Download App

बौलीवुड में हो सकती है एक और पोर्न स्टार की एंट्री

बौलीवुड सनसनी सनी लियोनी को जिस टीवी शो ने एक अलग पहचान दिलाई, जिस टीवी शो के बाद सनी को बौलीवुड में एंट्री मिली उसी टीवी शो में एक और एडल्ट स्टार की एंट्री हो सकती है. यह सब जानते हैं कि सनी एक एडल्ट स्टार रह चुकी हैं. सनी लियोनी आज बौलीवुड की मशहूर नामों में से एक हैं. सलमान से लेकर संजय दत्त की फिल्मों में इन्होंने काम किया है.

सनी का शुरुआत से विवादों से नाता रहा है. सनी लियोनी शुरु में रिएलिटी शो बिग-बौस का हिस्सा बनीं. शो में सनी को काफी पसंद किया गया क्योंकि अपनी विवादित छवि के कारण सनी का यहां अलग ही अंदाज नजर आया.

अभी तक सनी लियोनी अपने जलवों से बौलीवुड में धमाल मचा रही हैं, लेकिन अब सनी को मिल सकती है बड़ी टक्कर. ऐसी खबरें है कि टीवी स्क्रीन पर एक और एडल्ट स्टार डायनामाइट का धमाका होने वाला है. बता दें कि टीवी रिएलिटी शो बिग बौस में एडल्ट मूवी स्टार शांति डायनामाइट को शो का हिस्सा बनाने की खबरें काफी गर्म है.

bollywood

छोटे परदे पर सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहना वाला रिएलिटी शो ‘बिग बौस’ का नया सीजन जल्द ही आने वाला है. अब हाल ही में ये खबर आ रही है कि इस बार शो में शांति डायनामाइट ‘बिग बौस-12’ में बतौर कंटेस्टेंट नजर आ सकती हैं. रिपोर्ट्स की मानें तो अगर ऐसा होता है तो सनी लियोनी के बाद शांति दूसरी पोर्न स्टार होंगी, जो इस शो में कंटेस्टेंट के तौर पर नजर आएंगी.

आपको यह भी बता दें कि शांति भारतीय मूल की ब्रिटिश पोर्न स्टार हैं. उनका रियल नेम सोफिया वासिलिएडु है. खबरों के मुताबिक इस बार मेकर्स शो में बोल्ड कंटेंट लाने के बारे में सोच रहे हैं. पिछले साल ‘बिग बौस’ की टीआरपी कुछ खास नहीं थी. इसलिए टीआरपी के लिए शो में बोल्ड कंटेंट दिखाने के चर्चा जोरों पर है.

पिछले कई सीजनों की तरह सलमान खान एक बार ‘बिग बौस 12’ को होस्ट करेंगे. वहीं शांति ने एक बार अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि सलमान उनके फेवरेट एक्टर हैं. वैसे ये पहला मौका नहीं है जब शांति डायनामाइट के बिग बौस का हिस्सा बनने को लेकर चर्चा हो रही है. इससे पहले ‘बिग बौस’ के 8 वें सीजन में भी ऐसा कहा जा रहा था कि वो इस रिऐलिटी टीवी शो में शामिल हो सकती हैं.

सनी और शांति दोनों ही एडल्ट फिल्म स्टार रही हैं. सनी ने अब अपनी छवि को तोड़ते हुए, बौलीवुड में खास पहचान बना ली है. क्या शांति डायानामाइट टीवी शो नजर आएंगी और क्या वो सनी को टक्कर दे पाएंगी. ये आनेवाला वक्त ही बताएगा.

लेकिन इसमें एक बात तो तय हो गई है की बौलीवुड का रास्ता हर किसी के लिये खुला हुआ है, सबसे पहले सनी लियोनी उसके बाद मिया मालकोवा और इन सबके बाद अब इस नई पोर्न स्टार को बौलीवुड में एंट्री मिलने वाली है.

पेट्रोल, डीजल पर उत्पाद शुल्क में कटौती हो सकती है नुकसानदायक : जेटली

केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने पेट्रोल, डीजल पर उत्पाद शुल्क में कटौती की संभावना को सोमवार को एक तरह से खारिज करते हुए कहा कि इस तरह का कोई भी कदम नुकसानदायक हो सकता है. साथ ही उन्होंने नागरिकों से कहा कि वे अपने हिस्से के करों का ‘ईमानदारी’ से भुगतान करें, जिससे पेट्रोलियम पदार्थों पर राजस्व के स्रोत के रूप में निर्भरता कम हो सके.

फेसबुक पोस्ट में जेटली ने लिखा, ‘सिर्फ वेतनभोगी वर्ग ही अपने हिस्से का कर अदा करता है. जबकि ज्यादातर अन्य लोगों को अपने कर भुगतान के रिकौर्ड को सुधारने की जरूरत है. यही वजह है कि भारत अभी तक एक कर अनुपालन वाला समाज नहीं बन पाया है.’

जीडीपी अनुपात सुधरकर 11.5 प्रतिशत हुआ

जेटली ने कहा, ‘मेरी राजनीतिज्ञों और टिप्पणीकारों से अपील है कि गैर – तेल कर श्रेणी में अपवंचना रुकना चाहिए. अगर लोग ईमानदारी से कर अदा करेंगे तो कराधान के लिए पेट्रोलियम उत्पादों पर निर्भरता को कम किया जा सकेगा. बहरहाल, मध्य से दीर्घावधि में राजकोषीय गणित में कोई भी बदलाव प्रतिकूल साबित हो सकता है.’ उन्होंने कहा कि पिछले चार साल के दौरान केंद्र सरकार का कर – जीडीपी अनुपात 10 प्रतिशत से सुधरकर 11.5 प्रतिशत हो गया है. इसमें से करीब आधी (जीडीपी का 0.72 प्रतिशत) वृद्धि गैर- तेल कर जीडीपी अनुपात से हुई है.

business

जीडीपी अनुपात 2017-18 में 9.8 प्रतिशत

जेटली ने कहा कि गैर तेल कर से जीडीपी अनुपात 2017-18 में 9.8 प्रतिशत था. यह 2007-08 के बाद सबसे ऊंचा स्तर है. उस साल हमारे राजस्व की स्थिति अनुकूल अंतरराष्ट्रीय वातावरण की वजह से सुधरी थी. उन्होंने कहा कि इस सरकार ने राजकोषीय मजबूती और वृहद आर्थिक दायित्व व्यवहार को लेकर मजबूत प्रतिष्ठा कायम की है. राजकोषीय रूप से अनुशासन नहीं बरतने से अधिक कर्ज लेना पड़ता है जिससे ऋण की लागत बढ़ जाती है.

जेटली ने कहा, ‘उपभोक्ताओं को राहत सिर्फ राजकोषीय रूप से जिम्मेदार और वित्तीय दृष्टि से मजबूत केंद्र सरकार और वे राज्य दे सकते हैं जिनको तेल कीमतों में असामान्य बढ़ोतरी की वजह से अतिरिक्त राजस्व मिल रहा है. उन्होंने कहा कि नई प्रणाली में अनुपालन के ऊंचे स्तर के बावजूद गैर – तेल कर के मामले में भारत अभी भी कर अनुपालन वाला समाज नहीं बन पाया है.

उन्होंने कहा, ‘वेतनभोगी वर्ग कर अनुपालन वाला है. अन्य वर्गों को अभी इस बारे में अपना रिकौर्ड सुधारने की जरूरत है.’ जेटली ने कहा कि ईमानदार करदाताओं को न केवल अपने हिस्से के करों का भुगतान करना पड़ता है बल्कि उन्होंने कर अपवंचना करने वालों के हिस्से की भी भरपाई करनी पड़ती है.

खिताब बचाने उतरी इन टीमों को भी मिली है पहले मुकाबले में हार

रविवार को फीफा वर्ल्ड कप 2018 में सबसे बड़ा उलटफेर तब देखने को मिला जब मेक्सिको ने मौजूदा वर्ल्ड चैंपियन जर्मनी को 1-0 से मात दे दी. हालांकि यह पहला मौका नहीं था जब किसी मौजूदा वर्ल्ड चैंपियन को वर्ल्ड कप के पहले मुकाबले में ही हार का सामना करना पड़ा हो.

स्पेन की टीम ने 2010 में अपना पहला फीफा वर्ल्ड कप जीता था. लेकिन जब स्पेन की टीम 2014 में अपना खिताब बचाने के लिए मैदान में उतरी तो उसे नीदरलैंड के हाथों 5-1 से करारी हार का सामना करना पड़ा था.

ऐसा ही 2002 में फ्रांस की टीम के साथ भी हुआ था. 1998 में जिदेन के जादू से वर्ल्ड चैंपियन बनने वाली फ्रांस को 2002 वर्ल्ड कप के पहले मुकाबले में सेनेगल ने 1-0 से मात दी थी.

1986 में अर्जेंटीना की टीम ने अपना दूसरा वर्ल्ड कप खिताब जीता था. लेकिन जब अर्जेंटिना 1990 के फीफा वर्ल्ड कप में अपना खिताब बचाने के लिए उतरी तो उसके कैमरून ने 1-0 से पटखनी दे दी.

1982 में भी अर्जेंटीना को बेल्जियम के हाथों पहले मुकाबले में हार का सामना करना पड़ा था. 1978 में खेले गए फीफा वर्ल्ड कप को अर्जेंटीना ने पहली बार जीता था.

1938 में इटली ने दूसरी बार वर्ल्ड कप का खिताब जीता था. 12 साल के अंतराल के बाद जब इटली की टीम अपने खिताब को बचाने उतरी तो उसके स्वीडन के हाथों 2-3 से हार का सामना करना पड़ा था.

ग्रुप हेल्थ इंश्योरेंस के इन फायदों को जानते हैं आप…!

आज की भागती दौड़ती जिन्दगी में कब क्या हो जाए किसी को कुछ नहीं पता. हेल्थ इंश्योरेंस कवर तो सभी के पास होना ही चाहिए. बहुत सी कंपनियां अपने कर्मचारियों को हेल्थ इंश्योरेंस कवर भी देती है. ज्यादातर कंपनियां ग्रुप इंश्योरेंस कवर ही देती है.

क्या है ग्रुप हेल्थ इंश्योरेंस ?

ग्रुप हेल्थ इंश्योरेंस पचास या पचास से ज्यादा लोगों के लिए लिया जाता है. ग्रुप हेल्थ इंश्योरेंस का सबसे बड़ा फायदा है कि इसमें प्रपोजर(नियोक्ता) अपने अनुसार बदलाव कर सकता है और फिर अपने कर्मचारियों को बेनेफिट के तौर पर ऑफर कर सकता है. ग्रुप हेल्थ इंश्योरेंस लेने से दोनों ही पक्षों को फायदा होता है, इंश्योरेंस लेने वाले को भी और इंश्योरेंस देने वाले को भी. इंश्योरेंस कंपनियों को एक ही जगह से ज्यादा प्रीमियम मिलता है.

ग्रुप हेल्थ इंश्योरेंस लेने के हैं बड़े फायदे

1. पॉकेट फ्रेंडली है ग्रुप हेल्थ इंश्योरेंस

ग्रुप हेल्थ इंश्योरेंस में प्रति व्यक्ति प्रीमियम कम होता है. इसलिए अगर नियोक्ता आपको ग्रुप हेल्थ इंश्योरेंस देने की पेशकश करे तो इसका चयन करने से आप ही को फायदा होगा. ग्रुप हेल्थ इंश्योरेंस में आपको थोड़े से प्रीमियम में ढेर सारा लाभ मिलेगा.

2. मैटरनिटी कवर

ग्रुप हेल्थ इंश्योरेंस में मैटरनिटी कवर भी शामिल होता है. आमतौर पर मैटरनिटी कवर के लिए उपभोक्ताओं को अलग से प्रीमियम भरना पड़ता है. अगर कोई कंपनी ज्वाइन करते हैं और आपको भी ग्रुप हेल्थ इंश्योरेंस स्कीम का लाभ मिलता है तो आपको मैटरनिटी कवर भी मिलेगा.

3. नहीं होता वेटिंग टाइम

ग्रुप हेल्थ इंश्योरेंस में किसी भी तरह का कोई वेटिंग टाइम नहीं होता है. अगर आपको पहले से कोई बीमारी है तो उसका भी इंश्योरेंस आपको मिलेगा. अगर आपके माता-पिता लंबे समय से किसी बिमारी से पीड़ित हैं तो वे आपकी नौकरी के पहले दिन से इसमें शामिल हो जाते हैं.

4. जरूरी नहीं मेडिकल जांच

ग्रुप हेल्थ इंश्योरेंस में सबसे बड़ा फायदा है कि इसमें किसी भी तरह के मेडिकल चेकअप (स्वयं और परिवार के लिए) की जरूरत नहीं पड़ती. पॉलिसी खरीदने के पहले दिन से ही आपके परिवार का हर सदस्य इसमें शामिल हो जाता है.

एफसीआई परचा लीक : फ्रौड करप्शन अनलिमिटेड

2 अप्रैल, 2018 को दलितों के भारत बंद आह्वान के चलते ग्वालियर शहर में कुछ ज्यादा ही तनाव था, जो जातिगत रूप से बेहद संवेदनशील माना जाता है. मार्च के आखिरी सप्ताह से पुलिस कुछ ज्यादा ही सतर्क थी और मुखबिरों के जरिए लगातार इलाके की टोह ले रही थी. सावधानी बरतते हुए वह रात की गश्त में भी कोई ढील नहीं दे रही थी.

31 मार्च की रात जब एक पुलिस दल पड़ाव इलाके के गांधीनगर स्थित नामी होटल सिद्धार्थ पैलेस पहुंचा तो होटल में अफरातफरी मच गई. आमतौर पर देर रात मारे जाने वाले ऐसे छापों का मकसद देहव्यापार में लिप्त लोगों को पकड़ना होता है, पर इस रात बात कुछ और थी.

सिद्धार्थ होटल ग्वालियर का एक नामी होटल है, जिस की गिनती बजट होटलों में होती है. मोलभाव करने पर इस होटल में डेढ़ हजार रुपए वाला एसी कमरा एक हजार रुपए में मिल जाता है, जिस में वे तमाम सुविधाएं मिल जाती हैं जिन की दरकार ठहरने वालों को होती है.

गरमियों में रात के करीब साढ़े 9 बजे पड़ाव इलाके में चहलपहल शवाब पर होती है. ऐसे में पुलिस की गाडि़यों का काफिला देख राहगीर ठिठक कर देखने लगे कि आखिरकार माजरा क्या है. कोई देहव्यापार का अंदाजा लगा रहा था तो कोई 2 अप्रैल के बंद के मद्देनजर सोच रहा था कि जरूर यहां कोई गुप्त मीटिंग चल रही होगी.

लेकिन दोनों ही अंदाजे गलत थे और जो सच था, वह दूसरे दिन विस्तार से लोगों के सामने आ गया. दरअसल इस होटल में एक और लीक पेपर की स्क्रिप्ट लिखी जा रही थी. यह पेपर किसी स्कूलकालेज का न हो कर एफसीआई (भारतीय खाद्य निगम) का था. यह जानकारी मिलने के बाद लोगों ने दांतों तले अंगुलियां दबा लीं कि देश में यह हो क्या रहा है. लीक पर लीक… यह तो भ्रष्टाचार की हद है.

छापे की काररवाई देर रात तक चली जिस में पूरे 50 लोगों को पुलिस की एसटीएफ ने गिरफ्तार किया. दरअसल, एसटीफ के एसपी सुनील कुमार शिवहरे को मुखबिर से जो खबर मिली थी, वह एकदम सच निकली.

एफसीआई की यह परीक्षा मध्य प्रदेश में रविवार पहली अप्रैल को होनी थी, जिस में 217 वाचमैन पदों के लिए रिकौर्ड 50 हजार से भी ज्यादा आवेदन आए थे. ग्वालियर के अलावा वाचमैन भरती परीक्षा भोपाल, इंदौर, उज्जैन, सागर, जबलपुर और सतना शहरों में होनी थी. इन शहरों में अनेक परीक्षा केंद्र बनाए गए थे. वाचमैन के पद के लिए शैक्षणिक योग्यता 8वीं पास होना रहती है, इसलिए भी आवेदन उम्मीद से ज्यादा आए थे.

अब तमाम छोटे पदों की भरती के लिए भी लिखित परीक्षाएं होने लगी हैं, जिन का मकसद योग्य उम्मीदवारों का चयन करना होता है. वाचमैन भरती परीक्षा में भी मौखिक परीक्षा यानी इंटरव्यू के पहले लिखित परीक्षा ली जाने लगी है. इस की वजह यह है कि नाकाबिल उम्मीदवारों की छंटनी हो जाती है और तयशुदा पैमाने और पदों की संख्या के अनुपात में वे उम्मीदवार इंटरव्यू के लिए बुलाए जाते हैं जो लिखित परीक्षा पास कर चुके होते हैं.

वाचमैन भरती परीक्षा में ज्यादा कठिन सवाल नहीं पूछे जाते, क्योंकि इस का मकसद केवल उम्मीदवार का सामान्य ज्ञान, गणित और तर्कशक्ति को आंकना होता है.

society

सिद्धार्थ होटल में मौजूद 48 उम्मीदवारों को 2 दलाल अगले दिन होने वाला परचा हल कर के दे रहे थे और उम्मीदवारों को परीक्षा का अभ्यास करा रहे थे कि किस सवाल का सही जवाब क्या है. एसटीएफ की टीम ने जब होटल के एकएक कमरे में जा कर उम्मीदवारों को पकड़ा तो सब के सब बड़ी शांति से प्रश्नपत्र हल करने की प्रैक्टिस कर रहे थे.

अचानक पुलिस को आया देख सभी हड़बड़ा उठे. दरअसल, उन्हें आश्वस्त किया गया था कि परीक्षा देने में उन्हें कोई झंझट नहीं होगा, फिर भी झंझट हो ही गया. वह भी कुछ इस तरह कि ये लोग शायद जिंदगी भर चौकीदारी के नाम से भी कांपते रहेंगे.

थोड़ी देर पहले तक वातानुकूलित कमरों में बैठ कर परीक्षा की तैयारी करना तो ज्यादती होगी, घोटाला करने जा रहे ये लड़के पुलिस को देख कर होटल के हौल में खड़े थरथर कांप रहे थे. इन का रहनसहन देख कर ही अंदाजा लगाया जा सकता था कि इन में से शायद पहले कभी कोई इतने बड़े होटल में गया होगा. और जेल तो शायद ही कभी कोई गया होगा.

एफसीआई में वाचमैन पदों के लिए परीक्षा देश भर में होनी थी. अलगअलग राज्यों में इस की तारीखें अलगअलग रखी गई थीं. मध्य प्रदेश की परीक्षा की जानकारी सिर्फ उन्हीं युवाओं को लगी थी, जो जागरूक हैं और 8वीं या इस से आगे तक पढ़ेलिखे हो कर सरकारी नौकरी की तलाश में रहते हैं.

ऐसे राज्यों में बिहार का नाम सब से ऊपर आता है, जहां के युवा सरकारी नौकरी वाला विज्ञापन देखते ही फौर्म भर देते हैं और परीक्षा की तैयारियां भी शुरू कर देते हैं.

जो 48 लोग परचा हल करते पकड़े गए, उन में 35 बिहार के थे और 13 अन्य राज्यों के थे, मध्य प्रदेश का उन में कोई नहीं था. मध्य प्रदेश का इसलिए नहीं था कि परचा बेचने वाला गिरोह कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता था. इस गिरोह को डर था कि अगर मध्य प्रदेश के उम्मीदवारों को पेपर बेचा गया तो जरूर पकड़े जाएंगे.

क्योंकि होता यह है कि जिसे पेपर बेचो, वह या तो उस का ढिंढोरा साथियों से पीट देता है या फिर अपने पैसे वसूलने के लिए किसी और को भी बेच देता है, जिस से पेपर लीक होने की संभावनाएं ज्यादा हो जाती हैं.

गिरफ्तार 48 उम्मीदवारों से एसटीएफ ने पूछताछ की तो उन्होंने बिना किसी लागलपेट के सच उगल दिया. यह सच था कि उन्होंने इस पेपर के बाबत गिरोह से 5-5 लाख रुपए में सौदा किया था, लेकिन अभी पूरा भुगतान नहीं किया था. अपनी हैसियत के मुताबिक उम्मीदवारों ने 10 हजार से ले कर एक लाख रुपए तक एडवांस दिए थे. बाकी की राशि चयन हो जाने के बाद देनी तय हुई थी.

बाहरी राज्यों के ये उम्मीदवार कैसे इस गिरोह के संपर्क या चंगुल में आए, यह बात भी कम दिलचस्प नहीं, जिस का खुलासा अगर हो पाया तो उस से न केवल असली मुलजिमों के चेहरे बेनकाब होंगे, बल्कि यह भी साबित होगा कि भ्रष्टाचार की जड़ें पाताल से भी नीचे पांव पसार चुकी हैं.

48 उम्मीदवारों को पेपर हल कराते जो 2 दलाल पकड़े गए, उन के नाम हरीश कुमार और आशुतोष कुमार हैं. ये दोनों ही दिल्ली के रहने वाले हैं. पूछताछ में इन दोनों ने भी माना कि उन्होंने हल किया पेपर इन लोगों को दिया था और वे कल होने वाली परीक्षा की तैयारी करा रहे थे.

इन दोनों ने बताया कि वे तो सिर्फ निचली कड़ी हैं, जिन का काम उम्मीदवारों को इकट्ठा कर उन्हें पेपर हल कराना था. इस बाबत गिरोह से उन्हें 30-30 हजार रुपए मिले थे. इन दोनों की एक जिम्मेदारी उम्मीदवारों को परीक्षा केंद्र तक रवाना करने की भी थी. सभी उम्मीदवारों के मोबाइल फोन इन्होंने अपने पास रख लिए थे.

केवल मोबाइल फोन ही नहीं, बल्कि उम्मीदवार कहीं परीक्षा के बाद बाकी के पैसे देने से मुकर न जाए, इसलिए उन्होंने उन के आधार कार्ड और मार्कशीट जैसे महत्त्वपूर्ण दस्तावेजों की मूल प्रतियां भी अपने पास रख ली थीं. तय यह हुआ था कि परीक्षा पास कर लेने के बाद उन्हें इन दस्तावेजों की मूल प्रतियां वापस कर दी जाएंगी.

हल की गई आंसरशीट तो एसटीएफ को मिल गई लेकिन उम्मीदवारों के दस्तावेजों की मूल प्रतियां नहीं मिलीं. आशुतोष और हरीश के मुताबिक, वे दस्तावेज और इकट्ठा किए गए पैसे तो गिरोह का मास्टरमाइंड किशोर कुमार अपने साथ दिल्ली ले गया था.

बीकौम सेकेंड ईयर के छात्र आशुतोष और अपनी इवेंट मैनेजमेंट कंपनी चलाने वाले हरीश कुमार पुलिस को झूठ बोलते नहीं लगे. लेकिन असली अपराधी या वह कड़ी जिस से असली अपराधी तक पहुंचा जा सकता था, वह किशोर कुमार छापे के कुछ घंटों पहले ही ग्वालियर से निकल चुका था.

यह साफ जरूर हो गया था कि पेपर मध्य प्रदेश से नहीं बल्कि दिल्ली से लीक हुआ था और यह सिर्फ किशोर कुमार के पास था. शुरुआती पूछताछ से इतना ही पता चल पाया कि किशोर दिल्ली में कोचिंग क्लासेज चलाता है.

इन पंक्तियों के लिखे जाने तक किशोर कुमार की गिरफ्तारी नहीं हुई थी, लेकिन यह जरूर उस के बारे में पता चला कि श्योपुर में उस का एक बीएड कालेज भी है और उस के औफिसों में कई नामी नेताओं के साथ फोटो लगे हुए हैं. केंद्र सरकार के सार्वजनिक उपक्रमों में भी उस की खासी घुसपैठ है.

किशोर कुमार को अंदेशा था कि छापा पड़ सकता है, इसलिए उस ने खिसक लेने में ही भलाई और सलामती समझी. दरअसल, एसटीएफ को काफी पहले से खबरें मिल रही थीं कि यह पेपर लीक होने वाला है.

इस की जिम्मेदारी सुनील कुमार शिवहरे को सौंपी गई तो उन्होंने अपनी टीम में इंसपेक्टर एजाज अहमद, चेतन सिंह बैंस और जहीर खान सहित 2 दरजन पुलिसकर्मियों को शामिल किया. इस टीम के कुछ सदस्यों ने भनक लगने पर इस गिरोह के सदस्यों से उम्मीदवार बन कर संपर्क भी किया था.

गिरोह की तरफ से टीम के सदस्यों को यह जवाब दिया गया था कि अभी उन का काम भोपाल और मध्य प्रदेश में नहीं चल रहा है.

इस जवाब के मायने बेहद साफ हैं कि यह गिरोह कंस्ट्रक्शन कंपनियों और ठेकेदारों की भाषा बोल रहा था, जिस से लगता है कि इस का काम देश भर में कहीं न कहीं चल रहा होता है और अब इस तरह के पेपर भी सोचसमझ कर सावधानी से बेचे जाते हैं. ग्वालियर में पकड़े गए इस का मतलब यह नहीं कि दूसरे शहरों या राज्यों में इन का काम नहीं चलता होगा.

इस फूलप्रूफ तैयारी में अगर पुलिस सेंधमार पाई तो उसे अपने मुखबिरों के साथसाथ खुद की मुस्तैदी पर भी फख्र होना स्वाभाविक बात है. सिद्धार्थ होटल में पहले आरोपियों ने 10 कमरे बुक कराए थे, लेकिन जब उन्हें लगा कि होटल के दूसरे कमरों में ठहरे लोग अड़ंगा बन सकते हैं तो उन्होंने पूरा होटल ही बुक करा लिया था. होटल बुक कराने की वजह उम्मीदवारों द्वारा बीएड की परीक्षा का प्रैक्टिकल देना बताई गई थी.

होटल बुक कराते वक्त इन्होंने मैनेजर शैलेंद्र सिंह को 10 हजार रुपए एडवांस दिए थे और जब पूरा होटल बुक कराया तो 5 हजार रुपए और दिए थे. उम्मीदवारों के आने का सिलसिला 30 मार्च की रात से ही शुरू हो गया था जो 31 मार्च की शाम 6 बजे तक चला.

एसटीएफ की 31 मार्च की कामयाबी मिट्टी में मिलती दिख रही है, क्योंकि दिल्ली के इंद्रपुरी इलाके में स्कूल और कोचिंग सेंटर चलाने वाला किशोर कुमार गिरफ्तार नहीं हो पाया था. छापे के बाद जो हुआ, वह सीबीएसई के 10वीं और 12वीं के पेपर लीक होने जैसा था, जिस से लगता है इस फ्रौड और करप्शन में एफसीआई का रोल भी कमतर शक वाला नहीं है.

किशोर कुमार को पेपर कहां से मिला होगा, फौरी तौर पर तो हर किसी का जवाब यही होगा कि जाहिर है एफसीआई से. क्योंकि परीक्षा तो उस की ही थी. लेकिन ऐसा है नहीं, जिस में कई नए पेच सामने आए. एसटीएफ ने छापेमारी के बाद जब इस अहम मामले से एफसीआई के अधिकारियों को अवगत कराया तो उन की प्रतिक्रिया बेहद निराशा भरी लेकिन चौंकाने वाली निकली.

एफसीआई के मध्य प्रदेश के महाप्रबंधक अभिषेक यादव को यह जानकारी मिल चुकी थी कि विभाग में वाचमैन की परीक्षा के लिए जो 50 हजार से ज्यादा अभ्यर्थी शामिल होने वाले हैं, उस का प्रश्नपत्र लीक हो चुका है.

इस के बावजूद भी उन्होंने परीक्षा रद्द करने की कोई बात नहीं की. बल्कि उन्होंने कहा कि एसटीएफ की काररवाई की रिपोर्ट मिल जाने के बाद अगर जरूरी हुआ तो परीक्षा रद्द कर देंगे. यानी अभिषेक यादव यह मानने से इनकार कर रहे हैं कि पेपर किसी दूसरे शहर में लीक नहीं हुआ होगा. यह उतनी ही बेहूदा बात थी जितनी यह कि पहली बार एफसीआई ने खुद परीक्षा आयोजित कराने के बजाए किसी एजेंसी को यह जिम्मेदारी सौंप दी थी.

परीक्षा के बाद जब सिद्धार्थ होटल में हल कराए गए पेपरों का मिलान कराया गया तो साबित हो गया कि 80 फीसदी प्रश्न मेल खा रहे थे. यह बात गिरफ्तारी के बाद अभिषेक और हरीश बता चुके थे कि प्रश्नपत्र में बीचबीच में दूसरे सवाल डाल दिए गए थे. जाहिर है ऐसा बाद के बचाव के लिए किया गया था जो खरीदफरोख्त की बात के चलते बेमानी ही है.

एफसीआई के भोपाल कार्यालय के पर्सनल डिपार्टमेंट के डीजीएम जी.पी. यादव भी यह कहते पल्ला झाड़ने की कोशिश करते रहे कि परीक्षा की जिम्मेदारी एक निजी एजेंसी को दी थी, इसलिए गड़बड़ी की वही जिम्मेदार है.

बात बेहद चिंताजदक है कि तमाम कायदेकानूनों को ताक में रखते हुए भोपाल एफसीआई के अधिकारियों ने कोलकाता की एक एजेंसी को परीक्षा का ठेका दे दिया था. जबकि यह परीक्षा अब तक एसएससी कराती रही है. क्या सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए किसी प्राइवेट एजेंसी की सेवाएं लेनी चाहिए, इस सवाल का साफसाफ जवाब कोई नहीं दे पा रहा.

यह ठेका देने का ही नतीजा था कि परीक्षा के लिए जिन लोगों ने आवेदन किए थे, उन में से कोई 2 हजार के डाटा लीक हो गए और मय नामपते व मोबाइल नंबरों के जादुई तरीके से इस गुमनाम गिरोह तक पहुंच गए. गिरोह ने आवेदकों से मिल कर सौदेबाजी की, जिस में 135 आवेदक 5-5 लाख रुपए दे कर 15 हजार रुपए महीने वाली यह नौकरी हासिल करने को तैयार हो गए.

सीधेसीधे गिरोह ने 7 करोड़ रुपए का सौदा कर डाला, जिस से एफसीआई को कोई मतलब नहीं था. शायद ही एफसीआई के ये होनहार अफसर यह बता पाएं कि क्या एजेंसी को यह ठेका भी दिया गया था कि वह आवेदकों का डाटा लीक कर पैसे बनाए?

इस से तो बेहतर होता कि एफसीआई इन पदों की खुलेआम नीलामी ही कर डालता, जिस से उसे करोड़ों की आमदनी होती. लेकिन इस काम को ही अंजाम देने के लिए उस ने एक एजेंसी की सेवाएं लीं. गौर करने वाली बात यह है कि इस एजेंसी को सरकारी नौकरियों में भरती का कोई तजुरबा भी नहीं था.

केंद्र सरकार के इस अहम सार्वजनिक उपक्रम की साख पर आए दिन बट्टा लगता रहा है पर परीक्षा के मामले में पहली बार बट्टा लगा है. इस पर भी नीचे से ले कर ऊपर तक सब खामोश हैं तो लगता है कि लीक अब बड़ा धंधा बन चुका है, जिसे मोहरों के जरिए खेला जाता है. केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने भी बेरोजगार युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ करते इस घोटाले से कोई वास्ता नहीं रखा, मानो यह कोई छोटामोटा मामला हो.

अब होगा यह कि आशुतोष और हरीश कुमार जैसे प्यादे कानून की बलि चढ़ जाएंगे और असली गुनहगार कहीं और अगले लीक की तैयारी में जुटे होंगे.

एसटीएफ के मुताबिक लीक पेपरों का सौदा ग्वालियर के अलावा इंदौर, भोपाल और उज्जैन में भी हुआ था, लेकिन गिरफ्तार सिर्फ 48 हुए. 135 में से 87 का पैसा गिरोह डकार गया और अपराधी मौज कर रहे हैं. कथा लिखे जाने तक एफसीआई दोबारा परीक्षा कराने का फैसला नहीं ले पाया था.

एसटीएफ ने हालांकि एफसीआई से जवाब मांगा है, जो जाहिर है गोलमोल ही होगा. परीक्षा कराने वाली एजेंसी के एक कोऔर्डिनेटर संदीप मोगा के मुताबिक, हम डिटेल नहीं दे सकते क्योंकि हम गोपनीयता की शपथ से बंधे हुए हैं. यह गोपनीयता वही थी, जिस के चिथड़े 31 मार्च के छापे में उड़ चुके हैं.

मैं ने अपने पिता पर मोबाइल को ले कर पाबंदी लगाई है : आलिया भट्ट

चुलबुली गर्ल आलिया भट्ट ने अपने छोटे से कैरियर में इतने भिन्नभिन्न के रोल किए हैं कि उन की जबरदस्त फैन फौलोइंग है. खासकर युवा दिलों में आलिया ने खास जगह बना ली है. इन दिनों आलिया रणवीर सिंह के साथ फिल्ममेकर जोया अख्तर की फिल्म ‘गली बौय’ और रणबीर कपूर के साथ फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ को ले कर बिजी हैं. पेश हैं पिछले दिनों आलिया से हुई मुलाकात के अंश :

आप यथार्थपरक सिनेमा ही ज्यादा कर रही हैं. क्या इस की वजह आप के पिता का प्रभाव है?

भावनात्मक स्तर पर मेरे पिता का मुझ पर काफी प्रभाव रहा है. उन्होंने हमेशा साहसिक विषयों पर फिल्में बनाईं. हमारे घर पर हमेशा सिनेमा की चर्चाएं हुआ करती थीं. इन सब बातों से मालूम हुआ कि चुनौतीपूर्ण सिनेमा से ही कलात्मक व रचनात्मक संतुष्टि मिलती है, पर मैं हमेशा अपनी पसंद की ही फिल्म कर रही हूं. मैं ने फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ की तो ‘बद्रीनाथ की दुलहनिया’ भी की. फिल्म ‘राजी’ की तो वहीं मैं सुपरनैचुरल पावर वाली फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ भी कर रही हूं. एक और पीरियड फिल्म ‘कलंक’ भी कर रही हूं. हमेशा मेरी कोशिश विविधतापूर्ण किरदारों को परदे पर जीवंत करने की रहती है.

लेकिन आप वास्तविक यानी यथार्थपरक किरदारों को ही प्राथमिकता दे रही हैं?

मैं उन्हें किरदार समझ कर परदे पर साकार करती हूं. हर फिल्म हकीकत का विस्तार होती है. कई बार यह विस्तार इतना खूबसूरत व यथार्थपरक हो जाता है कि हम खुद आश्चर्यचकित रह जाते हैं. फिल्म ‘राजी’ के घटनाक्रम वास्तव में घटित हुए थे. हम ने तो उन्हें फिर से गढ़ने का प्रयास किया. फिल्म ‘गली बौय’ में रणवीर सिंह का किरदार भी असली घटनाक्रम से प्रेरित है.

मगर ‘ब्रह्मास्त्र’ में तो लार्जर दैन लाइफ वाली बात है. आप ने कश्मीर में कई फिल्मों की शूटिंग की है, क्या अनुभव रहे?

जी हां, ‘स्टूडैंड औफ द ईयर’, ‘हाईवे’ व ‘राजी’ सहित मेरी 3 फिल्मों की शूटिंग कश्मीर में हुई है. तीनों बार मेरे अनुभव बहुत अच्छे रहे, लेकिन इस बार मुझे इस बात को ले कर तकलीफ हुई कि पिछली बार के विवाद के चलते पर्यटकों ने कश्मीर जाना बंद कर दिया है. लोग मानते हैं कि कश्मीर सुरक्षित जगह नहीं है, जबकि हकीकत यह है कि कश्मीर सुरक्षित जगह है. इस बार हम ने कश्मीर, श्रीनगर और पहलगाम सहित कई जगहों पर शूटिंग की. वहां मैं ने लोगों से बात की. डल झील में शिकारा चलाया. कश्मीर काफी दर्शनीय है. मैं ने तो सब को कश्मीर टूरिज्म के विज्ञापन का एक छोटा सा वीडियो भी भेजा. उसे सोशल मीडिया पर भी डाला. कश्मीर के लोग तो हर किसी की मदद करने के लिए तैयार रहते हैं.

लेकिन कश्मीर के हालात को ले कर जो खबरें आती रहती हैं, उन का क्या?

यह राजनीति व मीडिया का खेल है. अब इस के पीछे उन की मंशा क्या है, मैं नहीं जानती. किस का क्या टारगेट है? क्या मकसद है? किसे क्या फायदा है? लेकिन मैं दावा करती हूं कि वहां का माहौल बहुत अच्छा है. हम ने कश्मीर को बहुत गलत ढंग से पेश किया है. इस से कश्मीर का टूरिज्म घटा है, जिस से वहां की व वहां के लोगों की कमाई घटी है.

आप डायरी लिखा करती हैं. क्या नया लिखा है?

पिछले साल अक्तूबर के बाद कुछ नहीं लिखा. अब व्यायाम करती हूं. व्यायाम से मुझे काफी फायदा मिल रहा है. व्यायाम की वजह से समझने, संभलने व एनर्जी संकलित करने में काफी मदद मिलती है. सोशल मीडिया के युग में हम मोबाइल फोन के एडिक्ट हो चुके हैं, इसलिए मैडिटेशन की काफी जरूरत पड़ती है.

लेकिन आप तो सोशल मीडिया तथा मोबाइल पर ज्यादा बात करने के खिलाफ रही हैं, फिर आप को इस की लत कैसे पड़ गई?

मैं सोशल मीडिया के खिलाफ नहीं हूं, पर सोशल मीडिया की वजह से लोग एकदूसरे से व्यक्तिगत बातचीत व संपर्क करना छोड़ रहे हैं, मैं इस बात के खिलाफ हूं. पता चला कि हम 2 लोग अगलबगल बैठे हैं, पर दोनों अपनेअपने मोबाइल फोन पर व्यस्त हैं. आपस में हम कोई बात ही नहीं करते, यह गलत है. तो फिर जिंदगी का मकसद क्या है? मैं ने अपने पिता पर भी मोबाइल फोन को ले कर पाबंदी लगाई है, उन के पास एक नहीं 3-3 मोबाइल हैं. तीनों पर वे चैटिंग करते रहते हैं. अब मेरे डैड जब मेरे घर आते हैं, तो अपने मोबाइल फोन अपने घर पर ही छोड़ कर आते हैं.

डंसने की प्रवृत्ति सांप से ज्यादा मनुष्य में होती है

54 वर्षीय धनंजय नारायण तांडेल दक्षिण मुंबई के समुद्र किनारे बसी पौश कालोनी कोलाबा की सुंदर नगर बस्ती में अपने परिवार के साथ रहते थे. परिवार में उन के अलावा 2 बेटे और एक सुंदर सी बहू थी. उन की पत्नी का काफी समय पहले देहांत हो चुका था. उन का छोटा सा परिवार था, जहां सभी लोग सुखचैन से रह रहे थे.

धनंजय नारायण सुंदर नगर में करीब 30 सालों से रहते आ रहे थे. उन के प्रेमिल स्वभाव की वजह से बस्ती के सारे लोग उन के परिवार को खूब मानसम्मान देते थे.

धनंजय नारायण का बड़ा बेटा महेंद्र तांडेल मुंबई की एक प्रतिष्ठित कंपनी में काम करता था, जबकि छोटा बेटा चेतन कोलाबा के एक शोरूम में नौकरी करता था. तांडेल भी एक शोरूम में चपरासी थे. सभी लोग सुबह को अपनेअपने काम पर निकल जाने के बाद सब शाम को ही घर लौटते थे. महेंद्र की पत्नी श्वेता सुबह जल्दी उठ कर सब के लिए टिफिन और चायनाश्ता तैयार करती और उन के जाने के बाद घर के रोजमर्रा के कामों में जुट जाया करती थी.

घटना 10 मई, 2017 की है. हमेशा की तरह घर के सभी लोग अपनेअपने काम पर निकल गए थे. दोपहर लंच के बाद महेंद्र तांडेल ने अपनी आदत के अनुसार पत्नी श्वेता को फोन किया. यह उन का रोजाना का नियम था. काफी देर तक घंटी बजती रही. लेकिन श्वेता ने उस की काल रिसीव नहीं की. बारबार नंबर मिलाने के बाद भी जब श्वेता ने फोन रिसीव नहीं किया तो महेंद्र के दिल की धड़कनें तेज हो गईं, क्योंकि इस से पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था.

वह हमेशा महेंद्र के फोन की राह देखा करती थी. श्वेता कहां है और क्या कर रही है, यह जानने के लिए महेंद्र ने अपने पड़ोसी को फोन कर के श्वेता के बारे में पूछा.

कुछ समय बाद पड़ोसी ने महेंद्र को जो खबर दी, उस से वह चौंक गया. पड़ोसी ने बताया कि श्वेता ने घर का मुख्य दरवाजा बंद कर रखा है और घर के अंदर तेज आवाज में टीवी चल रहा है. दरवाजा थपथपाने और आवाज देने पर भी वह दरवाजा नहीं खोल रही. ऐसी क्या बात हो गई जो श्वेता दरवाजा बंद कर के तेज आवाज में टीवी देख रही है.

महेंद्र ने बिना देर किए अपने पिता धनंजय को सारी बातें बता कर उन्हें घर पहुंचने को कहा. बेटे की बात सुन कर धनंजय घर की तरफ निकल गए. किसी अनहोनी के खयाल से वह रास्ते भर परेशान रहे.

society

घर पहुंचने के बाद उन्होंने जैसेतैसे कर के दरवाजा खोला तो अंदर का जो नजारा था,उसे देख कर उन के होश उड़ गए. बहू श्वेता की बाथरूम में लहूलुहान लाश पड़ी थी. उन्होंने यह जानकारी अपने दोनों बेटों को दी तो वे भी थोड़ी देर में रोतेपीटते घर पहुंच गए.

पड़ोसियों ने पूरे परिवार को धीरज बंधाते हुए मामले की खबर पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी. कोलाबा के थानाप्रभारी विजय धोपावकर को जब पुलिस कंट्रोल रूम से यह जानकारी मिली तो वह पीआई इमाम शिंदे, सुभाष दुधगांवकर, एपीआई विजय जाधव, सुदर्शन चव्हाण, अमोल ढोले, महिला एसआई प्रियंका देवकर, कांस्टेबल प्रवीण भालेराव, निकम पाटिल के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. उन्होंने इस की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी थी.

घटनास्थल कोलाबा थाने से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर था, इसलिए पुलिस टीम करीब 10 मिनट में वहां पहुंच गई. तब तक धनंजय के मकान के पास मोहल्ले के तमाम लोग जमा हो चुके थे. पुलिस जब मकान में पहुंची तो घर का सारा सामान बिखरा पड़ा था. कांच के कई बरतन टूटे हुए थे.

श्वेता का शव बाथरूम के अंदर पड़ा हुआ था. उस के गले और छाती पर चाकू के कई गहरे घाव थे. उस के बदन पर सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज था, जो कई जगह से फटा हुआ था, जिस से यह संभावना लग रही थी कि अभियुक्त उस के साथ मनमानी करना चाहता था. कमरे की स्थिति देख कर ऐसा लग रहा था जैसे मृतका और अभियुक्त के बीच काफी हाथापाई वगैरह हुई थी.

थानाप्रभारी अभी घटनास्थल का निरीक्षण और पूछताछ कर ही रहे थे कि डीसीपी मनोज कुमार शर्मा, एसीपी राजेंद्र चव्हाण भी वहां पहुंच गए. मौकामुआयना करने के बाद अधिकारियों ने वहां मौजूद लोगों से बात की. इस के बाद थानाप्रभारी ने घटनास्थल की काररवाई पूरी कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए जे.जे. अस्पताल भेज दी. डीसीपी के दिशानिर्देश के बाद थानाप्रभारी विजय धोपावकर ने जांच की एक रूपरेखा तैयार की, जिस की जिम्मेदारी उन्होंने पीआई इमाम शिंदे और सुभाष दुधगांवकर को सौंप दी थी.

घटनास्थल कोलाबा जैसे पौश इलाके में था, जहां सेना के तीनों अंगों के अधिकारियों की कालोनियां हैं. मामला कहीं तूल न पकड़ ले, इसलिए डीसीपी ने कोलाबा पुलिस की सहायता के लिए माता रमाबाई अंबेडकर पुलिस थाने के तेजतर्रार थानाप्रभारी सुखलाल बर्पे को भी लगा दिया.

थानाप्रभारी सुखलाल बर्पे ने मामले की समानांतर रूप से जांच शुरू कर दी. कोलाबा थाने की पुलिस टीम मृतक के ससुराल वालों से बातचीत कर परिजनों के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स का अध्ययन कर ही रही थी कि समानांतर जांच कर रहे पीआई सुखलाल बर्पे ने एक गुप्त सूचना के आधार पर श्वेता के कातिल का पता लगा कर उसे हिरासत में ले लिया.

पीआई सुखलाल बर्पे ने अपने सहायकों के साथ अपनी जांच का मुख्य केंद्र मृतक श्वेता के परिवार को ही बनाया था, क्योंकि वह यह जानते थे कि इस तरह की घटना अधिकतर अपनी जानपहचान वालों के बीच ही घटती है. इसलिए उन्होंने घटनास्थल का बारीकी से अध्ययन किया था.

इस विषय में उन्हें अधिक से अधिक जानकारी मृतका के परिवार वालों से ही मिल सकती थी. उन्होंने श्वेता के साथ रहने वालों की जन्मकुंडली को खंगाला. उन्हें अपनी इस मुहिम में कामयाबी भी मिली. तांडेल परिवार का करीबी और चेतन तांडेल का जिगरी दोस्त हितेश कर्तकपांडी उन के रडार पर आ गया.

14 मई, 2017 को पीआई सुखलाल बर्पे की जांच टीम ने उसे फोर्ट इलाके के एक शोरूम से हिरासत में ले लिया. पुलिस टीम के अनुसार, जिस दिन यह घटना घटी थी, उस दिन वह सब के साथ काम पर गया जरूर था लेकिन कुछ ही समय बाद वापस घर लौट आया. इस के अलावा वह पुलिस के एक भी सवाल का जवाब सही ढंग से नहीं दे पाया था.

कोलाबा पुलिस और माता रमाबाई अंबेडकर थाने की संयुक्त टीम ने हितेश से पूछताछ शुरू की तो उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. उस ने श्वेता की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी.

23 वर्षीय हितेश कर्तकपांडी महाराष्ट्र के जिला पालघर के उसी गांव का रहने वाला था, जिस गांव के धनंजय नारायण तांडेल मूल निवासी थे. पारिवारिक स्थिति ठीक न होने के कारण धनंजय तांडेल रोजीरोटी की तलाश में महानगर मुंबई आ गए थे.

वह कोई ज्यादा पढ़ेलिखे नहीं थे, इसलिए उन्हें कोई ढंग की नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने एक शोरूम में चपरासी की नौकरी कर ली. फिर वह सुंदर नगर बस्ती में किराए पर रहने लगे. बाद में वह अपने बीवीबच्चों को भी ले आए.

उन के बीवीबच्चों को मुंबई आए अभी कुछ ही साल हुए थे कि अचानक उन की पत्नी की मृत्यु हो गई. पत्नी की मौत के बाद वह टूट से गए थे, लेकिन उन्होंने अपने बच्चों को नहीं टूटने दिया. दोनों बेटों को उन्होंने पढ़ालिखा कर इस काबिल बना दिया कि उन की नौकरी लग गई. परिवार में आमदनी बढ़ी तो उन्होंने सुंदरनगर में ही खुद का एक मकान खरीद लिया.

society

धनंजय तांडेल की पत्नी के गुजर जाने के बाद घर सूनासूना सा हो गया था. ऐसे में उन्होंने अपने बड़े बेटे महेंद्र तांडेल का विवाह श्वेता से कर दिया. श्वेता देखने में जितनी सुंदर थी, उतनी ही पढ़ीलिखी और घर के काम में होशियार थी.

श्वेता और महेंद्र के विचार आपस में खूब मिलते थे, इसलिए दोनों ही एकदूसरे को बहुत चाहते थे. औफिस पहुंचने के बाद भी महेंद्र को जब भी समय मिलता, वह श्वेता को फोन कर लेता था. उन की शादी के 2 साल कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला.

धनंजय अपने दोनों बेटों के साथ कभीकभी अपने पैतृक गांव भी जाते रहते थे. उन के छोटे बेटे चेतन की गांव के ही हितेश कर्तकपांडी से दोस्ती हो गई थी. दोनों ही हमउम्र थे. चेतन जब कभी अपने गांव जाता तो हितेश के साथ सैरसपाटा करता था.

जब हितेश कामधंधे की तलाश में मुंबई आया तो तांडेल परिवार ने उस की काफी मदद की. इतना ही नहीं, महेंद्र ने कोशिश कर के उस की कोलाबा के प्यूमा शोरूम में नौकरी भी लगवा दी. उस के घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, उस के रहने का बंदोबस्त भी उस ने अपने घर में ही कर दिया था. पहली मंजिल पर धनंजय, उन का बेटा चेतन और चेतन का दोस्त हितेश रहता था, जबकि नीचे के भाग में महेंद्र अपनी पत्नी श्वेता के साथ रहता था.

कुछ दिनों तक तो हितेश कर्तकपांडी ठीक रहा, लेकिन जैसेजैसे वह महेंद्र के परिवार में घुलता गया, उस की झिझक भी दूर हो गई. वह श्वेता से कुछ ज्यादा ही घुलनेमिलने लगा. देवर का रिश्ता होने की वजह से दोनों के बीच हंसीमजाक भी चलती रहती थी.

हितेश श्वेता को अपने रंग में रंगने की कोशिश करने लगा. यानी वह श्वेता को मन ही मन चाहने लगा था, जबकि श्वेता केवल चेतन की तरह हितेश को अपना देवर ही मानती थी. इस से आगे और कुछ नहीं. पति और देवर की तरह वह हितेश का भी टिफिन तैयार कर देती थी.

घटना के दिन हितेश काम पर तो सब के साथ गया, लेकिन कुछ देर बाद वह घर वापस आ गया. श्वेता के पूछने पर उस ने सिरदर्द का बहाना बनाया.

श्वेता ने उसे चाय के साथ सिरदर्द की गोली दे कर उसे ऊपर के कमरे में जा कर आराम करने को कहा और फिर वह घर के कामों में लग गई. उसे क्या मालूम था कि उस की मौत का वारंट निकल चुका था.

हितेश ऊपर के कमरे में न जा कर कुछ देर तक श्वेता के सौंदर्य को निहारता रहा. इस के बाद जब श्वेता बाथरूम में चली गई तो उठ कर हितेश ने अपनी योजना के अनुसार टीवी की आवाज तेज कर दी, साथ ही एसी का टेंपरेचर भी हाई कर दिया. फिर वह श्वेता के साथ मनमानी करने के उद्देश्य से बाथरूम की तरफ गया.

बाथरूम का दरवाजा खुलते ही वह श्वेता से मनमानी करने पर उतर आया. उस ने श्वेता को दबोच लिया और बोला, ‘‘भाभी, आज मुझे अपने मन की मुराद पूरी कर लेने दो. मैं ने जब से तुम्हें देखा है, तब से तड़प रहा हूं. दिन का चैन और रातों की नींद हराम हो गई है.’’

हितेश की यह बात सुन कर श्वेता बुरी तरह घबरा गई थी. अपने आप को उस से बचाने के लिए वह पूरे कमरे में इधरउधर भागने लगी. वह अपने बचाव के लिए चीखचिल्ला भी रही थी लेकिन टीवी की तेज आवाज में उस की आवाज दब गई थी.

हितेश के सिर पर वासना का भूत कुछ इस तरह सवार था कि उस के सोचनेसमझने की सारी शक्ति खत्म हो गई थी. वह श्वेता के जिस्म के लिए पागल सा हो गया था. हितेश की इस हरकत से श्वेता भी अपना आपा खो बैठी थी. वह कमरे में रखा सामान तोड़ने लगी ताकि आवाज सुन कर पड़ोसी आ जाएं.

मुख्य दरवाजे पर आधुनिक लौक लगा था,जिसे वह जल्दबाजी में खोल नहीं सकी. उस समय श्वेता की ऐसी स्थिति थी, जैसे एक पिंजरे में बाघ के सामने बकरी की होती है. इस दौरान उस के कपड़े भी फट गए थे.

अपने मकसद में कामयाब न होते देख हितेश को श्वेता पर गुस्सा आ गया. वह किचन में गया और वहां से सब्जी काटने वाला चाकू उठा लाया. उस चाकू से उस ने श्वेता के गले और सीने पर कई वार कर के उसे मौत के घाट उतार दिया और उस की लाश को बाथरूम के पास डाल दिया.

श्वेता की हत्या के बाद वह बुरी तरह डर गया था. कुछ समय तक वह वहीं बैठा रहा. इस के बाद उस ने बाथरूम में जा कर अपने हाथमुंह साफ किए, कपड़े बदले और कमरे को उसी स्थिति में छोड़ कर अपने काम पर चला गया. दरवाजा भिड़ते ही आधुनिक लौक फिर से बंद हो गया था.

पुलिस टीम ने हितेश कर्तकपांडी से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उस के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 452 के तहत मुकदमा दर्ज कर उसे पुलिस हिरासत में आर्थर रोड जेल भेज दिया.

जांच अधिकारी पीआई इमाम शिंदे और सुभाष दुधगांवकर ने अपनी जांच पूरी कर मामले का आरोपपत्र अदालत में दाखिल कर दिया. कथा लिखने तक मामला अदालत में विचाराधीन था.

साइको औरत का कारनामा : अपने हाथों से उजाड़ा अपना संसार

सुखवंत कौर पिछले कई दिनों से इस पशोपेश में थी कि आखिर ऐसी क्या वजह है कि उस का पति आजाद सिंह परेशान सा रहता है. उस के चेहरे की मुसकराहट भी जैसे कहीं उड़ गई थी. बातबात पर खीझ उठना, किसी बात का ठीक से जवाब न देना जैसे अब आजाद सिंह की आदत बन गई थी. पहले औफिस से लौटने के बाद वह घर में हंसीमजाक किया करता था और बच्चों के साथ घंटों खेला करता था.

बच्चों से उन के स्कूल और पढ़ाई के बारे में भी बात करता था. लेकिन अब ऐसा लग रहा था, जैसे उसे किसी से कोई वास्ता ही नहीं रह गया हो. औफिस से लौटने के बाद बिना किसी से कोई बात किए अपने कमरे में चले जाना और घंटों फोन पर किसी से बातें करना, बस यही उस की आदत बन गई थी.

सुखवंत कौर ने कई बार पूछा भी था कि ऐसी क्या बात हो गई है, जिस वजह से तुम हर समय परेशान और उखड़े से रहते हो? इस पर आजाद ने बड़े रूखेपन से जवाब दिया, ‘‘कुछ नहीं हुआ है, तुम अपने काम से काम रखो और इन फालतू बातों को छोड़ कर घरगृहस्थी पर ध्यान दो.’’

‘‘क्यों जी, क्या हम इस घर के मेंबर नहीं हैं. मैं तो आप की पत्नी हूं, आप की परेशानी को जानना मेरा फर्ज है. अगर कोई ऐसीवैसी बात या कोई समस्या है तो मुझे बताओ, हम सब मिल कर उस का समाधान निकालेंगे.’’ सुखवंत कौर बोली.

‘‘मैं ने कहा न, कोई बात नहीं है. बस तुम मुझे अकेला छोड़ दो.’’ आजाद ने पत्नी को डांटते हुए कहा तो सुखवंत कौर खामोश हो कर घर के कामों में जुट गई. लेकिन वह रोजरोज आजाद से इस विषय में जरूर पूछ लिया करती थी. यह अलग बात है कि आजाद ने उसे कभी कोई बात नहीं बताई, हमेशा वह उसे डांट कर चुप करा देता था.

आजाद के स्वभाव में आए इस बदलाव के कारण पतिपत्नी के बीच जैसे दीवार सी खड़ी होने लगी थी. नौबत यहां तक आ पहुंची कि पिछले एक महीने से आजाद ने पत्नी और बच्चों से बात तक करनी बंद कर दी थी. पति के इस रवैए से सुखवंत कौर तनाव में रहने लगी थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वह ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है.

इस हालात में कुलवंत कौर का स्वभाव भी चिड़चिड़ा हो गया था. जिस घर में पहले सुखशांति थी, अब वहां क्लेश ने डेरा डाल लिया. जो सुखवंत कौर पहले पति की हर बात मानती थी, अब वही पति से जबान लड़ाने लगी. उस के मन में अब पति के लिए पहले जैसा प्यार नहीं रहा था. बल्कि धीरेधीरे अब वह आजाद सिंह पर हावी होने लगी.

आजाद सिंह जालंधर के एक बैंक में काम करता था. वह एक दिन जब घर से ड्यूटी के लिए निकलने लगा तो सुखवंत कौर ने चिल्लाते हुए कहा, ‘‘शाम को टाइम से घर आ जाना, मैं कोई बहाना नहीं सुनूंगी. याद रखना कि अगर शाम को टाइम से नहीं लौटे तो तुम्हारा वो हाल करूंगी कि जिंदगी भर याद करोगे.’’

सुखवंत कौर का पारा जैसे सातवें आसमान पर था. वह बिना कुछ सोचे बोलती जा रही थी. हालांकि उस समय उस का 12 वर्षीय देवर करन तथा एक पड़ोसन भी वहीं बैठी हुई थी. लेकिन सुखवंत को किसी की परवाह नहीं थी. वह अपनी ही धुन में बोलती जा रही थी. किसी के सामने क्या बात कहनी है क्या नहीं, उसे इस से कोई मतलब नहीं था.

society

वह कह रही थी, ‘‘आखिर मैं पत्नी हूं तुम्हारी. लेकिन तुम मेरी तरफ कोई ध्यान नहीं देते. तुम्हें तो बस अपने काम की ही पड़ी रहती है. अब मैं यह उपेक्षा बरदाश्त नहीं करूंगी. तुम्हें मेरे लिए भी टाइम निकालना पड़ेगा.’’

पत्नी की बातें सुन कर आजाद को भी गुस्सा आ गया. उस ने डांटते हुए कहा, ‘‘तुम जिस प्यारप्यार का गीत चौबीसों घंटे अलापती रहती हो, वह प्यार नहीं तुम्हारी हवस है. तुम 40 साल की हो चुकी हो, 2 बच्चे भी. तुम चाहती हो कि ऐसे में मैं बच्चों के भविष्य को भूल कर हर समय तुम्हारे साथ बिस्तर में घुसा रहूं? अरे कुछ तो शरम करो, बच्चे और पड़ोसी तुम्हारी हरकतें सुनेंगे तो क्या सोचेंगे.’’

‘‘कोई कुछ भी सोचे, मुझे किसी से कोई मतलब नहीं है और फिर तुम मेरे पति हो कोई गैर नहीं.’’ वह बोली.

‘‘देखो सुखवंत, हर काम का एक समय होता है. तुम अपने आप को घर के कामों और बच्चों के भविष्य के बारे में लगाओ. यह बेकार की बातें सोचना बंद कर दो. मुझे बैंक के लिए देर हो रही है, मैं चला.’’ कह कर आजाद घर से निकल गया. पति के जाने पर सुखवंत गुस्से से पांव पटकती रह गई.

आजाद सिंह जालंधर के बाहरी इलाके रामामंडी के रहने वाले कृपाल सिंह का बेटा था. उस के पिता भारतीय रेलवे में नौकरी करते थे. उसी दौरान उन्होंने रामामंडी के ही जोगिंदर नगर में एक प्लौट खरीद कर बड़ा सा मकान बना लिया था. सन 2011 में वह सरकारी नौकरी से रिटायर हो गए थे.

कृपाल सिंह के परिवार में 3 बेटे और 3 बेटियां थीं. जैसेजैसे बच्चे जवान होते गए, उन्होंने उन की शादी कर दी. आजाद की शादी उन्होंने जनवरी, 2005 में सुखवंत कौर के साथ कर दी थी. वह प्राइवेट यूनिकोड बैंक की जालंधर शाखा में नौकरी करता था.

पिछले 12 सालों से आजाद अपनी पत्नी के साथ न्यू दशमेशनगर में रहता था. क्योंकि सुखवंत की अपने सासससुर से नहीं बनती थी, इसलिए वह उन से अलग रहती थी.

सब कुछ ठीक था, उन के 2 बच्चे भी हो गए थे जो अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे हैं. आजाद सिंह का एक ही सपना था कि बच्चों को उच्चशिक्षा दिलाए ताकि उन्हें अच्छी सरकारी नौकरी मिल जाए. इस के लिए वह अधिक से अधिक पैसे कमाना चाहता था और इस के लिए वह 2-3 घंटे ओवरटाइम करता था.

बस यहीं से झगड़े की शुरुआत हो गई. सुखवंत चाहती थी कि उस का पति समय से घर आ कर उस के साथ रहे. इसी बात को ले कर वह पति से झगड़ती रहती थी. बड़ेबुजुर्गों और रिश्तेदारों ने भी सुखवंत को कई बार समझाया पर उस ने किसी की बातों पर ध्यान नहीं दिया.

बैंक में आजाद के साथ महिलाएं भी काम करती थीं. काम के सिलसिले में आजाद के साथ काम करने वाली महिलाओं से भी बातचीत होती रहती थी. वैसे भी औफिस में महिलाएं हों या पुरुष, काम के लिए एकदूसरे से बातचीत करते ही हैं.

एक दिन अचानक सुखवंत कौर आजाद के बैंक पहुंच गई. उस समय आजाद किसी महिला सहकर्मी के साथ किसी फाइल के बारे में विचारविमर्श कर रहा था.

पति को उस महिला के साथ देख कर सुखवंत के तनबदन में आग लग गई. उस ने बिना किसी से कुछ पूछे बैंक में ऐसा हंगामा खड़ा कर दिया कि कर्मचारी देखते ही रह गए. किसी तरह बैंक मैनेजर व अन्य कर्मचारियों ने उसे समझाया तो वह घर लौट गई.

बात यहीं समाप्त नहीं हुई. आजाद जब घर लौटा तो सुखवंत ने चिल्लाते हुए पूरा गांव ही इकट्ठा कर लिया. इस से आजाद और उस के परिवार की बड़ी जगहंसाई हुई थी. सुखवंत के दिमाग में इस बात का शक पैदा हो गया था कि पति उसे टाइम देने के बजाय बाहर की महिलाओं के साथ गुलछर्रे उड़ाता है. इस के बाद यह रोज का ही सिलसिला बन गया था. आजाद सिंह बैंक जाने के लिए जैसे ही घर से निकलने को होता, सुखवंत की बकबक शुरू हो जाती थी.

4-5 फरवरी, 2018 की बात है. उस दिन किसी वजह से आजाद सिंह समय पर बैंक नहीं पहुंचा था. वह घर पर ही था. उधर बैंक में किसी जरूरी फाइल की जरूरत पड़ गई. वह फाइल मिल नहीं रही थी. एक महिला सहकर्मी ने आजाद के वाट्सऐप नंबर पर फोन कर के फाइल के विषय में जानना चाहा तो अचानक कमरे में सुखवंत आ गई.

उस ने फोन पर महिला का फोटो देखा तो उस का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया. जैसे ही आजाद कमरे में आया तो पत्नी ने हंगामा शुरू कर दिया. आजाद ने पत्नी को समझाने की कोशिश की, पर वह यही कहती रही कि जिस महिला ने यह फोन किया, उस से तुम्हारा जरूर चक्कर है.

आज मैं ने देख लिया है तो पता चल गया. अब मैं समझी कि ओवरटाइम के बहाने तुम इसी औरत के साथ गुलछर्रे उड़ाते हो, पर अब मैं ऐसा नहीं होने दूंगी.

एक दिन आजाद सिंह ने एक बहुत बड़ी गलती यह कर दी कि पत्नी की गलतफहमी दूर करने और अपना पक्ष रखने के लिए वह उस महिला सहकर्मी को अपने साथ घर ले आया, जिस ने वाट्सऐप पर काल की थी. वह महिला सुखवंत को यह समझाने आई थी कि फोन करने की वजह बता सके. परंतु सुखवंत कौर ने उस महिला को बोलने तक का मौका नहीं दिया.

वह बोली कि देखो अब तो यह औरतों को भी घर लाने लगा है. यह उसी के चक्कर में मुझ से प्यार नहीं करता. गांव के लोग यह तमाशा देख सोच में पड़ गए. वास्तविकता क्या थी, इस से किसी को कोई मतलब नहीं था. बहरहाल, कई घंटों के वाकयुद्ध के बाद बात खत्म हुई.

20 फरवरी, 2018 को सुबह 9 बजे की बात है. कृपाल सिंह को आजाद के एक पड़ोसी ने फोन पर सूचना दी कि खून से लथपथ आजाद सिंह जोहल अस्पताल जालंधर में भरती है. असमंजस की हालत में कृपाल सिंह ने यह सूचना तुरंत अपने दोनों बेटों और परिवार के अन्य सदस्यों को दे दी और खुद जोहल अस्पताल पहुंच गए.

तब तक थाना रामामंडी की पुलिस चौकी के इंचार्ज एसआई रविंदर कुमार, एएसआई परमजीत सिंह, हवलदार दलजिंदर लाल, सुखप्रीत सिंह, कांस्टेबल अमनदीप सिंह और संदीप कुमार वहां पहुंच चुके थे.

आजाद सिंह गंभीर रूप से घायल था और उस समय आईसीयू में वेंटीलेटर पर था. पुलिस द्वारा पड़ोसियों से की गई पूछताछ में पता चला कि बीती रात से ही आजाद के घर से पतिपत्नी के झगड़े की आवाजें आ रही थीं, फिर सुबह करीब 3 बजे आजाद के जोरजोर से चीखने की आवाज आई और उस के बाद खामोशी छा गई.

सुबह जब वे आजाद के घर की तरफ गए तो उस के घर के बाहर ताला लगा था. सुखवंत का भी कहीं कुछ पता नहीं था. इस के बाद मोहल्ले वालों ने मिल कर ताला तोड़ा. जब अंदर गए तो आजाद खून से लथपथ हालत में पड़ा था. वहां से उसे जोहल अस्पताल ले आए. इस के बाद उस के पिता कृपाल को भी खबर कर दी. पुलिस ने कृपाल सिंह से भी पूछताछ की.

डाक्टरों के अनुसार, आजाद का गुप्तांग काट दिया गया था, जिस से उस के शरीर से भारी मात्रा में खून निकला था. आजाद की हालत इतनी गंभीर थी कि वह बयान तक देने की हालत में नहीं था. उस की पत्नी गायब थी, इसलिए सभी का शक उस की पत्नी पर ही जा रहा था. एएसआई परमजीत सिंह को अस्पताल में छोड़ कर थानाप्रभारी खुद पुलिस टीम के साथ सुखवंत की तलाश में निकल पड़े. वह जालंधर के बसअड्डे की तरफ जाती मिल गई. पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया.

पुलिस चौकी में सुखवंत कौर से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने पति का यह हाल किया है. चौकीइंचार्ज रविंदर कुमार ने सुखवंत कौर को अदालत में पेश कर 2 दिन का रिमांड लिया. पुलिस को आशंका थी कि सुखवंत कौर के साथ इस वारदात में कोई और भी शामिल रहा होगा.

सुखवंत कौर ने कबूला कि उस का पति आजाद उसे समय नहीं देता था. वह पति के साथ सिर्फ पर्सनल समय चाहती थी, मगर पति ने उसे इतनी भी छूट नहीं दी कि वह उस पर अपना अधिकार जता सके. क्योंकि पति ने अपना वक्त उस दूसरी महिला को देना शुरू कर दिया था जो महज 4 महीने पहले उस की जिंदगी में आई थी.

सुखवंत कौर के अनुसार उस का पति घर पर भी उस महिला से पूरापूरा दिन और रात को फोन पर बात व वाट्सऐप चैट करता रहता था. इस के बाद तो उस ने हद ही कर दी. वह रात को भी बाहर रहने लगा.

एक दिन उस ने वाट्सऐप चैटिंग पढ़ी तो हैरान रह गई. जब नौबत हर चीज शेयर करने तक आ गई तो उस से रहा नहीं गया. पति से जब इस विषय पर बात करना चाहती तो वह मना कर के अलग सो जाता था. बच्चों के साथ भी कोई बातचीत नहीं करता था.

एक दिन जब वह उसी महिला को घर साथ ले आया तो उसे बहुत गुस्सा आया. सुखवंत ने बताया कि इस के बाद वह डिप्रैशन में रहने लगी. जब 2 दिन पहले पति घर लेट आया तो बिना खाना खाए सोने लगा. उस ने 2 मिनट बात करने को कहा तो बोला कि दूसरे कमरे में जा कर सो जाओ. तब वह रात भर खूब रोई.

इस के बाद उस ने ठान लिया कि जब पति उस का नहीं है तो वह उसे किसी और के लायक भी नहीं छोड़ेगी. वह घर में रखा सब्बल उठा लाई और सीधे सो रहे पति के सिर पर मार दिया. इस के बाद चापर से उन का गुप्तांग काट कर उसे फ्लश में बहा दिया. फिर वह घर का ताला बंद कर के चली गई. वह अपने मायके जा रही थी कि पुलिस के हत्थे चढ़ गई.

अंत में जिंदगी और मौत से लड़ते हुए आजाद सिंह ने 25 फरवरी को दम तोड़ दिया. इस बारे में सिविल अस्पताल के मनोचिकित्सक डा. संजय ने बताया कि यह एक पर्शियल होमिसाइड का मामला है. आदमी को जिंदा भी रखो और सारी उम्र के लिए मार भी दो. इस केस को देखा जाए तो आरोपी काफी दिनों से डिप्रैशन में थी, क्योंकि इतना बड़ा कदम उठाना काफी हैरत की बात है.

ऐसा काम कोई तभी कर सकता है, जब या तो वह उस व्यक्ति से बेहद नफरत करे या फिर उस से बेहद लगाव हो. यह घटना बिलकुल सुसाइड करने जैसी है, क्योंकि सुसाइड करते वक्त भी व्यक्ति को एक तरीके का इंपल्स आता है, जिस में व्यक्ति अपनी सुधबुध खो बैठता है और आपा खो कर जिंदगी खत्म कर लेता है.

पुलिस ने सुखवंत कौर की निशानदेही पर लोहे की रौड और चापड़ भी बरामद कर लिया. कागजी कदाररवाई पूरी होने और रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद सुखवंत को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ऐसे गूंजेगी सूनी गोद में किलकारियां

बांझपन एक आम समस्या है और देश में ऐसे दंपतियों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जो संतानहीनता के शिकार हो रहे हैं. मगर इस के लिए कहीं न कहीं हम खुद भी जिम्मेदार हैं. यों तो आज इतनी ऐडवांस टैक्नोलौजी आ गई है जिस से सूनी गोद को भरा जा सकता है लेकिन यह इलाज हर किसी के लिए संभव नहीं होता.

आइए, जानते हैं कि इस समस्या से किस तरह छुटकारा पाया जा सकता है:

नशे से दूर रहें: रिसर्च में यह साबित हुआ है कि उन महिलाओं में बांझपन का खतरा अधिक बढ़ जाता है, जो धूम्रपान करती हैं. सिर्फ आप के छोड़ने से ही यह समस्या हल नहीं होगी बल्कि अगर आप का पार्टनर भी इस का आदी है तो उसे भी इसे छोड़ने का निश्चय करना पड़ेगा ताकि आप मां बनने का हसीन आनंद ले पाएं.

शराब का सेवन न सिर्फ सेहत पर वार करता है, संतानहीनता की प्रमुख कारण भी है. इसलिए शराब से दूरी बनाए रखें.

खुद को न मानें दोषी: कई बार हम बांझपन के लिए खुद को इतना अधिक दोषी मान बैठते हैं कि डिप्रैशन तक में चले जाते हैं या फिर इस से अपनी पर्सनल लाइफ तक प्रभावित कर देते हैं जबकि आज इस समस्या से हर 8 में से 1 कपल प्रभावित है. इसलिए खुद को या एकदूसरे को दोष देना बंद करें.

न लें तनाव: रिसर्च में यह साबित हुआ है कि तनाव से फर्टिलिटी पर प्रभाव पड़ता है. इसलिए ऐसे टाइम में तनाव से दूर रहें और दोस्तों व परिवार के संग ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं जिस से आप खुद को खुश रख पाएं.

आईवीएफ ऐक्सपर्ट की राय लें: अगर आप 1 साल से प्लान कर रहे हैं और आप को गर्भधारण में निराशा ही हाथ लग रही है तो आईवीएफ ऐक्सपर्ट को जरूर दिखाएं ताकि सही समय पर सही ट्रीटमैंट मिलने से आप मां बन सकें. ध्यान रखें ज्यादा देरी करना आप के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है.

एआरटी क्लीनिक बैस्ट विकल्प: आप असिस्टिड रीप्रोडक्टिव टैक्नोलौजी की मदद लें क्योंकि इस से लंबे समय तक असफल होने वाले कपल्स को भी सफलता मिली है. लेकिन इस बात का खास ध्यान रखें कि जल्दबाजी में नीमहकीमों के चक्करों में न फंसें और समझदारी से एआरटी क्लीनिक को चुन कर अपनी जिंदगी को नई खुशियों से भर दें.

नियमित व्यायाम करें: अधिकांश महिलाओं की यही सोच होती है कि इस से पीरियड्स में या इस से पहले मां बनने की कोशिश में ज्यादा ऐक्सरसाइज करने से फर्टिलिटी पर इफैक्ट पड़ता है जबकि ऐसा कुछ नहीं है. अगर आप डाक्टर की राय से सबकुछ करेंगे तो चीजें बिगड़ने का डर नहीं रहेगा. आप को बता दें कि जो महिलाएं व्यायाम ज्यादा करती हैं नौर्मल डिलीवरी के चांसेज उन के ज्यादा होते हैं और वे प्रैग्नैंसी के दौरान भी खुद को मैंटेन रख पाती हैं.

थाइराइड चेक कराना जरूरी: आजकल थाइराइड की समस्या आम हो गई है. सिर्फ महिलाओं को ही नहीं, बल्कि पुरुषों को भी इस समस्या को फेस करना पड़ता है. इस समस्या से न सिर्फ आप मोटे या पतले होंगे बल्कि गर्भधारण करने में भी परेशानी आती है.

इसलिए आप हर 3 महीने में थाइराइड चैक कराती रहें जिस से बीमारी को समय पर कंट्रोल किया जा सके.

डाइट का रखें खास खयाल: अगर आप प्रैग्नैंट होना चाहती हैं तो फर्टिलिटी डाइट लेना शुरू कर दें. इस के लिए आप फू्रट्स और सब्जियों को ज्यादा से ज्यादा अपनी डाइट में शामिल करें और डिब्बाबंद खाने से दूर रहें. ट्राई करें प्रीनैटल विटामिन विद फौलिक एसिड लेने की, जिस से दोष दूर हो कर गर्भधारण के चांसेज बढ़ते हैं.

– डा. अर्चना धवन बजाज, गाइनोकोलौजिस्ट ऐंड आब्सेट्रिशियन, द नर्चर क्लीनिक

अब पछताए क्या होत : बाबा बनने का हुनर

उस दिन कई दिनों बाद थोड़ी गुनगुनी धूप निकली हुई थी. सर्दी के मौसम में गुनगुनी धूप और वह भी शनिवार को जब आस्ट्रेलिया में सभी व्यापारिक संस्थान बंद होते हैं, सोने पर सुहागा वाली बात थी.

मैं अवकाश का आनंद लेने किलडा बीच पर चला आया था. काफी देर तक वहां प्राकृतिक दृश्यों का लुत्फ लेता रहा. कुछ ऐसे नजारे भी देखे जो विदेशों में ही देखे जा सकते थे. उस के बाद मैं लूणा पार्क चला आया था. दोपहर के बाद फलिंडर स्ट्रीट स्टेशन के निकट भारतीय रैस्टोरैंट फलोरा में खाना खाने के पश्चात सराइन आप रिमैंबरेंस चला गया और वहां काफी देर बैठा रहा.

जब घर लौटा तो आंसरिंग मशीन और मेरे मोबाइल पर भी एक मित्र के कई संदेश आए हुए थे.

मैं ने तुरंत उस का नंबर डायल किया. उस ने फोन उठाते ही गुस्से से कहा, ‘‘कहां गायब हो गया था सुबह से? मैं तो फोन करकर के थक गया. तुम तो मोबाइल भी नहीं उठा रहे थे.’’

‘‘सौरी यार,’’ मैं ने कहा, ‘‘मैं मोबाइल घर पर ही भूल गया था.’’ उस से मैं ने कह तो दिया लेकिन वास्तव में मैं स्वयं ही जानबूझ कर मोबाइल घर छोड़ गया था. वास्तव में मैं शांति से दिन गुजारना चाहता था.

मेरे यह पूछने पर कि कैसे याद किया, उस ने अत्यंत प्रसन्नता से बताया, ‘‘ओह यार, आजकल इंडिया से अपने गुरु महाराज आस्ट्रेलिया आए हुए हैं. कल वे हमारे घर पर प्रवचन करेंगे. तुम अवश्य आना.’’

‘‘यार, मुझ से कहां आया जाएगा?’’

‘‘क्यों, तुम्हारे क्या पैर भारी हैं?’’

‘‘तुम जानते तो हो, मेरी धार्मिक कार्यों में…’’

‘‘दिलचस्पी नहीं,’’ उस ने मेरी बात काटते हुए कहा, ‘‘वाइन की तो पूरी बोतल डकार जाता है मगर धार्मिक कार्यों के नाम पर तुम्हारे पेट में मरोड़ उठने लगती है.’’ उस ने अपनत्व की भावना से आगे कहा, ‘‘ज्यादा इधरउधर की मत हांक… और हां, आते हुए बेबी तथा उस के बच्चों को भी साथ ले आना. जीजाजी तो सिडनी गए हुए हैं.’’

लो, एक और मुसीबत गले पड़ गई. मेरे घर से मैलटन, जहां उस की बहन बेबी रहती है, कम से कम 45 किलोमीटर दूर होगा. पहले तो शायद न जाता, मगर अब तो उस की बहन और बच्चों को भी साथ ले कर जाना पड़ेगा. फोन पर मेरी ओर से कोई जवाब न मिलने पर वह बोला, ‘‘क्या हुआ, मेरी आवाज सुनाई नहीं दे रही है?’’

‘‘अरे, सुन रहा हूं भई, निश्ंिचत रह, मैं बेबी तथा बच्चों को साथ ले आऊंगा.’’

‘‘यार, तुम से एक और रिक्वैस्ट है,’’ उस की आवाज अत्यंत हलीमीभरी थी, ‘‘गुरु महाराज को 100 डौलर से कम दक्षिणा मत देना.’’

‘‘अरे, यह भी कोई कहने वाली बात है,’’ मैं ने तुरंत कह तो दिया, लेकिन मन ही मन यह अवश्य सोचा था कि यहां डौलर छापने की मशीन तो नहीं लगी हुई है. इसे क्या मालूम कि ट्रेन के किराए

के 5-6 डौलर बचाने के लिए मैं 5 किलोमीटर की दूरी पर अपने इंस्टिट्यूट तक प्रतिदिन पैदल आताजाता हूं.

खैर, मैं उस के घर चला गया, वहां उस के कई रिश्तेदार तथा परिचित आए हुए थे.

मैं ने धीरे से 50 डौलर महाराज के सिंहासन के सामने पड़ी थाली में डाल कर माथा टेक दिया, लेकिन अगले ही पल हिसाब भी लगा लिया कि भारतीय करैंसी में कितने रुपए बन गए तथा मन ही मन अपनेआप को कोसते हुए तथा मित्र को भी एक भद्दी सी गाली निकालते हुए कहा, ‘ससुरे ने अढ़ाईतीन हजार रुपए का नुकसान करवा दिया.’

गुरु महाराज प्रवचन देने लगे. उन का एकएक बोल मनमंदिर के किवाड़ खोल रहा था. चांदी जैसे उज्ज्वल वस्त्रों से सुशोभित वे किसी देवर्षि की तरह लग रहे थे. सचमुच ही ऊपर वाले ने इन महापुरुषों को कोई विशेष गुण दिया होता है. मगर गुरु महाराज की ओर देखते हुए यों प्रतीत हो रहा था मानो वे मेरे परिचित हों, लेकिन यह मेरे मन का वहम हो सकता था, क्योंकि मैं तो इंडिया में रहते हुए भी कभी किसी धार्मिक सम्मेलन में नहीं गया था.

महाराज को चढ़ावा भी काफी चढ़ गया था. घर वालों ने भी सोने की मोटी चेन, हाथ का कड़ा तथा डौलरों से भरा लिफाफा उन के चरणों में रख दिया था. तदोपरांत लंगर छक कर संगत चली गई थी.

महाराजजी से परिचय करवाने के लिए मेरा मित्र मुझे उन के निकट ले गया. मगर उस की बात पूरी होने से पहले ही महाराज बोल पड़े थे, ‘‘मैं जानता हूं इन्हें, डा. शुक्ला हैं. समाचारपत्रों में अकसर मैं इन के बारे में पढ़ता रहता हूं.’’ और उन्होंने मुझ से पूछा, ‘‘तू ने पहचाना नहीं मुझे? मैं रमेश हूं, मेछी?’’ और उन्होंने मुसकराते हुए मेरे मित्र से परदाफाश कर दिया, ‘‘यह तो मेरे साथ ही गांव के स्कूल में पढ़ा करता था.’’

पलभर में ही चलचित्र की रील की तरह सबकुछ मेरी आंखों के सामने घूमने लगा था. तभी तो महाराज का चेहरा मुझे इतना जानापहचाना लग रहा था.

हम दोनों गांव के राजकीय स्कूल में एकसाथ पढ़ते थे. वह पढ़ाई में नालायक विद्यार्थियों जैसा था, लेकिन बातचीत में इस कदर शातिर था कि आसमान को भी पैबंद लगा देता था. वह इस प्रकार की दलीलें देता कि झूठ भी सच साबित हो जाता था. हमारे अध्यापक अकसर उस से कहा करते थे कि तू इतना चालाक है कि बड़ा हो कर लीडर बनेगा. स्कूल में पढ़ते समय ही वह देसी शराब और सिगरेट भी पीता था.

मुझे अभी तक याद है कि कैसे उस ने एक बार मुझे पीटा था और मुख्य अध्यापक से भी मेरी पिटाई करवाई थी. स्कूल के निकट ही साइकिल पर तिनके वाली कुल्फी बेचने वाला आया करता था. एक टके (2 पैसे) की एक कुल्फी. मेछी (रमेश) ने मुझ से कुल्फी ले कर देने को कहा था. मैं ने मना कर दिया तो उस ने मुझे 3-4 थप्पड़ रसीद कर दिए. मैं ने उसी समय मुख्य अध्यापक से उस की शिकायत कर दी. उन्होंने झटपट उसे बुला लिया. लेकिन मेछी ने सरासर झूठ बोलते हुए पासा ही पलट दिया, ‘सर, यह बिना किसी बात के मुझे गालियां दे रहा था. मुझे क्रोध आ गया और तब मैं ने इस के 2-4 चांटे लगा दिए.’’ मुख्य अध्यापक ने उस की बात पर विश्वास करते हुए 2-3 थप्पड़ मारते हुए मुझे डांटा, ‘‘एक तो गालियां बकता है और फिर शिकायत भी करता है.’’

और तभी उन्होंने झट से मेछी को आदेश दे डाला, ‘‘लगा इस के दोचार थप्पड़ और.’’ मेछी ने फिर मेरे चांटे मार दिए. मैं स्तब्ध सा मुख्य अध्यापक के कार्यालय से जब बाहर आया तो मेछी ने पहले से भी ज्यादा अकड़ कर कहा, ‘‘अब कुल्फी ले कर देगा या तेरी और करवाऊं पिटाई.’’

….और आज वही मेछी मेरे सम्मुख सिंहासन पर विराजमान है.

गुरु महाराज से बहुत सारी बातें हुईं. उन के अमेरिका, कनाडा, इंगलैंड, आस्ट्रेलिया जैसे देशों में आश्रम भी थे और उपासक भी. मेरे आकलन के अनुसार, उन के पास करोड़ों की संपत्ति तो अवश्य होगी.

घरपरिवार के बारे में पूछने पर उन्होंने मुसकराते हुए कहा था, ‘साधुसंतों का परिवार तो उन के शिष्य होते हैं. यही लोग हमारा परिवार हैं तथा समाज भी.’

गुरु महाराज तो शाम की फ्लाइट से अपने भक्तों से मिलने के लिए ब्रिसबेन चले गए थे मगर मेरे मन की यादों की पिटारी खोल गए थे.

मैं बचपन से ही संगीतप्रेमी था और नाटकों में अभिनय भी किया करता था. गाना गाने के लिए स्कूल की ओर से हमेशा मुझे ही भेजा जाता था. और मैं हर बार कोई न कोई पुरस्कार प्राप्त करता था.

कहीं भी ढोल बजने लगता तो स्वयं ही मेरे पैर थिरकने लग जाते.

हमारे गांव से 4-5 किलोमीटर की दूरी पर एक गांव में मजार है. कुछ लोग अपने कष्ट दूर करने के बहाने वहां जाते थे. जिन लोगों में पीर की ‘हवा’ आती थी, वे वहां ‘खेलने’ (झूमने) लगते थे. वहां यह मान्यता भी थी कि लगातार 5 बार वहां जाने से मनोकामना पूरी हो जाती है.

मैं भी प्रत्येक वीरवार ऊबड़खाबड़ और कंकड़ोंभरे रास्ते पैदल चल कर वहां जाता था. मगर शायद मेरी भावना में स्वार्थीपन अधिक तथा श्रद्धा कम थी. लेकिन लगातार 5 बार जाने के बावजूद मेरी मनोकामना पूरी नहीं हुई थी. आप यह भी जानना चाहोगे कि मैं वहां क्या मांगता था. वास्तव में मैं वहां जा कर हर बार यही प्रार्थना किया करता था कि पीर मुझे भी ‘खेलने’ में लगा दे.

लेकिन मेरी ख्वाहिश मन में ही रह गई थी.

गांव में एक कुम्हारों यानी मुसलमानों का घर था. अब तो पूरी तरह याद नहीं कि  वे लोग कुम्हार थे या मुसलमान. वर्षों पुरानी बात है. उन के परिवार के सदस्यों में पीर की ‘हवा’ आती थी. वे लोग वीरवार वाले दिन शाम को ढोल बजाने लगते तथा कुछ समय बाद उन के परिवार का कोई सदस्य ‘खेलने’ लग जाता और अपने शरीर पर ‘छेंटे’ मारने लगता.

मैं कभीकभी उन के घर चला जाता था. वे लोग खुले आंगन में ढोल बजा कर ‘खेलते’ थे. लेकिन एक बार न जाने क्या हुआ. कुछ पता ही न चल पाया कि  कब ढोल की थाप मुझ पर हावी हो गई थी और मैं भी ढोल की थाप के साथसाथ झूमने लगा था. उन्होंने मुझे ‘छेंटा’ पकड़ा दिया और मैं ‘छेंटे’ से अपने शरीर पर वार करने लगा था तथा जैसे वे बोलते गए वैसे ही हक, हक… कहता रहा.

मगर शीघ्र ही यह खबर मेरे घर खबर पहुंच गई थी. मेरे घर वाले कुम्हारों को भलाबुरा कहते हुए मुझे घसीटते हुए ले गए थे. घर वालों ने मेरी धुनाई भी कर डाली थी और स्वयं भी बहुत परेशान हुए थे.

जंगल की आग की तरह यह खबर पूरे गांव में फैल गई थी कि मुझे भी असर हो गया है और मुझ में भी हवा आने लगी है.

एक दिन शाम को मैं बंजर जमीन की ओर जा रहा था. गांव की एक महिला ने मुझे रोक कर मेरे पांव छुए और गोद में उठाए हुए बालक की ओर इशारा करते हुए कहने लगी, ‘जी, कहते हैं इस पर किसी प्रेत का साया है. दिनभर रोता रहता है. आप कोई उपाय बताइएगा.’

और मैं ने भी झट से यों कह दिया जैसे मैं तंत्रविद्या में निपुण था. ‘इस के सिर के ऊपर से कलौंजी घुमा कर पक्षियों को डाल देना, शीघ्र ही ठीक हो जाएगा.’

वास्तव में उस महिला के पूछने पर तुरंत ही मुझे कुछ याद आ गया था. एक बार मेरी माताजी ने किसी साधु से मेरे बारे में पूछा था तो उस ने यह उपचार बताया था.

मुझ में हवा आने की खबर हमारे गांव से शीघ्र ही निकटवर्ती गांवों में जंगल की आग की तरह फैल चुकी थी. उस महिला की तरह और भी कई लोग अपने दुखों के समाधान के लिए मेरे पास आने लगे थे. दिमाग तो मेरा पहले से ही तेज था. मैं घरपरिवार में सुने टोटके और साथ ही अंधविश्वास से जुड़े ढंग भी बता देता था.

एक बार मैं कुबैहड़ी गांव जा रहा था. एक महिला अपने पोते को मेरे पास ला कर बोली, ‘महाराज, यह कुछ भी खातापीता नहीं है. दूध तो बिलकुल भी नहीं पीता. पहले तो पूरी बोतल पी जाता था. मुझे शक है कि मेरी बड़ी बहू ने इस के लिए टोना कर दिया है.’

मैं ने मस्तिष्क पर बल डाला तो मुझे शीघ्र ही याद आ गया कि जब मेरे छोटे भाई को भूख नहीं लगती थी तो एक हकीम ने बताया था कि लोहे के चाकू को गरम कर के दूध में डुबो कर उस दूध को पिलाना  चाहिए. मैं ने भी वही नुस्खा उसे बता दिया. और साथ में यह भी बोल दिया कि इस के गले में सुराख वाला तांबे का सिक्का काले धागे में डाल कर बांध देना.

संभवतया मेरी ख्याति और फैल जाती, अगर भेद न खुलता. दरअसल, उस औरत के बच्चे को भूख लगने लगी थी और वह खुश हो कर दूध की गड़वी तथा गुड़ का बड़ा सा ढेला मेरे घर दे गई थी, क्योंकि मेरे बतलाए उपाय से उस का पोता ठीक हो गया था.

एक वैज्ञानिक होने के नाते अब मैं स्पष्टीकरण दे सकता हूं कि लोहे के चाकू को गरम कर के दूध में डालने से उस दूध में खनिज पदार्थ लोहे की मात्रा बढ़ गई होगी और बच्चे की रक्ताल्पता (अनीमिया) में सुधार आ गया होगा. बाकी सब तो अंधविश्वास की बातें थीं जिन के बिना लोगों की संतुष्टि नहीं होती.

घरपरिवार में पता चलते ही मेरी खूब पिटाई हुई थी. पिताजी चीखचीख कर पूछ रहे थे, ‘तू कब से सयाना बन कर लोगों को उपाय बताने लगा है.’ उन्होंने मुझे गांव से निकाल दिया और लुधियाना पढ़ने भेज दिया. मैं बस डिगरियां ही प्राप्त करता रहा और एक वैज्ञानिक बन गया. अब तो सेवानिवृत्त भी हो चुका हूं.

….और आज गुरु महाराज से मिल कर सबकुछ याद आने लगा था, लेकिन मेरे मन में यह विचार भी बारबार कौंधता रहा कि इतनी उपाधियां प्राप्त कर के और अंतराष्ट्रीय स्तर का वैज्ञानिक बन कर मुझे क्या मिला. 34-35 वर्ष की नौकरी के उपरांत सेवानिवृत्त होने पर जितनी राशि मुझे मिली थी उतनी तो गुरु महाराज ने आस्ट्रेलिया के एक फेरे में ही बना ली होगी. फिर उन की और भी कई प्रकार की सेवाएं होती होंगी.

मुझे पछतावा होने लगा था. इस से तो अच्छा होता गांव में ही रहता. मेरी तो उन दिनों भी काफी ख्याति हो गई थी. अब तक मेरे भी कई बंगले व आश्रम बन जाते तथा करोड़ों में बैंक बैलेंस होता. मगर अब तो बहुत देर हो चुकी है. अब तो मेरा मन भी बारबार यही कह रहा है, अब पछताए क्या होत.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें