महज अटकलों और अफवाहों से देश में इस कदर राजनीतिक उथलपुथल मच सकती है कि सरकारें बदल जाए, नेता जेल चले गए. बड़ा आंदोलन छिड़ जाए और न्यायपालिका को इन अटकलों के चलते दर्ज मामले में तथ्य तलाशने में आठ साल तक अपना कीमती समय जाया करना पड़े और कोई भी व्यक्ति किसी के खिलाफ केवल अनुमान के आधार पर मामला दर्ज करा कर शासन, प्रशासन और अदालत का समय बर्बाद करा सकता है. 2 जी स्पैक्ट्रम नाम के घोटाले में ऐसा ही हुआ है.
सीबीआई की विशेष अदालत का फैसला आने के बाद पूर्व सीएजी विनोद राय निशाने पर आ गए हैं. उन्होंने ही अनुमान के आधार पर 2 जी स्पैक्ट्रम आवंटन में 1.76 लाख करोड़ के घोटाले की रिपोर्ट दी थी.
यूपीए के सब से चर्चित घोटालों में से एक 2जी स्कैम में पटियाला हाउस कोर्ट की विशेष सीबीआई अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया. इस फैसले के बाद विनोद राय से माफी मांगने की मांग की जा रही है. उन्होंने देश को किस कदर बेवकूफ बनाया है. उस वक्त के सीएजी विनोद राय की रिपोर्ट को भाजपा ने हाथों हाथ लिया था और भ्रष्टाचार के मामले में कांग्रेस पर जमकर हमला बोला था.
कांग्रेस नेता आरोप लगा रहे हैं कि विनोद राय ने भाजपा के लिए यह काम किया और उस की सरकार आने पर उन्हें बीसीसीआई में प्रशासक समिति [सीओए] का महत्वपूर्र्ण पद दे दिया गया.
उस समय यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार 2 जी के अलावा कौमनवेल्थ और खनन घोटाले समेत कई घोटालों के लिए विपक्ष के निशाने पर थी. इन घोटाले के चलते आम जनता में उस के खिलाफ गुस्सा बढने लगा था और अन्ना हजारे के नेतृत्व में दिल्ली के जंतरमंतर पर आंदोलन शुरू हो गया. कुछ समय बाद लोकसभा के चुनाव नजदीक आ गए.
इन चुनावों में भ्रष्टाचार सब से बड़ा मुद्दा बना. मनमोहन सरकार को संसद से ले कर सड़क तक बदनाम किया गया. चुनावों में नरेंद्र मोदी समेत भाजपा नेताओं ने यूपीए के घोटालों को खूब भुनाया. 2014 में भाजपा की अगुवाई में एनडीए की सरकार बन गई.
मामला 2008 में शुरू हुआ था. सीएजी की रिपोर्ट सामने आने के बाद 2 जी मामला सुर्खियों में आया था. इस में बताया गया था कि यूपीए सरकार को 1.76 लाख करोड़ का नुकसान हुआ है. सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों ने मिल कर गैरकानूनी तरीके से 2 जी स्पैक्ट्रम लाइसेंस आवंटित किए थे. इस में कुछ टेलिकौम कंपनियों को फायदा दिया गया. इस में तीन मामले दर्ज किए गए. केंद्रीय सतर्कता आयोग ने दूरसंचार मंत्रालय के कुछ अधिकारियों के खिलाफ कारवाई की सिफारिश की थी.
अक्टूबर 2009 में मामला सीबीआई में दर्ज हुआ था. सीबीआई ने तब के दूरसंचार मंत्री ए. राजा, द्रमुक सांसद कनिमोझी समेत 34 लोगों को आरोपी बनाया गया. आरोपियों में 21 व्यक्ति और 13 कंपनियां थीं. इन में दो बड़े नौकरशाह तब के दूरसंचार सचिव सिद्धार्थ बेहुरा और ए. राजा के निजी सचिव आरके चंदेलिया थे. डीएमके प्रमुख एम. करुणानिधि की पत्नी दयालु अम्मल भी शामिल थीं. इन पर आरोप लगा कि राजा के दूर संचार मंत्री रहते मंत्रालय ने पहले आवेदन की डेडलाइन 1 अक्टूबर तय की. इस के बाद आवेदन प्राप्त करने की कट औफ तारीख बदलने से 575 में से 408 आवेदक रेस से बाहर हो गए. ‘पहले आओ, पहले पाओ’ की नीति का भी उल्लंघन किया गया. कंपनियों की योग्यता पर भी सवाल उठाए गए. इन के पास कोई अनुभव नहीं था.
फरवरी 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने 2 जी स्पैक्ट्रम के सभी 122 लाइसेंस रद्द कर दिए थे.
सीबीआई इन सभी के खिलाफ आरोप साबित करने में असफल रही. राजा और कनिमोझी को कई महीने जेल में रहना पड़ा था. कनिमोझी पर आरोप था कि अपने चैनल के लिए 200 करोड़ की रिश्वत डीबी रियलटी के शाहिद बलवा से ली और बदले में स्पैक्ट्रम दिलाया था.
इस मामले से जाहिर है कि किसी के खिलाफ मामला दर्ज करा कर परेशान किया जा सकता है. इस की भरपाई करना मुश्किल है.