फोन पर यूज कर रहे थे. हम अपनी इस खबर में आपको इसी बात की पूरी जानकारी दे रहे हैं.

स्टेप बाई स्टेप प्रक्रिया

  • अपने आईफोन या आईपैड को तब तक सेट करते रहें जब तक कि “Apps & Data” में न पहुंच जाएं.
  • अब “Move Data from Android” औप्शन पर टैप करें.
  • अपने एंड्रौयड फोन या टेबलेट पर गूगल प्ले स्टोर को ओपन करें और Move to iOS को सर्च करें.
  • Move to iOS app को ओपन करें.
  • अब इसमें इंस्टौल पर टैप करें.
  • इंस्टौल करने के लिए मांग रहे परमिशन रिक्वेस्ट को एक्सेप्ट करें.
  • अब इसके इंस्टौल होने के बाद इसे ओपन करें.
  • अब दोनों डिवाइस में Continue पर टैप करें.
  • Agree पर टैप करें और एंड्रौयड फोन या टैबलेट पर Next पर जाएं.
  • अपने एंड्रौयड डिवाइस पर उस 12 डिजिट के कोड को एंटर करें जो आईफोन या आईपैड पर दिख रहा है.

फोन में कोड एंटर करने के बाद, आपका एंड्रौयड डिवाइस एक पीयर-टू-पीयर वाई-फाई कनेक्शन पर आपके आईफोन या आईपैड से कनेक्ट होगा और इसके बाद यह जांचेगा कि किस डाटा को ट्रांसफर किया जाएगा.

इसके बाद आपसे पूछा जाएगा कि क्या आप अपने गूगल अकाउंट की जानकारियों जैसे कि क्रोम बुकमार्कस, टेक्स्ट मैसेज, कौन्टैक्ट्स, फोटो और वीडियो आदि को ट्रांसफर करना चाहते हैं. आप जिस भी डाटा को ट्रांसफर करना चाहते हैं उसे सेलेक्ट करें.

इसके बाद आपका एंड्रौयड फोन या टैबलेट सेलेक्ट किए हुए डाटा को आपके आईफोन या आईपैड पर ट्रांसफर कर देगा. साथ ही उचित कंटेंट को सही एप्स में प्लेस करता है. अब दोनों डिवाइसेस डिस्कनेक्ट हो जाएंगे और एंडौयड आपके पुराने डिवाइस को एप्पल स्टोर में ले जाने के लिए पौपअप देगा जहां वो इसे फ्री में रिसाइकल करेगा.

ट्रांसफर प्रक्रिया पूरी होने के बाद अपने डिवाइस पर Continue Setting Up iPhone या Continue Setting Up iPad पर टैप करें. अब एक नई एप्पल आईडी बनाए या अपने पुराने आईडी को लौगइन करें.

अल्फोंस साहब, अमीर तो आज कार वाले भी नहीं

अल्फोंस कन्नाथनम का नाम याद रख लीजिए. ये अमीरी का प्रमाणपत्र देते हैं. यदि आप को लगता है कि आप गरीब हैं और आप के पति सिर्फ मोबाइल पर आप को घुमाते हैं तो यह इन्फौर्मेशन टैक्नोलौजी और पर्यटन मंत्री आप को प्रमाणपत्र दे देंगे जिस पर शायद यह लिखा होगा- यह भारत सरकार का पर्यटन मंत्रालय अपने महादानव कंप्यूटर तंत्रों की सहायता से प्राप्त जानकारी के आधार पर प्रमाणित करता है कि आप एक मोबाइल नंबर ????????९९ के मालिक हैं. अत: आप समृद्ध, सुखी, धनी हैं और आप की बाकी सारी संपत्ति पर विशिष्ट अधिकार जनप्रिय, 70 फीसदी जनता की सहमति के आधार पर आप पर अतिरिक्त करों का बोझ डाल कर आप को विकसित देश के प्रति ऋण चुकाने का अवसर देते हुए पर अतिरिक्त करों का भार आप को सहर्ष सादर अर्पित करती है ताकि आप विश्वगुरु के साथसाथ विश्वनेता के देश के नागरिक भी बन जाएं.

हस्ताक्षर- मंत्री अल्फोंस कन्नाथनम (भारत सरकार की मुहर)

यह मखौल नहीं है. यह आज के मंत्रियों की मानसिकता है, जो आम व्यक्ति के दुखदर्द की नहीं सोच रहे. पैट्रोल, डीजल के दाम बढ़ेंगे, रोज की चीजों पर जीएसटी बढ़ेगा तो घर का खर्च बढ़ेगा. बाइक होने से अमीरी नहीं आती. आज तो कार वाले भी अमीर नहीं होते.पैट्रोल, डीजल बाइक या कार में ही नहीं, बस, ट्रक, ट्रैक्टर में भी डलता है और ये सब गरीबों के काम के होते हैं. उन्हें अमीरों की श्रेणी में डालने का अर्थ है कि अल्फोंस साहब शायद महंगे अल्फोंस आमों की तरह हर आम को एकजैसा समझते हैं.

ट्विटर पर नए फौलोअर को अब इस तरह चला जाएगा वेलकम मैसेज

माइक्रो ब्लोगिंग साइट ट्विटर पर आपका भी अकाउंट होगा. आप भी किसी को और कई लोग आपको फौलो करते होंगे. जरा सोचिये कि अगर आपको फौलो करने वाले नए लोगों को खुद बखुद धन्यवाद का मैसेज चला जाए तो कैसा रहेगा. जी हां ये सच है. आपको जल्दी ही ये सुविधा मिलने वाली है. दरअसल, कुछ खास मोबाइल की मदद से ट्विटर पर नए फौलोअर को कुछ भी मैसेज भेज सकते हैं, वो भी बिना औनलाइन आए. जैसे ही कोई व्यक्ति आपको फौलो करेगा तो धन्यवाद का मैसेज अपने आप ही उसके पास चला जाएगा.

अगर आप ट्वीट करके अपने नए फौलोअर को धन्यवाद देना चाहते हैं तो अब यह भी संभव है. मैसेज या ट्वीट भेजने के लिए सबसे पहले आपको unfollowers.com/ पर जाकर लौग-इन करना होगा. फिर ‘वेलकम ट्वीट’ के दिये गये विकल्प को चुनना होगा. इस विकल्प पर जाने के बाद अपना ट्वीट लिख दें और नीचे दिए गए ‘डिफौल्ट पेज’ के विकल्प पर जाकर ‘न्यू फौलोअर्स’ का विकल्प चुन लें. इसके बाद नए फौलोअर्स को अपने आप वेलकम मैसेज और ट्वीट चला जाएगा.

औटोमेटिक मैसेज भेजने के लिए unfollowers.com/ पर जाकर करने के बाद आपको ऊपर की तरफ ‘वेलकम’ लिखा हुआ एक विकल्प दिखाई देगा. उस विकल्प को चुनने के बाद नीचे दिए गए औटोमेट के विकल्प पर क्लिक करें. यहां ‘वेलकम डीएम’ का विकल्प आएगा यहां पर जाकर आपको वह मैसेज लिखना होगा जो आप नए फौलोअर को भेजना जाहते हैं. फिर क्या आप जो भी चाहे यहां पर लिखें. इसके बाद नीचे दिए गए ‘डिफौल्ट पेज’ के विकल्प पर जाकर ‘न्यू फौलोअर्स’ पर क्लिक कर दें. इसके जरिये आप अपने नए फौलोवर को अपना मनचाहा मैसेज भेज दें.

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