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अच्छे रिजल्ट पर रोजगार कहां

प्रोफैसर अमर्त्य सेन ने एक बार कहा था, ‘‘भारत एकमात्र ऐसा देश है जो अशिक्षित व स्वास्थ्यहीन श्रमबल के आधार पर वैश्विक आर्थिक शक्ति होने की कोशिश कर रहा है. ऐसा किसी देश में कभी नहीं हुआ. यह असंभव है.’’ अमर्त्य सेन का यह तंज समझने की जरूरत है और सरकार को कोरी लफ्फाजी वाले वादों, दावों, 56 इंच का सीना, विश्वगुरु का सपना और पौराणिक काल की संस्कृति व धर्म के बखान व सब्जबाग दिखाने के बजाय शिक्षा व रोजगार की मूलभूत कमियों को दूर कर नए सार्थक, स्वस्थ रोजगार के अवसर मुहैया कराने पर जोर देने की जरूरत है.

मध्य प्रदेश माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा आयोजित 10वीं और 12वीं की परीक्षाओं के नतीजे इस साल चौंका देने वाले थे. हर किसी को यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ था कि इस साल 10वीं में 65.54 और 12वीं में 68.07 फीसदी छात्र उत्तीर्ण हुए. केवल एक साल में कुल कामयाब छात्रों की संख्या 12 लाख 54 हजार 920 के लगभग है. इस से सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस दौर के युवा पढ़ाई पर जरूरत से ज्यादा ध्यान दे रहे हैं. इन छात्रों को कम उम्र में समझ आ  गया है कि अगर अच्छी नौकरी चाहिए तो लगन और मेहनत से पढ़ाई करनी जरूरी है.

हर साल की तरह इस साल भी मैरिट में आए छात्रछात्राओं के इंटरव्यू न्यूज चैनल्स व अखबारों ने दिखाए व छापे. शिवपुरी जैसे पिछड़े जिले से टौप पर रहे 12वीं के ललित पचौरी की इच्छा सिविल सेवा में जाने की है तो 10वीं की टौपर रही विदिशा की अनामिका साध सौफ्टवेयर इंजीनियर बनना चाहती है. मोटी तनख्वाह वाली प्राइवेट या रसूखदार सरकारी नौकरी मैरिट से चूक गए छात्रों का भी ख्वाब है. इस के लिए उन्हें समझ आ गया है कि आइंदा और ज्यादा मेहनत से पढ़ना है.

अच्छे नतीजे देने में घटिया क्वालिटी की पढ़ाई के लिए बदनाम सरकारी स्कूलों के छात्र भी पीछे नहीं रहे. 300 के लगभग बनी विभिन्न संकायों की मैरिट में 43 छात्र सरकारी स्कूलों के थे. उन का परीक्षा परिणाम भी 50 फीसदी के लगभग रहा.

इन आंकड़ों को देखते हुए यह बात तो स्पष्ट हो जाती है कि छात्र चाहे वे गांवदेहात के हों या शहरों के, किसी भी कीमत पर प्रतिस्पर्धा से पिछड़ना नहीं चाहते. उन्हें यह एहसास है कि अच्छे जौब का रास्ता अच्छे नंबरों से हो कर जाता है, इसलिए 10वीं और 12वीं जैसे बोर्ड के इम्तिहानों में फेल होना मंजिल तक पहुंचने में अड़ंगा ही है.

पर मंजिल है कहां

छात्रों की मेहनत और कामयाबी वाकई बेमिसाल है जिस पर फख्र करना स्वाभाविक बात है. लेकिन यह बात, कामयाब छात्रों का आंकड़ा देखते व उन के भविष्य के लिहाज से कम चिंताजनक भी नहीं कही जा सकती.

मिसाल मध्य प्रदेश की ही लें, वहां पहले से ही डेढ़ करोड़ के लगभग बेरोजगार युवा धूल फांक रहे हैं. मिसाल देशभर की लें, तो बेरोजगारों की तादाद 18 करोड़ का चिंताजनक आंकड़ा छू रही है. इन में पढ़ेलिखे युवाओं की तादाद ज्यादा है.

मोदी सरकार काफी समय से विश्वभर की आर्थिक एजेंसियों के हवाले से भारत में बढ़ते रोजगार व जीडीपी ग्रोथ का ढोल पीटती रही है. लेकिन विश्वबैंक की एक रिपोर्ट ‘जौबलैस ग्रोथ-2018’ मोदी सरकार के कथन से परदा हटा रही है. रिपोर्ट के मुताबिक, देश की आर्थिक व्यवस्था को डूबने से बचाने के लिए हर साल करीब 80 लाख नौकरियों की जरूरत है. अगर यह आंकड़ा पूरा नहीं हुआ तो देश बेरोजगारों की हताशा व तादाद से टूट जाएगा.

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रिपोर्ट की मानें तो 2015 में भारत की रोजगार दर 52 प्रतिशत थी, जबकि नेपाल (81 प्रतिशत), मालदीव (66 प्रतिशत), भूटान (65 प्रतिशत) और बंगलादेश जैसे देश भारत से बेहतर स्थिति में थे. इस सूची में भारत से सब ऊपर व बेहतर थे. साल 2017 में करीब 18.3 लाख भारतीय बेरोजगारों का यह आंकड़ा 2019 तक 189 लाख हो जाएगा.

ऐसे में 10वीं, 12वीं या स्नातक स्तर पर कामयाब हो रहे लाखों छात्रों की फौज इस तादाद में और इजाफा करेगी. उत्तीर्ण हुए युवाओं के चेहरों की मासूमियत, जिस में नौकरी और बेहतर जिंदगी के ख्वाब झलकते हैं, के साथ क्या न्याय हो पाएगा? जाहिर है, नहीं. ऐसे में इस अन्याय का जिम्मेदार कौन है, इस सवाल का स्पष्ट जवाब ढूंढ़ पाना टेड़ी खीर है.

यह भी एक स्थापित तथ्य है कि बोर्ड इम्तिहानों में हर साल छात्रों की भागीदारी बढ़ती है जिसे स्पष्ट शब्दों में कहें तो देशभर में हर साल 2 करोड़ के लगभग बेरोजगार स्कूलों और कालेजों से किसी बेकार प्रौडक्ट की तरह निकलते हैं.

देश में इस वक्त बेरोजगारों की संख्या 18 करोड़ है. इस मेंलगभग 12 करोड़ शिक्षित बेरोजगार हैं. दरअसल, बेरोजगारों की समस्या से नजात पाने के लिए सरकार को स्किल डैवलपमैंट व लघु उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए. युवाओं को नौकरी लायक बनाने के लिए वोकेशनल प्रशिक्षण के जरिए इन कीस्किल डैवलप करने के बजाय सरकार विज्ञापनबाजी में ही उलझी दिखती है. हालांकि रोजगार का सीधा संबंध शिक्षा से है लेकिन बेहतरीन नतीजों के बीच छिपी शिक्षा जगत की कमियों की अनदेखी करने के चलते नौकरियां कम हो रही हैं.

उद्योग संगठन एसोचैम व यस इंस्टिट्यूट की जौइंट स्टडी के मुताबिक, भारत की महज 16 प्रतिशत कंपनियां संस्थान के भीतर प्रशिक्षण देती हैं जबकि चीन में यह काम 80 प्रतिशत कंपनियां कर रही हैं. यहां तक कि विश्व के 200 शीर्ष विश्वविद्यालयों में भारत के सिर्फ 2 शिक्षण संस्थान (आईआईटी दिल्ली व दिल्ली विश्वविद्यालय) जगह बना पाते हैं.

स्टडी के मुताबिक, देश की मेधावी प्रतिभाएं रिसर्च व स्टडी के लिए विकसित देशों में चली जाती हैं. करीब 6 लाख भारतीय विद्यार्थी विदेश में पढ़ाई कर रहे हैं और वहां 20 अरब डौलर सालाना खर्च करते हैं. जाहिर है जो प्रतिभाएं बचती हैं वे स्किल में कमजोर होती हैं. ऐसे लोग अव्वल नंबर ला कर भी देश में कुछ उल्लेखनीय व प्रोडक्टिव कार्य नहीं कर पाते.

इसी स्टडी के अनुसार, भारतीय उच्चशिक्षा क्षेत्र रोजगार के अल्पस्तर, रिसर्च की कमी व उद्यमिता के सीमित विकल्पों का शिकार है. जाहिर है इस से नजात पाने के लिए उच्चशिक्षा सिस्टम को विश्वस्तर का बनाने व भविष्य आधारित तकनीकी शैक्षणिक रूपरेखा बनाने की दरकार है. सरकार इस मोरचे पर भी पूरी तरह से फेल नजर आती है.

इसीलिए नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद बेरोजगारों की फौज में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है. वजह साफ है कि मोदी सरकार का ध्यान विस्फोटक होती इस समस्या पर है ही नहीं. प्रसंगवश यह उल्लेखनीय है कि इन्हीं नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के लिए 2 करोड़ युवाओं को रोजगार देने का वादा किया था जिसे ले कर वे युवाओं के भी निशाने पर हैं.

मध्य प्रदेश के ललित पचौरी और अनामिका साध का सरकारी या अच्छी प्राइवेट नौकरी करने का ख्वाब पूरा होगा, इस का उन के मैरिट में होने से कोई संबंध नहीं. फिर बाकी लाखों छात्रों के भविष्य के बारे में सोच कर दहशत ही होती है. यह सोचना एकदम बेमानी या निरर्थक नहीं कि, क्या फायदा ऐसी पढ़ाई से जो एक ऐसी बीमार अर्थव्यवस्था और सिस्टम में पलबढ़ रही है जो खुद कैंसर जैसी घातक व जानलेवा बीमारी सरीखी है.

बेरोजगार युवाओं के साथ छलकपट और उन्हें सब्जबाग दिखाना क्या गुनाह नहीं, इस सवाल का जवाब बहुत पेचीदा नहीं है. यह सच है कि सरकार सभी युवाओं को नौकरी नहीं दे सकती क्योंकि उस के पास नौकरियां सीमित हैं लेकिन परेशानी और अफसोस की बात यह है कि वह प्राइवेट सैक्टर से भी रोजगार के मौके छीन रही है और ऐसा वह खुद मानती भी है.

मध्य प्रदेश बेरोजगार सेना के एक पदाधिकारी राज ठाकुर की मानें तो लोकतंत्र में नौकरी, रोजगार या व्यवसाय के मौके उपलब्ध कराना सीधेतौर पर सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए. युवाओं का काम तो पढ़लिख कर डिगरी या सर्टिफिकेट हासिल करना होता है.

यह आक्रोशित जवाब मुमकिन है सरकार के प्रति ज्यादती लगे, लेकिन सरकार और दूसरी एजेंसियों के बयानों और आंकड़ों पर गौर करें तो साफ लगता है कि पढ़ाने की जिम्मेदारी तो वह ठीकठाक तरीके से निभा रही है, लेकिन रोजगार के मोरचे पर मुंह छिपाती रहती है.

भयावह हैं हालात

लाख कोशिशों के बाद भी सरकार बेरोजगारी पर अपनी असफलता को छिपा नहीं पा रही है जिस से युवाओं में सुखद भविष्य को ले कर एक अजीब सी बेचैनी और आशंका है.

यह बेचैनी अगर वक्त रहते दूर नहीं हुई तो सरकार को बड़े पैमाने पर युवाओं का हिंसक आक्रोश झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए. यह बात अपनी जगह ठीक है कि सरकार सभी बेरोजगारों को नौकरी नहीं दे सकती लेकिन यह बात भी उतनी ही सच है कि सरकार प्राइवेट सैक्टर में रोजगार के मौके बजाय पैदा करने के, उन्हें खत्म कर रही है. ऐसा करने के पीछे उस के राजनीतिक, आर्थिक और दीगर स्वार्थ हो सकते हैं लेकिन शुतुरमुर्ग की तरह आंखें बंद कर लेने से मुसीबत टलने वाली नहीं.

देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 50 के दशक के उत्तरार्ध में लखनऊ में एक आयोजन में साफतौर पर माना था कि हर साल 10 लाख पढे़लिखे युवा शिक्षण संस्थानों से निकल रहे हैं लेकिन सरकार के पास देने के लिए 10 हजार नौकरियां भी नहीं हैं.

तब देश नयानया आजाद हुआ था और आबादी 40 करोड़ के लगभग थी. अब हालत यह है कि आबादी 130 करोड़ के लगभग है जिस में से 18 करोड़ लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं यानी बेरोजगार हैं. इन में भी युवाओं की संख्या तकरीबन 14 करोड़ है. तब देशभर के कुल स्नातकों की संख्या भी उतनी नहीं थी जितने आज एक साल में निकलते हैं.

भारत की आबादी में 65 प्रतिशत हिस्सा 35 साल से कम उम्र के युवाओं का है यानी दुनिया के सब से बड़े लोकतंत्र होने के नाते हमारे पास सब से ज्यादा रोजगार पैदा करने के अवसर हैं. लेकिन हम फिर भी फेल हो रहे हैं.

दूसरी एजेंसियों की रिपोर्ट्स के अलावा खुद सरकार का श्रम विभाग यह स्वीकार कर चुका है कि देश में 12 करोड़ लोग बेरोजगार हैं. जिन के चलते भारत दुनिया के सब से ज्यादा बेरोजगारों का देश बन गया है. श्रम विभाग ने यह भी माना है कि साल 2015-16 में बेरोजगारी की दर 5 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंची.

दिलचस्प बात सरकार की यह स्वीकारोक्ति थी कि इन 12 करोड़ बेरोजगारों में से वह महज 1 लाख 35 हजार लोगों को ही नौकरी दे पाई है. श्रम विभाग की एक रिपोर्ट में यह भी माना गया है कि स्वरोजगार के मौके घटे हैं और नौकरियां कम हुई हैं.

वित्तीय वर्ष 2012 से 2016 के बीच रोजगार के लिए 8.41 करोड़ लोग आए लेकिन श्रमशक्ति में बढ़ोतरी केवल 2.01 करोड़ की रही. इस में भी कामकाजी उम्र वाली आबादी का 24 प्रतिशत हिस्सा श्रमशक्ति से जुड़ा, वहीं 76 प्रतिशत इस से बाहर रहा.

संयुक्त राष्ट्र श्रम संगठन की एक रिपोर्ट में पहले ही यह चेतावनी दी जा चुकी है कि साल 2018 में भारत में बेरोजगारी और बढ़ सकती है जो बेरोजगार युवाओं के लिए खतरे की घंटी है.

वर्तमान सरकार सिर्फ नए रोजगार पैदा करने के मामले में फेल नहीं है, बल्कि लाखों की संख्या में रिक्त पदों को भरने में भी वह नाकाम नजर आती है. सरकारी व गैरसरकारी आंकड़ों के मुताबिक, फिलहाल देश में लगभग 14 लाख डाक्टरों की कमी है, करीब 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 6 हजार से भी ज्यादा पद खाली हैं, आईआईटी, आईआईएम व एनआईटी में हजारों पद खाली हैं. वहीं शेष इंजीनियरिंग कालेजों में 27 प्रतिशत शिक्षकों की जरूरत है और करीब 12 लाख स्कूली शिक्षकों के पद खाली हैं. अगर ये तमाम खाली पद भी सरकार युवाओं से भर दे तो बेरोजगारी पर किसी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है.

नोटबंदी ने निगलीं नौकरियां

कांग्रेस के शासनकाल में भी बेरोजगारी थी और आज भी है, लेकिन यह अचानक हैरतअंगेज तरीके से बढ़ी है तो इस के लिए मौजूदा सरकार द्वारा लिए गए कुछ जिद्दी व अदूरदर्शी फैसले हैं, जिन में से पहला नोटबंदी और दूसरा जीएसटी लागू करना है.

सैंटर फौर मौनिटरिंग इंडियन इकोनौमी यानी सीएमआईई के एक सर्वे की मानें तो 8 नवंबर, 2016 से लागू नोटबंदी के बाद जनवरी 2017 से ले कर अप्रैल 2017 तक तकरीबन 15 लाख लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा था यानी हर रोज 450 लोगों की नौकरियां गईं. 4 महीने के इस सर्वे में संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्र शामिल किए गए थे.

कहां तो 2014 के लोकसभा चुनावप्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने हर साल एक करोड़ युवाओं को नौकरी देने का वादा किया था और कहां अब हर साल लाखों की लगीलगाई नौकरियां भी जा रही हैं. हालांकि बेरोजगारी की भयावह बदहाली को सरकार कौशल विकास जैसी योजनाओं से ढकने की कोशिश कर रही है पर वह उस में कामयाब नहीं हो पा रही है.

नोटबंदी के बाद जीएसटी के फैसले ने आग में घी डालने का काम किया. किराने के छोटे दुकानदारों से ले कर बड़ी नामी कंपनियों ने छंटनी शुरू कर दी तो इस के पीछे उन की अपनी मजबूरियां थीं जो इस फैसले से पैदा हुई थीं. व्यापारियों और कंपनियों को अपने खर्चे कम करने के लिए भी मजबूर होना पड़ा तो इस की गाज हर किसी पर गिरी.

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नोटबंदी और जीएसटी की जुगलबंदी से प्राइवेट सैक्टर में नौकरियां घटीं जिस का खमियाजा रोजगार छिनने की शक्ल में सामने आया और हर नियोक्ता ने कर्मचारी हटाए जिस के काम का भार दूसरे कर्मचारियों पर पड़ा यानी नौकरी करने की शर्त अब गधे की तरह बोझ ढोते रहने की भी हो गई है.

इन फैसलों से किसी को कोई फायदा हुआ होता तो भी एकदफा बात समझ आती, लेकिन बेरोजगारी बढ़ने का नुकसान साफसाफ दिख रहा है.

मौजूदा सरकार ने रोजगारपरक योजनाओं की झड़ी लगाई तो लगा कि देश के युवाओं को रोजगार मिल जाएगा लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात वाला ही रहा. ‘मेक इन इंडिया’ के जरिए नौकरियां पैदा करने की बड़ीबड़ी बातें की गईं. इस के जरिए अनुसूचित जातियों, जनजातियों व महिलाओं में उद्यमिता के माध्यम से रोजगार पैदा करने का वादा था. लेकिन आज देश के सफल स्टार्टअप्स में इन तबकों की मौजूदगी शून्य है.

स्किल इंडिया भी रोजगार मूलक योजना के तौर पर प्रचारित की गई. कहा गया कि 2022 तक 40 करोड़ युवाओं को ट्रेनिंग दी जाएगी लेकिन सच सब के सामने है.

पढ़ाई का फायदा क्या

विश्वबैंक की एक रिपोर्ट, ‘वर्ल्ड डैवलपमैंट रिपोर्ट 2018 : लर्निंग टू रियलाइज एजुकेशंस प्रौमिस’ में बताया गया है कि भारत उन 12 देशों की सूची में नंबर 2 पर आता है जहां दूसरी कक्षा के छात्र एक छोटे से पाठ का एक शब्द भी नहीं पढ़ पाते. वहीं, 5वीं कक्षा के आधे छात्र दूसरी क्लास के पाठ्यक्रम के लैवल की किताब ठीक से नहीं पढ़ पाते हैं.

शिक्षा, ज्ञान का यह संकट सिर्फ नैतिक स्तर पर शर्मनाक नहीं है, आर्थिक संकट पर भी है, क्योंकि इसी लचर शिक्षा ढांचे से निकले छात्र बड़े हो कर नौकरियों के लिए भटकेंगे और देश का आर्थिक विकास चौपट कर देंगे.

साल 2011 की जनगणना के बाद तत्कालीन सरकार ने बेरोजगारी पर जो आंकड़े जारी किए थे उन के मुताबिक 20 से 29 साल की उम्र तक के 42 फीसदी युवा बेरोजगार थे. नई सरकार का एक साल में एक करोड़ नौकरियां देने का वादा तो छलावा साबित हुआ ही, हर साल एक करोड़ बेरोजगारों का बढ़ना नीम चढ़े करेले जैसी बात है.

ऐसे में क्या मध्य प्रदेश माध्यमिक शिक्षा मंडल की परीक्षाओं में पास हुए 12 लाख से भी ज्यादा छात्रों या अन्य सीबीएसई व दूसरे राज्यों के बोर्ड्स से उत्तीर्ण हुए छात्रों की कामयाबी पर खुश होना चाहिए. देशभर के छोटेबड़े सभी राज्यों के माध्यमिक शिक्षा मंडलों सहित सीबीएसई के उत्तीर्ण छात्रों की संख्या मिला कर देखा जाए तो इस साल कोई 2 करोड़ युवाओं ने 10वीं और 12वीं के इम्तिहान पास किए हैं, इन में से लगभग 50 लाख स्नातक स्तर की पढ़ाई करेंगे.

यानी देश में इस साल डेढ़ करोड़ नए शिक्षित बेरोजगार पैदा हो गए हैं. उन की पीठ यह कहते ईमानदारी से थपथपाई नहीं जा सकती कि पढ़ोगेलिखोगे तो बनोगे नवाब या पढ़लिख कर कुछ बन जाओगे.

यह सोच कर दहशत होना स्वाभाविक है कि ये युवा क्या करेंगे और इन के अंधकारमय भविष्य का जिम्मेदार कौन है. अगर सरकार या मौजूदा सिस्टम इस की जिम्मेदारी नहीं लेता तो पढ़ाईलिखाई का फायदा क्या. तसवीर उम्मीद से ज्यादा भयावह है कि ये युवा अपने ख्वाब दफन करते पैंटशर्ट में मजदूरी करते नजर आएंगे.

देश का भविष्य कहे जाने वाले इन युवाओं को अगर मजदूरी ही करनी थी या फिर पकौड़े ही बेचने थे तो इन की पढ़ाईलिखाई के माने क्या? इस पर हर कोई खामोश है. खामोश तो अभी युवा भी हैं जो कभी गुस्से या भड़ास में फट पड़ें तो हालात किसी सरकार के काबू में आने वाले नहीं.

युवाओं के नजरिए से देखें तो उन की पहली प्राथमिकता सरकारी नौकरी होती है, क्योंकि वह एक व्यवस्थित जीवन व भविष्य की गारंटी होती है पर दिक्कत यह है कि सरकार के पास कुल 2 फीसदी नौकरियां हैं जिस के लिए विकट की मारामारी मची रहती है.

सब से ज्यादा 53 फीसदी युवाओं को रोजगार कृषि क्षेत्र से मिलता है लेकिन वह अस्थायी होता है. अलावा इस के, खेतीकिसानी भी तेजी से चौपट हो रही है. गांवदेहात के लोग खेत और जायदाद बेच कर शहरों की तरफ भाग रहे हैं. इस के पीछे उन की एक बड़ी मंशा बच्चों को पढ़ालिखा कर कुछ बना देने की है.

उन्हें नहीं मालूम कि अब पढ़ाईलिखाई रोजगार की गारंटी नहीं रही. हो सिर्फ इतना रहा है कि ग्रामीणों की दूसरी पीढ़ी थोड़ा पढ़लिख कर शहरों की मजदूर बनती जा रही है.

ठीक यही हाल दूसरी तरह से प्राइवेट सैक्टर का है जो 36 फीसदी नौकरियां देता है. जो युवा सरकारी नौकरी हासिल नहीं कर पाते वे प्राइवेट कंपनियों में नौकरी कर लेते हैं. इन में व्यावसायिक और तकनीकी स्नातकों की संख्या ज्यादा है. ये प्राइवेट नौकरियां भी अनिश्चितता की शिकार हैं और पहले की तरह आकर्षक तनख्वाह वाली अब नहीं रह गई हैं.

जैसेजैसे बेरोजगारों की भीड़ बढ़ी वैसेवैसे इन प्राइवेट कंपनियों, जिन में आईटी कंपनियां ज्यादा हैं, ने पैकेज का आकार घटाना शुरू कर दिया. जिस पद पर नियुक्त कर्मचारी को पहले एक लाख रुपए महीना दिए जा रहे थे उस पर 4 लोगों को रख कर 25-25 हजार रुपए दिए जाने लगे. इस से बेरोजगारी तो घटी पर पगार भी कम हुई. सरकारें चाहें तो इस फार्मूले से सबक ले सकती है कि भारीभरकम पगार वाली नौकरियां खत्म करें और फिक्स पे का सिद्धांत लागू करें. हालांकि यह शोषण ही है लेकिन बेरोजगारी से तो अच्छा है.

मुद्दे की बात शिक्षा का उद्देश्य क्या है, यह जानना है तो जवाब साफ है कि कोई भी युवा कोई ज्ञानी, महर्षि या पंडित बनने के लिए पढ़ाईलिखाई नहीं करता. वह सिर्फ और सिर्फ अच्छी नौकरी के लिए पढ़ाई करता है. वह भी न मिले तो विश्वगुरु और आर्थिक शक्ति बनने का सपना देख रहे देश में पीएचडीधारक भी पेट पालने के लिए अपना शोध भूलभाल कर चपरासी, माली व ड्राइवर तक बनने को तैयार रहते हैं.

छोटे पदों के लिए बड़ी मारामारी

इस साल मुंबई में 1,137 पुलिस कौंस्टेबल्स की नौकरियां निकलीं तो आवेदकों की संख्या 2 लाख हो गई. आश्चर्य व दुख की बात यह है कि इन आवेदनों में योग्यता से ऊपर के आवेदक बहुत थे. इन में 423 इंजीनियरिंग, 167 उम्मीदवार एमबीए और 543 पोस्टग्रेजुएट थे, हालांकि योग्य उम्मीदवार 12वीं पास पर्याप्त था. अगर ये तमाम डिगरीधारी अपनी काबिलीयत से कम स्तर की नौकरियों के लिए आवेदन कर रहे हैं तो साफ है कि शिक्षित तबके में बेरोजगारी कितने चरम पर है.

‘जौबलैस ग्रोथ’ रिपोर्ट के अनुसार, साल 2005 से 2015 के बीच भारत में पुरुष रोजगार दर में बड़ी गिरावट दर्ज हुई है. जाहिर है यह गिरावट इन्हीं पढ़ेलिखे, बेहतर रिजल्टधारी युवाओं पर भारी पड़ी.

हर महीने 13 लाख नए लोग कामकाज करने की उम्र में प्रवेश कर जाते हैं. यानी एक करोड़ 56 लाख नए युवा हर साल रोजगार के लिए कतारों में खड़े दिखते हैं.

इस की पहली बड़ी मिसाल सितंबर 2015 के तीसरे सप्ताह में देखने में आई जब उत्तर प्रदेश विधानसभा सचिवालय में चपरासी के 368 पद निकले थे. भरती के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता 5वीं पास थी.

उम्मीद से परे इन पदों के लिए 23 लाख आवेदन आए थे. साथ ही 5वीं पास आवेदकों की संख्या महज 53,420 थी जबकि 2 लाख के लगभग उच्चशिक्षित युवाओं को सरकारी दफ्तर का चपरासी बनना मंजूर था. जब इंटरव्यू देने वाले बेरोजगारों की भीड़ कतार में लगी तो सरकार को समझ आया कि 23 लाख इंटरव्यू लेतेलेते तो 4 साल निकल जाएंगे और इस दौरान कई उम्मीदवार नौकरी की उम्र पार कर चुके होंगे. अलावा इस के अच्छाखासा प्रशासनिक अमला अपने कामधाम छोड़ कर इंटरव्यू ही लेता रहेगा. नतीजतन, ये भरतियां रद्द कर दी गई थीं.

पर युवाओं के लिहाज से यह वाकेआ शर्मनाक था, क्योंकि कोई भी युवा चपरासी जैसी छोटी नौकरी के लिए अपनी जवानी पढ़ाई में नहीं झोंक देता और न ही कोई पीएचडी इसलिए करता कि बहुत सा ज्ञान बटोरने व शोध करने के बाद वह टेबल साफ करे, दफ्तर में झाड़ूपोंछा करे और साहबों को चाय, कौफी, पानी व पानसिगरेट ला कर दे.

यहां बात छोटेबड़े काम की अहमियत की नहीं, बल्कि युवाओं के स्वाभिमान की है जिस से समझौता करने के लिए किस हद तक जा कर उन्हें झुकना पड़ रहा है. प्रसंगवश लौर्ड मैकाले को कोसते रहने का रिवाज उल्लेखनीय है कि उस ने शिक्षाव्यवस्था ऐसी बना दी थी जो सिर्फ बाबू यानी क्लर्क पैदा करती है. अंगरेज शासन करने भारत आए थे, उन का असल मकसद प्राकृतिक संपदा और संसाधनों का दोहन था. वे चूंकि व्यापारी थे, इसलिए उन्हें सामान ढोने वाले और उस की गिनती कर हिसाबकिताब करने वाले युवा चाहिए थे.

पर आजाद भारत के कर्ताधर्ताओं ने कौन सा तीर मार लिया और शिक्षापद्धति में कौन सी उल्लेखनीय क्रांति ला दी कि उस में शैक्षणिक योग्यता के हिसाब से नौकरी मिलने लगी. उलटे, बाबू की जगह शासक, चपरासी, ड्राइवर, माली और दूसरे छोटे पदों पर नौकरी करने के लिए युवाओं को विवश कर रहे हैं.

उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ यह सिलसिला अभी थमा नहीं है, न ही इस के थमने के आसार नजर आ रहे हैं. पिछले साल नवंबरदिसंबर में मध्य प्रदेश की अदालतों में भी छोटे पदों पर भरती के लिए खासे पढ़ेलिखे, उच्चशिक्षित जब मुंह लटकाए लाइन लगाए नजर आए तो नए पढ़ेलिखे के भविष्य का अंदाजा सहज लगाया जा सकता है. इन हालात को ध्यान में रखते हुए मध्य प्रदेश बोर्ड की 10वीं और 12वीं की परीक्षाओं को पास कर चुके युवाओं को बधाई देने से पहले यह सोचनेसमझने की जरूरत है कि कहीं उन्हें बेवकूफ तो नहीं बनाया जा रहा.

बढ़ती और विकराल होती बेरोजगारी का संभावित विस्फोट सरकार से छिपा नहीं है पर उस के पास ऐसी कोई जादू की छड़ी नहीं है जिसे घुमाते ही करोड़ों युवाओं को रातोंरात वह नौकरी दे सके या रोजगार के मौके पैदा कर सके.

हर कोई इस बात को समझ रहा था कि जब पहले की कांग्रेसी सरकारें युवाओं के लिए कुछ खास नौकरी या रोजगार के अवसर पैदा नहीं कर पाईं तो मोदी सरकार से बहुत ज्यादा उम्मीदें लगाना उस से ज्यादती होगी. इसलिए बेरोजगारी को ले कर कभी किसी ने मोदी सरकार को न तो जरूरत के मुताबिक कोसा और न ही उस की खिल्ली उड़ाई.

हालांकि मनमोहन सिंह की सरकार के आखिरी 2 सालों यानी 2012-13 में 7.41 लाख नए रोजगार आए जबकि श्रम मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, 2015-16 में रोजगार सृजन मात्र 1.55-2.13 लाख रहा. तुलना करिए और समझ जाइए कि हम आगे बढ़े या खाई में गिरे.

लेकिन एक मौके पर खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब यह कहा कि युवा पकौड़े तलें तो उन की हंसी अब तक लोग उड़ाते रहते हैं. नरेंद्र मोदी की यह सलाह उन के भक्तों के गले भी नहीं उतरी थी कि वे इस में कौन सा जीवनदर्शन ढूंढें.

पकौड़े बेच कर पेट भरना कतई जिल्लत या जलालत की बात नहीं पर नरेंद्र मोदी की खिल्ली उड़ने की असल वजह यह थी कि वे युवाओं से बड़े सपने देखने की बात नहीं कर रहे थे. वे यह नहीं कह रहे थे कि युवा डाक्टर, अफसर, इंजीनियर या साइंटिस्ट बनें या फिर अपनी कंपनियां और फैक्टरियां शुरू करें जिस से दूसरे युवाओं को भी रोजगार मिले.

प्रधानमंत्री के मुख से पकौड़े को पेशा बनाने की राय व्यक्त की गई तो युवाओं का तिलमिलाना स्वाभाविक बात थी कि उन्होंने इतनी पढ़ाई कोई खोमचा या ठेला लगाने के लिए नहीं की और पढ़ाई पर उन के अभिभावकों ने इसलिए लाखों रुपए नहीं खर्चे थे कि उन की संतानें चौराहों पर पकौड़े तलती नजर आएं.

विपक्ष ने जगहजगह पकौड़े बना कर विरोधप्रदर्शन किया, यह एक अनिवार्य राजनीतिक प्रतिक्रिया थी. लेकिन देश का प्रधानमंत्री युवाओं को पकौड़े बेचने का मशवरा दे, इस से युवाओं का स्वाभिमान आहत हुआ था और नरेंद्र मोदी की छवि को गहरा धक्का भी लगा था.

घाटे में अभिभावक

पढ़ाईलिखाई जरूरत से ज्यादा महंगी हो चली है, यह बात किसी सुबूत की मुहताज नहीं है और न ही यह कि शिक्षा अब, वजहें जो भी हों, पूरी तरह कारोबार हो चली है.

शिक्षा का भारीभरकम खर्च अधिकतर अभिभावक उठा भी रहे हैं तो इस के पीछे उन की मंशा समाज को एक अच्छा नागरिक देने की ही होती है जो शिक्षित हो कर कहीं अच्छी नौकरी कर देश की तरक्की में अपना योगदान देते सम्मानजनक जीवन जी रहा होता है. यह कितना बड़ा भ्रम था, यह बात जब साबित होती है तो मांबाप पर क्या गुजरती है, यह तो वही जानते हैं. अपने बेरोजगार युवा बेटे या बेटी की हालत देखते हुए उन का कलेजा मुंह को आने लगता है.

सच तो यह है कि सरकार से बदतर और विस्फोटक होते हालात संभल नहीं रहे हैं. एक बारूद भीतर ही भीतर युवाओं के दिलोदिमाग में रोजगार और नौकरी को ले कर सुलग रहा है जो कब फट पड़े, कहा नहीं जा सकता.

बेरोजगारी की मौजूदा हालत तो चिंताजनक है ही, लेकिन सब से बड़ी चिंता इस बात की है कि जिस तरह हर माह/साल युवाओं की लाखोंकरोड़ों की नई फौजें नौकरियों के लिए कतारों में लग रही हैं उसे आने वाले समय में सरकार कैसे संभालेगी. अब तक तो युवा गांवकसबों में बेरोजगारी के दिन काट रहे थे पर अब शिक्षित व संपन्न होतेहोते ये शहरों की तरफ कूच कर रहे हैं, जबकि शहर पहले से ही बेरोजगारों से गले तक डूबे हुए हैं. ऐसे में इन की भारी भीड़ देश में उठापटक या कहें हिंसक विद्रोह पैदा कर सकती है.

यह सवाल सिर्फ मोदी सरकार के लिए ही नहीं है, बल्कि कोई भी सरकार भला इतनी बड़ी आबादी वाले देश के करोड़ों युवा बेरोजगारों से कैसे निबटेगी? कहीं ऐसा न हो कि आने वाले समय में यही बेरोजगार व शिक्षित युवा देश में अशांति का माहौल पैदा करें. और जिस तरह राजनीतिक दल इन की ऊर्जा, शक्ति व बेरोजगारी का इस्तेमाल अपने राजनीतिक एजेंडों को साधने के लिए कर रहे हैं, उस से भी युवाओं को बहुत दिनों तक बहलायाफुसलाया नहीं जा सकेगा. हाल यह होगा कि एक दिन

यही परेशान, हिंसक व खालीजेब युवा अपना आक्रोश देश के संसाधनों, व्यवस्था व शांति पर उतारेगा. यह भविष्य के लिए खतरे की घंटी है.

– साथ में राजेश कुमार

ऐसे करें रेलवे परीक्षा की तैयारी

भारत का प्रथम रेल मंत्री कौन था और 400 का 36 प्रतिशत कितना होगा? अगर ऐसे आसान से सवालों के जवाब आप को नहीं मालूम हैं और आप रेलवे की गु्रप डी परीक्षा का फौर्म भरने यानी लगभग 2 करोड़ उम्मीदवारों में से एक हैं तो तय है आप के चुने जाने की उम्मीद न के बराबर है. लेकिन अभी भी अगस्तसितंबर तक का वक्त है कि आप इस कठिन परीक्षा को पास कर रेलवे में नौकरी करने का अपना ख्वाब पूरा कर सकते हैं.

इस साल रेलवे ने ग्रुप सी और डी की बंपर करीब 1 लाख रिक्तियां निकाली हैं जिन के लिए 2 करोड़ से भी ज्यादा उम्मीदवारों ने आवेदन किया है यानी अगर आप को रेलवे की नौकरी चाहिए तो औसतन 200 उम्मीदवारों को पछाड़ना पड़ेगा. इस के लिए जरूरी है कि इस परीक्षा की सारी जानकारी आप को हो और लिखित परीक्षा, जिसे सीबीटी यानी कंप्यूटर बेस्ड टैस्ट कहा जाता है, की तैयारी और विषयों की भी जानकारी हो.

समझें परीक्षा का तरीका

सीबीटी परीक्षा की पहली सीढ़ी है जिस में डेढ़ घंटे के पेपर में उम्मीदवारों को 100 सवालों के जवाब देने हैं. हरेक सवाल के 4 उत्तर दिए जाएंगे, जिन में से उम्मीदवार को सही जवाब पर निशान लगाना है.

इस औनलाइन परीक्षा में गणित के 25 सवाल, तर्कशक्ति यानी जनरल इंटैलीजैंस के 25, जनरल साइंस के 30, सामान्य जागरूकता यानी जनरल अवेयरनैस के 20 सवाल होंगे. हर सवाल 1 नंबर का होगा. गलत उत्तर देने पर नकारात्मक मूल्यांकन होगा यानी नंबर कम हो जाएंगे. 1 गलत जवाब पर उम्मीदवार के 1/3 नंबर कटेंगे.

परीक्षा की दूसरी सीढ़ी शारीरिक क्षमता यानी फिजिकल टैस्ट होगी. इस में उम्मीदवारों को बुलाया जाएगा जो सीबीटी की मैरिट में जगह हासिल कर पाएंगे. सीबीटी में पास होने के लिए सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को कम से कम 40 प्रतिशत नंबर लाने जरूरी हैं, जबकि ओबीसी, एससी और एसटी कैटेगरी के उम्मीदवारों के लिए 30 नंबर लाना जरूरी होगा.

इतने नंबर लाने का मतलब यह नहीं है कि उम्मीदवार ने पहली सीढ़ी पार कर ली है. ये न्यूनतम नंबर हैं जिन से आप पास हुए कहलाएंगे लेकिन अगली सीढ़ी चढ़नी जरूरी है कि आप मैरिट में हों, इस के लिए अहम है कि सीबीटी में ज्यादा से ज्यादा नंबर हासिल किए जाएं. अगर 1 लाख पदों के लिए परीक्षा हो रही है तो मैरिटलिस्ट में उन 2 लाख लोगों को जगह मिलेगी जिन के नंबर सब से ज्यादा होंगे.

बेरोजगार युवाओं में इस परीक्षा को ले कर खासा जोश है और सभी तैयारियों में जुटे हुए हैं. उम्मीदवारों की भारी तादाद के चलते परीक्षा आसान नहीं होगी. साफ है, पास वही होगा जो बेहतर पढ़ाई करेगा.

सीबीटी पर ध्यान दें

सीबीटी को पास करने और अच्छे नंबर ला कर मैरिट लिस्ट में जगह बनाने के लिए जरूरी है कि उम्मीदवार अभी से खुद को तैयारी में झोंक दें.

सब से पहले गणित पर ध्यान दें जिस में लाभहानि, प्रतिशत, गुणाभाग और दूसरे सवाल पूछे जाते हैं. ये सवाल आमतौर पर आसान होते हैं, लेकिन गणित में कमजोर उम्मीदवारों को काफी कठिन लगते हैं. गणित में ज्यादा से ज्यादा नंबर लाने जरूरी हैं. उम्मीदवार पहली से ले कर 8वीं क्लास तक की गणित की किताबें खंगालें और ज्यादातर तैयारी उन से ही करें. अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित, ज्यामिति और त्रिकोणमिति के सवालों की प्रैक्टिस ही नैया पार लगा सकती है.

गणित के बाद जनरल साइंस पर ध्यान दें जिस में विज्ञान के आसान सवाल पूछे जाते हैं, मसलन शरीर में कितनी हड्डियां होती हैं, मनुष्य एक मिनट में कितनी बार सांस लेता है और विटामिन ‘ए’ का रासायनिक नाम क्या है. ऐसे हजारों सवालों में से कोई भी 30 पूछे जा सकते हैं.

गणित की तरह विज्ञान भी बहुत बड़ा विषय है, जिस में 30 नंबरों के लिए हजारोंलाखों सवालों के जवाब आने चाहिए. अगर पढ़ा जाए तो जनरल साइंस बेहद दिलचस्प विषय है जिस के बारे में यह सोच कर हथियार नहीं डालने चाहिए कि इतने सवालों के जवाब कैसे याद रखें.

यही हाल जनरल नौलेज का है, जिस के समंदर में कितने ही गोते लगाओ, मोती नहीं मिलते. धर्म, खेल, राजनीति, कृषि, साहित्य, मनोरंजन जगत, भूगोल, इतिहास जैसे दर्जनों विषयों की पढ़ाई जनरल नौलेज के लिए करनी पड़ती है. तब कहीं जा कर उम्मीदवार को लगता है कि वह कुछ जानने लगा है.

तर्कशक्ति से उम्मीदवार की सामान्य बुद्धि परखी जाती है, मसलन आम, केला, गोभी और अमरूद में से कौन सा आइटम अलग है. जाहिर है इस सवाल का जवाब गोभी होगा क्योंकि बाकी आइटम फलों में आते हैं.

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ये आसान उदाहरण महज समझाने की गरज से दिए गए हैं ताकि आप को समझ आए कि तैयारी कैसे करनी है.

पहली सीढ़ी

गणित छोड़ कर सभी विषयों के पेपर्स में अधिकांश सवाल करंट विषयों पर पूछे जाते हैं. इसलिए पिछले एक साल की जनरल नौलेज यानी घटनाओं की जानकारी होनी बहुत जरूरी है. इस के लिए बेहतर होगा कि उम्मीदवार समाचारपत्र और पत्रिकाएं पढ़ें तथा पिछले दिनों की घटनाओं को इकट्ठा करें. रामनाथ कोविंद से पहले भारत का राष्ट्रपति कौन था, जैसे सवालों के जवाब आने जरूरी हैं. मौजूदा मंत्रिमंडल की जानकारी के अलावा सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों और राज्यपालों के नाम मालूम होने भी जरूरी हैं.

केवल राजनीति ही नहीं, बल्कि खेलों में क्याक्या हो रहा है, इस की जानकारी भी जरूरी है, मसलन, साल 2007 में विंबलडन का खिताब किस ने जीता था या फिर हालिया कौमनवैल्थ गेम्स में भारत ने कितने पदक जीते थे.

ये सब पढ़ना अगर आसान नहीं है तो कठिन भी नहीं है. वजह, अधिकतर उम्मीदवारों की हालत और जानकारी लगभग एकजैसी होती है. इसलिए अभी से जो पढ़ाई में जुट जाएगा वही फायदे में रहेगा. इसलिए इन बातों पर गौर करते हुए पढ़ाई करें :

  • अगर वाकई आप नौकरी हासिल करना चाहते हैं तो रोजाना कम से कम 8 घंटे पढ़ाई करें.
  • बाजार में तरहतरह की किताबें मौजूद हैं, उन सभी को बारबार पढ़ें.
  • समाचारपत्र पढ़ना तो बेहद जरूरी है जिस से नईर्पुरानी सभी जानकारियां मिलती हैं. समाचारपत्रों में छपे लेख व रिपोर्ट भी गौर से पढ़ें.
  • पत्रिकाएं पढ़ने से भी तरहतरह की उपयोगी जानकारियां मिलती है, इसलिए अच्छी पत्रिकाएं इकट्ठा करें. पुरानी मिल जाएं तो उन्हें भी पढ़ें.
  • लगातार पढ़ाई करने के बजाय टुकड़ों में पढ़ें, इस के लिए टाइमटेबल बना कर पढ़ना बेहतर होता है कि कितने घंटे कौन सा विषय पढ़ना है.
  • जिस विषय में कमजोर हैं उस पर ज्यादा ध्यान व समय दें.
  • पढ़ाई को तनाव के बजाय चुनौतीभरा मनोरंजन समझें.
  • मोबाइल फोन, कंप्यूटर, टैलीविजन, गपशप, मौजमस्ती एकदम छोड़ दें.
  • पिछले 5 वर्षों के पेपर हल करें या फिर हल किए हुए पेपर पढ़ें.
  • प्रतियोगी परीक्षा में रटने से कोई खास फायदा नहीं होता, बल्कि एक नजर जितने ज्यादा सवालों और उन के जवाबों पर डालेंगे उतना ज्यादा फायदा होता है.
  • अपनेआप को कमजोर न समझें और आत्मविश्वास बनाए रखें.
  • परीक्षा में शांत दिमाग से सवालों के जवाब दें.
  • तुक्का मारने की कोशिश न करें क्योंकि गलत जवाब पर नंबर कटेंगे.
  • वक्त का खास खयाल रखें क्योंकि आप के पास एक सवाल का जवाब देने के लिए एक मिनट से भी कम समय होता है. जिस सवाल का जवाब बिलकुल समझ नहीं आ रहा हो उसे छोड़ दें, उस पर अड़ें नहीं.
  • प्रश्नपत्र को बीच में से हल करने की गलती न करें, बल्कि पहले सवाल से शुरू करें और आखिर तक एक के बाद एक जवाब दें.

पढ़ाई के अलावा आत्मविश्वास और कड़ी मेहनत ही आप को कामयाबी दिला सकती है. यह न सोचें कि मैं कुछ नहीं जानता. अधिकतर उम्मीदवार प्रतियोगी परीक्षाओं की लड़ाई निराशा के चलते लड़ने से पहले ही हार जाते हैं. दिलचस्प बात यह है कि एक फीसदी उम्मीदवारों को छोड़ कर बाकी 97 फीसदी की हालत एकसी होती है.

रेलवे से संबंध रखते हुए कुछ सवाल जरूर पूछे जाते हैं, मसलन देश में पहली रेल कब और कहां चली थी, मैट्रो की शुरुआत कब हुई थी और सब से छोटी व बड़ी रेललाइन कहां हैं. आमतौर पर एक बार ध्यान से पढ़ने पर इन सवालों के जवाब याद हो जाते है. इसलिए उन्हें सिरदर्द या कठिन नहीं समझना चाहिए. हां, बारबार पढ़ने से जरूर फायदा होता है.

दूसरी सीढ़ी

सीबीटी के बाद रेलवे बोर्ड चुने हुए उम्मीदवारों का फिजिकल टैस्ट लेता है. इसलिए पढ़ाई के साथसाथ इस की भी तैयारी जरूरी है. आमतौर पर 1 हजार मीटर की दौड़ रेलवे करवाता है जिस से यह पता चले कि उम्मीदवार में कितना दमखम है. इस बार की परीक्षा में उम्मीदवारों को वजन दे कर दौड़ाया जाएगा. लड़कों को 35 किलो वजन उठा कर 2 मिनट में 100 मीटर की दूरी तय करनी होगी और 1 हजार मीटर की दूरी 4 मिनट 15 सैकंड में तय करनी पड़ेगी.

लड़कियों को 20 किलो वजन उठा कर 100 मीटर की दूरी 2 मिनट में पूरी करनी होगी और 1 हजार मीटर की दूरी 5 मिनट 40 सैकंड में पूरी करनी होगी.

इस फिजिकल टैस्ट की अभी से प्रैक्टिस शुरू करें तो परीक्षा के दौरान आसानी रहेगी. कोशिश यह होनी चाहिए कि तयशुदा से कम वक्त में दौड़ पूरी कर ली जाए, जिस से चुनाव करने वालों पर अच्छा असर पड़े.

इस के अलावा यह भी ध्यान रखें कि आप की नजर ठीक हो, रंगों की पहचान भी रेलवे में जरूरी होती है. इस की भी प्रैक्टिस करें. अगर कोई दिक्कत पेश आए तो तुरंत आंखों के डाक्टर से मिल कर सलाह व इलाज कराएं.

तीसरी सीढ़ी

जो उम्मीदवार पहली दोनों सीढि़यां पार कर लेंगे, उन की नौकरी एक तरह से पक्की है लेकिन तीसरे दौर में आप के द्वारा पेश किए गए दस्तावेजों की जांच होती है. गलत या झूठे दस्तावेज आप की मेहनत पर पानी फेर सकते हैं. इसलिए ऐसे दस्तावेज न लगाएं और हरेक दस्तावेज की मूल प्रति एक फाइल में जमा कर के ले जाएं जिस से जांच में आसानी हो.

ग्रुप सी और डी की नौकरी की पगार 18 हजार रुपए से शुरू होती है जिस में भत्ते जुड़ कर यह तकरीबन 25 हजार रुपए मासिक तक हो जाती है और जिंदगीभर की बेफिक्री भी हो जाती है.

यह बेफिक्री सिर्फ मेहनत और लगन से ही मिलनी मुमकिन है, इसलिए वक्त न गंवाते हुए अभी से जुट जाएंगे तो कामयाबी मिलनी कोई मुश्किल नहीं.

सिंगल्स को घर मिलना आसान नहीं

अरुणाचल प्रदेश से रिनी मुंबई पढ़ने आई. उसे अंदाजा नहीं था कि मुंबई में पेइंगगैस्ट बन कर रहना इतना कठिन होगा. वह अपना अनुभव शेयर करते हुए बताती है, ‘‘मैं अकेली रह रही थी. शहर में किसी को भी नहीं जानती थी. मुझे किचन के इस्तेमाल करने की मनाही थी और फ्रिज लौक्ड रहता था. लैंडलेडी की बेटी कभी भी गैस मीटर, बाथरूम, अलमारी चैक करने आ जाती थी. मैं अपने किसी भी फ्रैंड को कमरे में नहीं बुला सकती थी. कमरे में टीवी, वाईफाई कुछ नहीं था.

‘‘मैं काफी बोर होती थी. मैं ने अपने पापा से लैपटौप भेजने को कहा. एक दिन मेरे पिता के फ्रैंड ही मुझे लैपटौप देने मुंबई आ गए और मुझे डिनर के लिए ले गए. उस के बाद जो हुआ, मैं कभी भूल नहीं पाऊंगी. उस लेडी ब्रोकर ने, जिस ने मुझे यह घर दिलवाया था, फोन कर के कहा, ‘तेरे जैसी लड़कियों को मैं बहुत अच्छी तरह जानती हूं. किस आदमी को घर पर बुलाया था. यह इज्जतदार लोगों का घर है. धंधा ही करना है तो कहीं और जाओ.’ उस के ये शब्द आज भी मेरे कानों में गूंजते हैं और मैं बहुत तकलीफ महसूस करती हूं.’’

सिंगल लोगों को चाहे वे पढ़ने आए हों या नौकरी करने, अपने सिंगल होने की भारी कीमत चुकानी पड़ती है. ‘भले ही हम महिला सशक्तीकरण की बात करते हैं, लेकिन इस समाज में महिलाओं को घर ढूंढ़ने से ज्यादा आसान है कोई नौकरी ढूंढ़ लेना.’

एक एडवरटाइजिंग एजेंसी में काम करने वाली ऋचा शर्मा कहती हैं,

‘‘4 साल से जब भी किराए पर मकान देखने जाती हूं, हाउसिंग सोसायटी के लोग मेरे प्रोफैशन पर अजीब प्रतिक्रिया देते हैं. मैं मीडिया इंडस्ट्री से हूं, इसलिए उन्हें यही लगता है कि मैं सिगरेट, ड्रिंक, ड्रग्स का सेवन करती हूं और लड़के भी मेरे घर आते होंगे आदि. यह हम किस तरह के समाज में रह रहे हैं?’’

सिंगल और यंग वर्किंग वीमन को ही घर मिलने में कठिनाई नहीं होती, आश्चर्य इस बात का है कि बुजुर्ग लोगों को भी घर मिलना आसान नहीं है.

नासिक निवासी श्रेया हासे बताती हैं, ‘‘उन की 55 वर्षीय मां को उन की उम्र ‘ठीक’ न बताते हुए घर के अंदर जाने ही नहीं दिया गया.

‘‘मेरी मां 30 सालों से टीचर हैं. मुंबई के अंधेरी इलाके में उन्होंने ब्रोकर से बात कर ली थी. उन्हें 3 अन्य लड़कियों के साथ घर शेयर करना था. वे लड़कियां भी अपनी मां की उम्र जैसी महिला के साथ रूम शेयर करने में खुश थीं. मेरी मां ने पूरी पेमैंट कर दी थी, लेकिन घर पहुंचने पर ब्रोकर ने उन्हें घर में नहीं घुसने दिया. उस ने कहा कि वे उम्र के मापदंड पर खरी नहीं उतरतीं और दूसरी लड़कियों को बिगाड़ सकती हैं. वे अपना पूरा सामान लिए घर के बाहर ही खड़ी रहीं. आखिर में उन्हें अपनी किसी फ्रैंड के घर जाना पड़ा.’’

घर ढूंढ़ने की परेशानी सिर्फ महिलाओं को ही नहीं होती, 30 वर्षीय विनोद निगम, जो मार्केटिंग मैनेजर हैं, का अनुभव भी कुछ अलग ही है. वे कहते हैं, ‘‘घर देखने जाएं तो इतने पर्सनल सवाल कौन पूछता है. जब मैं घर ढूंढ़ रहा था, मकानमालिक ने तो मुझ से यह भी पूछ लिया कि मैं पोर्न तो नहीं देखता या लड़कियां घर पर तो नहीं आएंगी. मैं नौनवेज तो नहीं खाता क्योंकि मेरी ये आदतें सोसायटी के बच्चों को बिगाड़ सकती हैं.’’

सिंगल होना या दूसरे धर्म का होना भी मुश्किल बढ़ा देता है. सना शेख दिल्ली व बेंगलुरु में रहने के बाद अभी हाल ही में मुंबई शिफ्ट हुई हैं. लेकिन अभी तक उन्हें घर नहीं मिल पाया है. कारण? वह सिर्फ सिंगल वर्किंग लेडी ही नहीं बल्कि मुसलिम भी हैं.

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सना कहती हैं, ‘‘मैं ने कई घर औनलाइन देखे पर मकानमालिक ने बड़ी रुखाई से कहा कि वे अपना घर किसी मुसलिम को नहीं दे सकते.’’

आजम, जो आईटी फर्म में काम करते हैं, पिछले साल ही कुवैत से मुंबई आए थे. उन्हें लगता था कि शहर में यंग पौपुलेशन बहुत बड़ी संख्या में है, पर यहां अकेले रहने वालों के लिए घर की परेशानी देख कर बहुत हैरान हुए. वे कहते हैं, ‘‘सिंगल और ऊपर से मुसलिम, यह देख कर बड़ी कोफ्त हुई कि मकान किराए पर देने में मेरे धर्म से क्या आपत्ति हो सकती है.’’

आज की युवापीढ़ी चाहे लड़का हो या लड़की, दूसरे शहरों में जा कर अकेले रह कर पढ़ने या जौब करने की हिम्मत रखती है, वह समाज के ढांचे में फिट नहीं बैठ पाती. छोटे शहर हों या महानगर, स्थिति तकरीबन सब जगह एकसी ही है. समाज को इस के प्रति अपना रवैया बदलने की जरूरत है.

अग्निपरीक्षा

तुम तो मर्यादा पुरुषोत्तम हो

तुम ने सरेआम

सीता की अग्निपरीक्षा ले कर

क्या सीता की मर्यादा पर

प्रश्नचिह्न नहीं लगाया?

तुम क्या साबित करना चाहते थे

क्या जनता की आंखों के

प्रश्नभरे बाणों से बचना चाहते थे

या कहीं न कहीं स्वयं को भी

आश्वस्त करना चाहते थे?

माना कि लोगों ने सीता के

सतीत्व पर प्रश्नचिह्न लगाया

पर वे तो पराए थे

तुम्हारा क्या, तुम तो अपने थे

तुम्हारा विश्वास क्यों डगमगाया

तुम ने भोली जनता को

क्यों नहीं समझाया?

तुम्हारे पौरुष और शौर्य की गाथा

तो सब ने सुनी थी

फिर साहस तुम्हारा कहां गया?

अच्छा तुम राजा थे

माना कि सीता

दुश्मनों के पास

अधीन रहीं, अकेली रहीं

इसीलिए संदेह के घेरे में आईं

परंतु उस ने तुम्हारे सम्मान के लिए

अग्निपरीक्षा दी और

निष्कलंक सफलता पाई

और तुम भी तो

सीता की तरह रहे अकेले

वह भी मुक्त और स्वच्छंद

फिर किसी ने तुम्हारी

अग्निपरीक्षा क्यों नहीं ली?

या फिर स्वयं तुम ने

मर्यादा की रक्षा हेतु

लोकहित में अग्निपरीक्षा

क्यों नहीं दी?

उत्तर दो

तुम तो मर्यादा पुरुषोत्तम हो.

छोटे छोटे कामों से बड़ी पहचान बनाती महिलाएं

‘कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता और धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता’, ‘रईस’ फिल्म के इस डायलौग को सच साबित कर रही हैं आज की पावरफुल महिलाएं.

आज के महंगाई के जमाने में महिलाओं के लिए भी कमाना जरूरी हो गया है. ज्यादातर शिक्षित महिलाएं टेबलवर्क करना पसंद करती हैं. पर जो महिलाएं कम पढ़ीलिखी होती हैं उन के पास मजदूरी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहता.

गोलगप्पे का नाम सुनते ही मुंह से पानी आने लगता है. कहा जाता है कि गोलगप्पे बेचने का काम पुरुष ही करते हैं, मगर अब अहमदाबाद शहर की खुद्दार महिलाएं इस बात को गलत साबित करती दिख रही हैं. हम ने ऐसी ही कुछ कर गुजरने का जज्बा लिए गोलगप्पे बेचने की शुरुआत करने वाली कुछ महिलाओं से उन के संघर्ष से जुड़ी रोचक बातचीत की.

ख्याति

अहमदाबाद के रायपुर की निवासी ख्याति गुज्जर सिर्फ 12 क्लास तक पढ़ी हैं. 35 साल की ख्याति 2 बच्चों की मां हैं. पति कंस्ट्रक्शन का व्यवसाय करते हैं.

family selfmade working indian womens

वे शादी के बाद अपने जीवन में कुछ करना चाहती थीं, अपनी अलग पहचान बनाना चाहती थीं. पर शादी के बाद उन्होंने अपने शौक और कुछ करने की ख्वाहिश पर विराम लगा दिया था. जैसेजैसे वक्त आगे बढ़ा उन के शौक और ख्वाहिश ने करवट बदली. ख्याति के पति भी चाहते थे कि उन की पत्नी स्वनिर्भर बने. ख्याति ने मणीनगर के रामबाग विस्तार में गोलगप्पों का ठेला लगाना शुरू किया. शुरू में ठेला चलाने और खड़े रहने में हिचकिचाहट होती थी, फिर भी काम चालू रखा.

ख्याति 2 सालों से गोलगप्पों का ठेला लगा रही हैं. वे गोलगप्पे घर पर ही बनाती हैं. वे दिन में 800 तक कमा लेती है. उन के अनुसार, आज के वक्त में 1 कमाने वाला और 4 खाने वाले हों तो एक की कमाई से घर चलाना मुश्किल हो जाता है. इसीलिए हर महिला को चाहिए कि वह अपने बलबूते पर कोई न कोई काम करे ताकि उस का आत्मविश्वास और काम करने की इच्छा बढ़े.

वर्षा त्रिवेदी

सिर्फ 9वीं कक्षा पास मणिनगर की वर्षा त्रिवेदी की शादी को 23 साल हो गए हैं. वे 42 साल की हैं. फैमिली में पति और 2 बेटिया हैं. पति शहर में काम करते हैं. बड़ी बेटी जौब करती है और छोटी 10वीं कक्षा में पढ़ रही है.

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वर्षा शादी के बाद परिवार में आर्थिक तंगी के चलते जौब करती थीं, पर जौब से संतुष्ट नहीं थीं. कम पगार में घर चलाने में बड़ी परेशानी हो रही थी. अत: नौकरी छोड़ने के 6 महीने तक घर पर बिना काम बैठी रहीं. फिर सोचा कि ऐसे ही घर बैठी रहेगी तो 2 बेटियों का भविष्य खराब हो जाएगा.

फिर अपनी बेटियों को अच्छी शिक्षा देने के लिए वर्षा ने 5 साल पहले गोलगप्पों का ठेला लगाना शुरू करने की सोची. पर इस के लिए उन के पास पैसे नहीं थे. इन तंग हालात में भी वर्षा ने हार नहीं मानी और पैसे उधार ले कर गोलगप्पों का ठेला लगाना शुरू किया. वर्षा की मेहनत धीरेधीरे रंग लाने लगी. उन के यहां गोलगप्पे खाने वालों की लाइन लगने लगी. हमें वर्षा से बात करने के लिए तो खासतौर पर अपौइंटमैंट लेनी पड़ी. वर्षा शाम के 4:30 बजे से ले कर रात के 10:30 बजे तक गोलगप्पों का ठेला लगाती हैं और आराम से 1500 प्रतिदिन मुनाफा कमा लेती हैं.

अपने इसी काम से वर्षा त्रिवेदी ने अपनी बड़ी बेटी को इंटीरियर डिजाइनर बनाया और दूसरी 10वीं कक्षा में पढ़ रही है, जिसे वर्षा होटल मैनेजमैंट का कोर्स कराना चाहती हैं.

दीपिका

दीपिका चेतनभाई सोलंकी अहमदाबाद में पिछले करीब 3 सालों से गोलगप्पों का बिजनैस चला रही हैं. स्नातक दीपिका इस से पहले इंश्योरैंस ऐडवाइजर और बिरला सनलाइफ में एजेंसी मैनेजर की पोस्ट पर काम कर चुकी हैं. पतिपत्नी दोनों मिल कर सुबह के वक्त सारी तैयारी कर लेते हैं.

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दीपिका भारती बताती हैं, ‘‘मेरी मां सरपंच थीं और पिताजी के भी अच्छी पोस्ट पर होने के बावजूद मैं ने खुद का कुछ काम करने की सोची. आज युवाओं को ज्यादा दिनों तक जौब के पीछे न भाग कर अपना कोई काम करने की सोचना चाहिए. मुझे कभी अपना काम छोटा नहीं लगा. मुझे पता है कि कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता.’’

महिलाओं को मैसेज देते हुए दीपिका कहती हैं कि हर महिला को सकारात्मक सोचना चाहिए. हर महिला में कोई न कोई टेलैंट जरूर होता है. बस जरूरत होती है खुद के टेलैंट को पहचान कर आगे बढ़ने की.

आनंदी

सिर्फ 24 साल की आनंदी बीकौम पास हैं. कैफे में मैनेजर पति के प्रोत्साहन पर आनंदी ने गोलगप्पे बिजनैस शुरू किया. शुरू में थोड़ी दिक्कतें आईं पर फिर धीरेधीरे सब सही हो गया. आनंदी 2 महीनों से दिन के 3 बजे से ले कर रात के 8 बजे तक अहमदाबाद के गांधी आश्रम रोड पर गोलगप्पे बेच रही हैं.

आनंदी दिन में 300 की लागत से ज्यादा से ज्यादा 800 और कम से कम 600 तक की कमाई कर लेती हैं. उन का मानना है कि लड़कियों को खाली बैठे रहने के बजाय कुछ न कुछ काम जरूर करते रहना चाहिए.

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आनंदी बताती हैं, ‘‘मैं ने रिलेशनशिप मैनेजर की पोस्ट पर भी काम किया है, परंतु मुझे वहां इतना कंफर्टेबल काम करने को नहीं मिला. जौब में नकारात्मक अनुभव भी रहे हैं. जौब करने पर घर में उतना वक्त नहीं दे पाती थी. बाहर का गुस्सा घर में उतरता था. कम लागत में अच्छी कमाई करने का यह बेहतर जरीया है. हर लड़की को अपना कोई काम करना चाहिए. मैं आगे चल कर खुद का कैफे शुरू करने के साथसाथ गोलगप्पों के इस काम को भी बड़े पैमाने पर करूंगी.’’

भारती

सिर्फ क्लास 9 तक पढ़ी हुई ओघाणी भारती सागरभाई के परिवार में 2 बेटियां और पति हैं. भारती के पति सागरभाई फोटोग्राफी का काम करते हैं. मगर आज के महंगाई के युग में एक की कमाई से घर नहीं चलता.

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अत: आर्थिक मुश्किलों के चलते भारती ने गोलगप्पों का छोटे पैमाने पर बिजनैस शुरू करने की सोची. अब वे 3 सालों से अखबार नगर सर्कल के पास दिन के 4 बजे से ले कर रात 9 बजे तक गोलगप्पे बेचती हैं. इस काम में उन की बेटी डिंपल भी उन की मदद करती है. भारती दिन भर में 800 से ले कर 1 हजार तक कमाई कर लेती हैं. इन से बात करने पर पता चला कि उन के नियमित ग्राहक भी हैं. उन के आसपास कई पुरुष भी गोलगप्पे का बिजनैस कर रहे हैं, पर भारती के बिजनैस की खासीयत है कि उन के यहां सफाई का बहुत ध्यान रखा जाता है. इसीलिए इन के यहां गोलगप्पे खाने वालों की भीड़ लगी रहती है.

3 साल से भारती के यहां गोलगप्पे खाती आ रहीं मितल रामी बताती हैं, ‘‘मैं भारतीजी की नियमित ग्राहक हूं. मुझे यहां की सफाई अच्छी लगती है और गोलगप्पे भी बिलकुल फ्रैश होते हैं. कोई भी बासी चीज यहां नहीं होती.’’

भारती का बिजनैस इतना अच्छा चल रहा है कि उन्हें शादीब्याह के भी और्डर मिलते हैं.

मोदी मैजिक पर ग्रहण, आखिर क्या हैं इसके मायने

देश के 10 राज्यों में लोकसभा की 4 और विधानसभा की 10 सीटों के लिए हुए उपचुनावों के नतीजे केंद्र सरकार के कार्यों पर चुनाव पूर्व सर्वेक्षण सरीखे हैं. 14 उपचुनावों से साफ संकेत मिल गया है कि अब देश में मोदी मैजिक खत्म हो रहा है. रामायण की तर्ज पर भाजपा के ‘अश्वमेघ यज्ञ’ का घोड़ा कर्नाटक में विपक्ष ने रोक लिया. कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद अन्य राज्यों में हुए उपचुनावों में भी भाजपा को मात खानी पड़ी. जीत की जंग में भाजपा का प्रदर्शन सब से खराब रहा. भाजपा के लिए सब से बड़ी शर्मनाक हार ‘राम के प्रदेश’ उत्तर प्रदेश में रही.

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में एकतरफा मैदान मारने वाली भाजपा का उपचुनावों में हार का सिलसिला जारी है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की लोकसभा सीटें क्रमश: गोरखपुर व फूलपुर हारने के बाद भाजपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा सीट और नूरपुर विधानसभा सीट भी हार गई. कैराना सीट का महत्त्व भी गोरखपुर और फूलपुर से कम नहीं है. कैराना से हिंदुओं के पलायन का बनावटी मुद्दा बना कर भाजपा ने 2014 में लोकसभा सीट जीती थी. चुनावी जीत के बाद भाजपा कैराना से पलायन की बात को भूल गई, क्योंकि फिर साबित करना पड़ता कि कितने कहां क्यों गए. पश्चिमी उत्तर प्रदेश की नूरपुर विधानसभा सीट सहारनपुर जिले में आती है और हिंदुओं के पलायन का मुद्दा वहां भी मददगार रहा पर अब उपचुनाव में नूरपुर सीट भी भाजपा के हाथ से निकल गई.

अविजित नहीं शाह-मोदी उपचुनावों में भाजपा की हार से साफ हो गया है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जोड़ी अविजित नहीं है. उस को हराया जा सकता है. राजनीतिक समीक्षक हनुमान सिंह ‘सुधाकर’ कहते हैं, ‘‘भाजपा की जीत का सफर विरोधी दलों के मनोबल को तोड़ चुका था. विपक्षी एक तरह से पस्त हो गए थे लेकिन कर्नाटक में भाजपा के प्रबंधन को तोड़ने के बाद विपक्षी एकता का मनोबल बढ़ गया है. अब उन को एहसास हो चुका है कि राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह का प्रबंधन भी फेल हो सकता है.

यह बात न केवल विपक्षी दल बल्कि भाजपा के कार्यकर्ता और नेता भी समझने लगे थे कि शाहमोदी की जोड़ी हर हाल में उन्हें जीत दिलाती रहेगी, लेकिन अब यह भ्रम टूट गया है. ऐसे में आने वाले दिनों में 3 राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा को कड़ी चुनौती का सामना करना पडे़गा. शाहमोदी की जोड़ी के सामने पस्त पडे़ भाजपा नेता भी अब विरोध में उठने वाले स्वरों को हवा देने का काम करेंगे. भाजपा को प्रदेशदरप्रदेश मिल रही जीत से पार्टी की टौप लीडरशिप में हेकड़ी का भाव आ चुका था. अपनी किसी भी योजना को वह फेल मानने को तैयार नहीं थी. विपक्षी दलों से ले कर जनता या दूसरे जानकार लोगों की राय उस के लिए बेमानी हो चुकी थी. पार्टी अपनी आलोचना को विरोध मानने लगी थी. पार्टी में अंदर और बाहर दोनों तरफ तानाशाही का बोलबाला था. मीडिया के सवालों का उन का एजेंडा बता कर सरेआम जवाब देने से मना कर दिया जाता था. इस तरह की तानाशाही कांग्रेस में भी इमरजैंसी के दौर में दिखी थी. जो तानाशाही कांग्रेस में 28 साल सरकार चलाने के बाद आई थी वह भाजपा में मात्र 4 साल में ही दिखाई देने लगी है.

1975 से 1977 तक इमरजैंसी के दौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने विपक्ष को नेस्तनाबूत करने का संकल्प ले कर अपने फैसले लागू करने शुरू किए. कांग्रेसमुक्त भारत के अपने अभियान में यही काम भाजपा करने लगी. ऐसे में जनता के मन में स्वाभाविक तौर पर विरोधी दलों के प्रति एक सहानुभूति पैदा हो गई. यही वह लहर थी जिस ने कांग्रेस के खिलाफ इमरजैंसी के बाद विरोधी दलों का साथ दिया था. भाजपा के खिलाफ बहुत सारे दलों का गठबंधन भले ही बहुत लंबा सफर तय न कर सके लेकिन भाजपा को कुरसी से उतारने में अवश्य सफल हो सकता है. शाहमोदी की जोड़ी की सफलता पर प्रश्नचिह्न लगने शुरू हो गए हैं.

कांग्रेस फिर मैदान में राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का मुकाबला क्षेत्रीय दल नहीं कर सकते हैं. क्षेत्रीय दलों के सहयोग से कांग्रेस भाजपा का मुकाबला करने के लिए मैदान में है. कर्नाटक चुनाव के बाद कांग्रेस और दूसरे दलों का यह तालमेल साफतौर पर दिखा. इस का असर भाजपा के रणनीतिकारों पर भी हुआ, मंच पर सोनिया गांधी और मायावती की गले मिलती फोटो देख कर भाजपाई खेमे के चेहरे का रंग फीका पड़ गया. यही नहीं, सोनिया व मायावती की इस जोड़ी को ले कर सोशल मीडिया पर भी गहमागहमी रही. कुछ मैसेज काफी कटाक्ष वाले थे.

भाजपा को यह मालूम है कि 2014 में उस की सफलता कम, कांग्रेस की असफलता ज्यादा थी. अब भाजपा और कांग्रेस का फर्क बहुत सारे मामलों में खत्म हो गया है. केवल धर्म की कट्टरता को छोड़ दें तो भाजपा और कांग्रेस में कोई भेद नहीं रह गया है. कई बार तो भाजपा कांग्रेस के पुराने कामों का उदाहरण दे कर अपना बचाव भी करने लगी है. राज्यों में राज्यपाल की ताकत का प्रयोग करना हो, जोड़तोड़ कर के सरकार बनानी हो, जनता पर टैक्स लगाना हो, ये सब वैसे ही होने लगा है जैसे कांग्रेस के राज में होता था. अब कांग्रेस अपने को बदल कर भाजपा का मुकाबला करने के लिए मैदान में उतर चुकी है. बीमार होने के बावजूद कर्नाटक में सोनिया गांधी ने मंच पर खडे़ हो कर विपक्षी दलों को ताकत दी और भाजपा को चुनौती दे दी.

14 उपचुनावों के बाद अगली परीक्षा 3 राज्यों के विधानसभा चुनावों में है. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा लंबे समय से सत्ता में है. वहां हमेशा भाजपा और कांग्रेस का सीधा मुकाबला होता रहा है. तीनों ही प्रदेशों में कोई क्षेत्रीय दल मुकाबले में नहीं होता था. हाल के कुछ सालों में तीनों ही प्रदेशों में बहुजन समाज पार्टी की दखल बढ़ी है. यही वजह है कि अब कांग्रेस के लिए मायावती की दोस्ती अहम हो चुकी है. धार्मिक एजेंडा फिस

दलित चिंतक रामचंद्र कटियार कहते हैं, ‘‘भाजपा को लोकसभा चुनाव जीतने के बाद यह लगने लगा था कि धार्मिक एजेंडा ही उस की जीत का एकमात्र फार्मूला है. उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले भले ही पार्टी योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने से बच रही थी पर जीत के बाद उस ने योगी को ही मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठा दिया. भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश बेहद महत्त्वपूर्ण था. लोकसभा चुनाव में उसे 2014 की तरह अब 73 सीटें मिलनी बेहद मुश्किल हैं. ‘‘भाजपा धर्म को आगे कर के यह चुनाव जीतना चाहती है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भाजपा ने अपना ब्रैंड ऐंबैसेडर सा बना लिया. चुनावीप्रचार में भाजपा में योगी का कद मोदी और शाह के बाद माना जाने लगा. हर चुनाव में उन को स्टारप्रचारक बना कर पेश किया जाने लगा. गुजरात और हिमाचल में जीत के लिए योगी के प्रचार को सराहा गया था. कर्नाटक में भी योगी को चुनावीप्रचार में रखा गया.’’

भाजपा योगी को पूरे भारत में चुनावीप्रचार का हिस्सा बना चुकी है. परेशानी वाली बात यह है कि पूरे देश में ब्रैंड ऐंबैसेडर बने योगी उत्तर प्रदेश में ही चुनावी जीत नहीं दिला पा रहे हैं. योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद उत्तर प्रदेश के 3 लोकसभा उपचुनावों में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. इस में खुद मुख्यमंत्री योगी की गोरखपुर सीट शामिल है. इस के अलावा फूलपुर और कैराना में भी योगी ने प्रचार अभियान चलाया था. उत्तर प्रदेश में योगी धार्मिक एजेंडे पर ही काम कर रहे हैं. पर्यटन में केवल धार्मिक महत्त्व के शहरों का विकास हो रहा है. परिवहन की सुविधाओं में भी धार्मिक पहचान वाले शहरों को प्राथमिकता दी जा रही है. विकास के दूसरे कामों में भी धार्मिक शहरों को महत्त्व मिल रहा है. गौरक्षा के नाम पर शहर से गांव तक छुट्टा जानवरोंं का आतंक बढ़ता जा रहा है. उत्तर प्रदेश और बाकी प्रदेशों में भाजपा को मिली हार से साफ हो गया है कि जनता को भाजपा का धार्मिक एजेंडा पसंद नहीं आ रहा है. धार्मिक एजेंडा फिस होने से भाजपा की हार तय हो गई है. कैराना और नूरपुर में जिन्ना विवाद काम नहीं आया. ऐसे में साफ है कि लोग अब जागरूक हो रहे हैं.

अंधसमर्थक व्यापारी स्तब्ध भाजपा की हार से सब से अधिक स्तब्ध अंधसमर्थक व्यापारी हैं. नोटबंदी, ईवे बिल, महंगाई, बैंकों की परेशानी और जीएसटी से परेशानी के बाद भी ये समर्थक भाजपा की गलती मानने को तैयार नहीं थे. उन को लगता था कि भाजपा को ऐसे ही जनता का समर्थन मिलता रहेगा. असल में ये समर्थक बड़ी संख्या में ऊंची जातियों के थे. इस के साथ ही साथ, इस जमात में कुछ पिछड़ी जातियां और दलित भी शामिल हो चुके थे.

केंद्र और फिर उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने के बाद भाजपा में दलितों की उपेक्षा होने लगी. उन पर जातीय अत्याचार शुरू हो गया. उत्तर प्रदेश के सहानपुर व महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा ने भाजपा की पोल खोल दी. मध्य प्रदेश के मंदसौर में किसानों पर अत्याचार ने दलितों और पिछड़ों को यह बता दिया कि भाजपा अभी भी ऊंची जातियों की पार्टी है. भाजपा के समर्थक यह चाहते थे कि दलितपिछडे़ पार्टी को वोट तो दें पर ये पार्टी में अपना हक न मांगें. भाजपा के अंधभक्त व्यापारी समर्थकों को अब लग रहा है कि आगे के चुनाव में भी दलित, पिछड़ा और मुसलिम गठजोड़ बना रहा तो भाजपा का सत्ता में कायम रहना मुश्किल हो जाएगा.

उत्तर प्रदेश में दलित, पिछड़े और मुसलिम गठजोड़ ने कैराना व नूरपुर के उपचुनाव में भाजपा को हराने में सब से बड़ी भूमिका निभाई. इस जीत ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में हाशिये पर चले गए अजित सिंह के लोकदल में जानफूंकदी है. नए गठबंधन की तलाश

एनडीए के सहयोगी दलों के साथ भाजपा का व्यवहार हेकड़ी वाला होता जा रहा है. उत्तर प्रदेश में भाजपा के सहयोगी ओमप्रकाश राजभर नाराज चल रहे हैं. अपना दल के बारे में भी अंदर खाने चर्चा है कि लोकसभा चुनाव वह भाजपा के साथ नहीं लड़ेगा. रामविलास पासवान, उदित राज और रामदास अठावले जैसे नेता पार्टी में दलित मुद्दों को ले कर मुखर हैं. भाजपा सांसद ज्योतिबा फूले आरक्षण और संविधान के मुददे पर भाजपा के साथ खड़ी नहीं हैं. ऐसे में भाजपा गठबंधन की कमजोर होती ताकत ने सहयोगी दलों को दूसरा रास्ता देखने पर मजबूर कर दिया है. बिहार में जदयू और भाजपा की सरकार भले ही चल रही हो पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहज भाव से काम नहीं कर रहे हैं. वे जौकीहाट सीट बुरी तरह हारने से पहले ही नोटबंदी पर कटाक्ष कर चुके थे कि लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी यादव को कहना पड़ा था कि अब नीतीश कुमार के पुराने गठबंधन में लौटने के दरवाजे बंद हो चुके हैं.

बिहार की जौकीहाट विधानसभा सीट लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल ने ही जीती है. यहां पर भाजपाजदयू गठबंधन का मुकाबला राजद से था. यहां भाजपा की हार से साफ लगता है कि केवल विपक्षी एकता के सामने ही नहीं, आमनेसामने के मुकाबले में भी भाजपा चुनाव हार जाएगी. कांग्रेस के नेता सुरेंद्र सिंह राजपूतकहते हैं, ‘‘भाजपा की जुमलेबाजी अब जनता समझ चुकी है. उसे केवल हवाई जुमलों से नहीं संभाला जा सकता. कांग्रेस की राजनीति देश के विकास और समाज को एकजुट रखने की रही है, देश के लोग इस बात को समझ रहे हैं. 3 राज्यों के चुनावों के पहले ही 14 उपचुनावों में भाजपा की हार से साफ हो गया है कि अब भाजपा की जुमलेबाजी काम नहीं आएगी.’’

देश को केवल विरोध की राजनीति नहीं चाहिए. देश के लोग विश्वास की राजनीति को महत्त्व देते हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से देश की जनता ने भाजपा, खासकर प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी के शहद में डूबे बयानों के प्रभाव में वोट दे दिया. लोकसभा चुनावों के बाद केंद्र सरकार की नीतियां जनता के सुखदुख और विकास की नहीं रहीं. नोटबंदी, बैंकों की परेशानी, बेरोजगारी को केंद्र सरकार ने कभी गंभीरता से नहीं लिया. भाजपा के नेता और कार्यकर्ता जहां मोदी मैजिक के टूटने से स्तब्ध हैं वहीं विरोधी दलों में आत्मविश्वास भर चुका है.

छोटे शहर की लड़की (अंतिम भाग) : क्या पूजा विनोद को मना पाई

पूर्व कथा :

शर्मीले विनोद और निर्भीक व तेजतर्रार पूजा की दोस्ती धीरेधीरे प्यार में बदलती चली गई. वे दोनों रोज खेतों में घूमतेफिरते, साथ समय बिताते. लेकिन परीक्षा परिणाम घोषित होते ही विनोद को उस के पिता ने आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली जाने का आदेश दे दिया. यह सुन कर पूजा बहुत उदास हो गई और विनोद को दिल्ली न जाने के लिए मनाती रही.

अब आगे…

विनोद दिल्ली चला गया. समय का पहिया दूसरी तरफ घूम गया. पूजा को विनोद से बिछुड़ने पर बहुत दुख हुआ, परंतु वह कर भी क्या सकती थी. उस ने विनोद से वचन लिया था कि वह नियमित रूप से उसे फोन करता रहेगा. कुछ दिन तक उस ने यह वादा निभाया भी, परंतु धीरेधीरे उस के फोन करने में अंतराल आता गया. इस का कारण उस ने बताया था दिन में कालेज अटैंड करना, शाम को कोचिंग क्लास और फिर रात में पढ़ाई… ऐसे में उसे वक्त ही नहीं मिलता. यूपीएससी की परीक्षा पास करना कोई आसान काम नहीं था. रातदिन की मेहनत से ही इस में सफलता प्राप्त हो सकती थी. प्यार के चक्कर में वह अपने लक्ष्य से भटक सकता था. पूजा ने कहा था, ‘‘प्यार मनुष्य को अपना लक्ष्य प्राप्त करने की ताकत देता है, उसे भटकाता नहीं है.’’

‘‘मैं मानता हूं, परंतु केवल प्यार के बारे में सोच कर किसी परीक्षा में सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती. इस के लिए आंखें फोड़नी पड़ती हैं.’’

‘‘तुम मुझ से दूर जाने के लिए बहाना तो नहीं बना रहे?’’ उस के मन में शंका के बादल उमड़ आए. ‘‘नहीं, परंतु तुम मेरी तैयारी में बाधा न उत्पन्न करो, यह तुम्हारा मुझ पर एहसान होगा,’’ उस ने सख्त स्वर में कहा था. पूजा का दिल विनोद की बात से बैठने लगा था. पूजा समझती थी कि उस से दूर जाने के बाद विनोद उस के दिल से भी दूर हो गया था. दिल्ली जा कर किसी और लड़की के चक्कर में पड़ गया होगा, इसीलिए उस की उपेक्षा कर रहा था और उस से संबंध तोड़ने के लिए इस तरह के बहाने बना रहा था. ऐसी स्थिति में हर लड़की अपने प्रेमी के बारे में इसी तरह की सोच रखती है. इस में पूजा का कोई दोष नहीं था.

वह रोज दीप्ति के पास आती, उस के साथ विनोद की बातें करती और अपने मन को सांत्वना देने का प्रयास करती कि एक दिन जब विनोद लौट कर आएगा तो इतने दिनों की दूरियों का सारा हिसाब चुकता कर लेगी. उसे इतना प्यार करेगी कि वह दोबारा दिल्ली जाने का नाम नहीं लेगा. ‘‘क्या वह रोज घर में फोन करता है?’’ उस ने दीप्ति से पूछा था.

‘‘नहीं, रोज नहीं करता. हम ही फोन कर के उस का हालचाल पूछ लेते हैं,’’ दीप्ति ने सहज भाव से बताया. ‘‘मुझे भी फोन नहीं करता. कहीं वह किसी और को प्यार तो नहीं करने लगा?’’

‘‘क्या पता?’’ दीप्ति ने मुंह बिचका कर कहा. पूजा दीप्ति का मुंह ताकती ही रह गई. दीप्ति को अभी किसी से प्यार नहीं हुआ था न, इसलिए वह पूजा के दिल का दर्द नहीं समझ पा रही थी. दीप्ति पूजा के मन को समझती थी, परंतु उस के हाथ में था भी क्या? वह नहीं जानती थी कि किस तरह से पूजा के मन को तसल्ली दे. इस बारे में उस की भैया से कोई बात नहीं होती थी. उस से जब भी बात होती थी, मम्मीपापा पास में होते थे. फिर भी एक दिन चोरी से उस ने पूजा की विनोद से बात कराई थी. उस ने बात तो की, परंतु बाद में कह दिया कि फोन कर के उसे डिस्टर्ब मत किया करे, पढ़ाई का हर्ज होता है और पूजा मन मसोस कर रह गई.

विनोद दीवाली में घर आया था, परंतु पूजा से एकांत में मुलाकात नहीं हो सकी. दीप्ति ने भैया से कहा, ‘‘भैया, एक बार पूजा से मिल तो लो.’’ उस ने दीप्ति को अर्थपूर्ण निगाहों से देखते हुए कहा, ‘‘मिल लूंगा, परंतु तुम उस के लिए परेशान न हो,’’ और बात आईगई हो गई.

फिर वह होली पर घर आया और उसी प्रकार पूजा से बिना मिले ही चला गया. पूजा उस के घर आती थी, परंतु दोनों एकांत में नहीं मिल पाते थे. विनोद कोई न कोई बहाना बना कर उस से दूर रहता था. पूजा ने उसे घेरने की कोशिश की तो उस ने निरपेक्ष भाव से कहा, ‘‘पूजा, मैं जब गरमी की छुट्टियों में आऊंगा तो तुम से रोज मिला करूंगा. अभी मुझे अकेला छोड़ दो.’’ उस ने मान लिया.

गरमी की छुट्टियों में मिलते ही पूजा ने पहला सवाल किया, ‘‘तुम बदल गए हो?’’ ‘‘नहीं तो…’’ उस ने बात को टालने वाले अंदाज में कहा.

‘‘नहीं, क्या… मैं देख नहीं रही? तुम अब पहले जैसे भोले नहीं रहे. इधर मैं तुम्हारे प्यार में संजीदा हो गईर् हूं. अपनी सारी चंचलता मैं ने खो दी, परंतु तुम दिल्ली जा कर मुखर ही नहीं चंचल भी हो गए हो. यह तुम्हारे हावभाव से ही दिख रहा है.’’ ‘‘आदमी समय के अनुसार बदल जाता है. इस में आश्चर्य की कोई बात नहीं है.’’

‘‘मुझे आश्चर्य नहीं है, परंतु आश्चर्य तब होगा, जब तुम मेरे प्यार को भुला दोगे. यह भी भुला दोगे कि मैं ने तुम्हें प्यार करना सिखाया था वरना कोई लड़की तुम्हें घास न डालती और अगर तुम कोशिश भी करते तो भी कोई लड़की तुम्हारे फंदे में नहीं फंसती,’’ उस ने कुछ चिढ़ कर कहा. ‘‘तुम छोटे शहर की लड़कियों की यही गंदी सोच है. इस के आगे तुम कुछ सोच ही नहीं सकती. सभी लड़कों को तुम बुद्धू और भोंदू समझती हो. तुम सोचती हो कि लड़कों से प्यार कर के तुम उन के ऊपर एहसान कर रही हो, क्योंकि लड़के इस लायक ही नहीं होते कि वे किसी लड़की को प्यार कर सकें या कोई लड़की उन के ऊपर अपना प्यार लुटा सके. तुम्हें अपने रूप पर घमंड जो होता है.’’

पूजा विनोद की बातों से आहत हो गई, ‘‘मैं ऐसा नहीं सोचती, परंतु तुम से सच कहती हूं. एक दिन इसी बात को ले कर मेरी सहेलियों से शर्त लगी थी.’’ ‘‘क्या शर्त लगी थी?’’ उस ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘महल्ले की सारी लड़कियां तुम्हें भोंदू और बुद्धू कहती थीं. वे तुम्हें ले कर मजाक करती रहती थीं कि यह मिट्टी का माधो कभी किसी लड़की को प्यार नहीं कर सकेगा. पहली बात तो यह कि कोई लड़की ही तुम्हें प्यार नहीं करेगी और किसी का मन तुम पर आ भी गया तो भी तुम लड़की को अपने प्यार में बांध नहीं पाओगे.’’ ‘‘तो फिर.’’

‘‘मैं ने इस चुनौती को स्वीकार किया था, क्योंकि मैं मन ही मन तुम्हें प्यार करने लगी थी. मुझे तुम्हारी सादगी और भोलापन पसंद था. अन्य लड़कों की तरह तुम में कोई छिछोरापन नहीं था और तुम उन की तरह लड़कियों के पीछे नहीं भागतेफिरते थे, इसलिए मैं ने तय किया कि मैं तुम्हारा प्यार पा कर रहूंगी. मैं ने उन से कहा था कि विनोद एक दिन मेरे प्यार में पागल हो जाएगा, परंतु अब मुझे ऐसा नहीं लगता. जब तक तुम दिल्ली नहीं गए थे, मुझे लगता था कि तुम भी मुझ से प्यार करने लगे हो और सहेलियों से मैं ने बड़े फख्र से कहा था कि मैं ने तुम्हारा प्यार हासिल कर लिया है. परंतु लगता है, मैं अपनी शर्त हार गई हूं,’’ उस की आवाज भीग गई थी. विनोद हतप्रभ रह गया. उस की समझ में नहीं आया कि वह पूजा से क्या कहे, उसे किस प्रकार सांत्वना दे और कैसे बताए कि वह उसे प्यार करता है, क्योंकि इस बारे में उसे स्वयं पर संदेह था. जबलपुर में रहते हुए विनोद पूजा को डरतेडरते प्यार करता था, जैसे कोई पूजा से जबरदस्ती प्यार करने के लिए कह रहा था. दिल्ली में एक साल रहने के बाद वह आजाद पंछी की तरह हो गया था और पूजा की गिरफ्त से उसे छुटकारा मिल गया था.

वह एक किताबी कीड़ा था और किताबों में ही उस का मन लगता था. लड़कियां उसे लुभाती थीं और वह उन्हें पसंद भी करता था. चोर निगाहों से उन की सुंदरता की प्रशंसा भी करता था, परंतु खुल कर किसी लड़की को पटाने का साहस उस के पास नहीं था. यही कारण था कि जबलपुर में भी पूजा ने ही पहल की थी और चूंकि उस के जीवन में आने वाली वह पहली लड़की थी, वह भी डरतेडरते उसे प्यार करने लगा था, परंतु एक बार दूर जाते ही उस के मन से पूजा का प्यार फूटे गुब्बारे की तरह हवा हो गया था.

फिर भी उन दोनों का मिलना जारी रहा. गरमी की लंबी छुट्टियां थीं. उस की एक साल की कोचिंग समाप्त हो गई थी, परंतु एमए का फाइनल ईयर था. उस ने यूपीएससी की सिविल सर्विसेज का फार्म भी भर रखा था, जिस की प्रारंभिक परीक्षा जुलाई में ही होनी थी. एमए की क्लासेज भी जुलाई में प्रारंभ होनी थीं, अत: उन दोनों के पास मिलने के लिए गरमी के ढेर सारे लंबेलंबे दिन थे और सोचने के लिए ढेरों छोटीछोटी रातें. कहना बड़ा मुश्किल था कि विनोद के मन में क्या था, परंतु पूजा को डर लगने लगा था. बरसात आने में अभी देर थी, परंतु उन के घरों के पीछे खेतों में किसानों ने मकई बो दी थी. उन के पौधे अब काफी बड़े हो गए थे. उन में भुट्टे भी आने लगे थे, परंतु उन के पकने में अभी देर थी. खेतों के बीच की कच्ची सड़क पर घूमना पूजा को अच्छा लगता था. वह जिद कर के विनोद को उधर ले जाती थी. खेतों के बीच का वह पेड़ जिस के नीचे बैठ कर वे दोनों चोरी से भुट्टे तोड़ कर खाते थे, उन के मिलन के प्रारंभिक दिनों का गवाह था. वह अपनी जगह पर निश्चल खड़ा था. वे लड़कियां भी जो उन्हें प्यार से भुट्टे भून कर खाने के लिए देती थीं, अपनेअपने खेतों की रखवाली के लिए आने लगी थीं और उन दोनों को देख कर मंदमंद मुसकराती थीं.

अभी भुट्टे पके नहीं थे और पूजा को लगने लगा था कि अभी उन के प्यार में भी परिपक्वता नहीं आई. सुस्ताने के लिए वे पेड़ की छाया तले बैठे तो पूजा ने कहा, ‘‘तुम्हारे सपने बड़े हो गए हैं.’’ ‘‘फिलहाल तो मेरा एक ही सपना है, आईएएस बनना और जब तक यह सपना पूरा नहीं हो जाता, मेरे लिए बाकी सभी सपने बहुत छोटे हैं.’’

‘‘आसमान से भी ऊंचे सपने व्यक्ति देख सकता है, परंतु न तो वह आसमान में उड़ सकता है, न आसमान में घर बना कर रहना उस के लिए संभव है. तो क्या तुम इस छोटे शहर से अलग हो गए?’’ ‘‘नहीं, परंतु यहां मेरे सपनों के लिए कोई जगह नहीं है,’’ उस ने साफ किया.

‘‘क्या प्यार के लिए भी नहीं…’’ ‘‘प्यार तो समय और परिस्थिति के अनुसार बदलता रहता है.’’

‘‘तुम बहुत कठोर हो.’’ ‘‘हो सकता है.’’

‘‘पहले तो ऐसे नहीं थे.’’ ‘‘पहले मैं छोटे शहर में रहता था और यहां की लड़कियां मुझे डराती थीं.’’

‘‘तो तुम ने डर कर मुझ से प्यार किया था? लेकिन अब तुम बड़े शहर में रहते हो. वहां की लड़कियां तो छोटे शहर की लड़कियों से भी अधिक तेज होती हैं. क्या वहां की लड़कियों से तुम्हें डर नहीं लगता?’’ ‘‘लड़कियों से मुझे डर नहीं लगता, बस उन के प्यार से डर लगता है.’’

‘‘तो तुम मुझे प्यार नहीं करते?’’ ‘‘शायद… मुझे संदेह है,’’ उस ने पूजा की भावनाओं की परवा न करते हुए स्पष्ट रूप से कहा.

‘‘तो क्या तुम मुझे छोड़ दोगे?’’ वह लगभग रोंआसी हो गई थी. ‘‘मुझे मेरा सपना पूरा करने दो. उस के बाद ही मैं कुछ कह पाऊंगा. अभी मेरे और मेरे सपनों के बीच में और कुछ नहीं है.’’

‘‘पूजा का दिल टूट गया. उसे लगा कि सबकुछ समाप्त हो गया है.’’ छुट्टियां भी एक दिन समाप्त होनी थीं. पूजा हताश और निराश हो गई थी. उस ने विनोद के घर आना बंद कर दिया था. उस से फोन पर भी बात नहीं करती थी और

न उस से बाहर मिलने के लिए जिद करती थी.

दिल्ली जाने से एक दिन पहले विनोद ने पूजा को फोन किया, ‘‘क्या कर रही हो?’’ ‘‘कुछ नहीं… मेरे पास करने के लिए है भी क्या?’’

‘‘तो फिर वहीं आ जाओ. जहां हम मिलते हैं.’’ ‘‘क्या जरूरी है, मेरा मन नहीं कर रहा है,’’ उस ने उपेक्षा जाहिर की.

‘‘बहुत जरूरी है, नहीं आओगी तो जीवनभर पछताओगी.’’ ‘पता नहीं क्या बात है‘, सोच कर पूजा मिलने के लिए आ गई. वह उदास थी, अपने सूखे होंठों पर जीभ फेरते हुए वह उसे देखने लगी. विनोद मुसकरा रहा था. पूजा को उस की मुसकराहट का भेद समझ में नहीं आया. विनोद ने बेझिझक उस के कंधों पर हाथ रख दिया और उसे लगभग अपनी तरफ खींचता हुआ बोला, ‘‘तुम बहुत दुखी हो.’’

वह कुछ नहीं बोली. उस ने अपना एक हाथ उस के सिर के पीछे रख उस का सिर अपने सीने पर दबा लिया और उस के बालों को सहलाते हुए बोला, ‘‘स्वाभाविक है, मेरी तरफ से तुम्हारा मन उचट गया हो, परंतु मैं भी क्या करता? एक डरपोक लड़के को तुम ने प्यार किया. मैं तुम्हारे लायक नहीं था. मैं एक किताबी कीड़ा था और समझता था इन्हीं में मेरा जीवन है. जीवन में सपने देखने के सिवा मैं ने और कुछ नहीं किया. जब तुम ने मुझे प्यार किया तो मैं इतना डर गया था कि समझ नहीं पा रहा था कि क्या करूं. तुम्हारे प्यार में पड़ कर कहीं मेरे सपने चकनाचूर न हो जाएं. इसी असमंजस में दिन गुजर रहे थे. दिल्ली गया तो लगा कि मेरा सपना मेरी पकड़ से बहुत दूर नहीं है, परंतु तुम्हारी यादें बीच में बाधा उत्पन्न कर रही थीं,’’ वह चुप हो कर अपनी सांसों को संयत करने लगा. पूजा ने अपना सिर उठा कर उस के चेहरे की तरफ देखा. ‘‘परंतु इन छुट्टियों में मेरे प्रति तुम्हारी दीवानगी और प्यार ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. मैं नहीं समझता कि जीवन में बिना प्यार के कोई भी सपना पूरा हो सकता है. मैं अपने चाहे जितने सपने पूरे कर लूं, वे सभी अधूरे रहेंगे, अगर मेरे जीवन में किसी का प्यार नहीं है. तुम्हारा अपने प्रति अटूट प्यार देख कर मेरा आत्मबल और विश्वास दोगुना हो गया है. मुझे लगता है कि तुम्हारा प्यार पा कर मैं अपना सपना जल्दी ही पूरा कर लूंगा. इस में ज्यादा दिन नहीं लगेंगे.’’

अब पूजा उस से अलग हो कर उस की तरफ तीखी नजरों से देखने लगी थी. विनोद की आंखों में प्रेम का गहरा समुद्र हिलोरें मार रहा था. पूजा का हृदय अनायास धड़क उठा, बिलकुल उसी तरह जिस प्रकार पहली बार विनोद के लिए धड़का था. ‘‘मैं ने तुम्हें बहुत सताया है,’’ उस ने भावुक हो कर कहा.

उस का सिर नीचे झुक गया. वह सुबकने लगी. ‘‘आशा है, तुम मेरी बात का मतलब समझ गई होगी. मैं अधिक कुछ नहीं कह सकता. बस, एक बात पूछना चाहता हूं, क्या मेरा सपना पूरा होने तक तुम मेरा इंतजार कर सकती हो?’’

पूजा ने अपना मुंह उस के सीने में छिपा लिया और उस की पीठ पर अपनी बांहें कसती हुई बोली, ‘‘आज तुम ने मुझे पूरी तरह से जीत लिया. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी. मैं छोटे शहर की लड़की हूं और सच्चे मन से तुम्हें प्यार करती हूं, तुम अपना सपना पूरा कर के आओ, फिर हम दोनों घर वालों की सहमति से विवाह कर के अपना घर बसा लेंगे.’’ विनोद ने भी उसे अपनी बांहों में कस लिया, ‘‘ऐसा मत कहो कि तुम छोटे शहर की लड़की हो. तुम्हारा दिल बहुत बड़ा है.’’

‘‘तुम ने एक दिन कहा था कि छोटे शहर की लड़कियों की सोच ऐसी ही होती है. यह तुम्हारी बात का जवाब था.’’ ‘‘लेकिन ऐसा नहीं है कि केवल छोटे शहर की लड़कियां ही सच्चा प्यार करती हैं. बड़े शहर की लड़कियां भी अपने प्रेमियों का इंतजार करती हैं. प्रेम सच्चा हो, तो सब कुछ संभव है. हां, जीवन का बड़ा सपना केवल बड़े शहरों में ही पूरा होता है, परंतु प्यार का सपना तो कहीं भी, किसी भी जगह पूरा हो सकता है.’’

‘‘सचमुच… आज मैं इस बात को समझ गई हूं. तुम ने मेरे सारे भ्रम दूर कर दिए.’’ ‘‘और मेरे मन से भी सारी दुविधाएं दूर हो गई हैं. मुझे पूरी आशा है कि मेरे दोनों सपने… आईएएस बनने का और तुम से शादी करने का… जल्दी ही पूरे हो जाएंगे. फिर तुम्हें ज्यादा दिन तक विरह के आंसू नहीं बहाने होंगे.’’

…और उन के मन में हजारों दीपक जल कर मुसकराने लगे, जिन का प्रकाश चारों तरफ फैल गया.

कर्नाटक का जनसमर्थन

कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी की किरकिरी हुई. हालांकि वह चुनाव में हारी नहीं है, बल्कि सब से बड़ी पार्टी बन कर उभरी है. पर इतनी बात साफ है कि यदि अपनी गायों के लिए भाजपा के पास चारा कम होगा तो वह अब दूसरों से झटकने की कोशिश सोचसमझ कर ही करेगी ताकि फिर से किरकिरी न होने पाए. सरकार बनाने में उस के गच्चा खा जाने के बाद अब जो पलायन दूसरी पार्टियों से भाजपा की ओर हो रहा था, वह बंद हो जाएगा. भारतीय जनता पार्टी के गौरक्षक गायों के लिए दूसरों को मारनेपीटने को तो हर समय तैयार रहते हैं पर गायों के लिए चारा उगाने की कोशिश उन्होंने कभी नहीं की. मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, ईज औफ डूइंग बिजनैस उसी तरह के मंत्र हैं जैसे आयुष्मान भव:, सौभाग्यवती भव:, अतिथि देवो भव: जो बोले तो जाते हैं लेकिन उन के लिए किया कुछ नहीं जाता.

अब वोटरों को भी दिखने लगा है और नेताओं को भी कि भाजपा हर हालत में सत्ता में रहेगी, ऐसी गारंटी नहीं है. राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, केरल, पश्चिम बंगाल के उपचुनावों में हार, गुजरात में ढीले प्रदर्शन और कर्नाटक में बहुमत न पा सकने से भारतीय जनता पार्टी से ज्यादा हिंदू समाज के उन स्वयंभू ठेकेदारों के तेवर ढीले हुए हैं जो सोच रहे थे कि रामराज्य आ ही गया है जिस में पिछड़े हनुमान दास को पूजते रहेंगे व शंबूकों को पढ़ने से मना किया जाता रहेगा और ब्राह्मण श्रेष्ठों की ही चलेगी चाहे उस के लिए पत्नी सीता को फिर वनवास देना पड़े.

भारतीय जनता पार्टी की 2014 के बाद की चुनावी जीतें सामाजिक परिवर्तन ला रही थीं जो एकदम उलट दिशा में जा रहा था. उदारता, विभिन्नता, आधुनिकता, तार्किकता को छोड़ा जा रहा था और मंदिरों, यज्ञों, हवनों, तिलिस्मी तावीजों, तीर्थयात्राओं का युग लौट रहा था. भारत की आर्थिक प्रगति बनी हुई है क्योंकि उस सब के बावजूद देश की कानून व्यवस्था चरमरा नहीं गई थी. देश पश्चिम एशिया की तरह गृहयुद्धों की चपेट में नहीं आया था पर धर्म और जाति को ले कर दूषित माहौल बनने लगा था. कर्नाटक और 15 उपचुनावों के नतीजे शायद इस पर रोक लगाएंगे और भाजपाई सरकारों को अपना कांग्रेसीकरण करना होगा जिस में सब को अपनी इच्छा के हिसाब से चलने की इजाजत होगी. नरेंद्र मोदी की सरकार के अच्छेबुरे फैसले वैसे ही हैं जैसे किसी भी सरकार के होते हैं. देश में एक चुनी सरकार ही होनी चाहिए जिस के सिर पर चुनावों में जनसमर्थन की तलवार लटकी रहे. परिणामों ने साबित कर दिया है कि इस तलवार पर सरकार या पार्टी का कब्जा नहीं हुआ है.

आपकी छोटी सी गलती से हो सकता है आपका स्मार्टफोन हैक

दुनिया में स्मार्टफोन उपभोक्ताओं की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, इस बढ़ते हुए तादाद और इंटरनेट के इस्तेमाल की वजह से फोन हैक या डाटा चोरी होने जैसी तमाम प्रकार की घटनाएं भी बढ़ती जा रही है. वक्त के साथ स्मार्टफोन वाकई में स्मार्ट होता चला जा रहा है और आज के युग में स्मार्टफोन का इस्तेमाल लोग केवल बात करने या फिर सोशल मीडिया पर चैट करने के लिए ही नहीं करते हैं, आजकल स्मार्टफोन लोगों की जरूरत बनती जा रही है. लोग अपने बैंकिग, औनलाइन पेमेंट, खरीदारी आदि भी स्मार्टफोन से करने लगे हैं. ऐसे में स्मार्टफोन का हैक होना या जानकारी लीक होना यूजर्स के लिए परेशानी पैदा कर सकती है.

आज हम अपने कुछ खास लोगों के द्वारा एकत्रित किये गए जानकारी के माध्यम से हम आपको बताएंगे की आखिर आप किस तरीके से अपने स्मार्टफोन को हैक होने से बचा सकते हैं. ”जब भी आप कोई ऐप अपने स्मार्टफोन में इंस्टौल करते हैं तो पहले चेक कर लें कि वो ऐप गूगल प्ले स्टोर पर वेरिफाइड हैं कि नहीं. इसके अलावा आप थर्ड पार्टी एप अपने स्मार्टफोन में भूल कर भी इंस्टौल करने से बचें. साथ ही किसी ऐप को गैर-जरूरी परमिशन न दें, क्योंकि अगर आप किसी ऐप को गैर-जरूरी परमिशन देते हैं तो ये आपके लोकेशन, कौन्टैक्ट्स, आपकी रूचि, फोटो आदि की जानकारी इकठ्ठा कर लेते हैं, जिससे आपकी निजी जानकारी हैकर्स के पास जाने का खतरा बना रहता है.” जिस प्रकार कुछ वक्त पहले अमेरिका में फेसबुक के मामले में देखने को मिला था तो किसी भी ऐप को अपने डाटा को एक्सेस करने की अनुमति देने से पहले 10 बार सोच विचार ले की क्या ये सही है या नहीं.

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गलती से भी ना करें थर्ड पार्टी ऐप को इंस्टौल

सबसे पहले आप अपने एंड्रौयड स्मार्टफोन में कभी भी किसी थर्ड पार्टी ऐप को इंस्टौल करने से बचें. थर्ड पार्टी ऐप के जरिए हैकर्स आसानी से आपके स्मार्टफोन का डाटा चुरा सकते हैं. इसलिए हमेंशा वेरिफाइड ऐप ही गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड करें, क्योंकि ये ऐप ज्यादातर सुरक्षित होते हैं और इनसे कोई खतरा आमतौर पर होता नहीं है.

किसी भी ऐप को परमिशन देने से पहले सोच विचार लें

आप किसी ऐप को इंस्टौल करते समय उसे अपने कौन्टैक्ट, फोटो, कैमरा आदि का एक्सेस न दें, किसी ऐप में अगर जरूरत हो तब ही उसमें एक्सेस दे. इसके अलावा अपने एंड्रौयड फोन में गूगल प्ले प्रोटेक्ट को इनेबल कर लें. अन्यथा आपका डाटा आपकी अनुमित देने की आदतो की वजह से गलत हाथों में भी लग सकता है जिसका कोई भी चाहे अपने इच्छानुसार गलत इस्तेमाल कर सकता है.

काम के ऐप तथा वेरिफाईड ऐप को अनुमित देने से काफी हद तक आपका स्मार्टफोन सुरक्षित रहेगा और हैक होने की संभावना नहीं के बराबर रहेगा. अगर आप चाहते हैं तो एंटी वायरस भी इंस्टौल कर सकते हैं.

स्मार्टफोन में गूगल प्ले प्रोटेक्ट सर्विस को कैसे करें इनेबल

  • सबसे पहले आप अपने स्मार्टफोन में सेटिंग्स के औप्शन पर टैप करें.
  • स्क्रौल करने के बाद यहां आपको मोर सेटिंग्स आइकन दिखाई देगा, उसपर टैप करें.
  • यहां आपको सिक्योरिटी औप्शन दिखाई देगा, अब आप यहां टैप करें.
  • सिक्योरिटी पर टैप करते हुए सबसे ऊपर आपको गूगल प्ले प्रोटेक्ट औप्शन दिखाई देगा, उसपर टैप करें.
  • यहां आपको स्कैन डिवाइस फौर सिक्योरिटी थ्रेट्स और इंप्रूव हार्मफुल एप डिटेक्शन औप्शन दिखाई देगा.
  • इसे इनेबल करते ही आपके डिवाइस की सिक्योरिटी बढ़ जाती है और इन वायरस के अटैक का खतरा कम हो जाता है.

आप अपने स्मार्टफोन को पूरी तरह से सिक्योर रखने के लिए अपने स्मार्टफोन में कभी भी थर्ड पार्टी ऐप इंस्टौल न करें.

रांची में नीलाम होने वाला है धोनी का घर, क्या है इसकी वजह

भारतीय टीम के पूर्व कप्तान, विकेटकीपर और बल्लेबाज महेंद्र सिंह धोनी के रांची स्थित फ्लैट अब नीलाम होंने वाले हैं. 900 वर्गफीट और 1100 वर्गफीट के धोनी के दो फ्लैट कमर्शियल हैं. धोनी के ये दोनों फ्लैट रांची के डोरंडा में शिवम प्लाजा नामक बिल्डिंग में हैं. बिल्डर दुर्गा डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड पर हुडको का लोन नहीं चुका पाने का आरोप है जिसके कारण हुडको यानि हाउसिंग अर्बन डेवलपमेंट कौर्पोरेशन ये फ्लैट नीलाम करने जा रहा है और इसलिये जौ के साथ घून यानि इसका खामियाजा महेंद्र सिंह धोनी को भी उठाना पड़ रहा है.

रांची के बेहद पौश इलाके में स्थित एस प्लाजा के चौथी और पहली मंजिल पर महेंद्र सिंह धोनी के दो कौमर्शियल फ्लैट्स हैं. लेकिन इसी कड़ी में हुडको ने इसकी नीलामी की तैयारियां शुरू कर दी हैं. इसके लिए भवन परिसंपत्ति का दो बार मूल्यांकन अलग-अलग कराया गया है. इलाहाबाद स्थित कर्ज वसूली अपीलीय न्यायाधिकरण में नीलाम की आधार राशि तय करने की अपील की है.

न्यायाधिकरण की ओर से छह करोड़ कर्ज की राशि के लिए उचित ब्याज और हर्जाने की राशि के मुताबिक नीलाम की आधार राशि तय होगी. नीलामी से मिली राशि में से इतना हुडको अपने खाते में ले लेगा. नीलामी लोन वाली पूरी परियोजना यानी बिल्डिंग की होगी. यानि उसमें बिक चुके फ्लैट भी इसमें शामिल होंगे. हालांकि, दुर्गा डेवलपर्स के निदेशक निलय झा मानते हैं कि हुडको के साथ उनका लोन को लेकर विवाद जरुर है लेकिन वे महेंद्र सिंह धोनी के दो फ्लैट का सेटलमेंट दूसरे जगह कर चुके हैं, जहां तक ग्राउंड फ्लोर में धोनी के फ्लैट की बात है उसका 3 करोड़ का भुगतान हुडको को कर दिया गया है. वहीं, वे हुडको के खिलाफ कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं.

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दुर्गा डेवलपर्स ने इस बिल्डिंग को बनाने के लिये हुडको से 12 करोड़ 95 लाख लोन लिया था. इसे जी+10 फ्लोर का बनना था. लेकिन कुछ आगे हो पाता इसी बीच जमीन के मालिक से दुर्गा डेवलपर्स का किसी वजह को लेकर विवाद हो गया. इस कारण छह करोड़ देने के बाद हुडको ने दुर्गा डेवलपर्स के लोन का बाकी हिस्सा रोक दिया. भवन जी+6 फ्लोर बनने के बाद ही रुक गया. लोन चुकाने में देरी के कारण हुडको ने कंपनी को डिफौल्टर घोषित कर दिया. धोनी ग्राउंड फ्लोर पर स्थित अपने दोनों फ्लैटों के लिए डेढ़ करोड़ रुपए दे चुके हैं. इसके बाद भी इस परिसंपत्ति का उनके हाथ से निकलना तय माना जा रहा है.

इस मामले में माही के बड़े भाई नरेंद्र सिंह धोनी ने हुडको पर आरोप लगाते हुए कहा है कि हुडको की साजिश के कारण यह प्रोजेक्ट खत्म हुआ है. हमने तीन करोड़ चुका दिए हैं, लेकिन हुडको ने दुर्गा डेवलपर को लोन दिया था तो इसका नोटिस बिल्डिंग में क्यों नहीं लगाया. हमें कैसे पता लगेगा कि बिल्डिंग लोन में बनाई गई है. बिल्डर और हुडको ने मिलकर हमें फंसा दिया.

बहरहाल इस मामले में हुडको की तरफ से कोई भी अधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है, लेकिन इतना तो तय है कि अगर शिवम प्लाजा नीलाम हुई तो बिल्डर और हुडको के आपसी विवाद तथा उनकी गलती का खामियाजा टीम इंडिया के खिलाडी महेंद्र सिंह धोनी को भी चुकाना पड़ेगा.

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