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टाइगर जिंदा है: सलमान खान का शानदार अभिनय

पिछले कुछ वर्षों से सलमान खान की हर फिल्म में कोई न कोई संदेश जरुर होता है. उसी परिपाटी का निर्वाह एक्शन प्रधान फिल्म ‘‘टाइगर जिंदा’’ है में भी किया गया है. अली अब्बास जफर निर्देशित फिल्म ‘‘टाइगर जिंदा है’’ 2012 की कबीर खान निर्देर्शित सफल फिल्म ‘‘एक था टाइगर’’ का सिक्वअल है. ‘‘ट्यूबलाइट’’ से निराश हुए सलमान खान के प्रशंसकों को फिल्म ‘टाइगर जिंदा है’ पसंद आएगी.

फिल्म की कहानी अविनाश सिंह राठौर उर्फ टाइगर (सलमान खान) और उनकी पत्नी जोया (कटरीना कैफ) के इर्द गिर्द घूमती है. दोनों खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं. फिल्म की शुरूआत में टाइगर अपने बेटे के साथ भेड़ियो के एक दल से लड़ रहा है.

उधर सीरिया में चल रहे युद्ध की पृष्ठभूमि में इराक में आईएसी नामक आतंकवादी संगठन के मुखिया अबू उस्मान(सज्जाद डेलफ्रूज) घायल हो जाता है,तब उसका इलाज करने के लिए नर्सों को ले जा रही एक बस का अपहरण कर इन नर्सों को एक अस्पताल में बंदी बना लिया जाता है. इन नर्सों में 15 पाकिस्तानी और 25 भारतीय नर्सें हैं. दुनिया की इस खतरनाक आतंकवादी संगठन के चंगुल से अब इन नर्सों को बचाना असंभव माना जा रहा है. तब रौ के उच्चाधिकारी शेनाय (गिरीश कर्नाड), टाइगर को इराक में बंधक बनायी गयी 25 नर्सों को बचाने के मिशन पर भेजते हैं.

टाइगर के साथ मेजर नवीन(अंगद बेदी) सहित तीन चार लोग हैं. अस्पताल के अंदर घुसने की फिराक में टाइगर घायल हो जाता है, तो वहां पर जोया आकर उसकी मदद करती है. उधर जोया के ही कारण पाकिस्तानी आईएसआइ एजेंट जहीर(सुदीप) से टाइगर मिलता है और दोनों मिलकर आतंकवादियों का सफाया करने का निर्णय लेते हैं.

जहां तक कहानी का सवाल है, तो फिल्म में कहानी का घोर अभाव है, मगर फिल्म में एक्शन इतना अधिक और बेहतरीन है कि एक्शन ही दर्शकों को बांधकर रखता है. फिल्म में एक्शन दृष्य भारी मात्रा में है. हौलीवुड एक्शन निर्देशक टौम स्टूथर्स ने कार का पीछा करना, बम विस्फोट, तेल टैंकरों में आग लगाना,  गोलियों का चलना जैसे एक्शन दृष्यों का कुशल निर्देशन कर एक्शन दृष्यों को देखने योग्य बनाया है. बेहतरीन स्पेशल इफेक्ट्स व वीएफएक्स की वजह से यह सारे एक्शन दृष्य काफी बेहतर बन पड़े हैं.

फिल्म का क्लायमेक्स अस्वाभाविक लगता है. जहां टाइगर अकेले ही अपनी गन से सौ से अधिक आईएससी के आतंकवादियों को भूनकर रख देता है. इसी तरह यह बात गले नहीं उतरती कि आईएसी के ढेर सारे आतंकी टाइगर की छोटी टीम से लड़ नही पाते.

फिल्म में सलमान खान है, तो स्वाभाविक तौर पर देशभक्ति की बात तो होनी ही है. वह समय समय पर अपने साथियों को इस बात की याद दिलाते रहते हैं. फिल्म में भारतीय रौ एजेंट और पाकिस्तानी आइएसआइ एजेंट मिलकर लड़ते हैं, यानी कि रौ व आईएसआइ के बीच प्रेम मोहब्बत दिखायी गयी है. फिल्म में मानवता की भी बात की गयी है.

निर्देशक अली अब्बास जफर का काम कुछ ढीला ढाला सा है. फिल्म के कैमरामैन मार्किन लास्कावी और पार्श्व संगीतकार ज्यूलियस पक्कियम बधाई के पात्र हैं. कैमरामैन मार्किन लास्कावी ने उम्दा काम किया है, जिसके चलते रेगिस्तान के दृष्य हों या पहाड़ के दृष्य हों, सभी बहुत खूबसूरत बने हैं.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो सलमान खान ने अपनी पिछली फिल्म ‘‘सुल्तान’’ से भी कहीं ज्यादा बेहतरीन परफार्मेंस दी है. एक्शन दृष्यों में कटरीना कैफ प्रभावित करती हैं, मगर भावना प्रधान दृष्यों में उनका चेहरा पत्थर की मूर्ति की तरह नजर आता है. परेश रावल, कुमुद मिश्रा, अंगद बेदी ने भी काफी अच्छी परफार्मेंस दी है. अबू उस्मान के किरदार में सज्जाद डेलफ्रूज एकदम सही बैठे हैं.

दो घंटे 41 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘टाइगर जिंदा है’’ का निर्माण ‘‘यशराज फिल्मस’’ के बैनर तले आदित्य चोपड़ा ने किया है. फिल्म के निर्देशक अली अब्बास जफर, कहानी व पटकथा लेखक अली अब्बास जफर व नीलेश मिश्रा, संगीतकार विशाल शेखर, पार्श्व संगीतकार ज्यूलियस पक्कियम, कैमरामैन मार्किन लास्कावी तथा फिल्म को अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं- सलमान खान, कटरीना कैफ, सज्जाद डेलफ्रूज, संदीप अंगद बेदी, कुमुद मिश्रा, गिरीश कर्नाड, अंजली गुप्ता, नेहा हिंगे, इवान रौड्रिग्स व नवाब शाह हैं. फिल्म को आबू धाबी, आस्ट्रीया, ग्रीस और मोरक्को में फिल्माया गया है.

सावधान : इन ऐप्स से है आपके स्मार्टफोन को खतरा..!

हम अपने स्मार्टफोन के जरिए कई सारे काम करते हैं. गाने सुनते हैं, विडियो देखते हैं, गेम्स खेलते हैं. कई तरह के अलग अलग काम के लिए हम अलग अलग ऐप्स को अपने फोन में डाउनलोड कर इस्तेमाल करते हैं. जाहिर है कि तरह तरह के ऐप्स इस्तेमाल करने से बैट्री खर्च होती है. बैट्री को खतरा मतलब की आपके फोन को खतरा होना है. कुछ ऐप्स का प्रदर्शन कुछ ज्यादा ही खराब है और वह बैट्री के साथ साथ आपके फोन पर असर डालती है.

यहां जानें, किस तरह के ऐप्स ज्यादा बैट्री खर्च कर आपके फोन पर असर डालते हैं. अगर आप अपने फोन को बचाना चाहते हैं और ज्यादा बैट्री लाइफ चाहते हैं तो इन ऐप्स को अनइंस्टौल कर सकते हैं.

ऐंटी वायरस ऐप्स

बैट्री सेवर और रैम मैनेजमेंट ऐप्स की तरह ऐंटी-वायरस ऐप्स भी बैकग्राउंड में रन करते रहते हैं, ताकि मोबाइल को खतरों से बचा सकें. स्कैन करने में ये जितना ज्यादा वक्त लेंगे, बैट्री उतनी ही तेजी से खर्च होगी. कुछ ऐंटी वायरस ऐप्स तो कैमरा का भी ऐक्सस हासिल कर लेते हैं, ताकि आपका हैंडसेट अनलौक करने की कोशिश करने वाली की तस्वीर ले सके. यह अच्छा फीचर तो है, मगर बैट्री को जल्दी खत्म करता है.

गेमिंग ऐप्स

अगर आप गेम्स खेलना पसंद करते हैं तो इन ऐप्स को हटाना शायद आप न पसंद करें. जितने हेवी ऐप्स होंगे, उतनी ही ज्यादा बैट्री खर्च होगी. 3डी ऐनिमेशन वाले ऐप्स बैट्री को जल्दी खत्म करते हैं. अगर आप इंस्टाल नहीं करना चाहते तो उन्हें फोर्स स्टौप कर सकते हैं. ये तब तक इनऐक्टिव रहेंगे, जब तक आप इनपर टैप नहीं करेंगे.

फोटो-एडिटिंग ऐप्स

अगर आपको तस्वीरें लेकर एडिट करने का शौक है तो आपके स्मार्टफोन में जरूर फोटो एडिटिंग ऐप्स होंगे. ये ऐप्स हेवी होते हैं और इमेज वगैरह प्रोसेस करने में बहुत पावर इस्तेमाल करते हैं. इसलिए या तो इन ऐप्स को कम इस्तेमाल करें या फिर पावरबैंक लेकर चलें.

सोशल मीडिया ऐप्स

फेसबुक सबसे पौपुलर स्मार्टफोन ऐप है, मगर यह बैट्री भी ज्यादा खर्च करता है. यह ऐप बैकग्राउंड में रन करता रहता है, ताकि आपको नोटिफिकेशंस वगैरह भेज सके. फेसबुक ही नहीं, मेसेंजर ऐप भी फोन की बैट्री को खत्म करने में बड़ी भूमिका निभाता है. स्नैपचैट, स्काइप और इंस्टाग्राम जैसे हेवी सोशल मीडिया ऐप्स भी यही करते हैं.

इंटरनेट ब्राउजर ऐप्स

अगर आपके स्मार्टफोन में एक्स्ट्रा ब्राउजर ऐप्स हैं तो उन्हें हटा दीजिए. एक ही ब्राउजर ऐप रखिए. कुछ ब्राउजर न्यूज या अन्य तरह की नोटिफिकेशन के लिए नेट से जुड़े रहते हैं, जिस वजह से बैट्री खर्च हो जाती है.

बैट्री सेवर ऐप्स

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि रैम क्लीन करने वाले या बैट्री सेव करने वाले ऐप्स भी ज्यादा बैट्री खर्च करते हैं. दरअसल ये ऐप्स बैकग्राउंड पर रन करते रहते हैं. तब भी, जब आप फोन को इस्तेमाल न कर रहे हों. ये ऐप्स हेंडसैट को लगातार स्कैन करते रहते हैं और जंक फाइल्स वगैरह को क्लीन करते रहते हैं.

सावधान, सरकार की इन योजनाओं में हो रहा फ्रौड

रोजगार के लिए सरकार ने कई नई योजनाओं को शुरू किया, लेकिन पिछले कुछ दिनों में सरकार को इनमें फ्रौड देखने को मिला है. ऐसे में सरकार ने कुछ कदम उठाएं हैं. फ्रौड करने वाले लोगों को दूसरे को चूना लगाने में कतई डर नहीं लगा. ऐसे में जरूरी है कि आप अलर्ट रहें. पिछले दिनों सरकार की तरफ से शुरू की गई मुद्रा लोन स्कीम के लिए शुरू किए गए उद्दोग आधार के पंजीकरण में ही फ्रौड देखने को मिला है. सरकार की तरफ से की गई जांच में पाया गया कि मुद्रा लोन लेने के लिए उद्दोग आधार का सहारा लिया गया. ये लोन लोगों ने फर्जी तरीके से ले लिए.

एक खबर के अनुसार जांच में यह भी पाया गया कि बिहार में सबसे ज्‍यादा उद्दोग रजिस्‍ट्रेशन हुए. वहां पर लोगों ने बड़ी संख्‍या में मुद्रा लोन भी लिया. हालांकि उद्दोग की संख्‍या और इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर के मामले में बिहार की स्थिति बेहतर नहीं है.

पहले भी हो चुका है फ्रौड

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आंकड़े बताते हैं कि  सरकार की स्कीम में पहले भी फ्रौड के मामले सामने आए हैं. गड़बड़ी की शिकायतों के बाद  सरकार को इन स्कीम से जुड़े नियमों के लिए सख्त कदम उठाने पड़े. सरकार की तरफ से चलाई जा रही स्‍टार्टअप इंडिया, मुद्रा योजना, स्किल डेवलपमेंट आदि योजनाओं में गड़बड़ी शिकायत सामने आई है. इन योजनाओं के आधार पर आपके साथ भी फ्रौड हो सकता है, ऐसे में आपको सावधान रहने की जरूरत है.

यह कदम उठाया

जांच में सामने आया कि लोगों ने फर्जी तरीके से मुद्रा स्‍कीम में लोन हासिल किया. कुछ मामलों में तो किसी और के आधार पर किसी अन्य व्यक्ति ने उद्दोग आधार बनवा लिया और लोन ले लिया. जबकि हकीकत यह थी कि असली व्‍यक्ति को इस बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी. इसके बाद  सरकार ने उद्दोग आधार से जुड़े नियमों को सख्त कर दिया है. अब बिना ओटीपी वेरिफिकेशन के उद्दोग आधार नहीं बनाया जाएगा.

स्‍टार्टअप इंडिया

टैक्स में फायदा लेने के लिए कई पुरानी कंपनियों ने सब्‍सी‍डरी बना ली और टैक्‍स छूट का फायदा ले लिया. वेबसाइट का दावा है कि इसमें भारतीय कंपनियों के साथ विदेशी कंपनियां भी शामिल हैं. डीआईपीपी ऐसी कंपनियों की जांच कर रहा है. साथ ही ऐसी कंपनियों के आवेदन भी निरस्त किए जा रहे हैं. सरकार अब इस संबंध में कंपनियों से स्पष्टीकरण भी मांग रही है.

स्किल डेवलपमेंट

सरकार को शिकायत मिली कि कई संस्थान प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के नाम पर लोगों को सरकारी नौकरियां तक औफर कर रहे हैं. इतना ही नहीं आवेदन करने वाले लोगों को औफर लेटर भेजकर डौक्‍यूमेंट तैयार करने या वेरिफिकेशन के नाम पर हजारों रुपए वसूले जा रहे हैं. ये संस्‍थान भारत सरकार सहित विभिन्‍न मंत्रालयों और विभागों के लोगो का भी प्रयोग कर रहे हैं. हजारों लोगों को ऐसे संस्थानों ने अपना शिकार भी बनाया है. अब एनएसडीसी ने एक लिस्‍ट जारी कर ऐसे संस्‍थानों से सचेत रहने की सलाह दी है. इस लिस्‍ट में फर्जी संस्‍थाओं का नाम के साथ ही पता भी दिया गया है.

2 जी घोटाले में आरोपी बरी, अफवाहों से उथलपुथल

महज अटकलों और अफवाहों से देश में इस कदर राजनीतिक उथलपुथल मच सकती है कि सरकारें बदल जाए, नेता जेल चले गए. बड़ा आंदोलन छिड़ जाए और न्यायपालिका को इन अटकलों के चलते दर्ज मामले में तथ्य तलाशने में आठ साल तक अपना कीमती समय जाया करना पड़े और कोई भी व्यक्ति किसी के खिलाफ केवल अनुमान के आधार पर मामला दर्ज करा कर शासन, प्रशासन और अदालत का समय बर्बाद करा सकता है. 2 जी स्पैक्ट्रम नाम के घोटाले में ऐसा ही हुआ है.

सीबीआई की विशेष अदालत का फैसला आने के बाद पूर्व सीएजी विनोद राय निशाने पर आ गए हैं. उन्होंने ही अनुमान के आधार पर 2 जी स्पैक्ट्रम आवंटन में 1.76 लाख करोड़ के घोटाले की रिपोर्ट दी थी.

यूपीए के सब से चर्चित घोटालों में से एक 2जी स्कैम में पटियाला हाउस कोर्ट की विशेष सीबीआई अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया. इस फैसले के बाद विनोद राय से माफी मांगने की मांग की जा रही है. उन्होंने देश को किस कदर बेवकूफ बनाया है. उस वक्त के सीएजी विनोद राय की रिपोर्ट को भाजपा ने हाथों हाथ लिया था और भ्रष्टाचार के मामले में कांग्रेस पर जमकर हमला बोला था.

कांग्रेस नेता आरोप लगा रहे हैं कि विनोद राय ने भाजपा के लिए यह काम किया और उस की सरकार आने पर उन्हें बीसीसीआई में प्रशासक समिति [सीओए] का महत्वपूर्र्ण पद दे दिया गया.

उस समय यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार 2 जी के अलावा कौमनवेल्थ और खनन घोटाले समेत कई घोटालों के लिए विपक्ष के निशाने पर थी. इन घोटाले के चलते आम जनता में उस के खिलाफ गुस्सा बढने लगा था और अन्ना हजारे के नेतृत्व में दिल्ली के जंतरमंतर पर आंदोलन शुरू हो गया. कुछ समय बाद लोकसभा के चुनाव नजदीक आ गए.

इन चुनावों में भ्रष्टाचार सब से बड़ा मुद्दा बना. मनमोहन सरकार को संसद से ले कर सड़क तक बदनाम किया गया. चुनावों में नरेंद्र मोदी समेत भाजपा नेताओं ने यूपीए के घोटालों को खूब भुनाया. 2014 में भाजपा की अगुवाई में एनडीए की सरकार बन गई.

मामला 2008 में शुरू हुआ था. सीएजी की रिपोर्ट सामने आने के बाद 2 जी मामला सुर्खियों में आया था. इस में बताया गया था कि यूपीए सरकार को 1.76 लाख करोड़ का नुकसान हुआ है. सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों ने मिल कर गैरकानूनी तरीके से 2 जी स्पैक्ट्रम लाइसेंस आवंटित किए थे. इस में कुछ टेलिकौम कंपनियों को फायदा दिया गया. इस में तीन मामले दर्ज किए गए. केंद्रीय सतर्कता आयोग ने दूरसंचार मंत्रालय के कुछ अधिकारियों के खिलाफ कारवाई की सिफारिश की थी.

अक्टूबर 2009 में मामला सीबीआई में दर्ज हुआ था. सीबीआई ने तब के दूरसंचार मंत्री ए. राजा, द्रमुक सांसद कनिमोझी समेत 34 लोगों को आरोपी बनाया गया. आरोपियों में 21 व्यक्ति और 13 कंपनियां थीं. इन में दो बड़े नौकरशाह तब के दूरसंचार सचिव सिद्धार्थ बेहुरा और ए. राजा के निजी सचिव आरके चंदेलिया थे. डीएमके प्रमुख एम. करुणानिधि की पत्नी दयालु अम्मल भी शामिल थीं. इन पर आरोप लगा कि राजा के दूर संचार मंत्री रहते मंत्रालय ने पहले आवेदन की डेडलाइन 1 अक्टूबर तय की. इस के बाद आवेदन प्राप्त करने की कट औफ तारीख बदलने से 575 में से 408 आवेदक रेस से बाहर हो गए. ‘पहले आओ, पहले पाओ’ की नीति का भी उल्लंघन किया गया. कंपनियों की योग्यता पर भी सवाल उठाए गए. इन के पास कोई अनुभव नहीं था.

फरवरी 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने 2 जी स्पैक्ट्रम के सभी 122 लाइसेंस रद्द कर दिए थे.

सीबीआई इन सभी के खिलाफ आरोप साबित करने में असफल रही. राजा और कनिमोझी को कई महीने जेल में रहना पड़ा था. कनिमोझी पर आरोप था कि अपने चैनल के लिए 200 करोड़ की रिश्वत डीबी रियलटी के शाहिद बलवा से ली और बदले में स्पैक्ट्रम दिलाया था.

इस मामले से जाहिर है कि किसी के खिलाफ मामला दर्ज करा कर परेशान किया जा सकता है. इस की भरपाई करना मुश्किल है.

अपने रिसेप्शन में कोहली और अनुष्का जमकर नाचें, देखे वीडियो

टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली और अभिनेत्री अनुष्का शर्मा की 11 दिसंबर को शादी के बाद 21 दिसंबर को दोनों का रिसेप्शन दिल्ली में हुआ. दोनों की रिसेप्शन पार्टी दिल्ली के ताज होटल में हुई, जहां पर राजनीतिजों और क्रिकेट से जुड़ी कई जानी-मानी हस्तियों ने शिरकत की.

इस कपल के रिसेप्शन की खबर गुरुवार को सुबह से ही सुर्खियों में रही वहीं शाम ढलते ही कोहली और अनुष्का के ट्रेडिशनल गेटअप पर नजर रखी जाने लगी. रिसेप्शन पार्टी में पहले तो कोहली और अनुष्का अपने मेहमानों के साथ तस्वीरों में पोज देते नजर आए और बाद में दोनों का डीजे फ्लोर पर धमाल दिखा.

जी हां, विरुस्का के पेज पर एक वीडियो शेयर किया गया है, जिसमें कोहली अपनी वाइफ अनुष्का संग डीजे फ्लोर पर डांस कर रहे हैं वहीं आए हुए लोग उनके फोटोज और वीडियो को अपने मोबाइल फोन में रिकौर्ड करते रहे. इस दौरान अनुष्का और कोहली गुरुदास मान द्वारा गाए गए पंजाबी गाने ‘सजणा वे सजणा’ पर थिरकते नजर आ रहे हैं.

गौरतलब है कि इससे पहले कोहली का इटली में हुई संगीत सेरेमनी के दौरान भी एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वे अपनी डिएरेस्ट लेडी के लिए ‘मेरे महबूब कयामत होगी’ गानो को गाते नजर आ रहे थे. लिहाजा इस दौरान दोनों ही स्टेज पर डांस करते देखे गए. इस रिसेप्शन को जहां  एक आए हुए मेहमानों ने एंजौय किया तो वहीं सोशल मीडिया पर फैंस भी इनके लिए काफी खुश नजर आए. रिसेप्शन पार्टी के दौरान कोहली और अनुष्का एक दूसरे से काफी गुफ्तगू करते भी नजर आए.

विराट ने काले रंग की शेरवानी पहन रखी है वहीं अनुष्का औरेंज कलर की साड़ी में हैं. इस नए नवेले कपल के कपड़े मशहूर फैशन डिजायनर जतिन कोचर ने डिजाइन किया है.

PM @narendramodi in #Virushka Reception #virushkareception #anushkasharma #virushka #viratkohli

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घर से दूर अगर देखना है किसी को लाईव तो ये तरीका है कारगर

अगर आप किसी को भी आप लाइव देखना चाहते हैं तो उसे देख सकते हैं. बस जरूरी है कि उसके फोन में कैमरा और इंटरनेट होना चाहिए. उसके फोन में सबसे पहले IP Webcam ऐप इंस्टौल करनी होगी. जब यह पूरी तरह से फोन में इंस्टौल हो जाए तो इसके बाद कुछ सेटिंग्स करनी होंगी. सेटिंग करने के लिए सबसे पहले इसके वीडियो परफोर्मेंस में जाना होगा. इसके बाद यहां क्वालिटी का औप्शन आएगा. इसमें क्वालिटी को 100% कर दें. इसके बाद वीडियो के रिजौल्यूशन को आप 1280X720 कर सकते हैं. अगर इंटरनेट की दिक्कत नहीं है तो इसे एचडी (1920X1080) भी कर सकते हैं.

यह देख लें कि इंटरनेट की स्पीड अगर ठीक नहीं है तो अपने हिसाब से वीडियो का रिजौल्यूशन कम रखें. इसके बाद इसमें सेटिंग्स में नीचे आएं. यहां औडियो का औप्शन आ रहा होगा. इसे इनेबल कर दें. अगर इसे इनेबल कर देंगे तो वीडियो की साथ आवाज भी आएगी. अगर आप चाहते हैं कि जिसके मोबाइल में यह ऐप है उसे यह न पता चले कि यह ऐप चल रहा है. इसके लिए औडियो मोड के नीचे आ रहे डिसेबल नोटिफिकेशन को औन करना होगा.

technlogy

इसके बाद स्ट्रीम औन डिवाइस बूट को औन कर देना है. इसका फायदा यह होगा कि मोबाइल बंद होने के बाद जब भी मोबाइल औन होगा तब यह ऐप अपने आप चालू हो जाएगा. इसके बाद सबसे नीचे जाएं और यहां आ रहे स्टार्ट सर्वर पर क्लिक करें. इसके बाद एक पौप अप आएगा. यह एक फाइल डाउनलोड करने के लिए कहेगा. इसे YES कर दें. डाउनलोड होने के बाद यह फाइल अपने आप इंस्टौल हो जाएगी. इंस्टौल होने के बाद इसमें अपने आप वीडियो आनी शुरू हो जाएगी.

कैसे देखें वीडियो

जब ऐप फोन में इंस्टौल हो जाएगा, जब ऐप ओपने करेंगे तो दाहिने तरफ में एक्शन (Action) लिखा आ रहा होगा, इस पर क्लिक करें. क्लिक करते ही कई औप्शन सामने आ जाएंगे. इसमें सबसे नीचे आ रहे शेयर आईपी पर क्लिक करें. यहां से आपको एक आईपी एड्रेस मिल जाएगा. इसे अपने मेल, व्हाट्सऐप आदि पर शेयर कर सकते हैं.

शेयर करने के बाद यहां शेयर आईपी के ऊपर आ रहे रन इन बैकग्राउंड पर क्लिक कर दें. इससे ऐप फोन के बैकग्राउंड में काम करता रहेगा. इसके बाद गूगल क्रोम ब्राउजर में जाकर इस आईपी को वेबसाइट की जगह डाल दें. इसके बाद पेज खुल जाएगा. अब डिस्प्ले पर आ रहे वीडियो रेंडर के जावा स्क्रिप्ट पर क्लिक करना है. इसके बाद आप उस मोबाइल से आने वाली वीडियो को देख सकते हैं.

सरकार औरतों को तो बख्शे

आमतौर पर औरतों को अपना पैसा घर वालों यानी पति, बच्चों और अन्य रिश्तेदारों से छिपा कर रखने की आदत होती है. यह बहुत अच्छी आदत है. यह भारी सुरक्षा का एहसास तो देती ही है, आत्मविश्वास भी बनाए रखती है. जिन औरतों के पास अपनी नौकरी नहीं है और शेयर आदि की भी कोई आमदनी नहीं है उन के लिए बैंक अकाउंट खोल कर 4-5 लाख 8-10 साल में जमा कर लेने कोई बड़ी बात नहीं है.

अब सरकार उन जमा रुपयों को भी वैसे ही हथिया लेना चाहती है जैसे उस ने नोटबंदी के समय हथियाए थे जब अलमारियों में बंद साडि़यों के बीच छिपे रुपए निकले थे. अब टीडीएस यानी संभावित आयकर का एक अंश निकाल कर और बैंक अकाउंट को आधार नंबर से जुड़वा कर मेहनत से बचाई पूंजी को हथियाने की योजना लागू कर दी है.

कहा तो यह जा रहा है कि यह काला धन रखने वालों के लिए तैयार शिकंजा है पर घर खर्च में से बचाए और पति या पिता से मिले नितांत कानूनी पैसे की कैफीयत इनकम टैक्स औफिसर को दी जाए यह अन्याय और महिला विरोधी है.

असल में यह कदम घोषित करता है कि या तो यह सरकार समझती है कि दलित, शूद्र और स्त्री को धन रखने का अधिकार नहीं है या फिर इतनी निकम्मी है कि अपने विरोधियों पर तेजाबी बारिश करने से पहले यह तक नहीं सोच पाती कि भीड़ में निहत्थे और निर्दोष भी हो सकते हैं.

निर्दोष और निहत्थी, बैंकों और करों के जाल पर जाल से बेखबर औरतों के अकाउंटों को आधार नंबर से जोड़ कर और फिर पति, पिता या बेटे के आधार नंबर से जानकारी जुटा कर आयकर अधिकारी औरतों की संपत्ति को काला धन घोषित कर सकते हैं.

जहां बात हजारों तक है वहां भी हर साल ब्याज पर टीडीएस की कटौती एक अन्याय ही है. कम से कम औरतों को तो एक साधारण स्व:सर्टिफिकेट से मुक्ति दिलाई जा सकती थी. पर हमारी सरकार तो हरेक को बेईमान मान कर चल रही है और औरतों को भी नहीं बख्श रही. बुढ़ापे या बीमारी में जब पैसे की आवश्यकता होती है तो यह सरकार कहीं नजर नहीं आती पर जब औरतों की संपत्ति पर डकैती डालनी होती है तो यह मौजूद रहती है.

कर एकत्र करना सरकार का हक है पर कर दिए पैसे को कौन, कहां, कैसे रखे यह बारबार हर साल पूछने का हक सरकार को नहीं होना चाहिए. क्या औरतों में दम है अपने अधिकार के लिए लड़ने का?

वैडिंग ज्वैलरी के नए अंदाज

आभूषण की दमक के बगैर दुलहन का श्रृंगार अधूरा रहता है. भावी दुलहनें अभी से ज्वैलरी शौपिंग का प्लान बनाने लगी होंगी. इस बार ब्राइडल ज्वैलरी खरीदने से पहले इन अनूठे आभूषणों पर भी गौर करें:

निजामी झूमर

नवाबों के खानदान में बड़े चाव से पहना जाने वाला गहना है निजामी झूमर, जिसे मांगटीके की ही तरह माथे के कोने में पहना जाता है. वैसे तो झूमरों की कई डिजाइनें इन दिनों चलन में हैं, लेकिन सब से खूबसूरत होती है निजामी डिजाइन, जिस के बारीक काम को देख कर कोई भी दुलहन इस पर रीझ जाएगी. इस का नवाबी लुक उस के श्रृंगार को और भी उभारेगा.

गढ़वाली नथ

भारत में गढ़वाली महिलाओं की खूबसूरती की चर्चा हमेशा रहती है. उन की इसी खूबसूरती में चार चांद लगाती हैं परंपरागत नथ, जिस की खूबसूरती के सामने सब कुछ फीका लगने लगता है. आजकल गढ़वाली महिलाओं के अलावा यह नथ देश के बाकी स्थानों में भी महिलाएं पहनने लगी हैं. यदि दुलहन अपने सलोने चेहरे को एक नई आभा से सजाना चाहती है, तो गढ़वाली नथ उस के लिए सब से सुंदर गहना है.

बीड ज्वैलरी

अगर आप ट्रैडिशनल लुक से बोर हो चुकी हैं और शादी पर अपने लुक में मौडर्न का तड़का देना चाहती हैं, तो आप को बीड ज्वैलरी जरूर पहननी चाहिए. इस में सोने की लड़ों को एकसाथ जोड़ कर मौडर्न लुक के साथ पेश किया जाता है. इसे पहनने के बाद आप को इंडोवैस्टर्न लुक मिलता है.

खमेर ज्वैलरी

खमेर कंबोडिया की परंपरागत डिजाइन के रूप में जानी जाती है. इसे खमेर प्रदेश की महिलाएं बड़े प्रेम से पहनती हैं. इन दिनों खमेर ज्वैलरी का भारत में भी चलन है. यदि दुलहन अपनी परंपरागत पोशाक के साथ खमेर ज्वैलरी पहने, तो उस की खूबसूरती में चार चांद लग जाएंगे. खासतौर पर इस ज्वैलरी के कड़े दुलहनों के बीच बहुत प्रचलित हैं.

हसली नैकलैस

परंपरागत और पुराने समय की ज्वैलरी की याद दिलाते हसली नैकलैस इन दिनों मौडर्न टच के साथ पेश किए जा रहे हैं. यह राजस्थानी ज्वैलरी का एक प्रकार है, जिस में हसली या चांद के आकार के साथ नैकलैस बनाए जाते हैं, जो पहनने पर गरदन की गोलाई को खूबसूरती से उभारने का काम करते हैं. वैस्टर्न ज्वैलरी में भी इस डिजाइन का चलन है, लेकिन भारतीय पोशाक के साथ इस के ट्रैडिशनल रूप को बेहद पसंद किया जाता है.

घुंगरू लंबानी पायल

लंबानी पायल एक ऐसी ज्वैलरी है, जो दुलहन के पांवों की खूबसूरती को तिगुनी कर सकती है. इस में मोती के आकार के छोटेछोटे घुंघरू लगाए जाते हैं, जिन की मोटी परत पैरों को भव्यता के साथ उभारने में मदद करती है. रौयल लुक पाने के लिए होने वाली दुलहन को यह पायल जरूर पहननी चाहिए.

उबिका माथापट्टी

माथापट्टी का नाम लेते ही दुलहन के जेहन में दक्षिण भारतीय गहनों की डिजाइन आती है. लेकिन इस तरह की माथापट्टी आजकल उत्तर भारतीय शादियों में भी दुलहन पहनना पसंद करती है. इसे परंपरागत रूप न दे कर मीनाकारी और कुंदनकारी के काम से सजाया जाने लगा है, जिस से इसे एक रौयल लुक मिलता है. यह माथे पर एक ताज की तरह होती है, जिस से दुलहन की खूबसूरती को पूरे चांद की गरिमा मिल जाती है.

शादी के बाद समारोह के लिए पहनें ऐसे गहनें

अकसर यह देखा जाता है कि शादी के बाद दुलहन को गहनों से लाद दिया जाता है, जिस की वजह से उस का लुक बिगड़ जाता है. अत: उसे हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि यदि वह भारी साड़ी पहन रही है, तो उसे हैवी ज्वैलरी सैट नहीं पहनना चाहिए. यदि बनारसी साड़ी पहन रही हो, तो उस के साथ जड़ाऊ झुमके भी अच्छे लगेंगे. इस के अलावा बहुत सारी चूडि़यों की जगह जड़ाऊ कड़ों की जोड़ी या सतलड़ी माला की जगह जड़ाऊ चोकर या टैंपल ज्वैलरी भी पहन सकती है.

कम बजट में ऐसे खरीदें ज्वैलरी

इन दिनों जड़ाऊ चोकर पहनने का ट्रैंड चल रहा है, जिस के साथ दुलहन छोटी राउंड शेप इयररिंग्स पहन सकती है. यदि बजट कम हो तो सोने के साथ सेमीप्रिशियस स्टोन्स का इस्तेमाल कर गहनें खरीद सकती हैं. इन स्टोन्स में रूबी और पन्ने का समावेश होता है, जिन्हें बीड्स के तौर पर सोेने से बने पैंडेंट के साथ पिरोया जाता है. इन बीड्स का इस्तेमाल आप रंग के अनुसार कर सकती हैं. आप चाहें तो मोती का इस्तेमाल भी कर सकती हैं.

शिक्षित युवाओं का आतंक

आज पूरी दुनिया में आतंक पसरा हुआ है. अब तो शिक्षित युवा भी आतंक फैला रहे हैं. सितंबर माह में ही जम्मूकश्मीर के बनिहाल में एसएसबी पर हुए जानलेवा आतंकी हमले में शामिल 2 आतंकी तो पहले ही गिरफ्त में आ गए थे जबकि तीसरे आतंकी आकिब वाहिद को बाद में अरेस्ट किया गया. आकिब अनंतनाग के डिगरी कालेज में बीएससी का छात्र है. इसी तरह ढाका में हुए आतंकी हमले में यही बात सामने आई थी कि जिन हमलावरों की पहचान हुई है, वे सभी अमीर घरों से संबंध रखते थे और अच्छे, जानेमाने स्कूलोंकालेजों में पढ़े थे. 2 हमलावर, जिन की मौत गोलीबारी में हुई, वे अच्छे खातेपीते परिवार के थे. इन में से एक निबस इसलाम, देश के एक अभिजात निजी विश्वविद्यालय, नार्थसाउथ यूनिवर्सिटी से पढ़ा था, वहीं दूसरा हमलावर मीर सबीह और रोशन इम्तियाज भी देश के सब से बढि़या स्कूलों में पढ़े थे.

रोशन इम्तियाज की पहचान बंगलादेश ओलिंपिक एसोसिएशन के उपमहासचिव इम्तियाज खान बाबुल के बेटे के रूप में हुई. अब यह बात गलत साबित हो रही है कि इसलामिक स्टेट और अलकायदा की पहुंच केवल गरीब घरों के युवाओं तक है. अब इन में अमीर और पढ़ेलिखे घराने के युवा भी शामिल हो रहे हैं. एक समय कहा जाता था कि कम पढ़ेलिखे युवा ही आतंकवादियों के झांसे में आ कर आतंक के रास्ते पर चलते हैं, लेकिन अब आतंक की राह पकड़ने वाले नौजवान अनपढ़जाहिल नहीं, बल्कि शिक्षित और डिगरीधारी हैं, जो अपने आकाओं के इशारे पर दुनियाभर में मारकाट मचा रहे हैं.

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बेकार हैं ऐसी डिगरियां

दिल्ली, अहमदाबाद, बेंगलुरु, जयपुर और वाराणसी में हुए बम धमाकों को अंजाम देने वाले खूंखार आतंकियों के मामले में जो समानता सामने आई थी उस ने सब को चौंका दिया. ये सभी आतंकी न केवल पढ़ेलिखे बल्कि इन के पास इंजीनियरिंग, मैनेजमैंट और आईटी की डिगरियां भी थीं. कुछ समय पहले पुणे की एक पढ़ीलिखी युवती के बारे में खबर सुर्खियों में आई थी, जिस में मैडिकल की पढ़ाई करने की इच्छा रखने वाली यह छात्रा सोशल नैटवर्किंग के जरिए आतंकी संगठन के संपर्क में आई और सीरिया जाने को तैयार हो गई.

ऐसे अनगिनत मामले हैं जो साफसाफ इशारा करते हैं कि इन युवाओं को दीनहीन समझने की जरूरत नहीं है. हमारे समाज, परिवार और देश के लिए ये युवा खलनायक बन चुके हैं. ऐसे युवाओं को सही रास्ते पर लाने की जरूरत है. पारिवारिक जागरूकता भी इस का अहम पहलू है. यहां जरूरी यह है कि ऐसी बातें सामने आने पर परिवार उन्हें दबाने की कोशिश न करे बल्कि इन का हल खोजे. ऐसे कृत्यों में चालाकी दिखाने का कोई लाभ नहीं है, क्योंकि आतंक की राह पर चल रहे युवा अपने परिवार का भी भला नहीं करेंगे.

मां तक का गला रेत डाला

यह विडंबना ही है कि खुद एक स्तरीय जिंदगी जी रहे युवा दूसरों के परिवार उजाड़ने के लिए हथियार उठा रहे हैं. ढाका के रेस्तरां में हुए आतंकी हमले में एक ऐसी मां का भी गला रेत दिया गया, जिस की कोख में 7 महीने का गर्भ पल रहा था.

आखिर बर्बरता की राह पकड़ चुके ये युवा चाहते क्या हैं? इन युवाओं को जिस उम्र में अपने देश की बेहतरी और सकारात्मक बदलाव की सोच रखनी चाहिए थी उस उम्र में ये सबकुछ उजाड़ने पर तुले हैं. इन से सहानुभूति रखने वाले लोगों को भी यह सोचना चाहिए कि उन की ये हरकतें न जाने कितने बच्चों का भविष्य बरबाद कर रही हैं. आज ऐसे सिरफिरों के संगठन न केवल दुनिया के लिए नासूर बन गए हैं बल्कि ये अपने परिवारों को भी पीड़ा दे रहे हैं. ढाका आतंकी हमले में वहीं की सत्तारूढ़ पार्टी के नेता का बेटा कुछ समय पहले ही घर से लापता हुआ था. उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट भी थाने में लिखवाई गई थी. ऐसे युवाओं के मातापिता यह समझ लें कि ऐसे बच्चे अपनों के भी नहीं होते.

बेगुनाहों का कत्लेआम

बेगुनाहों के कत्लेआम को अंजाम देने वाले ये कुत्सित मानसिकता के युवा आज खुद अपने देशों के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए खौफ का कारण बन गए हैं. कई संगठित गिरोह इन्हें अपने मनसूबे पूरे करने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं. अब तक ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिन में आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठन भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में अपनी पैठ बनाने के लिए उतावले हैं. वे सोशल नैटवर्किंग साइट्स के माध्यम से नौजवानों से संपर्क कर उन्हें बरगलाने का काम कर रहे हैं. कभी जिहाद के नाम पर तो कभी मोटी रकम का लालच दे कर यह काम किया जा रहा है. यह विडंबना ही है कि पढ़ेलिखे युवा भी इन के जाल में फंस रहे हैं.

यह कैसी जन्नत

अगर हम जीवन के किसी भी पहलू को देखें तो आतंकी मानसिकता वाले ऐसे शातिर युवा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सभी को प्रभावित करते हैं. यही कारण है कि आतंकवाद के मार्ग पर चलने वाले ये युवा न केवल सभी देशों की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती हैं बल्कि सामाजिक व मानवीय मोरचे पर भी चिंतनीय हैं.

ग्लोबल टैरर इंडैक्स के अनुसार, आज दुनिया के एकतिहाई देश आतंकी हिंसा के शिकार हैं. यह ऐसा दंश है जो किसी देश के पूरे सामाजिक, आर्थिक और पारिवारिक ढांचे की नींव हिला देता है. कई अमीर घरों तक इसलामिक स्टेट और अलकायदा की पहुंच ने यह मिथक तोड़ दिया है कि वैश्विक आतंकवाद में सिर्फ गरीब घरों के युवा ही शामिल हैं.

पढ़ेलिखे, समृद्ध पृष्ठभूमि के कई युवाओं को आतंकी गतिविधियां आकर्षित कर रही हैं. वे इसलाम की खातिर और जन्नत के  नाम पर दुनिया में कहीं भी हमला करने को तैयार हैं. इन का जाल अब एशिया से ले कर पश्चिमी देशों तक फैल गया है. इन के पास पैसा ही नहीं, दिमागी क्षमता भी बहुत अधिक है. सोशल साइट्स ने इन की पहुंच दूरदराज के पढ़ेलिखे युवाओं तक कर दी है जो आज यह पूरी दुनिया के लिए नई चुनौती बन गई है.

बेटा घर नहीं लौटा

बंगलादेश के एक हमलावर की उम्र महज 18 साल थी. खातेपीते परिवार का यह युवक कैसे कट्टरपंथियों के हत्थे चढ़ गया? इसी सवाल का जवाब उस के पिता खोज रहे हैं. रमजान के महीने का आखिरी जुम्मा था. मीर हैयत कबीर उम्मीद लगाए बैठे थे कि शायद आज उन का बेटा घर लौट आएगा. पिछले 4 महीने से बेटे की कोई खबर नहीं थी. उन्हें यह भी समझ नहीं आ रहा था कि वह खुद ही घर छोड़ कर चला गया या किसी के कब्जे में है.

एक दिन खबर आई कि 18 साल का मीर सामेह मुब्बशीर ढाका में पुलिस के हाथों मारा गया. वह उन 5 बंदूकधारियों में से एक था, जिन्होंने ढाका के एक रेस्तरां पर हमला कर 20 लोगों की जान ली थी. पिता सदमे में हैं, समझ नहीं पा रहे हैं कि उन के बेटे ने यह राह क्यों चुनी.

मुब्बशीर ने अपना बचपन गरीबी या मुश्किलों के बीच नहीं बिताया था. वह ढाका का रहने वाला था और अच्छे परिवार से था. रोज स्कूल जाने वाला, कम बोलने वाला. ‘कहीं तो कुछ गलत हुआ है, कहीं कुछ गड़बड़ हुई है,’ अपने आंसू रोकते हुए पिता बारबार यही दोहरा रहे थे. उन्हें बारबार अखबारों और टीवी पर अपने बेटे का नाम देखने को मिल रहा था, लेकिन उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि उन का बेटा आतंकियों से जा मिला और मारा गया.

मुब्बशीर का बचपन सामान्य उच्च मध्यवर्गीय परिवार में बीता था. उसे डायनासौर पसंद था. वह जानवरों के नाम याद करता था. एक बार वह परिवार के साथ ताजमहल देखने भारत आया था. उस से प्रभावित हो कर वह मुगल राजाओं और दुर्गा की तसवीरें बनाने लगा था. स्कूल में उस ने 1971 की जंग और आजादी के बारे में पढ़ा, तो इतिहास में रुचि बढ़ गई. उसे कार्टून देखने का बहुत शौक था. वह अंगरेजी फिल्में भी देखा करता था. स्कूल में बच्चे उसे मां का लाड़ला कह कर चिढ़ाते थे.

वह घर के पास वाली मसजिद में जाता और दिन में 5 बार नमाज भी पढ़ता. उस के पिता बताते हैं कि गायब होने से पहले उन्हें उस के रवैए में कोई खास बदलाव देखने को तो नहीं मिला, लेकिन उन का ध्यान इस ओर जरूर गया था कि बेटे ने फेसबुक का इस्तेमाल कम कर दिया था और अब वह हर वक्त पढ़ता रहता था.

मुब्बशीर की ही तरह बाकी हमलावर भी बंगलादेश के अच्छे स्कूलों में पढ़े थे और अच्छे परिवारों से नाता रखते थे. ऐसे में पूरा देश इस वक्त यही सवाल कर रहा है कि इन युवाओं के साथ आखिर हुआ क्या.

एक अन्य आतंकी की पहचान 22 साल के निबस इसलाम के रूप में की गई, जिस ने मलयेशिया की मोनाश यूनिवर्सिटी से बैचलर्स की पढ़ाई की थी. वहां सालाना फीस 9 हजार डौलर है. ऐसे में अब गरीबी और अनपढ़ता को आतंकवाद के लिए जिम्मेदार नहीं माना जा सकता.

हाल ही में आतंकवादियों की जो नई खेप आई है, वह हमारे देश की खराब उपज है. आज राजनीतिक हालात बदलते जा रहे हैं, ऐसे में यह युवापीढ़ी अपनेआप को असुरक्षित महसूस कर रही है. इन को सही दिशा देने की जरूरत है.

छेड़छाड़ : एक सामाजिक रोग

साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाली मनीषा शाह होनहार छात्रा थी. वह डाक्टर बनने का सपना देखती थी. अपने इस सपने को पूरा करने के लिए वह कड़ी मेहनत से पढ़ाई करती थी. गरीबी उस की राह में बाधा नहीं बनी. उस के इंटरमीडिएट में अच्छे मार्क्स आए, जिस से उस के हौसलों में इजाफा हो गया, लेकिन एक ही झटके में उस का सपना तिनकातिनका हो गया. बिस्तर पर अब उस की जिंदगी दूसरों के सहारे की मुहताज हो चुकी है. पढ़ाई की बात करने पर उस की आंखों से आंसू छलक आते हैं. परिवार के साथ गरीबी पूरी बेरहमी से पेश आ रही है.

बमुश्किल दो वक्त की रोटी और उन दवाओं का इंतजाम हो पाता है, जो मनीषा को जिंदा रखने के लिए जरूरी हैं. सभी की कोशिश मनीषा की जिंदगी बचाने की है. वक्त के साथ मनीषा को दर्द के दरिया से नजात मिल कर सब ठीक भी हो जाए, लेकिन वह टीस कभी नहीं जाएगी जो एक शोहदे ने उसे दी. वह सभ्य समाज में उस छेड़छाड़ का शिकार हुई जो युवाओं के लिए फैशन बन गया है.

यह कोढ़ग्रस्त इंसानियत की हकीकत है कि हर मिनट कोई न कोई युवती या महिला किसी न किसी कुंठित मानसिकता के हैवान का खुलेआम शिकार हो रही है. बेटियों की सुरक्षा को ले कर चिंता अभिभावकों की भी स्थायी फिक्र बन चुकी है. हकीकत के नैतिक पतन रूपी इस आईने से रूबरू और जागरूक के लिए कोई बुलंद आवाज नहीं उठती. नतीजतन, इस रोग का दायरा बढ़ता जा रहा है.

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दरअसल, मनीषा मौडर्न शहर का लिबास पहने दिल्ली से सटे नोएडा के मोरना गांव की रहने वाली है. उस के इलैक्ट्रीशियन पिता दिहाड़ी पर काम करते हैं. इस परिवार की पूरी दुनिया महज एक कमरे में सिमटी हुई है.

बचपन से ही गरीबी का सामना करने वाली मनीषा पढ़लिख कर परिवार का सहारा बनना चाहती है. हौसलों को वक्त के साथ वह पंख भी दे रही थी. गांव के 2 युवक मनीषा को परेशान करते थे और वह उन का विरोध करती थी. 19 मई की रात जब वह घर की छत पर थी, तो उन शरारती युवकों ने वहां पहुंच कर उस के साथ छेड़छाड़ कर दी.

उस ने विरोध किया, तो उन्होंने उसे छत से धक्का दे दिया, जिस से मनीषा के सिर, कमर व शरीर के अन्य हिस्सों पर गंभीर चोटें आईं. सिर पर लगी गहरी चोट से उस का दिमागी संतुलन गड़बड़ा गया, जिस की वजह से कभीकभी वह खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाती. अस्पताल का खर्च ज्यादा था लिहाजा, छुट्टी करा कर मनीषा को घर में रखा गया, लेकिन इलाज जारी रहा. बेटी के इलाज में पिता कर्जदार हो चुके हैं. सीबीएसई बोर्ड की इंटरमीडिएट की परीक्षा में 94 प्रतिशत मार्क्स लाने वाली मनीषा इलाज और हौसले से शायद उन बुलंदियों को छू सके जिन का कभी उस ने ख्वाब देखा था. हालांकि आरोपी युवकों को पुलिस जेल भेज चुकी है.

तमाशबीन जनता

छेड़छाड़ की घटना की मनीषा इकलौती शिकार हो, ऐसा नहीं है. समाज में ऐसी घटनाओं का दायरा बढ़ता जा रहा है. युवतियां और महिलाएं छेड़छाड़ की शिकार हो रही हैं. कामकाजी महिलाएं व छात्राएं आएदिन इस कड़वी हकीकत से दोचार होती हैं.

छेड़छाड़ करने वालों के हौसले इतने बुलंद हैं कि न उन्हें समाज का डर होता है न कानून का. समाज तमाशा देखने का आदी हो चुका है और कानून अपराध होने पर ही अपना काम करता है. वह भी तब, जब बात हद से पार हो जाए.

इलाहाबाद की रहने वाली छात्रा रीना को स्कूल जाने से अब डर लगता है. उस के मातापिता हर वक्त बेटी को ले कर चिंतित रहते हैं, क्योंकि उन का एक ऐसी घटना से सामना हुआ, जिस ने उन की चिंता को और भी बढ़ा दिया. रीना को स्कूल आतेजाते कुछ शरारती युवक परेशान करते थे. पहले उस ने यह सब नजरअंदाज किया, लेकिन जब उन की हरकतें ज्यादा बढ़ गईं तो उस ने अपने पिता को सारी बातें बताईं. उन्होंने 3 युवकों की शिकायत पुलिस से की, लेकिन जब उन युवको को इस का पता चला, तो वे बौखला गए और उन्होंने रीना के घर पहुंच कर धावा बोल दिया. गालीगलौज करते हुए उसे जान से मारने की भी धमकी दी. बाद में पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया, लेकिन रीना के मन में एक अनजाना भय स्थायी रूप से घरघर गया है.

छेड़छाड़ की शिकार युवतियों को अकसर मानसिक प्रताड़ना से गुजरना पड़ता है, जिस के चलते यह अपमान और खतरा बरदाश्त से बाहर हो जाता है और वे घातक कदम भी उठा लेती हैं.

सहारनपुर जिले के सीकरी की रहने वाली 11वीं की एक छात्रा को 2 युवक अकसर परेशान करते थे. उस के विरोध के बावजूद युवकों की छेड़छाड़ बढ़ती गई. उस ने पिता से उन की शिकायत की, तो उन्होंने युवकों को अपनी हरकतों से बाज आने की सख्त चेतावनी दी. कुछ दिन तो सब ठीक रहा, लेकिन युवक फिर से अपनी हरकतों पर उतर आए.

उन की छेड़छाड़ से वह युवती इतनी परेशान हो गई कि एक दिन उस ने अपने घर में ही फांसी का फंदा लगा कर आत्महत्या कर ली. समाज में छेड़छाड़ से परेशान युवतियों द्वारा इस तरह के घातक कदम उठाने के मामलों का ग्राफ बढ़ रहा है. हालांकि, हिम्मत हारने के बजाय युवतियों को हालात का जम कर मुकाबला करना चाहिए.

मजबूरी की मार

बहुत से मामलों में युवतियां छेड़छाड़ सहने को मजबूर होती हैं. मुसीबत की वजह से वे कई बार खुल कर विरोध नहीं कर पातीं. दबंग व बुलंद हौसले वाले शरारती तत्त्व उन्हें तरहतरह से परेशान करते हैं. ग्रामीण इलाकों में तो स्थिति और भी भयावह है. दबंग चाहते हैं कि युवतियां उन की छेड़छाड़ को बरदाश्त करें. उन की बात न मानने या विरोध करने पर नौबत मारपीट या हिंसा तक आ जाती है.

पीलीभीत जिले के मल्लपुर गांव की एक 13 वर्षीय किशोरी शाम को नल पर पानी भरने गई. तो एक दबंग ने उस के साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी. वह खींच कर उसे पास के एक कमरे में ले गया. किशोरी ने जब इस की शिकायत अपने परिवार से करने की धमकी दी, तो वह हिंसक हो गया और उस पर उस ने मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी. जलती हालत में वह चीखते हुए भागी और बाहर आ कर गिर गई. लोगों ने मुश्किल से आग बुझा कर उसे अस्पताल पहुंचाया. बाद में पुलिस ने उस दबंग को गिरफ्तार कर लिया.

किस राह किस के साथ छेड़छाड़ हो जाए इसे कोई नहीं जानता. सहारनपुर जिले में एक भिखारी महिला के साथ भी एक युवक ने छेड़छाड़ कर दी. महिला के विरोध के बाद युवक को पुलिस के हवाले कर दिया गया. छेड़छाड़ के मामलों में आरोपी अंजाम भुगतने तक की धमकियां देते हैं.

ऐसे मामलों में पीडि़ता यदि पुलिस के पास जाती है, तो उसे कई बार बदनामी का डर दिखाया जाता है. कितने ही मामले ऐसे होते हैं जिन्हें पुलिस गंभीरता से नहीं लेती और आरोपी को सिर्फ चेतावनी दे कर छोड़ देती है. वह फिर कभी किसी के साथ छेड़छाड़ नहीं करेगा, इस की कोई गारंटी नहीं होती.

अमूमन छेड़छाड़ करने वाले पुलिस के इस लचीले रवैए का फायदा उठाते हैं. लोगों की भी यह प्रवृत्ति बन गई है कि यदि किसी सार्वजनिक स्थल पर किसी के साथ छेड़छाड़ हो रही हो, तो वे दखल देने से गुरेज करते हैं. घर, स्कूल, दफ्तर या बाजार आतेजाते महिलाओं व युवतियों के मन में छेड़छाड़ का डर बना ही रहता है. छेड़छाड़ किसी सभ्य समाज की पहचान नहीं हो सकती. यह न सिर्फ किसी युवती के लिए बल्कि समाज के लिए भी बड़ी फिक्र होनी चाहिए.

एक तरह का मनोरोग

महिलाएं व युवतियां अकसर सब से अधिक सार्वजनिक स्थलों पर छेड़छाड़ का शिकार होती हैं. किसी को छू कर निकलना, पीछा करना, सीटी बजाना, सांकेतिक टिप्पणी करना या अश्लील इशारा करना इसी श्रेणी में आता है. इस की शिकार महिलाएं कई बार इसे नजरअंदाज करने की कोशिश करती हैं. विरोध करने पर ऐसा करने वाले अकसर सरल तरीका खोजते हैं. कई बार वे शिकार महिला को ही झूठा साबित करने पर अड़ जाते हैं. तमाशबीन लोग पचड़े में नहीं पड़ना चाहते. उन की यह सोच छेड़छाड़ करने वालों को हिम्मत देती है.

चिकित्सकों की राय में महिलाओं पर बुरी नजर रखने और उन से छेड़छाड़ करने वाले वास्तव में एक तरह के मानसिक रोग से पीडि़त होते हैं. ऐसी विकृत मानसिकता के लोगों के दिमाग में कुछ गलत विचार चल रहे होते हैं. किसी भी विपरीतलिंगी को देख कर गलत विचारों की शृंखला और बढ़ जाती है. मौका लगते ही वे छोटीबड़ी हरकत करते हैं. यदि कोई विरोध करता है, तो अनजान बनने का नाटक करते हैं. पीडि़ता यदि कमजोर हो, तो वह कुंठित हो कर घातक कदम उठाने से भी नहीं चूकते.

क्या कहता है कानून

छेड़छाड़ को ले कर कानून बेहद सख्त है और समयसमय पर उस में बदलाव भी किया गया है. बावजूद इस के छेड़छाड़ का मर्ज समाज में बढ़ रहा है.

अधिवक्ता राजेश द्विवेदी बताते हैं कि पहले छेड़छाड़ के मामले में अधिकतम 2 साल की कैद की सजा का प्रावधान था, लेकिन निर्भया कांड के बाद कानून में हुए बदलाव के बाद अब छेड़छाड़ के मामले में अपराध की गंभीरता के हिसाब से व्याख्या की गई है. अलगअलग सैक्शन में सजा का प्रावधान भी अलग हैं. दोषी को 1 से ले कर 7 साल तक की सजा हो सकती है. इतना ही नहीं, धारा 354 व उस के सैक्शन के अंतर्गत आने वाले इस अपराध को गैर जमानती अपराध माना गया है.

कानून के तहत किसी महिला को गलत मंशा से छेड़ना, आपत्तिजनक इशारा करना, मरजी के खिलाफ पौर्न दिखाना, जबरन किसी के कपड़े उतारना, उसे उकसाना, किसी का आपत्तिजनक फोटो लेना, उन्हें बांटना, किसी का पीछा करना या जबरन बात करने का प्रयास करना अपराध है. ऐसे में कोई भी महिला शिकायत दर्ज करा सकती है.

छेड़छाड़ के मामलों को ले कर अदालतें भी गंभीर रहती हैं. एक मामले में कोर्ट की यह टिप्पणी कथित सभ्य समाज को आईना दिखाने के लिए काफी है, जिस में कहा गया कि किसी महिला के साथ छेड़छाड़ या उस का पीछा करना उस के जीने के अधिकार का उल्लंघन है. पुलिस महिलाओं को ऐसा सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराए कि वे कहीं भी बेखौफ आजा सकें.

महिला आईपीएस मंजिल सैनी कहती हैं कि छेड़छाड़ के मामले में पीडि़ता को तुरंत पुलिस की मदद लेनी चाहिए.

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