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वन प्लस की वेबसाइट हुई हैक, कई क्रेडिट कार्ड डिटेल्स लीक

चाइनीज स्मार्टफोन कंपनी वन प्लस (OnePlus) के प्रोडक्ट खरीदने वाले ग्राहकों के लिए बुरी खबर है. ऐसे ग्राहकों के क्रेडिट कार्ड की जानकारी चोरी होने का मामला सामने आया है. खुद OnePlus ने इसकी पुष्टि की है. कंपनी का कहना है कि साइबर हमले की वजह से ऐसा हुआ. दरअसल, कंपनी की वेबसाइट oneplus.net को हैक किया गया था. जहां से करीब 40 हजार ग्राहकों के क्रेडिट कार्ड की जानकारी लीक हुई है. कंपनी के मुताबिक, ऐसे सभी ग्राहकों को ई-मेल भेजा गया है जिनके क्रेडिट कार्ड की जानकारी चोरी होने की आशंका है.

कंपनी ने ग्राहकों को दी सलाह

चीनी कंपनी वन प्लस ने अपने यूजर्स से कहा है कि वो अपने क्रेडिट कार्ड के स्टेटमेंट चेक करें. अगर किसी तरह की संदेहास्पद ट्रांजैक्शन पाई जाती है तो उसकी जानकारी तुरन्त कंपनी को दें. कंपनी ने यह भी कहा है कि ग्राहक वन प्लस की सपोर्ट टीम से भी मदद ले सकते हैं. कंपनी के बयान के मुताबिक वह अपने प्लेटफौर्म को ज्यादा सुरक्षित बनाने के लिए भी काम कर रही है.

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क्रेडिट कार्ड पेमेंट की बंद

वन प्लस ने 40000 ग्राहकों को क्रेडिट कार्ड डीटेल्स चोरी होने पर क्रेडिट कार्ड पेमेंट को बंद कर दिया है. कंपनी का कहना है कि औनलाइन स्टोर से प्रोडक्ट खरीदते वक्त कोई भी कस्टमर क्रेडिट कार्ड से पेमेंट नहीं कर पाएगा. हालांकि, जांच होने तक ही यह पेमेंट औप्शन बंद किया गया है. थर्ड पार्टी सिक्योरिटी एजेंसी इस मामले की जांच में जुटी है.

कंपनी ने दी जानकारी

वन प्लस ने कंपनी के औनलाइन फोरम में लिखा, “हमारे एक सिस्टम पर हमला हुआ था और पेमेंट पेज कोड में गलत इरादे से एक स्क्रिप्ट डाल दी गई थी जो क्रेडिट कार्ड की जानकारी भरे जाने के दौरान इसे भांपती रहती थी.” उन्होंने आगे लिखा, “यह धोखाधड़ी वाली स्क्रिप्ट धीमे-धीमे काम करती थी और सीधे यूजर के ब्राउजर से डाटा हासिल कर उसे भेजती रहती थी. इसके बाद से इसे हटा दिया गया.”

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सिर्फ ऐसे यूजर्स होंगे प्रभावित

कंपनी का कहना है कि जिन यूजर्स ने मध्य नवंबर 2017 से लेकर 11 जनवरी 2018 के बीच वेबसाइट पर क्रेडिट कार्ड की नई जानकारी डाली है, सिर्फ ऐसे ही यूजर्स प्रभावित हुए हैं. अगर आपने पहले से सुरक्षित क्रेडिट कार्ड से लेनदेन किया है या फिर ‘पेपल के जरिये क्रेडिट कार्ड’ या पेपल डायरेक्टली से भुगतान किया, तो आपको इससे प्रभावित नहीं होना चाहिए.

TVS अपाचे के नए मौडल पर मिल रही है 20 हजार तक की छूट

अग्रणी दुपहिया वाहन निर्माता कंपनी टीवीएस ने हाल ही में अपनी पसंदीदा बाइक अपाचे का नया मौडल TVS Apache RR 310S लौन्च किया था. इस बाइक को लेकर कंपनी को काफी उम्मीदें हैं. आप सोच रहे होंगे कि लौन्चिंग के बाद किसी बाइक की कीमत कैसे कम की जा सकती है, आमतौर पर ऐसा कम ही होता है कि लौन्चिंग के बाद की कीमतों में गिरावट आए. लेकिन टीवीएस की इस बाइक की एक्स शोरूम कीमत पर करीब 20 हजार रुपए का डिस्काउंट मिल रहा है. आपके मन में सवाल उठना लाजमी है, चलिये हम आपको बताते हैं कि इसका कारण क्या है.

बाइक की कीमत 2.15 लाख रुपए

कंपनी ने पिछले दिनों अपनी इस बाइक को 2.15 लाख रुपए की एक्स शोरूम कीमत पर लौन्च किया था. एक खबर के अनुसार केरल में यह बाइक आपको 2 लाख रुपए से कम कीमत में ​ही मिल जाएगी. केरल में इस बाइक की एक्स शोरूम कीमत महज 1.99 लाख रुपए से शुरू हो रही है. वहीं तमिलनाडु, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में इसे 2.05 लाख रुपए की एक्स शोरूम कीमत पर बेचा जा रहा है. दिल्ली समेत अन्य सभी राज्यों में इस बाइक की बिक्री 2.15 लाख रुपए की एक्स शोरूम कीमत पर की जा रही है.

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इसलिए घटाई कीमत

केरल में 2 लाख रुपए से अधिक की कीमत वाली बाइक पर 20 प्रतिशत रोड टैक्स लगाया जाता है. इसलिए निर्माताओं ने इस टैक्स से बचने के लिए बाइक की कीमतें घटाई हैं. ताकि राज्य द्वारा लगाए जाने वाले रोड टैक्स से बचा जा सके. यहां कीमत कम होने से केरल में KTM RC 390 के सामने भी चुनौती आ गई है, जिससे अपाचे की नई बाइक की प्रमुख कौम्पटीटर है.

क्या कम होगी केटीएम की कीमत?

इस तरह यदि आप इस बाइक को केरल से लेते हैं तो कुल मिलाकर आपको करीब 20 हजार रुपए का फायदा होगा. अब देखना दिलचस्प होगा कि क्या केटीएम भी अपनी आरसी390 बाइक की कीमत में कमी करेगी या नहीं. Apache RR 310S टीवीएस मोटर्स की फ्लैगशिप मोटरसाइकल है. इसे राइडिंग के साथ ही रेसिंग ट्रैक के लिहाज से भी तैयार किया गया है.

इस बाइक में 310 सीसी का इंजन लगा है जो कि 6 स्पीड मैन्युअल गियरबौक्स से लैस है. इसमें पेटल डिस्क ब्रेक हैं और स्टैंडर्ड फीचर के तौर पर एबीएस यानी ऐंटी लौकिंग ब्रेकिंग सिस्टम दिया गया है.

भज्जी की सलाह ना मानने कि वजह से भारतीय टीम को मिली हार

भारतीय टीम के औफ स्पिनर हरभजन सिंह का मानना है कि दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ कड़े दौरे से पहले भारतीय टीम को श्रीलंका के खिलाफ घरेलू सीरीज खेलकर बहुत कम फायदा हुआ. भारतीय टीम दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ पहले ही टेस्ट सीरीज गंवा चुकी है और टीम पर क्लीन स्वीप का खतरा मंडरा रहा है.

हरभजन से जब दक्षिण अफ्रीका दौरे के मद्देनजर टीम की तैयारियों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘ देखिए मुझे लगता है श्रीलंका के खिलाफ घरेलू सीरीज से हमें बहुत कम फायदा हुआ. हमें शायद ही उससे कुछ मिला है. इससे अच्छा यह होता कि कुछ भारतीय खिलाड़ी पहले ही दक्षिण अफ्रीका चले जाते. अगर दक्षिण अफ्रीका नहीं तो तैयारियों के लिये धर्मशाला भी उपयुक्त जगह है.’

टीम इंडिया को धर्मशाला में प्रैक्टिस करना चाहिए था

उन्होंने सैयद मुश्ताक अली टी20 टूर्नामेंट के बारे में कहा, ‘दक्षिण अफ्रीका के मुश्किल दौरे से पहले धर्मशाला की ऊंचाई और ठंडे मौसम के साथ वहां तेजी और उछाल के बीच तैयारी करना अनुकूल होता.’

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टेस्ट टीम में अजिंक्य रहाणे को जगह नहीं मिलने पर उठ रहे सवालों पर हरभजन ने कहा कि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि अगर रहाणे खेलते तो नतीजा कुछ और होता.

भुवनेश्वर को बाहर करना विराट का गलत फैसला

टर्बनेटर के नाम से मशहूर इस गेंदबाज ने कहा, मैं कुछ आंकड़े देख रहा था, विराट कोहली की कप्तानी में अजिंक्य (रहाणे) की औसत 30 टेस्ट मैच में 40 से कम की औसत है. इसके साथ ही पिछले एक साल से उन्होंने बहुत ज्यादा रन नहीं बनाये है.’

उन्होंने कहा, ‘अगर रहाणे खेलते और भारतीय टीम 0-2 से पीछे होती तो हम कहते की रोहित को टीम में ले आओ. हमें कप्तान के दृष्टिकोण को समझना होगा.’

हरभजन ने कहा कि रहाणे के टीम में रहने, ना रहने पर अलग अलग राय हो सकती है, लेकिन भुवनेश्वर को टीम में होना चाहिये था.

उन्होंने कहा, ‘आज के दौर में भुवनेश्वर इशांत की तुलना में बड़े मैच विजेता हैं. भुवी ने जब भी अच्छा प्रदर्शन किया, भारतीय टीम ने भी अच्छा किया है. मुझे अब भी उम्मीद है कि सबकुछ खत्म नहीं हुआ है. जोहानिसबर्ग में हम वापसी कर सीरीज को 2-1 कर सकते हैं. उन्होंने कहा, अब हमारे पास खोने के लिये कुछ नहीं और सबकुछ पाने के लिये है. इसलिये मुझे लगता है उन्हें जीत के लिये जाना चाहिये.’

इस ऐप के जरिये पहचानिए असली और नकली नोट, विदेशी मुद्रा भी जांचें

औनलाइन प्रौद्योगिकी कंपनी चेकफेक ब्रैंड प्रोटेक्शन सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड ने ‘चेकफेक’ ऐप पेश किया है, जिससे विश्व की किसी भी मुद्रा के नोट की जांच की जा सकती है. चेकफेक के निदेशक और सहसंस्थापक तन्मय जयसवाल ने इस मौके पर कहा, “चेकफेक एक औनलाइन प्लेटफौर्म है, जहां कोई भी विश्व के किसी भाग में प्रचलित मुद्रा की जांच कर सकता है. यह ऐप आईओएस और एंड्रौयड पर नि:शुल्क उपलब्ध है.” मौजूदा समय में विश्व भर में फैले जाली नोटों की कुल कीमत 170 अरब डौलर आंकी गई है, जो इन्हें विश्व की 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाता है.

जयसवाल ने कहा, “हमने कई ऐसी कहानियां सुनी हैं, जिसमें विदेशियों को नकली नोट थमा दिए जाते हैं, जिससे वह अनजान देश में परेशानियों और समस्याओं से घिर जाते हैं. चेकफेक ऐप विदेशी यात्रियों को नकली करेंसी नोटों की पहचान करने में मदद कर सकता है, जिससे उनका इस तरह की धोखाधड़ी से बचाव होगा.”

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बता दें कि राजधानी के लाल किला इलाके में हाल ही में एक व्यक्ति के पास से तीन लाख रुपए मूल्य के नकली नोट जब्त किए गए हैं. इसके बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया था. पुलिस ने बताया था कि विशेष शाखा को यह सूचना मिली थी कि पश्चिम बंगाल के मालदा के जरिए उच्च गुणवत्ता के नकली नोटों की आपूर्ति की जा रही है.

पुलिस उपायुक्त (विशेष प्रकोष्ठ) पी एस कुशवाह ने बताया था कि 12 जनवरी को गुप्त सूचना के आधार पर 45 वर्षीय नरेंद्र को गिरफ्तार किया गया. उसके पास से तीन लाख रुपए मूल्य के नकली नोट जब्त किए गए. सारे नोट 2000 रुपए के हैं.

उन्होंने बताया था कि पूछताछ के दौरान नरेंद्र ने बताया कि वह तीन-चार साल से नकली नोटों की तस्करी में शामिल रहा है. वर्ष 2016 में राजस्थान पुलिस ने उसे 1,000 रुपए के नकली नोट के साथ गिरफ्तार किया था. अधिकारी ने बताया था कि जब्त किए गए नोटों और असली नोट के बीच अंतर कर पाना बहुत मुश्किल है.

हार के बाद सैर पर निकली टीम इंडिया

तीन टेस्ट, 6 वनडे और तीन टी-20 मैचों की सीरीज के लिए टीम इंडिया साउथ अफ्रीका के दौरे पर है. इस दौरे पर भारतीय टीम की शुरुआत कुछ खास नहीं रही और पहले दो टेस्ट मैचों में हार का सामना करना पड़ा. इसके साथ ही साउथ अफ्रीका की टीम ने सीरीज में 2-0 की अजेय बढ़त बना ली है.

टेस्ट सीरीज गंवाने के बाद भारतीय टीम की बहुत आलोचना भी हुई है. कप्तान विराट कोहली के कई फैसलों पर भी सवाल उठाए गए, लेकिन इन सब चीजों से बेखबर लगातार दो टेस्ट मैच हारकर बेजार हुई टीम इंडिया के खिलाड़ी शुक्रवार को अभ्यास को तरजीह देने के बजाय घूमने निकल गए. वह शुक्रवार को ही नहीं, बल्कि रविवार तक कोई अभ्यास नहीं करेंगे. ऐसा तब है जब विश्व की नंबर एक टेस्ट टीम पर क्लीन स्वीप का साया मंडरा रहा है.

टीम को तीसरा टेस्ट मैच 24 जनवरी से जोहानिसबर्ग के वांडरर्स स्टेडियम में खेलना है. भारतीय प्रबंधन इस समय बेहद दबाव में है. ऐसे में मैदान पर द. अफ्रीकी टीम को तीसरे टेस्ट मैच में हराने के लिए टीम के खिलाड़ियों को अभ्यास में निखरने की जरूरत है. अभ्यास पर ध्यान लगाने की जगह टीम के अधिकतर सदस्य लिम्पो नेशनल पार्क में सफारी की सैर पर निकल गए. बताया जा रहा है कि भारतीय टीम यहां पहुंच कर जंगल सफारी का मजा लेगी साथ ही पूरी टीम यहां एक रात बिताएगी.

चौंकाने वाली बात यह भी है कि दक्षिण अफ्रीका दौरे पर जितनी भी बार टीम इंडिया गई है, यह पहली बार है जब खिलाड़ी अफ्रीकन सफारी पर निकले हैं. यह समय भारतीय टीम के लिए नेट प्रैक्टिस कर तीसरे टेस्ट के लिए खुद को तैयार करने के लिए था लेकिन कोच रवि शास्त्री खिलाड़ियों को मानसिक दबाव से निकालने के लिए उन्हें जंगल की सैर पर ले गए हैं.

सूत्रों के मुताबिक सेंचुरियन में दूसरा टेस्ट हारने के बाद कप्तान विराट कोहली बहुत निराश हैं. उन्होंने टीम के कुछ सदस्यों पार्थिव पटेल, चेतेश्वर पुजारा और अन्य खिलाड़ियों से अलग से बात भी की है. भारतीय टीम किसी तरह अगला मैच जीतकर वनडे सीरीज में जाना चाहती है. लेकिन यह समझना मुश्किल है कि अभ्यास में अपनी कमजोरियों पर काम कराने की जगह टीम प्रबंधन खिलाड़ियों को सफारी की सैर कराकर दबाव से बाहर लाना चाहते हैं.

कहा जा रहा है कि भारतीय टीम सोमवार से अभ्यास करेंगी, ऐसे में देखना यह है कि बिना अभ्यास को तरजीह दिए सैर पर निकले खिलाड़ी तीसरे टेस्ट में कितने तरोताजा नजर आते हैं.

आईपीएल की पहली हैट्रिक लेने वाले बालाजी होंगे धोनी टीम के कोच

भारत के पूर्व क्रिकेटर लक्ष्मीपति बालाजी को आईपीएल 2018 सत्र के लिए चेन्नई सुपर किंग्स के गेंदबाजी कोच चुना गया है. चेन्नई टीम ने कप्तान महेंद्र सिंह धोनी, सुरेश रैना और रविंद्र जडेजा को टीम में बरकरार रखा है. सीएसके के सीईओ के एस विश्वनाथन ने यहां एक प्रचार कार्यक्रम के दौरान इसकी घोषणा की. स्टीफन फ्लेमिंग टीम के कोच होंगे जबकि आस्ट्रेलिया के पूर्व बल्लेबाज माइकल हस्सी बल्लेबाजी कोच और बालाजी गेंदबाजी कोच होंगे.

ट्रेनर ग्रेगरी किंग और फिजियो टामी सिमसेक को भी बरकरार रखा गया है. फ्लेमिंग टीम के निलंबित होने के समय भी कोच थे. वह 2016 और 2017 सत्र में राइजिंग पुणे सुपरजाइंट्स के कोच रहे. हस्सी भी 2008 से 2013 तक चेन्नई के साथ थे.

इस मौके पर मौजूद धोनी ने कहा कि कोर ग्रुप फिर जुटाना पहला कार्य है. उन्होंने स्वीकार किया कि 27 और 28 जनवरी को नीलामी में खिलाड़ियों को चुनना आसान नहीं होगा. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण करने के बाद बालाजी के कई बार अपनी खराब फिटनेस के कारण टीम से बाहर बैठना पड़ा था. 34 वर्षीय दायें हाथ के इस गेंदबाज ने भारत के लिए 8 टेस्ट और 30 वनडे खेले हैं.

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आईपीएल में शानदार रहा बालाजी का सफर

बालाजी ने आईपीएल के पहले ही सीजन में हैट्रिक लेकर सभी को चौंका दिया था. 10 मई 2008 को उन्होंने चेन्नई सुपर किंग्स की ओर खेलते हुए किंग्स इलेवन पंजाब के खिलाफ यह उपलब्धि हासिल की थी. उस मैच में उन्होंने इरफान पठान, पीयूष चावला और वीआरवी सिंह को लगातार गेंदों पर आउट किया था.

शोएब अख्तर की पहली ही गेंद पर लगाया था छक्का

2004 में पाकिस्तान के खिलाफ मैच खेल रहे बालाजी ने शोएब अख्तर की पहली गेंद का सामना किया और उस पर छक्का लगाया. लेकिन आश्चर्यजनक रूप से अगली ही गेंद पर उनका बल्ला टूट गया. यह पाकिस्तानी दौरा था,  जब बालाजी ने अपनी पहचान एक तेज गेंदबाज के रूप में बनाई थी.

पाकिस्तान टूर के दौरान वनडे सीरीज का पांचवां मैच लाहौर के गद्दाफी स्टेडियम में 24 मार्च को खेला गया था. इस मैच में बालाजी ने शोएब अख्तर की बौल पर एक जोरदार छक्का लगाया था. जब वे हुक कर रहे थे तो बल्ला टूटकर गिर पड़ा था. इसके बाद वे अपनी फेमस स्माइल के साथ बौल और बैट दोनों ओर रुक-रुककर देख रहे थे, जबकि स्टेडियम में बालाजी-बालाजी गूंज रहा था.

रणवीर सिंह ने ऐसे बदला लुक की सब हो गए हैरान, आप भी देखें

जिस तरह बौलीवुड़ आए दिन एक से बढकर एक बेहतरीन फिल्में दे रही है उससे कहीं ना कहीं हम ये जरूर अंदाजा लगा सकते हैं कि बौलीवुड अब बदल रहा है और लोगों का फिल्मों को देखने का नजरिया भी बदल रहा हैं. अब हर कोई अपने फिल्म में परफेक्शन की डिमांड कर रहा है इसलिये कई सारे अभिनेता और अभिनेत्री अपने लुक्स पर काम करती रहती हैं.

बात जब किरदारों के मुताबिक खुद को ढालने की हो तो बौलीवुड एक्टर रणवीर सिंह मिस्टर परफेक्शनिस्ट आमिर खान को टक्कर देते नजर आते हैं. फिल्म ‘पद्मावत’ के लिए खुद को क्रूर और निर्दयी दिखाना हो या ‘गली बौय’ में खुद को मासूम दिखाना हो. रणवीर ने अपने आप को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है. हाल ही में रणवीर सिंह ने माइक्रोब्लौगिंग साइट ट्विटर से एक तस्वीर शेयर की है जिसमें उन्होंने ‘पद्मावत’ से लेकर ‘गली बौय’ तक के लिए उनके द्वारा किया गया ट्रांसफौर्मेशन दिखाया है.

तस्वीर में एक तरफ आप बेहद बल्की और मस्कुलर रणवीर सिंह को देख सकते हैं जो आपको फिल्म पद्मावती में नजर आएंगे वहीं दूसरी ओर आप एक दम दुबले पतले रणवीर सिंह को दूसरी तस्वीर में देख सकते हैं जो आपको फिल्म ‘गली बौय’ में नजर आएंगे. दाईं तरफ की तस्वीर की तुलना जब आप बाईं तरफ की तस्वीर से करते हैं तो आपको पता चलता है कि रणवीर ने खुद के शरीर में किस हद तक परिवर्तन किया है. उन्होंने अपने मसल्स को मेजर लेवल तक लूज किया है.

जोया अख्तर की फिल्म ‘गली बौय’ से रणवीर सिंह का लुक भी सोशल मीडिया पर काफी शेयर किया जा रहा है. तस्वीर में आप हिजाब पहनी आलिया भट्ट को रणवीर सिंह के पास खड़े देख सकते हैं. आलिया भी इस तस्वीर में काफी अलग दिख रही हैं. हालांकि फिल्म के लिए दोनों का ही आधिकारिक लुक अब तक जारी नहीं किया गया है. वर्तमान की बात करें तो रणवीर सिंह की फिल्म ‘पद्मावत’ 25 जनवरी को सिनेमाघरों में रिलीज होने जा रही है. सुप्रीम कोर्ट ने चार राज्यों में फिल्म पर लगाया गया बैन हटा लिया है.

@RanveerOfficial & @aliaa08 on the set of Most Awaiting flick #GullyBoy

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पहले भी हो चुका है यह

अगर बात लुक्स की करें तो इससे पहले रणदीप हुड्डा ने फिल्म ‘सरबजीत’ के लिये और राजकुमार राव ने फिल्म ‘बोस’ और ‘राबता’ के लिये अपने लुक को बदला था.

अपने ही बुने जाल में फंसी अंशु

28 जून, 2017 की बात है. एक महिला मुरादाबाद के एसएसपी मनोज तिवारी के औफिस जा कर उन से मिली. उस महिला के साथ 3 वकील भी थे, जो मुरादाबाद कचहरी में प्रैक्टिस करते थे. महिला किसी अच्छे परिवार की लग रही थी. एसएसपी ने सभी को बैठने का इशारा किया.

महिला ने अपना नाम अंशु उर्फ रेनू सागर बताते हुए एसएसपी को एक तहरीर दी, ‘‘मेरा करीब एक साल से लाइनपार, प्रकाश नगर में रहने वाले राघव शर्मा से प्रेमसंबंध है. राघव के साथ मैं बाहर घूमनेफिरने भी जाती थी. पिछले दिनों हम हरिद्वार भी घूमने गए थे. वहां हर की पौड़ी के पास स्थित मंदिर में राघव और मैं ने शादी कर ली थी.’’ अंशु ने एसएसपी को शादी के समय राघव द्वारा उस की मांग भरते हुए फोटो भी दिखाए.

अंशु ने बताया कि राघव शर्मा को जब पता चला कि वह दलित लड़की है तो उस ने शादी वाली बात से इनकार कर दिया. उस के साथ आए वकीलों ने भी इस मामले में उचित काररवाई करने का अनुरोध किया.

अंशु मुरादाबाद की पौश कालोनी मानसरोवर में रहती थी. यह कालोनी मझोला थाने के अंतर्गत आती थी, इसलिए एसएसपी ने अंशु से कहा कि वह थाना मझोला चली जाए, जहां उस की शिकायत पर उचित काररवाई की जाएगी. एसएसपी ने उसी समय मझोला के थानाप्रभारी आर.के. नागर को फोन कर के अंशु के मामले में यथाशीघ्र काररवाई करने के निर्देश दे दिए.

अंशु एसएसपी औफिस से सीधे थाना मझोला पहुंची और थानाप्रभारी आर.के. नागर को विस्तार से सारी बात बता दी. अंशु देखने में खूबसूरत थी, इसलिए थानाप्रभारी  को अंशु की बातों में सच्चाई नजर आ रही थी.

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थानाप्रभारी को चूंकि एसएसपी ने जल्द काररवाई करने का आदेश दिया था, इसलिए वह आरोपी राघव शर्मा के प्रकाश नगर स्थित घर पहुंच गए. राघव घर पर ही मिल गया. वह उसे थाने ले आए. उसी समय एसपी (सिटी) आशीष श्रीवास्तव भी मझोला थाना पहुंच गए.

राघव भी एक प्रतिष्ठित परिवार से था. थानाप्रभारी के पूछताछ करने पर उस ने बताया कि अंशु से उस की केवल दोस्ती थी. शादी की बात एकदम झूठी है. थानाप्रभारी ने राघव को वह फोटो दिखाया, जिस में वह अंशु की मांग भर रहा था. फोटो देख कर राघव बोला, ‘‘सर, मैं और अंशु हरिद्वार घूमने गए थे. वहां हर की पौड़ी के पास स्थित मंदिर में शाम को हम गंगा आरती में शामिल हुए. आरती के बाद पुजारी सभी लोगों को तिलक लगा रहा था. वहां अंशु ने पुजारी के बजाय मुझ से तिलक लगवाया था. उसी समय उस ने अपना मोबाइल पुजारी को दे कर फोटो खिंचवा लिए थे.’’

राघव की बात सुन कर थानाप्रभारी आर.के. नागर ने उस फोटो को एक बार फिर गौर से देखा तो वह फोटो मांग में सिंदूर भरने का नहीं, बल्कि टीका लगाने का था.

राघव ने थानाप्रभारी को बताया कि अंशु ने उस पर जो आरोप लगाए हैं, वे सरासर गलत हैं. असलियत में वह बहुत बड़ी ब्लैकमेलर है. लोगों को अपनी खूबसूरती के जाल में फांस कर वह उन से मोटी रकम वसूलती है, यही उस का धंधा है.

राघव ने यह भी बताया कि अंशु के पिता सीआईएसएफ में दरोगा हैं, जिन की वजह से वह किसी से नहीं डरती. राघव के अनुसार, अंशु उस से अब तक करीब 5 लाख रुपए ले चुकी है. फिलहाल वह उस से 50 लाख रुपए की और डिमांड कर रही है. चूंकि उस ने इतनी बड़ी रकम देने से मना कर दिया था, इसलिए वह दबाव बनाने के लिए इस तरह के झूठे आरोप लगा रही है.

राघव ने अंशु को पैसे देने के कुछ सबूत भी दिखाए. राघव की बातों से केस की तसवीर ही बदलती नजर आने लगी. एसपी (सिटी) ने राघव द्वारा बताई गई बातें एसएसपी को बताईं तो उन्हें भी लगा कि अंशु शातिर किस्म की महिला है.

एसपी (सिटी) ने जांच कर के सबूतों के साथ दोषी के खिलाफ काररवाई करने को कहा. इधर एसपी (सिटी) ने राघव को यह कह कर घर भेज दिया कि वह पुलिस को बिना बताए शहर से बाहर न जाए. जांच में उस की कभी भी जरूरत पड़ सकती है.

इस सब से शिकायतकर्ता अंशु ही शक के दायरे में आ गई थी. लेकिन थानाप्रभारी उस के खिलाफ जल्दबाजी में कोई काररवाई नहीं करना चाहते थे. उन्होंने अंशु के बारे में जानकारी जुटानी शुरू कर दी.

शुरुआती तफ्तीश में उन्हें अंशु के बारे में कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिलीं. पता चला कि उस के संबंध उत्तर प्रदेश पुलिस के एक सिपाही के साथ भी थे. उस के साथ वह 2 बार रंगेहाथों पकड़ी जा चुकी थी. मुरादाबाद के ही पंडित नगला के रहने वाले एक शख्स से भी उस ने 10 लाख रुपए ऐंठने की कोशिश की थी.

अंशु के बारे में पुलिस को एक के बाद एक नई जानकारियां मिल रही थीं. इन बातों से पुलिस को भी यही लग रहा था कि अंशु एक बेहद शातिर महिला है, जो पति से अलग रहती है और पैसे वालों से दोस्ती कर के उन्हें ब्लैकमेल करती है.

उच्चाधिकारियों के आदेश पर पुलिस अंशु को पूछताछ के लिए थाने ले आई. उस ने राघव के खिलाफ जो तहरीर दी थी, उसी के बारे में पूछताछ की गई तो वह यही कहती रही, ‘‘राघव ने मेरा शारीरिक और मानसिक शोषण कर के मुझे धोखा दिया है. अब वह शादी करने की बात से मुकर रहा है.’’

अंशु के बारे में थानाप्रभारी को जो सूचनाएं मिली थीं, उन के बारे में उन्होंने महिला पुलिस की मौजूदगी में सवाल किए तो उस के चेहरे का रंग उड़ गया. अपनी सच्चाई सामने आने पर वह थानाप्रभारी पर हावी होने की कोशिश करने लगी. इतना ही नहीं, उस ने धमकी भी दी कि अगर उन्होंने राघव के खिलाफ काररवाई नहीं की तो वह इस की शिकायत एसएसपी से करेगी.

चूंकि थानाप्रभारी आर.के. नागर को अंशु के बारे में काफी जानकारियां मिल चुकी थीं, इसलिए उन्होंने उसे वह फोटो दिखाते हुए कहा, ‘‘इस फोटो को ध्यान से देखो. इस में राघव तुम्हारे माथे पर टीका लगा रहा है न कि तुम्हारी मांग भर रहा है. राघव का कहना है कि वह तुम्हें 5 लाख रुपए दे चुका है और तुम अब भी उस से मोटी रकम की डिमांड कर रही हो.’’

‘‘यह बात सरासर गलत है. मैं ने उस से कुछ नहीं लिया.’’ अंशु बोली.

‘‘तो फिर जिस स्कूटी पर तुम घूमती हो, वह किस ने खरीदवाई है? उस की किस्तें कौन दे रहा है?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

यह सुन कर अंशु चुप हो गई. एक के बाद एक उस के झूठ की परतें खुलने लगीं. उन्होंने उसी समय उस के सामने अखबार की वह कटिंग रख दी, जिस में एक सिपाही के साथ उस के रंगेहाथों पकड़े जाने की खबर छपी थी. खबर देख कर अंशु ने अपनी नजरें झुका लीं. कुछ देर पहले तक जो अंशु पुलिस पर हावी होने की कोशिश कर रही थी, अब वही भीगी बिल्ली की तरह सहम गई.

‘‘देखिए मैडम, हमें तुम्हारे बारे में एटूजेड जानकारी मिल चुकी है. बेहतर यही होगा कि सारी सच्चाई तुम खुद ही बता दो, वरना सच्चाई उगलवाने के हमारे पास और भी तरीके हैं.’’

अंशु को लगा कि अब उस का झूठ चलने वाला नहीं है. इसलिए उस ने पुलिस को सच्चाई बताना उचित समझा. वह थानाप्रभारी के सामने गिड़गिड़ाते हुए बोली, ‘‘सर, मुझे माफ कर दीजिए. ऐसी गलती अब कभी नहीं करूंगी.’’

इस के बाद उस ने थानाप्रभारी आर.के. नागर को एकएक कर के सारी बातें बता दीं. उस की बातों से उस के जीवन की जो हकीकत निकल कर आई, वह इस प्रकार थी—

रेनू सागर उर्फ अंशु मूलरूप से मुरादाबाद के लाइनपार इलाके में चाऊ की बस्ती में रहती थी. इस के पिता सीआईएसएफ में सबइंसपेक्टर थे, जो इस समय हैदराबाद में तैनात हैं. अंशु ने शहर के ही हिंदू कालेज से बीए पास किया था. उसी के साथ प्रमोद कुमार का एक लड़का पढ़ता था, जो शहर के काजीपुरा मोहल्ले में रहता था. दोनों एक ही जाति के थे, इसलिए उन की आपस में अच्छी दोस्ती हो गई थी.

चूंकि अंशु खूबसूरत थी, इसलिए कालेज में और भी लड़कों से उस की दोस्ती हो गई थी. लेकिन उस की सब से ज्यादा घनिष्ठता प्रमोद के साथ ही थी. धीरेधीरे उन दोनों को एकदूसरे से प्यार हो गया. बीए करने के बाद दोनों ने कालेज छोड़ दिया था, पर फोन पर बातें होती रहती थीं. समयसमय पर वे मिलते भी रहते थे. इतना ही नहीं, उन्होंने शादी करने का फैसला भी कर लिया था.

उसी दौरान प्रमोद की सरकारी नौकरी लग गई. वह सिंचाई विभाग में नलकूप औपरेटर बन गया. अंशु बोल्ड स्वभाव की थी, इसलिए उस ने प्रमोद से शादी करने वाली बात अपनी मां को बता दी थी. बेटी के फैसले पर मां तुरंत मोहर कैसे लगा सकती थी. उन्होंने नौकरी पर तैनात पति से इस बारे में बात की. उन्होंने कह दिया कि जब अंशु अपने पसंद के लड़के से शादी करना चाहती है तो उस लड़के के बारे में जानकारी ले लो. सब कुछ ठीक होगा तो शादी करने में क्या हर्ज है.

अंशु की मां ने अपने जानकारों के माध्यम से प्रमोद के बारे में जानकारियां निकलवाईं तो पता चला कि उस का परिवार बेहद सीधासादा है. उस के पिता जगदीश सरकारी विभाग में ड्राइवर थे. प्रमोद भी सुंदर और हृष्टपुष्ट था. कुल मिला कर प्रमोद उन की बेटी के हिसाब से बहुत अच्छा तो नहीं था, पर ठीक था. बेटी की खुशी को देखते हुए उस के घर वाले राजी हो गए. दोनों परिवारों की रजामंदी के बाद सन 2005 में सामाजिक रीतिरिवाज से अंशु और प्रमोद की शादी हो गई.

चूंकि दोनों की शादी उन की मरजी से हुई थी, इसलिए दोनों बहुत खुश थे. समय का चक्र अपनी गति से घूमता रहा और अंशु 2 बच्चों की मां बन गई. शादी के बाद अंशु घर में कैद हो कर रह गई, जबकि वह आजाद पंछी की तरह रहने वाली महिला थी. घर में कैद हो कर रहना उसे अच्छा नहीं लग  रहा था. दूसरे पति की नौकरी भी उसे मामूली लगने लगी थी. उसे शौपिंग और घूमनेफिरने का शौक था. बच्चे बडे़ हो चुके थे. पति जब ड्यूटी पर चला जाता, तब वह अकेली ही घूमने निकल जाती.

अंशु के पिता के घर से कुछ दूर रंजीत सिंह चौहान नाम का एक सिपाही किराए पर रहता था. उस की पोस्टिंग शहर के ही थाना गलशहीद में थी. वैसे वह मूलरूप से अमरोहा जिला के कस्बा हसनपुर का रहने वाला था. रंजीत के साथ अंशु के अवैध संबंध बन गए. पति के ड्यूटी पर जाने के बाद वह रंजीत के साथ घूमतीफिरती. ससुराल वालों को उस ने बता रखा था कि वह एक प्रौपर्टी डीलर के यहां नौकरी करती है.

अंशु के बातव्यवहार से उस के पति प्रमोद को उस पर शक होने लगा, पर उस की इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह अंशु से इस बारे में कुछ पूछ पाता. बहरहाल, अंशु सिपाही रंजीत के साथ खूब मौजमस्ती करती. रंजीत भी 2 बच्चों का पिता था. छुट्टी के दिन भी वह अपने घर नहीं जाता था. पत्नी घर आने को कहती तो वह उस से छुट्टी न मिलने का बहाना बना देता था.

एक बार की बात है. रंजीत ने करवाचौथ के त्यौहार पर गांव जाने के लिए थाने से छुट्टी ली थी, लेकिन वह पत्नी के पास जाने के बजाय मुरादाबाद में अपने कमरे पर ही रहा. क्योंकि उस दिन उसे अपनी प्रेमिका अंशु के साथ रहना था. उधर घर पर रंजीत की पत्नी उस के आने का इंतजार कर रही थी. जब वह करवाचौथ के मौके पर भी घर नहीं पहुंचा तो उस की पत्नी हसनपुर से मुरादाबाद चली आई. उस ने पति का कमरा देखा ही था. वह चाऊ की बस्ती में उस के कमरे पर पहुंच गई.

रंजीत के कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. खटखटाने के बाद अधनंगे पति ने दरवाजा खोला तो सामने पत्नी को देख कर उस के होश उड़ गए. वह कमरे में घुसी तो बैड पर अंशु लेटी थी. पति को किसी दूसरी महिला के साथ रंगेहाथ पकड़ने के बाद पत्नी का खून खौल उठा. उस ने वहीं पर दोनों को खरीखोटी सुनानी शुरू कर दी.

शोरशराबा सुन कर पड़ोसी और अन्य लोग आ गए. उसी दौरान किसी ने फोन कर के पुलिस को जानकारी दे दी. पुलिस मौके पर पहुंच गई, पर जब पता चला कि रंजीत भी उत्तर प्रदेश पुलिस में है तो वहां आए पुलिस वालों ने मामला वहीं पर निपटाने की कोशिश की.

लेकिन रंजीत की पत्नी नहीं मानी, वह अंशु के खिलाफ काररवाई कराना चाहती थी. बात बढ़ने पर पुलिस रंजीत और अंशु को थाने ले गई. मामला तत्कालीन एसएसपी लव कुमार के कानों तक पहुंचा तो उन्होंने रंजीत कुमार को तुरंत बर्खास्त कर दिया.

थाने में अंशु के ससुराल वाले भी पहुंच गए थे. अंशु की वजह से उन की काफी बदनामी हो रही थी. अंशु ने पति और ससुराल वालों से अपने किए की मांफी मांग ली. उन्होंने भी पहली गलती मान कर उसे माफ कर दिया. प्रमोद उसे अपने साथ ले गया.

इस घटना के कुछ दिनों बाद तक अंशु और रंजीत ने एकदूसरे से दूरी बनाए रखी. इस से प्रमोद को लगा कि अंशु को वाकई अपनी गलती पर पश्चाताप हुआ है. अंशु एक प्रौपर्टी डीलर के यहां नौकरी करती थी. प्रमोद उसे अपनी बाइक से उस के औफिस के नजदीक छोड़ आता था. इस के बाद अपनी ड्यूटी के लिए निकल जाता था. शाम को अंशु अकेली ही घर लौटती थी.

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अंशु और रंजीत चौहान में से किसी का भी मन नहीं लग रहा था. दोनों ही एकदूसरे को अब भी जीजान से चाहते थे. सावधानी बरतते हुए उन्होंने फिर से फोन पर बातचीत करनी शुरू कर दी. बातचीत शुरू हुई तो उन्होंने चोरीछिपे मिलना भी शुरू कर दिया. अंशु ने रंजीत के कमरे पर जाना बंद कर दिया था. वहां के बजाय वे होटल वगैरह में मिल लेते थे. होटल में मिलना दोनों को सुरक्षित लगता था. इस तरह उन का पुराना सिलसिला फिर चल निकला. अंशु पति और ससुराल वालों की आंखों में धूल झोंक कर अपने प्रेमी रंजीत के साथ मौजमस्ती करती थी.

इसी दौरान अंशु ने प्रमोद को बताया कि रामगंगा विहार स्थित एक होटल में बतौर रिसैप्शनिस्ट उस की नौकरी लग गई है. इस के बाद प्रमोद सुबह उसे बाइक से रामगंगा विहार में सोनकपुर स्टेडियम के पास छोड़ने लगा. यह उस का रोज का काम था.

10 नवंबर, 2013 को भी प्रमोद ने ऐसा ही किया. उस दिन पत्नी को बाइक से उतारने के बाद वह वहां से गया नहीं, बल्कि देखने लगा कि आखिर वह जाती कहां है. अंशु कुछ दूर जा कर एक जगह खड़ी हो गई. प्रमोद ओट में छिप कर उस पर नजर रखे हुए था. 3-4 मिनट बाद प्रमोद ने देखा कि अंशु के पास एक मोटरसाइकिल आ कर रुकी. उस पर रंजीत सवार था.

अंशु रंजीत की मोटरसाइकिल पर बैठ गई. यह देख कर प्रमोद को पत्नी पर बहुत गुस्सा आया. वह सोचने लगा कि हमने तो इसे माफ कर दिया था, पर इस ने अपनी आदत नहीं बदली. बहरहाल, वह टाइम ज्यादा सोचने का नहीं था. प्रमोद यह जानना चाहता था कि अब वे दोनों कहां जाएंगे? लिहाजा उस ने भी फटाफट अपनी मोटरसाइकिल स्टार्ट की और काफी दूरी बना कर रंजीत का पीछा करने लगा.

रंजीत और अंशु रामगंगा विहार स्थित रीगल होटल में चले गए. प्रमोद उन के होटल में जाने का मकसद समझ गया. इसलिए वह रामगंगा विहार स्थित पुलिसचौकी पहुंच गया. प्रमोद ने पत्नी के चरित्र की बात चौकीइंचार्ज को बता कर कहा कि इस से पहले भी वह इसी रंजीत के साथ एक बार रंगेहाथ पकड़ी जा चुकी है.

प्रमोद की शिकायत पर रामगंगा विहार पुलिस ने रीगल होटल में छापा मार कर अंशु और रंजीत को रंगेहाथों पकड़ लिया. पुलिस दोनों को पुलिसचौकी ले आई. वहीं पर दोनों के घर वालों को भी बुला लिया गया. बर्खास्त सिपाही रंजीत की पत्नी ने पुलिस चौकी में ही अपने पति को खूब खरीखोटी सुनाई. एक बार उस ने खुद उसे अंशु के साथ रंगेहाथों पकड़ा था, अब दूसरी बार वह उसी के साथ फिर पकड़ा गया था.

बेटी के कुकृत्य की वजह से अंशु के घर वाले भी अपमान सह रहे थे. बहरहाल, पुलिस ने मामला रफादफा कर के दोनों को उन के घर वालों को सौंप दिया. चूंकि अंशु पति की शिकायत पर ही पकड़ी गई थी, इसलिए पति उसे सब से बड़ा दुश्मन नजर आने लगा. ससुराल के बजाय वह मायके चली गई. इस के कुछ दिनों बाद अंशु ने पति और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया, जिस में प्रमोद और उस के मातापिता को जेल जाना पड़ा था.

रंजीत अपनी नौकरी से बर्खास्त तो था ही, वह हसनपुर स्थित अपने घर चला गया. उस की पत्नी का उस से विश्वास उठ चुका था. इसलिए वह उस पर पैनी नजर रखने लगी. उधर 2-2 बार रंगेहाथों पकड़ी जाने के बाद भी अंशु नहीं सुधरी. उस की दाल रंजीत के साथ गलने का मौका नहीं मिला तो उस ने दूसरे लोगों के साथ संबंध बना लिए.

इसी दौरान उस ने मुरादाबाद के ही करुला मोहल्ले के रहने वाले व्यवसाई तैयब अली को अपने रूप जाल में फंसा लिया. बताया जाता है कि अंशु ने तैयब अली को ब्लैकमेल करते हुए 10 लाख रुपए की मांग की, साथ ही पैसे न देने पर रेप के आरोप में फंसाने की धमकी दी. इतना ही नहीं, उस ने यह भी कहा कि वह उसे पूरे इलाके में बदनाम कर देगी.

डर की वजह से तैयब ने 28 मार्च, 2016 को 5 लाख रुपए का एक चैक काट कर उसे दे दिया. वह चैक 30 मार्च को डिशआर्डर हो गया तो बौखलाई अंशु ने वकीलों से सलाहमशविरा कर के तैयब अली के खिलाफ प्लौट दिलाने के नाम पर 5 लाख रुपए हड़पने का केस डाल दिया, जो अदालत में विचाराधीन है.

जब किसी महिला के कदम बाहर निकल जाते हैं तो उस से घर में नहीं बैठा जाता. अंशु का भी यही हाल था. एक तरह से वह घाटघाट का पानी पी चुकी थी. अब वह नएनए शिकार की तलाश में लगी रहती थी. उस ने दिल्ली रोड स्थित मौड्यूलर किचन तैयार करने वाली एक फर्म में नौकरी कर ली. यह फर्म किचन डिजाइनिंग का काम करती थी. सन 2015 में राघव शर्मा से उस की मुलाकात इसी फर्म में हुई थी.

राघव शर्मा मूलरूप से संभल जिले के देहरी गांव का रहने वाला था. वहीं पर उस का राममूर्ति देवी इंटर कालेज है. स्कूल के अलावा राघव मेंथा तेल का व्यवसाय करता था. उस के पिता सतेंद्र शर्मा शिक्षा विभाग में स्टैनोग्राफर हैं, जिन की तैनाती मुरादाबाद जिले में है. राघव का मुरादाबाद के प्रेमनगर में अपना मकान है. वह प्रेमनगर में रह रहा था.

राघव के एक दोस्त का मुरादाबाद में मकान बन रहा था. उसे अच्छे डिजाइन वाली मौड्यूलर किचन बनवानी थी. 27 मार्च, 2016 को राघव अपने दोस्त के साथ दिल्ली रोड स्थित के. इंटरनेशनल नाम के शोरूम पर पहुंचा. अंशु वहीं नौकरी करती थी. अंशु ने राघव और उस के दोस्त को मौड्यूलर किचन वाली एलबम दिखाई, जिस में से उन्होंने एक डिजाइन पसंद कर लिया. मौड्यूलर किचन बनाने का और्डर दे कर दोनों दोस्त वहां से चले गए.

वह शोरूम से बाहर निकले ही थे कि पीछे से अंशु ने आवाज दी, ‘‘एक्सक्यूज मी.’’

राघव ने पीछे मुड़ कर देखा तो वह वही खूबसूरत युवती थी, जिस ने मौड्यूलर किचन की एलबम दिखाई थी. राघव ने मुसकरा कर पूछा, ‘‘जी कहिए मैडम.’’

‘‘सर, मैं यह पूछना चाहती थी कि आप के दोस्त ने तो किचन का और्डर दे दिया, आप नहीं बनवाएंगे क्या?’’ अंशु बोली.

‘‘मैडम, अभी तो मेरी शादी भी नहीं हुई है. मकान बनवा रहा हूं. जैसे ही बन जाएगा, आप को सेवा का मौका जरूर दूंगा.’’ राघव ने कहा.

‘‘ठीक है सर, आप अपना मोबाइल नंबर दे दीजिए, मैं आप से इस बारे में बात करती रहूंगी.’’

खूबसूरत युवती को फोन नंबर देने पर राघव ने कोई ऐतराज नहीं किया और खुशीखुशी उसे अपना मोबाइल नंबर दे कर निकल गया. घर पहुंचने के बाद खूबसूरत अंशु का चेहरा और मधुर बातें राघव के जेहन में घूमती रहीं.

करीब 15 दिनों बाद राघव के मोबाइल पर अंशु का फोन आया, ‘‘सर, क्या आप मुझे भूल गए.’’

अंशु की आवाज सुनते ही उस का मुसकराता हुआ खूबसूरत चेहरा राघव के जेहन में घूम गया. वह बोला, ‘‘नहीं मैडम, आप को भला कोई कैसे भूल सकता है. थोड़ा बिजनैस में बिजी हो गया था, इसलिए बात करने का ध्यान नहीं रहा.’’

‘‘सर, मैं यह कह रही थी कि आप किचन  बनवाएं या न बनवाएं, पर फोन पर तो बात कर ही सकते हैं.’’ वह बोली.

इस के बाद उन दोनों के बीच काफी देर तक बात हुईं. फिर तो आए दिन बातों का सिलसिला शुरू हो गया. धीरेधीरे दोनों अनौपचारिक होते गए. इसी दौरान अंशु ने राघव को बताया, ‘‘मेरे साथ घटी एक घटना की वजह से मैं टूट चुकी हूं. दरअसल, मैं एक लड़के से प्यार करती थी, फिर हमारी बात शादी तक जा पहुंची. वह शादी करने का वादा करता रहा. पर मुझे दुख उस दिन हुआ, जब उस लड़के ने किसी दूसरी लड़की से शादी कर ली. इस का मुझे गहरा आघात पहुंचा, पर आप से बात करने के बाद मुझे बड़ा सहारा मिला है.’’

राघव अंशु और उस की बातों में दिलचस्पी लेने लगा था. 31 मार्च को राघव और अंशु रामगंगा विहार स्थित वेव मौल घूमने गए. वहां पहले दोनों ने फिल्म देखी, वहीं रेस्टोरेंट में खाना वगैरह खाने के बाद राघव ने उसे हजारों रुपए की शौपिंग भी कराई. इस के बाद अंशु ने राघव को पूरी तरह से अपने जाल में फांस लिया.

एक दिन अंशु ने उस से कहा, ‘‘देखो राघव, मेरे पापा तो नौकरी की वजह से बाहर रहते हैं. घर पर मैं और मां भाई के साथ रहती हूं. अगर किसी जानकार ने हम दोनों को साथ देख लिया तो मेरे घर वालों के अलावा तुम्हारी भी बदनामी होगी. ऐसा करो, मुझे कहीं किराए पर एक कमरा दिलवा दो, जहां हम दोनों मिल लिया करेंगे.’’

अंशु की यह सलाह राघव को अच्छी लगी. उस ने लाइन पार क्षेत्र के सूर्यनगर में जीत सिंह का मकान किराए पर ले लिया. राघव अब अकसर अंशु के पास कमरे पर ही रहता. उन दोनों की गतिविधियों पर मोहल्ले वालों को शक हुआ तो उन के विरोध के कारण उन्होंने वह मकान खाली कर दिया. इस की जगह राघव ने पौश कालोनी मानसरोवर में अपने दोस्त नितिन का मकान किराए पर ले लिया.

राघव अंशु का पूरा खर्च उठाता था. उस ने उस के लिए इनवर्टर तक लगवा दिया था. अंशु राघव पर कोर्टमैरिज के लिए दबाव डाल रही थी, पर राघव उस की बात टाल जाता था. इसी बीच अंशु की इच्छा पर राघव ने उसे स्कूटी खरीद कर दी. उस की किस्तें वह खुद जमा कर रहा था. शादी की बात को ले कर उन के बीच विवाद बढ़ता जा रहा था. राघव उस पर करीब 5 लाख रुपए खर्च कर चुका था.

अंशु के कहने पर 4 जनवरी, 2017 को राघव उसे ले कर हरिद्वार पहुंचा. दोनों एक होटल में ठहरे, हरिद्वार में हर की पौड़ी पर शाम को रोजाना गंगा आरती का आयोजन होता है. अंशु और राघव भी उस आरती में शामिल हुए.

यहीं पर अंशु एक खतरनाक साजिश रचने जा रही थी, जिस का राघव को आभास तक नहीं हुआ. आरती के बाद पुजारी सभी को टीका लगा रहा था. जैसे ही अंशु का नंबर आया, उस ने पुजारी से कहा, ‘‘पंडितजी, मेरा टीका यह लगा देंगे. आप मेरे मोबाइल से हम दोनों का फोटो खींच दीजिए.’’

पुजारी ने फोटो खींचने के लिए अंशु का मोबाइल ले लिया. अंशु ने राघव से कहा, ‘‘तुम मेरा टीका मांग के पास लगाना.’’

टीका लगाते हुए अंशु ने फोटो खिंचवा लिए. यही नहीं, राघव का हाथ अपनी मांग के पास रख कर भी अंशु ने फोटो खिंचाए.

राघव अंशु की साजिश से अभी अनजान था. मुरादाबाद पहुंचने पर अंशु ने राघव पर शादी करने के लिए फिर दबाव बनाया, पर राघव टाल गया. राघव का कहना है कि एक दिन अंशु ने उस से 50 लाख रुपए मांगे. इतनी बड़ी रकम देने से जब उस ने इनकार कर दिया तो उस ने रेप के आरोप में फंसाने की धमकी दी. इस धमकी के बाद राघव को अंशु के असली रूप का पता चल गया.

जब राघव ने पैसे नहीं दिए तो अंशु ने अपने परिचित वकीलों से बात की. इस के बाद उस ने एसएसपी से मिल कर राघव पर रेप आदि के आरोप लगाए और उस के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने की मांग की.

अंशु उर्फ रेनू सागर से पूछताछ कर के थानाप्रभारी आर.के. नागर ने उस के खिलाफ भादंवि की धारा 420/384 और 406 के अंतर्गत केस दर्ज कर उसे 3 जुलाई, 2017 को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे मुरादाबाद के जिला कारागार में भेज दिया गया. अंशु की 5 साल की बेटी अपने पिता प्रमोद के साथ रह रही है और 11 साल का बेटा, जो उसी के साथ रह रहा था, उस की मां के पास है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेम कहानी का दर्दनाक अंत

29 जुलाई, 2017 की रात साहिल उर्फ शुभम वोल्वो बस पकड़ कर लखनऊ से जौनपुर जा रहा था. उस के साथ उस का भाई सनी भी था. रात गहराते ही बस की लगभग सभी सवारियां सो गई थीं. रात 2 बजे फोन की घंटी बजी तो साहिल की आंखें खुल गईं. उस ने मोबाइल स्क्रीन देखी, नंबर उस की भाभी शिवानी का था. उस ने जैसे ही फोन रिसीव कर के कान से लगाया, दूसरी ओर से शिवानी ने रोते हुए कहा, ‘‘साहिल, राहुल अब नहीं रहा. मैं भी उस के बिना नहीं रह सकती.’’

‘‘कैसे, क्या हुआ, कहां है राहुल?’’ साहिल ने परेशान हो कर पूछा.

‘‘राहुल ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली है. वह परदे की रस्सी बना कर उसी से लटक गया है.’’ शिवानी ने रोतेरोते कहा.

उस समय साहिल लखनऊ से काफी दूर बस में था. वह खुद कुछ कर नहीं सकता था, इसलिए वह सोचने लगा कि शिवानी की मदद कैसे की जाए. एकाएक उस की समझ में कुछ नहीं आया तो उस ने कहा, ‘‘भाभी, आप जल्दी से राहुल भैया को उतारिए.’’

‘‘साहिल, मैं हर तरह से कोशिश कर चुकी हूं, पर उतार नहीं पाई. मैं ने घर से बाहर जा कर कालोनी वालों को आवाज भी लगाई, पर कोई भी मेरी मदद के लिए नहीं आया. अब तुम्हीं बताओ मैं क्या करूं. मैं राहुल के बिना कैसे रहूंगी?’’ शिवानी ने रोते हुए साहिल से मदद मांगी.

‘‘भाभी, मैं तो लखनऊ से बहुत दूर हूं. आप एक काम करें, वहीं मेज पर लाइटर रखा होगा, आप उस से परदे की गांठ में आग लगा दीजिए, परदा जल कर टूट जाएगा. आप इतना कीजिए, तब तक मैं मदद के लिए किसी से बात करता हूं.’’

कह कर साहिल ने फोन काट दिया. इस के बाद उस ने अपने कुछ दोस्तों को फोन किए, पर किसी से बात नहीं हो सकी. इस के बाद उस ने लखनऊ पुलिस को फोन किया. उस वक्त रात के करीब ढाई बजे थे. लखनऊ पुलिस को फोन कर के साहिल ने बताया कि उस का भाई राहुल और भाभी शिवानी विनयखंड, गोमतीनगर के मकान नंबर 3/137 में रहते हैं, जो होटल आर्यन के पास है. उस के भाई को कुछ हो गया है. वह जौनपुर से विधायक और एक बार सांसद रह चुके कमला प्रसाद सिंह का पोता है.

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कमला प्रसाद सिंह की जौनपुर में अच्छी साख थी. वह 2 बार जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुके थे. जमुई में उन का इंटर कालेज भी है. उन के 2 बेटे विनय और अनिल हैं. राहुल अनिल का बड़ा बेटा था. पुलिस को जैसे ही पता चला कि विधायक और सांसद रहे कमला प्रसाद सिंह के घर का मामला है तो पुलिस तुरंत हरकत में आ गई.

पुलिस की पीआरवी टीम के कमांडर रामनरेश गौतम सबइंसपेक्टर सुशील कुमार और ड्राइवर निहालुद्दीन के साथ विनयखंड पहुंच कर आर्यन होटल के पास मकान नंबर 3/137 खोजने लगे. रात का समय था, कालोनी में सन्नाटा पसरा था, इसलिए मकान मिल नहीं रहा था.  पुलिस को फोन करने के बाद साहिल ने शिवानी को फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद हो चुका था. साहिल ने इस बात की जानकारी घर वालों को भी दे दी थी. जैसे ही घर वालों को इस घटना का पता चला, उन्होंने शिवानी को फोन करने शुरू कर दिए. लेकिन तब तक शिवानी का फोन बंद हो चुका था. इस से सब परेशान हो गए.

साहिल ने एक बार फिर पुलिस को फोन किया. पुलिस ने बताया कि वे मकान तलाश रहे हैं, लेकिन मकान मिल नहीं रहा है. इस पर साहिल ने कहा, ‘‘मेरे मकान का दरवाजा खुला होगा, क्योंकि भाभी ने बताया था कि वह दरवाजा खोल कर बाहर आई थीं.’’

जैसे फिल्मों और क्राइम सीरियलों में पुलिस समय पर नहीं पहुंचती, उसी तरह यहां भी हुआ. उधर साहिल से बात करने के बाद शिवानी ने अपना मोबाइल फोन बंद कर लिया था. वह लाइटर से परदे को जला रही थी, तभी राहुल की गरदन में फंसा फंदा खुल गया और वह नीचे गिर गया. उस के शरीर में कोई हरकत होती न देख शिवानी परेशान हो गई. उसे समझते देर नहीं लगी कि राहुल मर गया है.

पति को मरा देख कर वह वहां रखी प्लास्टिक की कुरसी पर चढ़ गई और परदे के दूसरे छोर में फंदा बना कर गले में डाला और पैर से कुरसी गिरा दी. इस के बाद वह भी लटक गई. थोड़ी देर पहले जो हाल राहुल का हुआ था, वही हाल शिवानी का भी हुआ. इस तरह पुलिस के पहुंचने से पहले ही उस ने भी मौत को गले से लगा लिया.

आखिरकार पुलिस तलाश करती हुई उस घर तक पहुंच गई, जिस का मेनगेट और दरवाजा खुला था. पुलिस ने खिड़की से झांक कर देखा तो पता चला कि एक औरत रस्सी से लटक रही थी और एक पुरुष की लाश फर्श पर पड़ी थी. पुलिस ने कमरे के दरवाजे को धक्का दिया तो वह खुल गया.

मामला एक सांसद के परिवार का था. इसलिए मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने तत्काल एएसपी (उत्तरी) अनुराग वत्स, सीओ (गोमतीनगर) दीपक कुमार सिंह, थाना गोमतीनगर के थानाप्रभारी विश्वजीत सिंह को भी इस घटना की सूचना दे दी. उस समय सभी अधिकारी गश्त पर थे, इसलिए सूचना मिलते ही घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने जल्दी से लाश उतार कर फर्श पर लेटा दी. पुलिस की गाड़ी देख कर कालोनी वाले भी इकट्ठा होने लगे थे. पुलिस को उन से पूछताछ में पता चला कि ज्यादातर यह मकान खाली ही रहता था. कभीकभी ही कोई उस में रहने आता था. इसलिए आसपास रहने वालों से उन लोगों का कोई खास संबंध नहीं था. आमनेसामने पड़ जाने पर दुआसलाम जरूर हो जाती थी.

सांसद के पौत्र और पौत्रवधू की मौत की खबर पा कर पूरी कालोनी में हड़कंप मच गया था. पुलिस ने घर वालों से बातचीत कर के सच्चाई का पता लगाने की कोशिश की. लेकिन कोई ऐसी बात सामने नहीं आई, जिस से आत्महत्या पर शक किया जा सकता. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी स्पष्ट हो गया था कि मामला आत्महत्या का ही है. पोस्टमार्टम के बाद शिवानी और राहुल की लाशें जौनपुर के लाइनबाजार स्थित कमला प्रसाद सिंह के घर पहुंचीं तो वहां हड़कंप मच गया. घर के सभी लोगों का रोरो कर बुरा हाल था. जौनपुर में ही दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

मामले की जांच के लिए पुलिस ने शिवानी और साहिल के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस से भी पहले से दिए गए बयान और हालात मिलते नजर आए. शिवानी और राहुल के बीच दोस्ती कालेज में पढ़ाई के दौरान हुई थी. जल्दी ही यह दोस्ती प्यार में बदल गई थी. उस के बाद दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया.

शिवानी के पिता सेना से रिटायर हो चुके थे. वह लखनऊ के कैंट एरिया में रहते थे. सन 2015 में घर वालों की मरजी से शिवानी और राहुल की शादी हुई थी. राहुल जौनपुर के केराकत इंटर कालेज में क्लर्क था. शादी के बाद राहुल परिवार के साथ जौनपुर में रहता था. वहीं से वह केराकत जा कर अपनी नौकरी करता था.

कभीकभी राहुल लखनऊ भी आता रहता था. लखनऊ में वह जमीन का कारोबार करने लगा था, जिस से उसे अलग से आमदनी होने लगी थी. लखनऊ के विनयखंड स्थित मकान का उपयोग किसी के आनेजाने पर ही होता था. प्राप्त जानकारी के अनुसार, 2 दिन पहले ही राहुल लखनऊ आया था. जबकि शिवानी पहले से अपने मायके में रह रही थी. क्योंकि कुछ महीनों से राहुल और शिवानी के बीच संबंध ठीक नहीं थे.

पढ़ाई के दौरान एकदूसरे पर जान छिड़कने वाले राहुल और शिवानी के बीच कुछ समय से तनाव रहने लगा था. दोनों को एकदूसरे से दूर रहना गंवारा नहीं था, इसलिए पढ़ाई के बाद कैरियर बनाने के बजाय दोनों ने शादी कर ली थी. शादी के बाद राहुल ने जौनपुर के केराकत स्थित एक इंटर कालेज में नौकरी कर ली थी, जिस की वजह से उसे जौनपुर में रहना पड़ रहा था, जबकि शिवानी को वहां रहना पसंद नहीं था. इस बात को ले कर अकसर दोनों में कहासुनी होती रहती थी.

प्यार के बाद दोनों को ही शादी की हकीकत उतनी प्यारी नहीं लग रही थी, जितनी लगनी चाहिए थी. जौनपुर में मन न लगने से शिवानी लखनऊ में अपने मातापिता के यहां रह रही थी. राहुल जब भी लखनऊ आता, विनयखंड के मकान में ही रुकता था. उस के आने पर शिवानी भी आ जाती थी.

राहुल गुस्सैल स्वभाव का था, इसलिए जराजरा सी बात में दोनों के बीच लड़ाई हो जाती थी. शिवानी राहुल को बहुत प्यार करती थी, जिस की वजह से वह उस के गुस्से के बाद भी उस से अलग नहीं रहना चाहती थी. जबकि शिवानी कभी खुद के बारे में सोचती थी तो उसे लगता था कि अपने कैरियर को ले कर उस ने जो सपने देखे थे, वे सब बिखर गए. इसे ले कर वह भी तनाव में रहती थी.

शिवानी अपनी खुद की पहचान बनाना चाहती थी, पर शादी के बाद इस बात का कोई मतलब नहीं रह गया था. उस का यह द्वंद्व उस के संबंधों पर भारी पड़ रहा था. शिवानी राहुल से कभी कुछ कहती तो आपस में बहस के बाद दोनों में लड़ाई हो जाती थी. ऐसे में तनाव कम होने के बजाय और बढ़ जाता था.

29 जुलाई, 2017 की शाम को साहिल उर्फ शुभम अपने चचेरे भाई सनी के साथ राहुल से मिलने विनयखंड स्थित घर पर आया. भाइयों के आने की खुशी में पार्टी हुई, जिस में शराब भी चली. पुलिस को वहां मेज पर सिगरेट का एक खाली पैकेट, एक भरा पैकेट, शराब और बीयर की खाली बोतलें मिली थीं. बैड का बिस्तर भी बेतरतीब था. साहिल और सनी के जौनपुर चले जाने के बाद भी राहुल संभवत: शराब पीता रहा था.

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यह बात शिवानी को अच्छी नहीं लगी होगी. उस ने रोका होगा तो दोनों में बहस होने लगी होगी. नशे में होने की वजह से राहुल को गुस्सा आ गया होगा. इस के बाद शिवानी अपने कमरे में जा कर सो गई होगी. रात में 2 बजे के करीब जब उस की नींद खुली होगी तो उस ने देखा होगा कि राहुल परदे की रस्सी का फंदा बना कर उस में लटका है. पति को उस हालत में देख कर शिवानी की कुछ समझ में नहीं आया होगा. नशे में गुस्से की वजह से राहुल ने यह कदम उठा लेगा, यह शिवानी ने कभी नहीं सोचा था. वह परेशान हो गई होगी.

बहुत सारी शिकायतों के बाद भी शिवानी राहुल के बिना जिंदगी नहीं गुजार सकती थी. शायद यही वजह थी कि उस ने भी उस के साथ मरने का फैसला कर लिया. परदे से बनी जिस रस्सी के फंदे पर लटक कर राहुल ने अपनी जान दी थी, उसी के दूसरे सिरे पर फंदा बना कर शिवानी ने भी लटक कर जान दे दी. साथ जीनेमरने की कसम खाने वाली शिवानी ने अपना वचन निभा दिया.

राहुल और शिवानी की मौत अपने पीछे तमाम सवाल छोड़ गई है. प्यार करना, उस के बाद शादी करना कोई गुनाह नहीं है. प्यार के बाद शादी के बंधन को निभाने के लिए पतिपत्नी के बीच जिस भरोसे, प्यार और संघर्ष की जरूरत होती है, वह राहुल और शिवानी के बीच नहीं बन पाया. लड़ाईझगड़े में जान देने जैसे फैसले मानसिक उलझन की वजह से होते हैं. अगर राहुल ने नशे में यह फैसला नहीं लिया होता तो वह भी आज जिंदा होता और शिवानी भी.

राहुल की मौत के बाद शिवानी ने भी खुद को खत्म कर लिया. उन दोनों के इस फैसले से उन के परिवार वालों पर क्या गुजरेगी, उन दोनों ने नहीं सोचा. इस तरह की मौत का दर्द परिवार वालों को पूरे जीवन दुख देता रहता है. ऐसे में अगर पतिपत्नी के बीच कोई अनबन होती है तो जल्दबाजी में कोई फैसला लेना ठीक नहीं होता.

अपहरण का ऊंचा खेल जिसने सबको हैरान कर दिया

डा. श्रीकांत गौड़ पूर्वी दिल्ली के प्रीत विहार स्थित मैट्रो अस्पताल में नौकरी करते थे. 6 जुलाई, 2017 को वह ड्यूटी पूरी कर प्रीत विहार मैट्रो स्टेशन पर पहुंचे. वहीं से मैट्रो पकड़ कर वह दक्षिणी दिल्ली के गौतमनगर स्थित अपने घर जाते थे. लेकिन उस दिन रात के साढ़े 11 बज चुके थे और आखिरी मैट्रो ट्रेन भी जा चुकी थी. अब घर जाने के लिए औटोरिक्शा या टैक्सी थी. सुरक्षा के लिहाज से उन्होंने टैक्सी से जाना उचित समझा.

उन्होंने गौतमनगर जाने के लिए फोन से ओला कैब बुक की तो कुछ ही देर में ओला कैब प्रीत विहार मैट्रो स्टेशन के पास आ कर खड़ी हो गई. कैब में बैठ कर डा. श्रीकांत ने अपने साथ काम करने वाले डा. राकेश कुमार को फोन कर के बता दिया कि वह ओला कैब से अपने घर जा रहे हैं. डा. राकेश ही उन्हें अपनी कार से प्रीत विहार मैट्रो स्टेशन छोड़ कर गए थे.

अगले दिन 7 जुलाई को डा. श्रीकांत गौड़ अपनी ड्यूटी नहीं पहुंचे तो डा. राकेश ने उन्हें फोन किया. उन का फोन स्विच्ड औफ था. दिन में उन का फोन कभी बंद नहीं रहता था. श्रीकांत को हैल्थ प्रौब्लम या कोई काम होता तो वह अस्पताल में फोन कर देते. लेकिन उस दिन उन का अस्पताल में कोई फोन भी नहीं आया था. डा. राकेश ने उन्हें कई बार फोन मिलाया, लेकिन हर बार फोन बंद मिला.

डा. राकेश को डा. श्रीकांत की चिंता हो रही थी. थोड़ी देर बाद उन्होंने फिर से फोन किया. इस बार उन के फोन पर घंटी बजी तो फोन रिसीव होते ही राकेश ने कहा, ‘‘श्रीकांत भाई, कहां हो, फोन भी बंद कर रखा है. मैं कब से परेशान हो रहा हूं.’’

दूसरी ओर से जो आवाज आई, उसे सुन कर वह चौंके. आवाज उन के दोस्त श्रीकांत के बजाय किसी और की थी. उस ने उन से सीधे बात करने के बजाय गालियों की बौछार कर दी. राकेश ने उस से पूछना चाहा कि कौन बोल रहे हैं और इस तरह बात क्यों कर रहे हैं तो उस ने फोन काट दिया.

उस आदमी की टपोरी जैसी बातों से डा. राकेश को लगा कि श्रीकांत कहीं गलत लोगों के चंगुल में तो नहीं फंस गए हैं? उन्होंने यह बात अपने साथियों को बताई तो उन्हें भी लगा कि डा. श्रीकांत किसी मुसीबत में फंस गए हैं. उन सब की सलाह पर डा. राकेश ने थाना प्रीत विहार जा कर थानाप्रभारी मनिंदर सिंह को सारी बात बताई तो थानाप्रभारी ने 29 वर्षीय डा. श्रीकांत गौड़ की गुमशुदगी दर्ज कर इस की जांच एएसआई तेजवीर सिंह को सौंप दी.

एएसआई तेजवीर सिंह ने इस मामले में वह सारी काररवाई की, जो गुमशुदगी के मामले में की जाती है. 7 जुलाई को ओला कैब के कस्टमर केयर पर सुबह 4 बजे के करीब किसी ने फोन कर के कहा, ‘‘मैं ने आप के एक कस्टमर का अपहरण कर लिया है, आप अपने मालिक से बात कराइए.’’

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कस्टमर केयर की जिस युवती ने काल रिसीव की थी, एक बार तो वह असमंजस में पड़ गई कि पता नहीं यह कौन है, जो सुबहसुबह इस तरह की बात कर रहा है. उस ने सोचा कि फोन करने वाला नशे में होगा, जो इस तरह की बात कर रहा है. इसलिए उस ने भी इस बात को गंभीरता से नहीं लिया.

उसी दिन ओला के कस्टमर केयर सैंटर पर उसी व्यक्ति ने एक बार फिर फोन किया, ‘‘मैडम, मैं ओला कैब का ड्राइवर रामवीर बोल रहा हूं. मेरी कैब नंबर डीएल 1आर टीसी 1611 कंपनी में लगी हुई. यह कैब कल रात दिल्ली के डाक्टर ने प्रीत विहार से गौतम नगर के लिए बुक की थी. मैं ने इन का अपहरण कर लिया है. आप का कस्टमर अब मेरे कब्जे में है, अगर इस की सुरक्षित रिहाई चाहती हैं तो मुझे 5 करोड़ रुपए चाहिए.’’

उस व्यक्ति ने अपनी कैब का जो नंबर बताया था, कस्टमर केयर सैंटर कर्मी ने जब उसे चैक किया तो वास्तव में कैब रामवीर कुमार के नाम से ओला कंपनी में लगी थी. कस्टमर केयर एग्जीक्यूटिव ने यह जानकारी अपने अधिकारियों को दे दी. इस के बाद खबर कंपनी की लीगल सेल को दे दी गई. लीगल सेल ने जांच की तो पाया कि 6 जुलाई की रात 11 बज कर 38 मिनट पर रामवीर की कैब डा. श्रीकांत को प्रीत विहार से ले कर चली तो थी, पर डिफेंस एनक्लेव, स्वास्थ्य विहार के पास से उस का जीपीएस डिसकनेक्ट हो गया था.

रामवीर ने कंपनी में अपना मोबाइल नंबर लिखवा रखा था. लीगल सेल के अधिकारियों ने उस का वह नंबर मिलाया तो वह बंद मिला. उस ने कस्टमर केयर सैंटर में जिस नंबर से बात की थी, वह डा. श्रीकांत का था. उन्होंने अपने उसी नंबर से कैब बुक कराई थी. मामला गंभीर था, इसलिए लीगल सेल द्वारा यह जानकारी थाना प्रीत विहार पुलिस को दे दी गई.

थाने में डा. राकेश ने श्रीकांत की गुमशुदगी दर्ज करा दी थी. ओला कंपनी के अधिकारियों से मिली जानकारी के बाद थानाप्रभारी मनिंदर सिंह ने डा. श्रीकांत की गुमशुदगी लिखवाने वाले उन के दोस्त डा. राकेश को थाने बुला लिया. अपने दोस्त के अपहरण की जानकारी पा कर वह सन्न रह गए. पुलिस ने मामले की गंभीरता को देखते हुए अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 365 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया और सूचना डीसीपी ओमबीर सिंह विश्नोई को दे दी.

डीसीपी ओमबीर सिंह विश्नोई ने इस केस को खुलासे के लिए एसीपी हेमंत तिवारी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में थानाप्रभारी मनिंदर सिंह, इंसपेक्टर रूपेश खत्री के अलावा थाने के कई एसआई, हैडकांस्टेबल और कांस्टेबलों को शामिल किया गया.

टीम ने सब से पहले यह पता लगाया कि फिरौती के लिए फोन किन जगहों से किए गए थे? उन की लोकेशन खतौली और मेरठ की मिल रही थी. 2 पुलिस टीमें इन जगहों पर भेज दी गईं. फोन डा. श्रीकांत गौड़ के मोबाइल से किए गए थे और फोन करने के बाद मोबाइल बंद कर दिया जाता था. इसलिए वह मोबाइल फोन कहां है, इस का पता लगाना आसान नहीं था.

रामवीर नाम के जिस ड्राइवर ने डा. श्रीकांत का अपहरण किया था, पता चला कि उस की कैब 2 दिन पहले ही ओला कंपनी में लगी थी और डा. श्रीकांत गौड़ उस की पहली सवारी थे. पुलिस ने ओला कंपनी से उस कैब के सभी कागजात निकलवा कर उन की जांच की. वह वैगनआर कार नंबर डीएल 1 आर टीसी 1611 उत्तरपश्चिमी दिल्ली के शालीमार बाग की रहने वाली विनीता देवी के नाम से खरीदी गई थी.

पुलिस शालीमार बाग के उस पते पर पहुंची तो पता चला कि वहां इस नाम की कोई महिला नहीं रहती थी. यानी कार की मालिक का नामपता फरजी था. कंपनी में विनीता के नाम का पैन कार्ड और महाराष्ट्रा बैंक, इंदिरापुरम (गाजियाबाद) में खुले खाते की पासबुक की फोटोकौपी और चैक भी जमा किए गए थे.

विनीता का पैन कार्ड फरजी पाया गया. बैंक से संपर्क किया गया तो पता चला कि विनीता के नाम से वहां बचत खाता तो था, पर वह कोई दूसरी विनीता थी. उस के पिता का नाम भी दूसरा था. खाताधारी असली विनीता अनपढ़ थी, इसलिए उस के नाम से चैकबुक भी जारी नहीं हुई थी. यानी पहले से ही योजना बना कर सब कुछ फरजी तरीके से किया गया था.

ड्राइवर रामवीर ने अपने जो डाक्यूमेंट्स जमा किए थे, पुलिस ने उन की जांच की. उस के आधार कार्ड और ड्राइविंग लाइसैंस पर मयूर विहार का पता लिखा था. वे दोनों भी फरजी पाए गए.

कागजों में जो फोटो लगे थे, बीट कांस्टेबल उन्हें ले कर मयूर विहार में घूमते रहे, लेकिन कोई भी उसे पहचान नहीं सका. इतना ही नहीं, गाड़ी का परमिट, फिटनेस सर्टिफिकेट, इंश्योरेंस सारी चीजें फरजी पाई गईं. ड्राइवर रामवीर ने कंपनी को अपना जो फोन नंबर दिया था, पुलिस ने उस की भी काल डिटेल्स निकलवाई. पता चला कि वह नंबर भी हाल ही में लिया गया था और उस से उस ने 1-2 लोगों से ही बात की थी. जिन लोगों से उस ने बात की थी, उन से पुलिस ने पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि वे रामवीर को नहीं जानते. न ही उस से कभी उन की मुलाकात हुई. वहां से भी पुलिस खाली हाथ लौट आई.

इतनी माथापच्ची के बाद पुलिस की जांच जहां से शुरू हुई थी, वहीं रुक गई. कागजों की जांच के बाद पुलिस इतना तो जान गई कि अपहर्त्ता बेहद शातिर हैं, उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से वारदात को अंजाम दिया है.

उधर अपहर्त्ता ओला कंपनी के कस्टमर केयर सैंटर में बारबार फोन कर के फिरौती की मांग कर रहे थे. इतना ही नहीं, उन्होंने डा. श्रीकांत की 3 वीडियो भी ओला कंपनी में भेज दीं, जिन में वह खुद को छुड़ाने की विनती कर रहे थे. अपनी साख को देखते हुए ओला कंपनी के अधिकारियों ने फैसला ले लिया कि वह अपने कस्टमर को अपहर्त्ताओं के चंगुल से छुड़ाने के लिए 5 करोड़ रुपए दे देंगे.

जबकि पुलिस इस बात को ले कर परेशान थी कि अपहर्त्ता कहीं डा. श्रीकांत को नुकसान न पहुंचा दें, इसलिए पुलिस ने ओला कंपनी के अधिकारियों से कह दिया कि जब भी अपहर्त्ताओं का फोन आए, वह उन से प्यार से बातें करें.

मामले की गंभीरता को देखते हुए डीसीपी ओमबीर सिंह विश्नोई ने इस मामले में एसीपी अंकित सिंह, राहुल अलवल, इंसपेक्टर संजीव वर्मा, डी.पी. सिंह, विदेश सिंघल, प्रशांत यादव, अजय कुमार डंगवाल, मनीष जोशी और कुछ तेजतर्रार सबइंसपेक्टरों को भी लगा दिया.

एडिशनल डीसीपी साथिया सुंदरम और एन. के. मीणा टीम का नेतृत्व कर रहे थे. डीसीपी के निर्देश पर समस्त पुलिस अधिकारी अलगअलग तरीके से अपहर्त्ताओं का पता लगाने में जुट गए.

पुलिस को यह तक पता नहीं लग पा रहा था कि अपहर्त्ताओं ने डा. श्रीकांत को कहां बंधक बना कर रखा है. क्योंकि वे कभी मुरादनगर से फोन कर रहे थे तो कभी मेरठ से. उन की मूवमेंट हरिद्वार और मुजफ्फरनगर की भी पाई गई. बागपत, बड़ौत, बिजनौर, खतौली आदि जगहों से भी उन्होंने फोन किया था. लिहाजा इन सभी जगहों पर दिल्ली पुलिस की टीमें पहुंच गईं.

डा. श्रीकांत का अपहरण हुए कई दिन हो चुके थे. तेलंगाना में डा. गौड़ के घर वालों को भी अपहर्त्ताओं ने उन के वीडियो भेज दिए थे. उन के रिश्तेदार और परिवार वाले भी दिल्ली पहुंच गए थे. मैट्रो अस्पताल के डाक्टरों के साथ वे भी थाना प्रीत विहार पहुंच गए थे.

डीसीपी मामले की अपडेट पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक को दे रहे थे. अपहर्त्ताओं की काल डिटेल्स आदि से यही लग रहा था कि बदमाश मेरठ रेंज में ही कहीं हैं, इसलिए पुलिस कमिश्नर ने मेरठ रेंज के आईजी से बात की. आईजी ने डाक्टर को रिहा कराने में हर तरह का सहयोग देने का आश्वासन दिया. उन्होंने मेरठ की एसएसपी मंजिल सैनी और एसटीएफ के एसपी आलोक प्रियदर्शी को दिल्ली पुलिस की मदद के लिए लगा दिया.

पुलिस कमिश्नर के आदेश पर स्पैशल सेल के इंसपेक्टर भूषण, उत्तरपूर्वी दिल्ली के वाहन चोर निरोधी दस्ते के इंसपेक्टर विनय यादव, ऐशवीर सिंह, शाहदरा क्षेत्र के एसीपी मनोज पंत भी अपनीअपनी टीम के साथ इस मामले की जांच में लग गए थे. करीब 100 पुलिसकर्मियों की अलगअलग टीमें केस को सुलझाने में लग गईं.

जिस ओला कैब से डाक्टर का अपहरण किया गया था, उस की फोटो गाड़ी के पेपरों के साथ ओला कंपनी के औफिस में जमा थी. उस फोटो को ध्यान से देखा गया तो उस पर तान्या मोटर्स, मेरठ का स्टीकर लगा था.

पुलिस की एक टीम मेरठ स्थित मारुति के डीलर तान्या मोटर्स पर पहुंची. स्टीकर देख कर यही लग रहा था कि वह वैगनआर उसी शोरूम से खरीदी गई होगी. पुलिस टीम ने उस शोरूम से पता किया कि पिछले एकडेढ़ साल में सफेद रंग की कितनी वैगनआर बेची गईं. पता चला कि करीब 700 कारें सफेद रंग की बेची गई थीं. पुलिस ने उन सभी कारों के रजिस्ट्रेशन नंबर हसिल कर लिए. इस बात की पुष्टि हो चुकी थी कि जिस ओला कैब से डाक्टर का अपहरण हुआ था, उस पर फरजी नंबर लगा था. पुलिस को तान्या मोटर्स से जिन सफेद रंग की वैगनआर कारों की डिटेल्स मिली थी, उन में से यह पता लगाना आसान नहीं था कि उन में अपहर्त्ता की कार थी या नहीं?

पुलिस टीम ने सफेद रंग की सभी कारों की लिस्ट ओला कंपनी को देते हुए यह जानकारी मांगी कि पिछले 2 सालों के अंदर इन कारों में से कोई कार ओला में कैब के रूप में लगी थी या नहीं, साथ ही यह भी जानकारी निकलवाई कि इन 700 कारों में से किसी कार को किसी भी वजह से ओला कंपनी से हटाया तो नहीं गया था.

ओला अधिकारियों ने सभी 700 नंबरों को वेरिफाई किया. इस से पता चला कि 12 मार्च, 2017 को एक ड्राइवर सुशील को कस्टमर्स के साथ अभद्र व्यवहार करने, कंपनी के हिसाब में हेराफेरी करने जैसी शिकायतों के चलते कार सहित ओला से हटाया गया था.

पुलिस ने सुशील कुमार का पता मालूम किया तो जानकारी मिली कि वह खतौली मेरठ रोड पर स्थित गांव दादरी का रहने वाला था. एक पुलिस टीम उस के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. पुलिस को जानकारी मिली कि वह वसुंधरा में रहता है. दिल्ली पुलिस की एक टीम तुरंत वसुंधरा में उस का पता लगाने पहुंच गई.

पर वह वहां भी नहीं मिला. मुखबिर द्वारा सुशील के छोटे भाई अनुज का फोन नंबर मिल गया. अब तक दिल्ली पुलिस की टीमें खतौली, हरिद्वार, मुजफ्फरनगर, मेरठ, मीरापुर, बिजनौर, बागपत, बड़ौत आदि जगहों पर पहुंच चुकी थीं. हापुड़ में सुशील की ससुराल थी तो एक टीम हापुड़ में भी तैनात हो गई. पुलिस ने सुशील के भाई अनुज का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा रखा था. पुलिस उस के औन होने का इंतजार कर रही थी.

अपहर्त्ता अभी भी ओला कंपनी के कस्टमर केयर सैंटर पर फोन कर के 5 करोड़ रुपए की फिरौती मांग रहे थे. ओला कंपनी के कारपोरेट प्रेसीडेंट जौय बांदेकर ने 5 करोड़ रुपए पुलिस को दे कर अपने कस्टमर को छुड़ाने की मांग की. अपहर्त्ता वाट्सऐप के अलावा एसएमएस भी कर रहे थे. उन्होंने 5 करोड़ रुपयों के फोटो वाट्सऐप से भेजने को कहा तो पुलिस ने 500-500 रुपए के नोटों के बंडलों की फोटो खींच कर उन्हें भेज दी.

अपहर्त्ताओं ने कहा कि वे यह चिल्लर नहीं लेंगे. उन्होंने 2-2 हजार के नोटों की मांग की. ओला कंपनी के पास उस समय 2-2 हजार के इतने नोट नहीं थे, लिहाजा उन्होंने किसी तरह उन की व्यवस्था की.

15 जुलाई को अपहर्त्ताओं ने कहा कि पैसे कहां पहुंचाने हैं, यह बाद में बताएंगे. उन्होंने यह भी कहा कि रकम मिल जाने के 4-5 घंटे बाद डाक्टर को छोड़ दिया जाएगा. ओला कंपनी के अधिकारी ने इतनी देर बाद रिहा करने की वजह पूछी तो उन्होंने कहा कि फिरौती की रकम को पहले गिनेंगे. इस पर ओला के अधिकरी ने कहा कि भले ही आप डाक्टर को 4 घंटे बाद छोड़ें, पर जब हम रकम पूरी दे रहे हैं तो हमें डाक्टर सुरक्षित चाहिए.

‘‘पैसे पूरे हुए तो डाक्टर भी सुरक्षित मिलेगा.’’ अपहर्त्ता ने कहा.

इस फोन की लोकेशन बागपत के पास की ही थी. पुलिस आयुक्त के निर्देश पर पूर्वी जिले के डीसीपी ओमबीर सिंह विश्नोई टीम के साथ बागपत पहुंच गए. डाक्टर की जान को कोई खतरा न हो, इस के लिए पुलिस फूंकफूंक कर कदम रख रही थी.

16 जुलाई को दोपहर के समय अनुज का फोन औन हुआ तो उस की लोकेशन खतौली की मिली. दिल्ली पुलिस की सूचना पर वहां की लोकल पुलिस और एसटीएफ भी वहां पहुंच गई. तभी दौराला के पास वैगनआर कार दिखाई दी. पुलिस ने उस कार का पीछा किया तो वह कार को दौड़ाते हुए सकौती बाजार की तरफ ले गया.

सादे कपड़ों में पुलिस प्राइवेट गाडि़यों में थी. पुलिस ने उस कार का पीछा किया तो वह तेजी से रेलवे फाटक पार कर गई, जबकि पुलिस भीड़ में फंस गई. रास्ते में कई लोगों को टक्कर लगतेलगते बची. इसी बीच पीरपुर गांव के पास वैगनआर का टायर पंक्चर हो गया तो चालक कार को वहीं छोड़ कर गन्ने के खेत में घुस गया.

कुछ ही देर में वहां भारी तादाद में पीएसी पहुंच गई. पुलिस ने कई घंटे तक वहां कौंबिंग की, लेकिन कार का ड्राइवर पुलिस के हाथ नहीं लगा. पुलिस ने वह कार बरामद कर ली. उस समय उस पर वही नंबर लिखा था, जो ओला के कागजों में दर्ज था. इस के बाद पुलिस ने सुशील के घर वालों और रिश्तेदारों पर दबाव बनाया.

16 जुलाई की रात को पुलिस को मुखबिर से सूचना मिली कि सुशील का एक साथी है प्रमोद, जो मुजफ्फरनगर के मीरापुर गांव में रहता है. उस के पास दिल्ली के नंबर की एक अल्टो कार है. किसी तरह प्रमोद को भनक लग गई थी कि दिल्ली पुलिस इलाके में डेरा डाले हुए है. इसलिए पुलिस के मीरापुर पहुंचने से पहले ही वह घर से फरार हो गया.

17 जुलाई को पुलिस को सुशील के साथी गौरव के बारे में जानकारी मिली, जो मेरठ शहर में सुभारती अस्पताल के पास रहता है. करीब 2 घंटे की मशक्कत के बाद पुलिस ने उस का कमरा ढूंढ लिया. पर वह भी कमरे पर नहीं मिला. लोगों ने बताया कि वह यहां किराए पर रहता था और 2 दिन पहले जा चुका है.

दिल्ली पुलिस की टीमें वहां डेरा जमाए हुए थीं. 19 जुलाई को मुखबिर से पता चला कि प्रमोद मीरापुर के रहने वाले अमित के साथ 3-4 दिनों से घूम रहा है. किसी तरह से अमित पुलिस के हत्थे चढ़ गया. पुलिस ने जब उस से डा. श्रीकांत के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो उस ने बताया कि डाक्टर अभी ठीक है. प्रमोद ही डाक्टर को अलगअलग जगहों पर रख रहा है. इस समय वह परतापुर के शताब्दीनगर में है.

पुलिस उसे ले कर शताब्दीनगर पहुंची तो पता चला कि वे सोहनवीर के मकान में हैं. पुलिस ने उस घर को चारों ओर से घेर लिया. भारी संख्या में हथियारबंद पुलिस को देख कर इलाके के लोग हैरान रह गए. पुलिस ने लोगों को हिदायत दी कि काररवाई चलने तक कोई भी अपने घर से बाहर न निकले.

इस के बाद पुलिस ने औपरेशन डाक्टर शुरू किया. सोहनवीर के घर में मौजूद बदमाशों को जब पता चला कि पुलिस ने उन्हें घेर लिया है तो उन्होंने पुलिस पर फायरिंग शुरू कर दी. काफी देर तक दोनों ओर से फायरिंग होती रही.

पुलिस की गोली से प्रमोद घायल हो गया. किसी तरह पुलिस उस मकान में घुस गई, जहां डा. श्रीकांत को बंधक बना कर रखा गया था. पुलिस ने डाक्टर को सुरक्षित अपने कब्जे में ले लिया. मौके से पुलिस ने नेपाल, विवेक उर्फ मोदी और प्रमोद को गिरफ्तार कर लिया. प्रमोद ने कांवडि़यों जैसे कपड़े पहन रखे थे. पुलिस ने उसे पास के अस्पताल में भरती करा दिया. मकान मालिक सोहनवीर को भी हिरासत में ले लिया गया.

डा. गौड़ की सुरक्षित बरामदगी से पुलिस ने राहत की सांस ली. डाक्टर के घर वालों और मैट्रो अस्पताल में डा. श्रीकांत गौड़ के सुरक्षित रिहा कराने की जानकारी मिली तो सभी खुश हुए. गिरफ्तार बदमाशों से पुलिस ने पूछताछ की तो पता चला कि किडनैपिंग की पूरी वारदात को सुशील, उस के भाई अनुज, गौरव पंडित और विवेक उर्फ मोदी ने अंजाम दिया था. सुशील और अनुज दादरी के रहने वाले थे, जबकि अन्य सभी दौराला के.

पुलिस ने डाक्टर को तो सुरक्षित बरामद कर लिया था, लेकिन योजना को अंजाम देने वाले मुख्य अभियुक्तों सुशील और अनुज का गिरफ्तार होना जरूरी था. पुलिस टीमें इन दोनों अभियुक्तों की तलाश में जुट गईं, पर उन का कहीं पता नहीं चल रहा था. तब दिल्ली पुलिस ने इन दोनों भाइयों की गिरफ्तारी पर 50-50 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया.

दिल्ली पुलिस मुख्य अभियुक्तों को तलाश रही थी तो मेरठ पुलिस भी इन्हें तत्परता से खोज रही थी. इस में सफलता मिली मेरठ की एसटीएफ को. एक सूचना के आधार पर एसटीएफ ने 4 अगस्त, 2017 को सुशील और अनुज को मेरठ में एक मुठभेड़ के बाद नगली गेट के पास से गिरफ्तार कर लिया. प्रीत विहार के थानाप्रभारी मनिंदर सिंह को जब उन की गिरफ्तारी की सूचना मिली तो वह 10 अगस्त को पूछताछ के लिए उन्हें दिल्ली ले आए.

दिल्ली पुलिस ने सुशील और अनुज से पूछताछ की तो उन्होंने डा. श्रीकांत के अपहरण की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

सुशील कुमार मूलरूप से उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के दौराला थाने के दादरी गांव के रहने वाले सतबीर का बेटा था. वह पेशे से ड्राइवर था. किसी दोस्त ने उसे बताया कि ओला कंपनी में टैक्सी के रूप में गाड़ी लगा देने पर महीने में अच्छीखासी कमाई हो जाती है. दोस्त की सलाह उसे पसंद आ गई. उस ने मेरठ की तान्या मोटर्स से एक वैगनआर कार खरीदी और ओला कंपनी में कैब के रूप में लगा दी.

यह सन 2014 की बात है. दिल्ली से रोजाना गांव जाना आसान नहीं था, इसलिए वह वसुंधरा में किराए का फ्लैट ले कर रहने लगा. ओला कंपनी से सुशील को हर महीने अच्छी कमाई होने लगी तो उस ने अपने छोटे भाई अनुज के नाम से भी एक और कार ओला में लगवा दी. दोनों भाई वहां काम कर के खुश थे.

कंपनी ने ड्राइवरों को प्रोत्साहन देने के लिए बोनस देने की योजना चला रखी थी. यह बोनस निर्धारित राइड से ज्यादा राइड पर था.  इसलिए दोनों भाई ज्यादा से ज्यादा चक्कर लगाने की कोशिश करते. इसी दौरान सुशील के दिमाग में लालच आ गया. उस ने फरजी आईडी पर रोजाना 20 बुकिंग करनी शुरू कर दीं. इस से उसे रोजाना 20 हजार रुपए की आमदनी होने लगी.

सुशील मोटी कमाई करने लगा तो उसे घमंड भी गया, जिस से वह ग्राहकों से भी दुर्व्यवहार करने लगा. ये शिकायतें ओला कंपनी तक पहुंची तो उन्होंने जांच कराई. जांच में फरजी आईडी पर बुकिंग करने की बात सामने आ गई.

इस के बाद उस की दोनों गाडि़यां ओला कंपनी से हटा दी गईं. ओला कंपनी से गाडि़यां हटने के बाद दोनों को बहुत बड़ा झटका लगा. उन्होंने तय कर लिया कि वे ओला कंपनी को सबक सिखाएंगे.

दोनों भाई दबंग प्रवृत्ति के तो थे ही, बताया जाता है कि उन्होंने सन 2011 में नोएडा के एक बिजनैसमैन का अपहरण कर के उस के घर वालों से 5 करोड़ रुपए की फिरौती मांगी थी. फिरौती के 5 करोड़ तो नहीं मिले थे, पर एक करोड़ रुपए में बात फाइनल हो गई थी और रुपए ले कर ही उसे छोड़ा था.

एक बार उन्होंने अखबार में एक खबर पढ़ी थी, ‘दुष्कर्म पीडि़ता ने ऊबर पर ठोका केस’. यह खबर पढ़ने के बाद सुशील के दिमाग में आइडिया आया कि अगर ओला के किसी कस्टमर का अपहरण कर लिया जाए तो उस की फिरौती ओला से मांगी जा सकती है. क्योंकि सवारी की सुरक्षा की जिम्मेदारी कंपनी की हो जाती है. ओला को सबक सिखाने का यह तरीका सुशील को पसंद आया. यह 5 महीने पहले की बात है.

इस के बाद सुशील अपने भाई अनुज के साथ योजना बनाने लगा. चूंकि उन की गाडि़यां ओला से निकाली जा चुकी थीं, इसलिए गाडि़यां उन के नाम से फिर से कंपनी में नहीं लग सकती थीं. यह काम फरजी कागजों द्वारा ही संभव था. एक दिन सुशील को इंदिरापुरम इलाके में महाराष्ट्रा बैंक की एक पासबुक सड़क किनारे मिल गई. वह विनीता देवी की थी. अब सुशील ने अपने दिमागी घोड़े दौड़ाने शुरू कर दिए.

उस ने विनीता के नाम से अपनी वैगनआर कार के फरजी कागज बनवा लिए, जिस में उस ने गाड़ी का रजिस्ट्रेशन नंबर भी बदल दिया. विनीता के नाम से एक पैन कार्ड और आधार कार्ड भी बनवा लिया. गाड़ी के कागजों के साथ ड्राइवर के कागज भी ओला कंपनी में जमा होने थे.

लिहाजा रामवीर के नाम एक फरजी ड्राइविंग लाइसैंस, आधार कार्ड आदि बनवा लिया. इतना ही नहीं, उस ने एक निजी कंपनी के नाम से गाड़ी के इंश्योरेंस के कागज भी तैयार करा लिए. जिस तरह से फरजी कागज तैयार हुए, उसी तरह से गाड़ी के फिटनेस पेपर भी तैयार हो गए.

सारे कागज तैयार करा कर वसुंधरा में ओला के एक वेंडर को 1500 रुपए दे कर वे फरजी कागज वैरिफाई करा लिए. इस तरह 4 जुलाई, 2017 को वह अपनी कार ओला कंपनी में टैक्सी के रूप में लगाने में सफल हो गया. दोनों भाइयों ने पहले ही तय कर रखा था कि जो भी पहली अकेली सवारी उन की गाड़ी में बैठगी, वह उसी का अपहरण कर ओला कंपनी से 5 करोड़ की फिरौती मांगेंगे.

सवारी को किडनैप कर के कहां ले जाना है, यह योजना उस ने मेरठ के रहने वाले अपने दोस्त प्रमोद कुमार, मुजफ्फरनगर के गांव खादी के अमित कुमार, सहारनपुर के गांव शब्बीरपुर के नेपाल उर्फ गोवर्द्धन, विवेक उर्फ मोदी और गौरव के साथ मिल कर पहले ही बना ली थी.

अब उन्हें पहली सवारी या कहिए शिकार का इंतजार था. इत्तफाक से 4 जुलाई को सुशील को बुकिंग मिल गई. सुशील ने कस्टमर से पूछा कि कितनी सवारी हैं. जब कस्टमर ने बताया कि 3 सवारियां हैं तो उस ने बहाना बना कर जाने से मना कर दिया.

5 जुलाई को उसे कोई बुकिंग नहीं मिली. फिर 6 जुलाई को उसे डा. श्रीकांत गौड़ की बुकिंग मिली. सुशील ने डा. गौड़ से पूछा कि साथ में कितनी सवारियां हैं. जब पता चला कि वह अकेले हैं तो सुशील ने अपने साथियों को अलर्ट कर दिया.

डा. गौड़ को प्रीत विहार मैट्रो स्टेशन के पास से ले कर चलने के बाद कुछ दूरी चलने पर उस ने गाड़ी में लगा जीपीएस डिसकनेक्ट कर दिया. वह लक्ष्मीनगर की ओर बढ़ा. आगे सैंट्रो कार मिली, जिस में उस का भाई अनुज अपने साथियों गौरव और विवेक उर्फ मोदी के साथ बैठा था.

सैंट्रो कार के पास सुशील ने कैब रोक दी. उस में से अनुज और गौरव उतर कर सुशील की कैब में बैठ गए.

डा. गौड़ ने पूछा कि ये लोग कौन हैं और इन्हें गाड़ी में क्यों बिठाया तो उन बदमाशों ने उन्हें डराधमका कर चुप रहने को कहा. उन का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले कर उन्हें नशे का इंजेक्शन लगा दिया. इस के बाद वे डाक्टर को वसुंधरा ले गए, जहां उन्होंने सैंट्रो कार छोड़ दी. इस के बाद वे डाक्टर को दौराला ले गए.

सुबह 4 बजे के करीब सुशील ने ओला कंपनी के कस्टमर केयर नंबर पर फोन कर के कस्टमर डा. श्रीकांत का अपहरण करने की सूचना दे दी. इस के बाद सुशील का साथी प्रमोद अपहृत डाक्टर को अलगअलग जगहों पर रखने की व्यवस्था करता रहा. एक जगह पर उन्हें केवल 2-3 दिन ही रखा जाता था. प्रमोद कांवडि़यों की तरह गेरुए रंग के कपड़े पहने रहता था, ताकि उस पर कोई शक न करे.

सुशील अलगअलग जगहों पर जा कर डाक्टर के घर वालों और ओला कंपनी में फोन कर के फिरौती की 5 करोड़ की रकम की डिमांड करता रहा. इतना ही नहीं, डाक्टर के 3 वीडियो भी बना कर भेजे. सुशील ने ओला कंपनी के अधिकारियों को इतना डरा दिया था कि वे 5 करोड़ रुपए देने को तैयार हो गए थे.

सादे कपड़ों में दिल्ली पुलिस 5 करोड़ रुपए ले कर बागपत के पास पहुंची भी थी. पैसे लेने अनुज वैगनआर कार से आया भी था, पर पुलिस की शंका होने पर वह कार छोड़ कर गन्ने के खेत में घुस गया. इस के बाद सुशील को जब पता चला कि उस के कुछ साथी पकड़े जा चुके हैं तो वह खुद अंडरग्राउंड हो गया.

पुलिस ने सुशील और अनुज की पत्नी सहित परिवार के अन्य लोगों को हिरासत में लिया तो वे परेशान हो गए. बाद में मुखबिर की सूचना पर मेरठ के नगली गेट इलाके से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. सुशील और अनुज से पूछताछ कर पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश कर दिया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. अब मामले की जांच इंसपेक्टर रूपेश खत्री कर रहे हैं.

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