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गणतंत्र दिवस पर दिल्ली पुलिस की व्यस्तता बढ़ जाना स्वाभाविक होता है, कारण इस अवसर पर दिल्ली आने वाले वीआईपी विदेशी मेहमानों, वीवीआईपी और वीआईपी की सुरक्षा की जिम्मेदारी तो दिल्ली पुलिस को संभालनी ही होती है, साथ ही आतंकवादी गतिविधियों का खतरा अलग से बना रहता है.

इस बार तो इस मौके पर आसियान सम्मेलन भी था. बहरहाल, कहने का अभिप्राय यह है कि 26 जनवरी को होने वाले गणतंत्र दिवस के आयोजन की वजह से दिल्ली पुलिस स्थानीय नागरिकों की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दे पाती. ऐसे में कई बार ऐसी वारदातें हो जाती हैं, जो पीडि़तों के लिए तो दुखदायी होती ही हैं, पुलिस के लिए भी परेशानियां खड़ी कर देती हैं.

ऐसी ही एक वारदात गणतंत्र दिवस से एक दिन पहले यानी बीती 25 जनवरी को पूर्वी दिल्ली के जीटीबी इनक्लेव में घटी. समय था सुबह के साढ़े 7 बजे का. विवेकानंद स्कूल की बस छोटे बच्चों को ले कर स्कूल जा रही थी. इसी बस में कृष्णा मार्ग, न्यू मौडर्न कालोनी, शाहदरा निवासी करोड़पति व्यवसाई सन्नी गुप्ता का 5 वर्षीय बेटा और 7 साल की बेटी भी थे, जो शिवम डेंटल क्लीनिक के सामने से बस में बैठे थे.

विवेकानंद स्कूल की यह बस बच्चों को लेते हुए जब इहबास इलाके में एक बच्चे को लेने के लिए रुकी थी, तभी मोटरसाइकिल पर 2 युवक आए और बाइक खड़ी कर के हेलमेट पहने बस में चढ़ने लगे.

बस के गेट के पास खड़ी मेड ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो उन में से एक युवक ने गाली देते हुए उसे साइड कर दिया. ड्राइवर नरेश थापा ने उन्हें टोका तो एक युवक ने उस के पैर में गोली मार दी. यह देख सारे बच्चे घबरा गए. तभी एक युवक ने आवाज दी, ‘‘विहान.’’

विहान पीछे की सीट पर अपनी बहन के साथ बैठा था, अपना नाम सुन कर वह खड़ा हो गया. युवक ने उसे गोद में उठा लिया और बस से उतरने लगा. बच्चे रोने लगे तो उस ने धमकी दी, ‘‘कोई भी रोया तो गोली मार दूंगा.’’ उस समय बस में 22 बच्चे थे.

अगले ही कुछ पलों में दोनों युवक विहान को ले कर मोटरसाइकिल से भाग निकले. जहां वारदात हुई, वह जगह सुनसान थी. जब तक लोग वहां पहुंचे, तब तक दोनों युवक आनंद विहार की ओर निकल गए. लोगों ने घायल ड्राइवर को जीटीबी अस्पताल पहुंचाया. फोन कर के स्कूल से दूसरी बस मंगवाई गई. साथ ही पुलिस को भी सूचना दे दी गई. विहान की बहन से नंबर ले कर उस के घर भी फोन किया गया.

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विहान के मातापिता और अन्य घर वाले तत्काल घटनास्थल पर पहुंच गए. उन का बुरा हाल था. थाना जीटीबी इनक्लेव से पुलिस भी आ गई थी. पुलिस ने विहान के अपहरण की सूचना दर्ज कर के तफ्तीश शुरू कर दी. पुलिस 3 दिनों तक हर तरह से कोशिश करती रही, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

स्थानीय पुलिस की जांच के साथ जिला पुलिस का स्पैशल स्टाफ भी अपहर्त्ताओं की खोज में लगा था. पुलिस ने जिले के 125 मुखबिरों को अपराधियों की गतिविधियों का पता लगाने की जिम्मेदारी अलग से सौंप रखी थी.

तेजतर्रार पुलिस अधिकारियों को दी जिम्मेदारी

जब थाना पुलिस और स्पैशल स्टाफ कुछ नहीं कर सका तो 28 जनवरी को विहान के अपहरण का मामला क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया. जौइंट पुलिस कमिश्नर आलोक कुमार ने अपने अधीनस्थ क्राइम ब्रांच के डीसीपी डा. जी. रामगोपाल नाइक को एक पुलिस टीम गठित कर के जल्द से जल्द मामले को सुलझाने को कहा.

डा. नाइक अपहरण मामलों के एक्सपर्ट हैं. वह विशाखापट्टनम के एक मशहूर व्यापारी के बेटे को सकुशल रिहा कराने के बाद चर्चा में आए थे. उन्होंने करीब 500 पुलिसकर्मियों की टीम को लीड करते हुए बच्चे को सकुशल बरामद किया था, इसलिए संयुक्त आयुक्त आलोक कुमार ने विहान के केस की जिम्मेदारी इन्हें सौंपी.

डीसीपी डा. जी. रामगोपाल नाइक ने क्राइम ब्रांच के एसीपी ईश्वर सिंह और इंसपेक्टर विनय त्यागी के साथ मीटिंग कर के रणनीति तैयार की कि बच्चे को सहीसलामत कैसे बरामद किया जाए. ईश्वर सिंह और विनय त्यागी दोनों ही बड़ेबड़े मामलों को सुलझाने में माहिर रहे हैं.

ईश्वर सिंह ने सन 2000 में क्रिकेट मैच फिक्सिंग के मामले को उजागर किया था, जिस में दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट टीम के कैप्टन हैंसी क्रोनिए सहित दरजनों लोग शामिल थे. इस के अलावा इन्होंने किडनैपिंग के भी दरजनों मामले सुलझाए थे.

जबकि इंसपेक्टर विनय त्यागी एनकाउंटर स्पैशलिस्ट रहे राजबीर सिंह की टीम का हिस्सा तो थे ही, उन्होंने 1999 में हुए मशहूर कार्टूनिस्ट इरफान हुसैन के मर्डर की गुत्थी सुलझा कर हत्यारों को भी गिरफ्तार किया था. इस के साथ ही विनय त्यागी ने ‘इंडियाज मोस्ट वांटेड’ सीरियल के निर्माता और एंकर सुहेब इलियासी को भी पत्नी के कत्ल के मामले में गिरफ्तार किया था.

बच्चे का पता लगाने और उसे सहीसलामत बचाने की जिम्मेदारी मिलते ही ईश्वर सिंह और विनय त्यागी ने करीब 50 लोगों की टीम गठित की, जिस में सबइंसपेक्टर अर्जुन, दिनेश, हवा सिंह, सुशील, एएसआई राजकुमार, मोहम्मद सलीम, हवलदार शशिकांत और श्यामलाल को शामिल किया गया. इस औपरेशन को नाम दिया गया ‘सी रिवर’.

60 लाख की मांगी फिरौती

28 जनवरी को क्राइम ब्रांच को केस सौंपा गया और उसी दिन अपहृत विहान के पिता सन्नी गुप्ता के फोन पर फोन कर के लड़की की आवाज में 60 लाख रुपए की फिरौती मांगी गई. इतना ही नहीं, अपहर्त्ताओं ने वाट्सऐप काल कर के बच्चे से बात भी कराई. इस वाट्सऐप काल में एक अपहर्त्ता का चेहरा भी नजर आया, पर उसे पहचाना नहीं जा सका.

अपहर्त्ताओं ने फिरौती की रकम देने के लिए विहान के घर वालों से 4 फरवरी को दिल्ली से कड़कड़डूमा क्षेत्र स्थित क्रौस रिवर मौल आने को कहा था. साथ ही उन्होंने यह भी चेतावनी दी थी कि पुलिस के चक्कर में न पड़ें वरना बच्चे को नुकसान हो सकता है. पीडि़त परिवार चाहता था कि किसी भी तरह उन का बच्चा सुरक्षित मिल जाए. वह फिरौती की रकम देने को तैयार थे.

परिजनों ने यह बात पुलिस को बता दी थी, इस पर पुलिस अधिकारियों ने अपहर्त्ताओं को घेरने की पूरी योजना बना ली. चूंकि अपहर्त्ताओं ने पैसे ले कर क्रौस रिवर मौल बुलाया था, इसलिए पुलिस ने इस औपरेशन का नाम रखा ‘सी रिवर’. पुलिस टीम इस मौल के आसपास तैनात हो गई. विहान के पिता को एक बैग में नोट के आकार की कागज की गड्डियां भर कर भेजा गया पर अपहर्त्ता वहां नहीं पहुंचे. शायद उन्हें वहां पुलिस के मौजूद होने का शक हो गया था.

अपहरण के मामले बड़े ही संवेदनशील होते हैं. ऐसे मामलों में पुलिस की पहली प्राथमिकता अपहृत व्यक्ति को सहीसलामत बरामद करने की होती है. इस के बाद अपहर्त्ताओं को गिरफ्तार करने की सोची जाती है. अपहर्त्ताओं के फिरौती की रकम न लेने आने के बाद पुलिस पता लगाने की कोशिश करने लगी कि बच्चे का अपहर्त्ता कौन हो सकता है.

इस से पहले थाना पुलिस की 6 टीमें पीडि़त परिवार, बस चालक, मेड, पड़ोसियों और बस में मौजूद बच्चों से पूछताछ कर चुकी थीं. थाना पुलिस ने 3 संदिग्ध लोगों की तलाश में नोएडा में भी छापेमारी की थी, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. इस के बाद ही यह मामला क्राइम ब्रांच को सौंपा गया था. इस की एक वजह यह भी थी कि क्राइम ब्रांच के पास पर्याप्त तकनीकी संसाधन होते हैं.

क्राइम ब्रांच भी यह बात मान कर चल रही थी कि बच्चे के अपहरण में किसी नजदीकी का हाथ हो सकता है, क्योंकि विहान के पिता ने हाल ही में किसी प्रौपर्टी का सौदा किया था, जिस की रकम उन के घर में मौजूद थी. यह बात उन के किसी करीबी को ही पता हो सकती थी, इसलिए पुलिस किसी नजदीकी पर शक कर रही थी.

क्राइम ब्रांच ने शुरू की अपने तरीके से जांच

पुलिस ने परिवार के सभी सदस्यों सहित वर्तमान नौकरों, पूर्व नौकरों व ऐसे लोगों का ब्यौरा बनाया, जिन्हें बच्चे के व्यापारी पिता सन्नी गुप्ता की उच्च आर्थिक स्थिति की जानकारी थी. पुलिस ने ऐसे 200 लोगों की एक लिस्ट बनाई, जिन से पूछताछ की जा सके. इस के अलावा ऐसे मामलों में शामिल रहे बदमाशों का ब्यौरा भी डोजियर सेल से निकलवाया गया. उन में से जो बदमाश जेल से बाहर थे, उन में से ज्यादातर को हिरासत में ले कर पूछताछ की गई, पर कोई नतीजा नहीं निकला.

विहान को ले कर घर के सभी लोग चिंतित थे. उस की मां शिखा का तो रोरो कर बुरा हाल था. रोतेरोते उन की आंखें सूज गई थीं. चूंकि विहान के पिता एक व्यापारी थे, इसलिए व्यापारी वर्ग भी इस बात को ले कर आक्रोश में था. बच्चे की शीघ्र बरामदगी के लिए व्यापारियों ने विरोध प्रदर्शन भी किया.

अपहर्त्ताओं ने पीडि़त परिवार को 2 वीडियो और 6 फोटो भेजे थे, जिन्हें देख कर पूरा परिवार डर गया था. जो वीडियो भेजे थे, उन में विहान ‘पापा, आई लव यू’ बोल रहा था. वह कह रहा था, ‘डैडी, आप मुझे लेने आ जाओ. मुझे आप की बहुत याद आ रही है.’ परिवार वाले उन वीडियो को बारबार देखते थे. विहान की चिंता में घर वालों की नींद उड़ी हुई थी.

पुलिस ने शाहदरा, इहबास, मंडोली रोड के करीब 2500 सीसीटीवी कैमरों की सूची बनाई, जिन में से 250 सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली भी गई. आखिर में साहिबाबाद बौर्डर पर लगे एक सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में बदमाश मोटरसाइकिल पर बच्चे को ले जाते दिखाई दिए. इस फुटेज से एक बदमाश की पहचान भी हुई.

दूसरी ओर डीसीपी जौय टिर्की और एसीपी संदीप लांबा की टेक्निकल टीम ने सर्विलांस, मोबाइल ट्रैकर से 35 टावरों के करीब 3 लाख नंबरों की जांच की.

3 लाख नंबरों में मिला अपहर्त्ता का नंबर

पुलिस टीम 3 लाख नंबरों की जांच करती रही. डंप डाटा में उसे 4 लोकेशन पर एक फोन नंबर कौमन मिला. उस फोन नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया गया. जांच में पता चला कि वह फोन नंबर नितिन शर्मा का है. पुलिस ने उस नंबर पर आने वाली काल्स को रिकौर्ड करना शुरू कर दिया. इस से यह जानकारी मिली कि फोनधारक कोड में बात करता है. इस से उस पर पुलिस का शक और बढ़ गया.

फोन सर्विलांस पर लगाने के बाद इस बात की पुष्टि तो हो गई थी कि फोनधारक का नाम नितिन शर्मा है, पर वह रहता कहां है, यह पता नहीं लग सका. क्योंकि जिस आईडी से उस ने फोन का सिमकार्ड लिया था, वह फरजी पाई गई. इतनी बड़ी दिल्ली में उस का पता लगाना आसान नहीं था.

इंसपेक्टर विनय त्यागी ने सबइंसपेक्टर अर्जुन सिंह, हवा सिंह, दिनेश, सुशील, एएसआई राजकुमार, मोहम्मद सलीम, हैडकांस्टेबल श्यामलाल व शशिकांत को जिम्मेदारी दी कि वह मुखबिरों से मिलने वाली जानकारी की पड़ताल करें.

पुलिस ने पूरी दिल्ली में मुखबिरों का जाल बिछा रखा था. सभी मुखबिरों को एक अपहर्त्ता का वह फोटो दे दिया गया, जिस में उस ने पीडि़त परिवार से व्हाट्सऐप पर बात की थी. वह फोटो साफ नहीं था. मुखबिरों के अलावा उस फोटो की एकएक कौफी पूर्वी दिल्ली और उत्तरपूर्वी दिल्ली के सभी बीट अफसरों को भी दे दी गई ताकि वे अपनेअपने क्षेत्र के लोगों को फोटो दिखा कर जानकारी हासिल कर सकें.

जांच टीम में जितने भी पुलिसकर्मी थे, सभी रातदिन एक किए हुए थे. इन में से कुछ पुलिसकर्मियों के परिवार में शादी थी, इस के लिए उन्होंने छुट्टी भी ले रखी थी, पर केस की  संवेदनशीलता को देखते हुए वे छुट्टी पर नहीं गए. सभी की पहली प्राथमिकता केस को हल करने की थी. जौइंट सीपी आलोक कुमार जांच में जुटी सभी टीमों से संपर्क बनाए हुए थे. हर अपडेट वह पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक को दे रहे थे.

उधर पीडि़त परिवार के पास अपहर्त्ताओं की तरफ से फिरौती की और कोई काल नहीं आई. मामला मीडिया में ज्यादा हाईलाइट हो चुका था, इसलिए अपहर्त्ता शायद चौकस हो गए थे. ऐसे में पुलिस को इस बात की आशंका थी कि कहीं अपहर्त्ता बच्चे को नुकसान न पहुंचा दें.

इसी दौरान एक मुखबिर ने उस धुंधले फोटो को पहचान लिया. उस ने बताया कि वह नितिन शर्मा है जो गोकुलपुरी में रहता है. यह जानकारी पुलिस के लिए महत्त्वपूर्ण थी. मुखबिर द्वारा नितिन के घर का पता भी मिल गया था. लेकिन पुलिस अधिकारियों ने अपहृत विहान की सुरक्षा को देखते हुए नितिन के घर दबिश देना जरूरी नहीं समझा.

उधर सर्विलांस टीम नितिन के फोन पर होने वाली बातचीत पर नजर रखे हुए थी. तभी सर्विलांस टीम को पता चला कि नितिन सोमवार की रात को दिल्ली में होने वाले एक शादी समारोह में आ रहा है. मुखबिर द्वारा पुलिस को उस की स्विफ्ट कार का नंबर भी मिल गया था. पुलिस टीम ने मोबाइल लोकेशन के आधार पर उस का पीछा करना शुरू कर दिया. 5 फरवरी, 2018 की रात करीब साढ़े 11 बजे नितिन की कार सीमापुरी में कम्युनिटी ब्लौक के पास रुकी तो क्राइम ब्रांच की टीम ने उसे हिरासत में ले लिया.

हिरासत में लेते ही पुलिस ने सब से पहले उस से विहान के बारे में पूछा. नितिन ने बताया कि विहान सुरक्षित है. उसे बी-505 इबोनी अपार्टमेंट, शालीमार सिटी, साहिबाबाद में रखा गया है. जौइंट सीपी आलोक कुमार ने उसी समय डीसीपी जी. रामगोपाल नाइक के नेतृत्व में 16 सदस्यीय एक टीम नितिन के साथ शालीमार सिटी भेज दी. रात एक बजे टीम 5वीं मंजिल स्थित उस फ्लैट पर पहुंच गई.

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बदमाशों ने कर दिया पुलिस को घायल

उस फ्लैट में अंदर की तरफ लकड़ी का दरवाजा था और बाहर लोहे की जाली वाला. पुलिस के सामने नितिन ने कोड में 3 बार दरवाजा खटखटाया. एक बदमाश ने जैसे ही लकड़ी वाला दरवाजा खोला तो अपने साथी नितिन को हथियारबंद पुलिस के बीच देख वह घबरा गया. तभी इंसपेक्टर विनय त्यागी ने कहा, ‘‘बच्चा पुलिस के हवाले कर दो, इसी में तुम्हारी भलाई है.’’

इंसपेक्टर विनय त्यागी दरवाजे के एकदम सामने थे. उन के बराबर में कमांडो कुलदीप था. उन के पीछे 6 अन्य पुलिसकर्मी एके 47 के साथ पोजीशन लिए खड़े थे. इंसपेक्टर त्यागी के ललकारने पर बदमाश ने फ्लैट के अंदर से कहा, ‘‘आप लोग यहां से चले जाओ वरना बच्चे की जान को खतरा हो सकता है.’’

इसी बीच लकड़ी का दरवाजा खोल कर बदमाश ने पुलिस पर फायरिंग कर दी. उस की एक गोली इंसपेक्टर विनय त्यागी और एक गोली कमांडो कुलदीप को लगी.

जवाब में पुलिस ने भी फायरिंग की. गोली लगने से एक बदमाश वहीं गिर गया, जबकि दूसरा लंगड़ाते हुए अंदर की तरफ भागा. उस के पैर में गोली लगी थी. बदमाशों की ओर से 5 राउंड फायरिंग की गई थी. गोली चलने से बाहर के लोहे वाले दरवाजे पर लगी जाली ढीली पड़ गई थी. फ्लैट के अंदर कोई हलचल न देख कर पुलिस ने ढीली पड़ चुकी लोहे की जाली को खींच कर मोड़ दिया और फिर अंदर हाथ डाल कर दरवाजे की सिटकनी खोल दी.

पोजीशन लेते हुए पुलिस फ्लैट में दाखिल हो गई. एक बदमाश फर्श पर पड़ा था, उस के सीने पर गोली लगी थी. उस की मौत हो चुकी थी. दूसरे बदमाश को भी पुलिस ने हिरासत में ले लिया. वह किचन में जा कर छिप गया था.

बच्चा छिपा बैठा था बैड के पीछे

जिस घायल बदमाश को हिरासत में लिया था, उस ने अपना नाम पंकज बताया और जिस बदमाश की मौत हुई थी, उस का नाम रवि था. पंकज को हिरासत में लेते ही डीसीपी डा. जी. रामगोपाल नाइक बच्चे को फ्लैट में ढूंढने लगे. वह बैड के पास छिपा मिला. बच्चा सहमा हुआ बैठा था.

डीसीपी ने विहान से कहा, ‘‘बेटा, मैं आप का चाचा हूं और पुलिस में हूं. आप को डैडी के पास ले जाने के लिए आया हूं.’’

यह कहते ही डीसीपी नाइक ने डरेसहमे विहान को गोद में उठा लिया, बच्चा उन से लिपट गया. विहान को सहीसलामत पा कर सभी ने राहत की सांस ली.

डीसीपी डा. नाइक ने अपहृत हुए विहान को सहीसलामत बरामद करने की सूचना संयुक्त आयुक्त आलोक कुमार को देते हुए कहा कि सर औपरेशन ‘सी रिवर’ सक्सेसफुल. यह खबर मिलते ही आलोक कुमार खुश होते हुए बोले, ‘‘वैल डन.’’

पुलिस को अपहरण का यह केस खोलने में भले ही 12 दिन लग गए लेकिन इस में सब से बड़ी सफलता यह रही कि विहान को पुलिस ने सहीसलामत बरामद कर लिया और अपहर्त्ता भी पकड़े गए.

5 वर्षीय विहान को बरामद करने के बाद पुलिस डाक्टरी जांच के लिए उसे जीटीबी अस्पताल ले गई. डाक्टरों ने विहान के कई तरह के टेस्ट किए. उधर डीसीपी ने रात 1 बज कर 5 मिनट पर विहान के दादा अशोक गुप्ता को फोन किया, ‘‘मैं डीसीपी राम नाइक बोल रहा हूं. बच्चा मिल गया है.’’

यह सूचना पाते ही अशोक गुप्ता चहक उठे. उन्होंने तुरंत अपने बेटे सन्नी और बहू शिखा को बताया तो उन के चेहरे खिल गए. मारे खुशी के शिखा की आंखों में आंसू भर आए. इस के बाद शिखा ने उसी समय यह जानकारी अपने मायके वालों को दे दी. घर के सभी लोग जीटीबी अस्पताल पहुंच गए. शिखा ने बेटे को देखते ही उसे उठा कर सीने से चिपका लिया.

विहान भी मां की गोद में आ कर खूब रोया. रोते हुए वह बोला, ‘‘अंकल और आंटी बहुत गंदे थे. अंकल शराब पीते थे. एक दिन उन्होंने मुझे थप्पड़ भी मारा था.’’

औपरेशन सी रिवर में एक अपहर्त्ता रवि मारा गया था, जबकि नितिन शर्मा और पंकज गिरफ्तार किए जा चुके थे. पंकज घायल हो गया था. पुलिस ने उसे जीटीबी अस्पताल में भरती करा दिया था. 7 फरवरी, 2018 को उसे अस्पताल से छुट्टी मिल गई. पुलिस ने दोनों बदमाशों से विहान अपहरण के बारे में पूछताछ की तो चौंकाने वाली जानकारी मिली. पता चला कि इन बदमाशों ने उस के अपहरण की साजिश 6 महीने पहले रची थी.

मास्टरमाइंड निकला नितिन शर्मा

इस पूरे मामले का मास्टरमाइंड 28 वर्षीय नितिन कुमार शर्मा था, जो उत्तरपूर्वी दिल्ली के गोकुलपुरी का रहने वाला था. संस्थागत रूप से उस ने 10वीं तक पढ़ाई की थी. इस के बाद वह ओपन स्कूल से 12वीं की पढ़ाई कर रहा था. उसे बनठन कर रहने का शौक था. घर वाले कब तक उस के शौक पूरा करते, लिहाजा वह यारदोस्तों से पैसे ले कर अपने खर्चे पूरे करने लगा.

नितिन के पिता ममराज पिछले 30 सालों से ढाबा चला रहे थे. जब नितिन पर कर्ज बढ़ने लगा तो वह अपने पिता के ढाबे पर बैठने लगा. कई साल पहले ममराज परिवार से अलग हो गए तो नितिन अपने भाई नवीन के साथ ढाबा चलाने लगा. नवीन अपनी मां के साथ यमुना विहार में रहता था, जबकि नितिन पत्नी के साथ गोकुलपुरी में.

ढाबे का काम जम गया तो अच्छी आमदनी होने लगी. नितिन धीरेधीरे लोगों का कर्ज चुकाने लगा. करीब एक साल से उस के ढाबे पर गोकुलपुरी का रहने वाला पंकज भी काम करने लगा था. 21 साल का पंकज दिन में उस के ढाबे पर काम करता और कभी शादीपार्टी वगैरह में उसे वेटर का काम मिल जाता तो रात में वह वेटर का काम भी कर लेता था.

वेटर का काम उसे गोकुलपुरी के ही रहने वाले रवि के पिता के सहयोग से मिलता था. उस के पिता वेटर सप्लाई का काम करते थे. इस तरह रवि से भी उस की दोस्ती हो गई थी. पंकज नितिन का अच्छा दोस्त था. बाद में उस की रवि से भी दोस्ती हो गई थी. ढाबे से नितिन को अच्छी कमाई हो ही रही थी. उस कमाई को नितिन अपने दोस्तों के साथ पार्टी में खर्च कर देता था. इस के अलावा नितिन की कई गर्लफ्रैंड थीं, उन पर भी वह खूब खर्च करता था.

अंधाधुंध खर्च करने की वजह से नितिन पर कर्ज और बढ़ने लगा. बाद में उस के पास लोग तगादे के लिए आने लगे. उन से बचने के लिए वह पूरे समय ढाबे पर भी नहीं बैठ पाता था, जिस से उस की आमदनी दिनोंदिन कम होती गई. एक दिन नितिन ने अपने दोस्तों पंकज और रवि के साथ बात की कि आमदनी कैसे बढ़ाई जाए. दोनों दोस्तों ने अलगअलग सुझाव दिए, जो नितिन को पसंद नहीं आए.

सोचसमझ कर किया विहान को टारगेट

नितिन कोई ऐसा काम करना चाह रहा था, जिस से एक ही झटके में उसे इतनी कमाई हो जाए जिस से कर्ज चुकाने के बाद बचे पैसों से वह कोई ढंग का बिजनैस शुरू कर सके. इस पर पंकज ने किसी अमीर घर के बच्चे का अपहरण करने का सुझाव दिया. पंकज का यह सुझाव नितिन की समझ में आ गया. इस के बाद वे ऐसी आसामी के बारे में सोचने लगे, जिस के बच्चे का अपहरण कर के फिरौती में 50-60 लाख रुपए लिए जा सकें.

नितिन अपने ढाबे का सामान अशोक गुप्ता की दुकान से लाता था, जो न्यू मौडर्न शाहदरा की गली नंबर-3 में रहते थे. वह अशोक गुप्ता के पूरे परिवार को अच्छी तरह जानता था. गुप्ता परिवार आर्थिक रूप से संपन्न था. उन के पोतेपोती दोनों स्कूल जाते थे.

दोनों बच्चे विवेकानंद स्कूल में पढ़ते थे. स्कूल की बस दोनों बच्चों को लेने आती थी. तीनों ने अशोक के 4 साल के पोते विहान का अपहरण करने का इरादा बना लिया. इस से पहले कि वे योजना को अंजाम देते, दिसंबर, 2017 में पंकज गाड़ी चोरी के एक मामले में जेल चला गया.

करीब 10 दिन बाद पंकज जमानत पर जेल से बाहर आया, तब तक नितिन ने सारी प्लानिंग कर ली थी कि कहां से बच्चे को उठाना है और अपहरण के बाद उसे कहां रखना है.

नितिन ने करीब 6 महीने पहले शालीमार सिटी के इबोनी अपार्टमेंट में एक फ्लैट साढ़े 10 हजार रुपए महीने के किराए पर ले लिया था. उसी फ्लैट पर वह दोस्तों के साथ अय्याशी करता था. यह फ्लैट पटपड़गंज स्थित तरंग अपार्टमेंट में रहने वाली सुशीला का था. नितिन ने फ्लैट मालकिन को बताया था कि उस का गांधीनगर में रेडीमेड गारमेंट का कारोबार है.

इलाके की अच्छी तरह रैकी करने के बाद 25 जनवरी, 2018 को रवि और पंकज वारदात को अंजाम देने के लिए निकले. नियत समय पर विहान स्कूल बस में अपनी 7 साल की बहन के पास बैठ गया. उस समय स्कूल बस शिवम डेंटल क्लीनिक के पास खड़ी थी. रवि और पंकज मोटरसाइकिल द्वारा बस के पास पहुंच गए, लेकिन वहां भीड़भाड होने की वजह से उन्होंने वारदात को अंजाम नहीं दिया.

स्कूल बस को अगले पिकअप पौइंट से और बच्चे लेने थे. जैसे ही बस उस स्टाप पर पहुंची तो विहान का अपहरण करने के लिए उन्होंने बस के पास अपनी बाइक रोक दी. लेकिन इस से पहले कि वे कुछ कर पाते, बस वहां से निकल गई. बस के अगले स्टाप पर बच्चे को किडनैप करने के लिए जैसे ही वे आगे बढ़े, उसी समय राह चलते कुछ लोग बीच में आ गए. तब तक स्कूल बस आगे निकल गई.

इस के बाद स्कूल बस दिलशाद गार्डन सी ब्लौक फ्लैटों के पीछे के गेट के सामने रुकी. इस के सामने इहबास अस्पताल का गेट नंबर-1 है. रवि और पंकज बाइक से पीछा करते हुए वहां पहुंच गए. दहशत फैलाने के लिए उन्होंने बस के ड्राइवर नरेश थापा के पैर में गोली मारी. इस के बाद उन्होंने बस के गेट पर खड़ी आया को धक्का दे दिया. तभी उन्होंने गेट से ही विहान को आवाज लगाई तो विहान अपनी सीट से खड़ा हो गया. रवि और पंकज ने विहान को उठा कर अपनी बाइक पर बैठा लिया.

मोटरसाइकिल पर विहान को बीच में बैठा कर वे आनंदविहार होते हुए शालीमार सिटी, साहिबाबाद स्थित उसी फ्लैट पर ले गए जो नितिन ने 6 महीने पहले किराए पर लिया था. नितिन उन का फ्लैट पर ही इंतजार कर रहा था.

वहां ले जा कर उन्होंने विहान को इतना डराधमका दिया, जिस से वह सहमा हुआ रहे. उन का इरादा बच्चे को कोई नुकसान पहुंचाना नहीं था. वह तो किसी तरह उस के घर वालों से फिरौती वसूलना चाहते थे.

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चोरी के फोन से मांगी थी फिरौती

तीनों बदमाशों का वैसे तो पुराना आपराधिक रिकौर्ड नहीं है, लेकिन वे थे बहुत शातिर. मोबाइल लोकेशन से वह पुलिस के हत्थे न चढ़ें, इसलिए उन्होंने वहां से 10 किलोमीटर दूर जा कर फिरौती की काल की थी. जिन मोबाइल फोनों से वे बातें करते थे, वह चोरी के थे. पंकज लड़की की आवाज निकालने में माहिर था, इसलिए विहान के घर वालों से वही बात करता था.

जिस फ्लैट में बच्चे को रखा गया था, वहां रात को केवल एक बदमाश बच्चे के साथ सोता था और 2 रात भर जागते हुए चौकस रहते थे. उन्होंने योजना तो फूलप्रूफ बनाई थी लेकिन मामला क्राइम ब्रांच के हाथ में पहुंचते ही उन के अरमानों पर पानी फिर गया. इस चक्कर में उन के साथी रवि को तो अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.

पुलिस ने अपहर्त्ता पंकज और नितिन कुमार शर्मा से विस्तार से पूछताछ के बाद उन की निशानदेही पर 7.65 एमएम की 2 पिस्टल और मैगजीन बरामद कर लीं. दोनों को भादंवि की धारा 363, 307 और 25/27 आर्म्स एक्ट के तहत गिरफ्तार कर के कड़कड़डूमा न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

बच्चे की हत्या कर 37 दिनों तक घर में रखे रहा लाश

विहान अपहरण मामले की तरह जनवरी, 2018 के पहले हफ्ते में उत्तरपश्चिमी दिल्ली के स्वरूपनगर इलाके से एक और बच्चे का फिरौती के लिए अपहरण कर लिया गया था, लेकिन इस मामले में अपहर्त्ता ने सब से पहले बच्चे की हत्या कर के लाश एक सूटकेस में भर ली. उस सूटकेस को वह 37 दिनों तक अपने कमरे में रखे रहा. बदबू न आए, इस के लिए वह कमरे में परफ्यूम छिड़कता रहता था. बच्चे की लाश बरामद होने के बाद जब सच्चाई सामने आई तो सभी हैरान रह गए.

उत्तरपश्चिमी दिल्ली के थाना स्वरूपनगर क्षेत्र के नत्थूपुरा में करण सिंह की परचून की दुकान थी. उन की दुकान अच्छी चलती थी, जिस से उन्हें ठीक आमदनी हो जाती थी. करण सिंह अपना पूरा ध्यान अपने परिवार और बिजनैस पर ही लगाते थे. परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटा आशीष उर्फ आशू और एक बेटी थी. अपनी मेहनत की बदौलत उन्होंने अपनी एक दुकान से परचून की 3 दुकानें कर ली थीं. उन का परिवार हर तरह से खुशहाल था.

लेकिन 7 जनवरी, 2018 को उन के परिवार में जो हुआ, उसे करण सिंह पूरी जिंदगी नहीं भुला सकेंगे. दरअसल हुआ यह कि 7 जनवरी रविवार को 7 वर्षीय आशीष अपनी बुआ के बेटे के साथ घर के बाहर खेल रहा था. खेलकूद कर वह शाम 4 बजे घर लौट आया. घर पहुंच कर उस ने अपनी बड़ी बहन से कहा, ‘‘गुंजन दीदी, साढ़े 5 बज गए क्या?’’

‘‘क्यों, क्या कहीं जाना है?’’ गुंजन ने पूछा.

‘‘हां, मुझे अवधेश चाचा के पास जाना है. वह मुझे साइकिल दिलाएंगे.’’ आशू बोला.

आशू की इच्छा थी कि उस के पास एक इतनी छोटी साइकिल हो, जिसे वह आसानी से चला सके. मोहल्ले के बच्चे स्कूल से लौटने के बाद गली में जब साइकिल चलाते थे तो उस का मन भी साइकिल चलाने को करता था. इस बारे में उस ने अपनी मम्मी और पापा से कई बार कहा था लेकिन वह कोई न कोई बहाना बना कर टाल जाते थे.

ऐसा नहीं था कि करण सिंह की स्थिति  साइकिल दिलाने की नहीं थी, लेकिन वह यह सोच कर उसे साइकिल नहीं दिला रहे थे कि कहीं उन के लाडले को चोट न लग जाए.

लेकिन 7 जनवरी को जब उन के पड़ोसी और दूर के रिश्ते में आशीष के चाचा लगने वाले अवधेश ने जब उसे साइकिल दिलाने की बात कही तो आशू के मन में लालच आ गया.

बहन से कुछ देर बात करने के बाद आशू अपने घर से निकल गया. इस के बाद वह घर वापस नहीं लौटा. घर वालों ने आशू को इधरउधर ढूंढा, लेकिन उस का कोई पता नहीं चल सका. मोहल्ले के लोग भी उन के साथ बच्चे को ढूंढने में मदद करने लगे. जब वह नहीं मिला, तो करण सिंह अपने रिश्तेदार अवधेश के साथ थाना स्वरूपनगर पहुंच गए और आशू के गायब होने की बात थानाप्रभारी को बता दी.

थानाप्रभारी ने कोई लापरवाही न बरतते हुए उसी समय अज्ञात लोगों के खिलाफ अपहरण का केस दर्ज कर लिया और बच्चे के ढूंढने की काररवाई शुरू कर दी. बच्चे के गायब होने के 2 दिन बाद भी करण सिंह के पास फिरौती की कोई काल नहीं आई तो पुलिस को यही लगा कि किसी ने दुश्मनी में बच्चे का अपहरण किया है.

गली में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखने पर पुलिस को पता लगा कि आशू अवधेश के घर के पास देखा गया था. उस के बाद उस की फुटेज नहीं दिखाई दी. तब पुलिस ने उस गली के 50 से ज्यादा घरों में तलाशी अभियान चलाया.

इतना ही नहीं, पुलिस ने छत पर रखी पानी की सभी टंकियां भी चैक कीं, पर बच्चे का कहीं पता नहीं चला.

इसी बीच पड़ोसियों को अवधेश के घर से अजीब सी दुर्गंध आती महसूस हुई. इस बारे में उस से पूछा गया तो वह बोला कि बदबू तो मुझे भी आती है. लगता है घर में कोई चूहा मर गया है. अगले दिन वह एक मरा हुआ चूहा घर के अंदर से निकाल कर ले आया. वही चूहा उस ने पड़ोसियों को दिखाते हुए कहा कि बदबू इसी से आ रही थी.

एक दिन करण की बेटी गुंजन ने घर वालों को बताया कि आशू साइकिल लेने के लिए अवधेश चाचा के यहां जाने की बात कह रहा था. सीसीटीवी फुटेज में भी आशू अवधेश के घर तक ही जाता दिखा था.

इन सब बातों से घर वालों को अवधेश पर शक होने लगा. अपना शक उन्होंने पुलिस से जाहिर किया तो पुलिस ने अवधेश से पूछताछ तक नहीं की. पुलिस का कहना यह था कि बिना किसी सबूत के उस के खिलाफ काररवाई नहीं कर सकते.

इस पर करण सिंह ने न्यायालय की शरण ली. कोर्ट के आदेश पर पुलिस सक्रिय हुई और बच्चा गुम होने के 38वें दिन अवधेश के घर की तलाशी ली. वहां एक सूटकेस से तेज बदबू आ रही थी.

जब उस सूटकेस को खुलवाया गया तो उस में आशू की लाश निकली जो पौलीथिन में लपेट कर रखी थी. पुलिस ने तुरंत अवधेश को हिरासत में ले लिया और सूचना डीसीपी असलम खान को दे दी. कुछ ही देर में डीसीपी और क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम वहां पहुंच गई.

लोगों को जब पता चला कि करण सिंह के रिश्तेदार ने ही बच्चे की हत्या कर लाश अपने घर में छिपा रखी थी तो सैकड़ों लोग वहां एकत्र हो गए. सभी के मन में अवधेश के प्रति आक्रोश था. भीड़ के मूड को देखते हुए डीसीपी ने जिले के अन्य थानों की पुलिस भी वहां बुला ली ताकि स्थिति नियंत्रण में रहे.

पुलिस ने आननफानन में जरूरी कारवाई कर के बच्चे की सड़ी लाश को पोस्टमार्टम के लिए बाबू जगजीवनराम अस्पताल भेज दिया और अवधेश को पूछताछ के लिए थाने ले गई. पूछताछ में अवधेश ने आशू के अपहरण और हत्या करने की जो कहानी बताई, इस प्रकार थी—

अवधेश शाक्य मूलरूप से उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के कुरावली का रहने वाला था. उस के परिवार में मातापिता के अलावा 3 बहनें हैं.

वह सन 2010 में दिल्ली आया था. यहां रह कर वह सिविल सर्विस एग्जाम की तैयारी कर रहा था. 2 बार वह यह परीक्षा पास भी कर चुका था पर मुख्य परीक्षा में फेल हो गया था. इसी वजह से वह डिप्रेशन की हालत में चला गया.

बेरोजगार होने से उस पर लोगों का कर्ज भी चढ़ गया. कर्ज के साथसाथ उसे अपनी बहनों की शादी की चिंता भी खाए जा रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह ऐसा क्या करे, जिस से उस की आर्थिक हालत सुधरे.

तब उस के दिमाग में आया कि क्यों न वह अपने ही दूर के रिश्तेदार करण सिंह के बेटे का अपहरण कर ले. वह करण सिंह की हैसियत से वाकिफ था. उसे उम्मीद थी कि फिरौती में 18-20 लाख रुपए आसानी से मिल जाएंगे.

इस के बाद वह आशू के अपहरण की योजना बनाने लगा. इसी बीच उसे पता चला कि आशू अपने पिता से साइकिल की मांग कर रहा था लेकिन उन्होंने उसे साइकिल नहीं दिलवाई.

7 जनवरी को अवधेश ने आशू से कहा, ‘‘आशू, तुम्हें साइकिल चाहिए?’’

‘‘हां चाचा.’’ आशू खुश हो कर बोला.

‘‘ऐसा करो आज शाम साढ़े 5 बजे के बाद तुम मेरे कमरे पर आ जाना, मैं साइकिल खरीदवा दूंगा.’’ अवधेश ने लालच दिया.

‘‘ठीक है चाचा, मैं आ जाऊंगा.’’ कह कर आशू अपने घर चला गया था और उस ने यह बात अपनी बहन को बता दी थी.

साढ़े 5 बजे से पहले ही वह अवधेश के यहां चला गया. अवधेश आशू को अपने कमरे में ले गया और योजनानुसार गला घोंट कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद उस ने आशू की लाश पौलीथिन में लपेट कर सूटकेस में बंद कर दी.

सूटकेस उस ने अपने कमरे में ही रख दिया. उस का इरादा लाश को कहीं बाहर ले जा कर ठिकाने लगाने का था. बाद में वह बच्चे के घर वालों से फिरौती मांगना चाहता था. आशू के घर वालों से अवधेश के पारिवारिक संबंध थे. वह उस के घर वालों के साथ आशू को ढूंढने का नाटक भी करता रहा. उसी ने घर वालों के साथ थाने जा कर रिपोर्ट लिखवाई. दूसरी तरफ उसे घर में रखी लाश को ठिकाने लगाने का मौका नहीं मिल पा रहा था क्योंकि इलाके में पुलिस गश्त कर रही थी.

15-20 दिन बाद जब लाश से बदबू आनी शुरू हो गई तो उस ने कमरे में परफ्यूम छिड़का. ऐसा वह रोजाना करता. पर बदबू बढ़ती जा रही थी. अवधेश परेशान था. कोई शक न करे, इसलिए उस ने एक चूहा मार कर घर के एक कोने में डाल दिया. उस पर भी उस ने परफ्यूम छिड़क दिया था.

एक दिन पड़ोसियों ने बदबू के बारे में उस से पूछा तो उस ने कह दिया कि घर में चूहा मर गया होगा. फिर वही मरा हुआ चूहा उस ने पड़ोसियों को दिखा दिया. उसे वह बाहर फेंक आया. लाश ठिकाने लगाने का मौका न मिलने से वह परेशान था. इस तरह बच्चे की लाश उस के यहां 37 दिन तक रखी रही.

पुलिस ने अवधेश से पूछताछ करने के बाद उसे रोहिणी न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

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