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हुंडई ने लौन्च की पहली इलेक्ट्रिक कार, स्पीड है शानदार

प्रदूषण के बढ़ते स्तर के बीच सरकार लगातार इलेक्ट्रिक वाहनों पर ध्यान केंद्रित कर रही है. इसी बीच खबर है कि शीर्ष कार निर्माता कंपनी हुंडई (Hyundai) अपनी पहली इलेक्ट्रिक कार को भारत में लाने के लिए पूरी तरह से तैयार है. कंपनी की नई कार का नाम कोना (KONA) है. एक खबर के अनुसार हुंडई कोना इलेक्ट्रिक एसयूवी को जेनेवा मोटर शो में प्रदर्शित किया गया. इसके कौन्सेप्ट वर्जन को ग्रेटर नोएडा में फरवरी में आयोजित हुए औटो एक्सपो 2018 में भी प्रदर्शित किया गया था.

अगले साल भारत में आने की उम्मीद

अब खबर है कि इंडियन मार्केट में इसे अगले साल तक लौन्च किया जा सकता है. अगर ऐसा होता है तो यह भारत में हुंडई की पहली इलेक्ट्रिक कार होगी. ऐसी उम्मीद है कि हुंडई कोना इलेक्ट्रिक ग्लोबल मार्केट में दो वेरिएंट में आएगी. भारत में इसका एंट्री लेवल सेग्मेंट आएगा. फुल चार्ज करने पर यह 300 किमी की दूरी तय करेगी. कोना में 133 एचपी की मोटर है, जो 395 न्यूटन मीटर की टौर्क जेनरेट करती है.

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6 घंटे में होगी फुल चार्ज

कार में 39.3 किलोवाट की लिथियम आयन बैटरी होगी. यह बैटरी 6 घंटे में पूरी तरह चार्ज हो जाएगी. वहीं क्विक चार्जर से इसे 1 घंटे में 80 फीसदी तक चार्ज किया जा सकेगा. कंपनी का दावा है कि कार 0 से 100 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड 9.3 सेंकेंड में पकड़ लेगी. कार की टौप स्पीड 167 किलोमीटर प्रति घंटा की होगी. कोना के दूसरे वर्जन में 201 एचपी की मोटर होगी. यह भी 395 न्यूटन मीटर का टौर्क जेनरेट करेगी.

दूसरे वेरिएंट में 64 किलोवाट की बैटरी

अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर इस कार में क्या अलग होगा, तो हम आपको बता देते हैं कि हुंडई की इस कार में 64 किलोवाट की बैटरी होगी. इस कार के फुल चार्ज होने पर एक बार में 470 किमी तक का सफर तय किया जा सकेगा. हालांकि भारत में इस कार के आने की उम्मीद नहीं है. इस कार की कीमत में एंट्री सेग्मेंट कार से ज्यादा होगी. कार में 17 इंच के एलौय व्हील का प्रयोग किया गया है.

जनता पर फिर गिरेगी महंगाई की गाज, 1 अप्रैल से बढ़ जाएंगे CNG, PNG के दाम

जनता पर एक बार फिर से महंगाई की गाज गिर सकती है. मीडिया में आईं खबरो के मुताबिक सरकार अगले सप्ताह घरेलू प्राकृतिक गैस की कीमत बढ़ाकर दो साल के ऊपरी स्तर पर ले जा सकती है. अगर ऐसा होता है तो गैस की कीमत बढ़ने से सीएनजी, पीएनजी, बिजली और यूरिया की कीमतें भी बढ़ जाएंगी. सूत्रों के मुताबिक घरेलू गैस फील्ड की प्राकृतिक गैस को दी जाने वाली कीमत को मौजूदा 2.89 डालर प्रति इकाई से बढ़ाकर एक अप्रैल से 3.06 डालर किया जा सकता है.

इससे पहले सरकार ने अक्टूबर 2017 से मार्च 2018 के लिए गैस कीमत को बढ़ाकर 2.89 डालर प्रति एमबीटीयू किया था. यह दर पूर्व छह महीने के लिए 2.48 डालर थी. इसी तरह आलोच्य अवधि की वृद्धि बीते तीन साल में पहली बढ़ोतरी रही.

कई उपभोक्ता वस्तुएं होंगी महंगी

घरेलू उत्पादित प्राकृतिक गैस के दाम बढ़ने से जहां ओएनजीसी व रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसी उत्पादक कंपनियों की आय बढ़ेगी. गैस मूल्य में हाने वाली हर एक डालर की वृद्धि की एवज में ओएनजीसी को सालाना 4,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय होगी. वहीं इससे सीएनजी और पीएनजी के लिए कच्चा माल महंगा हो जाएगा. इससे बिजली उत्पादन और उर्वरक तथा पेट्रोकेमिकल के लिए फीडस्टौक लागत भी बढ़ जाएगी. इसका मतलब यह है कि ये चीजें महंगी हो जाएंगी.

बता दें कि अमेरिका, रूस व कनाडा जैसे गैस अधिशेष देशों के औसत मूल्य के आधार प्राकृतिक गैस के दाम हर छह महीने में तय होते हैं. भारत अपनी आधी गैस आयात करता है जिसकी लागत उसकी घरेलू दर से दोगुने से भी अधिक है. सूत्रों ने कहा कि 3.06 डालर प्रति एमबीटीयू की दर एक अप्रैल से छह महीने के लिए लागू होगी. यह दर अप्रैल सितंबर 2016 के बाद की उच्चतम होगी.

विराट ने दीपिका के साथ काम करने से किया इनकार

भारतीय टीम के कप्तान विराट कोहली के सितारे सातवे आसमान पर हैं. विराट एक के बाद एक रिकौर्ड तोड़ते जा रहे है. विराट की लोकप्रियता इतना है कि लोग उनके स्टाइल को फौलो करना पसंद करते है. उनकी ब्रांड वैल्यू शादी के बाद और बढ़ गयी है. लेकिन अभी जो खबरें चल रही हैं, उनके मुताबिक बौलीवुड की मशहूर अभिनेत्री दीपिका पादुकोण के साथ विराट ने काम करने से मना कर दिया है.

गौरतलब है कि दीपिका और विराट अपने-अपने क्षेत्रों में शीर्ष पर हैं. जहां विराट खेल के मैदान पर ही नहीं बल्कि मैदान से बाहर भी सुर्खियों में रहते है. तो वहीं दूसरी तरफ बौलीवुड अभिनेत्री दीपिका पादुकोण की करीब करीब हर फिल्म हिट हो रही है और हर बौलीवुड स्टार उनके साथ काम करना चाहता है.

आपको बता दें हाल ही में इंस्टाग्राम ने विराट और दीपिका को सबसे मशहूर सेलेब्रिटी चुना है. ऐसे में इन दोनों की ही डिमांड विज्ञापन की दुनिया में खूब है. जिसको देखते हुए आईपीएल की टीम आरसीबी इन दोनों को लेकर एक विज्ञापन करना चाहती थी. लेकिन विराट ने दीपिका के साथ काम करने से मना कर दिया है.

दरअसल आरसीबी को गोआईबिबो के साथ 11 करोड़ रुपये की डील मिली थी. इसी कंपनी की ब्रांड एम्बेसडर दीपिका पादुकोण भी हैं. लेकिन विराट ने दीपिका के साथ स्क्रीन न शेयर करने का फैसला इसलिए किया है, क्योंकि जब Goibibo की ब्रैंड एंबेसडर दीपिका पादुकोण इस विज्ञापन में शामिल हो जाएंगी तो कहीं ना कहीं यह विज्ञापन आरसीबी का न होकर Goibibo का विज्ञापन बन जाएगा.

ऐसे में विराट कोहली बिना किसी कौन्ट्रैक्ट के ही इस ट्रैवल कंपनी का प्रचार कर देंगे. इसलिए विराट ने बड़ा दांव चलते हुए इस विज्ञापन से खुद को अलग कर लिया है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि क्रिकेट के मैदान पर जिस तरह विराट का दिमाग खूब तेज चलता है ठीक उसी तरह विज्ञापन की दुनिया में भी वह अपने दिमाग का खूब इस्तेमाल करते हैं.

‘क्रास वोटिंग’ में दिख रहा सत्ता का चरित्र

16 राज्यों में राज्यसभा के लिये खाली हुई 58 सीटों के लिये हुये चुनाव में हर दल क्रास वोटिंग का तलबगार दिखा. सबसे चाल चरित्र और चेहरा की बात करने वाली भाजपा के चेहरे पर लगा उबटन उतर गया. चुनावी जोड़तोड़ के लिये कभी कांग्रेस को पानी पी कर कोसने वाली भाजपा आज खुद उसी राह पर चलते हुये कांग्रेस से दो कदम आगे निकल गई है.

राज्यसभा के इन चुनावों को देखते साफ लगता है कि देश में संविधान की मंशा, चुनावी सुधार, दलबदल कानून और स्वच्छ राजनीति बेमानी बातें हैं. यह ठीक उसी तरह है जैसे कोर्ट में गीता पर हाथ रखकर झूठी गवाही देना.

राज्यसभा के चुनाव में पूरे देश में सबसे अधिक चर्चा उत्तर प्रदेश की रही. राज्यसभा चुनावों के पहले उत्तर प्रदेश में सरकार चला रही भाजपा गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा के उपचुनाव में बुरी तरह से हार गई थी. अपनी इस हार का बदला लेने के लिये बौखलाई भाजपा ने राज्यसभा चुनावों में बहुजन समाज पार्टी उम्मीदवार भीमराव अम्बेडकर को हराने के लिये हर बल को आजमा लिया.

हर दल के वोट को देखें तो भाजपा अपने कोटे से 8 उम्मीदवारों को राज्यसभा पहुंचा सकती है. इनमें केन्द्र में मंत्री अरुण जेटली, प्रार्टी प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव, अशोक वाजपेई, विजय पाल सिंह तोमर, कांता करदम, हरनाथ सिंह यादव, सकल दीप राजभर और अनिल जैन प्रमुख हैं. समाजवादी पार्टी के वोट से जया बच्चन राज्यसभा पंहुच जाएंगी.

उत्तर प्रदेश में सारा विवाद बसपा के प्रत्याशी भीमराव अम्बेडकर के चुनाव मैदान में उतरने से खड़ा हो गया. राज्यसभा के एक प्रत्याशी को चुनाव जीतने के लिये 37 विधायकों के वोट चाहिये थे. कांग्रेस, बसपा और सपा के पास बचे हुये 29 वोट हैं. ऐसे में उसे 8 वोट उसे निर्दलीय या दूसरे विधायकों से चाहिये थे. भाजपा के पास अपने 8 प्रत्याशियों को वोट देने के बाद 28 वोट बच रहे थे. ऐसे में उसने अपने बचे वोटो का उपयोग करने के लिये गाजियाबाद के स्कूल प्रबंधक अनिल अग्रवाल को चुनाव मैदान में उतार दिया. अब यह तय हो गया कि 10 वोटों का इंतजाम करने के लिये क्रास वोटिंग जरूरी हो गई.

असल में भाजपा के लिये गाजियाबाद के शिक्षण संस्थाओं के संचालक अनिल अग्रवाल का कोई महत्व नहीं है. उसके लिये नाक का सवाल बसपा के प्रत्याशी भीमराव अम्बेडकर को राज्यसभा पहुंचने से रोकना है. इसकी 2 बड़ी वजहें भाजपा के नेता गिनाते हैं. पहली वजह कार्यकर्ताओं को समझाने के लिये है कि बसपा के एक वोट से 1998 में केन्द्र की अटल सरकार गिर गई थी. बड़ी वजह सपा-बसपा का होने वाला गठबंधन है. इस गठबंधन के सहारे ही भाजपा गोरखपुर और फूलपुर के लोकसभा उप चुनाव हारी थी. अब भाजपा खिसियानी बिल्ली की तरह किसी भी कीमत पर बसपा के प्रत्याशी को राज्यसभा में पहुंचने से रोकना चाहती है.

इसके लिये विधायकों में तोड़फोड़ और क्रास वोटिंग हर दांव को आजमा लिया गया. नरेश अग्रवाल को भाजपा मे शामिल करना, उनके विधायक बेटे नितिन अग्रवाल को भाजपा में शामिल करना. निर्दलीय विधायकों को प्रभावित करना सब खेल होने लगे. बसपा के विधायकों में तोड़फोड़, हर खेल का सहारा लिया गया. बसपा के प्रत्याशी को जितवाने के लिये पूरी ताकत और रणनीति सपा नेता अखिलेश यादव के द्वारा तैयार की जा रही है. ऐसे में भाजपा की रणनीति बसपा प्रत्याशी को चुनाव हराकर एक ही वोट से मायावती और अखिलेश यादव को मात देने की है. अखिलेश और मायावती को मात देने के लिये भाजपा अपने असूलों को दरकिनार कर दिखा चुकी है कि चाल चरित्र और चेहरा की बात करने वाली पार्टी का मुखौटा उतर चुका है.

अटल जी ने भले ही एक वोट के लिये बसपा से समझौता नहीं किया पर आज उनकी पार्टी हर तरह के समझौते को करने के लिये तैयार है. केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं झारखंड, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल में भी क्रास वाटिंग का पेंच साफ दिख रहा है.

राज्यसभ को उच्च सदन कहा जाता है. भाजपा के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद ससंद में प्रवेश करते हुये संसद की सीढ़ियों के पैर छू कर वादा किया था कि लोकतंत्र के इस मंदिर को ईमानदार और कलंक से दूर रखेंगे. राजनीति का अपराधीकरण तो रोका नहीं जा सका, राज्य सभा में क्रास वोटिंग को भी बढ़ावा दिया जा रहा है. ऐसे में साफ है कि भाजपा की करनी और कथनी में फर्क है. आदर्शवाद का उबटन अब उतर चुका है. भाजपा को जोड़तोड़ वाला चेहरा साफ दिख रहा है.

फेसबुक डाटा लीक : किस किस के पास है आपका डाटा, ऐसे लगाएं पता

फेसबुक के खिलाफ आज पूरी दुनिया में एक मुहीम चलाई जा रही है, #deletefacebook के नाम से. इसका विरोध दुनिया भर के लोग कर रहे हैं. एक खबर के अनुसार कैंब्रिज एनालिटिका जो कि एक ब्रिटिश प्राइवेट फर्म है जिसने फेसबुक के जरिये अमेरिका के चुनावों में ट्रंप की सहायता की.

हालांकि इस फर्म में कई लोगों की हिस्सेदारी है लेकिन जो इस कंपनी के मुखिया हैं उनका नाम है रौबर्ट मर्सर. रौबर्ट मर्सर रिपब्लिकन पार्टी के समर्थक हैं और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस पार्टी के नेता हैं. यहां मुख्य रूप से आरोप यह लगाया जा रहा है कि इस प्राइवेट फर्म ने फेसबुक के साथ मिलकर 5 करोड़ लोगों का डाटा चुराया तथा फेसबुक पर प्रोग्राम तैयार कर उनका ब्रेनवाश किया गया.

बात यहीं खत्म नहीं होती फेसबुक डाटा का गलत इस्तेमाल ब्रिक्सइट विवाद के समय भी किया गया था. जब ब्रिटेन को यूरोपियन यूनियन से अलग हो जाने की बात चल रही थी, उस वक्त फेसबुक डाटा लोगों के ब्रेनवाश करने के काम आया था.

कैसे हुआ खुलासा

फेसबुक द्वारा हो रहे लोगों के डाटा चोरी को लेकर सबसे पहले खुलासा क्रिस्टोफर विली ने किया जो कि खुद कैंब्रिज एनालिटिका फर्म में काम करते थे. इन्होंने ही सबसे पहले यह खुलासा किया कि आखिर कैसे इस निजी फर्म ने फेसबुक द्वारा 5 करोड़ अमरीकी लोगों के डाटा को लेकर उसका गलत इस्तेमाल चुनावी कैंपेन तथा ट्रंप के प्रचार प्रसार के लिये किया.

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डाटा लीक की शुरुआत

साल 2014 में कैंब्रिज एनालिटिका ने फेसबुक से लोगों के डाटा हैक करने के लिये अलेक्जेंडर कोगान नाम के व्यक्ति से संपर्क किया जो कि कैंब्रिज विश्वविद्दालय के एक प्रोफेसर हैं. कोगान को यह कहा गया था  कि वो एक ऐसा ऐप तैयार करें जो फेसबुक से लोगों का डाटा ले सके, जिसके लिये कोगान को 8 लाख डौलर की मोटी रकम दी गई थी. हालांकि कोगान खुद ग्लोबल रिसर्च एंड साइंस नाम के कंपनी के मालिक हैं.

निर्देशानुसार कोगान ने फेसबुक के लिये एक ऐप तैयार किया जो लोगों का फेसबुक डाटा ले सके. इस ऐप का नाम इन्होंने thisisyourdigitallife रखा.  देखते ही देखते इस ऐप को लगभग 2 लाख 70 हजार लोगों ने डाउनलोड भी किया, अब यहां से शुरुआत होती है फेसबुक डाटा चोरी की.

इस ऐप का इस्तेमाल करना जैसे ही लोगों ने शुरू किया हमेशा की तरह लोगों ने इस ऐप को डाटा ऐक्सेस की अनुमति दे दी, फिर क्या था इस ऐप ने फेसबुक पर मौजूद लोगों के बहुत ही ज्यादा डाटा निकाल लिया और बात यहीं खत्म नहीं होती, यह डाटा लीक इतना भयानक था कि जो लोग एक दूसरे से फेसबुक पर जुड़े हैं, इस ऐप ने उन सबके डाटा को एक्सेस करना शुरू किया.

ग्लोबल  रिसर्च एंड साइंस की भूमिका

कोगान की कंपनी ने लोगों को धोखे में रखकर अनेकों प्रकार से जैसे पैसे देकर, फीडबैक के नाम पर इत्यादि तरीकों से लोगों को धोखे में रखकर लोगों की निजी जानकारी को हासिल कर लिया और बाद में इस जानकारी को इस कंपनी ने कैंब्रिज एनालिटिका को बेच दिया.

कैंब्रिज एनालिटिका और अमेरीकी चुनाव

लोगों को धोखे में रखकर हासिल किये गए डाटा को कैंब्रिज एनालिटिका ने साल 2016 में अमेरिकी चुनावों के वक्त इसका गलत इस्तेमाल किया. इसमें हर प्रकार को लोगों की अलग अलग प्रोफाइल तैयार की गई, जिसमें इस बात का ध्यान रखा गया की लोगों की मानसिकता क्या है, वो किस आधार पर चुनावों में वोट करते हैं.

इसके तहत इस फर्म ने फेसबुक पर लोगों का ब्रेनवाश करने का काम किया, फर्म द्वारा अनेकों प्रकार के प्रचार दिखाए गए, जोकि ट्रंप के हित में थे. एक ही झूठ को इतनी बार सच बताकर बोला गया कि झूठ भी सच सा लगने लगा.

फेसबुक की सफाई

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पहली सफाई – अपनी चोरी पकड़े जाने के बाद फेसबुक ने अपने सफाई में कहा है कि हमने साल 2015 में ही इस ऐप को फेसबुक से हटा दिया, क्योंकि यह ऐप जरूरत से ज्यादा लोगों का डाटा ले रहा था. यह ऐप फेसबुक द्वारा बनाए गए नियमों के विरुद्ध था.

दूसरी सफाई –  इस मामले में फेसबुक द्वारा यह भी कहा गया है कि फेसबुक ने किसी का पासवर्ड हैक नहीं किया तथा लोगों की संवेदनशील निजी जानकारी को भी शेयर नहीं किया.

वहीं फेसबुक के वकील का काहना है कि वौल स्ट्रीट जनरल और द औब्जर्वर नामक अखबार द्वारा फेसबुक के खिलाफ यह षडयंत्र रचा गया है. ये फेसबुक पर झूठे और बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं.

भारत के लिये चेतावनी

आज के जमाने में लोगों का मानना है कि आपका डाटा ही आपकी सबसे बड़ी करेंसी है, इसलिये इसका सुरक्षित रहना बेहद जरूरी है.

ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार यह कहा गया है कि साल 2019 के चुनावों में हो सकता है कि तमाम पार्टियां अपने राजनीतिक हित को साधने के लिये फेसबुक की मदद ले सकती हैं.

किस किस के पास आपका फेसबुक डाटा, ऐसे लगाएं पता

  • सबसे पहले आपको अपने फेसबुक अकाउंट में लौगिन करना होगा.
  • इसके बाद नीली पट्टी पर राइट साइड में आ रहे तीर के निशान पर क्लिक करना होगा.
  • इस पर क्लिक करने के बाद कई औप्शन खुल जाएंगे. यहां नीचे की तरफ सेटिंग्स का औप्शन आएगा.
  • अब इस पर क्लिक करें. इसपर क्लिक करने के बाद नया पेज खुल जाएगा, इस पेज पर सबसे नीचे बहुत छोटा-छोटा लिखा होगा- Download a copy of your facebook data.
  • इसके बाद फेसबुक की तरफ से आपके पास आपकी ईमेल पर एक लिंक जाएगा. इस लिंक के माध्यम से एक जिप फाइल डाउनलोड की जा सकती है. इसमें आपके बारे में सभी जानकारी होगी जबसे आपने फेसबुक इस्तेमाल करना शुरू किया था तब से लेकर अब तक की. इसमें आपके प्रोफाइल में आने वाले सभी ऐड्स की जानकारी दी गई होगी. शायद आपका यह डेटा फेसबुक द्वारा ऐड कंपनियों को दिया गया होगा. नाम ‘Advertisers with your contact info’ के साथ छिपा होता है.

HTML फाइल ‘विज्ञापन विषय’ से शुरू होती है – जो मूलतः आपके फेसबुक पेज पर विज्ञापनों देने के लिए उपयोग किए जाने वाले कीवर्ड हैं, या फेसबुक के शब्दों में, “आपकी टाइमलाइन पर आपके द्वारा लाइक किए गए, या इंट्रेस्ट वाली चीजों के ऐड आएंगे. इसके बाद अगली फाइल में ऐड हिस्ट्री मिलेगी. इसमें वह सभी ऐड होंगे जिन पर आपने फेसबुक चलाने के दौरान क्लिक किया होगा.

कंगना रनौत ने अपने जन्मदिन पर खुद को दिया ये खास तोहफा

बौलीवुड इंडस्ट्री में अपने अभिनय से खुद की खास पहचान बनाने वाली बौलीवुड की क्वीन कंगना रनौत आज यानी 23 मार्च को अपना 31वां जन्मदिन मना रही हैं. कुछ वक्त पहले ही कंगना ने मनाली में खुद का नया घर लिया था. आज अपने जन्मदिन के खास मौके पर कंगना अपने नए घर में हैं और वो पूरे परिवार के साथ अपना जन्मदिन वहीं मानएंगी.

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अपने जन्मदिन के मौके पर उन्होंने खुद को एक खास तोहफा दिया है. कुछ तस्वीरें सामने आईं जिनमें कंगना अपने नए घर के गार्डन में पौधे लगाती नजर आ रही हैं. बताया गया है कि कंगना ने बीते एक हफ्ते में 31 वें जन्मदिन की तर्ज पर 31 पेड़ लगाए हैं.

कंगना की ये तस्वीरें उनकी बहन रंगोली ने अपने ट्विटर अकाउंट पर शेयर की हैं. उन्होंने इन तस्वीरों के साथ लिखा, अपने जन्मदिन पर क्वीन ने खुद को एक ग्रीन प्लैनेट गिफ्ट किया है. दुआ करते हैं आप लंबी और खूबसूरत जिंदगी जिएं. हैप्पी बर्थडे कंगना रनौत.

आपको बता दें कि कंगना रनौत ने साल 2005 में फिल्म ‘गैंगस्टर’ से अपने करियर की शुरुआत की जिसके लिए कंगना को फिल्मफेयर का बेस्ट डेब्यू फिमेल अवार्ड मिला था. बाद में कंगना ने ‘वो लम्हें’ (2006), ‘लाइफ इन मेट्रो’ (2007), और ‘फैशन’ (2008) जैसी फिल्मों में काम किया, जिसमें उनकी एक्टिंग की खूब तारीफ हुई. इन फिल्मों ने फिल्म इंडस्ट्री में कंगना को एक अलग ही पहचान दिलाई.

पिछले कुछ सालों में कंगना ने लीक से हटकर फिल्में करनी शुरू की जो क्रिटिकली भी सराही गईं और बौक्स औफिस पर भी उन फिल्मों ने जमकर कमाई की. साल 2011 में आई फिल्म ‘तनु वेड्स मनु’ उनके करियर की एक और गेम चेंजर फिल्म साबित हुई. उसके बाद साल 2013 में ‘क्वीन’ और ‘क्रिश 3’, 2015 में ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न्स’ और 2017 में ‘सिमरन’ जैसी फिल्मों ने कंगना को बौलीवुड में उस मुकाम पर पहुंचा दिया जिसका ख्वाब हर अभिनेत्री देखती है.

इसके अलावा कंगना इन दिनों अपनी दो फिल्मों पर भी काम कर रही हैं. वह ‘मणिकर्णिका’ में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की भूमिका निभाती नजर आएंगी और फिल्म “मेंटल है क्या?” में उनका किरदार अब तक साफ नहीं है. हालांकि माना यह जा रहा है कि फिल्म में कंगना एक बोल्ड और बिंदास लड़की का किरादर निभाती नजर आएंगी.

मैंने नहीं किया डा. अंबेडकर का अपमान : हार्दिक पांड्या

क्रिकेटर हार्दिक पांड्या ने इस बात को खारिज कर दिया कि उन्होंने ट्विटर पर किसी प्रकार की अपमानजनक टिप्पणी की है. उन्होंने कहा कि यह ट्वीट फर्जी अकाउंट से किया गया है और इसमें उनके नाम और तस्वीर का गलत इस्तेमाल किया गया है. जोधपुर कोर्ट आदेश के बाद अपने स्पष्टीकरण में पांड्या ने कहा कि उनके मन में अंबेडकर के प्रति अत्यंत आदर और सम्मान है.

उन्होंने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर बयान जारी कर कहा, ‘मैं किसी प्रकार की ऐसी बयानबाजी में शामिल नहीं होउंगा जो अपमानजनक हो और किसी समुदाय का भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली हो.’ संविधान निर्माता बीआर अंबेडकर के बारे में नकारात्मक टिप्पणियों के लिए अदालत में उनके खिलाफ याचिका दायर की गई थी.

उन्होंने कहा है कि यह टिप्पणी फर्जी खाते से की गयी है, जिसमें उनके नाम और तस्वीर का इस्तेमाल किया गया है. पांड्या ने कहा कि वह कोर्ट से अपना नाम इस मामले से हटाने की अपील करेंगे. उन्होंने कहा, “इस बात को साबित करने कि यह ट्वीट फर्जी है और मैंने नहीं किया है, मैं अदालत में जरूरी सबूत उपलब्ध कराऊंगा. मैं इस मुद्दे को उठाउंगा कि मेरी पहचान लेकर एक जालसाज ने यह पोस्ट किया ताकि मेरी छवि को नुकसान पहुंचे, जो एक ऐसी समस्या है जिसका सामना आज के समय देश में कई जानी पहचानी शख्सियतों को लगातार करना पड़ रहा है.”

बता दें कि इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के 11वें संस्करण की तैयारियों में लगे हार्दिक पांड्या उस समय विवादों में फंस गए जब उनके नाम वाले एक फर्जी ट्विटर खाते से अंबेडकर को आरक्षण नीति को लेकर बुरा-भला कहा गया. उस ट्वीट में कहा गया, “अंबेडकर कौन? जिसने क्रौस लौ और संविधान बनाया या वो जिसने देश में आरक्षण जैसी बीमारी फैलाई.” इसके बाद राजस्थान अदालत ने बुधवार को जोधपुर पुलिस को पांड्या के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने को कहा था.

मेघवाल ने की थी हार्दिक पांड्या के खिलाफ अपील 

पांड्या के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर करने वाले डी.आर मेघवाल का कहना है कि 26 दिसंबर, 2017 को अपने ट्विटर अकाउंट पर संविधान के निर्माता डा. भीमराव अंबेडकर के खिलाफ टिप्पणी की थी. मेघवाल ने आरोप लगाया है कि पांड्या ने इस पोस्ट में न सिर्फ डा. भीमराव अंबेडकर को अपमानित किया गया, बल्कि दलित समुदाय के लोगों की भावनाओं को भी ठेस पहुंचाया है.

ट्रिपल तलाक विशेष : दर्द ने बढ़ाया हौसला

खूबसूरत आतिया साबरी एक अजीब सजा से रूबरू हो रही थी. शौहरबीवी के रिश्तों के उस के जज्बातों पर वक्त के साथ बंदिश लग चुकी थी. यह रिश्ता अब ऐतबार के काबिल भी नहीं रह गया था. रिश्तों की डोर पूरी तरह टूट चुकी थी और जिंदगी गमजदा हो गई थी. लेकिन वह अपनी 2 मासूम बेटियों की मुसकराहटों व शरारतों से खुश हो कर गम को हलका करने की कोशिश करती थी.

21 अगस्त, 2017 की शाम को आतिया के चेहरे पर भले ही चिंता की लकीरें थीं, लेकिन आंखों में उम्मीदों के चिराग रोशन थे. उसे देख कर पिता मजहर हसन ने बेटी के नजदीक आ कर पूछा, ‘‘क्यों परेशान है आतिया? तेरे इरादे नेक हैं और तू इंसाफ के लिए लड़ रही है. देखना तुम लोगों की मुहिम जरूर रंग लाएगी.’’

‘‘सोचती तो मैं भी यही हूं. आप तो जानते हैं, यह लड़ाई मैं सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि उन बहनों के लिए भी लड़ रही हूं, जो 3 तलाक के बाद जिल्लत की जिंदगी जी रही हैं. मैं सोचती हूं कि किसी को भी तलाक का ऐसा दर्द न झेलना पड़े.’’

‘‘जो होगा, ठीक ही होगा. बस, उम्मीद का दामन थामे रहो.’’ मजहर ने बेटी को समझाया तो आतिया की आंखों में चमक आ गई.

‘‘मुझे पूरी उम्मीद है अब्बू, अदालत औरतों के हक में फैसला दे कर इस 3 तलाक से निजात दिला देगी. कल का दिन शायद मेरे लिए खुशियां ले कर आए.’’ आतिया ने आत्मविश्वास भरे लहजे में कहा.

अब्बू से थोड़ी देर बात कर के आतिया सोने के लिए अपने कमरे में चली गई. उस की 2 मासूम बेटियां सादिया व सना तब तक सो चुकी थीं.

आतिया उत्तर प्रदेश के शहर सहारनपुर के नई मंडी कोतवाली के मोहल्ला आली की रहने वाली थी. वह तलाक पीडि़ता थी और उस ने इंसाफ के लिए देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी थी. वह देश की उन 5 मुसलिम महिलाओं में से एक थी, जो 3 तलाक के खिलाफ जंग लड़ते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई थीं.

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उन के मामलों पर लंबी सुनवाई हुई थी और फैसले के लिए 22 अगस्त की तारीख तय की गई थी. 5 जजों की संविधान पीठ को मुसलिम धर्म में शरीयत कानून के तहत दिए जाने वाले 3 तलाक पर फैसला सुनाना था. इस तरह के तलाक के खिलाफ देशभर में मुसलिम महिलाओं की लगातार आवाजें उठ रही थीं.

अगले दिन अदालत ने अपना फैसला सुनाया तो आतिया और उस के परिवार की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. अदालत ने अपने ऐतिहासिक फैसले में 3 तलाक की 14 सौ साल पुरानी प्रथा को संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करार देते हुए खारिज कर दिया था. जजों की संविधान पीठ ने इस प्रथा को कुरान-ए-पाक के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ और शरीयत कानून का उल्लंघन बताया.

आतिया को इसलिए और भी खुशी हुई थी, क्योंकि वह भी इस लड़ाई का एक हिस्सा थी. दरअसल, उस की जिंदगी दुख के पहाड़ से टकराई थी. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि जिस शख्स को ताउम्र उस का साथ देना था, वह एक दिन उसे अकेला छोड़ देगा. आतिया अपनी मां मुन्नी व 3 बड़े भाइयों की लाडली थी.

आतिया विवाह के लायक हुई तो उस के घर वालों को उस के विवाह की चिंता हुई. वे चाहते थे कि उस का विवाह किसी अच्छे घर में हो, ताकि उस की जिंदगी खुशियों से आबाद रहे. उस के पिता मजहर मूलरूप से हरिद्वार जिले के सुलतानपुर गांव के रहने वाले थे. करीब 25 साल पहले वह सहारनपुर आ कर बस गए थे. उन के नातेरिश्तेदार वहीं आसपास रहते थे.

मजहर मियां ने रिश्ते की तलाश भी वहीं शुरू कर दी. खोजबीन के बाद उन्होंने बेटी का रिश्ता हरिद्वार के खानपुर थाना क्षेत्र के गांव जसोदरपुर निवासी सईद अहमद के बेटे वाजिद अली के साथ तय कर दिया. सारी बातें तय होने के बाद 25 मार्च, 2012 को उन्होंने आतिया का निकाह वाजिद के साथ कर दिया.

निकाह के बाद आतिया की जिंदगी खुशियों से भर गई. उस ने अपने भविष्य को ले कर तमाम ख्वाब देखे थे. एक साल बाद उस ने बेटी को जन्म दिया. यह उस का पहला बच्चा था. इस से सभी को खुश होना चाहिए था, लेकिन आतिया को पहली बार अहसास हुआ कि बेटी के जन्म से न सिर्फ उस का पति, बल्कि ससुराल के अन्य लोग भी खुश नहीं थे. वे लोग बेटे के ख्वाहिशमंद थे.

आतिया ससुराल वालों के रवैये पर हैरान तो थी, लेकिन उस ने सोचा कि यह सब वक्ती बातें हैं, जो वक्त के साथ खत्म हो जाएंगी. एक साल कब बीत गया, पता ही नहीं चला. आतिया दोबारा गर्भवती हुई. इस बार उस के ससुराल वालों को भरोसा था कि बेटा ही होगा. एक दिन वाजिद ने कहा भी, ‘‘मुझे उम्मीद है कि इस बार तुम बेटे को ही जन्म दोगी?’’

उस की बात सुन कर आतिया को हैरानी हुई. उस ने जवाब में कहा, ‘‘तुम जानते हो वाजिद, यह सब इंसान के हाथ में नहीं होता. लड़का हो या लड़की मैं दोनों में कोई फर्क महसूस नहीं करती. बच्चे गृहस्थी के आंगन के फूल होते हैं.’’

उस की बात पर वाजिद ने नाखुशी जाहिर करते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी सोच चाहे जो भी हो, लेकिन मैं बेटे की ख्वाहिश रखता हूं.’’

आतिया बहस नहीं करना चाहती थी. लिहाजा वह खामोश हो गई. लेकिन वह मन ही मन परेशान थी कि यह किस तरह की सोच है, जो बेटियों से परहेज किया जाता है. अपने शौहर की सोच उसे अच्छी नहीं लगी.

सन 2015 में आतिया ने एक और बेटी को जन्म दिया. इस पर उस की ससुराल में जैसे तूफान आ गया. कोई भी इस बात से खुश नहीं था. न उस का शौहर और न उस के घर वाले. आतिया ने सोचा कि वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा, लेकिन यह उस की भूल थी. सभी लोग उसे ताना मारने लगे. उन के तेवर भी बदल चुके थे.

इस के बाद ससुराल वाले दहेज को ले कर भी आतिया को ताना देने लगे थे. आतिया को सब से बड़ा झटका उस दिन लगा, जब वाजिद ने उस से तल्ख लहजे में कहा, ‘‘बेटी को जन्म दे कर तूने मेरे कंधे झुका दिए हैं.’’

उस की बात पर आतिया को गुस्सा आ गया. उस ने पलट कर जवाब दिया, ‘‘कैसी बात कर रहे हैं आप? कहीं अपने बच्चों के जन्म से भी किसी के कंधे झुकते हैं? आप को खुश होना चाहिए कि 2 बेटियों के पिता हैं. हम इन्हें पढ़ालिखा कर काबिल बनाएंगे.’’

‘‘यह सब ख्याली बातें हैं आतिया, तुम मेरी बात नहीं समझोगी.’’

‘‘मैं आप की सारी बातें समझती हूं.’’ आतिया ने भी तल्खी से जवाब दिया.

‘‘तुम्हें जो सोचना है, सोचती रहो. लेकिन सच यह है कि सिर बेटों से ही ऊंचा होता है.’’

आतिया की सोच और भावनाओं का किसी पर कोई असर नहीं हुआ. फलस्वरूप वक्त के साथ घर में कलह बढ़ती गई. पति की तानेबाजियों ने तल्खियों को और भी बढ़ा दिया. छोटीछोटी बातों पर कई बार विवाद बढ़ता तो आतिया के साथ मारपीट भी हो जाती. पानी सिर से ऊपर जाने लगा था.

आतिया ने ये बातें अपने मायके वालों को बताईं तो उन्होंने उसे सब्र से काम लेने की सलाह दी. लेकिन जब यह आए दिन की बात हो गई तो आतिया के मातापिता ने जा कर वाजिद व उस के घर वालों को समझाने की कोशिश की. इस से कुछ दिनों तक तो सब ठीक रहा, लेकिन जल्दी ही जिंदगी फिर से पुराने ढर्रे पर आ गई.

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धीरेधीरे आतिया की परेशानियों का सिलसिला बढ़ता गया. 12 नवंबर, 2015 को आतिया के साथ हद दर्जे तक मारपीट की गई. उस की तबीयत खराब होने लगी तो उसे उस के हाल पर छोड़ दिया गया. उसे यहां तक कह दिया गया कि वह चाहे तो ससुराल छोड़ कर जा सकती है.

अब आतिया को अपनी जान का खतरा महसूस होने लगा था. उसे जहर दे कर मारने की साजिश की जा रही थी. इसलिए अगले दिन वह दोनों बेटियों के साथ मायके चली आई. उस की हालत देख कर घर में सभी को धक्का लगा. आतिया ने आपबीती सुनाई तो उन्हें लगा कि बेटी जिंदा बच गई, यही बड़ी बात है.

आतिया को अस्पताल में भर्ती करा दिया गया. वह मानसिक व शारीरिक कमजोरी से उबर आई तो उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई. आतिया के साथ ज्यादती हुई थी, इसलिए उस ने पुलिस में जाने का मन बना लिया. ऐसा ही उस ने किया भी. उस ने स्थानीय थाने में अपनी ससुराल वालों के खिलाफ मारपीट व दहेज उत्पीड़न की तहरीर दे दी.

चंद रोज ही बीते थे कि आतिया की जिंदगी में भूचाल आ गया. वाजिद ने 10 रुपए के स्टांप पेपर पर लिख कर तलाकनामा भिजवा दिया. तलाक की तारीख 2 नवंबर लिखी गई थी. दरअसल, ससुराल पक्ष के लोगों को पता चल चुका था कि आतिया पुलिस में शिकायत दर्ज करा रही है, इसलिए उन्होंने चालाकी बरतते हुए तारीख पहले की लिखी थी.

आतिया को उम्मीद नहीं थी कि नौबत यहां तक आ जाएगी. वह महिलाओं को तलाक देने की मुसलिम धर्म की इस परंपरा के खिलाफ थी. वाजिद ने बेटियां पैदा होने और दहेज के लिए उसे सताया और फिर छुटकारा पाने के लिए एकतरफा तलाक भी भेज दिया.

धार्मिक कानून ऐसे तलाक को मान्यता देता था, इसलिए आतिया चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती थी. जबकि वह इस तरह की तलाक प्रक्रिया के खिलाफ थी. मामूली बातों पर दिए जाने वाले तलाक के किस्से वह सुनती आई थी. सारे हक मर्द के पास थे. वह जब चाहे, बीवी को अपनी जिंदगी से निकाल सकता था.

आतिया ने सोच लिया था कि वह खामोश नहीं बैठेगी, बल्कि अपने उत्पीड़न और तलाक के खिलाफ आवाज उठाएगी. उधर पुलिस ने उस की तहरीर के आधार पर मुकदमा दर्ज कर लिया. दिसंबर महीने में पुलिस ने आतिया के पति व ससुर को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. आतिया ने दोनों मासूम बेटियों में खुशियां ढूंढीं और तलाक को चुनौती देने की ठान ली.

आतिया का एक भाई रिजवान सामाजिक कार्यकर्ता था और फरीदी विकास समिति नामक संस्था चलाता था. उस ने भी इस लड़ाई में आतिया का साथ दिया. आतिया तलाक के खिलाफ थी, यह बात नातेरिश्तेदारों और समाज के लोगों को पता चली तो उन्होंने उसे मजहब का वास्ता दे कर समझाया. लेकिन आतिया उन की बात मानने को तैयार नहीं थी.

आतिया के मातापिता व घर वालों को भी लोगों ने समझाने की कोशिश की. लेकिन उन की नजर में आतिया कुछ गलत नहीं कर रही थी. उस की जिंदगी जिस तरह दोराहे पर आ गई थी, उस से वह भी आहत थे और इंसाफ चाहते थे.

आतिया ने ऐसी महिलाओं से मिलना शुरू किया, जो तलाक पीडि़ता थीं. उन की कहानियां उसे विचलित कर जाती थीं. उस ने मुसलिमों के बड़े धार्मिक केंद्र दारुल उलूम देवबंद में पति के तलाक के खिलाफ अर्जी लगाई. लेकिन उन्होंने तलाक को जायज ठहराया और धार्मिक कानून का हवाला भी दिया.

दरअसल, वाजिद वहां से अपने दिए तलाक के बारे में पहले ही फतवा ले चुका था. इस के बावजूद आतिया यह सब मानने को तैयार नहीं थी. क्योंकि उसे धोखे से तलाक दिया गया था. सारे हक एकतरफा थे यानी उस की रजामंदी के कोई मायने नहीं थे.

खास बात यह थी कि वाजिद इस बीच दूसरा निकाह भी कर चुका था. जब दारुल उलूम देवबंद से भी उसे निराशा मिली तो उस ने समाज से टकराते हुए 3 तलाक की परंपरा को बदलने के लिए न्यायालय की दहलीज तक पहुंचाने का मंसूबा बना लिया. 3 तलाक का मुद्दा देश के कई हिस्सों में बहस को जन्म दे रहा था और मुसलिम महिलाएं इस परंपरा के खिलाफ खड़ी हो रही थीं.

आतिया ने दिसंबर, 2016 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाल दी, जिसे स्वीकार कर लिया गया. 3 तलाक एक बड़ा मुद्दा बना ही हुआ था और कुछ याचिकाएं पहले से ही अदालत में थीं. देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था, जब मुसलिम महिलाओं ने 3 तलाक के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया था.

सुनवाई पर आतिया अदालत जाती रही. 3 तलाक का मामला चूंकि संवेदनशील और धार्मिक था, इसलिए सुनवाई के लिए अलगअलग धर्म के 5 जजों का समूह बना कर उन्हें 3 तलाक की सुनवाई और फैसले का जिम्मा दिया गया. इस के बाद ही अदालत ने सभी मामलों को जोड़ कर एक साथ सुनवाई कर के 22 अगस्त को फैसला सुना दिया.

आतिया कहती है कि अदालत के फैसले के बाद मुसलिम महिलाओं के लिए आजादी के दरवाजे खुल गए हैं. मामूली बातों पर भी तलाक को हथियार बना कर औरत से छुटकारा पाने की मनमानी वाली मानसिकता से उन्हें निजात मिलेगी और उत्पीड़न बंद होगा.

आतिया अपने पिता के घर रह रही है. वह अपनी बेटियों को पढ़ालिखा कर आगे बढ़ाना चाहती हैं. उस के पिता कहते हैं, ‘मैं ने बेटी के दर्द को करीब से महसूस किया है. समाज में किसी और बेटी के साथ नाइंसाफी न हो, इस लड़ाई का यही मकसद था.’

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अगले दिन ही तलाक

झारखंड के हजारीबाग में एक गांव है चितरपुर. 8 जून, 2012 को इस गांव की फातिमा सुरैया का निकाह बादमगांव के कैफी आलम से हुआ था.

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फातिमा का कहना है कि निकाह के समय 2 लाख रुपए नकद, 6 लाख रुपए के जेवरात और 2 लाख रुपए का अन्य सामान दहेज में दिया गया था. शादी के एक साल बाद फातिमा एक बेटी की मां बनी. उस के जन्म के 6 माह बाद फातिमा से कहा गया कि वह अपने मायके से 5 लाख रुपए लाए, उसे जमीन खरीदनी है.

वह पैसा लाई भी, लेकिन कैफी आलम ने जमीन अपने नाम खरीद ली. इस के कुछ दिनों बाद वह फातिमा के मायके वालों से 2 लाख रुपए की और मांग करने लगा. पैसे नहीं मिले तो ससुराल वाले सुरैया को प्रताडि़त करने लगे. सुरैया फिर भी सहती रही.

23 अगस्त को सब कुछ ठीक था. सुबह को सुरैया ने पति के साथ नाश्ता भी किया. लेकिन शाम को वह घर आया तो अचानक तीन बार तलाक कह कर उसे बेटे के साथ घर से निकाल दिया, साथ ही कहा भी, ‘थाना कोर्टकचहरी जहां भी जाना हो, जाओ.’

सुरैया अपने मायके चली गई. मायके वालों ने कैफी और उस के घर वालों को समझाने की काफी कोशिश की. लेकिन बात नहीं बनी. वे लोग रांची के अंजुमन कमेटी में गए, लेकिन कमेटी ने 20 दिनों बाद निर्णय लेने की बात कही.

आखिर सुरैया ने थाना कड़कागांव में अपने ससुर फकरे आलम, सास रोशन परवीन, ननद सुबैया आलम और ननदोई परवेज मलिक के खिलाफ दहेज के लिए प्रताडि़त करने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. फैसला तो एक दिन पहले ही आ गया था. अब शायद सुरैया को राहत मिले.

3 तलाक के चक्कर में जान तक लगा दी दांव पर

जिला बरेली के आंवला क्षेत्र के गांव कुड्डा की रहने वाली 3 तलाक पीडि़ता अजरुन्निसा जिल्लत की जिंदगी से इतनी तंग आ गई थी कि 12 मई, 2017 को उस ने जिलाधिकारी कार्यालय के बाहर आत्मदाह की कोशिश की. उस ने अपने ऊपर मिट्टी का तेल डाल लिया था, गनीमत यह रही कि आग लगाने से पहले वहां मौजूद सिपाहियों ने उसे बचा लिया.

घटना से 4 महीने पहले ही अजरुन्निसा का निकाह बरेली के सीबीगंज निवासी तौफीक से हुआ था. शादी के बाद से तौफीक उस पर गलत काम के लिए दबाव डाल रहा था. वह नहीं मानी तो तौफीक उस के साथ मारपीट करने लगा. इस से भी उस का मन नहीं भरा तो शादी के 2 महीने बाद उस ने 3 बार तलाक कह कर अजरुन्निसा को घर से निकाल दिया.

इस के बाद अजरुन्निसा ने न्याय के लिए थाने से ले कर अधिकारियों तक के यहां गुहार लगाई. धर्म के ठेकेदारों के पास भी गई, पर हर जगह निराशा ही मिली. अंतत: उस ने आत्मदाह करने का फैसला किया. बहरहाल, वह बच तो गई, पर उसे न्याय कहीं से नहीं मिला. सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद भी वह न्याय की मुंतजिर है.

ट्रिपल तलाक विशेष : मिली एक और आजादी

बात सन 1978 की है. शाहबानो नामक एक महिला थीं, जिन के 5 बच्चे थे. 3 तलाक के तहत बिना किसी खास वजह के उन के पति ने उन्हें तलाक दे दिया था. पति द्वारा इस तरह खुद से अलग कर देने के बाद शाहबानो के पास अपने और बच्चों के गुजरबसर करने का कोई जरिया नहीं रहा.

दूसरा कोई चारा न देख शाहबानो ने अदालत से गुहार लगाई कि उसे पति से गुजारे के लिए पैसा दिलाया जाए. यह मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा. इस सब में 7 साल का लंबा समय गुजर गया.

अंत में सर्वोच्च न्यायालय ने भादंसं की धारा 125 के तहत जो निर्णय लिया, उस के बारे में यह भी कहा कि यह निर्णय हर किसी पर लागू होता है, चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या संप्रदाय का हो. अपने निर्णय के तहत सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि शाहबानो को गुजारे के लिए खर्च दिया जाए. लेकिन इस फैसले का जो स्वागत होना चाहिए था, वह नहीं हुआ.

भारत के रूढि़वादी मुसलमानों ने इस का विरोध करते हुए कहा कि यह निर्णय उन की संस्कृति और विधानों पर अनाधिकार हस्तक्षेप है. इस में उन्हें असुरक्षा का भाव नजर आया. इस निर्णय को ले कर तमाम नेताओं ने भी विरोध प्रदर्शन किए. इस के बाद इस मामले की वजह से मुसलिमों ने आल इंडिया पर्सनल लौ बोर्ड नाम से अपनी एक संस्था बनाई. इस संस्था के कारकुनों ने इस निर्णय के खिलाफ देश के प्रमुख शहरों में आंदोलन करने की धमकी दी.

उन दिनों देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे, जिन्होंने इस बोर्ड के पदाधिकारियों की सभी शर्तें मान लीं. उस समय इस निर्णय को धर्मनिरपेक्षता के एक अहम उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया था. सन 1986 में कांग्रेस (आई) पार्टी ने, जिसे संसद में बहुमत प्राप्त था, इस मुद्दे पर मसौदा तैयार कर के एक कानून बनाया, जिस ने शाहबानो वाले मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को उलट दिया.

इस कानून के अनुसार, हर वह आवेदन, जो किसी तलाकशुदा महिला के द्वारा भादंसं की 1973 की धारा 125 के तहत देश की किसी भी कोर्ट में विचाराधीन है. इस कानून के लागू होते ही इसी कानून के अंतर्गत निपटाया जाएगा. चूंकि सरकार को पूर्ण बहुमत प्राप्त था, इसलिए धर्मनिरपेक्ष निर्णय को उलटने वाला मुसलिम महिला तलाक अधिकार सरंक्षण कानून 1986 आसानी से पास हो गया.

तय हुआ कि अब आगे यही कानून हर लिहाज से मान्य होगा. इस कानून के कारणों एवं प्रयोजनों की चर्चा करें तो यह बात सामने आई कि जब एक मुसलिम तलाकशुदा महिला इद्दत के समय के बाद अपना गुजारा नहीं कर सकती, तो न्यायालय उन सगेसंबंधियों को उसे उस की जरूरत के हिसाब से खर्चा देने का आदेश कर सकता है, जो मुसलिम कानून के अनुसर, उस की संपत्ति के उत्तराधिकारी हैं.

यहां ‘इद्दत’ का मतलब भी जान लेना जरूरी है. इद्दत का मतलब मुसलमानों में शौहर के मरने अथवा उस के द्वारा बीवी को तलाक देने के बाद का वह समय, जिस में विधवा अथवा तलाकशुदा औरत दूसरी शादी नहीं कर लेती.

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बहरहाल, हम बात कर रहे हैं सन 1986 में बने कानून की. इस के तहत यह प्रावधान रखा गया कि अगर मुसलिम औरत के ऐेसे संबंधी नहीं हैं अथवा वे उसे उस के गुजारे लायक खर्च देने की स्थिति में नहीं हैं तो वक्फ बोर्ड को औरत के गुजारे की जिम्मेदारी उठाने का आदेश दिया जाएगा.

इस तरह पति द्वारा गुजाराभत्ता देने का उत्तरदायित्त्व इद्दत के समय तक के लिए सीमित कर दिया गया. लेकिन मर्दों ने इस पर कोई खास ध्यान नहीं दिया. 3 तलाक का सिलसिला उसी तरह जारी रहा. भारत में मुसलिम औरतों को कोई राहत नहीं मिली.

इसलाम में तलाक के कई स्वरूप हैं. इन के तहत कुछ की पहल स्त्रियों और कुछ की पुरुषों की तरफ से की जाती है. समय और स्थान के अनुसार, इसलाम में तलाक का बदला रूप भी पाया गया है. पहले तलाक में शरिया का इस्तेमाल किया जाता था. शरिया पारंपरिक इसलामी नीतियों पर चलती है, जो विभिन्न इसलामी कानूनी संस्थाओं में विभिन्न तरह की होती है.

पारंपरिक इसलामी नीति इसलामी ग्रंथों मसलन कुरान और हदीस से बनाई गई है. इन कानूनों की प्रणाली में अलगअलग इसलामी कानूनी संस्थाओं द्वारा नईनई चीजें जोड़ी जाती रही हैं. ये चीजें मुफ्तियों द्वारा निर्देशित और नियंत्रित होती हैं. ये मुफ्ती ही अक्सर इसलामी कानून न मानने वाले के खिलाफ अपना फतवा जारी करते हैं.

3 तलाक की बात करें तो यह मुसलिम समाज में वह जरिया था, जिस में एक मुसलमान पुरुष अपनी बीवी को 3 बार तलाक कह कर अपने निकाह को किसी भी समय रद्द कर सकता था. इस तरह से होने वाले तलाक से शादी पूरी तरह खत्म हो जाती थी. इस के बाद अगर वही आदमी अपनी बीवी से फिर से शादी करना चाहे तो बीवी को ‘हलाला’ की प्रक्रिया में से गुजरना पड़ता था. उस के बाद ही उनकी शादी हो सकती थी.

‘हलाला’ एक ऐसी प्रक्रिया थी, जिस में तलाकशुदा औरत को किसी दूसरे मुसलमान पुरुष से शादी कर के उस के साथ कुछ दिन रह कर पत्नी धर्म निभाना पड़ता था. इस के बाद उस से तलाक ले कर वह अपने पुराने शौहर से निकाह कर सकती थी. 3 तलाक को प्राय: ‘तलाक उल बिद््दत’ भी कहा जाता था.

दुनिया में ऐसे भी तमाम बुद्धिजीवी हैं, जिन्होंने 3 तलाक को गैरइसलामिक घोषित करवाने के प्रयास किए हैं. उन का कहना है कि कुरान में इस तरह के तलाक का कहीं जिक्र नहीं है. शौहर और बीवी को तलाक से पहले कम से कम 3 महीने तक एक साथ रहना चाहिए और इस बीच अगर इरादा न बदले और तलाक लेने की स्थिति बनी रहे तो कानूनी सलाह से ही तलाक लिया जाना चाहिए. शौहर अपनी बीवी को तुहर (मासिक धर्म के बाद पवित्रता वाले समय) में ही तलाक दे सकता है. नियम था कि इस के पहले 3 महीनों में उन्हें अपने तमाम शुभचिंतकों, रिश्तेदारों की मदद से अपनी शादी को बचाने की कोशिश करनी चाहिए.

जो भी हो, पुरुष के 3 बार तलाक कह देने भर से हमेशा के लिए तलाक हो जाता था. पहले शौहर अपनी बीवी को सामने खड़ी कर के 3 बार तलाक कह देता था तो दोनों का वैवाहिक रिश्ता टूट जाता था. आज के आधुनिक दौर में यह काम फोन, टैक्स्ट मैसेज, फेसबुक, स्काइप और ईमेल वगैरह से भी होने लगा था. चूंकि इसलामी नियम में इसे कानूनन सही माना जाता था, इसलिए ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ती गईं.

इस सब से पुरुषों पर तो कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, लेकिन उन औरतों को परेशानी हो रही थी, जो आर्थिक रूप से पूरी तरह अपने शौहर पर निर्भर थीं. उन्हें इस तरह के तलाक से जिंदगी में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. आर्थिक परेशानियों के साथ वे भावनात्मक रूप से भी टूट जाती थीं.

ऐसी महिलाओं को किसी भी तरह से निर्वाह का जरिया नहीं मिल पाता था. ये औरतें अकसर अकेली पड़ जाती थीं. इन के पास अपने बच्चों को पालने का कोई साधन तक नहीं रहता था. ऐसे अधिकतर मामलों में 3 तलाक के बाद आदमी अपने बच्चों की, खासकर बेटियों की जिम्मेदारी कभी नहीं लेता था.

मुसलिम समाज की तमाम महिलाएं इसी डर में अपनी जिंदगी गुजार देती थीं कि न जाने कब उन का शौहर 3 शापित शब्द कह दें. क्योंकि इस के बाद उन की जिंदगी खत्म होने के कगार पर आ जाती थी.

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मुसलिम शौहर केवल 3 बार तलाक कह कर कभी भी अपनी शादी को तोड़ सकता था. भारत से पहले दुनिया के 22 देश ऐसे थे, जहां 3 तलाक की मान्यता खत्म कर दी गई थी. दुनिया का पहला देश मिस्र था, जहां 3 तलाक को पहली बार बैन किया गया था. हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान भी इस मामले में हम से आगे रहा. वहां सन 1956 में ही 3 तलाक खत्म कर दिया गया था.

हिंदुस्तान में भी अब बदलाव नजर आने लगा था. लेकिन गुजारेभत्ते के मामले में शाहबानो के फैसले के विरोध में राजीव गांधी सरकार के कानून से बनी बहुसंख्यक सांप्रदायिकता के दंश को यह देश झेल चुका था. लेकिन अब समय बदल चुका था. इलैक्ट्रौनिक एवं सोशल मीडिया के इस बदलते दौर में मुस्लिम महिलाओं के साथ समूचे समुदाय में काफी सकारात्मक मंथन होने लगा था.

इस सब का परिणाम यह रहा कि कुछ समय पहले केंद्र सरकार ने देश के सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि ‘3 तलाक, निकाह, हलाला और बहुविवाह जैसी प्रथाओं से मुसलिम महिलाओं के सामाजिक स्तर और गरिमा को ठेस पहुंचती है. साथ ही उन्हें वो सारे मौलिक अधिकार भी नहीं मिल पाते, जिन्हें हमारा संविधान हमारे लिए लागू करता है.

सर्वोच्च न्यायालय में अपना लिखित मत देने से पहले सरकार ने कहा था कि ये सभी प्रथाएं मुसलिम महिलाओं को बराबरी का हक देने से रोकती हैं.

इस पर टिप्पणी करते हुए औल इंडिया मुसलिम पर्सनल लौ बोर्ड की ओर से कहा गया था कि कुछ लोग इस तरह का माहौल बनाने में लगे हैं कि इस मामले की सुनवाई समाज में तलाक की संख्या बढ़ रही है. लेकिन विश्व भर में इसलामी विद्वानों द्वारा इस की खिलाफत लगातार की जा रही है.

सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात को गंभीरता से लिया. इस सिलसिले में 16 अक्तूबर, 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने स्वत:संज्ञान ले कर जनहित याचिका दायर करने का आदेश दे दिया. तभी इसी तरह का एक मामला सुनवाई के लिए सर्वोच्च न्यायालय में गया.

बात फैली तो सब से पहले उत्तराखंड के काशीपुर की रहने वाली शायरा बानो ने 3 तलाक के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपनी अपील दायर कर दी. याचिका में संबंधित मुद्दों पर प्रकाश डालने के अलावा शायरा ने अपने बारे में बताया था कि उस ने समाजशास्त्र में एमए किया था. सन 2001 में उस की शादी हुई और 10 अक्तूबर, 2015 को 3 बार तलाक कह कर उस के पति ने उस से रिश्ता तोड़ लिया. अब वह स्कूल जाने वाले बेटे और बेटी के साथ अपने मांबाप के यहां रह रही है. उन्हीं की मदद से वह दिल्ली आई थी और एडवोकेट बालाजी श्रीनिवासन से मिल कर कोर्ट में केस दायर कर दिया था.

शायरा की याचिका स्वीकार होने के बाद सुनवाई शुरू होते ही 4 अन्य मुस्लिम महिलाओं ने भी इसी तरह की याचिका सर्वोच्च न्यायालय में दायर कर दीं. वे थीं जयपुर राजस्थान की रहने वाली बिजनैस ग्रैजुएट आफरीन रहमान, उत्तर प्रदेश के सहारनपुर की रहने वाली आतिया साबरी, अंग्रेजी से एमए की डिग्री हासिल करने वाली उत्तर प्रदेश के रामपुर की रहने वाली गुलशन परवीन और पश्चिम बंगाल के हावड़ा की रहने वाली इशरत जहां.

शादी के 15 सालों बाद एक दिन अचानक  दुबई से इशरत के पति का फोन आया और उस ने फोन पर ही तलाक…तलाक…तलाक… कह कर उसे अपनी जिंदगी से निकाल दिया. इस के कुछ दिनों बाद ही पति ने दूसरी शादी कर ली थी.

गुलशन परवीन एक निजी स्कूल में टीचर थीं. उस के गर्भवती होने पर ससुराल वालों ने उसे मायके भेज दिया, जहां 8 महीने बाद उस ने बेटे को जन्म दिया. बच्चे को ले कर ससुराल लौटी तो पति ने उस के साथ मारपीट शुरू कर दी.

बाद में पति ने 3 तलाक का सहारा लेते हुए उस से रिश्ता तोड़ लिया. इसी तरह आफरीन रहमान और आतिया साबरी को उन के पतियों ने खत के जरिए तलाक दे दिया था. इस के बाद ये महिलाएं अपनीअपनी याचिकाओं के साथ देश की सर्वोच्च न्यायालय में पहुंची थीं.

इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की खंडपीठ ने की. केंद्र की ओर से कहा गया कि सभी पर्सनल कानून संविधान के दायरे में हों. शादी, तलाक संपत्ति और उत्तराधिकार के अधिकार को भी एक नजर से देखा जाना चाहिए. माननीय जजों ने 11 मई, 2017 से 18 मई, 2017 तक लगातार इस मामले में सभी पक्षों की दलीलें सुनीं.

सर्वोच्च न्यायालय की ओर से 2 मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया कि 3 तलाक क्या इसलाम का मौलिक हिस्सा है? इस के बिना क्या इसलाम का स्वरूप बिगड़ जाएगा? पुरुषों को प्राप्त 3 तलाक का आधार क्या मुसलिम महिलाओं के समानता और सम्मान के अधिकार के विरुद्ध हैं?

इस प्रकरण में जहां केंद्र सरकार का रवैया खासा उत्साहजनक था, वहीं इंडियन मुसलिम पर्सनल लौ बोर्ड के अलावा अन्य संगठन जमीयत उलेमा ए हिंद के पदाधिकारियों ने अदालत में व्यंग्यात्मक लहजे में कहा कि मुसलिम महिलाओं की हालत एक ऐसी असहाय चिडि़या जैसी है, जिसे सुनहरी बाज हमेशा दबोचने की फिराक में रहता है. इस पर सरकार की ओर से कहा गया कि यहां मुसलिम पुरुषों एवं महिलाओं के बीच के टकराव की बात हो रही है.

बहरहाल, 22 अगस्त, 2017 को पीठासीन जजों ने इस मुद्दे पर अपनी अलगअलग राय कुछ इस तरह से व्यक्त की.

चीफ जस्टिस जे.एस. खेहर और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर का कहना था कि 3 तलाक धार्मिक प्रथा का हिस्सा है. संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत इसे संरक्षण प्राप्त है. लिहाजा न्यायपालिका इस में हस्तक्षेप नहीं कर सकती. इस मामले में सरकार को पहल करते हुए कानून बनाना चाहिए.

दूसरी ओर जस्टिस कुरियन जोसफ, जस्टिस रोहिंटन एफ नरीमन एवं जस्टिस यू्.यू. ललित ने उक्त दोनों जजों की राय से असहमति प्रकट करते हुए कहा कि यह असंवैधानिक है, इसलिए इसे निरस्त किया जाए.

इस के बाद उसी दिन सर्वोच्च न्यायालय ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मुसलिम समाज में एक बार में 3 तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) की इस 14 सौ साल पुरानी प्रथा को खारिज कर दिया. ऐसा संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 21 का उल्लंघन करार देते हुए किया गया था.

इस प्रथा की रोक पर सहमति के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केंद्र सरकार को 6 महीने के भीतर इस संबंध में कानून बनाने का निर्देश दिया गया.

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से भारतीय मुसलिम समाज की महिलाओं में खुशी की लहर दौड़ गई है. बहुत सी महिलाओं को तो यहां तक कहते सुना गया है कि भारत को 1947 के अगस्त माह में आजादी मिली थी, उन्हें एक तरह से यह दूसरी आजादी मिली है. देश आजाद होने के भले ही 70 साल बाद सही, पर मिली अगस्त में ही है.

ट्रिपल तलाक विशेष : आज भी आधे अधूरे हैं नीलोफर के सवालों के जवाब

कहानी की शुरुआत एक उर्दू मैगजीन के औफिस से होती है. एक हसीन नौजवान शायरा नीलोफर गुस्से में तमतमाई औफिस में दाखिल होती है और एक कर्मचारी से एडीटर का पताठिकाना पूछती है. उस कर्मचारी के मुंह में पान की पीक भरी थी. वह इशारा कर के उसे चपरासी के साथ एडीटर के कमरे की तरफ भेज देता है.

चपरासी जब नीलोफर का विजिटिंग कार्ड एडीटर को देता है तो वह एक मुलाजिम पर किसी बात पर गुस्सा हो रहा होता है और उसी गुस्से में कार्ड अंगुलियों पर घुमाते हुए बोलता है, ‘‘जाओ, कह दो मेरे पास वक्त नहीं है.’’

बाहर खड़ी नीलोफर यह सब सुनती है तो उस का पारा और चढ़ जाता है और वह गुस्से में धड़ाम से दरवाजा धकेलने की बेअदबी करने से खुद को नहीं रोक पाती और कमरे में पहला कदम रखते ही लगभग चिल्लाती है, ‘‘वक्त तो मेरे पास भी नहीं है जनाब.’’

हैदर जैसे ही उस गुस्ताख आवाज और लड़की को देखने के लिए नजर उठाता है तो ऐसे चौंकता है, मानो बिच्छू ने डंक मार दिया हो. ठीक यही हालत नीलोफर की भी था, जो गुस्सा भूल कर हैदर को इस तरह अपलक देख रही थी, मानो उसे यकीन न हो रहा हो.

चंद लमहे दोनों सुधबुध खो कर बिना पलक झपकाए एकदूसरे को देखते रहते हैं. और जब खुद पर यकीन हो जाता है कि वे कोई ख्वाब नहीं देख रहे हैं तो सहज होने की कोशिश करते हैं. हैदर मुलाजिम को कमरे से बाहर भेज देता है और चपरासी को चायनाश्ता लाने का हुक्म देता है. इस दौरान उस की हड़बड़ाहट देखने काबिल होती है.

नीलोफर अदब से उसे आदाब करती है और वह भी उसे पूरी इज्जत से बैठाता है. हैदर को इस बात पर कुदरती तौर पर हैरानी होती है कि इतने बड़े नवाब खानदान की बहू यूं आ कर 50 रुपए फीस के लिए झिकझिक करेगी. नीलोफर हैदर को बताती है कि वह नाम बदल कर नज्में लिखती है और इसी शहर के एक गर्ल्स हौस्टल में रहती है. यह सुन कर हैदर और भी ज्यादा चकरा जाता है.

थोड़ी देर में दोनों सहज हो जाते हैं और फिर शुरू होता है बातचीत का सिलसिला, जिस में हैदर नीलोफर को बड़ी बेतकल्लुफी से बताता है कि कालेज के दिनों में वह उस पर मरता था और उसे इंप्रैस करने के लिए उस ने क्याक्या नहीं किया था. वह आगे बताता है कि कालेज के पहले ही दिन नीलोफर यानी उस की चर्चा हुई थी तो लड़के कह रहे थे कि नीलोफर है तो बला की खूबसूरत, लेकिन किसी को घास तक नहीं डालती.

इस पर हैदर ने एक दोस्त सैफ से शर्त लगाई थी और 10 रुपए जीत गया था. नीलोफर यह जान कर चकित होती है कि हैदर उसे चाहने लगा था तो उस ने कभी अपनी चाहत का इजहार क्यों नहीं किया. हालांकि एक दफा गुलाब का फूल ले कर वह उस के घर तक भी गया था, पर अल्हड़ नीलोफर ने उसे झिड़क कर भगा दिया था. इस के बाद मायूस हैदर ने उसे भूल जाने में ही बेहतरी समझी. यह दीगर बात है कि वह उसे कभी भूल नहीं पाया.

हैदर नीलोफर को बताता है कि शर्त में जीते 10 रुपए और कभी उस की किताब से गिरा गुलाब का फूल आज भी उस के पास सलामत है. और तो और नीलोफर को पटाने के लिए उस ने एक सितार भी खरीदा था, लेकिन जिस दिन उसे मालूम हुआ कि उस नीली आंखों वाली नीलोफर की शादी किसी नवाब से होने जा रही है तो उस ने दूसरी यादों की तरह उस सितार को भी हमेशा के लिए सहेज कर एक कोने में रख दिया, साथ ही उस ने उस का नाम ही नीलोफर रखा था.

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अपनी बात सुना कर जब वह नीलोफर से उस के बारे में पूछता है तो वह सुबकने लगती है. फिर धीरेधीरे कई मुलाकातों में अपनी दर्दभरी दास्तां बयान करती है, जिसे सुन कर हैदर का दिल दर्द से भर जाता है.

जहां से तुम्हारी कहानी खत्म होती है, वहीं से मेरी कहानी शुरू होती है. नीलोफर हैदर को बताती है कि कालेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद उस की शादी वसीम से तय हो गई थी. वसीम एक नामी नवाब खानदान का वारिस था, जिसे वह बचपन से जानती थी और चाहती भी थी. वसीम विदेश से वापस लौटा तो उन दोनों की शादी धूमधड़ाके से हो गई.

शादी के दूसरे दिन ही वसीम को तार के जरिए इत्तला मिली कि उसे एक फाइवस्टार होटल का कौंट्रैक्ट मिल गया है. यह सुन कर वह मारे खुशी के झूम उठा और नीलोफर को अपने लिए लकी मानने लगा. महत्त्वाकांक्षी वसीम रोमांटिक तो था, लेकिन बहुत सारा पैसा कमा लेना चाहता था, इसलिए शादी के बाद वह अपने कारोबार में इस तरह तल्लीन हो गया कि नीलोफर के लिए उस के पास वक्त ही नहीं रहा.

वह नीलोफर से अकसर वादा करता रहता कि आज फिल्म देखने चलेंगे या किसी होटल में साथसाथ लंच करेंगे. यह सुन कर नीलोफर खुश हो जाती थी, लेकिन वसीम कभी वक्त पर नहीं आता तो वह झल्लाने लगती थी. फिर भी वसीम हर बार प्यार से उसे मना लेता था.

जब वे हनीमून मनाने मुंबई गए, तब भी वसीम अपनी कारोबारी मीटिंगों में उलझा रहा और वह फाइवस्टार होटल में अकेली पड़ी उस का इंतजार करती रही.

इसी दौरान वसीम के घर वाले यानी नीलोफर के सासससुर और ननद व उस के बच्चे हज पर चले गए तो वह और भी तनहा हो गई. अब बड़ी हवेली में घर का बुजुर्ग नौकर जुम्मन भर रह गया था, जो उसे छोटी दुलहन कह कर पुकारता था. रोजाना डायरी लिखने की शौकीन नीलोफर अपनी तनहाई का दर्द पन्नों पर उतारती थी.

एक दिन उस वक्त हद हो गई, जब देर रात वसीम शराब पी कर आया. इस पर नीलोफर ने ऐतराज जताया और मरजी न होते हुए शौहर की मांग पर सैक्स करने से मना कर दिया. इस के लिए वसीम ने उसे खासी खरीखोटी सुनाई. उस रात दोनों में खूब तकरार हुई और नीलोफर दूसरे कमरे में जा कर सो गई. नशे में धुत वसीम अपने बिस्तर पर लुढ़क गया.

सुबह जब नीलोफर जागी तो रेडियो चालू करने पर 18 अक्तूबर की तारीख सुन उसे याद आया कि आज तो बड़ा मुबारक दिन है. एक साल पहले इसी दिन वसीम से उस की शादी हुई थी.

नीलोफर तय कर लेती है कि आज सारे गिलेशिकवे भूल जाएगी. रात की बात भूल कर वह जुम्मन मियां के हाथ से चाय की ट्रे ले कर खुद वसीम को चाय देने जाती है और प्यार से वसीम को जगाती है. वसीम दोहराता है कि आज उस की जिंदगी का सब से भाग्यशाली दिन है, क्योंकि आज ही के दिन नीलोफर उस की शरीकेहयात बनी थी.

प्यारभरी बातें करतेकरते दोनों तय करते हैं कि अब कभी लड़ाईझगड़ा नहीं करेंगे और प्यार से रहेंगे. औफिस जातेजाते वसीम उसे बताता है कि उस ने आज शाम हवेली में शादी की पहली सालगिरह की बड़ी दावत रखी है और वह वक्त पर घर आ जाएगा.

नीलोफर दिन भर सजतीसंवरती है और पार्टी की तैयारियां करती है. उस की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था. शाम ढलते ही मेहमानों के आने का सिलसिला शुरू हो गया, पर वसीम आदतन वक्त पर नहीं आया. घंटे दो घंटे तो नीलोफर ने सब्र किया, पर मेहमानों के बारबार वसीम के दावत में न होने के जवाब पर झूठ बोलतेबोलते वह झल्लाने लगी. पार्टी में कालेज के जमाने का दोस्त सैफ भी आया था, जो अब एक मैगजीन का एडीटर बन गया था.

जब मेहमान ज्यादा ताने मारने लगते हैं तो गुस्साई नीलोफर बगैर कुछ कहेसुने ऊपर जा कर अपने कमरे में बंद हो जाती है और शौहर की व्यस्तता को कोसती है. नीचे दावत में सैफ और एक अन्य औरत के भड़काने पर मेजबान के न होने को अपनी बेइज्जती समझ मेहमान बगैर खाना खाए चले जाते हैं. सालगिरह का केक ज्यों का त्यों रखा रह जाता है.

देर रात वसीम वापस आता है तो जुम्मन से उसे पता चलता है कि मेहमान बगैर खाना खाए ही चले गए हैं. वसीम को नीलोफर की यह हरकत नागवार गुजरती है. उसे लगता है कि बीवी ने जानबूझ कर उस के नवाबी खानदान की बेइज्जती करा दी है.

कमरे में जा कर वह नीलोफर से सफाई मांगता है तो पहली दफा वह ऊंची आवाज में उस के हर सवाल का सधा जवाब देती है. दोनों में खूब झगड़ा होता है. वसीम अपनी गलती नहीं मानता और नीलोफर के माफी न मांगने पर उसे ‘तलाक तलाक तलाक’ कह कर हवेली से निकाल देता है.

अपनी कहानी सुना कर नीलोफर सिसकने लगती है तो हैदर उसे सांत्वना देते हुए पूछता है कि वह बजाय अपने घर यानी मायके जाने के हौस्टल में क्यों रहती है? इस पर नीलोफर जवाब देती है कि शौहर के घर के अलावा दुनिया की कोई भी चारदीवारी औरत के लिए घर नहीं हो सकती. यह जवाब सुन कर हैदर निरुत्तर हो जाता है.

वह मन ही मन नीलोफर से शादी करने का फैसला कर लेता है. नीलोफर भी उस की सादगी और रोमांटिक अंदाज पर फिदा हो जाती है. बढ़ती मेलमुलाकातों के दौरान प्यार का इजहार होता है और शादी की बात भी हो जाती है.

लेकिन शादी के पहले ही नीलोफर सैफ की मैगजीन में नौकरी कर लेती है. मिठाई ले कर वह यह खबर हैदर को सुनाने जाती है तो वह अचकचा उठता है, क्योंकि वह जानता था कि सैफ अच्छा आदमी नहीं है. वह अव्वल दरजे का लंपट है. लेकिन वह नीलोफर से सीधे उस के यहां नौकरी करने के लिए मना नहीं कर पाता.

हैदर को मिठाई खिला कर नीलोफर उस के दफ्तर से चली जाती है, लेकिन अपना चश्मा वहीं भूल जाती है. अपने दफ्तर में बदनीयत सैफ जानबूझ कर नीलोफर को देर रात तक काम के बहाने बैठाए रखता है और सभी मुलाजिमों के चले जाने के बाद अकेले में उस की इज्जत लूटने की कोशिश करता है. इत्तफाक से नीलोफर का चश्मा लौटाने आया हैदर वक्त पर पहुंच जाता है और नीलोफर को सैफ के चंगुल से बचा लेता है.

जल्द ही दोनों शादी का फैसला कर लेते हैं. इस बीच नीलोफर की याद में तड़पते हुए पछता रहा वसीम उसे वापस पाने की हर मुमकिन कोशिश करता है, लेकिन नीलोफर उस की बातें सुन कर नहीं पसीजती. एक बार वसीम के बुलावे पर वह हवेली गई भी, लेकिन जल्द ही वापस भी लौट गई. उस वक्त नशे में धुत हवेली में पड़ा वसीम एक पुरानी गजल सुन रहा था.

जुम्मन नीलोफर से वापस आने की गुजारिश करता है, पर नीलोफर का दोटूक जवाब सुन कर वह खामोश रह जाता है कि आज जिस चौराहे पर मैं खड़ी हूं, वहां से कोई भी रास्ता इस घर की तरफ नहीं आता.

मायूस वसीम इमाम से मिलता है और नीलोफर से दोबारा शादी के बारे में पूछता है. इस पर इमाम उसे हलाला का हवाला दे कर बताता है कि नीलोफर को उस से दोबारा शादी करने से पहले किसी गैदमर्द से शादी करनी होगी और बाकायदा बीवी की तरह उस के साथ कुछ वक्त गुजारना होगा. अगर उस का वह शौहर नीलोफर को तलाक देने पर तैयार हो जाए, तभी वह उस से शादी करने का हकदार होगा.

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हैदर और नीलोफर की शादी में वसीम तोहफा ले कर पहुंचता है और उसे मुबारकबाद देता है, तभी बिजली चली जाती है. बिजली ठीक कराने हैदर खुद जाता है तो वसीम नीलोफर से कहता है कि तुम ने शादी करने का ठीक फैसला लिया, अब जल्द से घर वापस आ जाओ, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.

नीलोफर उसे समझाने की कोशिश करती है कि यह उस की गलतफहमी है कि वह अब भी उसे चाहती है और हलाला के लिए शादी कर रही है. वह अपनी बात सख्ती से वसीम को समझा पाती, इस के पहले ही बिजली और हैदर दोनों आ जाते हैं, लिहाजा वह चुप हो जाती है.

शादी के बाद हैदर के घर आ कर नीलोफर को सुकून मिलता है. हैदर बेहद रोमांटिक होने के साथसाथ उस का खयाल रखने वाला शौहर भी है, जो उस की हर पसंदनापसंद का खयाल रखता है.

नीलोफर साफसाफ महसूस करती है कि वसीम के पास उस के लिए वक्त नहीं होता था, पर हैदर के पास उस के लिए मुकम्मल वक्त है. जैसा घर और शौहर उसे चाहिए था, दूसरी शादी के बाद ठीक वैसा ही मिल गया.

दोनों हनीमून मनाने मुंबई पहुंचते हैं तो इत्तफाक से उन्हें उसी होटल और उसी कमरे में जगह मिलती है, जहां पहली शादी के बाद वसीम और उसे मिली थी. यहां तक कि होटल का स्टाफ भी नीलोफर को पहचान लेता है कि वह करीब 2 साल पहले भी अपने शौहर के साथ यहां आई थी.

नीलोफर की हालत अजीब हो जाती है. उसे रहरह कर वसीम के साथ वहां गुजारा वक्त याद आने लगता है. हालांकि उस के दिल में अब वसीम के लिए कुछ भी नहीं था, मगर यादें आसानी से पीछा नहीं छोड़तीं.

घर वापस आ कर वह इन तमाम वाकयों को आदतन सिलसिलेवार डायरी में लिखती जाती है. एक दिन हैदर उस की डायरी पढ़ लेता है. बीवी का लिखा यह जुमला उस के चेहरे की रंगत उड़ा देता है कि औरत अपना पहला प्यार कभी नहीं भूलती.

इस डायरी को पढ़ने के बाद हैदर के मन में शक पैदा हो जाता है कि नीलोफर उस से शादी करने और इतना प्यार देने के बाद भी वसीम को भूल नहीं पाई है. नीलोफर उस का पहला प्यार थी, इसलिए उसे एकदम इस बात पर यकीन भी नहीं होता.

अपनी तसल्ली के लिए वह एक मनगढं़त कहानी उसे सुना कर क्लाइमैक्स पूछता है कि एक लड़की थी, जो एक लड़के से बेहद प्यार करती थी. दोनों की सगाई हो चुकी थी, लेकिन लड़का मिलिटरी में था और जंग के चलते उस के मरने की खबर आई.

कुछ दिनों बाद लड़की की शादी दूसरे लड़के से तय हो जाती है. दोनों एकदूसरे को बहुत चाहते हैं, लेकिन तभी पता चलता है कि उस का मंगेतर मरा नहीं था, बल्कि जिंदा था. ऐसी स्थिति में एक अजीब सी उलझन पैदा हो जाती है. हैदर नीलोफर से पूछता है कि ऐसे में लड़की को किस लड़के को चुनना चाहिए. नीलोफर कुछ सोच कर जवाब देती है कि पहले लड़के को.

इस जवाब को सुन कर हैदर सन्न रह जाता है और समझता है कि नीलोफर अभी भी वसीम को चाहती है. उस ने उसे महज हलाला की रस्म अदा करने के लिए उस से शादी की है. वह मन ही मन दोनों के रास्ते से हटने का फैसला ले लेता है.

नीलोफर के जन्मदिन पर वह बतौर तोहफा वसीम को सामने ला कर खड़ा कर देता है तो वह सन्न रह जाती है. हैदर के यह कहने पर कि तुम्हीं ने तो उस कहानी का क्लाइमैक्स तय किया था. नीलोफर समझ जाती है कि हैदर एक ऐसी गलतफहमी का शिकार हो गया है, जो अब दूर होने वाली नहीं है.

इधर दरियादिली दिखाते हुए हैदर उसे शरई तौर पर आजाद करने की बात कहता है तो वह और भी तिलमिला उठती है.

वह हैदर और वसीम दोनों से कहती है कि आप मर्दों ने औरत को समझ क्या रखा है, जेब में रखा नोट या पलंग, जो जब चाहा बदल लिया. औरत क्या जायदाद होती है, जो जब चाहा, दूसरे को दे दिया. वसीम ने तलाक गाली की तरह दिया तो हैदर तोहफे की तरह दे रहा है. क्या औरत की मरजी और वजूद के कोई मायने नहीं हैं.

इसी गुस्से में वह एक सवाल और पूछती है कि जब निकाह औरत की मरजी से होता है तो तलाक उस की बिना मरजी के कैसे हो सकता है? नीलोफर के बेबस गुस्से के सवालों के जवाब न तो वसीम के पास थे और न ही हैदर के पास.

निकाह, तलाक और शरीयत के खेल में औरत के वजूद और हैसियत को तलशते सवालों के जवाब बीती 22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के अहम फैसले में सिमटे हैं, जो अभी पूरी तरह साफ नहीं हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने 3 तलाक के रिवाज को नाजायज बताते हुए संसद को इस बाबत कानून बनाने का निर्देश दिया तो निर्मातानिर्देशक बलदेव राज चोपड़ा की साल 1982 में प्रदर्शित ‘निकाह’ फिल्म की इस कहानी की याद हो आई, जो स्वाभाविक बात थी. इस फिल्म में वसीम की भूमिका में दीपक पाराशर, हैदर की भूमिका में राजबब्बर और नीलोफर के किरदार को पाकिस्तानी मूल की नायिका और गायिका सलमा आगा ने निभाया था.

बहुत सी सत्यकथाओं के बीच निकाह फिल्म की यह कहानी उन से ज्यादा प्रभावी साबित हुई थी, जब भारत सहित पाकिस्तान में भी कट्टरवादी इस फिल्म के विरोध में सड़कों पर उतर आए थे.

किसी को अंदाजा नहीं था कि एक कुरीति पर प्रहार करती फिल्म ‘निकाह’ इतनी हिट साबित होगी. इस की वजह इस की कास्टिंग बेहद कमजोर मानी जा रही थी और हकीकत में थी भी. फिर भी फिल्म को इसलिए पसंद किया गया, क्योंकि यह एक कुरीति के विरुद्ध कटु सत्य बयां करती थी.

‘निकाह’ के सफल होने की वजह एक ज्वलंत सामाजिक समस्या को बेहद सटीक अंदाज में पेश किया जाना था. प्रसिद्ध लेखिका अचला नागर द्वारा लिखित इस कहानी में तलाकशुदा औरत की बेबसी को सलमा आगा ने जीवंत कर दिया था.

मर्दों का समाज पर किस हद तक दबदबा है, यह भी फिल्म ने साबित किया था. क्योंकि परेशानी एक नहीं, बल्कि लाखों नीलोफरों की है, जो तलाक तलाक तलाक के बुरे दौर से गुजरती हैं तो कहीं की नहीं रह जातीं, न घर की न घाट की.

चूंकि फिल्म थी, इसलिए इस का अंत सुखद था. नहीं तो आमतौर पर ऐसा होता नहीं है कि कोई वसीम अपनी गलती और खुदगर्जी स्वीकार ले. 3 लफ्ज तलाक के कह कर बीवी को अपनी जिंदगी और घर से निकाल देना कोई मर्दानगी की नहीं, बल्कि सामाजिक तौर पर शर्मिंदगी और जलालत की बात है.

बी.आर. चोपड़ा की इस फिल्म में कई और भी दिलचस्प बातें थीं. मसलन पहली बार चरित्र अभिनेता इफ्तिखार ने नौकर का रोल किया था, नहीं तो वह अकसर पुलिस इंसपेक्टर, डाक्टर या जज के रोल में ही दिखाई देते थे.

दूसरे चोपड़ा साहब ने इस फिल्म का नाम पहले ‘तलाक तलाक तलाक’ रखा था, जिस पर उन के नजदीकी मुसलिम दोस्त ने चिंता जताते हुए कहा था कि ऐसे तो एक दिन में लाखों तलाक हो जाएंगे, क्योंकि मुसलमान दर्शक जब यह फिल्म देख कर घर पहुंचेंगे और बीवी के पूछने पर फिल्म का नाम बताएंगे तो वे ‘तलाक तलाक तलाक’ कहेंगे और शरीयत के मुताबिक उन का तलाक हो जाएगा. इस पर बी.आर. चोपड़ा ने फिल्म का नाम ‘निकाह’ रख दिया था.

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‘निकाह’ फिल्म के गाने आज 35 साल बाद भी शिद्दत से गाए और गुनगुनाए जाते हैं, जिन में सलमा आगा ने भी आवाज दी है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सलमा आगा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बधाई भी दी थी और इस फैसले को औरतों के हक में राहत देने वाला बताया था.

35 सालों तक नीलोफर के सवाल जवाब तलाशते रहे, जिन्हें अब कानूनी जामा संसद पहनाएगी. इस पर विवाद और बहस जारी है. अपने हक की लड़ाई लड़ती औरतें अपनी दास्तां बयान कर रही हैं, पर क्या यह इतना आसान है? इस सवाल का जवाब बेहद निराशाजनक तरीके से न में निकलता है.

80 के दशक के एक शिक्षित मुसलमान परिवार में तलाक बड़ी आसानी से दे दिया जाता था तो अशिक्षित तबके में क्या कुछ नहीं होता होगा, इस का सहज अंदाज लगाया जा सकता है कि मर्द अपने दबदबे और शरीयत का किस तरह फायदा उठा रहे थे.

दहेज कानून के बाद भी दहेज हत्याएं जारी हैं, बहुएं जलाई जा रही हैं. ऐसे में क्या नए प्रस्तावित कानून के मसौदे से उम्मीद रखी जाए? तलाक के मुकदमे सालोंसाल चलते हैं, जिस का खामियाजा और तनाव मियांबीवी दोनों को भुगतना पड़ता है.

असल में फसाद की जड़ धर्म और कानून दोनों हैं. कानून बना तो मुसलिम औरतें और मर्द दोनों सालोंसाल अदालत के चक्कर काटते 3 तलाक के दिनों को याद करेंगे कि इस से बेहतर तो वही था. अगर भाग कर वे धर्म की शरण लेने को विवश होंगे तो यह उस कानून की हार होगी, जिस पर आज देश भर में जश्न मनाया जा रहा है.

औरत किसी कानून के बना देने से मुसीबतों से छुटकारा नहीं पा सकती, यह कहने और स्वीकारने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए. जब तक तलाक नहीं हो जाता, तब तक उस से कोई दूसरी शादी नहीं कर सकता. ऐसे में उस की हैसियत क्या होगी, कौन उसे छत और रोटी देगा, इस पर कानून शायद ही कुछ बोले या करे.

नीलोफर के सवालों के मुकम्मल जवाब अभी भी नहीं मिले हैं और न ही मिलने की उम्मीद है, क्योंकि समाज और धर्म पर कब्जा और दबदबा तो मर्दों का ही था, है और रहेगा. बहस तलाक के तरीके पर हो रही है, औरत की हैसियत सुधारने पर हर कोई खामोश है.

इन महिलाओं पर नहीं चलता इराकी शरीयत का कानून

इराक ऐसा मुसलिम देश है, जहां शरीयत कानून चलता है, जिस की वजह से वहां की महिलाओं पर तमाम पाबंदियां हैं. मसलन वे बिना बुरका पहने नहीं निकल सकतीं, इधरउधर घूम नहीं सकतीं, मर्दों के साथ पार्टियां नहीं कर सकतीं. वहीं दूसरी ओर एक तबका ऐसा भी है, जिस पर ये पाबंदियां लागू नहीं होतीं.

यह तबका है उच्चवर्ग का. उन के घर की महिलाएं चाहे जिस तरह का कपड़ा पहनें, जहां मन हो वहां आएंजाएं, बिना बुरका पहने घूमें, कोई रोकनेटोकने वाला नहीं है. यही नहीं, वे शराब और सिगरेट भी पीती हैं, कोई कुछ नहीं कहता.

एक ही देश में भेदभाव के आधार पर शरीयत का कानून लागू करने वाली बात अजीब सी लगती है. जब शरीयत का कानून लागू होता है तो वह सभी के साथ होना चाहिए, इस में भेदभाव कैसा. बंदिशों की वजह से अनेक महिलाएं घुटघुट कर जी रही हैं. एक सामाजिक संस्था ने महिलाओं का सर्वे किया तो जानकारी मिली कि 17 फीसदी महिलाएं मानसिक परेशानियों से जूझ रही हैं. ये वही महिलाएं हैं, जिन पर शरीयत का कानून थोपा गया है.

ये आंकड़े पता चलने के बाद सन 2003 में कुछ सामाजिक संस्थाएं पिछड़े तबके की महिलाओं को आजादी दिलाने के लिए आगे आईं. संस्थाओं का कहना था कि अमीर घरानों की लड़कियों और महिलाओं की तरह पिछड़े वर्ग की लड़कियों और महिलाओं को भी आजादी मिले.

अमीर घरों की लड़कियां बुरका पहनना तो दूर की बात, वे आधुनिक फैशन के कपड़े पहन कर महंगी गाडि़यों में घूमने निकलती हैं. उन की आधुनिकता देख कर हर कोई यही समझेगा कि ये शरीयत का कानून वाले देश की नहीं, बल्कि अमेरिका या आस्ट्रेलिया की हैं.

इंस्टाग्राम पर richkidsofiraq नाम से चलने वाले एकाउंट पर जब आप इन उच्चवर्ग की लड़कियों, महिलाओं के फोटो देखेंगे तो यकीनन आप चौंक जाएंगे. जब इन लड़कियों पर कोई प्रतिबंध नहीं तो पिछड़े वर्ग की लड़कियों को सामाजिक और धार्मिक प्रतिबंधों में क्यों जकड़ कर रखा गया है.

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