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ग्लैमर के लिए इंटिमेट सीन नहीं कर सकती : इशिता दत्ता

तेलगू फिल्म से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री इशिता दत्ता को बचपन से इच्छा थी कि उन्हें अभिनय का मौका मिले और ये प्रेरणा उन्हें अपनी अभिनेत्री बहन तनुश्री दत्ता से मिली, जो उन्हें हमेशा अपनी इच्छा से जुड़ी काम करने की सलाह दिया करती थीं. इतना ही नहीं आज भी किसी काम को करने से पहले इशिता अपनी बहन की राय अवश्य लेती हैं. झारखण्ड के जमशेदपुर की रहने वाली इशिता अभी अपने माता-पिता के साथ मुंबई में रहती हैं. हंसमुख और विनम्र स्वभाव की इशिता इन दिनों कौमेडी और ड्रामा फिल्म ‘फिरंगी’ को लेकर व्यस्त हैं, उनसे मिलकर बात करना रोचक था पेश है अंश.

इस फिल्म को करने की वजह क्या है?

इससे पहले मैंने हिंदी फिल्म ‘दृश्यम’ किया था, जिसमें मैंने अजय देवगन की बेटी की भूमिका निभाई थी. उस फिल्म में कास्टिंग डायरेक्टर विकी सदाना ने मेरी कास्टिंग करवाई थी. इसमें भी उन्होंने मुझे मेरी भूमिका के बारे में बताया और औडिशन के लिए तैयार होने को कहा. कई औडिशन के बाद अंत में मैं चुनी गयी. ये फिल्म साल 1920 की कहानी है, जिसमें मैंने पंजाबी लड़की की भूमिका निभाई है. ये लुक मुझसे काफी अलग है और मैं ऐसे अलग चरित्र करने में चुनौती महसूस करती हूं. इसके अलावा जब मैं टीम से मिली, तो पहली मुलाकात में इसकी कहानी मुझे रोचक लगी. साथ ही इतने दिनों तक ब्रेक के बाद मुझे एक अच्छी फिल्म करने का औफर मिल रहा था, जो बड़ी बात थी.

इससे पहले आपने टीवी में भी काम किया है, टीवी से फिल्मों में आना कैसे हुआ? दोनों में क्या अंतर महसूस करती हैं?

दरअसल मैंने पहले फिल्म फिर टीवी में काम किया है. ‘दृश्यम’ फिल्म के बाद मुझे हर कोई वैसी ही छोटी लड़की की भूमिका की औफर दे रहा था और मुझे वैसा नहीं करना था, इसलिए मैं मना करती रही. उसी दौरान मुझे टीवी धारावाहिक ‘एक घर बनाऊंगा’ का औफर मिला, मुझे वह पसंद आई और मैंने कर लिया. मुझे काम करते रहना पसंद है, बैठकर समय का दुरुपयोग नहीं करना चाहती थी और ये सही था मुझे टीवी के जरिये लोगों के घर तक पहुंचने का मौका भी मिला. आजकल फिल्म से टीवी और टीवी से फिल्मों में जाना आम बात है. बड़े-बड़े कलाकार भी टीवी पर आ रहे हैं. इसके अलावा आजकल टीवी की शूटिंग फिल्मों के जैसे ही हो रही है.

दोनों के माध्यम में कोई अंतर नहीं है. टीवी में समय की कमी की वजह से ‘शिड्यूल हेक्टिक’ होता है, जबकि फिल्म में काम आराम से होता है.

क्या अभिनय एक इत्तफाक थी, या बचपन से इच्छा रही है?

मेरे लिए अभिनय जौब नहीं, बल्कि एक इच्छा थी, जिसे बहन ने बल दिया और मैं इस क्षेत्र में चली आई. मैंने मास मीडिया में पढ़ाई पूरी करने के बाद कई जगहों पर अपनी पोर्टफोलियो भेजी और मुझे पहले तेलगू फिल्म में काम करने का मौका मिला, यहीं से मेरे अंदर प्रेरणा जगी और अब मैं इसी क्षेत्र में अच्छा काम करना चाहती हूं. मेरे कैरियर की सपोर्ट सिस्टम मेरी दीदी ही है, जिसने मुझे इस इंडस्ट्री की बारीकियों को समझाया है. दीदी कहती है कि जब भी कोई काम करने की इच्छा हो, तो उसे कर लेना चाहिए, ताकि बाद में अफसोस न हो. अगर वह गलत निकला तो उसे छोड़ आगे बढ़ जाना चाहिए.

यहां तक पहुंचने में परिवार का सहयोग कितना रहा?

उन्होंने बहुत सहयोग दिया है, जमशेदपुर से वे मुंबई रहने चले आये, ताकि हमें सुविधा हो. मैंने हमेशा काम के साथ परिवार का बैलेंस रखा है. समय मिलते ही उनके साथ समय बिताना पसंद करती हूं. काम मेरे ऊपर इतना हावी नहीं होता है कि मैं परिवार और दोस्तों को भूल जाऊं. इसलिए मुझे कभी तनाव नहीं होता.

कितना संघर्ष यहां तक पहुंचने में रहा?

मैंने अधिक संघर्ष नहीं किया. ये सही है कि कोई बड़ा काम नहीं मिला, लेकिन समय-समय पर मुझे जो काम मिला, उसमें मैं धीरे-धीरे ग्रो कर रही हूं और अपने काम से संतुष्ट हूं.

फिल्मों में इंटिमेट सीन्स करने में आप कितनी सहज होती हैं?

अभी तक तो कोई फिल्म ऐसी नहीं की है, लेकिन स्क्रिप्ट की जरूरत अगर है तो करना पड़ेगा, पर मैं सहज नहीं हूं. ग्लैमर के लिए इंटिमेट सीन्स नहीं कर सकती.

आगे किस तरह की फिल्में करने की इच्छा रखती हैं?

मैंने अभी तो शुरुआत की है. एक एक्शन फिल्म करने की इच्छा है. निर्देशक इम्तियाज अली के निर्देशन में फिल्म करना चाहती हूं.

कितनी फूडी और फैशनेबल हैं?

मैं बंगाली हूं और हर तरह का खाना पसंद करती हूं. मिठाई खूब पसंद है. समय मिले तो खाना भी बना लेती हूं. चिकन बिरयानी और आइसक्रीम मैं बना लेती हूं.

कम्फर्ट लेबल को ध्यान में रखकर ड्रेस पहनती हूं. इंडियन और वेस्टर्न हर तरह के पोशाक पहनती हूं. मुझे ब्राइट कलर के परिधान पसंद हैं, जिसमें पीला रंग मेरा पसंदीदा है.

मेकअप कितना पसंद करती हैं?

पहले मुझे मेकअप का शौक था, अब नहीं है, क्योंकि हमेशा लगाना पड़ता है. मौइस्चराइजर हमेशा लगाती हूं. रात को सोने से पहले अच्छी तरह से मेकअप उतरना नहीं भूलती.

खाली समय में क्या करना पसंद करती हैं?

मुझे पेट्स से बहुत लगाव है. मेरे पास एक डौग है, जिसका नाम मैंने ‘हैप्पी’ रख दिया है. उसके साथ मैं खेलती हूं. जब भी मैं काम से घर लौटती हूं, तो वह मेरा सत्कार खुशी से करता है, जिससे मेरी पूरी थकान दूर हो जाती है. इसके अलावा खाली समय में दोस्त और परिवार के साथ समय बिताती हूं.

इस दक्षिण अफ्रीकी बल्लेबाज ने जड़ा सबसे तेज तिहरा शतक, बनाया वर्ल्ड रिकार्ड

दक्षिण अफ्रीका के युवा बल्लेबाज मार्को मरैस ने क्रिकेट इतिहास का सबसे तेज तिहरा शतक जड़कर इतिहास रच दिया. 24 साल के मरैस ने दक्षिण अफ्रीका के तीन दिवसीय प्रांतीय प्रतियोगिता में पूर्वी लंदन में बौर्डर की तरफ से खेलते हुए ईस्टर्न प्रोविंस के खिलाफ 191 गेंदों पर नाबाद 300 रनों की पारी खेली.

अपनी रिकार्ड पारी के दौरान मरैस जब बल्‍लेबाजी के लिए पहुंचे तो उनकी टीम 82 रन पर चार विकेट गंवाकर मुश्किल में थी. मैच में उन्‍होंने 35 चौके और 13 छक्‍के जमाए. इस दौरान मरैस ने ब्रेडले विलियम्‍स (नाबाद 113 रन) के साथ नाबाद 428 रन की साझेदारी की. यह मैच बारिश से प्रभावित रहा और ड्रा पर समाप्‍त हुआ.

यह जोरदार पारी खेलने के बाद मरैस ने कहा कि, ‘इस वर्ष में क्‍लब क्रिकेट खेलने के लिए देश से बाहर नहीं गया. मैंने अपनी खास चीजों में सुधार के लिए कड़ी मेहनत की. मुझे लगता है कि इसका अच्‍छा नतीजा मेरी बल्‍लेबाजी में देखने को मिला.’

इससे पहले, सबसे तेज तिहरे शतक का रिकार्ड चार्ली मैकार्टनी के नाम पर था जो उन्‍होंने वर्ष 1921 में 221 गेंदों पर लगाया था. चार्ली ने नौटिंघमशायर के खिलाफ यह तिहरा शतक जमाया था. डेनिस कौम्‍पटन ने एमसीसी की ओर से खेलते हुए नार्थ ईस्‍टर्न ट्रांसवाल के खिलाफ 1948-49 में 181 मिनट में 300 रन बनाए थे लेकिन उनकी ओर से खेली गई गेंदों को उस समय गिना नहीं गया था. क्रिकेट में उस समय आठ गेंदों का ओवर होता था.

आपको बता दें हाल ही में (18 नवंबर) 20 साल के साउथ अफ्रीकी बल्लेबाज शेन डैड्सवेल ने कमाल कमाल किया था. डैड्सवेल ने 50 ओवर के एक क्लब क्रिकेट मैच में 490 रन ठोक डाले थे. मजे की बात तो यह है कि उन्होंने अपने जन्मदिन पर यह कारनामा किया था.

बिल्डर समस्या

देशभर में बिल्डर लौबी बुरी तरह बदनाम है. आम आदमी बिल्डरों पर खलनायक, लुटेरा, सूदखोर, चोर, मुनाफाखोर और न जाने क्याक्या आरोप लगा कर उन्हें बदनाम करता है. गनीमत है कि इतनी बदनामी सहने के बावजूद इस उद्योग में आने वाले बिल्डरों की अभी तक कमी नहीं है और लोग हजारों की नहीं, लाखों की संख्या में देश के हर शहर, कसबे में बिल्डरों के बनाए मकानों में रह रहे हैं या व्यवसाय कर रहे हैं.

यह ऐसा व्यवसाय है जिस के बिना रहा भी न जाए और साथ निभाया भी न जाए. सरकार ने बिल्डरों के खिलाफ बने माहौल का बड़ा लाभ उठाया है और उन पर नए कानून थोपे हैं जो इस धंधे को शायद नष्ट ही कर डालेंगे. नए कानून के लागू होने से पहले ही सैकड़ों प्रोजैक्ट खटाई में पड़ चुके हैं और दिल्ली के कई नामी बिल्डर जेल में हैं या उन्हें भेजे जाने की तैयारी है.

अदालतें ग्राहकों की समस्या का उपाय केवल जुर्माना या जेल समझ रही हैं जबकि ग्राहकों को दोषियों को सजा से नहीं, मकानों के मिलने से संतुष्टि मिलेगी. जुर्माना भरने या जेल में जाने से मकान तो उग नहीं आएंगे पर आम प्रशासकों की तरह अदालतें भी समझती हैं कि सख्ती से हर जीव को नियंत्रित किया जा सकता है. अदालतें यह भूल जाती हैं कि जेल में बंद बिल्डर मकान के प्रोजैक्ट को आगे बढ़ा ही नहीं सकता.

इस उद्योग में मोटा पैसा बना या पैसा लेने के बाद देरी हुईर् तो आमतौर पर कारण सरकारी अड़ंगेबाजी है. सरकारों ने, जिन में बीसियों एजेंसियां होती हैं, बिल्डरों को सोने के अंडे देने वाली मुरगियां तो समझ रखा है पर उन को दानापानी देने का कोई इंतजाम नहीं कर रखा है. बिल्डर अनुमतियों के चक्कर में फंसे रहते हैं. हर अफसर ऐसे नए नियम बनाता रहता है जो कानून में होते ही नहीं हैं. अफसर की कलम का गलत लिखा सिर्फ अदालत हटा सकती है और अदालतें छोटेछोटे मामलों पर फैसला देने के लिए वर्षों का समय लेती हैं. अगर इन वर्षों के कारण ग्राहकों को मकान न मिल पाएं तो भी दोष न अफसर का होता है, न नियमों का, न कानून बनाने वालों का और न ही अदालतों का. दोष बिल्डरों का ही माना जाता है.

इस सब का पैसा ग्राहकों को देना पड़ता है. कानून की एक लाइन मकान की कीमत में 15 प्रतिशत तक वृद्धि कर सकती है. कुछ कानून तो 50 प्रतिशत तक दाम बढ़वा देते हैं. जब से अदालतों ने बिल्डरों को जेल भेजना शुरू किया है, मकान बनने बंद हो गए हैं. दिल्ली के आसपास कमसेकम 60 हजार मकान अधूरे बने पड़े हैं जिन में बिल्डरों, बैंकों और ग्राहकों का पैसा फंसा है. दोष सरकार और अदालतों का भी उतना ही है जितना बेईमान बिल्डरों का. पर पूरी जमात को गुनाहगार मान कर मकान नहीं बन सकते, यह पक्का है. सरकार खुद मकान बना कर देख चुकी है कि उस के बनाए मकानों में तो बेघर भी रहने से घबराते हैं कि वे न जाने कब ढह जाएं.

संग्राहकों के लिए आज भी अमूल्य है एक रुपए का यह नोट

पहले के समय में एक रूपये का नोट बड़े काम का था, उस समय इस नोट का ज्यादातर इस्तेमाल शगुन के पैसे देने के लिए किया जाता था. वैसे एक रुपये के नोट से जुड़े किस्से तो आप सभी को याद ही होंगे.

शादियों का मौसम चल रहा है, इस मौसम में शगुन देने के लिए अब तो एक रुपये के सिक्के लगे लिफाफे आने लगे हैं लेकिन एक दौर ऐसा था जब परिवार के सदस्य एक रुपये के नोट को ढूंढते फिरा करते थे और एक रूपये का नोट लगाकर ही शगुन दिया करते थे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि यही एक रुपये का नोट अब 100 साल का हो चुका है और इसकी शुरुआत का इतिहास भी बड़ा दिलचस्प है.

हुआ यूं कि जब एक रुपये का नोट आया तो उस समय पहले विश्वयुद्ध का दौर था और देश में अंग्रेजों की हुकूमत थी. उस दौरान एक रुपये का चांदी का सिक्का चला करता था, लेकिन युद्ध के चलते सरकार चांदी का सिक्का ढालने में असमर्थ हो गई और इस प्रकार 30 नवंबर 1917 में पहली बार एक रुपये का नोट लोगों के सामने आया. इसने उस चांदी के सिक्के का स्थान लिया

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शुरू में ये नोट इंग्लैंड में प्रिंट हुए थे. इस पर किंग जार्ज पंचम के चांदी के सिक्के की तस्वीर बाएं कोने पर छपी थी. नोट पर लिखा था कि ‘मैं धारक को किसी भी कार्यालयी काम के लिए एक रुपया अदा करने का वादा करता हूं, लेकिन बाद के सभी एक रुपये के नोटों पर ऐसा वाक्य नहीं लिखा जाता था, बल्कि उसके पीछे आठ भारतीय लिपियों में एक रुपया लिखा होता है.

एक रुपये की कीमत होने के बावजूद, इसकी छपाई में काफी खर्च आता है. इसी कारण से सरकार ने कई बार इसकी छपाई बंद कर दी और आवश्यकता पड़ने पर पुन: उसे जारी किया गया. भारतीय रिजर्व बैंक की वेबसाइट के अनुसार इस नोट की छपाई को पहली बार 1926 में बंद किया गया क्योंकि इसकी लागत अधिक थी. इसके बाद इसे 1940 में फिर से छापना शुरू कर दिया गया जो 1994 तक अनवरत जारी रहा. इसके बाद इस नोट की छपाई 2015 में फिर से शुरू की गई.

दादर के एक प्रमुख सिक्का संग्राहक गिरीश वीरा ने अपने एक इन्टरव्यू में बताया कि पहले विश्वयुद्ध के दौरान चांदी की कीमत बहुत बढ़ गईं थी, इसलिए जो पहला नोट छापा गया उस पर एक रुपये के उसी पुराने सिक्के की तस्वीर छपी हुई थी. तब से ही एक रुपये के नोट पर एक रुपये के सिक्के की तस्वीर छापी जाने की परंपरा बन गई. शायद यही कारण है कि कानूनी भाषा में इस रुपये को उस समय ‘सिक्का’ भी कहा जाता था. वीरा के मुताबिक एक रुपये के नोट की छपाई दो बार रोकी गई और इसके डिजाइन में भी कम से कम तीन बार बदलाव हुए लेकिन संग्राहकों के लिए यह अभी भी अमूल्य है.

इस नोट की सबसे खास बात यह है कि इसे अन्य भारतीय नोटों की तरह भारतीय रिजर्व बैंक जारी नहीं करता न ही इसपर रिजर्व बैंक के गवर्नर का हस्ताक्षर होता है, बल्कि इसकी छपाई स्वयं भारत सरकार ही करती है और इसपर देश के वित्त सचिव का हस्ताक्षर होता है.

इतना ही नहीं कानूनी आधार पर यह एक मात्र वास्तविक ‘मुद्रा’ नोट (करेंसी नोट) है बाकी सब नोट धारीय नोट (प्रामिसरी नोट) होते हैं जिस पर धारक को उतनी राशि अदा करने का वचन दिया गया होता है.

मालूम हो कि पहले एक रुपये के नोट पर ब्रिटिश सरकार के तीन वित्त सचिवों के हस्ताक्षर थे. ये नाम एमएमएस गुब्बे, एसी मैकवाटर्स और एच. डेनिंग थे. आजादी से अब तक 18 वित्त सचिवों के हस्ताक्षर वाले एक रुपये के नोट जारी किए गए हैं.

जानिए क्या अंतर है 32 बिट और 64 बिट प्रोसेसर में, कौन सा है फायदेमंद

कंप्यूटर और लैपटौप का इस्तेमाल हम सभी करते हैं, लेकिन उसकी कई टेक्निकल टर्म्स के बारे में हमें पूरा ज्ञान नहीं होता.

क्या आप जानते हैं कि कंप्यूटर में 32 बिट और 64 बिट में क्या अन्तर होता है? किस तरह के कंप्यूटर का इस्तेमाल आपके लिए सही रहेगा? इस तरह के प्रश्नों का उत्तर आज हम आपको देने वाले हैं.

32 बिट प्रोसेसर का प्रयोग

1990 तक 32 बिट प्रोसेसर को सभी कम्प्यूटर्स में प्रमुखता से इस्तेमाल किया जाता था. 32 बिट प्रोसेसर पर कार्य करने वाला कंप्यूटर 32 बिट्स चौड़ी डाटा यूनिट्स पर कार्य करता है.

विंडोज 95 ,98 और एक्सपी सभी 32 बिट औपरेटिंग सिस्टम हैं, जो 32 बिट प्रोसेसर्स वाले कंप्यूटर पर आम तौर पर कार्य करते हैं. जाहिर सी बात है की 32 बिट प्रोसेसर पर कार्य करने वाले कंप्यूटर पर 64 बिट वर्जन का औपरेटिंग सिस्टम इनस्टौल नहीं किया जा सकता.

64 बिट प्रोसेसर का प्रयोग

64 बिट कंप्यूटर 1961 से बाजार में आया जब आईबीएम ने IBM7030 स्ट्रेच सुपरकम्प्यूटर पेश किया. हालांकि, इसका इस्तेमाल 2000 से चलन में आया. माइक्रोसौफ्ट ने विंडोज एक्सपी का 64 बिट वर्जन पेश किया था, जिसे 64 बिट प्रोसेसर के साथ इस्तेमाल किया जा सकता था. विंडोज विस्टा, विंडोज 7 और विंडोज 8 भी 64 बिट वर्जन में आती हैं.

64 बिट पर आधारित कंप्यूटर 64 बिट्स चौड़ी डाटा यूनिट्स पर कार्य करता है. 64 बिट प्रोसेसर पर कार्य करने वाले कंप्यूटर पर 64 या 32 बिट वर्जन के किसी भी औपरेटिंग सिस्टम को इनस्टौल किया जा सकता है. हालांकि, 32 बिट औपरेटिंग सिस्टम के साथ 64 बिट प्रोसेसर ठीक से कार्य नहीं कर पाएगा.

32 बिट और 64 बिट में क्या है अंतर?

32 बिट और 64 बिट प्रोसेसर्स में एक बड़ा अंतर यह है की वो प्रति सेकंड कितनी तेजी से कितनी गणना कर सकते हैं. इससे टास्क पूरा होने की स्पीड पर फर्क पड़ता है.

64 बिट प्रोसेसर्स होम कंप्यूटिंग के लिए ड्यूल कोर, क्वैड कोर, सिक्स कोर और आठ कोर वर्जन पर आ सकते हैं. मल्टीपल कोर होने से प्रति सेकेंड गणना करने की स्पीड में इजाफा होता है. इससे कंप्यूटर की प्रोसेसिंग पावर बढ़ सकती है और कंप्यूटर फास्ट काम कर सकता है. जिन सौफ्टवयेर प्रोग्राम्स को कार्य करने के लिए एक ही समय पर कई गणनाएं करनी होती हैं, वो 64 बिट प्रोसेसर पर बेहतर कार्य करते हैं.

32 बिट और 64 बिट प्रोसेसर में दूसरा बड़ा अंतर रैम सपोर्ट करने को लेकर है. 32 बिट कंप्यूटर अधिकतम 3 से 4 GB रैम सपोर्ट करते हैं. वहीं, 64 बिट कंप्यूटर 4GB से अधिक रैम को भी सपोर्ट करते हैं. यह फीचर ग्राफिक डिजाइन, इंजीनियरिंग और वीडियो एडिटिंग जैसे प्रोग्राम्स में महत्वपूर्ण होता है.

32 बिट और 64 बिट में कौन-सा बेहतर?

64 बिट प्रोसेसर्स अब होम कम्प्यूटर्स में भी काफी चलन में आ गए हैं और अधिकतर यूजर्स इसका ही इस्तेमाल करते हैं. यह भी कहा जा सकता है की टेक्नोलौजी के बढ़ते विस्तार के इस दौर में 32 बिट अब पुराना हो गया है. क्योंकि अधिकतर यूजर्स अब 64 बिट का ही इस्तेमाल करने को वरीयता देते हैं इसलिए मैन्युफैक्चरर भी इसे बजट कीमत में पेश करने लगे हैं. आने वाले समय में 32 बिट का इस्तेमाल होना बंद ही होने वाला है. ऐसे में जाहिर तौर पर आपके लिए 64 बिट पर आधारित कंप्यूटर लेना ही बेहतर होगा.

भारत में कितनी है बिटकौइन की कीमत, जानिये इसके बारे में विस्तार से

बिटकौइन, यानी एक ऐसी करेंसी जिसका वजूद रुपए या डौलर की तरह नहीं है. लेकिन, इसे आप वर्चुअली ग्लोबल पेमेंट में इस्तेमाल कर सकते हैं. वर्चुअल करेंसी बिटकौइन में एक दिन का सबसे तेज उछाल देखने को मिला है. उसके बाद एक बिटकौइन की कीमत 10,000 डौलर क पार हो गई है.

अगर भारतीय मुद्रा में इसकी कीमत की बात करें तो 667214.23 रुपए है. बीते एक साल में इसकी कीमतों में 900 फीसदी से ज्यादा का उछाल देखने को मिला है. हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक तरह की पोंजी स्कीम है जिसमें निवेशकों के साथ धोखा हो सकता है.

क्या है बिटकौइन

बिटकौइन एक वर्चुअल करेंसी (क्रिप्टो करेंसी) है. इसे एक औनलाइन एक्सचेंज के माध्यम से कोई भी खरीद सकता है. इसकी खरीद-फरोख्त से फायदा लेने के अलावा भुगतान के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है. फिलहाल, भारत में एक बिटकौइन की कीमत करीब 667214.23 रुपए है.

ये हैं इससे जुड़े कुछ रोचक तथ्य

  • पूरे विश्व में कुल 1.5 करोड़ बिटकौइन चलन में होने का अनुमान.
  • इस गुप्त करेंसी पर सरकारी नियंत्रण नहीं होता. इसे छिपाकर इस्तेमाल किया जाता है.
  • इसे दुनिया में कहीं भी सीधा खरीदा या बेचा जा सकता है.
  • इसे रखने के लिए बिटकौइन वौलेट उपलब्ध होते हैं.
  • बिटकौइन को आधिकारिक मुद्रा से भी बदला जाता है. इसे न तो जब्त किया जा सकता है और न ही नष्ट.
  • यह किसी देश की आधिकारिक मुद्रा नहीं है. ऐसे में इस पर किसी प्रकार का टैक्स नहीं लगता है.
  • बिटकौइन में ट्रेड करने के लिए कई एक्सचेंज हैं, इनमें जेबपे, यूनो कौइन और कौइन सिक्योर एक्सचेंज शामिल है.
  • अधिकांश एक्सचेंज के पास एंड्रौयड और आईफोन ऐप हैं, जिनके जरिए बैंक अकाउंट से लिंक के बाद तुरन्त ट्रांसफर किया जा सकता है.
  • बिटकौइन के लिए केवाइसी अनिवार्य है. बिटकौइन निवेशकों के लिए पैन और अन्य डिटेल्स के साथ आईडी प्रमाणित कराना जरूरी है.
  • बिटकौइन बेचने पर पैसा तुरंत अकाउंट में क्रेडिट कर दिया जाता है. कई एजेंट्स भी होते हैं जो कैश के लिए क्रिप्टो कंरसी की बिक्री करते हैं.

2009 में हुई थी बिटकौइन की शुरुआत

2008 में पहली बार बिटकौइन को लेकर एक लेख प्रकाशित हुआ था. हालांकि, इसकी शुरुआत 2009 में ओपन सोर्स सौफ्टवेयर के रूप हुई. इसे अज्ञात कम्प्यूटर प्रोग्रामर या इनके समूह ने सातोशी नाकामोटो के नाम से बनाया.

ये भी हैं क्रिप्टो करंसी

बिटकौइन के अलावा इथेरम, रिप्पल, लाइट कौइन, एनईएम, डैश, इथेरम क्लासिक, आईओटीए, मोनेरो और स्टैटस भी क्रिप्टो करंसी की लिस्ट में शामिल हैं.

हिना खान की चुगली पर गौहर ने ट्वीट कर दिया करारा जवाब

हिना खान टेलीविजन का एक जाना माना चेहरा हैं. स्टार प्लस के सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ से उन्हें एक खास पहचान मिली.

इन दिनों हिना खान बिग बौस के घर में हैं. आए दिन हिना से किसी न किसी के झगड़े होते रहते हैं. इसके चलते वह सोशल मीडिया पर भी काफी ट्रोल हुई हैं.

अब हाल ही में बिग बौस का एक वीडियो सामने आया है. इस वीडियो में हिना खान टीवी स्टार और दंगल एक्ट्रेस साक्षी तंवर के अलावा गौहर खान की चुगली करती हुई दिख रही हैं.

वीडियो में हिना खान के अलावा विकास गुप्ता, प्रियांक और अर्शी भी नजर आ रहे हैं.

हिना खान इस वीडियो में पहले गौहर खान के बारे में बात करती हैं. हिना कहती हैं, ‘गौहर खान के फौलोअर्स मुझसे कम हैं.’ तभी विकास कहते हैं कि वह एक्टिव नहीं होंगी. हिना कहती हैं तो वो तो मैं भी नहीं हूं. इसके बाद हिना साक्षी तंवर की बात करती हैं. वह कहती हैं कि साक्षी उन्हें अच्छी लगती हैं लेकिन तभी अर्शी बोलती हैं कि ‘लेकिन मुझे उनके फीचर्स अच्छे नहीं लगते’. हिना इसे बाद इशारे में अर्शी से भौहों की तरफ इशारा करती हैं.

वहीं हिना यहीं नहीं रुकतीं, आगे वह टीवी एक्ट्रेस संजीदा के बारे में भी बात करती हैं. वह कहती हैं कि संजीदा दिखने में बहुत खूबसूरत हैं. बहुत गोरी हैं उनकी आंखे भी ग्रीन हैं लेकिन वह स्क्रीन पर अच्छी नहीं लगती हैं.

इस पर एक्ट्रेस गौहर खान ट्विटर पर हिना की इस हरकत का जवाब देती हैं. गौहर कहती हैं, ‘अच्छाई और तमीज तो सीखी नहीं, बात करना सीखा होता तो आज झूठे घमंड में आके कही बातों पे लोग इतना हंसते नहीं लोल. अल्लाह सबको तरक्की दे आमीन. घमंड ने आज तक किसी का कुछ भला नहीं किया, साक्षी तंवर यू आर ब्यूटीफुल’.

एकल परिवार व एकल संतानों के दौर में अकेली पड़ी इकलौती औलाद

किरत अपने मातापिता की इकलौती औलाद है. उस  की उम्र करीब 6 साल है. 6 साल पहले सब ठीक था. वह खुश थी अपने मातापिता के साथ. जब जो चाहती वह मिल जाता. भई, सबकुछ उसी का तो है. पिता पेशे से इंजीनियर हैं. मां मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती हैं. लिहाजा, कमी का तो कहीं सवाल नहीं था, लेकिन इन दिनों किरत कुछ बुझीबुझी से रहने लगी. चिड़चिड़ापन बढ़ने लगा. इतवार के दिन मातापिता ने अपने पास बिठाया और पूछा तो किरत फफक पड़ी.

किरत ने बताया कि उस के दोस्त हैं, लेकिन घर पर कोई नहीं है. न भाई न बहन. सब के पास अपने भाईबहन हैं लेकिन वह किस को परेशान करेगी. किस के साथ खाना खाएगी. किस के साथ सोएगी. किरत ने जो बात कही वह छोटी सी थी लेकिन गहरी थी.

ये परेशानी आज सिर्फ किरत की नहीं है, शहरों में रहने वाले अमूमन हर घर में यही परेशानी है. जैसेजैसे बच्चे बड़े होने लगते हैं वैसेवैसे वे अकेलापन फील करने लगते हैं. मातापिता कामकाजी हैं. बच्चे मेड या फिर दूसरे लोगों के भरोसे बच्चे छोड़ देते हैं. लेकिन बच्चे धीरेधीरे अकेलापन महसूस करने लगते हैं. सवाल कई हैं. क्या हम भागदौड़ भरी जिंदगी में बच्चों को अकेला छोड़ रहे हैं? क्या हम बच्चों से अपने रिश्ते छीन रहे हैं? क्या हम बच्चों से उन का बचपन छीन रहे हैं?

पहले से अलग है स्थिति

पिछली पीढ़ी के आसपास काफी बच्चे हुआ करते थे. खुद उन के घर में भाईबहन होते थे. पूरा दिन लड़नेझगड़ने में बीत जाता था. खेलकूद में वक्त का पता नहीं चलता था. कब पूरा दिन निकल गया और कब रात हो जाती थी, होश ही नहीं रहता था. चाचाचाची, ताऊताई, दादादादी कितने रिश्ते थे. हर रिश्ते को बच्चे पहचानते थे लेकिन अब स्थिति एकदम अलग है. अब बच्चे अकेलापन फील करने लगे हैं. न तो उन्हें रिश्ते की समझ है न ही खेलकूद के लिए घर में कोई साथ. स्कूल के बाद ट्यूशन और फिर टीवी बस इन्हीं में बच्चों की दुनिया सिमट कर रह गई है.

क्या है वजह

इस की सब से बड़ी वजह यह है कि मातापिता एक बच्चे से ही खुश हो जाते हैं. अब पहले की तरह भेदभाव नहीं होता. लड़का हो या लड़की, मातापिता दोनों को समान तरीकों से पालतेपोसते हैं. पहले एक सामाजिक व पारिवारिक दबाव था लड़का पैदा करने का, इसलिए काफी बच्चे हो जाते थे. ये तो अच्छी बात है कि समाज धीरेधीरे उस दबाव से निकल रहा है लेकिन इसी ने अब बच्चों को अकेला कर दिया है. दूसरी सब से बड़ी वजह यह है कि मातापिता के पास वक्तकी कमी है.

दरअसल, अब पतिपत्नी दोनों ही कामकाजी हैं. इसलिए बच्चा पैदा करना मातापिता झंझट समझते हैं. सोचते हैं कौन पालेगा, टाइम नहीं है, एक बच्चा ही काफी है, महंगाई बहुत है, एजुकेशन काफी ज्यादा महंगी होती जा रही है. और भी कई ऐसी बातें हैं जिस के चलते मातापिता दूसरा बच्चा करने से बचते हैं. महिलाओं को लगता है कि अगर दूसरा बच्चा हो गया तो वे अपने कैरियर को वक्त नहीं दे पाएंगी. लिहाजा, बच्चे अकेले रह जाते हैं. कई बार बच्चे मातापिता से शिकायत तो करते हैं लेकिन तब तक काफी देर हो जाती है. उम्र बढ़ने लगती है. कई बार बढ़ती उम्र के कारण महिलाएं मां नहीं बन पातीं. कई तरह के जटिलताएं आ जाती हैं.

जरूरी है बच्चों को मिले रिश्ते

बच्चों से उन के रिश्ते मत छीनिए. पहले बच्चे के कुछ साल बाद दूसरा बच्चा करने की कोशिश कीजिए, ताकि बच्चे आपस में खेल सकें. एकदूसरे के साथ बड़े हो कर बातें और चीजें शेयर कर सकें. कई बार इकलौता बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है. चीजें शेयर नहीं करता. अपनी चीजों पर एकाधिकार जमाने लगता है जिस के चलते मातापिता परेशान हो जाते हैं. ये स्थिति उन घरों में ज्यादा होती है, जहां बच्चे अकेले होते हैं. अगर एक भाई या बहन हो तो बच्चे शेयर करना आसानी से सीख जाते हैं. बच्चों को रिश्तों की समझ होने लगती है. एकदूसरे की परेशानी समझने लगते हैं.

अगर आप भी इस तरह की परेशानी से गुजर रही हैं और रहरह कर आप का बच्चा आप से शिकायत करता है तो वक्त रहते संभल जाइए. बच्चों को उन का रिश्ता दीजिए, ताकि वह भी अपना बचपन जी सकें. थोड़ा लड़ सकें, थोड़ा प्यार कर सकें, थोड़ा प्यार पा सकें. अपनी चाहतों के चक्कर में या फिर कैरियर के लिए बच्चों से उन का बचपन न छीनिए वरना कोमल कली खिलने से पहले ही मुरझा जाएगी.

खुद की मौत की अफवाहों को उमर अकमल ने किया खारिज

आए दिन हम सोशल मीडिया में किसी न किसी बड़ी हस्ती की मौत की अफवाहें सुनते रहते हैं. इस तरह की फेक न्यूज का शिकार देश में कई बड़ी हस्तियां बन चुकी हैं. लेकिन इस बार बात पाकिस्तान की है. दरअसल इस बार ऐसी ही एक खबर का शिकार बने हैं पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ी उमर अकमल. पाकिस्तान में सोशल मीडिया पर उमर अकमल की मौत से संबंधित खबर इतनी चली कि लोगों ने वहां उसे सच मान लिया. इसके बाद सोशल मीडिया पर ही उन्हें श्रद्धांजलि देने का सिलसिला शुरू हो गया.

उमर अकमल के फैन इन झूठी अफवाहों से दुखी थे. खुद अकमल अपने बारे में उड़ रही खबरों से इतने परेशान हुए कि उन्हें खुद अपने जिंदा होने का सबूत देना पड़ा. इन झूठी अफवाहों से परेशान होकर दिन में उमर ने अपने औफिशियल ट्विटर अकाउंट से एक वीडियो पोस्ट किया.

उमर ने ट्वीट करते हुए लिखा, ‘अलहमदुल्लाह, मैं लाहौर में पूरी तरह सुरक्षित हूं. सोशल मीडिया पर मेरे बारे में चल रही सारी खबरें गलत हैं. इंशाअल्लाह मैं टी-20 कप के सेमीफाइनल में खेलूंगा’.

जैसे ही उमर अकमल का ये ट्वीट सोशल मीडिया पर आया. उनके फैंस की जान में जान आई. इसके बाद उनके प्रशंसकों ने इस ट्वीट को जमकर रीट्वीट किया. उमर अकमल ने अपना आखिरी वनडे मैच औस्ट्रेलिया के खिलाफ 26 जनवरी 2017 को खेला था. फिलहाल वह टीम से बाहर चल रहे हैं और टीम में वापसी के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं.

बता दें कि इन दिनों लाहौर में हिंसा चल रही है. वहां का माहौल तनावपूर्ण बना हुआ है. लोग प्रदर्शन भी कर रहे हैं. ऐसे में वहां से उमर अकमल जैसे दिखने वाले शख्स की फोटो वायरल हो गई और लोगों ने तस्वीर में दिखने वाले शख्स को अकमल समझ लिया.

इस टीवी एक्ट्रेस ने किया कास्टिंग काउच का खुलासा

फिल्‍मी दुनिया की चकाचौंध भरी दुनिया हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है. यह फिल्‍मी दुनिया बाहर से जितनी सुन्दर है अन्दर से उसकी सूरत उतनी ही भयानक है. यहां नाम और शोहरत पाने के लिए कई बार सितारों को अपने जिस्म तक का सौदा करना पड़ जाता है. आज के समय में कास्टिंग काउच फिल्‍मी दुनिया की चकाचौंध भरी दुनिया का एक ऐसा ही कड़वा सच है. कई जानीमानी अभिनेत्र‍ियां इस दर्द से गुजर चुकी हैं, लेकिन ऐसा बहुत कम हुआ है जब किसी अभिनेत्री ने खुलकर कास्‍टिंग काउच की बात कबूली हो. लेकिन पिछले कुछ दिनो से लोग इसपर बात करते दिख रहे हैं.

हाल ही में विद्या बालन और राधिका आप्‍टे ने इस बारे में खुलकर अपनी राय रखी थी. अब टीवी शो ‘सौभाग्‍यवती भव:’ में नजर आ चुकी अभिनेत्री सुलग्‍ना चटर्जी ने भी इस बारे में खुलकर बात की है. उन्होंन न केवल इसपर बात की बल्कि सोशल मीडिया पर एक स्‍क्रीन शाट भी शेयर किया. उन्‍होंने कास्‍टिंग काउच पर बात करते हुए बताया कि कैसे उन्‍हें भी एक ऐसा ही ‘आफर’ मिला था, लेकिन उन्‍होंने शांतिपूर्ण ढंग से इसे ठुकरा दिया.

सुलग्ना ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर व्‍हाट्सऐप चैट का स्क्रीन शाट शेयर किया है, जिसमें उन्होंने उनके साथ हुए इस पूरे वाकिये के बारे में बताया है.

सुलग्‍ना ने इस पोस्ट में लिखा कि  मैंने इस स्क्रीन शाट को यूं ही आपलोगों के साथ शेयर किया है. जहां तक फोन नंबर देने की बात है तो काम की वजह से मैंने अपना नंबर उनको दिया था. इसके बाद उन्‍होंने मुझे मैसेज किया कि बौलीवुड के एक कलाकार के साथ विज्ञापन करने का आफर है. पहली बार तो उनकी ये बात सुनकर मैं बेहद खुश हुई और खुशी से झूमने लगी.

उन्‍होंने आगे कहा,’ मैं तो इस उम्‍मीद में थी कि वो मुझे लुक टेस्‍ट के लिए बुलायेंगे, लेकिन तभी एक और मैसेज आया जिसमें कौम्‍प्रोमाइज प्रोजेक्‍ट लिखा हुआ था.’ जिसके लिए मैंने साफ इनकार कर दिया.

उनके इस चैट से साफ पता चलता है कि सुलग्‍ना एक ऐसी इंडस्‍ट्री में काम करती हैं जहां ‘समझौते’ के बिना काम नहीं मिलता और उन्‍हें यह सब झेलना पड़ता है.

बता दें कि सुलग्‍ना ‘सौभाग्यवती भव:’, ‘संस्कार- धरोहर अपनों की’, ‘महादेव’ और ‘मिसेज पम्मी प्यारे लाल’ जैसे सिरियल्स में नजर आ चुकी हैं. सुलगना को ‘सौभाग्यवती भव:’ में सिया का किरदार के लिए गोल्डन अचीवर्स अवार्ड से सराहा जा चुका है.

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